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राष्ट्रीय किसान दिवस विशेषांक
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कज्जल छंद - कन्हैया साहू अमित
खेत किसानी बसे प्रान।
जीव जगत के ये मितान।
परजा पालक हे महान।
नाँव हवय जेखर किसान।-1
दिनभर रतिहा खेत-खार।
रहय गड़े वो मेड़ पार।
बीर बहादुर बेवहार।
बाँटय जेवन जीव चार।-2
पखरा पानी ओगराय।
अपने धुन मा वो भुलाय।
सुरबइहा बहुते कमाय।
अन-धन के दाता कहाय।-3
छन्दकार - कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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घनाक्षरी छन्द - सूर्यकांत गुप्ता
माटी के मितान कथें तोला जी किसान रहै नाँगर धियान देख बरसात आगै जी।
खेत के जोतान संग धान के बोवान जँहा माते हे किसान देख मन हरसागै जी।।
मनखे ल जान तँय स्वारथ के खान कथे तोला भगवान साध मतलब भागै जी।
कोनो ल मितान कहाँ परथे जियान जब मरथे किसान देख करजा लदागै जी।
मर जाही तौ किसान फसल उगाही कोन, सोचन नही ए बात काबर गा भाई हो।
सुख दुख दूनो म गा मिल के मदद करी, सोच जिनगी उंखर झन दुखदाई हो।।
उदिम करन चलौ भिड़ के अगोरे बिन, पाटे बर ऊँच नीच बीच बने खाई हो।
करन उहिच काम सुमिर रहीम राम, जेकर करे ले जन जन के भलाई हो।।
छन्दकार - सूर्यकांत गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ. ग.)
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आल्हा छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
माटी जइसे जीवन राखे,माटी कस तन रखे परान।
माटी के तो मान बढ़ावय, बंदन माटी पूत किसान।।
खाँध म नांगर हाथ तुतारी,धरे चले टुकनी भर धान।
अर्र तता के बोल सुनावय, मूड़ म पगड़ी हे पहिचान।।
बदे मितानी घाम छाँव सँग, जाँगर टोर कमावय खूब।
सोन उगावय बंजर भुइँया,मोती नदी निकालय डूब।।
सउँधे सउँधे माटी महकय, झूमय खेत धान के बाल।
लहरै चना सोनहा गेंहूँ,देख किसान रहै खुशहाल।।
माटी के कोरा सिरजावय,दुनिया के जे भरथे पेट।
देख भला अब हालत ओखर,सुख रोटी से नइहे भेंट।।
गला बँधे हे करजा घाटी,कनिहा टूटे दुख के बोझ।
भ्रष्टाचारी आँख दिखावय, कोंन करय दुख लउठी सोझ।।
धान कटोरा महतारी के,बेटा पावय जग मा मान।
गजानन्द हे आज पुकारत, सुनौ खोल के सब झन कान।।
इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)
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कुण्डलिया छंद - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
माटी मोर मितान हे,कहिथे हमर किसान।
धरती के भगवान बन,लाथे नवा बिहान।
लाथे नवा बिहान,अन्न जग बर उपजाथे।
सहिके पीर पहाड़,रात दिन खेत कमाथे।
तभो घेंच मा देख,बँधे करजा के घाटी।
तिलक लगा के माथ,करय जे बन्दन माटी।।
इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)
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वाम सवैया - बोधन राम निषादराज
बने बरसा अब होवत आज झड़ी मनभावन भावत हावै।
किसान बियासत खेत मतावत हे परहा ल लगावत हावै।।
बने बरसा बरसे बड़ सावन ये धनहा लहरावत हावै।
भरे नरवा तरिया सब डाहर देखव धार बहावत हावै।।
