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Saturday, December 26, 2020

अमृतध्वनि छंद*-बोधनराम निषाद जी

 *अमृतध्वनि छंद*-बोधनराम निषाद जी


(1) धान के प्रकार


रानी काजर चेपटी,विष्णुभोग पहिचान।

बासमती सफरी डँवर,परी माँसुरी धान।।

परी माँसुरी,धान सरोना,अउ गुरमटिया।

एच एम टी,महमाया अउ,लुचई बढ़िया।।

पसहर खधुहन,धान करेरा,आनी बानी।

जीरा फुलवा,तुलसी मँजरी,धनिया रानी।।


(2) गाँव के देवी देवता


कोसागाई    शीतला,  ठाकुर    बूढ़ा देव।

भँइसासुर अउ साँहड़ा,आशीष बने लेव।।

आशीष बने, लेव  सबोझन, ये समलाई।

रिक्षिन   दाई, चंडी  दाई, अउ  महमाई।।

सर्वमंगला,   हे   बंजारी,    हे   बमलाई।

सत्ती   दाई,    गौरी - गौरा,  कोसागाई।।


(3) अमराई


अमराई मा गाँव के, गीत कोइली गाय।

सुग्घर पुरवाई चलै,मन ला अब्बड़ भाय।।

मन ला अब्बड़,भाय सबो के,कुँहु कुँहु बोली।

खेलय लइका,मीत मितानी,मिल हमजोली।

आथे  सुरता, हमर  गाँव  के, बहिनी  भाई।

झुलना झूलै,हँसी खुशी मा,इहि अमराई।।


बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

Friday, December 25, 2020

दोहा-वासन्ती वर्मा

दोहा-वासन्ती वर्मा

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माता अमरौतिन हवे,ददा महंगूदास ।

गिरौदपुरी मा जनमें,बाबा घासीदास ।।


जनमें दिसंबर अठरा,पंथ प्रवर सतनाम ।

घासीदास प्रसिध हुए,गिरौदपुरी म धाम ।।


औंरा धौंरा पेड़ के,तरी म पाइन ज्ञान ।

घासीदास बनिन गुरू,देइन सत के ज्ञान ।।


बाबा घासीदास जी,देंवय सत उपदेश ।

छोड़व मदिरा माँस ला,कहिन बने संदेश ।।


जैतखाम बड़का बने,गिरौदपुरी म धाम।

सादा झंडा ह फहरे,मान बढ़े सतनाम ।।


गुरूधाम गिरौदपुरी,भक्तन के हे भीड़ ।

पूजैं घासीदास ला,चेला मन के नीड़ ।।


👏👏👏वसन्ती वर्मा👏👏

                 बिलासपुर

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अमृतध्वनि छंद*-बोधनराम निषाद

 *अमृतध्वनि छंद*-बोधनराम निषाद


(1) रँधनी खोली 

रँधनी  दरहा   केटली, चूल्हा  आगी  बार।

डुवा कराही करछुली,बटकी ठठिया सार।।

बटकी ठठिया,सार चार जी,ठन-ठन बोले।

थारी लोटा,अउ गिलास ला, सुग्घर धोले।।

लोहा   तावा,   पोथे   रोटी,   दाई  भोली।

चटनी मरकी, हउँला बाँगा, रँधनी खोली।।


(2) बारी बखरी

बारी  बखरी  ढेखरा, तुमा तरोई   झूल।

धनिया मेथी  गोंदली, पाना गोभी फूल।।

पाना गोभी,फूल बने जी,पालक भाजी।

केरा लहसे,अरन पपाई,गाजर खा जी।।

करू करेला,मखना झुरगा,सब तरकारी।

फरथे सेमी,अउ पताल जी,बखरी बारी।।



बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम

अरविंद सवैया*-चित्रा श्रीवास

 *अरविंद सवैया*-चित्रा श्रीवास


मनखे मनखे सब एक हवे सुमता सत के बस देवय ज्ञान।

भटके मनखे ल दिखा रसता कतका करगे गुरु काज महान।

हर लौ पर के सब पीर  तभे हमरो सतनाम करे अभिमान।

मिलके महिमा सब गावत हावय जी  फइले जस देख  जहान।


चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

जाड़*-चोवाराम वर्मा बादल (मधुशाला छंद)

 *जाड़*-चोवाराम वर्मा बादल

(मधुशाला छंद)


हाथ गोड़ हा काँपत हाबय,इँतरावत हे जड़काला।

हाड़ा हाड़ा हवय पिरावत,जस कोनो कोंचे भाला।

बुढ़वा उमर शरीर हे जर्जर, डाढ़ा डाढ़ा झन्नाथे

जिनगी होगे जेल बरोबर,उप्पर ले बदली पाला।



बड़े बिहनिया धुँधरा छाये,सादा सादा के जाला।

बंद नहाना होगे हाबय,बंद पाठ पूजा माला।

घेख्खर जाड़ा नइ तो भागय,पेरुक वो होगे भारी

लादे रहिथन कथरी कमरा, अउ ओढ़न काला काला।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ताटंक+सरसी छंद गीत-डीपी लहरे

 ताटंक+सरसी छंद गीत-डीपी लहरे


बेटा बन जा सरवन जइसे,

जग मा नाँव कमाले रे।

दाई बाबू के सेवा कर,

सउँहे भाग जगाले रे।।


नान्हे पन ले पाले पोंंसे

दया मया बरसाके जी।

लइकन मन बर खुशी लुटावँय,

दुख पीरा बिसराके जी।।


दाई बाबू बर हँस हँस के,

अब्बड़ खुशी लुटाले रे।

बेटा बन जा सरवन जइसे,

जग मा नाँव कमाले रे।


समझ इहाँ दाई बाबू मन,

परगट हें भगवान।

इँखरे पूजा करके संगी,

दे निसदिन सम्मान।।


दाई बाबू के मन हरसाके

नाता बने निभाले रे।

बेटा बन जा सरवन जइसे,

जग मा नाँव कमाले रे।।


द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

कवर्धा छत्तीसगढ़

गुरु/चौपाई छंद -सुधा शर्मा

 गुरु/चौपाई छंद -सुधा शर्मा


गुरु बिन ग्यान कहाँ मैं पावँव।

भटकत रद्दा केती जावँव।।

गुरु बिन बस अँधियारी छावै।

नीक बाट ला कोन बतावै।।


होथे गा गुरु ज्ञानी गंगा।

बोहे धारा बुद्धि तरंगा।।

गुरु कस नइए कोनो दानी।

बुद्धि बिकट हे गुण के खानी।।


गुरु चरनन ला नित मैं ध्यावौं।

पद पंकज मा मूड़ नवावौं।।

ईश्वर आगू गुरु के पूजा।

गुरु ले बड़का नइहे दूजा।।


ब्रम्हा  बिष्णु सब कह गुरु पावन।

गुरु सेवा सब पाप नसावन।।

ब॔दव  गुरु के पद अनुरागा।

मति कर विमल जगावय भागा।।


राखो किरपा गुरु हे वंदन।

करँव शीश पग धुर्रा चंदन।।

क्षमा सबो गुरु दोष ल करके।

बाट रेंगाए अँगरी धरके।।


 

सुधा शर्मा 

राजिम छत्तीसगढ़

Friday, December 18, 2020

संत शिरोमणि बाबा गुरुघासी दास जयंती विशेषांक-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति









संत बाबा गुरुघासी दास जयंती विशेषांक-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति

 आल्हा छंद - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


हमर राज के धन धन माटी,बाबा लेइस हे अवतार।

सत के सादा झंडा धरके,रीत नीत ला दिइस सुधार।


जात पात अउ छुआ छूत बर, खुदे बनिस बाबा हथियार।

जग के खातिर अपने सुख ला,बाबा घासी दिइस बिसार।


रूढ़िवाद ला मेटे खातिर,सदा करिस बढ़ चढ़ के काम।

हमर राज के कण कण मा जी,बसे हवे बाबा के नाम।


संत हंस कस उज्जर चोला,गूढ़ ग्यान के गुरुवर खान।

अँवरा धँवरा पेड़ तरी मा,बाँटिस सब ला सत के ज्ञान।


जंगल झाड़ी ठिहा ठिकाना,बघवा भलवा घलो मितान।

मनखे मन मा प्रीत जगाइस,सत के सादा झंडा तान।


बानी मा नित मिश्री घोरे,धरम करम के अलख जगाय।

मनखे मनखे एक बता के,सुम्मत के रद्दा देखाय।


झूठ बसे झन मुँह मा कखरो, खावव कभू न मदिरा माँस।

बाबा घासी जग ला बोलिस,करम धरम साधौ नित हाँस।


दुखिया मनके बनव सहारा,मया बढ़ा लौ बध लौ मीत।

मनखे मनखे काबर लड़ना,गावव सब झन मिलके  गीत।


सत के ध्वजा सदा लहरावय,सदा रहे घासी के नाँव।

जेखर बानी अमरित घोरे,ओखर मैं महिमा नित गाँव।


रचनाकार -  श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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रोला छंद-अरूण कुमार निगम


(1)

मनखे मनखे एक, इही हे सुख के मन्तर

जिहाँ नहीं हे भेद, उहीं असली जन-तन्तर

बाबा घासी दास, हमन ला इही बताइन

जग ला दे के ज्ञान, बने रद्दा देखाइन ।।


(2)

जिनगी के दिन चार, नसा पानी ला त्यागौ

दौलत माया जाल, दूर एखर ले भागौ।

जात-पात ला छोड़, सबो ला मनखे जानौ

बोलव जय सतनाम, अपन कीमत पहिचानौ।।


(3)

काम क्रोध मद मोह, बुराई लाथे भाई

मिहनत करके खाव, इही हे असल कमाई

सत्य अहिंसा प्रेम, दया करुणा रख जीयव

गुरु के सुग्घर गोठ, मान अमरित तुम पीयव।।


*अरुण कुमार निगम*

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*बरवै छंद*-आशा देशमुख


गुरू महिमा


अमरौतिन के कोरा ,खेले लाल।

महँगू के जिनगी ला ,करे निहाल।1।


सत हा जइसे चोला ,धरके आय।

ये जग मा गुरु घासी ,नाम कहाय।2।


सत्य नाम धारी गुरु ,घासीदास।

आज जनम दिन आये ,हे उल्लास।3।


मनखे मनखे हावय ,एक समान।

ये सन्देश दिए हे, गुरु गुनखान।4।


देव लोक कस पावन ,पुरी गिरौद।

सत्य समाधि लगावय ,धरती गोद।5।


जैतखाम  के महिमा ,काय बताँव।

येला जानव भैया ,सत के ठाँव।6।


निर्मल रखव आचरण ,नम व्यवहार।

जीवन हो सादा अउ ,उच्च विचार।7।


बिन दीया बिन बाती ,जोत जलाय।

गुरु अंतस अँंधियारी ,दूर भगाय।8।


अंतस करथे उज्जर ,गुरु के नाम।

पावन पबरित सुघ्घर ,गुरु के धाम।9।


आशा देशमुख

18-12-20

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छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे 


दोहा+चौपाई छंद

*अमृत वाणी (१)*

*सत्य ही मानव का आभूषण है..*


सत्य नाम हिरदे बसा,सत्य जगत मा सार।

मनखे के गहना इही,कहिथे गुरू हमार।


*गुरुघासी के अमरित बानी,*

*बनगे जग मा अमर कहानी।*

*बाबा जी के एही कहना,*

*सत हावय मनखे के गहना।।*


सत ले ए धरती खड़े,सत ले खड़े अगास।

चाँद सुरुज सत मा चलै,जग ला करय उजास।


अंतस मा सतनाम बसालौ।

गुरु घासी के गुन ला गालौ।

मनखे गहना सत ला जानौ।

गुरु बाबा के कहना मानौ।।


सत मा जे मनखे चलै,ओखर नइया पार।

मिलय शांति सुख हा सदा,होवय मन उजियार।।


*अमृत वाणी(२)*

*मानव-मानव एक समान...*


मनखे मनखे एक हे,नइ हे कोनो भेद।

जाति भरम के भूत ला,मन ले देवव खेद।


*मनखे-मनखे एक बताये,*

*छुआ-छूत ला दूर भगाये।*

*तोर पाँव के धुर्रा चंदन,*

*सदगुरु बाबा तोला वंदन।।*


सब मनखे ले राख लौ,दया मया के भाव।

मिलके राहव संग मा,समता सुमता लाव।।


सब मनखे ला एक्कै जानौ।

भाई चारा सुमता लानौ।

जात पात के बँधना टोरौ।

सब मनखे ले नाता जोरौ।।


गुरु बाबा कहिथे सदा,सब के एक्के जात।

मिलके राहव जी बने,बिना करे आघात।।


*अमृत वाणी(३)*

*गुरू बनायें जान कर पानी पीयें छान कर..*


असल गुरू ओही हवे,जे सत राह दिखाय।

गुरू बनावव जान के,हंसा पार लगाय।


*ज्ञानवान ला गुरू बनावव,*

*अँधियारी ला दूर भगावव।*

*गुरू ज्ञान ला मन मा धरहू,*

*सुरुज असन तब जगमग बरहू।।*


मन अँधियारी टारके,सत्य ज्ञान बरसाय।

ओही गुरू महान हे,जग ला जे सिरजाय।।


*छान-छान के पीथन पानी,*

*तब रइथे सुग्घर जिनगानी।।*

*इही मरम ला गुरू बतावय,*

*सब संतन ला राह धरावय।।*


गुरू नाँव ले भागथे,जम्मो लोभ विकार।

गुरू बचन अनमोल हे,लेगय भव के पार।।



*अमृत वाणी (४)*

*हीन भावना मन से हटायें..*


हीन भावना मा कभू,रइहू झिन परसान।

सत्य करम ले आदमी,बनथे जगत महान।।


*हीन भावना मन ले छोड़व,*

*सदाचार ले नाता जोड़व।*

*कमसल कोनो ला झन काहव,*

*सुमता ले सब मिलके राहव।।*


करिया गोरा रंग ले,झिन करहू जी भेद।

ऊँच-नीच के भावना,अंतस करथे छेद।।


अपन आप झन छोटे जानौ,

जे कुल मा हव तेला मानौ।

सत्य करम हा होथे ऊँचा।

गलत करम ले माथा नीचा।।


हीन भावना ले सदा,होथे पश्चाताप।

अइसन दुख संताप ले,दूर रहव सब आप।।


अमृत वाणी(५)

*सत्य और ईमान में अटल रहें।*


अडिग रहव ईमान मा,सत्य रखव पहिचान।

मन के लालच छोड़ के,गुरु के धर लौ ध्यान।।


सत ईमान रखव जी पक्का,

झूठ नाम मा खाहव धक्का।

मन के लालच तुरते छोड़व,

अंतस मा सत नाता जोड़व।।


सत्य करम करले इहाँ,करले सदव्यवहार।

तब लगही हंसा बने,भव सागर ले पार।।


अमरित वाणी गुरुघासी के,

सत्य अटल हे अविनाशी के।

अंतस मा अब सबो उतारौ।

जिनगी सुग्घर अपन सँवारौ।।


सत रद्दा मा रेंग ले,मन के मिटा उदास।

जग अँधियारी टारथे,सत मा हवय उजास।।


अमृत वाणी (६)

*जैसा खाये अन्न वैसा बनेगा मन।*


छोड़व जेवन तामसी,इही तमो गुण लाय।

हिंसक मन ला ये करे,काम-क्रोध बढ़ जाय।।


जइसन जेवन तँय हर खाबे,

वइसन अपने मन ला पाबे।

छोड़ राजसी तामस थारी।

सादा जेवन हे गुणकारी।।


तज लौ जेवन राजसी,इही बढ़ावय दोष।

सदा बनाथे आलसी,मन मा लावय रोष।।


हरदम जेवन सादा खावव,

तन-मन फिर ताजा पावव।

मन मा दुर्गुन फिर नइ आही,

आनंदित तन-मन हो जाही।।


सादा जेवन खाव जी,आही शुद्ध विचार।

शाकाहारी तुम बनौ,छोड़व मांसाहार।।


अमृत वाणी(७)

