छेराछेरा परब विशेष- छंदबद्ध कविता
छेरछेरा(सार छंद)
कूद कूद के कुहकी पारे,नाचे झूमे गाये।
चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।
पाख अँजोरी पूस महीना,आवय छेरिक छेरा।
दान पुन्न के खातिर अड़बड़,पबरित हे ये बेरा।
कइसे चालू होइस तेखर,किस्सा एक सुनावौं।
हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।
युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर के द्वारे।
राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।
आठ साल बिन राजा के जी,काटे दिन फुलकैना।
हैहय वंशी शूर वीर के ,रद्दा जोहय नैना।
सबो चीज मा हो पारंगत,लहुटे जब राजा हा।
कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।
राजा अउ रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।
राज रतनपुर हा मनखे मा,मेला असन भराये।
सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।
रहे पूस पुन्नी के बेरा,खुले रहे दरवाजा।
कोनो पाये रुपिया पइसा,कोनो सोना चाँदी।
राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।
राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।
पूस महीना के ये बेरा, सबके झोली भरबों।
ते दिन ले ये परब चलत हे, दान दक्षिणा होवै।
ऊँच नीच के भेद भुलाके,मया पिरित सब बोवै।
राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो होय ये जोरा।
कोसलपुर माटी कहलाये, दुलरू धान कटोरा।
मिँजई कुटई होय धान के,कोठी हर भर जावै।
अन्न देव के घर आये ले, सबके मन हरसावै।
अन्न दान तब करे सबोझन,आवय जब ये बेरा।
गूँजे सब्बे गली खोर मा,सुघ्घर छेरिक छेरा।
वेद पुराण ह घलो बताथे,इही समय शिव भोला।
पारवती कर भिक्षा माँगिस,अपन बदल के चोला।
ते दिन ले मनखे मन सजधज,नट बन भिक्षा माँगे।
ऊँच नीच के भेद मिटाके ,मया पिरित ला टाँगे।
टुकनी बोहे नोनी घूमय,बाबू मन धर झोला।
देय लेय मा ये दिन सबके,पबरित होवय चोला।
करे सुवा अउ डंडा नाचा, घेरा गोल बनाये।
झाँझ मँजीरा ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।
दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।
हरे बछर भरके तिहार ये,छेरिक छेरा गा लौ।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
दुर्मिल सवैया
सम हे सब आज समाज बड़े छुटका मनखे झन खोज इहॉं।
चल संग तहूॅं हर वामन रूप बना मिलही नइ रोज इहॉं।
लइका बुढ़वा सब घूमत हे मन मा भरके सब ओज इहॉं।
झन टोर मया अउ गॉंव जगा जिनगी रहिथे नित सोज इहॉं।
अन के धन के जन के मन के सम छेरिक छेर तिहार हरे।
झन सोय कहूॅं हर भूखन लॉंघन सुग्घर ये सुबिचार हरे।
अउ बॉंट बरोबर खाय सबो भर पेट इही हर सार हरे।
सुख आय घरो घर येहर तो अनपूरन मात दुलार हरे।।
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
कुंडलियाँ
भेदभाव ला छोड़के, मानँव पूष तिहार ।
अन्न दान के हे परब, बाँटव मया दुलार ।।
बाँटव मया दुलार, जगत मा नाम कमाँलव ।
तज दव माँशाहार, दार अउ चटनी खालव ।।
अध्धी बोतल छोड़,तजव जी आज पाव ला ।
पबरित हवय तिहार, भुलादव भेद भाव ला ।।
छेरिक छेरा गौटिया, दे कोठी के धान ।
मिलही ए संसार मा, तोला सुग्घर मान ।।
तोला सुग्घर मान , मिले अउ धन हा बाढे ।
दे चुरकी भर धान, दुवारी सब झन ठाडे ।।
निचट मचायें सोर, धान ला हेरिक हेरा ।
एके सुर नरियाँय, गौटिया छेरिक छेरा ।।
डंडा घर घर नाचके, पावँय पैसा धान ।
झूमँय माँदर ताल मा, गावँय गीत सुहान ।।
गावँय गीत सुहान, घरो घर हल्ला भारी ।
परब दान के आय, मनावँय सब नर नारी ।।
कतको मातँय मंद, खात हें कुकरा अंडा ।
हुडदंगी मन पोठ, पुलिस के खावँय डंडा ।।
*पुरुषोत्तम ठेठवार* ठेठ
*छंदकार*
*ग्राम -भेलवाँटिकरा*
*जिला -रायगढ*
*छत्तीसगढ*
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
"छेरछेरा तिहार आगे"
लावणी छंद
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पूस माह के पुन्नी आगे,
छेरिक छेरा आगे ना।
सुनलव मोरे भाई बहिनी,
धरम करम सब जागे ना।
पूस माह के पुन्नी आगे........
