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Tuesday, December 19, 2023

रील मा नही रीयल मा दिखव- सार छंद*

 *रील मा नही रीयल मा दिखव- सार छंद*


दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।

हाँसँय फाँसँय नाँचँय गावँय, खड़ें खील मा मनखें।।


जिनगी ला पिच्चर समझत हें, हिरो हिरोइन खुद ला।

धरा छोंड़ के उड़ें हवा मा, अपन गँवा सुध बुध ला।।

लोक लाज सत रीत नीत तज, हवैं ढील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


दुनिया ला देखाये खातिर, बदल रूप रँग बानी।

कभू फिरें बनके बड़ दानी, कभू गुणी अउ ज्ञानी।।

मया प्रीत तज मोती खोजें, उतर झील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


हवैं चरित्तर आज मनुष के, हाथी दाँत बरोबर।

मुख मा राम बगल मा छूरी, दाबे फिरें सबे हर।।

सपना देखें सरी जगत के, खुसर बील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको,कोरबा(छग)

अंकल-आंटी*

 *अंकल-आंटी*



अंकल आंटी के चक्कर में,रिश्ता मन सब समटागे जी।

मया प्रीत अउ नता सबो हर,अंग्रेजी मा गुमटागे जी।।

कका बबा मन अंकल होगे,आंटी मामी काकी मन हा,

होत मिंझरा रिश्ता जम्मो,दिखै नही अब अपना पन हा,

बड़े ददा अउ भेद कका के,इन ला अब कोन बतावै जी,

फूफू मौंसी बड़की महतारी, नइ छोटे बड़े चिन्हावै जी,

शब्द भाव सीमित सुक्खा जस,झरना कस सोत अँटागे जी।।

मया प्रीत अउ नता सबो हर.....


भैया भाटो लगे भोरहा, दूनो ला ब्रदर बलावत हे,

बहिनी भउजी ननद घलो तो,देखौ सिस्टर कहलावत हे,

मदर डैड बनगे माँ बाबू,ममता अउ मया सिरावत हे,

परे ओंस रिश्ता मा अइसे,पातर पनछुहा जनावत हे,

उड़त पतंगा आसमान मा,डोरी ला छोड़ कटागे जी।

मया प्रीत अउ नता सबो हर........


हाय हलो अउ बाय बाय मा,मनखे मन हा बउरावत हे,

राम रमौवा चरण वंदना, पढ़ लिख डारिन शरमावत हे,

रखे बाँध के एक डोर मा,हर रिश्ता मा वो ताकत हे,

फेर मान पर के बुध ला,सब ला एक संग हाँकत हे,

आन भाव अउ भाखा आने,संस्कृति हर हमर छँटागे जी।

मया प्रीत अउ नता सबो हर...............


नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*

    ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा (छ.ग.)

      7354958844

गुरु घासीदास जयंती विशेष

 



 *सतगुरु घासीदास चालीसा*


जय-जय-जय गुरु घासीदासा। संत हृदय मा तोर निवासा।।

सत्यरूप सत जोति-प्रकाशा। संतन के साँसा अउ आशा।। 


गुरु सत्पुरुषपिता के अंशा। बाबा सतखोजन के बंशा।।

रोज उबारत हव लख हंसा। तुँहर दया सौभाग्य प्रशंसा।।


गाँव गिरौदपुरी के वासी। संगी संगवारी के घासी।।

हे सुख के सागर सुखरासी। काट दिहू हमरो चौरासी।।


ललना अमरौतिन माता के। पूत्र माँहगू सुख-दाता के।।

गुरुमाता सफुरा के स्वामी। दव असीस गुरु अन्तर्यामी।।


बाबा सतअंशा अँवतारी। साधु-संत तपसी सतधारी।।

महामनुष महिमा हे भारी। गुरु किरपा जग दूध-बियारी।।


हे विधुना हे विश्व-विधाता। अन-धन मोक्ष मुक्ति के दाता।।

सुध-सुरती सतगुरु दिन-राती। जगमग तन-दीया मन-बाती।।


जोति निरंजन अउ ओंकारा। ओहम ले सोहम विस्तारा।।

पहुँचाइन परसाद बरोबर। आदिनाम सतनाम घरों-घर।।


सतगुरु माता-पिता समाना। ज्ञान गोठ सब दाने-दाना।।

गुरु किरपा हरियर हे पाना। जानत हे ये बात जमाना।।


सतगुरु वाणी अमरित पानी। पीयत जेला भागे-मानी।।

द्वार खड़े अनगिनत परानी। संत मुनी ज्ञानी गुनि ध्यानी।।


अधरे नांगर अधर तुतारी। बइला छोड़ दिहिस गरियारी।।

गुरु घासी के बोली-बयना। मेटत मन भितरी के धयना।।


धान एक चुरकी भर लेइस। बड़का बहरा भर बों देइस।।

गुरु घासी के धान-कटोरा।  छलकत ढाबा कोठी बोरा।।


गुरु घासी बाबा के वाणी। जोकनदी के निर्मल पानी।

मन-अंतस ला धो फरियाले। संगवारी सतगुरु गुन गा ले।


बन-जंगल मा सखा बुधारू। चढ़त रहिस रुख रहिस रुखारू।।

बिखहर डोमी डसलिस वोला। घासीदास जिया दिस चोला।।


सतगुरु के संदेश सुहावन। काबर गुण-महिमा नइ गावन।।

मनखे-मनखे एक बरोबर। हे तोरो-बर अउ मोरो-बर।।


गुरु घासी के सातों शिक्षा। पास करे हे जगत परीक्षा।।

सतशिक्षा ले शिक्षित होना। सतबीजा अंतस हे बोना।।


नइ निरवारे ए दिन ओ दिन। नारी बर सम्मान सबो दिन।।

पर-नारी हे मातु समाना। जय गुरु घासीदास सुजाना।।


जन ला जैत-खाम तिर लाये। सार नाम सतनाम लखाये।।

गुरु बाबा सतगुरु पद पाये। पुरुषपिता अड़बड़ सँहुराये।।


सत ले शिव साकार जगत मा। सत ले हे संतोष भगत मा।

सत ले पोषक तत्व रकत मा। सत धारे जिनगी सदगत मा।


भ्रूण तरी सत अंश समाये। पंच-तत्व मा जान फुँकाये।।

सतबल ले जननी जनमाये। बड़ भागी मानुष तन पाये।।


एक रहय कथनी अउ करनी। करत रहँव सतनाम सुमरनी। 

सतगुरु पास बिठाये रइहव। मुड़ मा हाथ मढ़ाये रइहव।।


रचना - सुखदेव सिंह “अहिलेश्वर”

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

मोबाइल नंबर -9685216602

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सत्य नाम हे सार

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महिमा अगम अपार हे,सत्यनाम हे सार।

सत भाखा गुरु के हवय,तँउरव सत के धार।।

तँउरव सत के धार,मइल मन के सब धोलव।

सादा रखे विचार,वचन मा सत रँग घोलव।

मनखे मनखे एक,एक हे सबके गरिमा।

देथे सत संदेश, संत गुरु के हे महिमा।

बादल

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: *गुरु घासीदास*


जैतखाम के सादा झंडा, लहर लहर लहराय।

मनखे मनखे एक बरोबर, घासीदास बताय।।

दिसम्बर अठारह सतरा सौं,छप्पन लिन अवतार,

अमरौतिन के कोंख सँवरगे,महँगू के घर बार,

धाम गिरौदपुरी के माटी,पावन धन्य अपार,

छत्तीसगढ़ के संत शिरोमणि,कहे सत्य ला सार,

माथ तिलक गर कंठी साजे,खांध केश छरियाय।।

मनखे मनखे एक बरोबर..........



मंत्र सात ठन दिये बबा हर,करै मनुज कल्याण,

बुरा जुँआ चोरी बदमाशी, झन कर नशा मितान,

पाप जीव हत्या ले होथे,माँस खाय ले जान,

व्याभिचार ले बाँच धरौ तुम, सत के राह सुजान,

छाता पहाड़ मा बइठे बाबा, घर बन अलख जगाय।।

मनखे मनखे एक बरोबर............


सत्य अहिंसा के बाना धर,मया प्रीत बगराय,

ऊँच नीच अउ भेदभाव ला, बैरी सही बताय,

इरखा द्वेष तजौ मन बानी, सबो कलह कट जाय,

देवत हे संदेश बबा हर,अमृत ला बरसाय,

लगे पार जीवन नैया हर,जग मा जे फिफियाय।।

मनखे मनखे एक बरोबर...............


नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*

  ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा (छ.ग.)

    7354958844

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 कुण्डलिया छंद- *महिमा बड़ सतनाम के*


महिमा बड़ सतनाम के, गा लौ संत सुजान।

भाखा हे अनमोल जी, सबद सबद मा ज्ञान।।

सबद सबद मा ज्ञान, लखाये हे गुरु घासी।

अजर नाम सतनाम, जगत मा हे अविनाशी।।

गजानंद गुरु नाम, जपे जा बढ़ही गरिमा।

जब तक तन मा साँस, सदा गा गुरु के महिमा।।


*स* से सबो के एक तन, एक हाड़ अउ मांस।

एक हवय आवागमन, एक हवा अउ सांस।।

एक हवा अउ सांस, एक हे धरती अम्बर।

बहे नहीं जल धार, अलग जग मा ककरो बर।।

पाँच तत्व आधार, हवय सबके देह बसे।

सत्य विजय सत खाम, बने हे संसार स से।।


*त* से त्याग के पाठ हे, बिना त्याग तन काठ।

लोभ मोह ले पड़ जथे, जिनगी मा दुख गांठ।।

जिनगी मा दुख गांठ, पड़य झन ध्यान लगाबे।

बिना त्याग सुख चाह, कहाँ तँय जग मा पाबे।।

जाना जुच्छा हाथ, छोड़ दे लालच अब से।

तिरस्कार तकरार, तमस तम त्याग त से।।


*ना* से नाता जोड़ ले, नाम कमा रख प्रेम।

आदत अउ ब्यवहार मा, बने रहय नित नेम।।

बने रहय नित नेम, तभे मिलथे जग आदर।

बिना सुवारथ नीर, बरसथे जइसे बादर।।

सबके मन ले जीत, मीठ बोली बाना से।

ना से सतगुरु नाम, जोड़ ले नाता ना से।।


*म* से मना हे बोलना, झूठ भरे मन बात।

सच मारग मा बढ़ चलौ, मिटे तमस दुख रात।।

मिटे तमस दुख रात, उहाँ नव भोर उगे हे।

आशा अउ विश्वास, रखे ले भाग जगे हे।।

गजानंद सौभाग्य, कृपा गुरु पाय जनम से।

मत करबे अभिमान, मिले तन माटी म, म से।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/08/2023

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सार छंद 

बाबा घासीदास जगत ला,सत के राह दिखाये। 

जाँति पाँति औ ऊँच नीच के,बाढ़े रोग मिटाये।


भरम भूत औ मूर्ती पूजा,फोकट  हवय बताये। 

मातपिता भगवान बरोबर,सार तत्व ल लखाये। 


जप तप सेवा भावभजन ला,मन मंदिर म बसालौ। 

करम धरम हा सार जगत मा,जिनगी अपन बनालौ।


गुरु के बानी अमरित बानी,हिरदै अपन रमालौ। 

भाईचारा दया मया ला,पग पग सब अपनालौ। 


बैर कपट ला दुरिहा फेँकव,लोभ मोह सँगवारी। 

चलव सुघर चतवारत रसता,घपटे जग अँधियारी।


परनिंदा औ परनारी हे,राह नरक के जग मा ।

गुरुवर के अनमोल बचन हा,बहय सदा रग रग मा।


ज्ञानुदास  मानिकपुरी 

चंदेनी (कबीरधाम)

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Saturday, November 18, 2023

देवारी तिहार विशेष

 देवारी तिहार विशेष


: ईसर-गौरा बिहाव-- अमृतध्वनि छंद 


राजा ईसर देव ला, सुग्घर करलव साज ।

आये हावय शुभ घड़ी, नाचव गावव आज ।।

नाचव गावव, आज सबो मिल, आरा-पारा ।

हवय नेवता, शुभ बिहाव के, झारा-झारा ।।

गुदुम मोहरी, बाजत हावय, गढ़वा बाजा ।

गौरा रानी,  संग बिहाये,  ईसर राजा ।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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: शंकर छंद---- देवारी परब 


राखव घर ला लीप पोत के, परब हावय खास ।

घर- घर आही लछमी दाई, पुरन होही आस ।।

खोर-गली के करव सफाई, चउँक सुग्घर साज ।

सुख सुम्मत धर संगे आही, बनाही सब काज ।।


बनही घर-घर लड्डू मेवा, खीर अउ पकवान ।

ध्यान लगाके पूजा करिहव, मिलय जी वरदान ।।

धन दौलत ले कोठी भरही,  लगाही भव पार ।

देवारी के परब मनावव,  होय जगमग द्वार ।।


नरियर-फूल चढ़ावव संगी, जोर दूनों हाथ ।

किरपा करही लछमी दाई, नवावव जी माथ ।।

लाही जग मा उजियारी ला, भगाही अंधियार ।

जम्मों जुरमिल खुशी मनावव, आय पावन वार ।।


मुकेश उइके 'मयारू'

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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पावन पर्व देवारी के आप मन ला हार्दिक बधाई


गोवर्धन पूजा 

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वन परवत धरती के रक्षा, गोवर्धन के पूजा आय।

गौ माता के सोर-सरेखा, इही हमर संस्कार कहाय।।

गौ माता के अंग-अंग मा,सबो देव के हावय वास।

अमरित कस गौ गोरस देथे,गोबर खेती बर हे खास।।

जंगल हरियर चारा देथे,परवत भरे रतन के खान।

रुख-राई आक्सीजन देके, हमर बँचाथे सिरतो प्रान।।

द्वापर जुग मा गिरिधारी हा, देइस सब ला निर्मल ज्ञान।

जेन हमर नित पालन करथे, वो भुँइया हे सरग समान।।

मरम धरम के कृष्ण-कन्हैया, ब्रजवासी ला रहिस बताय।

छोंड़ इंद्र के मान-गउन ला, धरनी के पूजा करवाय।।

बिपदा ला मिलजुल के टारौ, कहिस सबो ला वो समझाय।

छाता कस परवत ला टाँगिन, जबर एकता के बल पाय।।

एक बनन अउ नेक बनन हम, भेदभाव ला देवन त्याग।

तभे जागही ये कलजुग मा, भारत माता के तो भाग।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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देवारी

