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Sunday, January 30, 2022

कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बापू,,,,,,,,,,,,,,,,

 

कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बापू,,,,,,,,,,,,,,,,


नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।

सत्य अंहिसा प्रेम सिरागे, बढ़गे बैरी बरबादी।


गली गली मा लहू बहत हे, लड़त हवै भाई भाई।

तोर मोर के फेर म पड़के, खनत हवै सबझन खाई।

हरौं तोर चेला जे कहिथे, नशा पान के ते आदी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।।


कतको के कोठी छलकत हे, कतको के गिल्ला आँटा।

धन बल खुर्शी अउ स्वारथ मा, सुख होगे चौदह बाँटा।

देश प्रेम के भाव भुलागे, बनगे सब अवसरवादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।।


दया मया बर दाई तरसे, बरसे बाबू के आँखी।

बेटी बहिनी बाई काँपे, नइ फैला पाये पाँखी।

लउठी वाले भैंस हाँकथे, हवै नाम के आजादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।।।


राम राज के दउहा नइहे, बाजे रावण के डंका।

भाव भजन अब करै कोन हा, खुद मा हे खुद ला शंका।

दया मया सत खँगत जात हे, बाढ़ै बड़ बिपत फसादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी ला शत-शत नमन...💐💐 🌺 *शहीद दिवस के दोहा* 🌺


 

राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी ला शत-शत नमन...💐💐

🌺 *शहीद दिवस के दोहा* 🌺


सत्याग्रह के मंत्र ले, करिन देश आज़ाद।

अमर रही गांधी बबा, करबो सब दिन याद।। 


हो गिन हवे शहीद गा, करके सुग्घर काम।

इज्जत ले लेथें सबो, गांधी जी के नाम।। 


राष्ट्र पिता के गोठ मा, ताकत रिहिस अपार।

उनकर सबो विचार ले, सहमत हे संसार।। 


जिनगी ला जे हा अपन, करिन देश के नाम।

अइसे मोहनदास ला, शत-शत घाँव प्रणाम।। 


महामनुख गांधी बबा, सत के रिहिन प्रतीक।

चलके दद्दा मा उखँर, बनव मनुख सब नीक।। 

🌸🙏🌸

श्लेष चन्द्राकर,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

हरिगीतिका छंद* 2212 2212, 2212 2212 *हमर गँवई गाँव*

 *हरिगीतिका छंद*

2212 2212, 2212 2212

*हमर गँवई गाँव*


सुख हा बरसथे गाँव मा,सुग्घर पवन चलथे इहाँ।

संझा दुवारी घर सबो, दीया बने जलथे इहाँ।।

अँगना लिपाथे गाय के,गोबर लगै पबरित इहाँ।

चुक-चुक गली अउ खोर हा,बोली बचन अमरित इहाँ।।


करथे सियानी ला बने,बइठे बबा ले हाथ मा।

करथे सबो माई पिला,जेवन घलो जी साथ मा।।

सब रीत नाता मानथे,मिलके परोसी गाँव मा।

सुख दुःख ला सब बाँटथे,बइठे इहाँ बर छाँव मा।।


गगरी बहुरिया मन धरे,मिलके हँसत गाथे सबो।।

नरवा घठौंदा घाट मा,पनिया भरन जाथे सबो।।

मधुबन सहीं बखरी रथे,हरियर इहाँ सब खार जी।

खेती किसानी संग मा,करथे बने व्यवहार जी।।

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छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

Saturday, January 29, 2022

सरसी छन्द गीत *मँय भारत हँव*

 सरसी छन्द गीत

*मँय भारत हँव*


मँय भारत हँव मँय भारत हँव,करौ सदा जयकार।

भाग्य बिधाता मँय हँव सबके,करथौ जी उद्धार।

उत्तर मा ए खड़े हिमालय,मोरे उन्नत भाल।

तीन दिशा सागर ले घिरके,करथौं माला-माल।।

पाँव पखारे गंगा निशिदिन,बहथे पावन धार।

मँय भारत हँव मँय भारत हँव,करौ सदा जयकार।।


हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,सब झन मोरे लाल।

इँखर एकता भाई-चारा,हे पूजा के थाल।।

देशभक्ति सबके रगरग मा,करथें अब्बड़ प्यार।।

विश्व गुरू मँय कहिलाथौं जी,देथँव सब ला ज्ञान।

इहें तिरंगा झंडा फहरे,जे मोरे पहिचान।।

जम्मू ले कश्मीर सबो हा,हे मोरे परिवार।

मँय भारत हँव मँय भारत हँव,करौ सदा जयकार।।


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

गीतिका छंद - वीर जवान*

 *गीतिका छंद - वीर जवान*

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वीर भारत देश के तँय, तोर तन कुरबान हे।

लाल तँय हा गाँव के हस, गाँव मा ए जान हे।।

आज रक्षा भार तोरे, तँय बचाले देश ला।

आय घूमत देख बइरी, वो बनाये भेष ला।।


छोड़ तँय भुइयाँ चले हस, सौंप के जी मान ला।

देश खातिर तँय गँवाथस, आज ए तन प्रान ला।। 

घर बिराना तोर होथे, लोग लइका साथ मा।

माँ घलो ला दुःख होथे, दुःख नारी हाथ मा।।


जीत ले तँय देश दुनिया, आज ताकत तोर हे।

कोन हिम्म्मत ला  दिखाही, हाथ कतका जोर हे।।

हाथ ला तँय टोर देबे, जौन बइरी तानही।

चीर हिरदय ला दिखाबे,बात कोनो मानही।।

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बोधन राम निषादराज✍️

हरिगीतिका छंद*

 *हरिगीतिका छंद* 


सेवा करे बर देश के, जे तान सीना हे खड़े।

तन मा तिरंगा ओढ़ के, वो रोज दुश्मन ले लड़े।

जे देश सेवा ला धरम, अपने सदा जी मानथे।

हे प्रान अरपन देश बर, बस बात अतके जानथे।


नइ आॅंच कोनो आन दय, सुन तोर अॅंचरा दाग वो।

अइसन रतन बेटा हवै, शुभ तोर दाई भाग वो।

चंदन लहू ले कर अपन, होथे अमर बलिदान वो।

हे भागमानी वीर जे, देथे चरन मा प्रान वो।


तीरथ सुघर ओ गॉंव घर, जन्मे जिहॉं ये जान के।

मंदिर सही पबरित बड़े, शुभ घर अमर बलिदान के।

रख भावना सहोग के, सम्मान दव परिवार ला।

दाई ददा पत्नी सबो, बर रख सुघर व्यवहार ला।


सैनिक शहीदी के करव, अउ झन कभू अपमान तुम।

भगवान जस परिवार ये, नित राख लौ अब ध्यान तुम।

सुख चैन हमला देय बर, वो सौप देहे प्रान जी।

पानी बरफ मा हे खड़े, दिन रात सीना तान जी।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