*मेहनत ईमान की रोटी सुख का आधार।*


रोटी खा ईमान के,ये सुख के आधार।

जाँगर भर तैं काम ले,बने चला परिवार।।


महिनत के रोटी सुख देथे,

अंतस के पीरा हर लेथे।

सुख जिनगी के इही अधारा।

महिनत ले बस चलय गुजारा।।


कखरो हक ला मार के,धन दौलत झिन जोर।

महिनत ले जिनगी चला,सुख आही घर तोर।।


बइमानी के रुपिया पानी,

जइसे बोरय ए जिनगानी।।

कखरो हक मारे धन जोरे।

पछताबे तँय हिरदे टोरे।।


धन के लालच छोड़ दे,लालच हे बेकार।

सत्य करम करले बने,भव ले होबे पार।।


अमृत वाणी(८)

*क्रोध और बैर को जो त्याग देता है,*

*उसका हर कार्य बन जाता है।*


अंधा करथे आदमी,छिन भर रहिके रोष।

पागल कर देथे घलो,इही बढाथे दोष।।


आगी जइसन चोला बरथे,

छिन-छिन मा जे गुस्सा करथे।

अँधियारी हा मन मा छाथे।

सत्य ज्ञान दुरिहा हो जाथे।।


क्षमा करे बर सीख जौ,अइसन करौ प्रयास।

बैर-भाव ला छोड़ के,मीत बनव जी खास।।


कोनो ला झिन बैरी मानौ,

सबला अपने हितवा जानौ।

सुमता के रद्दा जे चलथे,

जिनगी ओखर सुख मा ढलथे।।


क्रोध-बैर ला छोड़थे,पाथे ओ सतधाम।

सदगुरु के आशीष ले,बिगड़े नइ कुछ काम।।


अमृत वाणी (९)

*दान कभी नहीं माँगना चाहिए,*

*न ही उधार लेना और देना चाहिए*


कायर मनखे हा सदा,फोकट माँगय दान।

बनके वो कमजोरहा,खोवय जी सम्मान।।


मदद करौ दुखियारा मनके,

देवव मान सहारा बनके।

दान कभू कोनो झन देवव।

झिन कखरो ले कोनो लेवव।।


राह बतावव काम के,दे बर छोड़व भीख।

सदगुरु घासीदास के,पहिचानव जी सीख।।


दुख के जइसे मिलथे दर्जा,

नइ लेना चाही जी कर्जा।

सुख के जम्मो नींद उजाड़े,

आपस मा संबध बिगाड़े।।


कर्जा जादा होय ले,चिंता छिन-छिन खाय।

गर मा जइसे फाँस हे,मुँह ले निकलय हाय।।


अमृत वाणी(१०)

*दुसरे का धन हमारे लिए कौड़ी के समान है*


सदगुरु के बानी बने,सुनव लगाके कान।

पर के धन हा ताय जी,जइसे धूल समान।।


पर के धन हा माटी जइसे,

फिर एमा हे लालच कइसे।

जाँगर भर तुम करव कमाई,

मन के लालच छोड़व भाई।।


धन के लालच फाँसथे,जइसे माया जाल।

पर के धन का काम के,बनय जीव के काल।।


मइल हाथ के धन ला जानौ,

लालच ला छोडे़ बर ठानौ।

पर के धन मा हे करलाई,

महिनत होथे जी सुखदाई,


जतके हे ततके बने,मन मा रख संतोष।

धन के लालच जान ले,सदा बढ़ाथे दोष।।


अमृत वाणी(११)

*मेहमान को साहेब के समान समझो।*


मेहमान साहेब जस,कर आदर सत्कार।

गुत्तुर बोली बोल के,सुग्घर कर व्यवहार।।


घर मा कोनों पहुना आवय,

जानौ सुख ला धर के लावय।

लोटा भर देवव जी पानी।

कर लव तुम सुग्घर महिमानी।।


पहुना सतपुरुष सहीं,होथे दव सम्मान।

घर छइहाँ बइठार के,दव जी मीठ जुबान।।


मान-गउन पहुना के करलव,

दया-मया के झोली भरलव।

देवव संतो मया चिन्हारी।

पहुना होथे मंगलकारी।।


जेवन देके पेट भर,कर लव सुख दुख गोठ।

बने रहय व्यवहार हा,मेहमान बर पोठ।।


गुरु अमृतवाणी(१२)

*रिश्तेदार का दुश्मन भी रिश्तेदार होता है।*


हितवा के बैरी घलो,हावय रिश्तेदार।

बैरी मत समझौ कभू,राखव जी व्यवहार।।


सगा-सगा मत करव लड़ाई।

आपस मा मिल राहव भाई।।

बैर भावना जम्मो छोड़ौ।

दया-मया के नाता जोड़ौ।।


दया-मया ले जीत लौ,सबके हिरदय आज।

बैर-भाव ला छोड़ दौ,जग मा करहू राज।।


संगी के बैरी सँगवारी।

सुघ्घर राखव रिश्तेदारी।।

जिनगी मा मत राखव बैरी।

हो जाहू पानी कस गैरी।।


सदगुरु कहे हमार जी,सब ला मितवा जान।

संगी  के  बैरी  कभू, मत  बैरी  तँय  मान।।


गुरु अमृतवाणी (१३)

*धीरज का फल मीठा होता है*


लालच होथे घाँव कस,सदा बढ़ावय पीर।

मीठा फर पाहू तभे,मन मा राखव धीर।।


क्रोध लोभ मा हवय बुराई।

एला छोड़व संतो भाई।।

सबर अपन हिरदे मा राखौ।

तहाँ सदा मीठा फर चाखौ।।


क्रोध लोभ जंजाल हे,एला देवव छोड़।

अपन सबर के बाँध ला,राखव निसदिन जोड़।।


क्रोध हवय जी दुख के कारन।

धरलव मन मा धीरज धारन।।

धीरज के मीठा फर पाहू।

तब जिनगी ला सफल बनाहू।।


लेवव नित सतनाम ला,मिटय सबो संताप।

धीरज मन मा राखके,कर लौ सत के जाप।।


गुरु अमृतवाणी(१४)

*प्रेम का बंधन ही असली है*


दया-मया अनमोल हे,ए ही जग मा सार।

अंतस मा राखौ मया,जिनगी लगही पार।।


दया-मया के बाँधौ बँधना।

खुशहाली आही घर-अँगना।।

बनव सबो जी परहितकारी।

अंतस राखव मया चिन्हारी।।


असली दौलत जान लौ,तुहँर सुघर व्यवहार।

सब ला दौ अमरित सहीं,दया-मया भरमार।।


दया-मया ला जोरे राहव।

मान तभे तुम जग मा पाहव।।

गुरू बबा के अमरित बानी।

धारण करके बन जव ज्ञानी।।


कतको वेद पुरान पढ़,मया बिना बेकार।

जेखर अंतस हे मया,ओही जग सरदार।।


गुरु अमृतवाणी (१५)

*माता-पिता और गुरु को सम्मान दो।*


मातु-पिता गुरु देवता,देवव जी सम्मान।

इँखरे कहना मानहू,तब होही कल्यान।।


मातु-पिता के कहना मानौ।

सहीं देवता इनला जानौ।।

कर लव भइया निसदिन सेवा।

तब तो पाहू सुख के मेवा।।


जीव-मुक्ति होवय नहीं,बिन गुरु संत सुजान।

धरलव गुरु के ज्ञान ला,देके सुघ्घर ध्यान।।


मातु-पिता सदगुरु गुन गावौ।

हाथ-जोड़ के बचन निभावौ।।

इँखर शरन मा राखौ डेरा।

होही सुख के सदा सबेरा।।


मातु-पिता गुरु के सदा,पावन पर लौ पाँव।

इँखरे दे आशीष मा,पाहू सुख के छाँव।।


गुरु अमृतवाणी(१६)

*बिना बछड़े के गाय का दूध मत पीयो*


मुरही गइया के कभू,मत कर गोरस पान।

माँ होथे जननी सबो,इँखरो दुख पहिचान।।


दुखयारी हे मुरही गइया।

कभू दूध मत दूहव भइया।।

पर के दुख ला अपने जानौ।

सत्य धरम ला मन मा ठानौ।।


दुखयारी माँ के सबो,दुख मा देवव साथ।

करौ मदत हर हाल मा,सदा लमावव हाथ।।


गइया हे ममता के सागर।

मया लुटाथे सब बर आगर।।

जग ला दूध पियाथे गइया।

तभे कहाथे जग मा मइया।।


अपन सुवारथ के कभू,मत रँगहू जी रंग।

मुरही गइया ला सदा,राखौ अपने संग।।


गुरु अमृतवाणी(१७)

*इसी जन्म को सुधारना सच है*


संतो बने सुधार लौ,इही जनम ला आज।

दया-मया सुख बाँट के,सत के कर लौ काज।।


सत्य करम ले जनम सुधारौ।

अंतस ले सतनाम पुकारौ।।

तभे शांति सुख घर-घर छाही।

सफल जनम सबके हो जाही।।


जिनगी भर कर लौ सबो,संतो परउपकार।

भजहू जब सतनाम ला,तब जाहू भवपार।।


जीव-जंतु बर दया दिखावौ।

मन ले हिंसा दूर भगावौ।

दया-धरम के नता निभावौ।

इही जनम ला सफल बनावौ।।


कोन जनी कइसन इहाँ,होही कब अवतार।

पूण्य कमावौ आज ले,इही जनम हे सार।।


गुरु अमृतवाणी(१८)

*सतनाम घट-घट में समाया हुआ है*


रोम-रोम मा हे रमे,देखव जी सतनाम।

भटकौ झन पहिचान लौ,मन मा हे सत धाम।।


कहाँ-कहाँ तुम खोजे जाहू।

खौजौ कतको सत नइ  पाहू।।

घट-घट मा सतनाम रमे हे।

तन-मन मा सतधाम बसे हे।।


सत मा ए धरती चलै,सत मा अड़िग अकाश।

सत मा ही करथे बने,चंदा सुरुज उजास।।


घट मा हे सतनाम ल जानौ।

देखौ संतो सत पहिचानौ।।

सतगुरु वाणी हावय चोखा।

जे नइ माने खाही धोखा।।


अजर-अमर सतनाम हे,सत हे जग मा सार।

जपन करौ सतनाम के,होही बेड़ा पार।।


गुरु अमृवाणी(१९)

*ज्ञान का मार्ग तलवार की धार है*


कठिन ज्ञान के राह हे,जइसे ए तलवार।

चलौ बने मन ठान के,होही मन उजियार।।


बनौ सबो जी सत के ज्ञानी।

छोड़व अपने मन अभिमानी।।

ज्ञान राह ला गुरू बताये।

रेंगव ओमा बिना डराये।।


असल-नकल का चीज हे,पहिली सत पहिचान।

खोल ज्ञान के द्वार ला,तब बनबे विद्वान।।


करय तर्क तब मानै ज्ञानी।

धरै गुरू के अमरित बानी।।

अनपढ़ हा तुरते सब मानै।

तर्क करे बर कुछ नइ जानै।।


सतखोजी कहिलाय जी,पाये सत के ज्ञान।

बाबा घासीदास हा,जग मा हवय महान।।


गुरु अमृतवाणी(२०)

*गर्भस्थ शिशु भी आपके समान है*


नान्हे लइका ला घलो,जानव अपन समान।

दया-मया देवव सदा,ए ही सदगुरु ज्ञान।।


लेवव जी सदगुरु ले दीक्षा।

लइका ला दौ नैतिक शिक्षा।।

सबो निभावव जिम्मेदारी।

लइका बन जय परहितकारी।।


लइका ला देवव बने,ज्ञान सीख संस्कार।

तब बनही इंसान जी,करही सत व्यवहार।।


लइका मन ला ज्ञान धरावौ।

बोले बर सतनाम सिखावौ।।

तब तो जग मा आगू बढ़हीं।

सत्य ज्ञान ले जिनगी गढ़हीं।।


सबो जीव एके कहे,सदगुरु घासीदास।

सत्य ज्ञान ला मान लौ,कर लौ जी विश्वास।।


गुरु अमृवाणी(२१)

*जो भी आपके पास है उसे बाँट कर खायें।*


जौन चीज हे पास मा,बाँट-बाँट के खाव।

लाँघन कोनो झन रहै,मनखे फरज निभाव।।


सत्य धरम के धरलौ बाना।

जीव-जंतु ला देवव दाना।।

लाँघन ला जेवन तो देवव।

बदला मा तुम कुछ झन लेवव।।


जेवन के बेरा कहूँ,पहुना घर मा आय।

ओहू ला जेवन खवा,ओ लाँघन मत जाय।।


मानवता के धरम निभावौ।

जीव-जंतु बर दया दिखावौ।

निस-दिन जय सतनाम ल गावौ।

जग मा गुरुवाणी बगरावौ।।


संकट के बेरा रहै,पर जय कहूँ दुकाल।

सब संतन मा बाँट दे,तोर धरे वो माल।।


गुरु अमृवाणी(22)

*जितने भी हैं सभी मेरे संत हैं*


कहय गुरू साहेब हा,सत्य ज्ञान ला पाव।

जतका हौ ततका सबो,मोर संत तुम आव।।


सत्य धरम ला जे पहिचानै।

माने बर जी मन मा ठानै।।

ओही मनखे संत कहाथे।

जग मा सुघ्घर नाँव कमाथे।।


भेद-भाव ला छोड़ के,करथे सत के काम।

वो मनखे सब संत हें,जे मानै सतनाम।।


जे मनखे सत के गुण गाथे।

दूर सबो बिपदा हो जाथे।

ओहर मंगल सुख ला पाथे

खुशहाली घर-अँगना आथे।।


कहिथे घासीदास जी,तज लौ गरब गुमान।

सत्य ज्ञान अमरित सहीं,पी लौ संत सुजान।।


गुरु अमृतवाणी(२३)

*गाय-भैंस को हल में नहीं जोतना चाहिए*


गाय-भँइस माता सहीं,जानैं सकल जहान।

नाँगर मा तुम फाँद के,करहू मत अपमान।।


गाय-भँइस ममता बरसाथें।

सब मनखे बर मया लुटाथें।।

दूध-दही घी हमला देथें।

दुख-पीरा सबके हर लेथें।।


चलव निभावव आज ले,सत्य धरम के रीत।

गाय भँइस के संग मा,राखव पावन प्रीत।।


गाय भँइस के करलव सेवा।

दूध-दही  घी  पाहू  मेवा।।

गाय-भँइस के जे घर वासा।

पूरन होथे सुख के आसा।।


कहिथे घासीदास जी,सत्य धरम ला जान।।

पालन करलौ तुम सबो,सदगुरु सत्य विधान।।


गुरु अमृवाणी(२४)

*मांस तो मांस उससे मिलते जुलते सब्जियों का भी सेवन न करें*


हत्या करना जीव के,अइसन छोड़व आस।

अपन जीव कस जान लौ,मत खाहू जी मास।।


बनके राहव शाकाहारी।

हरा-भरा खावव तरकारी।।

सादा जेवन सादा बानी।

राखव जी सुघ्घर जिनगानी।।


मास सही जे लाल हे,मत राँधव ओ साग।

मास खाय के लालसा,मन ले जाही भाग।


हाड़-मास के तुँहरो काया।

मास खाय के छोड़व माया।

बनव कभू मत मांसाहारी।

कहिथे सदगुरु सत के धारी।।


खाहू मत जी मास ला,इही तमोगुन लाय।

मास खाय जे आदमी,दानव सदा कहाय।।


गुरु अमृवाणी(२५)

