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Tuesday, October 13, 2020

तिहरहा पहुना-रोला छन्द


 तिहरहा पहुना-रोला छन्द


फिर ले आही जाड़, तिहरहा पहुना बनके।

अगुवानी मा गॉंव, शहर जाही बन-ठन के।

पहली खेती खार, डहर हे भेंट-भलाई।

ते पाछू सब गॉंव, शहर आदर पहुनाई।


भेंटत खेती खार, पहा जाही अठवरिया।

तेखर पाछू जाड़, गॅंवइहॉं तहॉं शहरिया।

शुरू शुरू महिमान, सबो के मन ला भाही।

महिने दिन मा रोज, दॉंत कटकट-कट्टाही।


टेशन परिस पहाड़, मुॅंधरहा जाड़ उतरगे।

नदिये-नदिया नाव चलावत गॉंव हबरगे।

मुस्की मारत जाड़, खड़े हे पार-सिवाना।

धोही पाहुन पॉंव, देत हे जल तृन-पाना।


पिंवरू धान सियान, नवा के मुड़ जोहारै।

चुन के चातर मेंड़, लगा आसन बइठारै।

दुरिहा ले चिल्लाय, जाड़ ला गन्ना बाहू।

हमरो ॲंगना द्वार, देवउठनी के आहू।


जेन खेत के मेंड़, लगे हे राहर तिल्ली।

रिता मेंड़ ला देख,उड़ावत रहिथें खिल्ली।

कोदो कर लिस पूछ,जाड़ हा का होये हे।

कोदो कहय किसान, दवाई बर बोंये हे।


बपुरा बीही झाड़, सुवागत मा का दीही।

नइहे धन बिन धरम, कठुर्री हावय बीही।

सेमी दॉंत खिसोर, हॅंसे बत्तीसी चमके।

बंगाला के लाल, गाल दुरिहा ले दमके।


कती डहर ले गॉंव, जवइया मन सब जाथें।

कॉंदी लुवत किसान, खड़ा होके अलखाथे।

धरसे-धरसा जाड़, गॉंव के धरलिस रस्ता।

लइका मन लिन भेंट, पीठ मा लादे बस्ता।


पसतावत हे खूब, चिरैया बिन पाना दल।

आहट पा के नैन, निहारत हे सीताफल।

जाड़ पहुॅंचगे खोर, मिले रहि रहि के ॲंखिया।

मुचुर मुचुर मुस्काय , कोंहड़ा तूमा रखिया।


बइठे बबा बिहान, रउनिया लेवत हावय।

महॅंगा अनुभव ज्ञान, मुफत मा देवत हावय।

छू के पबरित पॉंव, जाड़ बइठिस फसकिर के।

देखत हे मुॅंह नाक, ज्ञान गुण के फिर फिर के।


रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

Friday, October 2, 2020

छंद परिवार की प्रस्तुति-गांधी शास्त्री जयंती विशेष


 फोटो- दिनेश चौहान
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छंद परिवार की प्रस्तुति-गांधी शास्त्री जयंती विशेष

विष्णुपद छंद- विजेन्द्र वर्मा

भारत माँ के सेवा खातिर,गोली खा मरथे।
वोकर सेती गाँधी जी ला,वंदन सब करथे।।

पहिनय खादी सादा धोती, ज्ञान देय सब ला।
नारी मन ला काहय बापू,नोहव तुम अबला।।

जात पात अउ छुआछूत ला,भारी वो बरजे।
कहना नइ मानय तेकर बर,गाज बने गरजे।।

राह दिखाए गाँधी जी हा,काम नेक करबो।
सत्य शांति के रसता मा अब,जीबो अउ मरबो।।

छोड़न आलस अउ स्वारथ ला,तब भाग जागही।
बापू के कहना माने ले,दुख दूर भागही।।

विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर

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 आल्हा छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

