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Tuesday, August 30, 2022

तीजा परब विशेष छंदबद्ध कविता

 



तीजा परब विशेष छंदबद्ध कविता


तीजा (हरतालिका)

(हरिगीतिका छंद)


तीजा अँजोरी तीज मा,भादो रथे महिना सखा।

जम्मों सुहागिन मानथे,पहिरे रथे गहना सखा।।

शिव पाय बर माँ पार्वती,उपवास ला पहिली करिन।

जानव इही खातिर सबो,नारी इहाँ व्रत ला धरिन।।


पति के उमर लम्बा रहै, दाई - ददा के घर सबो।

करुहा करेला खाय के,व्रत राखथे दिन भर सबो।।

कतको कुँवारी मन घलो,रखथे इही उपवास ला।

सुग्घर मिलै वर सोंच के,मन मा सजाथे आस ला।।


पूजा रचा शिव-पार्वती,अउ गीत बाजा बाजथे।

जम्मों सुहागिन रात भर,सुग्घर फुलेरा साजथे।।

होवत मुँधरहा सब नहा,लुगरा नवा तन डार जी।

व्रत टोरथे मिलके बहिन,करथे सबो फरहार जी।।


रचनाकार;-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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कुंडलियाँ छंद- *पावन तीज तिहार*


बेटी बहिनी बर हवय, तीज सुहागन प्रीत।

पति के लम्बा आयु बर, उपासना के रीत।।

उपासना के रीत, चतुर जन सोंच बनाये।

दाई ददा दुलार, बहिन मइके मा पाये।।

पा शुभ आशीर्वाद, भरे झोली सुख पेटी।

पावन तीज तिहार, मनावव बहिनी बेटी।।


तरसे बहिनी झन कभू, मइके मया दुलार।

लुगरा मा झन बाँधहू, एक कोंख के प्यार।।

एक कोंख के प्यार, कहाथे बहिनी भाई।

सुन्ना राखी पर्व, कभू झन रहय कलाई।।

गजानंद लिख छंद, आँख ले आँसू बरसे।

हवय फूटहा भाग, मया बहनी बर तरसे।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)30/08/22

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बोधन जी: //तीजा के तिहार//


हमर परब तीजा के भइया,

                  संस्कृति बड़ा महान हे।

छत्तीसगढ़ राज मा ये तो,

                 पुरखा के पहिचान हे।।


पौराणिक मान्यता तीज के,

                  भाद्र अँजोरी मास मा।

पार्वती माँ करिन हवै व्रत,

               शिव शंकर के आस मा।।

ये तीजा उपवास निर्जला,

                    सुग्घर रीत विधान हे।

हमर परब तीजा के भइया..........


मइके आ के दाई बहिनी,

                  करै सबो व्रत संग मा।

करू करेला घर-घर खावै,

                   खुशी समावै अंग मा।।

गौरी दाई ले पति खातिर,

                     माँगत ये वरदान हे।

हमर परब तीजा के भइया..........


झूला झूले सखी सहेली,

                   बाँधे आमा डार मा।

बड़ दिन मा सकलाये बहिनी,

                   अमराई के खार मा।।

रात फुलेरा साज बाँध के,

                   गावत शिव के गान हे।

हमर परब तीजा के भइया.............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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: कुण्डलिया छंद---- *तीजा*


परब खास हे ये गजब, हवै अजब के रीत।

भाई घर उपवास अउ, जीजा जी बर प्रीत।।

जीजा जी बर प्रीत, रही निरजला निभाथे।

भाई हे अनमोल, मान बड़ लुगरा पाथे।।

लोटा भरभर पाय, नीर बस इही आस हे। 

सुग्घर भादो मास, अॅंजोरी तीज खास हे।


लाली शुभ सिंदूर निक, टिकली चमके माथ।

लाल महावर पॉंव मा, सजे महेंदी हाथ।।

सजे महेंदी हाथ, परब पबरित शुभ तीजा।

दीदी के उपवास, पाय बड़ जिनगी जीजा।

सोलह कर सिंगार, कान मा पहिरे बाली।

नथली चूरी संग, सजाये मुॅंह मा लाली।।


बिहिनी माई हे सबो, मइके मा सकलाय।

हॅंसी ठिठोली हे करत, करू करेला खाय।।

करू करेला खाय, मीठ हे बोली बतरस।

मया पाग ससुरार, लाय हे मइके मा जस।।

राहय अमर सुहाग, होय जिनगी सुखदाई।

गौरी शंकर पूज, मनावय बहिनी माई।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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 *सार छंद*

*तीजा*


हाय हाय रे बइरी तीजा, फेर घलो तँय  आगे।

बिना सुवारी घर हा मोला, घर जइसे नइ लागे।।


घर के जम्मो बुता परे हे,  कइसे करके होही।

बरतन भाँड़ा सबो परे हे, कोन माँजही धोही।।


झाड़ू पोंछा घलो परे हे, माथा हा चकरावय।

साग भात राँधे नइ आवय, नहीं समझ कुछ आवय।।


खेत खार नींदे के बाँचे, वोला कोन कमाही।

कोन जनी ये तिजहारिन हर,कतका दिन मा आही।।


बहिनी मन बर लुगरा कपड़ा, कइसे करके लेहूँ।

पइसा कौड़ी काहीं नइहे, सेठ ल काला देहूँ।।


तीजा हा गा तेल निकाले, हावय जी दुख भारी।

मरना हावय 'प्यारे' हमरो, घर सुन्ना बिन नारी।


*प्यारेलाल साहू*

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     (  तीजा तिहार  ) सार छंद


तीजहारिन ह चलदिस तीजा,

               मरना हो गे मोला।

दिन गुजरत हे लाँघन भूखन,

               हावे तरसत चोला।।ध्रुव पद।।

साग ह होगे सिट्ठा संगी,

               भात ह होगे गिल्ला।

झाड़ू पोछा बर्तन पानी,

                होगे कनिहा ढिल्ला।

रांधे बर तो आवे नइ जी,

                कभू ग मोला रोटी।

भूख प्यास के मारे अब तो,

                 अँइठत हावे पोटी।

रोज रोज में खावत हाववं, 

                   सत्तू के गा घोला।।1।।

छटपट छटपट में रात कटे,

                   लागय दिन मा सुन्ना।

कइसे कर के समय गुजरही,

                   मोला होगे गुन्ना।

बारे बरय न लकड़ी छेना,

                   अब्बड़ ग गुंगवाथे।

गदगद नरवा जइसे अब तो,

                    आँसू हा चुचवाथे।

अबड़ अकन सकलागे कपड़ा,

                     धोही कोन ग वोला।।2।।

फोन घलो जी बाज बाज के,

                     जीव ल मोर जलाथे।

जाये हावे मइके मा अउ,

                      अब्बड़ के गोठियाथे।

पूछत रहिथे बने बने सब,

                       बने कहाँ ले पाबे।

बने जभे गा होही दिन हा,

                       जब तैं घर मा आबे।

खोल बने हों आँखि तीसरा,

                       बम बम बम शिव भोला।।3।।


कुलदीप सिन्हा "दीप"

कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी

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तीजा के हार्दिक बधाई।

🙏🌹🙏


तीजा

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(कुण्डलिया)


मइके मा आके रथे , बेटी तीज उपास।

छत्तीसगढ़ी संस्कार के, झोली भरे उजास।

झोली भरे उजास, मनावै औघड़दानी।

माँगै वो वरदान, सुखी हो पति जिनगानी।

लहुट जथे ससुरार,मया के डोर लमाके।

बेटी पाथे मान, सदा मइके मा आके।


पोरा तीज तिहार हा, हमर हवै पहिचान।

जम्मों बहिनी अउ बुआ, पाथें सुग्घर मान।

पाथें सुग्घर मान, भेंट लुगरा के मिलथे।

करके निक सिंगार, फूल कस बेटी खिलथे।

सरग लोक ले ऊँच, आय मइके के कोरा।

छत्तीसगढ़ के शान, परब ये तीजा पोरा।


भाँचा भाँची आय हें, दिन भर उधम मचायँ।

नाना नानी ला अपन, बंदर नाच नचायँ।

बंदर नाच नचायँ, ममा के चढ़ें पिठइया।

छोटू हा लेवाय, जिद्द बड़ करके खउवा।

कुलकत हे घर द्वार, प्रेम के पी रस साँचा।

हाबय गरब गुमान, राम जी हमरो भाँचा।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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तीजा के बिहान दिन

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तीजा परब बिहान दिन , सब्बो घर सत्कार।

तिजहारिन मन हें करत ,घूम घूम फरहार।

घूम घूम फरहार, बने हे रोटी पीठा।

मन भावै नमकीन,अइरसा पपची मीठा।

करू करेला साग, बजै कुर्रुस ले बीजा।

बाँटै मया दुलार, परब पावन हे तीजा।


जीजा लुकरू आय हे, बड़े बिहनिया आज।

चल झटकुन जाबो कथे, नइये चिटको लाज।

नइये चिटको लाज, हवै दीदी गुसियाये।

काहै जाबो काल, आज बस रात पहाये।

 करथच तैं हलकान ,  भेज के मोला तीजा।

करत हवै मनुहार, सुने ये ताना जीजा।


झोला-झँगड़ी जोर के, बेटी हे तइयार।

सुग्घर तीज मनाय हे, फिरना हे ससुरार।

फिरना हे ससुरार, निंदाई हे पछुयाये।

लइका जाही स्कूल, वोकरो फिकर सताये।

जोहत होही सास, चेत सबके हे वोला।

चल ना कहिस दमाँद ,टँगागे सइकिल झोला।


गणराजा आये हवै ,परब चतुर्थी आज।

करबो पूजा पाठ हम, होय सफल सब काज।

 होय सफल सब काज, देश मा सुख भर जावै।

मिटै गरीबी रोग, खुशी घर घर मा छावै।

उन्नति चारों खूँट, बजै सुमता के बाजा।

बढ़ै हिंद के शान, करै किरपा गणराजा।


चोवा राम  'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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: तीजा (हरितालिका)


