: छन्न पकैया छंद - श्लेष चन्द्राकर
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Monday, March 29, 2021
होली विशेषांक छंदबद्ध कवितायें-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति
: छन्न पकैया छंद - श्लेष चन्द्राकर
Saturday, March 20, 2021
विश्व गौरैया दिवस विशेषांक-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति
विश्व गौरैया दिवस विशेषांक-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति
गउरइया (दोहा गीत)-मनीराम साहू मितान
गउरइया मन झुंड मा, मोरो अँगना आँय।
मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।
रोजे बिहना साँझ के, बइठँय लिमवा डार।
किंजरँय घर कोठार मा, नइ जावँय गा खार।
भिनसरहा अँधियार मा, चिँव चिँव करत जगाँय।
मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।
फुदर फुदर चारा चरँय, बारी अँगना खोर।
पोरा के पानी पियँय, करत रहँय बड़ शोर।
कउँवा बिलई देख के फुर्र करत उड़ जाँय।
मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।
लगगे हे ककरो नजर, या छिपगे हें राम।
दिखँय नहीं इँन गँय कहाँ,अँगना हे सिमसाम।
संसो मोला खात हे, कोन हवय बिलमाय।
मोहँय मन ला खूब जी, मिलके गाना गाँय।
-मनीराम साहू 'मितान'
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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
परछी अँगना मा फुदक, मन ला लेवै जीत।
वो गौरइया नइ दिखे, नइ सुनाय अब गीत।।
नइ सुनाय अब गीत, सिरावत हे गौरइया।
मारे पानी घाम, मनुष तक हे हुदरैया।
छागे छत सीमेंट, जिया मा गड़गे बरछी।
उजड़त हे बन बाग, कहाँ हे परवा परछी।।
काँदी पैरा जोड़ के, झाला अपन बनाय।
ठिहा ठौर के तीर मा, गौरइया इतराय।।
गौरइया इतराय, चुगे उड़ उड़ के दाना।
छत छानी मा बैठ, सुनावै गुरतुर गाना।
आही गाही गीत, रखव जल भरके नाँदी।
गौरइया के जात, खोजथे पैरा काँदी।।
दाना पानी छीन के, हावय मनुष मतंग।
बाढ़त स्वारथ देख के, गौरइया हे दंग।।
गौरइया हे दंग, तंग जिनगी ला पाके।
गाके काय सुनाय, मौत के मुँह मा जाके।
छिन छिन सुख अउ चैन, झरे जस पाके पाना।
कहाँ खुशी सुख पाय, कोन ला माँगे दाना।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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Thursday, March 11, 2021
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति
भोले भगवान (सरसी छन्द)
जब सागर-मंथन मा निकलिस, "गरल" करिस हे पान।
बिपदा ले दुनिया - ल बचाइस, जै भोले भगवान।।
बिख के आगी तपिस गरा - मा, जइसे के बैसाख।
मरघट-मा जा के शिव-भोला, देह चुपर लिस राख।।
गंगा जी ला जटा उतारिस, अँधमधाय के नाथ।
मन नइ माढ़िस तब चन्दा ला, अपन बसाइस माथ।।
तभो चैन नइ पाइस भोला, धधके गर के आग।
अपन नरी - मा हार बना के , पहिरिस बिखहर नाग।।
शीतलता खोजत - खोजत मा , जब पहुँचिस कैलास
पारबती के संग उहाँ शिव , अपन बनालिस वास।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग
छत्तीसगढ़
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*शिव महिमा - सार छंद*
हर हर भोले..हर हर भोले....2
जय शिव शंकर कैलाशी के,
हाथ जोर गुन गावव।
जउने माँगव देथे बाबा,
मनवांछित फल पावव।।
जगमग जगमग करै शिवाला,
शिव राती मेला मा।
फूल पान नरियर सब धरके,
आथे इहि बेला मा।।
ओम नमः के सुग्घर वंदन,
आवव मिलजुल गावव।
जय शिव शंकर कैलाशी के..........
हर हर भोले..हर हर भोले....2
औघड़ दानी भोले बाबा,
भगतन के हितकारी।
बाघम्बर मृग छाला पहिरे,
गंगाधर त्रिपुरारी।।
बेल धतूरा गांजा फुड़हर,
भइया भोग लगावव।
जय शिव शंकर कैलाशी के...........
हर हर भोले..हर हर भोले....2
बिखहर नाँग देवता गर मा,
सुग्घर माला साजे।
भूत पिसाच सँग मा नाचै,
नंदी पीठ बिराजे।।
डम डम डम डम डमरू बाजै,
नाचव खुशी मनावव।
जय शिव शंकर कैलाशी के.........
