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Thursday, September 29, 2022

जय जग जननी


 

जय जग जननी

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जय जग जननी मातु भवानी,जय जग पालनहार।

शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।


आदि शक्ति जगदम्बा तोरे, शिवजी जस बगराय।

लक्ष्मीपति हा विनय सुनाथे, ब्रह्मा माथ नवाय।

भगत उबारे बर तैं लेथच, नव दुर्गा अवतार।

शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।


खप्पर वाली माता काली, रूप हवै बिकराल।

रूंड-मुंड के माला पहिरे, लफलफ जिभिया लाल।

ये धरती के भार हरे तैं, महिषासुर ला मार।

शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।


भस्मासुर ला भसम करे बर, माया मा भरमाय।

चंड मुंड ला मार गिराये, शुंभ निशुंभ नसाय।

रक्तबीज के मूड़ी काटे, पिये लहू के धार।

शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।


लाल चुनरिया लाल सँवागा, शेर सवारी तोर।

रावाँभाँठा के बंजारी, निकले धरती फोर।

डोंगरगढ़ मा बमलाई के, लगे रथे दरबार।

शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।


कलजुगिहा अड़हा नइ जानवँ,पूजा पाठ बिधान।

मैं बेटा अँव तैं महतारी ,अतके हावय ज्ञान।

तोर भरोसा बल हे भारी, होही बेड़ापार।

शरण परे गोहारत हाववँ, सुन ले मातु पुकार।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Wednesday, September 28, 2022

जनकवि कोदूराम दलित जी के 55 वीं पुण्यतिथि मा काव्य सुमन - छंद के छ डहर ले


 


जनकवि कोदूराम दलित जी के 55 वीं पुण्यतिथि मा काव्य सुमन - छंद के छ डहर ले


आल्हा छंद-#सुरता_पुरखा_मन_के


करके सुरता पुरखा मन के, चरन नवावँव मँय हा माथ।

समझ धरोहर मान रखव जी, मिलय कृपा के हर पल साथ।।


इही कड़ी मा जिला दुर्ग के, अर्जुन्दा टिकरी हे गाँव।

जनम लिये साहित्य पुरोधा, कोदूराम दलित हे नाँव।।


पाँच मार्च उन्निस सौ दस के, दिन पावन राहय शनिवार।

माता जाई के गोदी मा, कोदूराम लिये अवतार।।


रामभरोसा पिता कृषक के, जग मा बढ़हाये बर नाँव।

कलम सिपाही जनम लिये जी, बगराये साहित के छाँव।।


बचपन राहय सरल सादगी, धरे गाँव  सुख-दुख परिवेश।

खेत बाग बलखावत नदिया, भरिस काव्य मन रंग विशेष।।


होनहार बिरवान सहीं ये, बनके जग मा चिकना पात।

अलख जगाये ज्ञान दीप बन, नीति धरम के बोलय बात।।


छंद विधा के पहला कवि जे, कुण्डलिया रचना रस खास।

रखे बानगी छत्तीसगढ़ी, चल के राह कबीरा दास।।


गाँधीवादी विचार धारा, देश प्रेम प्रति मन मा भाव।

देश समाज सुधारक कवि जे, खादी वस्त्र रखे पहिनाव।।


ढ़ोंग रूढ़िवादी के ऊपर, काव्य डंड के करे प्रहार।

तर्कशील विज्ञानिकवादी, शोधपरक निज नेक विचार।।


गोठ सियानी ऊँखर रचना, जग-जन ला रस्ता दिखलाय।

मातृ बोल छत्तीसगढ़ी के, भावी पीढ़ी लाज बचाय।।


आज पुण्यतिथि गिरधर कवि के, गजानंद जी करे बखान।

जतका लिखहूँ कम पड़ जाही, कोदूराम दलित गुनगान।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ी)

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आल्हा छन्द - शकुन्तला शर्मा


(1) कोदूराम "दलित"


छत्तीसगढ़ के जागरूक कवि, निच्चट हे देहाती ठेठ

वो हर छंद जगत के हीरा, छंद - नेम के वोहर सेठ।


कोदूराम दलित हम कहिथन,सब समाज ला बाँटिस  ज्ञान

भाव भावना मा हम बहिथन,जेहर सब बर देथे ध्यान।


देश धर्म के पीरा जानिस,सपना बनिस हमर आजाद

आजादी के रचना रच दिस, सत्याग्रह होगे आबाद।


अपन देश आजाद करे बर,चलव रे संगी सबो जेल

गाँधी जी के अघुवाई मा, आजादी नइ होवय फेल।


शिक्षा के चिमनी ला धर के, देखव बारिस कैसे जोत

मनखे मन ला जागृत करके,समझाइस हम एके गोत।


मार गुलामी के देखिस हे,जानिस आजादी अभिमान

ओरी ओरी दिया बरिस हे,अब कइसे होवय निरमान ।


जाति पाति के भेदभाव के,अडबड बाढ़त हावय नार

सुंदर दलित दुनो झन मिलके,सब्बो दुखले पाइन पार।


दलित सही शिक्षक मिल जातिन, जौन पढ़ातिन दिन अउ रात

सब लइका मन मिल के गातिन, हो जातिस सुख के बरसात ।


रचयिता - शकुन्तला शर्मा, भिलाई

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*जनकवि कोदूराम"दलित" जी ला समर्पित*

(05/03/1910 से 28/09/1968)

(आल्हा छंद जीवनी)