पाँचे दिन के आय तिहार।टुकुर -टुकुर सब करय निहार।। 

साफ-सफाई मा दय ध्यान।आही कइके नवा बिहान।। 


लिपई-पुतई जाला झार। पाटय खचका डिपरा पार।। 

कचरा कोरा कहूँ गँजाय। घुरवा मा फेके बर जाय।। 


सजे रहय जी हाट बजार। लकठावय जब इहाँ तिहार।। 

टुकनी झउँहा सुपा बिसाय। नवा-नवा कपड़ा सिलवाय।। 


गली खोर हर नीक उजास। फसल देखके बाढ़य आस।। 

काँदी कुस्सा करके साफ।बेरा  चाहे होय खिलाफ।। 


लइकन मन हा बड़ इतराय।देख फटाका बर उमियाय।। 

बसे रहय जे दूसर गाँव। आय छोड़ के अपने ठाँव।। 


राउत गहिरा मन सकलाय।बाजा साजे बर गा जाय।। 

केंवट मड़ई घलो बनाय।सुग्घर तोरन ताव सजाय।। 


अरे-ररे रे भाई मोर। राउत गहिरा पारय शोर।। 

अन-धन सन लक्ष्मी के वास। घर बन लागय बने उजास।। 


अइसन हावय हमरो रीत। गूँजय गौरा गौरी गीत।। 

सुमता के गा आय तिहार। मीन मेख सन भगे विकार।। 


पहिली दिन धनतेरस आय। तेरह दियना सबो जलाय।। 

धनवंतरि तब खुश हो जाय। सेहत बर अमरित बरसाय।। 


दूसर दिन चौदस कहलाय। कृपा देव यम के सब पाय।। 

नरक जाय ले उही बचाय। नहा धोय जे पूज मनाय।। 


तीसर दिन लक्ष्मी घर आय। दीप देवारी मया लुटाय।। 

अंधकार ला दूर भगाय। माता लक्ष्मी करय सहाय।। 


अन्न कूट चौथा दिन आय। नवा अन्न के भोग चढ़ाय।। 

कृष्णा के जयकार लगाय।गोवर्धन ला रिहिस उठाय।। 


पंचम भाई दूज कहाय। बहिनी भर -भर मया लुटाय।। 

भाई बर यम ले उपहार।जीयँय सालों साल हजार।। 


बाती दियना तेल मिंझार। तभे भगाथे गा अँधियार।। 

एक अकेल्ला कहाँ उबार। मिलके जलथे तब उजियार।।

विजेंद्र कुमार वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

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1,देवारी तिहार-घनाक्षरी


कातिक हे अँधियारी,आये परब देवारी।

सजे घर खोर बारी,बगरे अँजोर हे।

रिगबिग दीया बरे,अमावस देख डरे।

इरसा दुवेस जरे,कहाँ तोर मोर हे।

अँजोरी के होये जीत,बाढ़े मया मीत प्रीत।

सुनाये देवारी गीत,खुशी सबे छोर हे।।

लड़ी फुलझड़ी उड़े,बरा भजिया हे चुरे।

कोमढ़ा कोचई बुड़े,कड़ही के झोर हे।।


बैंकुंठ निवास होही, पाप जम्मों नास होही।

दीया बार चौदस के, चमकाले भाग ला।

नहा बड़े बिहना ले, यमराजा ला मनाले।

व्रत दान अपनाले, धोले जम्मों दाग ला।

ये दिन हे बड़ न्यारी, कथा कहानी हे भारी।

जीत जिनगी के पारी, जला द्वेष राग ला।

देव धामी ला सुमर, बाढ़ही तोरे उमर।

पा ले जी भजन कर, सुख शांति पाग ला।


आमा पान के तोरन, रंग रंग के जोरन।

रमे हें सबे के मन, देवारी तिहार मा।

लिपाये पोताये हवे, चँउक पुराये हवे।

दाई लक्ष्मी आये हवे, सबके दुवार मा।

अन्न धन देवत हे, दुख हर लेवत हे।

आज जम्मों सेवक हे, बहे भक्ति धार मा।

हाथ मा मिठाई हवे, जुरे भाई भाई हवै।

देवत बधाई हवै,गूँथ मया प्यार मा।


गौरा गौरी जागत हे,दुख पीरा भागत हे।

बड़ निक लागत हे,रिगबिग रात हा।।

थपड़ी बजा के सुवा,नाचत हे भौजी बुआ।

सियान देवव दुवा,निक लागे बात हा।।

दफड़ा दमऊ बजे,चारों खूँट हवे सजे।

धरती सरग लगे,नाँचे पेड़ पात हा।।

घुरे दया मया रंग,सबो तीर हे उमंग।

संगी साथी सबो संग,भाये मुलाकात हा।।


गौरा गौरी सुवा गीत,लेवै जिवरा ल जीत।

बैगा निभावय रीत,जादू मंतर मार के।।

गौरा गौरी कृपा करे,दुख डर पीरा हरे।

सुवा नाचे नोनी मन,मिट्ठू ल बइठार के।।

रात बरे जगमग,परे लछमी के पग।

दुरिहाये ठग जग,देवारी ले हार के।।

देवारी के देख दीया,पबरित होवै जिया।

सोभा बड़ बढ़े हवै,घर अउ दुवार के।


मया भाई बहिनी के, जियत मरत टिके।

भाई दूज पावन हे, राखी के तिहार कस।

उछाह उमंग धर, खुशी के तरंग धर।

आये अँगना मा भाई, बन गंगा धार कस।

इही दिन यमराजा, यमुना के दरवाजा।

पधारे रिहिस हवै, शुभ तिथि बार कस।

भाई बर माँगे सुख, दुख डर दर्द तुक।

बेटी माई मन होथें, लक्ष्मी अवतार कस।


कातिक के अँधियारी, चमकत हवै भारी।

मन मोहे सुघराई, घर गली द्वार के।।

आतुर हे आय बर, कोठी मा समाय बर।

सोनहा सिंगार करे, धान खेत खार के।।

सुखी रहे सबे दिन, मया मिले छिन छिन।

डर जर दुख दर्द, भागे दूर हार के।।

मन मा उजास भरे, सुख सत फुले फरे।

गाड़ा गाड़ा हे बधाई, देवारी तिहार के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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2, कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।

मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।

गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।

करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।

लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।

दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।


भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।

देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।

बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।

आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।

बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।

देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।


लेवव  जय  जोहार  जी,बॉटव  मया   दुलार।

जुरमिल मान तिहार जी,दियना रिगबिग बार।

दियना रिगबिग बार,अमावस हे अँधियारी।

कातिक पबरित मास,आय  हे  जी देवारी।

कर आदर सत्कार,बधाई सबला देवव।

मया  रंग  मा रंग,असीस सबे के लेवव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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3,मत्तग्यंद सवैया- देवारी


चिक्कन चिक्कन खोर दिखे अउ चिक्कन हे बखरी घर बारी।

हाँसत  हे  मुसकावत  हे  सज  आज  मने  मन  गा  नर नारी।

माहर  माहर  हे  ममहावत  आगर  इत्तर  मा  बड़  थारी।

नाचत हे दियना सँग देखव कातिक के रतिहा अँधियारी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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4,बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


सबे खूँट देवारी, के हे जोर।

उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।


छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।

किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।


चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।

गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।


काँटा काँदी कचरा, मानय हार।

मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।


जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।

दया मया मनखे मा, हे भरपूर।


चारो कोती मनखे, दिखे भराय।

मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।


बनठन के सब मनखे, जाय बजार।

खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।


पुतरी दीया बाती, के हे लाट।

तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।


लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।

दीया बाती वाले, देख बलाय।


कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।

नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।


जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।

टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।


हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।

खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।


पहली दिन घर आये, श्री यम देव।

मेटे सब मनखे के, मन के भेव।


दै अशीष यम राजा, मया दुलार।

सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।


तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।

पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।


दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।

सब संकट हा भागे, सुबे नहात।


नहा खोर चौदस के, देवय दान।

नरक मिले झन कहिके, गावय गान।


तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।

धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।


एक मई हो जावय, दिन अउ रात।

अँधियारी ला दीया, हवै भगात।


बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।

चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।


बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।

दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।


फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।

चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।


होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।

गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।


दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।

अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।


पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।

बहिनी मनके बोहै,भाई भार। 


कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।

देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।


देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।

देख देख के नाचे, तनमन मोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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कज्जल छंद- देवारी


मानत हें सब झन तिहार।

होके मनखे मन तियार।

उज्जर उज्जर घर दुवार।

सरग घलो नइ पाय पार।


बोहावै बड़ मया धार।

लामे हावै सुमत नार।

बारी बखरी खेत खार।

नाचे घुरवा कुँवा पार।


चमचम चमके सबे तीर।

बने घरो घर फरा खीर।

देख होय बड़ मन अधीर।

का राजा अउ का फकीर।


झड़के भजिया बरा छान।

का लइका अउ का सियान।

सुनके दोहा सुवा तान।

गोभाये मन मया बान।


फुटे फटाका होय शोर।

गुँजे गाँव घर गली खोर।

चिटको नइहे तोर मोर।

फइले हावै मया डोर।


जुरमिल के दीया जलायँ।

नाच नाच सब झन मनायँ।

सबके मन मा खुशी छायँ।

दया मया के सुर लमायँ।


रिगबिग दीया के अँजोर।

चमकावत हे गली खोर।

परलव पँवरी हाथ जोर।

लक्ष्मी दाई लिही शोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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आप सबो ला देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई



मतदान जागरुकता विशेष

 मतदान जागरुकता विशेष



मीता अग्रवाल: कुण्ड़लिया छंद

मतदाता बड़का हवे, लोकतंत्र के नींव। 

जिम्मेदारी हे बड़े, अंतस जागय जीव। 

अंतस जागय जीव, सबों बर चुनई छुट्टी। 

पावन बड़ त्यौहार,परब के पीवव घुट्टी। 

गुनव मधुर के बात, ददा-दाई अस नाता। 

लोकतंत्र दे मान,वोट दे हर मतदाता।।

रचनाकार-

डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग

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मतदान जागरूकता पर दोहा छंद


सबो काम ला छोड़ के, दे बर जाहू वोट। 

कखरो भपका मा इहाँ, लेहू झन गा नोट।। 


लोभ लुभावन ले बचव, मन मा रख ईमान। 

झूठ लबारी मारथे, तेकर कर पहचान।। 


जनता के सेवक चुनव, जेहर लगे सुजान। 

इही समझ के आज तो, करहू  गा मतदान।। 


एक वोट हे कीमती, होय जीत अउ हार। 

सावचेत हो जाव जी, मिले हवय अधिकार।। 


लोकतंत्र जिंदा रहय, बने भली सरकार। 

मत की कीमत जान लो,करके सोच विचार।। 

विजेंद्र वर्मा

 नगरगाँव (धरसीवाँ)

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मनहरण घनाक्षरी


मतदान अधिकार, हमर हरे गा मान,

आहे चुनाव चलव,मतदान  ड़ार दौ।


नेता बने छाँट लेहू,तभे तुम वोट देहू,

लबरा छटकाहा ला,तीर कोती टार दौ।


नेता जन सेवक हो, गरीब के साथी होय,

संग मिल चलैया हो,उही ला  बिचार दौ।


झन कहूँ भेट लव,साड़ी दारू फेंक दव, 

समझदार जानहू ,तेला पतवार दौ

🌺

दौड़ -दौड़ अभी आही,जीत के मुहूँ लुकाही।

धोखा झन देवे वोहा, बने पहिचान गा।


क्षेत्र के विकास करे,दुख पीरा आके हरे,

 सुने बात सबके ला,देबो मतदान गा।


हमर अधिकार हे,मतदान करे बर,

चलो सब जुर मिल,अघुवा ला जान गा।


सुनता बँधा के चलो,दीदी भैया गा निकलो,

बने कस नेता रहे,चुनना हे ठान गा।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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दुर्मिल सवैया 

112,112,112,112,

          112,112,112,112


घट राम बसे जब गीत लिखौं, 

सब भाव भरे मन मीत लिखौं। 

नव छंद बने जब हास्य लिखौं, 

जस पावन प्रीतम प्रीत लिखौं।। 

पिय आवत ही दुख जावत हे 

हिरदे अँगना जग जीत लिखौं। 

जब अंतस भीतर सून नहीं 

घर द्वार सजे अस रीत लिखौं।। 


सुमित्रा शिशिर

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#मतदान-दिवस


जइसे रोज बिहान जरूरी

निर्मल जल इस्नान जरूरी

जीये बर जलपान जरूरी

वइसे हे मतदान जरूरी 


बोले बिना बयान करे बर

मनमाफिक निर्मान करे बर

लोकतंत्र के मान करे बर

जाना हे मतदान करे बर


खेत गहूँ अउ धान जरूरी

हाट-बजार दुकान जरूरी

जइसे सब संस्थान जरूरी

वइसे हे मतदान जरूरी 


काबर कखरो बात म आबो

मत देये बर खच्चित जाबो

अपन पसन के बटन दबाबो 

मतदाता के फर्ज निभाबो


जइसे अक्षर ज्ञान जरूरी

कपड़ा मान मकान जरूरी 

मनखे मुँह मुस्कान जरूरी 

वइसे हे मतदान जरूरी


-सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"

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*मतदान महादान*


दान करौ शुभ महादान हे, करौ प्रथम मतदान।

लोकतंत्र के बनौ पहरुआ, करौ राष्ट्र उत्थान।।

संविधान हर देहे तुँहला,लाखो के अधिकार।

गढ़ौ भाग ला अपन हाथ मा,चुनव बने सरकार।।

सोन हरौ तुम नोहव कचरा, कीमत खुद के जान।।

दान करौ शुभ महादान हे.....


काम बुता ला छोड़ अभी कर,सबले बड़का काम।

भ्रष्टाचार बने हे बैरी,लगही तभे लगाम।।

एक वोट में काय बिगड़ही,सोंच कभू झन यार।

बूंद बूंद में भरे घड़ा हा,बने बूंद हा धार।।

लोकतंत्र के तिहार पावन,छोड़ अपन पहिचान।।

दान करौ शुभ महादान हे.....


जान मछरिया गरी फेंकही,झाँसा मा झन आव।

जेन करै जी भला देश के,ओखर करौ चुनाव।।

डार अपन मत निर्भय होके, लालच बिना दबाव।

अपन वोट के ताकत समझौ,आही तब बदलाव।।

तुँहर समस्या तुँहर तपस्या, होही सबो निदान।।

दान करौ शुभ महादान हे.....


लिहव दान के बदला मा कुछ,हरै जान लव पाप।

कौंड़ी मोल बिकत हव काबर,बन मूरख चुपचाप।।

कुकरा मछरी दारू लुगरा, कै दिन पुरही नोट।

अपन वोट ले चोट करौ चुप, मन मा जेखर खोट।।

भागीदारी अपन निभावव, बनही देश महान।।

दान करौ शुभ महादान हे.......


    🙏🙏🙏🙏

नारायण प्रसाद वर्मा चंदन

ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा(छ.ग.)

