Followers

Monday, October 24, 2022

देवारी तिहार विशेष छंदबद्ध सृजन- छंद के छ परिवार


 रंगोली (द्वारा)- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

देवारी तिहार विशेष छंदबद्ध सृजन- छंद के छ परिवार


 जगमग जगमग

(बाल कविता)

---------

जगमग जगमग दिया बरत हे,

 देवारी आये हे।

छुरछुरिया अउ चुरचुटिया ला,

बाबू जी लाये हे।


 रंग बिरंगा माचिस काड़ी,

अबड़ मोमबत्ती हे।

हे चटचटा साँप के गोली,

 मजा भरे अत्ती हे।


नान नान सुतरी बम हावय,

रील तमंचा वाला।

हे राकेट उड़इया बादर,

नोक दिखै जस भाला।


हे अनार हा बड़का वाला, 

छोटे बड़े दनाका।

गोल घुमइया चकरी हावय,

जइसे गाड़ी चाका।


आना बंटी आना पिंकी,

मिलजुल खुशी मनाबो।

सावधान हो फोर फटाका,

रोटी-पीठा खाबो।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद (छत्तीसगढ़)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*बरवै छंद---- धनतेरस*


घर-अँगना ला सुग्घर, देवव साज ।

धनतेरस के पावन, अवसर आज ।।


अँधियारी के तेरस, कातिक मास ।

पूजव प्रभु धन्वंतरि, दिन हे खास ।।


होय शुरू धनतेरस, के शुभ वार ।

करव ध्यान पूजा गा, आय तिहार ।।


धन के बरसा होही, आज अपार ।

भाग जगाही आके,  हमरो द्वार ।।


दीप जलाके जगमग, कर उजियार ।

बाँटव सुख दुख ला अउ, मया दुलार ।।


धन्वंतरि प्रभु करही, रोग निदान ।

औषधि गुन के दाता,  हे भगवान ।।


*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला-कोरबा(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

बोधन जी: //धन तेरस (सार छंद)//


धन तेरस के बेरा आगे,सुग्घर घर उजराबो।

आयुर्वेद देवता सुमिरन,धनवंतरी मनाबो।।


कातिक महिना पाख अँधेरी,तिथि तेरस के आथे।

माटी के तेरह ठन दीया, नारी सबो जलाथे।।

धूप जला के ध्यान लगाके,बने आरती गाबो।

धन तेरस के बेरा आगे,...................


सागर मंथन मा निकलिस हे,अमरित करसा लेके।

धनवंतरी देव दुनिया ला,बाँटिस औषधि देके।।

रोग दोष सब दूर करे बर,माथा सब टेकाबो।।

धन तेरस के बेरा आगे.......................


धन कुबेर के पूजा करबो,धन बरसा करवाही।

घर गरीब के आरो सुनके,पल्ला दउड़त आही।।

सबके भाग्य पलट जाही जी,आवौ चलौ  मनाबो।

धन तेरस के बेरा आगे,.......................


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

//नरक चौदस// (लावणी छंद)


कातिक मास नरक चौदस के,

                     आथे     छोटे    देवारी।

लीपे पोते घर अँगना सब,

              खुश लइका अउ नर-नारी।।


दीयादान करे बर यम ला,

                     दीया एक जलाथे सब।

पाप करम ले मुक्ति पाय बर,

                  एखर गुन ला गाथे सब।।

पूजा धूप आरती करथे,

                    फूल पान धर के थारी।

कातिक मास नरक चौदस के...........


किसन कन्हैया के महिमा हे,

                   नरकासुर दानव मारिस।

गोपी मन के लाज बचाइस,

               लीला ला दुनिया जानिस।।

कन्या सोलह हजार इक सौ,

                 मुक्त   कराइस  बनवारी।              

कातिक मास नरक चौदस के,.........


सुग्घर मिल त्यौहार मनाबो,

                  भाईचारा        अपनाबो।

घर-घर दीया बार अँजोरी,

                   गाँव-शहर मा बगराबो।

जगमग-जगमग खोर दुवारी,

                   भागय जम्मों अँधियारी।

कातिक मास नरक चौदस के,...........


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *सरसी छंद*


*ज्ञान के दीया*


ज्ञान भगति के दीया सुग्घर, अंंतस कर उजियार।

तन मन दोनों जगमग होही, मिटही सब अँधियार।।


बाहिर कतको दीया बरही, मन नइ होय अँजोर।

तन के दीया मन के बाती,भक्ति तेल मा बोर।।


मया मोह के आँधी चलही, दीया नहीं बुताय।

कतको बाधा आही तब ले, येला राम बचाय।।


अंतस होही उजियारी तब, देवारी सिरतोन।

भवसागर ले पार उतरही, बिना ज्ञान के कोन।।


*प्यारेलाल साहू*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

🪔दीवाली के दोहे 🪔🪔🪔

=========================

1-

बड़का हमर तिहार हे, घर अँगना सब लीप |

तेरह तेरस के दिया, चौदस चौदह दीप ||

2-

सुरहुत्ती घर-घर जले, चारो कोती दीप |

गली खोर जगमग दिखे, निकले मोती सीप ||

3-

धनतेरस धन माँग ले, चौदस के तँय रूप |

लक्ष्मी पूजा सार हे, रंक बनावय भूप ||

4-

नवा-नवा कपड़ा मिलय, नवा मिलय उपहार |

माता लक्ष्मी बर तुमन, ले लव सुघ्घर हार ||

5

दया करव माता रमा, पूजा कर स्वीकार |

तोर चरण मा दे जघा, हे माँ भर भण्डार ||

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔

कमलेश प्रसाद शरमाबाबू

कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

] गुमान साहू: दुर्मिल सवैया ।।राम घर आगमन।।


सजगे अँगना घर खोर गली सब मंगल दीप जलावत हे।

बनवास बिता रघुनन्दन राम सिया अउ लक्ष्मण आवत हे।

खुश हे जनता नगरी भर के प्रभु के जयकार लगावत हे।

सब देव घलो मन फूल धरे प्रभु के पथ मा बरसावत हे।।


गुमान प्रसाद साहू 

समोदा (महानदी),आरंग 

जिला-रायपुर ,छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 रोला-छंद 

======

देवारी के दीया 

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

1-

देवारी के जोर, चलत हे चारो कोती |

साफ सफाई खूब, होत हे ऐती वोती ||

पालिस चूना रंग, बिकत हे देखव भारी ||

जुरमिल बने सजाव, अपन घर अँगना बारी |||

2-

रिगबग चारो ओर, बरत हे सुघ्घर दीया |

स्वागत मा घर द्वार, तकत आही राम सिया ||

रावण मारिस राम, अवध मा वापस आये |

नर-नारी सब झूम, खुशी मा दीप जलाये ||

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

कमलेश प्रसाद शरमाबाबू 

कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी 


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: देव "वारी" के दीया ल बार......


अजब लागय  बड़ गज्जब लागय ,

धन तेरस देवारी के पहिली तिहार।

फ़रिहर तन ले होवय  मन हरियर,

धन्वन्तरी पूजन के आय दिन वार।।


धन के होथे तीन गति सब कहिथे,

नी देबे नी भोगबे ते होथे सबो खुवार।

शुभता सत रद्दा घर परिवार बर वार,

जम्मो जगत आय हमर तुंहर परिवार ।।


चीन चिन्हारी मीत मितानी संग सबो हांसथे गाथे मनाथे परब तिहार।

अनचिन्हार देहरी ला घलो देवन संगी 

बस एक ठिन "दीया " के उजियार ।।


अबला मन के मान खातिर कान्हा

करिस  नरकासूर संहार। 

सोलह हजार गोपियन के लहूट गे,

रूप चौदस सोलह सिंगार ।।


ओखर छोड़ सबो येती वोती संगी

हम सब जाथन मन ला हार ।

रक्षा होथे सुरता लमईया के अउ,

 करथे गोवर्धनधारी मनुहार ।।


लक्ष्मी मईया सब  किरपा करही ,

अन धन ले  कोठी कुरिया भरही।

लेय - लेय मा कतेक सुलगही।

देव "वारी " के दीया ला  बार ।।

              रोशन साहू (मोखला)

                7999840942

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

//देवारी के दीया//(सार छंद)


जगमग-जगमग दीया सुग्घर,

                       देवारी  जब  आथे।

रात अमावस के अँधियारी,

                      तुरते तुरत भगाथे।।

                      

लक्ष्मी दाई के अगवानी,

                       करथे नर अउ नारी।

नवा-नवा कपड़ा पहिरे सब,

                       धूप  सजाथे   थारी।।

खील बतासा फूल चघा के,

                      सब अशीष ला पाथे।

जगमग-जगमग दीया................


चौदह बरस काट बनवासा,

                    राम अवध जब आइस।

इही खुशी मा भारत वासी,

                    सबो  तिहार  मनाइस।।

परम्परा ला देखत पुरखा,

                     सुग्घर   रीत  निभाथे।

जगमग-जगमग दीया..................


चुक ले अँगना तुलसी चौरा,

                      पास   परोस   दुवारी।

दीया दान घलो करथे सब,

                     पर घर मा सँगवारी।।

सुरहुत्ती ये रात कहाथे,

                      सबके मन ला भाथे।।

जगमग-जगमग दीया.................


