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Monday, February 27, 2023

विष्णु पद छन्द- परसा (१६/०२/२०२३)

 विष्णु पद छन्द- परसा (१६/०२/२०२३)


परसा ला सब जानत हव जी, गाॅंव- गाॅंव रइथे ।

कोनों ओला केसू टेसू, छूल ढाक कइथे ।।


उत्तर भारत झारखण्ड हा, सीना तानत हे ।

फूल हरय ये राजकीय गा, जनता जानत हे ।।


लाली- लाली सादा- सादा, सुग्घर के दिखथे ।

कतको झन मन एकर ऊपर, गाना  ला लिखथे ।।


दोना पत्तल घर बर लकड़ी, जड़ी घलो मिलथे ।

माघ महीना लगते फागुन, घम- घम ले खिलथे ।।


भॅंवरा मन मॅंडरा- मॅंडरा के, रस ला चुहकत हे ।

अउ डारा मा कोयलिया हा, बइठे कुहकत हे ।।


गोरी नारी हे अलबेली, ओकर का कहना ।

बना- बना के सजा- सजा के, पहिरत हे गहना ।।


ममहाथे बड़ सुग्घर ओहा, रुखवा हे अइसे ।

रंगोली बनथे जेकर ले, इन्द्र धनुष जइसे ।।


दया- मया ला राखे रहिबे, सॅंगवारी तॅंय हा ।

ये परसा के फुलवा तोला, देवत हॅंव मॅंय हा ।। 


✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम"🙏

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हरिगीतिका छंद-परसा


*परसा कहै अब मोर कर भौरा झुले तितली झुले।*

*तड़पे हवौं मैं साल भर तब लाल फुलवा हे फुले।*

*जब माँघ फागुन आय तब सबके अधर छाये रथौं।*

*बाकी समय बन बाग मा चुपचाप मिटकाये रथौं।*


*सजबे सँवरबे जब इहाँ तब लोग मन बढ़िया कथे।*

*मनखे कहँव या जीव कोनो सब मगन खुद मा रथे।*

*कवि के कलम मा छाय रहिथौं एक बेरा साल मा।*

*देथौं झरा सब फूल ला नाचत नँगाड़ा ताल मा।*


खैरझिटिया

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Saturday, February 25, 2023

बाल दिवस के हार्दिक बधाई।

 बाल दिवस के हार्दिक बधाई।

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तेल फूल मा लइका बाढ़य, अउ पानी मा धान।

फेर आज तो अइसे लगथे, उल्टा हे गुनगान।।


तेल चुपर अउ सेंक पेट ला, दूध पियाथे कोन।

बोतल धरके लइका चुहकय, बाजत रहिथे फोन।।


बबा डोकरी दाई नइये, एकल हे परिवार।

किस्सा कहिनी आज नँदागे, गोदी मया दुलार।।


लइका सँग खेलइया नइये, कहाँ निकलथे खोर।

बचपन ले शाला वो जाथे, होवत रइथे बोर।।


अपन वजन ले लादे जादा, वो बस्ता के भार।

होमवर्क के पालो परथे, गुरुजी के फटकार।।


दाई ददा हुदेरत रहिथें, कहिथें पढ़ दिन रात।

सब ला जादा नंबर चाही, एके गोठ हे सार।।


पालक मन ले बिनती हाबय, बचपन झन मुरझाय।

अंग्रेजी शिक्षा के कीरा,  काट काट झन खाय।।


हवैं भविष्य हमर लइका मन, वोमन सिर के ताज।

उँखर हाथ मा भाग हमर हे, हवै देश के लाज।।


बनैं बीर बढ़िया संस्कारीं, मेहनती गुनवान।

हलधरिया के बेटी बेटा, पावैं जग सम्मान।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

छन्द के छ की प्रस्तुति- फागुन विशेष छंदबद्ध काव्य सृजन

 



छन्द के छ की प्रस्तुति- फागुन विशेष छंदबद्ध काव्य सृजन

रोला छन्द -होली(चोवाराम वर्मा बादल)


इरखा कचरा बार, मना ले सुग्घर होली।

रंग मया के घोर,भिंजो दे हिरदे चोली।


माया लगे बजार, हवै दुनिया के मेला।

तोर मोर के रोग, घेंच मा लटके ठेला।

जाबे खुदे भुँजाय, जरब झन करबे जादा

कौड़ी लगे न दाम, बोलना गुत्तुर बोली।

इरखा कचरा बार, मनाले सुग्घर होली।


नइ ककरो बर भेद, करै सूरुज वरदानी।

देथे गा भगवान, बरोबर हावा पानी।

मूरख मनवा चेत, जतन अब तो कुछ कर ले

हरहा गरब गुमान, धाँध अँधियारी खोली।

इरखा कचरा बार, मना ले सुग्घर होली।


कतको बड़े कुबेर, चले गिस हाथ हलाके।

बड़े बड़े बलवान, झरिन जस बोइर पाके।

डोरी कस अइँठाय, टूटबे खाके झटका

गाल फुलाना छोंड़, सीख ले हँसी ठिठोली।

इरखा कचरा बार, मना ले सुग्घर होली।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,  छत्तीसगढ़

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: ताटंक छन्द गीत...

विषय-होली

मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।

कहाँ होलिका हा जर पाही,ए आँसों के होली मा।।


कतका बछर जलावत होगे,फेर कहाँ ले आथे जी।

कोनजनी कइसे गा भाई,ए जिंदा हो जाथे जी।।

आज होलिका हा मर जाही,मारव मिलके गोली मा।

मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।।


कइसे रंग गुलाल उड़ाबो,पानी बिन करलाई हे।

कहाँ गली मा फाग मताबो,घर घर आज लड़ाई हे।।

सुमता के सब परब नँदागे,कुमता आगे झोली मा।।

मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।।


पर्यावरण बचाव करे बर,कुछ तो सोचौ भाई हो।

बढ़े प्रदूषण हा झन संगी,करौ सबो अगुवाई हो।।

हँसी-खुशी ले परब मनालौ,मन ला मोहव बोली मा।

मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।।


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 *महाभुजंग प्रयात सवैया - होली*


बजै ढोल बाजा नँगारा सुहावै,दिखै आज लाली गुलाली कन्हैया।

धरे रंग हाथे लगावै मुँहूँ मा,इहाँ राधिका हा लुकावै ग भैया।।

भरे हे मया राग कान्हा बलावै,लजावै ग  गोपी कहै हाय दैया।

मया मा फँसा रंग डारै मया के,नचावै सँगे मा मया के रचैया।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा(कबीरधाम)

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होरी हे -रोला


बरसावत हे रंग, प्रकृति हर आनी बानी। 

हरियर पीयर लाल, करालव चूनर धानी।  

आये फागुन मास, रहव झन मुँह लटकाये। 

मस्ती भरे तिहार, दिखावव आज जवानी। 


बुढ़वा दिखे मतंग, छेड़खानी मन भाये। 

लइका होय जवान, उपद्रव अबड़ मचाये। 

भइया भौजी संग, आज फगुवा हे गावत।

नोनी हे सरबोर, दिखय नइ तनिक लजाये। 


जम के बरसा रंग, सोंच झन तैं छोरी हे। 

खेले खातिर रंग, चाह राखे गोरी हे। 

सब मा भरे उमंग, बुरा थोरिक नइ मानय।

मल दे गाल गुलाल, मया मा कह होरी हे।  


दिलीप कुमार वर्मा

बलौदाबाज़ार

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 फागुन होली 

     !!!!!!!!!!!!!!!!!!!

     कुंडलियाँ 

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फागुन होली मा चलैं, धरके सबो गुलाल |

नाँच-नाँच अउ हाँसके, बने लगावँय गाल ||

बने लगावँय गाल, लाल अउ हरियर पिँवरा |

धर-धर दउड़े रंग, धकर धक धड़कय जिंवरा ||

"बाबू" मांदर ढोल, नँगारा धरके टोली |

झूँमत नँगत बजाय, आय जी फागुन होली ||


पारत हावय कूँहकी, नाँचत डंडा नाँच |

धरे खड़े सब रंग हे, नइ सकहू जी बाँच ||

नइ सकहू जी बाँच, आज के दिन पावन हे |

मिले गले सब लोग, खुशी बड़ मनभावन हे ||

" बाबू" भर के रंग, दउँड़ के पिचका मारत |

होरी है चिल्लाय, नाँच के सिसरी पारत ||


पिचकारी टूरा धरे, भरके लाली रंग |

पिचकत हे टूरी उपर, धरके टोली संग ||

धरके टोली संग, घुँमत हे हाँसत गावत |

गावय सुघ्घर फाग, चलत हे मन मुस्कावत ||

" बाबू" ठोंकय ढोल, गाँव मा होली भारी |

बिक्कट खुशी मनाय, रंग दय जब पिचकारी ||


कमलेश प्रसाद शरमाबाबू कटंगी-गंडई जिला केसीजी 

छंद साधक सत्र -20

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 *विषय: होली (रोला छंद)*


जलके होगे राख , होलिका देखव भाई।।

जय होवै  प्रहलाद , विष्णु जी के अनुयाई ।।

बिक्कट करत उछाह , लगे जिनगी सतरंगी।

झूमे नाचे आज , देख कतको हुड़दंगी ।।


डगमग डोले पाँव , बिगाडे़ भाखा बोली।

तबले कहिथे यार , बुरा झन मानो होली।।

आनी बानी भेष , बनाके पिटै नँगारा ।

खेलै रंग गुलाल , सनाए जम्मो पारा।।


नाचे डंडा नाच , बबा हा कुहकी पारे।

गाए फगुवा गीत , सबो के जाय दुवारे ।।

परंपरा ला आज , बचाके रखे हवै गा ।

फूहड़ता ले दूर , संस्कृति रचे हवै गा ।।


भेदभाव ला छोड़ , बुराई ला अब त्यागव।

सुमता अउ सद्भाव, जगावव खुद भी जागव।।

लगे कँहू ला ठेस , न बोलव अइसन बोली ।

रंग गुलाल लगाव ,  प्रेम से माँनव होली ।।


                        साधक

                   बृजलाल दावना

                        भैंसबोड़ 

                     जिला धमतरी

                         सत्र 10

                 6260473556

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 *होली हे होली रे होली*


*सार छन्द सँग होली खेलंव, राग मया के गावंव।*

*मन मितवा के पाती पढ़के, मन ही मन हरसावंव।।*



बजय नगाड़ा बजय नगाड़ा, गली मुहल्ला पारा। 

फाग रंग मा रँगे हँवें सब, बैठें हें फगुहारा।। 


सात रंग के मोल जोल हें, छटा दिखे सतरंगी। 

मया परब मा सबो धनी हें, नइहे कोनो तंगी।। 

हँसी खुशी भाईचारा मन, आये झारा झारा। 

फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठें हें फगु हारा।। 


तन ला भाये लाल गुलाबी, मन ला भाये हरियर। 

नीला पीला रंग बैगनी, होगे अंतस फरियर।। 

सखी सहेली मन हाँसत हें, करके अजब इशारा। 

फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठे हें फगुहारा।। 


रंग मिटावय जात _पात ला, गला मिलत हे बैरी। 

सबके मन आनन्द भरत हे, सुख के माते गैरी।। 

मन लइका पिचकारी धरके, छींचत हे फौवारा। 

फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठे हें फगुहारा।। 


फागुन के कोठी मा संगी, अब्बड़ भरे खजाना।

सोन लदाये गहूँ चना मन, सरसों अरसी दाना।। 

 ऋतुराजा के घर मा होवत, रोज रोज भंडारा। 

फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठे हें फगुहारा।।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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: विष्णु पद छन्द गीत- फागुन आगे (२४/०२/२०२३)