हर हर भोले..हर हर भोले....2
छंद साधक - 5
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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शिव महिमा-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।
शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।
चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।
अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।
बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।
भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।
कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।
स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।
हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।
पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।
भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।
बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।
नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।
लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।
शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।
बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।
दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।
सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।
खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।
तोर मोर ला भुला। दे अशीष मुँह उला।
नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।
कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।
काल के कराल के। भूत बैयताल के।
नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।
शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।
शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।
शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।
शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।
शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।
मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।
शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।
शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।
नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।
शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।
शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।
का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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: मनहरण घनाक्षरी
*महाशिवरात्रि के शुभकामना*
लोटा मा गोरस धर ,गंगा जल भर भर,
जय उदघोष कर, शिव ला चढ़ाव जी।
बेल पान हरियर, भेंट करौ नरियर,
महादेव हर हर, भोले धाम जाव जी।
चँउर चढावव धोवा, चंदन बंदन चोवा ,
मिसरी मिठाई खोवा,भोग लगाव जी।
पूरा सब होवे काज,तोरन पताका साज,
महाशिव रात आज,परब मनाव जी।।
कौशल कुमार साहू
सुहेला ( फरहदा )
जिला -बलौदाबाजार भाटापारा
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किरीट सवैया- विजेन्द्र वर्मा
ज्ञान गुणी मनखे सुन लौ धन दान करौ अउ गंग नहावव।
मंगल काज करौ शिव नाम जपौ जिनगी सुख मा ग बितावव।
आज बने शिवरात्रि मनावव पूजव देव ल पुण्य कमावव।
होय अँजोर इहाँ सबके जिनगी अइसे वरदान ग पावव।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव
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आशा देशमुख: भगवान भोलेनाथ के चरण म भाव पुष्प
छंद
बोल बम बम बोल।अब तो हृदय खोल।।
मन मा प्रभु विराज।होय पबरित काज।।
करव प्रभु उपकार।जग तोर परिवार।।
तोर रचय विधान।तँय ग्रंथ अउ ज्ञान।।
तँय सृजन अउ काल।सौम्य अउ विकराल।।
देव मनुज कुबेर।का अंश अउ ढेर।।
शंभु परम पुनीत।तँय भजन अउ गीत।।
भोले अमर नाथ।चंदा बसय माथ।।
चुपरे तन भभूत।शिव सत्य अवधूत।।
तन मरघट रमाय।जोगी शिव कहाय।।
शिव करय विष पान।करथे जग बखान।।
बइठे नयन मूँद।टपके अमृत बून्द।
उमापति सुन बात।करव सुख बरसात।।
जुच्छा हवय हाथ।बिनती सुनव नाथ।।
जो जपय शिव नाम।ओकर बनय काम।।
होय जग भव पार।गंगा बहय धार।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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रामकुमार चन्द्रवंसी: मदिरा सवैया
हे शिवनाथ सुनौ अरजी कर जोड़ खड़े हँव आस धरे।
अन्तस मोर उजास करौ जुग ले मन हे अँधियार भरे।
ये भवसागर के गहरापन देख हवै मन मोर डरे।
हे शिव मोर करौ कलियान सबो जन के तँय कष्ट हरे।।
राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
राजनांदगाँव
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मीता अग्रवाल: सार छंद
शिवशंकर
जटाजूट मा गंगाधारी,कंठ विराजे विषधर।
रुदराक्ष माला मृगछाला,डमरू त्रिशूल धर कर।
भूतनाथ हा भस्मी चुपड़े,रमे हिमालय भोले।
अंग जेविनी गौरी संगी, नंदी हाले ड़ोले।
रूद्र रूप तज शांत रहे तव,काटय दुख के फंदा।
महाकाल के सेवक भैरव,आदि स्वरूपानंदा।
औघड़ दानी अन्तर्यामी,दया मया के नाता।
ओंकार उचारे ब्रम्ह नाद,प्रगटे तुरते दाता।
कैलाश निवासी महादेव,शिव शंभू हिम शंकर ।
भोला भंडारी त्रिपुरारी,देवय मनवांछित वर।
मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
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सार छंद-मनोज वर्मा
बाबा भोलेनाथ नाम गा, तोरे अवघट दानी।
रहे बिराजे घट घट बाबा, नइ हे कुरिया छानी।।
बइठे रहिथस धुनी रमाए, भॉंग धतूरा खाये।
बघवा छाला पहिरे हावस, अंग भभूति लगाये।।
गला सॉंप के माला सोहे, गंगा मूड़ बिराजे।
कान बिछी के बाला झूले, चंदा सिर मा साजे।।
महुरा पी के तॅंय जग हित बर, बने हवस विषधारी।
सबके बिगड़े तॅंही बनाये, महिमा तोरे भारी।।
भॉंग आॅंकड़ा दूध धतूरा, बेल पान गंगा जल।
चंदन चाउर नरियर चढ़थे, सब देथे भारी फल।।
जय जय भोले जय शिव शंकर, जटा म गंगा धारी।
नारी के तॅंय मान बढ़ाये, धरके तन नर नारी।
करे महाशिवरात्री पूजा, वो बड़े भागमानी।
रहे बिराजे घट घट बाबा, नइ हे कुरिया छानी।।
बाबा भोलेनाथ नाम गा, तोरे अवघट दानी......