*दोहा छंद*


आज परब हे खास जी, तीजा तीज तिहार ।

आथे मइके मा बहिन,  पाथे मया दुलार ।। 


भादो महिना आय जी,  पुरखौती  ये  रीत ।

सबो सुहानिन मन सदा, गावँय सुमधुर गीत ।।


रखथे जी उपवास ला,  पति के सेवा जान ।

पावन हे तीजा परब,  मिले सुघर वरदान ।।


आस लगाके व्रत करै, करू करेला ला खाय ।

जप पूजा अउ ध्यान ले, मुँह माँगे वर पाय ।।


पहिने लुगरा पोलका, टिकली चमके माथ ।

चूरी  कंगन  हे  सुघर,  लगे  महेंदी  हाथ ।।


घर-घर मा खुरमी बरा, सुघर बने हे आज ।

शिव भोला ला तँय मना, पूरन होवय काज ।।


*मुकेश उइके "मयारू*

*छंद साधक- सत्र 16*

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: सार छन्द गीत -तीजा २९/०८/२०२२


जावत हावॅंव मइके जोड़ी, बने पेट भर खाबे।

तीजा के होवत बिहान दिन, तॅंय लेगे बर आबे।।


दीदी- बहिनी मन सॅंग मिलहूॅं, मइके मा मॅंय जाके।

अउ तोरे बर तीजा रइहूॅं, करू भात ला खाके।।


तोरो बहिनी देखत होही, जाके झटकुन लाबे।

तीजा के होवत बिहान दिन, तॅंय लेगे बर आबे।।


चाउर दार चना के बेसन, रख दे हावॅंव मॅंय हा।

धनिया मिरचा सब्जी मन ला, ला के देबे तॅंय हा।।


रोटी-पीठा गुलगुल भजिया,गरम-गरम बनवाबे।

तीजा के होवत बिहान दिन, तॅंय लेगे बर आबे।।


दीदी मन बर साड़ी लेबे, भाॅंचा मन बर कपड़ा।

कभू-कभू तो आथे घर मा, झन करबे तॅंय लफड़ा।।


लइका मन ला चेत लगाके,रखबे बने खवाबे।

तीजा के होवत बिहान दिन, तॅंय लेगे बर आबे।।


 ✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम"

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 सार छंद गीत- पोरा ३०/०८/२०२२


माटी के जाॅंता पोरा अउ, नॅंदिया बइला आगे।

हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।


बेंचत हवय कुम्हारिन मन हा,ओरी ओर लगाके।

बीच- गली अउ पारा- पारा, गाॅंव- गाॅंव मा जाके।।


रोजी-रोटी चलथे सुग्घर, दुख पीरा बिसरागे।

हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।


घर मा लाके करथें पूजा, नरियर फूल चढ़ाथें।

चीला रोटी बरा राॅंध के,बइला तीर मढ़ाथें।।


खेले बर सॅंगवारी मन सॅंग, लइका मन जुरियागे।

हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।


दीदी मन हा पोरा धरके, जघा-जघा मा पटकय।

भइया मन हा खाये बर जी, सोंहारी ला झपटय।।


खेलय-कूदय नाचय-गावय, मन मा खुशी समागे।

हमर गाॅंव के तीजा पोरा, अब्बड़ सुग्घर लागे।।


 ✍️ओम प्रकाश पात्रे "ओम"

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: तीजा तिहार (हरितालिका)


हरिगीतिका छंद


*भादो अँजोरी पाख मा, आथे सुघर ये रीत गा।*

*तीजा परब के मान बर, गाथें मया के गीत गा।।*

*बहिनी सबो सकलाँय के, तीजा रहँय उपवास जी ।*

*पति के उमर लम्बा करै, रखथें अबड़ कन आस जी ।।*


*भोले बबा के ध्यान कर, तँय रख सदा बिंसवास जी ।*

*आथे बछर मा एक दिन, तीजा परब हा खास जी ।।*

*पहिरे नवा लुगरा बहिन, पावन हवय त्यौहार हा ।*

*करले अपन कारज सफल, सुग्घर रहय परिवार हा ।।*


*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम-चेपा, पाली, जिला-कोरबा(छ.ग.)

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मरना हे तीजा मा


सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


लइका लोग ल धरके गय हे,मइके मोर सुवारी।

खुदे बनाये अउ खाये के, अब आ गय हे पारी।


कभू भात चिबरी हो जावै,कभू होय बड़ गिल्ला।

बर्तन भँवड़ा झाड़ू पोछा, हालत होगे ढिल्ला।

एक बेर के भात साग हा,चलथे बिहना संझा।

मिरी मसाला नून मिले नइ,मति हा जाथे कंझा।

दिखै खोर घर अँगना रदखद, रदखद हाँड़ी बारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।1।


सुते उठे के समय बिगड़गे,घर बड़ लागै सुन्ना।

नवा पेंट कुर्था मइलागे, पहिरँव ओन्हा जुन्ना।

कतको कन कपड़ा कुढ़वागे,मूड़ी देख पिरावै।

ताजा पानी ताजा खाना, नोहर हो गय हावै।

कान सुने बर तरसत हावै,लइकन के किलकारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।2।


खाय पिये बर कहिही कहिके,ताकँव मुँह साथी के।

चना चबेना मा अब कइसे,पेट भरे हाथी के।

मोर उमर बढ़ावत हावै,मइके मा वो जाके।

राखे तीजा के उपास हे,करू करेला खाके।

चारे दिन मा चितियागे हँव,चले जिया मा आरी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

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Saturday, August 27, 2022

पोला परब विशेष छंदबद्ध रचना



 पोला परब विशेष छंदबद्ध रचना

*पोरा के परब - हरिगीतिका छंद*


भादो अमावस मा इहाँ,पोरा परब आथे सखा।

खुरमी अनरसा बोबरा,सब ठेठरी खाथे सखा।।

भगवान  आशुतोष के, नंदी  सवारी साथ मा।

करथे सबो पूजा इहाँ, फल फूल  थारी  हाथ मा।।


सुग्घर परब होथे इही,अउ गर्भधारण धान के।

देथे  सधौरी  रात  मा, देवी  बरोबर  मान के।।

दीया चुकलिया खेलथे,लइका सबो घर द्वार मा।

बइला  सजाके  दउड़थे, पोरा इही  त्यौहार मा।।


माटी बने गाड़ा सिली,लेके जहुँरिया खोर जी।

जाँता पिसनही खेल मा,करथे सबो मिल सोर जी।।

मिलके सबो संगी इहाँ,पोरा पटकथे गाँव मा।

खो-खो कबड्डी खेलथे,जुरियाय सब बर छाँव मा।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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===पोरा====


भादो आधा बीत गे, धान म आगे पोर।

पोरा परब मनात हे, धान-कटोरा मोर।।


सुख अउ दुख दुन्नो बखत, जुरियाथे परिवार।

हरय इही व्यवहार हा, जिनगी के आधार।।


महतारी भेजे हवय, बिटियन बर लेवाल।

मइके मा दू चार दिन, बेटी रहय निहाल।।


पहुना बन पोरा परब, पहुँचे हावय द्वार।

गाँव शहर मा होत हे, बड़ आदर सत्कार।।


खुशी मनावत गाँव हे, कुलकत हावय खोर।

मइके के मन हे मगन, जय हो पोरा तोर।।


पोरा के चलथे पता, गर्भ धना गय धान।

प्रथा सधौरी के हमर, मन ले पाथे मान।।


अरसा खुरमी ठेठरी, चीला चउँर पिसान।

बनथे हमर किसान घर, चरिहा भर पकवान।।


हे अनमोल किसान बर, नन्दी के श्रमदान।

भोग लगा पूजा करय, भुइयाँ के भगवान।।


मात-पिता शिव-शक्ति ले, अरज करन कर जोर।

सुख सम्मत दय माँग लन, सतफल नरियर फोर।।


रचना- सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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 कुण्डलिया छंद- तीजा पोरा


तीजा पोरा के परब, घर घर गाँव मनाँय।

बारा बछर तिहार ये, बहिनी मन सकलाँय।।

बहिनी मन सकलाय, मया धर मइके आथें

किसिम किसिम पकवान, घरो घर लोग बनाथें।

कर सुरता माँ बाप, आँख भर करे निहोरा।

धान कटोरा मोर, मनावत तीजा पोरा।।


झमझम लुगरा ला पहिन, बहिनी निकलय खोर।

आरा पारा घर गली, होवत हावय शोर।।

होवत हावय शोर, मयारू बहिनी आये।

बइठ सहेली चार, अपन सुख दुख बतलाये।

गूँजत हावय गान, बोल शिव भोले बमबम।

भाँची भाँचा खूब, खुशी मा नाचत झमझम।।


आधा भादो के गये, धरय पोटरी धान।

तीजा पोरा ले खुशी, झूमय खेत किसान।।

झूमय खेत किसान, थिरावय बइला नाँगर।

जे दुनिया के पेट, भरे बर पेरय जाँगर।।

व्याकुलता मा डूब, किशन ले पूछत राधा।

बड़ा अभागा दीन, सुखी हे काबर आधा।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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सार छंद-तीजा पोरा


