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Monday, August 21, 2023

नागपंचमी विशेष छंदबद्ध कविता



 नागपंचमी

दिन सुग्घर हे पंचमी, पावन सावन मास।

दूध संग लाई चढ़े, पूजा होथे खास।।

पूजा होथे खास, देवता नाग कहाथे।

रोग दोष ला काट, कष्ट सब दूर भगाथे।।

वैज्ञानिक हे शोध, सांप ला तुम मारव झिन।

संगी बने किसान, फायदा देथे सब दिन।।


कीरा मुसवा खाय ये, रक्षा करथे धान।

तेकर सेती पूजथे, जन-जन संग किसान।।

जन-जन संग किसान, नाग ला माने देवा।।

कारण अउ हे एक, करे सावन मा सेवा।।

जनम पाय बरसात, होय झन तब जी पीरा।

प्रकृति संतुलित राख, खाय ये मुसवा कीरा।।


भारी गुस्सा ला धरे, रखे रथे जी सांप।

देख सबो अउ जीव मन, जाथे तब तो कांप।।

जाथे तब तो कांप, देख के अहंकार ला।

फिर भी रहिथे शांत, धरे शिव संसकार ला।।

दवय बड़े ये सीख, रहै गुण नित हितकारी।

बनके हवै दयालु, नाग देवा तब भारी।।


मनोज कुमार वर्मा

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 *नाग साँप*


आय साँप  वाले  ये भइया।

जुरे   हवै भारी   देखइया।।


रंग - रंग  के    साँप   धरे हे।

ओखर झपली सबो भरे हे।।


बने   नाच के  बीन  बजाथे।

नोट पाँच के  रुपिया  पाथे।।


लइका  जम्मों  घेरा   करके।

खड़े  देखथे  कनिहा धरके।।


नाँग साँप हा फन  ला काढ़े।

मार   कुंडली  देखव  ठाढ़े।।


रचना:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा, कबीरधाम

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 सरसी छंद गीत - *नाग पंचमी*


नाग पंचमी सावन महिना, देथे खुशी अपार।

बइगा गुनिया गांय नंगमत, नाचय दोहा पार।।


चले किसनहा होत बिहनिया, हूम धूप धर खेत।

नाग देव बर दूध मढ़ावय, सबो बछर कर चेत।।

माँगे शुभ बरदान नाग ले, भरय अन्न भंडार।

नाग पंचमी सावन महिना, देथे खुशी अपार।।


सकलायें सब गाँव गुड़ी मा, धरे उमंग उछाह।

बाजय माँदर झाँझ मँजीरा, लेवय बीन उमाह।।

अहिराज असढ़िया डोमी के, लगे हवय दरबार।

नाग पंचमी सावन महिना, देथे खुशी अपार।।


नागनाथ अउ साँपनाथ के, माते हावय जंग।

आरी पारी बदलत हावय, गिरगिट जइसे रंग।।

बपुरा बन ढोड़िहा फिरफिटी, सहिथे विष फुफकार।

नाग पंचमी सावन महिना, देथे खुशी अपार।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 21/08/2023

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बरवै छन्द गीत - नागपंचमी (२१/०८/२०२३)


नागपंचमी आथे , सावन मास ।

नागदेव के पूजा , करलव दास ।।


नागदेव शंकर के , विषधर आय ।

गर मा बइठे देखय , फन फइलाय ।।


दूध मढ़ादव पीथे , रख उपवास ।

नागदेव के पूजा , करलव दास ।।


खेत - खार के मुसवा , दूर भगाय ।

कीड़ा मन ला खा के , अन्न बचाय ।।


धन - दौलत हा आवय , हमरो पास ।

नागदेव के पूजा , करलव दास ।।


झन मारव सॅंगवारी , कोनों साॅंप ।

डरवाथे बाॅंचे बर , जाथव काॅंप ।।


दुख - पीरा के होही , पल मा नाश ।

नागदेव के पूजा , करलव दास ।।


 ओम प्रकाश पात्रे "ओम "

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साँप मनके पीरा(सार छंद)


मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।

सबे खूँट सीमेंट छाय हे, ना साँधा ना छानी।।


जाके कती लुकावँव मैंहा, कोनो ठउर बतादौ।

भटकँव नही कहूँ कोती मैं, घर ला मोर सुखादौ।।

रझरझ रझरझ गिरथे पानी, तरिया कुँवा भराथे।

मोर बिला भरका नइ बाँचे, पानी मा बुड़ जाथे।।

छत के घर मा सपटँव कइसे, दिख जाथँव आँखी मा।

उड़ा भगावँव कइसे दुरिहा, नइ हँव मैं पाँखी मा।।

पानी बादर के बेरा मा, नित पेरावँव घानी-------।

मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।।


कटत हवय नित जंगल झाड़ी, नइहे भोंड़ू भाँड़ी।

नइहे डिही डोंगरी परिया, देख जुड़ाथे नाड़ी।।

लउठी धरे खड़े हावव सब, कइसे जान बचावौं।

आथँव ठिहा ठिकाना खोजत, चाबे बर नइ आवौं।।

चाबे मा कतको मर जाथे, बिक्ख हवै बड़ मोरे।

देख डराथस मोला तैंहर, अउ मोला डर तोरे।।

महुँला देवव ठिहा ठिकाना, मनुष आज के ज्ञानी।

मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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21अगस्त- विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस विशेष)

 



(21अगस्त- विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस विशेष)


सरसी छंद गीत- *सियान*


होथे धरखन सियान घर के, जइसे कांड़ मँयार।

सुख मा दुख मा थेगा बनके, जोड़ रखय परिवार।।


जिनगी के सुख सार बतावय, करय सियानी गोठ।

कहय सिखौना बात धरे ले, होथे मन हा पोठ।।

दूर रखय झगरा झंझट ले, बाँटय मया दुलार।

होथे धरखन सियान घर के, जइसे कांड़ मँयार।।


बिना सियान धियान नहीं जी, कहिथें दुनिया लोग।

दिये बिना आदर सियान ला, बिरथा हे तप जोग।।

पार करय डुबती नइया ला, बन के जी पतवार।।

होथे धरखन सियान घर के, जइसे कांड़ मँयार।।


देव समान सियान हवय जी, पबरित उंखर पाँव।

देवय सुख पुरवाई सब ला, बन पीपर बर छाँव।।

सुसकय झन जी कभू बुढ़ापा, नैनन आँसू ढार।

होथे धरखन सियान घर के, जइसे कांड मँयार।।


कर्म धर्म संस्कार सिखावय, रीति नीति के बात।

फेर बहू बेटा बेटी मन, सब ला हे बिसरात।।

गजानंद कर सियान सेवा, देबे कर्ज उतार।

होथे धरखन सियान घर के, जइसे कांड मँयार।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)21/08/2023

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बरवै छन्द गीत - सियान (२१/०८/२०२३)


घर के मुड़का - पटिया , हमर सियान ।

थामें रखथे घर ला , घर के जान ।।


करलव सेवा मिलही , आशीर्वाद ।

पल भर मा हो जाही , घर आबाद ।।


दुख सहिके सुख देथे , हवय महान ।

घर के मुड़का - पटिया , हमर सियान ।।


घर के चिन्ता करथे , ओहा रोज ।

कोन कहाॅं कइसे हे , लेथे खोज ।।


चीज़ खॅंगे नइ पावय , देथे लान ।

घर के मुड़का - पटिया , हमर सियान ।।


धरम - करम नेकी के , सुन लव बात ।

कभू - तीर नइ आवय , बइरी घात ।।


पूजा करलव निशदिन , देव समान ।

घर के मुड़का - पटिया , हमर सियान ।।


बिन सियान के सुन्ना , घर - परिवार ।

नइ पावय लइका मन , मया - दुलार ।।


पूरा कइसे होही , शिक्षा ज्ञान ।

घर के मुड़का - पटिया , हमर सियान ।।



✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

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गीत--सियान मन


ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।

जनम देवइया जतन करइया, भुइयाँ के भगवान मन।


पेड़ पात पानी पुरवा ला, जस के तस सौपिन हम ला।

रखिन बचा के सरी चीज ला,खुद उपभोग करिन कम ला।

लागा, पागा धर नइ करिन, सपना खातिर सुजान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


चिपके रिहिन हावयँ सबदिन, मानवता के गारा मा।

दया मया ला बाँटत फिरिन, गाँव गली घर पारा मा।

लाँघन नइ गिस जिंखर ठिहा ले,जानवर ना इंसान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


सही गलत अउ पाप पुण्य के, लहराइन सबदिन झंडा।

छोड़दिन बैरी ला बदी देके, नइ देखाइन आँखी डंडा।।

अंतर मन ला आनन्द देवयँ, जिंखर सुर अउ तान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


परम्परा अउ संस्कृति के, सौदा करिन नही कभ्भू।

देखावा अउ चकाचौंध बर, लड़िन मरिन नही कभ्भू।

चद्दर देख लमाइन हें पग, उड़िन मनुष नइ महान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


नता रिस्ता ला हाँस निभाइन,पीठ चढ़ाइन नाती ला।

कथा कहानी न्याय सुनाइन, लिखिन पढ़िन पाती ला।।

नवा समय मा नोहर होही, जुन्ना गुण अउ ज्ञान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Sunday, August 20, 2023

बुनियाद के पथरा

 ---------बुनियाद के पथरा----------


रहय न साध सुवाद के, माटी पानी खाद के।

आदर के आसा रथे, पथरा ला बुनियाद के।


जे पुरखा बारूद खा, भूख मिटाइस पेट के।

लालच का करही भला? तोर नानकन भेट के।


लड़िस रातभर भोर बर, गाँव गली घर खोर बर।

मुँह जोहत आजो खड़े, पुरखा चिटिक अँजोर बर।


सपना देख मकान के, जेन समाइस नेव मा।

दुख होइस हे देख के, आदर पाइस छेव मा।


पाँख भुलै झन पाँव ला, पाँव अपन आधार ला।

उल्लाला सुखदेव के, कहय सकल संसार ला।


रचना - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

विषय-चंद्रयान -थ्री🚀🚀



चंद्र यान

चंदा मा खोजे बर निकले, जीवन के आसार। 
चंद्र यान हर पहुँचत हावय, मामा जी के द्वार। 

पता लगाही का का हावय, वो मामा के पास। 
कइसन राज छुपाये मामा, रखे हवय का खास। 

का धरती कस माटी हावय? पानी हे भंडार? 
हवा हवय का स्वांस लेन बर? जे जीवन के सार।

बरफ जमे का पर्वत हावय? होथे का बरसात? 
मौसम का धरती कस होथे? कइसन हे दिन रात? 

