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Wednesday, September 30, 2020

अमृत ध्वनि छंद- हीरा गुरुजी समय

 अमृत ध्वनि छंद- हीरा गुरुजी समय



*माहंगी सस्ती*


भाजी पाला होत हे, रोज माहँगी आज।

जब ले छोड़े हन सबे, बारी बखरी काज।।

बारी बखरी, काज छोड़ अब, बजार करथन।

पइसा जादा, खरचा करके, झोरा भरथन।।

बखरी कमाय अपन हाथ जे होही राजी।

उही खायबर, पाही भाई , सस्ती भाजी।।


आलू गोभी माहँगी, कइसे बनही साग।

लूटत हवे बजार हा, बेटा तैंहा जाग।।

बेटा तैंहा , जाग अपन अउ, भाग जगाले।

ठलहा बइठे,छोड़ काज मा, लगन लगाले।।

अपन बाँह के, शक्ति लगा दे, मोर दयालू।

बखरी मा उपजाले भाजी गोभी आलू।।


*मोबाइल* 


मोबाइल मा हे चलत, पढ़ई तुँहर दुवार ।

एखर ले अब नइ परे, ददा उपर गा भार।

ददा उपर गा,भार पढ़ाए, के नइ आवे।

खुद लइका हा, होमवर्क सब, करते जावे। 

पढ़े लिखे बर निकले नावा हे इस्टाइल।

लइका बर वरदान बने हे अब मोबाइल।


*नवा जमाना* 


चिरहा फटहा बोचका, नवा जमाना पैंट।

बिना बाँह के पोलखा, महर महर हे सैंट।

महर महर हे, सैंट चुपर के, सेखी मारे।

बइठ फटफटी, घूमत हावे, देह उघारे।

नोहे गरीब नइ चढ़े उपर हे शनि गिरहा।

पइसा वाला मन पहिरे अब कुरता चिरहा।


हीरालाल गुरुजी"समय"

अमृतध्वनि छंद- विजेन्द्र वर्मा

 अमृतध्वनि छंद- विजेन्द्र वर्मा


कोरोना


कोरोना के आय ले,गाँव गली सब साँय।

कोनो कखरो नइ सुने,घर मा खुसरे जाय।

घर मा खुसरे,जाय सबो झन,मुँह ला बाँधे।

हाड़ माँस हा,थकगे अब तो,काला राँधे।

मनखे मन के,जिनगी अब तो,होगे रोना।

आय कहाँ ले,भग रे बइरी,तँय कोरोना।।


धमका


धमका मारत हे इहाँ,सूरज उगलत आग।

गरम हवा अइसे चलत,जाय कहूँ अब भाग।

जाय कहूँ अब,भाग इहाँ ले,छाँव पेड़ के।

काया लागय,सुग्घर शीतल,पार मेड़ के।

नइते मरना,होही अब तो,काया चमका।

पेड़ तरी मा,बइठव जा के,भागय धमका।।


मँय

मैं ला सब त्याग दन,काबर करी गुमान।

मँय मँय के रट ले इहाँ,खोथे सब जी मान।

खोथे सब जी,मान खुदे के,शीश नवाथे।

अंत समे मा,बड़ पछताथे,प्रान गँवाथे।

मन के भीतर,दीप जला ले,भाग जही मैं।

धन दौलत जी,नहीं काम के,कहँव सही मैं।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

Tuesday, September 29, 2020

अमृत ध्वनि छंद-बृजलाल दावना

 अमृत ध्वनि छंद-बृजलाल दावना


*नवा जमाना*


बदलत हावय अब मया, धन ले होगे प्रीत।

रिस्ता के नइ मान हे, कइसन आगे रीत।।

कइसन आगे, रीत बिगड़ गे, नवा जमाना।

पइसा बर अब, देख आज सब, बने दिवाना।।

मिलथे जब धन, दाई बाबू, नि सुहावय।

मनखे मन सब, रंग अपन अब, बदलत हावय।।


नवा जमाना जान के, सब्बो होगे खास।

मॉं बाबू बेटा बहू, सॅंग ससुर अउ सास।। 

सॅंग ससुर अउ, सास होय या, दादी दादा।।

रंग बिरंगी, जिनगी होगे, नइ हे सादा।।

चटक मटक हे, रहन सहन मा, होटल खाना।

करे दिखावा, सबो जिनिस मा, नवा जमाना।।


देखा देखी मा सबों, बिगड़त हवय समाज।

चिरहा फटहा ला पहिर, बेच डरे हे लाज।।

बेच डरे हे, लाज शरम ला, बीच बजरिया।

मन के नइ सुध, तन मा कपड़ा, पहिरे फरिया।।

बबा कहत हे, करही गा अब, कोन सरेखा।

नवा जमाना, बिगड़त हावय, देखी देखा।।


नवा जमाना आज के, कइसन दिन ले आय।

मनखे ले मनखे लड़े, जाति धरम हर खाय।।

जाति धरम हर, खाय बॉंट के, गॉंव शहर ला।

नेता मन सब, रोज लड़ाये, घोर जहर ला।

राजनीति मा, जाति धरम के, गाथे गाना।

भेद भाव के, खेल खेलथे, नवा जमाना।।


*बलिदान*


करना हे बलिदान ता, करव दोष के नाश।

लोभ मोह सब छोड़ दव, मार खाव झन लाश।।

मार खाव झन, लाश जीव के, तुमन इहॉं जी।

बरदान सुघर, जीव प्रकृति के, सार इहॉं जी।।

अॅंध बिश्वासी, खातिर परथे, जीव ल मरना।

बंद प्रथा हो, जीव जंतु के, अब बलि करना।।


      मनोज कुमार वर्मा

      बरद लवन बलौदा बाजार

      साधक- कक्षा 11

जनकवि कोदूराम "दलित" जी


 श्रद्धेय जनकवि कोदूराम दलित जी ल उॅंखर पुण्यतिथि के अवसर म सादर नमन


जनकवि कोदूराम "दलित" जी

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                     "सरसी छंद"-


धन धन हे टिकरी अर्जुन्दा,दुरुग जिला के ग्राम।

पावन भुँइया मा जनमे हे,जनकवि कोदूराम।


पाँच मार्च उन्नीस् सौ दस के,होइस जब अवतार।

खुशी बगरगे गाँव गली मा,कुलकै घर परिवार।


रामभरोसा ददा ओखरे,आय कृषक मजदूर।

बहुत गरीबी रहै तभो ले,ख्याल करै भरपूर।


इसकुल जावै अर्जुन्दा के,लादे बस्ता पीठ।

बारहखड़ी पहाड़ा गिनती,सुनके लागय मीठ।


बालक पन ले पढ़े लिखे मा,खूब रहै हुँशियार।

तेखर सेती अपन गुरू के,पावय गजब दुलार।


पढ़ लिख के बनगे अध्यापक,बाँटय उज्जर ज्ञान।

समे पाय साहित सिरजन कर,बनगे 'दलित'महान।


तिथि अठ्ठाइस माह सितम्बर,सन सड़सठ के साल।

जन जन ला अलखावत चल दिस,एक सत्य हे काल।


छत्तीसगढ़ी छंद लिखइया,गिने चुने कवि होय।

तुँहर जाय ले छत्तीसगढ़ी,तरुवा धर के रोय।


अद्भुत रचना तुँहर हवै गा,पावन पबरित भाव।

जन जन ला अहवान करत हे,अब सुराज घर लाव।


समतावादी दृष्टि रही तब,उन्नत होही सोच।

छोड़व इरखा कुण्ठा मन ला,आय पाँव के मोच।


विकसित राष्ट्र बनाये खातिर,मिलजुल हो परयास।

झन सोवय कोनो लाँघन गा,चेत लगावन खास।


दूरदरश मानवतावादी,जिन्खर कृति के मूल।

उँखर चरन मा अरपित हावय,श्रद्धा के दू फूल।


                   -सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"

                           गोरखपुर,कवर्धा

Sunday, September 27, 2020

अमृत ध्वनि छंद-डॉ तुलेश्वरी धुरन्धर

 अमृत ध्वनि छंद-डॉ तुलेश्वरी धुरन्धर

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1,विषय- रक्तदान

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रक्त दान आवय अबड़, जग मा जस के काम।

जीव बाँच जाही घलो, होही जग में नाम।।

होही जग में, नाम बने जी,दुवा ह मिलही।

रक्तदान ला, पाके सुघ्घर ,जिनगी ख़िलही।।

सहयोगी बन ,दया मया ला,सुघ्घर धरबो।

पीरा हरबो, रक्तदान ला, सुघ्घर करबो।।


2,विषय-गेड़ी तिहार

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गेड़ी के त्यौहार मा, जम्मो झन जुरियाय।

कतको कन रोटी बने, गुरहा चीला भाय।।

गुरहा चीला, भाय अइरसा, रोटी खाये।

खेलय कूदय,नाचय गावय,खुशी मनाये।।

अब तो लगही,मेला ठेला,खोलव बेड़ी।

मजा उड़ावव,चढ़के जावव, सुघ्घर गेड़ी।।

रचनाकार- डॉ तुलेश्वरी धुरंधर

अर्जुनी बलौदाबाजार

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विश्व बेटी दिवस पर, छंद परिवार के छंदबद्ध कविता

 



विश्व बेटी दिवस पर, छंद परिवार के छंदबद्ध कविता

लावणी छंद - बेटा बेटी एक्के


बेटी बेटा एक्के जानव, हवय इँखर बिन घर सुन्ना।

कतको धन दोगानी जोरव, बेटी बेटा बिन उन्ना।1।

अपने कुल के नाँव जगइया, बेटा हिरदे के हीरा।

सदा दुलौरिन बनके हरथे, बेटी अंतस के पीरा।2।


मया-दया के हे फुलवारी, बेटी ममता के अँचरा।

बेटी सिरतों सोन चिरइया, नो हे नोनी हा कचरा।3।

फूल सरिख ए कोंवर-कोंवर, जुड़हा छँइहाँ हे बेटी।

फूलकाँस के टठिया थारी, सोन सगुन के ए पेटी।4। 


संझाकुन के जोत आरती, बेटी तुलसी के चौंरा। 

ए दुलार के शुभ देरौठी, बेटी लाँघन के कौंरा।5।

भाव भजन बड़ पूजा पाठी, बेटी बढ़िया संस्कारी।

सबके आरो लेथे-देथे, बेटी हे मया चिन्हारी।6।


बुता काम मा मदद करइया, कमइलीन बेटी होथे।

चिटिक दरद मा ए फुलकैना, चार धार आँसू रोथे।7।

महतारी कस लाज धरम के, बेटी हख बोहय लागा।

अपन बाप के जबर आस ए, मान गउन के हे पागा।8।


कन्हैया साहू "अमित"

शिक्षक-भाटापारा (छ.ग.)

