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Thursday, June 24, 2021

संत कबीर साहेब जयंती विशेष


 

संत कबीर साहेब जयंती विशेष


सत संगत कर ले सदा,कहिथे संत कबीर।

मन रइही चंगा बने,होवय नहीं अधीर।।(१)


गुरू बड़े भगवान ले,मन मा सोच बिचार।

गुरू ज्ञान ले हो जबे,भव सागर तैं पार।।(२)


दया-मया मन मा बसा,छोड़ मोह अभिमान।

छिनभर के काया हवै,येला तँय पहिचान।।(३)


दाई, बाबू, देवता,पखरा के का काम।

कर पूजा करजोर के,सँउहें तीरथ धाम।।(४)


छुआ-छूत का मानथस,मनखे एक समान।

लहू सबो के एक हे,गढ़े एक भगवान।।(५)


कभू लबारी मार झन,सदा सत्य ला बोल।

सत्य ज्ञान के बात ला,सबके आघू खोल।।(६)


नशा-पान झन कर कभू,होथे जी जंजाल।

ले जाथे शमशान मा,झटकुन आथे काल।।(७)


सबो मंत्र के बीज हे,एक नाम सतनाम।

अंतस मा सत जाप कर,छिन मा बनही काम।।(८)


आडंबर पाखण्ड ले,अंतस हा कंगाल।

सत ला जे मन जानथे,वो मन मालामाल।।(९)


घट-घट मा सतनाम ला,मौज बसाले आज।

गुरू कबीरा सीख धर,जग मा करबे राज।।(१०)


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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- हरिगीतिका छंद*

2212  2212,  2212  2212


सुनलौ कबीरा जी कहै,पाखंड तो व्यभिचार हे।

मनखे दिखावा के इहाँ, चारों मुड़ा संसार हे।।

निर्गुण निराकारी सखा,पूजा विरोधी जान लौ।

मन के दुवारी खोल के,श्री राम ला पहिचान लौ।।


समता रखौ सब धर्म मा,अनपढ़ कबीरा जी कहै।

नइ जात अउ नइ पात जी,मिलके सबो संगे रहै।।

हिन्दू मुसलमा मिल चलौ,संदेश ओखर सार जी।

सबके बहावत हे कहै,तन मा लहू के धार जी।।


सुनलौ कबीरा का कहै,करनी करौ सद् जान के।

रद्दा दिखाये ज्ञान के,निर्गुण सगुण भगवान के।।

महिमा बतावै ये गजब,शिव विष्णु अज गुरु नाम के।

मन मा जपौ गुरु के चरन, दर्शन मिलै सुख धाम के।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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सुखदेव सिंह अहिलेश्वर


बीत जही बिपदा घड़ी, मन मा धर ले धीर।

सॅंग मा हे आठो पहर, सतगुरु दास कबीर।।


मूढ़ मती के माथ मा, आ जाही सद्ज्ञान।

सुनही संत कबीर ला, जे दिन देके ध्यान।।


झूठ ढोंग पाखण्ड के, घपटे घुप ॲंधियार।

वाणी शबद कबीर के, कर देही उजियार।।


जाति-धरम के नॉंव मा, खींचे कहूॅं लकीर।

जान रिसागे तोर ले, सतगुरु दास कबीर।।


प्रेम भक्ति अइसे करी, जइसे करिस कबीर।

देख सुफल जोनी जनम, सहुॅंरावय तकदीर।।


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छ.ग.

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हरिगीतिका छंद


दर्पण कबीरा हा धरे,जग देख ले मुँह ला बने।

आँखी तरी तलवार हे ,अउ हाथ मा काजर सने।

उज्जर जगत के ओढ़ना ,कीरा परे हे चाल मा।

पाखंड कहिथे त्याग कर ,खुद के नजर हे माल मा।1


आवव कबीरा ला सुनव,बानी धरे बड़ भेद हे।

मनखे रखे हंडा घड़ा,अब्बड़ तरी मा छेद हे।

डर मा जगत जीयत हवे,सूजी लगावत कोन हे।

छाये बजरहा राज अब ,भीतर लुकाये सोन हे।2


अइसन कबीरा हा कहे ,निंदक घलो बड़ काम के।

पानी बिना साबुन बिना ,उज्जर करे मन चाम के।

ये बैठ काशी घाट में ,निर्गुण निराकारी रहे।

धोये कतिक के मैल तँय,गंगा बिचारी का कहे।3


आशा देशमुख

एनटीपीसी कोरबा

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ज्ञानु मानुकपुरी

सद्गुरु सत्य कबीर, महिमा अड़बड़ तोर हे।

जन जन के तो पीर, जियत मरत ले तँय हरे।।


दुनिया भर बगराय, सत्यनाम संदेश ला।

सत के पाठ पढ़ाय, सार नाम सब नाम मा।।


झूठ कपट अभिमान, जिनगी बर अभिशाप हे।

मनखे अब पहिचान, सत्य धरम ईमान ला।।


कल अँधियारी रात, चटक चँदैनी आज ता।

इही सार हे बात, दया मया बाँटत रहव।।


नशा नाश के जाल, मुश्किल होथे निकलना।

सिरतों होय कँगाल, फँसे जेन हा जाल मा।।


रहव सदा सब साथ, तोरी मोरी छोड़के।

बड़े नवावौ माथ, छोटे ला आशीष दव।।


सरल नरम व्यवहार, खान पान सादा रखव।

मनखे एक समान सब, बाँटव मया दुलार।।


दुनिया भर मा राज, आडंबर पाखंड के।

कहाँ पुछन्तर आज, दया प्रेम विश्वास के।।


भोग चढ़े भगवान, भूख मरे दाई ददा।

देवय कोन धियान, रोवय देख कबीर हा।।


करै दूर अँधियार, दिव्य ज्ञान ले गुरु अपन।

भवसागर ले पार, गुरु किरपा बिन होय नइ।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी कवर्धा

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Tuesday, June 22, 2021

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर म छंदबद्ध कविता-प्रस्तुति-छ्न्द के छ परिवार

 


अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर म छंदबद्ध कविता-प्रस्तुति-छ्न्द के छ परिवार

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(कुकुभ छंद)
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मनखे ला सुख योग ह देथे, मन बगिया बड़ ममहाथे।
योग करे तन बनै निरोगी,धरे रोग हा मिट जाथे।।

सुत उठके गा बड़े बिहनिया, पेट रहय जी जब खाली।
दंड पेल अउ दउँड़ लगाके, हाँस हाँस ठोंकव ताली।।

रोज करव जी योगासन ला,चित्त शांत मन थिर होही।
अंतस हा पावन हो जाही,तन पावन मंदिर होही।।

नारी नर सब लइका छउवा,बन जावव योगिन योगी।
धन माया के सुख हा मिलही, नइ रइही तन मन रोगी।।

जात पात के बात कहाँ हे,काबर होबो झगरा जी।
इरखा के सब टंटा टोरे,योग करव सब सँघरा जी।।

जेन सुभीता आसन होवय,वो आसन मा बइठे जी।
ध्यान रहय बस नस नाड़ी हा,चिंता मा झन अँइठे जी।।

बिन तनाव के योग करे मा,तुरते लाभ जनाथे गा।
आधा घंटा समे निकाले, मन चंगा हो जाथे गा।।

सुग्घर अनुलोम करव भाई,साँस नाक ले ले लेके।
कुंभक रेचक श्वाँसा रोके,  अउ विलोम श्वाँसा फेके।।

प्राणायाम भस्त्रिका हवय जी, बुद्धि बढ़ाथे सँगवारी।
अग्निसार के महिमा सुंदर, भूख बढ़ाथे जी भारी।।

हे कपाल भाती उपयोगी, अबड़ असर एखर होथे।
एलर्जी नइ होवन देवय, सुख निंदिया मनखे सोथे।।

कान मूँद के करव भ्रामरी,भौंरा जइसे गुंजारौ।
माथा पीरा दूर भगाही, सात बार बस कर डारौ।।

ओम जपव उद्गीत करव जी, बने शीतली कर लेहौ।
रोज रोज आदत मा ढालव, आड़ परन जी झन देहौ।।

चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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योग 
(हरिगीतिका छंद)

चल योग कर लौ रोज के,होथे सबल तन मन सखा।
बनथे निरोगी देह हा,इहि आय असली धन सखा।।
नित उठ बिहनिया ले सबो,ले के प्रभो के नाम ला।
सब भागथे जी रोग हा,अपनाव प्राणायाम ला।।

मन के मिलन भगवान ले,होथे सबो जी जान लौ।
मन मा जगाथे भक्ति ला,ये योग हा जी मान लौ।।
तन स्वस्थ होथे योग ले,मन मा भरै विश्वास हा।
हर काम मा मन हा लगै,अउ होय पूरा आस हा।।

डॉक्टर जरूरत नइ पड़ै,तन चुस्त रहिथे जी सखा।
बीमार झन रहिहौ सुनौ,पुरखा हमर कहिथे सखा।।
लम्बा उमर योगा करै,सब योग आवव कर चलौ।
बेरा निकालौ योग बर,सब धर्म मारग धर चलौ।।

छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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मोर हरिगीतिका आसन


 योगा करव योगा करव,तन मन अपन सुन्दर रखव।
मन मैल कचरा फेंक के,सच सार ला अंदर रखव।
ये ध्यान प्राणायाम ले,मन देह हा  निर्मल बने।
संयम नियम आहार से,तन मा निरोगी बल बने।1


योगा दिवस मा प्रण करव,मिलके भगाबो रोग ला।
आलस अहिंसा छोड़बो,अउ छोडबो सब भोग ला।
काया विकारी होय ले,दुख के कबीला घेरथे।
दिन रात बेचैनी बढ़े,सब रोग राई पेरथे।2


ये योग धनवन्तरि सही,योगा दवाई जान लव।
संझा बिहनिया नित करव,ये बात मोरे मान लव।
खोजे हवे ऋषि संत मन ,वैदिक सनातन ज्ञान हे।
सब ले बड़े ईश्वर हवे,  ,पर मंत्र   रद्दा ध्यान हे।3

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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योग(दोहा)

महिमा  भारी योग के,करे  रोग ला दूर।
जेहर थोरिक ध्यान दै,नफा पाय भरपूर।

थोरिक समय निकाल के,बइठव आँखी मूंद।
योग  ध्यान तन बर हवे,सँच मा अमरित बूंद।

योग  हरे  सत साधना,साधे ते फल पाय।
कतको दरद विकार ला,तन ले दूर भगाय।

बइठव  पलथी मार के,लेवव छोंड़व स्वॉस।
राखव मन ला बाँध के,नवा जगावव आस।

सबले बड़े मसीन तन,नितदिन करलव योग।
तन  ले   दुरिहा  भागही,बड़े  बड़े  जर  रोग।

योगा करलव रोज के, सुख के ये संजोग।
तन मन ला करथे बने, योग भगाथे रोग।

आही जीवन मा खुशी, तन के रखव खियाल।
कसरत बिन काया कभू, रहे नही खुशहाल।।

योग भगाथे रोग ला, देथे खुशी अपार।
रोजे समय निकाल के, योग करव दू बार।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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योग दिवस मा

