महाशिवरात्रि परब विशेष- भगवान भोलेनाथ ला छंदबद्ध भावपुष्प
*भोले भगवान (सरसी छन्द)*
जब सागर-मंथन-मा निकरिस, करिस गरल के पान|
विपदा ले दुनिया-ल बचाइस, जै भोले भगवान||
बिख केआगी तपिस गरा-मा, जइसे के बैसाख|
मरघट-मा जा के शिव-भोला, देह चुपर लिस राख||
गंगा जी ला जटा उतारिस, अँधमधाय-के नाथ|
मन नइ माढ़िस तब चन्दा ला, अपन बसाइस माथ||
तभो चैन नइ पाइस भोला, धधके गर के आग|
अपन नरी-मा हार बना के, पहिरिस बिखहर नाग||
शीतलता खोजत-खोजत मा, जब पहुँचिस कैलास|
पारवती के संग उहाँ शिव, अपन बनालिस वास||
*अरुण कुमार निगम*
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: कुँडलिया-भोले के बिहाव
भोले आज दुल्हा बने,जावन लगे बरात।
नंदी बइला मा चढ़े,सुग्घर लागय घात।।
सुग्घर लागय घात, हाथ धर डमरु बजावै।
चंदा सोहै माथ,अंग मा भभुत रमावै।।
लपटे गर मा साँप,कान मा बिच्छी डोले।
पीयत गांजा भाँग, चले हे शंकर भोले।।
नारायण वर्मा
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सागर मंथन कस मन मथदे(कुकुभ छंद)
सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।
दुःख द्वेस जर जलन जराके, सत के बो बीजा बाबा।
मन मा भरे जहर ले जादा, नइहे कुछु अउ जहरीला।
येला पीये बर शिव भोला, देखादे तैंहर लीला।
सात समुंदर घलो मथे मा, विष अतका नइ तो होही।
जतका मनखे मन कर हावय, देख तोर अन्तस रोही।
बड़े छोट ला घूरत हावय, साली ला जीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।
बोली भाँखा करू करू हे, मार काट होगे ठट्ठा।
अहंकार के आघू बइठे, धरम करम सत के भट्ठा।
धन बल मा अटियावत घूमय, पीटे मनमर्जी बाजा।
जीव जिनावर मन ला मारे, बनके मनखे यमराजा।
दीन दुखी मन घाव धरे हे, आके तैं सी जा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।
धरम करम हा बाढ़े निसदिन, कम होवै अत्याचारी।
डरे राक्षसी मनखे मनहा, कर तांडव हे त्रिपुरारी।
भगतन मनके भाग बनादे, फेंक असुर मन बर भाला।
दया मया के बरसा करदे, झार भरम भुतवा जाला।
रहि उपास मैं सुमरँव तोला, सम्मारी तीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके, मद महुरा पी जा बाबा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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शिव महिमा(शिव छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।
शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।
चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।
अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।
बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।
भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।
कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।
स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।
हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।
पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।
भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।
बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।
नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।
लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।
शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।
बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।
दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।
सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।
खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।