करमचंद गांधी बाबू हे, दाई पुतली बाई तोर।
मोहन दास नाँव बचपन के,ए भारत के नावा भोर।

सन् अठ्ठारह सौ उन्हत्तर, दू अक्टूबर के शुभ रात।
जनमे सागर तट के तीरे, गाँव पोरबंदर गुजरात।

तन मा सादा धोती पहिरे ,पकड़े लम्हरी लउठी हाथ।
देखे सपना आजादी के , सत्य अहिंसा मंतर साथ।।

आँखी मा चश्मा पहिरे गा, तन ले पातर मन के पोठ।
बइरी बर आँधी कस गांधी ,करस देश हित खातिर गोठ।। 

सबे सिखोथे बानी बूती ,तँय हा करके हवस सिखोय।
कथनी करनी एक्के राखे ,तभे महात्मा तँय हा होय।

साधक सत्य अहिंसा के तँय, जिनगी रहिस धर्म मय तोर।
जिनगी ला करके दीया कस, दुनिया ला तँय करे अँजोर।  

खाली नाव नहीं हे गांधी , बनगे जिनगी दर्शन एक।
पढ़के उनकर कहिनी मन ला , ज्ञानी ध्यानी बनिस अनेक।।

छंदसाधक - विरेन्द्र कुमार साहू, बोड़राबाँधा(पाण्डुका), (छंद के छ, साधक सत्र -9)

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 जयकारी छंद - आशा आजाद"कृति"

गाँधी जी के सुनलव गोठ, बात करिस जी सुघ्घर पोठ ।
सत्य अहिंसा नेक विचार, सुघ्घर अमरित बाटिस सार ।।

नारी के होवै सम्मान, करहू झन कोनो अपमान ।
अनाचार रोकौ जे होय, नारी कोनो झन जी रोय ।।

मीठ मया के भाखा नेक, मनखे ला समझव सब एक ।
जात पात के झन हो भाव, मानवता ले रखव लगाव ।।

मन के शक्ति बड़खा आय, कठिन डगर ला सरल बनाय ।
शिक्षा पथ के रद्दा जाव, जिनगी अपने सफल बनाव ।।

दीन दुखी के जावौ तीर, हरलौ मनखे के दुख पीर ।
ए भुइयाँ बर धर्म निभाव, समता भाईचारा लाव ।।

गाँधी जी के नेक विचार, रहिस देशहित के आधार ।
देश धर्म ला अपने जान, करिस काज ओ सुघर महान ।।

छंदकार - आशा आजाद"कृति"
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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 हरिगीतिका छंद- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी

गांधी पुजारी सत्य के, अउ शांति योद्धा प्रेम के।
नेकी अहिंसा कर्म मा, हिरदे बसे सुख नेम के।।
हित राष्ट्र बर जिनगी करिस, रखके समर्पण भाव ला।
जन जन रखे वो बंधुता, नित दूर कर अलगाव ला।।

खादी लँगोटी तन पहन, त्यागिस विदेशी वेश ला।
संदेश चरखा मा कहिस, दौ मान जनता देश ला।।
नारा करो या फिर मरो, फूँकिस बिगुल जन आम मा।
ये देश ला आजाद कर, बापू गये सतधाम मा।।

पर आज तोरे देश के, हालत बड़ा बदहाल हे।
बाढ़त दिनों दिन पाप हा, झूठा नियत अउ चाल हे।।
कइसे बधाई दौं भला, अब देख अत्याचार ला।
आ के बचा ये देश ला, जन जन दिये अधिकार ला।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़ )

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 रोला छंद--बापू 
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बापू देथे सीख, अपन पबरित जीवन ले। 
बिना धरे हथियार, लड़े वो गोरा मन ले। ।
लेके जन सहयोग, करे कतको आंदोलन। 
तब भारत आजाद, कराइन जुरमिल सब झन। ।