मोर सोरठा छंद म आसन

करलव संगी योग, थोरक समे निकाल के।
ठाहिल संग निरोग, होवय तन मन हा सुघर।।

जिनगी सुघर बनाय, ठाहिल संग निरोग ये।
धीरज संयम आय, अपनाये ले रोज के।।

करथे दूर तनाव, धीरज संयम आय अउ।
तन ला अपन बचाव, बड़का बड़का रोग ले।।

बीमारी झन होय, तन ला अपन बचाव सब।
जाने बिरला कोय, आवय फोकट के दवा।।

जाने जें अपनाय, महिमा अड़बड़ योग के।
कहै ज्ञानु कविराय, करलव थोरक योग सब।।

ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी कवर्धा
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कुण्डलिया- विजेन्द्र वर्मा

आसन प्राणायाम ले, भाग जथे सब रोग।
रोज करिन जी योग तो,काया होय निरोग।
काया होय निरोग,सुघर जिनगी तब चलही।
जीवन होही धन्य,पीर नइ कोनों सहही।
मनखे जम्मो आज,खाव अब कम जी राशन।
निस दिन प्राणायाम,करिन हम सब जी आसन।

विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
जिला-रायपुर
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कुण्डलियाँ 

देवत रहिथें ज्ञान सब, करयँ न कोनो योग। 
बाढ़त हावय पेट हर, अउ बाढ़त हे रोग। 
अउ बाढ़त हे रोग, भोग मा सबो सनायें। 
पढ़थें बस सब लोग, ज्ञान कोनो नइ पायें। 
हो गिन सब लाचार, दुःख भारी सब सहिथें। 
पर नइ उघरिस आँख, ज्ञान बस देवत रहिथें।1।

मोरो अइसन हाल हे, जइसन सब के हाल। 
गणपति जइसन पेट हे, अउ भिदोल कस गाल। 
अउ भिदोल कस गाल, कमर भारी अटियाथे। 
गर्दन टेढ़ा होय, भुजा भारी छटियाथे।  
करले संगी योग, मोर जस हो झन तोरो। 
रहिबे सदा निरोग, नाम ला लेबे मोरो।2।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार
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Sunday, June 20, 2021

जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कवित्त - "चउमास"*

 *जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कवित्त - "चउमास"*


(1)

घाम-दिन गइस, आइस बरखा के दिन

सनन-सनन चले पवन लहरिया।

छाये रथ अकास-मा, चारों खूँट धुँआ साहीं

बरखा के बादर निच्चट भिम्म करिया।।

चमकय बिजली, गरजे घन घेरी-बेरी

बरसे मूसर-धार पानी छर छरिया।

भरगें खाई-खोंचका, कुँआ डोली-डांगर "औ"

टिप टिप ले भरगे-नदी, नरवा, तरिया।।


(2)

गीले होगे माटी, चिखला बनिस धुर्रा हर,

बपुरी बसुधा के बुताइस पियास हर।

हरियागे भुइयाँ सुग्घर मखमल साहीं,

जामिस हे बन, उल्होइस काँदी-घास हर।।

जोहत रहिन गंज दिन ले जेकर बाट,

खेतिहर-मन के पूरन होगे आस हर।

सुरुज लजा के झाँके बपुरा-ह-कभू-कभू,

"रस-बरसइया आइस चउमास हर"।।


(3)

ढोलक बजाँय, मस्त होके आल्हा गाँय रोज,

इहाँ-उहाँ कतको गँवइया-सहरिया,

रुख तरी जाँय, झूला झूलैं सुख पाँय अउ,

कजरी-मल्हार खुब सुनाँय सुन्दरिया ।।

नाँगर चलाँय खेत जा-जाके किसान-मन,

बोवँय धान-कोदो, गावैं करमा ददरिया ।

कभू नहीं ओढ़े छाता, उन झड़ी झाँकर मा,

कोन्हो ओढ़े बोरा, कोन्हों कमरा-खुमरिया ।।


(4)

बाढिन गजब माँछी, बत्तर-कीरा "ओ" फाँफा,

झिंगरुवा, किरवा, गेंगरुवा, अँसोढिया ।

पानी-मा मउज करँय-मेचका, भिंदोल, घोंघी ।

केंकरा, केंछुवा, जोंक मछरी अउ ढोंड़िया ।।

अँधियारी रतिहा मा अड़बड़ निकलँय,

बड़ बिखहर बिच्छी, साँप-चरगोड़िया ।

कनखजूरा-पताड़ा, सतबूंदिया "ओ" गोेहे,

मुँहलेड़ी, धूर, नाँग, करायत कौड़िया ।।


(5)

भाजी टोरे बर खेत-खार "औ" बियारा जाये,

नान-नान टूरा-टूरी मन घर-घर के ।

केनी, मुसकेनी, गुंड़रु, चरोटा, पथरिया,

मछरिया भाजी लाँय ओली भर भर के ।।

मछरी मारे ला जाँय ढीमर-केंवट मन,

तरिया "औ" नदिया मा फाँदा धर-धर के ।

खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी धरे,

ढूँटी-मा भरत जाँय, साफ कर-कर के ।।


(6)

धान-कोदो, राहेर, जुवारी-जोंधरी कपसा

तिली, सन-वन बोए जाथें इही ॠतु-मा।

बतर-बियासी अउ निंदई-कोड़ई कर,

बनिहार मन बनी पाथें इही ॠतु मा ।।

हरेली, नाग पंचमी, राखी, आठे, तीजा-पोरा

गनेस-तिहार, सब आथें इही ॠतु मा।

गाय-गोरु मन धरसा-मा जाके हरियर,

हरियर चारा बने खाथें इही ॠतु मा ।।


(7)

देखे के लाइक रथे जाके तो देखो चिटिक,

बारी-बखरी ला सोनकर को मरार के ।

जरी, खोटनी, अमारी, चेंच, चउँलई भाजी,

बोये हवें डूंहडू ला सुग्धर सुधार के ।।

मांदा मा बोये हे भाँटा, रमकेरिया, मुरई,

चुटचुटिया, मिरची खातू-डार-डार के ।

करेला, तरोई, खीरा, सेमी बरबट्टी अउ,

ढेंखरा गड़े हवँय कुम्हड़ा के नार के ।।


(8)

कभू केउ दिन-ले तोपाये रथे बादर-ह,

कभू केउ दिन-ले-झड़ी-ह हरि जाथे जी ।

सहे नहीं जाय, धुँका-पानी के बिकट मार,

जाड़ लगे, गोरसी के सुखा-ह-आथे जी ।।

ये बेरा में भूँजे चना, बटुरा औ बाँचे होरा,

बने बने चीज-बस खाये बर भाथे जी ।

इन्दर धनुष के कतिक के बखान करौं,

सतरङ्ग अकास के शोभा ला बढ़ाथे जी ।


(9)

ककरो चुहय छानी, ककरो  भीतिया गिरे,

ककरो गिरे झोपड़ी कुरिया मकान हर,

सींड़ आय, भुइयाँ-भीतिया-मन ओद्दा होंय,

टूटय ककरो छानी ककरो  दूकान हर ।।

सरलग पानी आय-बीज सड़ जाय-अउ,

तिपौ अघात तो भताय बोये धान हर,

बइहा पूरा हर बिनास करै खेती-बारी,

जिये कोन किसिम-में बपुरा किसान हर ?


(10)

बिछलाहा भुइयाँ के रेंगई-ला पूछो झन,

कोन्हों मन बिछलथें, कोन्हों मन गिरथें ।

मउसम बदलिस, नवा-जुन्ना पानी पीके,

जूड़-सरदी के मारे कोन्हों मन मरथें ।।

कोन्हों माँछी-मारथें, कोन्हों मन खेदारथें तो,

कोन्हों धुँकी धररा के नावे सुन डरथें ।

कोन्हों-कोन्हों मन मनेमन मा ये गुनथें के

"येसो के पानी - ह देखो काय-काय करथे" ।।


(11)

घर घर रखिया, तूमा, डोड़का, कुम्हड़ा के,

जम्मो नार-बोंवार-ला छानी-मा, चढ़ावैं जी ।

धरमी-चोला-पीपर, बर, गसती "औ",

आमा, अमली, लीम के बिरखा लगावैं जी ।।

फुलवारी मन ला सदासोहागी झाँई-झुँई,

रिंगी-चिंगी गोंदा पचरंगा-मा सजावैं जी ।

नदिया "औ" नरवा मा पूरा जहँ आइस के,

डोंगहार डोंगा-मा चधा के नहकावैं जी ।।


*जनकवि कोदूराम "दलित"*

Monday, June 14, 2021

आषाढ़ मा उगे लमेरा-रोला छ्न्द

 



आषाढ़ मा उगे लमेरा-रोला छ्न्द


आये जब आषाढ़, रझारझ बरसे पानी।

झाँके पीकी फोड़, लमेरा आनी बानी।

किसम किसम के काँद, नार बन बिरवा जागे।

नजर जिंहाँ तक जाय, धरा बस धानी लागे।


बम्हरी बगई बेल, बेंमची अउ बोदेला।

बच बगनखा बकूल, बोदिला बदउर बेला।

बन तुलसी बोहार, जिमीकाँदा अउ जीरा।

खदर खैर खरबूज, खेड़हा कुमढ़ा खीरा।


काँसी कुसुम कनेर, कुकुरमुत्ता करमत्ता।

कँदई अउ केवाँछ, भेंगरा फुलही पत्ता।

कुँदरू कुलथी काँस, करेला काँदा कूसा।

कर्रा कैथ करंज, करौंदा करिया रूसा।


सन चिरचिरा चिचोल, चरोटा अउ चुनचुनिया।

लटकन लीम लवांग, लजोनी लिमऊ लुनिया।

गूमी गुरतुर लीम, गोड़िला गाँजा मुनगा।

गुखरू गुठलू जाम, गोमती गोंदा झुनगा।


दवना दुग्धी दूब, मेमरी अउ मोकैया।

धतुरा धन बोहार, बजंत्री बाँस चिरैया।

साँवा शिव बम्भूर, सेवती सोंप सिंघाड़ा।

आदा अंडी आम , आँवला अउ गोंटारा।


माछी मुड़ी मजीठ, मुँगेसा मूँग मछरिया।

कउहा कँउवा काँद, केकती अउ केसरिया।

बन रमकलिया छींद, कोलिहापुरी कलिंदर।

रक्सी रंगनबेल, खेकसी पोनी पसहर।


भसकटिया दसमूर, पदीना पोई पठवन।

गुलखैरा गुड़मार, सेनहा साजा दसवन।

गुड़सुखडी गिन्दोल, गोकर्णी गँउहा गुड़हर।

फरहद फरसा फूट, फोटका परसा फुड़हर।


देवधूप खम्हार, मोखला अरमपपाई।

उरदानी फन्नास, सारवा अउ कोचाई।

गुढ़रू चिनिया बेर, सन्दरेली सिलियारी।

उरईबूटा भाँट, खोटनी रखिया ज्वाँरी।

 

हँफली हरदी चेंच, डँवर धनधनी अमारी।

बाँदा बर बरियार, मेंहदी बाँकसियारी।

चिरपोटी चनसूर, कोदिला कोपट कसही।

रागी रामदतोन, कोचिला केनी कटही।


बिच्छीसुल शहतूत, कोरई अउ कोलीयारी।

लिली सुदर्शन फर्न, सबे ला भावै भारी।

लिख पावौं सब नाम,मोर बस में नइ भैया।

बरसा घड़ी अघाय, धरा सँग ताल तलैया।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