*किसी की जान लेना हत्या है ही,लेकिन किसी को सपने में मारना भी हत्या है*


सपना मा मत सोचहू,ले बर कखरो जान।

हिंसा तो अपराध है,तज लौ मन अभिमान।।


कोनों ला मारे के सपना।

झन देखव एमा हे तपना।।

अंतस ले गुस्सा ला टारौ।

दया-मया के दीया बारौ।।


क्रोधी,पापी आदमी,करथे हिंसा काम।

निष्ठुर बनके मारथे,होथे खुद बदनाम।।


सदगुरु वाणी हवय निराला।

पी लौ सत के अमरित प्याला।।

गुस्सा के आदत ला छोड़ौ।

सत्य ज्ञान ले नाता जोड़ौ।।


हिंसा मत करहू कभू,मन ला राखव साफ।

क्रोध-बैर तज के चलौ,करना सीखव माफ।।


गुरु अमृतवाणी(२६)


*नारियल पान सुपाड़ी से सम्मान करो*


पान-सुपाड़ी नारियल,ले करलौ सम्मान।

ढोंग दिखावा छोड़ के,धरलौ गुरु के ज्ञान।।


काबर करथौ ढ़ोंग दिखावा।

छोड़व छप्पन भोग चढ़ावा।।

अंतस मा श्रद्धा ला राखौ।

सत्य नाम के फर ला चाखौ।।


अंध भक्ति ला छोड़ के,चलौ सत्य के राह।

सत्य करम के रातदिन,मन मा राखौ चाह।।


आडम्बर ला मत मानौ जी।

सत्य ज्ञान ला सब जानौ जी।।

अंतस ले अँधियार मिटालौ।

सत्य ज्ञान के जोत जलालौ


सदगुरु शिक्षा मंत्र हे,सब संतन बर सार।

सत्य ज्ञान ला मान लौ,जिनगी होही पार।।


गुरु अमृतवाणी (२७)

*मंदिर मस्जिद बनवाने से अच्छा है कुआँ,तालाब,अनाथालय,धर्मशाला बनाना चाहिए।*


मंदिर मस्जिद मा कभू,नइ होवय कल्यान।

बनवाके तरिया कुआँ,पावव जग सम्मान।।


मंदिर मस्जिद झन बनवाहू।

ए मा तो कुच्छू नइ पाहू।।

बने कुआँ तरिया खनवालौ।

जग मा सुघ्घर नाँव कमालौ।।


बनय अनाथालय इहाँ,करहू सफल प्रयास।

बनय धरमशाला घलो,दीन-दुखी बर खास।।


बनव हितैषी सबके भाई।

जीव-जंतु के करव भलाई।।

नेकी के सब करव कमाई।

ए ही होथे बड़ सुखदाई।।


दुरगम ला बनवा सुगम,सबके आही काम।

चल संगी सत राह मा,भज के जयसतनाम।।


गुरु अमृतवाणी(२८)

*जीव हत्या महापाप है*

दोहा-

जीव मारना पाप हे,मत करबे अपराध।

अपन जीव कस जान के,परहित ला नित साध।।


कखरो दिल मा चोट लगाना।

होथे ए बड़ पाप समाना।।

छोड़व संतो जीव सताना।

हत्यारा तुम झन कहिलाना।।


जब जिनगी नइ दे सकव,लेथव काबर प्रान।

लगही अब्बड़ पाप जी,मिट जाही सब शान।।


अपन जीव कस सबला जानौ।

पर के पीरा ला पहिचानौ।

जीव-जंतु ले प्रीत बढ़ावौ।

सत्य-नाम के रीत निभावौ।।


जीव-जीव सब एक हे,झन देहू जी चोट।

लोभ-क्रोध छल भावना,टारव मन के खोट।।


गुरु अमृवाणी(२९)

*बारहों माह के खर्च की व्यवस्था कर लें,

तभी पूजा अर्जना करें नहीं तो न करें।*


पहली बारा माह के,खर्चा अपन बटोर।

भक्ति-भाव मा तब बने,लगही मन हा तोर।।


लाँघन कस दुख नइ हे दूजा।

पेट भरे मा करहू पूजा।

हे सतगुरु के अमरित बानी।

सब संतन मन कहना मानी।।


घर मा नइ हे खाय बर,मन भटके जब तोर।

तब पूजा का प्राथना,लगा काम मा जोर।।


पेट भरे बर दाना नइहे।

काम-धाम मा जाना नइहे।।

तब पूजा मा का मन लगही।

भक्ति-भाव मन मा का जगही।।


अभिनंदन गुरु के करौ,बंदव संत समाज।

सच्चा मन से मान लौ,सत्य नाम ला आज।।


गुरु अमृवाणी (३०)

*पितृ-पक्ष मनाना पागलपन है।*

मातु-पिता भगवान हे,निसदिन कर सम्मान।

जीयत मा इनला खवा,रंग-रंग पकवान।।


मातु-पिता के करलौ सेवा।

रोज खवावौ लड्डू मेवा।।

सबो इँखर दुख ला हर लेवव।

जीयत मा सब सुख ला देवव।।


जीयत मा माने नहीं,माने पीतर पाख।

का खाही पकवान ला,जे होगे हे राख।।


पिंड-दान हे ढ़ोंग दिखावा।

छोड़व पीतर भोग चढ़ावा।।

मरे आदमी काला खाही।

ज्ञान तुहँर हिरदे कब आही।।


मरगे हावय तेन ला,छप्पन भोग लगाय।।

माने पीतर पाख ला,वो जग बइहा ताय।


गुरु अमृतवाणी(३१)

*तामसी भोजन और दुर्गुणों से दूर रहें।*


होथे जे हर तामसी,वो जेवन मत खाव।

बनके शाकाहार जी,दुरगुन ले बँच जाव।।


मत खाहू जी गरम मसाला।

ए सब हे दुरगुन के प्याला।।

सादा जेवन सादा बानी।

राखव कहिथे सदगुरु ज्ञानी।।


दुरगुन मा फँसके कभू,मत होहू जी चूर।

क्रोध,बैर,मदपान ले,राहव सब जन दूर।।


तामस जेवन ले मुँह मोड़ौ।

नशा-पान ला झटकुन छोड़ौ।।

रहव शुद्ध सब शाकाहारी।

सत्य नाम के बनव पुजारी।।


सदगुरु के उपदेश ला,जानै सकल जहान।

सत रद्दा मा रेंगहू,तब बनहू इंसान।।


गुरु अमृतवाणी(३२)

*निंदा और चुगली से घर बिगड़ता है*


कखरो मत निंदा करौ,बढ़थे ऐमा रोष।

निंदा ले का फायदा,छोड़व अइसन दोष।।


चुगल खोर मत बनहू भाई।

नइते होही बड़ दुखदाई।।

रोष-दोष के आगी बरही।

निंदा मा कतको घर जरही।।


निंदा मा नइ हे भला,बढ़थे व्यर्थ विवाद।

अइसन आदत छोड़ दौ,रखौ अपन मर्जाद।।


निंदा के झन बोंवव काँटा।

मारे जइसन होथे चाँटा।।

निंदा हा व्यवहार बिगाड़े।

समझौ जी घर-द्वार उजाड़े।।


चारी-चुगली छोड़ के,सत्यनाम गुन गाव।

तब होही सबके भला,सत्य बात पतियाव।।


गुरु अमृवाणी(३३)

*धन को किसी अच्छे कार्य में खर्च करें,व्यर्थ में नहीं उड़ायें।*


धन-दौलत अनमोल हे,फोकट झन उड़वाव।

अच्छा कारज बर भले,खरचा ला कर जाव।।


खून-पछीना जब गिर जाथे।

तब महिनत ले धन घर आथे।।

झन करहू फोकट धन खरचा।

ऊँचा एखर जग मा दरजा।।


महिनत के धन ला कहूँ,जुआ-नशा मा खोय।

मूँड़ धरै परिवार हा,परही सबला रोय।।


गलत जिनिस मा धन उड़वाहू।

पाछू चलके बड़ पछताहू।।

नेक-काम बर खरचा करहू।

तब तो सुख के झोली भरहू।।


सत्य करम ले धन कमा,कुछ परहित बर जोर।

धन फोकट मा झन उड़ा,कहिथे सदगुरु मोर।।



गुरु अमृतवाणी(३४)

*ये धरती आपकी है इसका श्रृंगार करें।*


ए धरती हे आपके,कर ले जी श्रृंगार।

पेंड़ लगा हरियर बना,ए ही सुख आधार।।


जुरमिल के सब पेंड़ लगावौ।

धरती के कोरा हरियावौ।।

तरिया नदिया ला मत पाटौ।

कभू पेंड़ पौधा मत काटौ।।


साफ रखौ पयार्वरण, ए जिनगी के सार।

धरती के सेवा करौ,बड़ पाहू उपहार।।


जंगल,नदिया,पेंड़ बचालौ।

जल-थल ला जी शुद्ध बनालौ।।

प्रकृति हवय अब्बड़ वरदानी

देथे जी सुख के जिनगानी।।


जीव-जंतु जंगल सबो,सुघर रहै संसार।

सदगुरु घासीदास के,अइसन नेक विचार।।


गुरु अमृतवाणी(३५)

*दीन-दुखियों की सेवा सबसे बड़ा धर्म है*


सबले बड़का धर्म हे,परहित परउपकार।

दीन-दुखी ला आज ले,सुख के दव उपहार।।


दया भावना मन मा भरले।

परहित के नित कारज करले।।

सबके करले सदा भलाई।

दुख के होही इहाँ बिदाई।।


मनखे सेवा धर्म हे,ए ही जग मा सार।

दीन-दुखी के कर भला,होही जय जयकार।।


अज्ञानी ला ज्ञान सिखादे।

भटके ला सत राह बतादे।।

भूखा ला जलपान करादे।

मानवता के फर्ज निभादे।।


सत्य धर्म ला जान लौ,भज लौ जी सतनाम।

करौ मदद इंसान के,इही पूण्य के काम।।


 गुरु अमृवाणी(३६)

*किसी के राह में काँटे न बोयें।*

ककरो रद्दा मा कभू,काँटा ला बगराय।

खुद तँय गड़बे जान ले,परही तब पछताय।।


ककरो बर झन काँटा बोहू।

नइते ओमा गड़ के रोहू।।

जलन भावना मन ले छोड़ौ।

दया-मया ले नाता जोड़ौ।।


काँटा बोंके राह मा,करथस तँय परशान।

पर के पीरा ला समझ,बनथस का नादान।


ककरो बर मत गढ्ढा कोड़ौ।

बैर- भाव ला तुरते छोड़ौ।।

पर पीरा ला अपने जानौ।

अपने सब मनखे ला मानौ।।


ककरो बनते काम मा, तँय बाधा मत डार।

सब बर सोच बनाय के,करले पर उपकार।।


गुरु अमृवाणी (३७)

*घमंड का घर खाली होता है*


नाशवान जिनगी हवै,मत करबे अभिमान।

जाना परही छोड़ के,तोला सकल जहान।।


चारे दिन के ए जिनगानी।

मत करहू जी तुम अभिमानी।।

माटी मा मिल जाही काया।

छोड़े परही जग के माया।।


अहंकार मा जेन हा,रहिथे हरदम चूर।

ओ तो बड़ पछताय जी,दुख पावै भरपूर।।


ए जिनगी के काय ठिकाना।

तज लेवव जी गरब गुमाना।।

माया के सब खेल पुराना।

दया-मया के गावव गाना।।


तज लौ गरब गुमान ला,जिनगी के दिन चार।

बनके सबके मीत जी,कर लौ सद व्यवहार।।


गुरु अमृवाणी(३८)

*झगड़े का जड़ नहीं होता,अचानक में भयानक नुकसान होता है*


झगरा के जर काट ले,रहिके जी चुपचाप।

होही दूर कलंक हा,छिन मा अपने आप।।


जब झगरा झंझट मा परहू।

गुस्सा के आगी मा बरहू।।

काय फायदा ए मा पाहू।

पाछू चलके बड़ पछताहू।।


जब रखहू मन शांत जी,झगरा खुद मिट जाय।

झगरा मा नुकसान हे,दुरगुन सदा बढ़ाय।।


बने शांति ले तुम राहव जी।

तब तो निसदिन सुख पाहव जी।।

सदा बढ़ावौ भाईचारा।

सुख-दुख मा सब बनव सहारा।।


झगरा बर मत जोर दौ,होथे बड़ नुकसान।

बढ़ जाथे मन भेद हा,समझौ संत सुजान।।


गुरु अमृवाणी(३९)

*न्याय सबके लिए बराबर होता है*


सब मनखे बर जान लौ,एक बरोबर न्याय।

जे दोषी बनही कहूँ,उही सजा तो पाय।।


न्याय सबो बर एक्के हावय।

इहाँ सजा अपराधी पावय।।

न्यायालय के महिमा भारी।

जानव समझव सब नर-नारी।।


न्याय पाय बर हे इहाँ,समता के अधिकार।

राजा चाहे रंक हो,सबो हवँय हकदार।।


प्रजातंत्र के एक चिन्हारी।

न्याय पाय के सब अधिकारी।।

संविधान के सुनव कहानी।

मानवता के इही निशानी।।


न्याय मिले बर हो जही,भले इहाँ कुछ देर।

सब बर हे कानून हा,नइ होवय अंधेर।।


गुरु अमृतवाणी(४०)

*धर्मात्मा वही है जो धर्म करता है।*


परहित परउपकार हा,सबले बड़का धर्म।

कहिलाथे धरमात्मा,जे करथे सत कर्म।।


सदाचार ला धारण करलौ।

दया-धरम हिरदे मा भरलौ।।

बनौ सबो जी पर उपकारी।

रखव हमेशा सत्य चिन्हारी।।


झूठ अहिंसा छोड़ के,करलौ सत के काम।

जीयव जिनगी शान से,भज के जी सतनाम।।


पूण्य कमा के मन हर्षालौ।

परहित करके नाम कमालौ।।

सत्य नाम के गाना गालौ।।

सदगुरु के कहना अपनालौ।।


दया-धरम संतोष हा,सत के हे पहिचान।

कर नेकी होही भला,ए ही सदगुरु ज्ञान।।


गुरु अमृतवाणी(४१)

*दुश्मन के साथ भी प्रेम रखो।*


बैरी के सँग मा घलो,सुघ्घर राखौ प्रीत।

गुत्तुर बोली बोल के,मन ला लेवव जीत।।


बैर-भाव ला दूर भगावौ।

दया-मया अब्बड़ बरसावौ।।

बैरी के बन जावव मितवा।

मन से मानौ ओला हितवा।।


आपस मा मिलके रहौ,मत राखौ मन भेद।

करुहा बोली बोल के,करहू मत दिल छेद।।


दया-मया ले नाता जोड़ौ।

बैर भावना मन ले छौड़ौ।।

मन के जम्मो भेद भुलावौ।

बैरी ला भी गले लगावौ।।


बदला लेके चाह मा,मन मा उपजै रोष।

सबो भुलाके बैर ला,कर लौ मन संतोष।।


गुरु अमृतवाणी(४२)

