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Friday, July 31, 2020

मोबाइल फोन (हेम के छप्पय छंद)

मोबाइल फोन (हेम के छप्पय छंद)

मोबाइल के देख, हवय महिमा बड़ भारी।
करले सबसे गोठ, बता के दुनिया दारी।
शहर होय या गाँव, सबो मेर लगे टॉवर।
धरै हाथ मा फोन, बढ़े हमरो बड़ पॉवर।
पहुँचे झट संदेश हा, बाँचत हे हमरो समे।
सब मनखे ला देख ले, मोबाइल रहिथे रमे।
 
बित्ता भरके फोन, बाँध के सबला रखदिस।
बना एक परिवार, देख दुरिहा कम करदिस।
करव वीडयो कॉल, मया ला सुघ्घर देखव।
हाल चाल ला पूछ, सीख ला कतको लेलव।
बढ़िया कर उपयोग ला, इहाँ ज्ञान विज्ञान हे।
सही गलत पहिचान कर, मनखे बर वरदान हे।

बिन सिम कार्ड फोन, एकठन बस खोखा हे।
बिजली चार्जिंग जान, बिना एकर धोखा हे।
करवा प्लान रिचार्ज, इही एकर बर खाना।
डाटा रखें सहेज, रेम चिप हवय ठिकाना।
नेटवर्क संचार हे, जेकर मुख आधार जी।
अब मोबाइल फोन हे, इहाँ सबो बर सार जी।
-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र-०१
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा (छ. ग.)

Thursday, July 30, 2020

छप्पय छन्द-गुमान प्रसाद साहू

छप्पय छन्द-गुमान प्रसाद साहू 

।।हमर देश के हाल।। 
हमर देश के हाल, देख तो होगे कइसन।
मनखे बदलै रंग, रोज गिरगिट के जइसन।
लड़त हवै जी रोज, खेत बर भाई भाई।
जात पात के आज, बाढ़गे हावय खाई।
रावण छेल्ला घूमथे, आज जेल मा राम हे।
देखव उल्टा नाम के, मनखे मन के काम हे।।

।।छोड़व भेद।।
बनके रहव मितान,सबो ला अपने जानव।
करव कभू झन भेद, हरन सब एके मानव।
जात पात हा आय, नाम बस जिनगी भर के।
अमर बनालव नाम, दीन के सेवा करके।
रंग लहू के एक हे, रग मा सबके जान लव।
ऊँच नीच ला छोड़ दव,सबला एके मान लव।।

।।नारी।।
झन कर अतियाचार, मान के नारी अबला।
हरय शक्ति अवतार, दिखाये हावय सब ला।
नइहे अइसन काम, करय नइ जेला नारी।
नारी बिन हे जान, हमर जिनगी अँधियारी।
नर ले आघू आज हे, नारी जग मा जान ले।
नारी ममता रूप अउ, बेटी लक्ष्मी मान ले।। 

छन्दकार :- गुमान प्रसाद साहू , 
समोदा (महानदी),जिला:- रायपुर छत्तीसगढ़

Wednesday, July 29, 2020

छप्पय छंद - आशा आजाद

छप्पय छंद - आशा आजाद

हमर बस्तर

बस्तर के इतिहास,बतावँव मँय हा सुनलौ।
दक्षिण कौशल नाँव,कहाये सुघ्घर गुनलौ।
काकतीय हे वंश,केन्द्र जगदलपुर हावय।
श्रद्धा हवय अपार,सुघर देवालय भावय।
मूल निवासी मन रहे,हल्बा भतरा गोंड़ जी।
हिरदे बसथे प्रेम हा,ओखर नइ हे जोड़ जी।।

झरना के बड़ रूप,गुफा हा अब्बड़ भाये।
बस्तर महल अनूप,देख मन हा मोहाये।
चित्रकूट के धार,दूध कस दिखथे भाई।
दंतेश्वरी कहाय,उहाँ कुलदेवी माई।
महल ऐतिहासिक हवे,चिन्हारी हे राज के।
कलाशिल्प बढ़के उहाँ,सुघ्घर जम्मो काज हे।।

लोक संस्कृति नीक,परंपरा मन ल भावय।
गौर नृत्य के गीत,पुरुष मिल जुलके गावय।
शैला अउ ककसार,सबो हे नाचा सुग्घर।
हल्बी भाखा नीक,कहय कश्मीर ह बस्तर।
हे घाटी कांकेर के,मन होवय आनंद जी।
सुग्घर जंगल मोह लय,मन गाये मकरंद जी।।

छंदकार - आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छग

Tuesday, July 28, 2020

छप्पय छंद-चित्रा श्रीवास

छप्पय छंद-चित्रा श्रीवास

1.झिल्ली के नुकसान-

झिल्ली ला झन फेंक, खेत हा परिया परही।
गरुआ हा जब खाय,अटक बपुरी मन मरही।।
सड़य गलय नइ देख, बनय नइ खातू मानव।
करथे नाली जाम,अबड़ हे खतरा जानव।।
बंद करव अब बेचना ,सब के जान बचाव जी।
बउरव कागज ला सदा,झिल्ली घर झन लाव जी।।


2.पानी के महत्व

पानी हे अनमोल, जगत ला जिनगी देवय।
बूँद बूँद के मोल,सबो पीरा हर लेवय।।
बरसे बरखा जान,फसल हा बढ़िया होवय।
प्यासा मन के आस,बिना जल जिनगी रोवय।।
सोच समझ के बउर तँय,पानी संकट छाय हे।
मचगे हाहाकार जी,अइसे बेरा आय हे।।

3.ऊर्जा

ऊर्जा देवय रोज, सुरुज तब जिनगी चलथे।
पाके सुग्घर घाम, फसल हा फुलथे फलथे।।
पानी लेवय सोख,भाप बन उड़ तो जाथे।
बन के बादर फेर, अमृत कस जल बरसाथे।।
बिजली देवय कोइला, जेहर घटते जात हे।
सोलर पैनल ले सबो,बढ़िया बिजली पात हे।।

छंदकार-चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़

छप्पय छंद - बलराम चंद्राकर

छप्पय छंद - बलराम चंद्राकर

साधना 

होही गा कल्याण, साध जस अर्जुन साधे।
बोलौ राधेश्याम, जपौ जी राधे राधे।।
प्रभु के गुन ला गाव, छोड़ के जग के माया।
जिनगी ये दिन चार, गरब बर नोहय काया।।
माधव मोहन कृष्ण के, महिमा अपरंपार ये। 
इँकर सरन मा सुख सबे, होही दुनिया पार ये।। 

यातायात 

गाड़ी मोटर कार, सड़क मा चारों कोती। 
दुर्घटना मा घात, बुझावत जीवन जोती।। 
होवत अंग अपंग, सुरक्षा के अनदेखी।
हावै भागमभाग, चलत हन मारत सेखी।।
जानन यातायात ला, पढ़न नियम अउ कायदा।
हम बेवस्था मा रहन, होवै सब ला फायदा।।

सुजान

संगी बनौ सुजान, दाग अप्पड़ के धोवौ। 
सबल बनौं तुम आज, करम के बिजहा बोवौ।।
पढ़ौ लिखौ तुम खूब, पार तब होही नइया।
सीखौ जग के रीत, सुनौं जी दीदी भइया।।
घर परिवार उमंग मा, रहै सदा ये ठान ले।
 अपन गोड़ मा रेंगिहौ, आही सतयुग जान ले।।

मिहनत 

बेरा ला पहिचान, दुबारा नइ आवै ये। 
हवै अबड़ बलवान, कभू गा नइ ठाढ़ै ये।। 
पाछू होबे जान, काल बर करहूँ कहिबे।
कर ले सोचे काम, अगोरा मा झन रहिबे।। 
सपना सच होथे गियाँ, मिहनत ला झन छोड़बे।
हवै जरूरी साधना, नियम धरम झन तोड़बे।। 

हृदय मा भगवान 

कण-कण मा भगवान, हृदय मा डेरा हाबे। 
जप ले सीताराम, कहाँ तैं बाहिर पाबे।। 
भवसागर के पार, हवै जी जाना तोला। 
हो जाही उद्धार, खोज अंतस मा ओला।। 
लीन चरन प्रभु के रहौ, जिनगी अपन उबार लौ। 
भक्ति भाव मा बूड़ के, तन मन अपन सँवार लौ।। 

छंदकार :
बलराम चंद्राकर 
भिलाई छत्तीसगढ़

Monday, July 27, 2020

महान छंदकार भक्तिकालीन कवि गोस्वामी तुलसी दास जयंती विशेष-छंद परिवार के छंद बद्ध भाव पुष्प

महान छंदकार भक्तिकालीन कवि गोस्वामी तुलसी दास जयंती विशेष-छंद परिवार के छंद बद्ध भाव पुष्प

तुलसी के मया मोह –कवित्त (घनाक्षरी)
जनकवि - कोदूराम "दलित"

हुलसी के टूरा ला परे पाइस खार बीच
नरहरिदास जोगी हर नानपन ले
राखिस अपन करा तुलसी धरिस नाव
ज्ञानी ध्यानी जासती बनाइस अपन ले
करिस बिहाव रतना सँग जउन हर
गजबेच सुन्दर रहिस सबो झन ले
लाइस गवन सबो बात ला भुलागे फेर
रतना च रतना रटे लगिस मन ले।

एक दिन आगे तुलसी के सग सारा टूरा
ठेठरी अउ खुरमी ला गठरी मा धर के
पहुँचिस बपुरा ह हँफरत-हँफरत
मँझनी-मँझनिया रेंगत थक मर के
खाइस पीइस लाल गोंदली के संग भाजी
फेर ओह कहिस गजब पाँव पर के
रतनू दीदी ला पठो देते मोर संग भाँटो
थोरिक हे काम ये दे तीजा-पोरा भर के।

पठोए के नाव ला सुनिस तुलसी बाम्हन
लकर धकर घर भीतरी खुसरगे
सुक्खा च सुना दिहस-'नी भेजौं मैं रतना ला'
खूब खिसिया के घर बाहिर निकरगे
सुन्ना दाँव पा के टरकिन दुन्नों भाई दीदी
खारेखार अपन दाई ददा के घर गें
बियारी के बेरा घर आके तुलसी देखिस
रतना के जाना ओला बहुत अखरगे।

लेड़गा बरोबर चिटिक रो-रुवा लिहिस
फेर रातेरात ससुरार कोती बढ़ गे
नदिया के पूरा नाहके खातिर लौहा लौहा
मनखे के मुरदा ला डोंगा जान चढ़ गे
भादों महीना के झड़ी-झाँखर मा हपटत
गिरत वो सराबोर भींज के अकड़ गे
भिम्म अँधियारी मा पहुँच गे ससुर घर
भीतरी निंगे खातिर दुविधा मा पड़ गे।

फेर बारी कोती जा के झाँकिस-झुँकाइस तो
खिरखी ले डोरी ओरमत दिख पर गे
बड़ बिखहर साँप ला वो डोरी समझिस
ओला धर-धरके दुमँजिला मा चढ़ गे
चोरहा बरोबर गइस चुप्पेचाप रतना के
ओतके च बेर निंदरा उखर गे
रतना कहिस छी: छी: अइसन तोर बुध
कोदों देखे अतेक असन लिख पढ़गे।

चिटको सरम नइ लागे बेसरम तोला
पाछू-पाछू दउँड़त आये बिना काम के
गोरी नारी मोटियारी देखके लोभाबे झन
अरे ये तो बने हवै हाड़ा-गोड़ा चाम के
जतकेच मया मोला करथस मोर जोड़ा 
ओतकेच मया कहूँ करते ना राम के
तरि जाते अपन, अपन संग दूसरो
घलो ला तारि देते, नाम लेके सुखधाम के ।

तिरिया के गोठ के परिस अड़बड़ चोट
तुलसी के मया मोह राई-छाई उड़गे
घोलँड-घोलँड के परिस पाँव रतना के
तुलसी के मति दूसरे च कोती मुड़गे
रतना तैं मोर गुरु-आज ले मैं तोर चेला
अब मोर नत्ता भगवान संग जुड़गे
ज्ञान के अँजोर ला देखाये मोला अइसन
कहत-कहत ज्ञान-सागर मा बुड़गे।

