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Wednesday, September 27, 2023

डीजे अउ पंडाल- रोला छंद

 डीजे अउ पंडाल- रोला छंद


जस सेवा के धूम, होत हे कमती अब तो।

सजे हवै पंडाल, डांडिया नाचैं सब तो।।

नवा ओनहा ओढ़, करे हें मेकप भारी।

डी जे के सुन शोर, नँगत झूमैं नर नारी।


मूंदैं आँखी कान, आरती जस सेवा सुन।

भागैं मुँह ला मोड़, सुनत कोनो जुन्ना धुन।

दीया बाती धूप, हूम जग ला जे हीनें।

वोहर थपड़ी पीट, स्टेप गरबा के गीनें।


ना भक्ति ना भाव, दिखावा के दिन आगे।

बड़े लगे ना छोट, सबें देखव अघुवागे।

परम्परा के पाठ, भुलाके बड़ अँटियाये।

फेसन घेंच उठाय, मनुष ला फाँसत जाये।


चुभे जिया ला गीत, कान सुन बड़ झन्नाये।

नइहे होश हवास, उँहें सब हें सिर नाये।

ना मांदर ना ढोल, झोल डी जे मा होवै।

बचे खँचे गुण ज्ञान, दिखावा मा सब खोवै।


नाच गीत संगीत, सबें के बजगे बारा।

संगत सुर संस्कार, सुमत के टुटगे डारा।

कतको हें मतवार, कई हें मजनू लैला।

तन हावै उजराय, भरे हे मन मा मैला।


बइठे देवी देव, बरे बड़ बुगबुग बत्ती।

तभो भक्ति अउ भाव, दिखे नइ एको रत्ती।

मान मनुष  इतरायँ, देव ला माटी खड्डा।

मठ मंदिर अउ मंच, मजा के बनगे अड्डा।


डीजे अउ पंडाल, तिहाँ चंडाल हमागे।

मनखे हवैं मतंग, देवता देवी भागे।।

नवा जमाना ताय, चोचला इसने होही।

सबें चीज के स्वाद, धीर धर चुक्ता खोही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


करयँ हाँस के डांडिया, प्रेमा प्रिया प्रमोद।

कहै सुवा ला फालतू, देखत हवस विनोद।

Friday, September 15, 2023

पोरा तिहार विशेष

पोरा तिहार विशेष


: विष्णुप्रद छंद


भादों माह अमावस पोरा, दिन बड़ पबरित हे।

फसल लहलहावत ओखर बर, सिरतो अमरित हे।।


धान पोटरावत हे सुग्घर, देख किसान इहाँ।

हँसी खुशी सब परब मनाये, मारत शान इहाँ।।


माटी के नंदी बइला के, पूजा आज करै।

हमर किसानी इही मितानी, सब्बो काज करै।।


नोनी मन जाँता चुकिया धर, मिलजुल खेलत हे।

बाबू मन बइला गाड़ी ला, खींचत पेलत हे।।


खोखो दउँङ कबड्डी खेलत, शोर मचावत हे।

लइका संग जवान इहाँ सब, परब मनावत हे।।


छतीसगढ़ी परब परंपरा, हमर धरोहर हे।

बरा ठेठरी खुरमी अड़बड़, बनय घरोघर हे।।


ज्ञानु

[9/14, 2:46 PM] सुखदेव: हरिगीतिका छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'


                   पोरा अउ तीजा 


भादो अमावस आज हे, आये हवय पोरा परब।

संदेश सुख समृद्धि के, लाये हवय पोरा परब।

आसों तनिक जादा मया, पाये हवय पोरा परब।

तब तो पटल मा नेट के, छाये हवय पोरा परब।


ये फेसबुक ये वाटसप, ट्वीटर म इंस्टाग्राम मा।

शुभकामना बगरे हवय, पोरा परब के नाम मा।

मन अन्नदाता के हमर, खुश हे किसानी काम मा।

पग-पग खुशी बगरे हवय, सुखदेव धरती धाम मा।


पोरा परब के मान्यता, ज्ञानी गुणी अलखाय हें।

शुभ पोर आ गे धान मा, ये जान सब हर्षाय हें।

पूजा अरज आराधना, फर फूल दाना पाय बर।

कातिक म सुरहुत्ती परब, दीया जला परघाय बर।


मौसम करे हावय मदद, बादर कृपा बरसाय हे।

बइला किसानी काम मा, सहयोग देवत आय हे।

आशीष देये हें गजब, सब ग्राम देवी-देव मन।

परगट पँदोली दे हवयँ, दिन-रात पुरखा नेव मन।


अंतस म उपकृत भाव हे, उपकार बर आभार हे।

घर मा किसानन के हमर, पोरा परब त्यौहार हे।

अँगना म नोनी लछमनी, शुभ चउँक पूरत हे सुघर।

अँगना दुवारी गाँव के, सुमता म जूरत हे सुघर।


चीला सुहाँरी ठेठरी, खुरमी जलेबी तसमई।

नुनहा सलौनी पापड़ी, गुरहा कलेवा हे कई।

पहुना-सगा जेवाँय बर, पकवान चरिहा भर चुरे।

लइका बिसावय जा तभो, ठेला म नड्डा कुरकुरे।


कोठा म बइला गाय मन, काँदी चरे पगुरात हें।

पर सच यहू गोवंश कुछ, नित रोड़ मा रेतात हें।

बइला ल माटी के सुघर, नाती-बुढ़ा सम्हरात हें।

पोरा परब के नेंग मा, हुम-धूप दे जेवात हें।


भादो अँजोरी तीज के, काबर न हम चर्चा करब।

ए दिन मना तीजा परब, छत्तीसगढ़ करथे गरब।

शाहर नगर अउ गाँव मा, तीजा परब के नाँव मा।

बिटियन तनिक धिरतात हें, माहुर लगा के पाँव मा।


खा के करू मन हे हरू, मन मा मनोरथ मीठ बड़।

चूरी अमर राहय सदा, पग-पग डगर भर डीठ बड़।

तीजा कठिन व्रत निर्जला, मइके कथे संस्कार ए।

कहिथे कलम सुखदेव के, पबरित मया ए प्यार ए।


तीजा महातम का कही, हे लोक मा लाखों कथा।

तीजा तिजउरी मा अपन, कुछ सुख धरे कुछ दुख-व्यथा।

मइके नता परिवार बर, घर-द्वार खेती-खार बर।

मन मा उपसहिन के सदा, भलमनशुभा संसार बर।


▪️सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"

[9/14, 2:53 PM] बोधन जी: *तीजा-पोरा - शंकर छंद*


बच्छर दिन के तीजा-पोरा,बने रीत सुहाय।

देखौ बहिनी घर भइया हा,तीज ले बर जाय।।

दाई बाबू के घर आ के,जम्मो सुख ल पाय।

सखी सहेली संग बिताके,बूड़ मया म जाय।।


अपन धनी बर ब्रत ला करथे,आय तीज तिहार।

शिव शंकर के पूजा करके,देखै पति निहार।।

नवा-नवा लुगरा ला पाथे, भइया  के दुलार।

अइसन मया बँधाये दीदी,नइ  छूँटै  दुवार।।


फरहारी तीजा के करथे,मही कढ़ही खाय।

रंग-रंग  के  हवै  मिठाई,खुरमी हा सुहाय।।

घर-घर जावै मया बढ़ावै,तिजहारी कहाय।

हँसी खुशी घर लहुटत जावै,मन बड़े सुख पाय।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

हिंदी दिवस विशेष

  हिंदी दिवस विशेष


समान सवैया - हिंदी भाषा


हिन्दी भाषा परम-पावनी, जस संगम गंगा कालिंदी।

माथ सजे चम चमचम चमके,जस भारत माता के बिंदी ।1।


प्रेम चंद के अमर कथा ये, बच्चन के हावय मधुशाला ।

लिखे सुभद्रा लक्ष्मी बाई, मीरा के ये हरि गोपाला।2।


तत्सम तद्भव देश विदेशी, सबो रंग ला ये अपनाथे ।

एक डोर मा सबला बाँधय, गीत एकता के ये गाथे ।3।


शब्द नाद अउ लिपि मा आघू, हम सबके ये एक सहारा।

सागर कस ये संगम लागे, गंगा कावेरी  के धारा ।4।


सत्तर साल बीत गे तब ले, मान नहीं पाइस हे भाषा।

हमर राष्टभाषा के पूरा, कोन भला करही अभिलाषा।5।


संविधान हा भारत के जी, दिये राज भाषा के दरजा।

मान राष्ट्रभाषा के खातिर,हम सबके ऊपर हे करजा।6।


छन्दकार - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

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हवै पराया हिंदी भाषा, आज अपन घर मा।