बसंत ऋतु आधारित रचना -*

 *बसंत ऋतु आधारित रचना -*


*रोला छंद -*


देखौ छाय  बहार, आय  हे  गावत  गाना।

मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।

फूले परसा  लाल, कोयली  बोलय  बानी।

गुरतुर लागे बोल,करौं का मँय अब रानी।।


*त्रिभंगी छंद -*


परसा हा फुलगे,सेम्हर झुलगे,पवन बसंती,आय हवै।

आमा मउरागे,मन हरियागे,सरसो पिँवरी,छाय हवै।।

भुइयाँ बड़ सुग्घर,लागै उज्जर,खींचत मन के,डोर हवै।

करिया कस बादर,आँखी काजर,बाँध मया के,लोर हवै।।


ऋतु बड़ मनभावन,सुघर सुहावन,मन हर्षित चहुँ,ओर लगै।

पाना हरियावत,खार लुभावत,सबो डोंगरी,छोर लगै।।

परसा के लाली,गेहूँ बाली,अरसी सरसो,फूल फभे।

अमुआ के डारा,लहसे झारा,मउर आम के,झूल फभे।।


कोयल के बोली,हँसी ठिठोली,गुरतुर सुग्घर,बास करै।

भँवरा मँडरावय,तितली गावय,फूल-फूल मा,रास करै।।

नदिया के पानी,कहै कहानी,कल-कल-कल-कल,धार बहै।

भुइयाँ हरियाली,मन खुशहाली,मया पिरित के,लार बहै।।


*अमृतध्वनि छंद -*


हरियाली  चारों  डहर, आथे  माघ बसंत।

सुघर मनाथे पंचमी, होय  जूड़ के अंत।।

होय जूड़  के , अंत तहाँ ले, घाम जनाथे।

मातु शारदा,जनम परब ला,सबो मनाथे।।

लइका होली, डाँड़ गड़ा के, बड़ खुशहाली।

दिखथे भुइयाँ,सरग बरोबर,औ हरियाली।।


*छप्पय छंद -*


देखौ  आमा  डार, लोर  गे  हरियर  पाना। 

झूम-झूम के देख, कोयली  गावय  गाना।।

आमा मउरे भाय, सबो के  मन  ललचावै।

देखत जिवरा मोर,खुशी मा  नाचय  गावै।।

लदलद ले हे मउर हा,भँवरा झूलय डार मा।

आय बसंती देख तो,नाचत हावय खार मा। 

 

*कुण्डलिया छंद -*


मन हा नाचय झूम के,बढ़िया चलय बयार।

डारा  लहसे  जात हे,देखौ  छाय  बहार।।

देखव छाय बहार, आय  हे गावत गाना।

मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।

मैना मारय जोर, कोयली कुहु कुहु बाचय।

महर महर ममहाय,झूम के मन हा नाचय।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

जय सुभाष* (घनाक्षरी)

 *जय सुभाष*

(घनाक्षरी)


भारती के पीरा देख, चाकरी गोरा के फेंक, किरिया कठिन ठाने, नेताजी सुभाष तैं।

 जय हिंद नारा देके, देश रक्षा प्रण लेके, हार कभू नइ माने, नेताजी सुभाष तैं।

 देशहित खून माँगे ,युद्ध छोड़ नइ भागे, फौज घलो बना लाने, नेताजी सुभाष  तैं।

चारों खूँट घूम घूम, माटी धुर्रा चूम चूम,  दीन दुखी देव जाने, नेताजी सुभाष तैं।


तोर कथा बड़ सार, छोड़ दिए घर द्वार, क्रांति के उठा मशाल, मूँड़ बोहे भार ला।

  अँगरेज अत्याचारी, दुख ला देइन भारी, लड़े डँट हर हाल, जोड़े वीर चार ला ।

 जेल जाके दुख सहे , कभू उफ नइ कहे, जानकी प्रभा के लाल, सुनले पुकार ला।

  नमन हावय वीर, 'बादल 'तैं धर धीर, नेताजी सुभाष तोर, याद हे संसार ला।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Wednesday, January 26, 2022

गणतंत्रता दिवस विशेष छंदबद्ध कविता


 गणतंत्रता दिवस विशेष छंदबद्ध कविता


: सुखी सवैया - बोधन राम निषादराज

(गणतन्त्र दिवस)


गणतंत्र मनावत आज सबो,जयकार लगावत धावत हावय।

फहरावत हे धज ला मिलके,जय गान घलो सब गावत हावय।।

लइका खुश होय जवान इहाँ,सँग आज तिहार मनावत हावय।

मन मा सबके अब प्रेम बसे,मन ही मन मा मुसकावत हावय।। 


बोधन राम निषादराज✍️

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: दुर्मिल सवैया- विजेन्द्र वर्मा


मनखे बर तो गणतंत्र बने,करलौ भइया अभिमान इहाँ।

जिनगी सब के खुशहाल रहे,कखरो झन हो अपमान इहाँ।

पढ़लौ लिखलौ नव राह गढ़ौ,बढ़ही तब तो फिर शान इहाँ।

बनही तब देश सदा अगुवा,मति मूरख तैं अब जान इहाँ।

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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 *ताटंक छंद* 

गणतंत्र दिवस


धजा तिरंगा दुनिया भर मा, लहर लहर लहराबो जी।

अमर शहीदन मन के सपना,पूरा कर दिखलाबो जी।।


सुख समृद्धि राज देश बर,जन खुशियाली लाये हे।

हक अधिकार सबो मनखे मन, लोकतंत्र मा पाये हे।।


बाढ़य गौरव गाथा सुग्घर, जन गण मन  ला गाना हे।

तीन रंग ले सजे तिरंगा, लहर लहर फहराना हे।।


रक्षा खातिर लोकतंत्र के,संविधान लागू होगे।

नीत नियम के सुग्घर रचना,संरचना काबू होगे।।


समता - सुमता भाईचारा,घर-घर मा बगराना हे।

अलख जगावत अब शिक्षा ले,सुख सुराज ला पाना हे।।


छंदकार अश्वनी कोसरे

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 आशा देशमुख: मनहरण घनाक्षरी


गणतंत्र दिवस


जन गण मन गावैं,ऊँचा झंडा फहरावैं

नारा सब बोलय संगी, आन बान शान के।

तीन रंग तिरंगा हे, सुमत भाव चंगा हे।

गीत हवा तक गाये, माटी के सम्मान के।

बड़ उपकार हवे, जन के आधार हवे।

मन से आभार हवे, देश  संविधान के।

कण कण चन्दन हे भारती के वंदन हे।

कण कण गवाही दे, त्याग बलिदान के।



आशा देशमुख

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 लावणी छंद 


हमर तिरंगा फहरत राहय,गाना सुग्घर हम गाबो।

जय हो भारत माता कहिके, झंड़ा ला चल फहराबो।।


कोनो बैरी देश म मोरो,आँखी ला झन गड़ियावय। 

आके हमरो सरहद में अब,कोनो झन पाँव बढ़ावय।।


जब जब आथे मुँह के खाथे, रोवत हपटत जाथे।

हमर देश के वीर सिपाही,लोहा के चना 

 चबाथे।।


दुश्मन तँयहा अभी चेत जा,येती बर झन तँय आबे।

बैंसठ वाला दिन नोहे अब,लहुट नही तँय जा पाबे। ।


कतका तपबे चीनी पाकी,लबरा चपटा तँय हा रे।

गद्दारी रग रग मा हाबे,ओकर फल तँय अब पा रे।।


हिन्दी चीनी भाई भाई, कहिके छुपकर तँय आये।

बीस सिपाही मारे पापी,चालीस जान ल 

गँवाये।।


आगे अब राफेल तोर बर ,तोला भूंज देखाबो।

अभी मानजा बात ल बैरी,हम तोला मजा चखाबो।।

छंदकार 

केवरा यदु"मीरा"

राजिम

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घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