तुलसी बनिस उही दिन ले गोसाई झट
चुपरिस गोबर के राख ला बदन मा
पहिरिस तुलसी के माला अउ मिरिग छाला
रामेराम भजत गइस घोर बन मा
करिस दरस भगवान के निचट देखे
रात दिन ध्यान सीता राम मा लखन मा
अइसन रचिस रमायन कि जेकर पढ़े ले
जर जाथे सबो पाप एक छन मा।

रचनाकार - जनकवि कोदूराम "दलित"

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 गोस्वामी तुलसीदास (उल्लाला छंद)

परम भगत ओ राम के, संत महात्मा जे रहै।
नावे तुलसीदास हे, राम कथा ला नित कहै।

रतना के फटकार ले, मिलगे परभू राग हा।
मिटगे मन के पाप हा, जागे सुघ्घर भाग हा।

डूब राम के भक्ति मा, पाये अमरित ज्ञान ला।
रामचरितमानस लिखे, जग पाये पहचान ला।

कासी मा जिनगी कटै, करत राम गुनगान ला।
त्यागे अस्सी घाट मा, जप के राम परान ला।

दया धरम के बात ले, रखै जगत के मान ला।
अहंकार माया मिटै, पढ़ लौ तुलसी ज्ञान ला।

-हेमलाल साहू
छंद साधक सत्र-01
ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा(छ.ग)

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*संत तुलसीदास जी जयंती विशेष*

रामचरित मानस लिखे, जग मा तुलसीदास।
सत्य विजय सद्ज्ञान ले, फइले जगत प्रकाश।।

राम नाम के लेखनी, भक्ति बहय रस धार।
सागर स्याही मान के, महिमा लिखे अपार।।

प्रेरित हो रत्नावली, जाप करिस हरि नाम।
छोड़ मोह माया जगत, प्रभु ला मानिस धाम।।

लखन राम श्री जानकी, प्रभु मा रख विश्वास।
रचना रामायण करिस, लिख लिख तुलसीदास।।

मोहताज जग मा नहीं, तुलसी ख़ुद पहिचान।
असमंजस पर हे बड़े, जन्म गाँव ले मान।।

छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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ताटंक छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

भारत माता के कोरा मा, चित्रकूट नगरी तीरे।
रहय गाँव राजापुर सुग्घर, पहिचानौ धीरे धीरे।।

रहय गाँव मा धर्मपरायण, हिन्दू ब्राह्मण के पारा।
होवय सुग्घर चर्चा रोज्जे, बहय राम रस के धारा।।

संवत पंद्रह सौ चौवन मा, सावन शुक्ला साते के।
राम जपत तैं जनम धरे जी, कोरा हुलसी माते के।।

आत्मा राम ददा ब्राह्मण हे, अउ दाई हुलसी बाई।
पहलावत लइका तुलसी जी, नइहे अउ बहिनी भाई।।

देखिस सब्बो दाँत ल जामे, संसो मा परगे दाई।
ददा घलो अब सोंचे लागिस, हे ये कइसन करलाई।।

लेइस प्राण ददा दाई के, संसो हा अनहोनी के।
कइसे तुलसी करे अँजोरी, बिना तेल अउ पोनी के।।

पाल पोस के चुनिया दासी , लइका बड़े करे लागे।
पाँच बरस के रहय लाल ता, ओखर काल घलो आगे।।

भटकन लागे एती-ओती, तुलसी हा मारे -मारे।
आगे तब नरहरि गुरु बनके, तुलसी ला जेहा तारे।।

रत्नावली संग मा जुड़गे, तुलसी के जिनगानी हा।
मया पिरित बड़ बाढ़े लागिस, लेइस मोड़ कहानी हा।।

परब बखत लेवा के बहिनी, लेगे उनकर भाई हा।
फँसे मया मा तुलसी के मन, बढ़गे बड़ करलाई हा।।

रहे सकिस नइ बिन रत्ना के, तुलसी अपन दुवारी मा।
पूरा पानी पार लगा के, चलदिस रतिहा कारी मा।।

रत्नावली पुछे तुलसी ला, कस आये रतिहा बेरा।
तुलसी कहे तोर बिन मोला, नइ भावै अपने डेरा।।

रत्नावली कहे तुलसी ला, लानत हे अस माया ला।
अधिरतिहा मा खोजत आये, हाड़ मास के काया ला।।

हाड़ मास के काया खातिर, छी छी अइसन माते तैं।
अतके मया राम बर होतिस, सँउहे राम ल पाते तैं।।

रत्ना के उराठ बानी हा, तुलसी ला बड़ दंदोरे।
त्याग मोह नारी कोती के, राम डहर नाता जोरे।।

खुद जागे जग अलख जगाये, सज्जन के महिमा गाये।
मनखे मन ला मनखेपन के, सतमारग ला देखाये।।

गली-गली बगराये तुलसी, राम नाम के गाथा ला।
ऊँच करे तैं दुनियाभर मा, भारत माँ के माथा ला।।

मनखे मन के मूड़ म बाँधे , दया धरम के पागा ला।
जनम-जनम तक छुट नइ पाबो, तुलसी तोरे लागा ला।।

संवत सोलह सौ अस्सी मा, तुलसी जी देहें त्यागे।
फेर रमायन बनके जग मा, जिंदा कस अभ्भो लागे।

छंदकार :- विरेन्द्र कुमार साहू, 
             ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका) , वि.स. - राजिम, 
जि. गरियाबंद, छ.ग.  9993690899

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सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

तुलसी तोर रमायण(गीत)

जग बर अमरित पानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

शब्द शब्द मा राम रमे हे, शब्द शब्द मा सीता।
गूढ़ ग्यान गुण गोठ गँजाये, चिटिको नइहे रीता।
सत सुख शांति कहानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

सब दिन बरसे कृपा राम के, दरद दुःख डर भागे।
राम नाम के महिमा भारी, भाग भगत के जागे।।
धर्म ध्वजा धन धानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

सहज तारथे भवसागर ले, ये डोंगा कलजुग के।
दूर भगाथे अँधियारी ला, सुरुज सहीं नित उगके।
बेघर के छत छानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

प्रश्न घलो कमती पड़ जाही, उत्तर अतिक भरे हे।
अधम अनाड़ी गुणी गियानी, सबके दुःख हरे हे।
मीठ कलिंदर चानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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शकुंतला शर्मा

राम नाम जप ले जिया, कहिथे तुलसीदास। 
मनसा वाचा कर्मणा, धरिन हिया मा आस।
धरिन हिया मा आस, नाम ला मंदिर मानिन। 
आस्था ला आधार, बना के रसदा पालिन।
राम नाम विश्वास, दिनों दिन सदा बढ़त हे।
कविवर तुलसीदास, राम सिय नाम रटत हे।
     
      शकुन्तला शर्मा 
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दोहा - हीरालाल गुरुजी "समय"

राजापुर ओ गांव हा, आवय पावन धाम।
जिहाँ जनम जी लेय हे, जेखर तुलसी नाम।

आत्माराम ददा हवे, दाई हुलसी मात।
जनम धरिस बिन रोय जी, राम राम ला गात।

तन अलकरहा देख के, दाई ददा डराय।
चुनिया के घर छोड़ के, लहुत धाम मा आय।

लइकापन के नेह ला, चुनिया दासी पाय।
उमर पढ़े के होय तब, नरहरि आश्रम जाय।

नाम रामबोला रखय, गुरुवर नरहरि देव।
राम नाम के मंत्र दे, रखय कथा के नेव।

रामचरित मानस रचे, बाबा तुलसी दास।
शिव भोला हा कर सही, करदिस ओला पास।

एक प्रेत हा दिस पता, राम भगत हनुमान।
बजरंगी के संग पा, मिलय राम मणि खान।

चित्रकोट के घाट मा, आसन रोज जमाय।
दर्शन पाके राम के, माथा तिलक लगाय।

असीघाट मा एक दिन, कलयुग देवय त्रास।
विनय पत्रिका मा लिखे, ओखर उपाय खास।

बीते बहुते साल हा, गावत प्रभु के नाम।
राम राम बाबा जपत, पहुंचे रघुवर धाम।

हीरालाल गुरुजी"समय"
छुरा ,जिला- गरियाबंद

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(चोवा राम वर्मा बादल--वीर छंद)

तीरथ राज प्रयाग तीर मा,  राजापुर नामक हे गाँव। तुलसीदास जनम धर आइच, हुलसी माँ के अँचरा छाँव।।

 धर्मव्रती अउ बड़ सद्ज्ञानी,  पिता ब्राह्मण आत्माराम।
 संवत पन्द्रा सौ चउवन मा, बालक जनमिच ले प्रभु नाम।।

  मूल नछत्तर अद्भुत बालक, रहिस दाँत पूरा बत्तीस।
 दासी ला सौंपिच माता हा, अलहन कस ओला लागीस।।

 सरग सिधारिच हुलसी दाई, चुनिया दासी करिच सम्हाल।
 छै बरस के भीतर भीतर, उहू ल लेगे बैरी काल।।

 फेर अनाथ के रक्षा होइच, माँ जगदंबा सुनिच पुकार।
 गुरु नरहरि हा लेगे ओला, अवधपुरी आश्रम के द्वार।।

 शिक्षा-दीक्षा देवन लागिच, धरिच रामबोला के नाम।
 वेद शास्त्र के ज्ञान बताइच,नाम जपावत सीताराम।।

 गुरु आज्ञा ले होगे ओकर, रत्नावली संग गठजोड़।
 लगिच ठेसरा जब तुलसी ला, देइच तब घर बार ल छोड़।।

 तीरथ राज प्रयाग म रहिके,  काशी आगे तुलसीदास।
 प्रेत रूप धरके बजरंगी, आइच तुरते ओकर पास।।

 चित्रकूट जाये ला कहिके, होगे ओहा  अंतर्ध्यान ।
रामघाट मा गोस्वामी ला, बालक रूप मिलिच भगवान।।

 फेर उहाँ ले काशी आगे, तहाँ अवधपुर करिच निवास।
 रामचरित ला सिरजन लागिच, भाषा चुन के अवधी खास ।।

दुई बरस अउ  सात महीना, सँघरा लागिच दिन छब्बीस।
 सात कांड के सिरजन होगे, सामवेद कस जे लागीस।।

 काशी पावन असी घाट मा, कृष्ण तृतीया सावन माह।
संवत सोला सौ अस्सी मा, स्वर्ग लोक के धर के राह।।

 देह त्याग गोस्वामी जी हा, चलदिच प्रभु के पावन धाम।
 नाम अमर होगे जुग जुग ले, जिभिया मा धर सीताराम।।

 धन्य धन्य जे रचिच रमायन, परम पूज्य वो तुलसीदास।
 कलयुग मा मनखे तारे बर, राम नाम के करिच उजास।।

 रामचरित गुन गान करिच वो,जन भाषा मा ग्रंथ बनाय।
 जे हा श्रीरामचरितमानस, वेद शास्त्र के सार कहाय।।

 सरी जगत मा नइये कोनो,एकर जइसे सद साहित्य ।
एमा नवधा भक्ति ज्ञान के, शब्द शब्द मा हे लालित्य।।

 धरम करम के मरम भरे हे, भरे गृहस्थी के व्यवहार।
 साधु संत के रक्षा हावय, निसचर मन के हे संघार।।

शब्द रूप मा जगत पिता के, सरग लोक कस पावन धाम।
 रचना संग रचइता के मैं, हाथ जोड़ के करौं प्रणाम ।।

चोवा राम 'बादल'
(छंद साधक)
हथबन्द, छत्तीसगढ़
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(कुंडलियां छंद)
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तुलसी के मानस हरय, सुघ्घर जीवन ग्रंथ।
देखाथे संसार  ला, राम  राज  के  पंथ। ।
राम राज के पंथ, बताथे  रद्दा  सत  के।
मर्यादा के पाठ, सीख  देथे  सुम्मत  के। ।
धन धन आत्माराम, पिता महतारी हुलसी।
होइस जिंकर सपूत, संत गोस्वामी तुलसी।।
   
