छेरछेरा परब विशेष
सुंदरी सवैया
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मिलके लइका सब जावत हे,अउ नाचत गावत छेरिकछेरा।
अँगना अँगना घर द्वार कहै,बहिनी मन धान ल हेरिकहेरा।
कनिहा मटकावत हाथ धरे,सब गाँव घरोघर डालय डेरा।
अउ अन्न मुठा भर पाय कहै,दुख दारिद होवय दूर अँधेरा।
ज्ञानु
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[ आशा देशमुख: छंद रचना
धारा छंद
छेरछेरा परब
बोलत छेरिक छेरा छेर, लइका मन घर घर जावैं।
कोठी के सब हेरव धान, घेरी बेरी चिल्लावैं।।
सब झन करव अन्न के दान, पूण्य हवय अब्बड़ भारी।
भरे रहय सबके भंडार, लहलहाय खेती बारी।।
दाई शाकम्भरी सहाय, गहदे सब भाजी पाला।
भरय सबो प्राणी के पेट, हटय गरीबी के जाला।।
अन्न दान के आय तिहार, ये अब्बड़ पबरित लागै।
दुख दारिद सब होवय दूर, दान धरम के रस पागै।।
अन्नपूरना देवय दान, फैलाये शिव जी झोली।
अद्धभुत अचरज दिखथे दृश्य, दुनो भरय जग के ओली।।
मन ला भावैं रीति -रिवाज, खुशी मगन नाचत आवैं।
सुघर लगय संस्कृति संस्कार, मिलके सब परब मनावैं।।
माँगय लइका लोग सियान, छोटे बड़े बने टोली।
लगय अनोखा सुर अंदाज, मनभावन गुत्तुर बोली।
चीला चौसेला पकवान, महके घर अँगना पारा।
पावन पबरित पूस तिहार, बगरे जस भाईचारा।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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कौशल साहू: *छेरछेरा* (बरवै छंद)
परब छेरछेरा हे , कर ले दान ।
पसर पसर जी देवव, कोदो धान।।
धर के चुरकी झोला , आय दुवार ।
मगन मगन माँगय सब,चीहुर पार।।
गली गली मा टोली, बाजय साज ।
माँगे मा कोनो ला, नइये लाज ।।
दान परब के हे ये , शुभ दिन आज ।
हाँसत हाँसत दौ झन,करौ नराज।।
दान करे मा कौशल , घटै न शान ।
दूना देथे सब ला ,अउ भगवान ।।
लाँघन रहिके सब बर,बोंवय धान ।
बड़का दानी जग मा,हमर किसान ।।
✍️ :-कौशल कुमार साहू
सुहेला (फरहदा )
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25/01/2021
आल्हा छंद-
छत्तीसगढ़ के तिहार पावन, होथे हम ला गरब गुमान।
छेरिक छेरा लइका बोलँय, माई कोठी हेरव धान।।
आव सुनावँव तुँहला संगी, परब छेर छेरा के मान।
दया दान अउ प्रीत भरे हे, माई कोठी के जी धान।।
पूस महीना पाख अँजोरी, नवा सुरुज के नवा अँजोर।
धान कटोरी महतारी हा, सदा रखे हे मया सँजोर।।
गाँव शहर अउ गली-गली मा, होगे देखव नवा बिहान।
चारो कोती गूँजत हावय, हमर छेर छेरा के गान।।
मया दुवारी खुल्ला रखके, सब झन करिहौ सुग्घर दान।
दया बिराजे मन मा सबके, धरती दाई दे वरदान।।
🖊️ इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ. ग.) 25/01/2024
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: *छेर छेरा तिहार (लावणी छंद)*
पूस माह के पुन्नी आगे,
छेरिक छेरा आगे ना।
सुनलव मोरे भाई बहिनी,
धरम-करम सब जागे ना।।
होत बिहनिया देखौ लइका,
बर चौरा सकलावत हे।
कनिहा बाँधे बड़े घाँघरा,
नाचत अउ मटकावत हे।।
देवव दाई -ददा धान ला,
कोठी सबो भरागे ना।
पूस माह के पुन्नी आगे ...............
मुठा-मुठा सब धान सकेलै,
टुकनी भर के छलकत हे।
छत्तीसगढ़ी रीति नियम ये,
मन हा सुग्घर कुलकत हे।।
छेरिक छेरा परब हमर हे,
भाग घलो लहरागे ना ।
पूस माह के पुन्नी आगे.............
देखव संगी चारों कोती,
बने घाँघरा बाजत हे।
बोरा चरिहा टुकना बोहे,
बहुते लइका नाचत हे।।
छेरिक छेरा नाच दुवारी,
खोंची - खोंची माँगे ना ।
पूस माह के पुन्नी आगे............