जानबूझ के परे हवन हम, काबर चक्कर मा।।


देवनागरी लिपि ला दीमक, बनके ठोलत हे।

अंग्रेजी हा आज इहाँ बड़, सर चढ़ बोलत हे।।


अलंकार रस हे समास अउ, छंद अलंकृत हे।

हिंदी भाषा सबले सुग्घर, जननी संस्कृत हे।।


अपन देश अउ गाँव शहर मा, होगे आज सगा।

दूसर ला का कहि जब अपने, देवत आज दगा।।


सुरुज किरण कस चम चम चमकय, अब पहिचान मिले।

जस बगरै दुनिया मा अड़बड़, अउ सम्मान मिले।।


पढ़व लिखव हिंदी सँगवारी, आगू तब बढ़ही।

काम काज के भाषा होही, रद्दा नव गढ़ही।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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Monday, September 11, 2023

भाजी

 भाजी


छत्तीसगढ़ के भाजी कतका गुणकारी हवै


*भाजी*

*जयकारी छंद*


चेंच अमारी अउ बोहार। कुलफा भाजी काँदा नार।। 

देख भागथे गैस विकार।खाव सुघर सब्बो परिवार।। 


दही-मही कुरमा मा डाल। मेथी पालक भाजी लाल।। 

बथवा गुड़रू हवय सुकाल। काया बर बनथे गा ढाल।। 


गुमी चरोटा बूटी आय। मुरई भाजी गजब सुहाय।। 

रोग पीलिया तको भगाय। चुनचुनिया हा पेट पचाय।। 


तिवरा उरीद के हे नाम। खेढ़ा करथे दूर जुकाम।। 

रक्त चाप हा बाढ़े जाय।भाजी सहजन दूर भगाय।। 


मेला मड़ई हाट बजार। लान करमता भूँज बघार।। 

मुँह के छाला उँकर मिटाय।चाट-चाट जे मनखे खाय।। 


भाजी मखना गुरतुर स्वाद। बाल झड़े रोके के खाद।। 

चना चनौरी गजब मिठास। सुघर बढ़ाथे सबके आस।। 


पोई भाजी खून बढ़ाय। तिनपनिया लू शांत कराय।। 

कुलथी पथरी रोग भगाय।गोल जोड़ के दरद मिटाय।। 


पटवा केनी कुसमी प्याज ।रखथे सबके सुघर मिजाज।। 

बर्रे मा मिनरल भरपूर। डाल कोचई मा अमचूर।। 


मछेरिया मुसकेनी खाव।चौलाई के गुण ला गाव।। 

खूब विटामिन हवय भराय ।मुरहा मा ताकत आ जाय।।

विजेंद्र

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सार छंद(गीत)-भाजी साग खवादे


रोज रोज के भाँटा आलू,लगगे अब बिट्टासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।


चना चनौरी चेंच चरोटा,चौलाई चुनचुनिया।

मुसकेनी मेथी अउ मुनगा,मुरई मास्टर लुनिया।

कुरमा कांदा कुसमी कुल्थी,कोचाई करमत्ता।

गुमी लाखड़ी गोभी बर्रे,बरबट्टी के पत्ता।

प्याज अमारी पटवा पालक,सरसो के मैं दासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


रोपा गुड़रू मखना झुरगा,कजरा कुसुम करेला।

पोई अउ बोहार जरी के,हरौं बही मैं चेला।।

उरिद लाल चिरचिरा खोटनी,कोइलार तिनपनिया।

भथुवा पहुना लहसुनवा खा, चलहूँ छाती तनिया।

भूँज बघार बनाबे बढ़िया,अड़बड़ लगे ललासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


खेत खार बारी बखरी ले,झट लाबों चल टोरी।

खनिज लवण अउ रथे विटामिन,दुरिहाथे कमजोरी।

तेल बाँचही नून बाँचही,समय घलो बच जाही।

भाजी पाला ला खाये ले,तन मा ताकत आही।

भाजी कड़ही बरी खोइला,खाथे कोसल वासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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छत्तीसगढ़ के भाजी-खैरझिटिया


हमर राज के साग मा,भाजी पावय मान।

आगर दू कोरी हवै,सुनव लगाके कान।।


चना चनौरी चौलई,चेंच चरोटा लाल।

चुनचुनिया बर्रे कुसुम,खाव उँचाके भाल।


मुसकेनी मेथी गुमी,मुरई मास्टर प्याज।

तिनपनिया अउ लहसुवा,करे हाट मा राज।


खाव खोटनी खेड़हा, खरतरिहा बन जाव।

पटवा पालक ला झड़क,तन के रोग भगाव।


कुल्थी कांदा करमता,कजरा गोल उरीद।

कुरमा कुसमी कोचई,के हे कई मुरीद।।


झुरगा गोभी लाखड़ी,भथवा गुड़डू  टोर।

राँधव भूँज बखार के,महकै घर अउ खोर।


पोई अउ सरसो मिले,मिले अमारी साग।

मछेरिया बोहार के,बने बनाये भाग।।।


करू करेला के घलो,भाजी होथे खास।

रोपा पहुना बरबटी,आथे सबला रास।।


मखना मुनगा मा मिले,विटामीन भरपूर।

कोइलार लुनिया करे,कमजोरी ला दूर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

शिक्षक दिवस विशेष

 शिक्षक दिवस विशेष


मनहरण घनाक्षरी         

                  शिक्षक


ज्ञान ले महान दान ,खोजें म मिलय नही

सुखमय जीवन के,देत तरकीब जी

प्रलय अउ निर्माण,गोद म खेले जेकर

नमन शिक्षक जेहा, दिल के करीब जी

जिनगी आकार देत,लक्ष्य ल सकार करे

बताए  ज्ञान विज्ञान  , विचित्र अजीब जी

विषय सरल बना,अभ्यास कराय रोज

मिलय आशीर्वाद वो, हे खुशनसीब जी

अज्ञानी ज्ञानी बने, रात दिन प्रयास ले

ईंट ले ताज बनाय, होथे शिल्पकार जी

गीली मिट्टी  ठोक पीट, नवा प्रयोग करथे

रूप अउ अकार दे,होथे वो कुम्हार जी

मंजिल म पहुंचाए, खुद रथे जमीन म

जिये ब रद्दा देखाय,देत डांट प्यार जी

हवा अउ तूफान ले, नाव ल बचाय रखे

तूफान  ले लड़े ब, सिखाथे मल्हार जी

                           बेदराम पटेल

                      बेलरगोंदी(छुरिया)

                       राजनांदगांव

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 कुण्डलिया छन्द 


*बानी गुरु के सार हे, जानत सकल जहान।*

*देवत हवै अँजोर जी, सब ला एक समान।।*

*सब ला एक समान, चलव सब लेलव दीक्षा।*

*करलौ गुरु के ध्यान, तभे जी मिलही शिक्षा।।*

*महिमा ला जी जान, सफल होही जिनगानी।*

*जिनगी बनही तोर, मिलय गुरु अमरित बानी।।*


*आपमन के शिष्य*

*राजकुमार निषाद"राज"*

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सरसी छंद गीत- *शिक्षक*


शिक्षक शिक्षा के दीपक बन, बाँटय ज्ञान प्रकाश।

अनगढ़ माटी के चोला ला, देवय रूप तराश।।


प्रथम पिता माता हे शिक्षक, बात रखौ ये भान।

जेन पढ़ावय क ख ग घ हमला, दूजा शिक्षक मान।।

तिसरइया उन सब शिक्षक ये, जे बाँधय मन आस।

शिक्षक शिक्षा के दीपक बन, बाँटय ज्ञान प्रकाश।।1


बुरा भला के भेद बतावय, रीति नीति संस्कार।

परहित सेवा धर्म परायण, बाँटय भाव विचार।।

शिक्षक के शिक्षा से संभव, सभ्य समाज विकास।

शिक्षक शिक्षा के दीपक बन, बाँटय ज्ञान प्रकाश।।2


ढ़ोंग रूढ़ि पाखंडवाद ले, करथे सदा सचेत।

शिक्षा के आगे नतमस्तक, जादू टोना प्रेत।।

शिक्षक शिक्षा ले ही करथे, मन के भरम विनास।।

शिक्षक शिक्षा के दीपक बन, बाँटय ज्ञान प्रकाश।।3


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/09/2023

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विष्णुपद छंद


बिन स्वारथ के ज्ञान जगत मा, वो बगरावत हे।

रोज छात्र मन ला शिक्षक हा, खूब पढ़ावत हे।।


पढ़ा रोज लइका ला शिक्षक, देवय ज्ञान इहाँ।

परमारथ बर जिनगी अर्पित, काम महान इहाँ।।


जइसे बरसा ये भुइँया के, प्यास बुझावत हे।

जइसे रद्दा मनखे मन ला, घर पहुँचावत हे।।


नदी कुआँ अउ रुखराई, पर सेवा करथे।

जंगल पर्वत खेतीबारी, सबके दुख हरथे।।


माटी के लोंदा ला सुग्घर, दे आकार इहाँ।

आनी बानी जिनिस बनाथे, रोज कुम्हार इहाँ।।


शिक्षक हा शिक्षक के शिक्षक, लइका  मास्टर हे।

नेता अधिकारी वकील अउ, कोनो डॉक्टर हे।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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केंवरायदु: मनहरण घनाक्षरी