फागुन आगे मस्ती छागे, खुशी मनावव जी ।

आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।



होली के पावन तिहार हा, मन ला भावत हे ।

लाल गुलाबी हरियर पिॅंवरा, रंग लगावत हे ।।


भर- भरके मारव पिचकारी, घोरव लावव जी ।

आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।



फाग गीत हा बने सुहावय, तीर बलावय गा ।

हमर गाॅंव के गोरी नारी, बड़ मुस्कावय गा ।।


ढोल नॅंगाड़ा गड़वा बाजा, बने बजावव जी ।

आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।



छोड़व इरखा द्वेष कपट ला, ये समझावत हे ।

जिनगी ला हॅंस के जीये बर, घलो सिखावत हे ।।


कुमता जाही सुमता आही, राह बनावव जी ।

आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।

✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

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गुमान साहू: चौपाई छन्द-


        ।।।खेलत हावै होरी ।।।

खेलत हावै ब्रज मा होरी।श्याम संग मा राधा गोरी।।

संग बिसाखा ललिता हावै।रंग बिरंगी रंग लगावै।।1


कान्हा पिचका धरके आवय। गोप ग्वाल सब ला रंगावय।।

मारे भर भर के  पिचकारी। रंगे ब्रज के सब नर नारी।।2


हरियर पिंवरा लाल लगावय। रंग गुलाबी सब ला भावय।।

मया डोर मा सबो बँधाये। प्रेम रंग मा हवै सनाये।। 3


- गुमान प्रसाद साहू समोदा (महानदी),रायपुर 

छन्द साधक सत्र-6

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: सार छंद - होली


महिना फागुन गजब सुहाथे, आथे जब गा होली।

मया पिरित ला बाँधे रखथे,गुरतुर हमरो बोली।।


हाँसत गावत रंग लगावौ,पालौ नही झमेला।

बैर भुलाके आहू संगी,पारा हमर घुमेला।।


नीला पीला लाल गुलाबी, धरे रंग ला आहू।

बैर भाव ला छोड़े संगी,सबला गले लगाहू।।


कतको पिये भांग ला भारी,कतको हा जी दारू।

गली गली मा रहिथे माते ,देखव हाल समारू।।


ढोल नगाड़ा बजही  अबड़े, गीत फाग के गाबो।

रंग भरे मारत पिचकारी,मिलके मजा उड़ाबो।।


घर घर मा चुरथे रोटी,बाँट सबो  हा खाबो।

हावय आज खुशी के होली,मिलके साथ मनबो।।


भाई चारा के संदेशा,देवत सबझन जाबो ।

गली गली मा मिलके घुमबो,बढ़िया अलख जगाबो।।


 राजेश कुमार निषाद 

ग्राम चपरीद (समोदा)

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*शक्ति छंद --- फाग(होली)*



मजा देख लेवत, हवैं फाग के ।

जुड़े पोठ हमरो, मया ताग के ।।

लगे फूल मउहा, सबो डार मा ।

बने देख झूमत, हवय खार मा ।।


गली खोर माते, सबो के मजा ।

बने आज कसके, नँगारा बजा ।।

लगादे  बने  रंग,  ला  गाल  मा ।

चले फाग के गीत, अब ताल मा ।।



*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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सार छंद-होली


लाली-लाली परसा फुलवा,जब लागै मनभावन।

तोर बिना तब सुन्ना सजनी,मोर हिया के आँगन।1


कोन संग मा रहिके हितवा,हावय कोन मयारू?

बोलय होली मा जिवरा हा,सुन गा कका समारू।2


मनखे मतलबिहा कलजुग मा,होगे हावय अतका।

छुरा पीठ मा गोभे संगी,जम के मारय मुटका।3


दान धरम पुन असल रंग ए,महिमा ऋषि मुनि गावैं। 

पर औगुन के रंग चढ़े ले,असली रंग नँदावैं। ।4

                                   

कइसे खेलँव मैंहा होली,खुशी-खुशी हमजोली।

मनखे के हिरदै मा नइ हे,दया-मया के खोली।5


दया-मया अउ सेवा सटका,इही मोर बर सजनी।

मोर हिया के आँगन मा नइ,अब ये जीवनसँगिनी।6


दया मया सेवा सजनी बन,जभ्भे दिल म समाही।

दान धरम के असल रंग ले,मजा फाग के आही।7


जीतेन्द्र निषाद 'चितेश'

सांगली,जिला-बालोद


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: विषय- होली 

!!!!!!!!!!!!!!!!!!

पदित सिंहावलोकन दोहें 

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1-

कोनो पिचकारी धरे, कोनो धरे गुलाल |

आनी-बानी रंग मा, बोथागे हे गाल ||

2-

बोथागे हे गाल जी, करत हवयँ अतलंग |

बने-बने मनखे घलो, दिखथें जी बदरंग ||

3-

दिखथें जी बदरंग वो, होली के दिन आज |

आथे येमा बड़ मजा, नइ लागय जी लाज ||

4-

नइ लागय जी लाज हा, छोट बड़े सब एक |

आपस मा मिलथे गला, ईरादा हे नेक ||

5-

ईरादा हे नेक जी, जुरमिल गायँ बजायँ ||

छेना लकड़ी लान के, होली घलो जलायँ ||

6-

होली घलो जलायँ सब, ले के प्रभु के नाम |

बैर भाव ला छोड़ के, सुघ्घर करथें काम ||

7-

सुघ्घर करथें काम ला, "बाबू" घर-घर खायँ |

हँसी खुशी के साथ मा, होली सबो मनायँ ||


कमलेश प्रसाद शरमाबाबू कटंगी-गंडई जिला-केसीजी 

छंद साधक -सत्र -20

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--रूपमाला/मदन छंद

 रितुराज के शोभा

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जाड़ के खेदा करत हे, कुनकुनावत घाम।

रात हा लागे खिरन अउ,दिन दिनोंदिन लाम।

कोइली हा राग धरके ,हे सुनावत फाग।

मोहरी भँवरा बजावै,झूमरत हे बाग।


हे सजे रितुराज के निक,इंद्र कस दरबार।

मोंगरा झालर टँगाये,लाल टेसू द्वार।

चार तेंदू के सजावट,गूँथ आमा पान।

ठिन ठिनिन घंटी चना के, हे हवा फुरमान।


अप्सरा सरसों दिखत हे, सोन जइसे देह।

नैन मतवाली गहूँ के, हे लुटावत नेह।

इत्र मउहा बड़ छिंचत हे,गँधिरवा के संग।

मातगे हें डोंगरी वन, पी बसंती भंग।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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छन्न पकैया छन्न पकैया, रँग डारिस हे मोला।

कान्हा देखव ले के घूमत,  रंग भरे हे  झोला।।

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, मिल के खेलव होली।

कभू फेर झन खावव संगी, आँग-भाँग के गोली।।

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, दउड़त दउड़त आथे।

नोनी-बाबू धर पिचकारी, मोला बड़ डरवाथे।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, खेलव होली जमके।

गोरा-काला  दिखय नहीं जी , मुँह सब्बो के चमके।।

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, बाजय ढोल नगाड़ा।

गली मुहल्ला के सँग भैया, हालय अँगना बाड़ा।।

 

 छन्न पकैया छन्न पकैया, होली मा सब छैला।

खोजत हावय मिलय नहीं जी, रँगे पुते हे लैला।।

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, खावव गुजिया मिक्चर।

जब जब भांटो खेलय होली,देखा दव जी पिक्चर ।।

 

छन्न पकैया छन्न पकैया,अड़बड़ खाहू गाली।

पनिहारिन के झन छेड़व तुम, सुग्घर खिनवा बाली।।


 छन्न पकैया छन्न पकैया, सुनले बाबू भोला।

बच के रहिबे तहूँ ल परही, गुब्बारा के गोला।।

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, खेलव होली जमके।

रँगेपुते हे तभो ले देखव,मुँह हर कइसन दमके।।

 

छन्न पकैया छन्न पकैया, कइसे मिलही माफ़ी।

होली मा जब भांग छोड़के, पीहू सब झन काफ़ी।।


शुचि 'भवि'