          -दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)

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छप्पय छंद - आशा आजाद

तुलसीदास महान,महाकवि ओ कहलाइन।
दोहा रचके श्रेष्ठ,जगत के मान बढ़ाइन।
जनहित ज्ञान अपार,भक्ति के मारग चलके।
बनगिन साहित दीप,आज अउ सुघ्घर कल के।
रामचरितमानस रचिन,भक्तिभाव के धार ले।
बनिन प्रेरना दीप ओ,सुग्घर जनहित सार ले।।

रामलला हे देन,सतसई सुघ्घर लिख दिस।
हे रामाज्ञा प्रश्न,जानकी मंगल गढ़ दिस।
बरवै छप्पय छंद,भाय रोला रामायण।
छंदावली लुभाय,सुघर हे धर्मा निरुपण।
बरवै रामायण लिखिन,रामभक्ति के भाव ले।
संकट मोचन ओ गढ़िन,शिव के मया लगाव ले।।

छंदकार - आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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आल्हा छंद

संत शिरोमणि कहिथे वोला,नाम हवय गा तुलसीदास।
रामायण के रचना करके,जग ला देवय परम प्रकाश।

मूरख से ज्ञानी बनगे वो,सुनिस सुवारी के फटकार।
जइसन तन बर मोह रखे हस,वइसन प्रभु के करलव प्यार।

बिरथा लगिस मोह माया तब,त्यागे संत मया संसार।
बस अंतस मा धुनी रमाके, निराकार ला दे आकार।

एक कथा हे चित्रकोट के,जिहां लगय संतन के भीर।
तुलसीदास घिसय चंदन तो,तिलक लगावत हें रघुवीर।।

जिभिया हा नानुक हो जाथे, कतका गुण ला करय बखान।
तुलसीदास ऋणी जग तोरे,अउ हे तोर ऋणी भगवान।।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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दोहा छंद-मीता अग्रवाल 

रामचरित मानस रचे,लोक मंगल के गान।
कंठहार जन जन बने,तुलसी भानु समान।।

मानस कौशल ज्ञान हे,संजीवनी समान।
मानवता बगरे फरे,कवि तुलसी हनुमान ।।

लोक राग के रागिनी,गावय तुलसी दास।
अंतस भीतर जागथे,राम सिया कैलास।।

विनय पत्रिका मा बसे,दास भाव के मान।
राम खरो के गोठ कर,तुलसी विनय प्रधान ।। 

भक्ति काल के चन्द्रमा, पुन्नी कस उजियार।
घर-घर तुलसीे दास हे,रामचरित आधार।।

रचनाकार-
डा मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
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            *कुण्डलियाँ छंद*

तुलसी जी रचना रचे, रामचरित बड़ पोठ।
घर घर राजा राम के, बारो महिना  गोठ।।
बारो महिना गोठ, कथा जेकर पावन हे।
सुख सम्मत बरसाय, सबो बर जस सावन हे।।
राजापुर हे धाम, दुलारै माता हुलसी।
रतना ज्ञान बताय, बने गोस्वामी तुलसी।।

छंदकार - कौशल कुमार साहू

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Sunday, July 26, 2020

छप्पय छन्द - अजय अमृतांशु

छप्पय छन्द - अजय अमृतांशु

लहूदान :-
करव लहू के दान, बचाना जिनगी हावय।
जउन करय ये काम, खुशी जीवन भर पावय।
पूजत हव भगवान, यहू तो पूजा होथे।
बिना लहू के देख, अबड़ झन जिनगी खोथे।
लहूदान के काम हा, सिरतो देथे जान जी।
अइसन काम ल देख के, खुश होथे भगवान जी।

परिवार :-
आवव जुरमिल काम, करे बर जाबो सब झन।
सुमत रहय परिवार, तभे जी बनही जन धन ।
अब दुरमत के बीज, नहीं हे हम ला बोना।
सुमत रखव परिवार, छोड़ के रोना धोना ।
अपन बुता मा ध्यान रख, जावव झन तुम छोड़ के
मिहनत करना हे धरम, का मिलही मुँह मोड़ के।

मोबाइल:-
मोबाइल बरबाद, करत हे लइका मन ला।
मानत नइ हे बात, बिगाड़त हावय तन ला।
रात रात भर जाग, अपन आँखी ला फोड़य।
खाना छूटय फेर, कहाँ मोबाइल छोड़य।
मोबाइल ला छोड़ही, सुग्घऱ बनही काम हा।
लइका मन पढ़ही तभे, होही जग मा नाम हा।।

छंदकार - अजय अमृतांशु
भाटापारा, छत्तीसगढ़

छप्पय छंद - द्वारिका प्रसाद लहरे

छप्पय छंद - द्वारिका प्रसाद लहरे

(१)योग

योग करव जी रोज, देंह ला पोठ बनालव।
सुबह करव अउ साँझ, रोग ला दूर भगालव।
आसन कोनों होय, लहू के दउँडा करथे।
करथे मन आनंद, सबो पीरा ला हरथे।
आलस दूर भगाय जी, रोज करव सब योग ला।
रूप दमकथे सोन कस, दूर करय सब रोग ला।।

(२)अथान

चुचवावय जी लार, देख के कच्चा आमा।
मँहगा हावय दाम, फेर मँय लेहूँ कामा।
कइसे धरौं अथान, नून बर पइसा चाही।
मँहगाई के मार,मसाला कइसे आही।
अमराई अब नइ दिखे, रोज कटत हे पेड़ जी।
पहिली जम्मो खेत मा, पेड़ लगय सब मेड़ जी।।

(३) छत्तीसगढ़ी भाखा

भाखा गुत्तुर जान, सुहावय सबला भारी।
बोलव सुग्घर गोठ, राख लौ मया चिन्हारी।
बोली भाखा ठेठ, लगे जइसे फुलवारी।
महकत हावय राज, गाँव अउ कोला बारी।
हमरो भाखा जान लौ, सबले हावय पोठ जी।
सब मनखे ला भाय हे, छत्तीसगढ़ी गोठ जी।।

छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा

Friday, July 24, 2020

छप्पय छंद--चोवा राम 'बादल'*

*छप्पय छंद--चोवा राम 'बादल'*

1 जाग

जाग जाग अब जाग, सुते तैं कतका रहिबे।
 दिन मा सपना देख, सबो दुर्दिन ला सहिबे।
 स्वाभिमान के पाठ, पढ़ावय कोन ह तोला।
 भारत माँ के पूत, कहा झन मूरख चोला।
पुरखा मन के मान ला, झन बूड़ोबे आन ला।
ले सकेल सब ज्ञान ला,जमा उहें तैं ध्यान ला।


2 चेत कर

बदलत हवय रिवाज, जमाना ला का होगे।
नइ आवत हे चेत, दुःख पल पल मा भोगे।
कपड़ा लत्ता देख, जिंहा गा इज्जत होही।
बिसर अपन संस्कार, एक दिन मनखे रोही।
अब नवा चाल बेढंग हे, हिरदे अबड़े तंग हे।
रद्दा छूटे परमार्थ के,  रिश्ता नाता स्वार्थ के।


3 परिया परगे

परिया परगे खेत ,नौकरी खोजै बेटा।
 खटिया धरलिच बाप, रोग के  परे सपेटा।
 मिलै नहीं बनिहार ,करै अब कोन ह खेती।
 होगें सबों अलाल, घूमथें वोती एती ।
 शिक्षा होगे बेकार कस, कोरा पुस्तक ज्ञान हे।
 बिन मिहनत के सब मिल जवय, उही म सबके ध्यान हे।


  4  बादर

बादल उमड़ असाड ,सबो के प्यास बुझाथे ।
धरती के सिंगार, पेड़ मन हरिया जाथे।
 भरथे नदिया ताल, मगन मन होय किसानी।
 जिनगी के आधार, अहो ! हाबच वरदानी ।
जोहत रथे किसान हा, तोला तो चौमास मा।
 छींचे बिजहा खेत मा, बने फसल के आस मा।


 5 गाँव

नइ रहिगे अब गाँव  , बँधे सुमता के डोरी।
 राजनीति के खेल, स्वार्थ मा तोरी मोरी।
 बनगे नशा बजार,बिगड़गें लइका छउवा।
 बागडोर जे हाथ,  उही हा होगे खउवा।
 तीज तिहार नँदात हे, चढ़े पश्चिमी रंग हा।
 बदलत हाबय रात दिन, जिनगी के सब ढंग हा।

 6 नेवता 

 पक्का होगे बात, नेवता काली खाहीं।
 सगा पराहीं पाँव , उही दिन लगिन धराहीं।
 सुंदर हवय दमाँद, पैर मा अपन खड़े हे।
 खोले हवय दुकान, किराना अबड़ बड़े हे।
 सुख पाही नोनी उहाँ, मन भीतर विश्वास हे।
  सिधवा समधीजी हवय, रिश्ता सब ला पास हे।


छंदकार--चोवा राम ' बादल'
               हथबन्द, बलौदाबाजार ,छत्तीसगढ़

वैश्विक महामारी कोरोना जन जागरण पर छंद परिवार की कवितायें

वैश्विक महामारी कोरोना जन जागरण पर छंद परिवार की कवितायें

अजय अमृतांसु: चौपाई छन्द
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कोरोना के अकथ कहानी।
संकट मा सब हिंदुस्तानी।।
मिलके सब झन येला छरबो।
हमर देश ले दुरिहा करबो।।

जब जब लोगन बाहिर जाही
कोरोना ला घर मा लाही।
बंद करव जी बाहिर जाना।
कोरोना ला काबर लाना।।

साफ सफाई राखव घर मा।
कोरोना हा मरही डर मा।।
घेरी भेरी हाथ ल धोना।
तब सिरतो मरही कोरोना।।

मास्क नाक मा होना चाही ।
मुँह ला छूना हवै मनाही।।
तीन फीट के दूरी राखव ।
जब जब ककरो ले तुम भाखव।।

शासन के सब कहना मानव।
घर मा रहना हे सब ठानव।।
नोहय कोनो जादू टोना ।
छोड़व जी सब रोना धोना।।

संक्रामक हे ये बीमारी।
मनखे के जिनगी मा भारी।।
जुरमिल के सब येला टारी।
बात ध्रुव गा सब नर नारी।।

पुलिस मीडिया सेवा भारी।
डॉक्टर भगवन के अधिकारी।।
बेरा ला नइ देखत हावय।
सेवा बर सब तुरते जावय।।

खतरनाक हे ये बीमारी।
डरे हवय जी दुनिया सारी।।
मिलके लड़बों किरिया खावव।
सँगी अपन सब फर्ज निभावव।।

हाथ जोड़ के कर अभिवादन।
हाथ मिलाना छोड़व सब जन।।
आये हावय विपदा भारी ।
समझव येला सब नर नारी।।

डटे हवै जी सब्बो कर्मी।
चाहे राहय सर्दी गर्मी।।
संकट के बेरा हे भारी।
सेवा मा हे सब अधिकारी।।

अजय अमृतांशु
भाटापारा

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चंडिका छंद (13 मात्रा , अंत रगण)* अमित

बिपदा भारी आय हे, सब ला गजब डराय हे।
उपजे हावय चीन ले, खानपान रंगीन ले।।

जेवन माँसाहार हे, मनखे उही बिमार हे।
कोविद कोरोना हरे, एखर ले लाखों मरे।।

हवय वायरस हा तने, दवा अभी नइ हे बने।
रूप महामारी धरे, सरी जगत थरथर डरे।।

बात सुजानी झट धरौ, सादा जेवन सब करौ।
साफ सफाई जान ले, बात सियानी मान ले।।

कान नाक मुँह ढ़ाँक जी, झन बाहिर तैं झाँक जी।
खाँसी जूड़ बुखार के, झटपट जाँच बिमार के।।