माता हे प्रथम गुरू, बोले के कराये शुरू,

चरण में महतारी ,तोरो प्रणाम हे।


गुरू ज्ञान सागर हे,छलकत गागर हे,

माथा हे चरण में, बड़ पुन काम हे।


क ख ग घ पढ़ा पढ़ा,तोला देथे गुरू बढ़ा,

गोविंद ले गुरू बड़े,पाँव चारो धाम हे।


पाले गुरू तिर ज्ञान,होही गा तोर कल्याण,

जग में गुरू के सँग, चमकत नाम हे।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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[9/5, 5:25 PM] डी पी लहरे: *चौपाई छन्द*

*शिक्षक दिवस के नँगत बधाई अउ मंगल कामना*


भव सागर ले पार लगाथे,

भटकन नइ दय राह दिखाथे।

ज्ञान सीख अमरित बरसाथे,

जिनगी सबके सुफल बनाथे]]१


हवय गुरू के महिमा भारी,

खूब निभावय जिम्मेदारी।

गुरू मिटावय जग अँधियारी,

करय गुरू जिनगी उजियारी]]२


सत रद्दा ला गुरू धराथे।

सहीं गलत पहिचान कराथे।

शिक्षा गंगा ला बोहाथे,

अँधियारी ला दूर भगाथे]]३


गुरू बचन ला मन मा धरलौ,

मन के खाली कोठी भरलौ।

गुरू देव के सेवा करलौ।

ज्ञान सीख ले चोला तरलौ]]४


गुरू हवय जी बड़का देवा,

ज्ञान सीख के देय कलेवा।

करय गुरू के जे जन सेवा,

निसदिन पावय शिक्षा मेवा]]५


गुरू दरश ला निसदिन पा लौ,

गुरू ज्ञान के गुन ला गा लौ।

काया माया फूल चढ़ालौ

गुरू चरन मा माथ नवालौ]]६


           *दोहा*

गुरू सीख अनमोल हे,कर दय बेड़ा पार।

भाव भजन मन मा रखौ,मिटही क्लेश विकार।।


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

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शिक्षक ला गुरुजी कहन, गुरुकुल कस स्कूल।

बड़का  कक्षा  मा  तहाँ,   गुरुजी  कहना  भूल।।

गुरुजी कहना भूल, 'कांत' सीखे 'सर' कहना।

गलती  करन  कबूल,  परय थपरा तक सहना।।

पा   उंखर  आसीस,  बनिन  विद्वान समीक्षक।

तुँहर  चरण  मैं  शीश, नवावँव  गुरुवर शिक्षक।।


सूर्यकान्त गुप्ता, सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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तुल्य ईश्वर आप गुरुजी , बाॅंटते नित ज्ञान हो ।

पथ प्रदर्शक भाग्य दाता , ये जगत के प्राण हो ।।

जो शरण में आपके हैं , वो कहाॅं नादान हैं ।

पा गये हैं भर खजाना , देख लो धनवान हैं ।।


✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

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शोभन छन्द - गुरुदेव (०५/०९/२०२३)


ज्ञान के दियना जलाके , जग करय उजियार ।

पार नइया ला लगावय , वो हरय पतवार ।।

ज्ञान गुन आशीष देथे , चैन सुख अउ छाॅंव ।

हे बड़े गुरुदेव जग मा , रोज परलव पाॅंव ।।


✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

खुरमी ठेठरी

 


अमृत ध्वनि छ्न्द 


दीदी बहिनी लाय जा , आगे तीज तिहार ।

भाँची भाँचा आ जही,लेजा मोटर कार।।

लेजा मोटर, कार सड़क के, तीरे तीरे।

अलहन झन हो ,जाय चलाबे,धीरे धीरे।।

मँयदा सूजी,कनकी आँटा,चाले छलनी।

कटवा भजिया,खुरमा राँधय, दीदी बहिनी।।


शक्कर पारा हे बने, लागे बढ़िया मीठ।

लड्डू पेंडा़ खाय बड़,मन नइ माने ढीठ।।

मन नइ माने,ढीठ अबड़ हे,लालच करथे।

जिहाँ देखथे ,रसा मलाई ,दउँडे़ परथे।।

बरा ठेठरी, अईरसा हे, अउ हे खारा।

हे सोंहारी, बर्तन थारी, शक्कर पारा।।


      तातू राम धीवर

 भैंसबोड़ जिला धमतरी ✍️

    मो.6267792997

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सरसी छंद गीत- *छत्तिसगढ़ के शान*


फरा ठेठरी खुरमी मुठिया, चौसेला पकवान।

अंगाकर रोटी हा भइया, छत्तिसगढ़ के शान।।


परब हरेली तीजा पोरा, सब ला गजब सुहाय।

राखी होली दीवाली मा, घर अँगना ममहाय।।

खुशी उमंग तिहार कहाइस, अउ पुरखा के मान।

अंगाकर रोटी हा भइया, छत्तिसगढ़ के शान।।


करी अइरसा कतरा पकुवा, मालपुआ के स्वाद।

खाजा कुसली खा ले करबे, जिनगी भर तँय याद।।

कहाँ मिठाई अइसन पाबे, हाट बजार दुकान।

अंगाकर रोटी हा भइया, छत्तिसगढ़ के शान।।


पाख पितर पुरखा बर तर्पण, भक्ति श्राद्ध अउ भोग।

बरा बोबरा बटिया पपची, खूब खिलावँय लोग।

गुलुल गुलुल चीला भजिया ला, खावय हमर सियान।

अंगाकर रोटी हा भइया, छत्तिसगढ़ के शान।।


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/09/2023

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 शोभन छन्द - खीर सोंहारी (०४/०९/२०२३)


खीर सोंहारी चुरे हे , तीज तिहार आय ।

ठेठरी खुरमी बरा ला , देख मन ललचाय ।।

ये हमर खाई खजेनी , पेट भर भर खाव ।

नइ मिलय अइसन दुबारा , बाद झन पछताव ।।



ओम प्रकाश पात्रे "ओम "

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सार छंद

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हर तिहार के बेरा घर घर,बनँय ठेठरी खुरमी।

जिंकर पिरीत परोसा लावँय,हर रिश्ता  मा गरमी।।

खाजा पपची बिड़िया देखत,आवँय मुँह मा पानी।

जेला खा बुढ़वा चोला मा,छावँय तुरत जवानी।।

बर बिहाव पंगत के शोभा,लाड़ू बने करी के।

खाके जिया अघावँय कसरत,होय दाँत अँगरी के।।

सबो कलेवा पहुना खातिर,सजें एक  थारी मा।

छलकँय मया मजा बड़ आवय,तब दुनियादारी मा।।

किसम किसम के रोटी पीठा,हरँय हमर चिन्हारी।

भरय कलेवा कोठी हर घर,छत्तिसगढ़  महतारी।।


दीपक निषाद--लाटा (भिंभौरी)-बेमेतरा

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आठे कन्हैय विशेष

 










आठे कन्हैय विशेष


 खैरझिटिया: मोला किसन बनादे (सार छंद)


मोर पाँख ला  मूड़ सजादे,काजर गाल लगादे|

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


बाँध कमर मा करिया करधन,बाँध मूड़ मा पागा|

हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|

चंदन  टीका  माथ लगादे ,पहिरा माला मुंदी|

फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चुंदी|

हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |

घींव  लेवना  चाँट  चाँट  के,खाहूँ थाली थाली |

मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ,दाई लोरी गादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी मीठ बजाहूँ|