मनोज कुमार वर्मा
लवन बलौदा बाजार
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कुण्डलिया छंद - श्लेष चन्द्राकर
शिवजी के पूजा करव, सुख मिलथे भरपूर।
नीलकंठ भगवान हा, संकट करथे दूर।।
संकट करथे दूर, दु:ख ला सबके हरथे।
भक्तन के सिरतोन, रिता झोली ला भरथे।।
महादेव कस देव, कोन गा हावय दूजा।
बने लगा के ध्यान, करव शिवजी के पूजा।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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: छंदकार-शोभामोहन श्रीवास्तव,
छंद-अमृतध्वनि
भूतनाथ स्तुति
कंकर कंकर मा बसे , भूतनाथ भगवान ।
शंकर शंकर जे कहे , तरे जगत ले जान ।।
तरे जगत ले, जान उही नर ,जपले हर हर ।
जटा गंगधर ,लपटाये गर, डोमी बिखहर।।
चंदा सिर पर,राख देंह भर,चुपरे शंकर।
हर सबके जर, शिवमय सुंदर,कंकर कंकर।।
डमडम डम कर नाचथे,डमरूधर कैलाश।
झनके ततका दूर के, होथे दुख के नाश।।
होथे दुख के, नाश भूत धर, परबत ऊपर।
बइठे शंकर,पदवी अम्मर, देवय किंकर।।
जोगनिया हर,लठर झुमर कर,नाचे मन भर।
चिहुर भयंकर,हरहर हरहर,डमडम डमकर ।
भोले शंकर के नरी ,सोहत मूँड़ी माल ।
कनिहा छाला बाघ के,दिखथे जइसे काल।।
दिखथे जइसे , काल रूप हर ,लगथे बड़ डर।
सरसर सरसर, साँप देंह पर, चलत भयंकर।।
नंदी ऊपर, बइठे हर हर,परबतिया धर ।
जग के सुख बर,गिंजरे जगधर,भोले शंकर।।
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दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर
अंतस मा शिव ला बसा, करव नीक नित काम।
आप सबो के जगत मा, खच्चित बढ़ही नाम।।
बइला बिच्छू साँप ला, रखथे साथ महेश।
प्रेम करव हर जीव ले, देथे ये संदेश।।
भगवन भोलेनाथ हा, हावय बड़ा दयालु।
भक्तन मन ऊपर सदा, करथे कृपा कृपालु।।
श्रद्धा के दू फूल ले, खुश होथे शिवनाथ।
प्रभुवर हा देवय नहीं, आडंबर के साथ।।
कैलाशी शंकर हरय, जन के तारणहार।
उखँर कृपा ले हे चलत, जग के कारोबार।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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शिव बरात
(सरसी छंद)
परबत राज हिमाँचल के घर ,आवत हवय बरात।
औघड़ शिव भोले जी दूल्हा,हावय अबड़ लजात।।
नंदी बइला ल सम्हराके, बइठे भोलेनाथ।
भूत प्रेत मन हवैं बराती, सबो देवता साथ।।
जटा जूट कलसा कस सोहे, गंगा जल छलकाय।
जेमा कलगी चंदा लटके,गोरा मुँह चमकाय।।
शेषनाग के गर मा माला, बिच्छी चटके कान।
सरी देंह मा भसम ल चुपरे, मरघट्टी ले लान।।
तीन नेत्र हे दू ठन उघरे, माथा एक मुँदाय।
हाथ गोड़ मा कतको हावय, बिखहर मन लपटाय।।
ब्रह्मा जी ह बिनय सुनाइस,मौका बड़ शुभ जान।
चिटिक अपन लीला देखा दौ,हे भोले भगवान।।
हाथ जोर ब्रह्मा जी बोलिस,सुन लौ हमर पुकार।
डर्रागे हें सबो घराती,देखे रूप तुम्हार।।
मुस्काइस भोले भंडारी, लीला रचे अपार।
बिखहर बिच्छी फूल लहुटगें,होगे निक सिंगार।।
दोहा--
बर बलाव होइस तहाँ, भाँवर परगे सात।
खुशी-खुशी होइस बिदा, बितगे आधा रात।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद छत्तीसगढ़
Monday, March 8, 2021
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेषांक- प्रस्तुति- छंद के छ परिवार
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेषांक- प्रस्तुति -छंद के छ परिवार
*त्रिभंगी छंद
(1)
महिमा नारी के,महतारी के,आज चलौ जी,गान करौ।
एखर ले दुनिया,सुग्घर कुरिया,जुरमिल सब झन,मान करौ।।
बहिनी बन आथे,भाई पाथे,राखी बाँधे,हाथ धरै।
सबके दुख हरथे,दुख खुद सहिथे,घर मा सब ले,मया करै।।
(2)
दाई के दरशन,शीतल तन मन,हिरदय भितरी,फूल खिलै।
अउ सरग बरोबर,लगथे जी घर,ओखर अँचरा,भाग्य मिलै।।
पत्नी बन नारी,बन सँगवारी,जिनगी भर वो,साथ रहै।
बनके सँगवारी,पति के प्यारी,सुख दुख ला वो,साथ सहै।।
(3)
नारी गुन गावव,सरग ल पावव,जग फुलवारी,फरै फुलै।
ये दुर्गा काली,हिम्मत वाली,इँखरे पाछू,देव झुलै।।
करथे बड़ ममता,सब बर समता,ममता के ये,खान हवै।
ये जग महतारी,सुन सँगवारी,एखर कारन,मान हवै।।
छंदकार-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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डी पी लहरे: छप्पय छंद
नारी मन के पार,कभू कोनों नइ पावँय।
महिमा इँखर अपार,सबो जन गुन ला गावँय।
बेटी,बहनी रूप,मया ममता महतारी।
भउजी,काकी,सास,मयारू होथें भारी।
इँखरे ले संसार हे,इँखरे ले परिवार जी।
दया मया भंडार हे,नारी सुख के द्वार जी।।
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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रोला छंद-जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: नारी शक्ति
महिला मनके मान, सबे बर बरकत लाही।
बनही बिगड़े काम, सरग धरती मा आही।