तोर मोर ला भुला। दे अशीष मुँह उला।
नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।
कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।
काल के कराल के। भूत बैयताल के।
नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।
शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।
शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।
शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।
शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।
शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।
मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।
शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।
शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।
नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।
शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।
शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।
का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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शिव ल सुमर- शिव छंद
रोग डर भगा जही। काल ठग ठगा जही।
पार भव लगा जही। भाग जगमगा जही।
काम झट निपट जही। दुक्ख द्वेष कट जही।
मान शान बाढ़ही। गुण गियान बाढ़ही।।
क्रोध काल जर जही। बैर भाव मर जही।
खेत खार घर रही। सुख सुकुन डहर रही।
आस अउ उमंग बर। जिंदगी म रंग बर।
भक्ति कर महेश के। लोभ मोह लेश के।
सत मया दया जगा। चार चांद नित लगा।
जिंदगी सँवारही। भव भुवन ले तारही।।
देव मा बड़े हवै। भक्त बर खड़े हवै।
रोज शाम अउ सुबे। भक्ति भाव मा डुबे।
नीलकंठ ला सुमर। बाढ़ही सुमत उमर।
तन रही बने बने। रेंगबे तने तने।।
सोमवार नित सुमर। नाच के झुमर झुमर।
हूम धूप दे जला। देव काटही बला।।
दूध बेल पान ले। पूज शिव विधान ले।
तंत्र मंत्र बोल के। भक्ति भाव घोल के।
फूल ले मुठा मुठा। सोय भाग ला उठा।
भक्ति तीर मा रही।शक्ति तीर मा रही।।
फूल फल दुबी चढ़ा। नारियल चँउर मढ़ा।
आरती उतार ले।धूप दीप बार ले।।
शिव पुकार रोज के। भक्ति भाव खोज के।
ओम ओम जाप कर।भूल के न पाप कर।।
भूत भस्म भाल मा। दे चुपर कपाल मा।
ओमकार जागही। भाग तोर भागही।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)
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सर्वगामी सवैया - खैरझिटिया
माथा म चंदा जटा जूट गंगा गला मा अरोये हवे साँप माला।
नीला रचे कंठ नैना भये तीन नंदी सवारी धरे हाथ भाला।
काया लगे काल छाया सहीं बाघ छाला सजे रूप लागे निराला।
लोटा म पानी रुतो के रिझाले चढ़ा पान पाती ग जाके सिवाला।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा
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घनाक्षरी(भोला बिहाव)-खैरझिटिया
अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,
भूत प्रेत साथ मा जी ,निकले बरात हे।
बइला सवारी करे,डमरू त्रिशूल धरे,
जटा जूट चंदा गंगा,सबला लुभात हे।
बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,
भभूत लगाये हवे , डमरू बजात हे।
ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,
भूत प्रेत पाछु खड़े,अबड़ चिल्लात हे।
भूत प्रेत झूपत हे,कुकूर ह भूँकत हे,
भोला के बराती मा जी,सरी जग साथ हे।
मूड़े मूड़ कतको के,कतको के गोड़े गोड़,
कतको के आँखी जादा,कोनो बिन हाथ हे।
कोनो हा घोंडैया मारे,कोनो उड़े मनमाड़े,
जोगनी परेतिन के ,भोले बाबा नाथ हे।
देव सब सजे भारी,होवै घेरी बेरी चारी,
अस्त्र शस्त्र धर चले,मुकुट जी माथ हे।