तेंदू  लउड़ी  हाथ थमादे,गाय  चराके आहूँ|

महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    

गोकुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल घर भीतर।

मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी|

बँसुरी  धरे  रेंगहूँ   मैंहा ,भइया  नाँगर  डाँड़ी|

कनिहा मा कँस लाली गमछा,पीताम्बर ओढ़ादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|

संसो  झन करबे वो दाई,खेल कूद घर आहूँ|

पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई ,किसन बरन तैं चोला|

रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|

पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |

बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|

दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,दाई आस पुरादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "

बालको (कोरबा )

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 शोभमोहन श्रीवास्तव:  *कृष्ण जन्माष्टमी के हार्दिक बधाई* 


 *जनमे बनवारी* 

(प्रभावती चर्चरीछंद) 



मणि जड़ाय सोन थार,दियना रिगबिग मँझार।

मंगल करसा सँवार, धर धर नर नारी।

मन हुलास बहत धार, बोलत जय बार बार,

रंग रंग के कर सिंगार, खड़े हें दुवारी।।

घंटा घन घनन घोर, झालर झन झन झकोर,

सुन भीजत पोर पोर, गदगद हिय भारी।।

दमउ दफड़ा दमोर, छन्न छन्न छन्न शोर,

भँवरत माते विभोर, कुलक जात वारी।।

चूमत निच्चट निहार, गिंधिया गिंधिया दुलार, 

शोभामोहन अधार, जनमे बनवारी। 


शोभामोहन श्रीवास्तव

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आशा देशमुख: *कृष्ण जन्माष्टमी के हार्दिक बधाई*🌷🙏



चौपाई छन्द जन्मष्टमी


कृष्ण कन्हैया


आये तिथि शुभ अष्टमी,  लिये कृष्ण अवतार। 

दुनिया ले सब दुख मिटे, पाये गीता सार।।


जनम धरे हे किशन कन्हैया। घर घर बाजत हवय बधैया।। 

बलदाऊ के छोटे भइया, मातु जसोदा लेत बलैया।। 


नाचत हें ब्रज के नर नारी। सोन रतन धर थारी थारी। 

झुलना झूले किशन मुरारी। बाजे ढोल मँजीरा तारी।। 


ध्वजा पताका तोरण साजे। गली गली घर बाजा बाजे। 

खुशी मनावैं सबो डहर मा, गाँव गाँव अउ शहर शहर मा।। 


समय आय हे मंगलकारी। भागत हे दुख विपदा कारी। 

 मुस्कावत हे कृष्ण मुरारी। रोग शोक सब भय भव हारी।। 


मन ला मोहत हे नंद लाला। आजू बाजू गोप गुवाला।। 

मातु जसोदा गोदी पाये। मोती माणिक रतन लुटावे।। 


ब्रजनारी मन सोहर गावैं। देवन सबो सुने बर आवैं।। 

बड़े भाग पाए ब्रजवासी। इंखर घर आये सुखरासी।।


दूध दही के धारा बोहय। खुशी मगन शुभ घर घर सोहय। 

लीलाधर के महिमा भारी।  माया रचथे मंगलकारी।। 


सबो डहर नाचे खुशी, भरे मगन आनंद। 

भरे भरे धरती लगय, आये सुषमाकंद।। 



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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*नन्द लाला - हरिगीतिका छंद*


हे नन्द लाला तोर ये,मुरली घलो बइरी बने।

दिन रात मँय हाँ सोंचके,गुन गाँव मँय मन ही मने।।

घर द्वार मोला भाय नइ,सुन तोर मुरली तान ला।

मँय घूमथँव घर छोड़ के,कान्हा इहाँ अन पान ला।।


जमुना नदी के पार मा,काबर तहूँ इतराय रे।

चोरी करे कपड़ा तहूँ,अउ डार मा लटकाय रे।।

हम लाज मा शरमात हन,तँय हाँस के बिजराय रे।

अइसन ठिठोली छोड़ दे,अब जीव हा करलाय रे।।


ए राधिका सुन बात ला,तँय मोर हिरदे छाय हस।

मोरे मया ला पाय के,गजबे तहूँ इतराय हस।।

राधा बने तँय श्याम के,ये देख दुनिया जानथे।

राधा बिना नइ श्याम हे,अब संग मा पहिचान थे।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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पुरुषोत्तम ठेठवार: *हे गिरधारी ले ले,तॅंय अवतार*

*(बरवै छंद)*


हे गिरधारी ले ले, तॅंय अवतार।

सकल जगत मा घपटे,विपदा टार।।


  छोट गोठ बर होवय,भारी रार।

  जग मा अबड़ मचे हे, हाहाकार।।


बेटी बहन के खूब,लुटाये मान।

भाई बनके आजा,दया निधान।।


 ‌‌ हे गिरधर बनवारी,किशन मुरार।

पाप ताप ला जग ले, लउहा टार।।


   ‌‌ छिन छिन बाढ़त हावै, अत्याचार।

   ‌ पापी मन ला किशना, तुरते मार।।


 गउ माता रोवत हे,आंख उघार।

हर ले गउ के दुख ला, खेवनहार।।


   मुरली मीठ बजाके, हर ले पाप।

  तान सुना दे सुग्घर,हर संताप।।


     ‌भेदभाव के खचवा,किशना पाट।

   चलॅंय सबो झन सुग्घर,सत के बाट।।


ठेठवार के विनंती, बारंबार।

जग ले करदे मोहन, बेड़ा पार।।


*रचना*

*पुरुषोत्तम ठेठवार*

*धरमजयगढ़*

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 अशोक कुमार जायसवाल: *जन्माष्टमी के हार्दिक बधाई*

*कज्जल छंद*


आजा कान्हा नंद लाल |

संग खेलबो ग्वाल बाल |

अबड़ झूलबो कदम डाल |

सबो रेंगबो एक चाल ||


जाके यमुना के कछार |

गेंद खेलबो उछल पार |

हसीं ठिठोली कई बार |

पाबो जिनगी जनम सार ||


राधा जाही हमर साथ |

सखी विशाखा धरे हाथ |

चंदन रोली लगे माथ |

देखत होही मगन नाथ ||


गोपी ग्वाला करे बात |

सुमिरन करथन तोर पात |

सुगम बनावव खेल आप |

जेहर मन मा रहय छाप ||


सुनके कान्हा कहे बात |

यमुना रइथे साँप घात |

जम्मो पानी घुरे ताप |

छोड़व यमुना के अलाप ||


यमुना पानी जहर होय |

कतको मनखे जान खोय |

चुपके डसथे साँप सोय |

यमराज काल ला पठोय ||


मन नाथे नइये नकेल |

खेले माढ़य नहीं खेल |

यमुना तट हे हेल मेल |

संग खेलबो सब सकेल ||


अशोक कुमार जायसवाल

भाटापारा

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विश्व साक्षरता दिवस विशेष

  


विश्व साक्षरता दिवस विशेष


आखर - आखर आज पढ़ाहूँ, आजा दाई तोला। 

बड़ा गजब के काम करे तँय, इसकुल भेजे मोला। 


अब तक अनपढ़ भले रहे तँय, अब तो पढ़ लिख जाबे। 

करिया आखर भइस बरोबर, तँय अब नइ कह पाबे। 


साग बनाये तँय सिखलादे, मँय आखर सिखलाहूँ। 

मोर गुरू तँय पहिली दाई, अब मँय तोर कहाहूँ।  


जेन कोइला करिया करथे, उही आज उजराही। 

राँधे बेरा धरे कोइला, जेन बने लिख पाही।  


छेरी पठरू के ठन हाबय, गिन गिनती सिख जाबे। 

जोड़-जोड़ कुकरी के अंडा, गुणा करे बर पाबे। 


बोल-चाल के भाषा मा अब, अपनो ज्ञान बढाबो। 

आखर-आखर जोड़-जोड़ के, जब हम पढ़ लिख पाबो।  


सबझन साक्षर होवँय कहिके, शासन जोर लगाये। 

लइका पढ़ पड़हावत हावय, तँय काबर पिछवाये।


दिलीप कुमार वर्मा

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पढ़न   पढ़ावन  आव  सब,  बाँटन  अक्षर ज्ञान।