गोठबात~9200252055

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छप्पय छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


दुख माँ बाप मनाय, जनम बेटी लेवय जब।

बेटा घर मा आय, लुटावय धन दौलत तब।

भेदभाव के बीज, कोन बोये हे अइसन।

बेटी मन तक काम, करे बेटा के जइसन।

बेटी मनके आन हा, बेटी मनके शान हा।

छुपे कहाँ जग मा हवै, जानय सकल जहान हा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

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लावणी छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बेटी-

बेटी हे फूल बाग के जी, बेटी से हे हरियाली।

बेटी से हे सुख के होली, बेटी से दीप दिवाली।।


बेटी से घर अँगना चहके, बेटी से हे खुशहाली।

बेटी दू कुल शान हवे जी, सुख बिरवा के दू डाली।।


माँ के दिल के टुकड़ा बेटी, पापा के गुड़िया रानी।

मन ला मोहे सूरत भोली, अउ ओखर मीठी बानी।।


बेटी पावन जोत बरोबर, बेटी पूजा के थारी।

जब जब पाप बढ़े दुनिया मा, काल रूप ये अवतारी।।


बेटी चाँद बरोबर चमके, आसमान के ये तारा।

बेटी मातु पिता के धड़कन, सुख दुख मा बने सहारा।।


ये धरती के बोझ उतारे, बेटी हर पल हे ठाढ़े।

पंख लगा दौ ओकर सपना, पाँव उँचाई मा माढ़े।।


बेटी उन्नति पग जब धरही, देश समाज तभे बढ़ही।

बनके उजियारा बेटी जग, अँधियारा से नित लड़ही।।


सच मा बेटी राजकुमारी, नाज करय दुनिया सारी।

गजानंद के सपना अतके, महकै जग बन फुलवारी।।


छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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: उल्लाला छंद- राजेश कुमार निषाद


महुँ ला जीये के आस हे, बेटी हरंव तोर गा।

मारव झन मोला कोख मा,गलती का हे मोर गा।।


होही रोशन गा नाम हा, जग मा मोला लान ले।

करहूँ सेवा मैं रोज गा, बेटा मोला मान ले।।


दू कुल मा दीपक ला जला, करथँव मैं उजियार गा।

मोर बिना हे घर हा सुना, देखव सब परिवार गा।।


बेटी बेटा मा भेद कर, करहू झन अपमान गा।

घर के लक्ष्मी हे जान के, करव सबो हा मान गा।।


छंदकार :- राजेश कुमार निषाद 

ग्राम चपरीद रायपुर छत्तीसगढ़

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रोला छंद,विषय-भ्रूण हत्या*


बेटी घर जब आय,छाय खुशियाँ घर सारी।

घर मा सोहर गाय,गाँव के नर अउ नारी।।

बेटी लछमी रूप,करे मंगल के बरसा।

काटे बेटी सोज,समझ पाना तै परसा।।


बेटी बगिया फूल,मूल हे बेटी घर के।

जिनगी के सह ताप,छाँव घर लाने धर के।

बेटी जननी लोक,करे हे जग के सिरजन।

बाप करे तै पाप,मार डारे बेटी धन।।


बेटी ले हे वंश,अंश बेटी हर घर के।

समझे तै हा कार, हरे बेटी धन पर के।।

बेटी होवत मान, ददा के दाई जइसे।

तब ले कर ले पाप, मार के बेटी कइसे।।


एक लहू के रंग,हरे बेटी बेटा हर।

मोती मंगल जोत, रखो बेटी बेटा बर।।

मन के भेद म भेद,भेद के पट ला खोलौ।

रोवत बेटी देख,आज मिल कुछ तो बोलौ।।


दाई काकी रूप,मातु बहिनी अउ भगिनी।

पालय सबके पेट,सहे चूल्हा के अगिनी।।

बेटी ले संसार,सरग जइसे हे लागे।

माने बेटी बोझ,कार भेजे यम आगे।।


मारे बेटी कोख,दुःख मा अब हस अइठे।

करके करनी आज,रोत काबर हस बइठे।।

बेटी जिनगी सार,जनम ले आवन देते।

हाँसत बेटी रोज,बाँह मा तै भर लेते।।


छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

हल्दी-गुंडरदेही,जिला-बालोद

मोबा.-8225912350

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 आल्हा छंद

*बेटी*

भागजनी घर बेटी होथे,नहीं लबारी सच्चा गोठ।

सुन तो वो नोनी के दाई,बात कहत हौं अब मँय पोठ।।


अड़हा कहिथे लोगन मोला,बेटा के जी राह अगोर।

कुल के करही नाँव तोर ये,घर ला करही बिकटअँजोर।।


कहिथँव मँय अँधरागे मनखे,बेटी बेटा ला झन छाँट।

एक पेड़ के दूनों डारा,दुआ भेद मा झन तँय बाँट।।


सोचव बेटी नइ होही ते,ढोय कोन कुल के मरजाद।

अँचरा माँ के सुन्ना होही,बोझा अपने सिर मा लाद।।


आवव अब इतिहास रचव जी,गढ़व सुघर जिनगी के राह।

दुनियादारी के बेड़ी ला,तोड़व अब तो अइसन चाह।।


पढ़ा लिखा के बेटी ला जी,तुमन सुघर देवव सम्मान।

जानव अब बेटी ला बेटा,दव सपना ला उँकर उड़ान।।


 विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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दोहे 

  बेटी  घर  के  शान ए, बढ़हावय सम्मान। 

  बेटी बिन माँ बाप के, जिनगी हे सुनसान। 


   बेटी हे ता  देश हे, हावय  सकल  समाज। 

सबके हित मा सोचथँँय, करथँँय सुघ्घर काज॥ 


बेटी ला समझव सखी, झन समझव जी भार। 

 बेटा  जस  अधिकार दव, तब  होही उद्धार॥ 


   सेवा करथँँय देश के,  बेटी मन हा खूब। 

स्वारथ खुद के छोड़ के, मिहनत मा जी डूब॥ 


    बेटी बेटा एक हे, नाप जोख झन तोल। 

  दूनो हे माँ बाप बर, बड़का अउ अनमोल॥ 


  बेटी मन हर क्षेत्र मा, देथँँय  जी  सहयोग। 

  एमा झन शंका करौ, झन समझव संजोग॥ 


   सबो तरह के नौकरी, करत हवैंं जी आज। 

   बेटी मन के काम ले, सबला  होवय नाज॥ 


          अमित टंडन अनभिज्ञ 

            बरबसपुर, कवर्धा 

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           बेटी (दोहा)-   अजय अमृतांशु


झन मारव जी कोख मा ,बेटी हे अनमोल।

बेटी ले घर स्वर्ग हे, इही सबो के बोल।।1।।


बेटी मिलथे भाग ले,करव इँकर सम्मान।

दू कुल के मरजाद ये, जानव येहू ज्ञान।।2।।


बेटी ला सम्मान दव, ये लक्ष्मी के रूप।

बेटी छइँहा कस चलय,गर्मी हो या धूप।।3।।


बेटी नइ भूलय कभू ,सात समुंदर पार।

सुरता कर दाई ददा, रोथे आँसू चार ।।4।।


मनखे मन करथे जिहाँ, बेटी के सम्मान।

करथे लक्ष्मी वास जी, सुखी रथे इंसान।।5।।


बेटी मिलथे भाग ले,तरसत रहिथे लोग।

जेकर हे बढ़िया करम,ओकर बनथे योग।6।।


करथे देवी रूप मा, पापी के संहार।

तीन लोक के देवता,करथे जय जय कार।।7।।


घर माँ बेटी आय जब,जीवन मा सुख आय।

बेटी मारे कोंख जे , बहू कहाँ ले पाय।।8।।


अजय अमृतांशु, 

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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लावणी - छंद

केवरा यदु "मीरा "