काड़ी कस कोनो दिखे,डाँड़ी कस कोनो दिखे,
पेट कखरो हे भारी,एको ना सुहात हे।
कोनो जरे कोनो बरे,हाँसी ठट्ठा खूब करे,
नाचत कूदत सबो,भोले सँग जात हे।
घुघवा हा गावत हे, खुसरा उड़ावत हे,
रक्शा बरत हावय,दिन हे कि रात हे।
हे मरी मसान सब,भोला के मितान सब,
देव मन खड़े देख,अबड़ मुस्कात हे।
गाँव मा गोहार परे,बजनिया सुर धरे,
लइका सियान सबो,देखे बर आय जी।
बिना हाथ वाले बड़,पीटे गा दमऊ धर,
बिना गला वाले देख,गीत ला सुनाय जी।
देवता लुभाये मन,झूमे देख सबो झन,
भूत प्रेत सँग देख,जिया घबराय जी।
आहा का बराती जुरे,देख के जिया हा घुरे,
रानी राजा तीर जाके,देख दुख मनाय जी।
फूल कस नोनी बर,काँटा जोड़ी पोनी बर,
रानी कहे राजा ला जी,तोड़ दौ बिहाव ला।
करेजा के चानी बेटी,मोर देख रानी बेटी,
कइसे जिही जिनगी,धर तन घाव ला।
पारबती आये तीर,माता ल धराये धीर,
सबो जग के स्वामी वो,तज मन भाव ला।
बइला सवारी करे,भोला त्रिपुरारी हरे,
माँगे हौ विधाता ले मैं,पूज इही नाव ला।
बेटी गोठ सुने रानी,मने मन गुने रानी,
तीनो लोक के स्वामी हा,मोर घर आय हे।
भाग सँहिरावै बड़,गुन गान गावै बड़,
हाँस मुस्काय सुघ्घर,बिहाव रचाय हे।
राजा घर माँदीं खाये,बराती सबो अघाये,
अचहर पचहर ,गाँव भर लाय हे।
भाँवर टिकावन मा,बार तिथि पावन मा,
पारबती हा भोला के,मया मा बँधाय हे।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको, कोरबा
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विष्णु पद छन्द गीत- भोले भण्डारी (१८/०२/२०२३)
भोले भण्डारी बाबा के, पूजा तॅंय कर ले ।
मनवांछित फल मिलही तोला, बेल पान धर ले ।।
दूध गाय के पीथे विषधर, लिपटे हे गर मा ।
ओकर बर लोटा मा धर ले, हावय ता घर मा ।।
दीया ला बारे बर सुग्घर, बाती ला बर ले ।
भोले भण्डारी बाबा के, पूजा तॅंय कर ले ।।
तीन लोक के स्वामी ओला, शंकर जी कइथे ।
दुख पीरा ला हरथे छिन मा, घट- घट मा रइथे ।।
अउ किरपा बरसावत रइथे, बइठे ऊपर ले ।
भोले भण्डारी बाबा के, पूजा तॅंय कर ले ।।
शिव के महिमा भारी हावय, डमरू डम- डम रे ।
कनिहा मा मृगछाला पहिरे, बोलय बम- बम रे ।।
हवय जटा मा गंगा जेकर, ओकर बर मर ले ।
भोले भण्डारी बाबा के, पूजा तॅंय कर ले ।।
✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏
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: *दोहा छंद*
*भोले नाथ*
चुपरे राख शरीर मा, बइठे धुनी रमाय।
महादेव डमरू धरे, एला भांग सुहाय।।
नंदी मा बइठे चले, शंकर उमा बिहाय।
नाचय भूत-परेत हा, देव फूल बरसाय।।
आगे हवय बरात हा, दक्ष राज के द्वार।
राजा परघावय बने, भोला पहिरे हार।।
वरमाला पहिरावे उमा, दक्ष पाँव ला धोय।
सबो टिकावन अब टिके, पहुना मन खुश होय।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली कोरबा*
*सत्र 14*
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: *शिव महिमा (लावणी छंद)*
जय शिव शंकर कैलाशी के,
हाथ जोर सब गुन गावव।
जउने माँगव देथे बाबा,
मनवांछित फल ला पावव।।
जगमग जगमग करें शिवाला,
शिवराती के मेला मा |
फूल पान नरियर सब धरके,
आथे सुग्घर बेला मा ॥
ओम नमः के सुग्घर वंदन,
आवव मिलजुल के गावव।
जय शिव शंकर कैलाशी के.............
औघड़ दानी भोले बाबा,
भगतन मन के हितकारी।
बाघाम्बर मृगछाला पहिरे,
वो गंगाधर त्रिपुरारी ॥
बेल धतूरा गाँजा फुड़हर ,
मिलके सब भोग लगावव।
जय शिवशंकर कैलाशी के...............
बिखहर नाँग देवता गर मा,
बनके माला साजे जी।
भूत पिशाच संग मा नाचे,
नंदी पीठ बिराजे जी।।
डम-डम-डम-डम डमरू बाजे,
नाचव खुशियाँ पावव ।
जय शिव शंकर कैलाशी के...........
रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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भोले बाबा- घनाक्षरी
भोले बाबा ला सुमर, बाढ़ही तोर उमर,
दूध बेल पान चढ़ा, भज शिव नाम ला।
जिनगी सँवर जही, दुख क्लेश मिट जही,
भाग जगा के बनाही, बिगड़त काम ला।।
ओम-ओम के जाप ले, मुक्त होबे जी पाप ले,
बसा अपने मन मा,तैं अक्षरधाम ला।
करबे बने गा भक्ति, बाढ़ही तभे तो शक्ति,
भव पार करके तैं, पाबे गा मुकाम ला।।
विजेंद्र वर्मा
नगर गाँव (धरसीवाँ)
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: बरवै छन्द
शिव महिमा
शिव शंकर कैलाशी, भोलेनाथ।
दरशन करके भोला, नावंव माथ।।
अजब _गजब तन गहना, हे भगवान।
औघड़ दानी बैठे, दे वरदान।
पहिरे कान मा बिच्छी, गर मा नाग।
भूत प्रेत मन पाएं , हें बड़ भाग।।
बघवा खड़ड़ी पहि रे, चुपरे राख।
तेरस तिथि हा शिव के, हे हर पाख।।
शीश जटा ले बोहय, गंगा धार।
जीव _जगत ला करथे, ये उद्धार।।
पाँव खड़ाऊ सोहे, हाथ त्रिशूल।
माथ सजे हे चन्दा, चन्दन फूल।।
ओम ओम शिव शंकर, नमः शिवाय।
नाम जपे जे शिव के, वो सुख पाय।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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: सर्वगामी सवैया
देखौ बिराजे हवै माथ मा दूज, चंदा जटा धार गंगा समाये।
नंदी सवारी गला साँप सोहै ग ,मूँदे सदा नैन धूनी रमाये।
भोले बबा नाम औ काम भोला,धतूरा दही बेलपत्ती सुहाये।
पूरा मनोकामना ला करे भक्त के छीन मा औ बिपत्ती हटाये।
ज्ञानु
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अशोक कुमार जायसवाल: *अमृत ध्वनि छंद*
शंकर भोले नाथ के, जोरदार जय बोल |
पूजा श्रद्धा भाव ले, अंतर मन पट खोल ||
अंतर मन मा, बइठे बाबा, के गुन गा ले |
मोह मया ला, छोड़ अपन तन, अलख जगा ले ||
बाबा लागन, नइ देवय जी, काँटा कंकर |
सदा भक्त के,स्वामी भोले, जय जय शंकर ||
अशोक
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*गीतिका छंद---- भोले नाथ (महाशिवरात्रि)*
तोर महिमा आज गावत, मोर भोले नाथ जी ।
जब डरावय काल बाधा, दे सदा तँय साथ जी ।।
ध्यान पूजा सब करत हें, हाथ दूनों जोर के ।
बोल बम के धाम जावत, बेल पाना टोर के ।।
झट करय नंदी सवारी, देख भोला आत हे ।
माथ चंदा अउ गला मा, साँप शोभा पात हे ।।
राख हे तन मा लगाये, अउ जटा गंगा बहे ।
नाँव हे कतको इहाँ गा, फेर शिव दुनिया कहे ।।
*मुकेश उइके "मयारू"*
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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: रूप घनाक्षरी------------
चलो सब शिव धाम, भज लेहू शिव नाम।
आगे शिव राति संगी, मन मनौती मनाव।
टोर लानो बेल पान, दही दूध घींव सान।
गाँजा भाँग हूम डारो, अंग भभूति चघाव।
नंदी के सवारी वाले, जटा गंग धारी वाले।
मृग छाला साँप सोहे, घंटा डमरू बजाव।
जाप करो जुरमिल, साफ रखो मन दिल।
सुख मिले जिनगी मा, जन-जन ला जगाव।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनांदगांव
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शिव सुमिरन हे सार
सार छन्द
हे शिवशंकर हे कैलाशी, गिरिजा पति शिव भोला।
तोर शरण मा आये हँव प्रभु, दर्शन दे दे मोला।।