Wednesday, June 9, 2021

छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के जादूगर श्री खुमान साव जी ला उनकर पुण्यतिथि के अवसर म सादर प्रणाम करत, भाव सुमन -प्रस्तुति(छ्न्द के छ परिवार)




छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के जादूगर श्री खुमान साव जी ला उनकर पुण्यतिथि के अवसर म सादर प्रणाम करत, भाव सुमन -प्रस्तुति(छ्न्द के छ परिवार)


 सरसी छ्न्द-चोवाराम वर्मा

जादूगर संगीत कला के,गुरुवर साव खुमान।

छत्तीसगढ़ी लोक गीत ला, देये जग पहिचान।


गाँव ठेकुवा सन उनीस सौ, बछर रहिस उन्तीस।

पाँच सितम्बर जनम धरे तैं,देइन सब आसीस।

पढ़े-लिखे अउ गुरुजी बनके, बाँटे सुग्घर ज्ञान।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत ला, देये जग पहिचान।


नाचा पार्टी मा तैं जावस,मँदराजी के संग।

तोर कला ला देखत लोगन,  हो जावयँ गा दंग।

हरमुनिया मा अँगरी खेलै, अमरित घोरै कान।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत ला, देये जग पहिचान।


दाऊ रामचंद्र के सँग मा, आइस अइसन मोड़।

तैं रम गेये जोगी जइसे, हिरदे नाता जोड़।

फुलिस चँदैनी गोंदा तब तो,धरती बर वरदान।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत ला, देये जग पहिचान।


अदभुत धुन सिरजाये तैं हा,मन के मया चिभोर।

गाँव-गाँव अउ गली-गली मा, जेकर होगे सोर।

लोक गीत गाके रस घोरै, मस्तुरिया के तान।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत ला, देये जग पहिचान।


भाव सुमन अर्पित हे गुरुवर, पुण्यतिथि मा आज।

बसे हवस जन-जन के हिरदे,अमर करे हस काज।

हे खुमान संगीत अमर तो, करथे जग गुणगान।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत ला, देये जग पहिचान।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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*खुमान लाल साव*


*खु-* *दोहा*

खुले मया के राग हा,महकय गोंदा फूल।

सदा अमर तँय साव जी,नमन चरन के धूल।।


*मा-* *उल्लाला*

*माँदर बंशी मोहरी,बेंजो मारय तान जी।*

*जादूगर संगीत के,राहय हमर खुमान जी।।*


*न*- *रोला*


नवा नवा संगीत,सजा के खूब सुनावै।

पेटी तबला ताल,बजा के मन हरसावै।

गाँव गली मा छाय,चँदैनी गोंदा फुलवा।

गीत राग बगराय,रहय सब उलवा उलवा।।


*ला* *छप्पय*


लाल रतन हे साव,पुरोधा सदा कहाही।

अमर हवय गा नाँव,साव ला कोन भुलाही।

सुवा ददरिया गीत,सबो ला खूब सिखाये।

देवय बड़ संगीत,चँदैनी गोंदा छाये।

बाँटय सब ला ज्ञान ला,राहय गुण के खान जी।

हारमोनियम राग के,राजा हमर खुमान जी।।


*ल* *कुन्डलिया*


लइका सबो सियान बर,किसम किसम के गीत।

कालजयी सब गीत मन,मन ला लेवय जीत।

मन ला लेवय जीत,ताल अउ सुर हा ताजा।

लोक गीत संगीत,सजावय बनके राजा।

धुन के पक्का साव,राग के खोले फइका।

बाँटय सब ला ज्ञान,सिखावय कतको लइका।।


*सा* *सतनाम साखी*

साव जी बजावय हारमोनियम,

गीत धुन के सुजान हो...

अमर हमर महान साव जी,

नाँव हवय खुमान हो..


जादूगर संगीत के रे भाई,

सुग्घर गीत सजाय हो...

चँदैनी गोंदा गली गली मा,

महर महर ममहाय हो...ll


*व* *दोहा*

*वंदन हवय खुमान जी,तुमला बारम्बार।*

*नवा नवा संगीत बर,अउ लेहू अवतार।।*


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़

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 जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: खुमान जी ल काव्यांजलि (चौपई छंद)


धान कटोरा के दुबराज,करबे तैंहर सब जुग राज।

सुसकत हावय सरी समाज,सुरता तोर लमाके आज।1।


चंदैनी गोदा मुरझाय,संगी साथी मुड़ी ठठाय।

तोर बिना दुच्छा संगीत,लेवस तैं सबके मन जीत।2।


हारमोनियम धरके हाथ,तबला ढोलक बेंजो साथ।

बाँटस मया दया सत मीत,गावस बने सजा के गीत।3।


तोर दिये जम्मो संगीत,हमर राज के बनके रीत।

सुने बिना नइ जिया अघाय,हाय साव तैं कहाँ लुकाय।4।


झुलथस नजर नजर मा मोर,काल बिगाड़े का कुछु तोर।

तोर कभू नइ नाम मिटाय,जिया भीतरी रही लिखाय।5।


तोर पार ला पावै कोन,तैंहर पारस अउ तैं सोन।

मस्तुरिहा सँग जोड़ी तोर,देय धरा मा अमरित घोर।6।


तोर उपर हम सबला नाज,शासन ले हे बड़े समाज।

माटी गोंटी मुरुख सकेल,खेलत हें देखावा खेल।7।


छत्तीसगढ़ के तैं हर शान, सबझन कहे खुमान खुमान।

धन धन धरा ठेकवा धाम, गूँजय गीत सुबे अउ शाम।8।


सबके अन्तस् मा दे घाव,बसे सरग मा दुलरू साव।

सच्चा छत्तीसगढ़िया पूत,शारद मैया के तैं दूत।9।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटी, राजनांदगांव(छग)

9981441795

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 हरिगीतिका छंद*


छत्तीसगढ़ संगीत मा,जादू चलाए आज तँय।

कइसे भुलाबो साव जी,सुग्घर करे हस काज तँय।।

जन मन समाए गीत मा,अउ लोक धुन के राग मा।

बेटा दुलरुवा आय हव,दाई ददा के भाग मा।।


गोंदा चँदैनी  साज के, बगराडरे हव नाँव ला।

हरमोनियम तबला बजा,संगीत दे हव गाँव ला।।

सरगम बजाए लोक धुन,मोहित सबो नर नार जी

बहिगे मया डोंगा तुँहर,धरके सबो पतवार जी।।


जम्मों सिखइया मन चलिन,रद्दा दिखाए तँय इहाँ।

संगीत गुरु बन साव जी,सब ला सिखाए तँय इहाँ।

गावत हवै  छत्तीसगढ़, तुँहरे बनाये  गीत ला।

हिरदय समाए साव जी,मन मा बसाए प्रीत ला।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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*छत्तीसगढ़ के संगीत सम्राट श्रीखुमान लाल साव जी के पुण्यतिथि मा छन्दमय काव्यांजलि समर्पित* -


(1) मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव


मोर रग-रग मा संगीत बसे, मँय हरमुनियम के लहरा अंव

मँय मोहरी बंसी ढोलक अंव, मँय बेंजो, घुँघरू, तबला अंव

मोर साँस साँस मा तान हवै अउ ताल हवै हर धड़कन मा

तुम कान लगाके सुनव चिटिक, मँय छत्तीसगढ़ के कन-कन मा

कविता के गाड़ीवाला बन, मँय दया मया बगरइया अंव

छत्तीसगढ़ के बेटा अंव, मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव।1।


मोर बसेरा कहाँ नहीं मँय रइपुर के रजधानी मा

मँय शिवनाथ अरपा पैरी अउ महानदी के पानी मा

मँय खेतीखार के रुमझुम मा, चूरी के छन्नर छन्नर मा

मँय बसँव चंदैनी गोंदा मा, पैरी के खन्नर खन्नर मा

मँय लछमन के बलदाऊ गा, मँय रामचन्द्र के सपना अंव

छत्तीसगढ़ के बेटा अंव, मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव।2।


मोर संग चलव गावत रहिथौं, तब पुरवैया चल पाथे जी

संतोष टाँक के बंसी सुन, कान्हा हर रास रचाथे जी

गिरिजा सिन्हा के बेंजो मा, इंदरावती रुनझुन गाथे

देवदास के मोहरी ला सुन, सुरुज देव सोनहा आथे

ठाकुर महेश के तिरकिट धुम, मँय फूल चंदैनी गोंदा अंव

छत्तीसगढ़ के बेटा अंव, मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव।3।


मँय भैयालाल हेडाऊ के सुर मा कबीर बन जाथंव जी

अनुराग संग मँय बखरी के तूमा के नार कहाथंव जी

मँय संतोष बसंती अउ संगीता किस्मत के सुर अंव

रविशंकर केदार साधना, मस्तुरिया कस गुरतुर अंव

साभिमान के रक्षा खातिर, साजा आगी अँगरा अंव।

छत्तीसगढ़ के बेटा अंव, मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव।4।


काया माटी मा मिल जाही, मँय संसो चिटिको करँव नहीं

जन-जन के मन मा जीयत रहूँ, मोर दावा हे मँय मरँव नहीं

जब तक सुरुज-चन्दा रइही, संगीत सुनाहूँ जन-जन ला

कोरा कागद मा लिखवा लौ, मँय गीत सुनाहूँ जन-जन ला

सब खुमान मोला कहिथें, मँय रस के भरे बदरिया अंव।

छत्तीसगढ़ के बेटा अंव, मँय छत्तीसगढ़ के बेटा अंव।5।



*अरुण कुमार निगम*

Monday, June 7, 2021

अमर गीतकार जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ल नमन करत,, छ्न्द बद्ध भावांजलि-प्रस्तुति छ्न्द के छ परिवार








 

अमर गीतकार जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ल नमन करत,, छ्न्द बद्ध भावांजलि-प्रस्तुति छ्न्द के छ परिवार



कुंडलियाँ छ्न्द- मस्तुरिया जी

मधुरस घोरे कान मा, मन ला लेवै जीत।

लोक गीत के प्राण ए, मस्तुरिया के गीत।

मस्तुरिया के गीत, सुनाथे जन के पीरा।

करदिस हे अनमोल, बना माटी ला हीरा।

करिस जियत भर काम, कभू नइ बोलिस हे बस।

माटी पूत महान, सदा बरसाइस मधुरस।


छोड़िस नइ स्वभिमान ला, सत के करिस बखान।

बनिस निसेनी मीत बर, बइरी मन बर बान।

बइरी मन बर बान, गिराइस हे मस्तुरिया।

दया मया सत घोर, बनाइस हे घर कुरिया।

कलम चला गा गीत, सदा मनखे ला जोड़िस।

अमरे बर आगास, कहाँ माटी ला छोड़िस।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


छत्तीसगढ़ के दुलरवा कवि गायक मस्तुरिया जी ल शत शत नमन


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छप्पय छन्द

भारत माँ के लाल,हमर लक्ष्मण मस्तुरिहा।

रइही दिल के पास,कभू नइ जावय दुरिहा।

कालजयी हर गीत,सुने मा अति मनभावन।

लोककला के साज,करे तँय जुग-जुग पावन।

हमर राज के शान तँय,जनकवि हमर महान जी।

जब तक सूरज चाँद हे,होही जग मा मान जी।।(१)