रोगी ले दुरिहा रहौ, थोरिक दिन पीरा सहौ।
सँघरा झन जुरियाव जी, अलग-अलग झरियाव जी।

कतका करबो सोग ला, अपने सेती रोग ला।
करम-धरम के दोष हे, तभे प्रकृति मा रोष हे।।

जीव चिटिक ये धाँसथे, खलखल बैरी हाँसथे।
रटाटोर कब भागही, भाग हमर तब जागही।।

सरकारी निर्देश हे, तालाबंद विशेष हे।
पालन एखर होय जी, नइ ते जिनगी खोय जी।।

हालत हा गंभीर हे, हम ला धरना धीर हे।
नइ ते बारा बाजही, मउत मुड़ी मा साजही।।

बाहिर फिरना बंद हे, एही मा आनंद हे।
जौन बात ला मानही, तौने छाती तानही।।

*कन्हैया साहू 'अमित'*
भाटापारा छत्तीसगढ़
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*सरसी छंद*

आज जानलेवा बीमारी,कोरोना हर आय।
दुनिया भर मा घूमत हावय, लोगन अबड़ डराय।

छूत वायरस येला जानव,छूवत फइले रोग।
ये बीमारी के कारण ही,कतको होत वियोग।

साफ सफाई खान पान मा, देवव अब्बड़ ध्यान।
धोवत रहव हाथ ला दिनभर,झन छूवव मुँह कान।

आये हे गम्भीर समस्या,बने करव जी चेत।
थोकिन लापरवाही मा ये ,उजड़त शहर समेत।

घेरी बेरी विनती करके,समझावँय सरकार।
विपदा मा सहयोग करव सब,देश गाँव परिवार।

स्वास्थ्य जगत हा जुटे हवय सब,सेवा मा दिन रात।
ये जनता सहयोग करव सब,बिगड़े झन हालात।

समय हवय ये अब्बड़ भारी,जुरमिल देवव साथ।
दुरिहा रहिके करव नमस्ते,झन मिलावव हाथ।

जीतव कोरोना बैरी ले, घर बइठे ही जंग।
बात प्रशासन के मानव सब,नियम करव झन भंग।।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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आल्हा छंद-बलराम चन्द्राकर

कोरोना के कारण जग मा, हवै मातगे हाहाकार ।
चीन देश के बेमारी हा, देखौ आगे हमरो द्वार।।

अजब वाइरस एहर संगी, नइ हे एकर अभी इलाज ।
लापरवाही के कारण ही, बगरत हे दुनिया मा आज।।

रोग संक्रमण के कोरोना, हर लिस आज हजारों प्राण।
त्राहि-त्राहि जग मा होगे हे, बेबस होगे हे इंसान।।

मनखे ले मनखे मा जाथे, रोगी ले जब तन छू जाय।
रहै फासला हवै जरूरी, हे बचाव के एक उपाय।।

लक्षण एकर दिखथे संगी, सर्दी खाँसी तेज बुखार।
सावधान हो जावन हम जी, छींक आय जब बारंबार।।

घर ले बाहिर झन निकलन जी, भीड़भाड़ ले राहन दूर।
करन गोठ हम दुरिहा रहिके, रद्दा बाट न जावन टूर।।

सतर्कता ले टरही संकट, इही एक ठन हे उपचार।
करबो जब एकांतवास हम, तब निरोग रइही परिवार।।

साबुन सेनेटाईजर ले, साफ रखन गा संगी हाथ।
जनता कर्फ्यू सार्थक हे जी, घर के देव नवाँवन माथ।।

हाथ मिलाना गला लगाना, अउ छूना नइ हे जी पैर।
जै जोहार अभी दुरिहा ले, चेत रहे मा सब के खैर।।

लोग विदेशी चाहे देशी, नइ सटना हे बिल्कुल तीर।
अनुशासन अनिवार्य हवै जी, मन मा राखन थोकन धीर।।

राहन दूर बजार हाट ले, सख्ती हे शासन निर्देश।
कहना हे डाक्टर मन के जी, निगरानी सब करन विशेष।।

*मोटर रेल जहाज बइठना*, अउ पंगत के करन तियाग।
सैर-सपाटा करन अभी झन, घर के खावन रोटी-साग।।

टर जाही ये गिरहा संगी, राहन सबझन सजग सचेत।
हे लड़ना जी डरना नइ हे, ए बलराम कहै गा नेत।।

छंदकार :
बलराम चंद्राकर
भिलाई छत्तीसगढ़

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 ।।आल्हा छंद।।

घुमव फिरव झन बाहिर जादा, राहव घर मा सबझन साथ।
कोरोना ले बचहू भइया, धोवव घेरी बेरी हाथ।।

करो सफाई कोना कोना,घर के अपन सबो हा आज।
मिलके हाथ बटावव संगी,करव नही गा थोरिक लाज।।

दुरिहा दुरिहा सबझन राहव,अइसन डॉक्टर बात बताय।
बचबो कोरोना ले भइया, करबो जब ये हमन उपाय।।

जावव झन गा काम बुता मा,कोरोना ले तो डर जाव।
घर के भीतर रहिके संगी,जान अपन गा सबो बचाव।।

बासी खाना ला झन खाहू, खावव बढ़िया ताते तात।
गरम गरम गा पीहू पानी,तब तो जाके बनही बात।।

मिलना जुलना बंद करव अब,छोड़व सबो मिलाना हाथ।
आवत जावत गली खोर मा,राखव गमछा हरदम साथ।।

आय महामारी जी येहर,रोग भयंकर भारी जान।
हल्का मा झन लेवव येला,लेवत हावय सबके प्राण।।

रचनाकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद (समोदा) जिला रायपुर छत्तीसगढ़
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दोहे :- जगदीश "हीरा" साहू*

जब ले चालू होय हे, कोरोना के त्रास।
सबके धंधा काम के, होगे सत्यानाश।।

नखरा झन कर मानले, संगी मोरे बात।
घर मा रहि के दूर कर, कोरोना के रात।।

रइहौ घर भीतर सबो, लइका बबा सियान।
कोरोना के मार हे, झन बन तैं अनजान।।

माया कस बगरत हवय, कोरोना के रंग।
जाने कब जी छूटही, ये पापी के संग।।

जाबे झन परदेश जी, आही सँग मा रोग।
रोग लगे ये ढीठ हे, अब का करबो सोग।।

रोकव झन शुभ काम ले, भाई कहना मान।
तैं शासन के कोष मा, जी भर करले दान।।

गाँव गली सुन्ना दिखे, मनखे सबो लुकाय।
मार परय भारी शहर, पीट पीट सुधराय।।

सोझ सोझ बोलत हवँव, करव भले जी रीस।
करहुँ शिकायत फोन ले, मरबे चक्की पीस।।

राज काज सब ठप्प हे, शासन कहना मान
आज राजधानी घलो, लागत हवय विरान।।

चेत लगा घर के अभी, भीतर हीन बताय।
नून तेल मिर्चा सबो, घर के गए सिराय।।

लकर धकर घर ले गए, कइसे आज लुकाय।
बाहिर तोला पोठ जी, मार मार सिहराय।।

यक्ष प्रश्न मन मा उठे, कोन आज समझाय।
कर्फ्यू कब तक जी रही, देख समझ ना आय।।

नपे तुले बोलव सबो, आज समय ला भाँप।
गलत जानकारी इँहा, बनही बिखहर साँप।।

हार जीत के खेल मा, लगगे सबकुछ दाँव।
भूख मरत हे पेट हा, अउ उखरा हे पाँव।।

बड़े बड़े संकट घलो, सुनता ले  टल जाय।
झेलव संकट मान के, छोटे बड़ तड़पाय।।

जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)
कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार

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 कमलेश्वर वर्मा जयकारी
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जग मा आहे नवा विषाणु।समझव येला बम परमाणु।।
हे कोरोना येकर नाँव।डरवा देहे शहर व गाँव।।

जान हजारों लेलिस छीन।निकलिस येहर जब ले चीन।।
सावचेत हो भाई मोर।झन मानव येला कमजोर।।

बाहिर कम निकलव सब लोग।मास्क घलो कर लव उपयोग।।
हैंडवॉश-साबुन रख साथ।घेरीबेरी धोवव हाथ।।

हाथ मिलाना ला अब छोड़।छूवव झन जी ककरो गोड़।।
भीड़-भाड़ ले राहव बाँच।सकलावव मत कोनो पाँच।।

साफ-सफाई रख घर-द्वार।अपनावव सब शाकाहार।।
जन बर जन होवव हितवार।मन के डर ला झट ले टार।।

शासन के मानव सब बात।राहव सजग अभी दिन-रात।।
जुरमिल जम्मों कर दव वार।तब कोरोना के हे हार।।

रचना--कमलेश  कुमार वर्मा
          साधक-छन्द के छ
भिम्भौरी, बेमेतरा

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: कुंडलियां छंद-कोरोना

कोरोना वायरस हा,करत हवय अतलंग।
समझे अपने आप ला,सबले बडे़ दबंग।
सबले बडे़ दबंग,सदा ये नइ रह पाही।
होही एखर नाश, सुघर सुख घर-घर छाही।
कोरोना आतंक,भागही कोना कोना।
पानी पीयव तात,हारही तब कोरोना।।

द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़
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कोरोना वायरस  (आल्हा छंद)

फइले हे कोरोना संगी, मच गेहे गा हाहाकार।
चीन देश ले आये हावय, एकर आघू सबो लचार।।

देश बिदेश सबो जग फैलत, मनखे हावय सब परशान।
खतरा हावय अब्बड़ येहा, वैज्ञानिक मन हे हैरान ।।

हाथ मुँहू ला धोवव सुघ्घर, साबुन सोडा रोज लगाव।
साफ सफाई घर मा राखव, भीड़ भाड़ मा कभू न जाव।।

सरदी खाँसी छीक ह आथे, डाक्टर कर तुरंत ले जाव।
पानी ला उबाल के पीयव, कोरोना ला दूर भगाव।।

हाथ मिलाना छोड़व संगी, कर धुरीहा ले नमस्कार ।
मुँहू कान ला बाँध के राखव, कोरोना के होही हार।।

माँस मदिरा पीना छोड़व ,  ताजा भोजन घर मा खाव।
बरतो सब सवधानी भैया , कोरोना ला झन डर्राव।।

छंदकार
*महेन्द्र देवांगन "माटी"*
*पंडरिया छत्तीसगढ़*
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(आल्हा छंद)

विनती करथंव जम्मो झन के, सुन लव आरुग कहना आज ।
तुँहर हाथ मा भाग देश के, रखलव जुरमिल एखर लाज।

अजब कहानी चीन देश के, खाथे साँप कुकुर के माँस ।
पर्यावरण उजारत हावय, अटकावत धरती के साँस ।

उही चीन के चमगेदरी ले, उपजे हवय जगत के काल ।
बगरे हावय दुनिया भर में, बनगे हे जी के जंजाल ।

कोरोना वाइरस कहाथे, कोनो नइ पावत हे पार ।
बात कहत बगरत हे जगभर, करथे जिनगी बंटाधार ।

देख वाइरस कतका खतरा, मरघटिया कस लगे बुहान ।
बात मानलव सब सरकारी, आज बचालव हिन्दुस्तान ।

चीन फ्रांस ब्रिटेन अमेरिका , इटली रसिया अउ जापान ।
दुनिया भर मा पहिदे हावय, ले ले हावय हजारो जान ।

येखर ले बँचना हावय ता, सुनलव आरुग के ये गोठ ।
घरघुसरा कस बइठव घर मा, अंतरमन ला करलव पोठ ।

घेरी भेरी छूवव झन तुम, मुहूँ नाक अउ आँखी माथ ।
रगड़-रगड़ साबुन में धोवव, जेवन के पहिली तुम हाथ ।

अउठ हाथ के दुरिहा राहय, मनखे मनखे मनके बीच ।
नवा जिनिस कुछु छिये हाथ मा, पहिली सेनिटाइजर सींच ।

हवन, प्राथना, पूजा वंदन, शबद कीर्तन पढ़व नमाज ।
घर मा बने मनावव रब ला, झन जुरियावव भाई आज ।

हाथ मिलाना, मिलना जुलना, बन्द करव सब संगी मोर ।
बिन बूता के आना जाना, जीना करही मुश्किल तोर ।

