धरती मँइयाँ
नँदिया तरिया बावली, भुँइयाँ जग रखवार।
माटी फुतका संग मा, धरती जगत अधार।।
जल जमीन जंगल जतन, जुग-जुग जय जोहार।
मनमानी अब झन करव, सुन भुँइयाँ गोहार।।
पायलगी हे धरती मँइयाँ,
अँचरा तोरे पबरित भुँइयाँ।
संझा बिहना माथ नवावँव,
जिनगी तोरे संग बितावँव।~1
छाहित ममता छलकै आगर,
सिरतों तैं सम्मत सुख सागर।
जीव जगत जन सबो सुहाथे,
धरती मँइयाँ मया लुटाथे।~2
फुलुवा फर सब दाना पानी,
बेवहार बढ़िया बरदानी।
तभे कहाथे धरती दाई,
करते रहिथे सदा भलाई।~3
देथे सबला सुख मा बाँटा,
चिरई चिरगुन चाँटी चाँटा।
मनखे बर तो खूब खजाना,
इहें बसेरा ठउर ठिकाना।~4
रुख पहाड़ नँदिया अउ जंगल,
करथें मिलके जग मा मंगल।
खेत खार पैडगरी परिया,
धरती दाई सुख के हरिया।~5
जींयत भर दुनिया ला देथे,
बदला मा धरती का लेथे।
धरती दाई हे परहितवा,
लगथे बहिनी भाई मितवा।~6
आवव अमित जतन ला करबो,
धरती के हम पीरा हरबो।
देख दशा अपने ये रोवय,
धरती दाई धीरज खोवय।~7
बरफ करा गरमी मा गिरथे,
मानसून अब जुच्छा फिरथे।
छँइहाँ भुँइयाँ ठाड़ सुखावय,
बरबादी बन बाढ़ अमावय।~8
मतलबिया मनखे मनगरजी,
हाथ जोड़ के हावय अरजी।
धरती ले चल माफी माँगन,
खुदे पाँव झन टँगिया मारन।~9
बंद करव गलती के पसरा,
छदर-बदर झन फेंकव कचरा।
दुखदाई डबरा ला पाटव,
रुखराई मत एको काटव।~10
करियावय झन उज्जर अँचरा,
कूड़ादानी डारव कचरा।
कचरा के करबो निपटारा,
चुकचुक चमकै ये संसारा।~11
लालच लहुरा लउहा लाशा,
धरती सँउहें खीर बताशा।
महतारी कस एखर कोरा,
काबर सुख के भूँजन होरा।~12
पेड़ मीठ फर पथरा परथे,
हुमन करे मा हँथवा जरथे।
धरती के भरपुरहा कोरा,
दशा देख झन दाँत निपोरा।~13
सँइता सुख के सुग्घर सिढ़िया,
बाँटव बाढ़व राहव बढ़िया।
साहू अमित करय हथजोरी,
धर रपोट झन बनव अघोरी।~14
आवव राजा आवव परजा,
उतारबो धरती के करजा।
उड़ती बुड़ती उँचहा उज्जर,
दिखही दुनिया बहुते सुग्घर।~15
देथे धरती जिनगी भर जी,
झन सकेल,तैं सँइता कर जी।
बाँटे मा मिलथे सुख गहना,
एकमई सब हिलमिल रहना।~16
रोकव राक्छस परदुसन,धरती करय पुकार।
पुरवाही फुरहुर बहय, अमित दवा दमदार।।
रचनाकार - श्री कन्हैया साहू "अमित"
शिक्षक~भाटापारा, छत्तीसगढ़
संपर्क~9200252055
नँदिया तरिया बावली, भुँइयाँ जग रखवार।
माटी फुतका संग मा, धरती जगत अधार।।
जल जमीन जंगल जतन, जुग-जुग जय जोहार।
मनमानी अब झन करव, सुन भुँइयाँ गोहार।।
पायलगी हे धरती मँइयाँ,
अँचरा तोरे पबरित भुँइयाँ।
संझा बिहना माथ नवावँव,
जिनगी तोरे संग बितावँव।~1
छाहित ममता छलकै आगर,
सिरतों तैं सम्मत सुख सागर।
जीव जगत जन सबो सुहाथे,
धरती मँइयाँ मया लुटाथे।~2
फुलुवा फर सब दाना पानी,
बेवहार बढ़िया बरदानी।
तभे कहाथे धरती दाई,
करते रहिथे सदा भलाई।~3
देथे सबला सुख मा बाँटा,
चिरई चिरगुन चाँटी चाँटा।
मनखे बर तो खूब खजाना,
इहें बसेरा ठउर ठिकाना।~4
रुख पहाड़ नँदिया अउ जंगल,
करथें मिलके जग मा मंगल।
खेत खार पैडगरी परिया,
धरती दाई सुख के हरिया।~5
जींयत भर दुनिया ला देथे,
बदला मा धरती का लेथे।
धरती दाई हे परहितवा,
लगथे बहिनी भाई मितवा।~6
आवव अमित जतन ला करबो,
धरती के हम पीरा हरबो।
देख दशा अपने ये रोवय,
धरती दाई धीरज खोवय।~7
बरफ करा गरमी मा गिरथे,
मानसून अब जुच्छा फिरथे।
छँइहाँ भुँइयाँ ठाड़ सुखावय,
बरबादी बन बाढ़ अमावय।~8
मतलबिया मनखे मनगरजी,
हाथ जोड़ के हावय अरजी।
धरती ले चल माफी माँगन,
खुदे पाँव झन टँगिया मारन।~9
बंद करव गलती के पसरा,
छदर-बदर झन फेंकव कचरा।
दुखदाई डबरा ला पाटव,
रुखराई मत एको काटव।~10
करियावय झन उज्जर अँचरा,
कूड़ादानी डारव कचरा।
कचरा के करबो निपटारा,
चुकचुक चमकै ये संसारा।~11
लालच लहुरा लउहा लाशा,
धरती सँउहें खीर बताशा।
महतारी कस एखर कोरा,
काबर सुख के भूँजन होरा।~12
पेड़ मीठ फर पथरा परथे,
हुमन करे मा हँथवा जरथे।
धरती के भरपुरहा कोरा,
दशा देख झन दाँत निपोरा।~13
सँइता सुख के सुग्घर सिढ़िया,
बाँटव बाढ़व राहव बढ़िया।
साहू अमित करय हथजोरी,
धर रपोट झन बनव अघोरी।~14
आवव राजा आवव परजा,
उतारबो धरती के करजा।
उड़ती बुड़ती उँचहा उज्जर,
दिखही दुनिया बहुते सुग्घर।~15
देथे धरती जिनगी भर जी,
झन सकेल,तैं सँइता कर जी।
बाँटे मा मिलथे सुख गहना,
एकमई सब हिलमिल रहना।~16
रोकव राक्छस परदुसन,धरती करय पुकार।
पुरवाही फुरहुर बहय, अमित दवा दमदार।।
रचनाकार - श्री कन्हैया साहू "अमित"
शिक्षक~भाटापारा, छत्तीसगढ़
संपर्क~9200252055