भिलाई, छत्तीसगढ़

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*होली*

सार छंद


मन मुटाव भूला जा भइया, एसो के होली मा |

सब हितवा ला भूलवार दे, मीठ मया बोली मा ||

बछर अगोरत आथे संगी, बड़ मयारु ये होली |

छोट बड़े सब माते रइथे,जस खाय भाँग गोली ||

रंग बिरंगी ये तिहार हे, अबड़ खुशी ले आथे |

करिया पिंवरा रंगे मनखे, सबके मन ला भाथे ||

ढोल नगाड़ा धून सुने ले, गद गद अंतस होथे |

परे बछर भर परिया मन मा, बीज खुशी के बोथे ||


अशोक कुमार जायसवाल

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: दोहा छंद - होली


लाल गुलाबी रंग हे,उड़े बिरज के घाम ।

मया रंग मा बूड़ गे,राधा अउ घनश्याम ।।


गाँव गली मादर बजे,गावत फागुन गीत।

श्याम बजाये बाँसुरी,भीजे मन के भीत।।


धरे मया के रंग ला,किंजरत हावे श्याम।

मइलाहा मन देख के,लहुटय अपनो धाम।।


मँदहा मउहाँ मात गे,परसा हाँसे डार।

मउर बाँध आमा खडे़,भौंरा मन्त्रोचार।।


बंदन बूंके कस दिखे,जंगल खेती खार।

गीत कोइली गात हे,आगे फागुन द्वार ।।


हवा बसंती झूम के,चढे़ पेड़ अउ डार।

कभू गहूँ के खेत मा,कूदे भाड़ी पार।। 


मौसम सतरंगी लगे,गर बाँधे रूमाल। 

बइहाये फागुन खडे़,चुपरे रंग गुलाल।। 


शशि साहू 

बाल्को नगर कोरबा ।

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 *होरी आगे - अमृतध्वनि छंद*


फागुन महिना आय हे,होरी डाँड़ गड़ाय।

लइका मन मुसकात हे,सबके मन ला भाय।।

सबके मन ला,भाय सुनौ जी,खुशी मनावय।

लइका नाचय,माँदर बाजय,मन बउरावय।।

रंग कटोरा,धरके दउड़य,अब का कहिना।

देखव  संगी,आए  हावय,फागुन  महिना।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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विधा - *जलहरण घनाक्षरी*

~~~~~~~

फागुन के पुरवाई, परसा के सुघराई,

महकत अमराई, देख झूमे मन अब।


झूले सरसों के बाली, सेमर फुले हे लाली,

कोयली देवय ताली, आमा हर मौरे तब।


नगाड़ा मा झूम-झूम, नाचे मन घूम-घूम,

चारो कोती मचे धूम, बुराई हा जरे जब।


बगरे हे कई रंग, मचावत हुड़दंग,

उठे मन मा तरंग, प्रेम रंग रंगे सब।।1।।


नीला पीला हरा लाल, रंग करथे कमाल,

देख होथे खुशहाल, सबो परानी के मन।


भाईचारा बढ़ जाथे, गुरतुर बोली भाथे,

होली के तिहार लाथे, सुख के सुग्घर धन।


खेलव गुलाल रंग, पी के प्रेम वाला भंग

करौ कुछ हुड़दंग, मुसकाही मन-तन।


पिरित के रंग घोर, बन जाओ चितचोर,

बाँधो हिरदे के डोर, साजो जिनगी अपन।।2।।


         इन्द्राणी साहू"साँची"

       भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

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: दोहा छंद


उड़गे रंग गुलाल हा,आगे फगुआ झूम।

किसन संग राधा रिझै,होली के हे धूम।।


ऊँच नीच ला छोड़ के,खेलव रंग गुलाल।

मनखे मनखे एक हन,चलौ मिलाबो ताल।।


डंडा नाचे ताल मा ,कुहकी मारे पोठ।

भिँजे मया के रंग मा,ठहकत हावय गोठ।।


किसम किसम पकवान हा,हर घर बनथे आज।

खुरमी भजिया अउ बरा,कड़ही करथे राज।।


मिलथे तीज तिहार मा,जुरमिल के परिवार।

हँसी ठिठोली संग मा,पाथे मया दुलार।।


राजेन्द्र कुमार निर्मलकर

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: *कुंडलिया छंद*

*होली*


होली आज तिहार हे, मया रंग ला बाँट।

मन के खटखट छोड़ के, मनखे ला तँय साँट।।

मनखे ला तँय साँट, मया के बाँटा करले।

दया-मया के रंग, हाथ मा संगी धरले।।

जिनगी हे दिन चार, गोठिया हँसी ठिठोली।

भर पिचकारी मार, खेल तँय मन भर होली।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

*सत्र 14*

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 लावणी छंद "फगुनाही"

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महर महर ममहाए मउहा, आमा घउदे हे लसलस।

फगुनाही आरो आथे जब, फूल लीम कसथे कसकस।


लाली परसा फुलवा रानी, ठाढ़े हे चुकचुक समरे।

आमा साजे मउर घमाघम, छुए बर भुइयाँ अमरे।।


सेमर सरसों सुघ्घर खोंचे, लाल फूल लहकत पिँवरा।

अरसी हा रंग धरे बैगनी, मिलत जुलत हावय तिँवरा।।


सब रंग भरे भुइयाँ थारी, सब रंग समाए  हावय।

पिँवरा रंग पीरीत संगी, अड़बड़ सब के मन  भावय।।


गदनिक गदनिक बजे नँगाड़ा, फागुन हा जब ले लगथे।

मन मलंग मनचलहा होके, मीत मीत मन ला ठगथे।।


जस नसा घोर देहे कोनों, हवा मतउना कस लागय।

कहाँ बिलमगे तँय हा संगी, मन तोरे पाछू भागय।।


रंग लगाबे ये फागुन मा, जींयत भर जे झन छूटय।

मया डोर ला बाँधे रखबे, टोरे ककरो झन टूटय।।


तँय भँवरा अस फूल फूल के, संग दूसरा झन धरबे।

तोर मया के रंग चढ़े मन, फगुनाही रंग चुपरबे।।

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द्रोपती साहू "सरसिज"

महासमुन्द छत्तीसगढ़

पिन-493445

Email; dropdisahu75@gmail.com

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: होरी 


नदियाँ लहरा के बहे,सुनव बसंती राग। 

ढोल नगाड़ा बाजथें, नीक लागथे फाग।। 


टेसू परसा फूलगे, झूलत माते ड़ाल । 

होरी मा रसिया जुड़े,धरय अबीर गुलाल।। 


फागुन मा मन डोलथे, जागय सुग्घर आस। 

हेत-मेत बाढय सदा,दोष मिटावव फाँस।।


धर्म कर्म व्यवहार ले, जिनगी मा उल्लास। 

भेदभाव ला मेटथे,अंतस जुड़थे खास।। 


होथे फागुन मास मा, होरी के हुड़दंग। 

भाई-चारा बाँट लव,मलव खुसी के रंग।। 


दारू दंगा ले बचव, बोली लाली रंग। 

मनमुटाव ला छोड़ के, बजय नगाड़ा चंग ।। 


देख सुनीअधुना बुड़े,सब तिहार के रंग। 

अपन संस्कृति ला बचा, दुनिया देखय दंग।।


छंदकार

डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग

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होरी अउ पीरा पलायन के- सरसी छन्द


होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।

रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।


देवारी के दीया बुझथे, बरथे मन मा आग।

शहर दिही दू पइसा कहिके, देथौं गाँव तियाग।

अपन ठिहा मा दरद भुलाहूँ, फागुन ला परघात।

होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।।

रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।


प्लास आम डूमर कस ठाढ़े, नित गातेंव मल्हार।

फोकट देहस मोला भगवन, पेट पार परिवार।

जनम भूमि जुड़ अमरइया हे, करम भूमि हे तात।

होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।।

रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।


अइसन रँगबे सब ला आँसो, हे फागुन महराज।

सबे बाँह बर होवै बूता, छलकत रहै अनाज।।

दरद पलायन के झन भुगते, गाँव गुड़ी देहात।

होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।

रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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झन बिगाड़ होली मा बोली- गीत(चौपाई छंद)


चिल्लाथस बड़ होली होली, लोक लाज के फाटक खोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


मया पिरित के ये तिहार मा, द्वेष रहे झन तीर तार मा।

बार बुराई होली रचके, चल गिनहा रद्दा ले बचके।।

उठे कभू झन सत के डोली, पथ चतवार असत ला छोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


बजा नँगाड़ा झाँझ मँजीरा, नाच नाच दुरिहा दुख पीरा।

समा जिया मा सब मनखे के, दया मया नित ले अउ दे के।

छीच मया के रँग ला घोली, बना बने मनखे के टोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


एखर ओखर खाथस गारी, अबड़ मताथस मारा मारी।

भाय नही कोनो हर तोला, लानत हे अइसन रे चोला।।

दारू पानी गाँजा गोली, गटक कभू झन मिल हमजोली।।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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दुर्मिल सवैया(पुरवा)


सररावत  हे  मन  भावत  हे  रँग फागुन राग धरे पुरवा।

घर खोर गली बन बाग कली म उछाह उमंग भरे पुरवा।

बिहना मन भावय साँझ सुहावय दोपहरी म जरे पुरवा।

हँसवाय कभू त रुलाय कभू सब जीव के जान हरे पुरवा।


खैरझिटिया

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रंग परब(सरसी छंद)


फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय   बुराई  नास।

सत के जोती जग मा बगरे,मन भाये मधुमास।


चढ़े दूसर दिन रंग मया के,सबझन खेलैं फाग।

होरी   होरी  चारो   कोती, गूँजय  एक्के  राग।

ढोल नँगाड़ा बजे ढमाढम,बजे  मँजीरा  झाँझ।

रंग गुलाल उड़ावय भारी,का बिहना का साँझ।

करिया पिवँरा लाली हरियर,चढ़े रंग बड़ खास।

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास...।


डूमर गूलय परसा फूलय,सेम्हर लागय लाल।

सरसो चना गहूँ बड़ नाचय,नाचे मउहा डाल।

गस्ती तेंदू  चार  चिरौंजी,गावय  पीपर  पान।

बइठे  आमा  डार  कोयली ,सुघ्घर छेड़े तान।

घाम हवे ना जाड़ हवे जी,हवे मया के वास।

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास--


होली मा हुड़दंग  मचावय,पीयय गाँजा  भांग।

इती उती चिल्लावत घूमय,खूब  रचावै  स्वांग।

तास जुआ अउ  दारू पानी,झगरा झंझट ताय।

अइसन मनखे गारी खावय,कोनो हा नइ भाय।

रंग मया के अंग लगाके,जगा जिया मा आस।

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास..।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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Saturday, February 18, 2023

महाशिवरात्रि परब विशेष- भगवान भोलेनाथ ला छंदबद्ध भावपुष्प


 

महाशिवरात्रि परब विशेष- भगवान भोलेनाथ ला छंदबद्ध भावपुष्प


 *भोले भगवान  (सरसी छन्द)* 


जब सागर-मंथन-मा निकरिस, करिस गरल के पान|