देश बन्द हे पुलिस खड़े हे, बैंक खुले हे अउ बाजार ।
दूध दवा अउ गैस बिसालव, नून तेल अउ चाउर दार ।

लगथे सुख्खा खाँसी, सरदी, साँस अटकना अउ बुखार ।
तुरत डॉक्टर ला देखावव, दिखय कहुँ ये लक्षण चार ।

पुलिस डॉक्टर समाज सेवी, सेना वैज्ञानिक के पाँव ।
जेन करोना संग लड़त हे, जम्मो झन ला माथ नवाव ।

थर थर काँपत हे जग सारी, माते हावय हाहाकार ।
ईशर, अल्ला, रब अउ ईसा, करही हमरो डोंगा पार ।

ईश्वर साहू 'आरुग'
ठेलका, बेमेतरा

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(विष्णु पद छंद)

साफ सफाई करलव संगी, साँची बात कहे।
सूक्ष्म जीव हा बैरी हावय,विपदा घोर सहे।।

गुनगुन पानी पीयव हरदम, धोवव हाथ दुनो।
सादा भोजन बढ़िया होथे, शाकाहार चुनो।।

घर से निकलव अब झन संगी, लाकडाउन लगे।
सूझ बूझ़ ले कोरोना हा,जल्दी दूर भगे।।

दीन दुखी ला भोजन देवव,ओखर पेट भरे।
अन्न दान ले अब तो कोनो, नइतो भूख मरे।

डॉक्टर नर्स पुलिस अउ फौजी, इंखर मान रहे।
मानवता के सेवा खातिर, कतको कष्ट सहे।।


चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
छत्तीसगढ़
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आशा आजाद: रोला छंद - जन जागरण संदेश

कोरोना हे छाय,देश मा जानौ भाई।
देख वायरस आज,मात गे अब करलाई।।
बिगड़े हे हालात,नास छिन भर मा करथे।
लग जावय ये रोग,कतक मनखे मन मरथे।।

फैलाइस हे रोग,चीन हा देखौ जानौ।
खाइन कच्चा मांस,रोग नावा पहिचानौ।।
फैलत तुरते अंग,हाथ झन जान मिलाहू।
मास्क ल पहिरौ रोज,ज्ञान के बात सिखाहू।।

भीड़ भाड़ ले दूर,रहौ ए सब बर भारी।
जन जन बगरे खूब,वायरस के बीमारी।।
मुँह मा रखौ रुमाल,साथ झन किटानु आये।
बाहिर झन जी जाव,छुवत ये रोग लगाये।।

खाँसी संग जुकाम,हवय जी इही निसानी।
गला करे हे जाम,सांस के बड़ परसानी।।
चमगादड़ अउ सांप,खाय हे चीनी मन जी।
जहर बरोबर आय,बिगड़ गे सबके तन जी।।

शहर शहर अउ गाँव,देश के जम्मो कोना।
कलपत अब्बड़ मान,देख बगरे कोरोना।।
धोवौ अपने हाथ,रोज साबुन ले भैया।
धरलौ करलौ चेत,देश के सबो रहैया।।

घर मा रखहू ध्यान,गरम पानी ला पीहू।
सतर्कता के साथ,ध्यान रखहू ता जीहू।।
करदौ पूरा बंद,चीन के खई खजाना।
बिगड़ जथे हालात,परय पाछु पछताना।

अनुसासन के रोक,आज ये लग गे हावै।
देवै सुघर सुझाव,मनुज घर भीतर जावै।
करथे हित के गोठ,संक्रमित नइ होना हे।
बाहिर ले जब आव,हाथ ला नित धोना हे।।

रोकथाम के काज,करत हे डाक्टर सुनलौ।
कहिथें जेन उपाय,ध्यान धर ओला गुनलौ।।
सर्दी छींक जुकाम,जाँच खाँसी के करहू।
रखके मनखे चेत,स्वस्थ तन मन ला रखहू।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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 *कोरोना* - *दोहालरी*
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 कोरोना सुरसा असन,मुँह फइलावत जाय।
एकर परे चपेट में, दुनिया  भर घबराय। ।
ए बिपदा के सामना, कर बन के हनुमान।
समझ सावधानी दिखा, तब होही कल्यान।।
 कोरोना के  मार ले, सिहरत  हे  संसार।
सावचेत रा तैं सगा, अउ हिम्मत झन हार। ।
भारत के संस्कृति हरय, निर्मल सुघ्घर साँच।
एला  अपनाके  तहूँ, कोरोना  ले  बाँच। ।
 बन के घरखुसरा सगा, राखन मन मा धीर।
तब सुख अउ आनंद के, खाबो गुरतुर खीर।।
अंतस रहय सजोर अउ,झन होवन भयभीत।
तब कोरोना कर जबर, जंग ल पाबो  जीत। ।
 घर ला दुनिया मान के, घर मा रहव सियान।
अबड़ जरूरी हो तभे, बाहिर जाव सुजान । ।
तोप नाक मुँह रेंगहू , दूरी रख के  मीत।
तब कोरोना हारही, भारत  जाही जीत। ।
     --दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)

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मीता अग्रवाल: सरसी छंद- मीता अग्रवाल

कोरोना

जगत सरी बिलमाय हवय जी,रोग दोख के घात।
कइसे बाँचे  जिनगी हमरे,मन मन सोचे बात।

राह बने आसान सबो के,मानो शासन बात।
कोरोना वायरस हवे जी,करथे छुपके घात।

गोड़ हाथ मुँह  धोवव हरदम, रक्षा अउ उपचार।
कोरोना हा दूर भगय जी,सुरता रखहूँ यार।

लोक लाज अउ धरम करम ला,आज फेर अपनाय।
संस्कार के संग सदा जी,मन ला दे हरषाय।

 रोना धोना छोड़व संगी, नसा नास के द्वार ।
संगी कोरोना हा फइले,रक्षा के हे भार।

राह पड़े हे सुन्ना सब्बो,बंद पडे हे द्वार ।
घर घुसरा बनके बइठे मा,जिनगी  के हे सार।

तोर मोर के फेर पड़े हे, आज सकल संसार ।
कोरोना अस बीमारी हा,बाँधिस घरअउ द्वार ।

जतन राख लो लइका बडका,कोरोना के मार।
ज्यादा इही प्रभावित होथें, बंद राख लव द्वार ।

रेस टीप कस खेल खेल मा,बगरत हावय रोग।
बाहिर ले आवत महमारी, भोगत हावय लोग ।

ठंडक ले बाचव जी सब्बो,गरम बना के खाय।
बोरे बासी झन खाहू जी, बिकट समय हे आय।

यमराजा के लेखा जोखा,गड़बड़ धड़बड़ होय।
हडबड हडबड भइसा चघना,भूलें   राजा खोय।

थरथर काँपे तनमन संगी,कोरोना सुन नाम ।
करव योग जी रोग भागथे,कौड़ी लागे दाम।

यमराजा के लेखा जोखा,गड़बड़ धड़बड़ होय।
हडबड हडबड भइसा चघना,भूलें   राजा खोय।

इहाँ उहाँ के भेदभाव ले,रोग ढीठ ना जाय।
मेल जोल ला  बंद करव जी, हावे इही उपाय ।

नाँव गाँव मा मनखे भूलें, रिश्ता नाता खास।
कोरोना के लाॅक डाउन ह,सब ला कर दिस पास।

नान नान लइका मन घर रहिके, करत हवे परशान।
फुगडी बिल्लस घर मा खेलय,बढे खेल के मान।

राखव हरदम साफ सफाई, धोवव साबुन हाथ।
कोरोना से बाँचे बर जी,मास्क राख साथ।

 पल मा तोला पल मा मासा,जिनगी के हे रीत।
खेल खेल मा बाढत जाही,छंद राग प्रति प्रीत।

सब ले बढ़िया  छत्तीसगढ़िया,खाय पीय अउ बोय।
कोरोना ले बाँचे बर गा, चघा साँकरी  सोय।

डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

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 मोहन मयारू: (चौपई छंद)*

सुनलव संगी मोर मितान ,
 साफ सफाई मा दव ध्यान ।
कोरोना  फइले  हे जान  ,
 संकट  मा  हे सबके प्रान ।।

फइलत हे भारी जी रोज ,
 रहव घरे मा सब झन सोज ।
कहत हँवव तँय कहना मान ,
 कोरोना घातक हे जान ।।

बाहिर मा जादा झन जाव ,
साफ सफाई ला अपनाव ।
रहव अपन परिवारे संग ,
जीतव कोरोना ले जी जंग ।।

साबुन ले जी धोवव हाथ ,
रहव घरे मा सब के साथ ।
सफल लॉकडाउन जी होय ,
 कोरोना वायरस ग रोय ।।

कहिथे ग महामारी आय ,
 बिन उपाय के ये नइ जाय ।
स्वच्छता ला जे अपनाय ,
 बड़े बिमारी उही भगाय ।।

रखव सफाई अँगना खोर ,
 कोरोना के कनिहा टोर ।
जावँय कोरोना के नाम ,
 सोच समझ के करबो काम ।।

सुग्घर स्वच्छता अभियान ,
 झन बनहू संगी अनजान ।
येला जम्मो झन अपनाव ,
अपन संग परिवार बचाव ।।

                     मोहन कुमार निषाद
                 गाँव - लमती , भाटापारा ,
                जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

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 महेंद्र बघेल: चौपाई छंद:-

कोरोना के आड़ मा

*इहाॅं लाॅक डाउन हवय,काम काज हर बंद।*
*घर के भीतर आदमी, होगॅंय शक्कर कंद।।*

जब आइस कोरोना बइरी,अब्बड़ मताइस येहर गइरी।
रतिहा बब्बा परगट होइस,येला सुनके मन हा रोइस।
मटक मटक के मारिस फंटा,बचे रिहिस जी चारे घंटा।
अपने घर में सबे धॅंधागे, सोच सोच के जी कउवागे।
कामकाज में लगगे तारा,कमिया मन के बजगे बारा।
कामचोर के किस्मत जागिस,छुट्टी ला मनचाहा पागिस।
सबो डहर होवय करलाई ,नहीं मिलिस जी कहूॅं दवाई।
खोजत खोजत डॉक्टर गुनिया,भटकत हावय सारी दुनिया।

*मूड़पुलुस लउठी धरे,ठाढ़े पुलिस जवान।*
*उतियाइल के पीठ मा, छोंड़य लोर निसान।‌।*

बिना काम जे आवय जावय,धरके उन ला नॅंगत ठठावय।
कागजात बर पहिली रोकें,मिले नहीं तब कस के ठोकें।
अब्बड़ दिन मा पाइन मउका,रहि रहि भाॅंजिन मन भर चउका।
खुलेआम ये हाथ सफाई ,झार रझारझ करें धुलाई ।
जब-जब देखे तीन सवारी,छूट बखानैं फूहर गारी।
तब उतार के गिन गिन कूटे,भला गोड़ अउ पसली टूटे।
हाथ जोड़ वो गलती माने,तभो सिपाही लउठी ताने।
नाक कान में मास्क लगाके, काम करत हें जान बचाके।

*घर के भीतर मा कहाॅं, अब सोशल डिस्टेंस।*
*खई खजानी देखके, भूलत कॉमन सेंस।।*

आये हे अलहन बड़ भारी, हलाकान मा दुनिया सारी।
गुटुर मुटुर घर मा रहि रहिके,टेम पहावत सुख दुख सहिके।
चना फुटेना घर मा खोजे,किसम किसम के खावॅंय रोजे।
खानपान के दिन भर चरचा,रॅंधनी घर के बाढ़य खरचा।
चुट ले मारे सब हुसियारी,का करही गृहणी दुखियारी।
होवय सबके तन हा थुलथुल, खाके गुरहा भजिया गुलगुल।
जभे बने जी  नरिहर लाड़ू,तभे लगावय पोंछा झाड़ू।
फकत खाय के चिन्ता भारी,टेंक जथें जी धरके थारी।