होत बिहनिया देखौ लइका,
बर चौरा सकलावत हे।
कनिहा बाँधे बड़े घाँघरा,
नाचत अउ मटकावत हे।।
देवव दाई-ददा धान ला,
कोठी सबो भरागे ना।
पूस माह के पुन्नी आगे........
मुठा मुठा सब धान सकेलय,
टुकनी हा भर छलकत हे।
छत्तीसगढ़ी रीति नियम ये,
मन हा सुग्घर कुलकत हे।।
छेरिक छेरा परब हमर हे,
भाग घलो लहरागे ना।
पूस माह के पुन्नी आगे........
देखव संगी चारों कोती,
बने घाँघरा बाजत हे।
बोरा चरिहा टुकना बोहे,
बहुते लइका नाचत हे।।
छेरिक छेरा नाच दुवारी,
खोंची खोंची माँगे ना।
पूस माह के पुन्नी आगे.........
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रचनाकार :-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
गीतिका छंद- छेरछेरा
छेरछेरा के बधाई, आप सब ला मोर हे ।
गाँव पारा अउ गली मा, सुख उगे मन भोर हे ।।
हे दुवारी मा सुनावत, बालपन के बोल जी ।
छेरछेरा छेरछेरा, मीठ मधुरस घोल जी ।।
झूमरत हे मन खुशी मा, चढ़ निसैनी मीत के ।
धन्य धन आशीष छलके, अउ मया बड़ प्रीत के ।।
मोर ये छत्तीसगढ़ के, हे अलग पहिचान जी ।
रख धरोहर ला सँजोये, देत सब ला मान जी ।।
छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
मनहरन घनाक्षरी
कहिके छेरिक छेरा,मनखे करय फेरा,
बाजा गाजा ल बजात,लइका सियान हे।
पूस पुन्नी छेरछेरा,दान पुन्न के जी बेरा,
देवय आशीष अउ,झोली मा ले धान हे।।
दानी पावै गा सम्मान,गावै सब गुनगान,
माई कोठी के धान,बाँटत किसान हे।
मानै सुग्घर तिहार,हँसी खुशी परिवार,
करम-धरम मा तो,डूबय इंसान हे।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
*छेरछेरा*
------------
(चंद्रमणि छंद)
अरन बरन कोदो झरन, देबे तभ्भे हम टरन।
लइका मन सब आय हें, छेर छेर चिल्लाय हें।
आज छेरछेरा हवय,पावन पुन बेरा हवय।
सुग्घर आय तिहार ये, देथे जी संस्कार ये।
एकर जी इतिहास हे, फुलकैना के खास हे।
राजा चलन चलाय हे, जमींदार वो साय हे।
माँगे मा का लाज हे, परंपरा के काज हे।
सूपा मा भर धान ला,करथे धर्मिन दान ला।
दान करे धन बाढ़थे,मन के पीरा माढ़थे।
बरसा होथे प्यार के, आसिस अऊ दुलार के।
ढोलक माँदर ला बजा,माँगत आथे बड़ मजा।
डंडा नाचत झूम के, गाँव ल पूरा घूम के।
धन्य हवय छत्तीसगढ़, जेकर सुंदर कीर्ति चढ़।
भाँचा रघुपति राम हे, दया धरम के धाम हे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
छेरछेरा - अमृतध्वनि छंद
छेरिक छेरा छेर के, लइका करै गुहार।
दरबर दरबर रेंग के,झाँकय सब घर द्वार।।
झाँकय सब घर,द्वार धान ला,माँगे बर जी।
बाँधे कनिहा,बाजै घँघरा,खनर खनर जी।।
नाचय कूदय, धूम मचावय, रेंगत बेरा।
आय परब तब,हाँसत गावै,छेरिक छेरा।।
बोधन राम निषादराज
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
छेरछेरा (गीतिका छन्द )
छेरछेरा के परब हा देख सब ला भात हे।
दान पाये बर घरो घर लोग लइका जात हे।
धान के कोठी भरे हेरत बबा हा आज जी।
ये हमर हे रीत सुग्घर लोग करथें नाज जी।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़ )
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
छंद रचना
छेरछेरा परब
बोलत छेरिक छेरा छेर, लइका मन घर घर जावैं।
कोठी के सब हेरव धान, घेरी बेरी चिल्लावैं।।
सब झन करव अन्न के दान, पूण्य हवय अब्बड़ भारी।
भरे रहय सबके भंडार, लहलहाय खेती बारी।।
दाई शाकम्भरी सहाय, गहदे सब भाजी पाला।
भरय सबो प्राणी के पेट, हटय गरीबी के जाला।।
अन्न दान के आय तिहार, ये अब्बड़ पबरित लागै।