विपदा ले दुनिया-ल बचाइस, जै  भोले भगवान|| 


बिख केआगी तपिस गरा-मा, जइसे के बैसाख| 

मरघट-मा जा के शिव-भोला, देह चुपर लिस राख|| 


गंगा जी ला जटा उतारिस, अँधमधाय-के नाथ|  

मन नइ माढ़िस तब चन्दा ला, अपन बसाइस माथ|| 


तभो चैन नइ पाइस भोला, धधके गर के आग|

अपन नरी-मा हार बना के, पहिरिस बिखहर नाग||  


शीतलता खोजत-खोजत मा, जब पहुँचिस कैलास| 

पारवती के संग उहाँ शिव, अपन बनालिस वास||


*अरुण कुमार निगम*

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: कुँडलिया-भोले के बिहाव


भोले आज दुल्हा बने,जावन लगे बरात।

नंदी बइला मा चढ़े,सुग्घर लागय घात।।

सुग्घर लागय घात, हाथ धर डमरु बजावै।

चंदा सोहै माथ,अंग मा भभुत रमावै।।

लपटे गर मा साँप,कान मा बिच्छी डोले।

पीयत गांजा भाँग, चले हे शंकर भोले।।

नारायण वर्मा

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सागर मंथन कस मन मथदे(कुकुभ छंद)


सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।

दुःख द्वेस जर जलन जराके, सत के बो बीजा बाबा।


मन मा भरे जहर ले जादा, नइहे कुछु अउ जहरीला।

येला पीये बर शिव भोला, देखादे तैंहर लीला।

सात समुंदर घलो मथे मा, विष अतका नइ तो होही।

जतका मनखे मन कर हावय, देख तोर अन्तस रोही।

बड़े  छोट  ला घूरत  हावय, साली  ला जीजा बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।


बोली भाँखा करू करू हे, मार काट होगे ठट्ठा।

अहंकार के आघू बइठे, धरम करम सत के भट्ठा।

धन बल मा अटियावत घूमय, पीटे मनमर्जी बाजा।

जीव जिनावर मन ला मारे, बनके मनखे यमराजा।

दीन  दुखी  मन  घाव  धरे  हे, आके  तैं सी जा बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।


धरम करम हा बाढ़े निसदिन, कम होवै अत्याचारी।

डरे  राक्षसी  मनखे  मनहा, कर तांडव हे त्रिपुरारी।

भगतन मनके भाग बनादे, फेंक असुर मन बर भाला।

दया मया के बरसा करदे, झार भरम भुतवा जाला।

रहि  उपास  मैं  सुमरँव तोला, सम्मारी  तीजा  बाबा।

सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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शिव महिमा(शिव छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।

शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।


चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।

अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।


बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।

भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।


कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।

स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।


हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।

पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।


भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।

बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।


नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।

लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।


शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।

बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।


दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।

सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।


खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।

तोर मोर ला भुला। दे अशीष मुँह उला।


नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।

कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।


काल के कराल के। भूत  बैयताल के।

नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।


शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।

शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।


शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।

शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।


शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।

मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।


शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।

शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।


नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।

शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।


शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।

का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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शिव ल सुमर- शिव छंद


रोग डर भगा जही। काल ठग ठगा जही।

पार भव लगा जही। भाग जगमगा जही।


काम झट निपट जही। दुक्ख द्वेष कट जही।

मान शान बाढ़ही। गुण गियान बाढ़ही।।


क्रोध काल जर जही। बैर भाव मर जही।

खेत खार घर रही। सुख सुकुन डहर रही।


आस अउ उमंग बर। जिंदगी म रंग बर।

भक्ति कर महेश के। लोभ मोह लेश के।


सत मया दया जगा। चार चांद नित लगा।

जिंदगी सँवारही। भव भुवन ले तारही।।


देव मा बड़े हवै। भक्त बर खड़े हवै।

रोज शाम अउ सुबे। भक्ति भाव मा डुबे।


नीलकंठ ला सुमर। बाढ़ही सुमत उमर।

तन रही बने बने। रेंगबे तने तने।।


सोमवार नित सुमर। नाच के झुमर झुमर।

हूम धूप दे जला। देव काटही बला।।


दूध बेल पान ले। पूज शिव विधान ले।

तंत्र मंत्र बोल के। भक्ति भाव घोल के।


फूल ले मुठा मुठा। सोय भाग ला उठा।

भक्ति तीर मा रही।शक्ति तीर मा रही।।


फूल फल दुबी चढ़ा। नारियल चँउर मढ़ा।

आरती उतार ले।धूप दीप बार ले।।


शिव पुकार रोज के। भक्ति भाव खोज के।

ओम ओम जाप कर।भूल के न पाप कर।।


भूत भस्म भाल मा। दे चुपर कपाल मा।

ओमकार जागही। भाग तोर भागही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)


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सर्वगामी सवैया - खैरझिटिया

माथा म चंदा जटा जूट गंगा गला मा अरोये हवे साँप माला।

नीला  रचे  कंठ  नैना भये तीन नंदी सवारी धरे हाथ भाला।

काया लगे काल छाया सहीं बाघ छाला सजे रूप लागे निराला।

लोटा म पानी रुतो के रिझाले चढ़ा पान पाती ग जाके सिवाला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा


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घनाक्षरी(भोला बिहाव)-खैरझिटिया


अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,

भूत  प्रेत  साथ  मा  जी ,निकले  बरात  हे।

बइला  सवारी  करे,डमरू  त्रिशूल धरे,

जटा जूट चंदा गंगा,सबला  लुभात हे।

बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,

भभूत  लगाये  हवे , डमरू  बजात  हे।

ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,

भूत  प्रेत  पाछु  खड़े,अबड़ चिल्लात  हे।


भूत प्रेत झूपत हे,कुकूर ह भूँकत हे,

भोला के बराती मा जी,सरी जग साथ हे।

मूड़े मूड़ कतको के,कतको के गोड़े गोड़,

कतको के आँखी जादा,कोनो बिन हाथ हे।

कोनो हा घोंडैया मारे,कोनो उड़े मनमाड़े,

जोगनी परेतिन के ,भोले बाबा नाथ हे।

देव सब सजे भारी,होवै घेरी बेरी चारी,

अस्त्र शस्त्र धर चले,मुकुट जी माथ हे।


काड़ी कस कोनो दिखे,डाँड़ी कस कोनो दिखे,

पेट कखरो हे भारी,एको ना सुहात हे।

कोनो जरे कोनो बरे,हाँसी ठट्ठा खूब करे,

नाचत कूदत सबो,भोले सँग जात हे।

घुघवा हा गावत हे, खुसरा उड़ावत हे,

रक्शा बरत हावय,दिन हे कि रात हे।

हे मरी मसान सब,भोला के मितान सब,

देव मन खड़े देख,अबड़ मुस्कात हे।


गाँव मा गोहार परे,बजनिया सुर धरे,

लइका सियान सबो,देखे बर आय जी।

बिना हाथ वाले बड़,पीटे गा दमऊ धर,

बिना गला वाले देख,गीत ला सुनाय जी।

देवता लुभाये मन,झूमे देख सबो झन,

भूत प्रेत सँग देख,जिया घबराय जी।

आहा का बराती जुरे,देख के जिया हा घुरे,

रानी राजा तीर जाके,देख दुख मनाय जी।


फूल कस नोनी बर,काँटा जोड़ी पोनी बर,

रानी कहे राजा ला जी,तोड़ दौ बिहाव ला।

करेजा के चानी बेटी,मोर देख रानी बेटी,

कइसे जिही जिनगी,धर तन घाव ला।

पारबती आये तीर,माता ल धराये धीर,

सबो जग के स्वामी वो,तज मन भाव ला।

बइला सवारी करे,भोला त्रिपुरारी हरे,

माँगे हौ विधाता ले मैं,पूज इही नाव ला।


बेटी गोठ सुने रानी,मने मन गुने रानी,

तीनो लोक के स्वामी हा,मोर घर आय हे।

भाग सँहिरावै बड़,गुन गान गावै बड़,

हाँस मुस्काय सुघ्घर,बिहाव रचाय हे।

राजा घर माँदीं खाये,बराती सबो अघाये,

अचहर पचहर ,गाँव भर लाय हे।

भाँवर टिकावन मा,बार तिथि पावन मा,

पारबती हा भोला के,मया मा बँधाय हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको, कोरबा

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विष्णु पद छन्द गीत- भोले भण्डारी (१८/०२/२०२३)


भोले भण्डारी बाबा के, पूजा तॅंय कर ले ।

मनवांछित फल मिलही तोला, बेल पान धर ले ।।


दूध गाय के पीथे विषधर, लिपटे हे गर मा ।

ओकर बर लोटा मा धर ले, हावय ता घर मा ।।


दीया ला बारे बर सुग्घर, बाती ला बर ले ।

भोले भण्डारी बाबा के, पूजा तॅंय कर ले ।।


तीन लोक के स्वामी ओला, शंकर जी कइथे ।

दुख पीरा ला हरथे छिन मा, घट- घट मा रइथे ।।


अउ किरपा बरसावत रइथे, बइठे ऊपर ले ।

भोले भण्डारी बाबा के, पूजा तॅंय कर ले ।।


शिव के महिमा भारी हावय, डमरू डम- डम रे ।

कनिहा मा मृगछाला पहिरे, बोलय बम- बम रे ।।


हवय जटा मा गंगा जेकर, ओकर बर मर ले ।

भोले भण्डारी बाबा के, पूजा तॅंय कर ले ।।



 ✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