मइके ले अब आही कोनों, करके रखबो जोरा। 

सुध हा मोरो लामे हावै, आगे तीजा पोरा।। 


ददा देख के गदगद होही, खुश सब बहिनी भाई। 

मया दया के होही बरसा, देख फफकही दाई।। 


घर अँगना हा गजब दमकही, सखी सहेली मिलहीं। 

बच्छर भर मा आज सबो के, सुघर चेहरा खिलहीं।। 


हालचाल सब पूछत पूछत, मिलके खुशी मनाबो। 

हमर गाँव के बहिनी माई, एक जगा जुरियाबो।। 


करू भात ला खाये बर जी, घर घर हम सब जाबो। 

नवा बिहनिया शंकर जी ला, आरुग फूल चढ़ाबो।। 


घर घर रोटी पीठा बनही, सुग्घर आनी बानी। 

बरा बोबरा खुरमी चुरही, बइठ चुरोही नानी।। 


पुरखौती के रीत बने हे, तिजहारिन के कहना। 

तिजहा लुगरा हमरो मन के, सबले बड़का गहना।।


विजेंद्र वर्मा

नगरगाँव

जिला-रायपुर

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कुकुभ छंद-पोरा जाँता


सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।

राँध ठेठरी खुरमी भजिया,करे हवै सबझन जोरा।


भादो मास अमावस के दिन,पोरा के परब ह आवै।

बेटी माई मन हर ये दिन,अपन ददा घर सकलावै।

हरियर धनहा डोली नाचै,खेती खार निंदागे हे।

होगे हवै सजोर धान हा,जिया उमंग समागे हे।

हरियर हरियर दिखत हवै बस,धरती दाई के कोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।1


मोर होय पूजा नइ कहिके,नंदी बइला हर रोवै।

भोला जब वरदान ल देवै,नंदी के पूजा होवै।

तब ले नंदी बइला मनके, पूजा होवै पोरा में।

सजा धजा के भोग चढ़ावै,रोटी पीठा जोरा में।

पूजा पाठ करे मिल सबझन,सुख पाये झोरा झोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।2


कथे इही दिन द्वापर युग में,पोलासुर उधम मचाये।

मनखे तनखे बइला भँइसा,सबझन ला बड़ तड़पाये।

किसन कन्हैया हर तब आके,पोलासुर दानव मारे।

गोकुलवासी खुशी मनावै,जय जय सब नाम पुकारे।

पूजा ले पोरा बइला के,भर जावय उना कटोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।3


दूध भराये धान म ये दिन,खेत म नइ कोनो जावै।

परब किसानी के पोरा ये,सबके मनला बड़ भावै।

बइला मनके दँउड़ करावै,सजा धजा के बड़ भारी।

पोरा परब तिहार मनावय,नाचयँ गावयँ नर नारी।

खेले खेल कबड्डी खोखो,नारी मन भीर कसोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।4


बाबू मन बइला ले सीखे,महिनत अउ काम किसानी

नोनी मन पोरा जाँता ले,होवय हाँड़ी के रानी।

पूजा पाठ करे बइला के,राखै पोरा में रोटी।

भरे अन्न धन सबके घर में,नइ होवै किस्मत खोटी।

परिया में मिल पोरा पटके,अउ पीटे बड़ ढिंढोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।5


सुख समृद्धि धन धान्य के,मिल सबे मनौती माँगे।

दुःख द्वेष ला दफनावै अउ,मया मीत ला उँच टाँगे।

धरती दाई संग जुड़े के,पोरा देवय संदेशा।

महिनत के फल खच्चित मिलथे,कभू रहै नइ अंदेशा।

लइका लोग सियान सबे झन,पोरा के करै अगोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।6


छंदकार-जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

पता-बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)


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पोरा(ताटंक छंद)


बने हवै माटी के बइला,माटी के पोरा जाँता।

जुड़े हवै माटी के सँग मा,सब मनखे मनके नाँता।


बने ठेठरी खुरमी भजिया,बरा फरा अउ सोंहारी।

नदिया बइला पोरा पूजै, सजा आरती के थारी।


दूध धान मा भरे इही दिन,कोई ना जावै डोली।

पूजा पाठ करै मिल मनखे,महकै घर अँगना खोली।


कथे इही दिन द्वापर युग मा,कान्हा पोलासुर मारे।

धूम मचे पोला के तब ले,मनमोहन सबला तारे।


भादो मास अमावस पोरा,गाँव शहर मिलके मानै।

हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बेटी माई ला लानै।


चंदन हरदी तेल मिलाके,घर भर मा हाँथा देवै।

धरती दाई अउ गोधन के,आरो सब मिलके लेवै।


पोरा पटके परिया मा सब,खो खो अउ खुडुवा खेलै।

संगी साथी सबो जुरै अउ,दया मया मिलके मेलै।


बइला दौड़ घलो बड़ होवै,गाँव शहर मेला लागै।

पोरा रोटी सबघर पहुँचै,भाग किसानी के जागै।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Friday, August 19, 2022

कृष्ण जन्माष्टमी विशेषांक


कृष्ण जन्माष्टमी विशेषांक
 

: दोहा छंद 

कृष्ण जन्म 


कारी अँधियारी घटा,बरसे बादर जोर।

बंदीगृह के भीतरी  जन्मे नंद किशोर।।


भाद्र पद तिथी अष्टमी, अँधियारी हे रात।

मगन होत वसुदेव जी,हँसे देवकी मात।


देखे जब वसुदेव हा,नैनन बरसे नीर।

तीन लोक के नाथ अब,आगे हरही पीर।।


माता कहिथे देखके,गिरधारी के हाल।

बेटा छोटे रूप धर,चूमौं तोरे गाल।।


रूप चतुर्भुज देख के,होगे मातु निहाल।

शंख चक्र हे हाथ में,आया मामा काल।।


धरके छोटे रूप ला,पारत हे गोहार।

रोवत हावे कँह कहाँ,बड़ किलकारी मार।।


चूमत हे मुख लाल के,छाती मा लिपटाय।

मामा तोरे काल हे,पापी झिन आ जाय।।


 सूपा मा धर लालना,जावत नंद दुवार।

रोवत माता देवकी,ओकर मुहूँ निहार।।


पानी बरसे झर झरर,भींगत हे गोपाल।

लीला धारी साँवरा ,जानत हावे हाल।।


देख दशा गोपाल के,शेषनाग तब आय।

छाया करके शीश मा,मुचुर मुचुर मुसकाय।।


छोटे भाई जान के,हाँसत हे नँदलाल।

बनबे बड़का भ्रात तँय,करबो गजब धमाल।।


आट पाट यमुना बढ़े,चरण छुये के आस।

मुस्कावत हे श्याम जी,पाँव बढ़ावे पास।।


यमुना कहिथे मोहना,जोड़ँव दोंनो हाथ।

पैंया तोर पखार के,होहूँ महूँ  सनाथ।।


पानी जम्मो गै उतर,बने बीच मा राह।

लीला गिरधर जी करे,पाय न कोई थाह।।


छोड़ लाल मथुरा नगर,आथे गोकुल धाम।

लड़की आइस जा कहो,करौ  अपन तुम काम।


हाँसत हाबे कंस हा, मोला मारन हार।

लड़की आइस हे कहे,चले जेल के द्वार।।


झटके बेटी हाथ ले,पटके पथरा मार।

जगदंबा माँ प्रगट हो, कहे बात ललकार।।


मथुरा नगरी मा हवे,तोला मारन हार।

अतलँग जादा मत करो,झन कर अत्याचार।।


केवरा यदु"मीरा"राजिम


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 कृष्ण नाम गुन सुमिरन(चौपाई छंद) 

 

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय ।

तीनो तिलिक गुसैया जय जय।। 


गोकुल धाम रहैया जय जय ।

जसुमति के लरिकैया जय जय।।

नंद हृदय हरसैया जय जय।

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


राधा साँस रटैया जय जय।

बंधन जगत कटैया जय जय ।।

मधुबन रास रचैया जय जय ।

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


मन अंँधियार हरैया जय जय ।

अजगुत करम करैया जय जय।।

बन-बन गाय चरैया जय जय।

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


इन्दर ताप नवैया जय जय।।

माखन लूट खवैया जय जय।

अंँगुरी छत्र छवैया जय जय। 

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


चंदन तिलक लगैया जय जय।

पाग पिरित पगैया जय जय।।

अंतसभाव जगैया जय जय।।

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


धर्म ध्वजा फहरैया जय जय।

संत हृदय सहरैया जय जय।।

ब्रज भुँइया लहरैया जय जय।।

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


जय जय धरमथपैया जय जय। ।

जय जय करमथपैया जय जय। 

बलदाऊ के भैया जय जय।।

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


कालीनाग नथैया जय जय।

गीता के अरथैया जय जय।।

जय जय काम लजैया जय जय।।

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


कृष्णा लाज बचैया जय जय।।

अजगुत सृष्टि रचैया जय जय।।

अधरम संग लड़ैया जय जय। 

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


बिखहर नाग नथैया जय जय ।

अगम अपार अथैया जय जय।।

अनगिन रूप बनैया जय जय।।

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


गीता ज्ञान सुनैया जय जय।

जीव उपकार गुनैया जय जय।।

जय सारथी बनैया जय जय। 

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


सुंदर सृष्टि सजैया जय जय।

बंशी सुघर बजैया जय जय।।

अनगिन खेल रचैया जय जय।।

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


जय जय चक्र चलैया जय जय। 

छाती दुष्ट छलैया जय जय।।

जम्मो जगत पलैया जय जय।। 


रक्सा मार सुतैया जय जय।।

बैरा नाम बुतैया जय जय।।

सबले बड़े लड़ैया जयजय।।

जय जय कृष्ण कन्हैया जय जय।। 


शोभामोहन श्रीवास्तव

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: त्रिभंगी छंद


जय किशन कन्हैया, धेनु चरैया, आठे तिथि मा, जनम धरे। 

यशुदा के लाला, नंद दुलारा, गोकुल नगरी, मगन भरे।। 

छाये खुशहाली, धरके थाली, धरती दाई, पाँव परे। 

मोहन ब्रजवासी , जय सुखरासी, सब भक्तंन के, कष्ट हरे। 


आशा देशमुख

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मत्तगयंद सवैया - कृष्ण प्रेम