पथरा मा का तत्व भरे हे? भीतर का हे राज। 
चंद्र यान ये तीसर संगी, निश्चित करही काज।   

खींच- खींच फोटो भेजत हे, अपन जमावत रंग। 
चंद्र यान के देखत करतब, दुनिया हावय दंग। 

हमर देश हर अपने दम मा, मारत हवय छलांग। 
माटी मा वो हर मिल जाही, जेन अड़ाही टांग। 

आज नहीं ता काली जाबो, पा के रहिबो पार। 
चंदा मामा के अँगना मा, बसाबोन संसार। 
दिलीप कुमार वर्मा
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🚀🚀 चंद्रयान -थ्री🚀🚀

  🇮🇳🇮🇳  ( सरसी छंद )🇮🇳🇮🇳


चंद्रयान- थ्री के भारत हा, करत हबय अभियान।

इसरो के वैज्ञानिक मन हा,येकर धरे कमान ।।


लइकापन मा चंदा मामा, कहिके गावन गान।

उँहे पहुँचही अब भारत के, तीसर चंदायान।।


भेद खोलही नवा-नवा अब,सुग्घर चंद्र विमान।

दक्षिण कोती जाके लाही,पानी-खनिज निशान।।


अंतरिक्ष मा पकड़ बाढ़ही, छाही हिन्दुस्तान ।

यात्रा पूरा करही येहा,हमर देश के शान।।


नाँव हबय विक्रम लैंडर के, रोवर हे प्रज्ञान।

चित्र भेजके चंदा के ये, दिही मधुर मुस्कान।।


आस लगाहें जन भारत के, हरय उदीम महान।

बने सफलता पाही येहा, करही जग कल्यान।।


येकर पाछू वैज्ञानिक मन, देवत हें बड़ ध्यान।

श्रीहरिकोटा के धरती ले, कर डारिस प्रस्थान।।


रचना:- कमलेश वर्मा(व्याख्याता ) भिम्भौरी, बेमेतरा,छत्तीसगढ़, मो.9009110792

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 कुण्डलिया छंद- *चन्द्र यान- तीन*


शान बढ़ाही देश के, चन्द्र यान अब तीन।

देखत रह जाही सुनौ, अमेरिका अउ चीन।।

अमेरिका अउ चीन, सोवियत रूस जपानी।

पता लगाही यान, चन्द्रमा मा जिनगानी।।

होही देश सशक्त, नजर तब कोंन गड़ाही।

अंतरिक्ष बाजार, साख अउ मान बढ़ाही।।


लाही महिनत रंग अब, दुनिया रइही दंग।

चन्द्र यान मानवरहित, वैज्ञानिक बिन संग।।

वैज्ञानिक बिन संग, करत हे सब निगरानी।

चन्द्र यान ये तीन, ढूँढही चाँद म पानी।

नदी पठार पहाड़, हवय के नही बताही।

खींच-खींच तस्वीर, हमर इसरो बर लाही।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 19/08/2023

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[8/19, 12:18 PM] विजेन्द्र: कुण्डलिया छंद

चन्द्र यान


चंदा मामा के इहाँ, भाँचा गेहे आज। 

खोजे बर तो गे हवय,  काय छुपे हे राज।। 

काय छुपे हे राज, पाय शीतलता कइसे। 

पता लगाही रोज, हवय का धरती जइसे। 

फोटो सुग्घर खींच, भेजही बने चुनिंदा। 

चन्द्र यान मा बैठ, घुमे बर जाही चंदा।। 

विजेंद्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

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[8/19, 12:31 PM] कुलदीप सिन्हा:     कृपाण घनाक्षरी छंद - चन्द्रयान तीन

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चन्द्रयान तीन लान, करें शुरू दिन मान।

सफलता के निशान, सच येहा आय बात।।


चन्द्रयान तीन यार, जाही चाँद के गा पार।

दीही जिनगी संवार, करही अइसे काज।।


चन्द्रयान तीन आ गे, भारत के भाग जागे।

फिरो झन भागे भागे, अब रहो सब जाग।।


चन्द्रयान तीन छोड़े, कखरो न हाथ जोड़े।

भागे जस तेज घोड़े, बनके गा ये तूफान।।


चन्द्रयान तीन जारी, सारा जग हे आभारी।

छोड़त हे बारी बारी, लाही येहा कुछु खोज।।


चन्द्रयान तीन जाये, दुश्मन गिड़गिड़ाये।

समझ ना कुछ पाये, पाही घलो कहाँ जान।।


चन्द्रयान तीन चले, पड़ोसी ह हाथ मले।

लगा सके नइ गले, नोचत हे खम्भा आज।।


चन्द्रयान तीन अब, देखे हावन ग सब।

बड़ा मजा आये तब, खुले हावे सब द्वार।।


कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी

19 / 08 / 2023

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[8/19, 3:53 PM] कमलेश प्रसाद 20 शरमाबाबू: 👏🌹लावणी-छंद 🌹👏

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


चंद्रयान तँय आघू बढ़बे, हम सबके हावय सपना |

तिसरा बेटा हस भारत के, ख्याल रखे रहिबे अपना ||


तोरे ऊपर बिकट आस हे, नाम हमर रौशन करिबे |

नभ मण्डल के सबो सूचना, हमला तँय भेजत रहिबे ||


वैग्यानिक के मिहनत भारी, रहि-रहि के सिरजायें हें |

असफल होइन हार न मानिन, आज करम ओधायें हें ||


दुश्मन बइरी कतको हावय, बचके ऊखर ले रहिबे |

आसमान के हवा गरेरा, छाती अड़के तँय सहिबे ||


"शरमा बाबू " तितरा बेटा, बड़ फुरमानुक होही जी |

दुनिया मा झण्डा फहराके, सबके आस पुरोही जी ||


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू

कटंगी-गंडई जिला केसीजी

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[8/19, 7:49 PM] कमलेश्वर वर्मा 9: 🚀🚀 चंद्रयान -थ्री🚀🚀

  🇮🇳🇮🇳  ( सरसी छंद )🇮🇳🇮🇳


चंद्रयान- थ्री के भारत हा, करत हबय अभियान।

मेहनती सब वैज्ञानिक मन, येकर धरे कमान ।।


लइकापन मा चंदा मामा, कहिके गावन गान।

उँहे पहुँचही अब भारत के, तीसर चंदायान।।


भेद खोलही नवा-नवा अब, इसरो चंद्र विमान।

दक्षिण कोती जाके लाही, पानी-खनिज निशान।।


अंतरिक्ष मा पकड़ बाढ़ही, छाही हिन्दुस्तान ।

यात्रा पूरा करही येहा,हमर देश के शान।।


नाँव हबय विक्रम लैंडर के, रोवर हे प्रज्ञान।

चित्र भेजके चंदा के ये, दिही मधुर मुस्कान।।


आस लगाहें जन भारत के, हरय उदीम महान।

बने सफलता पाही येहा, करही जग कल्यान।।


येकर पाछू वैज्ञानिक मन, देवत हें बड़ ध्यान।

श्रीहरिकोटा के धरती ले, कर डारिस प्रस्थान।।


कमलेश वर्मा, सत्र-09

भिम्भौरी, बेमेतरा

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[8/19, 9:06 PM] संतोष साहू 9: चन्दयान तीन

(कुण्डलिया छंद)


जाही चंदा मे हमर,चन्द्र यान क्रम तीन।

जा के होही ये सफल,पूरा हवय यकीन।।

पूरा हवय यकीन,खबर ला पूरा लाही।

कहाँ कहाँ का चीज,खोज के सबो बताही।।

अमर हमर हे देश,गीत ला सुग्घर गाही।

भारत हरे महान,गजब संदेशा जाही।।


छंदकार-संतोष कुमार साहू

जामगाँव(फिंगेश्वर)

जिला-गरियाबंद(छ.ग.)

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[8/19, 10:37 PM] नमेंद्र 9: *चंद्र यान*


चंद्र यान के सपना सुग्घर,चलव चाँद के पार।

यान एक अउ बाद दुई के,तीसर हे तैयार।।


लैडर विक्रम अपन संग धर,कर सोलह सृंगार।

यान उड़ाके चिरत गगन ला,चलत चाँद के पार।।


महक हमर भारत माटी के,चाँद तलक जब जाय।

विश्व गुरू के महिमा सुग्घर,सबो देश हर गाय।।


चंदा मामा दूर सुने हन,मामा आके तीर।

चंद्र यान हर संगे लाही,पुरी पकाये खीर।।


वैज्ञानिक भारत भुइयां के,बिकट धीर अउ वीर।

यान भेज दिस चाँद धरा में,खींच लखन के तीर।।


नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

छंद साधक सत्र-09

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[8/20, 10:35 AM] दीपक निषाद, बनसांकरा: *मनहरण घनाक्षरी छंद (चंद्रयान तीन)*


1-- जावै चंदा ममा घर,नवा जानकारी बर,

चंद्रयान तीन हर,भारत के शान जी।

खर्चा कम चोखा काम,इसरो ल हे सलाम,

धन्य सबो वैज्ञानिक,प्रतिभा के खान जी।।

पहिली के अभियान,दिन हें अबड़ ज्ञान,

हार के न हार मानै,वीही ए सुजान जी।

आबादी सवा अरब,ले जादा म हे गरब,

विश्वास हे पूरा होही,चंद्र अभियान जी।।


2--तेईस अगस्त दिन,आही शुभ घड़ी छिन,

जब चंद्रयान तीन,चंदा म उतरही।

सबो घर आँगन म,छाहीं खुशी लोगन म,

धरती ले गगन म,तिरंगा फहरही।।

यान म लगे मशीन,कर नवा खोज बीन,

अंतरिक्ष विज्ञान के,भंडार ल भरही।

सस्ता चंद्र अभियान,देश के बढ़ाही मान,

विश्वगुरू भारत के,जग पाँव परही।।


दीपक निषाद--लाटा (भिंभौरी)-बेमेतरा

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[8/20, 10:39 AM] अश्वनी कोसरे 9: रूप घनाक्षरी

चंद्र यान 


चंदा मा भेजे हें यान, घेरि-बेरि पाय मान।

भारती के यशगान, होवत बने बखान।

अमेरिका खुश होगे, चाइना ह दुख भोगे।

रूस हर पीठ ठोके, गुन गात हे जपान।।


ममा संग होही भेंट, भाँचा के अलग नेंट।

विक्रम विकास लाही, जीनगी गिन प्रज्ञान ।

ऊँचा भाल भारती के, चंदा कक्षा आरती के।

सब ले विशाल सेट, भेजे हें विधि विधान।।


भाँचा गे ममा के गाँव, शाख म  लगे हे दाँव।

ऊर्जा ले भरे हे पेट, लाही वो नवा बिहान।

एक भाँचा राम नाव, कोशल ममा के गाँव।

खाय हें बासी बोइर, बानी मनखे के मान।।


छंदकार-अश्वनी रहँगिया

 कवर्धा कबीरधाम

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*चंद्र यान तीन*

*त्रिभंगी छंद*


भारत के ज्ञानी,गढ़े कहानी,चंद्र यान वो,खूब रचे।

नइ हे कुछु खतरा,मिशन तीसरा, दुनिया भर मा,घूम मचे।

का होत लचारी,दुश्मन भारी,बार बार धर,हाथ मले।

हे आस तंत्र के,हिंद यंत्र के,यान चांद के,पार चले।


लिलेश्वर देवांगन

छंद‌ साधक 10

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: लावणी छन्द गीत - चन्द्रयान - तीन (२२/०८/२०२३)