बेटी होथे घर के लक्ष्मी ,बेटी  हे कुल तारी जी।

बेटी बहिनी माता बनगे,बेटी अँगना फुलवारी जी।।


बेटी सीता बेटी राधा, बेटी दुर्गा  मीरा जी।

बेटी होथे सुखकारी जी, बेटी जाने  पीरा जी।।


माँ के बने सहेली  बेटी, पापा के हरे दुलारी जी।

भोली भाली रानी बेटी,होथे प्राण पियारी जी।


बेटी गंगा बेटी गीता,रामायण  चौपाई  जी।

तुलसी के पावन दोहा वो,कवियन के कविताई जी।।


मात पिता के अँगना  छोड़े, जाथे पिया दुवारी जी।

सास ससुर के सेवा करथे,बन कुलवंती नारी जी।।


दूनों कुल के लाज हरे जी,दूनो कुल के जोती जी।

सात बचन ला पूरा करथे,बनके चमके मोती जी।।


कोख सुता ला झन मारो तुम,पाप लगे बड़ भारी जी।

यम से लड़ने वाली बेटी,अनुसुइया कस नारी जी।।


कतका महिमा मँय हा गाववँ,बेटी जग उजियारी जी।

जौने घर में  बेटी नइये,लागे घर अँधियारी जी।।


चिक्कन राखे अँगना खोली,पूरय चौक रँगोली जी।

बेटी ले घर अँगना महके,उही दिवाली होली जी।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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 *बरवै छंद*

दुख पीरा के मानौ, हरे मितान।

घर दुआर के जानौ, बेटी शान।


बेटी औलाद हरे, अपने जान।

पहुना-सेवा करके, राखै मान।।


बार दिया ले मेटे, कारी रात।

दुख मा सुख पहुँचाथे, बेटी जात।


पहुना करैं बड़ाई, पाके मान।

देथे मौका बेटी, छाती तान।।


झन शिकार हो अब तो, बेटी भेद।

बेटा करथे, सुन ले, थारी छेद।।


पढ़ा लिखा के बेटी, बना सजोर।

जग सहराही निसदिन, नाम ल तोर।।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी

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       *बेटी ला दव मान* 

बेटी लक्ष्मी रूप ये , झन समझव कमजोर ।

बेटा बनके डेहरी , अँगना करय अँजोर ।।


रखय ददा के मान ला , जग मा नाम कमाय ।

लक्ष्मी अस अवतार ले , मन ला सबके भाय ।।


पढ़ लिख के बेटी घलव , बनथे घर के शान ।

बनके अपन सँजोर जी , देथे सब ला मान ।। 


बेटी बेटा मा कभू , करव भेद झन यार ।

एक बरोबर मान के , देवव मया दुलार ।।


बेटी के सम्मान बर , आवव सब झन संग ।

फुलवारी के फूल कस , फुलही रंग बिरंग ।।


बेटी ला दे मान अब , मान खुदे जी पाव ।

बेटी हे अनमोल धन , हँस के गा अपनाव ।।


          *मयारू मोहन कुमार निषाद* 

            *गाँव - लमती , भाटापारा ,*

          *जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)*

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: आल्हा छंद

*बेटी*

भागजनी घर बेटी होथे,नहीं लबारी सच्चा गोठ।

सुन तो वो नोनी के दाई,बात कहत हौं अब मँय पोठ।।


अड़हा कहिथे लोगन मोला,बेटा के जी राह अगोर।

कुल के करही नाँव तोर ये,घर ला करही बिकटअँजोर।।


कहिथँव मँय अँधरागे मनखे,बेटी बेटा ला झन छाँट।

एक पेड़ के दूनों डारा,दुआ भेद मा झन तँय बाँट।।


सोचव बेटी नइ होही ते,ढोय कोन कुल के मरजाद।

अँचरा माँ के सुन्ना होही,बोझा अपने सिर मा लाद।।


आवव अब इतिहास रचव जी,गढ़व सुघर जिनगी के राह।

दुनियादारी के बेड़ी ला,तोड़व अब तो अइसन चाह।।


पढ़ा लिखा के बेटी ला जी,तुमन सुघर देवव सम्मान।

जानव अब बेटी ला बेटा,दव सपना ला उँकर उड़ान।।


 विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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बोधन जी: सरसी छंद-

 बेटी बचाओ

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बेटी के स्वागत ला करलव,

                           बेटी  हे   वरदान।

बेटी ले  दुनिया हा  सजथे,

                           बेटी  मोर परान।।1।।


आवन दव बेटी ला जग में,

                        ओखर कर सम्मान।

बेटी लछमी  दुरगा  काली,

                        नवथे सब भगवान।।3।।


पढ़ा लिखादव आवव भैया,

                       होवय अपन सुजान।

मात पिता के नाम होय जी,

                       जग मा बने महान।।4।।


देखव आज इहाँ जी आगू,

                        बेटी   होवत  जाय।

बनय सहारा घर मा सबके,

                       बेटा  सहीं  कमाय।।5।।

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छंद साधक - सत्र-5

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 (हेम के कुकुम्भ छंद)

कहिथे नोनी सुन दाई ला, अमर अटल बनहूँ फौजी।

अपन देश के रक्षा खातिर, करहूँ मँय हर मन मौजी।।


मोरो रग रग मा भारत हे, बनहूँ मँय हर मर्दानी।

सब दुश्मन ले लोहा लेहूँ, बन मँय झाँसी के रानी।।


जय भारत जय भाग्य विधाता, रोजे मँय गावँव गाथा।

हे भारत भुइँया महतारी, अपन लगालँव तोला माथा।।


बइरी मन के काल बनव मँय, घुसे नहीं सीमा द्वारी।

खड़े तान के सीना रइहूँ, सौ सौ झन बर मँय भारी।।


काली दुर्गा रणचंडी बन, बइरी ला मार भगाहूँ।

भारत के वीर तिरंगा ला, सदा सदा मँय लहराहूँ।।


अटल खड़े रइहूँ पहाड़ जस, अपन देश के मँय सीमा।

देख देख बइरी मन भागय, ताकत रखहूँ जस भीमा।।


दुश्मन कतको मार भगाहूँ, रहूँ एकदम मँय चंगा।

मर जाहूँ ता पहिरा देबे, मोला तँय कफन तिरंगा।।


जय भारत जय भारतीय के, बोले दुनिया जयकारा।

अपन वीर बलिदानी मन के, गूँजय सबो डहर नारा।।


-हेमलाल साहू

छंद साधक सत्र-01

ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ. ग.)

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Saturday, September 26, 2020

अमृत ध्वनि छंद-बृजलाल दावना

 अमृत ध्वनि छंद-बृजलाल दावना


बिंदी हावै  माथ के , सुग्घर दाई तोर ।

जइसे  सुग्घर हे लगे , हिन्दी भाषा मोर।।

हिन्दी भाषा, मोर देश के ,शान बढा़थे।

अनपढ़ मन हा, पढ़ लिख के जी,गुरु बन जाथे ।।

बावन आखर, पढ़व ज्ञान के , भाषा हिन्दी।

भाषा सुग्घर,नइहे दूसर,जइसे बिंदी ।।


भासा हिन्दी  के सदा , कर तँय वंदन गान।

महतारी भासा हरे , करले एखर मान।।

करले एखर, मान कभू झन ,बिसराबे तॅय ।

भले सीख के , आने भासा , इतराबे तॅय ।।

आखर आगर, ज्ञान सिखे के ,करले आसा

जनमानस मा  रचे बसे हे ,हिन्दी भासा।।


बृजलाल दावना

Friday, September 25, 2020

अमृत ध्वनि छंद - अनिल सलाम

 अमृत ध्वनि छंद - अनिल सलाम 


जाहू झन परदेश 


जाहू झन परदेश जी, करव गाँव मा काम।

करही गाँव विकास जी, जग मा होही नाम।।

जग मा होही, नाम गाँव के, मान बढ़ाहू।

चर्चा होही, जगा जगा मा, नाम कमाहू।।

आज ठान लव, सरग बरोबर, गाँव बनाहू।

गाँठ बाँध लव,कभू गाँव ले, अब नइ जाहू।।


नवा जमाना


नवा जमाना आय हे, मनखे बदले चाल।

झूठ लबारी ले भरे, बगरे माया जाल।। 

बगरे माया, जाल देख बड़, अचरज होथे।

सब झन के ये, हाल देख के, दुनिया रोथे।।

सब फैशन के, पाछू परके, होय दिवाना। 

अपने संस्कृति, आज भूल गे, नवा जमाना।।


नवा बिहान


देखव हमर किसान के, आगे नवा बिहान।

नाँगर बइला फाँद के, बोवत हावय धान।।

बोवत हावय, धान करत हे, बूता भारी।

मगन हवय जी, छोड़ सबो गा, दुनिया दारी।।

काहत हावय, सबो अपन के, गरवा छेकव।

रौंदावत हे, धान सबो के, महिनत देखव।।


बलिदान

 

देवत हे बलिदान जी, देखव हमर जवान।

रक्षा करथें देश के, धरे हथेली जान।।

धरे हथेली, जान लहू ला , अपन बहाथे।

हो शहीद जी, सदा देश मा, अमर कहाथे।।

सदा देश के, रक्षा खातिर, किरया लेवत।

प्रान देय जी, रोज हमर बर, पहरा देवत।।


बइरी

बनके बइरी चीन हा, हम ला आँख दिखाय।

जीछुट्टा कस देख ले, सीमा मा घुस आय।। 

सीमा मा घुस, आय करत हे, मारा मारी। 

हमर देश के, मनखे मन सब, देवय गारी।

हमरो सेना, सीमा मा जी, हावय तनके।

अपन फरज ला, सदा निभावय, रक्षक बनके।। 


बरखा रानी

बरखा रानी आय हे, तन मन ला हरसाय। 

रच पच माते खेत हा, थरहा बाढ़त जाय।। 

थरहा बाढ़त, जाय सबो के, दिखथे हरियर। 

सुआ ददरिया, गात जगावत, हावँय सुग्घर।। 

चलत हवय जी, टेक्टर नाँगर, आनी बानी।

आय किसानी, बेर बरसगे, बरखा रानी।। 


धमका(उमस) 

भारी बादर छाय जी, लागे धमका घोर। 

बूता करथों खेत मा, बहय पसीना मोर।। 

बहय पसीना, मोर अबड़ जी, थक हा लागे।

तर मर लागे, जीव छाँव बर, मन हा भागे।।

उसरत नइहे, बूता हावय, खेती बारी।

लिखे पढ़े बर, गजब आजकल,मुश्किल भारी।।


मँय


छोड़व मँय के मोह ला, हम सब हावन एक।

भेद भाव ला छोड़ के, रद्दा चलबो नेक।।

रद्दा चलबो, नेक सबो झन, संगे रहिबो।

कोनो नइ हन, ऊँच नीच जी, सबला कहिबो।। 

मिलय बरोबर, हक सब ला जी, मुँह ह झन मोड़व।

हम सब रहिबो, साथ सबो झन, मँय ला छोड़व।।


रचना 

अनिल सलाम

गाँव नयापारा उरैया

तहसील नरहरपुर

 जिला कांकेर (छ.ग.)