उम्मर  के  परवाह  झन,  करिहौ  कथौं सियान।।

करिहौ कथौं सियान, खोजिहौ  इसकुल  केती।

नइ     होहू    बदनाम,    निरक्षरता    के     सेती।।

इही 'कांत'  के चाह,  सबो  शिक्षित  हो  जावन।

बाँटन  अक्षर  ज्ञान,  आव   सब  पढ़न  पढ़ावन।।


सूर्यकान्त गुप्ता, सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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[9/8, 6:48 PM] बोधन जी: *आवौ पढ़लौ - बाल कविता*


पुस्तक कापी सिलहट धरलौ।

सुख पाये बर कारज करलौ।।


आवौ भइया मिलके पढ़लौ।।

सुग्घर अपने जिनगी गढ़लौ।।


खेल - खेल  के  संग   पढ़ाई।

गीत - कहानी  सुन लौ भाई।।


नहाखोर  के   बासी   खावौ।

स्कूल  पढ़ेबर  जाबो आवौ।।


टन - टन  घंटी  बाजत   हावै।

संगी   सबो   बुलावत   हावै।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"

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शोभन छन्द - विश्व साक्षरता दिवस (०८/०९/२०२३)



विश्व साक्षरता दिवस ला , जान लेवव आज ।

ज्ञान शिक्षा ले करत हे , जागरूक समाज ।।

सर्व शिक्षा के चलत हे , देख लव अभियान ।

कोन अनपढ़ आज रइही , पढ़ बनव गुणवान ।।


सोंच बदलय राह बदलय , काम बदलय दाम ।

ज्ञान ले बदलय जमाना ,शोहरत अउ नाम ।।

देश के हर नागरिक ला , हे मिले अधिकार ।

ज्ञान देलव ज्ञान लेलव , ज्ञान हे भरमार ।।



✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

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 सरसी छंद गीत- *साक्षरता*


साक्षरता ले आम जन, करथे देश विकास।

पाथे मान समाज मा, भरके ज्ञान उजास।।


साक्षर सक्षम लोग उन, जेला क ख ज्ञान।

भाषा मर्यादा सहित, सही गलत के भान।।

शिक्षा ले बढ़थे सदा, खुद मा दृढ़ विस्वास।

साक्षरता ले आम जन, करथे देश विकास।।1


करिया अक्षर भैंस कस, शिक्षा बिना सियान।

शिक्षा ले मन भीतरी, उगथे नवा बिहान।।

अँधियारी दुख के भगे, सुख के भरे प्रकाश।

साक्षरता ले आम जन, करथे देश विकास।।2


शिक्षा बर बंधन नहीं, कोई उम्र पड़ाव।

लइका वृद्ध जवान सब, मिलके पढ़व पढ़ाव।।

करबो जिनगी के सबो, इम्तिहान तब पास।

साक्षरता ले आम जन, करथे देश विकास।।3


साक्षरता के दर बढ़े, सुग्घर हवय उपाय।

आठ सितम्बर हर बछर, साक्षर दिवस मनाय।।

गजानंद लिख छंद मा, सरसी सहीं प्रयास।

साक्षरता ले आम जन, करथे देश विकास।।4


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

Friday, September 1, 2023

खेल दिवस*29 अग.2023



 

खेल दिवस*29 अग.2023


महिमा अबड़े खेल के,हाँकी हावय नाम।

पुष्ट देह ला ये करे,अतके येखर काम।।

अतके येखर काम,भाग तो सुस्ती जावय।

चंगा मन हा होय,गजब के फुरती आवय।।

मिलजुल खेलय टीम, गोल बर माथा रगड़े।

इही खेल के भाव, खेल के महिमा अबड़े।।





2. ध्यान चंद जेहा हवे,भारत के अभिमान।

जेखर से हे देश मा,हाँकी के पहिचान।।

हाँकी के पहिचान, कई ठन मेडल लाइस।

करके कइयो गोल ,भीड़ मा जेहा छाइस।।

खेल दिवस हे आज,रहे जी जनमे तेहा।

ये माटी के लाल,हवे ध्यानचंद जेहा।।

चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़

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 छंद गीत- हॉकी


राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।

मेजर ध्यानचंद हॉकी के, जादूगर तो जान।।


दिन अगस्त उनतीस ये, सन उन्निस सौ पाँच।

शहर इलाहाबाद हा, झूम उठिस जी नाच।।

ध्यानचंद जी जनम धरे, बनके प्रतिभावान।

राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।।1


मातु शारदा के जी ललना, सामेश्वर के लाल।

जनम धरे तँय ऊँच करे बर, भारत माँ के भाल।।

मेजर बन भी डँटे रहे तँय, सीमा सीना तान।

राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।।2


करे महारथ हासिल हॉकी, देख रहँय सब दंग।

ध्यानचंद जी ध्यान लगा के, खेलय मस्त मलंग।।

देश विदेश सबो जन जानय, भारत के ये शान।

राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।।3


गोंद लगा के छड़ी घुमाथे, बोलिस जब जापान।

तोड़ छड़ी ला देखे जब तो, होगें सब हैरान।।

ना तो गोंद छड़ी मा पाइस, ध्यानचंद के ध्यान।

राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।।4


खेल विदेशी ला अपनाये, छोड़ अपन अब खेल।

हॉकी हा तो झाँकी रहिगे, खेंलत पेल ढपेल।।

आगे आ आवाज उठावव, पाये हॉकी मान।

राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।।5


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/08/2023

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     आल्हा छंद ( ध्यान चंद )

        हॉकी के जादूगर

       ---------+------

राष्ट्रीय खेल हमर देश के, 

      नाम हरय जी हॉकी जान।

खेलइया हे ध्यान चंद जी,

      दिस हावे इनला पहिचान।

धरे जनम तारीख उनतीस,

      अगस्त उन्नीस सौ ग पाँच।

ये कहलाइस जादूगर जी,

      हॉकी के गा आवे सांच।

उतरे जब मैदान म वोहर,

    गेंद चिपक स्टिक ही रहि जाय।

देखय खेलत ध्यान चंद ला,

    देखइया के मन भरमाय।

मातु शारदा सामेश्वर के,

     येहर बेटा बन के आय।

राजपूत गा वंश म जन्मे,

     राजपूत येहर कहलाय।

करे महारथ हासिल येहर,

    हॉकी के जी खेल म जान।

ध्यान चंद जब खेलय हॉकी,

     करे नहीं जी विचलित ध्यान।

अउ सीमा मा बनके मेजर,

     डटे रहे जी सीना तान।

जइसे खेलय हॉकी ला वो, 

    वइसनेच तयं वहू ल मान।

फइले नाम ह देश विदेश म,

   जादूगर हॉकी के आय।

अब तो येहर इही नाम ले,

     शान देश के ये कहलाय।

देखय येखर खेल विदेशी,

     किसम किसम के सोंच बनाय।

कोनो बोलय चुम्बक हावे,

     स्टिक ला येखर देखव जांच।

कोनो बोलय गोंद लगे हे,

     कतको करय तीन अउ पांच।

मिले विरासत मा नइ इनला,

     सतत साधना करके पाय।

खेल देख गा ध्यान चंद के,

     तानाशाह हिटलर थर्राय।

ओर जर्मनी के गा खेलो,

     हिटलर तक हा बोले जान।

येखर बदला मा हम देबो,

      तुमला बहुत बहुत सम्मान।

तीन तीन ओलंपिक खेले,

      अपन देश के खातिर जान।

पाइस हावे ध्यान चंद हा, 

      बड़े बड़े गा वो सम्मान।

पात्र रत्न भारत के वोहर,

      वइसे जी वो हावे जान।

हो सके तो देवें उनला,

       सर्वोच्च देश के सम्मान।


कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी

29 / 08 / 2023

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शोभन छन्द - हाॅकी (३०/०८/२०२३)


खेल हाॅकी खेल लेवव , खेल सुग्घर आय ।

फील्ड रोलर बर्फ हाॅकी , हर जघा मन भाय ।।

टीम ग्यारह के बनाके , खेलथें सब लोग ।

हष्ट होथे पुष्ट होथे , ये शरीर निरोग ।।


मिस्र ले शुरुआत होइस , बाद आइस देश ।

ध्यानचंद बने खिलाड़ी , जन्म दिवस विशेष ।।

धातु या लकड़ी छड़ी मा , गेंद करलव गोल ।

जीत जाहू हार के जी , बात हे अनमोल ।।



ओम प्रकाश पात्रे "ओम "