चन्द्रयान अब रेडी हो जा , मामा हमर बलावत हे ।

कोन जनी का राज बताही , मुच - मुच बड़ मुस्कावत हे ।।


हमर देश के वैज्ञानिक मन , खोजत हे जिनगानी गा ।

कोन जघा खाये बर भोजन , कोन जघा हे पानी गा ।।


आनी - बानी यंत्र बना के , जन - जन तक पहुॅंचावत हे ।

चन्द्रयान अब रेडी हो जा , मामा हमर बलावत हे ।।


चन्दा मामा हमर मयारू , रात - रात के आथे गा ।

उजियारा फइलाथे जग मा , मन हा खुश हो जाथे गा ।।


दूध - भात के किस्सा सुग्घर ,  हम ला रोज सुनावत हे ।

चन्द्रयान अब रेडी हो जा , मामा हमर बलावत हे ।।


नदिया - नरवा जंगल - झाड़ी , सुग्घर पर्वत होही गा ।

खेले बर बाॅंटी भॅंवरा बड़ , राॅंधे बर बटलोही गा ।।


हाथी घोड़ा बघवा भलुवा , बन मा मोर नचावत हे ।

चन्द्रयान अब रेडी हो जा , मामा हमर बलावत हे ।।


 ओम प्रकाश पात्रे "ओम "

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: चंद्रमणि छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'


----------चंद्रयान-थ्री-------------


चंद्रयान-थ्री हा हमर, पहुँचत होही चाँद मा।

जिम्मेदारी हे बहुत, कुछ मुड़ मा कुछ खाँद मा।


लैंडर विकरम ए दरी, भटकय नहीं भरोस हे।

तुके-तके तकनीक सन, अध्यन-अनुभव ठोस हे।


छय-चकिया रोवर हवय, बुद्धि-नाँव प्रज्ञान हे।

नाँव मुताबिक काम के, ज्ञान-ध्यान अउ भान हे।


चन्दा मामा दूर के, अब हो जाही तीर के।

हमरो कर कुछ एलबम, हो जाही तस्वीर के।


कतका हे पानी पवन, कतका हे उर्वर धरा।

का-का हे धन सम्पदा, हमर ममा चंदा करा।


कतका शीतलता हवय, कतका-पन हे आँच हा। 

जाँच-परख मा हो जही, उज्जर सादा साँच हा।


उहों जरूरत पर न जय, जल बर मोटर-पम्प के।

जाने बर हे आचरण, भू्सखलन भूकम्प के।


सुने हवन हम चाँद के, बड़ जुड़ हवय स्वभाव हा।

जाति-धरम झन ले न जन, बढ़ही ताव तनाव हा।


कथा-कहानी का कही?, ममा-गाँव के राह के।

भाँचा भर ला थाह हे, उमड़त खुशी उछाह के। 


▪️सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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*चंद्रयान-3 के सफल लैंडिंग के हार्दिक बधाई।*

*भारत माता की जय। जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान।*


*चंद्रयान भाँचा आगे*

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*चंदा मामा घर घूमे बर,चंद्रयान भाँचा आगे।*

*बने- बने हँव खबर पठोइच,सुन इसरो झूमन लागे।*


*गली-गली ला घूम-घूम के,ठिहा ममा के पालिच वो।*

*चूम डेहरी माथ नवाइच, गीत मया के गालिच वो।*

*चंद्रयान के सुग्घर आदत, चंदा ला अब्बड़ भागे।*

 *चंदा मामा घर घूमे बर,चंद्रयान भाँचा आगे।*


*पूछिस चंदा बता ग भाँचा, दीदी धरती कइसे हे।*

*घर दुवार अउ तबियत वोकर, का सब पहिली जइसे हे ।*

*मया मोर बर करथे वोहा, धन भाई ले दुरिहागे।*

*चंदा मामा घर घूमे बर,चंद्रयान भाँचा आगे।*


*चंद्रयान हा बोलिस मामा, सुखी हवै  धरती दाई।*

*रोटी-पीठा भेजे हावै, झोला भर मुर्रा लाई।*

*खाके पपची अउ सोंहारी, मामा के पेट अघागे।*

*चंदा मामा घर घूमे बर,चंद्रयान भाँचा आगे।*


*चंदा मामा बोलिस भाँचा, एती वोती झन जाबे।*

*गहिरा अबडे गड्ढा हावैं,भसरँग ले भोसा जाबे।*

*कथरी कमरा ओढ़े सुतबे, झन रहिबे जादा जागे।*

*चंदा मामा घर घूमे बर,चंद्रयान भाँचा आगे।*


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


         सुफल चन्द्रयान 


चन्द्रयान के सुफल गमन ले,

             सबला हे अभिमान।

भाग्यधनी मोर भारत भुँइया,

           करलौ  नमन विज्ञान।

भाल सजे भारत माता के,

             बाढे जग मा शान। 

इसरो संघ फले फूले जी, 

           रहे अमर पहिचान। 

गरब हवे जन जन ला देखव, 

             ठाढे सीना तान 

झोंक बधाई विद्वत गुनिजन, 

         जय हो हिन्दुस्तान। 

   

      "रौना" 

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 चंद्रयान - 3 के सफल लैंडिंग बर "छन्द के छ परिवार" डहर ले इसरो के जम्मो वैज्ञानिक, अभियान मा सहयोगी अउ हर एक भारतवासी ला गाड़ा-गाड़ा बधाई


धीरे-बाने भाँचा पहुँचिस, अपन ममा के कोरा मा।

नँगत ठेठरी खुरमी खाही, एसो तीजा-पोरा मा।।


अरुण कुमार निगम

संस्थापक, छन्द के छ

छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 चन्द्रयान के सफलता बर सबो छन्द परिवार ला बादर अकन बधाई। 


राखी धरके पहुंचिस हावय, भाँचा अपन ममा घर मा। 

भाई बहिनी के  नाता के, शोर उड़त दुनिया भर मा। । 


आशा देशमुख

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 मनहरण घनाक्षरी- *चन्द्र यान- 3*


चन्द्रयान-थ्री हे नाँव, रख चन्द्रमा मा पाँव

देश दुनिया मा अब, रचे इतिहास हे।

आज दिन बुधवार, तारीख तेइस यार

दो हजार तेइस के, साल ये तो खास हे।।

गाड़ा- गाड़ा हे बधाई, बरसो के हे कमाई।

वैज्ञानिक इसरो के, पूरा भये आस हे।।

अचंभित हे जपान, चीन रूस पाकिस्तान

हिंदुस्तान के जुबान, भरे तो हुलास हे।।


शोध करही सच के, पूर्वाग्रह से बच के

जग ला बताही अब, महान विज्ञान जी।

सूर्य सोम जे तरह, चन्द्रमा भी उपग्रह

जानू नहीं मामू नहीं, न ही भगवान जी।

हे पढ़े लिखे मनखे, अंधभक्ति स्वाद चखे

पाखंड रूढ़ि मा पड़े, बने हें नादान जी।

सावधान! सावधान!, सच बात करौ ध्यान

हे गर्वित देश करे, थ्री ये चन्द्र यान जी।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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: चन्द्रयान ये तीन हर, पहुॅंचे चंदा द्वार।

दाई के संदेश धर, धर के मया दुलार।।

धर के मया दुलार, आज मामा के घर मा।

बइठे खुशी अपार, गढ़े हे भारत भर मा।।

दुनिया देखिन काम, बढ़े अउ हमर मान ये।

चंदा मा लहराय, तिरंगा चन्द्रयान ये।।



हरु-गरु अउ सुख दुख सुघर, संग कही व्यवहार।

काय सही का सच हवै, बात उॅंहा के सार।।

बात उहॉं के सार, प्रमाणित अब सब हर होही।

मिथक मेट विज्ञान, सदा सच थरहा बोही।।

कोरा काय समाय, नदी पानी कतका रुख।

रोज बताही हाल, सुघर हरु-गरु अउ सुख-दुख।। 



मनोज कुमार वर्मा

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Wednesday, August 16, 2023

स्वतंत्रता दिवस विशेष काव्य रचना

 



स्वतंत्रता दिवस विशेष काव्य रचना


दुखी बड़े हॅंव आज तिरंगा, देख अपन निज हाल ला।

हरे इही हर का आजादी, पूछत रथॅंव सवाल ला।।


मोर मान हर हवै कहॉं अब, बॅंटगे हावॅंव रंग मा।

भाई-भाई बैरी बनगे, बइठत नइ हे संग मा।।

जाति धरम के खीचे डाॅंरी, सबो सजाये भाल ला।

दुखी बड़े हॅंव आज तिरंगा, देख अपन निज हाल ला।।


जीव-जंतु चिरई चुरगुन, सागर नदी पहाड़ ला।

शहर-गॉंव अउ डहर-पहर अब, रुख राई बन झाड़ ला।।

रहन-सहन पहनावा बॉंटें, रंग रूप अउ बाल ला।

दुखी बड़े हॅंव आज तिरंगा, देख अपन निज हाल ला।


ऊॅंच-नीच ला खुदे बढ़ाके, धरे हवै सब लोग जी।

बोली-भाषा राज-काज के, घोरत रोजे रोग जी।।

मनखे ले मनखे दुरियाके, गढ़़त रथे तब काल ला।

दुखी बड़े हॅंव आज तिरंगा, देख अपन निज हाल ला।।


भवन अखाड़ा संसद लागे, गूॅंजे फोकट शोर अब।

खादी पहिने चोला बदले, लगथे डाकू चोर सब।।

चोर-चोर हे सग्गे भाई, बाहिर चलथे चाल ला।

दुखी बड़े हॅंव आज तिरंगा, देख अपन निज हाल ला।।


बेटी-बहिनी बचे कहॉं हे, मान बता तॅंय  आज जी।

कइसे महोत्सव अमरित के, आवत नइ हे लाज जी।।

नाक ऊॅंच हे करे बजाये, राजनीति हर गाल ला।

दुखी बड़े हॅंव आज तिरंगा, देख अपन निज हाल ला।।


दंगा धरना अउ विरोध बर, झन धर मोला हाथ मा।

सैनिक के शोभा हॅंव मॅंय, सुग्घर फभथॅंव माथ मा।।

उहें सजे सच्चा सुख पाथॅंव, होवन दवव निहाल ला।

दुखी बड़े हॅंव आज तिरंगा, देख अपन निज हाल ला।

हरे इही हर का आजादी, पूछत हवै सवाल ला.....

मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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जब जब आय परब आजादी, सुरता आथे बलिदानी।

येला पाये खातिर संगी, होंगे कतको कुर्बानी।।


हमर देश के  शान तिरंगा, लहर लहर ये लहराये।

भेदभाव ला छोड़ छाड़ के, हँसी खुसी सब फहराये।।


केसरिया सादा अउ हरियर, तीन रंग झंडा प्यारा।

सदा उड़य नित ये अगास मा, दुनियाँ ले सुग्घर न्यारा।।


ऊँच नीच अउ जाँत पाँत के, पाँटन हम सब मिल खाई।

एक संग सब मिलजुल रहिबो, छोड़न हम अपन ढिठाई।।


छोड़ लोभ लालच स्वारथ ला, सुग्घर अब रोज कमाबो।

प्रान देश हित बर अरपन कर, भुइयाँ के लाज बचाबो।।


छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी

ग्राम-चंदेनी(कवर्धा)

छत्तीसगढ़

🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

बार बार तोला वंदन हे मोर भारत के जवान,

अंग्रेज मन ल भगा के जग म बनगे वीर महान।

ईस्ट इंडिया कंपनी बनाके अंग्रेज बनगे पापी,

पाप के अंत करे बर भारत के वीर हवय काफी।

अंग्रेज मन हर सोचिन भईया भारतीय ल रस्सी बाँधी,

अत्याचार ल देख के निकलगे महात्मा गाँधी।

चन्द्रशेखर आजाद बिफड़गे खूब लड़ी लड़ाई,

ओकर साथ म आगे भईया भगतसिंह जी भाई।

देखते देखत भारत बिफड़गे धरिन तलवार डंडा,

तब जाके भारत म भईया फहराईन तिरंगा झंडा।

भारत तो आजाद होगे तभो ले बचगे चिल्हर,

अइसे चिल्हर पापी मन बनाए हवय अब तक सिल्लर।

तभो ले छाती ठोंक के भारत के खड़े जवान,

देश के हित सुरक्षा खातिर होगे वीर बलिदान।

छत्तीसगढ़ के अहम भूमिका वीर नारायण वीर कुर्बान,

अइसने लाखो अमर शहीद ल नंदन वंदन जय जवान।

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 सरसी छंद गीत *एक शहीद के अंत्येष्टि*


सुसक सुसक महतारी रोये, रोय ददा मुँह फार।

आज तिरंगा ओढ़ आय हे, भारत के रखवार।।

गाँव शहर सब कलपत हावय,रोवत तरिया पार।

नता सबो सुसकै सुरता मा,धर-धर आँसू ढ़ार।।

आज तिरंगा ओढ़ आय हे,.............


कोन पढ़े आँसू के भाखा, नैनन नीर बहाय।

नौं महिना जे रखे पेट मा,भाग अपन सहराय।।

छूट डरे तैं कर्ज दूध के,बढ़े तिरंगा शान।

मोर कोंख हा पावन होगे,पाके पूत महान।।

अमर रहे जा नाम जगत में,कुल के तारनहार।।

आज तिंरगा ओढ़ आय हे............................


हाथ गोड़ हा मोर टूटगे,टूटिस जबर पहाड़।

जेन खाँध मा जाना मोला, सुतगे हाबय ठाड़।।

लेग जते मालिक मोला तैं,मरे परे मैं हाड़।

कोन दिही आगी पानी अब,घर हा परे उजाड़।।

हाय ददा हा रोवत भारी,चारो खुँट अँधियार।।

आज तिरंगा ओढ़ आय हे,.........


बिलख बिलख बहिनी ब्याकुल हे,करम फूटगे मोर।

सुख दुख मा अय शोर करैया, संग छूटगे तोर।।

संकट मा जब देश फँसे तब,राखी धरम निभाय।

लाखों बहिनी के रक्षा बर,तैंहर प्राण गवाँय।।

धीरज कोन धरावय मन ला,दुख के घड़ी अपार।।

आज तिरंगा ओढ़ आय हे,............


कलप-कलप के तिरिया रोवय,उजर गये अहिवात।

आज सबो सुरता आवत हे,गुजरे दिन के बात।।

तोर नाम के चूड़ी बिंदी, पहिरँव जनम हजार।

हे शहीद के विधवा बनना, बार बार स्वीकार।।

जय हिंद जय भारत माता, कोरा अपन सम्हार।।

आज तिरंगा ओढ़ आय हे,...........................


सब रोवत हे वो हाँसत हे,मुख मा हे संतोष।

ना कोनो दुविधा हे मन मा,ना कोनो अफसोस।।

मरत मरत सौं ला मारे हँव,बाँचे क्षण अनमोल।

साँस आखिरी ललकारे हँव,भारत के जय बोल।।

रहे सलामत मोर देश हा,करत हवौं जोहार।।

मोर देश के माटी पैंया,लागव बारम्बार........... मोर देश के.........


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[अशोक कुमार जायसवाल: *मनहरण घनाक्षरी*

हमर तिरंगा आन, हमर तिरंगा शान, भारत के जन जन, के तिरंगा जान हे |

 मरबो येकर बर,  कटबो येकर बर , इही मा बसे हावय, हमर परान हे ||

येला जेन निटोरही,वो हा दुख बटोरही ,  लगा चेत सुन ले रे, बैरी जे नदान हे |

न झुके हे न टूटे हे,अड़दंग वो खड़े हे, सुरज जइसे मोर,तिरंगा महान हे || 

तीन रंग बने शान, अलग हे पहिचान, बीच मा अशोक चक्र, चौबीस निशान हे |

भगवा सफेद हरा,बसे देश दिल करा, शाँति त्याग हरियाली, दिखे अभिमान हे || 

झण्डा मिल फहराय, बादर मा लहराय, माथ नवा बोले सब, तिरंगा महान हे | 

आन बान ये हा मोर, जिनगी के शान मोर, रग रग मा समाय, मोर स्वाभिमान हे ||


अशोक कुमार जायसवाल

भाटापारा

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 *सरसी छंंद*

                *मया के चिन्हा*

मया बाँध के राखे रहिबे, तँय अँचरा के छोर।

चिन्हा छोड़ के जावत हँव मँय, करबे मोर अगोर।। 


मान देश के राखे के अब, हावय मोर उधार।

सीमा मा जावत हँव जोही, बनके मँय  रखवार।।

जल्दी आहूँ मँय हा जोही, राख भरोसा मोर।

चिन्हा छोड़ के जावत हँव मँय, करबे मोर अगोर।। 


मरँव नहीं सीमा मा जाके, हिरदे थोरिक थाम।

लिखे हवँव हिरदे मा संगी, तोर मया के नाम।।

कुछु नइ होवय रे आरुग हे, अगर मया हा तोर।

चिन्हा छोड़ के जावत हँव मँय, करबे मोर अगोर।। 


जइसे मँय डोंगा हावँव रे, मोर हवस पतवार।

दूनों झन के हिरदे मा रे, हावय मया अपार।।

नइ आहूँ जीयत वापस ता, चिन्हा राखबे मोर।

चिन्हा छोड़ के जावत हँव मँय, करबे मोर अगोर।।

*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

*सत्र 14*


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 सरसी छन्द गीत - लहर - लहर लहरावत हावय (१४/०८/२०२३)


लहर - लहर लहरावत हावय ,  हमर तिरंगा आज ।

केसरिया सादा अउ हरियर , तीन रंग मा साज़ ।।


केसरिया साहस ला भरथे , पैदा करथे वीर ।

दुश्मन बइरी थरथर काॅंपय , जब - जब छोड़य तीर ।।


भगत सिंह अउ शेखर मन हा , बनके गिरथे गाज ।

लहर - लहर लहरावत हावय ,  हमर तिरंगा आज ।।


सादा सच नित बोलव कइथे ,  छोड़व इरखा द्वेष ।

भाईचारा मिलके बाॅंटव , मिट जाही सब क्लेश ।।


हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई , हम सब ला हे नाज़ ।

लहर - लहर लहरावत हावय , हमर तिरंगा आज ।।


हरियर ले खुशहाली आथे , हरियर खेती - खार ।

मया - पिरित के बोली सुग्घर , होथे तीज - तिहार ।।


नदिया नरवा मनभावन हे , देख हिमालय ताज ।

लहर - लहर लहरावत हावय , हमर तिरंगा आज ।।



✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम "

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 छंद गीत- *धजा तिरंगा लिपटे आये*


धजा तिरंगा लिपटे आये, जब -जब वीर जवान।

झर-झर नीर बहावय नैना, दिये करेजा चान।।


माता के तब ममता सुसकय, पिता नसीब ठठाय।

घर के नारी कलपत रोवय, सुख सिंदूर मिटाय।।

भाई के हिरदे मा चलगे, बिधुना के तो बान।

धजा तिरंगा लिपटे आये, जब -जब वीर जवान।।


बेटा बेटी रोवत बोलय, जाग न पापा आज।

बहिनी बोलय कोंन निभाही, राखी के तो लाज।।

सँग साथी पारा मोहल्ला, होगे आज बिरान।

धजा तिरंगा लिपटे आये, जब -जब वीर जवान।।


गये रहे सीमा मा तँय तो, लड़हूँ कहिके जंग।

तोर बिना अब होली दीवाली, लागत हे बेरंग।।

देश सुरक्षा खातिर ललना, होगे तँय कुर्बान।

धजा तिरंगा लिपटे आये, तँय तो वीर जवान।।


गीतकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 15/08/2023


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भारत माँ के रक्षा खातिर, गँवा अपन जिनगानी।

जुग -जुग  बर अम्मर हो जाथेंं, सबो वीर बलिदानी।।


जंगल पर्वत बरसा गर्रा, झेल बिकट परशानी।

छूट अपन माटी के करजा, करथें सफल जवानी।।


हाड़ कँपावत जाड़ा हो या, गर्मी राजस्थानी।

जल थल नभ मा पहरा देथें, बेटा हिंदुस्तानी।।


इँकर वीरता ले हो जाथें, बैरी पानी पानी।

ठोंक अपन छाती ला रन मा ,देथें मुँह के खानी।।


आखिर दम तक गावत रइथें, जय भारत के बानी।

सदा तिरंगा ही तो बनथें, सैनिक कफन निशानी।।


सींच लहू ले ये भुइँया ला, लिखथें त्याग कहानी।

छोड़ अपन सब रिश्ता-नाता, बनथें जीवन दानी।।


हमर खुशी बर प्रान गँवा दिन,   उनकर करव बखानी।

गाड़ा -गाड़ा वंदन कर लव, सुरता कर कुर्बानी।।


रचना :- कमलेश वर्मा

सत्र -09, भिम्भौरी

बेमेतरा, छत्तीसगढ़

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 *नवा बिहान*

(वीर छंद मा गीत)