*मेरे संत जन मुझे किसी से बड़े मत कहना।*


मोला बड़का मत कहौ,कोनो संत सुजान।

मोर कहे उपदेश ला,मन मा राखौ ध्यान।।


सत्य नाम ला मानत राहौ।

ककरो ले बड़का मत काहौ।।

मन मा भर लौ अमरित बानी।

तब सुघ्घर चलही जिनगानी।।


सदगुरु बानी सत्य हे,जस अमरित के धार।

सबो संत धारण करौ,होही जिनगी पार।।


मोर नाँव के जपना छोड़ौ।

अंतस मा सतनाम ल जोड़ौ।

सत संदेशा ला सब गुनलौ।

सत के संतो रद्दा चुनलौ।।


अमरित वाणी के सबो,कर लौ जी सम्मान।

अंतस मा धारण करौ,मिल जाही सत ज्ञान।।


द्वारिका प्रसाद लहरे

बायपास रोड़ कवर्धा

छत्तीसगढ़

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चोवाराम वर्मा बादल

गुरु हे घासीदास , सत्य के परम पुजारी।

 सत के जोत जलाय, संत जग के हितकारी।

 पावन गांँव गिरौद,मातु अमरौतिन कोरा।

 धन-धन महँगू दास, पिता बन करिन निहोरा।1



 सत्य पुरुष अवतार, तोर महिमा हे भारी।

 सुमर-सुमर सतनाम, मुक्ति पाथें नर-नारी। 

ऊँच-नीच के भेद,मिटाये अलख जगाके।

 मनखे- मनखे एक, कहे सब ला समझाके। 2



तोर सात संदेश, सार हे मानवता के ।

समता के व्यवहार, तोड़ हे दानवता के।

 छुआछूत हे पाप, पुण्य हे भाईचारा।

 जात पात हे व्यर्थ, सबो झन करौ किनारा। 3



मातु पिता हे देव, तपोवन हावय घर हा।

 सबके हिरदे खेत, प्रेम के डारन थरहा।

 गुरु के आशीर्वाद,पाय हन छत्तीसगढ़िया।

 सत मारग मा रेंग, बनन जी सब ले बढ़िया।4


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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*सार छंद*


कोन कहाँ जी जाही कइसे,सबके करम बताही।

छोड़ जगत के मेला ठेला,पंछी हा उड़ जाही।।


धरम करम ला सार जान के,सत के रद्दा चुनले।

सुग्घर कर तँय काम जगत मा,मन मा अपने गुनले।।


छोड़व गा अब चारी चुगली,काँटा नहीं उगाहू।

मनखे जावव चेत नहीं ते,मार करम के खाहू।।


बैर भाव ला मेट इहाँ जी,करम बने तँय करबे।

सुनता ले सब काम सधे अब,राह नवा तँय गढ़बे।।


जात पात  के बँधना ला जी,भुर्री असन जलाहू।

बाबा के कहना माने ले,सद्गति सुग्घर पाहू।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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 गीतिका छंद 

गोठ घासीदास के जी, पोठ हावय ज्ञान के

वो कहे हे सब बरोबर, खोज सत ला जान के।

जान ले सत ज्ञान ला अउ, बोल जय सतनाम के

हो जबो माटी सबोझन, नइ रबो कुछु काम के।।


हे अबड़ संसार मा ये, मोह माया जाल जी

जाल मा फँसके सबो के, हाल हे बेहाल जी।

भेद मनखे ला डहत हे, जस अगिन के डाह जी 

गोठ घासीदास जी के, धर चलव सत राह जी।।


छोड़ दव अब तो लड़ाई, भेद ला सब त्याग दव

मान लव सब हन बरोबर, एक स्वर मा राग दव।

एक दूसर बर रखव झन, दुश्मनी ला पाल जी

संग चलबो साथ जम्मो, देश हो खुशहाल जी।।


अनिल सलाम 🙏🙏

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 अमृतध्वनि छंद - बोधन राम निषादराज


(1) संत घासीदास

लाला  अमरौतिन   तहीं, बाबा   घासीदास।

सत् मारग सत् ज्ञान के,जोत जलाए खास।।

जोत  जलाए, खास  धरम के, पाठ  पढ़ाए।

मानवता  के,  दे  संदेशा,  जग  समझाए।।

जनहित बर तँय,धरे जपे हस, कंठी माला।

सादा  झंडा,  गाड़े तँय हा,  महँगू   लाला।।


(2)

जंगल झाड़ी खार मा,गूँजत हावय नाम।

अलख जगाइस ज्ञान के,बाबा पूरन काम।।

बाबा पूरन, काम  बनाइस, तप ला करके।

दया मया के,भाव जगाइस, सत् ला धरके।।

नाम   सुमरले,  बाबा  घासी,  होथे  मंगल।

जनहित खातिर,बाबा भटकिस,झाड़ी जंगल।।


(3)

जय हो घासीदास के,जय हो जय सतनाम।

जइसन एखर काम हे, सुग्घर  एखर नाम।।

सुग्घर  एखर, नाम  सत्य के,  हवै  पुजारी।

जात-पात के,  भेद  मिटइया, ये सँगवारी।।

बोली बोलव,गुरु चरनन मा,अमरितमय हो।

मनखे ला सत्,पाठ पढ़इया,बाबा जय हो।।


बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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सुखदेव: सतनाम साखी 


गुरू कृपा ले बढ़ के भइया, कहॉं दुसर उपहार हो।

गुरू कृपा ले जिनगी नइया, होवत हे भॅंव पार हो।

होवत हे भॅंव पार, बोल दे सत्तनाम की जय।

सत्तनाम के नाम, सुमर के संत होत निर्भय।


सतनाम सार- 16, 12


गुरु घासी के जनम जयन्ती, अठारह दिसम्बर हो।

ए दे गूॅंजय गगन म पंथी , बजय झॉंझ मॉंदर हो।


लागे खोर-गली ह सुहावन, गॉंवों लगय सरग ना।

पुरे चौंक दुवारी दुवारी, फभत हवय घर ॲंगना।


हावे हर्षित ग हाट-बजार, शहर नगर छगन-मगन।

गुरु घासी बबा ल सोरियाय, ए डोंगर पर्बत बन।


खेती-खार निहारय रस्ता, लगे दरश आशा हो।

नान्हे बिरवा ला मिलही, गुरू ज्ञान शिक्षा हो।


साक-पान के बढ़गे सुवाद, कंद-मूल गुरतुर हो।

गुरु देहू परसाद रवा ला, ज्ञान गुण लय सुर हो।


नदिया नरवा कर पानी, कंचफरी निर्मल हो।

गुरु चरण पखारन खातिर, दुबी धरे हे जल हो।


करे ताप ला सूरुज मध्यम, आही जननायक हो।

बहे फूल के धरके सुगंध, पुरवा सुखदायक हो।


माता अमरौतिन के ललना, बाबा सतधारी हो ।

बाबा महॅंगूदास दुलारा, अंशा ॲंवतारी हो।


गुरु के माथ म चन्दन सोहय, कण्ठी गर शोभय हो।

गुरु पॉंव खड़ाऊ छू लेतेंव, अइसे मन होवय हो।


करय आरती बन दिया-बाती, मोरे तन अउ मन हो।

गुरु मन अंतस म बिराजव, लगे हृदय आसन हो।


रचना-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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गीतिका छंद- विजेन्द्र वर्मा


मोह माया लोभ ला तो,त्याग दव सब आज जी।

बोल बोलव साँच अब तो,रोज करलव काज जी।।

संत चोला ओढ़ बाबा,देय सब ला ग्यान हे।

मीठ अमरित बोल ओकर,आज तो पहिचान हे।।


छोड़ निंदा चारि ला तो,नींद ले अब जाग तैं।

बाँट जग मा प्रीत सब ला,झन लगा अब आग तैं।।

मान कहना आज गुरु के,बूड़ सत के धार जी।

संत घासी बोले हावै,बात सुग्घर सार जी।।


तोर बिगड़े काज बनही,नाव जपले राम के।

रेंग सत के राह मा अब,सोच झन ये काम के।।

छोड़ दे अभिमान ला अब,देह बर ये नास ये।

संत घासी दास बाबा,बात केहे खास ये।।


गोठ पावन संत गुरु के,आज तँय हा मान ले।

जैत खंभा काय होथे,राह चुनके जान ले।।

होय उज्जर तोर अंतस,रेंग गुरु के राह अब।

राख निरमल आचरण तँय,होय पूरा चाह तब।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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गजल-- ( गुरु घासीदास जयंती विशेष)


संत घासीदास गुरु संदेश सत के सार संतो

सत्य ही गहना मनुज के प्रेम सुख आधार संतो


पर बुराई दूर रहना थाम सुमता के डगर चल

क्रोध दुख के आग मा मन जल जथे घर द्वार संतो।


चल अहिंसा राह मा नित थाम गुरु के सत्य बानी

माया नगरी ले तभे जी तोर तो उद्धार संतो।


ले जला हिरदे दुवारी दीप समता एकता के

कोंख माँ के एक जानौ एक हे परिवार संतो।


ज्ञान सत उपदेश गुरु के धर चले पात्रे गजानंद

मोर जिनगी मा सदा गुरु नाम के उपकार संतो।



*इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )


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 *जय जय गुरुघासी  बाबा जी, बिपदा  मोर हरौ* ।

 *आये हँव सतधाम तोर मँय, झोली  मोर भरौ* ।।1।।


 *दीन-हीन लइका  मँय बाबा, आऔ दुःख हरौ* ।

 *हँव अज्ञानी दुनिया मा मँय, मन उजियार करौ।।* 2।।


 *अमरौतिन महँगू  के ललना, हमरो ध्यान धरौ।* 

 *गुरुवर तँय हर हाथ बढ़ादे, किरपा आज करौ* ।।3।।


 *गुरु बाबा तँय हस हितकारी, सबके ख्याल करौ* ।

 *दयावान तँय सबले जादा, जग मा सत्य भरौ* ।।4।।


 *जगमग तोरे चिनहा चमकै, बाबा नमन करौं।* 

 *जगत पिता  महिमा हे भारी, तोरे चरन परौं* ।।5।।


 *सत के नाम जगत मा छावय, माया मोह टरै* |

 *समता सुमता राहय सबमा, जुरमिल गुजर करैं** ||6||* 


*बाढ़य बिरछा भाईचारा, मनखे साथ रहैं|* 

*दुनिया मा जब उपजय पीरा, सुखदुख सबो सहैं* ||7||


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 *छंदकार-* 

 *अश्वनी कोसरे रहँगिया "प्रेरक"* 

 *कवर्धा कबीरधाम(छ.ग.)*

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        (सार छंद)

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छत्तीसगढ़ के सुरुज बरोबर, सत अँजोर बगरइया। 

जन जन मा भाईचारा अउ, सुम्मत भाव जगइया। ।

मनखे सबो समान बताके, सत्तनाम गुन गाइन। 

मानवता के सुघ्घर रस्ता, दुनिया ला देखाइन। ।

अइसन संत सुजानी के हर, करम बचन हें पावन। 

बाबा घासीदास गुरु ला, जन जन करथें बंदन। ।

       जय सतनाम!!

दीपक निषाद -बनसाँकरा (सिमगा)

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रोला छंद


अमरौतिन के लाल,नमन हे बाबा तोला।

पारत हँव गोहार, दरश तँय दे दे मोला।

हे गुरु घासीदास,ज्ञान के जोत जलाये।

सार हवय सतनाम,जगत ला तहीं बताये।


नन्द कुमार साहू नादान 🙏

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ज्ञानू


सत्यनाम संदेश ला, दुनियाँ मा बगराय।

मेटय जन के पीर ला, बन्दीछोर कहाय।।


पढ़े लिखे नइ वो रिहिस, भरे ज्ञान अनमोल।

छिन मा देवय अउ इहाँ, आँखी सबके खोल।।


झूठ कपट जानय नही, कभू मोह अउ लोभ।

जिनगी भर दुरिहा रहय, इँखर ह्रदय ले खोभ।।


मानवता के सीख दय, समझै लोगन बात।

ढोंग गलत पाखंड बर, लगे रहय दिनरात।।


मनखे मनखे एक हे, करलव सबले नेह।

कहै गुरू घासी बबा, दुर्लभ मानुष देह।।



छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी

चंदेनी-कबीरधाम

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मोहन मयारू: *महिमा गुरु घासीदास के*


गुरु चरण बन्दन करौ , होय सुफल सब काज ।

रद्दा सत्या के धरौ , राखव सतगुरु लाज ।। 


होत बिहनिया नाम ले , करवँ सुमरनी तोर ।

सत्यनाम हिरदे बसे , बगरे  चारो ओर ।।


बनगे आज गिरौद जी , बाबा घासी धाम ।

जन्म धरिन जीहाँ बबा , गूँजय सत्यानाम ।।


पावन धाम गिरौद मा , बाबा ले अवतार  ।

सत्यनाम् गूँजय सदा , जगमा हावय सार ।

जगमा हावय सार , नाम ला तँय हर जपले ।

गाले सत्यानाम , पार जी होबे झपले ।

चरण कुंड के धार , बहय जी जइसे सावन ।

मेला लगथे रोज , धाम गा हावय पावन ।। 


कर सुमिरन सतनाम के , जाबे भवले पार ।

गुरु चरण मा मन लगा , नाम हवय जी सार ।।


बाबा घासी दास के , महिमा हवय महान ।

सत्य नाम निज सार हे , जानय सकल जहान ।।


महँगू के जी पूत , सत्य के रद्दा चलथे ।  

माता अमरौतीन , देख जी दुनिया जलथे । 

सत्यनाम् हे सार , सबो के सेवा करथे ।

मानव एक समान , मान जी पीरा हरथे ।।


   छंदकार - मयारू मोहन कुमार निषाद

                   गाँव - लमती , भाटापारा , 

                जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

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जगदीश के दोहे

सतनाम हे सार


गुरु घासी सत ज्ञान ले, तारत हे संसार।

मानव गुरु उपदेश ला, होही बेड़ा पार।।


धन्य हवय भुइँया हमर, जय गिरौदपुर धाम।

सुमिरँव मैं सतनाम ला, गुरु के पावन नाम।।


सत बोलव सत मा चलव, जप लव जी सतनाम।

मिल जाही सद्गुरु कृपा, बनही बिगड़े काम।।


सत्यनाम जग सार हे, गाँठ बाँध के राख।

नइ माने जब साँच ला, होही सबकुछ खाख।।


भेदभाव ला दूर कर, बगराए हे ज्ञान।

मनखे मनखे एक हे, दव सबला सम्मान।।


जन्मे सब इक देश मा, राज गाँव सब एक।

रंग रूप गुन एक हे, अंतर का हे देख।।


जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)

कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार

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 ज्ञानू कवि: मोद सवैया


प्यास मरे मछली जल भीतर आवत हे मोला सुन हाँसी।

आतम ज्ञान बिना भटके नर का मथुरा काबा अउ कासी।

नाम जपै नइ आलस मा फँसगे मनुवा माया गर फाँसी।

भक्ति बिना भव कोन तरै सत बात कहे बाबा गुरु घासी।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

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अरविंद सवैया

1/

अमरौतिन के तॅय लाल बबा, ललना मॅहगू करगै बड़ नाम।

धर ऊॅच विचार करे मन मा, उपकार करे जस के सत काम।।

सतनाम कहै सतनाम धरै, सतमारग लेय बबा तॅय थाम।

दय भाग जगा जन के मन मा, सत लोक गिरौदपुरी गुरु धाम।।


2/

दियना ह बरै महिमा ल कहै, हमरे गुरु तो सुन होय महान।

जग तार दिये सतनाम दिये, मनखे मनखे कह एक समान।

सत साध सधै अउ ध्यान धरै, तन ले मन ले गुरु देवय ज्ञान।

सब चेत धराय बबा मनखे, सतमारग के करथै ग बखान।।


रामकली कारे

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*।। अरविंद सवैया छंद काव्यांजलि ।।*


मँहगू अमरौतिन के प्रिय लाल गिरौदपुरी म लिए अवतार।

सतनाम जपो सतनाम जपो कहिके सबके हरथे दुख भार।।

झन माँस ल खाव नशा झन लेवव जीव कहे ककरो झन मार।

मनखे-मनखे सब एक हवै सबले कर लौ बढ़िया व्यवहार।।१।।


सतजोत जलाय रहे अउ अंतस मा बस ध्यान लगावत जाय।

पर के तिय मातु समान निहारव ज्ञान सबो ल बतावत जाय।।

झन पूजव मूरति मंदिर जा निज रूप के मान बढ़ावत जाय।

विधवा मन के ग बिहाव कराय सती परथा ल मिटावत जाय।।२ ।।


मद लोभ मिटा तज काम बुरा नइ क्रोध भला नइहे भल मोह।

सत प्रेम दया करुणा दिखला सब जीव समान हवै गल जोह।।

मनखे मनखे सब एक हवै तज जात महा दुख ला झन बोह।

झन झूठ ल बोलव भेद ल छोड़व डाह रखौ मन मा झन खोह।।३ ।।


*रचनाकार अशोक धीवर "जलक्षत्री"*

ग्राम- तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

 जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

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 दोहा-

बाबा घासीदास


सत के रसता तँय चले ,बाबाघासी दास।

मानवता के पाठ दे,बनगे बाबा खास।।


अमरौतिन के लाल तँय, मँहगू रहे सपूत।

नाम अमर हे आज गा, सत्य राह के दूत।।


जय हो घासीदास के, जय होवे जतखाम।

गुरुवर तोरे पाँव मा, करत हवंव प्रणाम।।


झूठ कपट छोड़ो कहे,वाणी गा अनमोल।

गुरुवर के रसता चलौ,सत्य सत्य गा बोल।।


मनखे मनखे एक हे,करलो सबसे प्यार।

दू दिन के हे जिन्दगी, कहे बात वो सार।।


छोड़ो दारू माँस ला,गुरुवर के संदेश।

ज्ञान जगत में बाँट के,हरे रिहिस ग कलेश।।


छंदकार 

केवरा यदु "मीरा "

राजिम

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: आल्हा छंद-  सद्गुरु बाबा घासीदास

         - सुकमोती चौहान "रुचि"

सद के रस्ता चलिस सदा जी , सद्गुरु बाबा घासी दास।

मनखे मनखे सबो एक हे, भेदभाव के करिन विनास।



जय हो महँगू अमरौतिन के,जे जनीन अइसन औलाद।

ऊँच नीच ला मेटाये बर, अड़गे बनके ओ फौलाद।

कर प्रचार सतनाम पंथ के, सद के देवय ए संदेश।

बाबा घूमिन राज राज जी, ओमन बना साधु के भेश।

नेक करम के फल हर मिलथे, रहिस गुरू मन मा विश्वास।

सद के रस्ता......