हे मुरलीधर तोर मया पगली बन घूमत - घामत हावौं।

काम बुता नइ आज सुहाय मने मन मा अकुलावत जावौं।।

मोहन बाँसुरिया बिन तोर इहाँ सुख ला कइसे मँय पावौं।

हे गिरिराज सुनौ बिनती अब हार थके गुन ला मँय गावौं।।


बोधन राम निषादराज

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: *अमृतध्वनि छंंद*

*कृष्ण जन्माष्टमी*

रहिथें सब उपवास गा, बनथे सब पकवान।

आथे जब जन्माष्टमी, गाथें कृष्णा गान ।।

गाथें कृष्णा, गान सबो झन, ढोल बजाथें।

गली-गली मा, टोली फिरथे, रंग लगाथें ।।

खाँध जोड़ के, ऊपर चढ़थें, पीरा सहिथें।

मरकी फोरत, दही मही ला, खावत रहिथें।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

*सत्र 14*

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 चौपाई छन्द


कृष्ण कन्हैया


आये तिथि शुभ अष्टमी,  लिये कृष्ण अवतार। 

दुनिया ले सब कष्ट मिटे, पाये गीता सार।।


जनम धरे हे किशन कन्हैया। घर घर बाजत हवय बधैया।। 

बलदाऊ के छोटे भइया, मातु जसोदा लेत बलैया।। 


नाचत हें ब्रज के नर नारी। सोन रतन धर थारी थारी। 

झुलना झूले किशन मुरारी। बाजे ढोल मँजीरा तारी।। 


ध्वजा पताका तोरण साजे। गली गली घर बाजा बाजे। 

खुशी मनावैं सबो डहर मा, गाँव गाँव अउ शहर शहर मा।। 


समय आय हे मंगलकारी। भागत हे दुख विपदा कारी। 

 मुस्कावत हे कृष्ण मुरारी। रोग शोक सब भय भव हारी।। 


मन ला मोहत हे नंद लाला। आजू बाजू गोप गुवाला।। 

मातु जसोदा गोदी पाये। मोती माणिक रतन लुटावे।। 


ब्रजनारी मन सोहर गावैं। देवन सबो सुने बर आवैं।। 

बड़े भाग पाए ब्रजवासी। इंखर घर आये सुखरासी।।


दूध दही के धारा बोहय। खुशी मगन शुभ घर घर सोहय। 

लीलाधर के महिमा भारी।  माया रचथे मंगलकारी।। 


सबो डहर नाचे खुशी, भरे मगन आनंद। 

भरे भरे धरती लगय, आये सुषमाकंद।। 



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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*सरसी -क्षन्द* 

 *कृष्णा- भगवान* 


धरती मा जब आइस विपदा, जन्म धरिस भगवान।

दानव मन ला मार भगाइस, गीता के दिस ज्ञान।।

  

चम -चम चम- चम चमकय बिजली, पानी हे विकराल।

घुमर घुमर बादर हा गरजय, आवत हे नँदलाल।।


पानी बाढ़य यमुना में जब, छल छल छलकत जाय।

फन फैलाये छतरी बनके, शेष नाग हा आय।।


रंग रंग के लीला करके, मुच ले देवय हाँस।

राधा -कृष्णा अउ गोपी सब, खेले हावय रास।।


धरे कंश ला मारे बर जब, थर्रा गेहे काल।

सबके रक्षा करते जावय, बोलव जय नँदलाल।।


गीता के उपदेश सुनाइस, रखिस धरम के मान।

नाश करिस जग ले अधर्म के,श्री कृष्णा भगवान।।

 

 

राकेश कुमार साहू 

सारागांव ,धरसींवा रायपुर

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 कुकुभ छंद - नन्द यशोदा के ललना 

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सब सखियन के मरकी फोरे, माखन लूटे अउ खावै।

संग राधिका जमुना तट मा, मुरली ला मधुर बजावै।।


नन्द यशोदा जी के ललना, बड़ सुन्दर श्याम सलोना।

मनभावन हे छवि अति मोहक,  बगरे मुख दही बिलोना।। 


मोर पंख के मुकुट सुघर हे, हीर मोतियन गर माला।

पीत कछौटी कमर बॅधे हे, कानन कुंडल हे बाला।।

 

मुरली मधुर बजाके कान्हा, मधुबन नित रास रचाथे।

बाल ग्वाल अउ गइया गोपी, लीला कर अपन रिझाथे।।


सबके बिगड़े काम बनावै, द्रोपति के लाज बचावै।

दे उपदेश धर्म के कृष्णा, गीता के सार बतावै।।


रामकली कारे 

बालको नगर कोरबा


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लोकछंद- रामसत्ता


विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।

दीन दुखी के डर दुख हरके, धर्म ध्वजा फहराये हो राम।


एक समय देवकी बसदेव के, राजा कंस ब्याह रचाये।

उही बेर मा आकाशवाणी, कंस के काने मा सुनाये।।

आठवाँ सुत हा मारही तोला, सुनत कंस भारी बगियाये।

बाँध छाँद बसदेव देवकी ला, कारागर मा झट ओइलाये।।

*सुख शांति के देखे सपना, एके छिन छरियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।1


राजा कंस हा होके निर्दयी, देवकी बसदेव पूत मारे।

करँय किलौली दूनो भारी, रही रही के आँसू ढारे।।

थर थर काँपे तीनो लोक हा, कंस करे अत्याचारी।

भादो अठमी के दिन आइस, प्रभु अवतरे के बारी।।

*बिजुरी चमके बादर गरजे, नदी ताल उमियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।2


अधरतिहा अवतरे कन्हैया, बेड़ी भाँड़ी सब टुटगे।

देवी देवता फूल बरसाये, राजा बसदेव देख उठगे।।

देख मनेमने गुनय बसदेव, निर्दयी राजा के हे डर।

धरे कन्हैया ला टुकनी में, चले बसदेव नंद के घर।।

*यमुना बाढ़े शेषनांग ठाढ़े, गिरधारी मुस्काये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।3


छोड़ कन्हैया ला गोकुल में, माया ला धरके लाये।

समै के काँटा रुकगे रिहिस, बसदेव सुधबुध बिसराये।।

रोइस माया तब जागिस सब, आइस दौड़त अभिमानी।

पुत्र नोहे पुत्री ए राजा, हाथ जोड़ बोले बानी।।

*विष्णु के छल समझ कंस हा, मारे बर ऊँचाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।4


छूटे कंस के हाथ ले माया, होय देख पानी पानी।

तोर काल होगे हे पैदा, सुन के काँपे अभिमानी।।

जतका नान्हे लइका हावै, कहै मार देवव सब ला।

सैनिक मन के आघू मा, करे किलौली कई अबला।

*रोवै नर नारी मन दुख मा, हाँहाकार सुनाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।5


राजा कंस के काल मोहना, गोकुल मा देखाय लीला।

दाई ददा संग सब ग्राम वासी, नाचे गाये माई पीला।।

छम छम बाजे पाँव के पइरी, ठुमुक ठुमुक चले कन्हैया।

शेषनाग के अवतारे ए, संग हवै बलदऊ भइया।।

*किसन बलदऊ ला मारे बर, कंस हा करे उपाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।6


कंस के कहना मान पुतना, गोकुल नगरी मा आये।

भेस बदल के कान्हा ला धर, गोरस अपन पिलाये।।

उड़े गगन मा मौका पाके, कान्हा ला धरके पुतना।

चाबे स्तन ला कान्हा हा, तब भारी भड़के पुतना।।

*असल भेस धर गिरे भूमि मा, पुतना प्राण गँवाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।7


पुतना बध सुन तृणावर्त ला, कंस भेजे गोकुल नगरी।

बनके आय बवंडर दानव, होगे धूले धूल नगरी।।

मारे लात फेकाये दानव, प्राण पखेडू उड़े तुरते।

बगुला भेस बनाके बकासुर, गोकुल मा आये उड़ते।

भारी भरकम देख बगुला ला, नर नारी घबराये हो राम।

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।8


अपन चोंच मा मनमोहना ला, धरके बगुला उड़िड़ाये।

चोंच फाड़ बगुला ला मारे, कंस सुनत बड़ घबराये।।

बछरू रूप धरे बरसासुर, मोहन ला मारे आये।

खुदे बरसासुर हा मरगे, अघासुर आ डरह्वाये।।

*गुफा समझ सब ग्वाल बाल मन, अजगर मुख मा जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।9


कंस के भेजे सब दानव मन, एक एक करके मरगे।

गोकुल वासी जय बोलावै, दानव मन मरके तरगे।।

माखन खावै दही चोरावै, मटकी फोड़े गुवालिन के।

मुँह उला के जग देखावै, माटी खावै बिनबिन के।।

*कदम पेड़ मा बइठ कन्हैया, मुरली मधुर बजाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।10