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विषय-रखिया बरी




विषय-रखिया बरी


रखिया बरी


 कमलेश प्रसाद शरमाबाबू: कुंडलियाँ - छंद 

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रखिया राखव लान के, संग उरिद के दार |

बरी बनावव तान के, खावव सब परिवार ||

खावव सब परिवार, बिकट के मन ला भाथे |

रँधनी खोली राँध, तभो ले  बड़ ममहाथे ||

छेवरनिन के साग, हवय तैं खा ले सुखिया |

बिकट पुष्टई जान, बरी मा सब ले रखिया ||


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

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रखिया बरी(हरिगीतिका छंद)



रखिया बरी बड़ स्वाद के खा ले सखा मन भर तहूँ।

भिनसार ले खाये कमाए बर निकल जाबे कहूँ।।


रखिया उरिद के संग मा लगथे बने निच्चट फरी।

दूनो मिला के फेंट अउ तँय खोंट ले सुग्घर बरी।।


मुनगा बरी के साग हा बड़ फायदा तन बर बने।

आलू मिलाके राँध ले खा ले सखा मन भर बने।।


सुग्घर अदौरी ये बरी तँय राँध चिंगरी डार के।

बड़ स्वाद मिलथे खाय मा खा ले बने चटकार के।।


रचनाकार-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 *कुण्डलिया छंद(रखिया बरी)~ विरेन्द्र कुमार साहू*


आवय गा रखिया बरी, छत्तीसगढ़ के खोज।

जब मर्जी तब राँधले, सुग्घर पौष्टिक भोज।।

सुग्घर पौष्टिक भोज, पचे म सबले बढ़िया।

तेखर सेती खाय, राँध दाई सेवरिया। 

जतन करव जी खास, बरी हड़िया मा राहय।

 फट बेवस्था होय, सगा पहुना जब आवय।।

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 छंद गीत- *रखिया बरी*


रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।

जीभ लमा के खावय भइया, मारत जी चटकार।।


भरे विटामिन आनी बानी, भरे वसा प्रोटीन।

पाय सुवाद बरी रखिया के, रहिथें सब शौकीन।।

भारी महँगाई ला धर के, बिकथे हाट बजार।।

रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।।1


आलू मुनगा के सँगवारी, डार टमाटर लाल।

नून मसाला धनिया पत्ती, हरदी करय कमाल।।

डार चरोहन फिर चूरन दे, बढ़िया डबका मार।

रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।।2


का गरीब अउ का अमीर जी, खावँय धरे सुवाद।

एक बार के खाये ले फिर, सदा करँय फरियाद।।

चाव लगा के खाथे बढ़िया, गजानंद हर बार।

रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।।3


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/08/2023

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हरिगीतिका छन्द


रखिया बरी


रखिया बरी रखिया बरी, बड़ स्वाद गुण तैंहर धरे। 

प्रोटीन पुष्टई सब मिले, हर तार मा हे रस भरे।। 

आरुग बने मिंझरा बने, नइ स्वाद मा कोनो कमी। 

राजा सरीखे साग मा, तब ले हवय भीतर नमी।। 


आशा देशमुख

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चौपई/जयकारी छंद----- रखिया बरी 


उरिद दार मा रखिया डार ।

सबो बनावव मिल परिवार ।।

बाढ़े जब सब्जी के दाम ।

तभे बरी हा आवय काम ।।


बरी बनावव रखिया लान ।

हे सब्जी मा येखर शान ।।

छेवरनिन ला अब्बड़ भाय ।

उपराहा जी भात खवाय ।। 


राँधव आलू मुनगा डार ।

सुग्घर झट ले भूँज बघार ।।

सबके ये हा मन ललचाय ।

बरी अदौरी मान बढ़ाय ।।


बड़े-बड़े अउ गोल मटोल ।

हावय भारी येखर मोल ।।

बेंचावय गा हाट बजार ।

ले आवव सब छाँट निमार ।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

मो.नं.- 8966095681

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 सूर्यकांत गुप्ता 


*मुनगा आलू सँग कका, रखिया बरी मिठाय।*

*हमर ममादाई इही, हरदम राँध खवाय।।*

भाई हो चउमास मा,मिलय न कउनो साग।*

*जेकर घर रखिया बरी, ओकर जागय भाग।।*


सूर्यकान्त गुप्ता...

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(घनाक्षरी)


*रखिया बरी के सुरता....*

*रखिया के आनी बानी बरी तो बनावै नानी,* 

*सुरता करत हँवँव बीते बचपन के।*

*फेंटै पीठी मरे जियो डार रखिया के करी,* 

*रहय समरपन तन मन धन के।।*

*एके के कमाई मा जी पुरै नहीं सउख कथौं*

*घूमे फिरे नाचे गाए बर बन ठन के।*

*समे मिल पावै नहीं, बरी ओ बनावै नहीं*

*धरे हँवँव भाई भइगे सुरता जतन के।।*

सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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: सृजन शब्द:-- *रखिया बरी*


रखिया लानय पोठ के, मिल के सबो करोय।

बोरे दार उरीद ला, पिठी बनाके धोय।।

पिठी बनाके धोय, बिजौरी घलो बनावय।

तीली भूॅंजे देख, देख मन ललचावय।।

पर्रा सुपा दसाय,  बनावय खोंटय सखिया।

सुरता आथे पोठ, बरी अब तोरे रखिया।।


भाॅंटा आलू संग मा, रखिया बरी सुहाय।

मुनगा सुघर सुवाद ला, भारी गजब बढ़ाय।।

भारी गजब बढ़ाय, खाव जी सरपट सइया।

छोटू नोनी मॉंग, मॉंग के खाये भइया।।

पुरे पुरौती पूर, करे तब दाई बाॅंटा।

मुनगा आलू डार, बरी रखिया अउ भॉंटा।।

मनोज वर्मा

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: रखिया बरी

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(दोहा )


रखिया ला सुग्घर करो,पीठा उरिद मिंझार।

खटिया मा दसना दसा, बरी खोंट के डार।।


 जड़काला के घाम मा,दाई बरी बनाय।

बड़की भउजी हा ललक,वोकर हाथ बँटाय।।


बनथे जी रखिया बरी,छत्तीसगढ़ मा खास।

जोखा करके राखथे,अभो सियनहिन सास।।


पहुना बर रखिया बरी, मान गउन के साग।

समधी के मन बोधथे,धरे मया के पाग।।


होथे ये बड पुष्टई,बिकट मिठाथे झोर।

सरपट सइया तीर ले, पाँचो अँगरी बोर।।


मुनगा सँग मा राँध के, लइकोरी हा खाय।

बाढ़ै अमरित दूध हा, पी लइका  फुन्नाय।।


भूँख बढ़ाथे ये बरी, गर्मी पेट जनाय।

गठिया के रोगी कभू,जादा कन झन खाय।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐.

 **बन जाथौं मैं जीभ के, सबले बड़का दास।*

*खा लेथौं रखिया बरी, मान साग ए खास।।*

*मान साग ए खास, भुला जाथौं जी गठिया।*

*रहिथे एके आस, सजय एकर से टठिया।।*

*चूकौं नहीं मितान, झोरथौं जब जब पाथौं।*

*सबले बड़का दास,  जीभ के मैं बन जाथौं।।*

सूर्यकांत गुप्ता

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कुंडलिया छंद 

रखिया बरी


रखिया बने करोय के,पीठी देव मिलाय।

फेंटव फूलत ले बने,तब वो गजब मिठाय।।

तब वो गजब मिठाय,दिखे चकचक ले उज्जर।

बदली मा करियाय,दिखे वो करिया जब्बर।

बिगड़े लगे सुवाद,बना गरमी मा बढ़िया।

गजब मिठाथे राँध, बरी खावव गा रखिया।।


बारी मा रखिया फरे,कभू बीस दस चार।

बरी बने हर साल गा,पीस उरिद के दार।

पीस उरिद के दार,फेंट के राखौं बढ़िया।

हरियर मेथी ड़ार,काट के हरियर धनिया।

आथे गजब सुवाद,बना थौं करत तियारी।

फरही येहू साल, हमर घर हावे बारी।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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कुलदीप सिन्हा: चौपई ( जयकारी ) छंद