*घर दुवार के गोठ ला,कतका करॅंव बखान।*
*बड़ जल्दी उरकत हवय, बेसन गहूॅं पिसान।।*

सास बहू के कथा कहानी,भरय लाॅक डाउन मा पानी।
कहूॅं मरद घर मा रहि जावय,दूनो झन दिन भर भुॅंभवावय।
भूलावत अब निंदा चारी, चुप्पे हें कलकलहिन नारी।
बंद होय हे अब सकलाना ,पटर पटर दिन भर बतियाना।
मइके मा बड़ फोन लगावय ,नवा रिसेपी उहिंचे पावय।
गोसईन ला मिलगे मौका ,आधा बॅटगे चूल्हा चौका ।
गोसइया जब बर्तन माॅंजे,खड़र खड़र तब रॅंधनी बाजे।
रउताइन के पइसा बाचय ,सोच सुवारी ठुमके नाचय।

*कोरोना के ताव हर, कइसन करदिस घाव।*
*सड़क बीच मजदूर हर, भुगतिस सबो अभाव।।*

कठिन हवय मजदूर कहानी,उकर कोन समझय जिनगानी।
काम करे मजदूर कहावय,सत इमान ले भूख मिटावय।
जड़िस कारखाना मा ताला, भविस इकर तब होइस काला।
घाम प्यास मा रेंगत जीना,रोटी खातिर दुख ला पीना।
जीभ लमा के मुॅंहुॅं ला चाॅंटिस,तब अतड़ी ला पीरा बाॅंटिस।
छल बल ला थोरिक नइ जाने, काम कमाई बस पहिचाने।
गढ़य रोज रोटी के किस्सा,सबके सुख मा इकरो हिस्सा।
कलपत निकलिस समय विकट जी, घर के बाहिर मौत निकट जी।

*आइन उड़त जहाज में, पइसा वाले पूत।*
*तब गरीब बर ट्रेन बस ,कइसे होइस छूत।।*

जाॅंगर टोड़ कमाथे कमिया,इकरे खातिर सुग्घर दुनिया।
बरस तिहत्तर बितगे भाई, तबले ये कइसन हे खाई।
राजा धरले तोरे बाना ,मिले पेट भर सबला खाना।
भूख हरे बड़का बीमारी,दिखे कभू ना इही लचारी।
माॅंग किराया अब झन खेदव,घर बाहिर इनला छत देदव ।
इकर भरोसा तॅंय व्यापारी,इही बनाथें महल अटारी।
कोरोना के अकथ कहानी,चेत रखत कटही जिनगानी।
टीका फाॅंदा येकर आही,धीर बाॅध तब यहू भगाही।।

*कोरोना के आड़ मा, होवत भ्रष्टाचार।*
*अबतो ऑंखी खोल के, कर लव सोच विचार।।*

महेंद्र कुमार बघेल

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(  छप्पय छंद )
-------------------राधेश्याम पटेल
     
आय  बिपत  हे  आज ,
       होत हे जग मा खलभल।
कोरोना   के   पाँव  , 
      बढ़त हे आघू  पल पल ।।
सोच  समझ सब  फेल ,
      होत    हे    संसो    भारी ।
कब  का  जी  हो  जाय ,
      होत  हे  घर  घर  चारी ।।
चेत  लगा के हम करी ,
      ओही  हवय  उपाय  जी ।
मुँह बाँधी दुरिहा रही , 
       शासन दिहे बताय जी ।।

मुक्ति  के  इही  सार  ,
        करे  बर  परही  बारन ।
दुसर  भरोसा  छोंड़  , 
        नई   ये  एखर   मारन ।।
छोंड़ी मन के  साध  ,
        अभी तो  बेर ल  काटी।
साँस बिना  बेकार  , 
         सबो जी कँचरा माटी।।
जरुर करोना भागही,
         ठाने  परन बिचार  ले ।
बाँध झिपारी ला रखव,
       भिथिहा छेंक झिपार ले।।
                                   
                                 ---रचना
                     राधेश्याम पटेल
                   तोरवा बिलासपुर

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Thursday, July 23, 2020

दोहा छन्द - राम कुमार चन्द्रवंशी

दोहा छन्द - राम कुमार चन्द्रवंशी

भुइयाँ सुन्ना रुख बिना,तुलसी बिना दुवार।
कोठा सुन्ना गउ बिना,बेटी बिन संसार।।

काटव झन तुम पेड़ ला,धरती हरा बनाव।
मिलही सब ला फर सदा,बिरवा चलव लगाव।।

तुलसी,आँगन मा रहे,मच्छर पास न आय।
 सब ला दिन अउ रात मा,ऑक्सीजन पहुँचाय।।

दूध-दही हर गाय के,जग मा हे अनमोल।
धरती के अमरित हरे,संग न ककरो तोल।।

बेटी जे घर मा रहय,घर मा रौनक आय।
मइके अउ ससुरार के,शोभा सदा बढ़ाय।।

जग मा लक्ष्मी तीन हे,नारी,धरती,गाय।
ये तीनों के रूठना,भारी विपदा लाय।।

जब नारी के नैन ले,निकले जल के धार।
पाँव पसारे दुख सदा,बिखरे नित परिवार।।

जब-जब धरती माँ रिसे,जग म रोस देखाय।
भुइयाँ मा भूकम्प कस,विपदा भारी आय।।

गउ माता के रूठना,बड़ दुखदाई होय।
धरती मा मनखे सदा,दूध-दही बर रोय।।

छन्दकार - राम कुमार चन्द्रवंशी
 ग्राम पोष्ट - बेलरगोंदी(छुरिया)
  जिला-राजनांदगाँव
  छत्तीसगढ़

छप्पय छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

छप्पय छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
             
                    (१)
दारू पीके आय, मंदहा घरवाला हे।
घरवाली बड़ रोय, टूटहा वरमाला हे।।
कइसे जिनगी होय, बतावँव काला मँयहा।
रोवत बोलय छोड़, पिये बर दारू तँयहा।।
नशा नाश के जड़ हरे, तज के सुख ला पाव जी ।
नशा मुक्त जिनगी बिता, शाकाहारी खाव जी ।।

              (२)
नालायक हे पूत, बाप मुड़ धर के रोवय।
पत्नी बर दय फूल, मातु बर काँटा बोवय।।
दाई ददा ल मार, कहाथे सरवन बेटा ।
अपन सुवारथ साध, परे हे ससुर सपेटा ।।
सेवा माँ अउ बाप के, करके फर्ज निभाव गा।
बिन सेवा के पूत हा, कब सुख पाय बताव गा।।

                (३)
दुख कोनो झन पाय, बने सब सुख मा रहितिस।
अँधियारी मिट जाय, बने हे जिनगी कहितिस।।
कइसे करँव बताव, पार नइ पावँव सुख के।
सब मिल करव सहाय, दबा दव टोंटा दुख के।।
ये जग दुख के खान ये, सुख के झन कर आस जी।
दया मया सब ले रखव, सबके बनहू खास जी।।

               (४)
झन काटव गा पेड़, नहीं ते सब पछताहू।
ऑक्सीजन नइ पाव, कहां ले जिनगी पाहू।।
बरसा नइ तो होय, मिले नइ खाना दाना ।
धरही सब ला रोग, करय का आना-जाना।।
जीवन सब ला देत हे, येला बिरथा जान झन।
गुण येकर सब जान लव, छइँहा अउ फल पात हन ।।

              (५)
बेटी बिन संसार, सून हे मरघट जइसन।
काबर देथे मार, भ्रूण ला पापी कइसन ।।
दरद दया नइ आय, बाप महतारी मन ला।
कइसन ओकर जीव, मारथे बेटी तन ला ।।
बेटा बेटी भेद का, मन में ज्ञान उतार ले।
माँ बहिनी बाई कहाँ, पाबे बेटी मार के ।।

रचनाकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम -तुलसी (तिल्दा-नेवरा) जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़)
 सचलभास क्रमांक- ९३००७१६७४०

Wednesday, July 22, 2020

छप्पय छंद- दिलीप कुमार वर्मा

छप्पय छंद- दिलीप कुमार वर्मा

कलजुग
धरम करम के बात, आजकल कहाँ सुहाथे।
जेला जे रुच जाय, तेन तेला अब खाथे।
नइ हे पूजा पाठ, मिलय नइ दान करइया।
ठग होगे भरमार, खरा गे कलजुग भइया।
देख ताक रइहव सबो, अजब जमाना आय जी।
हंस इहाँ दाना चुगय, कँउवा मोती खाय जी।

गाँव
 माटी के दीवार, खदर के छान्ही राहय। 
मया पिरित के गाँव, देवता रहना चाहय।
नदिया झिरिया ताल, रहय बरछा अमरइया।
खेत खार खलिहान, कुँआ बौली तक भइया।
अब वो घर ना द्वार हे, नइ हे मया दुलार जी।
लालच सब ला पेर दिस, होगे बण्ठाधार जी।

बादर
बादर घपटत आय, छाय गे कारी कारी।
तुरते सुरुज लुकाय, होय दिन मा अँधियारी।
गरजन के हे शोर, चमक चम बिजुरी चमके।
लगथे गाज गिराय, कड़क के भारी दमके।
बादर फट जाही लगे, अइसन होवय शोर जी।
बरसय पानी जोर से, नदी बने हे खोर जी।

पानी
पानी हे अनमोल, पता गरमी मा चलथे।
जानत हव हालात, जिंदगी कइसे पलथे।
आये हे बरसात, नदी नरवा ला छेंकव।
राखव भर के बांध, समुद्दर मा झन फेंकव।
जिनगी के आधार ये, साँच कहत हँव जान लव।
पानी बिन संसार मा, जीवन नइ हे मान लव।

चिखला
चिखला ला झन देख, जान का ओखर गुन हे।
फदके हवय किसान, काम मा बहुत बिधुन हे।
पानी माटी डार, मता चिखला ला सानय।
उपजाये बर धान, किसनहा गुन ला जानय।
जतके चिखला सानबे, ततके हो गुनवान जी।
गोबर खातू डार के, खूब उगावव धान जी।

पेंड़
धरती के श्रृंगार , पेंड़ हर सुग्घर करथे।
जिनगी कर खुशहाल, सबो के दुख तक हरथे।
हवा करत हे साफ, फूल फर लकड़ी देथे।
करय प्रदूषण दूर, जहर सब अंतस लेथे।
बरसा के यदि चाह हे, सुग्घर पेंड़ लगाव जी।
धरती के अछरा बने, जुगजुग ले हरियाव जी।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

Tuesday, July 21, 2020

सुरेश पैगवार *कुण्डलिया*

सुरेश पैगवार *कुण्डलिया*
                 
                   (1)

लेवत गुरु के नाम ले,मिट जाथे सब क्लेश।
समाधान सब के करय, धर के संतन भेष।।
धर के संतन भेष,    बनाये जग ला ज्ञानी।
जड़ चेतन संसार,   सबल मानौ गुरुबानी।
दिव्य ज्ञान के जोत, जगावे सद्गुन देवत।
होथे नैय्या पार,    नाम गुरुवर के लेवत।।

                    (2)

वंदन गुरु के जे करै,    पावै ज्ञान अपार।
सगरो गुन के खान बन,पार करे मँझधार।।
पार करय मँझधार, मान ले गुरु के कहना।
गुरु बतावय ज्ञान, मनुज ला कइसे रहना।
ये धन जेकर पास,      तेकरे होथे वंदन।
लोग नवाथें माथ, सबो करथें अभिनंदन।।

           (3)

बन के रबो सुपात्र तब,मिलही कृपा अपार।
ज्ञानवान बन जाय ले,मिलही मया दुलार।।
मिलही मया दुलार, माथ मा सजही चंदन।
छूट जही अभिमान,सबो करहीं अभिनंदन।
सच्चा गुरु के ज्ञान, कहाँ पाहौ जी मन के।
जब्भे पाबो मान, रबो जब लायक बन के।।

          *सुरेश पैगवार*
                   जाँजगीर

छप्पय छंद --आशा देशमुख*

छप्पय छंद --आशा देशमुख*

*छंद ज्ञान*

किसम किसम के छंद,सुघर सबके लय हावय।
गावव छंद सुजान,सबो के मन ला भावय।
दया मया के गीत,लगय जस निर्मल धारा।
अंतस खुशी समाय, फूटथे जब फ़व्हारा।
लिखव गीत अब छंद मा, मन झूमय आनन्द मा।
सुघ्घर कविता गाव जी,सुम्मत ज्योत जलाव जी।