दया मया के गीत,लिखय अउ गावय बढ़िया।

अमर हवय गा नाँव,हमर लक्ष्मन मस्तुरिया।

परे डरे ला संग,लगाये बनके दानी।

ए माटी के लाल,अमर हे तोर कहानी।

जन मानस मा गीत हा,गूँजत रहिथे तोर गा।

जल्दी आजा अब इहाँ,तोर लेत सब सोर गा।।(२)


गुत्तुर तोर अवाज,गीत मा सुमता लाये।

सदा नीत के गोठ,तोर अंतस ला भाये।

भारत माँ के लाल,रोज तोला हे वंदन।

लक्ष्मन हवस महान,तोर पवरी हे चंदन।

श्रद्धा सुमन चढ़ाँय सब,मिलके बारंबार जी।

हमर गाँव ए राज मा,अउ ले ले अवतार जी।।(३)


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

बायपास रोड कवर्धा

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*दोहा -चौपाई*

दोहा -मस्तुरिया होगे अमर,कालजयी हे गीत।
सबो जिनिस के भाव ला, समझे बनके मीत।।

छोड़ चले लक्ष्मण मस्तुरिया ।सुन्ना होगे सुर के कुरिया।।
कण कण मा तँय बसे दुलरवा।खेत खार घर नदिया नरवा।। 1

घुनही होगे तोर बँसुरिया।तैंहर चलदे सबले दुरिहा।।
छलकत रहिथे धान कटोरा।तँय बइठे धरती के कोरा।। 2।

लाल रतन धन छतीसगढ़िया।सबले सुघ्घर सबले बढ़िया।।
बगरय जग मा चिटिक चँदैनी।आप चढ़े हव सरग निसैनी।।3।

रस घोले रे माघ फगुनवा।बिरहिन के तब आय सजनवा।।
अमर गीत ला रचके लक्ष्मण।बसगे भुइयाँ के तँय कण कण।।4।

ले चल रे चल गाड़ी वाला।धरे मरारिन भाजी पाला।
सबके पीरा दुःख चिन्हैया।अइसन नइहे लोक गवैया।।5।

दोहा-कतका करँव बखान मँय,हे माटी के लाल।
जन जन मा तैंहर बसे,रहिबे तीनों काल।।

छंदकार -आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)

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सुरता मस्तुरिया जी

छत्तीसगढ़ के नाम जगाये, माटी के जस गाके।

जनकवि हे लक्ष्मण मस्तुरिया,पावन कलम चलाके।।


महानदी के छलकत आँसू,सरु किसान के पीरा।

अउ गरीब ला हृदय बसाके, गाये गीत कबीरा।।


आखर आखर अलख जगाके,तैं अँजोर बगराये।

परे डरे कस मनखे मन बर,सुग्घर भाव जगाये।।


कर विरोध सब शोषक मन के,हक बर लड़े सिखोये।

दुखिया के बन दुखिया संगी, बीज मया के बोये।।


लोक गीत के ऊँचा झंडा, फहर फहर फहराये।

छत्तीसगढ़ियापन के लोहा,सरी जगत मनवाये।।


झुके नहीं तैं पद पइसा मा,कलाकार के सँगवारी।

पाये नहीं भले तैं तमगा, कोनो जी सरकारी।।


जन जन के हिरदे मा बसथस,सुरता मा लपटाये।

नमन करत हावय ये 'बादल', तोला मूँड़ नँवाये।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

(छंद के छ परिवार -छंद साधक)

हथबंद

छत्तीसगढ़

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लावणी छन्द- बोधन राम निषादराज

(लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला सादर नमन)


गिरे परे मनखे मन के तँय,दुख ला अपन बनाए गा।

श्री लक्ष्मण मस्तुरिया भइया, ऊँखर गीत ल गाए गा।।


मस्तूरी मा जनम धरे तँय, महतारी भुइयाँ खातिर।

जन-जन मा बिस्वास भरे तँय,गीत बने दुनिया खातिर।।

संग चलौ कहिके मनखे ला,अपन संग रेंगाए गा। 

गिरे परे मनखे मन के तँय...............


दया मया के गीत रचइया,सुग्घर भाखा अउ बोली।

गुरतुर राग सुनाए तँय हा,झूमै नाचै हमजोली।

छइँहा भुइयाँ के सिरजइया, माटी गंगा लाए गा।

गिरे परे मनखे मन के तँय.................


अंतस सबके रचे बसे तँय,कइसे आज भुलाबो गा।

सुरता करके तोर गीत ला, तोर राग मा गाबो गा।

सुन्ना परगे तोर बिना अब,कइसे आस बँधाए गा।

गिरे परे मनखे मन के तँय................

छंदकार - बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम 

(छत्तीसगढ़)

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सरसी छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"


गाँव मस्तुरी मा जनमे हे, लक्ष्मण नाम धराय।

आनी- बानी गीत लिखे हे, दुनिया भर मा छाय।।

छत्तीसगढ़ी भाखा के वो, अड़बड़ मान बढ़ाय।

दया- मया के मँदरस घोरे, सब ला गीत सुनाय।।

लोकगीत के बड़े धुरी वो, सबके मन ला भाय।

परे- डरे अउ गिरे -थके ला, अपने संग बुलाय।।

कालजयी रचना हे ओखर, जुग- जुग कर ही राज।

रतन - दुलरवा बेटा वोहा, कहलावत हे आज।।

अमर हवय लक्ष्मण मस्तुरिहा, जुग- जुग रइही नाम।

श्रद्धा - सुमन चढ़ावत हावँव, कहत राम हे राम।।

"जलक्षत्री" आशीष मँगत हे, कुछ तोरो गुण पाँव।

नवा - नवरिया अड़हा साधक, सबले छुटका आँव।।


छंदकार-अशोक धीवर "जलक्षत्री"

 ग्राम -तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

 जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

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आल्हा छंद- विजेन्द्र वर्मा

सुरता मस्तुरिया जी

रिहिस हवै जी माटी बेटा,कहय चलव जी मोरे संग।

गिरे परे हपटे मन हा तब,रँगत  रिहिन हे ओकर रंग।1।


हमर राज के राजा बेटा, लक्ष्मण मस्तुरिया हे नाँव।

गीत लिखे जी आनी बानी,गूँजय गली गली हर ठाँव।2।


कलम गढ़े जन जन के पीरा,परदेशी बर बनजय काल।

हितवा मन के हितवा बनके,बइरी बर डोमी विकराल।3।


रद्दा सुमता मा चलके जी,स्वारथ छोड़व अब इंसान।

कहत रिहिन हे लक्ष्मण भइया,बेंचव झन कोनो ईमान।4।


बसे हवै जन जन के हिरदे,गावयँ सुग्घर गुरतुर गीत।

परे डरे ला साथ लान के,बना डरिस जी सब ला मीत।5।


भरे रहै जी तन मा गरदा,अंतस जेकर हे अँधियार।

दीप जला के करदय लक्ष्मण,मन ला ओकर जी उजियार।6।


देश धरम बर काम करिन हे,देवत रिहिन मया के छाँव।

हाथ जोड़ के पाँव परत हँव,अमर रहय जी ओकर नाँव।7।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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 *लावणी छंद* 


तोर नाव ला रोजे लेवँय, भुइँया के बने नँगरिया|

दया मया के गीत सुनादे, आ तँय लछिमन मस्तुरिया||



किंदरावँय भवँरा ला कोनो, खेती बर धनहा परिया|

कहाँ लुका गे जाके भैया, मोर सुमत के मस्तुरिया||



कोन बताही रस्ता हमला, कोन उठाही परे डरे|

तोर सुमत के सरग निसेनी, कोन चढा़ही संग धरे||


झुूलत हावय अँखियन मोरे, छत्तीसगढ़ के माटी हा|

भारत माँ के रतन बेटा, बाना बांधे छाती हा||


तोर गीत संगीत अमर हे, रहि-रहि के सुरता आही|

फिटिक अँजोरी के बगरे ले, छइँहा भुइँया ममहाही||


गावत झूँमय सावन भादो, नाचे फागुन जहूँरिया|

लोक धून मा थिरकँय तोरे, करमा बड़ झोर ददरिया||



दीन दुखी के मरम समझ के, फुलगी पानी अमराये|

गुरुतुर भाखा बोली बानी, राज -राज तँय बगराये||


छंद साधक -अश्वनी कोसरे

रहँगी पोड़ी कवर्धा कबीरधाम( छ.ग

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कुण्डलिया छंद - राजकुमार बघेल


करके गुरु के बंदगी, जपे हवय सतनाम ।

अष्ट कमल आसन बना, हिरदे गुरु के नाम ।।

हिरदे गुरु के नाम, शबद के अमरित बानी ।

सत के बीड़ा थाम, रटे ये शबद रुहानी ।।

अजर अमर हे नाम, काट दुख अंतस धरके  ।

हंसा हो सतधाम, बंदगी गुरु के करके ।।


पावन हावय शुभ दिवस, सुरुज उगिस आगास ।

सात जून उन्नीस सौ,बछर रहिस उनचास ।।

बछर रहिस उनचास, जन्म दिन धरती हीरा ।

भरे हृदय हे खाश किसनहा मन बर पीरा ।।

अइसन माटी पूत, गीत हे बड़ मनभावन ।

जन बर प्रेरक आज, जनम दिन हावय पावन ।।


बाना साहित बर बुने, तॅऺंय गुदड़ी के लाल ।

दया मया के डोर धर, जग बर बने मिशाल ।।

जग बर बने मिशाल, पाय मस्तूरी कोरा ।

आव जनम ले काश, तोर अब हवय अगोरा ।।

दुनियाॅऺं दुनियाॅऺं शोर, नाम जाना पहिचाना ।

कलम धरे तॅऺंय हाथ, बुने बर साहित बाना ।।


छंदकार - राज कुमार बघेल

सेन्दरी जिला बिलासपुर (छ.ग.)

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*लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता*

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लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।

जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।1।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


ये माटी के स्वाभिमान के, गीत सदा जे गाइस हे।

मँय छत्तीसगढ़िया अँव कहिके, जग मा अलख जगाइस हे।।2।

दया-मया के परवा छानी, सुरता मा ओकर छाबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


बन गरीब के हितवा-मितवा, संग चले बर जे बोलय ।

माघ-फगुनवा मा सतरंगी, मया- रंग ला जे घोरय ।।3।

देश मया के भारत गीता, संदेशा ला बगराबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,-----


महानदी-अरपा-पइरी मा, जब- तक पानी हा रइही ।

अपन दुलरवा ये बेटा के, अमर कहानी ला कइही ।।4।

परके सेवा मोर सिखानी, बात कहे ला दुहराबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


सुवा-ददरिया-करमा-पंथी, गुरतुर सुर मा जे गावै ।

सुरुज-जोत मा करय आरती, छइयाँ भुइँया दुलरावै ।।5।

अइसन जनकवि के चरनन मा, श्रद्धा के फूल चढ़ाबो ।।

लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता,------


लक्ष्मण मस्तुरिया के सुरता, कइसे गा हम बिसराबो ।

जब-जब सुनबो अमर गीत ला, आगू मा सउँहे पाबो ।।

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छंदकार- मोहन लाल वर्मा 

पता:- ग्राम-अल्दा,पो.आ.-तुलसी (मानपुर),व्हाया- हिरमी,

वि.खं.-तिल्दा,जिला-रायपुर 

(छत्तीसगढ़)पिन-493195

मोबाइल नं.-9617247078

                9340183624

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शीर्षक - मस्तुरिया जी राह दिखावँय।