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आज सुनावौं एक कहानी,सुग्घर जनकवि कोदूराम।

जन-जन के वो हितवा राहय,उड़ै अगासा जेखर नाम।।


छत्तीसगढ़ी संस्कृति ज्ञाता,कोदूराम "दलित" हे नाम।

अमर काव्य रचना कर डारिन,जन मानस बर करके काम।।


गोरे अउ छरहरे रंग के,सुग्घर कद सुग्घर व्यवहार।

जन-जन के हिरदय मा बसगे,सादा जिनगी उच्च विचार।।


छत्तीसगढ़ी जिला-दुर्ग मा,अर्जुन्दा टिकरी के गाँव।

जिहाँ जनम होइस हे भइया,दाई ददा मया के छाँव।।


पाँच मार्च उन्नीस शतक दस, "रामभरोसा" के परिवार।

अँगना मा किलकारी गूँजिस, कोदूराम "दलित"अवतार।।


दाई "जायी" के कोरा मा,खेलिस लइका "कोदूराम"।

"रामभरोसा" ददा भुलागे,अपने तन के दुःख तमाम।।


ददा एक किसनहा राहय,खेती बारी बदे मितान।

कोदूराम"दलित" हा देखिन,सबो गरीबी साँझ बिहान।।


अर्जुन्दा के ग्राम आशु कवि,चिनौरिया श्री पीलालाल।

इँखर प्रेरणा पा के सुग्घर,गीत कहानी लिखिन कमाल।।


शुरू करिन हे कविता लिखना,बछर रहिस हे सन् छब्बीस।

जिनगी भर साहित्य साधना,करत रहिन नइ कभ्भू रीस।।


मनखे मन हा सबो उमर के,हिलमिल के राहय जी संग।

जाति-पाँति के नइ चिनहारी,हँसमुख सुग्घर ओखर अंग।।


जन-जन के पीरा देखइया,मानवता के वो चिनहार।

गुरुजी एक रहिन अइसन वो,कलम बनिस जेखर हथियार।।


गाँधी जी के राह चलइया,मनखे मन ले करिस गुहार।

गाना कविता लिख-लिख के वो,बगराइन हे अपन विचार।।


गाँधी टोपी पहिन पजामा,छाता धरै हाथ मा एक।

मिलनसार सब ला वो चाहय,काम करय वो जन बर नेक।।


कोदूराम समाज सुधारक,मानवता के बनिस मिशाल।

संस्कृत निष्ठ व्यक्ति अवतारी,भारत भुइयाँ के ये लाल।।


कोदूराम"दलित" बड़ मनखे,रहिन जुझारू नेता एक।

सन् सैंतालिस मा शिक्षक के,करिन संघ बर काम अनेक।।


पन्द्रह दिन पतिराम साव सँग,कोदूराम "दलित" फिर जेल।

गइस प्रधानापाठक पद हा,अब साहित्य साधना खेल।।


लइका मन मा देश-प्रेम बर,स्वतन्त्रता के अलख जगाय।

देश-भक्ति के पबरित गंगा,कोदूराम "दलित" बोहाय।।


"गोठ सियानी" लिख कुण्डलिया,आडम्बर ला दूर भगाय।

छत्तीसगढ़ी "दलित" कहाये,ये गुरुजी गिरधर कविराय।।


गोठ कबीरा जइसन फक्कड़,बिना झिझक के बात बताय।

ढोंगी मन के ढोंग हटइया,हरिजन मन के दुख बिसराय।।


लेखन कौशल हा बड़ सुग्घर,देशी बोली हिंदी भाय।

कोदूराम मंच मा चढ़ के,कविता संगे गीत सुनाय।।


कविता के बारे मा काहय,गुरुजी कोदूराम सुजान।

जइसे मुसुवा बिला निकलथे,वइसे कविता दिल से जान।।


"दलित" पचास दशक के लगभग,मंच व्यवस्था करिन प्रचार।

संग द्वारिका "विप्र" रहिन हे,दुन्नों के जोड़ी दमदार।।


रचना रचिस आठ सौ जादा,पद्य-गद्य गंगा बोहाय।

हवै धरोहर ये किताब मन,जन मन मा अमरित बरसाय।।


"हमर देश","कनवा समधी" अउ,"दू मितान" के सुग्घर गीत।

"बालक कविता" बड़ मनभावन,रचिन "प्रकृति वर्णन" सुन मीत।।


"अलहन","कथा-कहानी",प्रहसन,सुग्घर-सुग्घर रचिन सुजान।

ये समाज ला राह दिखाथे,कतका मँय हा करौं बखान।।


प्रबल पक्षधर साक्षरता के,गिरे परे के कर उत्थान।

मास सितम्बर अट्ठाइस के,सन् सड़सठ मा देहवसान।।


फेर अपन रचना माध्यम ले,आज घलो जिन्दा कस जान।

अइसन कोदूराम"दलित"जी,जन-जन ले पावत सम्मान।।


जेखर बेटा "अरुण निगम" के,होवत हावय अड़बड़ सोर।

छत्तीसगढ़ी छंद ज्ञान के, बगरावत हे छंद अँजोर।।


अपन ददा के पद चिनहा मा,चल के अरुण निगम जी आज।

साहित लिखना धरम बना के,करत पूण्य के हावै काज।।


छंद ऑनलाइन कक्षा मा,अरुण निगम गुरु छंद सुजान।

छत्तीसगढ़ी छंद सिखावत,पोठ व्याकरण के जी ज्ञान।।

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज "विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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दोहा-छंद 


