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Monday, April 24, 2023

पढ़इया लइका के गर्मी छुट्टी_ *कुकुभ छंद* - अश्वनी कोसरे 'रहँगिया'

 _पढ़इया लइका के गर्मी छुट्टी_ 

*कुकुभ छंद*  - अश्वनी कोसरे 'रहँगिया'


लइकन जब पढ़थें इसकुल मा, सरग बरोबर लगथे जी |

फुलवारी के फूल बरोबर, अँगना सबो महकथे जी ||


जब छुट्टी होथे लइकन के, गर्मी के मौसम होथे |

नाना - नानी के घर मा फिर, देख उधम कइसे होथे ||


दिन - दिन भर घुमथें लइकन मन, गली - खोर अउ पारा मा |

गिल्ली - डंडा भौरा - बांटी, खेलँय घलो बियारा मा ||


नवा जमाना के खेलौना, मोबाइल ले खेलत हें |

छुटगे कथा कहानी सुनना, पालक मन दुख झेलत हें ||


कम्प्यूटर कस मशीन जुग मा, टीवी अउ दुनिया दारी | 

पढ़ई - लिखई ला बिसरा के, समय गँवावत हें भारी ||


रतिहा जागे ताकत रहिथें, मार - मार उन चिल्लाथें |

आँखी - कान घुसरगे भीतर, सोय नींद मा चिचियाथें ||


डाटा रोज सिरावत हावय, बिक्कट नशा हमागे हे |

नान - नान लइकन मन लत मा, अपने ले दुरिहागे हें ||


समझावन व्यवहार बने के, जिनगी भर लइका रोही |

बात करे मा हल मिलथे, घर ले अपन पहल होही ||


संग रहँय दादा - दादी के, सबो सीख सुग्घर पाहीं |

पुरखा मन के गोठ सियानी, सब विकार दुरिहा जाहीं ||


कभू खेत ले जावन उनला, जानँय भेद परिश्रम के |

सिरजावत सिरजन ला देखँय, देख करम कइसे दमके ||


बढ़इ ठठेरा कर्मकार के, कारज ले परिचित होंही |

उपजइया उपजाथे कइसे, देख समझ के सुख बोंही ||


हटरी बजार लेके जावन, जिनगी ले उन जुड़ पाहीं |

सीख धरे के सुग्घर मउका, घेरी- बेरी गुन गाहीं ||


तरिया - नरवा जल संसाधन, कुआँ बगइचा ला जानय |

दाना - पानी उगथे कइसे, कीमत इँकरो पहिचानय ||


रधनी खोली हाँथ बटावँय, कइसे आटा हर सनथे |

धोवँय बरतन जेवन परसँय, देखँय भोजन कब बनथे ||


तीर परोसी के घर जावँय, ले जावँय खाई - खाजा |

सबो सहारा एक दुसर बर, खुलय सदा बर दरवाजा ||


गइया - गोरु भइँसी - भइँसा, बछरू मन ला लालन दे |

चिरई चुरगन हीत जतन बर, कुत्ता बिल्ली पालन दे ||


ऊँकर तन हर जतिक सनावय, बोझा मन के मेलन दे |

हिष्ट - पुष्ट हो जावय काया, धुर्रा - माटी खेलन दे ||


लू बर पना पियावत राहन, गरम हवा ला झन पाहीं |

माटी सानत घर मा खेलँय, पुतरा - पुतरी बन जाहीं ||


मातु पिता हम फर्ज निभावन, सुग्घर लालन पालन दे |

पाँख जमा लइका मन उड़ही, सदविचार भर डालन दे ||


        छंदकार

अश्वनी कोसरे 'रहँगिया'

कवर्धा कबीरधाम

पुस्तक दिवस - हरिगीतिका छंद*

 *पुस्तक दिवस - हरिगीतिका छंद*

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महिमा बतावँव का सखा,पुस्तक हवै बड़ काम के।

जम्मों भराए ज्ञान हे,गीता रमायन नाम के।।

इतिहास देखव खोल के,सुग्घर दिखावै आज जी।

पुरखा जमाना के सबो,पढ़ लौ लिखाए काज जी।।


सरकार के सब काम के,लेखा घलो पुस्तक कथे।

कानून चलथे देश मा,सब नीति मन हा जी रथे।।

कविता कहानी गीत ला,सुग्घर सबो पढ़ लौ बने।

खेती किसानी काम के,रद्दा सबो गढ़ लौ बने।।


सब जानकारी विश्व के,पाथे अबड़ जी ज्ञान ला।

जिनगी बनाथे पढ़ इहाँ,रखथे अपन ईमान ला।।

सब लोक दरशन हा घलो,होथे पढ़े ले आज जी।

होके सबो शिक्षित इहाँ, करथे बने सब काज जी।।

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छंद रचना:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

Friday, April 7, 2023

आल्हा छन्द ।। बीर हनुमान ।।

 आल्हा छन्द ।। बीर हनुमान ।।


रामदूत सुन हे बजरंगी, पवन तनय तै हर हनुमान।

नइहे कोनो ये दुनिया मा, तोर असन देवा बलवान।।1


देह वज्र के जइसन तोरे, गति हा हावय पवन समान।

महावीर विक्रम बजरंगी, हावस तै अब्बड़ गुणवान।।2


राम काज ला तहीं बनाये, लिये हवस देवा अवतार।

पता लगाये मातु सिया के, सौ जोजन जा सागर पार।।3


लंका जा के लंक जराये, टोरे रावण के अभिमान।

थर थर काँपै तोर नाम ले, बड़े बड़े सब मरी मशान।।4


राम नाम के हरदम मन मा, करथस देवा तैं गुणगान।

रामभक्त जग नाम पुकारे, मिले हवै तोला वरदान।।5 


-गुमान प्रसाद साहू समोदा (महानदी) ,रायपुर ,छत्तीसगढ़