पेड़ बने दुई यक्ष रिहिन हे, कान्हा उन ला उबारे।

गेंद खेलन सब ग्वाल बाल संग, मोहन गय यमुना पारे।

रहे कालिया नाग जल मा, चाबे नइ कोनो बाँचे।

कालीदाह मा कूदे कन्हैया, नाँग नाथ फन मा नाँचे।

*गोबर्धन के पूजा करके, इन्द्र के घमंड उतारे हो  राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।11


मधुर मधुर मुरली धुन छेड़े, रास रचाये मधुबन मा।

गाय बछरू ला गोकुल के, कान्हा चराये कानन मा।।

सिखाय नाहे बर गोपियन ला, चीर हरण करके कान्हा।

राधा ला भिंगोये रंग मा, पिचकारी भरके कान्हा।।

*कृष्ण बलदउ ला अक्रूर जी, मथुरा लेके जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।12


गोकुल मधुबन मरघट्टी कस, बिन कान्हा के लागत हे।

मनखे मन कठवा कस होगे, सूतत हे ना जागत हे।।

यमुना आँसू मा भरगे हे, रोवय जम्मो नर नारी।

कान्हा जाके मथुरा नगरी, दुखियन के दुख ला हारी।

*कंस ममा ला मुटका मारे, लहू के धार बोहाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।13


अत्याचारी कंस मरगे, जरासन्त शिशुपाल पाल मरे।

असुरन मनके नाँव बुझागे, विदुर सुदामा सखा तरे।।

दुशासन चिर खींचत थकगे, बने सहारा दुरपति के।

महाभारत ला पांडव जीतिस, कौरव फल पाइस अति के।

*हरि कथा हे अपरम पारे, खैरझिटिया का सुनाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।14


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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दोहा छंद--  माखन चोर (कान्हा)


*जननी हावय देवकी, वासुदेव पितु तोर ।*

*जनम धरे मथुरा नगर, बोलँय माखन चोर ।।*


*मोर मुकुट सुग्घर सजे, कान्हा रास रचाय ।*

*बाजय सुमधुर बासुरी,  राधा संग सुहाय ।।*


*बन-बन मा भटकय किशन, गइया रोज चराय ।*

*गोपी ग्वाला संग मा, मुरली मधुर बजाय ।।*


*बनके तँय हा काल जी, आय कंस के द्वार ।*

*मारे  पापी  कंस  ला,  करे  जगत  उद्धार ।।*


*दे के गीता ज्ञान ला,  विपदा हरै हजार ।*

*छाय घोर संकट तभे, धरे मनुज अवतार ।।*


*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम-चेपा, पाली, जिला-कोरबा

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रोला छंद

बाढ़ै अत्याचार,  होय अवतार प्रभू के।

कर दै बेड़ापार, जगत आधार न चूके।।

दिन बादर हे आज, उही महुरत सँघरागे।

बाजै बढ़िया साज, जनम दिन कान्हा आगे।।


बहिनी बर तो प्रेम, कंस के जानौ अड़बड़।

करिस बंधु के अहम्, मगर सब कोती गड़बड़।।

खुद ला समझ अजेय, बंधु तो हे बौराये।  

नारद बचन सुनाय, कंस ला मौत बलाये।।


नारद बोलिस कंस, मारही पूत देवकी।

संख्या ओकर आठ, जान ले बात देव की।।

आय आठवाँ कोन, मँहू नइ जानत हावँव।

रहिके मुनिवर मौन, कहिस मैं जावत हावँव।।


सुनके नारद बात, कंस के सुध हेरागै।

सोच सोच दिन रात, ओखरो जी डेरागै।।

बाँधिस बेड़ी पाँव, देवकी अउ भाँटो के।

कहिस जेल तुम जाव, पाव अब दुख आँसो के।।


जनमत गइन कोंख देवकी ले लइका मन ।

पाइस नही समोख मार दिस कंस ममा बन।।

मारिस सातों पूत देवकी के वो पापी।

लइस प्रभू अवतार हते बर कंस प्रतापी।।


आठे भादो रात, रहै अँधियार पाख के।

जँउहर ओ बरसात,  नई कहि सकौं भाख के।।

कान्हा नटवर श्याम, करिन उन अद्भुत लीला।

आइन मथुरा धाम, देवकी के बन पीला।।


करिन याद वसुदेव, कंस के अत्याचारी।

कहिन करौं का देव, देवकी ओ महतारी।।

चलिन पिता वसुदेव, सूप मा धरे कन्हैया।

गोकुल घर बलदेव, जहाँ हे बन के भइया।।


मात यशोदा नंद,  बाप बन मन हर्षाये।

नोनी ला वसुदेव,  कंस बर मथुरा लाये।।

पर ओ मूरख जान, घलो बेटी ला मारय।

बेटी देवी मान, काल ला ओही टारय।।


देवी कहिस सियान कंस तैं मरबे अब तो।

आ गे हे भगवान, काय तैं करबे अब तो।।

गोकुल मा आनंद, मनावैं नंद यशोदा।

खेलैं बाल मुकुंद, लेन आनंद हमू गा।।


आप जम्मो झन ला भगवान नारायण के कृष्णावतार अवतरण के अब्बड़ अकन बधाई सहित सादर....


जय जोहार....


सूर्यकांत गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग...

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घनाक्षरी छंद


जसोदा हे महतारी, छोटकुन कान्हा भारी, 

ठुमक-ठुमक चाल,गोल घुमे बाल हे। 

साँवर सलोना मुख, दाई देख पावय सुख, 

चूंदी मोर पंख सजा, दुलराथे गाल हे ।

लेवना चोराय घर, भागे संगी धरधर, 

लीला बाल रुप डर, नंद ददा लाल हे । 

गगरी निसाना बने, टुकुर- टुकुर नैने , 

संगी गोपी ब्रज जने, देखत निहाल हे।। 


(2) 

बंसरी राजे अनूप ललियाये ओठ रुप, 

गोपी सब रीझ भूप, जसुमति लाल हे । 

पुक फेके नदी नीर, कालिया दहन धीर, 

ब्रज जमुना के तीर,देखे नृत्य ताल हे । 

बाल लीला कान्हा करे सब दुख पीर हरे, 

पूतना संहार करे कंस बर काल हे । 

वसुदेव जसोमति, लइका के देख गति, 

रीझे मुसकाय अति, चूमें सब भाल हे ।। 


(3) 


माधव मुरलीधर, कृष्ण कान्हा नटवर, 

राधा रानी प्रियवर कोटि नमन हवे । 

नाथ सुख के सागर, हे नटवर नागर, 

उर मा बिराजे हर , राधे रमण हवे ।

लीलाधर योगेश्वर, रुपधर गोपेश्वर, 

चले घर हर-हर, परे चरण हवे । 

छबि बड मनोहारि, मोहे रुप घटा कारी, 

हरषित नर-नारी,  अवतरण हवे।। 


डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग.

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Wednesday, August 17, 2022

अमृतध्वनि छंद - विजेंद्र वर्मा


 

अमृतध्वनि छंद - विजेंद्र वर्मा


महतारी मन आज तो, रहिथे सुघर उपास।

बेटा बेटी खुश रहय, माँगय वर जी खास।

माँगय वर जी,खास सबो के,उम्मर बाढ़य।

पोती मारय,मुड़ मा विपदा, झन तो माढ़य।

एक ठउर मा,अउ जुरियाके,जम्मो नारी।

महादेव के,पूजा करथे,सब महतारी।।


घर के बाहिर कोड़ के, सगरी ला दय साज।

गिन गिन पानी डार के, करथे पूजा आज।

करथे पूजा,आज नेंग जी,करथे भारी।

लइका मन के,रक्षा बर तो,हे तैयारी।

हूम धूप अउ,फूल पान ला,सुग्घर धरके।

सुमिरन करथे, महतारी मन,जम्मो घरके।।


पतरी महुआ पान के, भाजी के छै जात।

चुरथे घर-घर मा इहाँ, पसहर के अउ भात।

पसहर के अउ,भात संग मा,दूध दही ला।

महतारी मन,खाय थोरकिन,डार मही ला।

गहूँ चना अउ,महुआ के सन,लाई-लुतरी।

सुघर चघावै,नरियर काँशी,दोना पतरी।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

Sunday, August 14, 2022

आजादी के अमृत महोत्सव विशेष-छंदबद्ध कविता


 

आजादी के अमृत महोत्सव विशेष-छंदबद्ध कविता


*हमर तिरंगा,अमर तिरंगा*

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जन-गण-मन के राष्ट्रगान ले,

 दसों दिशा भर जावै।।

हमर तिरंगा अमर तिरंगा,

घर-घर मा फहरावै।।


ये झंडा के तीन रंग ले,

तीन लोक फीका हे।

चक्र फबे भारत माता के,

 माथा के टीका हे।।

देख तिरंगा ला बैरी हा,

 थर-थर-थर थर्रावै।

हमर तिरंगा अमर तिरंगा,

घर-घर मा फहरावै।।


जन-जन के अभिमान तिरंगा,

 सबके मान बढ़ाथे।

वीर सिपाही जेकर बल मा,

 जंग लड़े बर जाथे।।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,

 कंठ-कंठ हा गावै।

हमर तिरंगा अमर तिरंगा,

घर-घर मा फहरावै।।


ये झंडा के रक्षा खातिर,

 पुरखा प्रान गँवाइन।

नवा सुरुज ला आजादी के,

परघाके उन लाइन।।

सुरता हा तो शहीद मन के,

कभ्भू झन बिसरावै।

हमर तिरंगा अमर तिरंगा,

घर-घर मा फहरावै।।


देश हवै ता हावन हम सब,

 देश बिना जग सुन्ना।

बिना एकता भाईचारा,

सुख उन्ना के उन्ना।।

चेत करौ कोनो आपस मा,

 हम ला झन लड़वावै।

हमर तिरंगा अमर तिरंगा,

घर-घर मा फहरावै।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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दोहा गीत- *राष्ट्र तिरंगा*


राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।

हर दिल हर घर मा बसे, बनके अब तो शान।।


अमिय महोत्सव साल मा, खुशी मगन हे देश।

आँख उठा पर देख लौ, कइसे हे परिवेश।।

सच्चाई ले मोड़ मुँह, बनव नहीं नादान।

राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।।


खड़े कहाँ हे देश अब, कर लौ जरा विचार।

अंधभक्ति चमचागिरी, फइले झूठ प्रचार।

रोजगार गायब दिखे, दूर नसीब मकान।

राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।।


हवे उपेक्षित आज तो, सैनिक वीर जवान।

हँसत हँसत जो देश हित, हो जाथें बलिदान।।

भूल कभू तो नइ सकन, जेंखर हम अवदान।

राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।।


जिंखर काँध मा हे टिके, असली देश विकास।

होइस वोखर देश मा, बहुत बड़े उपहास।।

धरती के भगवान जे, जेखर नाम किसान।

राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।।


जेंखर श्रम बलिदान ले, खड़े ताज मीनार।

फूटपाथ मा जिंदगी, दिखे दुखित लाचार।।

गजानंद मजदूर के, झोपड़ हे वीरान।

राष्ट्र तिरंगा गर्व के, हम सब के अभिमान।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 14/08/22

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अमृत महोत्सव (आल्हा छंदगीत)


आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।

जनम धरे हन भारत भू मा, हम सब ला हावयँ बड़ नाज।


स्कूल दफ्तर कोट कछेरी, गली खोर घर बन अउ बाट।

सबे खूँट लहराय तिरंगा, तोर मोर के खाई पाट।।

हर हिन्दुस्तानी के भीतर, भारत माता करथे राज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


रही सबर दिन सुरता हम ला, बलिदानी मनके बलिदान।

टूटन नइ देन उँखर सपना, नइ जावन देवन स्वभिमान।

सुख समृद्धि के पहिराबों, भारत माँ के सिर मा ताज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


सब दिन रही तिरंगा दिल मा, सबदिन करबों जयजयकार।

छोटे बड़े सबे सँग सबदिन, रखबों लमा मया के तार।।

छोड़ सुवारथ सुमता गारत, देश धरम बर करबों काज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


जंगल झाड़ी झरना नदिया, खेत खदान हवय भरमार।

सोना उगले भारत भुइयाँ, कोई नइ पा पाये पार।

रक्षा खातिर लड़बों भिड़बों, बैरी उपर गिराबों गाज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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बागीश्वरी सवैया

मले  मूड़  मा  धूल  माटी  धरा के सिवाना म ठाढ़े हवे वीर गा।

लगे तोप गोला सहीं वीर काया त ओधे भला कोन हा तीर गा।

नवाये  मुड़ी  जेन  माँ  भारती तीर वोला खवाये बुला खीर गा।

दिखाये  कहूँ देश ला आँख बैरी त फेके भँवाके जिया चीर गा।

जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया 

बाल्को, कोरबा(छग)

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दोहा गीत(हमर तिरंगा)

लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।

इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।


हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।

नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।

जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।

संसो  कहाँ  सुबे   हवे, नइहे  संसो   रात।

महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।

लहर------------------------------ आज।



उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।

भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।

गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।

उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।

का  का  मैं  बतियाँव गा,हवै सोनहा राज।

लहर------------------------------लाज।


तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।

जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।

कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।

रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।

जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।

लहर-----------------------------लाज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा,छत्तीसगढ़

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 *रोला छंद* -अश्वनी कोसरे रहँगिया

तिरंगा ला लहराबो


ऊँचा झंडा रोज, गगन मा फहरत राहै।

सबो सुराजी गाँव, बने बर जाने  जाहै।।

पबरित बेरा आज, सबो जन गन ला गाबो।

अपन देश के शान, तिरंगा ला लहराबो।।


आवव सबो जवान, एकता माने जाहै।

बेटा सबो किसान, देश के गुन ला गाहै।।

भाखा बोली एक, राज पहिचाने जाहै।

भाईचारा लान, सबो मा सुमता राहै।


सत्य अहिंसा प्रेम, मान बापू के कहना।

नज़र उठा के देख, इही जिनगी के गहना।।

 राह सुमत के भेष, चले हे चरखा खादी। 

 कुरबानी के बाद, मिले हावय आजादी।।


छंदकार-

अश्वनी कोसरे

रहँगिया कवर्धाकबीरधाम

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: सरसी छन्द गीत-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"


मँय भारत हँव मँय भारत हँव,करौ सदा जयकार।

भाग्य बिधाता मँय हँव सबके,करथौ जी उद्धार।

उत्तर मा ए खड़े हिमालय,मोरे उन्नत भाल।

तीन दिशा सागर ले घिरके,करथौं माला-माल।।

पाँव पखारे गंगा निशिदिन,बहथे पावन धार।

मँय भारत हँव मँय भारत हँव,करौ सदा जयकार।।


हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसाई,सब झन मोरे लाल।

इँखर एकता भाई-चारा,हे पूजा के थाल।।

देशभक्ति सबके रगरग मा,करथें अब्बड़ प्यार।।

विश्व गुरू मँय कहिलाथौं जी,देथँव सब ला ज्ञान।

इहें तिरंगा झंडा फहरे,जे मोरे पहिचान।।

जम्मू ले कश्मीर सबो हा,हे मोरे परिवार।

मँय भारत हँव मँय भारत हँव,करौ सदा जयकार।।


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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अमर तिरंगा 

(छत्तीसगढ़ी दोहे)

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धजा तिरंगा मान हे,पुरखा के पहिचान ।

लाज बचाना हे धरम,कमर कसौ जी जान ।।


आवौ भाई आव जी, बहरी ला भगवाव।

आँख उठा जे देखथे, बोला सबक सिखाव।।


भारत के खातिर सबो, मर मिट जाबो संग।

उड़न नहीं देवन हमन, आज तिरंगा रंग ।।


लहर- लहर लहराव जी, झंडा उड़े अगास।

खुशियाँ सबो मनाव जी, बइठौ नहीं उदास ॥


इही तिरंगा ले हवै, हमर देश के मान।

बइरी मन काँपत रथे,अइसन हिंदुस्तान।।


केसरिया पहचान हे, तप अउ त्याग समान।

एखर ले हे देश अब, सर्व सुरक्षा मान ।।


भाईचारा शांति के, सादा रंग महान।

समय बतायत चक्र ये, नीला गोल निशान।।


हरियर भुइयाँ खार बर,पर्यावरण बचाव।

रंग तिरंगा देश के,जुरमिल गुन ला गाव।।

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 झंडा गीत (लावणी छंद)


आजादी त्यौहार मनाबो,

               सर्व धर्म सब जुरियाबो।

चलौ तिरंगा फहराबो जी,

                 चलौ तिरंगा फहराबो।।


केशरिया हे त्याग निशानी,

                   हरियर हे हरियाली के।

सादा शांति सुरक्षा बर हे,

                नील चक्र खुशहाली के।।

तीन रंग के ध्वजा तिरंगा,

               एखर जी मान बढ़ाबो।

चलौ तिरंगा फहराबो जी...............


कतको बलिदानी होइन हे,

                      इही देश के माटी मा।

लाज बचाइन भारत माँ के,

               छाती तानिन घाटी मा।।

शेर जवान किसान सबो के,

              आज चलौ गुन ला गाबो।।

चलौ तिरंगा फहराबो जी..............


उमर पछत्तर आजादी के,

                  बेरा गजब सुहावत हे।

लइका बुढ़वा दाई बहिनी,

                  पशु पक्षी हरषावत हे।।

देश भक्ति बर बने भावना,

             मन मा जी अलख जगाबो।

चलौ तिरंगा फहराबो जी..............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 दोहा गीत- *राष्ट्र तिरंगा*


राष्ट्र तिरंगा प्रेम के, देथे जग संदेश।

अनेकता मा एकता, भारत के परिवेश।।


गूँजत हे बड़ गर्व से, जनगण मन के गान।

बोलव वंदेमातरम, अमर जवान किसान।।

हिन्दू मुस्लिम एक सब, एक सबो के भेष।

राष्ट्र तिरंगा प्रेम के, देथे जग संदेश।।


केसरिया हा त्याग के, सिखलाथे जी पाठ।

देश धर्म पर मर मिटव, बाँध एकता गाँठ।।

जाति धर्म के नाम मा, रहे नहीं मन द्वेष।

राष्ट्र तिरंगा प्रेम के, देथे जग संदेश।।


श्वेत रंग हे शांति के, अमिट अमर पहिचान।

ध्येय बना के देश हित, लड़थे वीर जवान।।

सीमा मा रहिथे अडिग, दृष्टि बना अनिमेष।

राष्ट्र तिरंगा प्रेम के, देथे जग संदेश।।


देथे हरियाली हरा, खुशहाली हरहाल।

ऊँचा देश विदेश मा, रहे हिन्द के भाल।।

गजानंद ये सोन के, चिड़िया हवय विशेष।

राष्ट्र तिरंगा प्रेम के, देथे जग संदेश।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 14/08/22