दया मया के खान, हरे बेटी महतारी।
घर बन खेती खार, सिधोये सब ला नारी।।
जनम जनम रथ हाँक, बढ़ाये आघू जग ला।
महिनत कर दिन रात, होय अबला अब सबला।
जग के बोहै भार, तभो मुँह हँसी ठिठोली।
काटे दुक्ख हजार, बोल मधुरस कस बोली।
दुख पीरा के नाम, जुड़े हे नारी सँग मा।
गहना गुठिया राज, करे नित आठो अँग मा।
गहना जेखर लाज, हरे कहि जग भरमाये।
वो नारी अब जाग, भेस ला असल बनाये।
सुघराई के देख, लगे परि-भाषा नारी।
मिट जाये सब आस, उहाँ बर आशा नारी।
बेटी बहिनी बाढ़, बने पत्नी महतारी।
दू घर के सम्मान, बढ़ावै सब दिन नारी।।
नौ महिना ले भार, सहै बाबू नोनी के।
जग ला दै बढ़वार, दरद दुख मा खुद जी के।
सींच दूध के धार, बढ़ायवै बेटा बेटी।
नारी ममता रूप, मया के उघरा पेटी।।
बेटी बेटी शोर, सुनावै अड़बड़ भारी।
तब ले बेटी रोय, हाय कइसन लाचारी।
नारी हे नाराज, राज घर बन का बड़ही।
रूप ज्ञान गुण खान, कभू नइ होवै अड़ही।।
कदम मिलाके आज, चले सब सँग मा नारी।
जल थल का आगास, गढ़े बन महल अटारी।
देखव सब्बे छोर, शोर हे नारी मनके।
देवय सुख के दान, शारदे लक्ष्मी बनके।।
बइरी मनके नास, करे दुर्गा काली कस।
घर बन के रखवार, बगइचा के माली कस।
होवय जग मा नाम, सदा हे तोरे मइयाँ।
तैं देवी अवतार, परौं नित मैहर पइयाँ।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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*सूर्यकांत गुप्ता कांत
सँसकार शिक्षा बिना, जिनगी बिरथा जान।
मानुस तन हम पाय हन, भाग अपन सहरान।।
नर नारी बिन जगत के, रचना कइसे होय।
कोख म बेटी जान के, मनखे काबर रोय।।
दाई देवी मान के, पूजन पथरा चित्र।
काबर आवन दन नहीं, जग मा बेटी मित्र।।
बेटी मन बढ़ चढ़ के कइसे आघू आइन।
बढ़िया बढ़िया काम करत उन नाव कमाइन।।
रानी लछमी के कुरबानी, कोन भुलाही।
मदर टेरेसा के सुरता कइसे नइ आही।।
दीदी लता कंठ कोयलिया सरस्वती हे।
जस ओकर जग भर मा फइले सबो कती हे।।
अंतरिक्ष के करत कल्पना उँहचो चल दिस।
पँहुच उहाँ वो नाव कल्पना अमरेच कर दिस।।
इंदिरा प्रतिभा विजय लक्ष्मी सुषमा कस हें कइ झन।
काकर काकर नाँव गनावँव, जानत हावव सब झन।।
विज्ञानी, ज्ञानी सत साहित के उन अलख जगाथें।
खेल कूद ब्यापार जगत सँग सबमा नाँव कमाथें।।
अलग अलग कर्तव्य निभाथे, मइके ससुरे बेटी।
सबके सुख दुख मा तो आखिर कामेच आथे बेटी।।
फेर एक बात कइहौं
फेसन संग मरजादा अउ सालीनता अपनालौ।
दुराचार दुष्कर्मी मन ले, बेटी मन ल बचा लौ।।
जम्मो रिश्ता मा घर के तँय लछमी बेटी माई।
मातृ शक्ति ला माथ नवावत देवत हँवव बधाई।।
सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
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दुर्मिल सवैया- विजेन्द्र वर्मा
अब छोड़ दहेज सबो मनखे,करलौ सब काम इहाँ उमदा।
जिनगी सँवरे बिटिया मन के,बढ़ही जस हा तँय मान ददा।
जिनगी सुख मा बढ़िया कटही,पर के दुख ला तँय बाँट सदा।
बनके हितवा बिटिया मन के,धर ले अब तो तँय रोठ गदा।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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चोवाराम वर्मा बादल: *नारी गुन के खदान*
(पद्धरि छंद)
हे नारी बड़ गुन के खदान ।
झन ओला जी कमजोर मान।।
जे करथें हत्या भ्रूण मार।
वो पापी जाहीं नर्क द्वार।।
तैं बेटा बेटी एक जान।।
हे दूनों मा एके परान।।
तब करथें काबरँ भेद भाव।
पुत लकठा पुत्री सँग दुराव।।
घर के धरखँध नारी अधार।
वो सावन के रिमझिम फुहार।।
मन ले जेकर झरथे पिरीत।
माँ गंगा कस पावन पुनीत।।
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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मिनेश साहू: नारी
नारी मा गुण हे बहुत, महिमा कथे पुरान।
तीन देव सेवा करै,सँझा अउर बिहान।।
सँझा अउर बिहान, कहे मा हाजिर होवै।
बिना करे सब काम, नइतो खावै न सोवै।।
कहत मेघ कविराय, करै छिन म बुता भारी।
घर ला सरग बनाए, इही गुनवंतिन नारी।।
मिनेश कुमार साहू
गंडई जिला राजनांदगांव
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मनोज वर्मा:-
नारी गुन के खान जी, महिमा हवै महान।
जेकर कोरा पाय बर, तरसय गा भगवान।।
तरसय गा भगवान, बिस्नु ब्रह्मा शिव शंकर।
बेटा बनके आय, राम कृष्णा प्रभु जी हर।।
गावय वेद पुरान, तोर महिमा महतारी।
यम ले जावय जीत, सती सावित्री नारी।।
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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मनोज वर्मा
नारी बिन दुनिया हवै, पात बिना जस पेड़।
जिनगी बिरथा जान ले, खेत हवै जस मेड़।।
नारी ममता रूप हे, जग जन सिरजन हार।
नारी से सब होत हे, देव मनुज अवतार।
मनोज कुमार वर्मा
लवन बलौदा बाजार