       7354958844

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Thursday, November 2, 2023

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस विशेष

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के हार्दिक बधाई।

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एक नवम्बर हे बड़ पावन, कातिक चलौ नहाबो जी।

राज बनिस छत्तीसगढ़ संगी, आवव खुशी मनाबो जी।।

धान कटोरा छलकत हाबय,छाये हाबय हरियाली।

इंद्रधनुष के रंग सहीं जी, बगरे हाबय खुशहाली।।

महानदी के निरमल पानी,गावत सुवा ददरिया हे।

अरपा पैरी सोंढुर हसदो, देवत टेही बढ़िया हे।।

घन जंगल बस्तर के हरियर,तीरथगढ़ देखौ झरना।

दंतेश्वरी मातु के दरशन, करलव भइया हे तरना।।

हे गिरौद शिवरीनारायण, राजिम सिरपुर खल्लारी।

तुरतुरिया मल्हार इहाँ हें, जिंकर महिमा हे भारी।।

कौशिल्या माता के मइके, भाँचा राम कहाये हे।

बालमिकी जी इहें रहिस जे, रामायण सिरजाये हे।।

तिज तिहार अउ नेंग जोग हा,नइये कहूँ इहाँ जइसे।

आथे परब छेरछेरा तब, धान दान देथँन कइसे।।

बना ठेठरी खुरमी चीला,फागुन खूब मनाथन जी।

फरा बरा संँग गुलगुल भजिया, बाटँ बाँट के खाथन जी।।

गिल्ली डंडा भौंरा बाँटी,रेस टीप जग जाहिर हे।

फुगड़ी पित्तुल खुड़वा खो खो,खेले लइका माहिर हे।।

टोंड़ा ककनी गर के सूँता, खिनवा फुल्ली करधन हे।

छत्तीसगढ़हिन महतारी के, सुंदर तन उज्जर मन हे।।

सुमता के रसता मा चलथें, सबो इहाँ के रहवासी।

सिधवा जाँगर पेर कमइयाँ, खा लेथें चटनी बासी।।

अत्याचारी संग लड़े बर,हाबय लोहा कस छाती।

अउ मितवा बर लिखथे रहिथन, दया मया के नित पाती।।

आवव संगी छत्तीसगढ़ ला, मिलजुल सरग बनाबो जी।

एक नवम्बर हे बड़ पावन,आज तिहार मनाबो जी।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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महतारी छत्तीसगढ़, हमर गरब अभिमान।

छत्तीसगढ़ी गोठ हा, दया मया पहिचान।।

दया मया पहिचान, रखे हें छत्तीसगढ़िया।

धान मुकुट मुड़ तोर, फबत हे सुग्घर बढ़िया।।

खेत खार खलिहान, हवय महकत फुलवारी।

वंदन हे कर जोर, मयारू ओ महतारी।।


सपना पुरखा के सँजो, छत्तीसगढ़ गढ़ राज।

काम मिले हर हाथ ला, आवय नवा सुराज।।

आवय नवा सुराज, मिटे दुख के अँधियारी।

गावँय सुमता गीत, साथ मिल नर अउ नारी।।

भाखा के सम्मान, मान लौ सब झन अपना।

पूरा कर लौ आज, हमर पुरखा के सपना।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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*छत्तीसगढ़ी दाई* (16/13)


छत्तीसगढ़ी भाषा सुग्घर, 

                        दाई तोर दुलार हे । 

गुरतुर बोली मँदरस जइसन, 

                   बरसत मया फुहार हे।


आवव संगी भाई जुरमिल, 

                        गुन माटी के गाव जी। 

बनके सबो किसान नँगरिहा,

                    अन्न सोन उपजाव जी।।

करमा-सुआ-ददरिया सुग्घर,

                          गली-गली गोहार हे।

गुरतुर बोली मँदरस................


बगरत हावै चारों कोती,

                           दाई के ईमान हा । 

एखर सेती बाढ़त हावै,

                    दुनिया मा पहिचान हा।।

महतारी भाखा मा सुन लौ,

                          जम्मों ला जोहार हे।

गुरतुर बोली मँदरस...............


गंगा कस पबरित भाखा हे, 

                         एखर गुन गायेंव मँय।

ननपन ले सुन-सुन के भइया, 

                     ज्ञान ज्योति पायेंव मँय।।

मान मिलत सम्मान मिलत हे,

                     जग मा कृपा तुम्हार हे।

गुरतुर बोली मँदरस................


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

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सरसी छंद गीत---- छत्तीसगढ़ महतारी


देखव छत्तीसगढ़ बने ले, मिलिस नवा पहिचान ।

महतारी के मान बढ़े हे,  सुनले मोर मितान ।।


किसम-किसम के लोक गीत हे, रोज मया बगराय ।

करमा-पंथी सुवा-ददरिया, सबके मन ला भाय ।।

एकर महिमा हावय भारी, कइसे करँव बखान ।

महतारी के मान बढ़े हे,  सुनले मोर मितान ।।


धनहा-डोली टिकरा टाँगर, धान पान लहराय ।

होत बिहिनिया चिरई-चिरगुन, गीत मया के गाय ।।

बोली भाखा मीठ इहाँ के, मीत मयारू जान ।

महतारी के मान बढ़े हे,  सुनले मोर मितान ।।


आनी-बानी जुरमिल जम्मों, मानँय तीज तिहार ।

होली-अक्ती परब हरेली,  हावय तीजा सार ।

लोहा-टीना चूना-पखरा, एकर भरे खदान 

महतारी के मान बढ़े हे,  सुनले मोर मितान ।।


अंगाकर अउ गुरहा बजिया, सुनके टपकय लार ।

बोहावत हे महानदी अउ, अरपा पैरी धार ।

चंदन कस माटी हे एकर, पाये जी बरदान ।

महतारी के मान बढ़े है,  सुनले मोर मितान ।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा( छ.ग.)

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सार छंद 



महिमा तोरे महिमा गावँव, छत्तीसगढ़ महतारी।

मँय आरती उतारौं दाई, धरे सोनहा थारी।


मया पिरीत मा सबले आगू,तोरे बेटी बेटा।

दुश्मन बर आगी बन जाथें,परही कनो सपेटा।

जुरमिल सबो तिहार मनाथन,होरी अउ देवारी।

मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।


सुवा ददरिया पंथी नाचा,सबके मन ला मोहे।

राउत नाचा साजू पहिरे,पंख मयूरा सोहे।

छत्तीसगढ़ी बोली भाखा,लागे जस महतारी।

मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।


हरियर लुगरा पहिरे दाई, कनिहा करधन सोहे।

माथे मुकुट धान के बाली,मन किसान के मोहे।

पाँव आलता बिछिया चुटकी,रुनझुन बाजे पैरी।

मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।


महानदी अउ सोंढू पैरी, तोरे चरण पखारे।

छत्तीसगढ़ी बेटा तोरे, पैंया लाग गुहारे।

दया मया बरसावत रहिबे,माता पालन हारी।

मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।


कतका तोरे महिमा गावँव, छत्तीसगढ़ महतारी।

मँय आरती उतारँव दाई धरे सोनहा थारी।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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Monday, October 30, 2023

फूल (जयकारी छंद के लय आधारित)


 

फूल (जयकारी छंद के लय आधारित)

चंपा गुड़हल सदाबहार।गेंदा के बनथे जी हार।।

नर्गिस नारंगी मन भाय।लिली माधवी बड़ मुसकाय।।


अर्जुन अगस्त्य फूल गुलाब।नीलकमल खिलथे तालाब।।

कामलता बनफूल कनेर। सूर्यमुखी हा आँख तरेर।।


राई मुनिया हर सिंगार।सुघर कामिनी मन मतवार।।

रजनी गंधा अउ कचनार।देवकली के रूप निहार।।


फूल सावनी मुच मुच हाँस।तारक बचनाग अमलतास।।

रक्त केतकी जूही फूल।सत्यानाशी शूल अकूल।।


ब्रम्हकमल अउ बूगनबेल।माथ चमेली के मल तेल।।

असोनिया अउ सादा आक। चन्द्र मोगरा शोवी ढाक।।


नील गुलैंची मुसली फूल।खिल -खिल हाँसत हावय झूल।।

छुईमुई छूबे ते सकुचाय।मूंग मालती मया जगाय।।


हे गुलमोहर के बड़ नाम।फूल चाँदनी नोहय आम।।

गुलेतुरा लेवेंडर कोन।कुकरोधा केसर हे सोन।।


चील आँकरी द्रोप सिरोय।झुमका मौली मा मन खोय।।

अपराजिता बसंती कुंद।मून महकनी अउ मुचमुंद।।


गुलखैरा होथे जी खास।फूल केवड़ा बाँधय आस।

डहेलिया बगिया के शान।कउँवा कानी ला पहचान।।


सेवंती हे रंग बिरंग।महिमा मन मा भरे उमंग।।

सीता अशोक मुर्गा लाल।जुनबेरी ला देख निढ़ाल।।


आर्किड अमला कुकु ब्लूस्टार।सुघर अमोली के परिवार।।

फूल धतूरा शिव ला भाय।सुघर रात रानी ममहाय।।


ऐस बकाइन घंटी फूल।बजय नहीं झन देवव तूल।।

तितली कोरल क्रोकस कान।सिला केरिया खसखस जान।।


मंकी फ्लावर गार्डन गेट।बर बिहाव मा होथे भेंट।।

गुब्बारा बाटल ब्रश लान।नाव तको अइसन हे जान।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

Tuesday, October 10, 2023

आवव जानन अपन आसपास के पेड़ पौधा मन कतका गुणकारी हे। *जयकारी छंद*-विजेंद्र वर्मा


 

आवव जानन अपन आसपास के पेड़ पौधा मन कतका गुणकारी हे।

*जयकारी छंद*-विजेंद्र वर्मा

दाँत दरद मा मिले अराम। दतवन के गा आथे काम।।

सुघर सोनहा एखर फूल। लकड़ी ईंधन आय *बबूल*।।


औषधीय गुण ले भरपूर।फर पाना ला जान कपूर।।

दाद खाज ला दूर भगाय। *नीम* दाँत के दरद मिटाय।।


जीव जगत के प्रान अधार।ऑक्सीजन देथे भरमार।।

देव बिराजे एखर ठाँव। *बर* के सुग्घर शीतल छाँव।।


सबो देव हा करे निवास।पूजन ले पूरी हो आस।।

शारीरिक दुख दूर भगाय। *पीपर* मा जल जेन चढ़ाय।।


पीपर जइसन रंगे रूप।डारा खाँधा दिखे अनूप।।

घनेदार अउ शीतल छाँव। *गस्ती* मा चिरई के ठाँव।।


धरम-करम मा अगुवा मान।हे प्रतीक शुभता के जान।।

फल मा वो राजा कहलाय। पेड़ *आम* के वैभय लाय।।


कब्ज़ रोग ला दूर भगाय।गूदा एखर शुगर मिटाय।।

शिव बाबा हर खुश हो जाय। *बेल* पत्र जे रोज चढ़ाय।।


कतका मिनरल हवय भराय।एखर सेवन उमर बढ़ाय।।

धार्मिक महत्व पौधा आय।विष्णु *आँवला* तरी लुकाय।।


खट्टा-मीठा फर के स्वाद। लकड़ी चेम्मर अउ फौलाद।।

हवय आयरन के ये खान। *इमली* के गुण ला पहचान।।


इँकर पेड़ ला कटही जान।गोल जलेबी फर ला मान।।

फर मा पोषक तत्व भराय। *गंगा इमली* नाँव कहाय।।


रोग-रइ बर फायदेमंद। फाईबर गा भरे बुलंद।।

करथे पाचन तंत्र सुधार। *जाम* भगाथे पेट विकार।।


हवय आयरन गा भरपूर।फर दिखथे करिया अंगूर।।

पाना फर गुणकारी आय। *जामुन* कृमि नाशक कहलाय।।


रोजगार के स्रोत गा आय। मंडी मा फर हा कुड़हाय।।

नशा पान मा हे बदनाम। *महुआ* आथे मद के काम।।


कतका उपयोगी हे छाल।काढ़ा पी ले सालों साल।।

हेल्दी सेहत उही बनाय। *कउँहा* के गुण धरे समाय।।


जंगल के गा आग कहाय।लाली-लाली फूल झुलाय।।

पत्तल दोना आथे काम।   *परसा* के हे कतको नाम।।


लकड़ी मा सोना गा जान। फर्नीचर होथे निरमान।।

हरा-भरा हर ऋतु मा देख। पेड़ बने *सागौन* सरेख।।


खिड़की चौखट नाव बनाय।स्लीपर बन के ये बिछ जाय।।

कोनो गिलास तको बनाय। *साल* भिगों के रस पी जाय।।


छाल फूल फर पाना बीज।वात पित्त कफ चर्म मरीज।।

दूर भगाथे केंसर रोग। *सिरसा* आथे बड़ उपयोग।।


अल्सर मा दिखथे परिणाम।सेहत ला तब मिले अराम।।

मूत्र रोग ला दूर भगाय। *शीशम* के जे पत्ती खाय।।


एंटी आक्सीडेंट भराय। खट्टा-मीठा फर गा आय।।

घना पेड़ काँटा छबड़ाय। *बोइर*  दिमाग चुस्त बनाय।।


औषधीय गुण हे भरमार। प्रकृति देय हे गा उपहार।।

दाँत दरद अउ चमड़ी  रोग। दतवन *करंज* कर उपयोग।।


ठंडा एखर हे तासीर।छाल पीस के लेप शरीर।।

जेन कब्ज ले हे परशान।खाय फूल *सेमर* के जान।।


देख फोसवा लकड़ी आय।पाना फर अउ फूल सुहाय।।

रक्तचाप ला दूर भगाय। *मुनगा* हर तो बूटी आय।।


बहुते हवय फायदेमंद।तन ला रखथे सुघर बुलंद।।

खाँसी खुजली दूर भगाय। *नीलगिरी* के तेल लगाय।।


इमारती लकड़ी गा जान।खेत मेड़ मा बोय किसान।।

लकड़ी मा जानव गा सार।कतका आथे काम *खम्हार*।।


लाठी डंडा साज समान।बल्ली सूपा चरिहा तान।।

पूजा मंडप तको छवाय।    *बाँस* भाग्य ला तको बनाय।।


बर बिहाव मा शुभता आय।मंडप घर घर तभे छवाय।।

शुक्र देव के रहिथे वास। *डूमर* पूजन आथे रास।।


पेड़ हवय लंबा गा जान।फर फरथे ऊँच आसमान।।

फर कतका गुणकारी आय।तन ला *खजूर* स्वस्थ बनाय।।


तरिया नरवा डबरी तीर।खड़े हवय पानी मा गीर।।

चोट घाव गोदर हो जाय।पान *बेशरम* पीस लगाय।।


पेड़ जादुई येला जान।गैस कब्ज बर रामेबाण।।

पीला फुलवा पेड़ सजाय। *अमलतास* हा जगत हँसाय।।


बाग-बगीचे मा इठलाय।पान पीस के जेन लगाय।।

गंजा पन ला दूर भगाय। *गुलमोहर* सबके मन भाय।।


पर्यावरणी दूत कहाय।माटी कटाव रोक बचाय।।

रोजगार लोगन मन पाय। *छींद* पान फर बेंच कँमाय।।


लंबा सीधा जड़ मजबूत।इकर पेड़ मनखे के दूत।।

बवासीर खाँसी अतिसार। *हरड़* भगाथे कब्ज बुखार।।


कफ नाशक औषधि गा आय।जेन पेट कृमि मार भगाय।।

पित्त दोष अउ भूख मिटाय।बीज *बहेड़ा* ला जे खाय।।


इको फ्रेडली पेड़ कहाय।एंटी फंगल गुण ला पाय।।

शुद्ध हवा बड़ वोहर पाय।घर मा *अशोक* जेन लगाय।।


सुघर कीमती लकड़ी आय। औषधीय गुण हवय भराय।।

हवन पाठ पूजन करवाय। *चंदन*  शीतलता बरसाय।।


लीवर ला ये स्वस्थ बनाय।फूल फली सेवन कर खाय।।

कृष्ण बाँसुरी जिहाँ बजाय। पेड़ हरे गा *कदंब* ताय।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