लहर-लहर लहराइस झंडा, होइस सुग्घर नवा बिहान।

पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।


कोनो हा इकलौता बेटा, कोनो हा खोइस पतिदेव।

छोटे-छोटे लइका-छउवा, खपगें आजादी के नेव।

नवजवान परिवार चलइयाँ, हाँस-हाँस देइन बलिदान।

पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।


झाँसी वाली रानी लक्ष्मी,चढ़ घोड़ा धरके तलवार।

रणचंडी हा गदर मचाइस, बुड़गे भले रकत के धार।

नाना साहब मंगल पांडे, जफर बहादुर शाह महान।

पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।



बाल-पाल अउ लाल बहादुर,लौह पुरुष सरदार पटेल।

भगत सिंग सुखदेव राजगुरु,नेताजी के अद्भुत खेल।

दुर्गा भाभी अउ बटुकेश्वर,करिन फिरंगी ला हलकान।

पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।


स्वतंत्रता के आंदोलन मा,बापू संग जवाहर लाल।

गोरा मन ला खेदारे बर, लोगन बनगें सँउहे काल।

भागिन गोरा प्रान बँचाके,बाँचिस महतारी के मान।

पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।


कतको भारी दुख सहि लेबो,नइ होवन दन चिटिको फूट।

आन-बान अउ शान हमर गा, झन पावय अब कोनो लूट।

बलिदानी मन के महिमा के, 'बादल' हा करथे गुणगान।

पाये खातिर आजादी ला, लाखों पुरखा देइन जान।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

 हथबंद, छत्तीसगढ़

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 *विषय - *स्वतंत्रता*

*विधा - ताटंक छंद* 

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कहत कहानी स्वतंत्रता के, उत्सव चलव मनावौ जी ।

तीन रंग के सुघर तिरंगा, लहर-लहर लहरावौ जी ।।


जन-गण-मन के सुग्घर गायन, आवव जुरमिल के गावौ ।

भारत के पहिचान तिरंगा, एकर छैंया मा आवौ ।

सबले ऊँचा रहय शान हा, देखत हिरदय हर्षावै ।

एकर ताकत के आगू मा, दुश्मन मन हा थर्रावै ।

आँच न आवय एमा थोरिक, प्रन ला इही उठावौ जी ।

तीन रंग के सुघर तिरंगा, लहर-लहर लहरावौ जी ।।


तीन रंग के पबरित काया, जन-जन के मन ला भावै ।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, छैंया मा सुख ला पावै ।

बलिदानी बेटा मन कहिथें, एकर अमर कहानी ला ।

भारत माँ के वीर लाल मन, सौंपिन अपन जवानी ला ।

उंकर कुर्बानी के किस्सा, सब ला चलव सुनावौ जी ।

तीन रंग के सुघर तिरंगा, लहर-लहर लहरावौ जी ।।


केसरिया बलिदान सिखावय, कहय वीर अब तो जागौ ।

सादा के संदेश शांति हे, छोड़ नहीं एला भागौ ।

हरियर हे खुशहाली सूचक, कहिथे भुइयाँ सिंगारौ ।

सत्य अहिंसा के पालन मा, तन-मन जीवन ला वारौ ।

चक्र कहय चलना हे जिनगी, आगू कदम बढ़ावौ जी ।

तीन रंग के सुघर तिरंगा, लहर-लहर लहरावौ जी ।।


         *इन्द्राणी साहू"साँची"*

         भाटापारा (छत्तीसगढ़)     

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 *सरसी छंद गीत (याद रहय बलिदान)* 


जेमन अपन लहू ला देके,करिन देश आजाद।

उँकर अमर बलिदानी गाथा,रखना हावय याद।।


करिन फिरंगी मन सब कोती,अड़बड़ अत्याचार।

भारत माता के सपूत मन,तब होइन तैयार।।

डोला दिन गोरी सिंघासन,कर जय हिंद निनाद।

उँकर अमर---


घर परिवार जवानी धंधा,करिन सबो के त्याग।

तभे सफल होइन आंदोलन,जनता मन गिन जाग।।

उर्वर कर दिन परती भुइँया,सींच करम के खाद।

उँकर-------


लाठी खाइन गोली खाइन,झेलिन बड़ अपमान।

हाँसत हाँसत फाँसी चढ़ गिन,करिन जबर बलिदान।।

भारत ला आबाद करे बर,खुद होगिन बरबाद।

उँकर----


दीपक निषाद--लाटा (भिंभौरी) बेमेतरा

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🌹सार-छंद 🌹

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(कमलेश प्रसाद शर्माबाबू) 


अब कुछ गड़बड़ करबे बेटा, पाकिस्तान म आबो |

कुटि-कुटि तोला काट-काट के, कउँवा कुकुर खवाबो ||


देखत-देखत आवत हावन, तोर खेल रे पापी |

झेलत-झेलत आवत हावन, अब नइ देवन माफी ||

घर भीतर तोरे ओइलके, कसके मजा बताबो |

कुटि-कुटि तोला काट-काट के, कउँवा कुकुर खवाबो ||


पैसठ ईकत्तर करगिल ला, लगथे आज भुलागे |

सर्जीकल ऐयर इस्ट्राइक, लाज बेच तँय खागे |

आर-पार के छेड़ लड़ाई, बोज-बोज घोण्डाबो ||

कुटि-कुटि तोला काट-काट के, कउँवा कुकुर खवाबो ||


जिन्ना के पाले आतंकी, अब तँय कहाँ लुकाबे |

पाँव मसलबो घेंच काट के, दुनिया ले मिट जाबे ||

हाड़ा-गोड़ा बाँचय नाही, तोला नँगत ठठाबो |

कुटि-कुटि तोला काट-काट के, कउँवा कुकुर खवाबो ||


भाईचारा ला तँय हमरे, समझ गये कमजोरी |

गलती करथस अउ बइमानी, करथस सीनाजोरी ||

तोर पाक मा हमर तिरंगा, जाके अब फहराबो |

कुटि-कुटि तोला काट-काट के, कउँवा कुकुर खवाबो ||


अब कुछ गड़बड़ करबे बेटा, पाकिस्तान म आबो |

शरमा बाबू काट-काट के, कउँवा कुकुर खवाबो ||

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

 कटंगी-गंडई जिला केसीजी छत्तीसगढ़

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सार छंद


कइसे आइस हे आजादी, ए जानव सँगवारी।

कतको चढ़गें फाँसी सूली, बिलखैं बड़ महतारी।।


बेटी मन के मांग उजर गे, काटिन दुख मा जोनी ।

बेटा रन मा शहीद होगें, आइस बिपदा होनी।


जनधन अउ घर द्वार उजर गे, छिनगे महल अटारी।

वीर बहादुर सैनानी मन, खिरगँय पारी पारी।।


कठिन जुद्ध जिनगी मा होईस,  देदिन हें कुर्बानी।

 सरदारभगत गाँधी सुभाष, झाँसी के बलिदानी ।।


कुल दीपक नइ बाँचिन कोनो,सरहद होगे बाँटा।

रात गुजरगे करिया धधकत, मेड़ो रुँधगे काँटा।।


छंदकार-अश्वनी कोसरे

रहँगिया 

कबीरधाम

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सरसी छंद गीत- *शान बढ़य भारत भुइँया के*


तीन रंग मा सजे तिरंगा, देवत हे संदेश।

शान बढ़य भारत भुइँया के, सुग्घर हो परिवेश।।


तान खड़े हें सीना सेना, सरहद मा दिन रात।

सरदी गरमी धूप ठंड हो, या चाहे बरसात।।

देश सुरक्षा खातिर सहिथें, वीर सिपाही क्लेश।

शान बढ़य भारत भुइँया के, सुग्घर हो परिवेश।।1


रीति नीति संस्कार सिखावय, गीता ग्रन्थ कुरान।

अनेकता मा बसे एकता, भारत के पहिचान।।

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई, रखँय नहीं मन द्वेष।

शान बढ़य भारत भुइँया के, सुग्घर हो परिवेश।।2


ये भुइँया के भाग जगावय, माटी पूत किसान।

गार पसीना अन्न उगावय, करथे कर्म महान।।

जग के पालनहार ल देवव, आशीर्वाद अशेष।

शान बढ़य भारत भुइँया के, सुग्घर हो परिवेश।।3


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 14/08/2023



Monday, August 14, 2023

विषय- पेड़

विषय- पेड़


: लावणी छंद

मिलथे पुरवाई सुग्घर के, फर मिलथे आनी बानी।

जेकर नीचे जुड़ छइँहा मा, मिल जाथे मीठा पानी।।


पेड़ लगावव भैया ए तो,  माँ धरती के गहना हे।

रुखराई ले हे खुशहाली, पेंड़ जतन बर कहना हे।।


बिना पेड़ पौधा के कैसे, बंजर जैसे ये दिखथे।

महँगाई मा मँहगा होके, देख फटाफट का बिकथे।।


आज जमाना बदलत हावय, मौसम घलो बदलगे हे।

पेंड़ लगा घर बन सुख पाहीं, तहाँ प्रदूषण टलगे हे  ।।


कतका संसो सांस बसे हे, तन मन ला हर्षा ले चल। 

सोंचे भर ले का हो जाही, पेड़ बचा तब बँचही कल ।।


अश्वनी रहँगिया

कबीरधाम


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: छप्पय छन्द

*पेंड़*


चलव लगाबो पेंड़,बने धरती हरियाही।

लेबो सुघ्घर साँस,तभे जिनगी बच पाही।

सुख के पाबो छाँव,संग फुरहुर पुरवाही।

पेड़ बचाही जान,खुशी जन-जन मा छाही।

एक पेंड़ होथे सुनौ,सौ-सौ पूत समान जी।

रक्षा करबो रोज हम,मिलके रखबो ध्यान जी।।


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़


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: गीत( विष्णुपद छंद)


पेड़ लगाबो, पेड़ लगाबो, जुरमिल आज चलौ।

ये भुइँया ल सँवारे खातिर, करबो काज चलौ।।


- बाग-बगीचा, जंगलझाड़ी, उजड़े देख इहाँ।

जीव-जंतु अउ पशु पक्षी बर, नइये आज ठिहाँ।


जेन उजारे खोज मारबो, अइसन बाज चलौ

ये भुइँया ल.....


-पर्यावरण प्रदूषित होंगे, चिंता कोन करे।

शुद्ध हवा बिन जीव-जंतु अउ, मनखे रोज मरे।


धरती के श्रृंगार पेड़ हे, करबो साज चलौ।

ये भुइँया ल.....


-प्राणदायिनी हे रुखराई, जतन इँखर करबो।

पेड़ लगाके हरियर-हरियर, गाँव-शहर करबो।


पेड़ लगा जें रक्षा करथे, करबो नाज चलौ।

ये भुइँया ल......