       रखिया बरी

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धर पइसा जी जा बाजार।

ले तुम लानव उरीद दार।

काट ग रखिया देवव फोर।

बाद निकालो गुदा ल कोर।


फेंटव पीठी गंजी लान।

बात मोर जी सुनो मितान।

अब तो वोला डारव खोट।

बनगे रखिया बरी ह पोट।


अब तो वोला धूप दिखाव।

दिन भर सुखही तब लहुटाव।

रोज रोज हे करना काम।

बाद सुखे के कर आराम।


अब तो रांधव उनला साग।

नून मिरी के डारव भाग।

वोला उतार चूरे बाद।

खाये मा जी मिलही स्वाद।


वोखर गुण ला अब सब गाव।

सबो कहूँ ला इही बताव।

खावव रखिया बरी सुजान।

हे नइ रहना जी अनजान।


कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी

 29 / 08 / 2023


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- *रखिया बरी*


रखिया लानय पोठ के, मिल के सबो करोंय।

भींगे दार उरीद ला, छलछल ले सब धोंय।।

छलछल ले सब धोंय, पिठी अउ करी मिलावॅंय। 

फेटें अब्बड़ देर, खोंटके बरी बनावॅंय।

पर्रा सुपा दसाँय, कभू खटिया बरदखिया।

सुरता आथे पोठ, बरी अब तोरे रखिया।।


भाॅंटा आलू संग मा, रखिया बरी सुहाय।

मुनगा सुघर सुवाद ला, भारी गजब बढ़ाय।।

भारी गजब बढ़ाय, खाव जी सरपट सइया।

छोटू नोनी मॉंग, मॉंग के खाये भइया।।

पुरे पुरौती पूर, करे तब दाई बाॅंटा।

मुनगा आलू डार, बरी रखिया अउ भॉंटा।।



मनोज कुमार वर्मा

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, बनसांकरा: शोभन छंद (रखिया बरी)

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ए बरी रखिया सुहावय,तोर गुरतुर स्वाद।

तोर सब्जी खात राहय,मन करय फरियाद।।

साथ मुनगा अउ भटा के,होय संगत तोर।

भात उपराहा खवावय,बड़ मिठावय झोर।।


ए बरी तोरे भरोसा, हे सगा सनमान।

एक कौंरा खाय जेहा ,वो करय गुनगान।।

होय मौसम जाड़ गर्मी ,या जबर बरसात।

साग हरियर नइ मिलय ता,तँय बनाथस बात।।


दीपक निषाद--लाटा (भिंभौरी)-बेमेतरा

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राखी पर्व विशेष



 राखी

बड़े बिहनिया झटकुन दीदी,राखी धरके आबे ना।
हाल-चाल अउ दया-मया ला, ॲंचरा मा गॅंठियाबे ना।

धरे रबे बहिनी ॲंचरा मा,ननपन के जम्मो सुरता।
माते जब वो पटकिक पटका ,फट जावय तुनहा कुरता।।
भौंरा बिल्लस खेल खेल मा,बड़ होवन धक्का मुक्की।
ददा शिकायत सुनके आवय, तॅंय भागस मारत बुक्की।।
मया अतिक भाई बहिनी के, कते डहर अब पाबे ना।
बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी, राखी धरके आबे ना।।

खई-खजानी जब-जब बाॅंटे,मन मा राहय बड़ खटका।
तोर बहुत अउ मोर ह कमती,बड़ होवन झटकिक- झटका।।
एक दूसरा के बस्ता ले,शीश कलम ला बड़ टापन।
पता लगे अउ झगरा माते,ददा करे तब उद्यापन।।
झगड़ा पाछू मेल जोल ला,दुनिया म कहाॅं पाबे ना।।
बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी,राखी धरके आबे ना।।

उमर अठारा मा करत रहिन,जबरन तोर सगाई ला।
ओ दिन तॅंय अंतस मा लाने,खप्पर वाले माई ला।।
सबक सिखाये अपने घर मा,मान रखे बर नारी के।
ददा बबा तब ऑंख उघारिन,समझिन दरद सुवारी के।।
रौद्र रूप वाले बहिनी तॅंय,सबके दुख बिसराबे ना।
बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी,राखी धरके आबे ना।।

पढ़े लिखे कालेज करे, तब सत-असत ल पहिचाने।
सही उमर मा बर-बिहाव बर, गोठ सियानी तॅंय माने।।
सब सियान भाॅंचा -भाॅंची सन, पाॅंव पयलगी जीजा बर।
पोला पाछू मॅंय खुद आहूॅं, लाने खातिर तीजा बर।।
खोल सुपेती ननपन वाले, सुरता ला फरियाबे ना।
बड़े बिहिनियाॅं झटकुन दीदी राखी धरके आबे ना।।

महेंद्र बघेल डोंगरगांव
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राखी

बछर दिन के रिथे अगोरा |
राखी तिहार तीजा पोरा ||

सावन महिना तिथी पुन्नी |
राखी धर के आथे मुन्नी ||

तिलक लगाके बांधे राखी |
लक्ष्मी बली ल राखै साखी ||

भाई बहन के मया हे सुघ्घर |
सब मया ले हावय चोग्गर ||

आवव मिलजुल के मनावन |
राखी तिहार हे बड़ पावन ||

कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
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 राखी परब- मया धरब
जयकरी छंद- अश्वनी रहँगिया

बहिनी मन के एक तिहार, भाई मनबर गजब दुलार। 
साजे रहिथें रेशम डोर, मइके के  अँगना मा शोर।।

जिनगी भर बने नता हवन, जइसे बादर संग पवन।
भाई बहिनी मा बड़ प्यार, नँदिया सागर ले वो पार।।

राखी मया के हे बंधन, बहिनी मन के हे वंदन।
घर घर होवय चैन अमन, जुरे रहय जस धरनी गगन।।

सावन पुन्नी लाय तिहार, नेमत नेकी घर परिवार ।
बहिनी लाहीं खुशी अपार, लाख बरिस बर मया दुलार।।

अन्न धन के बाढँय भंडार, मन मा धर मंगल उपचार।
लइकन पहिरें हें परिधान, बनते जावत हे पकवान।।

अश्वनी कोसरे रहँगिया
कवर्धा कबीरधाम

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: रक्षा बंधन

सावन  पुन्नी   महिना  सुग्घर।
भाई  जाथे  बहिनी  के  घर।।

अमर  मया  बहिनी  भाई के।
यम  राजा  यमुना   माई के।।

बहिनी   बने   सजाथे   थारी।
हाथ   बाँधथे   राखी  प्यारी।।

कुमकुम  टीका  माथा सुग्घर।
भइया ऋणी रथे बहिनी बर।।

रसगुल्ला  मुँह  डार  खवाथे।
भाई  बहिनी  बड़   हरषाथे।।

बोधन राम निषादराज
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लावणी छंद
राखी परब

दीदी मन मोरो घर आहीं, देख भतीजिन सुख पाहीं।।
राखी संग मिठाई लाहीं, बइठ मया ले खिलवाहीं।

बाबू जी खुश हावँय अब्बड़ ,खोर गली मुन्नी झाँकय।
सब बर होथे बेटी प्यारी, दीदी कहि दुन्नो हाँसय।।

उन राखी धर मइके आहीं, घर मा आश जगावत हें।
दूपहरी बेरा मा भाई, राखी ला बँधवावत हें।।

मुन्ना मुन्नी मन खुश होके, अपनो हाथ सजावत हें।
लड्डू पेड़ा चीला बरफी, केला सेब खिलावत हें।।

बहिनी मन ला देके साड़ी, भाई मान बढ़ावत हें।
भाव धरे रक्षा के राखी, सबके भाग जगावत हें।।

अश्वनी कोसरे 
रहँगिया
कवर्धा कबीरधाम
छत्तीसगढ़
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     ताटंक - छंद ( राखी )
       -----------+-----------  
रोली चंदन कुमकुम ले के,
       बहना तेहा आबे ना।
बांध कलाई मा तयं राखी,
       फरज ल अपन निभाबे ना।।1।।
पाबे रक्षा के गा आशिष,
      जीवन धन्य मनाबे ना।
दाई बाबू अउ भइया ला, 
      सुख दुख अपन बताबे ना।।2।।
ले राखी में आहूं भइया,
      तयं हाथ बंधवाबे ना।
मया प्रीत के गोठ घलो गा,
     सब के संग गोठियाबे ना।।3।।
भइया राखी बांधत हों मैं,
      बात मोर पतियाबे ना।
मोर ददा अउ दाई ला तयं,
      दुख झन गा पहुँचाबे ना।।4।।
हरय चिन्हा गा इही राखी के,
     भइया तयं अपनाबे ना।
अउ मोला कुछु अब नइ चाही,
      तेहा फरज निभाबे ना।।।5।।
कब आबे भइया घर हमरो,
      मोला आज बताबे ना।
"दीप" अपन जीजा ला तेहा,
      खबर मोर बतला दे ना।।6।।

कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
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   सुमेरु छंद 
          राखी तिहार

करत सूरता   चले आबे दुवार म
रद्दा देखय बहन राखी तिहार म
कृष्ण भी द्रोपती के सुन पुकार ल
अड़चन म आइस झटपट ग दुवार म
प्रकृति के गुण सब मिल बांट जानव
रक्षा धागा ल पेड़ म तुमन बांधव
रक्षा मातृभूमि के करलव वतन बर
दुआ करही बहन अगले जनम बर
ददा दाई करत तोरे भरोसा
 जतन रतन म कभू मत होय धोखा
महीना आय ये हा दिखत पावन
बरस बरखा अभी रे जोर सावन
चँदा पूनम म लाये दिन बहार म
करत सूरता चले आबे दुवार म
रद्दा देखय बहन राखी तिहार म
               बेदराम पटेल
               बेलरगोंदी(छुरिया)
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 *अमृतध्वनि छंद*
*विषय-राखी*

आगे राखी के परब, आबे बहिनी मोर।
रद्दा मँय देखत हवँव, हवय अगोरा तोर।।
हवय अगोरा, तोर आज वो, आबे नोनी।
करत अगोरा, थारी दीया, चंदन पोनी।।
कोन बेर मा, तँय हा आबे, समय पहागे।
राखी लेके, सब्बो झन के, बहिनी आगे।।

*अनुज छत्तीसगढ़िया*
   पाली जिला कोरबा
  *सत्र 14*
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डी पी लहरे: सार छन्द गीत

(राखी)


रंग बिरंगी राखी धर के,बहिनी मइके आथे।

चंदन टीका माथ लगाके,राखी ला पहिराथे।।


भाई-बहिनी के नाता हा,जग मा होथे पावन।

सदा बरसथे दया मया हा,होथे सुख के सावन।।

रक्षा करके बहिनी मन के,भाई फरज निभाथे।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।


बँधे रहय ए मया डोर हा,बहिनी के ए आसा।

भाई के मन मा नइ देखय,बहिनी कभू निरासा।।

सुख होवय चाहे दुख होवय,भाई संग निभाथे।।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।।


अबड़ मयारू बहिनी होथे,जइसे सुख के सागर।

खुशी लुटाथे भाई मन बर,दया मया ला आगर।।

भाई के खुशहाली खातिर,निशदिन दुआ मनाथे।

रंग-बिरंगी राखी धरके,बहिनी मइके आथे।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 आशा देशमुख: राखी 



सुख के बरसा होत हे, पावन आय तिहार। 

 बहिनी अंचरा मा धरे,आशीष मया दुलार।। 



कुलकत हें सब बहिनी भाई, राखी से हे भरे कलाई।। 

चन्दन टीका चावल रोली ।मया दुलार लुटावत बोली।। 


खीर मिठाई भर भर थारी।  बहिनी भैया के घर द्वारी।। 

सुख के बरसा होवन लागे।  हरियर हरियर सुख हा छागे।। 


राखी होथे पबरित  डोरी। आये पुन्नी पाख अँजोरी।। 

सावन महिना हे बड़ भागी। शिव सँग मन होथे बैरागी।।



दुख से रक्षा करथे राखी।  चहके घर घर सुख के पाँखी।। 

राजा बलि कस सबके भाई। बहिनी मन हे लक्ष्मी दाई।। 


ये तिहार ला अमर बनाए। भारत मा हे बगराये।। 

राखी पबरित नता धरे हे।  सब के मन मा मया भरे हे।। 


  सबके घर परिवार मा,बंधे सुमत के डोर। 

भाई बहिनी मन सबो, पग पग पाय अँजोर।। 



आशा देशमुख

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राखी के सुँतरी (सार छंद)

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 कस के मया बँधाये हावै,ए पातर सुतरी मा।

 बसे हवै राखी के सुरता,आँखी के पुतरी मा।।

रंग बिरंगी सजे कतिक ठन,कतको हें बस धागा।

राखी जइसे हो भाई बर,ए पिरीत के लागा।।

ए लागा ला छूटे खातिर,रहैं चेतलग भाई।

किरिया खावँय कभू बहिन झन,झेलँय दुख करलाई।।

बहिनी घलो अपन भाई बर,सरलग मया लुटावैं।

अइसन निर्मल नेह नता मा,कभू आँच झन आवैं।।


दीपक निषाद-लाटा (बेमेतरा)

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 चौपई/जयकारी छंद-- राखी 


दीदी-बहिनी मइके आय ।

भाँची-भाँचा संगे लाय ।।

सावन पुन्नी खास तिहार ।

बाँटय सब ला मया दुलार ।।


दाई झाँकय अँगना खोर ।

बेटी आही अब तो मोर ।।

ददा घलो ला हावय आस ।

झन करबे तँय आज निरास ।।


मया पिरित हे अँचरा छोर ।

बाँधे सुग्घर रेशम डोर ।।

रक्षा के माँगे वरदान ।

बहिनी मन पाये गा मान ।।


टीका चंदन माथ लगाय ।

भाई ला राखी पहिराय ।।

सदा मिलय गा खुशी अपार ।

भाई मन देवँय उपहार ।।


राखी के हे पावन वार ।

काल दोष के मुहरत टार ।।

बाँधव सब झन सुतरी ताग ।

भाई मन के जागय भाग ।।


मुकेश उइके 'मयारू'

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

मो.नं.- 8966095681

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: सरसी छंद

                राखी

जाती सावन पुन्नी मां हे,आथे खुशी अपार।

भाई बहिनी के पावन दिन,राखी धरे तिहार।।


माथ लगाके चंदन टीका,बहिनी बाॅंधय ताग।

धन मा झन तउलाय मया हर,लागय झन गा दाग़।।


पावॅंव मया मान गा भैया, मुॅंह भर भाखा सार।

लोटा भर पानी के थेभा,आवॅंव तोर दुवार।।


सरग सरी मइके के माटी,देव सरी माॅं बाप।

भरे रहे कोठी अन धन ले,अतके करथौं जाप।।


मोला नइ चाही गा भैया,तोर खेत घर बार।

भैया भउजी के बस चाही,निमगा मया दुलार।।


तीज तिहारे भैया आही,देखव रद्दा तोर।

साल पतइ मा देबे लुगरा,अतका हक हे मोर।।


महाप्रसादी कस लुगरा ला,राखव मॅंय सम्हार।

शुभ बेरा जब आवय कोनो, पहिरॅंव अलगा डार।।


अपन खून ले बड़के नइये,अउ कोनो संबंध।

काबर जग ला भावत हावे,केवल धन के गंध।।


शशि साहू

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 सार छन्द गीत - राखी ३१/०८/२०२३)


राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।

दया - मया ला राखे रहिबे , नइ तो लगय रुपइया ।।


मोर मया के चिनहा राखी , रेशम धागा नोहय ।

टोर फेंकबे झन गा भइया , तोर हाथ मा सोहय ।।


मोर लाज ला रख लेबे गा , लागॅंव तोरे पइयाॅं ।

राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।।


भाई - बहिनी के रिश्ता ला , ये दुनिया जानत हे ।

सावन के पावन पुन्नी मा , जुरमिल के मानत हे ।।

 

मामा घर ले आवत होही , हमर मयारू मइया ।

राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।।


जेकर हे भाई - बहिनी गा , किस्मत वाला होथे ।

बिन भाई - बहिनी के कतको , सुसक - सुसक के रोथे ।।


छोटे - छोटे भाॅंचा - भाॅंची , होगे  हवय पढ़इया ।

राखी बाॅंधे बर आवत हॅंव , घर मा रहिबे भइया ।।


 

✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम"🙏

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राखी-बरवै छंद


राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।

भैया मोला देबे, मया दुलार।।


जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।

सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।


राखी रक्षा करही, बन आधार।

करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।


झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।

दया मया बरसाबे, देबे मान।।


हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।

नता बहिन भाई के, होही पोठ।।


धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।

बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।


राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।

आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।


सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।

जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।


लइकापन के सुरता, आथे रोज।

रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।


कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।

जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।


पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।

देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।


मोरो अँगना आबे, भैया मोर।

जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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