आज बिहना के होती, एती वोती चारो कोती।

तन मन मा सबे के, देश भक्ति जागे हवै।

खुश हे दाई भारती, होवय पूजा आरती।

तीन रंग के तिरंगा, गगन मा छागे हवै।

दिन तिथि खास धर, आशा विश्वास भर।

गणतंत्रता दिवस, के परब आगे हवै।

भेदभाव ला भुलाके, जय हिंद जय गाके।

झंडा फहराये बर, सब सँकलागे हवै।


जीतेंन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को कोरबा

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दोहा छ्न्द-गणतंत्र


संविधान जे दिन बनिस, आइस नवा सुराज।

हक पाइस हें सब मनुष, पहिरिस सुख के ताज।


का छोटे अउ का बड़े, पा गे सब अधिकार।

हवे राज गणतंत्र के, बहे खुशी के धार।


जाति धरम बोली बचन, अलग रूप रँग वेश।

तभो सबे ला संग ले, चलथे भारत देश।


धन बल लालच छोड़ के, बढ़िया छाँट निमार।

जनता भारत देश के, चुने अपन सरकार।।


देश राज अउ लोग बर,भारत के गणतंत्र।

करथे बढ़िया काम नित,सुख के बाँटत मंत्र।



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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[1/26, 3:05 PM] मनीराम साहू: जय जय हिन्दुस्तान(दोहा गीत)


हमर तिरंगा के सदा, बढ़त रहय जी शान।

जय बोलव सँविधान के, जयजय हिन्दुस्तान।


गंगा जमुना सरसती, पबरित क्षिप्रा धार।

कावेरी गोदावरी, चिनहा हवँय हमार।

जय कृष्णा जय नर्मदा, जय महनदी महान।

जय बोलव सँविधान के, जयजय हिन्दुस्तान।


अँड़े हिमालय हा हमर , हे बड़का रखवार।

विंध्याचल अउ नीलगिरि, मैकल मया अपार।

अरावली जय सतपुड़ा, करत रहव जयगान

जय बोलव सँविधान के, जयजय हिन्दुस्तान।


तमिलनाडु कर्नाटका, शान हमर काश्मीर।

महाराष्ट गुजरात अउ, बंग समुन्दर तीर।

जय दिल्ली छत्तीसगढ़, मणिपुर राजस्थान

जय बोलव सँविधान के, जयजय हिन्दुस्तान।


राम कृष्ण अउ बुद्ध प्रभु, आये हें जे देस।

नानक सूर कबीर अउ, तुलसी जिहाँ बिसेस।

जय लक्ष्मी राणा शिवा, सिंह शेखर बलिदान।

जय बोलव सँविधान के, जयजय हिन्दुस्तान।

-मनीराम साहू 'मितान'


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[1/26, 3:45 PM] प्रिया: *हमर तिरंगा*(रोला छंद)


हमर देश मा आज, तिरंगा फहरत हावै।

संग मया के गोठ, राग मा सबो सुनावै।।

झूमे नाचे लोग, गीत आजादी गावै।

तीन रंग के आज, अगास तिरंगा छावै।।



फूले गोंदा फूल, अबड़ ममहावत हावै।

बइठ चिरइया डार, राग सुग्घर के गावै।।

बाँध मया के डोर, भेद ला अब सब छोड़ो।

मनखे मनखे एक, प्रेम के नाता जोड़ो।।



आन बान अउ शान, तिरंगा ला फहराबो।

धरती के ये धूल, माथ मा तिलक लगाबो।।

हम भारत के पूत, प्यार से गीत ल गाबो।

भारत माँ के आज, सबो झन मान बढ़ाबो।।


प्रिया देवांगन *प्रियू*

राजिम

छत्तीसगढ़

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[1/26, 4:29 PM] मनोज वर्मा: मन मा उमंग भरे, देशभक्ति भाव धरे।

वन्देमातरम जय, जय हिन्द ये गात हे।

सीना चीर अगास के, आस्था औ बिस्वास के।

शुभ तिरंगा लहर, लहर लहरात हे।

बुढ़ा लइका जवान, रुख राई फूल पान।

करके नमन निज, भाग ला सहरात हे।

चरन मातु भारती, होत हे पूजा आरती।

जन जन स्वाभिमान, अंतस मा जगात हे।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार


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[1/26, 6:09 PM] मीता अग्रवाल: *कुंडलिया छंद* 

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 *गणतंत्र* 

झंडा लहरावय सदा,जन मन के विश्वास ।

जन गण मन अउ भारती,होही पूरन आस।

होही पूरन आस,देश बर निष्ठा जागे।

शिक्षित होय समाज,रोग दुख पीरा भागे।

गुनय मधुर ये गोठ,आपसी चलय न डंडा ।

जन सेवा गणतंत्र,गगन मा लहिरे झंडा ।।


(2)

राजा-रानी बिन चलय,आज हमर गणतंत्र।

जनमन जनता प्राण हे,लोक तंत्र हे मंत्र।

लोकतंत्र हे मंत्र,देश जनमत ले चलथे।

जनता के हे जोर,लोकहित शासन गढ़थे।

गुनय मधुर ये गोठ,राज मा मन के  बाजा।

चुनव अपन महराज,खाव खाजा बिन राजा।।


छंदकार 

 *डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़*

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Tuesday, January 25, 2022

गीतिका छंद - वीर जवान*


 

*गीतिका छंद - वीर जवान*

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वीर भारत देश के तँय, तोर तन कुरबान हे।

लाल तँय हा गाँव के हस, गाँव मा ए जान हे।।

आज रक्षा भार तोरे, तँय बचाले देश ला।

आय घूमत देख बइरी, वो बनाये भेष ला।।


छोड़ तँय भुइयाँ चले हस, सौंप के जी मान ला।

देश खातिर तँय गँवाथस, आज ए तन प्रान ला।। 

घर बिराना तोर होथे, लोग लइका साथ मा।

माँ घलो ला दुःख होथे, दुःख नारी हाथ मा।।


जीत ले तँय देश दुनिया, आज ताकत तोर हे।

कोन हिम्म्मत ला  दिखाही, हाथ कतका जोर हे।।

हाथ ला तँय टोर देबे, जौन बइरी तानही।

चीर हिरदय ला दिखाबे,बात कोनो मानही।।

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बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

Saturday, January 22, 2022

*हरिगीतिका छंद - पुस्तक* ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

 *हरिगीतिका छंद - पुस्तक*

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महिमा बतावँव का सखा,पुस्तक हवै बड़ काम के।

जम्मों भराए ज्ञान हे,गीता रमायन नाम के।।

इतिहास देखव खोल के,सुग्घर दिखावै आज जी।

पुरखा जमाना के सबो,पढ़ लौ लिखाए काज जी।।


सरकार के सब काम के,लेखा घलो पुस्तक कथे।

कानून चलथे देश मा,सब नीति मन हा जी रथे।।

कविता कहानी गीत ला,सुग्घर सबो पढ़ लौ बने।

खेती किसानी काम के,रद्दा सबो गढ़ लौ बने।।


सब जानकारी विश्व के,पाथे अबड़ जी ज्ञान ला।

जिनगी बनाथे पढ़ इहाँ,रखथे अपन ईमान ला।।

सब लोक दरशन हा घलो,होथे पढ़े ले आज जी।

होके सबो शिक्षित इहाँ, करथे बने सब काज जी।।

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बोधन राम निषादराज✍️

*मन फिफियाथे* (पद पादाकुलक छंद)

 *मन फिफियाथे*

(पद पादाकुलक छंद)