ज्ञानु

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पर्यावरण - मत्तगयन्द सवैया


पेड़ कटावत जंगल के अब चातर होवत कोन बचाही।

जीव जिनावर जाय कहाँ इँखरो सुख सोचव जी छिन जाही।।

बाँध सुखावत नीर बिना विपदा अब देखव दौड़त आही।

चेत करौ अब पेड़ लगावव ये भुइयाँ तब तो हरियाही।।


शुद्ध हवा बिन पेड़ कहाँ अब दूषित होवत जावत हावै।

साँस इहाँ महँगा कस लागय देखव लोग बिसावत हावै।।

देख अगास धुआँ सब डाहर जाहर रूप उड़ावत हावै।

सूरज देव घलो अब तो धमका बहुते बरसावत हावै।।


बाढ़त हे गरमी अब तो नदिया-नरवा-रुख आज सुखावै।

का दिन बादर आय हवै अब सूरज देव जरावत हावै।।

नीर बिना तड़पै सब जीव बता कइसे अब प्राण बचावै।

हे भगवान करौ बरसा सब जीव इहाँ हिरदे जुड़वावै।।


छंद रचना-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)


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: हरिगीतिका छन्द


अब्बड़ अकन संदेश देवत पेड़ अउ ये छाँव हा। 

जानव इही कस हे ददा दाई अपन घर गाँव हा। 

एखर तरी निर्मल मया, सब जीव मन के आसरा। 

जग ला लुटावंय पेड़ मन , लेवय नहीं कोनो करा।। 


फल फूल डारा पान मन सब जीव बर वरदान हे। 

ये पेड़ छइयाँ के बिना भुइयां लगय शमशान हे। 

हरियर घना हरदम रहय, इंखर सरेखा ला करव । 

उपकार इंखर मानके जिनगी अपन सुख से भरव।। 



चाँटी चिरैया टेटका चिटरा सबो के घर इहाँ । 

कतको किसम के जीव मन सद्भाव से रहिथें जिहाँ।। 

एके मया ममता रखे  सब जीव अउ संसार बर। 

 जइसे लुटाये प्रेम धन दाई ददा परिवार बर।



आशा देशमुख

एनटीपीसी कोरबा


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 *कुण्डलियॉं छंद*


देवत हे संदेस बड़, रुख राई के छॉंव।

पर हित खातिर मॅंय जियॅंव, काम पोठ के आ‌ँव।।

काम पोठ के आ‌ँव, फूरहुर हवा मोर हे।

ठण्डा सुग्घर छाॅंव, फूल फर सबो तोर हे।।

रहिथे कतको जीव, अपन निज जीनगी खेवत।

खुशी इही हे मोर, रोज के रहिथॅंव देतव।। 


सौ ठन पुत कस मॅंय हवॅंव, कहिथे सबझिन लोग।

प्रकृति शुद्ध अउ पोठ कर, दूर करॅंव नित रोग।।

दूर करॅंव नित रोग, काम दवई के आके।

रख लव तुम संजोय, गॉंव घर तीर लगाके।।

आथॅंव काम समूल, शांति सुख बॉंटत धन-धन।

कहिथे सबझिन लोग, हवॅंव पुत कस सौ ठन।।



मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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            *पेड़ लगावा* (सखी छंद)


पेड़ लगा छइहाँ पाँही, चलत बटोही सुरताँहीं। 

रेंगत रेंगत थक जाथें, पेड़ तरी सुख सब पाथें। 


काटे ले हम का पाबो, पेड़ लगा के फर खाबो। 

जुरमिल के पेड़ लगाबो, भुइयाँ ल फेर समराबो। 


पेड़ जगा भुइयाँ खाली, लगा बचाये बर जाली। 

करबो ओखर रखवारी, मिल जुल के पारी पारी। 


तीपत हे धरती माता, रुख-रुखवा ओखर छाता। 

पेड़ जगा कोरी कोरी, फर होही बोरी बोरी। 


जंगल जामे रुख-राई,काटव झन एला भाई। 

एखर ले बरसा होथे, पोखर नदिया भर जाथे। 


एसों झन भूला जाबे,तँय पीपर पेड़ लगाबे। 

गाँव सिवाना सँगवारी, पीपर करथे रखवारी। 


            - वसन्ती वर्मा, बिलासपुर

Wednesday, August 9, 2023

विश्व आदिवासी दिवस विशेष






 विश्व आदिवासी दिवस विशेष


विश्व आदिवासी दिवस, नौ अगस्त बुधवार।

जय सेवा जोहार हो, जय सेवा जोहार।।


जल जंगल हे जीव अस, जिनगी असन जमीन।

सब-झन हन बिन तीन के, दुखियारा अउ दीन।।


इस्कुल विद्यालय खुलिस, लइकन पढ़िन लिखीन।

अफसर नेता मंतरी, धन-धन भाग बनीन।।


धन्यवाद यू एन ओ, अभिनन्दन आभार।

जय सेवा जोहार हो, जय सेवा जोहार।।


मन डरथे अँधियार ले, तोर रहय के मोर।

पर ये डर भय भागथे, भेट-भेट के भोर।।


बूँद-बूँद अँधियार ला, लेवय सुरुज बटोर।

चहकय चिरई संग मा, नित जिनगी घर खोर।।


भेजत हन भलमनशुभा, कर लेहव स्वीकार।

जय सेवा जोहार हो, जय सेवा जोहार।।


-सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"

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दोहा

विश्व आदिवासी दिवस, चलव मनाबो आज।

पाये हक अधिकार बर, मिल करबो कुछ काज।।


जल जंगल से झन रहै, इमन कभू अब दूर।

कोई  दुश्मन झन करय, जीये  बर मजबूर।।


बेटा गुण्डाधुर इँहा, भरिस जोर ललकार।

वीर नरायण हा बनिस, माटी के रखवार।।


धान कटोरा के चलौ, करबो जी गुनगान।

भरे रहै छत्तीसगढ़, सदा धन्य अउ धान।।


एक  दिवस  मा का भला, कर  पाबो  सम्मान।

विश्व पटल मा मिल चलौ, दिलवाबो पहिचान।।

इंजी.गजानंद पात्रे *सत्यबोध*

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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 *हम आदिवासी(सरसी छंद)*


हमी आदिवासी अन भइया,

                        हम जंगल रखवार।

करमा, सुआ, ददरिया गाथन,

                       रेला   के   बौछार।।


बघवा, भलुआ संग रहइया,

                       संग धनुष अउ बान।

कंद मूल कोदो-कुटकी के,

                       हमी खवइया आन।।

बरछी भाला हमरे गहना,

                         जीव जंतु परिवार।

हमी आदिवासी अन भइया............


वीर नरायण, बिरसा मुंडा,

                         गुण्डाधुर पहिचान।

रानी दुर्गावती जनम लिन,

                         देशहित बलिदान।।

आदि पुरुष हम बन के वासी,

                          जल जंगल संसार।

हमी आदिवासी अन भइया..............


संकट आज दिखत हे भारी,

                          आगू आही कौन।

हमर धर्म परिवर्तन होवत,

                        देखत मनखे मौन।।

आज बचावव हमर संस्कृति,

                          पारत हन गोहार।

हमी आदिवासी अन भइया.............



रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 आदि काल के वासी हम अन, नाम आदिवासी हे।

सुघर हमर संस्कृति पावन, जग हर जेकर दासी हे।।


रुख राई बन नदियां नरुवा, परबत संग मितानी।

पात पात अउ डाल डाल हर, कहिथे हमर कहानी।।

बघवा भलवा संगी साथी, नता सुघर कासी हे।

आदि काल के वासी हम अन, नाम आदिवासी हे।।


चिरई चुरगुन जीव जंतु हर, समझे हमरो भाखा।

इखरे बीच हमर पूर्वज रहि, अपन बढ़ाइन शाखा।

सुख दुख मीत मितानी जंगल, ले बारहमासी हे।

आदि काल के वासी हम अन, नाम आदिवासी हे।।


रेलो करमा दमकच सरहुल, गौर मांदरी पाटा।

ढांढ़ल सैला गेड़ी गोचा, नाच सुघर निज बांटा।।

कंद मूल शुभ मोर भाग हे, मन मा बड़ हाॅंसी हे।

आदि काल के वासी हम अन, नाम आदिवासी हे।।


धन दौलत नइ चाही मोला, जंगल मोर खजाना।

हवा पात रुख भौंरा तितली, संग गात मन गाना।।

दूर कपट छल रहिथे सब दिन, छूए न उदासी हे।

आदि काल के वासी हम अन, नाम आदिवासी हे।।

सुघर हमर संस्कृति पावन, जग हर जेकर दासी हे......



मनोज कुमार वर्मा

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: विश्व आदिवासी दिवस के हार्दिक शुभकामना💐


जल जमीन जंगलझाड़ी के, मीत मितान तही।

कला सभ्यता संस्कृति के अउ, अस पहिचान तही।।


पेड़ पहाड़ पठार डोंगरी, के रखवार तही।

ये भुइँया अउ खेतीबारी, के आधार तही।।


मया तुँहर बोलीभाखा ले, जस मदरस बरसै।

देख तुँहर भोलापन ला बड़, मन मयूर हरसै।।


करमा सुआ ददरिया सुग्घर, का गम्मत कहना।

लेना देना नइ कखरो ले, मस्त मगन रहना।।


अपन हाथ ला फइलाना नइ, आवय रास कभू।

रहिथव मिहनत अपन भरोसा, भूख पियास कभू।।


करे दिखावा कुछु नइ जानव, निच्चट हव सिधवा।

तभे तुँहर हक ला लूटत हे, कतको बन गिधवा।।


काँप जथे बड़ देख जिया हा, उजड़त जंगल हे।

बढ़य प्रदूषण अउ जिनगी ले, दुरिहाँ मंगल हे।।


ज्ञानु

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आदिवासी दिवस पर मोर रचना


हमन आदिवासी आवन गा, जंगल झाड़ी हमर मकान। 

डारा - डारा पाना - पाना, इहि मन आवंय हमर मितान।। 


किसम - किसम के जीव जनावर, का भालू का हाथी शेर। 

अपन प्राण के रक्षा खातिर, कर देथन ये मन ला ढेर।। 


जंगल के जिनगी ला भैया, पढ़के जाने चातर राज।

काटत हवंय हमर जंगल ला, गिरत हवय अब दुख के गाज।। 


जतका कंदमूल फल मेवा, सब आवंय जंगल के देन। 

लूट डरिन हमला दुनिया हा, सिधवा बनके सुते रहेंन।। 


आदि काल से मनखे मन के, होये हमरे  ले शुरुवात। 

नदिया नरवा जंगल झाड़ी, इंखर से करथन हम बात।।


माँग - झांग के नइ खावन हम, कर्मठ जिनगी हे पहिचान। 

अपन सुरक्षा खातिर रखथन, भाला तरकस तीर कमान।। 


असली भारत ला देखे बर, आवंय दुनिया हमरे तीर। 

हावन हमीं प्रजा अउ राजा, हमरे भीतर बसे फकीर।। 



आशा देशमुख

एनटीपीसी कोरबा

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विश्व आदिवासी दिवस की ढेरों बधाइयाँ