Sunday, October 8, 2023

आन लाइन बाजार-रोला छंद

 आन लाइन बाजार-रोला छंद


सजे हवै बाजार, ऑनलाइन बड़ भारी।

घर बइठे समान, बिसावत हें नर नारी।।

होवत हे पुरजोर, खरीदी मोबाइल मा।

छोटे बड़े दुकान, पड़त हावैं मुश्किल मा।


देवत रहिथें छूट, लुभाये बर ग्राहक ला।

घर मा दे पहुँचाय, तेल तरकारी तक ला।

साबुन सोडा साल, सुई सोफा सोंहारी।

हवै मँगावत देर, पहुँच जाथे झट द्वारी।।


शहर लगे ना गाँव, सबे कोती छाये हे।।

बाढ़त हावै माँग, बेर डिजिटल आये हे।

सबे किसम के चीज, ऑनलाइन होगे हें।

बड़े लगे ना छोट, सबे येमा खोगे हें।


होमशॉप फ्लिपकार्ट, अमेजन अउ कतको कन।

खुलगे हे बाजार, मगन हें इहि मा सब झन।।

सुविधा बढ़गे आज, राज हे पढ़े लिखे के।

तुरते होवै काम, जरूरत हवै सिखे के।।


जतिक फायदा होय, ततिक नुकसान घलो हे।

का बिहना का साँझ, रोज के हलो हलो हे।।

लोक लुभावन फोन, मुफत मा ए वो बाँटे।

जे चक्कर मा आय, तौन आफत ला छाँटे।।


बिना जान पहिचान, काखरो बुध मा आना।

खाता खाली होय, पड़े पाछू पछताना।।

करव सोंच विचार, झपावौ झन बन भेंड़ी।

पासवर्ड आधार, आय खाता के बेंड़ी।।


आघू करही राज, ऑनलाइन हटरी हा।

दिखही सबके ठौर, बँधे इँखरे गठरी हा।

लूटपाट ले दूर, रही के होवै सेवा।।

करैं बने जे काम, तौन नित पावैं मेवा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

पितर- कुकुभ छंद

 पितर- कुकुभ छंद


पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।

ये धरती मा जनम लेय के, करिन हमर बढ़वार।


खेत खार बन बाट बनाइन, बसा मया के गाँव।

जतिन करिन पानी पुरवा के, सुन चिरई के चाँव।

जीव जानवर पेड़ पात सँग, रखिन जोड़ के तार।।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।


रीत नीत अउ धरम करम के, सदा पढ़ाइन पाठ।

अपन भरे बर कोठी काठा, बनिन कभू नइ काठ।

जियत मरत नइ छोड़िन हें सत,नेत नियम संस्कार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


डिही डोंगरी मंदिर मंतर, सब उँकरे ए दान।

गाँव गुड़ी के मान बढ़ाइन, अपन सबे ला मान।

एक अकेल्ला रिहिन कभू नइ,दिखिन सबे दिन चार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।


उँखरे कोड़े तरिया बवली, जुड़ बर पीपर छाँव।

जब तक ये धरती हा रइही, चलही उंखर नाँव।

गुण गियान के गुँड़ड़ी गढ़के, चलिन बोह सब भार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


पाप पुण्य पद प्रीत रीत के, करिन पितर निर्माण।

स्वारथ खातिर आज हमन हन, धरे तीर अउ बाण।

देख आज के गत बुढ़वा बर, बइठे हे थक हार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Friday, October 6, 2023

जनकवि- स्व.कोदूराम दलित जी के 56 वीं पुण्यतिथि मा काव्य सुमन सादर समर्पित)🙏💐

 ( जनकवि- स्व.कोदूराम दलित जी के 56 वीं पुण्यतिथि मा काव्य सुमन सादर समर्पित)🙏💐

आल्हा छंद- सुरता पुरखा के


करके सुरता पुरखा मन के, चरन नवावँव मँय हा माथ।

समझ धरोहर मान रखव जी, मिलय कृपा के हर पल साथ।।


इही कड़ी मा जिला दुर्ग के, अर्जुन्दा टिकरी हे गाँव।

जनम लिये साहित्य पुरोधा, कोदूराम दलित हे नाँव।।


पाँच मार्च उन्निस सौ दस के, दिन पावन राहय शनिवार।

माता जाई के गोदी मा, कोदूराम लिये अवतार।।


रामभरोसा पिता कृषक के, जग मा बढ़हाये बर नाँव।

कलम सिपाही जनम लिये जी, बगराये साहित के छाँव।।


बचपन राहय सरल सादगी, धरे गाँव  सुख-दुख परिवेश।

खेत बाग बलखावत नदिया, भरिस काव्य मन रंग विशेष।।


होनहार बिरवान सहीं ये, बनके जग मा चिकना पात।

अलख जगाये ज्ञान दीप बन, नीति धरम के बोलय बात।।


छंद विधा के पहला कवि जे, कुण्डलिया रचना रस खास।

रखे बानगी छत्तीसगढ़ी, चल के राह कबीरा दास।।


गाँधीवादी विचार धारा, देश प्रेम प्रति मन मा भाव।

देश समाज सुधारक कवि जे, खादी वस्त्र रखे पहिनाव।।


ढ़ोंग रूढ़िवादी के ऊपर, काव्य डंड के करे प्रहार।

तर्कशील विज्ञानिकवादी, शोधपरक निज नेक विचार।।


गोठ सियानी ऊँखर रचना, जग-जन ला रस्ता दिखलाय।

मातृ बोल छत्तीसगढ़ी के, भावी पीढ़ी लाज बचाय।।


आज पुण्यतिथि गिरधर कवि के, गजानंद जी करे बखान।

जतका लिखहूँ कम पड़ जाही, कोदूराम दलित गुनगान।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ी)

छत्तीसगढ़ के पुरोधा जनकवि श्रद्धेय कोदूराम 'दलित' जी ला आज उनकर 56 वीं पुण्यतिथि के अवसर मा विनम्र श्रद्धांजलि--

 छत्तीसगढ़ के पुरोधा जनकवि श्रद्धेय कोदूराम 'दलित' जी ला आज उनकर 56 वीं पुण्यतिथि के अवसर मा विनम्र श्रद्धांजलि--


पुरखा जनकवि के हवय, पुण्य तिथि हा आज।

श्रीमन कोदू राम जी,करिन नेक हें काज।

करिन नेक हें काज,छंद मा रचना रचके।

सुग्घर के सुरताल, भाव मनभावन लचके।

गाँधी सहीं विचार, रहिंन उन उज्जर छवि के।

 अमर रही गा नाम, सदा पुरखा जनकवि के।


आइस बालक ले जनम,पावन टिकरी गाँव।

मातु पिता जेकर धरिन,  कोदू राम जी नाँव।

कोदू राम जी नाँव, पिता श्री राम भरोसा।

घोर गरीबी झेल, करिन उन पालन पोसा।

अर्जुन्दा के स्कूल, ज्ञान के गठरी पाइस।

गुरुजी बनके दुर्ग, शहर मा वो हा आइस।


बड़का रचनाकार वो,गद्य-पद्य सिरजाय।

हास्य व्यंग्य के धार मा, श्रोता ला नँहवाय।

श्रोता ला नँहवाय, गोठ वो लिखिन सियानी।

माटी महक समाय, गठिन बड़ कथा-कहानी।

अलहन के जी बात,व्यंग्य के डारे तड़का।

दू मितान के गोठ, करिन वो कविवर बड़का।


श्रद्धावनत

चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

छन्न पकैया सार छंद * *पितरपाख*

 *छन्न पकैया सार छंद *

*पितरपाख*


छन्न पकैया छन्न पकैया, पितर पाख हा आगे।

कँउआ मन के भइया देखो, अब तो किस्मत जागे।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, जीयत भर ले तरसे।

मरे बाप महतारी बर जी, मया अबड़ हे बरसे।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, जीयत कर लव सेवा।

सबो अकारथ पाछू बर जी, भले खवावव मेवा।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, मन मा बने बिचारो।

सरवन बेटा बन के भइया, पुरखा मन ला तारो।।


*प्यारेलाल साहू*

प्रदीप छन्द (16-13) *काबर पितर मनाथन*

 प्रदीप छन्द (16-13)

            *काबर पितर मनाथन*


काबर पितर मनाथन हम सब, सुनलौ सिरतो बात ला।

काबर कउँआ ला दोना मा, देथन हम सब भात ला। 

वैज्ञानिक अउ धार्मिक दू हे, सुनव दुनों के मान्यता।

धार्मिक मनखे मन हर कहिथे, पुरखा के हावय नता।।


पिये रिहिस कउँआ हर अमरित, कहिथे वेद पुरान हा।

कउँआ तन मा सबो जीव के, रहि सकथे जी जान हा।

इही मान्यता के कारण जी, देथन हम सब भात ला।

पितर पाख मा भोज कराथन, कउँआ के बारात ला।।


ध्यान लगाके सुनव सबो झन, वैज्ञानिक आधार ला।

ऑक्सीजन देथे बर पीपर, दिन रतिहा संसार ला।

खाके बर पीपर फर कउँआ, शोधित करथे पेट मा।

करके बीट नवा बर पीपर, कउँआ देथे भेंट मा।।


कइसे भूलन भारतवासी, कउँआ के उपकार ला।

फर्ज हमर हे सदा बचाना, कउँआ के परिवार ला।

खीर-भात ला तेकर सेती, देथन हितवा जान के।

सच मा कउँआ हर दुनिया मा, काबिल हे सम्मान के।।


मोर मगज अनुसार सुनौ अब, मनखे सब संसार के।

भूखमरी के दिन होथे जी, महिना गजब कुँवार के।

हवे मोल बड़ कहिथें ज्ञानी, जग मा भोजन दान के।

लोगन मन सब पितर मनाथन, इही सबो ला जान के।।


प्यासे मन ला नीर पिलाना, हमर देश के नीत हे।

भूखे मन ला भोजन देना, इही सनातन रीत हे।

सबो जीव ला ईश्वर के जी, मूरत जग मा मान के।

सेवा करथन भारतवासी, अपन धरम हम जान के।।

           

             राम कुमार चन्द्रवंशी

              बेलरगोंदी (छुरिया)

             जिला-राजनांदगाँव

जन्म भुइयाँ हम सबके एक

 जन्म भुइयाँ हम सबके एक


जनम भुइयॉं हम सबके एक।

भले हे पोथी पंथ अनेक।


सबोझन भारतवासी आन।

हृदय मा हिन्दी हिन्दुस्तान।


एक बस्ती ए झारा-झार।

बसे हन भलते चिन्हा पार।


नता मा एक कुटुम परिवार।

लड़ाई-झगरा हे बेकार।


निहारत जाति धरम के भेद।

जनम भुइयाँ ला होथे खेद।


खोभ के आगी करथे खाक।

सुनत देखत गय चूंदी पाक।


पढ़न गीता गुरुग्रंथ कुरान।

पढ़त खानी रहिके इंसान।


बने हे कल बनही कल आज।

सुमत समता ले नेक समाज।


अहिंसा परमधरम सुख सार।

महात्मा गाँधी कहिस बिचार।


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

बिजौरी - सार छंद//

 //बिजौरी - सार छंद//


बरा बिजौरी देखत संगी, मुँह मा पानी आथे।

देखत पेट घलो भर जाथे, जब ये बड़ ममहाथे।।


छत्तीसगढ़ी तीज तिहारी, घर-घर देखव जाके।

पीठी दार उरिद सँग तिल्ली, रखथे घाम सुखाके।।

दार भात सँग खाके देखव, अड़बड़ बने सुहाथे।

बरा बिजौरी देखत संगी,.........


चौमासा के दिन बड़ सुग्घर, गिरथे रिमझिम पानी।

घर मा बबा डोकरी दाई, कहिथे बने कहानी।।

चुरकी मा वो धरे बिजौरी, मुसुर-मुसुर जब खाथे।

बरा बिजौरी देखत संगी,..............


स्वाद गजब के एखर जानौ, छप्पन भोग भुलाहू।

एक पइत जब मुँह मा जाही, खाके गुन ला गाहू।।

लालच लगे रथे खाये के, मन हा बड़ ललचाथे।

बरा बिजौरी देखत संगी,..............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

आल्हा छंद आधारित गीत

 आल्हा छंद आधारित गीत 


अपने मन के ढोल ढमाका। 

खींच तान के गावय राग। 

रोज चोर हर घूमत हावय। 

मानस मन अब जल्दी जाग।। 


रूप चोर के बगुला जइसे, 

कोन करय येकर पहिचान। 

घात लगाये बइठे हावय, 

झन रहिबे जी तँय अंजान। 

हिरदे इंकर काजर कोठी, 

दिखथे जइसे करिया नाग।

रोज चोर हर घूमत हावय, 

मानस मन अब जल्दी जाग।। 


कउन चोर हे कउन सिपाही, 

चिटको नइये इँकरो भान। 

चोर-चोर मौसेरा भाई, 

गाँठ बाँधले तहूँ मितान। 

झूठ मूँठ के मया दिखावय, 

फोकट मा बाँटत हे ज्ञान। 

रोज चोर हर घूमत हावय, 

मानस मन अब जल्दी जाग।। 


पाँच साल बर बदे मितानी, 

संग चलावय धरके हाथ। 

जब-जब बिपदा परे गाँव मा, 

छोड़ चले मनखे के साथ। 

सहीं बात हे सुनौ शिशिर जी, 

बड़े मनुष के बड़का दाग। 

रोज चोर हर घूमत हावय, 

मानस मन अब जल्दी जाग।। 


सुमित्रा शिशिर

पितर देवता-चौपाई छंद*

 *पितर देवता-चौपाई छंद*


भादो बुलकिस कुँवार आगे।

पितर पाख मनभावन लागे।।

देव सरग के आगे जानौ।

लव आशीष पितर ला मानौ।।


हम ला दे हावय जिनगानी।

कुश दूबी धर देवौ पानी।।

ऋण पितर के छूटव भैया।

उँखर कृपा हे जीवन नैया।।


बरा बोबरा खूब खवावौ।

खीर पुड़ी के भोग लगावौ।।

तोर भला बर बड़ दुख पाइन।

रहि उपास तोला जेवाइन।।


अपन चैन ला करिन निछावर।

दर्द सहिन तोला पाये बर।।

धरके अँगरी ला रेंगाइन।

पढ़ा लिखाके योग्य बनाइन।।


झन पाखंड कभू तुम मानौ।

सरग देवता येला जानौ।।

इँखर लोक परलोक सँवारौ।

श्रद्धा फूल चढ़ा के तारौ।।


परम्परा सुरता के सुग्घर।

हमर बीच मा नइहे जेहर।।

गुण गाथा ला ओखर गावौ।

पावन संस्कृति अपन निभावौ।।


फेर ध्यान देहव तुम भाई।

जीयत जेखर बाबू दाई।।

भरपूर मान ओला देवौ।

बइठ तीर पीरा हर लेवौ।।


चाहे भाजी भात खवावौ।

संझा बिहना माथ नवावौ।।

धन दौलत नइ खोजय काँहीं।

मीठ बात बस इनला चाही।।


जीते जी तँय करले सेवा।

घर बइठे मिल जाही देवा।।

मान ददा दाई हर पाहीं।

सबो देव मन खुश हो जाहीं।।



🙏🙏🙏🙏

नारायण प्रसाद वर्मा 

ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा(छ.ग.)