बूता काम म मन फिफियाथे।

काहीं के काहीं हो जाथे।

हो जाथे काबर ते आने ।

एती ओती मति हा ताने।


पेरे लकर धकर के घानी।

आधा तेल म आधा पानी।

होथे अब्बड़ हड़बड़ हइया।

खलबल खइया गड़बड़ गइया।


माया हा जतका तिरियाथे।

काया मा झट असर बताथे।

 सुरता लाड़ू छिर्री दिर्री।

खेलत रहिथे चेत ह भिर्री।


एला ओला अमरत रहिथे।

 अँधवा कस मन तमड़त रहिथे।

पाथे कभू कभू तो खाली।

गिर जाथे वो हपटे नाली।


नइ मानय बड़ उधम मचाथे।

जेती बरज उही लँग जाथे।

जब किरपा करथे रघुराई।

तब सब रोग मिटाथे भाई।


गुरु बइगा के मंतर मारे।

घेरी बेरी कस के झारे।

हिरदे के तब जहर उतरथे।

सोना जइसे ज्ञान निखरथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गीतिका छन्द 2122 2122 2122 212

 गीतिका छन्द

2122 2122 2122 212


आज कल चारो डहर छाये नशा भरमार जी।

हर  गली  चौबार मा सजगे नशा बाजार जी।

तेखरे  सेती  इहाँ  अब  होत अत्याचार  हे।

देखथे कोंदा  बरोबर  राज  के सरकार हे।।(1)


बड़ कलह लाथे नशा हा देख लौ परिवार मा।

बोरथे  जिनगी  सबो  के लेगथे अँधियार मा।

ये नशा हर आदमी के  तन करय बीमार  जी।

ठान  लेवव  छोड़  देवव  हे  नशा बेकार जी।।(2)


लूट लेथे ये नशा जम्मो खुशी भंडार ला।

खेत डोली लेगथे अउ लेगथे घर-द्वार ला ।।

राख देथे ये बदल के आदमी व्यवहार जी।

आदमी ला ये बनाथे खोखला लाचार जी।।(3)


जे नशा मा चूर हे वो आदमी खूंखार हे।

जे  नशा के लत लगाये आज बंठाधार हे।

मान कुछ पावे नहीं जी देख ले संसार मा।

नाँव आथे फेर ओखर देश के गद्दार मा।।(4)


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

Monday, January 17, 2022

छेराछेरा परब विशेष- छंदबद्ध कविता


 

छेराछेरा परब विशेष- छंदबद्ध कविता

छेरछेरा(सार छंद)


कूद  कूद के कुहकी पारे,नाचे   झूमे  गाये।

चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।


पाख अँजोरी  पूस महीना,आवय छेरिक छेरा।

दान पुन्न के खातिर अड़बड़,पबरित हे ये बेरा।


कइसे  चालू  होइस तेखर,किस्सा  एक  सुनावौं।

हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।


युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर  के  द्वारे।

राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।


आठ साल बिन राजा के जी,काटे दिन फुलकैना।

हैहय    वंशी    शूर  वीर   के ,रद्दा  जोहय   नैना।


सबो  चीज  मा हो पारंगत,लहुटे  जब  राजा हा।

कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।


राजा अउ रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।

राज रतनपुर  हा मनखे मा,मेला असन भराये।


सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।

रहे  पूस  पुन्नी  के  बेरा,खुले रहे दरवाजा।


कोनो  पाये रुपिया पइसा,कोनो  सोना  चाँदी।

राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।


राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।

पूस  महीना  के  ये  बेरा, सबके  झोली भरबों।


ते  दिन  ले ये परब चलत हे, दान दक्षिणा होवै।

ऊँच नीच के भेद भुलाके,मया पिरित सब बोवै।


राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो होय ये जोरा।

कोसलपुर   माटी  कहलाये, दुलरू  धान  कटोरा।


मिँजई कुटई होय धान के,कोठी हर भर जावै।

अन्न  देव के घर आये ले, सबके मन  हरसावै।


अन्न दान तब करे सबोझन,आवय जब ये बेरा।

गूँजे  सब्बे  गली  खोर मा,सुघ्घर  छेरिक छेरा।


वेद पुराण  ह घलो बताथे,इही समय शिव भोला।

पारवती कर भिक्षा माँगिस,अपन बदल के चोला।


ते दिन ले मनखे मन सजधज,नट बन भिक्षा माँगे।

ऊँच  नीच के भेद मिटाके ,मया पिरित  ला  टाँगे।


टुकनी  बोहे  नोनी  घूमय,बाबू मन  धर झोला।

देय लेय मा ये दिन सबके,पबरित होवय चोला।


करे  सुवा  अउ  डंडा  नाचा, घेरा गोल  बनाये।

झाँझ मँजीरा ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।


दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।

हरे  बछर  भरके  तिहार  ये,छेरिक  छेरा  गा  लौ।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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दुर्मिल सवैया


सम हे सब आज समाज बड़े छुटका मनखे झन खोज इहॉं।

चल संग तहूॅं हर वामन रूप बना मिलही नइ रोज इहॉं।

लइका बुढ़वा सब घूमत हे मन मा भरके सब ओज इहॉं।

झन टोर मया अउ गॉंव जगा जिनगी रहिथे नित सोज इहॉं।


अन के धन के जन के मन के सम छेरिक छेर तिहार हरे।

झन सोय कहूॅं हर भूखन लॉंघन सुग्घर ये सुबिचार हरे।

अउ बॉंट बरोबर खाय सबो भर पेट इही हर सार हरे।

सुख आय घरो घर येहर तो अनपूरन मात दुलार हरे।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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कुंडलियाँ

भेदभाव ला छोड़के, मानँव पूष तिहार ।

अन्न दान के हे परब, बाँटव मया दुलार ।।

बाँटव मया दुलार, जगत मा नाम कमाँलव ।

तज दव माँशाहार, दार अउ चटनी खालव ।।

अध्धी बोतल छोड़,तजव जी आज पाव ला ।

पबरित हवय तिहार, भुलादव भेद भाव ला ।।


छेरिक छेरा गौटिया, दे कोठी के धान ।

मिलही ए संसार मा, तोला सुग्घर मान ।।

तोला सुग्घर मान , मिले अउ धन हा बाढे ।

दे चुरकी भर धान, दुवारी सब झन ठाडे ।।

निचट मचायें सोर, धान ला हेरिक हेरा ।

एके सुर नरियाँय, गौटिया छेरिक छेरा ।।


डंडा घर घर नाचके, पावँय पैसा धान ।

झूमँय माँदर ताल मा, गावँय गीत सुहान ।।

गावँय गीत सुहान, घरो घर हल्ला भारी ।

परब दान के आय, मनावँय सब नर नारी ।।

कतको मातँय मंद, खात हें कुकरा अंडा ।

हुडदंगी मन पोठ, पुलिस के खावँय डंडा ।।


*पुरुषोत्तम ठेठवार* ठेठ 

*छंदकार*

*ग्राम -भेलवाँटिकरा*

*जिला -रायगढ*

*छत्तीसगढ*

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"छेरछेरा तिहार आगे"

लावणी छंद

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पूस माह के पुन्नी आगे,

             छेरिक   छेरा   आगे   ना।

सुनलव मोरे भाई बहिनी, 

              धरम करम सब जागे ना।

पूस माह के पुन्नी आगे........


होत बिहनिया देखौ लइका,

                बर चौरा सकलावत हे।

कनिहा बाँधे बड़े घाँघरा,

             नाचत अउ मटकावत हे।।

देवव दाई-ददा धान ला,

               कोठी   सबो  भरागे  ना।

पूस माह के पुन्नी आगे........