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*देवारी परब* (दोहा छंद)


लीप पोत के घर सजे, सजगे अँगना खोर ।

जुगुर- बुगुर दीया बरै, देखव  ओरी  ओर ।।


आगे  देवारी  परब,  दीया  बारौ  द्वार ।

लछमी पूजा सब करौ, होही नइया पार ।।


नरियर- फूल चढ़ाव जी, माँगव तुम वरदान । 

लछमी किरपा होय ले, पावव सब धन-धान ।।


रीत चलत आवत हवय, पुरखा जुग ले जान ।

घर- घर जा करथें सबो,  सुग्घर दीया दान ।


मया- पिरित बाँटौ सबो,  दुख जाए जी भाग ।

सबो रहे बर सीख लव, तिल मा गुड़ कस पाग ।।


सुग्घर- सुग्घर  ओनहा,  पहिरे  निकलौ आज ।

पबरित मन ला तुम रखौ, सुफल करौ सब काज ।।


घर- घर मा हावय बने,  लड्डू  पेड़ा  खीर ।

लेवव मजा तिहार के,  मन मा रख के धीर ।।


*मुकेश उइके "मयारू*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला-कोरबा(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: कुण्डलिया- अजय अमृतांशु 


बारव दीया ज्ञान के, घर-घर ओरी ओर।

पहुँचय अंतिम छोर तक,

शिक्षा के अंजोर।।

शिक्षा के अंजोर, देश तब आगू बढ़ही।

मिलही सुग्घर ज्ञान, नवा रद्दा तब गढ़ही।।

पढ़ लिख हो हुशियार, बिपत खुद के तुम टारव।

आय देवारी आज, ज्ञान के दीया बारव।।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: *सरसी छन्द* 


बाई बोलिस येला-ओला, जाके जल्दी लान। 

देवारी त्योहार मानबो, होगे हवय बिहान।। 


देवारी बर जिनिस बिसाये, गेंव हाट-बाजार। 

काला लेवँव काला छोड़ँव, महँगाई के मार।। 


महँगा हे सब्जी-भाजी अउ, हरदी मिरचा तेल। 

महँगाई के आग लगे हे, जिनगानी अब फेल।। 


🙏🙏धन्नूलाल भास्कर 'मुंगेलिहा'🙏🙏

********************************

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 सार छंद 

जुआ निषेध


जुआ नशा के मोहफाॕस मा,लगे चुलुक हे भारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


धान अटावत हे कोठी के,निकले बोरा बोरा|

भरे ओनहारी डोली हा,जरगे जइसे होरा||

रोवय लइका चिहुक बिदुक के,जुच्छा हावय थारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


गाॕव गली सब पारा पारा,जगमग दीया बरथे|

सबके घर अउ अॕगना चौरा,मन ला अड़बड़ हरथे||

ददा जुआ मा सब ला हारे,करथे झगरा गारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


नवा ओनहा बछर बीतगे,तन ला हावय ढांपे|

भरे जाड़ मा हाॕड़ा अब तो,अस बाती कस कांपे||

तन मन के सब खुशी हजागे,बाढे़ देख लचारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


शिवानी कुर्रे

हरदी विशाल बलौदा जांजगीर चाॕपा छग 🙏🙏

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *सरसी छन्द - देवारी तिहार*


सबके घर जगमग होवय जी, अउ जिनगी आबाद ।

एसो के देवारी गूँजय, गीत खुशी के नाद ।।


माँ लक्ष्मी के कृपा पाय सब, धन के हो बरसात ।

झन राहय कोन्हों निर्धन बस, भागय करिया रात ।।


छोटे बड़का के भेद मिटय, जागय समता भाव ।

सुख दुख मा सब मीत मितानी, झन तो रहे दुराव ।।


प्रहरी बन सीमा रक्षा में, हे भारत के लाल ।

उनकर घर उजियारा दमके, छुवय कभू मत काल ।।


उन्नति के पथ में रेंगय जी, प्रगतिशील हो देश ।

हर मनखे समृद्ध होय इँहा, छुवय अगास प्रदेश ।।


टुकना भर भर मोर बधाई, झोंकव अबके साल ।

देवारी शुभ मंगलकारी, रहय सबो खुशहाल ।।


नंदकिशोर साव "नीरव"

लखोली, राजनांदगांव

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 आशा देशमुख: गीतिका छंद


देवारी के दीया


आय देवारी सुघर जी, पाँच दिन के ये परब। 

देख जगमग रात अइसन, चन्द्र के टूटे गरब।। 

सुख सहित सद्भाव सुम्मत, परघनी धन   धान के। 

हाथ लक्ष्मी हा धरे  शुभ लाभ सुख सम्मान के।।


 बैठ टुकनी मा सुआ रे, बोल सुख के राग ला। 

सुन बने धरबे सुआ ना, मन मया के पाग ला। 

भाग्य खेती हा लिखत हे, गाँव घर परिवार के। 

आस में कुम्हरा घलो हे, आय दिन उजियार के।।


बाहरी सुपली घलो मन, हाँस् के बूता करे। 

रंग मन करके पुताई, द्वार रंगोली भरे।।

सब डहर फूटे फटाका, हर शहर हर गाँव मा। 

हाट अउ व्यापार दुनिया, हे दिखे धन छाँव मा।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 मनोज वर्मा: कुण्डलिया छंद


देवारी 


देवत हॅंव शुभकामना, झोकत जी जोहार।

सुख समृद्धि यश शांति नित, रहे सदा निज द्वार।।

रहे सदा निज द्वार, बिराजे रिद्धि सिद्धि हर।

लक्ष्मी करे निवास, सरसती पाय वृद्धि गर।।

संगी बने कुबेर, चले सब दुख ला खेवत।

देवारी शुभ होय, बधाई मॅंय हॅंव देवत।।


जिनगी जगमग होय जस, देवारी त्योहार।

करम दीयना बन बरे, मन के जाला झार।।

मन के जाला झार, बहारे लीपे जस घर।

निरमल रहे चरित्र, सजे जस भिथिया सुग्घर।।

तेल मया के डार, नता बड़ चमके बगबग।

सबके दिन शुभ होय, रहे अउ जिनगी जगमग।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: *शंकर छंद*~~~*लछमी पूजा* 


राखव घर ला लीप पोत के, परब हावय खास ।

घर- घर आही लछमी दाई,  पुरन होही आस ।।

खोर गली के करव सफाई, चउँक सुग्घर साज ।

सुख सुम्मत धर संगे आही, बनाही सब काज ।।


बनही घर- घर लड्डू मेवा, खीर अउ पकवान ।

ध्यान लगाके पूजा करिहव, मिलय जी वरदान ।।

धन दौलत ले कोठी भरही,  लगाही भव पार ।

देवारी  के  परब  मनावव,  होय जगमग द्वार ।।


नरियर- फूल चढ़ावव संगी, जोर  दूनों  हाथ ।

किरपा करही लछमी दाई,  नवावव जी माथ ।।

लाही जग मा उजियारी ला, भगाही अँधियार ।

जम्मो जुरमिल खुशी मनावव, आय पावन वार ।।


*मुकेश उइके "मयारू*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला- कोरबा(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

[ *सरसी छंंद*

*विषय-देवारी*

               *(१)*

जगमग दीया के देवारी, आथे बने तिहार।

लीप-पोत के फूल सजाथें, घर अँगना अउ द्वार।। 


सबो जलाथें देवारी मा, दीया ओरी-ओर।

गली-खोर दिखथे चकचक ले, चारों मुड़ा अँजोर।। 


लक्ष्मी दाई के पूजा कर, करथें सब गुणगान।

नरियर अउ फल-फूल चढ़ाके, लेथें धन वरदान।।

                    *(२)*


करौ दिखावा झन तुम संगी, देवारी के नाम।

चीज अगरहा अब झन लेवव , जेकर नइ हे काम।। 


मया बाँट के देवारी मा, भेदभाव लौ टार।

बारौ दीया ओखर घर मा, जेन हवय लाचार।। 


झन फोड़व गा तुमन फटाका, पर्यावरण बचाव।

सबो सादगी ले देवारी, मिलके बने मनाव।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