भरे अब सावन मा धनहा अब देख किसान जुड़ावत हावै।
बियास करे सब धान ल देखव मूड़ उठा लहरावत हावै।।
इहाँ भुइँया सब डाहर सुग्घर सावन मा हरियावत हावै।
छमाछम बूँद ह नाचत गावत शोर घलो बगरावत हावै।।
छंदकार-बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छत्तीसगढ़)
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शक्ति छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे
पछीना गिरा लव,करव काम ला,
कमइया हरव झन,डरव घाम ला।
लगा लव बने खेत मा,धान जी,
करव चेत भाई,धरव ध्यान जी।।
किसानी लिखाये,तुहँर माथ मा,
जगत ला चलावव,अपन हाथ मा।
जमाना दिवाना,तुहँर जोश के।
कहाँ काम होवय,बिगर होश के।।
भरव जोश मन मा,सबो आज गा,
उदासी भगाके,करम साज गा।
विधाता जगत मा,तुहँर नाँव हे।
किसानी करइया,नमन् पाँव हे।।
छंदकार - द्वारिका प्रसाद लहरे
कबीरधाम छत्तीसगढ़
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छ्प्पय छन्द - गुमान प्रसाद साहू
माटी हमर मितान, करम मा हवय किसानी।
महिनत हे पहिचान, हवय जी गुरतुर बानी।
बंजर माटी चीर, धान ला हम उपजाथन।
भुइयाँ के भगवान, तभे जी हमन कहाथन।
भेद भाव जानन नही,सबो हमर बर एक हे।
काम हमन करथन उही, लगै जेन हा नेक हे।।
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कुण्डलिया छन्द - गुमान प्रसाद साहू
नाँगर बइला जोड़ के, जावय खेत किसान।
खेत खार ला जोत के, बोंवत हावय धान।।
बोंवत हावय धान, किसानी के दिन आगे,
बरसत पानी देख, सबो के मन हरसागे।
महिनत करय अपार, खपावय दिन भर जाँगर,
जोड़ी बइला फाँद ,खेत मा जोतय नाँगर।।
छंदकार - गुमान प्रसाद साहू ,ग्राम- समोदा (महानदी)
जिला:- रायपुर छत्तीसगढ़
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आल्हा छंद - विरेन्द्र कुमार साहू - किसान
जाँगर तोड़ मेहनत करके , बधथे माटी संग मितान।
असल लाल हे भुँइया के वो , कइथे जेला सबे किसान।।
गार पसीना पाँव पखारय , हे! माटी महतारी तोर।
तोरे सेवा खातिर सहिथे , वो किसान पीरा घनघोर।।
पालय सरी जगत ला जेहर , उपजाके जी चाउँर दार।
जीव लाख चौरासी के हे , सिरिफ किसान ह तारनहार।।
चिरई चिटरा चाँटी मुसवा , पाथे भोजन के भंडार।
बाँटे सबला जिनगी के सुख , हे किसान अइसन रखवार।।
छंदकार : विरेन्द्र कुमार साहू , बोड़राबाँधा(राजिम) , जिला - गरियाबंद (छ.ग.)
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सिंहावलोकनी दोहा छंद - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
मोर मयारू गाँव के,बंदन मोर किसान।
तोर करम ले हे उगे,जग मा नवा बिहान।
जग मा नवा बिहान ला,लाथस तैं हा खोज।
धरती के सिंगार बर,जाँगर पेरे रोज।।
जाँगर पेरे रोज तँय,धरती के बन लाल।
कर्ज गरीबी मा परे,रहे तभो खुशहाल।।
रहे तभो खुशहाल गा,नाँगर बइल मितान।
हाथ तुतारी थामथस,जाँगर हे पहिचान।।
जाँगर हे पहिचान जी,करम बँधे हे हाथ।
पावन माटी धूल ला,तिलक लगाये माथ।।
तिलक लगाये माथ तँय,सदा बढ़ाये मान।
देश धरम बर कर दिये,अपन खुशी कुरबान।।
छन्दकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर, जिला बिलासपुर (छ. ग.)