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: *दोहा छंद*

*भोले नाथ*


चुपरे राख शरीर मा, बइठे धुनी रमाय।

महादेव डमरू धरे, एला भांग सुहाय।। 


नंदी मा बइठे चले, शंकर उमा बिहाय।

नाचय भूत-परेत हा, देव फूल बरसाय।। 


आगे हवय बरात हा, दक्ष राज के द्वार।

राजा परघावय बने, भोला पहिरे हार।। 


वरमाला पहिरावे उमा, दक्ष पाँव ला धोय।

सबो टिकावन अब टिके, पहुना मन खुश होय।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली कोरबा*

*सत्र 14*

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: *शिव महिमा (लावणी छंद)*


जय शिव शंकर कैलाशी के, 

                      हाथ जोर सब गुन गावव।

जउने माँगव देथे बाबा, 

                  मनवांछित फल ला पावव।।


जगमग जगमग करें शिवाला,

                          शिवराती के मेला मा | 

फूल पान नरियर सब धरके,

                          आथे सुग्घर बेला मा ॥ 

ओम नमः के सुग्घर वंदन, 

                    आवव मिलजुल के गावव।

जय शिव शंकर कैलाशी के.............


औघड़ दानी भोले बाबा, 

                     भगतन मन के हितकारी।

बाघाम्बर मृगछाला पहिरे, 

                           वो गंगाधर त्रिपुरारी ॥ 

बेल धतूरा गाँजा फुड़हर ,

                    मिलके सब भोग लगावव।

जय शिवशंकर कैलाशी के...............


बिखहर नाँग देवता गर मा, 

                         बनके  माला साजे जी।

भूत पिशाच संग मा नाचे,

                          नंदी पीठ बिराजे जी।।

डम-डम-डम-डम डमरू बाजे, 

                         नाचव खुशियाँ पावव । 

जय शिव शंकर कैलाशी के...........


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 भोले बाबा- घनाक्षरी


भोले बाबा ला सुमर, बाढ़ही तोर उमर, 

दूध बेल पान चढ़ा, भज शिव नाम ला। 

जिनगी सँवर जही, दुख क्लेश मिट जही, 

भाग जगा के बनाही, बिगड़त काम ला।। 

ओम-ओम के जाप ले, मुक्त होबे जी पाप ले, 

बसा अपने मन मा,तैं अक्षरधाम ला। 

करबे बने गा भक्ति, बाढ़ही तभे तो शक्ति, 

भव पार करके तैं, पाबे गा मुकाम ला।। 

विजेंद्र वर्मा

नगर गाँव (धरसीवाँ)

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: बरवै छन्द

शिव महिमा


शिव शंकर कैलाशी, भोलेनाथ। 

दरशन करके भोला, नावंव माथ।। 


अजब _गजब तन गहना,  हे भगवान। 

औघड़ दानी बैठे, दे वरदान। 


पहिरे कान मा बिच्छी, गर मा नाग। 

भूत प्रेत मन पाएं , हें बड़ भाग।। 


बघवा खड़ड़ी पहि रे, चुपरे राख। 

तेरस तिथि हा शिव के, हे हर पाख।। 


शीश जटा ले बोहय, गंगा धार। 

जीव _जगत ला करथे, ये उद्धार।। 


पाँव खड़ाऊ सोहे, हाथ त्रिशूल।

माथ सजे हे चन्दा,  चन्दन फूल।। 


ओम ओम शिव शंकर, नमः शिवाय। 

नाम जपे जे शिव के, वो सुख पाय।। 


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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: सर्वगामी सवैया

देखौ बिराजे हवै माथ मा दूज, चंदा जटा धार गंगा समाये।

नंदी सवारी गला साँप सोहै ग ,मूँदे सदा नैन धूनी रमाये।

भोले बबा नाम औ काम भोला,धतूरा दही बेलपत्ती सुहाये।

पूरा मनोकामना ला करे भक्त के छीन मा औ बिपत्ती हटाये।


ज्ञानु

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अशोक कुमार जायसवाल: *अमृत ध्वनि छंद*

शंकर भोले नाथ के, जोरदार जय बोल |

पूजा श्रद्धा भाव ले, अंतर मन पट खोल ||

अंतर मन मा, बइठे बाबा, के गुन गा ले |

मोह मया ला, छोड़ अपन तन, अलख जगा ले ||

बाबा लागन, नइ देवय जी, काँटा कंकर |

सदा भक्त के,स्वामी भोले, जय जय शंकर ||

                  अशोक

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*गीतिका छंद---- भोले नाथ (महाशिवरात्रि)*


तोर महिमा आज गावत, मोर भोले नाथ जी ।

जब डरावय काल बाधा, दे सदा तँय साथ जी ।।

ध्यान पूजा सब करत हें,  हाथ  दूनों  जोर  के ।

बोल बम के धाम जावत,  बेल पाना टोर के ।।


झट करय नंदी सवारी, देख भोला आत हे ।

माथ चंदा अउ गला मा, साँप शोभा पात हे ।।

राख हे तन मा लगाये, अउ जटा गंगा बहे ।

नाँव हे कतको इहाँ गा, फेर शिव दुनिया कहे ।।


 *मुकेश उइके "मयारू"*

 ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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: रूप घनाक्षरी------------


चलो सब शिव धाम, भज लेहू शिव नाम।

आगे शिव राति संगी, मन मनौती मनाव।

टोर लानो  बेल पान, दही दूध  घींव सान।

गाँजा भाँग हूम डारो, अंग भभूति चघाव।

नंदी के सवारी वाले, जटा गंग धारी वाले।

मृग छाला साँप सोहे, घंटा डमरू बजाव।

जाप करो जुरमिल, साफ रखो मन दिल।

सुख मिले जिनगी मा, जन-जन ला जगाव।


        राजकुमार चौधरी "रौना" 

         टेड़ेसरा राजनांदगांव 

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शिव सुमिरन हे सार


सार छन्द


हे शिवशंकर हे कैलाशी, गिरिजा पति शिव भोला। 

तोर शरण मा आये हँव प्रभु, दर्शन दे दे मोला।।


मुड़ मा बैठे हावय चन्दा, जटा बहावत गंगा। 

शिव के सुमिरन करके होवय,  सबके तन मन चंगा।। 

दुनिया त्यागे जेन जिनिस ला, वोहर भाये तोला। 

तोर शरण मा आये हँव प्रभु, दर्शन दे दे मोला।। 


राख चुपर के धुनी रमाये, भोले औघड़ दानी।

सबले सरल तोर पूजा हे, बस लोटा भर पानी।। 

देवन मन कैलाश आत हें, उड़के उड़न खटोला। 

तोर शरण मा आये हँव प्रभु, दर्शन दे दे मोला।। 


शिव अविनाशी अंतरयामी,  घट घट के तंय वासी। 

ओम नाम के जाप करंय नित, ऋषि मुनि सन्यासी।। 

काशी विश्वनाथ हा तारे, जीव जगत के चोला।। 

तोर शरण मा आये हँव प्रभु, दर्शन दे दे मोला।। 


आशा देशमुख

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 मनहरण घनाक्षरी


आज दिन पावन हे, सबले सुहावन हे।

महाशिवरात्रि के जी ,बेरा बड़ भात हे।

त्रिशूल हा हाथ मा हे,भूत प्रेत साथ मा हे।

मोहनी मूरतिया हा,सबला लुभात हे।

सांप बिच्छू माला साजे,झांझ मिरदंग बाजे।

डमरू बजाके भोला,सबला नचात हे।

मिठाई मेवा चढ़ाके, माथ ला सबो नवाके।

बेल पान धतूरा ला,भगत चढ़ात हे।


नन्द कुमार साहू नादान 

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 *सार छंद*

परब महाशिवरात्रि आज हे,जुरमिल सबे मनाबो।

महादेव के करबो पूजा,भजन आरती गाबो।।


दूध दही जल घींव शहद ले,भोले ला नउहाबो।

बेल पान अउ फुड़हर धतुरा,सुग्घर अकन चढ़ाबो।


फागुन महिना के तेरस अउ,पाख रथे अँधियारी।

इही रात मा बनथे भोला,पारबती सँगवारी।।


भूत संग मा धर परेत ला,शिव हा लाय बराती।

हरे इही मन गोतियार अउ,येकर इही घराती।।


बनय नाग हा हार गला के,नंदी तोर सवारी।

गंगा तोर बिराजे लट मा,तँय हा डमरू धारी।।


सागर मंथन के विष ला तँय,अपन नरी मा धारे।

नीलकंठ तँय बनके शंभू,जग ला दुख ले तारे।।


सरी जगत के तँय हा भोले,आवस भाग्य विधाता।

आये हावन तोर दरस बर, दरसन देदे दाता।


अमृत दास साहू

कलकसा डोंगरगढ़

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: *परब महाशिवरात (सरसी छन्द)*


फगुनाही अँधियारी चौदस, अड़बड़ हे विख्यात।

शिव के भगत मनाथें ए दिन, परब महाशिवरात।


परब महाशिवरात मनावत, खुश दिखथे ब्रम्हाण।

सृष्टि रचाये रहिस इही दिन, कहिथे कथा पुराण।


शंकर पारबती के ए दिन, होये रहिस बिहाव।

जघा-जघा मा मेला भरथे, तिथि के करत हियाव।


शिवराती के महिमा गाथें, रवि कवि चारण भाठ।

होवत रथे शिवालय मन मा, दिन भर पूजा-पाठ।


सरी जगत के सुध लेवइया, शिव भोला भगवान।

कष्ट बिपत मा फँसै न कोनो, करिस हलाहल पान।


जेन पसारिस हाथ बबा तिर, पाइस हे वरदान।

रावण भस्मासुर जइसन के, करिस नहीं पहचान।


शिवभोला जतके सिधवा हे, वतके हे गुस्सैल।

मन मा नइ रखना हे चिटिको, मानवता बर मैल।


-सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"

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: चौपाई छंद ( शिव महिमा )


शिव मय होगे दुनिया सारी।

करे भक्ति सब नर अउ नारी।

बेल पान अउ नरियर धरके।

जय जय कार करे हर हर के।


पान सुपारी धजा चढ़ाये।

महिमा वोखर सबमिल गाये।

करे आरती शंख बजाये।

नर नारी जयकार लगाये।


पंचामृत मा स्नान कराये।

चोवा चंदन सबो लगाये,

शीतल चंदा जटा बिराजे।

गल मुंडन के माला साजे।


खाल शेर के कनिहा पहिने।

हवे जीव जहरीला गहने।

जग हित मा वो गरल पिये हे।

अंग भभूती चुपर लिये हे।


भोला के जब डमरू बाजय।

छम्मक छम्मक दुनिया नाचय।

जटा बिराजे  हावय गंगा।

लपटे गला म देख भुजंगा।


गावत महिमा शेष ह थक गे।

गावत गावत शारद छक गे।

"दीप" कहे शिव महिमा न्यारी।

हवे घलो ये जग उपकारी।


कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी

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: शिवबिहाव के बरतिया वर्णन ~ सरसी छन्द


फागुन चउदस शुभ दिन बेरा, सब झन हें सकलाँय।

शिव बरात मा जुरमिल जाबो, संगी सबो सधाँय।1।


बिकट बरतिया बिदबिद बाजँय, चाल चलय बेढ़ंग।

बिरबिट करिया भुरुवा सादा, कोनो हे बिदरंग।2।


कोनो उघरा उखरा उज्जट, उदबिदहा उतलंग।

उहँदा उरभट कुछु नइ घेपँय, उछला उपर उमंग।3।


रोंठ पोठ सनपटवा पातर, कोनो चाकर लाम।

नकटा बुचुवा रटहा पकला, नेंग नेंगहा नाम।4।


खड़भुसरा खसुआहा खरतर, खसर-खसर खजुवाँय।

चिटहा चिथरा चिपरा छेछन, चुन्दी ला छरियाँय।5।


जबर जोजवा जकला जकहा, जघा-जघा जुरियाँय।

जोग जोगनी जोगी जोंही,  बने बराती जाँय।6।


भुतहा भकला भँगी भँगेड़ी, भक्कम भइ भकवाँय।

भसरभोंग भलभलहा भइगे, भदभिदहा भदराँय।7।


भकर भोकवा भिरहा भदहा, भूत प्रेत भरमार।