   पाली जिला कोरबा 

      *सत्र १४*

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

अश्वनी कोसरे 9: *चौपई छंद* 

 *देवारी परब* 


ईशर गौरा के जय बोल, बाजत हवय नगाड़ा ढोल|

गौरा गौरी के सिर ताज,बर बिहाव के सजही साज||


आज मनाबो परब उजास, घर अँगना सजगे हे खास|

जगमग जगमग जलही दीप, घर दुआर अँगना ला लीप||


गाँव गली मा हवय अँजोर, लइकन देख मचावँय शोर|

फूलझड़ी लटके हे खोर, पटकँय पटकन लइकन फोर ||


माँ लक्ष्मी के हवँय उपास, अन धन वैभव बर उल्लास|

देवारी बर सुमरन देव, मिटय भरम अउ जग के भेव||


सुरहुत्ती के सुग्घर योग, चउँर फरा ले लगही भोग|

चारो पहर अमावस रात, सुआ नाच देहीं सौगात||


सखी सहेली करहीं पोठ, सुख दुख अउ अंतस के गोठ|

थपक थपक के देहीं ताल, झन्नक झाँझर धरे मशाल||


बने बरसही मया असीस, जीयत राहँय लाख बरीष|

राउत नाचँय दोहा पार, मड़ई घुमहीं अँगना द्वार||


अइसन शुभ दिन परब तिहार, जोर धरे हे मया दुलार|

मनखे बर खुशहाली लाय, मन चाहा फल देवन आय||


छंदकार -अश्वनी कोसरे

रहँगी पोंडी कवर्धा कबीरधाम

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


1,देवारी तिहार-घनाक्षरी


कातिक हे अँधियारी,आये परब देवारी।

सजे घर खोर बारी,बगरे अँजोर हे।

रिगबिग दीया बरे,अमावस देख डरे।

इरसा दुवेस जरे,कहाँ तोर मोर हे।

अँजोरी के होये जीत,बाढ़े मया मीत प्रीत।

सुनाये देवारी गीत,खुशी सबे छोर हे।।

लड़ी फुलझड़ी उड़े,बरा भजिया हे चुरे।

कोमढ़ा कोचई बुड़े,कड़ही के झोर हे।।


बैंकुंठ निवास होही, पाप जम्मों नास होही।

दीया बार चौदस के, चमकाले भाग ला।

नहा बड़े बिहना ले, यमराजा ला मनाले।

व्रत दान अपनाले, धोले जम्मों दाग ला।

ये दिन हे बड़ न्यारी, कथा कहानी हे भारी।

जीत जिनगी के पारी, जला द्वेष राग ला।

देव धामी ला सुमर, बाढ़ही तोरे उमर।

पा ले जी भजन कर, सुख शांति पाग ला।


आमा पान के तोरन, रंग रंग के जोरन।

रमे हें सबे के मन, देवारी तिहार मा।

लिपाये पोताये हवे, चँउक पुराये हवे।

दाई लक्ष्मी आये हवे, सबके दुवार मा।

अन्न धन देवत हे, दुख हर लेवत हे।

आज जम्मों सेवक हे, बहे भक्ति धार मा।

हाथ मा मिठाई हवे, जुरे भाई भाई हवै।

देवत बधाई हवै,गूँथ मया प्यार मा।


गौरा गौरी जागत हे,दुख पीरा भागत हे।

बड़ निक लागत हे,रिगबिग रात हा।।

थपड़ी बजा के सुवा,नाचत हे भौजी बुआ।

सियान देवव दुवा,निक लागे बात हा।।

दफड़ा दमऊ बजे,चारों खूँट हवे सजे।

धरती सरग लगे,नाँचे पेड़ पात हा।।

घुरे दया मया रंग,सबो तीर हे उमंग।

संगी साथी सबो संग,भाये मुलाकात हा।।


गौरा गौरी सुवा गीत,लेवै जिवरा ल जीत।

बैगा निभावय रीत,जादू मंतर मार के।।

गौरा गौरी कृपा करे,दुख डर पीरा हरे।

सुवा नाचे नोनी मन,मिट्ठू ल बइठार के।।

रात बरे जगमग,परे लछमी के पग।

दुरिहाये ठग जग,देवारी ले हार के।।

देवारी के देख दीया,पबरित होवै जिया।

सोभा बड़ बढ़े हवै,घर अउ दुवार के।


मया भाई बहिनी के, जियत मरत टिके।

भाई दूज पावन हे, राखी के तिहार कस।

उछाह उमंग धर, खुशी के तरंग धर।

आये अँगना मा भाई, बन गंगा धार कस।

इही दिन यमराजा, यमुना के दरवाजा।

पधारे रिहिस हवै, शुभ तिथि बार कस।

भाई बर माँगे सुख, दुख डर दर्द तुक।

बेटी माई मन होथें, लक्ष्मी अवतार कस।


कातिक के अँधियारी, चमकत हवै भारी।

मन मोहे सुघराई, घर गली द्वार के।।

आतुर हे आय बर, कोठी मा समाय बर।

सोनहा सिंगार करे, धान खेत खार के।।

सुखी रहे सबे दिन, मया मिले छिन छिन।

डर जर दुख दर्द, भागे दूर हार के।।

मन मा उजास भरे, सुख सत फुले फरे।

गाड़ा गाड़ा हे बधाई, देवारी तिहार के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


2, कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।

मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।

गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।

करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।

लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।

दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।


भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।

देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।

बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।

आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।

बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।

देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।


लेवव  जय  जोहार  जी,बॉटव  मया   दुलार।

जुरमिल मान तिहार जी,दियना रिगबिग बार।

दियना रिगबिग बार,अमावस हे अँधियारी।

कातिक पबरित मास,आय  हे  जी देवारी।

कर आदर सत्कार,बधाई सबला देवव।

मया  रंग  मा रंग,असीस सबे के लेवव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


3,मत्तग्यंद सवैया- देवारी


चिक्कन चिक्कन खोर दिखे अउ चिक्कन हे बखरी घर बारी।

हाँसत  हे  मुसकावत  हे  सज  आज  मने  मन  गा  नर नारी।

माहर  माहर  हे  ममहावत  आगर  इत्तर  मा  बड़  थारी।

नाचत हे दियना सँग देखव कातिक के रतिहा अँधियारी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


4,बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


सबे खूँट देवारी, के हे जोर।

उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।


छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।

किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।


चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।

गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।


काँटा काँदी कचरा, मानय हार।

मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।


जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।

दया मया मनखे मा, हे भरपूर।


चारो कोती मनखे, दिखे भराय।

मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।


बनठन के सब मनखे, जाय बजार।

खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।


पुतरी दीया बाती, के हे लाट।

तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।


लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।

दीया बाती वाले, देख बलाय।


कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।

नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।


जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।

टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।


हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।

खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।


पहली दिन घर आये, श्री यम देव।

मेटे सब मनखे के, मन के भेव।


दै अशीष यम राजा, मया दुलार।

सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।


तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।

पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।


दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।

सब संकट हा भागे, सुबे नहात।


नहा खोर चौदस के, देवय दान।

नरक मिले झन कहिके, गावय गान।


तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।

धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।


एक मई हो जावय, दिन अउ रात।

अँधियारी ला दीया, हवै भगात।


बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।

चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।


बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।

दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।


फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।

चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।


होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।

गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।


दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।

अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।


पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।

बहिनी मनके बोहै,भाई भार। 


कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।

देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।


देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।

देख देख के नाचे, तनमन मोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


कज्जल छंद- देवारी


मानत हें सब झन तिहार।

होके मनखे मन तियार।

उज्जर उज्जर घर दुवार।

सरग घलो नइ पाय पार।


बोहावै बड़ मया धार।

लामे हावै सुमत नार।

बारी बखरी खेत खार।

नाचे घुरवा कुँवा पार।


चमचम चमके सबे तीर।

बने घरो घर फरा खीर।

देख होय बड़ मन अधीर।

का राजा अउ का फकीर।


झड़के भजिया बरा छान।

का लइका अउ का सियान।

सुनके दोहा सुवा तान।

गोभाये मन मया बान।


फुटे फटाका होय शोर।

गुँजे गाँव घर गली खोर।

चिटको नइहे तोर मोर।

फइले हावै मया डोर।


जुरमिल के दीया जलायँ।

नाच नाच सब झन मनायँ।

सबके मन मा खुशी छायँ।

दया मया के सुर लमायँ।


रिगबिग दीया के अँजोर।

चमकावत हे गली खोर।

परलव पँवरी हाथ जोर।

लक्ष्मी दाई लिही शोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐


देवारी मा पानी(तातंक छंद)


रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।

कतको के सपना पउलागे,अइसन आफत आरी मा।


हाट बजार मा पानी फिरगे,दीया बाती बाँचे हे।

छोट बड़े बैपारी सबके,भाग म बादर नाँचे हे।

खुशी झोपड़ी मा नइ हावै,नइहे महल अटारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।


काम करइया मनके जाँगर,बिरथा आँसों होगे हे।

बिना लिपाये घर दुवार के,चमक धमक सब खोगे हे।

फुटे फटाका धमधम कइसे,चिखला पानी धारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा----।


चौंक पुराये का अँगना मा,काय नवा कपड़ा लत्ता।

काय सुवा का गौरा गौरी,तने हवे खुमरी छत्ता।

काय बरे रिगबिग दियना हा,कातिक केअँधियारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


पाके धान के कनिहा टुटगे,कल्हरत हे दुख मा भारी।

खेत खार अउ रद्दा कच्चा,कच्चा हे बखरी बारी।

मुँह किसान के सिलदिस बादर,भात ल देके थारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


आप सबो ला देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


//अन्नकूट-गोबर्धन// सार छंद*


अन्नकूट गोबर्धन पूजा,

                 हिन्दू   सबो   मनाथे।

देवारी के दूसर दिन मा,

                 ये तिहार जब आथे।।


घर के आगू गोबर ले के,

                      पुतरा एक बनाथे।

चारों कोती फूल मेमरी,

                    पर्वत घलो सजाथे।।

दूध, दही, गंगाजल, मँदरस,

                     करसा मा भर लाथे।

अन्नकूट-गोबर्धन पूजा...............


कातिक एकम पाख अँजोरी,

                      महिमा गोबर्धन के।

बड़े बिहनिया करथे पूजा,

                     कृष्ण नंदनंदन के।।

परिक्रमा जे सात लगाथे,

                    घर मा धन भर जाथे।

अन्नकूट-गोबर्धन पूजा..............