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आल्हा छंद महिला दिवस की हार्दिक बधाई
घर आँगन को पावन करती,नारी की ममता पहचान।
नारी ताड़न हार नहीं है,करो नहीं उसका अपमान।।
जग जननी नारी होती है,इनको जानो देवी रूप।
ममता शीतल छाया देती, दूर करे हर दुख की धूप।
मंगलकारी नारी होती, करती संकट शोक निदान।।
घर आँगन को पावन करती,नारी की ममता पहचान।।
सुख में नारी साथ निभाती, दुख में बनती तारणहार।
संबल संयम सदा दिखाती, प्रेरक नारी प्राणाधार।।
सभी काम नारी करती है,नारी पर हम सबको नाज।
हीन भावना से क्यों देखें, बदलें अपने झूठ रिवाज।।
रिश्तों की है दौलत जानो, नारी होती सुख की खान।
घर आँगन को पावन करती, नारी की ममता पहचान।।
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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पढ़ा लिखा दव दाई बाबू
पढ़ा लिखा दव दाई बाबू , मॅंय अफसर बन जाहूँ।
जागत आँखी के सपना ला,मनमाफिक सम्हराहूँ।
बड़ दिन होगे चूल्हा चौंका, गोबर अँगना बारी।
मॅंजना-धोना बुता बिटोना, लइका के रखवारी।
नान्हेपन मा बर-बिहाव कमजोरी जनित बिमारी।
जॉंगर-चोट्टी नइ कहिलावौं,सुनॅंव न घुड़की गारी।
मोला कलम किताब धरा दव, महूॅं मदरसा जाहूॅं।
जागत आँखी के सपना ला, मनमाफिक सम्हराहूँ।
कइयों कहिथें पॉंव के जूती, कइयों अबला नारी।
कइयों कहिथें चूल्हा-फूकन,ताड़न के अधिकारी।
मुड़ ऊपर मा दहेज लोभी, ताने फरसा आरी।
रोज ददा पुरखा ल उटकथें,सुनथॅंव मॅंय दुखियारी।
करव भरोसा मोरो ऊपर, पढ़-लिख नॉंव जगाहूॅं।
जागत आँखी के सपना ला, मनमाफिक सम्हराहूँ।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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: दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर
नारी ला सम्मान दव, करव नहीं हिनमान।
लाने बर सक्षम हवय, ओहर नवा बिहान।।
माईलोगिन मन हरय, देवी के अवतार।
ओखर मनके साथ गा, बने करव व्यवहार।।
लड़थे गा हालात ले, कहाँ मानथे हार।
नारी के अंदर हवय, सत मा शक्ति अपार।।
नानी के बिन हो जही, सुन्ना ये संसार।
मूरख मनखे भ्रूण ला, कोख म तँय झन मार।।
समझव गा कमजोर झन, हरय शक्ति के रूप।
माईलोगिन मन सदा, करथें काम अनूप।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैराबाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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सार छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
शीर्षक - कोन कथे नारी अबला हे।
कोन कथे नारी अबला हे, ये हे झूठ लबारी ।
देख उठा इतिहास जगत मा, सबला हावै नारी ।।
इक नारी हे मांँ अनुसूया, सत महिमा बतलाए।
पूत बना के तीन देव ला, पलना खूब झुलाए ।।
इक नारी हे सति सावित्री, तप के बल दिखलाए ।
मरे जीव ला पति के यम ले, जीत जगत मा लाए ।।
इक नारी हे शबरी भीलन, गुरु के अलख जगाए ।
राम -राम कहि गुरुवाणी ला, सच करके दिखलाए ।।
रत्नावली हवै इक नारी, पति ला ज्ञान बताए।
कामी क्रोधी लोभी हर अब, तुलसी संत कहाए।।
इक नारी हे मीराबाई, गुरु रैदास बनाए।
बिख ला पीये राणा के अउ, गिरधर प्रेम रिझाए ।।
लक्ष्मीबाई हे इक नारी, अंग्रेजन ला मारे।
संतावन मा पहली क्रांति, शुरूआत कर डारे ।।
गांँधी इंदिरा ह इक नारी, भारत भाग जगाए ।
पहली महिला पी.एम. बने, दुनिया ला दिखलाए ।।
इक नारी हे प्रतिभा पाटिल, नाम उभर के आए ।
ये भारत के पहली नारी, राष्ट्रपति कहलाए ।।
इक नारी कल्पना चावला, लोगन ला दिखलाए ।
पहली नारी हे भारत के, चांद घूम के आए ।।
गांँधी सोनिया ह इक नारी, भारत बहू कहाए।
यू.पी.ए. सरकार चलाके, दुनिया भर मा छाए।।
कतको नारी फिल्म बना के, गजबे नाम कमाए।
कतको लड़की मन पढ़ लिखके, सब ले अव्वल आथे।
कतको नारी बनके रानी, जिनगी बने बिताथे।।
जतन सबो के करके सुग्घर, घर ला सरग बनाथे।
अउ नारी जेन छंद के छ म, आके नाम कमाथे।।
रचना करके आनी - बानी, सब ला सुघर सुनाथे।।
"जलक्षत्री" हा नइ जानै गा, अउ कतको हे नारी ।
भूल चूक गर होही मोरो, झन देहौ जी गारी।।
छंदकार- अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा-नेवरा) जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़) सचलभास क्रमांक- 9300716740
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,छंद मनहरण घनाक्षरी
*नारी महत्तम*
परबतिया ला देखौ शंभू मेर चेंध चेंध,
जगसुख सेती सब पोथी सिरजाय हे ।
सीता सत ड़टे रहि पति पत राखे बर,
फूलभार अगन ले नाहक देखाय हे।
रतना रानी ला देखौ माया परे तुलसी ला,
राम में रमाय मन लहर लगाय हे।
जब जब देखहू लहुट के रे मनखे हो,
पग पग तिरिया हा जग ला रेंगाय हे ।
शोभामोहन श्रीवास्तव
रायपुर