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कज्जल छंद - रामकली कारे
मानवता बर रहिन एक ,
गोठ सियानी धरिन नेक ,
पाप करम ला दूर फेक ,
मिहनत के रोटी ल सेक ।
चेत लगा के करॅव काम ,
बढ़िया मिलही तभे दाम ,
मॅय किसान सह प्यास घाम ,
कभू करॅव नइ ग आराम ।
झन छोड़व जी दिन ल आज ,
अाघू बढ़ के करव काज ,
सबले सस्ता सुघर राज ,
मिहनत के मुड़ परय ताज ।
छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
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सरसी छन्द - मीता अग्रवाल
माटी के कोरा मा उपजे ,किसम किसम के धान।
अन्न-धन्न भंडार भरय जी,मिहनत करय किसान।।
सुरुज देव ला हाथ जोड़ के,विनती करय दुवार ।
करम प्रधान बनावव मोला, नीक लगय संसार ।।
उठ भिनसरहा फाँदत जावय,बइला गाड़ी खेत।
तत तत तत तत बइला हाँकय ,धरे हाथ मा बेंत ।।
काम बुता कर बासी खावय,तनिक अकन सुसताय।
खेत ख़ार ला बने जतन के,संझा बेरा आय।।
आघू ले जतनात हवय अब ,खेत ख़ार के काम।
निंदई गुड़ई करय कटाई , मशीन दे आराम।।
अंतस चिंता बड़ बाढत हे,नवा तरक्की द्वार ।
होवत हे कमती पशुधन अब , चलत विकास बयार।।
छंदकार - मीता अग्रवाल
रायपुर छत्तीसगढ़
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सोरठा छंद - ज्ञानुदास मानिकपुरी
करम मोर पहिचान,बेटा आँव किसान के।
महिनत मोर मितान,खेतीबारी काम हे।
नाँगर बइला मोर,जिनगी के साथी हवै।
रोज कमाथँव जोर,पेर पेर जाँगर इहाँ।
खून पसीना माथ,नदियाँ जस धारी बहय।
फोरा परगे हाथ,पाँव घलो छाला परें।
हरियर खेती देख,हिरदै हरषाथे गजब।
हमर भाग्य के लेख,गढ़ै विधाता हा इहाँ।
गहूँ चना अउ धान,लहरावत राहेर हे।
खुश हे देख किसान,हरियर खेती ला अपन।
छंदकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कवर्धा
जिला- कबीरधाम (छ्त्तीसगढ़)
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सरसी छंद गीत - श्रीमती आशा आजाद
ए भुइयाँ मा देव सही हे,सुनलौ हमर किसान।
भूख प्यास के ये मिटोइयाँ,धरती के भगवान।।
मिहनत करके देवय हमला,भरय अन्न भंडार।
उपजावत हे साग अन्न ला,एखर ले संसार।
घर बइठे हम भोजन पाथन,इही हवय जी सान।
ए भुइयाँ मा देव सही हे,सुनलौ हमर किसान।।
आज बड़ा व्याकुल हे जानौ,दुख हा बड़ तड़पाय।
करजा मा बुड़गे हावय जी,पीरा नही मिटाय।
चुप बइठे सरकार आज तो,तँग खेती ले मान।।
ए भुइयाँ मा देव सही हे,सुनलौ हमर किसान।।
करजा जब अब्बड़ हो जाथे,बेचत हावय खेत।
फाँसी मा झूलत हावय सब,तभो करै नइ चेत।
भूख प्यास ले निसदिन मानौ,छूटत इँखर परान।
ए भुइयाँ मा देव सही हे,सुनलौ हमर किसान।।
काला बेचय काला खाये,नही किसानी मोल।
हरलौ दुख पीरा ला जम्मो,सुनलौ सबके बोल।
सुखी रहय जम्मो किसान मन,दयँ इनला सम्मान।
ए भुइयाँ मा देव सही हे,सुनलौ हमर किसान।।
छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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कज्जल छंद - श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