गरब इंद्र के टोर कृष्ण हा,

                     गोकुल गाँव उबारिन।

शुरू करिन गोबर्धन पूजा,

                    अन्न भोग लगवाइन।।

तइहा के ये परम्परा ला,

                    मिलके आज निभाथे।

अन्नकूट-गोबर्धन पूजा...............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*सरसी छन्द* (महँगाई मा देवारी)🪔

**************************** 


देवारी *सुरसुरी* असन मैं, मन मा धरे विचार। 

जिनिस बिसाये देवारी बर, गेंव हाट- बाजार।। 


उछलय *अनारदाना* जैसन, हाट देख मन मोर। 

हौंस भुलागे कीमत सुनके, लागिस झटका जोर।। 


मोरे मेरा कमती रुपिया, धरे रहिगेंव हाथ । 

भाव जानके *चकरी* जैसन,घुमगय मोरो माथ।। 


घरू जिनिस के का कहिबे जी, कनिहा देइस टोर। 

भाव सुनके कान मा होइस, *एटम बम* के शोर।। 


भारी महँगा सबो जिनिस हा, होगेंव मैं हताश। 

शौक उड़ागे ऊपर कोती, जस *राकेट* अकाश।। 


मोरो झोरा खाली आगय, महँगाई के मार। 

होके मैं *फुस्की फोटक्का*, लहुटेंव अपन द्वार।। 


मातु-पिता अउ गौमाता के, परेंव पाँव पखार। 

खपरा चीला खा मनायेंव, देवारी त्योहार।। 


🙏🙏धन्नूलाल भास्कर 'मुंगेलिहा'🙏🙏

********************************

(कुण्डलिया)


गणराजा के पाँव पर, करबो जै जोहार।

माता लक्ष्मी आय हे, लेबो चरन पखार।

लेबो चरन पखार,सुवा नाचत परघाबो।

राउत दोहा पार,चलौ सब खुशी मनाबो।

देवारी हे पर्व, घिड़कही कसके बाजा।

 देही असिस कुबेर,कृपा करही गणराजा



रिगबिग-रिगबिग प्रेम के, दियना करै अँजोर।

दुख के आँसू झन झरै, ककरो आँखी कोर।

ककरो आँखी कोर, उदासी हा मत छावै।

देश बनै खुशहाल,गरीबी उट्ठ परावै।

कोठी छलकै धान, करै धन सिगबिग-सिगबिग।

मन-डेरौंठी ज्ञान, जोत हा बगरै रिगबिग।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 त्रिभंगी छंद

विषय,,,,देवारी


देवारी आगे, सब ला भागे,कपड़ा पहिने,नवा नवा ।

मां लक्ष्मी जी के,पूजा करके,मंत्र जपे सब,लाख सवा ।।

रंगे रंगोली,हरियर लाली, घर ॲगना मा,रंग भरे ।

वो दीप जलाके,खुशी मनाके,मन के तम ला,दूर करे ।।


आगे देवारी,सुन‌ नर‌ नारी,दया‌ मया‌ के,दीप जला।

हे मन मा काला‌,बना उजाला ,सबके कर जी , रोज भला ।।

जल बाती बनके ,रहिले तनके,नवा नवा सब,भाव जगा।

आहे देवारी ,छोड़ लबारी, पर ऊपर झन, दोष लगा ।।


लिलेश्वर देवांगन

गुधेली बेरला

साधक--१०

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 //ईसरदेव-गौरा// आल्हा छंद गीत

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

कातिक महिना धरम-करम के,

                  आवौ थोकन करौ हियाव।

ईसरदेव संग गौरा के,

                 जम्मों सुग्घर गुन ला गाव।।


देवारी के पहिली दिन सब,

                   फूल कुचरके ठउर बनाय।

देवारी के बाद रात भर,

                   माटी के पुतरा सिरजाय।।

बने सनपना साजे ईसर,

                   गौरा - गौरी  दर्शन  पाव।

कातिक महिना धरम-करम के.........


एक मुहल्ला ईसर राजा,

                     दूल्हा के बारात सजाय।

दूसर पारा गौरा रानी,

                    परम्परा के रीत निभाय।।

बाजा-गाजा फुटे पटाखा,

                 मिलके जम्मों खुशी मनाव।

कातिक महिना धरम-करम के.........


दरबर-दरबर चले बराती,

                   गौरा - गौरी  गीत  सुहाय।

हाथ-गोड़ मा साँट पिटावत,

                    टूरा पिल्ला मन हरषाय।।

बड़े बिहनिया होय विसर्जन,

                  नवा बछर बर सोर लमाव।

कातिक महिना धरम-करम के..........

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *गोवर्धन पूजा*

------------ -----

(वीर छंद)

-----------  --------


वन परवत धरती के रक्षा, गोवर्धन के पूजा आय।

गौ माता के सोर-सरेखा, इही हमर संस्कार कहाय।।

गौ माता के अंग-अंग मा,सबो देव के हावय वास।

अमरित कस गौ गोरस देथे,गोबर खेती बर हे खास।।

जंगल हरियर चारा देथे,परवत भरे रतन के खान।

रुख-राई आक्सीजन देके, हमर बँचाथे सिरतो प्रान।।

द्वापर जुग मा गिरिधारी हा, देइस सब ला निर्मल ज्ञान।

जेन हमर नित पालन करथे, वो भुँइया हे सरग समान।।

मरम धरम के कृष्ण-कन्हैया, ब्रजवासी ला रहिस बताय।

छोंड़ इंद्र के मान-गउन ला, धरनी के पूजा करवाय।।

बिपदा ला मिलजुल के टारौ, कहिस सबो ला वो समझाय।

छाता कस परवत ला टाँगिन, जबर एकता के बल पाय।।

एक बनन अउ नेक बनन हम, भेदभाव ला देवन त्याग।

तभे जागही ये कलजुग मा, भारत माता के तो भाग।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: *आल्हा छंद* अश्वनी कोसरे

गोवर्धन परब


लोक परब गोवर्धन पूजा, घर घर गौ के होवय मान|

हमर राज के खेती बारी, इँकर श्रम बिन बिरथा जान||


आज किसानन के हे पारी, गौ जेवन बर जुगत अपार|

परसादी ले सजगे थारी, भरे कलस जल ले औंछार||


हूम धूप दे गोरू गइया, पइँया लागँय बारम्बार|

माँ धरनी जस पर उपकारी, बाहन बल धन हे आधार||


नइया लगही पार सबो के, उपजाये हें फसल किसान|

सोन रंग धर दमक उठे हे, बँधिया डोली अउ खलिहान||


कोठी किरगा झलकन लागिन, खेत खार मा बलही पौर|

बियारा मा ढाँके खरही, कोठा मा गोधन के ठौर|


मालिक के घर अन धन आए, सोहर जस दाई के जान|

घँघड़ा पहिरे नाचत राउत,दहकत दफड़ा गुदुम निशान |


गाँव गली मा मंगल बेला, सजगे हे मड़ई बर खाम|

झूमँत हावँय नाचत मनखे, लागत हे वृंदावन धाम||


छंदकार -अश्वनी कोसरे

रहँगी पोंड़ी कवर्धाकबीरधाम

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

/भइया दूज// लावणी छंद

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

कातिक महिना पाख अँजोरी,

                     दूज परब दिन आथे जी।

रक्षा बंधन के जइसे ही,

                       हिन्दू सबो मनाथे जी।।


एक कथा पौराणिक हावै,

                       सूरज  के पत्नी  छाया।

दूझन लइका यम अउ यमुना,

                     अब्बड़ हे इँखरो माया।।

पबरित परब मया बहिनी के,

                      भइया दूज कहाथे जी।

कातिक महिना पाख अँजोरी.........


सेवा अउ सत्कार धरम ला,

                       भाई के जे मन करथे।

ओखर तो डर भाव सबो ला,

                   यम भइया जी हा हरथे।।

परम्परा पुरखा सिरजाये,

                   मन मा खुशी समाथे जी।

कातिक महिना पाख अँजोरी...........


भाई अउ बहिनी के सुग्घर,

                     दया मया के बँधना जी।

एखर कारन भइया आथे,

                   बहिनी के घर-अँगना जी।।

जतका बनथे नेंग जोग ला,

                     बहिनी हाथ धराथे जी।।

कातिक महिना पाख अँजोरी..........

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Friday, October 21, 2022

कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी

 कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी


देवारी के हे परब, तभो धरे हें हाथ।

बड़का धोखा होय हे, दर्जी मन के साथ।

दर्जी मन के साथ, छोड़ देहे बेरा हा।

हे गुलजार बजार, हवै सुन्ना डेरा हा।

पहली राहय भीड़, दुवारी अँगना भारी।

वो दर्जी के ठौर, आज खोजै देवारी।1


कपड़ा ला सिलवा सबें, पहिरे पहली हाँस।

उठवा के ये दौर मा, होगे सत्यानॉस।

होगे सत्यानॉस, काम खोजत हें दर्जी।

नइ ते पहली लोग, करैं सीले के अर्जी।

टाप जींस टी शर्ट, मार दे हावै थपड़ा।

शहर लगे ना गाँव, छाय हे उठवा कपड़ा।


दर्जी के घर मा रहै, कपड़ा के भरमार।

खुले स्कूल कालेज या, कोनो होय तिहार।

कोनो होय तिहार, गँजा जावै बड़ कपड़ा।

लउहावै सब रोज, बजावैं घर आ दफड़ा।

कपड़ा सँग दे नाप, सिलावैं सब मनमर्जी।

उठवा आगे आज, मरत हें लाँघन दर्जी।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

पर्यावरण के दोहा ~

 ~ पर्यावरण के दोहा ~ 


बने रही पर्यावरण, बने रही तब लोग।

लापरवाही ले सुनव, धरहीं कतको रोग।। 


रक्षा बर ओजोन के, सदा रहव तइयार।

चंगा जिनगी के हमर, इही हरय आधार।। 


भुँइया हा हरियर रहय, अइसे कदम उगाव।

किरिया खाके आप मन, हर दिन पेड़ लगाव।। 


झिल्ली मन घातक हरय, करथें बड़ नुकसान।

असमय ये लेवत हवँय, गरुवा मन के प्रान।। 


भुँइया बर झिल्ली हरय, करिया दाग समान।

कमती येला बउर के, मनखे बनव सुजान।। 


खातू मन रासायनिक, खेत करत बर्बाद।

सुग्घर खेती के तभे, हिलत हवय बुनियाद।। 


पर्यावरण बचाय बर, देवव सब सहयोग।

भुँइया ला सुग्घर रखव, बनके जियव निरोग।। 


दोहाकार - श्लेष चन्द्राकर,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

Friday, October 14, 2022

विधान-सरसी छंद

 