1-


बाबू कोदूराम के, अमर हवय सब काम |

कलम धनी के काज ला, बारम्बार प्रणाम ||


2-


छन्द साधना के पथिक, भागीरथी सुजान |

वोखर सुघ्घर लेखनी, हम सब बर वरदान ||


कमलेश प्रसाद शरमाबाबू

कटंगी-गंडई 

जिला -केसीजी

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कुण्डलिया-कोदूराम "दलित"

जनकवि के पढ़ लेखनी,सुग्घर हे सब लेख।

आजो सच मा सार हे,लिखे काव्य ला देख।।

लिखे काव्य ला देख,हास्य पीरा सब मिलथे।

चिरहा मया दुलार,कलम के दम लिख सिलथे।।

गावत हँव गुण आज,तेज वो चमकत रवि के।

छाये हे सब खूँट,नाँव यसजस जनकवि के।।

राजकिशोर धिरही

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जनकवि कोदू राम दलित जी के 55वीं पुण्य तिथि म पूज्यनीय दलित जी ल शत शत  नमन--


करिस छंद के जौन हा,हमर इँहा शुरवात।

श्रद्धा सुमन चढाँव मैं, माथा अपन नँवात।


साहित के वो देंवता,जनकवि वो कहिलाय।

बगरे  बाँढ़य  छंद  बड़,आस  ओखरे आय।


सुध समाज के लेत नित, सिरजिस कविता पोठ।

छोट बड़े सब मंच मा, करिस सियानी गोठ।।


नशापान लत लोभ मा, करिन सबे दिन चोट।

ऊँच उठाइन देश ला, खुद बनगे कवि छोट।


गांधीवादी सोच ले, करिन सबे दिन काम।

आजादी के आग मा, अपन जलाइन चाम।


नाँव मिटाये नइ मिटै,करनी जेखर पोठ।

साहित के आगास मा,बरे सियानी गोठ।


पैरी जब जब बाजही,मुख मा आही गीत।

बैरी पढ़ पढ़ काँपही,फुलही फलही मीत।


रचना रिगबिग हे बरत,भले बछर के बीत।

डहर नवा गढ़ते रही,जनकवि जी के गीत।


नाँव अमर जुगजुग रही,जइसे  गंगा धार।

जनकवि कोदू राम जी,छंद सृजन आधार।


सपना उही सँजोय हे,अरुण निगम जी आज।

पालत  पोंसत  छंद ला,करत हवे निक काज।


साधक बन सीखत हवै,कतको कवि मन छंद।

महूँ  करत  हँव साधना,लइका  अँव  मतिमंद।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)

Saturday, September 17, 2022

हिंदी दिवस विशेष छंदबद्ध सृजन

 हिंदी दिवस विशेष छंदबद्ध सृजन


घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

             1

कहिनी कविता बसे,कृष्ण राम सीता बसे,

हिंदी भाषा जिया के जी,सबले निकट हे।

साकेत के सर्ग म जी,छंद गीत तर्ज म जी,

महाकाव्य खण्डकाय,हिंदी मा बिकट हे।

प्रेम पंत अउ निराला,रश्मिरथी मधुशाला,

उपन्यास एकांकी के,कथा अविकट हे।

साहित्य समृद्ध हवै,भाषा खूब सिद्ध हवै,

भारत भ्रमण बर,हिंदी हा टिकट हे।1।।।

               2

नस नस मा घुरे हे, दया मया हा बुड़े हे,

आन बान शान हरे,भाषा मोर देस के।

माटी के महक धरे,झर झर झर झरे,

सबे के जिया मा बसे,भेद नहीं भेस के।

भारतेंदु के ये भाषा,सबके बने हे आशा,

चमके सूरज कस,दुख पीरा लेस के।

सबो चीज मा आगर,गागर म ये सागर,

भारत के भाग हरे,हिंदी घोड़ा रेस के।2।

                3

सबे कोती चले हिंदी,घरो घर पले हिंदी।

गीत अउ कहानी हरे, थेभा ये जुबान के।।

समुंद के पानी सहीं, बहे गंगा रानी सहीं।

पर्वत पठार सहीं, ठाढ़े सीना तान के।।

ज्ञान ध्यान मान भरे,दुख दुखिया के हरे।

निकले आशीष बन,मुख ले सियान के।।

नेकी धर्मी गुणी धीर,भक्त देव सुर वीर।

बहे मुख ले सबे के,हिंदी हिन्दुस्तान के।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)छत्तीसगढ़


हिंदी दिवस की आप सबको सादर बधाई

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*हिंदी दिवस (दोहा छंद)*


हिंदी भाषा ला हमर, सबले गुरतुर जान ।

अलंकार रस छंद मा,  देथे हम ला ज्ञान ।।


महतारी भाषा हरे, जन-जन के पहिचान ।

आखर-आखर रस भरे, देवव गा सम्मान ।।


सरल सहज भाषा हवय, पढ़-लिख हिंदी बोल ।

दया- मया ला साँट के,  मीठ- मीठ रस घोल ।।


कविता कहिनी हा भरे, पढ़ के बनव सुजान ।

हिंदी  भाषा  के  सबो,  कर लव गा गुणगान ।।


जानव हिंदी ला हमर,  हिन्द देश के शान ।

भारत  के  बिंदी  बने,  देवत  हावय  मान ।।


छंद साधक- सत्र 16

*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला-कोरबा(छ.ग.)