भीम भकुर्रा भैरव भोला, भंडारी भरतार।8।


मौज मगन मनमाने मानय, जौंहर उधम मचाँय।

चिथँय कोकमँय हुदरँय हुरमत, तनातनी तनियाँय।9।


आसुतोस तैं औघड़दानी, अद्भूत तोर बिहाव।

अजर अमर अविनासी औघड़, अड़हा 'अमित' हियाव।10।


रचना- कन्हैया साहू 'अमित'

भाटापारा छत्तीसगढ़

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: सार छंद 


बेल पान  चाँउर ला धरके,चल शिवरात मनाबो।

नरियर फूल सुपारी लेके,बम बम भोला गाबो।


अवढ़र दानी भोले बाबा,पल में खुस हो जाथे।

बाबा जी के चरणन आके,मनो मनौती पाथे।

 भोले जी के करवँ  आरती,तभे प्रसादी खाबो।

नरियर फूल सुपारी लेके,बम बम भोला गाबो।।


भूत प्रेत के साथी शंकर, खाथे भांग के गोला।

साधु संत मन नाचत हाबे, कहिके बम बम भोला।

अंतर्यामी घट-घट वासी,तोरे दर्शन पाबो।

नरियर फूल सुपारी लेके,बम बम भोला गाबो।।


गल सोहे मुंडन के माला,कान म बिच्छी बाला।

कालों के तँय काल कहाये ,हाथ म  तिरसुल भाला।

शीश म चंदा जटा म गंगा,भाँग धतुरा चघाबो।

नरियर फूल सुपारी लेके,बम बम भोला गाबो।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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दुर्मिल सवैया :- जगदीश "हीरा" साहू


*शिव महिमा*


खुश हे हिमवान उमा जनमे, सबके घर दीप जलावत हे।

घर मा जब आवय नारद जी, तब हाथ उमा दिखलावत हे।।

बड़ भाग हवै कहिथे गुनके,  कुछ औगुन देख जनावत हे।

मिलही बइहा पति किस्मत मा, सुन हाथ लिखा बतलावत हे।।1।।


करही तप पारवती शिव के, गुण औगुन जेन बनावत हे।

झन दुःख मना मिलही शिव जी, कहि नारद जी समझावत हे।

सबला समझावय नारद हा, महिमा समझै मुसकावत हे।

खुश होवत हे तब पारवती, तप खातिर वो बन जावत हे।।2।।


तुरते शिवधाम सबो मिलके, अरजी तब आय सुनावत हे।

सब देव खड़े विनती करथे, अब ब्याह करौ समझावत हे।।

शिव जी महिमा समझै प्रभु के, सबके दुख आज मिटावत हे।

शिव ब्याह करे बर मान गये, सब झूमय शोर मचावत हे।।3।।


मड़वा गड़गे हरदी चढ़गे, हितवा मितवा सकलावत हे।

बघवा खँड़री पहिरे कनिहा, तन राख भभूत लगावत हे।

बड़ अद्भुत लागय देखब मा, गर साँप ल लान सजावत हे।।

सब हाँसत हे बड़ नाचत हे, सुख बाँटत गीत सुनावत हे।।4।।


अँधरा कनवा लँगड़ा लुलवा, सब संग बरात म जावत हे।

जब देखय सुग्घर भीड़ सबो, शिव जी अबड़े मुसकावत हे।।

जब देखय विष्णु समाज उँहा, तब आ सबला समझावत हे।

तिरियावव संग ल छोड़व जी, शिव छोड़ सबो तिरियावत हे।।5।।


लइका जब देखय जीव बचा, घर भीतर जाय लुकावत हे।

जब देखय रूप खड़े मयना, रनिवास म दुःख मनावत हे।।

तब नारद जी रनिवास म आ, कहिके सबला समझावत हे।

शिव शक्ति उमा अवतार हवे, महिमा सब देव बतावत हे।।6।।


सुनके सबके मन मा उमगे, तब मंगल  गीत सुनावत हे।

सखियाँ मन आज उछाह भरे, मड़वा म उमा मिल लावत हे।।

शिव पारवती जब ब्याह करे, सब देव ख़ुशी बड़ पावत हे।

सकलाय सबो झन मंडप मा, मिल फूल उँहा बरसावत हे।।7।।


जयकार करे सब देव उँहा, तब संग उमा शिव आवत हे।

जब वापिस आय बरात सबो, खुश हो तुरते घर जावत हे।

मन लाय कथा सुनथे शिव के, प्रभु के किरपा बड़ पावत हे।

कर जोर खड़े जगदीश इँहा,  शिव पारवती जस गावत हे।।8।।


जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)

कड़ार (भाटापारा)

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शंभु सुमरनी (भुजंगप्रयात वर्णिक छंद)


मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।

चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।। 


जटाजूटवाला महादेव भोला।

सबो छोड़के तोर ले आस मोला।। 

सबो देवता ले बड़े शंभुदानी।

मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।।

चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।


सबो देवता गोड़ में तोर लोटै।

धियाडोंगरीराज  के भाँग घोटै।। 

महाशक्तिसोती सुवारी सयानी।

मनावौं सदा हे  गुसैया भवानी।

चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।। 


खड़े द्वार सेवा करे तोर नंदी।

सबो भूत के नाथ तैं निर्द्वंदी।।

उमा ला बताये महाज्ञानज्ञानी।

मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।

चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।। 


पिये बीख प्याला प्रभू तैं निराला।

सजा माथ मा दूज के चन्द्रमा ला।। 

जटा बाँध गंगा धरेध्यान ध्यानी।

मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।

चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।। 


नरी नागमाला मणी के उजाला।

मथौंड़ी मँझारी भरे नैन ज्वाला।।

प्रभू विश्व के अर्धनारी विज्ञानी।

मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।

चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।। 


स्वयंभू महेशा त्रिपुण्डी बियोगी।

महातंत्र ज्ञानी सदा सिद्ध जोगी।।

सबो भूत के तैं प्रभू लागमानी। 

मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।

चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।


तहीं नीलकंठी भभूती रमैया।

महाघोर तांडौं करे तात्थैया।।

हवौं मैं कुजानी हवौं मैं अड़ानी।

मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।।

चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।


शोभामोहन श्रीवास्तव

फागुन अंजोरीपाख दूज

२२/०२/२२

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Thursday, February 16, 2023

"अनचिन्हार छन्द"

 "अनचिन्हार छन्द"


ये शीर्षक मा "अनचिन्हार" शब्द कोनो छन्द के नाम नोहय, ये शब्द "विशेषण" के रूप मा प्रयुक्त होइस हे।

नान्हे पन ले छन्द हमर जिनगी के संगेसंग चलत हवय। हमन गीत या कविता ला सुने अउ गुने हन फेर "इही हर छन्द आय" - नइ जान पाएन तेपायके छन्द मन अनचिन्हार बन गिन। आवव मँय भेंट करवावत हँव कि कब-कब कोन-कोन छन्द हमर जिनगी मा कइसे-कइसे आइन, जिन मन ला हमन चीन्ह नइ पाएन। 

(1)

ॐ जय जगदीश हरे, जय जगदीश हरे

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे।


ये आरती हमन नान्हें पन ले सुनत अउ गावत हन। एहर "सुखदा छन्द" आय। दू डाँड़ (पद) के सुखदा छन्द के विषम चरण मा 12 अउ सम चरण मा 10 मात्रा होथें। अंत मा गुरु होथे अउ दू-दू पद आपस मा तुकान्त होथें।


(2)

गणपति की सेवा, मंगल मेवा, सेवा से सब, विघ्न टरें

तीन लोक तैंतीस देवता, द्वार खड़े तेरे अर्ज करें।।


अपन घर मा अउ पारा मोहल्ला मा गणेश चतुर्थी के समय ये वंदना ला घलो नान्हेंपन ले गावत हन। एहर "त्रिभंगी छन्द" आय। एखर हर पद मा 10, 8, 8, 6 मात्रा माने कुल 32 मात्रा होथें। त्रिभंगी छन्द चार पद के होथे अउ दू-दू पद आपस मा तुकान्त होथें।


जब प्राइमरी स्कूल मा पहुँचेन तब स्कूल चालू होय के पहिली प्रार्थना गावत रहेन - 


(3)

हे प्रभो आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।

शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे कीजिए।।


ये प्रार्थना "गीतिका छन्द" मा हवय। यहू चार पद के छन्द आय जेखर दू-दू पद आपस मा तुकान्त होथें। हर पद के  14, 12 मात्रा यति होथे माने हर डाँड़ मा कुल 26 मात्रा होथे। तीसरा, दसवाँ, सत्रहवाँ अउ चौबीसवाँ मात्रा "लघु" रहिथे। 


(4)

बड़ी भली है अम्मा मेरी, ताजा दूध पिलाती है।

मीठे मीठे फल ला ला कर, मुझको रोज खिलाती है।।


प्राइमरी स्कूल के बालभारती के कविता मन आजो पूरा-पूरा याद हे। इहाँ दुये पंक्ति लिखत हँव। ये कविता "ताटंक छन्द" मा रचे गेहे। ताटंक छन्द के हर पद मा 16, 14 मात्रा मा यति समेत कुल 30 मात्रा होथे। अंत मा सरलग 3 गुरु के अनिवार्यता होथे। दुनों पद आपस मा तुकान्त होना घलो अनिवार्य होथे। 


(5)

यह कदम्ब का पेड़ अगर मा, होता जमुना तीरे।

मैं भी उस पर बैठ कन्हैया, बनता धीरे-धीरे।।


माँ खादी की चादर ले दे, मैं गाँधी बन जाऊँ।

सब मित्रों के बीच बैठकर, रघुपति राघव गाऊँ।।


फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना।

फल से लदी डालियों से तुम, सीखो शीश नवाना।।


ये तीनों कविता ला प्राइमरी स्कूल के "बालभारती" मा पढ़े रहेन। आज घलो नइ बिसरा पाए हन। ये तीनों कविता मन "सार-छन्द" मा लिखे गेहें। सार छन्द के हर पद मा 16, 12 के यति संग कुल 28 मात्रा होथें। हर दू पद आपस मा तुकान्त होथें। अंत मा एक गुरु, दू लघु या दू लघु, एक गुरु होथे फेर अंत मा दू गुरु रहे ले लय ज्यादा गुरुतुर बन जाथे। सार छन्द के बात चलिस त श्री 420 फ़िल्म के एक जुन्ना गाना के मुखड़ा के सुरता आगे - 


ईचक दाना बीचक दाना, दाने ऊपर दाना।

छत के ऊपर लड़की नाचे, लड़का है दीवाना।।


यहू मुखड़ा हर सार छन्द के उदाहरण आय।


(6) 

छन्नपकैया, छन्न पकैया, छन्न पे उड़ती साड़ी

फुलाये छाती छुकछुक करती चलती रेलगाड़ी

रेलगाड़ी, रेलगाड़ी…छुकछुक छुकछुक छुकछुक छुकछुक रेलगाड़ी


फिल्मी गाना के चर्चा चलिस त एक सुग्घर गाना के सुरता आगे। ये बालगीत आय जेला लिखिस हरिन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय अउ अपन आवाज मा गाइस अभिनेता अशोक कुमार हर। ये गीत के शुरुआत "छन्नपकैया छन्द" ले होइस हे। ये आशीर्वाद फ़िल्म के गाना हरे। एला "छन्नपकैया छन्द" कहे जाथे। यहू सार छन्द के एक प्रकार आय। सार छन्द असने एखरो विधान हवय। बस पहिली चरण मा "छन्नपकैया छन्नपकैया" के आवृत्ति के दोहराव हर छन्द के शुरुवात मा होवत रहिथे। 


(7) 

धूरि भरे अति सोभित स्यामजु तैसि बनी सिर सुन्दर चोटी।

खेलत खात फिरे अँगना, पग पैजन बाजति पीरि कछोटी।

वा छबि को रसखान विलोकत वारत काज कला निधि कोटी।

काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।