विधान-सरसी छंद

*सरसी छन्द (१६-११)* 

डाँड़ (पद) - २, ,चरन - ४

तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ के आखिर मा 


माने सम-सम चरन मा,

हर डाँड़ मा कुल मात्रा – २७ 

विषम चरन मा मात्रा  – १६,

सम चरण मा मात्रा - ११

यति / बाधा – १६, ११ मात्रा म

खास- सम चरण  के आखिर मा गुरु, लघु (२,१)

उदाहरण - *भोले भगवान  (सरसी छन्द)* 

जब सागर-मंथन मा निकरिस, अपन करिस बिखपान।

बिपदा ले  दुनिया - ल बचाइस , जै  भोले भगवान ।।

बिख  के आगी तपिस  गरा - मा, जइसे के बैसाख ।

मरघट-मा जा के सिव-भोला , बदन चुपर लिस राख ।। 


गंगा जी  ला जटा  उतारिस , अँधमधाय  के  नाथ  । 

मन नइ माढ़िस तब चन्दा ला , अपन बसाइस माथ ।।

तभो  चैन  नइ  पाइस  भोला , धधके गर के आग। 

अपन नरी - मा हार बना के , पहिरिस बिखहर नाग ।। 

सीतलता खोजत - खोजत मा , जब पहुँचिस कैलास 

पारबती के  संग  उहाँ  सिव , अपन बनालिस वास।।

 *अरुण कुमार निगम*

विधान--*रूपमाला छन्द (मदन छन्द)* १४-१०

विधान--*रूपमाला छन्द  (मदन छन्द)* १४-१०


डाँड़ (पद) - ४,

चरन - ८ 


*तुकांत के नियम -*

 दू-दू डाँड़ के आखिर मा माने सम-सम चरन मा, बड़कू,नान्हें (२,१)


*मात्रा-*

हर डाँड़ मा कुल मातरा – २४ , बिसम चरन मा मातरा – १४, सम चरन मा मातरा- १० 


*यति / बाधा –*

१४, १० मातरा मा 


*खास-*

 एला मदन छन्द घलो कहिथें    


*उदाहरण*


*नाम  रहि जाही  (रूपमाला छन्द)* 



देह   जाही   रूप  जाही ,  छोड़  जाही  चाम 

जोर ले कतको इहाँ धन, कुछु न आही काम 

धरम करले करम करले , तँय कमा ले साख 

नाम  रहि  जाही  जगत-मा , देह  होही राख  | 



साँस के  झन कर भरोसा , छोड़ जाही साथ 

तोर  जिनगी काठ-पुतरी , डोरि ओखर हाथ

करम डोंगा ला सजा के , उतर जा भव-पार 

मन रमाले हरि-भजन-मा , बस इही हे सार |


*गुरुदेव अरुण कुमार निगम*


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


*आज एक नवा छन्द*


*रूपमाला छन्द*  (मदन छन्द) 14-10


डाँड़ (पद) - 4, ,चरण - 8


तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ के आखिर मा माने सम-सम चरण मा, गुरु-लघु (2,1)


हर डाँड़ मा कुल मात्रा – २४ , बिसम चरण मा मात्रा – १४, सम चरण मा मात्रा- १० 


यति / बाधा – १४, १० मात्रा मा 


खास- एला मदन छन्द घला कहिथ


*मात्राबाँट*


2122 2122, 2122 21


लय बर अइसे गाके अभ्यास करव -


रूपमाला, रूपमाला, रूपमाला, रूप


या 


लाललाला, लाललाला, लाललाला, लाल


*ध्यान रहे - तीसरा, दसवाँ, सत्रहवाँ अउ चौबीसवाँ मात्रा अनिवार्य रूप ले लघु होना चाही।बाकी जघा एक गुरु के बदला दू लघु घलो हो सकथे*


*उदाहरण*


देह जाही रूप जाही , छोड़ जाही  चाम ।

जोर ले कतको इहाँ धन, कुछु न आही काम ।

कर धरम तँय कर करम तँय, अउ कमा ले साख ।

नाम  रहि  जाही  जगत-मा , देह  होही राख ।।


* कुमार निगम जी *

Monday, October 10, 2022

शरद पुन्नी विशेष छंदबद्ध कविता



शरद पुन्नी विशेष छंदबद्ध कविता

सूरज कस उजियार कर, हवस कहूँ यदि एक।
चंदा बन चमकत रहा, तारा बीच अनेक।।।।।।

पुन्नी के चंदा(सार चंदा)

सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।
अँधियारी रतिहा ला छपछप,काँचत हावै चंदा।

बरै चँदैनी सँग में रिगबिग, सबके मन ला भाये।
घटे बढ़े नित पाख पाख मा,एक्कम दूज कहाये।
कभू चौथ के कभू ईद के, बनके जिया लुभाये।
शरद पाख सज सोला कला म,अमृत बूंद बरसाये।
सबके मन में दया मया ला,बाँचत हावै चंदा--।
सज धज के पुन्नी रतिहा मा,नाँचत हावै चंदा।

बिन चंदा के हवै अधूरा,लइका मन के लोरी।
चकवा रटन लगावत हावै,चंदा जान चकोरी।
कोनो मया म करे ठिठोली,चाँद म महल बनाहूँ।
कहे पिया ला कतको झन मन,चाँद तोड़ के लाहूँ।
बिरह म रोवत बिरही ला अउ,टाँचत हावै  चंदा--।
सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।

सबे तीर उजियारा हावै,नइहे दुःख उदासी।
चिक्कन चिक्कन घर दुवार हे,शुभ हे सबके रासी।
गीता रामायण गूँजत हे, कविता गीत सुनाये।
खीर चुरत हे चौक चौक मा,मिलजुल भोग लगाये।
धरम करम ला मनखे मनके,जाँचत हावै चंदा----।
सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

        शरत-पूर्णीमा 

        

1-

शरद पूर्णिमा रात में, अमरित के हे आस |

किरपा होही श्याम के, मोला हे विसवास ||

2-

खीर बना तैं राख ले , छत मे जाके आज |

अमरित के बरसा करो,राखव स्वामी लाज ||

3-

गाड़ा-गाड़ा हे विनय, टुकना भर जोहार |

विनती मोरे आज के, करिहव प्रभु स्वीकार ||

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

कमलेश प्रसाद शरमाबाबू 🙏🏻

कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी

💐💐💐💐💐💐💐💐👌


*शरद पुन्नी (कुण्डलिया )*


सुग्घर पुन्नी रात हे , शरद सुहावन आज ।

जन्मदिवस शुभकामना , बालमीकि महराज।।

बालमीकि महराज , रमायण तैं लिख डारे ।

राम नाम के बोल , जगत ला पार उतारे ।।

तोर लिखे ये ग्रंथ , करे तन मन ला उज्जर।

झिलमिल दिखे अगास ,शरद पुन्नी के सुग्घर।।


चंदा चमके रात मा , सबो चँदैनी संग।

जगर बगर चारो डहर , दिखे दूधिया रंग।।

दिखे दूधिया रंग , मोहिथे सबके मन ला ।

मिलथे खुशी अपार ,जीव मनखे सब झन ला।।

बरसे अमरित बूंद , काटथे दुख के फंदा।

लइका रोत भुलाय , देखके मामा चंदा ।।


आगे पुन्नी रात जी , सजगे मंदिर द्वार।

करे भगत जस गान तब , झूमे जी संसार।।

झूमे जी संसार , खीर पकवान बनाए ।

छानी ऊपर टाँग , रात भर रहे मडा़ए ।।

अमरित के परसाद , दावना मन भर पा गे।

होगे सुघर बिहान , खुशी के पुन्नी आगे।।


          परमानंद बृजलाल दावना

                      भैंसबोड़

                 6260473556

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


 