देवशिल्पी विश्वकर्मा जयंती विशेष छंदबद्ध सृजन

 


देवशिल्पी विश्वकर्मा जयंती विशेष छंदबद्ध सृजन

जय बाबा विश्वकर्मा (सरसी छंद)

देव दनुज मानव सब पूजै,बन्दै तीनों लोक।
बबा विश्वकर्मा के गुण ला,गावै ताली ठोक।

धरा धाम सुख सरग बनाइस,सिरजिस लंका सोन।
पुरी द्वारिका हस्तिनापुर के,पार ग पावै कोन।

चक्र बनाइस विष्णु देव के,शिव के डमरु त्रिशूल।
यमराजा के काल दंड अउ,करण कान के झूल।

इंद्र देव के बज्र बनाइस,पुष्पक दिव्य विमान।
सोना चाँदी मूँगा मोती,बीज भात धन धान।

बादर पानी पवन बनाइस,सागर बन पाताल।
रँगे हवे रुख राई फुलवा,डारा पाना छाल।

घाम जाड़ आसाढ़ बनाइस,पर्वत नदी पठार।
खेत खार पथ पथरा ढेला,सबला दिस आकार।

दिन के गढ़े अँजोरी ला वो,अउ रतिहा अँधियार।
बबा विश्वकर्मा जी सबके,पहिली सिरजनकार।

सबले बड़का कारीगर के,हवै जंयती आज।
भक्ति भाव सँग सुमिरण करले,होय सुफल सब काज।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
भगवान विश्वकर्मा सबके आस पुरावै
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[9/17, 11:51 AM] कवि बादल: विश्वकर्मा जयंती के हार्दिक बधाई।
🙏🌹🌹🌹🌹🙏

मजदूर  हा आय देव विश्वकर्मा
(हरिगीतिका छंद)
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 मजदूर तैं अच विश्वकर्मा,जग तहीं सुघराय हच।
अपने भुजा के बल धरा ला,तैं सरग लहुटाय हच।
निर्माण जे अद्भुत हवैं सब,तोर हाबय जी गढ़े।
पथरा तको मा जीव डारे, रूप अद्भुत तैं मढ़े।


जादू हवै तो हाथ मा बड़, सब कला भंडार हे।
विज्ञान हे अउ ज्ञान खाँटी, वास्तु के निक सार हे।
कतकों किला कतकों महल हें,बाँध पुलिया हें नहर।
हें रेलगाड़ी कार मोटर,यान चढ़ करथें सफर।

छीनी हथौड़ी गीत गाथें,मेहनत के शान मा।
तैं देवता अच सुख सबो ला,बाँटथच वरदान मा।
सुख शांति के मजबूत गहिरा, आच सिरतो नेव तैं।
'बादल' नवाथे माथ तोला, विश्वकर्मा देव तैं।

चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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 *विश्वकर्मा महराज-हरिगीतिका छंद*

हो देव शिल्पी आप प्रभु,शुभ विश्वकर्मा नाम हे।
सिरजन करइया विश्व के,अद्भुत तुँहर ये काम हे।।
सुमिरन करै नर-नार सब,जोड़े दुनों जी हाथ ला।
चौखट खड़े सब हे भगत,देखव झुकाए माथ ला।।

रचना करइया जीव के,मन्दिर महल घर द्वार के।
कल कारखाना ला रचे,वन डोंगरी संसार के।।
अउ बज्र रचना इंद्र के,तिरशूल भोलेनाथ के।
गहना रचे  अद्भुत इहाँ, श्रृंगार नारी माथ के।।

सुग्घर पुरी अउ द्वारिका,रामा अवध श्री धाम ला।
सार्थक करे रचना गजब,कारीगरी के नाम ला।।
सागर बँधाए सेतु अउ,पुलिया बड़े बाँधा बड़े।
औजार सब बनिहार बर,महिनत सिखाए जी खड़े।।

रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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सरसी छंद

कारीगरी देवशिल्पी के ,महिमा अगम अपार।
तोर कला के सिरजन अद्धभुत ,जानत हे संसार।।

गढ़ दिन अमरावती इंद्र बर , वज्र सही औजार।
मन मोहन बर पुरी द्वारका ,चक्र सुदर्शन धार।।

सब देवन के महल अटरिया , अलग अलग हे नाम।
कारीगर हवे विश्वकर्मा , अद्धभुत अनुपम काम।।

पांडव मन के इंद्रप्रस्थ ला ,कहँय कल्पना लोक।
कला देवशिल्पी के देखत ,भागे मन के शोक।।

अतुल अचंभित कला देखके ,सोचय पालनहार।
जग के दू झन सर्जक आवन ,दुनो बराबर भार।।

शिल्प क्षेत्र व्यापार जगत के , इही देव आराध्य।
श्रद्धा पूजा भाव भक्ति से ,चमकावत हे भाग्य।।

हवय कारखाना कलयुग मा ,मिले हवय परसाद।
बबा विश्वकर्मा हा देवय ,श्रम ला आशीर्वाद।।

आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
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विश्वकर्मा

छन्न पकैया छन्न पकैया,हे बाबा विश्वकर्मा|
जनम दिवस मा पूजा होथे,जमो प्लांट घर घर मा||