मुड़ मा बैठे हावय चन्दा, जटा बहावत गंगा।
शिव के सुमिरन करके होवय, सबके तन मन चंगा।।
दुनिया त्यागे जेन जिनिस ला, वोहर भाये तोला।
तोर शरण मा आये हँव प्रभु, दर्शन दे दे मोला।।
राख चुपर के धुनी रमाये, भोले औघड़ दानी।
सबले सरल तोर पूजा हे, बस लोटा भर पानी।।
देवन मन कैलाश आत हें, उड़के उड़न खटोला।
तोर शरण मा आये हँव प्रभु, दर्शन दे दे मोला।।
शिव अविनाशी अंतरयामी, घट घट के तंय वासी।
ओम नाम के जाप करंय नित, ऋषि मुनि सन्यासी।।
काशी विश्वनाथ हा तारे, जीव जगत के चोला।।
तोर शरण मा आये हँव प्रभु, दर्शन दे दे मोला।।
आशा देशमुख
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मनहरण घनाक्षरी
आज दिन पावन हे, सबले सुहावन हे।
महाशिवरात्रि के जी ,बेरा बड़ भात हे।
त्रिशूल हा हाथ मा हे,भूत प्रेत साथ मा हे।
मोहनी मूरतिया हा,सबला लुभात हे।
सांप बिच्छू माला साजे,झांझ मिरदंग बाजे।
डमरू बजाके भोला,सबला नचात हे।
मिठाई मेवा चढ़ाके, माथ ला सबो नवाके।
बेल पान धतूरा ला,भगत चढ़ात हे।
नन्द कुमार साहू नादान
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*सार छंद*
परब महाशिवरात्रि आज हे,जुरमिल सबे मनाबो।
महादेव के करबो पूजा,भजन आरती गाबो।।
दूध दही जल घींव शहद ले,भोले ला नउहाबो।
बेल पान अउ फुड़हर धतुरा,सुग्घर अकन चढ़ाबो।
फागुन महिना के तेरस अउ,पाख रथे अँधियारी।
इही रात मा बनथे भोला,पारबती सँगवारी।।
भूत संग मा धर परेत ला,शिव हा लाय बराती।
हरे इही मन गोतियार अउ,येकर इही घराती।।
बनय नाग हा हार गला के,नंदी तोर सवारी।
गंगा तोर बिराजे लट मा,तँय हा डमरू धारी।।
सागर मंथन के विष ला तँय,अपन नरी मा धारे।
नीलकंठ तँय बनके शंभू,जग ला दुख ले तारे।।
सरी जगत के तँय हा भोले,आवस भाग्य विधाता।
आये हावन तोर दरस बर, दरसन देदे दाता।
अमृत दास साहू
कलकसा डोंगरगढ़
🙏💐💐💐💐🙏
: *परब महाशिवरात (सरसी छन्द)*
फगुनाही अँधियारी चौदस, अड़बड़ हे विख्यात।
शिव के भगत मनाथें ए दिन, परब महाशिवरात।
परब महाशिवरात मनावत, खुश दिखथे ब्रम्हाण।
सृष्टि रचाये रहिस इही दिन, कहिथे कथा पुराण।
शंकर पारबती के ए दिन, होये रहिस बिहाव।
जघा-जघा मा मेला भरथे, तिथि के करत हियाव।
शिवराती के महिमा गाथें, रवि कवि चारण भाठ।
होवत रथे शिवालय मन मा, दिन भर पूजा-पाठ।
सरी जगत के सुध लेवइया, शिव भोला भगवान।
कष्ट बिपत मा फँसै न कोनो, करिस हलाहल पान।
जेन पसारिस हाथ बबा तिर, पाइस हे वरदान।
रावण भस्मासुर जइसन के, करिस नहीं पहचान।
शिवभोला जतके सिधवा हे, वतके हे गुस्सैल।
मन मा नइ रखना हे चिटिको, मानवता बर मैल।
-सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"
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: चौपाई छंद ( शिव महिमा )
शिव मय होगे दुनिया सारी।
करे भक्ति सब नर अउ नारी।
बेल पान अउ नरियर धरके।
जय जय कार करे हर हर के।
पान सुपारी धजा चढ़ाये।
महिमा वोखर सबमिल गाये।
करे आरती शंख बजाये।
नर नारी जयकार लगाये।
पंचामृत मा स्नान कराये।
चोवा चंदन सबो लगाये,
शीतल चंदा जटा बिराजे।
गल मुंडन के माला साजे।
खाल शेर के कनिहा पहिने।
हवे जीव जहरीला गहने।
जग हित मा वो गरल पिये हे।