सुसकत हे जिनगानी*

 *सुसकत हे जिनगानी*

-----------

*उरक-पुरक के बरसत हावय, रोज-रोज ये पानी।*

 *अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।।*


ढनगत हावय खड़े फसल हा, बादर रइथे ढाँके।

कनकट्टा मन कुढ़होवत हें, बाली मन ला फाँके।

 दुब्बर बर दू ठन असाड़ कस, होगे असो कहानी।

 अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।


 बढ़े प्रकोप तना छेदक के, चुहकत हावय माहो।

 पाना-पाना मुरझावत हे, झुलसा के हे लाहो।

 खैरा रोग धरे हे कसके, जी होगे हलकानी।

 अइसन मा चौपट हो जाही,सिरजे हमर किसानी।


 महमाया हे माथ नवाये, छटकन लागे सरना ।

कइसे अब हरहुना लुवाही, निच्चट होगे मरना।

 इंद्रदेव हा काबर करथे,मँसमोटी- मनमानी।

 अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।


 नींद कहाँ परथे संसो मा, कइसे फसल बँचाबो।

 मँहगी खाद दवा के करजा, काला बेंच पटाबो।

अंतस खबसे दुख के खीला, सुसकत हे जिनगानी।

अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।


चोवा राम ' बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

कुंडलिया छंद

 कुंडलिया छंद 


करहू कोनो झन कभू, रखहू संगी याद।

धन दौलत पद के नशा, करथे घर बरबाद।

करथे घर बरबाद, कभू झन आदी होहू।

नशा नास के मूल, नहीं जिनगी भर रोहू।

लगे कहू ये रोग, तड़फ के समझौ मरहू।

कहे ज्ञानु कविराय, नशा झन कोनो करहू।


ज्ञानु

दोहा गीत सुनव रावण के गोठ ला।

 दोहा गीत

सुनव  रावण के गोठ ला। 


ये कलयुग ला देखके, मैं झुक गे हंव राम। 


नव दिन के नवरात मा, लोगन नाचें गाँय। 

येती ओती घूमके, अब्बड़ खुशी मनाँय। 

हारत हें सब पाप ले, विजया दशमी नाम।। 

ये कलयुग ला देखके, मै झुक गे हँव राम।। 


दारू हा पानी बने, अउ कुकरा हा साग। 

कुकुर सही सूंघत चले, गदहा जैसे राग। 

 जिभिया मा अंगूर रस, देखावत हें आम। 

ये कलयुग ला देखके, मै झुक गे हँव राम। 


डिस्को डीजे देखके, रोवत हे संगीत। 

दया धरम कोंदा बने, फूहड़ता के जीत।। 

करणी ला करिया करें, धरके उज्जर चाम। 

ये कलयुग ला देखके, मैं झुक गे हँव राम।।


सिसकत हें मैंना सुआ, नोचत हावय चील। 

तन कपड़ा के मान ला, फैशन डारिस लील। 

लाज शरम के कद घटे, चिरहा के हे दाम। 

ये कलयुग ला देखके, मै झुक गे हँव राम।।


रुख राई मा छाय हे, अमर बेल के नार। 

पथरा मा लदकाय हें, गाँव गली अउ खार। 

चतुरा के घर द्वार मा, सिधवा बने गुलाम। 

ये कलयुग ला देखके, मैं झुक गे हँव राम।।


रत्ती पत्ती बोलथे, चुप हें चाँदी सोन। 

 झूठ कछेरी मा पले, सच ला लाही कोन। 

हीरा मोती बैठगे, मिले काँच ला काम। 

ये कलयुग ला देखके, मैं झुक गे हँव राम। 


आशा देशमुख

कज्जल छंद - जीवन दरपन*

 *कज्जल छंद - जीवन दरपन*


जिनगी दुख के खान आय,

सुख तो दिन के चार पाय।

दुनिया मा तँय का कमाय,

मोर-मोर कह तँय भुलाय।।


जप  ले  मानुष  राम नाम,

बन जाही सब  तोर काम।

राम चरन सुख दुःख धाम,

चेत  लगावव  सिया राम।।


जय रघुनन्दन जय तुम्हार,

किरपा   करके  दौ  दुलार।

संझा  बिहना  रोज  हार,

तोला  चढ़ावँव सरकार।।


पापी  मनुवा   कर   उपाय,

माटी  चोला  ह तर   जाय।

नइ तो  जिनगी  फेर  आय,

का तँय  खोए  काय पाय।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बोरे बासी, खेंड़हा* (कुण्डलिया छंद)

 *बोरे बासी, खेंड़हा*

(कुण्डलिया छंद)


खालौ अम्मट मा जरी, संग चना के साग।

बोरे बासी गोंदली, मिले हवै बड़ भाग।

मिले हवै बड़ भाग, पेट ला ठंडा करही।

खीरा फाँकी चाब, मूँड़ के ताव उतरही।

हमर इही जुड़वास, झाँझ बर दवा बनालौ।

बड़े बिहनिया रोज, नहाँ धोके सब खालौ।1


चिक्कट चिक्कट खेंड़हा, चुहक मही के झोर।

बासी ला भरपेट खा,जीव जुड़ाथे मोर।

जीव जुड़ाथे मोर, जरी सस्ता मिल जाथे।

मनपसंद हे स्वाद, गुदा हा अबड़ मिठाथे।

सेहत बर वरदान, विटामिन मिलथे बिक्कट।

बखरी के उपजाय, खेंड़हा चिक्कट चिक्कट।


चोवा राम 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

Wednesday, October 5, 2022

दशहरा परब विशेष छंदबद्ध रचना संग्रह

 





दशहरा परब विशेष छंदबद्ध रचना संग्रह

धर धनुस

-----------------

धर धनुस तैं राम बन जा।

 मुरली वाले श्याम बन जा।


 जाड़ कस अन्याय बर जी 

कुनकुनावत घाम बन जा।


 खास के दुनिया अलग हे

 आदमी तैं आम बन जा।


 थोरको तो मिलही राहत

 हम लगाबो बाम बन जा।


 खोंधरा मा आही पंछी 

हर थकाशी शाम बन जा


 आरती अरदास पूजा

 सत सुमरनी नाम बन जा।


 दु:ख कोनो ला मिलै झन

सुख के सउँहे धाम बन जा।


पोंछ आँसू दीन जन के

पुण्य अइसन काम बन जा।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

दोहा

 अपन करेजा झाँकि हव , भीतर मन के मैल l

कतका रावन घट बसे, बइठे हवय अड़ैल ll

कागज लकड़ी बाँस के,  पुतला बना जलाय l

घट भीतर रावन भरे ,  राम कहाँ ले आय ll

जलन बुराई  ईरखा , मोह लोभ अउ काम l

दिन-दिन बाढ़त जात हे, कइसे मिलिही राम ll



आप सबो बुधियार मन ला  विजय दशमी के गाड़ा-गाड़ा बधाई 

दूजराम साहू  *अनन्य*

निवास -भरदाकला (खैरागढ़)

💐💐💐💐💐💐💐💐

*मन के रावण मार दे (उल्लाला छंद)*


पुतला ला तै झन जला , मन के रावन मारदे ।

काम क्रोध मन मा बसे , सब ला बंबर बारदे।।

दानव घुमे हजार झन ,बहुरुपिया के भेष मा ।

बल ओखर निसदिन बढ़े ,राम कृष्ण के देश मा।।

धरले बाना हाथ मा , पापी मन ल संहार दे ।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।


बेटी मन के लाज ला , लूटय दानव रोज के।

खनके गड्ढा पाट दे ,बइरी मन ला खोज के ।।

ओखर मुड़ ला काट दे , जे मनखे रुप दाग हे ।

मनखे बन मनखे डसे , ओ जहरीला नाग हे ।।

बइरी मन के वंश ला, खउलत तेल म डारदे।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।


स्वारथ बर चोरी करै, उदिम करेओ लाख जी।

सोना के लंका घलो , जरके होगे राख जी।।

सत् के रद्दा छोड़के , जे अवघट मा जाय जी।

जघा जघा कांटा गडे़ , जिनगी नरक बनाय जी।।

कांटा बने समाज के , ओला जग ले टारदे ।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।

            

       बृजलाल दावना

         6260473556

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


चौपाई छंद - राम आगमन


आज अवध के आही राजा।गात बधाई मंगल बाजा।।

लीप पोत घर अँगना द्वारी।बांँध पताका आमा डारी।।


जीव जुडा़वत हे महतारी।चउदह बरस टरे दिन कारी।।

राम लखन सीता सुकुमारी।जय जय कार करे नर नारी।।


राज सिंघासन सोहय पनही।राम अवध के राजा बनही।। 

राज तिलक के होय तियारी।आज भाग जागे महतारी।। 


राम लखन सीता मन भावँय। तीन लोक के राजा आवँय।। 

सरस्वती हर धरे सितारा।सातो सुर के बरसे धारा।। 


आय बहू बेटा बनवासी।दाई के दुख बनगे दासी।। 

सोन थार आरती उतारय। खेवन खेवन राम पुकारय।।

शशि साहू

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

कुंडलियाँ छंद- रावन(जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया")


रावन रावन हे तिंहा, राम कहाँ ले आय।

रावन ला रावन हने, रावन खुशी मनाय।

रावन खुशी मनाय, भुलागे अपने गत ला।

अंहकार के दास, बने हे तज तप सत ला।

धनबल गुण ना ज्ञान, तभो लागे देखावन।

नइहे कहुँती राम, दिखे बस रावन रावन।।


रावन के पुतला कहे, काम रतन नइ आय।

अहंकार ला छोड़ दव, झन लेवव कुछु हाय।

झन लेवव कुछु हाय, बाय हो जाही जिनगी।

छुटही जोरे चीज, धार बोहाही जिनगी।

मद माया लत लोभ, खोज लग जाव जलावन।

नइ ते जलहू रोज, मोर कस बनके रावन।


रावन हा कइसे जले, सावन कस हे क्वांर।

रझरझ रझरझ पानी गिरे, होवय हाँहाकार।

होवय हाँहाकार, देख के पानी बादर।

दिखे ताल कस खेत, धान हा रोवय डर डर।

जगराता जस नाच, कहाँ होइस मनभावन।

का दशहरा मनान, जलावन कइसे रावन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


दोहा


थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।

आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।


घनाक्षरी


आशा विश्वास धर,सियान के पाँव पर,

दया मया डोरी बर,रेंग सुबे शाम के।

घर बन एक मान,जीव सब एक जान,

जिया कखरो न चान,छाँव बन घाम के।

मीत ग मितानी बना,गुरतुर बानी बना,

खुद ल ग दानी बना,धर्म ध्वजा थाम के।

रद्दा ग देखावत हे,जग ला बतावत हे,

अलख जगावत हे,चरित्र ह राम के।


मन म बुराई लेके,आलस के आघू टेके,

तप जप सत फेके,कैसे जाबे पार गा।

झन कर भेदभाव,दुख पीरा न दे घाव,

बढ़ाले अपन नाँव,जोड़ मया तार गा।

बोली के तैं मान रख,बँचाके सम्मान रख,

उघारे ग कान रख,नइ होवै हार गा।

पीर बन राम सहीं,धीर बन राम सहीं,

वीर बन राम सहीं,रावण ल मार गा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