छन्न पकैया छन्न पकैया,लंका तॕय सिरजाये|
नाॕव नहीं गा लोहा लाखर,सोने सोन बनाये||

छन्न पकैया छन्न पकैया,सोन सोन के लंका|
तीन लोक मा बाजन लागे,कला ज्ञान के डंका||

छन्न पकैया छन्न पकैया,बंदव सिरजनहारा|
तोर चरन मा फूल चढा़बो,गाॕव गली सब पारा||

छन्न पकैया छन्न पकैया,सब ला कला सिखा दे|
किसम किसम के नवाचार करहीं,सत रद्दा बगरा दे||

शिवानी कुर्रे
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हरिगीतिका छन्द

विश्वकर्मा देव

औजार धरके बैठगे, गढ़दिन सकल संसार ला। 
धरती कहव या इंद्रपुर , सब देव के घर बार ला। 
लंका गढ़िन हें सोन के अउ कृष्ण जी के द्वारका। 
ये देव शिल्पी के जगत मा, पा सकय कोई पार का। 

हे देव अभियंता अबड़ , उपकार मानत हे जगत। 
जोड़े खड़े हें हाथ दूनो, देव मानव अउ भगत। 
कल कारखाना मन सबो प्रभु देन हावय आपके। 
दुनिया अतिक उन्नति करत उपकार आवय आपके।।

ब्रम्हा कहय हे विश्वकर्मा,  भाग एके पाय हन। 
एके बरोबर काम हे ,ये सृष्टि ला सिरजाय हन। 
औजार दूनो के अलग हे तैं गढ़े हस कर्म ला। 
मैंहा गढ़े हँव भाग्य सबके अउ गढ़े हँव धर्म ला। 

हे देव कारीगर  सबो तोला नवावत माथ हे। 
धन मान यश पाही कला आशीष तोरे हाथ हे। 
 यात्रा प्रगति करही बने, परसाद मिलही भाग्य के। 
सुख संपदा बढ़ही बने, दिन भागही वैराग्य के।। 

आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
17_9_2022 शनिवार
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Friday, September 16, 2022

विश्व ओजोन-परत संरक्षण दिवस-विशेष छंदबद्ध कविता


 

विश्व ओजोन-परत संरक्षण दिवस-विशेष छंदबद्ध कविता


आल्हा छंद

कुदरत के ओजोन परत हा, रक्षा करत हवय दिन-रात।

पराबैगनी किरण रोक के, ये नइ होवन दे आघात।।


पराबैगनी किरण हमर बर, ले के आथे घातक रोग।

बी पी साँस मोतियाबिंद सँग, कैंसर के बनथे संजोग।।


ऊपर इकतिस मील भुईं के, येकर परत बने हे ढाल।

बिना परत के जीव जंतु के, खच्चित होही बाराहाल।।


क्लोरोफ्लोरोकार्बन कारण, होवत हावै एमा छेद।

फ्रिज ए सी के गैस कवच ला, ऊपर जाके देथे भेद।।


आवव भइया जुरमिल के अब, संरक्षण बर करन उपाय

कसनो कर ओजोन परत ला, हर हालत मा जाय बचाय।।


*अरुण कुमार निगम*

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हरिगीतिका छंद-ओजोन


होथे परत ओजोन के समताप मण्डल के तरी।

रक्षा कवच बन छाय रहिथे रोज करथे चाकरी।।

घातक किरण निकले सुरुज ले हम सबे के काल बन।

छाये रहे ओजोन जब तब वो किरण नइ आय छन।।


सब झन जियत हन जिंदगी बनके विलासी रात दिन।

टीवी फिरिज बउरत हवन हाँसत हवन बन बाग बिन।।

ओ जोन हा ओजोन के जाने नही कुछु फायदा।

ते आँख मूंदें तोड़थे पर्यावरण के कायदा।।


एसी फिरिज के गैस मा ओजोन हा छेदात हे।

कतको बिमारी तेखरे सेती हमन ला खात हे।।  

कैंसर त्वचा के संग मा आँखी के छीने रोशनी।

बड़ हानिकारक हे किरण छन आय झन एको कनी।।


युग आधुनिक नभ मा उड़े पर नित जुड़े संकट नवा।

मिल खोजना पड़ही हमी ला खुद गढ़े दुख के दवा।

पर्यावरण के नाश होवै आस खोवय जिंदगी।

ठाढ़े हवै वो मोड़ मा हाँसै कि रोवै जिंदगी।।


नइ हन अमर कारज हमर नुकसान एखर झन करे।

का जानवर बन का मनुष रक्षा कवच सबके हरे।

सुध लेव मिलजुल के सबे बड़ कीमती ओजोन हे।

इहि हा बचाथे जिंदगी फीका रतन धन सोन हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