मिडिल स्कूल मा रसखान के कविता ला पढ़े हन, कविता के रूप मा। एहर "मत्तगयन्द सवैया" आय। ये सवैया के 4 पद के होथे। चारों पद आपस मा तुकान्त होना चाहिए। एमा 7 पइत भगण अउ अंत मा 2 गुरु रहिथे। 


(8)

ऊँचे घोर मंदर के, अंदर रहन वारी

ऊँचे घोर मंदर के, अंदर रहाती है

कंद मूल भोग करें, कंद मूल भोग करें

तीन बेर खाती थीं वो तीन बेर खाती हैं

भूषण शिथिल अंग भूखन शिथिल अंग

बिजन डुलाती थीं वो बिजन डुलाती हैं

भूसण भनत सिवराज वीर तेरे त्रास

नगन जड़ाती थीं वो नगन जड़ाती हैं


जब हमन हाईस्कूल पहुँचेन तब यमक अलंकार बर कवि भूषण के ये रचना हमन ला पढ़ाये गिस। हमन यमक मा अरझे राहीगेन अउ चीन्ह नइ पाएन कि एहर "मनहरण घनाक्षरी" आय। मनहरण घनाक्षरी वार्णिक छन्द आय। ये छन्द मा 8, 8, 8, 7 वर्ण मा यति होथे अउ अंत मा गुरु होथे। 


(9) 

मृदु भावों के अंगूरों की, आज बना लाया हाला

प्रियतम अपने ही हाथों से, आज पिलाउंगा प्याला

पहले भोग लगा लूँ तेरा, फिर प्रसाद जग पाएगा

सबसे पहले तेरा स्वागत, करती मेरी मधुशाला।।


स्कूली शिक्षा पूरा करे के बाद कविता पढ़े अउ सुने के शउँक जागिस। कवि हरिवंश राय बच्चन के मधुशाला बिसा के पढ़ेन। बाद मा जानेन कि ये ताटंक अउ कुकुभ छन्द आधारित आय। मुक्तक या रुबाई शैली मा हे। 16, 14 के यति संग अगर अंत मा 3 गुरु सरलग आइस त ताटंक छन्द अउ अगर अंत मा 2 गुरु आइस त "कुकुभ छन्द"। ये छन्द शैली मा नइये, मुक्तक या रुबाई के शैली मा रचे गेहे फेर विधान ताटंक अउ कुकुभ छन्द के हवय। 


(10) 

जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।

डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं

चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥


रावण रचित शिव ताण्डव स्त्रोत ला भक्ति-भाव मा सुनन फेर ये नइ मालूम रहिस कि एहर "पंचचामर छन्द" मा रचे गेहे। पञ्चचामर, वार्णिक छन्द आय जेमा हर पद मा 

जगण, रगण, जगण, रगण, जगण अउ अंत मे एक गुरु होथे। 


(11)

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।


हनुमान चालीसा के पाठ हमन करथन। एहर "चौपाई छन्द" मा रचे गेहे। एमा चार पद होथें, हर पद मा 16-16 मात्रा होथें। दू-दू पद आपस मा तुकान्त होथें। दू पद के एक अर्द्धाली होथे अउ दू अर्द्धाली के एक चौपाई होथे। 


(12) 

श्रीराम चन्द्र कृपाल भज मन हरण भाव भय दारुणम्

नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणाम्


अनेक धार्मिक प्रवचन मन मा यहू ला हमन भजन समझ के सुने हन। इही हर "हरिगीतिका छन्द" आय। ये छन्द 4 पद के होथे। हर पद मा 16, 12 या 14, 14 मात्रा मा यति होथे। माने हर पद मा 28 मात्रा होथे। दू-दू पद आपस मा तुकान्त होथे अउ अंत मा रगण आथे। 


(13)

ठुमकि चलत रामचन्द्र बाजत पैजनियाँ

धाय मातु गोद लेत दशरथ की रनियाँ


यहू रचना ला हमन भजन मान के सुने अउ गाये हन। एहर "छन्द प्रभाती" आय। हर पद मा 22 मात्रा होथे अउ अंत मा गुरु आथे। 


(14) 

सुन सॅंगवारी मोर मितान। देश के धारन तहीं परान।

हावय करनी तोर महान। पेट पोसइया तहीं किसान।।


कालू बेन्दरवा खाय बीरो पान। पुछी उखनगे जरगे कान।।

बुढ़वा बइला ला दे दे दान, जै गंगान


छत्तीसगढ़ी लोकगीत "बसदेवा गीत" घलो आपमन सुने होहू। उदाहरण मा मँय दाऊ रामचंद्र देशमुख कृत चंदैनी गोंदा के गीत ला लिखे हँव जेला धमतरी के  कवि भगवती सेन जी लिखिन हे। ये बसदेवा गीते हर "चौपई छन्द" आय। एला "जयकारी छन्द" घलो कहे जाथे। चौपाई असन यहू छन्द मा चार पद होथें। हर पद मा 15-15 मात्रा होथें। चारों पद आपस मा तुकान्त होथें फेर आज काल अनेक कवि मन दू-दू पद मा तको तुकांतता रखत हें। 


बापू जी के प्रिय भजन - "रघुपति राघव राजा राम।

पतीत पावन सीता राम"।। घलो चौपई छन्द के विधान मा हवय। 


ये लेख पढ़े के बाद आप मन जरूर सोचहू कि "छन्द" सही मा नान्हें पन ले हमर संग चलत हे फेर हम चीन्ह नइ पाएन तभे ये लेख के शीर्षक दे हँव - "अनचिन्हार छन्द"। मऊर बताए सबो उदाहरण मन बहुप्रचलित हें अउ हर छत्तीसगढ़िया इन ला पढ़े-सुने हें। ये तो कुछ उदाहरण आँय, अइसने अनेक कविता अउ गीत मन हें जउन मन कोनो न कोनो छन्द में रचे गेहें। जानकारी के अभाव मा हम छन्द मन ला चीन्ह नइ पाए हैं। मोला विश्वास हे कि अब आपमन के छन्द मा रुचि बाढ़ही। 


लेखक - अरुण कुमार निगम

संस्थापक - "छन्द के छ ऑनलाइन गुरुकुल", छत्तीसगढ़, भारत

संपर्क 9907174334


Sunday, February 12, 2023

शंकर छंद (ऊदा-बादी)

 शंकर छंद (ऊदा-बादी)


काट-काट के जंगल झाड़ी, पारे गा उजार।

ठँव-ठँव मा तैं चिमनी ताने, परिया खेत खार।

धुँगिया-धुँगिया चारों कोती, बगरे शहर गाँव।

खाँसी-खोखी खस्सू-खजरी, सँचरगे तन घाव


पाटे नरवा तरिया डबरा, देये नदी बाँध।

खोज-खोज के चिरई-चिरगुन, खाये सबो राँध।

बघवा‌ भलुवा मन छेंवागे, देये तहीं मार।

जल‌ के जम्मो जीव‌ नँदागे, नइहे तीर तार।


कोड़-कोड़ के डोंगर-पहरी, बनाये मैदान।

होवत-हावय रोज धमाका, खूब खने खदान।

भरभर-भरभर मोटर गाड़ी, घिघर-घारर शोर।

तोरे झिल्ली पन्नी जग मा, देइस जहर घोर।


छेदे छिन छिन छाती धरती, छेद डरे अगास।

खेती खाती डार रसायन, माटी करे नास।

मनमाने मोबाइल टावर, ठँव-ठँव करे ठाढ़।

आनी बानी तोर यंत्र हे, गेइन‌ सबो बाढ़।


सिरतो मैं हा काहत हाबव, बने सुन दे कान।

जिनगी जीबे हली-भली गा, कहे मोरे मान।

रोक रोक अब ऊदा-बादी, होगे सरी नास

रूरत हे तन देखत देखत, थमहत हवय साँस।


  - मनीराम साहू 'मितान'

रखिया बरी (जल-हरण घनाक्षरी मा चार शब्द-चित्र)*

 *रखिया बरी (जल-हरण घनाक्षरी मा चार शब्द-चित्र)*


 *(1)* 

रखिया के बरी ला बनाये के बिचार हवे, धनी  टोर  दूहू   छानी  फरे  रखिया के  फर।

उरिद के दार घलो रतिहा भिंजोय  दूहूँ, चरिह्या-मा डार , जाहूँ   तरिया  बड़े  फजर।

दार ला नँगत धोहूँ  चिबोर-चिबोर  बने, फोकला  ला  फेंक दूहूँ , दार  दिखही उज्जर।

तियारे पहटनीन ला आही पहट   काली, सील-लोढ़हा मा दार पीस  देही वो सुग्घर।।


 *(2)* 

मामी, ममा दाई, मटकुल मोर  देवरानी, आही काली घर मोर बरी ला बनाये बर।

काकी ह कहे हे काली करो दूहूँ रखिया ला, कका-काकी दुनो  झिन खा लिहीं इही डहर।

रखिया के बरी के तियारी हे तिहार कस, सबो  सकलाये हवैं   घर लागथे सुग्घर।

कोन्हों बैठें खटिया मा, कोन्हों बैठे पीढ़्हा मा, भाँची भकली तँय माची, लान दे न काकी बर।।


 *(3)* 

फेंट-फेंट घेरी-बेरी कइसे उफल्थे  बरी, पानी मा बुड़ो के देखे, ममा दाई के नजर।

टुप-टुप बरी डारैं, सबो झिन जुर मिल, लुगरा बिछा के बने, फेर   पर्रा ऊपर।

पीसे दार बटकी मा, अलगा के मंडलीन, तात-तात बरा ला बनात हे खवाये बर।

लाल मिरचा लसुन पीस के  पताल संग, चुरपुर चटनी बरा के  संग खाए बर।।


 *(4)* 

दार तिल्ली अउ बीजा रखिया के सानथवौं, पर्रा भर बिजौरी बना लेहूँ सुवाद बर।

नान्हे बेटी ससुरार ले संदेसा भेजे हावै, दाई पठो देबे बरी - बिजौरी  दमाद बर।

रखिया के बरी अऊ बिजौरी हमार  इहाँ, मइके के हाल-चाल के  पहुँचाथे खबर।

बरी-बिजौरी के अउ कतका बखान करौं, दया-मया  नाता-रिश्ता ला बढ़ाथे ये सुग्घर।।


*अरुण कुमार निगम*

Saturday, February 11, 2023

उतेरा/उन्हारी/ओल्हा फसल विशेष छंदबद्ध सृजन




उतेरा/उन्हारी/ओल्हा फसल विशेष छंदबद्ध सृजन
 

: उनहारी फसल 

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कुंडलियाँ 

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बोंये उनहारी फसल, हाँसत हवय किसान |

आमदनी के स्रोत हे, रबी फसल वरदान ||

रबी फसल वरदान, हवय जी बढ़िया खेती |

कामधेनु तँय जान, कमा ले अपने सेती ||

रुपिया खनके जेब, नींद भर कमिया सोये |

खुश हे सब परिवार, फसल उनहारी बोंये ||


तिंवरा बटरा अउ चना, सब के मन ला भाय |

डोली भर्री बड़ फबय, गहूँ नँगत इँतराय |

गहूँ नँगत इँतराय, सोन कस सुघ्घर बाली |

सबो जघा बोंवाय, भूमि अब नइहे खाली ||

सुरुजमुखी मुस्काय, हँसत हे सरसो पिंवरा |

होही छप्पर फाड़, चना अउ बटरा तिंवरा ||


कमलेश प्रसाद शरमाबाबू कटंगी-गंडई जिला-केसीजी छग

छंद साधक -सत्र -20

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उनहारी फसल 

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अमृतध्वनि -छंद 

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सरसो गेंहू बड़ फबय, सुरुजमुखी मुस्काय |

रहि-रहि मोहय ज्वार हा, सब के मन ला भाय ||

सब के मन ला, भाय सोनहा, बाली सुघ्घर |

दिखथे ताजा, रोज नहाये, जइसे उज्जर ||

अचल हवय जी, रूप देख लव, तइहा बरसो |

मानव जीवन, संग जनम ले, गेंहू सरसो ||


कमलेश प्रसाद शरमाबाबू कटंगी-गंडई जिला केसीजी छग 

छंद साधक- सत्र -20

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प्रदीप छन्द गीत..

विषय उनहारी(ओन्हारी)


करलौ उनहारी सँगवारी,रबी फसल ला डार के।।

परती झन रखहू खेती ला,जम्मो भाँठा खार के।


बइठे ठलहा झन राहव जी,करलौ खेती काम ला।

जीरा,धनिया,सरसों,अरसी,बोंवव पाहू दाम ला।।

आलू,गोभी,मसूर,बटरा,रद्दा हे व्यापार के।

करलौ उनहारी सँगवारी,रबी फसल ला डार के।।


चना गहूँ चौलाई तिंवरा,रबी फसल के शान हे।

लाल चुकंदर लाल टमाटर,सुरुजमुखी पहिचान हे।।

नगदी फसल कहाथें भइया,नोहे फसल उधार के।

करलौ उनहारी सँगवारी,रबी फसल ला डार के।।


उन्नत खेती उनहारी ले,करलौ सबो किसान जी।

तुँहर भरोसा जग हा चलथे,भुँइया के भगवान जी।।

सौंफ गोंदली सहसुन मेथी,ऊँचा भाव बजार के।

करलौ उनहारी सँगवारी,रबी फसल ला डार के।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 *कुंडलिया छंद----तिवरा-बटरा(उनहारी)*