मैं रहवया जंगल के- आल्हा छन्द


झरथे झरना झरझर झरझर, पुरवाही मा नाचय पात।

हवै कटाकट डिही डोंगरी, कटथे जिंहा मोर दिन रात।


डारा पाना काँदा कूसा, हरे मोर मेवा मिष्ठान।

जंगल झाड़ी ठिहा ठिकाना, लगथे मोला सरग समान।


कोसा लासा मधुरस चाही, नइ चाही मोला धन सोन।

तेंदू मउहा चार चिरौंजी, संगी मोर साल सइगोन।


मोर बाट ला रोक सके नइ, झरना झिरिया नदी पहाड़।

सुरुज लुकाथे बन नव जाथे, खड़े रथौं सब दिन मैं ठाड़।


घर के बाहिर हाथी घूमय, बघवा भलवा बड़ गुर्राय।

चोंच उलाये चील सोचथे, लगे काखरो मोला हाय।


छोट मोट दुख मा घबराके, जाय मोर नइ जिवरा काँप।

रोज भेंट होथे बघवा ले, कभू संग सुत जाथे साँप।।


काल देख के भागे दुरिहा, मोर हाथ के तीर कमान।

झुँझकुर झाड़ी ऊँच पहाड़ी, रथे रात दिन एक समान।


रेंग सके नइ कोनो मनखे, उहाँ घलो मैं देथौं भाग।

आलस अउ जर डर जर जाथे, हवै मोर भीतर बड़ आग।


बदन गठीला तन हे करिया, चढ़ जाथौं मैं झट ले झाड़।

सोन उपजाथौं महिनत करके, पथरा के छाती ला फाड़।


घपटे हे अँधियारी घर मा, सुरुज घलो नइ आवय तीर।

देख मोर अइसन जिनगी ला, थरथर काँपे कतको वीर।


शहर नगर के शोर शराबा, नइ जानौं मोटर अउ कार।

माटी ले जुड़ जिनगी जीथौं, जल जंगल के बन रखवार।


आँधी पानी बघवा भलवा, देख डरौं नइ बिखहर साँप।

मोर जिया हा तभे काँपथे, जब होथे जंगल के नाँप।


पथरा कस ठाहिल हे छाती, पुरवा पानी कस हे चाल।

मोर उजाड़ों झन घर बन ला, झन फेकव जंगल मा जाल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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Monday, August 7, 2023

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस" विशेष

 




: "राष्ट्रीय हथकरघा दिवस" के शुभकामना..

(National Handloom Day)

फगुवा-फगनी के गोठ : कवित्त
(जनकवि कोदूराम "दलित")

(1)
मोर एक बात तँय सुन वो नोनी के दाई
स्वदेशी खादी भण्डार आज महूँ जाहूँ वो
तोर बर मोर बर, नोनी बाबू सबो बर
शुद्ध खादी आन्ध्र-हैद्राबाद के बिसाहूँ वो।
तीस रूपिया सैकड़ा, छूट अब देत हवैं
सौ रूपिया के खादी, सत्तर मा लाहूँ वो
दे दे मोला रूपिया मैं जाहूँ परोसी के संग
सुग्घर खटाऊ खादी, लान के दिखाहूँ वो।।

(2)
दसेरा देवारी के तिहार बार आत हवै
जाव हो बाबू के ददा, खादी ले के लाहू हो
मोर बर लहँगा पोलखा अउ नोनी बर
तीन ठन सुन्दर फराक बनवाहूँ हो।
बाबू बर पइजामा कमीज टोपी अउ पेन्ट
बण्डी कुरता अपन बर सिलवाहू हो
धोती लगुरा अँगोछा पंछा उरमार झोला
ओढ़े बिछाए के सबो कपड़ा बिसाहू हो।।

*रचनाकार - जनकवि कोदूराम "दलित"*
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[8/7, 10:40 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: हथकरघा के बेरा-सार छंद

सबे काम ला झट टारे बर, हे मशीन सब डेरा।
अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।

मुसर बाहना ढेंकी जाँता, सिललोढ़ा खलबत्ता।
आरा रेंदा गिरमिट सुंबा, हाथ भुलागे नत्ता।।
कोन गाँथथे माची खटिया, कोन आँटथे ढेरा।
अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।

अपन हाथ मा सूत कात के, पहिरिन गाँधी खादी।
मिला हाथ ले हाथ सुराजी, लड़भिड़ लिन आजादी।।
सबें हाथ अब ठलहा होगे, होवै तेरा मेरा।
अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।

अपन हाथ हे जगन्नाथ कहि, खुदे करैं सब बूता।
उहू दुसर के अब मुँह ताकें, पहिरे चश्मा जूता।।
नवा नवा तकनीक हबरगे, बदलै बसन बसेरा।
अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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 राष्ट्रीय हथकरघा दिवस विशेष-
 07/08/2023

लावणी छंद गीत- *हथकरघा*

हथकरघा अपना के गाँधी, फुँकिस बिगुल आजादी बर।
छोड़ विदेशी कोट लँगोटी, पेरिस चरखा खादी बर।।

पहिनें खादी पयजामा अउ, खादी के टोपी कुरता।
लाल बाल अउ पाल भगत के, आथे हम ला अब सुरता।।
बोलिन चीज विदेशी त्यागव, रहम न हो उन्मादी बर।
हथकरघा अपना के गाँधी, फुँकिस बिगुल आजादी बर।।

आज जमाना मशीनरी के, मनखे बनगे सुख भोगी।
पेरत नइहें जाँगर पर तो पेरत घर ला बन रोगी।।
हथकरघा निक काम बबा बर, नाना-नानी दादी बर।
हथकरघा अपना के गाँधी, फुँकिस बिगुल आजादी बर।।

बना पोलिखा सूत कात के, बेचव कोसा के साड़ी।
कंबल स्वेटर शाल बना लौ, सीट कवर मोटर गाड़ी।
पहल करव अभियान चलावव, हथकरघा बुनियादी बर।
हथकरघा अपना के गाँधी, फुँकिस बिगुल आजादी बर।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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आशा देशमुख: हाथकरघा दिवस मा मोर रचना

आल्हा छन्द मा गीत

आवव हथकरघा ला जाँनव, ये अब्बड़ मिहनत के काम। 
एखर से कतको मन पांवय, रोजी - रोटी बढ़िया दाम।। 

पुरखा मन से सुने हवन जी, हथकरघा के बड़ इतिहास। 
खादी, सूती, रेशम, मलमल, ये कपड़ा मन होथें खास। 
आंदोलन के रूप धरिस ये, जब भारत हा रहिस गुलाम। 
येखर से कतको मन  पांवय, रोजी रोटी बढ़िया दाम।। 

अलग अलग ये प्रांत नगर मा, हथकरघा के हे उद्योग। 
पर अब के पीढ़ी ला देखव, फैशन के लग गेहे रोग।। 
चिरहा - फटहा ब्रांड बने हे , नइहे कोनो रोक लगाम। 
येखर ले कतको मन पावंय, रोजी रोटी बढ़िया दाम।। 

बउरत हावंय हमर जिनिस ला,आज विदेशी अउ अंग्रेज। 
सूप बनाके पीयत हावंय, कहिथन हमन जेन ला पेज।। 
बुनकर उर्फ हाथकरघा हा, अबड़ कमावत हावय नाम। 
येखर ले कतको मन पावंय, रोजी - रोटी बढ़िया दाम।। 

हैंडलूम हे सबले ऊपर , उठत हवय बुनकर समुदाय। 
 ये कपड़ा के माँग अबड़ हे, देश - विदेश ह घलो बिसाय।। 
शुद्ध जिनिस हा सहे सबो ला, सरदी पानी जाड़ा घाम। 
येखर ले  कतको मन पावंय, रोजी - रोटी बढ़िया दाम।। 


आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
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[8/7, 5:05 PM] : राष्ट्रीय हथकरघा दिवस विशेष-
07/08/2023

कुण्डलिया छंद

हथकरघा के ओनहा,मन ला बने सुहाय।
खादी जेखर नाम हे,तन ला बने फभाय।।
तन ला बने फभाय,शुध्द ये सूती कपड़ा।
ठंडा बर अनुकूल,गरम बर नोहय लफड़ा।।
पहिरे एला जेन,कहे मन एला परघा।
बने लगे इंसान, जेन भावय हथकरघा।।

खादी हर सस्ता बिकय,टीकउ एला मान।
पहिनइया सज्जन लगे,बड़ सियान सूजान।।
बड़ सियान सूजान,कहूँ हा नेता काहय।
मिलय बहुत सम्मान,भले नेता झन राहय।।
यदि कोनो इंसान,होय बर होही शादी।
चचही वोहा खूब,पहिर लेवय वो खादी।।

संतोष कुमार साहू
जामगांव(फिंगेश्वर)
जिला-गरियाबंद(छ.ग.)
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 👏🌹रोला-छंद🌹👏
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
हथकरघा उद्योग 
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हथकरघा उद्योग, निशानी हे स्वादेशी |
हावय एक उपाय, छोड़ जी माल विदेशी |
खादी के पहिनाव, बढ़ाथे शोभा तन के |
बुनकर मन हरषाय, बिकय जब कपड़ा हन के ||


हाल हवय बदहाल, आज आँखी भर देखव |
आगे चिरहा जींस, बात ला तनिक सरेखव |
खस्ता हाल कुटीर, जाम होगे हे चरखा |
स्वारथ के सरकार, निहारय करखा-करखा ||

लगे भँइस के मोह, गाय ला दुइही काला |
लगे विदेशी रोग, इहाँ लग जाये ताला ||
करही कोन हियाव, सुनय नइ नेता मंत्री |
इँखर पेट मा दाँत, जान सुन बनथें कंत्री ||

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
 कटंगी-गंडई 
जिला केसीजी 
छत्तीसगढ़ 
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 सरसी छन्द- सुखदेव सिंह 'अहिलेश्वर'
         
                        हथकरघा

हथकरघा ला सुरता कर के, होथे गरब-गुमान।
मिलत रहय सरलग सम्हलत ले, सरकारी अनुदान।

एक जमाना रहिस देश भर, हथकरघे के गोठ।
देशभक्त मन देश-राज बर, निर्णय लेवयँ पोठ।

खादी पहिने कोरी-खइखा, मनखे पातर-मोठ।
आजादी बर आवयँ-जावयँ, रोज कचहरी-कोठ।

समय-समय मा देश सउँरथे, खादी के परिधान।
मिलत रहय सरलग सम्हलत ले, सरकारी अनुदान।

हथकरघा सुमता ला आँटय, जइसे पोनी सूत।
टोर सकय झन ये सुमता ला, पड़रा-पड़रा भूत।

सुमता टोरे के कइयो ठन, करनी अउ करतूत।
टुटिस न सुमता हाय! टूट गें, लाखों वीर-सपूत।