तान छेड़ के अलख जगावँय।

मस्तुरिया जी राह दिखावँय।।


जन सेवा बर अगुवा रहितिन।

लोगन मन के हित मा कहितिन।।

समता के उँन पाठ पढ़ावँय।

मस्तुरिया जी राह दिखावँय।।


लोक-गीत बर लड़िन लड़ाई।

भेदभाव के पाटिन खाई।।

गायक मन ला आगू लावँय।

मस्तुरिया जी राह दिखावँय।।


गीत सुनावँय पुरखा मन के।

सार रहय जेमा जीवन के।।

सुग्घर प्रेरक गाना गावँय।।

मस्तुरिया जी राह दिखावँय।।


भाखा के बड़ मान बढ़ाइन।

परंपरा ला बने निभाइन।।

सुरता मा जन-जन के हावँय।

मस्तुरिया जी राह दिखावँय।।


गीतकार - श्लेष चन्द्राकर

पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.-27,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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कुकुभ छंद - राज कुमार बघेल


भारत के अनमोल रतन ये, हावय जी गजब निराले ।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, कहिथें जी दुनिया वाले ।।


नाम धराये मस्तुरिया ये, साहित बड़े पुरोधा हे ।

कोन पाय जी तोर पार ये, अइसन सिरजन बोधा हे ।।


गिरे परे के संग चले वो, बंदत नित दिन हे माटी ।

लोक गीत के मान बढ़ाये, गुन गावत परवत घाटी ।।


मन डोले ये जब फागुन हो, गोंदा राखे हे चौरा ।

धनी बिना जग सुन्ना लागे, हवे मयारु मन भौंरा ।।


मोला जावन दे अलबेला, बाली मोर उगरिया हे ।

संगी मया जुलुम लागे रे, घुनही बजे बसुरिया हे ।।


छन्नर छन्नर पैरी बाजे, खन्नर हाथे चूरी रे ।

रूप धरे मोहिनी मोहथे, हावय आंखी भूरी रे ।।


हवे नाक बर ये नथनी अउ, हवे पाॅऺंव बर रे पैरी ।

चंदा टिकुली फूल चॅऺंदैनी, जले निहारत रे बैरी ।।


लागे झन ये कभू नजरिया, माटी होही चोला रे ।

राम राम के बेरा संगी, भेंट कहाॅऺं अब टोला  रे ।।


बखरी तुमा नार बरोबर, सावन आगे आगे रे ।

लहरा मारे लहरा बुॅऺंदिया, धरती मन हरियागे रे ।।


जम्मों किसान चला चली गा, बोंय धान बर ये जाबो ।

मुड़ मा पागा कान म चोंगी, गीत मया के सब गाबो ।।


चला चला जाबो रे भाई,जुरमिल कर निंदाई रे ।

सुन सॅऺंगवारी मोर मितानी, खेती खार कमाई रे ।। 


घाम लगे जस आग बरोबर, बोकबाय देखे हाले ।

जस दॅऺंउरी हे बइला घूमत,गोड़ परे हे बड़ छाले ।।


चंदा बनके जीबो हम तो,करतब कारण मर जाबो ।

चम चम चमके बने नहीं अब, कड़क कड़क के बरसाबो ।।


मोटर वाला पता बतादे, काल अवइया नइ आये ।

मोरो कुरिया सुन्ना मितवा, सावन अब तो नइ भाये ।।


झिलमिल दिया बुता देबे का,देख बदरिया घिर आगे ।

घानी मुनी घोर दे पानी,तब भे चिरई उड़ भागे ।


परगे हवय किनारी चिनहा,लुगरा मन के ये नोहे ।

काॅऺंटा खुंटी हवे रेंगइया,हॅऺंउला मूॅऺंड़ म  हे बोहे ।।


कहाॅऺं शहर जाबो ये भाई,मया गाॅऺंव  के झन खोबे ।

अंगरेजिया  बोली बोले, परदेसिया धनी होंबे ।।


मॅऺंय बंदत हॅऺंव दिन राती, धरती मॅऺंइया जय होवे ।

भारत भुॅऺंइया धरम धाम हे, पाॅऺंव  फूल जस बड़ सोहे ।।


छंदकार- राज कुमार बघेल

 सेन्दरी बिलासपुर (छ.ग.)

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लक्ष्मण मस्तुरिया (लावणी छंद)

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गिरे परे हपटे मनखे के,

                    पीरा दुःख हरइया।

मस्तुरिया छत्तिसगढ़िया जी,

           मस्तुरिया छत्तिसगढ़िया।।


जनम धरिन मस्तुरी गाँव मा,

             सात जून के छइँहा मा।

उन्नाईस उनचास ईसवी,

             खेलिस दाई बइँहा मा।।

हावय सबके अन्तस् भीतर,

              सिधवा लक्ष्मण भइया।

मस्तुरिया छत्तिसगढ़िया ............


मोरे संग चलव के नारा,

                दिल्ली तक पहुँचाइस।

महानदी गंगा जस मानिस,

               सबके प्यास बुझाइस।।

बिखहर डोमी बइरी मन बर,

                 हितवा  गले  लगइया।

मस्तुरिया छत्तिसगढ़िया...............


गीत अपन धरती मइया के,

               अउ  किसान के नाँगर।

महिनतकश मजदूर गँवइहा,

                पेरिन   अपने  जाँगर।।

नवा जोत ले नवा गाँव बर,

                  रद्दा   नवा    गढ़इया।

मस्तुरिया छत्तिसगढ़िया...............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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माटी के मया लक्ष्मण बर - सार छंद - विरेन्द्र कुमार साहू


क्रांति बिगुल फूकइया बेटा, तँय वाणी जन गण के।

मँय छत्तीसगढ़िन लक्ष्मण तँय, गहना मोर रतन के।।


मोर मान सम्मान रखे बर, जूझे तँय दुनिया ले।

तेखर सेती कहिथँव मँय हा, बेटा हिम्मत वाले।


मोर संग मा सुख अउ दुख के, कँवरा तँय हा गटके।

मोर तपस्वी लाला तँय हा, सोना बनगे तप के।


कोन मेटही गा समाज के, रगबगरे आडम्बर।

कोन जगाही मरहा आगी, मोर भिंया के सुख बर।।


सुरता करथँव लक्ष्मण मँय हा, घरी-घरी बस तोरे।

मोर दुलरुवा बेटा फिर ले, आबे अँगना मोरे।


विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबांधा (पाण्डुका), जिला गरियाबंद (छत्तीसगढ़)

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सोरठा छंद


दुनिया भर मा शोर, उड़त हवय चारों डहर।

अमर नाम हे तोर, शत शत सादर हे नमन।।


जन जन के आवाज, बनके बोलस रोज तँय।

सबके हिरदै राज, करथस तैहा आज भी।।


मैं साथी हव तोर, गिरे परे मनखे तुँहर।

चलव संग मा मोर, दया मया बाँटत कहै।।


छत्तीसगढ़ के शान, दुनिया भर बगराय तँय।

सेवा अउ गुनगान, माटी के सेवा करे।।


रखे जिहाँ तँय पाँव, सात जून उनचास के।

ओ मस्तूरी गाँव, भाग अपन सहरात हे।।


मस्तुरिया के नाम, सबके हिरदै मा बसे।

सादर मोर प्रणाम, अइसन जनकवि ला हवै।।


छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी- कवर्धा

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दोहा छंद - रामकली कारे


कवि लक्ष्मण जी ला नमन, जन्मदिवस के आज।

जन जन के नायक हवै, गीत कार सुर साज।। 


अनुपम सिरजन लेखनी, मस्तुरिया के गीत। 

संग चलव अभियान ले, दुनिया ला लिन जीत।।


अरपा पैरी धार हा, होय हमर अभिमान।

राज गीत बनगे हवै, छत्तीसगढ़ी शान।। 


रचे गढ़े सब गीत के, गुरतुर गुरतुर बोल।

अंतस ला छू जाय जी, तन मन जावय डो़ल।।


माघ फगुनवा गीत ले, मया रंग छलकाय।

सुवा ददरिया गीत गा, सबके मन हरषाय।।


नागरिहा सुरता करैं, कहाॅ मितानी खोय।

जौंरा धौंरा संग मा, पड़की मैंना रोय।


लोक कला संगीत ले, जन जन दय संदेश।

चंदैनी गोंदा बना, हरिन सबो के क्लेश।।


बेटा छत्तीसगढ़ के, कण कण बसथव आप।

सहज सरल समभाव ले, छोड़िन हिरदे छाप।।


हीरा अस चमकत रहै, कवि लक्ष्मण जी नाम।

रहै धरोहर लेखनी, मस्तुरिया निज धाम।।


अपने माटी ले मिले, मूल रूप पहिचान।

जड़ ले जुड़ के जे रहै, भुॅइया के भगवान।।


महतारी के मान बर, कलम करै हें धार।

जीयय जागय वो सदा, रहिथे अमर विचार।।



छंदकार - रामकली कारे

बालको नगर कोरबा 

छत्तीसगढ़

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रूपमाला छंद :-


लोक धुन गुरतुर सजइया,एक लक्ष्मण नाॅंव।

वो सृजन बाना गड़ा के ,दे हवय छत छाॅंव।

गीत गावत अउ जगावत, बड़ करिस उपकार।

स्वप्न ओकर सच करे बर,जाग अब संसार ।।


महेंद्र कुमार बघेल

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अजय अमृतांसु: कुण्डलिया- 


बाना धरिन कबीर के,बेटा रतन कहाय।

कालजयी संदेश दिन, अंतस सोझ समाय।

अंतस सोझ समाय, बात गंभीर कहिन जी।

पीरा अउ अन्याय, देख ना कभू सहिन जी।

खुल के करिन विरोध, सहिन नइ ककरो ताना।

मस्तुरिहा हे नाव,धरिन जी कबीर बाना।।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छ. ग.)