भुँइया के बेटा किसान।
खेती मा देथस धियान।
उपजाथस सोनहा धान।
कारज हे सबले महान।
धन धन जगपालक किसान।
अंतस मा नइहे गुमान।
तोर दया जिनगी परान।
तहीं असल देश के मान।
जब ले तैं उपजाय अन्न।
नइहे जी कोनो विपन्न।
करे कड़ाही छनन छन्न।
खाके जन मन हे प्रसन्न।
छन्दकार - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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कज्जल छंद - चित्रा श्रीवास
हावय सबके ये मितान
मोर देश के गा किसान
नाँगर धरे रोज बिहान
जाथे खेत चतुर सुजान।।
बूता करें जांगर तोड़
रात दिन के चिंता छोड़
बादर पानी घाम मोड़
भुइयाँ पूजे हाथ जोड़।।
देथे सबला अन्न धान
बेटा भुइयाँ के महान
पाथे सबो जीवन दान
सबके हवे ये भगवान।।
छन्दकार - चित्रा श्रीवास
कोरबा छत्तीसगढ़
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छप्पय छन्द - डॉ. तुलेश्वरी धुरंधर
पानी बने दमोर, बने जी बादर छाये।
खेती करबो जान,बतर अब सुघ्घर आये।।
बिजहा लाबो आज ,खेत मा बगरा देबो।
रोपा बोता डार ,फसल ला बढिहा लेबो ।।
खेत बने चतवार के,खातू माटी डार के।
करगा बूटा हेर के ,नरवा रुंधव खार के।।
छन्दकार - डॉ तुलेश्वरी धुरंधर ,अर्जुनी बालोदाबाजर (छत्तीसगढ़)
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लावणी छंद- अशोक धीवर "जलक्षत्री"
गाँव खेत मा जाके देखव, रोवत हे किसान मन हा।
सबके तन बर अन्न उगाथे, दुबरागे खुद के तन हा।।
लदगे कर्जा मा किसान हा, चिंता मा लेवत फाँसी।
तभो दोगला नेता मन ला, आवत हे अड़बड़ हाँसी।।
कतका मिहनत करथे ओमन, तब मिलथे खाना हमला।
देख कैमरा लगा खेत मा, नोहय ये घर के गमला।।
जाँगर टोर कमाथे ओमन, करम ल पूजा कहिथे जी।
का ठंडा का गरमी बरसा, तड़पत दुख ला सहिथे जी।।
भुँइया के भगवान किसनहा, ओकर दुख के ध्यान धरव।
"जलक्षत्री" हा हाथ जोड़ के, कहे सबोझन मान करव।।
छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
तुलसी ( तिल्दा नेवरा)
जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़)
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मोद सवैया - मनीराम साहू 'मितान'
खूब कमाय किसान सबो पर हाथ कहाँ भाई कुछ आथे।
बादर हा बरसै नइ जी बरसै जब वो बिक्टे बरसाथे।
जाय सुखाय बिना जल के सह या बरसा ले वो सर जाथे।
मौसम ठीक रहै त कभू चट कीट पतंगा हा कर जाथे।
छूटय गा नइ संग कभू करजा रइथे मूड़ी लदकाये।
ले उँन पावयँ तो नइ जी चिरहा पटकू ले काम चलायें।
लाँघन गा रहि जाय घलो उँन भाग म बासी पेज लिखाये।
पालनहार कहायँ भले उँन रोज गरीबी भोग पहायें।
घूमयँ जी उघरा लइका मन पाँव कहाँ जूता हर होथे।
आड़ किसानन ले बड़का मन स्वारथ रोटी ला बड़ पोथें।
ध्यान कहाँ रइथे ककरो सरकार घलो संसो बिन सोथे।
हार जथें बपुरा मन हा अउ जा तब फाँसी आप अरोथें।
छंदकार- मनीराम साहू 'मितान'
कचलोन (सिमगा )
जिला बलौदाबाजार भाटापारा
छत्तीसगढ़ 493101
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चौपाई छन्द - दुर्गा शंकर इजारदार