*पाखंड*

धरम बने व्यापार,अतिक बाढ़त पाखंडी।
फैलाये भ्रमजाल,भरत हे लालच मंडी।
मनखे मन नादान,समझ तो कछु नइ पावँय।
सच बइठे चुपचाप,झूठ छल मन भरमावँय।
सुनँव करम के राग ला, लिखव अपन खुद भाग ला।
झन मानँव पाखण्ड ला, फेंकव दूर घमंड ला।

*मशाल*

बनके रहव मशाल,हवय जग मा अँधियारी।
भूले भटके लोग,गरीबी अउ लाचारी।
फले अंधविश्वास,जागरण बहुत जरूरी।
ठग जग के भरमार,ठगावत हे मजबूरी।
बारव दीया ज्ञान के,दूर करव अँधियार ला।
देश गाँव आघू बढ़य,शिक्षा दव परिवार ला।



छंदकार --आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)

Monday, July 20, 2020

कुंडलियाँ छंद - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'

कुंडलियाँ छंद - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'

1.
बोलय माटी खार के, सुन ले मोर किसान ।
तँय वंशज बलराम के, बन जा मोर मितान
बन जा मोर मितान, रसायन खेती झन कर ।
मिलय अन्न के संग, जहर कस होथे तन बर ।
खातू सोखय ओल, राज ला माटी खोलय ।
बउरव गोबर खाद, खार के माटी बोलय ।

2.
इरखा के गरदा भरे, अन्तस् हे अँधियार ।
बाहिर दीया बार के, खोजत हे उजियार ।
खोजत हे उजियार, बता दे कइसे पाही ।
मया बिना सिरतोन, कहाँ जिनगी उजराही ।
आँखी ऊपर तोर, परे हे काबर परदा ।
अंतस ले सिरतोन, हटा इरखा के गरदा ।

3.
धरती के सिंगार बर, लगय घरोघर पेंड़ ।
देथे लकड़ी अउ हवा, रखय बाँधके मेंड़ ।
रखय बाँध के मेंड़, रखे धरती ला हरियर ।
डारा पाना फूल, संग मा देथे जी फर ।
सुनले आरुग गोठ, परय झन भुइँया परती ।
लगाके तुमन पेंड़, बनावव हरियर धरती ।

4.
बइसुरहा हे मन कहे, सुग्घर बिहना साँझ ।
मंझन आगी कस जरे, झरर झरर हे झाँझ ।
झरर झरर हे झाँझ, सुखावत काया लागे ।
देख सुरुज के ताव, छाँव हा पल्ला भागे ।
बासी कड़ही संग, मिठावय चटनी कुर हा ।
मंझन करव अराम, कहय मन हा बइसुरहा ।

5.
जग मा पाना मान हे, रखले मीठ जबान ।
तन अउ धन के थोरको, झन कर तँय अभिमान ।
झन कर तँय अभिमान, इहाँ हे कोन पुछइया ।
गिरे परे ला देख, इहाँ हे कोन उठइया ।
आरुग कहना मान, मया दौड़य रग रग मा ।
आबे सबके काम, मान तँय पाबे जग मा ।

6.
घपला होथे बैंक मा, सुते परे सरकार ।
चोर लुटेरा भागथे, जनता ऊपर भार ।
जनता ऊपर भार, चढ़े हे करजा भारी ।
लूटव खावव देश, योजना हे सरकारी । 
आरुग करथे गोठ, सुनावय किस्सा सबला
भागय चोर विदेश, करोड़ो करके घपला ।

7.
सुनलव संगी गोठ ला, कहिथे हमर सियान ।
बड़े बिहनिया के हवा, दवा बरोबर जान ।
दवा बरोबर जान, बिहनिया सुत झन मनभर ।
छै घण्टा के नींद, बने हे कहिथे जगहर ।
कहिथे आरुग रोज, गोठ ला मनमें गुनलव ।
बनही सिरतो काम, बड़े के कहना सुनलव ।


छन्दकार - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'
ठेलका-साजा-थानखमरिया

कुण्डलियां छंद- श्री मोहनलाल वर्मा

कुण्डलियां छंद- श्री मोहनलाल वर्मा
       
           (1) जाग कमइया
जाग कमइया जाग तँय, होगे हवय बिहान ।
रात थकासी ला मिटा, कर बूता दिनमान ।।
कर बूता दिनमान, फाँद चल बइला- गाड़ी ।
सुग्घर हवय मितान, तोर गा खेती - बाड़ी।।
पागा बाँधे मूँड़, पेरथस जाँगर भइया।
"मोहन" मोर किसान, देश के जाग कमइया ।।

       (2) मँहगाई-सुरसा
सुरसा कस लीलत हवय,मँहगाई मुँह फार  ।
मनखे बिन मारे मरँय, देखव बीच बजार ।।
देखव बीच बजार, भूख मा मनखे  मरथें ।
बाढ़त हावय लूट, छूट दे सौदा करथें ।।
कर देथे बरबाद, धान ला जइसे धुरसा ।
"मोहन" मोर मितान, बने मँहगाई- सुरसा ।।

              (3)बाँटा
बाँटा-बाँटा मा बटय, देख सबो संसार ।
छरियावत हावय घलो, बड़े-बड़े परिवार ।।
बड़े-बड़े परिवार, मगन रहि जिनगी जीयँय ।
होवय कभू तिहार, सबो रस सुनता पीयँय ।।
मनखेमन जी आज, बोत हें स्वारथ काँटा ।
जिनगी जीथें फेर, अपन बर होके  बाँटा ।।

   छंदकार -- मोहन लाल वर्मा
पता- ग्राम-अल्दा,पो.आ. तुलसी (मानपुर), व्हाया -हिरमी, वि.खं.- तिल्दा,जिला-रायपुर(छत्तीसगढ़)पिन -493195
मोबा.नं. 9617247078

छत्तीसगढ़ के पावन तिहार हरेली बर छंद परिवार डहर ले छंदबद्ध रचना



छत्तीसगढ़ के  पावन तिहार हरेली बर छंद परिवार डहर ले छंदबद्ध रचना

कुंडलियाँ छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

हरेली तिहार-
सावन महिना के परब, हरय हरेली नाँव ।
सजे गाँव घर द्वार हे, संग पिरित ले छाँव ।।
संग पिरित ले छाँव, सजे हे बइला नाँगर ।
कुलके आज किसान, खुशी मा झूमे जाँगर ।।
लइका गेड़ी खाप, मचे हे बड़ मन भावन ।
खुशी धरे सौगात, आय हे महिना सावन ।।

बनथे खुरमी ठेठरी, हर घर मा पकवान ।
लोंदी धरे किसान हा, जाथे जी दइहान ।।
जाथे जी दइहान, साज के पूजा थाली ।
करके पूजा पाठ, मनाथे सब हरियाली ।।
लोंदी पान खम्हार, नून आटा मा सनथे ।
खाथे गरुवा गाय, निरोगी तब वो बनथे ।।

 इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध
         बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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सार छंद-सूर्यकांत गुप्ता "कांत"

रेंग रेंग अब कहाँ खियाथे, देखौ ककरो एड़ी।
गाँव म दिखथे चढ़थें लइकन, सहर कहाँ अब गेंड़ी।।


कहाँ लीम के डारा पाना, आके कउनो खोचैं।
बन के रहि जाथे बस हाना, एला चिटिकुन सोचैं।।


तंतर मंतर भले भुलावौ, अँधबिसवास बढ़ाथे।
मगर लीम के डारा पाना, रोग संग लड़ जाथे।।


बने जान के  दुश्मन  जँउहर, कोरोना हे बगरे।
भोगे  हें  भोगत  हें  एकर  पीरा  पूरा  जग  रे।।


देख  मरे मनखे हें  के झन, नइये आज दवाई।
मसमोटी मा रहिके फोकट काबर प्रान गँवाई।।


धोवाई जी हाथ बने अस, अउ मुँह नाक ढँकाई।
भीड़ भाड़ ले बच के रहना, एला झनिच भुलाई।।


कहाँ  दवाई  कइसे  मिलही,  भोले  तहीं बताबे।
आके  तहीं  इहाँ  तिरलोकी, सबके प्रान बचाबे।।


आवौ आज हरेली आगै, सब झन इही मनावन।
दुखिया के दुख हरै प्रभूजी, बीतै सुंदर सावन।।


जम्मो झन ला हरेली के गाड़ा गाड़ा बधाई जी.....


जय जोहार....
सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ. ग.)

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मनहरण घनाक्षरी छंद :(जगदीश "हीरा" साहू)

होगे हावय बियासी, धोवव नाँगर जूड़ा,
गइती रापा रपली, कुदरी ला लाव जी।
बिंधना पटासी आरी, बसुला खुरपी छीनी,
हँसिया हथौड़ी हेर, हबले धोवाव जी।।
लाके गा खम्हार पत्ता, सान के पिसान नून,
जाके बरदी मा गाय, बछरू खवाव जी।
घर आके सब मिल, आनी बानी रोटी पीठा,
संग मा बनाके चीला, रोटी ला चढ़ाव जी।।1।।

खोज-खोज सोझ-सोझ, काट-काट छाँट बाँस,
चीर-चीर बाँध जल्दी, गेंड़ी ला बनाव जी।
छोटे बड़े गेंड़ी साज, घूमौ सबो मिल आज,
चिखला माटी ले सब, गोड़ ला बचाव जी।।
पूजा पाठ कर लव, पहिली तिहार येहा,
मिलके हरेली आज, सुग्घर मनाव जी।
बिसरत हावय अब, हमर तिहार सब,
जुरमिल सबो संसकृति ला बचाव जी।।2।।

घर-घर लीम डारा,  खोंचत हावै बइगा,
ठोंकय लोहार खीला, सब घर जात हे।
मान पावै ख़ुशी-ख़ुशी, गाँव भर झूमे नाचे,
सब मिल गेंड़ी चढ़े, बड़ सुख पात हे।।
आना जाना लगे गली, लइका सियान सब,
रंगे धरती के रंग, बड़ इतरात हे।
घर के दुवारी बैठे, देख-देख जगदीश,
ननपन के अपन, सुरता लमात हे।।3।।

जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)
कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार

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राजेश निषाद: ।। चौपई छंद ।।

उठ जा संगी होगे भोर,धोले नागर बइला तोर।
करव सफाई अँगना खोर,हवय हरेली के बड़ शोर।।

आये परब हरेली जान,कहना संगी तैंहर मान।
रापा बँसला हँसिया साथ,राखव सबला धोके हाथ।।

हुँम जग देके सबझन आय,डीही डोंगर माथ नवाय।
राँधय चीला रोटी आज,भोग लगा के करथे काज।।

लाके संगी अंडी पान, बाँधे बढ़िया लोंदी सान। बिहना दईहान सब जाय, गइया मन ला अपन खवाय।।

धरे नीम के डारा जाय, सबला येकर कथा सुनाय।
राउत भइया के बड़ सोंच,घर घर आथे ओहर खोंच।।

घर घर जाथे जी लोहार,धरे हवय छुटकुन अउजार।
धरे खिला जी ओहर आय,घर के चऊँखट रहय गड़ाय।।

सावन महिना के हे सार,हरियर हरियर खेती खार।
छत्तीसगढ़ के हरय तिहार,सबके खुश रहिथे परिवार।।

रचनाकार :- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद
रायपुर छत्तीसगढ़।
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सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।

रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी,फुगड़ी खो खो माते।
खुडुवा  खेले  फेंके  नरियर,होय  मया  के  बाते।
भिरभिर भिरभिर भागत हावय,बैंहा जोर सहेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली----।

सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे।
नीम डार मुँहटा मा खोंचे,दया  मया मिल गारे।
घंटी  बाजै  शंख सुनावय,कुटिया  लगे हवेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे  हवै हरेली-।

चन्दन बन्दन पान सुपारी,धरके माई पीला।
रापा  गैंती नाँगर पूजय,भोग लगाके चीला।
हवै  थाल  मा खीर कलेवा,दूध म भरे कसेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली-।

गहूँ पिसान ल सान मिलाये,नून अरंडी पाना।
लोंदी  खाये  बइला  बछरू,राउत पाये दाना।
लाल चिरैंया सेत मोंगरा,महकै फूल  चमेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।

बेर बियासी के फदके हे,रँग मा हवै किसानी।
भोले बाबा आस पुरावय,बरसै बढ़िया पानी।
धान पान सब नाँचे मनभर,पवन करे अटखेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली---।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
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सार छंद - बोधन राम निषादराज


रिमझिम रिमझिम बरसत पानी,
                     देख    हरेली   आ गे।
ये  भुइँया  के  भाग  सँवर गे,
                    खुशहाली बड़ छा गे।।

सावन महिना सुघर अमावस,
                 सवनाही  शुभ साजे।
पहिली परब मनावत संगी,
                  रुच-रुच गेड़ी  बाजे।।
आज किसानी नाँगर जूड़ा,
                   जम्मों    हा   धोवा  गे।
ये भुइँया के भाग सँवर गे...............