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सुरता मस्तुरिया जी

सुरता आथे रहि रहि मोला, तोर गीत ला गावँव।

छत्तीसगढ़ मयारू बेटा, तोला माथ नवावँव।।


जनम धरे तँय मस्तूरी मा, मस्तूरिहा कहाये।

बचपन बीतिस खेल कूद मा, लक्ष्मण नाम धराये।।


तोर गीत हा सुग्घर लागे, जन मन मा बस जाथे।

संग चलव जब कहिथस तैंहा, कतको झन हा आथे।।


अमर करे तँय नाम इँहा के, माटी के तैं हीरा।

गिरे परे हपटे मनखे के, जाने तैं हर पीरा।।


अरपा पैरी महानदी कस, निरमल हावय बानी।

सब ला मया लुटाये तैं हर, हरिशचंद कस दानी।।


छछलत हावय तुमा नार हा, घर घर मा तँय बोंये।

सुरता कर के आज सबो झन, अंतस ले गा रोये।।


*छंदकार* 

महेंद्र देवांगन *माटी*

*प्रेषक- सुपुत्री - प्रिया देवांगन *प्रियू*

राजिम

छत्तीसगढ़

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*दोहा छंद*

*जन कवि श्री लक्ष्मण मस्तुरिया जी ल समर्पित*


सात जून उनचास के,जनम धरिस इक बाल।

लक्ष्मण जेकर नाव सुन,छेड़े वीणा ताल।।


सात सूर ला साध के,करगे नवा कमाल।

गीतकार कविता गढ़े,निक माटी के लाल।।


हमर राज के सान अउ,रहे कला भगवान।

जुग जुग जग सूरत करे,सुन लक्ष्मण के तान।।


कला धरोहर राज मा, लक्ष्मण सुरुज समान।

बगराये परकाश ला,बाँट कला कवि ज्ञान।।


गिरे पड़े मनखे सबो,चलव संग मा मोर।

बोले मस्तुरिया सदा,करो कभू झन शोर।।


तीन नवम्बर काल के,चलगे चक्का लाल।

कलम कला जग छोड़ के,श्वेत ओढ़ लिस साल।।


*छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र*

   छन्द साधक सत्र-09

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दोहा छ्न्द

लक्ष्मण जी मस्तूरिहा, रचे मया के गीत। 

जन मा करे सजोर तँय, सुमता संग पिरीत। ।

शोषण अउ पाखंड के, सरलग करे विरोध। 

गिरे परे जन  मा भरे, नवा चेतना बोध। ।

काम किसानी गाँव के, सुघ्घर सिरजे हाल। 

तोर नाँव जस हें अमर, छत्तीसगढ़ के लाल। ।

        --दीपक निषाद-बनसाँकरा (सिमगा)

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( सार छंद ) 


 *लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला सादर समर्पित* 


छत्तीसगढ़ी गीत सुनावँय, लक्ष्मण जी मस्तुरिया।

सुग्घर सुग्घर गीत लिखे हें, आनी-बानी बढ़िया।।


सरल सहज सुभाव हा ओखर, जनमानस ला भावै।

मोर संग चलव ' गीत गा के, बेटा रतन कहावै।।


तुमा नार बखरी के गावै, मन झुमरे बर लागे।

घुनही तोर बँसुरिया सुनके, सोवत मनखे जागे ।।


चल रे गाड़ी वाला ' सुग्घर, गीत लिखे मस्तुरिया।

माटी के बेटा चंदन कस, हावय छत्तीसगढ़िया।।


फूल सुमन श्रद्धा के अर्पण,हाथ जोड़ पैलगी।

आज वसन्ती मस्तुरिया ला, सादर करवँ बंदगी।।


             - वसन्ती वर्मा

               

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*जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला समर्पित*

(आल्हा छंद जीवनी)

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छत्तीसगढ़ी जाने माने,गीतकार मस्तुरिया आय।

अइसन जनकवि लक्ष्मण जी ला,आज नहीं कउनो बिसराय।।


बिलासपुर मस्तुरी गाँव मा,सात जून के सन् उन्चास।

जनम धरिन लक्ष्मण मस्तुरिया,पूरा होइन परिजन आस।।


ददा दास कुन्दन गोस्वामी,समेकुँवर दाई के नाँव।

बने इँखर संस्कार मिलिन हे,लइकापन मा सुख के छाँव।।


दाई ददा दुलरुवा बेटा,पढ़ लिख के होगिन हुशियार।

जिनगी के संघर्ष कहानी,अपन गीत ले करिन तियार।।


माटी के अनमोल रतन ये,लोक कला ला करिन प्रणाम।

छत्तीसगढ़ी भाखा सेवा,अपन बनालिन बूता काम।।


करिन साधना मस्तुरिया जी,कला समर्पित सुग्घर ध्यान।

गीत रचिन हे छत्तीसगढ़ी,पाइन हे बहुते सम्मान।।


बाइस साल उमर मा लक्ष्मण,बना डरिन अपने पहिचान।

दाऊ रामचन्द्र कृत संस्था,चंदैनी गोंदा के गान।।


सुग्घर गायक छत्तीसगढ़ी,करिन देशमुख सँग शुरुआत।

गाँव बघेरा सन् इकहत्तर,मास नवम्बर के दिन सात।।


छत्तीसगढ़ विरासत संस्कृति,बने जगाइन हे पहिचान।

जिनगी के संघर्ष कहानी,नारी दुख मजदूर किसान।।


मोर संग चल कहै सबो ला,गिरे परे मनखे के गीत।

चंदैनी गोंदा के मंचन,खूब निभाइन सुन लौ मीत।।


लिखिन अनगिनत गीत मधुर जी,मस्तुरिया के लेखन सार।

रहिन समर्पित लक्ष्मण भइया,चंदैनी गोंदा परिवार।।


सन् अठ्यासी मा रइपुर मा,सुग्घर कालेज राजकुमार।

प्रोफेसर बन घलो पढ़ाइस,बाँटिस ज्ञान करिन उपकार।।


लिखिन "हमूँ बेटा भुइयाँ के","गँवई गंगा" पुस्तक गीत।

"धुनही बाँसुरिया" धुन छोड़िन,बड़ मनभावन सुन लौ मीत।।


"माटी कहै कुम्हार" लिखिन हे,छइँहा भुइयाँ के गुणगान।

दिल्ली लाल किला मा गाइन,छत्तीसगढ़ी गीत महान।।


"मन डोले रे मांघ फगुनवा",गीत मया के गावय झूम।

फागुन महिना लाली परसा,ये भुइयाँ ला लेवय चूम।।


दया मया के गीत लिखिन हे,सुग्घर स्वर मा थिरकय अंग।

अता पता लेजा देजा रे,सोर उड़य कविता के संग।।


सन् पचहत्तर केंद्र रायपुर,अकाशवाणी गूँजिस गीत।

जन-जन के हिरदय मा बसगे,सुग्घर गुरतुर ये मनमीत।।


मस्तुरिया के रचना मन मा,धरती के हावै जय गान।

एखर कोरा सरग बरोबर,छइँहा भुइयाँ सिरतों मान।।


चंदैनी गोंदा सुन मनखे,सकला जावय भीड़ अपार।

गाँव-शहर हा खलक उजर जय,मस्तुरिया बर परय गुहार।।


दो हजार सन् तीन बछर मा,छपिस एक पुस्तक मा गीत।

"मोरे संग चलव" जी जम्मों,छत्तीसगढ़ी सुग्घर रीत।।


छत्तीसगढ़ निबंध संकलन,उपयोगी लइका बर आज।

"माटी कहे कुम्हार" छपिस हे,मस्तुरिया के सुग्घर काज।।


हिंदी कविता घलो संकलन,"सिर्फ सत्य के लिए" लिखाय।

वीर शहीद नरायन गाथा,"आगी सोना खान" सुनाय।।


लोक कला साहित्य संस्कृति,जिनगी अर्पण करिन सुजान।

सेवा मा चालीस बछर भर,अपन पहादिन उमर मितान।।


अविभाजित जब राज्य रहिन हे,मध्य प्रदेश करिन गुणगान।

दो हजार सन् आठ बछर मा,पाय आंचलिक हे सम्मान।।


छत्तीसगढ़ी राज्य घलो मा,मस्तुरिया पाइन हे मान।

रामचन्द्र सम्मान देशमुख,दुर्ग जिला के हावै शान।।


छत्तीसगढ़ी राज्य रायपुर,गीतकार गायक पहिचान।

जन-जन के हिरदय मा बसगे,पाइन श्रेष्ठ सृजन सम्मान।।


दो हजार चौदह सन् लगभग,राजनीति मा राखिन पाँव।

महासमुंद चुनाव लड़िन जी,आम आदमी पार्टी नाँव।।


मनखे बर हितवा नेता बन,जन-जन के वो सुन आवाज।

छत्तीसगढ़ी के दुख पीरा,अपन समझ के करदिन काज।।


दो हजार अठरा मा लक्ष्मण,तीन नवम्बर सरग सिधार।

छोड़ चलिन हे ये दुनिया ले,नाता-सैना अउ परिवार।।


नहीं भुलावय छत्तीसगढ़ी,इँखर करे कउनो उपकार।

सुरता आही सदा गीत मा,जब-जब बजही सुर के तार।।

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बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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               लक्ष्मण मस्तुरिया


गहिरा उॅंचहा भाव शबद हा, अंतस तरी हमाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरषाही।


रोज बिहनहा मोर किसनहा, सुरुज सॅंघाती जागय।

धरा धाम धरती मइया के, सुत उठ पइयॉं लागय।


रुमझुम खेती खार किंजर के, मस्तुरिया जब आवय ।

झूम झूम के मन भॅंवरा हा, धुन मा नाचय गावय।


धरती के ॲंगना के फुलवा, दुरिहा ले ममहाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरषाही।


चौंरा मा गोंदा रसिया बर, हे पताल बारी मा।

मया छोड़ नइ जाये सकबे, फॅंसबे सॅंगवारी मा।


झुमरे लगही तुमा नार कस, मन बखरी बारी मा।

मया परोसे हे मस्तुरिया हर बटकी थारी मा।


फिटिक ॲंजोरी निर्मल छइहॉं, मन ला गजबे भाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरषाही।


कॉंटा खूॅंटी के रेंगइया, भूती बनी करइया।

अपन गॉंव ले हाथ दया के, मान मया भेजइया।


गिरे परे हपटे मनखे ला, संग चलव जे कहिथे।

लकठे मा पापी तारे बर, बनके गंगा बहिथे।


मीठ मया मॅंगनी मॉंगे मा, कहॉं भला मिल पाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरषाही।


छत्तीसगढ़ के राज रतन तैं, धन्य धनइया माटी।

करिया सोना के खदान तैं, धन-धन बस्तर घाटी।


तोर लहर लहरे ओन्हारी, सरसे संग सियारी।

घुनही बॅंसुरी माघ फगुनवा, कबिरा के सॅंगवारी।


लोक दुलरुवा लोकतंत्र बर, कुछ ना कुछ अलखाही।

लक्ष्मण मस्तुरिया ला पढ़ सुन, हिरदे हा हरषाही।


रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़


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लक्ष्मण_मस्तुरिहा_जी_ल #काव्यांजलि...

छप्पय छंद


भारत माँ के लाल,हमर लक्ष्मण मस्तुरिहा।

रइही दिल के पास,कभू नइ जावय दुरिहा।

कालजयी हर गीत,सुने मा अति मनभावन।

लोककला के साज,करे तँय जुग-जुग पावन।

हमर राज के शान तँय,जनकवि हमर महान जी।

जब तक सूरज चाँद हे,होही जग मा मान जी।।(१)


दया मया के गीत,लिखय अउ गावय बढ़िया।

अमर हवय गा नाँव,हमर लक्ष्मन मस्तुरिया।

परे डरे ला संग,लगाये बनके दानी।

ए माटी के लाल,अमर हे तोर कहानी।

जन मानस मा गीत हा,गूँजत रहिथे तोर गा।

जल्दी आजा अब इहाँ,तोर लेत सब सोर गा।।(२)


गुत्तुर तोर अवाज,गीत मा सुमता लाये।

सदा नीत के गोठ,तोर अंतस ला भाये।

भारत माँ के लाल,रोज तोला हे वंदन।

लक्ष्मन हवस महान,तोर पवरी हे चंदन।

श्रद्धा सुमन चढ़ाँय सब,मिलके बारंबार जी।

हमर गाँव ए राज मा,अउ ले ले अवतार जी।।(३)


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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 आल्हा छंद- विजेन्द्र वर्मा


जनकवि स्व.लक्ष्मण मस्तुरिया जी के 72 वाँ जयंती के बेरा मा श्रद्धा सुमन के दू आरुग फूल चढ़ावत हौं।