पाना पतझर मा झरे-शोभामोहन श्रीवास्तव

 अमृतध्वनि छंद-शोभामोहन श्रीवास्तव


पाना पतझर मा झरे-शोभामोहन श्रीवास्तव


पाना पतझर मा झरे,आवय तभे बहार ।

दुख पाछू सुख हे लगे,लहुटे पहुटे बार ।।

लहुटे पहुटे बार चलत नर ,लाख जतन कर ।

सुख के चक्कर,दुखद गली धर,कतको मर मर।

छोड़ गाँव घर,कहूँ मेर टर,नइ छोंड़य डर ।

बेरा हे खर,बोलत झरझर, पाना पतझर ।।


शोभामोहन श्रीवास्तव

अमलेश्वर रायपुर

Thursday, September 24, 2020

अमृतध्वनि छंद : पोखन लाल जायसवाल

 अमृतध्वनि छंद : पोखन लाल जायसवाल


1

घर सब सुनता ले चलै, गीत मया के गाव।

मया बरोबर सब मिलौ, राखव मन के भाव।

राखव मन के, भाव एक अउ, मिलजुल राहव।

गोठ गोठिया, दया मया के, सबझन हाँसव।

बाँट बाँट के, रोटी खावव, देवव आदर।

पेड़ लगै अउ, सुनता के फर, होवय सब घर।।


2


करथे जउन घमंड सब, चिटिक समझ नइ आय।

रहिके दूर घमंड ले, जिनगी सब सुख पाय।

जिनगी सब सुख, पाय कहाँ जब, खोय मितानी।

बात बात मा, मिलै जान तैं, तोर निशानी।

सुनके सबके, गुरतुर बोली, मन हर भरथे। 

का घमंड हे, निसदिन जेला, मनखे करथे।।


3


कमिया मन जब घूमही, बनके जाँगर चोर।

कोन कमाही खेत सब, बइला नाँगर जोर।

बइला नाँगर, जोर लगाही, बनके कमिया।

नइ परही तब, खेत खार अउ, कोनो परिया।

खेत खार के, धान-पान हर, होही बढ़िया।

दू मन आगर, भरही कोठी, सुन ले कमिया


रचना-पोखन लाल जायसवाल

पलारी (बलौदाबाजार)

अमृतध्वनि छंद :- जगदीश "हीरा" साहू

 अमृतध्वनि छंद :- जगदीश "हीरा" साहू


छत्तीसगढ़िया मैं हरँव


छत्तीसगढ़िया मैं हरँव, बोल लगय ना लाज।

हमरे भाखा मा चलय, मंत्रालय के काज।।

मंत्रालय के, काज सबो कर, शान बढ़ावय।

देवय हमला, मान आन ले, ऊँच उठावय।।

सबले सीधा, मन के सच्चा, सबले बढ़िया।

मिलके सबझन, बोलय होथे, छत्तीसगढ़िया।।


झन लूटव हमला सबो, समझ आज कमजोर।

ये दिल के तूफान मा, उड़ा जही घर तोर।।

उड़ा जही घर, तोर सोंच ले, तँय का करबे।

रोवत रहिबे, मोर पाँव ला, आके धरबे।।

तब जाहूँ मैं, लात मार के,  कहय मोर मन।

जे पतरी मा, खाय आज तँय, छेदा कर झन।।


जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)

कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार

Tuesday, September 22, 2020

अमृत ध्वनि छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 अमृत ध्वनि छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी


मोला दुनियाँ हा कहै, डॉक्टर झोला छाप।

होवँव दुश्मन जान के, कइसे करहूँ पाप।

कइसे करहूँ, पाप बता तँय, मोला संगी।

बड़े भाग्य ले, मिलथे नर तन, अउ ये जिनगी।

जानत भर ले, तानत हँव मैं, आना सोला।

दुनियाँ कहिथे, झोला वाले, डॉक्टर मोला।1


बात सिखौना नइ सुनय, नइ आवय अउ बाज।

चारी चुगली ला करय, छोड़ काम अउ काज।

छोड़ काम अउ, काज हवस तँय, भोला भाला।

झूठ कपट ला, धर अंतस मा, झींगा लाला।

दया मया बिन, जइसे जिनगी, लगै खिलौना।

छोड़ असत ला, धर ले सत ला, मान सिखौना।2


मनमानी काबर करे, मनखे चोला पाय।

दया धरम जाने नही, बिरथा जिनगी जाय।

बिरथा जिनगी, जाय देख ले, बात मान ले।

सरल बनाले, मोह हटाले, गुरू ज्ञान ले।

बड़े भाग्य ले, मिले हवय अउ, ये जिनगानी।

मूरख बनके, करथस काबर, तँय मनमानी।3


छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

जिला- कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

Monday, September 21, 2020

अमृत ध्वनि छंद - बोधन राम निषादराज

 अमृत ध्वनि छंद - बोधन राम निषादराज


(1)ए तन माटी:-


ए तन माटी जानके,झन कर गरब गुमान।

इक दिन चोला छूँटही,राम राम कर गान।।

राम राम कर,गान सुनाले,जिया  लगाले।

जिनगी गढ़ले,पुन्य कमाले,जोत जगाले।।

बने बने तँय,करम धरम कर,घर मोहाटी।

जीयत जग में,नाम कमाले,ए तन माटी।।


(2) छावय बसंत


माता  शारद के  परब, बगरे  ज्ञान  अँजोर।

होली के शुरुआत हे,रंग दिखय चहुँ ओर।।

रंग दिखय चहुँ-ओर छोर मा, हे फुलवारी।

सुघ्घर मौसम,मन ला भावै,खुशियाँ भारी।।

नदिया नरवा, निरमल पानी, गढ़े  बिधाता।

सुर संगम ला,  छोड़त  हावै, शारद  माता।।


(3) बेटी मोर:-


पढ़ बेटी तँय मोर ओ,अव्वल बाजी मार।

बेटा ले तँय कम नहीं,जिनगी अपन सुधार।

जिनगी अपन-सुधार बना ले, बनबे  रानी।

दाम   कमाबे, नाम  कमाबे, आनी-बानी।।

दाई -बाबू, भाई- बहिनी, दुनिया  ला  गढ़।

नवा जमाना,आए  हावय, बेटी  तँय पढ़।।


(4)  बादर भडुवा:-


कइसन देखौ  छाय हे,चारों  मुड़ा  घपाय।

मरना होगे  रोग हा, अपन  रूप  देखाय।।

अपन रूप-देखाय धरे हे, गला  पकड़ के।

खाँसी खाँसय,नाक बोहाय,तने अकड़ के।।

जंजाल बने, हाड़ा  काँपे, भुतहा  जइसन।

घापे हावय,बादर  भडुवा, देखौ  कइसन।।


(5) हरियर रुखवा:-


हरियर रुखवा देख तो,कतका सुग्घर छाँव।

डोंगर के बिच मा बने,  मोरो हावय  गाँव।।

मोरो हावय,गाँव इहाँ जी, घन  अमरइया।

डारा  पाना,  नाचत  हावै, ताता   थइया।।

पेड़  लगावौ, संगी जम्मो, भगही  दुखवा।

होही हावा,शुद्ध तभे जब,हरियर रुखवा।


छंदकार - बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम

(छत्तीसगढ़)

Sunday, September 20, 2020

अमृतध्वनि छंद -आशा आजाद"कृति"

 अमृतध्वनि छंद -आशा आजाद"कृति"


शिक्षा


शिक्षा ता अनमोल हे, करथे नित उद्धार ।

हिरदे बारय जोत ला, अंतस भरथे सार ।

अंतस भरथे- सार अँधेरा, दूर भगावै ।

ज्ञान सबो के, जिनगी ला जी, श्रेष्ठ बनावै ।

आशा कहिथे, गुरु ले लेवौ, सुघ्घर दीक्षा ।

मान दिलाही, श्रेष्ठ बनाही, सबला शिक्षा ।।


ज्ञानी


ज्ञानी निर्मल बोलथे, होय उँखर गुनगान ।

अमरित बगरावै सदा, सुघ्घर बाँटय ज्ञान ।।

सुघ्घर बाँटय- ज्ञान नेक ओ, पथ दिखलावै ।

कठिन डगर ला, अपन ज्ञान ले, सरल बनावै ।

आशा कहिथे, गुरु के रहिथे, सुघ्घर बानी ।

धारण करलौ, सहज वचन जे, बोलय ज्ञानी ।।


पारस होथे बेटी


पारस बेटी ला कहय, एखर ले संसार ।

विश्व धरा के सार हे,बाटय निरमल प्यार ।

बाटय निरमल- प्यार सान हे, घर के कहिथे ।

रिश्ता नाता,सदा निभावै, दुख सब सहिथे ।

विपदा मा जी, बेटी सबला, देवय साहस ।

सदा कहाइस, सदा कहाही, बेटी पारस ।।


छंदकार - आशा आजाद"कृति"

पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

Saturday, September 19, 2020

अमृत ध्वनि छन्द-मनीराम साहू मितान

 अमृत ध्वनि छन्द-मनीराम साहू मितान


*रे मन धर ले सार*

गाले जस ला‌ राम‌ के, हो जाबे भव पार।

बाकी सब हे फोकला, रे मन धर ले सार।

रे मन धर ले, सार सरस ला,काम बनाही।

झन खा भटका, बने बाट ला, इही बताही।

हावय बेरा, अपन बनौकी, तहूँ बनाले।

सब सुख दाता, रघुराई के, जस ला गाले।


*हे अॅजनी के लाल*

सुमरॅव मैं तोरे चरन, हे अॅजनी के लाल।

दरस करा दे राम के, काट मोह के जाल।

काट मोह के, जाल फॅसे हॅव, राम दुलारे।

हे बल दाता, बूड़े कतको, तहीं उबारे।

बाट बतादे, जाॅव पार मैं, भव ले उतरॅव।

हे बजरंगी, सब के संगी, तोला सुमरॅव।


*शारद माता*

माता देवी शारदे, करदे वो उजियार।

घेरे हे अज्ञानता, दीप ज्ञान के बार।

दीप ज्ञान के, बार मात वो, सुन ले अरजी।

तम रोथे वो, जब होथे माँ, तोरे मरजी। 

हे महतारी, हमन भिखारी, तैं हर दाता।

राह दिखा दे, काम बनादे, शारद माता।


*जिनगानी के बाट*

जिनगानी के बाट मा, रथे घाम अउ छाॅव।

करनी अइसन‌ होय जी, होय सरी जग नाॅव।

होय सरी जग, नाॅव तोर गा, जी बन‌ ढारा।

ररुहा मरहा, दुखियारा के, बनत सहारा।

छोड़ सुवारथ, परमारथ के, गढ़त कहानी।

सत मारग चल, सुफल‌ बनाले, ये जिनगानी।


*गाॅव*

अड़बड़ सुग्घर लागथे, सरग बरोबर गाॅव।

नदिया नरवा ढोड़गा, बर पीपर के छाॅव।

बर पीपर के, छाॅव‌ गजब जी, मन‌ ला भाथे।

हरियर हरियर, बड़ रुखराई ,‌ चिरई गाथे।

कोनो मनखे, करय नही जी, चिटको गड़बड़।

उॅकर गोठ हा, नीक लागथे, मोला अड़बड़।


- मनीराम साहू 'मितान'

Friday, September 18, 2020

अमृत ध्वनि छंद* - अमित टंडन अनभिज्ञ

 *अमृत ध्वनि छंद* - अमित टंडन अनभिज्ञ 

 

1.

गीता वेद पुरान हा, आय ज्ञान के खान 

ज्ञानी मन सब मानथे, बात तहूँ हा मान। 

बात तहूँ हा, मान समझ ले, बढ़िया एला। 

करथे भैया, दूर समस्या, झूठ झमेला। 

सत्य ज्ञान हा, होय कभू ना, जग मा रीता। 

असत ज्ञान ला, छोड़ कहत हे, भगवत गीता। 


2. 

नारी के जज्बात ला, समझव सब झन यार। 

नारी बिन नइ ढो सकय, पुरुष अकेला भार। 

पुरुष अकेला, भार बता तो, कइसे ढोही। 

बिन नारी के, जिनगी हा जी, बिरथा होही। 

सोचय सब बर, जतन करै ओ, पारी-पारी। 

करै लगन से, काम उही हा, आवय  नारी। 


3. 

महतारी हा आय जी, पूज्य देव भगवान। 

पूजव सब सम्मान से, समझव घर के शान। 

समझव घर के, शान तभे सब, अच्छा होही।  

महतारी बिन, जिनगी भर सब, अब्बड़ रोहीं। 

ममता देवय, सबला  ओ  हा, पारी - पारी। 

सबले  बड़का, होथे  जग मा, ए महतारी। 


4. 

भाई चारा बाँट लव, मिलके करलौ काम। 

जिनगी के रस्ता गढ़ौ, सुमिरौ प्रभु के नाम। 

सुमिरौ प्रभु के, नाम जगत मा, सार हवै जी। 

पाटव खाई, दुख के अड़बड़, भार हवै जी। 

जनम धरे  हव, करम  करे  बर, पाई-पाई। 

जागव अब सब, नाम कमालव, जग मा भाई। 


 -अमित टंडन अनभिज्ञ 

   बरबसपुर, कवर्धा

छंद साधक कक्षा - 10

Thursday, September 17, 2020

अमृत ध्वनि छंद--चोवा राम वर्मा 'बादल'*

 *अमृत ध्वनि छंद--चोवा राम वर्मा 'बादल'*


*जय हनुमान*

 बजरंगी हनुमान के,सुमिरवँ मैं हा नाम।

 जेकर हिरदे मा बसे,जगत पिता श्री राम।

 जगत पिता श्री, राम सबो के काम बनाथे।

 तेकर सेवक ,माँ अँजनी के, लाल कहाथे ।

गदा घुमाथे,  विघ्न  हटाथे, सबके संगी।

 भूत भगाथे ,भगत बँचाथे, वो बजरंगी।


*भारत भुइयाँ*

जेखर चारों खूँट हे, कतको पावन धाम।

धरम धजा फहरत रथे, देवभूमि हे नाम।

देवभूमि हे ,नाम सोन के,सुघर चिरइया।

भारत भुइयाँ, अलख जगइया,लागवँ पँइया।

लाल जवाहर, हवय घरोघर,बेटा शेखर।

सागर परबत, पहरा देथें, निसदिन जेखर ।


*जिम्मेदारी*

जिम्मेदारी छोड़ के,आलस ला झन थाम।

अइसन मनखे के सदा,बिगड़त रहिथे काम।

बिगड़त रहिथे,काम सबो जी,नइ समझय जी।

मन मुरझाथे,मान गँवाथे, दुख अरझय जी।

परे लचारी, घर के नारी,सहिथे भारी।

खुशी मनाथे, जेन उठाथे, जिम्मेदारी।


*आगू बढ़बे*

झनकर अतियाचार तैं, भरे जवानी जोश।

खइता जिनगी तोर जी,खोथच काबर होश।

खोथच काबर, होश राख ले,मीठ बोल ले।

मया बाँट ले,सुमत आँट ले,गाँठ खोल ले।

दू मन आगर,मिहनत तैं कर,सुरता छिनभर ।

पढ़बे लिखबे, आगू बढ़बे,आलस झनकर।


*पद पइसा*

पद पइसा के खेल मा, नाचत हाबय न्याय।

निरपराध फाँसी चढ़य,अपराधी बँच जाय।

अपराधी बँच,जाय घुस के,नोट धराके।

धौंस जमाके, गुंडा लाके,मार खवाके।

पहुँच बताथे, रउँदत जाथे,नेता के कद।

बड़ इँतराथे,जोर लगाथे ,सब पाके पद।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Wednesday, September 16, 2020

अमृतध्वनि छंद --आशा देशमुख

अमृतध्वनि छंद --आशा देशमुख

*सोन चाँदी*


कोरोना के काल मा ,लंका चलदिस सोन।

चाँदी तक इतरात हे, गहना पहिने कोन।

गहना पहिने ,कोन इहाँ अब,बड़ महँगाई।

गोठ करत हें ,चारों कोती ,बहिनी दाई।

कतका दिन ले,चलही दीदी ,रोना धोना।

बड़ दुखदाई ,आये हावय ,ये कोरोना। 1



*अधकचरा ज्ञान*

गगरी हा आधा हवय, अब्बड़ छलकत जाय।

हावय शान कुबेर कस,जाँगर बाढ़ी खाय।

जाँगर बाढ़ी,खाय सबो दिन,मेंछा अँइठत।

दिन  बीते अब  ,येती ओती ,घूमत बइठत।

चुप्पे हावँय ,नदी समुन्दर ,चुप हे सगरी।

खलल खलल ले ,बाजत हावय ,आधा गगरी।2


*पितर पाख*

लोटा मा पानी रखे,सुन्दर चौक पुराय।

पितर पाख सुरता अबड़ , पुरखा मन के आय।

पुरखा मन के,आय इही दिन,मान करव जी।

रीत चलागन ,नियम धरम ला, ध्यान धरव जी।

मात पिता के,सुनव कभू झन,सूखय टोटा।

जीते जीयत, भरके देवव ,पानी लोटा। 3।




*नेत्रदान*

मर के भी जीयत रहय,हवय अबड़ सम्मान।

दुनिया ला देखत हवँय, करँय नेत्र के दान।

करँय नेत्र के,दान जगत मा,धरमी चोला।

सुघ्घर कारज,हा हर लेथे,मन के पोला।

आखिर मा तन ,राख होत हे, आगी जरके।

ये आँखी हा, जीयत देखे,देखे मरके।4



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

Tuesday, September 15, 2020

अमृत ध्वनि छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 अमृत ध्वनि छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