तिवरा-बटरा मा दिखय, सुग्घर सबके खेत ।

रखवारी  सब्बो  करँय,  बने  लगाके  चेत ।।

बने  लगाके  चेत,  करँय गा देख किसानी ।

दार खवाथे रोज, चलय सुग्घर जिनगानी ।।

देख- देख ललचाय, खाय बर सबके जिवरा ।

हरियर-हरियर खेत, दिखय जी बटरा तिवरा ।।


खावँय अब्बड़ राँध के, आलू  सेमी  संग ।

तिवरा बटकर साग हा, आवय मजा मतंग ।। 

आवय  मजा  मतंग, खाय मा येकर होरा ।

पाथें  सबो  किसान, फसल ला बोरा-बोरा ।।

ओली भर-भर रोज,  टोर के तिवरा लावँय ।

येकर  भाजी  साग,  राँध के सुग्घर खावँय ।।


 *मुकेश उइके "मयारू"*

 ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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उल्लाला छन्द - सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"


                 उतेरा ओन्हारी

                 

कहाँ उतेरे जात हे, तिवरा चना मसूर अब।

बोंता विधि ले होत हे, ओन्हारी भरपूर अब।


पानी हावय हाथ मा, चिंता नइहे माथ मा।

मोल उतरगे ओल के, कहत किसानन ठोल के।


दिखय न नाँगर ओलहा, कूँड़ी पैला ठोड़हा।

बइला बपुरा बइठ गे, जुनियावत हे गोड़ हा।


नवा जमाना आय हे, सबला बने सुहाय हे।

चारो-डहर मशीन हे, बढ़िया सुग्घर सीन हे।


जोंतत बोंवत आजकल, टेक्टर सबके खेत ला।

समय घलव सँहरात हे, माढ़े देखत नेत ला।


नइहे एको पारथी, हमर कवर्धा पार मा।

खेत-खार मन साल भर, फदकें हें कुशियार मा।


नहर-अपासी एरिया, फसल उतेरा लेत हें।

जेती बर थारी असन, धनहे-धनहा खेत हें।


ठउँका लगत कुँवार मा, माथ अरोथे धान हा।

करके चेत उतेर थे, ओन्हारी ल किसान हा।


ओन्हारी ला देख के, किम्मत कूत सरेख के।

करथे काज किसान हा, खुश रहिथे भगवान हा।


ओन्हारी के आय ले, आथे परब तिहार हा।

नवा सँवागा साज के, सजथे हाट-बजार हा।


ओन्हारी के संग मा, आथे खुशी अपार गा।

खुशी नपा के ले जथे, पहुँच तगादादार गा।


ओन्हारी के खाँध मा, बर-बिहाव के भार हे।

मानन माथे एखरे, बचत सबो व्यवहार हे।


रचना- सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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लावणी छंद - दिलीप कुमार वर्मा  


            ओन्हारी 

आनी बानी के ओन्हारी, जेला चाहव अपनावव। 

आमदनी येखर ले बाढय, रखव उतेरा बोवावव। 


कुछ दलहन कुछ तिलहन होथे, माँग सबों के हे भारी। 

चावल गेहूँ ले तक जादा, आमदनी दय ओन्हारी। 

मनभर फसल उगावव संगी, अउ मनभर के तुम खावव। 

आमदनी येखर ले बाढय, रखव उतेरा बोवावव। 


सरसों अरसी या हों तीली, अरहर बटरी या तिवरा। 

मूंग चना या हो मसूर सब, गदगद कर देथे जिवरा। 

जादा पानी ये नइ मांगय, भर्री भाठा हरियावव । 

आमदनी येखर ले बाढय, रखव उतेरा बोवावव।


रचनाकार - दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छ ग

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: *रोला छंद* - अश्वनी कोसरे

 *ओन्हारी* 


तिवँरा चना मसूर, फरे हें अरसी चक मा|

रोवत हवँय किसान, कहाँ हे वो कर हक मा||

धनहा टिकरा खार, लटे हे अड़बड़ बटरा|

 माथा जोरे डार, फरे हे गहदे मटरा||


सुरुज मुखी सिरजाय, तेल अउ कपसा बाती|

देवत हें कुसियार, मीठ हे दाना पाती||

उलहे हवय लदार, धरे फर मुनगा भारी|

लदगे हावय डार, झोरफा बोइर बारी||


तबले कहाँ हियाव, कोन करथे रखवारी|

बाढ़े हवय करैत, घमाघम हे ओन्हारी||

कतको मरँय किसान, कउन ले दुख बतियावँय|

आजो खस्ता हाल, बिपत ले जूझत हावँय||


कहाँ मिले हे दाम, फसल के लागत बोनी|

छुटही भला किसान, टरय कइसे अनहोनी|| 

मंडी मा भरमार, लगे हे ढ़ेरी दाना |

अबले देख किसान, सबो ले पावय ताना||


छंदकार- अश्वनी कोसरे 

कवर्धा कबीरधाम

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 उनहारी(दोहा छंद)


रोका छेका के बिना,उनहारी बिन खेत।

उजरे खेती खार हा,होय किसान बिचेत।।


उजरे हावय खेत हा,भाँय भाँय हे खार।

तिवरा सरसो गे नँदा,सुरता बोहै लार।।


चना गँहू होरा कँहा,नइहे घुघरी साग।

बिसा बिसा के खात हन,रिसा घले हे भाग।।


झूमत राहै खेत हा,झूमै सबो किसान।

कुँदरा बाँधे मेड़ मा,राखै जमो मितान।।


कहिथे बहुरे दिन फिरै,झूमै खेती खार।

उनहारी लादे रहै,छछले राहय नार।।


राजेन्द्र कुमार निर्मलकर

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छप्पय छंद-"ओन्हारी"

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बरसाती  के  जाय, खेत   बोंवय   ओन्हारी।

छिड़क  कहूँ  बोंवाय, बंद  होवय जब धारी।।

जोतय  देखय  ओल, गहूँ  के आवय पारी।

सरसों  बोंवय  खार, खेत  अउ  कोला बारी।।

राहर  घपटे  मेड़ मा,  मूँग  बेल  लपटाय जी।

फर गुच्छा गुच्छा लगे, धर मुटठा भर आय जी। 


अरसी हा अलसाय, खेत भर रुगरुग फूले।

नीला रंग सुहाय, फूल  आँखी  मा  झूले।।

कुल्थी बटरी दार, साग  घुघरी  बड़  भाथे।

तिँवरा जिल्लो नार, खेत मा छछले  जाथे।।

बटरा चना मसूर ले, पोठ रोकड़ा पाय जी।

नगद फसल ये जान लव, गल्ला पइसा आय जी।।


बोंए   सोयाबीन, तेल   ला   फरियर    पाथे।

सुरजमुखी मन भाय, सोझ सुरुज सोरियाथे।।

बीजा ला अलगाय, पीट   पीट  के   कुटेला।

कचरा अलग निकाल, चला  के फेर कटेला।।

दँउरी  बेलन  फाँद के, करे  मिसाई  डार  के।

ओसा  के  बीजा  धरे,  भूँस  पेरउसी टार के।



एक्के  बार  उतेर, देख  लव  किस्मत  जागे।

घपटे  रहिथे  खार, देख  मन  आगर  लागे।।

भूँसा   चारा   पाय,  खाय   गरुवा   फुन्नाथे।

होय   घरोघर   दूध, दही    बने     लेवनाथे।

ओन्हारी के दार ला, सब घर भर के खाय जी।

देखभाल कर थोरके, गजब मुनाफा पाय जी।।

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द्रोपती साहू "सरसिज"

पिन-493445

Email-dropdisahu75@gmail.com

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*छन्न पकैया छन्द*


*उन्हारी*


छन्न पकैया छन्न पकैया , अब तो धान लुवाही।

खेत अँटाही जब जल्दी कन, ओल बने जी आही।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, खुश किसान हो जाही।

चना गहूँ अउ बटुरा बोंवत, नाँगर खेत चलाही।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, जौन ओलहा बोहीं।

बने जागही बीज सबो अउ, पौधा तगड़ा होहीं।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, गरुवा गाय बिटोहीं।

खेत राखही पूरा पाहीं , नइ ते मुड़धर रोहीं।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, उन्हारी हरियागे।

फूल धरत हावय बिक्कट के, देखत मन ला भागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , सब्बो फर पोठागे।

टोर लान नीछ साग राँधे, बटकर मन ला भागे।।


छन्न पकैया छन्न पकैया,मन ला सुग्घर भाही।

खेत डहर अब सबझन जाबो, तिवरा चना लुवाही

छन्न पकैया छन्न पकैया, दौरी घलो फँदाही।

बटरी तिवरा चना मिसाही,मन मा खुशी समाही।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू(बलौदाबाजार)

सत्र -15

🙏🙏🙏🙏🙏

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*रोला छंद* - अश्वनी कोसरे

 *ओन्हारी* 


तिवँरा चना मसूर, फरे हें अरसी चक मा|

रोवत हवँय किसान, कहाँ हे वो कर हक मा||

धनहा टिकरा खार, लटे हे अड़बड़ बटरा|

 माथा जोरे डार, फरे हे गहदे मटरा||


सुरुज मुखी सिरजाय, तेल अउ कपसा बाती|

देवत हें कुसियार, मीठ हे दाना पाती||

उलहे हवय लदार, धरे फर मुनगा भारी|

लदगे हावय डार, झोरफा बोइर बारी||


तबले कहाँ हियाव, कोन करथे रखवारी|

बाढ़े हवय करैत, घमाघम हे ओन्हारी||

कतको मरँय किसान, कउन ले दुख बतियावँय|

आजो खस्ता हाल, बिपत ले जूझत हावँय||


कहाँ मिले हे दाम, फसल के लागत बोनी|

छुटही भला किसान, टरय कइसे अनहोनी|| 

मंडी मा भरमार, लगे हे ढ़ेरी दाना |

अबले देख किसान, सबो ले पावय ताना||


छंदकार- अश्वनी कोसरे 

कवर्धा कबीरधाम

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*चौपाई छंद*


*नकदी उनहारी हरे, तँय बिरथा झन मान।*

*परिया झरिया खेत बर, होथे जी बरदान।।*


 जब कुँवार मा खेत अँटाथे, तब किसान हा ध्यान लगाथे।

खोज बीजहा भतहा लाथें, बीज उतेरा बर ले जाथें।।


कार्तिक लगथे धान लुवाथे, खेत ओलहा मा जोंताथे।

चना गहूँ राहेर सिंचाथे, बटुरा अउ तिवरा बोंवाथे।।


सरसों अलसी कुल्थी मँसरी ,सोयाबीन संग मा अँकरी।

भाँठा भर्री लम्हरी चकरी,फसल लगै सब बारी बखरी।।


सब देवव ध्यान संगवारी, खेत खार बोंवव उनहारी।

दलहन तिलहन अउ तरकारी, लगै खेत अउ कोला बारी।।


*सूरजमुखी बर्रे लगे, फूल गजब मन भाय।*

*उनहारी बिन खेत हा, खाली झन रहि जाय।।*


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू(बलौदाबाजार)

सत्र-15

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नोहर होगे उन्हारी- सार छंद


भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


पहली जम्मों गांव गांव मा, माते राहय खेती।

सरसो नाँचे तिवरा हाँसे, जेती देखन तेती।।

करे मसूर ह मुचमुच फुलके, चले मया के आरी।

भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


पुरवा गाये राग फगुनवा, चना गहूँ लहराये।

मेड़ कुंदरा कागभगोड़ा, अड़बड़ मन ला भाये।

चना चोरइया गाय बेंदरा, खाय मार अउ गारी।

भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


कोन सिधोवव खेत किसानी, मनखे मन पगलागे।

खेत बेच के मजा उड़ावव, शहर गाँव मा आगे।।

सड़क झडक दिस खेत खार ला, बनगे महल अटारी।

भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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