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दोहा-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
नाम छोड़ नित काम के, पाछू नारी जाय।
हाथ मेहनत थाम के, सरग धरा मा लाय।।
मनखे सब रटते रथे, नारी नारी रोज।
तभो सुनत हे चीख ला, रुई कान मा बोज।
बोज रुई ला कान मा, होके मनुष मतंग।
करत हवैं कारज बुरा, महिला मनके संग।
लेख विधाता का लिखे, दुख हावै दिन रात।
काम बुता करथों सदा, खाथों भभ्भो लात।
नारी शक्ति महान हे, नारी जग आधार।
नारी ले निर्माण हे, नारी तारन हार।
शान दुई परिवार के, बेटी माई होय।
मइके ले ससुराल जा, सत सम्मत नित बोय।
आज राज नारी करे, चारो कोती देख।
अपन हाथ खुद हे गढ़त, अपने कर के लेख।
जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया
बाल्को, कोरबा(छग)
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Friday, March 5, 2021
छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय, छंद शास्त्री,जनकवि कोदू राम दलित जी के 111वीं जयंती के अवसर म, उन ल शत शत नमन,
छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय, छंद शास्त्री,जनकवि कोदू राम दलित जी के 111वीं जयंती के अवसर म, उन ल शत शत नमन,
दोहा छंद
करिस छंद के जौन हा,हमर इँहा शुरवात।
श्रद्धा सुमन चढाँव मैं, माथा अपन नँवात।
साहित के वो देंवता,जनकवि वो कहिलाय।
बगरे बाँढ़य छंद बड़,आस ओखरे आय।
नाँव मिटाये नइ मिटै,करनी जेखर पोठ।
साहित के आगास मा,बरे सियानी गोठ।
पैरी जब जब बाजही,मुख मा आही गीत।
बैरी पढ़ पढ़ काँपही,फुलही फलही मीत।
रचना रिगबिग हे बरत,भले बछर के बीत।
डहर नवा गढ़ते रही,जनकवि जी के गीत।
नाँव अमर जुगजुग रही,जइसे गंगा धार।
जनकवि कोदू राम जी,छंद मरम आधार।
सपना उही सँजोय हे,अरुण निगम जी आज।
पालत पोंसत छंद ला,करत हवे निक काज।
साधक बन सीखत हवै,कतको कवि मन छंद।
महूँ करत हँव साधना,लइका अँव मतिमंद।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)
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दोहा छंद
अलख जगाइन साँच के, जन कवि कोदू राम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
सन उन्नीस् सौ दस बछर, जड़काला के बाद।
पाँच मार्च के जन्म तिथि, हवय मुअखरा याद।
राम भरोसा ए ददा, जाई माँ के नाँव।
जन्म भूमि टिकरी हरै, दुरुग जिला के गाँव।
पेशा से शिक्षक रहिन, ज्ञान बँटई काम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
राज रहिस ॲंगरेज के, देश रहिस परतंत्र।
का बड़का का आम जन, सब चाहिन गणतंत्र।
आजादी तो पा घलिन, दे के जीव परान।
शोषित दलित गरीब मन, नइ पाइन सम्मान।
जन-मन के आवाज बन, हाथ कलम लिन थाम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
जन भाखा मा भाव ला, पहुँचावँय जन तीर।
समझय मनखे आखरी, बहय नयन ले नीर।
दोहा रोला कुंडली, कुकुभ सवैया सार।
किसिम किसिम के छंद मा, गीत लिखिन भरमार।
बड़ ज्ञानी उन छंद के, दया मया के धाम।
जन्म जयंती हे उँकर, शत शत नमन प्रणाम।
रचना-सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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कुंडलियाँ छंद
पुरखा जनकवि के हवय, पुण्य जयंती आज।
श्रीमन कोदू राम जी,करिन नेक जे काज।
करिन नेक जे काज,छंद मा रचना रचके।
सुग्घर के सुरताल, भाव मनभावन लचके।
गाँधी सहीं विचार, रहिंन उन उज्जर छवि के।
अमर रही गा नाम, सदा पुरखा जनकवि के।
आइस बालक ले जनम,पावन टिकरी गाँव।
मातु पिता जेकर धरिन, कोदू राम जी नाँव।
कोदू राम जी नाँव, पिता श्री राम भरोसा।
घोर गरीबी झेल, करिन उन पालन पोसा।
अर्जुन्दा के स्कूल, ज्ञान के गठरी पाइस।
गुरुजी बनके दुर्ग, शहर मा वो हा आइस।
बड़का रचनाकार वो,गद्य-पद्य सिरजाय।
हास्य व्यंग्य के धार मा, श्रोता ला नँहवाय।
श्रोता ला नँहवाय, गोठ वो लिखिन सियानी।
माटी महक समाय, गठिन बड़ कथा-कहानी।
अलहन के जी बात,व्यंग्य के डारे तड़का।
दू मितान के गोठ, करिन वो कविवर बड़का।
श्रद्धावनत
चोवा राम 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
दोहा म जनउला - छंद के छ परिवार की प्रस्तुति
दोहा जनउला - छंद के छ परिवार की प्रस्तुति
दोहा म जनउला
दू काफी हें लाख बर, तन मा शोभा पाय।
येखर बिन दुनिया सरी, अंधकार हो जाय।।(नयन)
मनखे सागर बन नदी, शहर डहर घर गाँव।
सबला बोहे नित रथे, बता काय हे नाँव।।(धरती)
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
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जेखर ले होथे सदा, गाँव गली उजियार।
बिहना बिहना देख के, दूर होय अँधियार।।
(सुरुज)
जेखर ले जिनगी चलै,हवय जगत मा सार।
एक बूँद के आस मा,मर जाथे संसार।।
(पानी)
