जनकवि कोदू राम दलित जी के 54वीं पुण्य तिथि म पूज्यनीय दलित जी ल शत शत नमन--
छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय, छंद शास्त्री,जनकवि कोदू राम दलित जी के 54वीं जयंती के अवसर म, उन ल शत शत नमन,
दोहा छंद
करिस छंद के जौन हा,हमर इँहा शुरवात।
श्रद्धा सुमन चढाँव मैं, माथा अपन नँवात।
साहित के वो देंवता,जनकवि वो कहिलाय।
बगरे बाँढ़य छंद बड़,आस ओखरे आय।
नाँव मिटाये नइ मिटै,करनी जेखर पोठ।
साहित के आगास मा,बरे सियानी गोठ।
पैरी जब जब बाजही,मुख मा आही गीत।
बैरी पढ़ पढ़ काँपही,फुलही फलही मीत।
रचना रिगबिग हे बरत,भले बछर के बीत।
डहर नवा गढ़ते रही,जनकवि जी के गीत।
नाँव अमर जुगजुग रही,जइसे गंगा धार।
जनकवि कोदू राम जी,छंद मरम आधार।
सपना उही सँजोय हे,अरुण निगम जी आज।
पालत पोंसत छंद ला,करत हवे निक काज।
साधक बन सीखत हवै,कतको कवि मन छंद।
महूँ करत हँव साधना,लइका अँव मतिमंद।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)
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दोहा छंद
अलख जगाइन साँच के, जन कवि कोदू राम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
सन उन्नीस् सौ दस बछर, जड़काला के बाद।
पाँच मार्च के जन्म तिथि, हवय मुअखरा याद।
राम भरोसा ए ददा, जाई माँ के नाँव।
जन्म भूमि टिकरी हरै, दुरुग जिला के गाँव।
पेशा से शिक्षक रहिन, ज्ञान बँटई काम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
राज रहिस ॲंगरेज के, देश रहिस परतंत्र।
का बड़का का आम जन, सब चाहिन गणतंत्र।
आजादी तो पा घलिन, दे के जीव परान।
शोषित दलित गरीब मन, नइ पाइन सम्मान।
जन-मन के आवाज बन, हाथ कलम लिन थाम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
जन भाखा मा भाव ला, पहुँचावँय जन तीर।
समझय मनखे आखरी, बहय नयन ले नीर।
दोहा रोला कुंडली, कुकुभ सवैया सार।
किसिम किसिम के छंद मा, गीत लिखिन भरमार।
बड़ ज्ञानी उन छंद के, दया मया के धाम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
रचना-सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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कुंडलियाँ छंद
पुरखा जनकवि के हवय, पुण्य जयंती आज।
श्रीमन कोदू राम जी,करिन नेक जे काज।
करिन नेक जे काज,छंद मा रचना रचके।
सुग्घर के सुरताल, भाव मनभावन लचके।
गाँधी सहीं विचार, रहिंन उन उज्जर छवि के।
अमर रही गा नाम, सदा पुरखा जनकवि के।
आइस बालक ले जनम,पावन टिकरी गाँव।
मातु पिता जेकर धरिन, कोदू राम जी नाँव।
कोदू राम जी नाँव, पिता श्री राम भरोसा।
घोर गरीबी झेल, करिन उन पालन पोसा।
अर्जुन्दा के स्कूल, ज्ञान के गठरी पाइस।
गुरुजी बनके दुर्ग, शहर मा वो हा आइस।
बड़का रचनाकार वो,गद्य-पद्य सिरजाय।
हास्य व्यंग्य के धार मा, श्रोता ला नँहवाय।
श्रोता ला नँहवाय, गोठ वो लिखिन सियानी।
माटी महक समाय, गठिन बड़ कथा-कहानी।
अलहन के जी बात,व्यंग्य के डारे तड़का।
दू मितान के गोठ, करिन वो कविवर बड़का।
श्रद्धावनत
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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आल्हा छंद-#सुरता_पुरखा_मन_के
करके सुरता पुरखा मन के, चरन नवावँव मँय हा माथ।
समझ धरोहर मान रखव जी, मिलय कृपा के हर पल साथ।।
इही कड़ी मा जिला दुर्ग के, अर्जुन्दा टिकरी हे गाँव।
जनम लिये साहित्य पुरोधा, कोदूराम दलित हे नाँव।।
पाँच मार्च उन्निस सौ दस के, दिन पावन राहय शनिवार।
माता जाई के गोदी मा, कोदूराम लिये अवतार।।
रामभरोसा पिता कृषक के, जग मा बढ़हाये बर नाँव।
कलम सिपाही जनम लिये जी, बगराये साहित के छाँव।।
बचपन राहय सरल सादगी, धरे गाँव सुख-दुख परिवेश।
खेत बाग बलखावत नदिया, भरिस काव्य मन रंग विशेष।।
होनहार बिरवान सहीं ये, बनके जग मा चिकना पात।
अलख जगाये ज्ञान दीप बन, नीति धरम के बोलय बात।।
छंद विधा के पहला कवि जे, कुण्डलिया रचना रस खास।
रखे बानगी छत्तीसगढ़ी, चल के राह कबीरा दास।।
गाँधीवादी विचार धारा, देश प्रेम प्रति मन मा भाव।
देश समाज सुधारक कवि जे, खादी वस्त्र रखे पहिनाव।।
ढ़ोंग रूढ़िवादी के ऊपर, काव्य डंड के करे प्रहार।
तर्कशील विज्ञानिकवादी, शोधपरक निज नेक विचार।।
गोठ सियानी ऊँखर रचना, जग-जन ला रस्ता दिखलाय।
मातृ बोल छत्तीसगढ़ी के, भावी पीढ़ी लाज बचाय।।
आज पुण्यतिथि गिरधर कवि के, गजानंद जी करे बखान।
जतका लिखहूँ कम पड़ जाही, कोदूराम दलित गुनगान।।
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'
बिलासपुर (छत्तीसगढ़ी)