विश्व ओजोन-परत संरक्षण दिवस के सादर बधाई

बरवै छंद* किसान के पीरा


*बरवै छंद*


किसान के पीरा 


*झन कर पानी अब तो, बंठाढार ।*

*पार  लगादे  हमरो, कर बउछार ।।*


*होही तब तो हरियर, खेती खार ।*

*धान सुघर लहराही,  बहरा नार ।।*


*आजा रे तँय पानी, हो तइयार ।*

*सुक्खा होगे हावय, खेती खार ।।*


*धान पान मा बगरे, रोग हजार ।*

*करव दवाई संगी,  दव उपचार ।।*


*कइसे माने अब तो, फसल तिहार ।*

*होवत नइ हे बरखा,  सुन गोहार ।।*


*खेती तोरे सेती,  मन झन मार ।*

*बने गिरादे पानी,  कर उपकार ।।*

*मुकेश उइके "मयारू*

Sunday, September 11, 2022

छन्न पकैया छंद विषय - पानी/जल

 छन्न पकैया छंद

विषय - पानी/जल


छन्न पकैया छन्न पकैया, कम हें झाड़-झरोखा।

अइसे मा बोलव जी कइसे, पानी गिरही चोखा।। 


छन्न पकैया छन्न पकैया, पानी नइ हे माढ़त।

हमर भूल के सेती देखव, ताप धरा के बाढ़त।। 


छन्न पकैया छन्न पकैया, काली बर अब सोचव।

बादर तीर बलाये खातिर, हर दिन पउधा रोपव।। 


छन्न पकैया छन्न पकैया, सजा भुगतहू भारी।

जीवनदायी नँदिया मन सन, करव नहीं गद्दारी।। 


छन्न पकैया छन्न पकैया, खीक खेल ला रोकव।

पानी ला बर्बाद करत हें, उँन लोगन ला टोकव।। 


छन्न पकैया छन्न पकैया, जल के कीमत जानव।

नहीं करन जल के बर्बादी, मन मा सबझिन ठानव।। 


छन्न पकैया छन्न पकैया, लहुटावव खुशहाली।

काम करव सब जुरमिल अइसे, दउँड़य नँदिया-नाली।। 


छंदकार - श्लेष चन्द्राकर

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

Friday, September 9, 2022

छन्न पकैया छंद- ०७/०९/२०२२

 छन्न पकैया छंद- ०७/०९/२०२२


छन्न पकैया छन्न पकैया, अब्बड़ गरमी हावय।

मार पसीना चुचवावत हे,मन ला नइ तो भावय।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, नइ हे कूलर एसी।

अइसे लागत हावय जइसे, बइठे हावन पेशी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया,लइका मन चिल्लावय।

मुॅंह ला धोवय पानी पीयै,घेरी-बेरी जावय।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, पंखा ले के लावौ।

जघा-जघा मा देख-देख के, कक्षा मा लगवावौ।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, कसके जाति निवासी।

होगे अब्बड़ माथा पीरा, गर मा लग गे फाॅंसी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया,कतका बेर पढ़ाबो।

पाठ घलो हे पूरा करना,कइसे के बच पाबो।।



✍️ ओम प्रकाश पात्रे "ओम"

Tuesday, September 6, 2022

शिक्षक दिवस विशेष छंदबद्ध कविताएँ




 


 शिक्षक दिवस विशेष छंदबद्ध कविताएँ


हरिगीतिका छंद*


शिक्षक रथे माँ-बाप कस,रद्दा दिखाथे ज्ञान के।

रक्षा करौ संगी सबो,जुरमिल इँखर सम्मान के।।

माटी  सहीं  लइका रथे,जिनगी  इही  गढ़थे बने।

पा के सबो शिक्षा इहाँ, अँगरी पकड़ बढ़थे बने।।


दीया सहीं जलके बने,करथे अँजोरी ज्ञान के।

अज्ञान मिट जाथे  सुनौ, रद्दा सँवरथे मान के।।

धर के कलम पट्टी बने,आखर सिखाथे जोड़ के।

नइ भेद कखरो ले करै,नइ जाय मुख ला मोड़ के।।


शिक्षा बिना जग सून हे,शिक्षा बिना अँधियार हे।

शिक्षा बिना अनपढ़ सबो,जिनगी इँखर बेकार हे।।

आवव करौ सम्मान ला,आवव पखारव पाँव ला।

मिलही बने आशीष हा, पाहव सुखी के छाँव ला।।


बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 "शिक्षक दिवस" (साठ के दशक की कविता)


         (जनकवि श्री कोदूराम "दलित")


चिटिक प्राथमिक शिक्षक मन के, सुन लव भइया हाल।

महँगाई के मारे निच्चट, बने हवँय कंगाल।।


जउन गुरू मन बापू जी सँग, लाइन सुखद सुराज।

दाना-दाना बर तरसे हें, उँकरे लइका आज।।


सत्तर-अस्सी तनखा पावँय, अनपढ़ चौकीदार।

तिरपन-छप्पन मा लटके हें, कतको गुरू हमार।।


जउन गुरू मन गढ़िन देस बर, नेहरु तिलक सुभास।

तउने मन ला कतको झन अब ले समझें हें दास।।


आजकाल के शिक्षक मानों, भेड़-बोकरा आँय।

जउने पायें तउने इनला, जुच्छा पूजत जाँय।।


गुरूजी मन ला जउन सताथे, होते तेकर नास।

कुकुर घलो नइ सूँघय आखिर, कहे कबीरा दास।।


तइहा जुग के ऋषि-मुनि जन मन, इहिच गुरू तो आँय।

इँकरे दुखदेवा मन तइहा, निर्मम असुर कहाँय।।


जउन देश मा गुरुजी मन ला, मिलथे कष्ट अपार।

कहै कबीरा तउन देश के, होथे बंठाढार।। 


जउन देश मा गुरुजी मन के , होथे आदर-मान।

कहै कबीरा तउन देस के, होथे अति कल्यान।।


रचनाकार - जनकवि श्री कोदूराम "दलित"