मुठा मुठा सब धान सकेलय,

                टुकनी हा भर छलकत हे।

छत्तीसगढ़ी रीति नियम ये,

                मन हा सुग्घर कुलकत हे।।

छेरिक छेरा परब हमर हे,

                  भाग घलो लहरागे ना।

पूस माह के पुन्नी आगे........


देखव संगी चारों कोती,

                बने  घाँघरा  बाजत हे।

बोरा  चरिहा  टुकना बोहे,

             बहुते  लइका  नाचत हे।।

छेरिक छेरा नाच  दुवारी,

                 खोंची खोंची माँगे ना।

पूस माह के पुन्नी आगे.........

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रचनाकार :-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)

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गीतिका छंद- छेरछेरा


छेरछेरा के बधाई, आप सब ला मोर हे ।

गाँव पारा अउ गली मा, सुख उगे मन भोर हे ।।

हे दुवारी मा सुनावत, बालपन के बोल जी ।

छेरछेरा छेरछेरा, मीठ मधुरस घोल जी ।।


झूमरत हे मन खुशी मा, चढ़ निसैनी मीत के ।

धन्य धन आशीष छलके, अउ मया बड़ प्रीत के ।।

मोर ये छत्तीसगढ़ के, हे अलग पहिचान जी ।

रख धरोहर ला सँजोये, देत सब ला मान जी ।।


छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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मनहरन घनाक्षरी


कहिके छेरिक छेरा,मनखे करय फेरा,

बाजा गाजा ल बजात,लइका सियान हे।

पूस पुन्नी छेरछेरा,दान पुन्न के जी बेरा,

देवय आशीष अउ,झोली मा ले धान हे।।

दानी पावै गा सम्मान,गावै सब गुनगान,

माई कोठी के धान,बाँटत किसान हे।

मानै सुग्घर तिहार,हँसी खुशी परिवार,

करम-धरम मा तो,डूबय इंसान हे।।

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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*छेरछेरा*

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(चंद्रमणि छंद)


अरन बरन कोदो झरन, देबे तभ्भे हम टरन।

लइका मन सब आय हें, छेर छेर चिल्लाय हें।


आज छेरछेरा हवय,पावन पुन बेरा हवय।

 सुग्घर आय तिहार ये, देथे जी संस्कार ये।


एकर जी इतिहास हे, फुलकैना के खास हे।

राजा चलन चलाय  हे, जमींदार वो साय हे।


माँगे मा का लाज हे, परंपरा के काज हे।

सूपा मा भर धान ला,करथे धर्मिन दान ला।


दान करे धन बाढ़थे,मन के पीरा माढ़थे।

बरसा होथे प्यार के, आसिस अऊ दुलार के।


ढोलक माँदर ला बजा,माँगत आथे बड़ मजा।

डंडा नाचत झूम के, गाँव ल पूरा घूम के।


धन्य हवय छत्तीसगढ़, जेकर सुंदर कीर्ति चढ़।

भाँचा रघुपति राम हे, दया धरम के धाम हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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छेरछेरा - अमृतध्वनि छंद


छेरिक  छेरा  छेर  के, लइका  करै  गुहार।

दरबर दरबर रेंग के,झाँकय सब घर द्वार।।

झाँकय सब घर,द्वार धान ला,माँगे बर जी।

बाँधे कनिहा,बाजै घँघरा,खनर खनर जी।।

नाचय  कूदय,  धूम  मचावय, रेंगत  बेरा।

आय परब तब,हाँसत गावै,छेरिक छेरा।।


बोधन राम निषादराज

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छेरछेरा (गीतिका छन्द )


छेरछेरा के परब हा देख सब ला भात हे।

दान पाये बर घरो घर लोग लइका जात हे। 

धान के कोठी भरे हेरत बबा हा आज जी।

ये हमर हे रीत सुग्घर लोग करथें नाज जी।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

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छंद रचना

छेरछेरा परब


बोलत छेरिक छेरा छेर, लइका मन  घर घर जावैं।

कोठी के सब हेरव  धान, घेरी बेरी चिल्लावैं।।

सब झन करव अन्न के दान, पूण्य हवय अब्बड़ भारी।

भरे रहय सबके भंडार, लहलहाय खेती बारी।।


दाई शाकम्भरी सहाय, गहदे सब भाजी पाला।

भरय सबो प्राणी के पेट, हटय गरीबी के जाला।।

अन्न दान के आय तिहार, ये अब्बड़ पबरित लागै।

दुख दारिद सब होवय दूर, दान धरम के रस पागै।।


अन्नपूरना देवय दान, फैलाये शिव जी झोली।

अद्धभुत अचरज दिखथे दृश्य, दुनो भरय जग के ओली।।

मन ला भावैं रीति -रिवाज, खुशी मगन नाचत आवैं।

सुघर लगय संस्कृति संस्कार,  मिलके  सब परब मनावैं।।


माँगय लइका लोग सियान, छोटे बड़े बने टोली।

लगय अनोखा सुर अंदाज, मनभावन गुत्तुर बोली।

चीला चौसेला पकवान, महके घर अँगना पारा।

पावन पबरित पूस तिहार, बगरे जस भाईचारा।।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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कुकुभ छंद 


छेरछेरा 


सुनौ छेरछेरा आगे गा, लइकन झोला धर आथे।

छेरिक छेरा दे दे दाई,कहिके जम्मों चिल्लाथे।।


मींजे कूटे कोठी भरगे,छलकत ले लक्ष्मी दाई।

दान आज के दिन तँय करले,पुण्य करम थोरिक माई।।


धन दोगानी सँग नइ जावे,करम कमाई जाथे जी।

बेद पुराण संत ज्ञानी मन,रसता 

इही बताथे जी।।


कोनो आथे बाजा धर के,राम नाम गुण गाथे जी।

कोनो ड़फली धरे मोहरी,राग म राग मिलाथे थे।।


डंडा नाचे गीत ल गाके,कुहकी कोनो पारत हे।

बाजे डंडा चट चट भैया,कूद कूद के नाचत हे।।


दाई राँधे खुरमी बबरा,महर महर ममहावय जी।

नोनी बाबू आज मगन हे, जुर मिल  सबो खवावय जी।।


आथे एक बछर में  भैया,पुन्नी पूस कहावत हे।

महानदी में डुबकी लेथें,भोले नाथ  मनावत हे।।


केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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@छेरछेरा@


महादान के महा परब के, आगे हावय बेरा ।

छेरिक छेरा छेर बरकनिन, मानलव छेरछेरा ।


पूस मास के पुन्नी आथे, कुनकुन करथे जाड़ा ।

कोठी मा तब हर घर रहिथे, दाना गाड़ा गाड़ा ।

उत्सव मंगल खुशी मनावय, का लइका का बुढ़वा ।

संस्कृति संस्कार सबो जस, माढ़े बनके गुढ़वा ।

जुरमिल जोरव ताग ताग ला, आँटव बनके ढेरा ।



कमला बिमला फुदरु आवय, धरके चुमड़ी झउहा ।

अघनु फागु पिछवावय ता, आवय लउहा लउहा ।

गांव गली आरा पारा के, लइका मन सकलाके ।

गुनय छेरछेरा चल माँगन, गाँव गाँव मा जाके ।

नाचत गावत लइका मन हा, फेर लगाही फेरा ।


परे बिपत मा जइसे धरती, दुःख हरे सब झनके ।

बनके शाकम्भरी पुरोवव, सब झन बर अन धन के।

अनपुरना हा मान बढ़ाये, जइसे शिव शंकर के ।

राजा बलि के सुरता करके, दान करव मनभर के ।

बनके वामन लइका मन हा, आही तुँहरो डेरा ।


नाचत गावत लइका मन हा तुँहरो अँगना आही ।

जभ्भे देबे तभे टरन हम, कहिके हाँक लगाही ।

ठोमहा-पसर दान करब मा, जिहि हमर संस्कार हा ।

हाँसत कुलकत फेर बुलकही, इहू बछर तिहार हा ।

सिरतोन कहिथंव संस्कृति के, बांचे रहिही घेरा ।


ईश्वर साहू 'आरुग' 