[10/5, 3:22 PM] आशा देशमुख: रावण के गोठ,

राम के हुँकारू।



रावण बोले राम ला, सुन प्रभु मोरे बात। 

मोला मारे बर इहाँ, काखर हे औकात।। 


मोर नाभि के भीतरी, हावय अमरित कुंड। 

बस पुतला ला लेसथे, ये मनखे के झुंड।। 


मोर हवय दस दस मुड़ी, कोन जानथे मर्म। 

सब कुछ जाने राम तंय, का हे धर्म अधर्म।। 


जगह जगह रावण जले, बने हवंय सब राम। 

साधु जैसे वेष हे, अउ आँखी मा काम।। 


गोटी फेंके धर्म के, बैठे भूत भविष्य। 

मछरी फाँसे रात भर, बगुला मन के शिष्य।। 


अजर अमर रावण हवय, हर युग अउ हर काल। 

बस मारे के चोचला, हे आडंबर ढाल।। 


 काखर मा बड़ शक्ति हे, हाँसत हे लंकेश। 

अब भी रावण राज मा, जीयत  हावय देश।। 



आशा देशमुख

💐💐💐💐💐💐💐💐

: कुण्डलिया छंद -( मोला उही जलाय )


लोभ क्रोध मद मोह ला, जे अंतस नइ भाय ।

जेन भगत हे राम के, मोला उही जलाय ।।

मोला उही जलाय, जेन हे सत अनुरागी ।

मन ले सच्चा होय, होय झन तन ले दागी ।।

सदा रखय सत चाह, सुघर हो चिनहा पद के ।

बाॅऺंटे जन मा प्यार, लोभ नइ कोनों मद के ।।


सीना चीर दिखाय जे, हो जइसे हनुमान ।

अंतस सीता राम रख, सदा करॅऺंय गुणगान ।।

सदा करॅऺंय गुणगान, होय झन वो व्यभिचारी ।

नव दिन बर नइ काज, मान रख सदा ग नारी ।।

बन जा हरि के मीत, सिखावव जन जन जीना ।

गा मानवता गीत, दिखादव चाकर सीना ।।


कोन दशानन होत हे,जानौ सब इतिहास ।

कोन भला अउ हे बुरा, हिरदे हो आभास ।।

हिरदे हो आभास, चिन्हारी कर लव सुग्घर ।

राम नाम सिंगार, बना लव काया उज्जर ।।

हिरदे  होवत साफ, जोर हरि आघू आनन ।

जान सबो इतिहास, कोन हे जगत दशानन ।।


देख उही हे राम जग, जे सत के अवतार ।

कबिरा देख बताय हे, इक वो तारनहार ।।

इक वो तारनहार, पूजथें मनखे जेला ।

हंसा सुमिरत जेन, पार हो जमों झमेला ।।

सबके पालनहार, नाम रट काम भगत हे ।

झन होवव मझधार, देख ले राम जगत  हे ।।


छंदकार - राजकुमार बघेल

          सेंदरी, बिलासपुर छ.ग.

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: दशहरा पर्व (रावण कौन)

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

पाप बुराई जेखर मन मा,

                         रावण उही कहाथे।

झूठ लबारी अउ असत्य के,

                        गुन जे अब्बड़ गाथे।।     


रावण तो ज्ञानी ध्यानी जी,

                          कोन पार ला पाइस।

एक पाप के कारण जग मा,

                          धारे-धार बहाइस।।

सबो जलादौ मिलके भुर्री,

                      अइसन करम निभाथे।

पाप बुराई जेखर मन मा,................


मन के मइल मिटावौ जम्मों,

                      राम असन बन जावौ।

दाई-दीदी-बहिनी मन के,

                     मिलके लाज बचावौ।।

कतको अत्याचारी बन के,

                       घूमत आँख दिखाथे।

पाप बुराई जेखर मन मा,................


लूट मार छिन-छिन मा करथे,

                    रावण जइसन मिलथे।

सड़क बाँध पुल जंगल जम्मों,

                     राक्षस बनके लिलथे।।

कलयुग के रावण ये मनखे,

                         लहू घलो पी जाथे।

पाप बुराई जेखर मन मा,..............

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

Sunday, October 2, 2022

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी अउ गुदड़ी के लाल शास्त्री जी के जयंती विशेष छंदबद्ध रचना







  राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी अउ गुदड़ी के लाल शास्त्री जी के जयंती विशेष छंदबद्ध रचना


सार छंद- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


***शत शत नमन-लाल बहादुर शास्त्री जी ला****


जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।

लाल बहादुर शास्त्री जी के, चलो करिन जयकारा।।


पद पइसा लत लोभ भुलाके, जीइस जीवन सादा।

बोलिस कम हे जिनगी भर अउ, काम करिस हे जादा।

रिहिस मीत बर मीठ बताशा, बइरी मन बर आरा।।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


आजादी के रथ ला हाँकिस, फाँकिस दुख दुर्गुन ला।

नित नियाव के झंडा गाड़िस, बता पाप अउ पुन ला।

रिहिस उठाये सिर मा सब दिन, देशभक्ति के भारा।।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


ताशकन्द मा कइसे सुतगिस, जेन कभू नइ सोवै।

देख समाधी विजय घाट के, यमुना रहिरहि रोवै।।

लाल बहादुर लाल धरा के, नभ के चाँद सितारा।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


लालबहादुर शास्त्री जयंती


अनुशासन अउ एकता, भारत रहय अखण्ड।

शास्त्री जी के हे कथन, देशद्रोह हे दंड।।


जय जवान रक्षा करे, जय किसान के मान।

लालबहादुर शास्त्री , नेता रहिन महान।।


जीवन सादा हे जिये, राखिन उच्च विचार।

एक सहीं छोटे बड़े, सब बर सम व्यवहार।।


देश धर्म सबले बड़े, शास्त्री जी के मंत्र।

सब विकास मिलके करव, हाथ करय या यन्त्र।।


लालबहादुर शास्त्री , धरती के हे लाल।

हीरा कस दमकत हवय , भारत माँ के भाल।।


आशा देशमुख

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *स्वच्छता अभियान (सरसी छंद)*

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

गाँधी बाबा के सपना अब,

                         होवत  हे  साकार।

गाँव-शहर के मनखे जम्मों,

                      बनत हवै हुशियार।।


साफ सफाई अपन हाथ मा,

                     समझत हे सब लोग।

संग-संग सरकार इहाँ के,

                     करत हवै  सहयोग।।

आज स्वच्छता के नारा हा,

                          गूँजत  हवै हमार।

गाँधी बाबा के सपना अब,..............


कतको बीमारी हा भगही,

                     मनखे के तन छोड़।

कचरा ले खातू हा बनही,

                    खेती बर मन मोड़।

घर दुवार अँगना मा सुग्घर,

                           छाही बने बहार।

गाँधी बाबा के सपना अब,.............


जघा-जघा कचरा निपटारा,

                            हावै कचरादान।

गली-खोर सब चिक्कन-चाँदन,

                        कर्मठ मोर सियान।।

एक कदम स्वच्छता रखे बर,

                        पारत हँव गोहार।।

गाँधी बाबा के सपना अब,...............