अंग भभूती चुपर लिये हे।
भोला के जब डमरू बाजय।
छम्मक छम्मक दुनिया नाचय।
जटा बिराजे हावय गंगा।
लपटे गला म देख भुजंगा।
गावत महिमा शेष ह थक गे।
गावत गावत शारद छक गे।
"दीप" कहे शिव महिमा न्यारी।
हवे घलो ये जग उपकारी।
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
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: शिवबिहाव के बरतिया वर्णन ~ सरसी छन्द
फागुन चउदस शुभ दिन बेरा, सब झन हें सकलाँय।
शिव बरात मा जुरमिल जाबो, संगी सबो सधाँय।1।
बिकट बरतिया बिदबिद बाजँय, चाल चलय बेढ़ंग।
बिरबिट करिया भुरुवा सादा, कोनो हे बिदरंग।2।
कोनो उघरा उखरा उज्जट, उदबिदहा उतलंग।
उहँदा उरभट कुछु नइ घेपँय, उछला उपर उमंग।3।
रोंठ पोठ सनपटवा पातर, कोनो चाकर लाम।
नकटा बुचुवा रटहा पकला, नेंग नेंगहा नाम।4।
खड़भुसरा खसुआहा खरतर, खसर-खसर खजुवाँय।
चिटहा चिथरा चिपरा छेछन, चुन्दी ला छरियाँय।5।
जबर जोजवा जकला जकहा, जघा-जघा जुरियाँय।
जोग जोगनी जोगी जोंही, बने बराती जाँय।6।
भुतहा भकला भँगी भँगेड़ी, भक्कम भइ भकवाँय।
भसरभोंग भलभलहा भइगे, भदभिदहा भदराँय।7।
भकर भोकवा भिरहा भदहा, भूत प्रेत भरमार।
भीम भकुर्रा भैरव भोला, भंडारी भरतार।8।
मौज मगन मनमाने मानय, जौंहर उधम मचाँय।
चिथँय कोकमँय हुदरँय हुरमत, तनातनी तनियाँय।9।
आसुतोस तैं औघड़दानी, अद्भूत तोर बिहाव।
अजर अमर अविनासी औघड़, अड़हा 'अमित' हियाव।10।
रचना- कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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: सार छंद
बेल पान चाँउर ला धरके,चल शिवरात मनाबो।
नरियर फूल सुपारी लेके,बम बम भोला गाबो।
अवढ़र दानी भोले बाबा,पल में खुस हो जाथे।
बाबा जी के चरणन आके,मनो मनौती पाथे।
भोले जी के करवँ आरती,तभे प्रसादी खाबो।
नरियर फूल सुपारी लेके,बम बम भोला गाबो।।
भूत प्रेत के साथी शंकर, खाथे भांग के गोला।
साधु संत मन नाचत हाबे, कहिके बम बम भोला।
अंतर्यामी घट-घट वासी,तोरे दर्शन पाबो।
नरियर फूल सुपारी लेके,बम बम भोला गाबो।।
गल सोहे मुंडन के माला,कान म बिच्छी बाला।
कालों के तँय काल कहाये ,हाथ म तिरसुल भाला।
शीश म चंदा जटा म गंगा,भाँग धतुरा चघाबो।
नरियर फूल सुपारी लेके,बम बम भोला गाबो।।
केवरा यदु"मीरा"राजिम
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दुर्मिल सवैया :- जगदीश "हीरा" साहू
*शिव महिमा*
खुश हे हिमवान उमा जनमे, सबके घर दीप जलावत हे।
घर मा जब आवय नारद जी, तब हाथ उमा दिखलावत हे।।
बड़ भाग हवै कहिथे गुनके, कुछ औगुन देख जनावत हे।
मिलही बइहा पति किस्मत मा, सुन हाथ लिखा बतलावत हे।।1।।
करही तप पारवती शिव के, गुण औगुन जेन बनावत हे।
झन दुःख मना मिलही शिव जी, कहि नारद जी समझावत हे।
सबला समझावय नारद हा, महिमा समझै मुसकावत हे।
खुश होवत हे तब पारवती, तप खातिर वो बन जावत हे।।2।।
तुरते शिवधाम सबो मिलके, अरजी तब आय सुनावत हे।
सब देव खड़े विनती करथे, अब ब्याह करौ समझावत हे।।
शिव जी महिमा समझै प्रभु के, सबके दुख आज मिटावत हे।
शिव ब्याह करे बर मान गये, सब झूमय शोर मचावत हे।।3।।
मड़वा गड़गे हरदी चढ़गे, हितवा मितवा सकलावत हे।
बघवा खँड़री पहिरे कनिहा, तन राख भभूत लगावत हे।