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम
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दू घर ला तोपे रहें, बइठे अइठे कान।
साफ दिखें दुनिया सरी,संग सियानी जान।।
(चश्मा)
पानी ठंडा हो जमे,कल पुरजा घर साज।
गीला सूक्खा के जतन, घर-घर घुसरे आज।।
(फ्रीज)
मीता अग्रवाल मधुर
रायपुर छत्तीसगढ़
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सब ला देथँव फूल फल, लकड़ी अउ जुड़ छाँव।
भुइँया के गहना हरँव, बता मोर का नाँव।।
( पेड़ )
घटँव बढ़ँव पूरा कभू, होवँव पुन्नी गोल।
चमकँव चमचम रात भर, नाम काय हे बोल।।
( चंदा )
कौशल कुमार साहू
फरहदा (सुहेला),बलौदाबाजार
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टूरी में हा नानकुन , करथँव बड़का काम ।
पार बाँधथँव कूद के , मोर हवय का नाम ।।
(*सूजी*)
जतका एला बाँटबे , उतके बाढ़त जाय ।
चोर न चोरी कर सकय ,ज्ञानी इही बनाय ।।
(*ज्ञान*)
*इन्द्राणी साहू"साँची"
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भारत मा बड़ मान हे, करथे लोग प्रणाम।
बिना फूल के जे फरे, का हे ओकर नाम।।(बर,पीपर)
बालक बिन मुँह कान के, सबला ज्ञान बताय।
मनखे जे संगत करय, ज्ञानी वो बन जाय।।(पुस्तक)
राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी, राजनांदगाँव
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नौ महिना के कुंदरा , रहिके पाँव पसार।
पीरा नदिया ला तँउर , देखे सब संसार ।।
गर्भ
भात कभू खावय नहीं ,कच्चा खाय पिसान।
तीन गोड़ दू हाथ के ,करे रोज अस्नान।।
बेलना पीड़हा
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ
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टिकटिक करथे रोज के, छोट मंझला छोड़।
बारह मा तीनों खड़े, हाथ संग मा जोड़।। ( घड़ी)
करिया दिखथे भीतरी, बहिरी हरियर जान।
करिया खा हरियर सबो, फेंके गा इंसान।।
(इलायची)
पद्मा साहू "पर्वणी"
खैरागढ़ राजनांदगांव
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रच रिच रच रिच बाजथे, जब-जब पाँव उठाव।
चढ़े ऊंट कस रेंग लव, चिखला ले बच जाव।1।
(गेंड़ी)
पुछी दबावत छत करे, छोड़त दाँत गड़ाय।
कतको के बकली निछय, काम बहुत ये आय।
(ढेंकी)
दिलीप वर्मा
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रंग बिरंगी रूप हे, काम पोठ वो आय।
गरमी बरसा मा दिखे, ठण्डी देख लुकाय।
(छता)
बिन बिल के येहर चलै, होय कभू ना गोल।
जिनगी के आधार हे, हावै जी अनमोल।
(आॅंखी)
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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डील डौल ला देख के, सुधबुध जाय भुलाय।
भाला के जी नोंक मा, मनके हाॅकत जाय।।
(हाथी)
पेट भरै पुरखा तरै, गोल गोल आकार।
राजा चाहे रंक हो, सबके हे आहार।।
(रोटी)
रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
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हा हा हू हू वो करे ,जे मनखे हर खाय।
लागय भभकत जोर से,नाक कान फट जाय ।।( मिर्चा )
पन्द्रह दिन वो बाढ़थे,दिन पन्द्रह घट जाय,
रूप धरे जस प्रेयसी,लइका ममा बुलाय।।(चंदा )
दुर्गा शंकर ईजारदार
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पानी ला ठंडा करे , राहय गोल मटोल ।
गरमी मा भावै गजब , बिकथे माटी मोल।।
(मटकी)
तात तात लागे बिकट, चट चट जरथे पाँव।
हरे कोन ओ दिन भला, चलो बतावव नाँव ।।
(गरमी)
बृजलाल दावना
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विधि विधान मात्रा चरण, यति गति पद अउ चाल।
इनकर मेल मिलाप ले,सजे भाव सुर ताल।।
(छंद)
कोरा कागज मा चले,छोड़त छाप निशान।
सूत्रधार लेखन इही, जेन बढ़ावय मान।।
(सम्पादक)
महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव
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1-
बिन आँखी बिन पाँव के, पहुँचे घर घर रोज।
घटना देश विदेश के, देवय पल पल खोज।।
(अखबार)
सत्य अहिंसा के सदा, रहिस पुजारी जौन।
थामे बिन हथियार के, दिस आजादी कौन।।
(महात्मा गाँधी)
इंजी.गजानन्द पात्रे सत्यबोध
बिलासपुर
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1/ झिथरी कस टूरी खडे़,चूँदी ला छरियाय।
सफ्फा जेखर गोड़ हे,धोये काँदा ताय।
2/ अकर चकर चकरी हवे,रसा हमाये पेट।
येला तँय नइ जानबे, तब सौ रुपया रेट।
1/मुरई
2/ जलेबी
शशि साहू
कोरबा
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जेकर बिन नइ जी सकै, ये सारा संसार।
धुकनी होथे बंद अउ, पिंजरा हे बेकार।।
(हवा)
गरमी ला शीतल करे, सबके मन ला भाय।
काँच लगे घर मा टिकै, नाँव बता हे काय।।
(ए सी)
छंदकार- अशोक धीवर "जलक्षत्री"
(साधक सत्र -७)