आल्हा छंद ~ बिजौरी

 आल्हा छंद ~ बिजौरी

                      

रखिया के बीजा ला दाई, कोर-कोर राखे अलगाय।

उरिद दार के पीठी मेलय, मेथी तिल अउ नून मिलाय।


गोल ईट चौकोर सहींके, अलग अलग आकार बनाय।

सफ्फा सूती के ओन्हा मा, दे जड़कल्ला घाम सुखाय।


खेड़-खेड़ ले जब सुख जावय, तब बरनी मा जतने जाय।

आवय मौका या पहुना तब, अँगरा या ते तेल तराय।


चूरय दार चेंच भाजी जब, देवय थारी दूइ सजाय।

खावय ते तब कहाँ अघावय, देखइया मन घलु ललचाय।


चुर्रुस चुर्रुस बजय बिजौरी, जाड़ काल मा गजब सुहाय।

का नोनी का बाबू ये हा, सबके मन ला अब्बड़ भाय।


एक बार जे मन पा जावँय, येखर खास अनोखा स्वाद।

बारम्बार बिजौरी आवय, खाने वाले मन ला याद।


छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू बोडराबाँधा (पाण्डुका)

गांधीजी अउ शास्त्रीजी जयंती के अवसर मा


 

कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बापू,,,,,,,,,,,,,,,,


नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।

सत्य अंहिसा प्रेम सिरागे, बढ़गे बैरी बरबादी।


गली गली मा लहू बहत हे, लड़त हवै भाई भाई।

तोर मोर के तोता पाले, खनत हवै सबझन खाई।

हरौं तोर चेला जे कहिथे, नशा पान के ते आदी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


कतको के कोठी छलकत हे, कतको के गिल्ला आँटा।

धन बल कुर्सी अउ स्वारथ मा, सुख होगे चौदह बाँटा।

देश प्रेम के भाव भुलागे, बनगे सब अवसरवादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


दया मया बर दाई तरसे, बरसे बाबू के आँखी।

बेटी बहिनी बाई काँपे, नइ फैला पाये पाँखी।

लउठी वाले भैंस हाँकथे, हवै नाम के आजादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


राम राज के दउहा नइहे, बाजे रावण के डंका।

भाव भजन अब करै कोन हा, खुद मा हे खुद ला शंका।

दया मया सत खँगत जात हे, बड़ बढ़गे बिपत फसादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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सार छंद- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


गीत-शास्त्री जी


जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।

लाल बहादुर शास्त्री जी के, चलो करिन जयकारा।।


पद पइसा लत लोभ भुलाके, जीइस जीवन सादा।

बोलिस कम हे जिनगी भर अउ, काम करिस हे जादा।

रिहिस मीत बर मीठ बताशा, बइरी मन बर आरा।।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


आजादी के रथ ला हाँकिस, फाँकिस दुख दुर्गुन ला।

नित नियाव के झंडा गाड़िस, बता पाप अउ पुन ला।

रिहिस उठाये सिर मा सब दिन, देशभक्ति के भारा।।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


ताशकन्द मा कइसे सुतगिस, जेन कभू नइ सोवै।

देख समाधी विजय घाट के, यमुना रहिरहि रोवै।।

लाल बहादुर लाल धरा के, नभ के चाँद सितारा।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)



गांधी शास्त्री जयंती के अवसर मा दुनो हस्ती ला शत शत नमन

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कुकुभ छंद


तॅंय कलयुग के सच्चा मनखे,जग तोला कहिथे गाॅंधी।

लाने खातिर आज़ादी ला,बने बबा तॅंय हर ऑंधी।।


जब-जब संकट परे जगत मा,देव धरे मनखे चोला।

गदर गुलामी सहे देश हा,‌धरे फिरंगी गन गोला।।


देव सरी तब लइका जन्में,पुतली बाई के कोरा।

कोन जानथे इही हाथ ले, कटय गुलामी के डोरा।।


भारत माँ के बेड़ी काटे,काटे बर सब दुख पीरा |

करमचंद के कोरा खेले,भारत के बेटा हीरा ॥


लहू-रकत मा माँ के अँचरा,कलप- कलप आँसू ढारे।

तब अवतारी बापू आये,गोरा मन ला खेदारे।।


सत्य अहिंसा आय पुजारी,पहिरे सादा कस खादी।

बाॅंध लगोंटी पटका लउठी,भागत आइस आज़ादी।।


करो मरो के नारा गूॅंजे, बिगुल बजिस आज़ादी के।

मनखे-मनखे मन हर पहिरे, कपड़ा लत्ता खादी के।।


दाई दीदी बहिनी निकले,दल के दल पारा- पारा।

भारत माता अमर रहे के,गाॅंव गली गूॅंजे नारा।।


शशि साहू । बाल्को नगर

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गांधी के ओ बानी (छन्न पकैया छंद)


छन्न पकैया छन्न पकैया , गांधी के ओ बानी ।

सदा सत्य के मारग चलके , जियव अपन जिनगानी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , बुरा कभू झन बोलव ।

जब भी बोलव अपन बात ला , मन मा सुग्घर तोलव।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , झन कर अइसे करनी ।

सरग नरक हे ए भुँइया मा , दिखथे बेरा मरनी ।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , नोहे गोठ लबारी ।

भला करे मा मिले भलाई , सुनलव जी सँगवारी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , बात बांधलव मन मा।

जिनगी हे चरदिनिया भाई , का राखे हे तन मा ।।


छन्न पकैया छन्न पकैया , ये तन हा मिट जाही ।

सदा साँच के संगत करले , राम कृपा बरसाही।।


बृजलाल दावना


Wednesday, September 27, 2023

डीजे अउ पंडाल- रोला छंद

 डीजे अउ पंडाल- रोला छंद


जस सेवा के धूम, होत हे कमती अब तो।

सजे हवै पंडाल, डांडिया नाचैं सब तो।।

नवा ओनहा ओढ़, करे हें मेकप भारी।

डी जे के सुन शोर, नँगत झूमैं नर नारी।


मूंदैं आँखी कान, आरती जस सेवा सुन।

भागैं मुँह ला मोड़, सुनत कोनो जुन्ना धुन।

दीया बाती धूप, हूम जग ला जे हीनें।

वोहर थपड़ी पीट, स्टेप गरबा के गीनें।


ना भक्ति ना भाव, दिखावा के दिन आगे।

बड़े लगे ना छोट, सबें देखव अघुवागे।

परम्परा के पाठ, भुलाके बड़ अँटियाये।

फेसन घेंच उठाय, मनुष ला फाँसत जाये।


चुभे जिया ला गीत, कान सुन बड़ झन्नाये।

नइहे होश हवास, उँहें सब हें सिर नाये।

ना मांदर ना ढोल, झोल डी जे मा होवै।

बचे खँचे गुण ज्ञान, दिखावा मा सब खोवै।


नाच गीत संगीत, सबें के बजगे बारा।

संगत सुर संस्कार, सुमत के टुटगे डारा।

कतको हें मतवार, कई हें मजनू लैला।

तन हावै उजराय, भरे हे मन मा मैला।


बइठे देवी देव, बरे बड़ बुगबुग बत्ती।

तभो भक्ति अउ भाव, दिखे नइ एको रत्ती।

मान मनुष  इतरायँ, देव ला माटी खड्डा।

मठ मंदिर अउ मंच, मजा के बनगे अड्डा।


डीजे अउ पंडाल, तिहाँ चंडाल हमागे।

मनखे हवैं मतंग, देवता देवी भागे।।

नवा जमाना ताय, चोचला इसने होही।

सबें चीज के स्वाद, धीर धर चुक्ता खोही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


करयँ हाँस के डांडिया, प्रेमा प्रिया प्रमोद।

कहै सुवा ला फालतू, देखत हवस विनोद।

Friday, September 15, 2023

पोरा तिहार विशेष

पोरा तिहार विशेष


: विष्णुप्रद छंद


भादों माह अमावस पोरा, दिन बड़ पबरित हे।

फसल लहलहावत ओखर बर, सिरतो अमरित हे।।


धान पोटरावत हे सुग्घर, देख किसान इहाँ।

हँसी खुशी सब परब मनाये, मारत शान इहाँ।।


माटी के नंदी बइला के, पूजा आज करै।

हमर किसानी इही मितानी, सब्बो काज करै।।


नोनी मन जाँता चुकिया धर, मिलजुल खेलत हे।

बाबू मन बइला गाड़ी ला, खींचत पेलत हे।।


खोखो दउँङ कबड्डी खेलत, शोर मचावत हे।

लइका संग जवान इहाँ सब, परब मनावत हे।।


छतीसगढ़ी परब परंपरा, हमर धरोहर हे।

बरा ठेठरी खुरमी अड़बड़, बनय घरोघर हे।।


ज्ञानु

[9/14, 2:46 PM] सुखदेव: हरिगीतिका छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'


                   पोरा अउ तीजा 


भादो अमावस आज हे, आये हवय पोरा परब।

संदेश सुख समृद्धि के, लाये हवय पोरा परब।

आसों तनिक जादा मया, पाये हवय पोरा परब।

तब तो पटल मा नेट के, छाये हवय पोरा परब।


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शुभकामना बगरे हवय, पोरा परब के नाम मा।

मन अन्नदाता के हमर, खुश हे किसानी काम मा।

पग-पग खुशी बगरे हवय, सुखदेव धरती धाम मा।


पोरा परब के मान्यता, ज्ञानी गुणी अलखाय हें।

शुभ पोर आ गे धान मा, ये जान सब हर्षाय हें।

पूजा अरज आराधना, फर फूल दाना पाय बर।

कातिक म सुरहुत्ती परब, दीया जला परघाय बर।


मौसम करे हावय मदद, बादर कृपा बरसाय हे।

बइला किसानी काम मा, सहयोग देवत आय हे।

आशीष देये हें गजब, सब ग्राम देवी-देव मन।

परगट पँदोली दे हवयँ, दिन-रात पुरखा नेव मन।


अंतस म उपकृत भाव हे, उपकार बर आभार हे।

घर मा किसानन के हमर, पोरा परब त्यौहार हे।

अँगना म नोनी लछमनी, शुभ चउँक पूरत हे सुघर।

अँगना दुवारी गाँव के, सुमता म जूरत हे सुघर।


चीला सुहाँरी ठेठरी, खुरमी जलेबी तसमई।

नुनहा सलौनी पापड़ी, गुरहा कलेवा हे कई।

पहुना-सगा जेवाँय बर, पकवान चरिहा भर चुरे।

लइका बिसावय जा तभो, ठेला म नड्डा कुरकुरे।


कोठा म बइला गाय मन, काँदी चरे पगुरात हें।

पर सच यहू गोवंश कुछ, नित रोड़ मा रेतात हें।

बइला ल माटी के सुघर, नाती-बुढ़ा सम्हरात हें।

पोरा परब के नेंग मा, हुम-धूप दे जेवात हें।


भादो अँजोरी तीज के, काबर न हम चर्चा करब।

ए दिन मना तीजा परब, छत्तीसगढ़ करथे गरब।

शाहर नगर अउ गाँव मा, तीजा परब के नाँव मा।

बिटियन तनिक धिरतात हें, माहुर लगा के पाँव मा।


खा के करू मन हे हरू, मन मा मनोरथ मीठ बड़।

चूरी अमर राहय सदा, पग-पग डगर भर डीठ बड़।

तीजा कठिन व्रत निर्जला, मइके कथे संस्कार ए।

कहिथे कलम सुखदेव के, पबरित मया ए प्यार ए।


तीजा महातम का कही, हे लोक मा लाखों कथा।

तीजा तिजउरी मा अपन, कुछ सुख धरे कुछ दुख-व्यथा।

मइके नता परिवार बर, घर-द्वार खेती-खार बर।

मन मा उपसहिन के सदा, भलमनशुभा संसार बर।


▪️सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"

[9/14, 2:53 PM] बोधन जी: *तीजा-पोरा - शंकर छंद*


बच्छर दिन के तीजा-पोरा,बने रीत सुहाय।

देखौ बहिनी घर भइया हा,तीज ले बर जाय।।

दाई बाबू के घर आ के,जम्मो सुख ल पाय।

सखी सहेली संग बिताके,बूड़ मया म जाय।।


अपन धनी बर ब्रत ला करथे,आय तीज तिहार।

शिव शंकर के पूजा करके,देखै पति निहार।।

नवा-नवा लुगरा ला पाथे, भइया  के दुलार।

अइसन मया बँधाये दीदी,नइ  छूँटै  दुवार।।


फरहारी तीजा के करथे,मही कढ़ही खाय।

रंग-रंग  के  हवै  मिठाई,खुरमी हा सुहाय।।

घर-घर जावै मया बढ़ावै,तिजहारी कहाय।

हँसी खुशी घर लहुटत जावै,मन बड़े सुख पाय।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