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विष्णुपद छंद


बिन स्वारथ के ज्ञान जगत मा, वो बगरावत हे।

रोज छात्र मन ला शिक्षक हा, खूब पढ़ावत हे।।


पढ़ा रोज लइका ला शिक्षक, देवय ज्ञान इहाँ।

परमारथ बर जिनगी अर्पित, काम महान इहाँ।।


जइसे बरसा ये भुइँया के, प्यास बुझावत हे।

जइसे रद्दा मनखे मन ला, घर पहुँचावत हे।।


नदी कुआँ अउ रुखराई, पर सेवा करथे।

जंगल पर्वत खेतीबारी, सबके दुख हरथे।।


माटी के लोंदा ला सुग्घर, दे आकार इहाँ।

आनी बानी जिनिस बनाथे, रोज कुम्हार इहाँ।।


शिक्षक हा शिक्षक के शिक्षक, लइका  मास्टर हे।

नेता अधिकारी वकील अउ, कोनो डॉक्टर हे।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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शिक्षक दिवस - आल्हा छंद गीत//


मनखे के उद्धार करइया,

              शिक्षक हावय बड़ा महान।

अँधियारी  रद्दा  बर ये तो,

              लागय सुग्घर दीप समान।।


पहिली शिक्षक दाई सुमिरँव,

                 महतारी भाखा के बोल।

अड़ही रहिके ज्ञान बतइया,

                  नइये एखर कोई तोल।।

हाथ पकड़ रद्दा देखइया,

                  करलौ दाई के गुणगान।

मनखे के उद्धार करइया,...............


दूसर शिक्षक हमर ददा जी,

                  घर बइठे देइन संस्कार।

इँखरे बल मा सीखे हावन,

             जग मा बने लोक व्यवहार।।

हृदय भीतरी सदा विराजित,

                  जइसे मंदिर में भगवान।

मनखे के उद्धार करइया,...............


तीसर शिक्षक गुरुवर सुग्घर,

               इँखरे हावय बड़ उपकार।।

जिनगी मा सम्मान दिलइया,

                     करँव वंदना बारम्बार।।

इही ज्ञान के अमिट खजाना,

                    देइन हे आखर के ज्ञान।

मनखे के उद्धार करइया,................


रचना:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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दोहा छंद गीत- शिक्षक (गुरु)


शिक्षक हें माता पिता, शिक्षक हें परिवार।

शिक्षक मित्र समाज हें, देथे जे संस्कार।।


मिले कहीं ले ज्ञान जब, कर लौ ग्रहण सहर्ष।

शिक्षक ले शिक्षा मिले, मिले परम उत्कर्ष।।

शिक्षक गुरु गोविंद हें, बात करव स्वीकार।

शिक्षक हें माता पिता, शिक्षक हें परिवार।।


जीवन शिक्षा पाठ ये, गुणा भाग विज्ञान।

सुख दुख के हे पाहड़ा, अउ हे गणित समान।।

शिक्षक सीढ़ी हें प्रथम, चढ़ मंजिल कर पार।

शिक्षक हें माता पिता, शिक्षक हें परिवार।।


सागर ले गहरा रहय, जेंखर मन के भाव।

खड़े रहँय पतवार बन, शिक्षक हे वो नाव।।

गजानंद जीवन करय, गुरु चरणों बलिहार।

शिक्षक हें माता पिता, शिक्षक हें परिवार।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)


Thursday, September 1, 2022

गणेश चतुर्थी विशेष छंदबद कविता

 



गणेश चतुर्थी विशेष छंदबद कविता

*गणेश वंदना(विष्णु पद छंद)*

जय  गणेश गणनायक देवा,बिपदा  मोर हरौ।
आवँव तोर दुवारी मँय तो, झोली  मोर भरौ।।

दीन-हीन  लइका  मँय देवा,आ के  दुःख हरौ।
मँय अज्ञानी दुनिया मा हँव,मन मा ज्ञान भरौ।।

गिरिजा नन्दन हे गण राजा, लाड़ू  हाथ धरौ।
लम्बोदर अब हाथ बढ़ाओ,किरपा आज करौ।।

शिव शंकर के सुग्घर ललना,सबके ख्याल करौ।
ज्ञानवान तँय सबले जादा,मन मा ज्ञान भरौ।।

जगमग तोर दुवारी चमकै,स्वामी चरन परौं।
एक दंत स्वामी हे प्रभु जी,तोरे बिनय करौं।। 

रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 छंद गीत- *लंबोदर गनराज*

अहो गजानन सुनौ गजानन, लंबोदर गनराज।
दुख ला हर दौ सुख ला भर दौ, मंगल कर दौ काज।।

पहिली पूजा तोर करे जग, गूँजय जय जयकार।
जगह जगह हौ आप बिराजे, गाँव शहर घर द्वार।।
नर नारी सब गावँय महिमा, थाल आरती साज।
अहो गजानन सुनौ गजानन, लंबोदर गनराज।।

मन मंदिर मा बसा गणेशा, मिलही खुशी अपार।
विघ्न हरण ला जपते कर ले, भव सागर ला पार।।
सुनथौ सबके अरजी बिनती, मोरो सुन लौ आज।
अहो गजानन सुनौ गजानन, लंबोदर गनराज।।

याचक बन के खड़े हवँव मँय, देहू बुद्धि विवेक।
माँगत हँव आशीष सुमत के, तोर चरण सर टेक।।
भरे रहय प्रभु सुख सुविधा ले, छत्तीसगढ़ ये राज।
अहो गजानन सुनौ गजानन, लंबोदर गनराज।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध''
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 31/08/22

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 सार छंद गीत- पोरा ३०/०८/२०२२

माटी के जाॅंता पोरा अउ, नॅंदिया बइला आगे।
हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।