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शान तिरंगा


तीन रंग के ध्वजा तिरंगा, लहर लहर लहराय। 

उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम, सबो डहर फहराय।। 


अमृत महोत्सव चलत हवय जी,  जानव सबसे खास। 

भारत के घर घर मा छाये, खुशहाली उल्लास।। 


मन मा जोश उमंग भरत हे, ये आज़ादी पर्व। 

हर भारत वासी  के मन मा, होवत हावय गर्व।। 


तीन रंग मा हवय समायें, त्याग, शांति, बलिदान। 

भारत भुइयाँ पावत हावय, विश्व गुरु के मान।। 


बलिदानी मन के सपना अब, होवत हे साकार।

चारों कोती गूंजत हे बस, भारत के जयकार।।


आशा देशमुख

एनटीपीसी  जमनीपाली कोरबा

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: *घनाक्षरी* 


*शूरबीर सबो बलिदानी ला नमन हे* 


बीर बाँहकर जेन सीमा में कटाये मूड़, 

अइसन बीर बलिदानी ला नमन हे। 

बैरी ला खेदार जेन देश के रखिन आन 

अइसन सबो स्वाभिमानी ला नमन हे।। 

अँचरा दाई बदला घेंच के करिन मोल, 

अइसन अटल जवानी ला नमन हे।

सोनहा आखर में लिखाये नाम जगमग

सुरता देवावत निशानी ला नमन हे।। 


करजा दाई के जेन छूटिन परान देके, 

अइसन बेटवा तो राम अउ लखन हे।।

सरग में उँकर तो होत होही अगवानी,

जेन महतारी बर वारे तन मन हे।।

देश के सेवा करैया लइका बियाये जेन, 

अइसन बाप महतारी ला नमन हे।। 

दाई के सेवा बर सोहाग जेन दान दिन, 

अइसन पिया के पियारी ला नमन हे। 


गुरतुर सपना हा खारो होगे आसूँ गिर,

अइसन सजनी कुँवारी ला नमन हे।

झाँकत दुवारी ददा आही कहि घेरीबेरी,

फूल कस बिटिया दुलारी ला नमन हे।

लइकुसहा उमर आगी पानी बाप देत,

अइसन बेटा के लाचारी ला नमन हे।

बीरगति पाये वो जवान के तो गाँव गली, 

डेरउठी अँगना व दुवारी ला नमन हे। 


शोभामोहन श्रीवास्तव 

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रन जूझे बर जाहूँ महू हर (सार छंद) 


रन जूझे बर जाहूँ महू हर, रन जूझे बर जाहूँ।

देश धर्म के रक्षा खातिर, अपनो मुड़ कटाहूँ।।

रन जूझे बर जाहूँ हर, रन जूझे बर जाहूँ। 


दाई तोरे दूध के कर्जा, देके लहू चुकाहूँ।। 

कंकन नइ बंधवावौं दाई, मैं तलवार उठाहूँ। 

रन जूझे बर जाहूँ हर, रन जूझे बर जाहूँ। 


दुश्मन खड़े दुआरी आके, ओला काट गिराहूँ।

छाती ला कठवा कर लेहौ, कहूँ बहुर नइ पाहूँ। 

रन जूझे बर जाहूँ हर, रन जूझे बर जाहूँ। 


शोभामोहन श्रीवास्तव

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: सार छन्द गीत..


हम बेटा हन वीर सिपाही,भारत के रखवाला।

पहरा देथँन हम शरहद मा,धरके बन्दूक भाला।।


कभू झुकन नइ देवन संगी,पावन हमर तिरंगा।

शान बढ़ाथे हम सबके जी,तन मन करथे चंगा।।

बुरी नजर ले देखय तेखर,मुँह ला करथँन काला।

हम बेटा हन वीर सिपाही,भारत के रखवाला।।


रक्षा खातिर मात्रभूमि के,बनबो हम बलिदानी।

लगा जान के बाजी संगी,देबो हम कुर्बानी।।

कहाँ मेकरा कस बढ़ पाही,बैरी मन के जाला।

हम बेटा हन वीर सिपाही,भारत के रखवाला।।


का बरसा का जाड़ा गरमी,हमला कुछ नइ लागे।

हम सबके हिम्मत के आगू,आलस पल्ला भागे।।

इंकलाब जय भारत माता,मिलके जपथन माला।

हम बेटा हन वीर सिपाही,भारत के रखवाला।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद- रे बइरी


महतारी के रक्षा खातिर, धरे हवँव मैं मन मा रेंध।

खड़े हवँव नित छाती ताने, काय मार पाबे तैं सेंध।


मोला झन तैं छोट समझबे, अपन राज के मैंहा वीर।

अब्बड़ ताकत हवै बाँह मा, दू फाँकी देहूँ रे चीर।।


तन अउ मन ला करे लोहाटी, बासी चटनी पसिया नून।

देख तोर करनी धरनी ला, बड़ उफान मारे तन खून।।


नाँगर मूठ कुदारी धरधर, पथना कस होगे हे हाथ।

तोर असन कतको हरहा ला, पहिराये हौं मैंहर नाथ।


ललहूँ पटुकू कमर कँसे हौं, चप्पल भँदई सोहे पाँव।

अड़हा जान उलझबे झन तैं, उल्टा पड़ जाही रे दाँव।


कोन खेत के तँय मुरई रे, मोला का तँय लेबे जीत।

परही मुटका कँसके तोला, छिनभर मा हो जाबे चीत।


हवै हवा कस चाल मोर रे, कोन भला पा पाही पार।

चाहे कतको हो खरतरिहा, होही खच्चित ओखर हार।


देश राज बर नयन गड़ाबे, देहूँ खँड़ड़ी मैं ओदार।

महानदी अरपा पैरी मा, बोहत रही लहू के धार।


उड़ा जबे रे बइरी तैंहा, कहूँ मार पाहूँ मैं फूँक।

खड़े खड़े बस देखत रहिबे, होवय नही मोर ले चूँक।


देख मोर नैना भीतर रे, गजब भरे हावय अंगार।

पाना डारा कस तोला मैं, छिन भर मा देहूँ रे बार।


गोड़ हाथ हर पूरे बाँचे, नइ लागय मोला हथियार।

अपन राज के आनबान बर, सुतत उठत रहिथौं तैंयार।


भाला बरछी बम अउ बारुद, भेद सके नइ मोरे चाम।

दाँत कटर देहूँ ततकी मा, तोर बुझा जाही रे नाम।।


जब तक जीहूँ ये माटी मा, बनके रहिहूँ बब्बर शेर।

डर नइहे कखरो ले मोला, करहू काय कोलिहा घेर।


नाँव खैरझिटिया हे मोरे, खरतरिहा माटी के लाल।

चुपेचाप रह घर मा खुसरे, नइ ते हो जाही जंजाल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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दोहा छंद 


लहर लहर लहरात हे, बने तिरंगा शान।

तोरे सेवा बर खड़े, सैनिक सीना तान।।


सुघर तोर मॉं भारती, हावय वीर सपूत।

बैरी मन बर काल बन, लागे यम के दूत।।


सरदी गरमी हर रहय, या होवय बरसात।

पानी हवा जमीन मा, पहरा दय दिन रात।।


तन मन ला अरपन करें, देशभक्ति मा सान।

तोरे सेवा बर खड़े, सैनिक सीना तान।।

लहर लहर लहरात हे, भारत मॉं के मान....


सींच लहू तन के अपन, सुतगे अॅंचरा छॉंव।

होगे बलिदानी अमर, लेके तोरे नॉंव।।


गात अजादी गीत ला, नाचत गावत झूम।

चढ़गे फॉंसी लाल सब, रस्सी ला तब चूम।।


स्वतंत्रता के राग मा, चढ़े जवानी जीद।

नमन करव सब वीर ला, होगे जेन शहीद।।


जेखर यश के गीत ला, गावत हे भगवान।  

लहर लहर लहरात हे, बने तिरंगा शान।

तोरे सेवा बर खड़े, सैनिक सीना तान......

     

          मनोज कुमार वर्मा "बरदीहा"