लपटे राहय ढ़ोंग अउ, रूढ़िवाद के आग।

मनखे ना मनखे रहै, अपन ठठावय भाग।।

अपन ठठावय, भाग भरोसा, बइठे राहय।

लोभ मोह मा, पड़े मनुज मन, अइठे राहय।।

झूठ पाप के, रात अँधेरा, राहय घपटे।

साँप बरोबर, पाखंडी मन, जग मा लपटे।।


गुरु घासी अवतार ले, धरिन धरा मा पाँव।

मनखे मनखे एक कर, देइस सुख के छाँव।।

देइस सुख के, छाँव सुमत अउ, समता लाये।

मानवता के, पाठ पढ़ा गुरु, ज्ञान लखाये।।

घट मा ही तो, वास देव अउ, मथुरा काशी।

धरौ सत्य ला, कहे सदा ही, गुरु जी घासी।।


सतरा सौ छप्पन रहे, रहे दिसंबर मास।

अट्ठारह तारीख अउ, सोमवार दिन खास।।

सोमवार दिन, खास जनम ले, गुरु जी आइस।

छत्तीसगढ़ अउ, ये भुइँया के, मान बढ़ाइस।।

सत महिमा धर, गुरु रेंगाये, बइला अदरा।

करे जाप तप, उमर रहे जब, सोलह सतरा।।


गाथा घासीदास गुरु, महिमा अपरंपार।

अमरौतिन महँगू बबा, के घर ले अवतार।।

के घर ले अवतार सत्य बन, अलख जगाये।

जात पात अउ, उँच नीच के, भेद मिटाये।।

गजानंद जी, पाँव परे नित, टेके माथा।

जन जग गुरु के, गावत राहय, महिमा गाथा।।



छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

Monday, September 14, 2020

अमृत ध्वनि छंद -दिलीप वर्मा

 अमृत ध्वनि छंद -दिलीप वर्मा

मरना हे जब एक दिन, फिर का सोंच विचार। 
आगू पाँव बढ़ाय चल, मान कभू झन हार। 
मान कभू झन, हार सखा तँय, जिनगी जी ले। 
सत के मारग, पकड़ चला चल, अमरित पी ले। 
कतको काँटा, गड़य पाँव मा, नइ हे डरना। 
रोना धोना, छोड़ सखा अब, जब हे मरना।1। 

करिया बेनी गाँथ के, गजरा सुघर लगाय। 
मटकत रेंगय गाँव मा, गगरी धर के जाय। 
गगरी धर के, जाय घटौना, पानी लाने। 
सखी सहेली, रसता मिलगे, नइ पहिचाने। 
करे सवाँगा, जइसे दुल्हन, जावय तरिया। 
लाली चुनरी, काजर आँजे, बेनी करिया।2। 

करिया बादर देख के, नाचय बन के मोर। 
जंगल भर गूँजन लगे, पीहू पीहू शोर। 
पीहू पीहू, शोर सुने ले, मन हरसावय। 
घपटत बादर, हवा चले फिर, पानी आवय। 
हरियर हरियर, खेत खार सब, रहे न परिया। 
मोर नाचथे, जब जब आवय, बादर करिया।3। 

आवय बाबा भेष मा, सब ला ठग के जाय। 
झाँसा मा जे आय जी,  अबड़े घाटा खाय। 
अबड़े घाटा, खाय पिये मा, मन नइ लागय। 
सोना चाँदी, लूट पाट के, बाबा भागय। 
जे घर राहय, नारी नारी, ते घर जावय। 
धोखा दे के, लुटे खजाना, बाबा आवय।4। 

रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

Sunday, September 13, 2020

अमृत ध्वनि छंद- अशोक धीवर "जलक्षत्री"

 अमृत ध्वनि छंद- अशोक धीवर "जलक्षत्री"


1.  भीतर हे छुआ छूत 


नहा धोय के आय हे, माँस मछलिया खाय।

पीके दारू हे गिरे, सभ्य मनुज कहलाय।।

सभ्य मनुज कहलाय आज के, मनखे मन जी।

काम गलत अउ, मन हे करिया, धोवय तन जी।।

सरी छूत ला, अपन पेट मा, भरे बोय के।

छुआ छूत मा, खुदे बुड़े हे, नहा धोय के।।


2. सबले बड़े माता हे


बड़के माता ले कहाँ, दुनिया मा भगवान।

ओकर करजा छूट दँय, कोन हवय धनवान।।

कोन हवय धनवान बता दँय, कोनो मोला।

सेवा कर लँय, पुन ला भर लँय, तरही चोला।।

दुःख झन देवँय, दुआ ल लेवँय, पाँव ल पड़के।

मात पिता ले, कोनो नइहे, जग मा बड़के।।


3. नाश के जड़


नशा नाश के जड़ हरे, येला महुरा जान।

तन मन धन क्षय हो जथे, कहना मोरो मान।।

कहना मोरो, मान आज हे, कतको मरथे।

बात ल धरबे, करनी करबे, तब दुख हरथे।।

कह "जलक्षत्री", खोलय पत्री, तँय देख दशा।

झन गा पीबे, जादा जीबे, अब छोड़ नशा।।


4. पलायन रोकव


गाँव डहर लहुटव सबो, बाहिर गे मजदूर।

बाहिर मा नइ फायदा, हो जाथे मजबूर।।

कभू काम हा, बंद होय ता, बड़ दुख पाथे।

पइसा कउड़ी, नइ देवय ता, जी करलाथे।।

कतको मालिक, गफलत करथे, ढाथे ग कहर।

तेखर ले तो, बढ़िया हे जी, आ गाँव डहर।।


5. नारी के सम्मान करव


नारी के सम्मान मा, सबझन आघू आव।

घर के लक्ष्मी वो हरे, सुख देके सुख पाव।।

सुख देके सुख, पाव बने सब, हाँसत राहव।

नारी ला जब, दुख देहव तब, बड़ दुख पाहव।।

कोनो बहिनी, भउजी पत्नी, कोनो सारी।

अपने समझव, दाई होथे, सब्बो नारी।।


छंदकार- अशोक धीवर   "जलक्षत्री"

 ग्राम -तुलसी (तिल्दा -नेवरा)

जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

सचलभास क्रमांक -

9300 716 740

Saturday, September 12, 2020

अमृतध्वनि छंद-गुमान प्रसाद साहू

 अमृतध्वनि छंद-गुमान प्रसाद साहू 


।।बाँटा।।

भाई भाई ले लड़य, बाँटे खेती खार।

बाँट डरिन माँ बाप ला, टूटत हे घर बार।।

टूटत हे घर, बार सबो हर, बाँटा होगे,

अलग अलग कर, दाई-ददा ल, दुख ला भोगे।

संगे राखव, बँटवारा के, झन खन खाई, 

अलग करव झन, दाई-ददा ल, कोनो भाई।।1


।।इरखा छोड़व।।

झन कर कोनो बर कपट, भेद सबो तँय छोड़।

सब ला लेके साथ चल, मन ले मन ला जोड़।।

मन ले मन ला, जोड़ तभे तँय, आघू बढ़बे,

साथ कमाबे, हाथ बटाबे, रसता गढ़बे।

जस बगराले, नाम कमाले, आज परन कर,

दीन दुखी बर, दया मया कर, इरखा झन कर।।2


छन्दसाधक:- गुमान प्रसाद साहू, ग्राम- समोदा (महानदी),जिला- रायपुर, छत्तीसगढ़

Friday, September 11, 2020

अमृतध्वनि छंद - रामकली कारे

 अमृतध्वनि छंद - रामकली कारे


1

जग मा बढ़ के हे सुनौ, रक्त दान के दान।

बूॅद - बूॅद दे रक्त ले, बाॅचय मनखे प्रान।।

बाॅचय मनखे, प्रान रक्त दे, जस ला पावव।

नेक करम के, काम आज गा, कर देखावव।।

कली कहे सुन, मानवता भर, अपनो रग मा। 

सबो दान ले, रक्त दान हा, बढ़ के जग मा।।


2

बादर करिया छाय हे, बिजली चमके जोर।

लउकत गरजत बड़ हवै, करथे गा बड़ शोर।।

करथे गा बड़, शोर जोर से, पानी गिरथे।

बरस बरस के, ताल तलैया, ला जी भरथे।।

मन ला भावय, मोर आज जी, हरियर चादर।

खुशहाली ले, आय बरसथे, करिया बादर।।


3

परब हरेली गाँव मा, सब ला अबड़ सुहाय।

लइका लोग सियान मन, खोल गली जुरि जाय।।

खोल गली जुरि, जाय सुघर गा, हे मन भावन।

परब हरेली, आज बरस दे, रिमझिम सावन।।

नाचय कूदय, गेड़ी चढ़के, ठेलक ठेली।

बरा ठेठरी, ले महकय घर, परब हरेली।।


4

माटी के महिमा अबड़, दे सबला आधार। 

बीज गर्भ रहिथे धरे, सहय सबौ के भार।।

सहय सबौ के, भार सबो ला, जिनगी देवय।

जीव जगत के, पेट भरय अउ, लइका सेवय।।

हाथी चाॅटी, एक बरोबर, हे परिपाटी।

भाव सबो बर, एक धरय जी, बॅदव माटी।।


5

जुरमिल सुम्मत ले रहौ, गुरतुर बतरस बोल।

दुनिया के बाजार मा, झगरा झन लव मोल।।

झगरा झन लव, मोल देख ले, चारों कोती।

पर पीरा ला, देख भाग झन, ऐती  वोती।।

भटकव झन जी, देख जमाना, रखव बड़े दिल।

झूठ कपट ले, टोरव नाता, रहौ सबो मिल।।


छंदकार - रामकली कारे

बालको नगर कोरबा

छत्तीसगढ़

Thursday, September 10, 2020

अमृतध्वनि छंद-मोहन मयारू

 अमृतध्वनि छंद-मोहन मयारू

होवय झन अब हार जी , करत रहव प्रयास ।
मिलबे करही जीत हर , राख अटल विश्वास ।।
राख अटल विश्वास , धीर जी मनमा धरले ।
बनबे झन कमजोर , परन जी अइसन करले ।।
बैरी तोला , देख रोज जी , दुख मा रोवय ।
मान कभू झन हार , नाम जी जग मा होवय ।।