धरके जनम गिरौध पुरी मा ,कर गिन ओला पबरित धाम।

आज बने हे सुरता मा जी,सुग्घर मंदिर जैइत खाम।

नाम अमर होगे बाबा के,अमर हवै ओमन के ज्ञान।

देखाये मारग मा चलके,आज सबो जी बनव महान।

घासी बाबा के संदेशा, उड़त हवै जी आज अकास।

सद के रस्ता.....


सुकमोती चौहान "रुचि"

बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

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परमपूज्य संत गुरु घासीदास जी

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(रोला छंद)

रोला छंद


गुरु हे घासीदास , सत्य के परम पुजारी।

 सत के जोत जलाय, संत जग के हितकारी।

 पावन गांँव गिरौद,मातु अमरौतिन कोरा।

 धन-धन महँगू दास, पिता बन करिन निहोरा।1



 सत्य पुरुष अवतार, तोर महिमा हे भारी।

 सुमर-सुमर सतनाम, मुक्ति पाथें नर-नारी। 

ऊँच-नीच के भेद,मिटाये अलख जगाके।

 मनखे- मनखे एक, कहे सब ला समझाके। 2



तोर सात संदेश, सार हे मानवता के ।

समता के व्यवहार, तोड़ हे दानवता के।

 छुआछूत हे पाप, पुण्य हे भाईचारा।

 जात पात हे व्यर्थ, कहे सब करौ किनारा। 3



मातु पिता हे देव, तपोवन हावय घर हा।

 सबके हिरदे खेत, प्रेम के डारन थरहा।

 गुरु के आशीर्वाद,पाय हन छत्तीसगढ़िया।

 सत मारग मा रेंग, बने हन सब ले बढ़िया।4


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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छत्तीसगढ़ के बियंजन- छत्तीसा (चौपाई)*

 *छत्तीसगढ़  के बियंजन- छत्तीसा  (चौपाई)* 


बर-बिहाव के माड़िस मड़वा | रोज छनत हे पपची लड़वा || 

बाँट तसमई के परसादी | गदगद होवत हे पड़-दादी || 


आठ ठेठरी सरलग खावै | तभो तिहारू नहीं अघावै ||    

सैघो एक अँगाकर खावै | तब बंठू बूता बर जावै || 


जुडवाँ जुगरू-जगन जुगाड़ू | खावैं खूब करी के लाड़ू ||

नरियर अउर चिरौंजी लावै |तब खेदू खुरमी बनवावै || 

 

होटल के झन खाव कचौरी | लाव मसूर बनाव बफौरी ||  ,

मुठिया ला चटनी सँग खावौ  | अउ सुस्ती ला दूर भगावौ ||  


हाट सनिच्चर के जब जावौ | रइपुरहिन के अरसा लावौ ||

घेरी-बेरी खा झन किरिया | आज बरातू खा ले बिरिया || 


फिरतू कहै फरा मँय  खाहूँ | तब्भे काम करे बर जाहूँ ||  

आलू-गोभी के तरकारी | खूब सपेटत हे सोंहारी ||


दही बरा के ले चटखारा | तब जावै भइया के सारा ||

सारा के हे नाम भखाड़ू , तूकत हावै मुर्रा लाड़ू || 


पितर-पाख मा पुरखा आवैं | उरिद बरा खा के हरसावैं  ||  

चनाबूट भूँजै मनटोरा | हाट-बजार म बेंचै होरा ||


इडहर बर कोचइ के पाना | लाने हे नन्दू के नाना ||

बिन कुसली के होरी कइसे | बिना रंग पिचकारी जइसे ||        


तिखुर सिंघाड़ा कतरा खावौ | कमजोरी ला दूर भगावौ ||

डबकत तेल म बबरा छानैं | नवा बहुरिया मन नइ जानैं ||  


आम-पना पी घाम म भागै | कहै  सियनहा लू नइ लागै ||

तिलिया रांधे बर तिल हेरै | फेर तिहारू घानी फेरै ||           


पिठिया नुनछुर नुनछुर लागै | खाये मा ये कुरकुर लागै  || 

रसगुल्ला जइसे दहरौरी | राँधे बर जानै बस गौरी ||           


बिनसा के अब नाम नँदागे | जउन पनीर सहीं हे लागे ||        

कोन केवचनिया ला जाने | ये हर ताकत दे मनमाने ||          


नान्हेंपन के सुरता गुरतुर | अमली-लाटा चुरपुर चुरपुर ||

बोइर कूट सबो ला भावै | टूरा टूरी दुन्नों खावै  ||


अमरस के पपड़ी खट-मिट्ठा | ओकर आघू सबकुछ सिट्ठा ||

हम्मन खावन गुड़ के पपड़ी | मरवाड़ी मन झड़कैं रबड़ी ||  


गुरतुर-गुरतुर गुलगुल भजिया | फगनू हर खावै फुरसतिया ||

खावैं जुरमिल माई-पीला | सादा नुनहा गुरहा चीला ||


भाई बहिनी पेलमपेला | खावन छीन-झपट चौसेला || 

बर-बिहाव के जोरन खाजा | खायँ बरतिया दुलहा राजा || 


*अरुण कुमार निगम*

Thursday, December 17, 2020

36 गढ़ के 36 भाजी-

 36 गढ़ के 36 भाजी-


रहिथे गाँव कड़ार मा, लिखे हवय जगदीश।

छत्तीसगढ़ के मैं कहँव, ये भाजी छत्तीस।।


भाजी  *तिवरा*  *गोंदली*,  *मुनगा*  अउ *बोहार*।

*चुनचुनिया* अउ *चौलई*,मिलय *चरोटा* खार।।


*कुरमा पटवा  खेंडहा*, *पुतका*  भाजी *लाल*।

*भथवा मेथी लहसुवा*, *सरसों* करे कमाल।।


*गोभी कुसुम  मछेरिया,बर्रे  मखना* लाय।

*चना अमारी* राँध ले, *कजरा* गजब सुहाय।।


*गुडरू  उरला  चिरचिरा,  चेंच  चनौरी* सार।

*तिनपनिया* अउ *करमता*, *कांदा* बगरे नार।।


*मुरई मुसकेनी* *गुमी*, *पालक* भाजी शान।

खावव  येला  मन  लगा, हो जावव बलवान।।


             *जगदीश "हीरा" साहू*

अमृतध्वनि छंद*

 *अमृतध्वनि छंद*


(1) भाजी

भाजी के का गुन कहँव,पाला करे कमाल।

तिवरा मुनगा  गोंदली, मेथी भाजी लाल।।

मेथी   भाजी, लाल  लहू ला, बने  बढ़ाथे।

चुनचुनिया अउ,चना चरोटा,मन ला भाथे।।

कुरमा भथवा,जरी खेंहड़ा,सब मा राजी।

पुतका गोभी,राँध अमारी,सरसो भाजी।।


(2) भाजी

गुँझियारी बर्रे कुसुम,भाजी गजब सुहाय।

चेंच चनौरी चिरचिरा,कजरा उरला भाय।।

कजरा उरला,भाय करमता,अउ तिनपनिया।

खा मुसकेनी,गुमी करेला,भाजी धनिया।।

चौलाई अउ,काँदा भाजी,गुन बड़ भारी।

जंगल मा जी,मिलथे गजबे,ये गुँझियारी।।


बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,कबीरधाम

छत्तीसगढ़ के भाजी* -अश्वनी कोसरे

 *छत्तीसगढ़ के भाजी* -अश्वनी कोसरे

 *लावणी छंद* 


लाने दूध बताशा माढ़े, मुन्ना राजा हे राजी|

काहत हावय आनी बानी, मनभर के खाहूँ भाजी||


 *पोंई भथुवा* रांधे दाई, चाउँर आलन हे डारे||

बाबू भैया खावत हावँय, गप - गप खाले मुँह फारे|| 


 *चौलाई चेंच चनउरी* के, दाई राँधें हे भाजी||

चटनी चिरपोटी के घोरे ,खावत हें काका का जी|


 *पालक* पुष्टइ ले भर देथे, *भाजी लाल* बने लागे|

 *मुसकेनी* मुसकाके खाले, तीन परोसा अउ माँगे||

 *

 *कुसुम करमता कुरमा* के रस, *मेथी* भूँज बघारे हे|* 

 *बोहार बर्रे भाजी* मा, चिटिक मही ला डारे हे||


*तिनपनिया* तर के खाले , नइ होवय तन हा बादी|

बाँधे ओली खोंट *खोंटनी,* दादा बर लाये दादी|


हुरहुरिया के फोरन डारे, *मुनगा भाजी* राँधे हे|

रहिस कलोरी कारी गइया, बछरू पीला नाँदे हे||


देख *गुमी गोभी* नाना जी, मुँह मा आवत हे पानी|

 *तिंवरा सरसों भाजी* चुरगे, मन ललचावत हें नानी |

 *

 *पटवा खेड़हा अमारी  के, आगे हावय*  अब पारी|* 

 *सेमी कलींज भाजी* के, आज बने हे तरकारी||


 *चना चरोंटा सुकसा* राँधे, बोइर मा *काँदा भाजी|* 

राहय कहूँ भुखाये कोनो, दू कौंरा उपरा खा जी||

 *

 *मुरई भाजी* पताल झोझो, नेंग* नता ला निपटाथें|      

सरपट तीरँय जीभ लमा के, अंग लगत ले सब खाथें||


 *उरला भाजी* राहेर दार मा, सबके मन ला  ओ भाथे|

 *कजरा मिंझरा भाजी* गउकी, सोंध सोंध बड़ ममहाथे||

  *

 *कोचइ पाना* के इड़हर हा, बेसन लपटे* ओ चुरगे |

 *जीमी काँदा के अनसइया, खोईला* होके पुरगे||


बारी बखरी मा लगथे जी, किसिम किसिम भाजी पाला|

 *ढोंटो बेला के* चटनी जी, रोजे बनथे रसवाला||



 **अश्वनी कोसरे रहँगिया  "प्रेरक"* 

 **कवर्धा कबीरधाम*

Saturday, December 12, 2020

छत्तीसगढ़ के अमर शहीद वीर नारायण सिंह के वीर गाथा : छत्तीसगढ़ के कवि के कलम ले*

 



*छत्तीसगढ़ के अमर शहीद वीर नारायण सिंह के वीर गाथा : छत्तीसगढ़ के कवि के कलम ले*


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क्रान्तिकारी कवि लक्ष्मण मस्तुरिया के वीर काव्य *सोनाखान के आगी* के कुछ अंश*

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भाई-भाई म फूट डार दिन, मनखे-मनखे ल देइन लड़ाय