रिहिस हवै जी माटी बेटा,कहय चलव जी मोरे संग।

गिरे परे हपटे मन हा तब,रँगत  रिहिन हे ओकर रंग।1।


हमर राज के राजा बेटा, लक्ष्मण मस्तुरिया हे नाँव।

गीत लिखे जी आनी बानी,गूँजय गली गली हर ठाँव।2।


कलम गढ़े जन जन के पीरा,परदेशी बर बनजय काल।

हितवा मन के हितवा बनके,बइरी बर डोमी विकराल।3।


रद्दा सुमता मा चलके जी,स्वारथ छोड़व अब इंसान।

कहत रिहिन हे लक्ष्मण भइया,बेंचव झन कोनो ईमान।4।


बसे हवै जन जन के हिरदे,गावयँ सुग्घर गुरतुर गीत।

परे डरे ला साथ लान के,बना डरिस जी सब ला मीत।5।


भरे रहै जी तन मा गरदा,अंतस जेकर हे अँधियार।

दीप जला के करदय लक्ष्मण,मन ला ओकर जी उजियार।6।


देश धरम बर काम करिन हे,देवत रिहिन मया के छाँव।

हाथ जोड़ के पाँव परत हँव,अमर रहय जी ओकर नाँव।7।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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 छत्तीसगढ़ के गौरव अमर गायक जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला विनम्र श्रद्धांजलि।

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छत्तीसगढ़ के नाम जगाये, माटी के जस गाके।

जनकवि हे लक्ष्मण मस्तुरिया,पावन कलम चलाके।।


महानदी के छलकत आँसू,सरु किसान के पीरा।

अउ गरीब ला हृदय बसाके, गाये गीत कबीरा।।


आखर आखर अलख जगाके,तैं अँजोर बगराये।

परे डरे कस मनखे मन बर,सुग्घर भाव जगाये।।


कर विरोध सब शोषक मन के,हक बर लड़े सिखोये।

दुखिया के बन दुखिया संगी, बीज मया के बोये।।


लोक गीत के ऊँचा झंडा, फहर फहर फहराये।

छत्तीसगढ़ियापन के लोहा,सरी जगत मनवाये।।


झुके नहीं तैं पद पइसा मा,कलाकार के सँगवारी।

पाये नहीं भले तैं तमगा, कोनो जी सरकारी।।


जन जन के हिरदे मा बसथस,सुरता मा लपटाये।

श्रद्धांजलि देवत हे 'बादल', तोला मूँड़ नँवाये।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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संग चलव सब मोर कहइया।

दया मया के गीत गवइया।।

छ्त्तीसगढ़ के मान बढ़इया।

कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।


गिरे परे ला इहाँ उठइया।

भटके मन ला राह बतइया।।

सोवइया ला सदा जगइया।

कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।


बइरी बर फुफकार करइया।

शोषक मन ला आँख दिखइया।।

जनता बर आवाज उठइया।

कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।


नाम अमर जग मा मस्तुरिया।

छत्तीसगढिया सबले बढ़िया।।

स्वाभिमान हुंकार भरइया।

कहाँ गए तँय लक्ष्मण भइया।।


ज्ञानु

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*श्रद्धेय लक्ष्मण मस्तुरिया जी ल विनम्र श्रद्धांजलि -शब्दांजलि।*



छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान के,घर-घर अलख जगाइस।

वाणी हा मस्तुरिया जी के,अमरित रस बरसाइस।


जीव पार दै वो मुर्दा मा,गीत सुराजी गाके।

जोश जगा दै गिरे-परे मा,सँग-सँग अपन चलाके।

शोषक मन ला हुरियाये बर, कभ्भू नइ घबराइस।

वाणी हा मस्तुरिया जी के,अमरित रस बरसाइस।


फूल चँदैनी गोंदा के वो,रहिस पराग मतौना।

कला जगत के फुलवारी मा,जस ममहावत दौना।

आखर-आखर अम्मर होगे,अइसन कलम चलाइस।

वाणी हा मस्तुरिया जी के,अमरित रस बरसाइस।


करमा,पंथी,मस्त ददरिया,फाग गीत होली के।

माटी के महिमा ला गाइस,अउ मया ठिठोली के।

गीतकार,गायक वो कवि श्री,जग मा नाम कमाइस।

वाणी हा मस्तुरिया जी के,अमरित रस बरसाइस।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 *श्री लक्ष्मण मस्तुरिया जी ला समर्पित रचना*


*दोहा -चौपाई*


दोहा -मस्तुरिया होगे अमर,कालजयी हे गीत।

सबो जिनिस के भाव ला, समझे बनके मीत।।


छोड़ चले लक्ष्मण मस्तुरिया ।सुन्ना होगे सुर के कुरिया।।

कण कण मा तँय बसे दुलरवा।खेत खार घर नदिया नरवा।। 1


घुनही होगे तोर बँसुरिया।तैंहर चलदे सबले दुरिहा।।

छलकत रहिथे धान कटोरा।तँय बइठे धरती के कोरा।। 2।


लाल रतन धन छतीसगढ़िया।सबले सुघ्घर सबले बढ़िया।।

बगरय जग मा चिटिक चँदैनी।आप चढ़े हव सरग निसैनी।।3।


रस घोले रे माघ फगुनवा।बिरहिन के तब आय सजनवा।।

अमर गीत ला रचके लक्ष्मण।बसगे भुइयाँ के तँय कण कण।।4।


ले चल रे चल गाड़ी वाला।धरे मरारिन भाजी पाला।

सबके पीरा दुःख चिन्हैया।अइसन नइहे लोक गवैया।।5।


दोहा-कतका करँव बखान मँय,हे माटी के लाल।

जन जन मा तैंहर बसे,रहिबे तीनों काल।।


 -आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

(छत्तीसगढ़)

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: *लक्ष्मण मस्तुरिया - हरिगीतिका छंद*


छत्तीसगढ़ बेटा रतन, कइसे भुलाबो नाँव ला।

माटी समाए तँय इहाँ,सुग्घर जगाए गाँव ला।।

सेवा करे सब दीन के,करके गुजारा तँय इहाँ।

अपने चलाए संग मा,बनके सहारा तँय इहाँ।।


बनके नँगरिहा खेत मा, जोंते उगाए धान ला।

जम्मों किसनहा संग मा,पाये अबड़ तँय मान ला।।

दुख ला बनाये तँय अपन,अपटे गिरे जन के इहाँ।

अउ गीत ला गाए बने,सुग्घर अपन मन के इहाँ।।


जन-मन भरे बिश्वास तँय,भुइयाँ पखारे पाँव जी।

बनके करम के गीत तँय,छाये मया के छाँव जी।।

अंतस समाए हस हिया,कइसे भुलाबो आज गा।

सुन्ना परे भुइयाँ इहाँ,सुरता लमाबो आज गा।।


छंद रचना-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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आज छतीसगढ़ के दुलरवा बेटा अउ अमर गायक कवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी के पुण्य तिथि हे। उनला सुरता करत शब्द सुमन अर्पित करत हँव।


                   शंकर छंद ( लक्ष्मण मस्तुरिया)


ये माटी के बेटा लक्ष्मण,मस्तुरी के आय

तेखर सेती अपन नाँव मा,मस्तुरिया लगाय

कलम जिंखर इतिहास रचिन अउ,गायक कवि कहाय

मंच चँदैनी गोंदा मा जे,रचे गीत ला गाय।


जानय उन माटी के पीरा,अनित अउ अन्याय

देखय शोषण विकट गरीबी,जी उँखर अँगियाय

संग चलव रे लिखे कलम हर,लगय दास कबीर

छोड़ अपन घर बार चलव जी,जौन बने फकीर।


नारी मन के दरद लिखय उन,कहे कोंवर नार

घुनही बँसुरी बजे कोन सुर,लिखय दुःख अपार

लागय सुन्ना धनी बिना जग,लगे जिनगी भार

लिखय कभू गीता के बानी,कभू लिखय श्रृंगार।


जौन सहे अउ सुने गुने हे,गीत वो बन जाय

पइरी महानदी कस कलकल, सुर मा गीत गाय

हरे सामरथ छतीसगढ़िया,बेटा रतन ताय

जन जन के कवि गायक लक्ष्मण,मस्तुरिया कहाय।


शशि साहू - बाल्को नगर

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Saturday, June 5, 2021

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर छंद बद्ध कवितायें


विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर छंद बद्ध कवितायें


लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

धरती दाई

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।
पेड़ पात बिन दिखे बोंदवा, धरती के ओना कोना।।

टावर छत मीनार हरे का, धरती के गहना गुठिया।
मुँह मोड़त हें कलम धरइया, कोन धरे नाँगर मुठिया।
बाँट डरे हें इंच इंच ला, तोर मोर कहिके सबझन।
नभ लाँघे बर पाँख उगा हें, धरती मा रहिके सबझन।
माटी ले दुरिहाना काबर, आखिर हे माटी होना।
जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।।

दाना पानी सबला देथे, सबके भार उठाय हवै।
धरती दाई के कोरा मा, सरि संसार समाय हवै।
मनखे सँग मा जीव जानवर, सब झन ला पोंसे पाले।
तेखर उप्पर आफत आहे, कोन भला ओला टाले।
धानी रइही धरती दाई, तभे उपजही धन सोना।
जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।

होगे हे विकास के सेती, धरती के चउदा बाँटा।
छागे छत सीमेंट सबे कर, बिछगे हे दुख के काँटा।
कभू बाढ़ मा बूड़त दिखथे, कभू घाम मा उसनावै।
कभू काँपथे थरथर थरथर, कभू दरक छाती जावै।
देखावा धर मनुष करत हे, स्वारथ बर जादू टोना।
जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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कुंडलियाँ छ्न्द

जामे नान्हे पेड़ हे,एती वोती देख।
समय हवै बरसात के,बढ़िया जघा सरेख।
बढ़िया जघा सरेख,बगीचा बाग बनाले।
अमली आमा जाम,लगाके मनभर खाले।
हवा दवा फर देय,पेंड जिनगी ला थामे।
खातू पानी छींच,मरे झन पौधा जामे।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

विश्व पर्यावरण दिवस की आप सबको सादर बधाई,,


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 पर्यावरण - बोधन राम निषादराज

(हरिगीतिका छंद)


पर्यावरण खातिर सबो,श्रृंगार भुइयाँ के करौ।

आवौ लगा लौ पेड़ ला,सब बिन हवा के झन मरौ।।

जिनगी बचाथे पेड़ हा,फर फूल मिलथे साथ मा।

रक्षा बने करलौ सखा,हावै तुँहर जी हाथ मा।।


नरवा कुँआ तरिया सबो,करलौ सफाई रोज के।

कचरा कुड़ा झिल्ली सबो,आगी जलादौ खोज के।।

दुर्गन्ध जादा झन रहै,नाली सफाई सब करौ।

तब शुद्ध होही जी हवा,ये बात ला मन मा धरौ।।


ये कारखाना के धुँआ, बादर सबो मा छात हे।

छोड़त हवै जी ये जहर,सब रोग ले के आत हे।।

पर्यावरण हे हाथ मा,अब तो सम्हल जावौ सखा।

जंगल बचावौ मिल सबो,जिनगी बने पावौ सखा।।


छंदकार:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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: चलव_लगाबो_पेंड़

छप्पय छन्द


चलव लगाबो पेंड़,बने धरती हरियाही।

लेबो सुघ्घर साँस,तभे जिनगी बच पाही।

सुख के पाबो छाँव,संग फुरहुर पुरवाही।

पेड़ बचाही जान,खुशी जन-जन मा छाही।

एक पेंड़ होथे सुनौ,सौ-सौ पूत समान जी।

रक्षा करबो रोज हम,मिलके रखबो ध्यान जी।।


डी.पी.लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

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: वाम सवैया- विजेन्द्र वर्मा