ग्राम -तुलसी (तिल्दा-नेवरा)
जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़)
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माटी के चोला हवय,आँच परे पक जाय।
गरमी के मौसम रहे,सबके प्यास बुझाय।।
(करसी)
लाली हरियर रंग मा,सबके मन ला भाय।
खावय जुच्छा जेन हा,तेन अबड़ सुसुवाय।।
(मिर्चा)
अजय "अमृतांशु"
भाटापारा(छत्तीसगढ़)
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खाथे कतको पीस के, सब झन येला भाय।
बिन डारे येकर बिना, सब्जी कहाँ मिठाय।।
(पताल)
चार खड़े हे सूरमा, हाथ सबो के जाम।
रस्सी बाँधे हाथ मा,गजब देत आराम।।
(खटिया)
अजय "अमृतांशु"
भाटापारा(छत्तीसगढ़)
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सरसों -परसा फूल हा, मन ला सुग्घर भाय ।
अब्बड़ मउरे आम हा, माह ल कोन बताय ।।
( फागुन माह)
फागुन माह म आय गा, होय रंग बौछार ।
गावय -झूमय गाँव भर, अइसन हरय तिहार ।।
(होली)
ओमप्रकाश साहू "अँकुर "
साधक, सत्र - 12
सुरगी, राजनांदगाँव
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1. में हा करिया हवँ भले,करथँव जग उजियार।
जेहा मोला साधथे,मिटथे सब अँधियार।।
अक्षर
2.बिना गोड़ के रेंगथे,नइतो पहुँचे देश।
देथे बेरा ला बता, कतको येखर वेश।(समय)
चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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देख नानकुन ओ टुरी, कूद कूद करथे नाँच।
प्यास बुझय सबके कहय,मारय झापड पाँच।
उत्तर....... बोरिंग
नीला लुगरा हा बिछे, देखत सुघर लुभाय।
पर्रा भर लाई भरे,चमक गगन मा छाय।
उत्तर ........(तारा)
धनेश्वरी सोनी गुल
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पीतल लोटा मा लगे, लोहा ढकना ताय।
भीतर पथरा तीन हे, नाँव बतावव काय।।
2.
दू अक्षर के नाँव हे, उल्टा सीधा एक।
भइया के आघू लगे, नत्ता सबले नेक।।
1 तेंदू
2 दीदी
वीरेंद्र साहू
राजिम
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लाठी कस लम्बा दिखय,भीतर हा रसदार।
खाये मा अंतस लगय, मीठ मीठ भरमार।(१)
ऊपर मा बइठे रथे,साँप सहीं लपटाय।
रक्षा करथे घाम ले,काय चीज कहलाय।।(२)
खुशियार
पगड़ी
डी पी लहरे
कबीरधाम
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कटय नहीं तलवार ले, जरय न आगी जान।
ऊपर जेखर चढ़ गइस, उतरै कभू न मान।।
( नाम)
कभू ठोस अउ द्रव कभू, धरथे तीनों रूप।
बनै हवा उड़ियाय जे, मिलै कहूँ बड़ धूप।।
(पानी.)
कुलदीप सिन्हा
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1,धार हवे तलवार ले, गोली ले भी तेज।
वार जबर करथे सहज, शान बढ़ाथे जेब।
2,सादा सादा खेत मा, करिया फसल लगाय।
काट काट ये धान ला, कतको पीढ़ी खाय।
1 कलम
2 पुस्तक
मथुरा प्रसाद वर्मा
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जनऊला / दोहा पहेली
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बइठे हावै नाक मा, गोड़ पसारे कान।
घाम देख छइऺहाॅऺ लगे, का हे एहा जान।।
(चश्मा)
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छोटे हे चौकोन हे, सबो फोन ला भाय।
एला हेरे फोन ले, तुरते वो मर जाय।।
(बैटरी)
"""""""""""""”"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
नोनी बाबू हा दुनो, पहिरे ओला जान।
फूल पैंट कस लागथे, बिकट चलत ईमान।।
(जिंस पैंट)
"""""""""""""”""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
छन्द लिखव या गीत जी, बिना धरे नइ आय।
दोहा रोला सोरठा, सबके अलग सुनाय ।।
(लय)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
आत्मा हे ये फोन के, छोटे हे चौकोन।
एकर ले बंधे रथे, डोर मया हर फोन।।
(सीम कार्ड)
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
मिलन मलरिहा
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सज संवर के देख थस, संझा अऊ बिहान।
देख लजाथस रूप ला, कोन हरंव मैं जान।।
दर्पण
लाली पिंयर रंग हे,सबके मन ला भाय।
दुलहिन के श्रृंगार में ,खनक खनक मुसकाय।।
चूरी
छिटही बुँदही हे मिले, नारी करे सिँगार।
बने मुड़ी ला ढ़ाँक के, हाँसत चले बजार।।
लुगरा
चूरी सँग पहिरे बने गहना काँटे दार ।
चाँदी के बनथे सुनौ, भैया गढ़े सुनार।।
ककनी
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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उज्जर ला करिया करय, बिन बोले बतियाय।
पाठ सिखोवय हाथ धर, शस्त्र तको डर्राय।।(कलम)
पहिली हरियर खेत मा, सोन तहाँ लहराय।
उज्जर पानी मा चुरै, सबके भूख मिटाय।।(धान-चाउर)
नीलम जायसवाल
भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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