करजा बाँट करेजा काटिन, धरमी धरम सबो सर जाय।


किस्सा बड़े-बड़े कतको हे, ये भुइयाँ के सोसन के

जयचंद अउ मिरजाफर जतका, मुखिया होथे लोकखन के।


जोर जुल्म के उही समे मा, सभिमानी मन करिन विचार

परन ठान के कफन बाँध के, म्यान ले लिन तलवार निकाल।


फूँकिन संख सन सन्तावन म, कापिन बइरी गे घबराय

साह बहादुर लक्ष्मीबाई अउ, नाना टोपे सुरेन्दर साय।


मंदसौर ले खान फिरोजा, ग्वालियर के बैजा रानी

सहीद कुँअर सिंह आरा वाले, बानपुर के मर्दन बागी।


राहतगढ़ के आदिल मोहम्मद, अमझेर  ले बख्तावर सिंग

सादत खाँ इंदौर ले गरजिस, देस धरम बर जीव दे दिन।


उही समे म छत्तीसगढ़ के, गरजिस वीर नारायेन सिंग

रामराय के बघवा बेटा, सोनाखान धरती के धीर। 


सन छप्पन के परे दुकाल, कंद मूल घलो मिलै न पान

जंगल छोड़ पसु-पंछी परागै, भूख म परजा तजै परान।


निरमोही बयपारी आगू, वीर नारायेन जोरिस हाथ

परजा भूख मरत हे ठाढ़े, दे दौ करजा अन्न धन बाँट।


बड़े मुनाफा के लालच म, बयपारी बइठिन कठुवाय।

कोनो मरै जियै का हम ला, नइ कुछ देवौ बात सुनाय।


अन्यायी के आगू आके, अन्न धन लूट देइस बँटवाय

बनवासी जैकार करिन सब, जै-जै वीर नारायेन राय।


अँगरेजिया संग मिल बयपारी, नारायेन ल दिन बेड़वाय

चोरी डाका दफा लगाके, रइपुर जेल म दिन बँधवाय।


जमींदार मैं सोनाखान के, सोना उपजे मोर माटी म

जिहाँ के भुइँधर भूख मरत हे, आग बरै मोर छाती म।


आगी लगगे सोनाखान म, दहकिस सोना अँगरा कस

जेल टोर के बागी भागगे, इलियट भइगे अँधरा कस।


देवरी के जमींदार दोगला, बहनोई वीर नारायेन के

दगा दिहिस बाढ़े विपत म, काम करिस कुकटायन के।


अँगरेजिया स्मिथ बड़ कपटी,उही गद्दार ल लिस मिलाय

बेलासपुर भटगांव बिलइगढ़, घलो के सेना संग लेवाय।


अनियायी के अनिया सहना, सबले बड़े होवै अनियाय

काट के पापी ल खुद कट जावै, धरम करम गीता गुन गाय।


बिना सुराजी के जिनगानी, मुरदा हे तन मरे समान

बिना मान सभिमान के मनखे, गाय गरु अउ कुकुर समान।


पाए बर अधिकार परन धर, एक बेर तो निकल परौ

टंगिया रापा गैंती धर के, एक बेर तो बिफर परौ।


एक गिरौ दस मार मरौ तुम, एक जुझौ सौ देवौ जुझाय

कफन बाँध रन कूद परौ तुम, भागे बइरी प्रान बचाय।


भुईं महतारी के रक्षा बर, असली मनखे प्रान गँवाय

कायर फँसथे सुख सुविधा बर, नकली चकली साज सजाय।


अन्यायी कट कचरा होथे, न्यायी खप के सोन समान

धरमी जागै अलख जगावै, पापी के मुँह कसे लगाम।


तप तप तन-मन बज्जुरा बनथे, खप खप देह भभूत समान

जनम जनम के जंग जुझारू, होथे वीर सपूत महान।


तप बिन तन-मन तलमलतइया, प्रन बिन प्रानी पसु पछार।

त्याग बिना जीव तनानना के, दया धरम बिन गरु गँवार।


हर हर महादेव कहि कहि के, सरदारन के जोस बढ़ाय

मार मार के काट काट कहि, नारायेन गरजै गुर्राय।


चारों खूंट ले जंगल मंझ म, घिरगे वीर नारायेन फेर

सेना खपगै गोली खंगगै, घायल भइगे घायल सेर।


मनेमन गुनिस वीर नारायेन, अब तो लड़े अकारथ हे

बन-कांदी कस लोग कटत हें, मरना मोर सकारथ हे।


आ स्मिथ अब बाँध मोला, मत मार निहत्था रइयत ल

गरज के बोलिस बागी वीर ले, रोक ले सांग सिपहियन ल।


कबरा घोड़ा करेलिया म बइठे, बेधड़क चलिस नारायेन राय

पाछू पाछू अंगरेज स्मिथ, आजू बाजू सेना सजाय।


सरेआम चौरास्ता मंझ म, सभा भरे डंका बजवाय

सावधान नारायेन सिंग ल, तोप दाग देहैं उड़वाय।


जै सुराज जै जनम भूमि के, गरजिस वीर उठाके हाथ

सुरुज देव के नमन करिस अउ, धुर्रा उठा चढ़ा लिस माथ।


तान के छाती खड़े वीरसिंग, बेधड़क देख रहे मुस्काय

आर्डर होत भये सन्नाटा, छूटिस तोप गरज गर्राय।


चंदन बनगे तन बागी के, माटी लहू मिले ललियाय

धर धर आँसू धरती रोइस, चहुंदिस अँधियारी घिर आय।


हाय रे माटी तोरो करम ल, ठाढ़ दरक गे तोरो भाग

सोन गँवा गे सोनाखान के, कायर कपटी मन के राज।


मनखे संग गद्दारी करके, माफी पा जाही बेईमान

माटी संग गद्दारी करही, वोला नइ बकसै भगवान।


असने कतको वीर खपे हें, छत्तीसगढ़ के माटी म

काँध ले काँध मिलाके रेंगैं, देस के सुख दुख पाती म।


कोन कथे माटी के मनखे, जागे नइये सूते हे

जब जब जुलमी मूड़ उठाथें, तब तब बारूद फूटे हे।


वीर नारायेन के सपना ह, टूटत हवै अधूरा हे

धधके छाती छत्तीसगढ़ के, दुख के बढ़ती पूरा हे। 


अरे नाग तैं काट नहीं त, जी भर के फुंफकार तो रे

अरे बाघ तैं मार नहीं त, गरज गरज धुत्तकार तो रे।


एक न एक दिन ए माटी के, पीरा रार मचाही रे

नरी कटाही बइरी मन के, नवा सुरुज फेर आही रे।


रचनाकार - लक्ष्मण मस्तुरिया

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*कवि हरि ठाकुर जी के खंडकाव्य "अमर शहीद वीर नारायणसिंह" पढ़े के सौभाग्य नइ मिलिस फेर एक लेख म दू पंक्ति मिलिस जेला खंडकाव्य के अंश के रूप म प्रस्तुत करत हँव* -  


कोनहा म खड़े हनुमान सिंह देखत हे ये कुरबानी ला

परतिज्ञा आज करत हौं मैं, बदला एकर ले के रइहौं

जब हो जाही प्रण पूरा तब, तलवार म्यान म धरिहौं।


रचनाकार - कवि हरि ठाकुर 

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*वीर नारायण सिंह के बलिदान गाथा कवि केयूर भूषण अउ निरुपमा शर्मा जी अपन अपन कविता म करिन हें। इन मन के कविता पढ़े के भी सौभाग्य मोला नइ मिल पाइस*। 

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*छन्द के छ परिवार के कवि मनीराम साहू मितान जी के वीर काव्य के किताब "हीरा सोनाखान के" दू बछर पहिली प्रकाशित होइस*। 


ये किताब मा आल्हा छन्द के 251 पद हें। शुरू के 28 पद मा वंदना हे। आल्हा के 29  ले  65 पद मा गुलामी के पहिली के भारत के वैभव,  कोन-कोन विदेशी मन कब अउ कइसे आइन अउ हमर देश कइसे गुलाम होगे तेखर छन्दमय इतिहास बताये गेहे। आल्हा के पद संख्या 66 ले 75 तक देश मा कहाँ कहाँ अउ कोन कोन क्रांतिकारी मन आजादी बर आंदोलन चलाइन एखर बरनन हे। आल्हा के पद संख्या 76  ले 251 तक वीर नारायण सिंह के छन्दमय कथानक चले हे। बीच बीच मा उल्लाला, हरिगीतिका, बरवै, सरसी, शक्ति, चौपाई, मनहरण घनाक्षरी, शंकर, सार छन्द के प्रयोग एकरसता के दोष ले ये किताब ला मुक्त करत हे। मनहरण घनाक्षरी मा युद्धभूमि के वर्णन मा मनीराम साहू जी के काव्य कौशल देखते बनत हे। शब्द चुने के क्षमता कोनो कवि के श्रेष्ठता के पैमाना होथे। मनीराम साहू जी के शब्द चयन देखव - रिबी रिबी, घोंटो दर्रा, टकोली, अलथी कलथी,केलवली, तालाबेली, कुलकुला अइसन-अइसन ठेठ अउ दुर्लभ शब्द के प्रयोग उही कर सकथे जउन कवि हर नान्हेंपन ले  भुइयाँ  संग जुड़े रहिथे। ये किताब मा हाना के सुग्घर प्रयोग देखे बर मिलही। अलंकार प्रयोग के बात करे जाय त आल्हा छन्द, बिना अतिश्योक्ति अलंकार के नइ लिखे जाय। अतिश्योक्ति अलंकार के प्रयोग मनीराम साहू जी के विलक्षण काव्य क्षमता के गवाही देवत हे। 

 

 

आग बरन गा ओकर आँखी, टक्क लगा के देखय घूर।

बइरी तुरते भँग ले बर जय, हाड़ा गोड़ा जावय चूर।।

 

सिंह के खाँडा लहरत देखयँ, बइरी सिर मन कट जयँ आप।

लादा पोटा बाहिर आ जयँ, लहू निथर जय गा चुपचाप।।



हीरा सोनाखान के, ये किताब मा 21 प्रकार के छन्द के प्रयोग होय हे। मुख्य छन्द आल्हा आय जेखर 251 पद इहाँ पढ़े बर मिलही। इतिहास आधारित ये किताब मा तारीख अउ सन् के उल्लेख घलो करे गेहे।

 

सन् अट्ठारह सौ छप्पन मा, परय राज मा घोर दुकाल ।

बादर देवय धोखा संगी, मनखे मन के निछदिस खाल ।।

 

रहिस नवंबर सन्तावन मा, परे रहिस गा तारिक बीस।

सैनिक धरे चलिस इसमिथ हा, तइयारी कर दिन इक्कीस ।।

 

किताब के आखिर मा मनीराम साहू जी विष्णुपद अउ छप्पय छन्द मा कथानक के सीख अउ संदेश ला पाठक तक पहुँचावत,सोरठा छन्द ले समापन करिन हें।

 

पढ़े अउ जाने बिना चिंतन नइ हो सके। बिना चिंतन के कविता नइ हो सके अउ कविता ला छन्द मा बाँधे बर अभ्यास अउ साधना जरूरी होथे। हीरा सोनाखान के, एमा कवि के ज्ञान, चिंतन अउ साधना के दर्शन होवत हे। वइसे त ये कृति हर मनीराम साहू जी के आय फेर अब छत्तीसगढ़ी साहित्य के धरोहर बन जाही। जउन मन आजादी के इतिहास नइ जानत हें वहू मन ये किताब ला पढ़ के आजादी के इतिहास अउ वीर नारायण के त्याग ला जान जाहीं। ये किताब नवा कवि  मन ला नवा रद्दा देखाही कि छत्तीसगढ़ी मा सुग्घर कविता कइसे लिखे जाथे।

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*वीर नारायण सिंह ला समर्पित *छन्द के छ परिवार" के नवोदित छन्दकार मन के छन्द रचना बिना भूमिका के प्रस्तुत करत हँव, समीक्षा आप मन ऊपर छोड़त हँव* - 

 

*"सोनाखान के वीर" - कमलेश कुमार वर्मा*

(आल्हा छन्द)


सत्रह सौ पंचनबे सन मा, झूम उठिस बड़ सोनाखान।

रामराय घर जनम धरिन जी, हमर राज के बड़का शान।1।


मातु पिता मन खुशी मनावत, नारायण सिंह धर लिन नाम।

निडर साहसी बचपन ले वो, पूजय देवता बिहना शाम।2।


जमींदार बन वो हा आघू, बिकट करिस जी जनकल्यान।

पूरा कोशिश सदा करिस वो, झन राहय कोनो परशान ।3।


जब अकाल अउ सूखा पड़ गिस,सन छप्पन के घटना जान।

तब जनता मा  बँटवा दिस वो, अपन सबो कोठी के धान।4।


तभो बहुत झन भूख-प्यास ले, करत रिहिन हे चीख-पुकार।

लोगन संगे नारायण तब, गिस व्यापारी माखन- द्वार।5।

 

फेर सेठ के दिल नइ पिघलिस, नइ दिस वोहर धान उधार।

तब नारायण सिंह हा बोलिस, सबो लूट लेवव भंडार।6।


घटना पाछू माखन पहुँचिस, अंगरेज इलियट के तीर।

मोर लूट लिन कोठी साहब, मनखे अउ नारायण वीर।7।


फेर पकड़ के नारायण ला, अंगरेज मन भेजिन जेल।

तोड़ जेल ला वोहर निकलिस, करके बड़का सुग्घर खेल।8।


वापिस सोनाखान पहुँच के, कर लिस वो सेना तैयार।

अंगरेज मन संग युद्ध मा, सेना भारी करिस प्रहार।9।


चलिस सरासर बान धनुष ले, अउ होइस भाला ले वार।

कैप्टन स्मिथ के दल कोती जी, मच गिस बिक्कट हाहाकार।10।


फेर अंत मा घमासान के, बंदी बनगे वीर महान।

चलिस मुकदमा झूठ-कपट ले, देशद्रोह ला कारन मान।11।


नारायण ला सजा सुना दिस, फाँसी दे के ले बर जान।

रइपुर के जय स्तंभ चौक मा, दे दिस योद्धा हा बलिदान।12।


अपन प्रान ला देके वोहर, रख लिस बड़ माटी के मान।

जुग-जुग बर अम्मर होगे जी, लाँघन-भूखन के भगवान।13।


सन संतावन के ये घटना, छागे पूरा हिन्दुस्तान।

जनता मन हा जागिन भारी, आजादी बर दिन सब ध्यान।14।


नारायण सिंह के भुइँया ला, सरग सँही देवव सम्मान।

बार-बार मैं मूड़ नवावँव,पावन माटी सोनाखान।15।


छन्दकार - कमलेश कुमार वर्मा

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*आल्हा छन्द - नमेंद्र कुमार गजेंद्र*

      "वीर नारायण सिंह"


रामराय के घर मा जन्मे , बालक संतावन मा एक।

नारायण बिंझवार नाम के , सुन लव सुग्घर गाथा नेक ।।


अंग्रेजन सन लोहा लेवत , मन मा राखिस भारी धीर।

माटी के नारायण बेटा , माटी बर लड़ बनगे वीर ।।


वो सिंघगढ़ के राजा बेटा , जेखर नाम रहिस बिंझवार।

परजा बर बघवा सन लड़गे, हाथ बनिस वोकर तलवार ।।


बहादुरी के सुन के गाथा , अंग्रेजन दे नामे वीर।

वीर लगे जे नारायण तब , फैले गाथा जमुना तीर ।।


जमाखोर के अन्न लूट के, जनता ला दे दिस वो बाँट।

लोगन कोनो भूख मरे झन, बइठे सोचे घर के आँट ।।


बस्तर के जब नरनारी ला , नारायण दे रहिस सकेल।

अंग्रेजन मन के माथा ले , रहिस बोहाये भारी तेल ।।


हँसिया साबर धर के परजा , नारायण सँग हो तैयार।

माटी के खातिर सब लड़गें , भेजिन सब गोरा यम द्वार ।।


बना आदिवासी के सेना , खड़े रहिस बघवा कस वीर।

एक झपट्टा भर वो मारे , छाती सबके देवय चीर ।।


आजादी के बन वो नायक , भरे रहिस भारी हुंकार।

कुकुर बिलइ कस अंग्रेजन मन , भागन लागिन सुन चित्कार ।।


शेर गोंडवाना बस्तर के , आजादी के योद्धा आय।

काँट भोंग के अंग्रेजन ला , अपन राज ले हवय भगाय ।।


बघवा ला पहिना के बेंड़ी ,  अंग्रेजन चौड़ा कर माथ।

रइपुर के जय स्तंभ चौक मा , फाँसी दे दिस बाँधे हाथ ।।


छन्दकार - नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र

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*आल्हा छन्द -  विरेन्द्र कुमार साहू*


     "वीर नारायण सिंह"


नारायण सिंह धाकड़ चेलिक , बइरी बर सँउहे यमदूत।

लड़िस लड़ाई स्वतंत्रता के , माटी हितवा वीर सपूत।1।


जब जब बइरी मन आ-आके , करे रहिन भारी अतलंग।

पानी पसिया देके भिड़गे , रन मा वोहर बइरी संग।2।


रामसाय के बघवा बेटा , लइका रहय घात के ऊँच।

पोटा काँपय बइरी मनके , रेंगय बीस हाथ ले घूँच।3।


बाँधे पागा लाली फेंटा , सादा धोती उनकर शान।

हाथ म पहिरे चाँदी चूरा , सोना-बारी सोहे कान।4।


रहय रोठ बंदूक पीठ मा , कनिहा मा धरहा तलवार।

बउरे इनला सदा वीर हा ,केवल खातिर पर उपकार।5।


छंदकार : विरेन्द्र कुमार साहू

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*आल्हा छंद - श्लेष चन्द्राकर*


     "वीर नारायण सिंह"


महावीर नारायण सिंह ला, रिहिस देश ले अब्बड़ प्यार।

लड़िस लड़ाई आजादी के, आँखी मा भरके अंगार।।


जन के हक मारय अँगरेजन, अपन भरयँ जी उन गोदाम।

काम करावँय घात रात दिन, अउ देवँय गा कमती दाम।


दिन-दिन जब अँगरेजन मन के, बढ़त रिहिस हे अत्याचार।

तब विरोध मा आघू आइस, नारायण हा धर तलवार।।


कभू गुलामी के जिनगी हा, उन ला गा नइ आइस रास।

सबो आदिवासी ल सकेलिन, अपन बनाइन सेना खास।।


नारायण हुंकार भरिस हे, सबो उठाइस तब हथियार।

लड़िस हवँय गोरा मन सन जी, ओमन माँगे बर अधिकार।।


जुलुम देख के मनखे ऊपर, अब्बड़ खउलय सिंह के खून।

देख वीर ला गोरा मन के, गिल्ला हो जावँय पतलून।।


रिहिस हवय नारायण सिंह हा, ऊँचा-पूरा धाकड़ वीर।

उठा-उठा के ठाढ़ पटक के, बैरी मन ला देवय चीर।।


जब दहाड़ बघवा कस मारय, बने-बने के जी थर्राय।

प्रान बचाये बर बैरी मन, रुखराई के बीच लुकाय।।


खच खच खच तलवार चलावय, मारय सर सर गा ओ तीर।

अँगरेजन के सैनिक मन हा, उनकर आघू माँगय नीर।।


रिहिन वीर नारायण सच्चा, भारत माता के जी लाल।

करे रिहिन सन संतावन मा, अँगरेजन के बाराहाल।।


छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,

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*आल्हा छंद  - महेन्द्र देवांगन "माटी"*