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 अजय अमृतांसु: छेरछेरा (गीतिका छन्द )


छेरछेरा के परब हा देख सब ला भात हे।

दान पाये बर घरो घर लोग लइका जात हे। 

धान के कोठी भरे हेरत बबा हा आज जी।

ये हमर हे रीत सुग्घर लोग करथें नाज जी।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

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 मीता अग्रवाल: कुण्डलियां  छंद 


छेरिक छेरा हे परब,अन्न दान के मान।

अपन कमाये धान ले,कोठी भरय किसान।

कोठी भरय किसान,छेरछेरा तब मानय।

छोट बड़े के भेद,बंधना ला नइ जानय।

सुनो मधुर के गोठ,लोक किवदंती डेरा।

साक दान जगदंब, परब बड छेरिकछेरा।।


(2)

दानव रूरू नाव के,बढ़गे अइताचार।

देवी डंडा नाचथे,करिन उखर संहार।

करिन उखर संहार,नाच के डंडा  साँचा।

तबले हे शुरुवात,छेरछेरा मा नाचा। 

शिव परीक्षा लीन,बिहा गौरी तब जानव।

बिकट मधुर संवाद,मानथे देवी दानव।।


डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

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Sunday, January 16, 2022

हरिगीतिका छंद - गरीबी*

 *हरिगीतिका छंद - गरीबी*

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जाही गरीबी देश ले,कइसे सखा कुछ हे पता।

बाढ़त गजब संख्या इहाँ,मनखे करै अब का बता।।

सरकार चाउँर देत हे, सुन एक रुपया दाम मा।।

फूँकत हवै जी नोट ला, बनके शराबी नाम मा।।


करथे अलाली घर बइठ,बिन काम के झगरा करै।

दाई ददा के चीज ला, सब बेंच पी खा के मरै।।

बनके  गरीबी  हाथ मा, अपने गँवाये होश ला।

मन काम मा नइ होय जी,ठंडा करै सब जोश ला।।


थक हारथे कर काम ला,दाई ददा मन गाँव मा।

जाँगर पेरावत खेत मा,सुरतात बम्हरी छाँव मा।।

दिन रात महिनत सब करै,रोटी मिलै दू रोज के।

जावै गरीबी नइ सखा,बूता करै सब खोज के।।

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छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

Saturday, January 15, 2022

पूस के जाड़-सरसी छंद


 

पूस के जाड़-सरसी छंद


जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।

किनकिन किनकिन ठंडा पानी, चाबे जइसे साँप।


सुरुर सुरुर बड़ चले पवन हा, हाले डोले डाल।

जीव जंतु बर पूस महीना, बनगे हावय काल।

संझा बिहना सुन्ना लागे, बाढ़े हावय रात।

नाक कान अउ मुँह तोपाये, नइहे गल मा बात।

चँगुरे कस हे हाथ गोड़ हा, बइठे सब चुपचाप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


दाँत करे बड़ किटकिट किटकिट, नाक घलो बोहाय।

सुधबुध बिसरे बढ़े जाड़ मा, ताते तात खवाय।

गरम चीज बर जिया ललाये, ठंडा हा नइ भाय।

तीन बेर तँउरइया टूरा, बिन नाहय रहि जाय।

लइका लोग सियान सबे झन, करें सुरुज के जाप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


भुर्री आखिर काय करे जब, पुरवा बरफ समान।

ठंडा पानी छीचय कोनो, निकल जाय तब प्रान।

काम बुता मा मन नइ लागे, भाये भुर्री घाम।

धीर लगाके लगे तभो ले, गजब पिराये चाम।

दिन ला गिनगिन काटत दिखथे, बबा गोरसी ताप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


मुँह के निकले गुँगुवा धुँगिया, धुँधरा कुहरा छाय।

कुड़कुड़ कुड़कुड़ मनखे सँग मा, काँपैं छेरी गाय।

चना गहूँ हें खेत खार मा, संसो मा रखवार।

कतको बेरा हा कट जाथे, बइठे भुर्री बार।

कतका जाड़ जनावत हावय, तेखर नइहे नाप।

जाड़ पूस के गजब जनाथे, जिवरा जाथे काँप।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


Friday, January 14, 2022

मकर संक्रांति (सकरायत)* (आल्हा छंद)


 *मकर संक्रांति (सकरायत)*

(आल्हा छंद)

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पौष मास मा सुरुज देव हा,करथे सुग्घर मकर प्रवेश।

तभे मनाथे सकरायत ला,पूजन करथे लोग दिनेश।।


उठके बिहना नहाखोर के,लाली फुलवा धर के हाथ।

लोटा मा पानी ला देथे,चन्दन अक्षत ले के साथ।।


नहाखोर के दान पुण्य ले,होथे मनखे के कल्याण।

परब रथे सुग्घर बेरा के, शुद्ध होत हे सबके प्राण।।


भगवत गीता पाठ करे जे,अउ कम्बल तिल घी के दान।

अइसन करथे जउन भक्त मन,खुश हो जाथे श्री भगवान।।


ये दिन खिचड़ी खास रथे जी,बने बनाथे मनखे लोग।

सुरुज देव के पूजा करके, सबो लगाथे सुग्घर  भोग।।


सुरुज देव शनि पुत्र अपन ले,मिलथे पा के सुग्घर पर्व।

शुभ होथे सबके कारज हा,मन मा होथे भारी गर्व।।


कहूँ कुंडली सुरुज देव हे,या होवे शनि जी के वास।

ये दिन पूजन हवन कर्म से,मिट जाथे मिलथे फल खास।।


सुरुज उत्तरायण सकरायत,कहिथे एला  वेद पुराण।

उपासना जे मनखे करथे,ओखर हो जाथे कल्याण।।


नवा फसल के बेरा होथे,खुशी मनाथे सबो किसान।

तिल गुड़ के सब बाँटे लड्डू,लइका चाहे होय सियान।।


परम्परा ये हमर देश के,लइका सबो पतंग  उड़ाय।

गाँव-गाँव अउ शहर-शहर मा,जुरमिल के सब खुशी मनाय।।

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छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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मकर संक्रांति परब मा मोर रचना


गीतिका छंद


जान लव संक्राति महिमा ,आव सब झन जी सुनव।

ये अबड़ पबरित परब हे, ध्यान से मन मा गुनव।।

हे जुड़े कतको कहानी, धर्म अउ विज्ञान हे।

चक्र ग्रह नक्षत्र के भी, तर्क अनुसंधान हे।।


जब भगीरथ लाय गंगा,  वंश के उद्धार बर।

मुक्ति के रद्दा बनाये , गोत्र कुल परिवार बर।

भाग्य बड़ राजा सगर के, वो महासागर बने।

घर जिहाँ गंगा बनाये, भक्ति श्रद्धा से सने।।


उत्तरायण के डहर जब ,जाय सूरुज देवता।

हे कथा शनिदेव के भी, दे धरम सुख नेवता।।

शुभ मकर संक्रांति के दिन, भीष्म त्यागे प्राण ला।

मातु गंगा अउ सुरुज के, जग करय गुणगान ला।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा




Tuesday, January 11, 2022

लाल बहादुर शास्त्री जी जयंती विशेष- छंदबद्ध कविता


 

लाल बहादुर शास्त्री जी जयंती विशेष

: मनहरण घनाक्षरी


जन-जन के दुलारे,भुइयाँ के रखवारे,

लाल बहादुर शास्त्री,रिहिन सुजान जी।

सत्य अहिंसा पुजारी,काम करै हितकारी,

शांति दूत बनके वो,करिन उत्थान जी।

अमर उँकर नाम,बाँजिस सुग्घर काम,

बढ़ाइस हवै इहाँ,भारत के शान जी।

राख देश के जी लाज,लाइस हवै सुराज,

न्याय मिलय सब ला,बाँटिस हे ज्ञान जी।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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 /लाल बहादुर शास्त्री - आल्हा छंद//


भारत भुइयाँ के बेटा ये, जनम धरिन हे मुगलसराय।

उन्नईस सौ चार ईसवी, दू अक्टूबर महिना ताय।।


मृत्यु जवाहरलाल नेहरू, सन् चौसठ बच्छर के पार।

लाल बहादुर शास्त्री होइन, पद प्रधानमंत्री हकदार।


माह जून नौ सन् छैसठ ले, माह अठारह रहिन जवान।

पद प्रधानमन्त्री भारत के, लाल बहादुर शास्त्री जान।।


मंत्री रहिन दूसरा ये हा, अद्भुत साहस मन के धीर।

कार्यकाल सुग्घर इँखरे जी, लाल बहादुर शास्त्री वीर।।


इँखरे पत्नी ललिता शास्त्री, पतिवरता मा रहिन महान।

अनिल सुनील सुमिन लइका जी, राखिन हे इँखरे ईमान।।


मिलिस उपाधि बने शास्त्री ला, सुग्घर काशी विद्यापीठ।

स्वतंत्रता बर लड़िन लड़ाई, निर्भिक होइन बनके ढीठ।।


भारत पाक-युद्ध सन् पैंसठ, होइन इँखरे शासनकाल।

बने करारी ये जवाब दिन, करिन पाक ला देश निकाल।।


झटका मिलिस पाक ला अइसन, कभू नहीं सोंचे वो पाय।

रहिन बहादुर शास्त्री जी हा, बइरी मन रहि रहि घबराय।।


तिथि ग्यारह जनवरी माह मा, सन् छैसठ के वो दिन आय।

लाल बहादुर शास्त्री जी के, तन ले ओखर जीव उड़ाय।।


शत् शत् नमन करँव शास्त्री ला, भारत माँ के बेटा खास।

चाँद सुरुज कस चमकत रइही, नाँव इँखर नीला आगास।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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दोहा छंद


अनुशासन अउ एकता, भारत रहय अखण्ड।

शास्त्री जी के हे कथन, देशद्रोह हे दंड।।


जय जवान रक्षा करे, जय किसान के मान।

लालबहादुर शास्त्री , नेता रहिन महान।।


जीवन सादा हे जिये, राखिन उच्च विचार।

एक सहीं छोटे बड़े, सब बर सम व्यवहार।।


देश धर्म सबले बड़े, शास्त्री जी के मंत्र।

सब विकास मिलके करव, हाथ करय या यन्त्र।।


लालबहादुर शास्त्री , धरती के हे लाल।

हीरा कस दमकत हवय , भारत माँ के भाल।।



आशा देशमुख

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कारज जेकर बड़े महान, करथे सब वोकर गुणगान।

करनी जग मा हावै सार, कल्प वृक्ष कस बड़ फलदार।।


सुग्घर येकर जे पर्याय, लालबहादुर शास्त्री ताय।

भारत माॅं के वीर सपूत, अउ ईमान धरम के दूत।।


सहज सरलता पबरित भाव, रहे दूर कुर्सी के ताव।

जननायक के सच्चा रूप, बैरी काॅंपे हो जय चूप।।


कद काठी मा भलकू छोट, नइ छू सके कभू जी खोट।। 

जय जवान जय कहे किसान, दूनो ला दे बड़ सम्मान।।


करॅंव नमन मॅंय तोला आज, हवय देश ला भारी नाज।

कहॉं तोर कस अब किरदार, छाये बहुते भ्रष्टाचार।।


अमर रहे तोरे पहिचान, जुग जुग चमके दीप समान।।

कारज जेकर बड़े महान, करथे सब वोकर गुणगान।

करनी जग मा हावै सार, कल्प वृक्ष कस बड़ फलदार।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार


Saturday, January 8, 2022

रूपमाला छंंद* *राख माटी मान*

 *रूपमाला छंंद*

*राख माटी मान*

आन के झंडा उठा झन, छोड़ पर गुनगान।

जोर के संगी सखा ला , राख माटी मान।।

लूट जावत धन इँहा के, अब बचा के राख।

राज लाके काज खुद कर, तँय बना ले साख।। 


देव-धामी छोड़ पर के, तोर पुरखा मान।

तोर संस्कृति ला बचा ले, हे इही हर शान।।

तँय कसम खा युग नवा बर, आज पागा बाँध।

बाचही संस्कृति तभे जब, जोर लेबे खाँध।।

*अनुज छत्तीसगढ़िया*

 *पाली जिला कोरबा*

गीतिका छंद:- मनखे के ईमान-

 गीतिका छंद:-

 मनखे के ईमान-

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आ अपन अब देश के जी,डोर थाम्हौ हाथ मा।

अब ठिकाना नइ दिखत हे,जोर कंधा साथ मा।।

लूट माते देख भइया,वो अपन झोली भरै।

आज मनखे वोट खातिर,जान के बोली करै।।


डोल थे ईमान अब तो,का भरोसा आस के।

आन कहिथे आन करथे,नइ हवे बिसवास के।।

राज बर हे जंग अब तो,कोन देखय आज ला।

नइ इहाँ अब लोक सैना,जौन देखय काज ला।।


आदमी मन बीक जाथे,देख पइसा पाय के।

बल गरजथे जेब भरथे,मंद मा बउराय के।।

लोग लइका नइ चिन्है गा,घर दुवारी आत हे।

का बतावौं भेद इँखरो,देश अब बेचात हे।।

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बोधन राम निषादराज"विनायक"