करले तँय हर दान जी , करनी बने सुधार । 
होवय जग मा नाम हा , जिनगी अपन सवाँर ।।
जिनगी अपन सवाँर जग म जी , जस बगराबे ।
मानवता ला , जान सुमत के , जोत जलाबे ।।
मानव हन सब , एक सत्य के ,  रस्ता धरले ।
होबे जी भव , पार करम ला , अइसन करले ।।

छोड़व दारू के नशा , नाश करै परिवार ।
कतको झन जी रोय हे , बात हवय ये सार ।
बात हवय ये , सार दारु ला , झन जी पीबे ।
बात कहत हँव , मान संग मा , जिनगी जीबे ।
रद्दा अइसन , धरके अब झन , घर ला तोड़व ।
लावव घर मा , सुख शान्ति गा , दारू छोड़व ।।

    रचनाकार - मयारू मोहन कुमार निषाद 
                       गाँव - लमती , भाटापारा , 
                   जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

Wednesday, September 9, 2020

अमृत ध्वनि छंद- शशि साहू

 अमृत ध्वनि छंद- शशि साहू


                      1

बंदव दाई सरसती,तोला बारंम्बार ।

मोर कलम मा धार दे,छंद लिखँव मँय सार।।

छंद लिखँव मँय,सार भवानी, पढ़य जमाना।

टिपटिप ले माँ,भरे रहय वो,छंद खजाना।।

किरपा कर दे,अवगुन हर ले,हे महमाई ।

हाथ जोर के,रोजे तोला,बंदव दाई ।।

                      

                      2 

आज सुराजी हे परब,धरव तिरंगा हाथ।

जउन मरिन हे देश बर,आज नवाबो माथ।

आज नवाबो,माथ सबो ला, सुरता करबो।

जतने खातिर,आजादी ला, जरबो मरबो।। 

किरिया खाथन,हमू लगाबो,अपनो बाजी।

वंदे भारत,माता गाबो,आज सुराजी।


शशि साहू, कोरबा (छग)

Tuesday, September 8, 2020

अमृतध्वनी छन्द : मथुरा प्रसाद वर्मा

 अमृतध्वनी छन्द : मथुरा प्रसाद वर्मा 
1. हनुमान वन्दना
आ के मँय दरबार मा, हे हनुमंता तोर।
पाँव परत कर जोर के, सुनले बिनती मोर।
 सुन ले बिनती, मोर पवनसुत, विपदा भारी।
 बड़ संकट मा, आज परे हे, तोर पुजारी।
 दीनदुखी मँय, अरजी करथँव, माथ नवाँ के।
  किरपा करके, हर लव  दाता, संकट आ के।

2. गोरी 
बोली बतरस घोर के, मुचुर मुचुर मुस्काय।
सूरत हे मनमोहनी, हाँसत आवय जाय।
हाँसत आवय, जाय हाय रे, पास बलाथे।
तिर मा आ के, खन-खन खन-खन, चुरी बजाथे।
नैन मटक्का, मतवाली के, हँसी ठिठोली।
जी ललचाथे, अब गोरी के, गुरतुर बोली।

3. बलात्कार
कइसे आदमखोर अब, होगे मनखे आज।
नान्हे लइका के घलो, लूट लेत हे लाज।
 लूट लेत हे, लाज तको ला, रखवाला मन।
बनके रकसा, गली गली मा, नोचत हे तन।
सरम लागथे  , लाज लुटाही, देश म अइसे।
माथ उठाके,  आज रेंगही , बेटी कइसे।

4. फागुन आगे
फागुन आगे ले सगा, गा ले तहूँ ह फाग।
बजा नगारा खोर मा, गा ले सातो राग।
गा ले सातो, राग मता दे, हल्ला गुल्ला।
आज बिरज मा, बनके राधा, नाँचय लल्ला।
अब गोरी के, कारी नैना, आरी लागे।
मया बढ़ा ले, नैन मिला ले, फागुन आगे।

5. नेता
काँटा बोलय गाड़ ला, बन जा मोर मितान।
जनसेवक ला आज के, जोंक बरोबर जान।
जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सबला।
बनके दाता, भाग्य विधाता, लूटय हमला।
अपन स्वार्थ मा, धरम जात मा, बाँटय बाँटा।
हमर पाँव मा, बोंवत रहिथे, सबदिन काँटा।

6. आस्वासन
लबरा मन हर बाँटही, आस्वासन के भात।
रहय चँदैनी चारदिन, फेर कुलुप हे रात।
फेर कुलुप हे, रात ह कारी, इखर दुवारी।
अब छुछवावत, सब झन आही, आरी पारी।
मार मताही, खलबल खलबल, जइसे डबरा।
 दे दे चारा, जाल फेंकही, नेता लबरा।

7. भ्रष्टाचार
अइसे बेवस्था कभू, होय नहीं जी नीक।
आज परीक्षा आगु ले, पेपर होथे लीक।
पेपर होथे, लीक सड़क मा , बेंचावत हे।
लइका मन के, भाग बेंच के, सब खावत हे।
जमो चोर हे, इँहा पढाई, होही कइसे।
लूट मचे हे, चारों कोती, देश म अइसे।

9. नारी
नारी ममता रूप हे, मया पिरित के खान।
घर के सुख बर रातदिन, देथे तन मन प्रान।
देथे तन मन, प्रान लगा के, सेवा करथे।
खुद दुख सहिथे, अउ घर भर के, पीरा हरथे।
दाई बहिनी, बेटी नारी, सँग सँगवारी।
ममता के हे, अलग अलग सब, रुप मा नारी।

10. परमारथ
फुलवारी मा मोंगरा, महर-महर ममहाय।
परमारथ के काम हा, कभू न  बिरथा जाय।
कभू न बिरथा, जाय हाय रे, बन उपकारी।
प्यास बुझाथे, सबला भाथे, बादर कारी।
मरथे तबले, सैनिक करथे, पहरेदारी।
तभे देश हा, ममहावत हे, बन फुलवारी।

कवि- मथुरा प्रसाद वर्मा 
ग्राम- कोलिहा जिला - बलौदाबाजार (छ०ग०)

Monday, September 7, 2020

अमृतध्वनि छन्द-कमलेश वर्मा

 अमृतध्वनि छन्द-कमलेश वर्मा
1.सफलता

सारी दुनिया मा इही, सफल होय के सार।
हर घँव गिर के हो खड़े, मान कभू झन हार।।
मान कभू झन, हार गड़ी तँय, कर तैयारी।
महिनत करके, बहा पसीना, तैंहा भारी।।
करम पुजारी, खच्चित आही, तोरो बारी।
मंजिल पाबै, तँय छा जाबे, दुनिया सारी।।

2.मानसून
पानी-बादर ला सबो, जोहत हबै किसान।
रदरद ले गिरही बने, तब तो बोही धान।।
तब तो बोही, धान खेत मा, अन के दाता।
बहा पसीना, हरियाही ये, धरतीमाता।।
मानसून के, मेहरबानी, हरे किसानी।
चिन्ता छाही, ऊँच-नीच, जब गिरही पानी।।

3.जल
पानी बड़ अनमोल हे, जतन करव  हर बूँद।
जल संकट विकराल हे, आँखी ला झन मूँद।।
आँखी ला झन, मूँद बिकट जी, कर नादानी।
नइते आघू , ये जिनगानी, मा परशानी।
तरिया नदिया, फरियर पानी, हे कल्यानी।
झन कर बिरथा, बरखा रानी, उज्जर पानी।।

साधक-कमलेश कुमार वर्मा
भिम्भौरी, बेमेतरा
सत्र-9

Sunday, September 6, 2020

अमृत ध्वनि छंद- महेंद्र कुमार बघेल

 अमृत ध्वनि छंद- महेंद्र कुमार बघेल

लंबोदर:-

लंबोदर गणराज जी ,सुनलव हमर पुकार।
खतरनाक हे वायरस ,येला पहली टार।
येला पहली, टार धरा ले, हावय विनती।
केस पाज़िटिव,रोज बढ़त हे, लाखो गिनती।
झपटत हावॅंय, भ्रष्ट्राचारी, बोजत दोंदर।
बेवस्था ला, अब सुधार दे, हे लम्बोदर।।

खेल दिवस:-

हाकी के अब दुर्दशा, होवत हे दिन रात।
युवा देश के सोच मा,ये क्रिकेट के घात।
ये क्रिकेट के, घात हवय अब, नॅंगते भारी।
पइसा खातिर,बोर्ड मारथे, नित हुसियारी।
खेल दिवस मा ,का कहिबो कुछ, नइहे बाकी।
सुरता करके, ध्यानचंद ला,रोबो हाकी।

पीतर पाख:-

जीयत नइ जानिस ददा, दू टप्पा के बोल।
पीतर पाख मनात हे,पूत सुपेती खोल।
पूत सुपेती, खोल आज गा, देवत पानी।
अरसा भजिया,बरा सपेटत, आनी बानी।
जर बुखार मा, तन कड़ियाइस, पसिया पीयत।
खाय पिये बर, ददा ह तरसिस, दुख मा जीयत।।

महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव राजनांदगांव

Saturday, September 5, 2020

अमृत ध्वनि छंद-मनोज कुमार वर्मा

 अमृत ध्वनि छंद-मनोज कुमार वर्मा

*मॅंय*

सबला मॅंय हर खात हे, रखे मया ले दूर।
भेद भाव सब बाढ़ गे, अहंकार मा चूर।।
अहंकार मा, चूर देख अब, जिनगी हावय।
मान कहॉं तब, धन के रोगी, जग मा पावय।
एक बरोबर, जान सबो ला, भेद छोड़ अब।
धन दौलत के, नशा नाश ला, करथे जी सब।।

छाये हावय आज गा, भारी जी अभिमान।
बूड़े खुद मा हे सबो, पाके धन ला जान।।
पाके धन ला, जान भेद तॅंय,सही गलत हे।
नाम नही ता, रही तोर जब, सॉंस चलत हे।।
सदा जगत मा, रहे करम हर, नाम कमाये।
छोड़व मॅंय के, बुरा काम जे, मन मा छाये।।

करके तॅंय अभिमान ला, बनगे का धनवान।
मॅंय के आगी मा जरे, कइसे पाबे मान।।
कइसे पाबे, मान जगत मा, अउ दिही कोन।
नइ मिलय मया, तोला मॉंगे, मा घलो लोन।।
बोह मूड़ मा, लेख करम के, जाबे धरके।
सोच पाय का, तॅंय ये जग मा, मॅंय मॅंय करके।।

*किसान*

बैरी बन बरसात हर, देख अभी हे आय।
खेती बारी बूड़गे, चिंता भारी छाय।।
चिंता भारी, छाय हवै अब, किसान ला सब।
कइसे बचही भगवान फसल हर हमरो अब।।
रोवत हे मन, खेत खार हर, माते गैरी।
काबर बरसे, तॅंय किसान बर, बनके बैरी।।
 
       मनोज कुमार वर्मा
       बरदा लवन बलौदा बाजार
       कक्षा 11

Friday, September 4, 2020

अमृतध्वनि छंद- विजेन्द्र वर्मा

 अमृतध्वनि छंद- विजेन्द्र वर्मा

*बादर*
करिया बादर आय के,पानी बड़ बरसाय।
खेत खार छलकत हवय,नदिया पूरा आय।
नदिया पूरा,आय बिकट जी,सरपट भागय।
मनखे झूमय,जीव जंतु के,भागे जागय।
चारो कोती,हरियर होगे,खेती परिया।
उमड़ घुमड़ के,बरसत हावय,बादर करिया।।

*बरखा रानी*
बरखा रानी आय हे,मस्ती सब मा छात।
जीव जंतु सब झूम के,तान सुनावत जात।
तान सुनावत,जात हवय सब,शोर मचावय।
मोर नाच के,संग कोइली,गीत सुनावय।
खेत खार हा, होगे अब तो,पानी पानी।
बरसत जब ले,उमड़ घुमड़ के,बरखा रानी।।

*मँहगाई*
मँहगाई के मार हा,जिनगी बर जंजाल।
मनखे बिन मारे मरय,आय हवय जी काल।
आय हवय जी, काल इहाँ अब,मनखे मरही।
बाढ़त हावय,लूट झूठ अब,कइसे करही।
जागव भइया,बइरी के झन,करव बड़ाई।
सुरसा बन के,काबर आये,ए मँहगाई।।

*नवा बिहान*
आही नवा बिहान जी,फूँक फूँक रख पाँव।
करव मेहनत पोठ जी,मिलही सुग्घर छाँव।
मिलही सुग्घर,छाँव मया के,रद्दा गढ़बे।
गाँठ बाँध ले,बात मान तँय,आगू बढ़बे।
जिनगी अपने,चमका लेबे,दुख हा जाही।
मजबूरी के, दिन भग जाही, खुशियाँ आही।।

*सोना*
सोना तप के आग मा,बनथे गहना रूप।
अइसन साहस सब करिन,छाँव मिलय ते धूप।
छाँव मिलय ते,धूप इहाँ जी,महिनत करबे।
बाधा आही,कतको बड़का,धीरज रखबे।
झन घबराबे,दुख मा अब तो,काबर रोना।
निखरे सह के,कष्ट उठा के,बन के सोना।।

*बलिदान*
घाटी अब गलवान मा,भारत दिस बलिदान।
चीनी सैनिक मन इहाँ,खोइस अपने मान।
खोइस अपने,मान शरम ले,पानी पानी।
मुरहा जाने,करय बिकट जी,औ मनमानी।
गीदड़ भपकी,देवय हम ला,सानय माटी।
रोज रोज के,करय तमाशा,हमरे घाटी।।

*पानी*
पानी हर वरदान ये,सबके प्यास बुझाय।
देख मगन अब सब इहाँ,जीव जंतु सुख पाय।
जीव जंतु सुख, पाय बिकट जी,पानी बरसय।
बादर गरजे, बिजुरी चमके,धरती हरषय।
गोल गोल जी,झर झर पानी,नइये सानी।
करय किसानी,खिलय जवानी,गिरथे पानी।।

विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव (धरसीवाँ)
जिला-रायपुर

Thursday, September 3, 2020

अमृत ध्वनि छंद-सुकमोती चौहान

 अमृत ध्वनि छंद-सुकमोती चौहान
  
*श्री गुरुवर*

गुरुवर के आशीष ले,मिलथे ज्ञान प्रकाश।
सद्गुरु महिमा हे अबड़,करय दोष के नाश।
करव दोष के,नाश सदा जी,जइसे दरपन।
मँय अज्ञानी,करिहौ गुरुवर ,मारग दरशन।
बिन स्वारथ गुरु,करय भलाई,जइसे तरुवर।
चरण कमल मा ,माथ नवावँव,बंदवँ गुरुवर।


*नवा बिहान*

होही नवा बिहान जी,राखव मन मा आस।
दुख के बदरी आज हे,काली सुख के हाँस।
काली सुख के,हाँस ठिठोली,रस रंगोली।
बदलत रहिथे,चाल समय के,सुन हमजोली।
एक बरोबर,होय न सब दिन, मोरे जोही।
धीरज धरबे,दुख मा संगी, तब सुख होही।

*बलिदान*

धन तोरे बलिदान हे,माई पन्ना धाय।
अमर पात्र बनगे तही,जग तोरे गुण गाय।
जग तोरे गुण,गाय आज ओ,फर्ज निभाये।
अपने सुत ला,कुँवर बनाये,सेज सुलाये।
राखय छाती,मा पथरा तँय,आँखी फोरे।
राज दीप बर,घर के दीपक, बुझगे तोरे।



सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

Wednesday, September 2, 2020

अमृतध्वनि छंद-शोभामोहन श्रीवास्तव

 अमृतध्वनि छंद-शोभामोहन श्रीवास्तव

शंकर सुमरनी
                                                       
कंकर कंकर मा बसे , भूतनाथ भगवान ।
शंकर शंकर जे कहै, तरै जगत ले जान ।।
तरै जगत ले, जान उही नर ,जपके हर हर ।
जटा गंगधर ,लपटाये गर,डोमी बिखहर,
चंदा सिर पर,राख देंह भर,चुपरे शंकर।
हर सबके जर, शिवमय सुंदर,कंकर कंकर।।

डमडम डम कर  नाचथे,डमरूधर कैलाश।
झनकै ततका दूर के, होथे दुख के नाश।।
होथे दुख के, नाश भूत धर, परबत ऊपर।
बइठे शंकर,पदवी अम्मर, देवत किंकर।।
जोगनिया हर,लठर झुमर कर,नाचत मन भर।
चिहुर भयंकर,हरहर हरहर,डमडम डम कर ।

भोले शंकर के नरी ,सोहत मूँड़ी माल ।
कनिहा छाला बाघ के,दिखथे जइसे काल।। 
दिखथे जइसे , काल रूप हर ,लगथे बड़ डर।
सरसर सरसर, साँप देंह पर, चलत भयंकर।।
नंदी ऊपर, बइठे हर हर,परबतिया धर ।
जग के सुख बर,गिरि पर जगधर,भोले शंकर।।

शोभामोहन श्रीवास्तव
खुश्बूविहार कालोनी रायपुर छत्तीसगढ़

Tuesday, September 1, 2020

अमृत ध्वनि छन्द-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

 अमृतध्वनि छन्द-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
शीर्षक-मेहनत के फल

जीना हे जब शान से,जांगर थोरिक तोड़।
आलस ला सब छोड़ के,नता करम ले जोड़।।
नता करम ले,जोड़ गोठ ये,ज्ञानी कहिगे।
करम करे जे,धरम मान वो,जग मा लहिगे।
मुसकुल होवय,मेहनत कतरो,कस ले सीना।।
शान मान से,ये दुनिया मा,जब हे जीना।।

मेहनत कर लव शान से,आलस हे बेकार।
मेहनत के पतवार ले,होवय बेड़ा पार।।
होवय बेड़ा,पार करे जे,रोज काम हे।
घाम जाड़ अउ,सावन मा जे,घसे चाम हे।।
सिरजन के ये,हवन कुंड मन,स्वाह देय दव।
नाम दाम ला,पाना हावय,मेहनत कर लव।।

पावय जीवन नेक वो,रोज करे जे काम।
खटिया टोरे का मिले,झन कर बड़ आराम।।
झन कर जी आराम पड़े झन, भारी रोना।।
तन मन बर हे,काल असन ये,भारी सोना।।
काम धाम जे,रोज करे वो,सुख मा गावय।।
तन मन चंगा,सुग्घर मंगल,जीवन पावय।।

छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही,जिला-बालोद
मोबाइल न.8225912350