हिंदी दिवस विशेष

  हिंदी दिवस विशेष


समान सवैया - हिंदी भाषा


हिन्दी भाषा परम-पावनी, जस संगम गंगा कालिंदी।

माथ सजे चम चमचम चमके,जस भारत माता के बिंदी ।1।


प्रेम चंद के अमर कथा ये, बच्चन के हावय मधुशाला ।

लिखे सुभद्रा लक्ष्मी बाई, मीरा के ये हरि गोपाला।2।


तत्सम तद्भव देश विदेशी, सबो रंग ला ये अपनाथे ।

एक डोर मा सबला बाँधय, गीत एकता के ये गाथे ।3।


शब्द नाद अउ लिपि मा आघू, हम सबके ये एक सहारा।

सागर कस ये संगम लागे, गंगा कावेरी  के धारा ।4।


सत्तर साल बीत गे तब ले, मान नहीं पाइस हे भाषा।

हमर राष्टभाषा के पूरा, कोन भला करही अभिलाषा।5।


संविधान हा भारत के जी, दिये राज भाषा के दरजा।

मान राष्ट्रभाषा के खातिर,हम सबके ऊपर हे करजा।6।


छन्दकार - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

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हवै पराया हिंदी भाषा, आज अपन घर मा।

जानबूझ के परे हवन हम, काबर चक्कर मा।।


देवनागरी लिपि ला दीमक, बनके ठोलत हे।

अंग्रेजी हा आज इहाँ बड़, सर चढ़ बोलत हे।।


अलंकार रस हे समास अउ, छंद अलंकृत हे।

हिंदी भाषा सबले सुग्घर, जननी संस्कृत हे।।


अपन देश अउ गाँव शहर मा, होगे आज सगा।

दूसर ला का कहि जब अपने, देवत आज दगा।।


सुरुज किरण कस चम चम चमकय, अब पहिचान मिले।

जस बगरै दुनिया मा अड़बड़, अउ सम्मान मिले।।


पढ़व लिखव हिंदी सँगवारी, आगू तब बढ़ही।

काम काज के भाषा होही, रद्दा नव गढ़ही।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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Monday, September 11, 2023

भाजी

 भाजी


छत्तीसगढ़ के भाजी कतका गुणकारी हवै


*भाजी*

*जयकारी छंद*


चेंच अमारी अउ बोहार। कुलफा भाजी काँदा नार।। 

देख भागथे गैस विकार।खाव सुघर सब्बो परिवार।। 


दही-मही कुरमा मा डाल। मेथी पालक भाजी लाल।। 

बथवा गुड़रू हवय सुकाल। काया बर बनथे गा ढाल।। 


गुमी चरोटा बूटी आय। मुरई भाजी गजब सुहाय।। 

रोग पीलिया तको भगाय। चुनचुनिया हा पेट पचाय।। 


तिवरा उरीद के हे नाम। खेढ़ा करथे दूर जुकाम।। 

रक्त चाप हा बाढ़े जाय।भाजी सहजन दूर भगाय।। 


मेला मड़ई हाट बजार। लान करमता भूँज बघार।। 

मुँह के छाला उँकर मिटाय।चाट-चाट जे मनखे खाय।। 


भाजी मखना गुरतुर स्वाद। बाल झड़े रोके के खाद।। 

चना चनौरी गजब मिठास। सुघर बढ़ाथे सबके आस।। 


पोई भाजी खून बढ़ाय। तिनपनिया लू शांत कराय।। 

कुलथी पथरी रोग भगाय।गोल जोड़ के दरद मिटाय।। 


पटवा केनी कुसमी प्याज ।रखथे सबके सुघर मिजाज।। 

बर्रे मा मिनरल भरपूर। डाल कोचई मा अमचूर।। 


मछेरिया मुसकेनी खाव।चौलाई के गुण ला गाव।। 

खूब विटामिन हवय भराय ।मुरहा मा ताकत आ जाय।।

विजेंद्र

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सार छंद(गीत)-भाजी साग खवादे


रोज रोज के भाँटा आलू,लगगे अब बिट्टासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।


चना चनौरी चेंच चरोटा,चौलाई चुनचुनिया।

मुसकेनी मेथी अउ मुनगा,मुरई मास्टर लुनिया।

कुरमा कांदा कुसमी कुल्थी,कोचाई करमत्ता।

गुमी लाखड़ी गोभी बर्रे,बरबट्टी के पत्ता।

प्याज अमारी पटवा पालक,सरसो के मैं दासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


रोपा गुड़रू मखना झुरगा,कजरा कुसुम करेला।

पोई अउ बोहार जरी के,हरौं बही मैं चेला।।

उरिद लाल चिरचिरा खोटनी,कोइलार तिनपनिया।

भथुवा पहुना लहसुनवा खा, चलहूँ छाती तनिया।

भूँज बघार बनाबे बढ़िया,अड़बड़ लगे ललासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


खेत खार बारी बखरी ले,झट लाबों चल टोरी।

खनिज लवण अउ रथे विटामिन,दुरिहाथे कमजोरी।

तेल बाँचही नून बाँचही,समय घलो बच जाही।

भाजी पाला ला खाये ले,तन मा ताकत आही।

भाजी कड़ही बरी खोइला,खाथे कोसल वासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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छत्तीसगढ़ के भाजी-खैरझिटिया


हमर राज के साग मा,भाजी पावय मान।

आगर दू कोरी हवै,सुनव लगाके कान।।


चना चनौरी चौलई,चेंच चरोटा लाल।

चुनचुनिया बर्रे कुसुम,खाव उँचाके भाल।


मुसकेनी मेथी गुमी,मुरई मास्टर प्याज।

तिनपनिया अउ लहसुवा,करे हाट मा राज।


खाव खोटनी खेड़हा, खरतरिहा बन जाव।

पटवा पालक ला झड़क,तन के रोग भगाव।


कुल्थी कांदा करमता,कजरा गोल उरीद।

कुरमा कुसमी कोचई,के हे कई मुरीद।।


झुरगा गोभी लाखड़ी,भथवा गुड़डू  टोर।

राँधव भूँज बखार के,महकै घर अउ खोर।


पोई अउ सरसो मिले,मिले अमारी साग।

मछेरिया बोहार के,बने बनाये भाग।।।


करू करेला के घलो,भाजी होथे खास।

रोपा पहुना बरबटी,आथे सबला रास।।


मखना मुनगा मा मिले,विटामीन भरपूर।

कोइलार लुनिया करे,कमजोरी ला दूर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

शिक्षक दिवस विशेष

 शिक्षक दिवस विशेष


मनहरण घनाक्षरी         

                  शिक्षक


ज्ञान ले महान दान ,खोजें म मिलय नही

सुखमय जीवन के,देत तरकीब जी

प्रलय अउ निर्माण,गोद म खेले जेकर

नमन शिक्षक जेहा, दिल के करीब जी

जिनगी आकार देत,लक्ष्य ल सकार करे

बताए  ज्ञान विज्ञान  , विचित्र अजीब जी

विषय सरल बना,अभ्यास कराय रोज

मिलय आशीर्वाद वो, हे खुशनसीब जी

अज्ञानी ज्ञानी बने, रात दिन प्रयास ले

ईंट ले ताज बनाय, होथे शिल्पकार जी

गीली मिट्टी  ठोक पीट, नवा प्रयोग करथे

रूप अउ अकार दे,होथे वो कुम्हार जी

मंजिल म पहुंचाए, खुद रथे जमीन म

जिये ब रद्दा देखाय,देत डांट प्यार जी

हवा अउ तूफान ले, नाव ल बचाय रखे

तूफान  ले लड़े ब, सिखाथे मल्हार जी

                           बेदराम पटेल

                      बेलरगोंदी(छुरिया)

                       राजनांदगांव

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 कुण्डलिया छन्द 


*बानी गुरु के सार हे, जानत सकल जहान।*

*देवत हवै अँजोर जी, सब ला एक समान।।*

*सब ला एक समान, चलव सब लेलव दीक्षा।*

*करलौ गुरु के ध्यान, तभे जी मिलही शिक्षा।।*

*महिमा ला जी जान, सफल होही जिनगानी।*

*जिनगी बनही तोर, मिलय गुरु अमरित बानी।।*


*आपमन के शिष्य*

*राजकुमार निषाद"राज"*

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सरसी छंद गीत- *शिक्षक*


शिक्षक शिक्षा के दीपक बन, बाँटय ज्ञान प्रकाश।

अनगढ़ माटी के चोला ला, देवय रूप तराश।।


प्रथम पिता माता हे शिक्षक, बात रखौ ये भान।

जेन पढ़ावय क ख ग घ हमला, दूजा शिक्षक मान।।

तिसरइया उन सब शिक्षक ये, जे बाँधय मन आस।

शिक्षक शिक्षा के दीपक बन, बाँटय ज्ञान प्रकाश।।1


बुरा भला के भेद बतावय, रीति नीति संस्कार।

परहित सेवा धर्म परायण, बाँटय भाव विचार।।

शिक्षक के शिक्षा से संभव, सभ्य समाज विकास।

शिक्षक शिक्षा के दीपक बन, बाँटय ज्ञान प्रकाश।।2


ढ़ोंग रूढ़ि पाखंडवाद ले, करथे सदा सचेत।

शिक्षा के आगे नतमस्तक, जादू टोना प्रेत।।

शिक्षक शिक्षा ले ही करथे, मन के भरम विनास।।

शिक्षक शिक्षा के दीपक बन, बाँटय ज्ञान प्रकाश।।3


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/09/2023

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विष्णुपद छंद


बिन स्वारथ के ज्ञान जगत मा, वो बगरावत हे।

रोज छात्र मन ला शिक्षक हा, खूब पढ़ावत हे।।


पढ़ा रोज लइका ला शिक्षक, देवय ज्ञान इहाँ।

परमारथ बर जिनगी अर्पित, काम महान इहाँ।।


जइसे बरसा ये भुइँया के, प्यास बुझावत हे।

जइसे रद्दा मनखे मन ला, घर पहुँचावत हे।।


नदी कुआँ अउ रुखराई, पर सेवा करथे।

जंगल पर्वत खेतीबारी, सबके दुख हरथे।।


माटी के लोंदा ला सुग्घर, दे आकार इहाँ।

आनी बानी जिनिस बनाथे, रोज कुम्हार इहाँ।।


शिक्षक हा शिक्षक के शिक्षक, लइका  मास्टर हे।

नेता अधिकारी वकील अउ, कोनो डॉक्टर हे।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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केंवरायदु: मनहरण घनाक्षरी


माता हे प्रथम गुरू, बोले के कराये शुरू,

चरण में महतारी ,तोरो प्रणाम हे।


गुरू ज्ञान सागर हे,छलकत गागर हे,

माथा हे चरण में, बड़ पुन काम हे।


क ख ग घ पढ़ा पढ़ा,तोला देथे गुरू बढ़ा,

गोविंद ले गुरू बड़े,पाँव चारो धाम हे।


पाले गुरू तिर ज्ञान,होही गा तोर कल्याण,

जग में गुरू के सँग, चमकत नाम हे।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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[9/5, 5:25 PM] डी पी लहरे: *चौपाई छन्द*

*शिक्षक दिवस के नँगत बधाई अउ मंगल कामना*


भव सागर ले पार लगाथे,

भटकन नइ दय राह दिखाथे।

ज्ञान सीख अमरित बरसाथे,

जिनगी सबके सुफल बनाथे]]१


हवय गुरू के महिमा भारी,

खूब निभावय जिम्मेदारी।

गुरू मिटावय जग अँधियारी,

करय गुरू जिनगी उजियारी]]२


सत रद्दा ला गुरू धराथे।

सहीं गलत पहिचान कराथे।

शिक्षा गंगा ला बोहाथे,

अँधियारी ला दूर भगाथे]]३


गुरू बचन ला मन मा धरलौ,

मन के खाली कोठी भरलौ।

गुरू देव के सेवा करलौ।

ज्ञान सीख ले चोला तरलौ]]४


गुरू हवय जी बड़का देवा,

ज्ञान सीख के देय कलेवा।

करय गुरू के जे जन सेवा,

निसदिन पावय शिक्षा मेवा]]५


गुरू दरश ला निसदिन पा लौ,

गुरू ज्ञान के गुन ला गा लौ।

काया माया फूल चढ़ालौ

गुरू चरन मा माथ नवालौ]]६


           *दोहा*

गुरू सीख अनमोल हे,कर दय बेड़ा पार।

भाव भजन मन मा रखौ,मिटही क्लेश विकार।।


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

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शिक्षक ला गुरुजी कहन, गुरुकुल कस स्कूल।

बड़का  कक्षा  मा  तहाँ,   गुरुजी  कहना  भूल।।

गुरुजी कहना भूल, 'कांत' सीखे 'सर' कहना।

गलती  करन  कबूल,  परय थपरा तक सहना।।

पा   उंखर  आसीस,  बनिन  विद्वान समीक्षक।

तुँहर  चरण  मैं  शीश, नवावँव  गुरुवर शिक्षक।।


सूर्यकान्त गुप्ता, सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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तुल्य ईश्वर आप गुरुजी , बाॅंटते नित ज्ञान हो ।

पथ प्रदर्शक भाग्य दाता , ये जगत के प्राण हो ।।

जो शरण में आपके हैं , वो कहाॅं नादान हैं ।

पा गये हैं भर खजाना , देख लो धनवान हैं ।।


✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

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शोभन छन्द - गुरुदेव (०५/०९/२०२३)


ज्ञान के दियना जलाके , जग करय उजियार ।

पार नइया ला लगावय , वो हरय पतवार ।।

ज्ञान गुन आशीष देथे , चैन सुख अउ छाॅंव ।

हे बड़े गुरुदेव जग मा , रोज परलव पाॅंव ।।


✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

खुरमी ठेठरी

 


अमृत ध्वनि छ्न्द 


दीदी बहिनी लाय जा , आगे तीज तिहार ।

भाँची भाँचा आ जही,लेजा मोटर कार।।

लेजा मोटर, कार सड़क के, तीरे तीरे।

अलहन झन हो ,जाय चलाबे,धीरे धीरे।।

मँयदा सूजी,कनकी आँटा,चाले छलनी।

कटवा भजिया,खुरमा राँधय, दीदी बहिनी।।


शक्कर पारा हे बने, लागे बढ़िया मीठ।

लड्डू पेंडा़ खाय बड़,मन नइ माने ढीठ।।

मन नइ माने,ढीठ अबड़ हे,लालच करथे।

जिहाँ देखथे ,रसा मलाई ,दउँडे़ परथे।।

बरा ठेठरी, अईरसा हे, अउ हे खारा।

हे सोंहारी, बर्तन थारी, शक्कर पारा।।


      तातू राम धीवर

 भैंसबोड़ जिला धमतरी ✍️

    मो.6267792997

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सरसी छंद गीत- *छत्तिसगढ़ के शान*