बापू जगमग जोत, करिस भुइयाँ  उजियारी। 
सत्य अहिंसा  देश, प्रेम  के रहे पुजारी। ।
समता भरे समाज, रचे के उदिम करीसे। 
भारत माँ के नाव, अपन तन मन धन दीसे। ।

 दीपक निषाद -बनसाँकरा( सिमगा)

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कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

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नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।
सत्य अंहिसा प्रेम सिरागे, बढ़गे बैरी बरबादी।

गली गली मा लहू बहत हे, लड़त हवै भाई भाई।
तोर मोर के फेर म पड़के, खनत हवै सबझन खाई।
हरौं तोर चेला जे कहिथे, नशा पान के ते आदी।
नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।

कतको के कोठी छलकत हे, कतको के गिल्ला आँटा।
धन बल खुर्शी अउ स्वारथ मा, सुख होगे चौदह बाँटा।
देश प्रेम के भाव भुलागे, बनगे सब अवसरवादी।
नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।

दया मया बर दाई तरसे, बरसे बाबू के आँखी।
बेटी बहिनी बाई काँपे, नइ फैला पाये पाँखी।
लउठी वाले भैंस हाँकथे, हवै नाम के आजादी।
नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।

राम राज के दउहा नइहे, बाजे रावण के डंका।
भाव भजन अब करै कोन हा, खुद मा हे खुद ला शंका।
दया मया सत खँगत जात हे, बाढ़ै बड़ बिपत फसादी।
नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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हीरा गुरुजी समय

जबले कहिके तँय कुली, करिस हवे अपमान।

सबक सिखाहूँ देख रे, मन मा लेइस ठान।

मन मा लेइस, ठान उहाँ एकता बनाइस।

उही एकता, के ताकत धर, भारत आइस।

जड़ी जमाए, रुख अंग्रेजी , हालिस तबले।

बनके गरेर, चलिस  महात्मा गाँधी जबले।


नेता गाँधीवाद के, वो भारत के लाल।

रहिस छोटकन कद तभो, बड़का करिस कमाल।

बड़का करिस कमाल अपन जलवा देखाइस।

पाकिस्तान घलो ओखर ले मुहकी  खाइस।

जय जवान जय किसान के वो बनिस प्रणेता।

जगत मानगे, छोटे कद के, बड़का नेता।


हीरालाल गुरुजी समय

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Thursday, October 1, 2020

अमृत ध्वनि छन्द-लिलेश्वर देवांगन

 अमृत ध्वनि छन्द-लिलेश्वर देवांगन


योग


ताजा ताजा ले हवा, सुबे सुबे कर योग |

लकठा नइ अावय कभू,जिनगी भर गा रोग ||

जिनगी भर गा,रोग बदन ला,छू नइ पाही |

बचही खर्चा, रोज दवा के, सुख तब आही |

रहिबे चंगा ,तभे कहाबे,तन के राजा |

जल्दी उठ के,सुबे हवा ले,ताजा ताजा |


प्रदुषन


गाड़ी मोटर के धुँआ, करथे जी नुकसान |

होथे रोगी श्वास के,लेथे सबके जान ||

लेथे  सबके,जान सुनव जी,सब नर नारी |

जगह जगह मा,फइले हाबय ,प्रदुषन भारी ||

रोज रोज के,काटत हाबय,जंगल झाड़ी |

गली सड़क मा,धुँआ उड़ाथे,मोटर गाड़ी ||


 फौजी


भारत   माँ के  गोद मा ,जनमे   वीर    महान |

फौजी बनके देश बर ,अपन गँवा दिस जान ||

अपन गँवा दिस,जान सुनव जी,अमर कहानी |

वीर   देख   के,   बैरी    होगे,   पानी   पानी ||

सीमा ले  जी ,  दुश्मन  भागे ,  रोवत  हारत | 

जोर लगाके,बोलत हाबय,जय जय भारत ||



लिलेश्वर देवांगन