कतका गुन ला गाँव मैं ,भैय्या मोर किसान,
जय जय जय जय तोर हे ,भुइयाँ के भगवान।।
खून पसीना खूब बहावय ,सब्बो बर जी अन उपजावय ,
का दिन हे अउ का हे राती ,बरथे वो दीया कस बाती ।।
बुता काम के संग मितानी ,धरम करम हे खेत किसानी ,
भुइयाँ के चीरय वो छाती ,अन निकलय तब तो ममहाती ।।
गैंती राँपा हँसिया नाँगर ,संग उँखर वो पेरय जाँगर ,
ना पानी ना लागय सर्दी ,लागय ना तो ओला गर्मी ।।
दुनिया भर के वो अन दाता ,भुइयाँ ला माने जी माता ,
जब ओहर गा अन उपजाथे ,तब तो जीव पेट भर पाथे ।।
छंदकार - दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़(मौहापाली)
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चकोर सवैया - कौशल कुमार साहू
धान गहूँ सरसो अरसी धनिया ममहावय होत बिहान ।
मूँग उरीद चना बटरी तिंवरा अँकरी सिलहोय किसान।
खाँद म नाँगर खेत म जाँगर सूरज संग बदे ग मितान।
पेट भरे जग मा सबके तुँहला कहिथे तभहे भगवान ।।
छंदकार - कौशल कुमार साहू
ग्राम/पोस्ट :- सुहेला
जिला:- बलौदाबाजार -भाटापारा
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दोहा छन्द - सुधा शर्मा
माटी के बेटा हरय,नाँगर खेत चलाय।
धरती छाती चीर के,अन सोनहा उगाय।।
मिहनत करे किसान हर,बहत पसीना जाय।
सहिथे पानी घाम ला,तब खेती हरियाय।।
कोड़इ निंदइ मा लगे,पिचके हावय पेट।
बाँह आस के भोरहा,हवँय कमावत खेत।।
परिया परिया तोड़ के,धनहा करे किसान।
भरे पेट संसार के,धरती के भगवान।
जन जन के कोठी भरे,जुच्छा खुद रहि जाय।
लागा बोड़ी मूड़ गुरु, फाँसी मा झूलाय।।
किसिम किसिम के लेत हैं फसल ये नवा चार।।
नवा नवा सुबिधा घलो,देवत हे सरकार।
दँउरी बेलन अब नहीं ,टैक्टर टाली आय।
होगे बूता गा सरल,खातू कचरा पाँय।
कभू गिरे पानी अबड़,कभू बादर टँगाय।
मौसम के सब रंग हा,देथे गा रोवाय।
थोरिक मा खुश हो जथे,सपना देखे आन।।
बढ़ोतरी के मूल सब,जग मा हवे महान।
धरती के बेटा हरे,जग के पालन हार ।
बिनती हे भगवान से,सुखी रहे संसार ।
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
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दोहा छंद - पोखन लाल जायसवाल
पेट भरइया हच तहीं, करथच सबके चेत।
मिहनत करथस रात दिन, छीत पछीना खेत।।१
हिजगा-पारी छोड़ के, करथस खेती-खार।
काम -बुता मा मन लगा, सहिथस सबके भार।।२
तोला साहूकार मन, चीथ-चीथ के खाय।
दिन बादर ला जान के, घेरी-भेरी आय।।३
कोन तोर चिंता करय, चिटिक समझ नइ आय।
हितवा बने किसान के, चिंता कोन उठाय।।४
जानय सबझन बात ए, मिहनत हे अनमोल।
मिलय नहीं काबर कभू, सोन बरोबर तोल।।५
करजा-बोड़ी मा लदे, रोथे रोज किसान।
मिलही वाजिब दाम जब, होही तभे बिहान।।६
लहू पसीना गार के, खेती करय किसान।
पीके लहू गरीब के, धनहा उपजे धान।।७
राहय सब कोठी भरे, राहय सब खुशहाल।
मिहनत के परसाद मा, होवय मालामाल।।८
छंदकार:पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह (पलारी)
जिला-बलौदाबाजार भाटापारा छ.ग.
