(1) गहना गुरिया -
दोहा -
जेवर ये छत्तीसगढ़ी, लिखथे अमित बखान।
दिखथे चुकचुक ले बने, गहना गरब गुमान।
नवा-नवा नौ दिन चलय, माढ़े गुठा खदान।
बनथे चाँदी सोनहा, पुरखा के पहिचान।।
चौपाई -
पहिरे सजनी सुग्घर गहना,
बइठे जोहत अपने सजना।
घर के अँगना द्वार मुँहाटी,
कोरे गाँथे पारे पाटी।~1
बेनी बाँधे लाली टोपा,
खोंचे कीलिप डारे खोपा।
फिता फूँदरा बक्कल फुँदरी,
कोरे गाँथे दिखे फूल सुँदरी।~2
कुमकुम बिन्दी सेन्दुर टिकली,
माथ माँग मोती हे असली।
रगरग दमदम दमकै माथा,
कहत अमित हे गहना गाथा।~3
लौंग नाक नग नथली मोती,
फुली खुँटी दीया सुरहोती।
कान खींनवा लटकन तुरकी,
बारी बाला झुमका लुरकी।~4
गर मा चैन संकरी पुतरी,
गठुला गजरा गूँथे सुतरी।
सिरतो सूँता सूर्रा सुतिया,
भुलका पइसा रेशम रुपिया।~5
बहुँटा पहुँची चूरी ककनी,
बाँहा मरुआ पहिरे सजनी।
कड़ा नागमोरी बड़ अँइठे,
सजधज सजनी सुखिया बइठे।~6
कुची टँगनी रेशम करधन,
ए सब होथे कनिहा लटकन।
लाल पोलखा लुगरा साया,
गहना गुरिया फभथे काया।~8
सोन मुंदरी चाँदी छल्ला,
पहिर अंगरी झनकर हल्ला।
छल्ला सोना तांबा पीतल,
सजथे तन, मन होथे शीतल।~9
पाँव पैरपट्टी अउ पैरी,
बिन जोंही लागे सब बैरी।
साँटी टोंड़ा बिछिया लच्छा,
गोड़ सवाँगा सबले अच्छा।~10
पाँव मूँड़ नख गहना भारी,
दिखथे बढ़हर उही सुवारी।
महुँर मेंहदी अउ मुँहरंगी,
सोहागिन के ये सब संगी।~11
बाँधय घुँघरु घंटी पायल,
अलहन ले झन होवय घायल।
ठुआ टोटका मानय सतरा,
पहिरे ताबिज कठवा पखरा।~12
तइहा मा पर रुचि सिंगारी,
अब तो हे फेशन चिन्हारी।
फभित गवाँ गे,आने-ताने,
नकल सवाँगा हे मनमाने।~13
आज चैन सुख बनगे सोना,
बहुते हवय तभो ले रोना।
काखर मन ला सोन अघाथे,
सोन-सोन जप जग बउराथे।~14
दोहा -
सुग्घर सच्चा सोनहा, सोहागिन सिंगार।
सरी अंग हा बोलथे, गहना मया अपार।
(2) रोटी पीठा -
दोहा -
आय अतिथि घर मा हमर, पहुना नाँव धराय।
किसिम कलेवा खा बना, आदर सगा सुहाय।।
चौपाई -
गुरतुर गुरहा गुलगुल गुजिया,
दूधफरा रसगुल्ला करिया।
मीठ कलेवा खुरमी खाजा,
राँध खवा तैं तुरते ताजा।~1
खीर सेवई कुसली पकुआ,
तिखुर रोंट रसकतरा हलुआ।
रोटी पीठा मिठहा मनभावन,
होथे सगा सोदर हा पावन।~2
पाके पपई पपची पिड़िया,
रखियापाग तसमई बिरिया।
कूटे पीसे चाँउर बेसन,
काबर पिज्जा बरगर फेशन।~3
पाग धरे गुड़ चाँउर अरसा,
मया प्रीत के बरसे बरसा।
मोवन मैदा कटुवा खुरमी,
खावँय नंगत तेली कुरमी।~4
सदा सगा सोदर तुम आहू,
पहुना भगवन तुमन कहाहू।
सेवा सिधवा करबो बढ़िया,
खा पी पोठ मोटरा गठिया।~5
राँध खवा के मिठहा गुरहा,
खावव थोकुन जीनिस नुनहा।
घी अंगाकर रोटी राजा,
चहा बुड़ो के मनभर खाजा।~6
ठेठ ठेठरी करी फरा जी,
सोंहारी के संग बरा जी।
मही महेरी मुरकू मुठिया,
बने बफौरी बिक्कट बढ़िया।~7
चाँउर चीला चक चौसेला,
मजा मया मा माँदी मेला।
चिवँरा पापड़ सेव सलोनी,
खावव हाँसव बबुआ नोनी।~8
तिली जोंधरा फल्ली लाड़ू,
मुर्रा लाड़ू खाय भकाड़ू।
आय सगा के करबो सेवा,
पाछू मिलही हमला मेवा।~9
बटकी बटकर बोरे बासी,
खाजा खोवा बारा मासी।
पहुना सेवा जाय उदासी,
अतिथि चरन हे मथुरा कासी।~10
नून गोंदली चिखना चटनी,
जइसे कथनी वइसे करनी।
आमा अमली मिरचा धनिया,
खावँय रजमत रजवा रनिया।~11
छत्तीसगढ़ी खाव कलेवा,
भाजी भाँटा सिरतो मेवा।
जिनगी जीथन बनके सिधवा,
बैरी ला देथन ऊँच पिढ़वा।~12
दोहा -
देव मान पहुना अमित, कर सेवा सतकार।
सबले बढ़के भावना, पसिया पेज पियार।।
रचनाकार - श्री कन्हैया साहू "अमित"
शिक्षक~भाटापारा, छत्तीसगढ़
संपर्क~9200252055