रचना:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
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(चंद्रमणि छंद)
अरन बरन कोदो झरन, देबे तभ्भे हम टरन।
लइका मन सब आय हें, छेर छेर चिल्लाय हें।
आज छेरछेरा हवय,पावन पुन बेरा हवय।
सुग्घर आय तिहार ये, देथे जी संस्कार ये।
एकर जी इतिहास हे, फुलकैना के खास हे।
राजा चलन चलाय हे, जमींदार वो साय हे।
माँगे मा का लाज हे, परंपरा के काज हे।
सूपा मा भर धान ला,करथे धर्मिन दान ला।
दान करे धन बाढ़थे,मन के पीरा माढ़थे।
बरसा होथे प्यार के, आसिस अऊ दुलार के।
ढोलक माँदर ला बजा,माँगत आथे बड़ मजा।
डंडा नाचत झूम के, गाँव ल पूरा घूम के।
धन्य हवय छत्तीसगढ़, जेकर सुंदर कीर्ति चढ़।
भाँचा रघुपति राम हे, दया धरम के धाम हे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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पद्मा साहू, खैरागढ़ 14: छेरछेरा
छन्न पकैया छन्न पकैया, भाग हमर अब जागे ।
पूस महीना दान परब के, पबरित पुन्नी आगे ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, आगे तिहार सुग्घर ।
छेरिक छेरा छेरमरकनिन, माँगे जाबों घर-घर ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, डंडा नाचयँ सब झन ।
छेरिक छेरा छेरिक छेरा, कोठी भरय अन्न धन ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गूंजय आरा पारा ।
तारा रे तारा संगी हो, चाबी के हे तारा ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, चल बुधिया चल तारा ।
जल्दी-जल्दी बिदा करव जी, जाबों दूसर पारा ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, सुन मोर संगवारी ।
भरे धान के टुकनी धर के, बइठे बबा दुवारी ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, ठोम्हा-ठोम्हा भरके ।
देवय सबला दान बबा जी, लइका खुश हें धर के ।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, दूर विपत सब भागय ।
किरपा रहे अन्नपूर्णा के, भाग सबों के जागय ।।
डॉ. पद्मा साहू "पर्वणी"
खैरागढ़
जिला खैरागढ़ छुईखदान गंडई
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मुकेश : छेरछेरा---- दोहा छंद
छेरिक छेरा सब कहत, गली-गली अउ खोर ।
नाचत कूदत जात हें, करत हवँय जी शोर ।।
लइका मन झोला धरे, माँगत घर-घर जात ।
महा परब हे दान के, खोंची- खोंची पात ।।
अरन-बरन कोदो दरन, कहिके हाँक लगात ।
रोटी- पीठा हे बने, मुसुर- मुसुर सब खात ।।
नाचँय डंडा अउ सुवा, ढोलक माँदर साज ।
छेरिक छेरा बोल के, माँगे मा का लाज ।।
पूस माह के हे परब, करव अन्न के दान ।
मुठा-मुठा देवव सबो, होही गा कल्यान ।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
मो.नं- 8966095681
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चौपाई-छंद
२५-०१-२०२४
छेरिक-छेरा
गोल-गोल उन करके घेरा।नाचँय लइका छेरिक छेरा।
धरे घाँघरा घुंघरु घाटी। बाजै सुघ्घर छुनछुन साटी।
नान्हे- नान्हे लइका आवँय।नाचँय सबके मनला भावँय।
छोटे-छोटे धरके झोला।किंदरत हावँय पारा टोला
दल के दल उन सँघरा आवँय।कूदत नाचत घर-घर जावँय।
छेरिक छेरा गाना गावँय।माई कोठी धान मँगावँय।
पसर-पसर देवत हे दाई।मानत हे सुघ्घर पहुनाई।
पूस माह के सुघ्घर पुन्नी।सुरता राखै मुन्ना -मुन्नी।
बरिक दिनन के रिथे अगोरा। हमर राज हे धान कटोरा।
बिना दान धन शुद्ध न होवय।किस्मत के रेखा नइ सोवय।
दान पुण्य मा धन हा बाढ़े।अपन करम अपने बर माढ़े।
"शर्मा बाबू" करनी जइसे।फल सबला मिलथे जी वइसे।
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
कटंगी-गंडई
जिला केसीजी
छत्तीसगढ़ ९९७७५३३३७५
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धिरही जी: छेरछेरा
जाँगर ला तो पेर के,उपजाथन जी धान।
अड़बड़ कुन करथन बुता,हमला कथे किसान।।
सकलाथे सब धान हा,आथे हमर तिहार।
मांग छेरछेरा हमन,पाथन मया दुलार।।
बोरी झोला ला धरे,लइका सबो सियान।
घर-घर जाके मांगथन,हेरव कोठी धान।।
पूस महीना मा हमर,सबले बड़े तिहार।
बोल छेरछेरा सबो,करथन जी गोहार।।
डंडा ला सब नाचथे,माँदर धरके झाँझ।
पाथे कतको धान ला,आथे लहुटत साँझ।।
रोटी पीठा अउ बरा,चूरथे बने साग।
गीत घलो गावत रथे,धर के सुग्घर राग।।
बने छेरछेरा हमर,अलग हवय पहचान।
आवव जी छत्तीसगढ़,मांगे जाबो धान।।
राजकिशोर धिरही
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