हथकरघा झन होवन पावय, अनचिन्हार बिरान।
मिलत रहय सरलग सम्हलत ले, सरकारी अनुदान।

आज जमाना हे मशीन के, हरय खुशी के बात।
पर मजदूर घलो ला चाही, सब्जी-रोटी-भात।

दुनिया भर के कपड़ा मन ले, सजगे हाट-बजार।
खुलय दुकान बजार-हाट मा, खादी के दू चार।

ग्राहक पा हाँसय मुस्कावय, खादी कपड़ा-थान।
मिलत रहय सरलग सम्हलत ले, सरकारी अनुदान।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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सरसी छंद गीत -"खादी"
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खादी हमर देश भारत के, बनगे हे पहिचान।
सूत कात के गाँधी बाबा, देइस येला मान।।

हमर देस ले भेजे विदेश, अंगरेज सरकार।
करे सफाई मशीन थोरिक, दाम बढ़े भरमार।।
करिन त्याग विदेशी ओनहा, उकर करिन हिनमान।
खादी हमर देश भारत के, बनगे हे पहिचान।।

सूती कपड़ा बड़ गुणकारी, पहिरे येला लोग।
सरद गरम दूनों मौसम मा, होथे ये उपयोग।।
सोख पसीना ला तन के ये, जुड़ के देथे दान।
खादी हमर देश भारत के, बनगे हे पहिचान।।

लोगन के रोजगार राहय जी, खादी के व्यवसाय।
पालन करे परिवार मन के, जीनिस घला बिसाय।
पहिरइया के सँउख बाढ़ गे, चेत बिलम गे आन।
खादी हमर देश भारत के, बनगे हे पहिचान।।

अपनावव जी फेर इही ला, पा जहू रोजगार।
लाज बचावव हथकरघा के, पहिनावा हे सार।।
नवा जनम ये पा जाही जी, देवव येला मान।
खादी हमर देश भारत के, बनगे हे पहिचान।।
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द्रोपती साहू "सरसिज"
महासमुन्द छत्तीसगढ़
पिन-493445
Email; dropdisahu75@gmail.com

 

Saturday, August 5, 2023

जनम दिन विशेष-गुरुदेव श्री निगम जी


 

 छत्तीसगढ़ी साहित्य मा छंद के बढ़वार बर सरलग बूता करइया, छत्तीसगढ़ भर के कई कलमकार ला छंद के छ के माध्यम ले छंद लिखे अउ लिखाये बर प्रेरित करइया, परम् पूज्य गुरुदेव श्री निगम जी ला जनम दिन के बहुत बहुत बधाई,,


कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बेरा मा मैं मोर के, कहिके तैं अउ तोर।

भाँखा के सम्मान बर, चले सबे ला जोर।

चले सबे ला जोर, गुरू जी अरुण निगम हा।

भरत हवय तब रोज, छंद के गागर कम हा।।

छंद के छ हा ताय, छंद सीखे के डेरा।

जुरमिल महिनत होय, मोर मैं के ये बेरा।


जुरियाये छोटे बड़े, गुरू शिष्य कहिलाय।

छंद के छ के क्लास हा, छंदकार सिरजाय।

छंदकार सिरजाय, राज भर मा कतको झन।

सीखे रोज सिखाय, लगाके सबझन तनमन।

गुरू निगम के सोंच, आज बढ़ चढ़ के धाये।

साहित पोठ बनायँ, सबे साधक जुरियाये।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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मनोज वर्मा: 

हर दिन पा के शुभ कृपा, सुघर छंद परिवार।

महके चारों ओर मा, छत्तीसगढ़ी सार।।

छत्तीसगढ़ी सार, कल्प रुख आप हमर बर।

गढ़े छंद परिवार, अमर बोली ला शुभ कर।।

हवै बधाई पोठ, निगम जी पावन गुरुवर।

जियव हजारों साल, कहे नित हमरो मन हर।।

 मनोज वर्मा

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आशा देशमुख: गुरु चालीसा


दोहा


करत हवँव गुरु वंदना, चरणन माथ नँवाय ।।

भाव भक्ति मन मा धरे , श्रद्धा फूल चढ़ाय।।


सदा रहय गुरु के कृपा,अतकी विनती मोर।

अंतस रहय अँजोर अउ,भागे अवगुण चोर।।


चौपाई 


गुरु ब्रह्मा अउ विष्णु महेशा। गुरु हे पहिली पूर्ण अशेषा।।

बरन बरन हे गुरु के वंदन।आखर आखर बनथे चंदन।।


 गुरु ला जानव सुरुज समाना।  गुरु आवय जी ज्ञान खजाना।।

गुरु जइसे नइहे उपकारी।गुरु के महिमा सब ले भारी।।


गुरु सउँहत भगवान कहाये। गुण अवगुण के भेद बताये।।

सात समुंदर बनही स्याही।गुरु गुण बर कमती पड़ जाही।।


गुरु के बल ला ईश्वर  जाने। तीन लोक  महिमा पहिचाने।।

गुरुवर सुरुज तमस हर लेथे। उजियारा जग मा भर देथे।।


जब जब छायअमावस कारी। गुरु पूनम  लावय उजियारी।।

गुरु पूनम के अबड़ बधाई।माथ नँवा लव बहिनी भाई।।


शिष्य विवेकानंद कहाये।परमहंस के मान बढ़ाये।।

द्रोण शिष्य हें पांडव कौरव ।अर्जुन बनगे गुरु के गौरव।।


त्याग तपस्या मिहनत पूजा।गुरु ले बढ़के नइहे दूजा।।

वेद ग्रंथ हे गुरु के बानी।पंडित मुल्ला ग्रंथी ज्ञानी।।


ज्ञान खजाना जेन लुटाए।जतका बाँटय बाढ़त जाए।।

गुरु के वचन परम हितकारी।मिट जाथे मन के बीमारी।।


जेखर बल मा हे इंद्रासन।बलि प्रहलाद करे हें शासन।।

ये जग गुरु बिन ज्ञान न पाये।गुरु गाथा हर युग हे गाये।।


सत्य पुरुष गुरु घासी बाबा। गुरु हे काशी गुरु हे काबा।।

 देवै ताल कबीरा साखी।

 उड़ जावय  मन भ्रम के पाखी।।


गुरु के जेन कृपा ला पाथे। पथरा तक पारस बन जाथे।।

माटी हा बन जावय गगरी। बूँद घलो हा लहुटय सगरी।।


महतारी पहली गुरु होथे । लइका ला संस्कार सिखोथे।।

देवय जे अँचरा के छइयाँ।दूसर हावय धरती मइयाँ।।


जाति धरम से ऊपर हावय।डूबत ला गुरु पार लगावय।।

आदि अनादिक अगम अनन्ता।जाप करयँ ऋषि मुनि अउ संता।।


गुरु के महिमा कतिक बखानौं।    ज्योति रूप के काया जानौं।।

बम्हरी तक बन जाथे चंदन। घेरी बेरी पउँरी वंदन।।


हाड़ माँस माटी के लोंदी।बानी पाके बोले कोंदी।।

पथरा के बदले हे सूरत। गढ़थे छिनी हथौड़ी  मूरत।।


भुइयाँ पानी पवन अकाशा।कण कण में विज्ञान प्रकाशा।।

समय घलो बड़ देथे शिक्षा।रतन मुकुट तक माँगे भिक्षा।।


अमर हवैं रैदास कबीरा। निर्गुण सगुण  बसावय मीरा।।

सातों सुर मन कंठ बिराजे। तानसेन के सुर धुन बाजे।।


कण कण मा गुरु तत्व समाये।सबो जिनिस कुछु बात सिखाये।।

गोठ करत हे सूपा चन्नी।कचरा ला छाने हे छन्नी।।


गुरु के दर हा सच्चा दर हे। मुड़ी कटाये नाम अमर हे।।

एकलव्य के दान अँगूठा। अइसन हे गुरु भक्ति अनूठा।।


श्रद्धा से गुरु पूजा करलव। ज्ञान बुद्धि से झोली भरलव।

जे निश्छल गुरु शरण म जावै।।अष्ट सिद्धि नवनिधि जस पावै।।


गुरु चालीसा जे पढ़े,ओखर जागे भाग।

दुख दारिद अज्ञानता ,ले लेथे बैराग।।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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अहिलेश्वर

अरुण निगम हे नाँव, मोर प्रियवर गुरुवर के।

नस-नस मा साहित्य, मिले पुरखा ले घर के।

पेड़ बरोबर भाव, कृपाफल सब ला मिलथे।

पाथें जे सानिध्य, उँखर जिनगी मन खिलथे।

छत्तीसगढ़ी छंद बर, बनगे बरगद कस तना।

गुरु के कृपा प्रसाद ले, होत छंद के साधना।

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ज्ञानू

कलम चलत हे किरपा जेखर, मिले छंद के ज्ञान।

बड़का साहितकार छंदविद, नइ कर सकँव बखान।।


धन्य धन्य हे भाग हमर जी, अइसन गुरु हे साथ।

संग खड़े दुख सुख मा रहिथे, धरे हाथ मा हाथ।।


बात बात मा गोठ सियानी, सदा दिखाथे राह।

भेदभाव नइ जानय सिरतो, देथे नेक सलाह।।


सत साहित के ये छइहाँ मा, जीव जुड़ावँय मोर।

अपन शरण गुरु सदा राखहू, अतके मोर निहोर।।


जन्मदिवस मा इही कामना, रहव स्वस्थ खुशहाल।

फलन फुलन सानिध्य आपके, जियव बछर सौ साल।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी कवर्धा

साधक- सत्र-3

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कुंडली छंद 


बोली मीठा हे सुघर,सुंदर सरल स्वभाव।

अरुण निगम जी नाम हे,कतका महिमा गाव।

कतका महिमा गाव,छंद के ज्ञानी जानौ।

बनना हवय सुजान,बात गुरुवर के मानौ।

छंदकार मशहूर,साथ चेला के टोली।

सादर हे परनाम,इँखर अमरित हे बोली।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

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 दीपक निषाद, बनसांकरा:

 पूज्य निगम गुरुदेव के, कतका करँव बखान। 

साहित के संसार मा, लाए नवा बिहान। ।

जुन्ना छंद परंपरा, ला फिर से सिरजाँय। 

तरी जिंकर आसीस के, सब साधक जुरियाँय। ।

भरँय खजाना छंद के, धर के छंद विधान। 

करत हवँय सरलग सबो, साहित ला धनवान। ।

गुरुवर के नित पैलगी, लागँव मँय करजोर। 

जिंकर दया अउ स्नेह के, हावय ओर न छोर। ।

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गुरु अरुण निगम हे, ज्ञान अगम हे, परमारथ मा ,मगन रहै।

जग बर उपकारी ,सम व्यवहारी, गिरे परे बर ,रतन रहै।।

गुरु ज्योत प्रकाशा,भाव अकाशा,शब्द शब्द मा ,ज्ञान भरै।

रहिके संसारी ,मोह सँहारी,अहम द्वेष के ,गरब क्षरै।।

आशा देशमुख

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