गौ  माता  बर  बनगे  लोंदी,
                   अँगना   बने   लिपागे।
निमुआ  डारा  द्वार  मुँहाटी,
                   राउत   हाथ   टँगागे।।
घर-घर राँधै चीला पपची,
                   गली  खोर   ममहागे।
ये भुइँया के भाग सँवर गे............

हरियर खेती चारों कोती,
                    लहर लहर लहरावय।
पड़की,मैना,सुआ,कोयली,
                   सुम्मत गीत सुनावय।।
सुग्घर पुरवा चलत बिहनिया,
                   सब के मन हरषागे।
ये भुइँया के भाग सँवर गे.............

छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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 सरसी छंद - श्रीमती आशा आजाद

सुघर  तिहार हरेली हावै,मनखे सब मुस्काय।
नेक परब के महिमा अब्बड़,गावै खुशी मनाय।।

साफ सफाई कर घर लीपय,चमकय खोर दुवार।
खुशी मनावय प्रेम भाव ले,रखे बने व्यवहार।।

गैंती राँपा नाँगर सबला,चमचम चम चमकाय।
पूजा करथें मिलजुल सबझन,आज सबो मुस्काय।।

मीठा गुड़ के गुत्तुर चीला, रंग रंग पकवान।
पूजा कुलदेवता के करथे,घर के सबो सियान।।

फेंकय नरियर जोर लगाके,सुग्घर खेलय खेल।
मया बाँटथें सब आपस मा,अंतस मा रख मेल।।

तुलसी के चौंरा हा चुक ले,सुग्घर रहय लिपाय।
नदियाँ के बँजरी ला लाके,देते उँहा बिछाय।।

गेड़ी चढ़के मजा उड़ावय,लेवय बड़ आनंद।
खुशहाली मा झूमै गावै,काम काज कर बंद।।

पूजा डोली के सब करथे,जम्मो हमर किसान।
आज सुमरथे उपजै सुग्घर,खेत खार के धान।।

जगा जगा हरियाली छाये,मन ला अब्बड़ भाय।
नेक परब ला मिल जुल मानै,सुख मा रहय भुलाय।।

नाचै गावै खेलै कूदै,अब्बड़ धूम मचाय।
लइका मन सब गेड़ी चढ़के,खुशी म बड़ हरसाय।।

खोंचय लिम के डारा जानौ,घर घर अपने जान।
बीमारी ला दूर भगाथे,कहिथे सबो सियान।।

प्रेम बरसते कतका बढ़िया,मीठा मन के भाव।
हमर राज सबो तिहार के,सबझन माथ नवाव।।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर,कोरबा,छत्तीसगढ़

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 ताटंक छंद-डीपी लहरे

पावन सावन के महिना हा,लाये हे खुशहाली जी।
ए धरती मा चारो कोती,छाये अब हरियाली जी।।

सुघ्घर परब हरेली आये,मिलके सबो मनाबो गा।
खुशी बाँटबो दया मया के,सबके मन हरसाबो गा।।
रोटी-पीठ घर-घर चूरे,मिलही भर-भर थाली जी।
पावन सावन के महिना हा,लाये हे खुशहाली जी।।

धो के सुग्घर रखबो संगी,सफ्फो जिनिस किसानी के।
गरुवा मन ला आज खवाबो,लोंदी हमर मितानी के।।
पूजा करबो इँखरे अब तो,नइ राहन हम खाली जी।।
पावन सावन के महिना हा,लाये हे खुशहाली जी।।

लीम डार ला राउत खौंचे,घर के चौखट बेड़ी मा।
लइका मन हा मजा उड़ावँय,खेलँय चढ़ के गेंड़ी मा।।
कतको नरियर फेंकत हाँवय,करके बने खियाली जी।
पावन सावन के महिना हा,लाये हे खुशहाली जी।।

छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
कवर्धा छत्तीसगढ़
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सार छन्द:- गुमान प्रसाद साहू
आये हावय परब हरेली, जुरमिल चलव मनाबो।
परब हमर ये पहिली संगी, सुग्घर सब परघाबो।।

सावन मास अमावस्या मा, ये तिहार हा आथे।
गाँव गाँव अउ गली गली मा, हरियाली बगराथे।।

बरदी मा जाके गइया ला, लोंदी सबो खवाबो।
बन कांदा दसमूल गोंदली, के प्रसाद ला खाबो।।

धो धोवाके जिनिस किसानी, सुग्घर सबो सजाथे।।
नरियर चीला फूल चढ़ाके, गुड़ के सँग जेंवाथे।।

नीम डार खोंचे बर राउत, घर घर सबके जाथे।
बइगा घलो अशीस देके, दार चाऊँर पाथे।।

लइका मन हा मचथे गेड़ी, भारी मजा उठाथे।
दीदी बहिनी खो-खो फुगड़ी, खेले भाठा जाथे।।

छन्दकार:- गुमान प्रसाद साहू, ग्राम- समोदा(महानदी)

जिला रायपुर छत्तीसगढ़
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घनाक्षरी- दिलीप कुमार वर्मा 

हरेली तिहार आगे,बुता काम ह सिरागे,  
नाँगर कुदारी धो के, आरती दिखाव जी। 
दशमूल के दवाई,आज सब खावा भाई, 
गरुवा ल तक देवा, लोंदी भी खवाव जी। 
गेंड़ी बने खाप देहु, चढ़ के मजा ल लेहु, 
चिखला म रेंग आज, रेस भी लगाव जी। 
मिल के कबड्डी खेला, फेंकौ नरियर भेला, 
ताकत दिखाए बर, दंगल कराव जी। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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सोरठा छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी

परब हरेली आय, पहिली हमर तिहार हे।
मिलजुल सबो मनाय, दया मया बाँटत सुघर।।

उठके ददा बिहान, लोंदी आज बनात हे।
जावय धर दइहान, बछरू गाय खवाय बर।।

लगे आज बाज़ार, जइसे जम्मो गाँव हा।
बाँटत मया दुलार, हावय आज सियान मन।।

धरे नीम के डार, घर घर खोचत जात हे।
दे सब चाउँर दार, राउत भइया ला सुघर।।

खीला ला लोहार, ठोकत जावय द्वार मा।
मालिक ला जोहार, बोलत जावत हे सुघर।।

अउ बइगा महराज, हूम धूप देवत हवय।
सफल होय सब काज, हो सहाय सब देवता।।

नाँगर जूड़ा संग, रापा कुदरा धोत हे।
उजरावत हे अंग, बिधना हँसिया के सुघर।।

पूजा करय किसान, नरियर चिला चढ़ात हे।
समझय अपन मितान, जीयत जिनगी भर सदा।।

भारी मजा उड़ाय, लइकामन गेड़ी  चढ़े।
मच मच रेंगत जाय, संगी साथी जहुँरिया।।

आनी बानी खेल, नोनीमन  खेलत हवै।
सखी सहेली मेल, गंगा जमुना सरस्वती।।

हरियर खेतीखार, मन झुमरत हे देखके।
अन्नधान्य भंडार, सदा भरे सबके रहय।।

अँधियारी के पाँख, सावन महिना चउथ के।
सुरता ला तँय राख, परब हरेली दिन इही।।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा(छत्तीसगढ़)

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  आल्हा छन्द, अजय अमृतांशु

सुन लव बहिनी सुन लव भाई, देख हरेली बड़े तिहार।
लइका पिचका खुशी मनावय, झूमत हावय खेती खार।

नदिया बइला लइका खीँचय, गेंड़ी मा सब चढ़ै जवान।
थारी नरियर पान सुपारी, घर घर पूजा करय किसान।

गेंड़ी बाजय रच रच रच रच,परब हरेली आज मनाय।
राँपा गैती के पूजा अउ, बइला भैंसा लोंदी खाय।

गाँव गाँव ला बइगा बाँधय, खीला ठोंकत हे लोहार।
घूम घूम के राउत भैया, बाँधत हावय ग लीम डार।

हरियर हरियर चारो कोती, सुग्घऱ दिखथे खेती खार।
सावन के महिना मा देखव, फइले रखिया कुंदरु नार।

बरा सोहारी भजिया खावव,चीला झड़कव मिलके चार।
खेल कबड्ड़ी मजा उड़ा लव, नरियर फेंकव बल भर यार।

गाँव गाँव के बइला जोंडी, सजे चकाचक देखव आय।
खन्नर खन्नर बजय घाँघड़ा, बइला सरपट दउँड़त जाय।

अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
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: अमृतध्वनि छंद

परब हरेली गाँव मा, सब ला अबड़ सुहाय।
लइका लोग सियान मन, खोल गली जुरि जाय।।
खोल गली जुरि, जाय सुघर गा, हे मन भावन।
परब हरेली, आज बरस दे, रिमझिम सावन।।
नाचय कूदय, गेड़ी चढ़के, ठेलक ठेली।
बरा ठेठरी, ले महकय घर, परब हरेली।।

रचनाकार - रामकली कारे बालको नगर कोरबा

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: सरसी छंद - पोखन लाल जायसवाल

पावन हवै महीना सावन,आथे धरे तिहार।
पहिने हरियर लुगरा धरती, झूमे खेती खार।।

जुर मिल करथे भइया भउजी,सुग्घर खेती खार।
महतारी के अँचरा साजे,रकत पछीना गार।।

परब हरेली करय अगोरा,सावन मावस पार।
खुशहाली बगरावय अबड़े,खोंच घरोघर डार।।

रापा रपली पूज कुदारी,छूटय सबो उधार।
मान हरेली सबो ल देवय,अइसन हरय तिहार।।

गली-खोर जब चिखला मातय,आवय रोग हजार।
गँवई माँगय असीस देवत,बइगा मंतर मार।।

बने बाँस ले गेंड़ी बाजय,रच रच रच रच मार।
गली-खोर अउ अँगना परछी,गेंड़ी दउड़य झार।।

गुरहा चीला के का पाही,खई खजाना पार।
नाती बबा संग बइठै अउ,खाय पालथी मार।।

दया मया ले जोरे रहिथे,हमरो तीज तिहार।।
बड़ सुख पाथें तीज परब मा,मिलके सब परिवार।।

छंदकारःपोखन लाल जायसवाल
पलारी 
जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग.

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सरसी छंद-चित्रा श्रीवास

हरियर लुगरा पहिरे भुइयाँ, करे नवा सिंगार।
खुलके हाँसय नदियाँ नरवा, बाँध मया के तार।।

सावन लेके आये हावय,देखव खुशी अपार।
सावन महिना आय हरेली,पहली हमर तिहार।।

गुरहा चीला बनथे घर घर,गुलगुल भजिया साथ।
रापा गैैंती नाँगर पूजय,फेर नवाये माथ।

गेंडी चढ़के चलथे रच रच ,लइकन मन हरषाय।
नरियर फेंकय खेल खेल मा,बाजी खूब लगाय।।

छंद कार-चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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