बेंचत हवय कुम्हारिन मन हा,ओरी ओर लगाके।
बीच- गली अउ पारा- पारा, गाॅंव- गाॅंव मा जाके।।

रोजी-रोटी चलथे सुग्घर, दुख पीरा बिसरागे।
हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।

घर मा लाके करथें पूजा, नरियर फूल चढ़ाथें।
चीला रोटी बरा राॅंध के,बइला तीर मढ़ाथें।।

खेले बर सॅंगवारी मन सॅंग, लइका मन जुरियागे।
हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।

दीदी मन हा पोरा धरके, जघा-जघा मा पटकॅंय।
भइया मन हा खाये बर जी, सोंहारी ला झपटॅंय।।

खेलॅंय-कूदॅंय नाचॅंय-गावॅंय, मन मा खुशी समागे।
हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।

 ✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम"
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 तीजा के बिहान दिन
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तीजा परब बिहान दिन , सब्बो घर सत्कार।
तिजहारिन मन हें करत ,घूम घूम फरहार।
घूम घूम फरहार, बने हे रोटी पीठा।
मन भावै नमकीन,अइरसा पपची मीठा।
करू करेला साग, बजै चुर्रुस ले बीजा।
बाँटै मया दुलार, परब पावन हे तीजा।

जीजा लुकरू आय हे, बड़े बिहनिया आज।
चल झटकुन जाबो कथे, नइये चिटको लाज।
नइये चिटको लाज, हवै दीदी गुसियाये।
काहै जाबो काल, आज बस रात पहाये।
 करथच तैं हलकान ,  भेज के मोला तीजा।
करत हवै मनुहार, सुने ये ताना जीजा।


झोला-झँगड़ी जोर के, बेटी हे तइयार।
सुग्घर तीज मनाय हे, फिरना हे ससुरार।
फिरना हे ससुरार, निंदाई हे पछुयाये।
लइका जाही स्कूल, वोकरो फिकर सताये।
जोहत होही सास, चेत सबके हे वोला।
चल ना कहिस दमाँद ,टँगागे सइकिल झोला।

गणराजा आये हवै ,परब चतुर्थी आज।
करबो पूजा पाठ हम, होय सफल सब काज।
 होय सफल सब काज, देश मा सुख भर जावै।
मिटै गरीबी रोग, खुशी घर घर मा छावै।
उन्नति चारों खूँट, बजै सुमता के बाजा।
बढ़ै हिंद के शान, करै किरपा गणराजा।

चोवा राम  'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़

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गणेश वंदना

सँउरथन हम देँवता मा तोर पहिली नाँँव जी।
प्रथम पूजा तोर करथन फेर परथन पाँव जी।।१।।
सीख मिलथे तोर ले गा कोन सबले हे बड़े।
परिक्रमा कर बाप  दाई के त आगू मा खड़े।।२।।
तोर काया के महत्तम जान लन हम आज तो।
फेर करबो  नाँव लेके तोर  हम  हर काज तो।।३‌।
मूड़ बड़का तोर मा हे गुन भरे मुखिया सही।
सीख लन चिटिकुन हमू जी दुःख दुरिहाये रही।।४।।
नानकुन  आँखी  बताथे,  देखथस  बारीक  गा।
भाग  कोनो  नइ  सकै जी  देत तोला तो दगा।।५।।
कान  सूपा  कस  बड़े  हे,  बात सुनथस ध्यान से।
का  सही अउ का  गलत हे  जानथस तँय ज्ञान से।।६।।
काकरो भी  बात मा  बिस्वास जल्दी झन करौ।
ज़िंदगी  मा  सत्य  बोले  बर कभू तुम झन डरौ।।७‌‌।।
सोंढ़  गनपति  तोर हालय  नइ रहय स्थिर कभू।
देत तँय संदेस  कहिथस आलसी बन झन कभू।।८।।
लोग   पूजैं   देख   के  तो  सोँढ़  केती   हे  मुड़े।
फायदा  डेरी अउ जवनी  दूनो' कोती  मा जुड़े।।९।।
जेवनी  कोती  मुड़े   हर  आय  धन  बिंदास  के।
अउ  मुड़े  डेरी   डहर  हर   आय  बैरी  नास के।।१०।।
पेट  बड़का  हर  सिखोथे  गुण  पचाए  के कथे।
बात    अच्छा  या  बुरा  हो  भीतरे   मा  तो  रथे।।११।।
दॉंत   टूटिस   जुद्ध   मा  तौ  फेंक  ओला नइ देहे।
कलम  ओकर  तैं  ह  बढ़िया झट बनाए तो रेहे।।१२।।
ज़िन्दगी जीए के हूनर, आप ले  हम सीख लन।
खॉंय कोनों अब कभू गा मॉंग के तो भीख झन।।१३।।

सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग ( छत्तीसगढ़)
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सुधार

छन्न पकैया छन्न पकैया,गणपति जी हा आगे। 
पारा पारा होये झाँकी, देखे मा निक लागे।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, ग्यारह दिन मन भाये।
मुसवा तोरे बने सवारी, रिद्धि सिद्धि जस गाये।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, हूम धूप ममहाये। 
अइसे लागे सरग लोक हा, भुइयाँ मा हे आये।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, गंगा जी मा जाही। 
बीते पुरखा सबके सियान, घर घर पूजा पाही।। 

छन्न पकैया छन्न पकैया, पितर पाख हा जाही।
माता रानी बघुवा चढ़के, पहुना बनके आही।।