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: *साँची-सुरभि*

*प्यारे बापू को नमन*

~~~~~~

गाँधी जी के कर्म से , ऐसा हुआ प्रकाश ।

दीप्तमान सा हो गया , भारत का आकाश ।

भारत का आकाश , वीरता का परिचायक ।

धन्य धरा यह पूज्य , जहाँ जन्मा वह नायक ।

लेकर अपने साथ , अहिंसा की शुभ आँधी ।

किए देश हित त्याग , समर्पित जीवन गाँधी ।।1।।


सादा जीवन मित व्ययी , सात्विक रहे विचार ।

कहते गाँधी नित रखो , सत्य निष्ठ व्यवहार ।

सत्य निष्ठ व्यवहार , अहिंसा को अपनाओ ।

चरखा चले सुकर्म , जगत का कष्ट मिटाओ ।

सहज सरल मन भाव , दिखावा करो न ज्यादा ।

साँची गाँधी कथ्य , वेश था उनका सादा ।।2।।


गाँधी वादी सोच से , बदलेगी तस्वीर ।

शस्त्र रहे बस प्रेम का , उठे नहीं शमशीर ।

उठे नहीं शमशीर , द्वेष की नहीं लड़ाई ।

बिना तीर तलवार , देश की करो भलाई ।

रखें अडिग निज पाँव , चले कोई भी आँधी ।

सत्य अहिंसा मार्ग , दिखाए प्यारे गाँधी ।।3।।


         इन्द्राणी साहू"साँची"

       भाटापारा (छत्तीसगढ़)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐 


---------- मनहरण घनाक्षरी--------


गाॅधी तोर बेंदरा ह, कोंदा भैरा अॅधरा ह ।

सुने बोले कुछु निहीं, पूछी ला डोलात हे ।


दुनिया देखाए बर, फोटू ला खिंचाए बर ।

रद्दा छोड़ बापू जी के, जयन्ती मनात हे ।


सहीद भगत सिंग, सेखर अउ बिस्मिल ।

गाथा ला सुभाष जी के, लइका भुलात हे ।


सलमान साहरुख, इही मन देथे सुख।

मल्लिका वो दीपिका ला , हिरदे मा बसात हे ।


सबो कोती भ्रष्टाचार, बड़ हिंसा अनाचार ।

धरम इमान बेंच, देस  ला  डुबात हे ।


गाॅधी छाप नोट चाही, सत्ता बर वोट चाही ।

दुखियारी जनता हे, गाॅधी ला बलात  हे ।


गाॅधी चऊॅक नाम धर, मास बेंचो साल भर ।

दारू पानी घलो मिले, नदिया बोहात हे।


सत्ता के सिकारी मन, झूठे व्यभिचारी मन ।

गाॅधी जी के मुरती ला,  माला पहिरात हे ।


राजकुमार चौधरी "रौना"

टेड़ेसरा राजनाॅदगाॅव ।

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 (छन्न पकैया छंद)*


छन्न पकैया छन्न पकैया , गांधी के ओ बानी ।

सदा सत्य के मारग चलके , जियव अपन जिनगानी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , बुरा कभू झन बोलव ।

जब भी बोलव अपन बात ला , मन मा सुग्घर तोलव।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , झन कर अइसे करनी ।

सरग नरक हे ए भुँइया मा , दिखथे बेरा मरनी ।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , नोहे गोठ लबारी ।

भला करे मा मिले भलाई , सुनलव जी सँगवारी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , बात बांधलव मन मा।

जिनगी हे चरदिनिया भाई , का राखे हे तन मा ।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , ये तन हा मिट जाही ।

सदा साँच के संगत करले , राम कृपा बरसाही।।


बृजलाल दावना

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: *दोहा छंद*


--लाल बहादुर शास्त्री जयंती---



पितु हे मुंशी शारदा, अध्यापन के काज ।

माँ रामदुलारी हवय,  घर ला राखय साज ।। 


अपन बहादुर लाल ला, माता  करे  दुलार ।

बालकपन घर के सबो, नन्हें कहँय पुकार ।। 


लाल  बहादुर  शास्त्री,  करिन  देश  उद्धार ।

जन मानस बर हे सदा, लाख-लाख उपकार ।। 


अइसन कारज तँय करे, धरती पुत्र सुजान ।

अमर रही गा नाँव हा, हावस गुण के खान ।। 


मातृभूमि  बर  जान  दे,  बेटा  बने  महान ।

धर- धर आँसू  हा बहे, कइसे करँव बखान ।।


*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला- कोरबा(छ.ग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 "खुश हो जाही बाबा गाँधी" 


सुख सुराज बर सुमता बाँधी।

खुश हो जाही बाबा गाँधी।


हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई।

आवँय सब झन भाई भाई।

सब के सपना करम कमाई।

भारत के बढ़वार बड़ाई।


देख सुभागी जाँगर खाँधी।

खुश हो जाही बाबा गाँधी।


घर-बन राखन साफ सफाई।

स्वस्थ निरोगी उमर पहाई।

सुघर स्वावलंबन अपनाई।

भारत के गुन गौरव गाई।


अनचित ला छाँदी अउ धाँधी

खुश हो जाही बाबा गाँधी 


हमर सुमत ला जग सँहुरावय।

पुरखा मनके मन सुख पावय।

बिखहर मनु के मुँह जर जावय।

बिख महुरा झन घोरे पावय।


नइ उठही नफरत के आँधी।

खुश हो जाही बाबा गाँधी।


संविधान के कहना मानन।

कहिथे का कानून ह जानन।

सहीं गलत चिन्हन पहिचानन।

सच ला सहुँराबो मन ठानन।


घर मा खीर कलेवा राँधी।

खुश हो जाही बाबा गाँधी।


रचना- सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बापू,,,,,,,,,,,,,,,,


नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।

सत्य अंहिसा प्रेम सिरागे, बढ़गे बैरी बरबादी।


गली गली मा लहू बहत हे, लड़त हवै भाई भाई।

तोर मोर के तोता पाले, खनत हवै सबझन खाई।

हरौं तोर चेला जे कहिथे, नशा पान के ते आदी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


कतको के कोठी छलकत हे, कतको के गिल्ला आँटा।

धन बल कुर्सी अउ स्वारथ मा, सुख होगे चौदह बाँटा।

देश प्रेम के भाव भुलागे, बनगे सब अवसरवादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


दया मया बर दाई तरसे, बरसे बाबू के आँखी।

बेटी बहिनी बाई काँपे, नइ फैला पाये पाँखी।

लउठी वाले भैंस हाँकथे, हवै नाम के आजादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


राम राज के दउहा नइहे, बाजे रावण के डंका।

भाव भजन अब करै कोन हा, खुद मा हे खुद ला शंका।

दया मया सत खँगत जात हे, बड़ बढ़गे बिपत फसादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

दोहा

सत अहिंसा के पुजारी , नित करय गा काम ।

संत वो साबरमती के ,दास मोहन नाम।।

देश हित सेवा करय बड़,

रोज देवय ज्ञान ।

युग पुरुष गांधी हरय जी,

कर नमन सम्मान।।


लिलेश्वर देवांगन

गुधेली बेरला बेमेतरा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


विष्णुपद छंद


ऊँचनीच के भेदभाव ला, छोडव अब करना।

बड़े होय अउ चाहे छोटे, सब ला हे मरना।।


भेद छोड़ मनखे मनखे मा, एक समान सबो।

जाँत-पाँत मा भले अलग हन, हम इंसान सबो।।


लाभ उठाये बर कतको मन, राग अलापत हे।

देख ठगावत मनखे मन ला, जीं हा कलपत हे।।


अपन अपन सब करम धरम मा, खुश सब ला रहना।

आँव बड़े मैं अउ तँय छोटे, नइये कुछ कहना।।


कखरो आस्था अउ पूजा सँग, झन खिलवाड़ करी।

अंधभक्त बन फेर इहाँ झन, तिल के ताड़ करी।।


सत्य अहिंसा के मारग मा, रोज हमन चलबो।

 स्वस्थ समाज बनाये खातिर, काम सदा करबो।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*चौपई छंद*


गाँधी जी के कहना मान |

गुण तैं सत्य अहिंसा जान ||

सब मा अलख जगा  दे आज |

आही संगी फेर सुराज ||


गाँधी जी के बंदर तीन |

कइथे सुन बड़हर अउ दीन |

देखे सुने कहे के बात |

समझाइस हे सब ला घात ||


 रद्दा  सत बाबा के प्रेम |

सत्याग्रह अपनाइस नेम ||

लिस आजादी लाठी टेक |

सब बर काम करिस हे नेक ||


टोपी चरखा लाठी ताय |

खादी अस्त्र शस्त्र कस आय ||

 खेदारिस गाँधी अंग्रेज |

राखिस भारत मान सहेज ||


गाँधी करिस देश बर काम |

होइस गाँव शहर मा नाम ||

देके राष्ट्र पिता सम्मान |

गाइस जनता गौरव गान ||


     अशोक कुमार जायसवाल

     सत्र -13

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: सँउहे देव समान।

--------------

(सरसी)


हाड़- माँस के मनखे तन मा ,सँउहे देव समान।

 बापू जी अउ लाल बहादुर, वीर सपूत महान।।


 धोती डंडा चश्मा वाला, दुब्बर पातर देह। 

 दीन-हीन के हितवा मितवा, हिरदे भरे सनेह।

 मानवता के परम पुजारी, राष्ट्रपिता पहिचान।

  हाड-माँस के मनखे तन मा, सँउहे देव समान।


  सत्य-अहिंसा ला नइ छोंड़े, पाये कतको कष्ट।

 दुष्ट फिरंगी मन के शासन ,होइस तभ्भे नष्ट।

 आजादी के अलख जगाये, जागिस हिंदुस्तान।

हाड़-माँस के मनखे तन मा, सँउहे देव समान।


 छुआछूत के घोर विरोधी, चले सदा सदराह।

 जनसेवा के तोर महात्मा ,नइये कोनो थाह।

 कोढ़ी के अंतस मा देखे,बइठे हे भगवान।

 हाड-माँस के मनखे तन मा,सँउहे देव समान।


 कमल सहीं चिखला मा जागे, गुदड़ी के हे लाल।

 जय जवान अउ जय किसान के, ऊँचा  राखे भाल।

 हिंदुस्तानी लाल बहादुर,तैं सच्चा इंसान। 

 हाड-माँस के मनखे तन मा,सँउहे देव समान।


  जब ले चंदा सूरज रइही,अम्मर रइही नाम।

गाँधी जी अउ शास्त्री जी के,  पावन हावय काम।

दुन्नों महापुरुष के 'बादल', करत हवै गुणगान।।

हाड़-माँस के मनखे तन मा ,सँउहे देव समान।

बापू जी अउ लाल बहादुर, वीर सपूत महान।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐

-कुंड़लिया 

गाँधी बाबा


लाठी धर रेगिंस बबा,आइस नवा बिहान।

सत्य अहिंसा ला धरव,गाँधी कदम महान।

गाँधी कदम महान,मौनव्रत अलख जगाइन।

बिना खड़्ग अउ ढ़ाल,देस आजाद कराइन।

सूती धोती मान,अटल ऊखर कद काठी।

खादी बनिस विचार, अमर हे चरखा लाठी।।


(2)


चिंतन गाँधी के करव,राष्ट्र  पिता सम्मान।

राम राज साकार हो,सब लव मन मा ठान।

सब लव मन मा ठान,स्वच्छता लक्ष्य हमर हो।

मोहन के व्यवहार,स्वदेशी चरखा घर हो।

सूती खादी  मान,करव सब धारन तन-मन।

भारत के पहिचान,हवे जी गाँधी चिंतन ।। 

रचनाकार-डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