Thursday, January 6, 2022

अमृतध्वनि छन्द-महिनत के फल*

 *अमृतध्वनि छन्द-महिनत के फल*


जीना हे जब शान से,जांगर थोरिक तोड़।

आलस ला सब छोड़ के,नता करम ले जोड़।।

नता करम ले,जोड़ गोठ ये,ज्ञानी कहिगे।

करम करे जे,धरम मान वो,जग मा लहिगे।

मुसकुल होवय,महिनत कतरो,कस ले सीना।।

शान मान से,ये दुनिया मा,जब हे जीना।।


महिनत कर लव शान से,आलस हे बेकार।

महिनत के पतवार ले,होवय बेड़ा पार।।

होवय बेड़ा,पार करे जे,रोज काम हे।

घाम जाड़ अउ,सावन मा जे,घसे चाम हे।।

सिरजन के ये,हवन कुंड मन,स्वाह देय दव।

नाम दाम ला,पाना हावय,महिनत कर लव।।


पावय जीवन नेक वो,रोज करे जे काम।

खटिया टोरे का मिले,झन कर बड़ आराम।।

झन कर जी आराम पड़े झन, भारी रोना।।

तन मन बर हे,काल असन ये,भारी सोना।।

काम धाम जे,रोज करे वो,सुख मा गावय।।

तन मन चंगा,सुग्घर मंगल,जीवन पावय।।


छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र✍️

हल्दी-गुंडरदेही,जिला-बालोद

मोबाइल न.8225912350

Sunday, January 2, 2022

नवा बछर*


*नवा बछर*


लावणी छंद


साल लगावत रहिथे भैया, बारह महिना के फेरा।

साँझ रात दिन के पहरा हे, सुख दुख के हावय घेरा।। 1


कभू शीत हे कभू घाम हे, नाम धरे गरमी जाड़ा।

कभू बहय सुघ्घर पुरवैया, कभू काँपथे गा हाड़ा।।2


नवा साल के स्वागत करथें, मिलके जम्मों नर नारी।

सुख के बोरा भरही कहिके, आस लगाथें सब भारी।।3


जन जन ला जनवरी देत हे, आशीष मया बधाई जी।

सरकारी सब काम काज मा, येखर मान बड़ाई जी।।4


धरम सनातन चैत रचे हे, बारँय सब दीया बाती।

राम चन्द्र अवतार लिए हे, अउ माता शुभ के दाती।।5


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

हेम के बरवै छंद*

 *हेम के बरवै छंद*


आगे नवा बछर के, पहली भोर।

हैप्पी न्यू ईयर हे, सबला मोर।।


अंग्रेजी कैलेंडर, जग भर छाय।

कोनो नइहे संगी, अब पिछ्वाय।।


नवा बछर मा सबले, रिश्ता जोड़।

बैर भाव अउ झगरा, सबला छोड़।।


सादा जिनगी रखबे, उच्च विचार।

सुम्मत के सुग्घर जग, बगरय नार।।


नवा बछर मा संगी, बनव निरोग।

अच्छा स्वास्थ्य रइही, करलव योग।।


बीड़ी तम्बाकू अउ, मदिरा पान।

बीमारी ला पनपा, लेथे जान।।


नवा बछर मा गुरतुर, बोली बोल।

दया मया के सुग्घर, बानी घोल।।


मन आपा झन खोवय, बाँधव पार।

जिनगी के सब विपदा, देवय टार।।


आही नवा बछर के, नव अंजोर।

आसा हावय सुग्घर, मन मा मोर।।


फेर भाग्य हर खुलही, सुग्घर तोर।

जी जान लगाके तँय, जांगर टोर।।


-हेमलाल साहू

छंद साधक सत्र- 1

ग्राम गिधवा, जिला बेमेतरा

Saturday, January 1, 2022

नवा बछर -सरसी छंद

 नवा बछर -सरसी छंद

नवा बछर के सब ला भइया,हवय बधाई आज।

पूरन होवय सपना सबके,होवय नेकी काज।।


सबके जिनगी सुग्घर गुजरे,गढ़े नवा इतिहास।

रात अमावस छू मंतर हो,जिनगी रहय उजास।।


बीते बछर ले सीख मिले हे,राखन शुद्ध विचार।

परहित सेवा मा जिनगी हो,इही हमर संस्कार।।


दया-भाव सब बर राखव जी,करव नहीं अभिमान।

धरम-करम मा जिनगी बीते,मनखे बनव सुजान।।


नवा बछर मा नवा सोच ले,चलते सब झन जान।

भाग गढ़े सब मनखे मन हा,बाँटन सुघर गियान।।


गाँव देश अउ राज काज के,बाँढ़य गा सम्मान।

नवा बछर मा इही कामना,सुमति देय भगवान।।


मेल जोल अउ खुशियाँ बरसे,सबके अँगना खोर।

लेवत राहव हीत मीत के,निशदिन सुग्घर शोर।।


संगीता वर्मा

भिलाई छत्तीसगढ़

गीत(नवा बछर)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गीत(नवा बछर)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


नवा बछर मा नवा आस धर,नवा करे बर पड़ही।

द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


साधे खातिर अटके बूता,डॅटके महिनत चाही।

भूलचूक ला ध्यान देय मा,डहर सुगम हो जाही।

चलना पड़ही नवा पाथ मा,सबके अँगरी धरके।

उजियारा फैलाना पड़ही, अँधियारी मा बरके।

गाँजेल पड़ही सबला मिलके,दया मया के खरही।

द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


जुन्ना पाना डारा झर्रा, पेड़ नवा हो जाथे।

सुरुज नरायण घलो रोज के,नवा किरण बगराथे।

रतिहा चाँद सितारा मिलजुल,रिगबिग रिगबिग बरथे।

पुरवा पानी अपन काम ला,सुतत उठत नित करथे।

मानुष मन घलो अपन मुठा म,सत सुम्मत ला धरही।

द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


गुरतुर बोली जियरा जोड़े,काँटे चाकू छूरी।

घर बन सँग मा देश राज के,संसो हवै जरूरी।

जीव जानवर पेड़ पकृति सँग,बँचही पुरवा पानी।

पर्यावरण ह बढ़िया रइही, तभे रही जिनगानी।

दया मया मा काया रचही,गुण अउ ज्ञान बगरही।

द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

सार छंद- नवा बछर

 सार छंद- नवा बछर

नवा साल मा सुमता धरके,नवा बिहनिया लानौ।

सबो कोत खुशहाली बगरै, मन मा अइसे ठानौ।।


स्वस्थ रहय सब मस्त रहय अउ, सुखमय हो जिनगानी।

मया बढ़े रिश्ता नाता मा,खुश राहय सब प्रानी।।


धन जश बाढ़य मनखे मनके,बाढ़य भाईचारा।

मया रंग मा सने रहय सब,बहय गंग के धारा।।


रहे कोय ना लाँघन भूखन,सब बर दाना पानी।

नवा बछर मा नवा काम हो,गढ़के नवा कहानी।।


बछर निकलगे जुन्ना देखत,नवा बछर हा आये।

होय कामना पूरा सबके,भूल चूक बिसराये।।


सुख दुख मा सब साथी बनके,खुशियाँ सुघर मनावौ।

नवा बछर के हवय बधाई,इरखा तुमन भुलावौ।।


सपना सबके पूरा होवय,झुके इहाँ अभिमानी।

धरम करम हा फले सुघर अउ,मनखे बने सुजानी।।


सुख के बादर हा नित छावय,भागय कुलुप अँधियारी।

गाँव-गली निरमल गंगा हो,सत के बने पुजारी।।

विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

नवा बछर (बरवै छन्द)*

 



*नवा बछर (बरवै छन्द)*


नवा बछर मा होही,नवा बिहान। 

टरही बिपदा सिरतो,तैंहा जान।


नवा बछर मा अइसन करव उपाय।

भूखे रहिके कोनो, झन सुत जाय।


बीमारी सब आँसों, जाही भाग।

मिलके गाबों सब झन,बढ़िया राग।


नवा बछर के बानी ,धर ले सार।

झगरा छोड़ सुमत के,दीया बार। 


ठेस लगय झन कोनो,सुनव मितान।

मनखे मनखे होथे, एक समान।


नवा बछर मा सुग्घर,अलख जगाव।

नशा पान ला आगी, सबो लगाव।


आपस मा अब होवय,झन टकराव।

मया पिरित ला सुग्घर,सब बगराव।


नवा बछर ला अइसन,सबो मनाव।

बिगड़े रिश्ता मिलके, सुग्घर बनाव।


नवा बछर मा होवय,सबके जीत।

दया मया के सुग्घर, होवय रीत।


*अजय अमृतांशु*

भाटापारा