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गीतिका छंद - आशा देशमुख (गीत)
हाँथ जोड़व मुड़ नवावँव ,भुइँया के भगवान हो।
गुन तुँहर कतका गिनावँव ,कर्म पूत किसान हो।
हाँथ मा माटी सनाये ,माथ ले मोती झरे।
सब किसनहा सुन तुँहर ले ,अन्न के कोठी भरे।
घाम जाड़ा शीत तुँहरे ,मीत संगी जान हो।
गुन तुँहर कतका गिनावँव ,भूमि पूत किसान हो।1।
हे जगत के अन्नदाता ,मेटथौ तुम भूख ला।
मेहनत कर रात दिन फेंकव अलाली ऊब ला।
नीर आँखी मा लबालब ,सादगी पहिचान हो।
गुन तुँहर कतका गिनावँव ,कर्म पूत किसान हो।2।
आज तुँहरे दुख सुनैया ,नइ मिलय संसार मा।
सब अपन मा ही लगे हे ,एक होय हज़ार मा।
ये जगत के आसरा हव ,दीन जीव मितान हो।
गुन तुँहर कतका गिनावँव,भूमि पूत किसान हो।3।
छन्दकार - आशा देशमुख
कोरबा छतीसगढ़
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सरसी छन्द - नमेंद्र कुमार गजेंद्र
जांगर टोरत करँव किसानी,मँय हर हरँव किसान।
खून पसीना गार उगाथौं,सोन बरोबर धान।।
करथौं मँय हर पालन पोषन,मानत सबो ल एक।
कँवरा सब के मुँह डालत,करँव काम बस नेक।।
लोहा कस मँय करिया बेटा,भू के करँव सिंगार।
बेर कुबेरा नांगर धर के,जोंतव पूरा खार।।
मोर गोड़ हे दर्रा हनगे,बोहावत बड़ खून।
देख घाव के पीरा काबर,छितत हवो सब नून।।
नइ मांगव मँय सोना चाँदी, नइ तो हलवा खीर।
करँव किसानी जीयत भर ले,बन माटी के वीर।।
छन्दकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही-बालोद
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सुमुखी सवैया - अरुण कुमार निगम
किसान उगाय तभे मिलथे , अन पेट भरे बर ये जग ला
अजी सुध-चेत नहीं इनला, धनवान सबो समझें पगला
अनाज बिसा सहुकार भरे खलिहान , किसान रहे कँगला
सहे अनियाय तभो बपुरा , नइ छोड़य ये सत् के सँग ला
मुक्ताहरा सवैया - अरुण कुमार निगम
किसान कहे लइका मन ला तुम नागरिहा बन अन्न उगाव
इहाँ अपने मन बीच बसो झन गाँव तियाग विलायत जाव
मसीन बरोबर लोग उहाँ न दया न मया न नता न लगाव
सबो सुख साधन हे इहिंचे धन - दौलत देख नहीं पगलाव
वाम सवैया - अरुण कुमार निगम
किसान उठावय नागर ला अउ जोतय खेत बिना सुसताये
कभू बिजरावय घाम कभू अँगरा बरसे तन-खून सुखाये
तभो नइ मानय हार सदा करमा धुन गा मन-मा मुसकाये
असाढ़ घिरे बदरा करिया बरखा बरसे हर पीर भुलाये
लवंगलता सवैया - अरुण कुमार निगम
किसान हवे भगवान बरोबर चाँउर दार गहूँ सिरजावय
सबो मनखे मन पेट भरें गरुवा बइला मन प्रान बचावय
चुगे चिड़िया धनहा-दुनका मुसुवा खलिहान म रार मचावय
सदा दुख पाय तभो बपुरा सब ला खुस देख सदा हरसावय
छन्दकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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