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कुकुभ छंद

जब जब आय परब आजादी, सुरता आथे बलिदानी।

येला पाये खातिर संगी, होंगे कतको कुर्बानी।।


हमर देश के  शान तिरंगा, लहर लहर ये लहराये।

भेदभाव ला छोड़ छाड़ के, हँसी खुसी सब फहराये।।


केसरिया सादा अउ हरियर, तीन रंग झंडा प्यारा।

सदा उड़य नित ये अगास मा, दुनियाँ ले सुग्घर न्यारा।।


ऊँच नीच अउ जाँत पाँत के, पाँटन हम सब मिल खाई।

एक संग सब मिलजुल रहिबो, छोड़न हम अपन ढिठाई।।


छोड़ लोभ लालच स्वारथ ला, सुग्घर अब रोज कमाबो।

प्रान देश हित बर अरपन कर, भुइयाँ के लाज बचाबो।।


 ज्ञानु

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आशा देशमुख: *आज़ादी परब*



आज़ादी के ये परब, हावय सबले खास। 

चारों कोती शोर हे, छाये हे उल्लास।। 1


का छोटे अउ का बड़े, सब होगे हें एक। 

भाईचारा  एकता, भाव भरे हे नेक।। 2


तीन रंग के रंग मा, रँग गय भारत देश। 

अइसन सुम्मत देख के, भागय विपदा क्लेश।। 3


घर घर मा झंडा लगे, सबके मन मा जोश। 

जयकारा के गूंज हा, गूंजे दस दस कोस।। 4



अमिय महोत्सव के सबो , बनगे हवव गवाह। 

होवत हे अब्बड़ गरब, मन मा भरे उछाह।।5


कतको वीर जवान मन, दिये हवंय बलिदान। 

कहत  हवय ब्रम्हांड तक,भारत देश महान।। 6


जानव भारत भूमि हा, हावय स्वर्ग समान। 

सुरुज उगत ही गूंजथे, जन गण मन के गान।। 7


कोहिनूर चमके मुकुट, भारत माँ के माथ। 

सरस्वती बानी बने, लक्ष्मी दुर्गा हाथ।। 8


आजादी के ये परब, लिखत नवा अध्याय। 

सरी जगत मा हिंद के, जस गुण ला बगराय।।9



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा


15_8_2022 सोमवार

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आजादी के पछत्तर बछर पुरे के

महोत्सव के जम्मो झन ल बहुत बहुत बधाई 

सहित 🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹

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दोहा दर्जन 

सूझय अब कॉंही नहीं,  कुंठित  हवय  दिमाग।

कहय कलेचुप बइठ तैं, अब कॅंहुचो झन भाग।।१।।

आजादी  काबर  मिलिस,  तइसे  लगथे आज।

कदर      कहॉं     ईमान  के,  चलथे  गुंडा  राज।।२।।

सब  कुर्सी  हथियाय  बर, करथें उदिम तमाम।

टुकुर  टुकुर देखत सहय, बस अन्याय अवाम।।३।।

कमोबेश  रहिथे  कका,   सबके  एक   उसूल।

सातों   पीढ़ी   बर   बने,   दौलत  खूब  वसूल।।४।।

महमारी  के   मार   ला,  झेले   हवन   मितान।

सगा   सहोदर   संग  मा,    मित्र गॅंवाइन प्रान।।५।।

कतको  दौलतमंद  के, आइस  का धन काम।

करनी  के भुगते  हवन, हम  जॅंउहर  अंजाम।।६।।

आजादी   मिलगे  कका, आय  बने  ए  बात।

फेर मचय अंतलंग झन, अनुशासन तिरियात।।७।।

गरदन   रेते   बर   इहॉं,   खड़े    धरे    तलवार।

सर्वधर्म     समभाव    के,     भइगे      बंटाधार।।८।।

रइही     काबर   मेहनत,   से   हमला  दरकार।

देबे   करही   खाय   बर,   हो  कउनो  सरकार।।९।।

हो  गे  हन हम आलसी,  संग कोढ़िया जान।

निच्चट  अड़हा   भोकवा,  परबुधिया  इंसान।।१०।।

छोड़न  अइसन सोच ला,  हो   जावन   तैयार।

जीवन  रूपी  नाव  के,  बन  जावन  पतवार।।११।।

उत्सव  मानन  मिल  सबो, करत परन ए बात।

खुद  ऊपर  निर्भर  रहत, लाबो  नवा   प्रभात।।१२।।


जय हिन्द, जय भारत, वंदे मातरम्


सूर्यकान्त गुप्ता

सिंधिया नगर दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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राखी तिहार म- (सरसी छंद)


 *राखी तिहार म*

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(सरसी छंद)


बहिनी के मया

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तिलक सार भइया के माथा, राखी ला पहिराय।

साज आरती लेथे सुग्घर, रहि- रहि के मुस्काय।

डार मिठाई मुँह भइया के, रोटी खीर खवाय।

हाँस-हाँस इँतराथे थोकुन, अब्बड़ मया जताय।।

सदा सुखी राहय भइया हा, मन मा भरके भाव।

देव मनाथे हाथ जोर के, चरनन माथ नवाय।।

नता हवय भाई बहिनी के ,सब रिश्ता ले सार।

बहिनी के हिरदे मा बहिथे, निश्छल ममता धार।।

कहिथे पाँव गड़ै झन काँटा, सुखी रहै परिवार।

मातु पिता भाई भइया के, मिलते रहै दुलार।।

आशा करथे भइया रखही, ये राखी के लाज।

रक्षा खातिर ठाढ़े रइही, वीर सँवागा साज।।



भइया-भाई के भाव

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बहिनी हमर भरोसा रखबे, तैं अच प्रान अधार।

हमर रहत ले तोर दुवारी, नइ आवय अँधियार।।

सब दुख ला तोरे हर लेबो, देबो सुख के फूल।

तीज-तिहार लिहे बर आबो, नइ जावन वो भूल।।

मातु पिता के अबड़ दुलौरिन, तैं मइके के शान।

जेन माँग ले वो सब मिलही, लहुटय नहीं जुबान।।

भाँचा-भाँची अउ दमाँद सँग,तोर इहाँ अधिकार।

हिरदे भितरी रथौ समाये, जुरे मया के तार।।

रक्षा धागा बाँधे हच तैं, तेकर देख प्रताप।

संकट बइरी बुलक जही वो, दुरिहा ले चुपचाप।।

तोर हमर में फरक कहाँ हे, नस-नस एके धार।

भले हवन छछले दू शाखा, हावय एके नार।।


🙏🙏🙏


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Friday, August 12, 2022

विधान-कामरूप छंद

विधान-कामरूप छंद


*कामरूप छंद*


*डाँड़(पद)--4, हरेक डाँड़ म कुल 26 मात्रा*

*चरण*- हरेक डाँड़ म 9,7,10 मात्रा म यति देके 3 चरण।

*पहिली चरण*--शुरुआत एक बड़कू या दू नान्हे ले।कुल मात्रा 9

*दूसर चरण*--शुरुआत बड़कू ,नान्हे(2,1) ले। कुल मात्रा 7

*तीसर चरण*--शुरुआत बड़कू, नान्हे(2,1) या नान्हे, बड़कू (1,2) ले। अंत-- बड़कू , नान्हे ( 2,1) ले।कुल मात्रा 10

*तुकांत*--दू दू डाँड़ मा।

पहिली अउ दूसर चरण घलो आपस म तुकांत रहे ले लय बने बनथे फेर जरूरी नइये।


उतलंगी करै, नाचत फिरै, नानकुन चितचोर।

माखन बस खाय, रोज नँगाय, पूत माई तोर।

दीखथे सिधवा, तोर बिलवा, राख ओला बाँध।

मोर तँय सुन ले, गोठ गुन ले, बंद कोठी धाँध।


*अरूण कुमार निगम*

Thursday, August 11, 2022

विश्व आदिवासी दिवस-- छंदबद्ध कविता


 

विश्व आदिवासी दिवस-- छंदबद्ध कविता

मैं रहवया जंगल के- आल्हा छन्द


झरथे झरना झरझर झरझर, पुरवाही मा नाचय पात।

हवै कटाकट डिही डोंगरी, कटथे जिंहा मोर दिन रात।


डारा पाना काँदा कूसा, हरे मोर मेवा मिष्ठान।

जंगल झाड़ी ठिहा ठिकाना, लगथे मोला सरग समान।


कोसा लासा मधुरस चाही, नइ चाही मोला धन सोन।

तेंदू मउहा चार चिरौंजी, संगी मोर साल सइगोन।


मोर बाट ला रोक सके नइ, झरना झिरिया नदी पहाड़।

सुरुज लुकाथे बन नव जाथे, खड़े रथौं सब दिन मैं ठाड़।


घर के बाहिर हाथी घूमय, बघवा भलवा बड़ गुर्राय।

चोंच उलाये चील सोचथे, लगे काखरो मोला हाय।


छोट मोट दुख मा घबराके, जाय मोर नइ जिवरा काँप।

रोज भेंट होथे बघवा ले, कभू संग सुत जाथे साँप।।


काल देख के भागे दुरिहा, मोर हाथ के तीर कमान।

झुँझकुर झाड़ी ऊँच पहाड़ी, रथे रात दिन एक समान।


रेंग सके नइ कोनो मनखे, उहाँ घलो मैं देथौं भाग।

आलस अउ जर डर जर जाथे, हवै मोर भीतर बड़ आग।


बदन गठीला तन हे करिया, चढ़ जाथौं मैं झट ले झाड़।

सोन उपजाथौं महिनत करके, पथरा के छाती ला फाड़।


घपटे हे अँधियारी घर मा, सुरुज घलो नइ आवय तीर।

देख मोर अइसन जिनगी ला, थरथर काँपे कतको वीर।


शहर नगर के शोर शराबा, नइ जानौं मोटर अउ कार।

माटी ले जुड़ जिनगी जीथौं, जल जंगल के बन रखवार।


आँधी पानी बघवा भलवा, देख डरौं नइ बिखहर साँप।

मोर जिया हा तभे काँपथे, जब होथे जंगल के नाँप।


पथरा कस ठाहिल हे छाती, पुरवा पानी कस हे चाल।

मोर उजाड़ों झन घर बन ला, झन फेकव जंगल मा जाल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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विश्व आदिवासी दिवस के हार्दिक बधाई

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आदिवासी

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 धरती के इन मूल निवासी।

आदिदेव पुरखा कैलासी।।


घन जंगल परवत मा रहिथें।

घोर गरीबी हाँसत सहिथें।

नइ तो जानयँ दंगा-दासी।

आदिदेव पुरखा कैलासी।।


कतकों रीति-रिवाज निराला।

तन करिया उज्जर दिल वाला।

नइ खेलयँ उन दाँव सियासी।

आदिदेव पुरखा कैलासी।।


आयँ प्रकृति के रक्षक ये मन।

जंगल के फल-फूल इँकर धन।

छप्पन भोग नून अउ बासी।

आदिदेव पुरखा कैलासी।।


सब जनजाति दबे कुचले हें।

शोषक मन सिरतोन छले हें।

रोवै कुटिया महल म हाँसी।

आदिदेव पुरखा कैलासी।।


बिन माँगे हक मिलना चाही।

तब उँकरो जिनगी हरियाही।

झन भोगय उन दुख चौरासी ।

आदिदेव पुरखा कैलासी।।


चोवा राम 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

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