           "वीर नारायण सिंह"


रामराय के घर मा आइस , भारत माता के वो लाल।

ढोल नँगाड़ा ताँसा बाजे , अँगरेजन के बनगे काल।।


लइका मन सँग खेलय कूदे , कभू नहीं  मानिस वो हार।

भाला बरछी तीर चलावै , कोनों नइ पावय गा पार।।


जंगल झाड़ी पर्वत घाटी  , घोड़ा चढ़ के वोहर जाय।

वोकर रहय अचूक निशाना , बैरी मन ला मार गिराय।।


नारायण सिंह नाम ल सुन के , अँगरेजन मन बड़ थर्रांय।

पोटा काँपय गोरा मन के , जंगल झाड़ी भाग लुकाँय।।


जब जब अत्याचार बढ़य जी , निकल जाय ले के तलवार ।

गाजर मूली जइसे काटे , मच जाये गा हाहाकार ।।


खटखट खट तलवार चलाये , सर सर सर सर तीर कमान ।

लाश उपर गा लाश गिराये , बैरी के नइ बाँचे जान ।।


सन छप्पन अंकाल परिस तब , जनता बर माँगीस अनाज ।

जमाखोर माखन बैपारी  , नइ राखिस गा वोकर लाज ।।


आगी कस बरगे नारायण , लूट डरिस जम्मो गोदाम ।

सब जनता मा बाँटिस वोहर , कर दिस ओकर काम तमाम।।


चालाकी ले अँगरेजन मन , नारायण ला डारिस जेल।

देश द्रोह आरोप लगा के , खेलिस हावय घातक खेल।।


दस दिसम्बर संतावन मा , बीच रायपुर चौंरा तीर।

हाँसत हाँसत फँदा चूम के , झुलगे फाँसी माटी वीर ।।


छंदकार - महेन्द्र देवांगन "माटी"

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*कुकुभ छंद गीत - श्रीमती आशा आजाद*


छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा, वीर नरायण कहलावै।

सच्चा सेनानी ओ राहिन,भारत मा गुन ला गावै।।


अंग्रेज़ी सासन ले जूझिन,अबड़ रहिन जी ओ दानी।

कुर्रूपाट मा जनम लिहिन जी,करिन देश बर अगवानी।

बिंझवार परिवार के बेटा,आज माथ ला चमकावै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


नरभक्षी ओ शेर ल मारिन,ओखर पढ़लौ सब गाथा ।

अमर वीर के कुर्बानी ले,भारत के चमकिस माथा।

डरिस नही अंतस मन ले ओ,साहस सबके मन भावै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


बहादुरी के अब्बड़ किस्सा,देश प्रेम अउ कुर्बानी।

ब्रिटिश राज हा मान बढ़ाइस,पदवी दिन आनी बानी।

जयस्तंभ के चौक म फाँसी,तोप तान के उड़वावै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


बनिन स्वतंत्रता संग्रामी,याद रही ये बलिदानी।

छत्तीसगढ़ म अमर नाव हे,आज दिवस ला सब मानी।

हिरदे ले परनाम करौ जी,अइसन हीरा नइ आवै।

छत्तीसगढ़ म जनमिस हीरा,वीर नरायण कहलावै।।


छंदकार-श्रीमती आशा आजाद

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*सरसी छंद - बोधन राम निषाद*


वीर नरायन जनम धरिन हे, माटी सोना खान।

जंगल झाड़ी लड़िन लड़ाई, होके बड़े सुजान।।


जमीदारी के बोझा बोहे, जनता ला सुख देय।

ओखर हक बर काम करे वो, बैरी लोहा लेय।।


अठरा सौ सन् सन्तावन मा, लड़े शहीद कहाय।

वीर नरायन बेटा माँ के, छत्तीसगढ़ ल भाय।।


छंदकार - बोधन राम निषादराज

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*लावणी छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"*


आत्मा वीर नारायण के


दुख पीरा हा हमर राज मा,जस के तस हे जन जन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


जे मन के खातिर लड़ मरगे,ते मन बुड़गे स्वारथ मा।

तोर मोर कहि लड़त मरत हे, काँटा बोवत हे पथ मा।

कोन करे अब सेवा पर के,माटी के खाँटी बनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


अधमी सँग मा अधमी बनके,माई पिला सिरावत हे।

पइसा आघू घुटना टेकत,गरब गुमान गिरावत हे।

परदेशी के पाँव पखारय,अपने बर ठाढ़े तन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


बाप नाँव ला बेटा बोरे, महतारी तक ला छोड़े।

राज धरम बर का लड़ही जे,भाई बर खँचका कोड़े।

गुन गियान के अता पता नइ, गरब करत हे वो धन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


लाँघन ला लोटा भर पानी,लटपट मा मिल पावत हे।

कइसे जिनगी जिये बिचारा,रो रो पेट ठठावत हे।

अपने होगे अत्याचारी,मुटका मारत हे हनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


नेता बयपारी मन गरजे,अँगरेजन जइसन भारी।

कोन बने बेटा बलिदानी,दुख के बोहय अब धारी।

गद्दी ला गद्दार पोटारे, करत हवय कारज मनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

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*आल्हा छंद - बोधन राम निषादराज*

(सोनाखान के जमीदार)


बलिदानी वो वीर नरायन,जमीदार वो सोनाखान।

अद्भुत साहस भर हिरदय मा,हँस के वो होगे बलिदान।।


छत्तीसगढ़ के सोना बेटा,गली-गली मा ओखर मान।

अंग्रेजन मन थर-थर काँपै,भागै सबो बचाके प्रान।।


दीन दुखी के हितवा बेटा,बन के आइस हे अवतार।

जेला देखत बइरी मन के,छलकय आँखी आँसू धार।।


अइसन बघवा जस अवतारी,गुर्रावय जब आँखी खोल।

गोरा मन के पोटा काँपै,ऊँखर शासन जावै डोल।।


एक समे के बात बतावँव,जब भुइयाँ मा परे अकाल।

सन् अठरा बच्छर छप्पन के,होय रहिस मनखे कंगाल।।


सुक्खा परगे खेत खार हा,दाना-दाना बर लुलवाय।

पर अंग्रेजन मन ला संगी,दया थोरको घलो न आय।।


बरछी भाला धरिस नरायन,अंग्रेजन बर हल्ला बोल।

लुटा दिए जम्मों जनता मा,फोर दिए कोठी ला खोल।।


देखत गोरा काँपन लागै,मचगे उन मा हाहाकार।

विद्रोही बनगे फिर देखौ,बइरी अंग्रेजन सरकार।।


घेरा बंदी चारो कोती,अंग्रेजी सेना चिल्लाय।

वीर नरायन कोन हरे वो,पकड़ौ पकड़ौ बड़ झल्लाय।।


रइपुर के जय स्तंभ चउँक मा,सरे आम फाँसी लटकाय।

झूल गइस हे हीरा बेटा,मातृ भूमि ला शीष नवाय।।


धन्य धन्य हे वीर नरायन,तोला पूजै सब संसार।

मात-पिता के मान बढ़ाए,ये भुइयाँ के कर्ज उतार।।


बन शहीद तँय पहिली हीरा,छत्तीसगढ़ी भाग जगाय।

वीर बने तँय वीर नरायन,तोर वीरता गुन सब गाय।।


छंदकार - बोधन राम निषादराज

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*गीतिका छंद - सुकमोती चौहान "रुचि"*


पुत्र सोनाखान के


जे अमर जग मा हवै जी , पुत्र सोनाखान के ।

छंद रचना मँय करँव जी , वीर के बलिदान के ।।

वीर नारायण बसे हे , देश हिरदे कोर मा ।

जे रहिस छत्तीसगढ़ के ,हर गली अउ खोर मा ।।


तँय अपन दाई ददा ले  , पाय निक संस्कार ला ।

देख लोगन  दुः ख पीरा , कम करस तँय भार ला ।।

शत्रु बर बघवा रहिस वो , देख के गुर्राय जी ।

कोनहो ला वो डरे नइ , शत्रु मन थर्राय जी ।।


नइ गिरिस पानी बछर भर , होय गिस सुक्खा धरा ।

धान चाँउर पटपटागे , जब मिलिस नइ आसरा ।।

फोर कोठी खोल दिस जी , अन सबो मा बाँट दिस ।

चार दिन मा पेट कीरा , अन सबो ला चाट दिस ।।


टोर तारा धान बाँटय , पुत्र सोनाखान के ।

छंद रचना मँय करँव जी , वीर के बलिदान के ।।

जे रहिन छत्तीसगढ़ के , वीर सेनानी प्रथम ।

झूल गे गल डार फाँसी , वीर बलिदानी प्रथम ।।


धन्य महतारी हवै जी , धन्य माटी गाँव के ।

धन्य हे परिवार ओकर , कोख पबरित छाँव के ।।

नाँव दुनिया लेत हावय , बात बड़ सम्मान के ।

छंद रचना मँय करँव जी ,वीर के बलिदान के ।।


छन्दकार - सुकमोती चौहान "रुचि"

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*कुण्डलिया छंद - पुरूषोत्तम ठेठवार*


बघवा सोना खान के, वीर नरायण नाम ।

बैरी बर आगी बने, करे नेक तै काम ।।

करे नेक तै काम, रहे भारी उपकारी ।

दीन हीन के संग, बिता दे जिनगी सारी ।।

लड़े लड़ाई जोर, सबो दिन होके अघवा ।

भरे जोर हुंकार, बने बैरी बर बघवा ।।


छंदकार - पुरूषोत्तम ठेठवार 

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*लावणी छन्द - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'*


''बीर नरायण सोनाखनिहा''


सुरता आ गे तोर ग मोला,आँखी मा आ गे पानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


बछर सत्तरह सौ पन्चनवे,जनम भइस मुँधराहा के।

छत्तीसगढ़ भुँइया खुश होइस,हीरा बेटा ला पा के।


नारायण आँखी के तारा,रामकुँवर महतारी के।

रामसाय के राज दुलरुवा,दीया डीह दुवारी के।


सत रद्दा मा रेंगस धर के,संत गुरू मनके बानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


सन अठ्ठारह सौ छप्पन मा,घोर अकाल परे राहय।

जनता के दुख भूख प्यास ला,तोर प्रयास हरे राहय।


विनत निवेदन नइ समझिस ता,बँटवा देये राशन ला।

अपरिद्धा माखन ब्यापारी,लिगरी करदिस शासन ला।


झूठा केस चलावन लागिस,ओ अँगरेजी अहमानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


माह दिसम्बर तारिक दस के,अठ्ठारह सौ सन्तावन।

फाँसी दे दिन तोला हीरा,गला भरत हे का गावन?


छत्तीसगढ़ के गाँव गली मा,तुरत पसरगे सन्नाटा।

जनता के हिस्सा मा जइसे,अँधियारी आ गे बाँटा।


तोर शहादत आँखी देखिस,रोइस रयपुर रजधानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


छन्दकार - सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

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[12/10, 8:54 PM] ज्ञानू कवि: वीर योद्धा शहीद वीर नारायण सिंह ला सादर नमन💐🙏


रही रही सुरता आवत हे, गाथा अमर कहानी।

मातृभूमि के खातिर देदिस, हँसत अपन बलिदानी।।


नाम वीर नारायण सिंह हे, झुलगे हाँसत फाँसी।

आथे जब जब सुरता संगी, बस आथे रोवासी।।


वीर साहसी योद्धा अड़बड़, परजा मनके हितवा।

काल बने सँउहत दुश्मन बर, जन जन के वो मितवा।।


इज्जत बेटी बहिनी ऊपर, कोनो आँख गड़ावै।

गली गली मा दउड़ा दउड़ाके, ओला मार गिरावै।।


दीन हीन दुखिया गरीब के, सदा रहय सँगवारी।

आजादी ला पाये खातिर, लड़िस लड़ाई भारी।


शत शत नमन वीर योद्धा ला, हम गरीब के पागी।

रहय तोर छाती मा धधकत, दुश्मन मन बर आगी।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

[12/11, 6:27 AM] पात्रे जी: *संशोधित*

आल्हा छंद- अमर शहीद वीर नरायण


नमन करत हौं वो मइयाँ ला, दिस जनम नरायण वीर।

नमन करत हौं वो भुइयाँ ला, जेकर पावन माटी नीर।।


सन सत्रह सौ पँचानबे अउ, लगन घड़ी पावन शुभ वार।

जन- जन के तकलीफ हरे बर, वीर नरायण लिस अवतार।।


धाम गिरौदपुरी के मेड़ो, गाँव जुड़े हे सोनाखान।

राजा सोनाखनिहा के घर, जनम धरिस ये पूत महान।।


रहिस गोंडवाना पुरख़ा अउ, सारंगढ़ के माल गुजार।

राजगोंड ले बिंझवार बन, वीर नरायण भरे हुँकार।।


स्वतंत्रता पहिली सेनानी, छत्तीसगढ़ के मान बढ़ाय।

गैर फिरंगी से लड़-लड़ जे, जल जंगल अधिकार दिलाय।।


सात हाथ कद काठी ऊँचा, बदन गठीला बड़ मन भाय।

भुजा बँधाये पारस चमके, देखत मा बैरी थर्राय।।


वीर नरायण पराक्रमी अउ, शूरवीर गुरु बालकदास।

सँगवारी सुख दुख के दून्नों, रहय मित्रता खासमखास।।


शोभा बरनन कहत बनय जब, घोड़ा मा होवय असवार।

धर्मी राजा के होवय तब, गली-गली मा जय जयकार।।


दीन-दुखी के सदा हितैषी, मातृभूमि के रहय मितान।

जल जंगल भुइयाँ के रक्षक, समझे जे हा दर्द किसान।।


सन अट्ठारह सौ छप्पन मा, पड़े रहय जब घोर अकाल।

फटे अदरमा वीर नरायण, देख प्रजा दुख मा बेहाल।।


साथ धरे तब किसान मन ला, गये गाँव वो हा कसडोल।

लूटे अन्न जमाखोरी के, वीर नरायण धावा बोल।।


करिस शिकायत जमाखोर मन, अंग्रेजन इलियट दरबार।

पकड़ निकालव वीर नरायण, सजा दिलावव तुम सरकार।।


भनक लगिस जब वीर नरायण, पाछू पड़गे हे सरकार।

कुर्रूपाट डोंगरी मा छुपगे, जिहाँ कटाकट वन भरमार।।


खोजे निकलिस गुरु बालक तब, अपन सखा के प्राण बचाय।

रखिस छुपा भंडारपुरी मा, कुर्रूपाट डोंगरी ले लाय।।


वीर नरायण के बहनोई, बनके भारी तब गद्दार।

खुफिया बन बंधक बनवा दिस, पता बता इलियट सरकार।।


स्तम्भ चौक रायपुर शहर के, फाँसी मा तब दिस लटकाय।

वीर नरायण शहीद होगे, लिखत लिखत आँसू भर आय।।


अट्ठारह सौ सन्तावन के, काल रात्रि बनगे इतिहास।

खो के बेटा वीर नरायण, भारत भुइयाँ हवे उदास।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