दुख दारिद सब होवय दूर, दान धरम के रस पागै।।
अन्नपूरना देवय दान, फैलाये शिव जी झोली।
अद्धभुत अचरज दिखथे दृश्य, दुनो भरय जग के ओली।।
मन ला भावैं रीति -रिवाज, खुशी मगन नाचत आवैं।
सुघर लगय संस्कृति संस्कार, मिलके सब परब मनावैं।।
माँगय लइका लोग सियान, छोटे बड़े बने टोली।
लगय अनोखा सुर अंदाज, मनभावन गुत्तुर बोली।
चीला चौसेला पकवान, महके घर अँगना पारा।
पावन पबरित पूस तिहार, बगरे जस भाईचारा।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
कुकुभ छंद
छेरछेरा
सुनौ छेरछेरा आगे गा, लइकन झोला धर आथे।
छेरिक छेरा दे दे दाई,कहिके जम्मों चिल्लाथे।।
मींजे कूटे कोठी भरगे,छलकत ले लक्ष्मी दाई।
दान आज के दिन तँय करले,पुण्य करम थोरिक माई।।
धन दोगानी सँग नइ जावे,करम कमाई जाथे जी।
बेद पुराण संत ज्ञानी मन,रसता
इही बताथे जी।।
कोनो आथे बाजा धर के,राम नाम गुण गाथे जी।
कोनो ड़फली धरे मोहरी,राग म राग मिलाथे थे।।
डंडा नाचे गीत ल गाके,कुहकी कोनो पारत हे।
बाजे डंडा चट चट भैया,कूद कूद के नाचत हे।।
दाई राँधे खुरमी बबरा,महर महर ममहावय जी।
नोनी बाबू आज मगन हे, जुर मिल सबो खवावय जी।।
आथे एक बछर में भैया,पुन्नी पूस कहावत हे।
महानदी में डुबकी लेथें,भोले नाथ मनावत हे।।
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
@छेरछेरा@
महादान के महा परब के, आगे हावय बेरा ।
छेरिक छेरा छेर बरकनिन, मानलव छेरछेरा ।
पूस मास के पुन्नी आथे, कुनकुन करथे जाड़ा ।
कोठी मा तब हर घर रहिथे, दाना गाड़ा गाड़ा ।
उत्सव मंगल खुशी मनावय, का लइका का बुढ़वा ।
संस्कृति संस्कार सबो जस, माढ़े बनके गुढ़वा ।
जुरमिल जोरव ताग ताग ला, आँटव बनके ढेरा ।
कमला बिमला फुदरु आवय, धरके चुमड़ी झउहा ।
अघनु फागु पिछवावय ता, आवय लउहा लउहा ।
गांव गली आरा पारा के, लइका मन सकलाके ।
गुनय छेरछेरा चल माँगन, गाँव गाँव मा जाके ।
नाचत गावत लइका मन हा, फेर लगाही फेरा ।
परे बिपत मा जइसे धरती, दुःख हरे सब झनके ।
बनके शाकम्भरी पुरोवव, सब झन बर अन धन के।
अनपुरना हा मान बढ़ाये, जइसे शिव शंकर के ।
राजा बलि के सुरता करके, दान करव मनभर के ।
बनके वामन लइका मन हा, आही तुँहरो डेरा ।
नाचत गावत लइका मन हा तुँहरो अँगना आही ।
जभ्भे देबे तभे टरन हम, कहिके हाँक लगाही ।
ठोमहा-पसर दान करब मा, जिहि हमर संस्कार हा ।
हाँसत कुलकत फेर बुलकही, इहू बछर तिहार हा ।
सिरतोन कहिथंव संस्कृति के, बांचे रहिही घेरा ।
ईश्वर साहू 'आरुग'
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
अजय अमृतांसु: छेरछेरा (गीतिका छन्द )
छेरछेरा के परब हा देख सब ला भात हे।
दान पाये बर घरो घर लोग लइका जात हे।
धान के कोठी भरे हेरत बबा हा आज जी।
ये हमर हे रीत सुग्घर लोग करथें नाज जी।
अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़ )
💐💐💐💐💐💐
मीता अग्रवाल: कुण्डलियां छंद
छेरिक छेरा हे परब,अन्न दान के मान।
अपन कमाये धान ले,कोठी भरय किसान।
कोठी भरय किसान,छेरछेरा तब मानय।
छोट बड़े के भेद,बंधना ला नइ जानय।
सुनो मधुर के गोठ,लोक किवदंती डेरा।
साक दान जगदंब, परब बड छेरिकछेरा।।
(2)
दानव रूरू नाव के,बढ़गे अइताचार।
देवी डंडा नाचथे,करिन उखर संहार।
करिन उखर संहार,नाच के डंडा साँचा।
तबले हे शुरुवात,छेरछेरा मा नाचा।
शिव परीक्षा लीन,बिहा गौरी तब जानव।
बिकट मधुर संवाद,मानथे देवी दानव।।
डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
💐💐💐💐💐💐💐💐💐