फरा ठेठरी खुरमी मुठिया, चौसेला पकवान।

अंगाकर रोटी हा भइया, छत्तिसगढ़ के शान।।


परब हरेली तीजा पोरा, सब ला गजब सुहाय।

राखी होली दीवाली मा, घर अँगना ममहाय।।

खुशी उमंग तिहार कहाइस, अउ पुरखा के मान।

अंगाकर रोटी हा भइया, छत्तिसगढ़ के शान।।


करी अइरसा कतरा पकुवा, मालपुआ के स्वाद।

खाजा कुसली खा ले करबे, जिनगी भर तँय याद।।

कहाँ मिठाई अइसन पाबे, हाट बजार दुकान।

अंगाकर रोटी हा भइया, छत्तिसगढ़ के शान।।


पाख पितर पुरखा बर तर्पण, भक्ति श्राद्ध अउ भोग।

बरा बोबरा बटिया पपची, खूब खिलावँय लोग।

गुलुल गुलुल चीला भजिया ला, खावय हमर सियान।

अंगाकर रोटी हा भइया, छत्तिसगढ़ के शान।।


🖊️इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/09/2023

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 शोभन छन्द - खीर सोंहारी (०४/०९/२०२३)


खीर सोंहारी चुरे हे , तीज तिहार आय ।

ठेठरी खुरमी बरा ला , देख मन ललचाय ।।

ये हमर खाई खजेनी , पेट भर भर खाव ।

नइ मिलय अइसन दुबारा , बाद झन पछताव ।।



ओम प्रकाश पात्रे "ओम "

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सार छंद

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हर तिहार के बेरा घर घर,बनँय ठेठरी खुरमी।

जिंकर पिरीत परोसा लावँय,हर रिश्ता  मा गरमी।।

खाजा पपची बिड़िया देखत,आवँय मुँह मा पानी।

जेला खा बुढ़वा चोला मा,छावँय तुरत जवानी।।

बर बिहाव पंगत के शोभा,लाड़ू बने करी के।

खाके जिया अघावँय कसरत,होय दाँत अँगरी के।।

सबो कलेवा पहुना खातिर,सजें एक  थारी मा।

छलकँय मया मजा बड़ आवय,तब दुनियादारी मा।।

किसम किसम के रोटी पीठा,हरँय हमर चिन्हारी।

भरय कलेवा कोठी हर घर,छत्तिसगढ़  महतारी।।


दीपक निषाद--लाटा (भिंभौरी)-बेमेतरा

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आठे कन्हैय विशेष

 










आठे कन्हैय विशेष


 खैरझिटिया: मोला किसन बनादे (सार छंद)


मोर पाँख ला  मूड़ सजादे,काजर गाल लगादे|

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


बाँध कमर मा करिया करधन,बाँध मूड़ मा पागा|

हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|

चंदन  टीका  माथ लगादे ,पहिरा माला मुंदी|

फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चुंदी|

हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |

घींव  लेवना  चाँट  चाँट  के,खाहूँ थाली थाली |

मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ,दाई लोरी गादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी मीठ बजाहूँ|

तेंदू  लउड़ी  हाथ थमादे,गाय  चराके आहूँ|

महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    

गोकुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल घर भीतर।

मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी|

बँसुरी  धरे  रेंगहूँ   मैंहा ,भइया  नाँगर  डाँड़ी|

कनिहा मा कँस लाली गमछा,पीताम्बर ओढ़ादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|

संसो  झन करबे वो दाई,खेल कूद घर आहूँ|

पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई ,किसन बरन तैं चोला|

रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|

पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |

बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|

दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,दाई आस पुरादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "

बालको (कोरबा )

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 शोभमोहन श्रीवास्तव:  *कृष्ण जन्माष्टमी के हार्दिक बधाई* 


 *जनमे बनवारी* 

(प्रभावती चर्चरीछंद) 



मणि जड़ाय सोन थार,दियना रिगबिग मँझार।

मंगल करसा सँवार, धर धर नर नारी।

मन हुलास बहत धार, बोलत जय बार बार,

रंग रंग के कर सिंगार, खड़े हें दुवारी।।

घंटा घन घनन घोर, झालर झन झन झकोर,

सुन भीजत पोर पोर, गदगद हिय भारी।।

दमउ दफड़ा दमोर, छन्न छन्न छन्न शोर,

भँवरत माते विभोर, कुलक जात वारी।।

चूमत निच्चट निहार, गिंधिया गिंधिया दुलार, 

शोभामोहन अधार, जनमे बनवारी। 


शोभामोहन श्रीवास्तव

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आशा देशमुख: *कृष्ण जन्माष्टमी के हार्दिक बधाई*🌷🙏



चौपाई छन्द जन्मष्टमी


कृष्ण कन्हैया


आये तिथि शुभ अष्टमी,  लिये कृष्ण अवतार। 

दुनिया ले सब दुख मिटे, पाये गीता सार।।


जनम धरे हे किशन कन्हैया। घर घर बाजत हवय बधैया।। 

बलदाऊ के छोटे भइया, मातु जसोदा लेत बलैया।। 


नाचत हें ब्रज के नर नारी। सोन रतन धर थारी थारी। 

झुलना झूले किशन मुरारी। बाजे ढोल मँजीरा तारी।। 


ध्वजा पताका तोरण साजे। गली गली घर बाजा बाजे। 

खुशी मनावैं सबो डहर मा, गाँव गाँव अउ शहर शहर मा।। 


समय आय हे मंगलकारी। भागत हे दुख विपदा कारी। 

 मुस्कावत हे कृष्ण मुरारी। रोग शोक सब भय भव हारी।। 


मन ला मोहत हे नंद लाला। आजू बाजू गोप गुवाला।। 

मातु जसोदा गोदी पाये। मोती माणिक रतन लुटावे।। 


ब्रजनारी मन सोहर गावैं। देवन सबो सुने बर आवैं।। 

बड़े भाग पाए ब्रजवासी। इंखर घर आये सुखरासी।।


दूध दही के धारा बोहय। खुशी मगन शुभ घर घर सोहय। 

लीलाधर के महिमा भारी।  माया रचथे मंगलकारी।। 


सबो डहर नाचे खुशी, भरे मगन आनंद। 

भरे भरे धरती लगय, आये सुषमाकंद।। 



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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*नन्द लाला - हरिगीतिका छंद*


हे नन्द लाला तोर ये,मुरली घलो बइरी बने।

दिन रात मँय हाँ सोंचके,गुन गाँव मँय मन ही मने।।

घर द्वार मोला भाय नइ,सुन तोर मुरली तान ला।

मँय घूमथँव घर छोड़ के,कान्हा इहाँ अन पान ला।।


जमुना नदी के पार मा,काबर तहूँ इतराय रे।

चोरी करे कपड़ा तहूँ,अउ डार मा लटकाय रे।।

हम लाज मा शरमात हन,तँय हाँस के बिजराय रे।

अइसन ठिठोली छोड़ दे,अब जीव हा करलाय रे।।


ए राधिका सुन बात ला,तँय मोर हिरदे छाय हस।

मोरे मया ला पाय के,गजबे तहूँ इतराय हस।।

राधा बने तँय श्याम के,ये देख दुनिया जानथे।

राधा बिना नइ श्याम हे,अब संग मा पहिचान थे।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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पुरुषोत्तम ठेठवार: *हे गिरधारी ले ले,तॅंय अवतार*

*(बरवै छंद)*


हे गिरधारी ले ले, तॅंय अवतार।

सकल जगत मा घपटे,विपदा टार।।


  छोट गोठ बर होवय,भारी रार।

  जग मा अबड़ मचे हे, हाहाकार।।


बेटी बहन के खूब,लुटाये मान।

भाई बनके आजा,दया निधान।।


 ‌‌ हे गिरधर बनवारी,किशन मुरार।

पाप ताप ला जग ले, लउहा टार।।


   ‌‌ छिन छिन बाढ़त हावै, अत्याचार।

   ‌ पापी मन ला किशना, तुरते मार।।


 गउ माता रोवत हे,आंख उघार।

हर ले गउ के दुख ला, खेवनहार।।


   मुरली मीठ बजाके, हर ले पाप।

  तान सुना दे सुग्घर,हर संताप।।


     ‌भेदभाव के खचवा,किशना पाट।

   चलॅंय सबो झन सुग्घर,सत के बाट।।


ठेठवार के विनंती, बारंबार।

जग ले करदे मोहन, बेड़ा पार।।


*रचना*

*पुरुषोत्तम ठेठवार*

*धरमजयगढ़*

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 अशोक कुमार जायसवाल: *जन्माष्टमी के हार्दिक बधाई*

*कज्जल छंद*


आजा कान्हा नंद लाल |

संग खेलबो ग्वाल बाल |

अबड़ झूलबो कदम डाल |

सबो रेंगबो एक चाल ||


जाके यमुना के कछार |

गेंद खेलबो उछल पार |

हसीं ठिठोली कई बार |

पाबो जिनगी जनम सार ||


राधा जाही हमर साथ |

सखी विशाखा धरे हाथ |

चंदन रोली लगे माथ |

देखत होही मगन नाथ ||


गोपी ग्वाला करे बात |

सुमिरन करथन तोर पात |

सुगम बनावव खेल आप |

जेहर मन मा रहय छाप ||


सुनके कान्हा कहे बात |

यमुना रइथे साँप घात |

जम्मो पानी घुरे ताप |

छोड़व यमुना के अलाप ||


यमुना पानी जहर होय |

कतको मनखे जान खोय |

चुपके डसथे साँप सोय |

यमराज काल ला पठोय ||


मन नाथे नइये नकेल |

खेले माढ़य नहीं खेल |

यमुना तट हे हेल मेल |

संग खेलबो सब सकेल ||


अशोक कुमार जायसवाल

भाटापारा

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विश्व साक्षरता दिवस विशेष

  


विश्व साक्षरता दिवस विशेष


आखर - आखर आज पढ़ाहूँ, आजा दाई तोला। 

बड़ा गजब के काम करे तँय, इसकुल भेजे मोला। 


अब तक अनपढ़ भले रहे तँय, अब तो पढ़ लिख जाबे। 

करिया आखर भइस बरोबर, तँय अब नइ कह पाबे। 


साग बनाये तँय सिखलादे, मँय आखर सिखलाहूँ। 

मोर गुरू तँय पहिली दाई, अब मँय तोर कहाहूँ।  


जेन कोइला करिया करथे, उही आज उजराही। 

राँधे बेरा धरे कोइला, जेन बने लिख पाही।  


छेरी पठरू के ठन हाबय, गिन गिनती सिख जाबे। 

जोड़-जोड़ कुकरी के अंडा, गुणा करे बर पाबे। 


बोल-चाल के भाषा मा अब, अपनो ज्ञान बढाबो। 

आखर-आखर जोड़-जोड़ के, जब हम पढ़ लिख पाबो।  


सबझन साक्षर होवँय कहिके, शासन जोर लगाये। 

लइका पढ़ पड़हावत हावय, तँय काबर पिछवाये।


दिलीप कुमार वर्मा

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पढ़न   पढ़ावन  आव  सब,  बाँटन  अक्षर ज्ञान।

उम्मर  के  परवाह  झन,  करिहौ  कथौं सियान।।

करिहौ कथौं सियान, खोजिहौ  इसकुल  केती।

नइ     होहू    बदनाम,    निरक्षरता    के     सेती।।

इही 'कांत'  के चाह,  सबो  शिक्षित  हो  जावन।

बाँटन  अक्षर  ज्ञान,  आव   सब  पढ़न  पढ़ावन।।


सूर्यकान्त गुप्ता, सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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[9/8, 6:48 PM] बोधन जी: *आवौ पढ़लौ - बाल कविता*


पुस्तक कापी सिलहट धरलौ।

सुख पाये बर कारज करलौ।।


आवौ भइया मिलके पढ़लौ।।

सुग्घर अपने जिनगी गढ़लौ।।


खेल - खेल  के  संग   पढ़ाई।

गीत - कहानी  सुन लौ भाई।।


नहाखोर  के   बासी   खावौ।

स्कूल  पढ़ेबर  जाबो आवौ।।


टन - टन  घंटी  बाजत   हावै।

संगी   सबो   बुलावत   हावै।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"

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शोभन छन्द - विश्व साक्षरता दिवस (०८/०९/२०२३)



विश्व साक्षरता दिवस ला , जान लेवव आज ।

ज्ञान शिक्षा ले करत हे , जागरूक समाज ।।

सर्व शिक्षा के चलत हे , देख लव अभियान ।

कोन अनपढ़ आज रइही , पढ़ बनव गुणवान ।।


सोंच बदलय राह बदलय , काम बदलय दाम ।

ज्ञान ले बदलय जमाना ,शोहरत अउ नाम ।।

देश के हर नागरिक ला , हे मिले अधिकार ।

ज्ञान देलव ज्ञान लेलव , ज्ञान हे भरमार ।।



✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम "🙏

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 सरसी छंद गीत- *साक्षरता*


साक्षरता ले आम जन, करथे देश विकास।

पाथे मान समाज मा, भरके ज्ञान उजास।।


साक्षर सक्षम लोग उन, जेला क ख ज्ञान।

भाषा मर्यादा सहित, सही गलत के भान।।

शिक्षा ले बढ़थे सदा, खुद मा दृढ़ विस्वास।

साक्षरता ले आम जन, करथे देश विकास।।1


करिया अक्षर भैंस कस, शिक्षा बिना सियान।

शिक्षा ले मन भीतरी, उगथे नवा बिहान।।

अँधियारी दुख के भगे, सुख के भरे प्रकाश।

साक्षरता ले आम जन, करथे देश विकास।।2


शिक्षा बर बंधन नहीं, कोई उम्र पड़ाव।

लइका वृद्ध जवान सब, मिलके पढ़व पढ़ाव।।

करबो जिनगी के सबो, इम्तिहान तब पास।

साक्षरता ले आम जन, करथे देश विकास।।3


साक्षरता के दर बढ़े, सुग्घर हवय उपाय।

आठ सितम्बर हर बछर, साक्षर दिवस मनाय।।

गजानंद लिख छंद मा, सरसी सहीं प्रयास।

साक्षरता ले आम जन, करथे देश विकास।।4


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

Friday, September 1, 2023

खेल दिवस*29 अग.2023



 