बड़ा सुरता अब आत हवै लइकापन के चल पेड़ लगाबो।

उजाड़ परे दिखथे भुइयाँ ल चलौ मिलके सब खूब सजाबो।

सदा सब स्वस्थ रहै भइया भुइयाँ ल प्रदूषण मुक्त बनाबो।

गुमान करै सब लोग इहाँ जग मा बड़ सुग्घर नाँव कमाबो।


कुआँ तरिया अब सूखत हे गरमी हर लेवत प्राण ग भाई।

करौ झन स्वारथ खातिर फोकट लोगन आज ग पेड़ कटाई।

बने सब आज ग पेड़ लगावव होय तभे सब के ग भलाई।

तभे मिलही सुख घात इहाँ बइठे रहिहौ छइहाँ अमराई।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

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विषय - पर्यावरण 

गीतिका छंद 


ज्ञान के गंगा नहा सब, लोभ काया छोड़ के ।

पेंड़ के दुनियाॅऺं बसा अब, जा नहीं मुख मोड़ के ।

काय पाबे दुख बढ़ा झन, डार पाती तोड़ के ।

पाय हावन आज जिनगी, हाथ इॅऺंखरे जोड़ के ।


होय हरियर आज जंगल, पेंड़ पवधा काट झन ।

देत आक्सीजन सबो हें, जान के नद पाट झन ।

बेंच नइ अनमोल जीवन, जाव यम के  हाट झन ।

देख संगी कर भरोसा, जोहबे नित बाट झन ।


काय ले जाबे इहाॅऺं ले, काम परहित आज कर ।

पेंड़ पवधा ले जगत हे, मीत सब बर नाज कर ।

पाप झन कर काट बन ये, हाय जग ये लाज कर ।

बाॅऺंध भरे संचित पानी, सुघर जिनगी राज कर ।


छंदकार- राज कुमार बघेल 

            सेंदरी, बिलासपुर (छ.ग.)

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*गड़बड़ हे* (कुण्डलियां छन्द)


कतको दिन गायब रहिन, दर्शन देइन आज।

पर्यावरण तिहार बर,करबो कहिके काज।

करबो कहिके काज,चउॅंक मा पेड़ लगाइन।

फोटू वाले लान,एकहू अकन  खिचाइन।

आबंटन ला देख,करत हें झटको-झटको।

बिन खुराक अइलाय,अइसने  पौधा कतको।।


जंगल रोज कटात हे,उजरत खेती खार।

गाॅंव तीर मा टेकगे,बड़े-बड़े बेपार।

बड़े-बड़े बेपार,कारखाना सब आगे।

करिया धुॅंगिया साॅंस,गाॅंव फोकट मा पागे।

चारों मुड़ा उजाड़,धनी के होवय मंगल।

अंधाधुंध कटात,सुसक के रोवय जंगल।।


पाउच पतरी के चलन, दिन-दिन बाढ़े जाय।

झिल्ली के उपयोग सुन, डिस्पोजल मा चाय।

डिस्पोजल मा चाय,करम हम सबके उथली।

विज्ञापन ला मान,बनत मनखे कठपुतली।

चारों मुड़ा उड़ात,देख ले तरिया डबरी।

पर्यावरण विनाश,करत हे पाउच पतरी।।


शौचालय बनगे हवय, ओकर सुनलव राज। 

दूषित जल बोहात हे,गांव गली मा आज।

गांव गली मा आज,भरे माड़ी भर लद्दी।

तरिया मा बहि जाय,कोन ला देबो बद्दी।

तरिया के का दोष,आदमी अलहन पालय।

गंदा जल बर सोच,बना लेते  शौचालय।।


गड़बड़ हे करनी हमर, करही कोन उपाय।

चीज इलेक्ट्रॉनिक सबो, कचरा धरके लाय।

कचरा धरके लाय, जिनिस ये डिजिटल जग मा। 

पानी हवा जमीन,होय दूषित पग-पग मा।

कइसन यहू विकास,जिहां टेंशन हे अड़बड़।

प्रकृति संग हर रोज, होत हे काबर गड़बड़।।


महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव

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कुंडलियां

जंगल ला झन काट तँय, जीवन के आधार।

शुद्ध हवा मिलथे इहाँ, बात कहँव मैं सार।।

बात कहँव मैं सार,  इही जा जीवन देथे।

औषधि के भंडार, सबो दुख ला हर लेथे। 

जुरमिल पेड़ बचाव, कभू नइ होय अमंगल। 

बंद करव व्यापार, काट के झाड़ी जंगल।

अजय अमृतांशु


Friday, June 4, 2021

सार छंद(गीत)-भाजी साग खवादे

 


सार छंद(गीत)-भाजी साग खवादे


रोज रोज के भाँटा आलू,लगगे अब बिट्टासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।


चना चनौरी चेंच चरोटा,चौलाई चुनचुनिया।

मुसकेनी मेथी अउ मुनगा,मुरई मास्टर लुनिया।

कुरमा कांदा कुसमी कुल्थी,कोचाई करमत्ता।

गुमी लाखड़ी गोभी बर्रे,बरबट्टी के पत्ता।

प्याज अमारी पटवा पालक,सरसो के मैं दासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


रोपा गुड़रू मखना झुरगा,कजरा कुसुम करेला।

पोई अउ बोहार जरी के,हरौं बही मैं चेला।।

उरिद लाल चिरचिरा खोटनी,कोइलार तिनपनिया।

भथुवा पहुना लहसुनवा खा, चलहूँ छाती तनिया।

भूँज बघार बनाबे बढ़िया,अड़बड़ लगे ललासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


खेत खार बारी बखरी ले,झट लाबों चल टोरी।

खनिज लवण अउ रथे विटामिन,दुरिहाथे कमजोरी।

तेल बाँचही नून बाँचही,समय घलो बच जाही।

भाजी पाला ला खाये ले,तन मा ताकत आही।

भाजी कड़ही बरी खोइला,खाथे कोसल वासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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छत्तीसगढ़ के भाजी-खैरझिटिया


हमर राज के साग मा,भाजी पावय मान।

आगर दू कोरी हवै,सुनव लगाके कान।।


चना चनौरी चौलई,चेंच चरोटा लाल।

चुनचुनिया बर्रे कुसुम,खाव उँचाके भाल।


मुसकेनी मेथी गुमी,मुरई मास्टर प्याज।

तिनपनिया अउ लहसुवा,करे हाट मा राज।


खाव खोटनी खेड़हा, खरतरिहा बन जाव।

पटवा पालक ला झड़क,तन के रोग भगाव।


कुल्थी कांदा करमता,कजरा गोल उरीद।

कुरमा कुसमी कोचई,के हे कई मुरीद।।


झुरगा गोभी लाखड़ी,भथवा गुड़डू  टोर।

राँधव भूँज बखार के,महकै घर अउ खोर।


पोई अउ सरसो मिले,मिले अमारी साग।

मछेरिया बोहार के,बने बनाये भाग।।।


करू करेला के घलो,भाजी होथे खास।

रोपा पहुना बरबटी,आथे सबला रास।।


मखना मुनगा मा मिले,विटामीन भरपूर।

कोइलार लुनिया करे,कमजोरी ला दूर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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Thursday, June 3, 2021

छ्न्द के छ की प्रस्तुति-विश्व सायकिल दिवस पर छ्न्द बद्ध कवितायें


 छ्न्द के छ की प्रस्तुति-विश्व सायकिल दिवस पर छ्न्द बद्ध कवितायें


चोवाराम वर्मा बादल


चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।

लइकापन मा खूब चलावन,कसके ओंटन हम पइडिल।


हीरो अउ हरकुलश एटलस ,साइज मा छोटे बड़का।

पिछू केरियर आगू टुकनी,हेंडिल मा घंटी छुटका।

बिन डीजल पेट्रोल पिये वो,पहुँचाथे जल्दी मंजिल।

चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।


आथे पाछू ले पुरवाई, तब गरगर-गरगर चलथे।

अउ ढलान मा गुड़गुड़ -गुड़गुड़, बिन ओंटे वो ढुलथे।

आथे गर्रा चढ़ऊ मिलथे, जी करथे तलमिल-तलमिल।

चला साइकिल चला साइकिल ,सेहत बर चला साइकिल।


हवै सवारी ये मन भावन, इसकुल जा भइया राजा।

संगी  सँग जा मेला -ठेला,घूम-घाम के जी आजा।

हवै जवानी मस्त-मगन ता,ककरो तैं धड़का ले दिल।

चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।


हाथ गोड़ मजबूत फेफड़ा, मोटापा हा घट जाथे।

चलौ चलावव नोनी-बाबू, चमक चेहरा मा आथे।

पर्यावरण सुरक्षित होही, बनौ देश सेवा काबिल।

चला साइकिल चला साइकिल, सेहत बर चला साइकिल।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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हरिगीतिका छंद- बोधनराम निषाद


सइकिल सवारी कर चलौ,सेहत बने रहिथे सखा।

पुरखा बबा मन जी हमर,सुग्घर तभे कहिथे सखा।।

कैंची चलावन गोड़ मा,पैडिल बने जी मार के।

चारों डहर जी गाँव के,आवन सबो थक हार के।।


हीरो रहै सँग एटलस,अउ हरकुलस छाए रहै।

कुछ छोटकुन एवन घलो,मन ला गजब भाए रहै।।

शाला सबो लइका मिले,सइकिल चढ़े जावन घलो।

घंटी बजावत जोर से,बहुँतेच डरवावन घलो।।


पेट्रोल  डीजल  नइ लगै, पर्यावरण सुग्घर रथे।

योगा बने होवत रथे, आलस पछीना बह जथे।।

ताकत सबोके बाढ़थे, बी.पी.सुगर सब दूर जी।

विश्वास मन मा जागथे, मिलथे खुशी भरपूर जी।।



छंदकार:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 सार छंद -वासन्ती वर्मा

शीर्षक (  साइकिल  )


1) एक सीट अउ दू पहिया के,सुविधा जनक सवारी।

तीन जून साइकिल दिवस हे,जगत चलावे सारी।।

2)बिगन तेल के येहर चलथे,साइकिल बिसा लेवा।

लइका सियान बड़का छोटे,सबो ला बता देवा।।

3)गाँव गाँव अउ सहर सहर मा,आज साइकिल चलथे।

डामर रोड चला के देखव,हवा से बात करथे।।

4)इस्कुल जाथे लइका मन जी,सबो साइकिल चढ़के।

केरियर मा चिपे रइथे जी,बस्ता  ला भर भरके।।

   

    वसन्ती वर्मा बिलासपुर


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 महेंद्र बघेल: *सायकिल* ( कुण्डलियाॅं छंद)


गुड़गुड़ ढूलत सायकिल, सबके मन ला भाय।

सबले पहिली आदमी ,कैंची छाप चलाय।

कैंची छाप चलाय,गोड़ मा ओंटत पयडिल। 

थाम जेवनी हाथ,धरे डेरी मा हेंडिल।

गिरत उठत नित होय ,ओंटई झूलत झूलत। 

बिन डीजल पेट्रोल,चले ये गुड़गुड़ ढूलत।।


महेंद्र कुमार बघेल

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