बड़ अद्भुत लागय देखब मा, गर साँप ल लान सजावत हे।।
सब हाँसत हे बड़ नाचत हे, सुख बाँटत गीत सुनावत हे।।4।।
अँधरा कनवा लँगड़ा लुलवा, सब संग बरात म जावत हे।
जब देखय सुग्घर भीड़ सबो, शिव जी अबड़े मुसकावत हे।।
जब देखय विष्णु समाज उँहा, तब आ सबला समझावत हे।
तिरियावव संग ल छोड़व जी, शिव छोड़ सबो तिरियावत हे।।5।।
लइका जब देखय जीव बचा, घर भीतर जाय लुकावत हे।
जब देखय रूप खड़े मयना, रनिवास म दुःख मनावत हे।।
तब नारद जी रनिवास म आ, कहिके सबला समझावत हे।
शिव शक्ति उमा अवतार हवे, महिमा सब देव बतावत हे।।6।।
सुनके सबके मन मा उमगे, तब मंगल गीत सुनावत हे।
सखियाँ मन आज उछाह भरे, मड़वा म उमा मिल लावत हे।।
शिव पारवती जब ब्याह करे, सब देव ख़ुशी बड़ पावत हे।
सकलाय सबो झन मंडप मा, मिल फूल उँहा बरसावत हे।।7।।
जयकार करे सब देव उँहा, तब संग उमा शिव आवत हे।
जब वापिस आय बरात सबो, खुश हो तुरते घर जावत हे।
मन लाय कथा सुनथे शिव के, प्रभु के किरपा बड़ पावत हे।
कर जोर खड़े जगदीश इँहा, शिव पारवती जस गावत हे।।8।।
जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)
कड़ार (भाटापारा)
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शंभु सुमरनी (भुजंगप्रयात वर्णिक छंद)
मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।
चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।।
जटाजूटवाला महादेव भोला।
सबो छोड़के तोर ले आस मोला।।
सबो देवता ले बड़े शंभुदानी।
मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।।
चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।
सबो देवता गोड़ में तोर लोटै।
धियाडोंगरीराज के भाँग घोटै।।
महाशक्तिसोती सुवारी सयानी।
मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।
चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।।
खड़े द्वार सेवा करे तोर नंदी।
सबो भूत के नाथ तैं निर्द्वंदी।।
उमा ला बताये महाज्ञानज्ञानी।
मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।
चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।।
पिये बीख प्याला प्रभू तैं निराला।
सजा माथ मा दूज के चन्द्रमा ला।।
जटा बाँध गंगा धरेध्यान ध्यानी।
मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।
चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।।
नरी नागमाला मणी के उजाला।
मथौंड़ी मँझारी भरे नैन ज्वाला।।
प्रभू विश्व के अर्धनारी विज्ञानी।
मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।
चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।।
स्वयंभू महेशा त्रिपुण्डी बियोगी।
महातंत्र ज्ञानी सदा सिद्ध जोगी।।
सबो भूत के तैं प्रभू लागमानी।
मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।
चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।
तहीं नीलकंठी भभूती रमैया।
महाघोर तांडौं करे तात्थैया।।
हवौं मैं कुजानी हवौं मैं अड़ानी।
मनावौं सदा हे गुसैया भवानी।।
चढ़ा बेलपाना रितो धार पानी।
शोभामोहन श्रीवास्तव
फागुन अंजोरीपाख दूज
२२/०२/२२
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