खेल दिवस*29 अग.2023


महिमा अबड़े खेल के,हाँकी हावय नाम।

पुष्ट देह ला ये करे,अतके येखर काम।।

अतके येखर काम,भाग तो सुस्ती जावय।

चंगा मन हा होय,गजब के फुरती आवय।।

मिलजुल खेलय टीम, गोल बर माथा रगड़े।

इही खेल के भाव, खेल के महिमा अबड़े।।





2. ध्यान चंद जेहा हवे,भारत के अभिमान।

जेखर से हे देश मा,हाँकी के पहिचान।।

हाँकी के पहिचान, कई ठन मेडल लाइस।

करके कइयो गोल ,भीड़ मा जेहा छाइस।।

खेल दिवस हे आज,रहे जी जनमे तेहा।

ये माटी के लाल,हवे ध्यानचंद जेहा।।

चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़

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 छंद गीत- हॉकी


राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।

मेजर ध्यानचंद हॉकी के, जादूगर तो जान।।


दिन अगस्त उनतीस ये, सन उन्निस सौ पाँच।

शहर इलाहाबाद हा, झूम उठिस जी नाच।।

ध्यानचंद जी जनम धरे, बनके प्रतिभावान।

राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।।1


मातु शारदा के जी ललना, सामेश्वर के लाल।

जनम धरे तँय ऊँच करे बर, भारत माँ के भाल।।

मेजर बन भी डँटे रहे तँय, सीमा सीना तान।

राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।।2


करे महारथ हासिल हॉकी, देख रहँय सब दंग।

ध्यानचंद जी ध्यान लगा के, खेलय मस्त मलंग।।

देश विदेश सबो जन जानय, भारत के ये शान।

राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।।3


गोंद लगा के छड़ी घुमाथे, बोलिस जब जापान।

तोड़ छड़ी ला देखे जब तो, होगें सब हैरान।।

ना तो गोंद छड़ी मा पाइस, ध्यानचंद के ध्यान।

राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।।4


खेल विदेशी ला अपनाये, छोड़ अपन अब खेल।

हॉकी हा तो झाँकी रहिगे, खेंलत पेल ढपेल।।

आगे आ आवाज उठावव, पाये हॉकी मान।

राष्ट्रीय खेल भारत के हॉकी, जग जन मा पहिचान।।5


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/08/2023

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     आल्हा छंद ( ध्यान चंद )

        हॉकी के जादूगर

       ---------+------

राष्ट्रीय खेल हमर देश के, 

      नाम हरय जी हॉकी जान।

खेलइया हे ध्यान चंद जी,

      दिस हावे इनला पहिचान।

धरे जनम तारीख उनतीस,

      अगस्त उन्नीस सौ ग पाँच।

ये कहलाइस जादूगर जी,

      हॉकी के गा आवे सांच।

उतरे जब मैदान म वोहर,

    गेंद चिपक स्टिक ही रहि जाय।

देखय खेलत ध्यान चंद ला,

    देखइया के मन भरमाय।

मातु शारदा सामेश्वर के,

     येहर बेटा बन के आय।

राजपूत गा वंश म जन्मे,

     राजपूत येहर कहलाय।

करे महारथ हासिल येहर,

    हॉकी के जी खेल म जान।

ध्यान चंद जब खेलय हॉकी,

     करे नहीं जी विचलित ध्यान।

अउ सीमा मा बनके मेजर,

     डटे रहे जी सीना तान।

जइसे खेलय हॉकी ला वो, 

    वइसनेच तयं वहू ल मान।

फइले नाम ह देश विदेश म,

   जादूगर हॉकी के आय।

अब तो येहर इही नाम ले,

     शान देश के ये कहलाय।

देखय येखर खेल विदेशी,

     किसम किसम के सोंच बनाय।

कोनो बोलय चुम्बक हावे,

     स्टिक ला येखर देखव जांच।

कोनो बोलय गोंद लगे हे,

     कतको करय तीन अउ पांच।

मिले विरासत मा नइ इनला,

     सतत साधना करके पाय।

खेल देख गा ध्यान चंद के,

     तानाशाह हिटलर थर्राय।

ओर जर्मनी के गा खेलो,

     हिटलर तक हा बोले जान।

येखर बदला मा हम देबो,

      तुमला बहुत बहुत सम्मान।

तीन तीन ओलंपिक खेले,

      अपन देश के खातिर जान।

पाइस हावे ध्यान चंद हा, 

      बड़े बड़े गा वो सम्मान।

पात्र रत्न भारत के वोहर,

      वइसे जी वो हावे जान।

हो सके तो देवें उनला,

       सर्वोच्च देश के सम्मान।


कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी

29 / 08 / 2023

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शोभन छन्द - हाॅकी (३०/०८/२०२३)


खेल हाॅकी खेल लेवव , खेल सुग्घर आय ।

फील्ड रोलर बर्फ हाॅकी , हर जघा मन भाय ।।

टीम ग्यारह के बनाके , खेलथें सब लोग ।

हष्ट होथे पुष्ट होथे , ये शरीर निरोग ।।


मिस्र ले शुरुआत होइस , बाद आइस देश ।

ध्यानचंद बने खिलाड़ी , जन्म दिवस विशेष ।।

धातु या लकड़ी छड़ी मा , गेंद करलव गोल ।

जीत जाहू हार के जी , बात हे अनमोल ।।



ओम प्रकाश पात्रे "ओम "

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विषय-रखिया बरी




विषय-रखिया बरी


रखिया बरी


 कमलेश प्रसाद शरमाबाबू: कुंडलियाँ - छंद 

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रखिया राखव लान के, संग उरिद के दार |

बरी बनावव तान के, खावव सब परिवार ||

खावव सब परिवार, बिकट के मन ला भाथे |

रँधनी खोली राँध, तभो ले  बड़ ममहाथे ||

छेवरनिन के साग, हवय तैं खा ले सुखिया |

बिकट पुष्टई जान, बरी मा सब ले रखिया ||


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

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रखिया बरी(हरिगीतिका छंद)



रखिया बरी बड़ स्वाद के खा ले सखा मन भर तहूँ।

भिनसार ले खाये कमाए बर निकल जाबे कहूँ।।


रखिया उरिद के संग मा लगथे बने निच्चट फरी।

दूनो मिला के फेंट अउ तँय खोंट ले सुग्घर बरी।।


मुनगा बरी के साग हा बड़ फायदा तन बर बने।

आलू मिलाके राँध ले खा ले सखा मन भर बने।।


सुग्घर अदौरी ये बरी तँय राँध चिंगरी डार के।

बड़ स्वाद मिलथे खाय मा खा ले बने चटकार के।।


रचनाकार-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 *कुण्डलिया छंद(रखिया बरी)~ विरेन्द्र कुमार साहू*


आवय गा रखिया बरी, छत्तीसगढ़ के खोज।

जब मर्जी तब राँधले, सुग्घर पौष्टिक भोज।।

सुग्घर पौष्टिक भोज, पचे म सबले बढ़िया।

तेखर सेती खाय, राँध दाई सेवरिया। 

जतन करव जी खास, बरी हड़िया मा राहय।

 फट बेवस्था होय, सगा पहुना जब आवय।।

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 छंद गीत- *रखिया बरी*


रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।

जीभ लमा के खावय भइया, मारत जी चटकार।।


भरे विटामिन आनी बानी, भरे वसा प्रोटीन।

पाय सुवाद बरी रखिया के, रहिथें सब शौकीन।।

भारी महँगाई ला धर के, बिकथे हाट बजार।।

रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।।1


आलू मुनगा के सँगवारी, डार टमाटर लाल।

नून मसाला धनिया पत्ती, हरदी करय कमाल।।

डार चरोहन फिर चूरन दे, बढ़िया डबका मार।

रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।।2


का गरीब अउ का अमीर जी, खावँय धरे सुवाद।

एक बार के खाये ले फिर, सदा करँय फरियाद।।

चाव लगा के खाथे बढ़िया, गजानंद हर बार।

रखिया बरी बनावय भौजी, खावँय मिल परिवार।।3


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 28/08/2023

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हरिगीतिका छन्द


रखिया बरी


रखिया बरी रखिया बरी, बड़ स्वाद गुण तैंहर धरे। 

प्रोटीन पुष्टई सब मिले, हर तार मा हे रस भरे।। 

आरुग बने मिंझरा बने, नइ स्वाद मा कोनो कमी। 

राजा सरीखे साग मा, तब ले हवय भीतर नमी।। 


आशा देशमुख

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चौपई/जयकारी छंद----- रखिया बरी 


उरिद दार मा रखिया डार ।

सबो बनावव मिल परिवार ।।

बाढ़े जब सब्जी के दाम ।

तभे बरी हा आवय काम ।।


बरी बनावव रखिया लान ।

हे सब्जी मा येखर शान ।।

छेवरनिन ला अब्बड़ भाय ।

उपराहा जी भात खवाय ।। 


राँधव आलू मुनगा डार ।

सुग्घर झट ले भूँज बघार ।।

सबके ये हा मन ललचाय ।

बरी अदौरी मान बढ़ाय ।।


बड़े-बड़े अउ गोल मटोल ।

हावय भारी येखर मोल ।।

बेंचावय गा हाट बजार ।

ले आवव सब छाँट निमार ।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

मो.नं.- 8966095681

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 सूर्यकांत गुप्ता 


*मुनगा आलू सँग कका, रखिया बरी मिठाय।*

*हमर ममादाई इही, हरदम राँध खवाय।।*

भाई हो चउमास मा,मिलय न कउनो साग।*

*जेकर घर रखिया बरी, ओकर जागय भाग।।*


सूर्यकान्त गुप्ता...

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(घनाक्षरी)


*रखिया बरी के सुरता....*

*रखिया के आनी बानी बरी तो बनावै नानी,* 

*सुरता करत हँवँव बीते बचपन के।*

*फेंटै पीठी मरे जियो डार रखिया के करी,* 

*रहय समरपन तन मन धन के।।*

*एके के कमाई मा जी पुरै नहीं सउख कथौं*

*घूमे फिरे नाचे गाए बर बन ठन के।*

*समे मिल पावै नहीं, बरी ओ बनावै नहीं*

*धरे हँवँव भाई भइगे सुरता जतन के।।*

सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

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: सृजन शब्द:-- *रखिया बरी*


रखिया लानय पोठ के, मिल के सबो करोय।

बोरे दार उरीद ला, पिठी बनाके धोय।।

पिठी बनाके धोय, बिजौरी घलो बनावय।

तीली भूॅंजे देख, देख मन ललचावय।।

पर्रा सुपा दसाय,  बनावय खोंटय सखिया।

सुरता आथे पोठ, बरी अब तोरे रखिया।।


भाॅंटा आलू संग मा, रखिया बरी सुहाय।

मुनगा सुघर सुवाद ला, भारी गजब बढ़ाय।।

भारी गजब बढ़ाय, खाव जी सरपट सइया।

छोटू नोनी मॉंग, मॉंग के खाये भइया।।

पुरे पुरौती पूर, करे तब दाई बाॅंटा।

मुनगा आलू डार, बरी रखिया अउ भॉंटा।।

मनोज वर्मा

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: रखिया बरी

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(दोहा )


रखिया ला सुग्घर करो,पीठा उरिद मिंझार।

खटिया मा दसना दसा, बरी खोंट के डार।।


 जड़काला के घाम मा,दाई बरी बनाय।

बड़की भउजी हा ललक,वोकर हाथ बँटाय।।


बनथे जी रखिया बरी,छत्तीसगढ़ मा खास।

जोखा करके राखथे,अभो सियनहिन सास।।


पहुना बर रखिया बरी, मान गउन के साग।

समधी के मन बोधथे,धरे मया के पाग।।


होथे ये बड पुष्टई,बिकट मिठाथे झोर।

सरपट सइया तीर ले, पाँचो अँगरी बोर।।


मुनगा सँग मा राँध के, लइकोरी हा खाय।

बाढ़ै अमरित दूध हा, पी लइका  फुन्नाय।।


भूँख बढ़ाथे ये बरी, गर्मी पेट जनाय।

गठिया के रोगी कभू,जादा कन झन खाय।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 **बन जाथौं मैं जीभ के, सबले बड़का दास।*

*खा लेथौं रखिया बरी, मान साग ए खास।।*

*मान साग ए खास, भुला जाथौं जी गठिया।*

*रहिथे एके आस, सजय एकर से टठिया।।*

*चूकौं नहीं मितान, झोरथौं जब जब पाथौं।*

*सबले बड़का दास,  जीभ के मैं बन जाथौं।।*

सूर्यकांत गुप्ता

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कुंडलिया छंद 

रखिया बरी


रखिया बने करोय के,पीठी देव मिलाय।

फेंटव फूलत ले बने,तब वो गजब मिठाय।।

तब वो गजब मिठाय,दिखे चकचक ले उज्जर।

बदली मा करियाय,दिखे वो करिया जब्बर।

बिगड़े लगे सुवाद,बना गरमी मा बढ़िया।

गजब मिठाथे राँध, बरी खावव गा रखिया।।


बारी मा रखिया फरे,कभू बीस दस चार।

बरी बने हर साल गा,पीस उरिद के दार।

पीस उरिद के दार,फेंट के राखौं बढ़िया।

हरियर मेथी ड़ार,काट के हरियर धनिया।

आथे गजब सुवाद,बना थौं करत तियारी।

फरही येहू साल, हमर घर हावे बारी।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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कुलदीप सिन्हा: चौपई ( जयकारी ) छंद

       रखिया बरी

     --------+------

धर पइसा जी जा बाजार।

ले तुम लानव उरीद दार।

काट ग रखिया देवव फोर।

बाद निकालो गुदा ल कोर।


फेंटव पीठी गंजी लान।

बात मोर जी सुनो मितान।

अब तो वोला डारव खोट।

बनगे रखिया बरी ह पोट।


अब तो वोला धूप दिखाव।

दिन भर सुखही तब लहुटाव।

रोज रोज हे करना काम।

बाद सुखे के कर आराम।


अब तो रांधव उनला साग।

नून मिरी के डारव भाग।

वोला उतार चूरे बाद।

खाये मा जी मिलही स्वाद।


वोखर गुण ला अब सब गाव।

सबो कहूँ ला इही बताव।

खावव रखिया बरी सुजान।

हे नइ रहना जी अनजान।


कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी

 29 / 08 / 2023


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- *रखिया बरी*


रखिया लानय पोठ के, मिल के सबो करोंय।

भींगे दार उरीद ला, छलछल ले सब धोंय।।

छलछल ले सब धोंय, पिठी अउ करी मिलावॅंय। 

फेटें अब्बड़ देर, खोंटके बरी बनावॅंय।

पर्रा सुपा दसाँय, कभू खटिया बरदखिया।

सुरता आथे पोठ, बरी अब तोरे रखिया।।


भाॅंटा आलू संग मा, रखिया बरी सुहाय।

मुनगा सुघर सुवाद ला, भारी गजब बढ़ाय।।

भारी गजब बढ़ाय, खाव जी सरपट सइया।

छोटू नोनी मॉंग, मॉंग के खाये भइया।।

पुरे पुरौती पूर, करे तब दाई बाॅंटा।

मुनगा आलू डार, बरी रखिया अउ भॉंटा।।



मनोज कुमार वर्मा

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, बनसांकरा: शोभन छंद (रखिया बरी)

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ए बरी रखिया सुहावय,तोर गुरतुर स्वाद।

तोर सब्जी खात राहय,मन करय फरियाद।।

साथ मुनगा अउ भटा के,होय संगत तोर।

भात उपराहा खवावय,बड़ मिठावय झोर।।


ए बरी तोरे भरोसा, हे सगा सनमान।

एक कौंरा खाय जेहा ,वो करय गुनगान।।

होय मौसम जाड़ गर्मी ,या जबर बरसात।

साग हरियर नइ मिलय ता,तँय बनाथस बात।।


दीपक निषाद--लाटा (भिंभौरी)-बेमेतरा

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