*प्रस्तुतकर्ता - अरुण कुमार निगम*

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कज्जल छंद- विजेन्द्र वर्मा

 कज्जल छंद- विजेन्द्र वर्मा


पताल

धान लुये बर जाय खेत

तब पताल के आय चेत

नून मिर्च ला डार नेत

पीस खाय धनिया समेत।


हवै विटामिन के खदान

अब पताल के गाँय गान

बखरी के हे हवै शान

खाय सबो लइका सियान।


जाड़

अबड़ जनावत हवय जाड़

काम बुता हा बाचे ठाड़

कँप कँप काँपत देह हाड़

जिनगी लागत हे उजाड़।


घर मा बइठे बबा मोर

जाड़ मरय तब करै शोर

रहि रहि झाँकय गली खोर

तापे बर अब घाम थोर।


सूपा

घर घर के तो हवै शान

सब झन देथे बिकट मान

फूने छीनें गहूँ धान

काम आय जी अबड़ जान।


आथे जब कोनो तिहार

दाई जाथे तब बजार

देखय सूपा ला निहार

ले बर पारय तब गुहार।


बोली

बोली हमरो हवै खास

लगथे संगी बड़ मिठास

दया मया के हवै वास

भरथे अंतस मा उजास।


गोरसी

संझा बेरा जभे आय

तभे गोरसी ल सिपचाय

जड़काला मा बिकट भाय

आँच गोरसी के सुहाय।


जाड़ कभू तन ला कँपाय

दाँत जाड़ मा किटकिटाय

आँच गोरसी बड़ सुहाय

थोर देर मा चट जनाय।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

Friday, December 11, 2020

बइला गाड़ी (लावणी छंद)-दिलीप वर्मा

 बइला गाड़ी (लावणी छंद)-दिलीप वर्मा


बइला गाड़ी हवय बनाना,ता पहिली लकड़ी लानव। 

निंधा लकड़ी चीर फाड़ के,आरा पुट्ठा बर चानव।  


गोल गोल फिर मुड़ी बनावव,छेद बनालव आरा बर।

खोल बनावव मुड़ी बीच मा,ओमा गुर्दा ला दव भर। 


चक्का ऊपर पट्टा राखव,गरमा  गरम चघावव जी। 

ढिल्ला हे तब चीपा ठोकव, सुग्घर चक्का पावव जी।


दूनो चक्का ला जोड़े बर,लोहा के असकुड़ लानव।

खीला हर चक्का ला छेंके,आपा धापी मा जानव।


असकुड़ राखव पोल तरी मा, डार पोटिया ऊपर ले।

ओखर ऊपर रखव बैसकी, भार सबो के जे धर ले। 


रखव बैसकी ऊपर डाँड़ी, जेमा पटनी छाना हे।

ओ पटनी मा खूँटा गाड़व,डाँड़ी पार लगाना हे।


लकड़ी मा फिर छेद करा के,डाँड़ी ला बुलकाना हे।

चक्का ले बइला हर बाँचय,धोखर बने बनाना हे।


डाँड़ी ला आगू ले जा के,आपस मा मिलवाना हे।

रहे धुरखिली  जोंड़े खातिर, सँग मा सब ला लाना हे।


डाँड़ी ऊपर जूड़ा रख के,बरही ले सुग्घर बाँधव। 

जूड़ा में फिर डार सुमेला,जोता ले बइला फाँदव।  


तता तता भीतर के बइला,बाहिर के अर्रावव जी।

कोर्रा लाठी मार तुतारी,गाड़ी बने भगावव जी।


साँकड़ ले बइला ला थाम्हव,खेत डहर जब जाना हे। 

तेल ओंग के तब गुर्दा मा,चक्का सुघर ढुलाना हे। 


पैरा डोरी बोझा बाँधय,डोर लपेटा ताने बर।

उल्ला धुरहा देख देख के,भरती गाड़ी जाने बर।


रहे टेकनी सुसताये बर, काम बहुत वो आवत हे। 

गाड़ी मा बोझा भरना हे,तेन बखत टेकावत हे।    


काम बहुत ये आथे गाड़ी,रहे किसनहा ते जानय। 

बिन गाड़ी के काम चले नइ,करे किसानी ते मानय।


दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार 25-11-2019

कज्जल छंद- अशोक धीवर "जलक्षत्री"

 कज्जल छंद- अशोक धीवर "जलक्षत्री"


बेटी हवय बड़ा अमोल।

    येला कखरो सँग न तोल।।

         जग मोहय येखर ग बोल।

              ए लक्ष्मी ये भेद खोल।।१।।

बेटी - बेटा भेद काय।

     बेटा जब ना काम आय।।

          बेटी अपन फरज निभाय।

                सेवा कर बेटा कहाय ।।२।।

देवी के ये हे अवतार।

    पाल -पोस के करय पार।।

         "जलक्षत्री" के सुन पुकार।

                कोख म येला झन ग मार ।।३।।



रचनाकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

ग्राम -तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

सचलभास क्र. - ९३००७१६७४०

कज्जल छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 कज्जल छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी 



मात पिता जग मा महान।

कोन करै महिमा बखान।।

पार नही पावय पुरान।

दुनियाँ मा जान भगवान।।


चलबो इँखरे पद निशान।

इँखर वचन ला सत्य मान।।

सदा रथे देत वरदान।

बोली अमरित के समान।।


कहना का अब मोर मान। 

करम धरम औ सार दान।।

सादा होवय खान पान। 

अपन मुक्ति के राह जान।।


भजन भाव मा हो धियान।

लगे काम हा झन जियान।।

रखव अपन सुरता सियान।

हिरदै मा गुरु के गियान।।


छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी 

ग्राम- चंदेनी (कवर्धा)

जिला- कबीरधाम (छ्त्तीसगढ़)

Thursday, December 10, 2020

शहीद वीर नारायण सिंह जी ल, छंद परिवार के काव्यांजलि

 



 









 कमलेश्वर वर्मा "सोनाखान के वीर"

    वीर छन्द


सत्रह सौ पंचनबे सन मा,झूम उठिस बड़ सोनाखान।

रामराय घर जनम धरिन जी,हमर राज के बड़का शान।1।


मातु पिता मन खुशी मनावत,नारायण सिंह धर लिन नाम।

निडर साहसी बचपन ले वो,पूजय देवता बिहना शाम।2।


आघू वो हा जमींदार बन,बिकट करिस जी जनकल्यान।

पूरा कोशिश सदा करय वो,झन राहय कोनो परशान ।3।


जब अकाल अउ सूखा पड़ गिस,सन छप्पन के घटना जान।

तब जनता मा  बँटवा दिस वो,अपन सबो कोठी के धान।4।


तभो बहुत झन भूख-प्यास ले, करत रिहिन हे चीख-पुकार।

 लोगन संगे नारायण तब,

 गिस व्यापारी माखन- द्वार।5।

 

फेर सेठ के दिल नइ पिघलिस,नइ दिस वोहर धान उधार।

तब नारायण सिंह हा बोलिस,सबो लूट ले जव भंडार।6।


घटना पाछू माखन पहुँचिस, अंगरेज इलियट के तीर।

मोर लूट लिन कोठी साहब,

मनखें अउ नारायण वीर।7।


फेर पकड़ के नारायण ला, अंगरेज मन भेजिन जेल।

तोड़ जेल ला वोहर निकलिस,

करके बड़का सुग्घर खेल।8।


वापिस सोनाखान पहुँच के,कर लिस वो सेना तैयार।

अंगरेज मन संग युद्ध मा, सेना भारी करिस प्रहार।9।


चलयँ दनादन बाण धनुष ले, अउ होवय भाला ले वार।

कैप्टन स्मिथ के दल कोती जी, मच जय बिक्कट हाहाकार।10।


फेर अंत मा घमासान के, बंदी बनगे वीर महान।

चलिस मुकदमा झूठ-कपट ले, देशद्रोह ला कारण मान।11।


नारायण ला सजा सुना दिस, फाँसी देके लेबर जान।

रइपुर के जय स्तंभ चौक मा, दे दिस योद्धा हा बलिदान।12।


अपन प्रान ला देके वोहर,रख लिस बड़ माटी के मान।

जुग-जुग बर अम्मर होगे जी, लाँघन-भूखन के भगवान।13।


सन संतावन के ये घटना, छागे पूरा हिन्दुस्तान।

जनता मन हा जागिन भारी, आजादी बर दिन सब ध्यान।14।


नारायण सिंह के भुइँया ला, सरग सँही देवव सम्मान।

बार-बार मैं मूड़ नवावँव,पावन माटी सोनाखान।15।



कमलेश कुमार वर्मा

साधक सत्र-09

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 ठेठवार: कुण्डलीयाँ छंद 


बघवा सोना खान के, वीर नरायण नाम ।

बैरी बर आगी बने, करे नेक तै काम ।।

करे नेक तै काम, रहे भारी उपकारी ।

दीन हीन के संग, बिता दे जिनगी सारी ।।

लड़े लड़ाई जोर, सबो दिन होके अघवा ।

भरे जोर हुंकार, बने बैरी बर बघवा ।।


पुरूषोत्तम ठेठवार 

छंदकार 

ग्राम - भेलवाँटिकरा 

जिला - रायगढ 

छत्तीसगढ

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आल्हा छंद - वीर नारायण सिंह - विरेन्द्र कुमार साहू


नारायण सिंह धाकड़ चेलिक, बइरी बर सँउहे यमदूत।

लड़िस लड़ाई स्वतंत्रता के, माटी हितवा वीर सपूत।1।


करिन हवँय बइरी मन आके, जब-जब नंगत के अतलंग।

पानी पसिया देके भिड़गे, रन मा वोहर बइरी संग।2।


रामसाय के बघवा बेटा, लइका रहय घात के ऊँच।

पोटा काँपय बइरी मनके, रेंगय बीस हाथ ले घूँच।3।


बाँधे पागा लाली फेटा, सादा धोती उनकर शान।

हाथ म पहिरे चाँदी चूरा, सोना-बारी सोहे कान।4।


रहय रोठ बंदूक पीठ मा, कनिहा मा धरहा तलवार।

बउरे इनला सदा वीर हा, केवल खातिर पर उपकार।5।


छंदकार : विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबाँधा (राजिम), जिला - गरियाबंद (छ.ग.) 9993690899

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*आल्हा छंद - बोधन राम निषादराज*

(सोनाखान के जमीदार)


बलिदानी वो वीर नरायन,जमीदार वो सोनाखान।

अद्भुत साहस भर हिरदय मा,हँस के वो होगे बलिदान।।


छत्तीसगढ़ के सोना बेटा,गली-गली मा ओखर मान।

अंग्रेजन मन थर-थर काँपै,भागै सबो बचाके प्रान।।


दीन दुखी के हितवा बेटा,बन के आइस हे अवतार।

जेला देखत बइरी मन के,छलकय आँखी आँसू धार।।


अइसन बघवा जस अवतारी,गुर्रावय जब आँखी खोल।

गोरा मन के पोटा काँपै,ऊँखर शासन जावै डोल।।


एक समे के बात बतावँव,जब भुइयाँ मा परे अकाल।

सन् अठरा बच्छर छप्पन के,होय रहिस मनखे कंगाल।।


सुक्खा परगे खेत खार हा,दाना-दाना बर लुलवाय।

पर अंग्रेजन मन ला संगी,दया थोरको घलो न आय।।


बरछी भाला धरिस नरायन,अंग्रेजन बर हल्ला बोल।

लुटा दिए जम्मों जनता मा,फोर दिए कोठी ला खोल।।


देखत गोरा काँपन लागै,मचगे उन मा हाहाकार।

विद्रोही बनगे फिर देखौ,बइरी अंग्रेजन सरकार।।


घेरा बंदी चारो कोती,अंग्रेजी सेना चिल्लाय।

वीर नरायन कोन हरे वो,पकड़ौ पकड़ौ बड़ झल्लाय।।


रइपुर के जय स्तंभ चउँक मा,सरे आम फाँसी लटकाय।

झूल गइस हे हीरा बेटा,मातृ भूमि ला शीष नवाय।।


धन्य धन्य हे वीर नरायन,तोला पूजै सब संसार।

मात-पिता के मान बढ़ाए,ये भुइयाँ के कर्ज उतार।।


बन शहीद तँय पहिली हीरा,छत्तीसगढ़ी भाग जगाय।

वीर बने तँय वीर नरायन,तोर वीरता गुन सब गाय।।


छंद साधक:-

बोधन राम निषादराज

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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: पुत्र सोनाखान के


गीतिका छंद


                - सुकमोती चौहान "रुचि"


जे अमर जग मा हवै जी , पुत्र सोनाखान के ।

छंद रचना मँय करँव जी , वीर के बलिदान के ।।

वीर नारायण बसे हे , देश हिरदे कोर मा ।

जे रहिस छत्तीसगढ़ के ,हर गली अउ खोर मा ।।


तँय अपन दाई ददा ले  , पाय निक संस्कार ला ।

देख लोगन  दुः ख पीरा , कम करस तँय भार ला ।।

शत्रु बर बघवा रहिस वो , देख के गुर्राय जी ।

कोनहो ला वो डरे नइ , शत्रु मन थर्राय जी ।।


नइ गिरिस पानी बछर भर , होय गिस सुक्खा धरा ।

धान चाँउर पटपटागे , जब मिलिस नइ आसरा ।।

फोर कोठी खोल दिस जी , अन सबो मा बाँट दिस ।

चार दिन मा पेट कीरा , अन सबो ला चाट दिस ।।


टोर तारा धान बाँटय , पुत्र सोनाखान के ।

छंद रचना मँय करँव जी , वीर के बलिदान के ।।

जे रहिन छत्तीसगढ़ के , वीर सेनानी प्रथम ।

झूल गे गल डार फाँसी , वीर बलिदानी प्रथम ।।


धन्य महतारी हवै जी , धन्य माटी गाँव के ।

धन्य हे परिवार ओकर , कोख पबरित छाँव के ।।

नाँव दुनिया लेत हावय , बात बड़ सम्मान के ।

छंद रचना मँय करँव जी ,वीर के बलिदान के ।।


सुकमोती चौहान "रुचि"

बिछिया , महासमुन्द , छ.ग.

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''बीर नरायण सोनाखनिहा''


सुरता आ गे तोर ग मोला,आँखी मा आ गे पानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


बछर सत्तरह सौ पन्चनवे,जनम भइस मुँधराहा के।

छत्तीसगढ़ भुँइया खुश होइस,हीरा बेटा ला पा के।


नारायण आँखी के तारा,रामकुँवर महतारी के।

रामसाय के राज दुलरुवा,दीया डीह दुवारी के।


सत रद्दा मा रेंगस धर के,संत गुरू मनके बानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


सन अठ्ठारह सौ छप्पन मा,घोर अकाल परे राहय।

जनता के दुख भूख प्यास ला,तोर प्रयास हरे राहय।


विनत निवेदन नइ समझिस ता,बँटवा देये राशन ला।

अपरिद्धा माखन ब्यापारी,लिगरी करदिस शासन ला।


झूठा केस चलावन लागिस,ओ अँगरेजी अहमानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


माह दिसम्बर तारिक दस के,अठ्ठारह सौ सन्तावन।

फाँसी दे दिन तोला हीरा,गला भरत हे का गावन?


छत्तीसगढ़ के गाँव गली मा,तुरत पसरगे सन्नाटा।

जनता के हिस्सा मा जइसे,अँधियारी आ गे बाँटा।


तोर शहादत आँखी देखिस,रोइस रयपुर रजधानी।

बीर नरायण सोनाखनिहा,हीरा बेटा बलिदानी।


रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद- विजेन्द्र वर्मा


जनम धरिन हे बघवा बनके,रामकुँवर देवी के कोख।

बड़े बाढ के करत रिहिन वो,सबके दुख पीरा ला शोख।।


बीच डोंगरी जंगल पहाड़,गाँव बसे हे सोनाखान।

जमींदार नारायण के तो,करम भूमि तँय वोला जान।।


धरम करम के अलख जगइया,माटी जेकर रिहिस मितान।

परहित बर जे सूली चढ़गे,लाइस वो हा नवा बिहान।।


पीरा परजा मन के सहिके,नइ मानिस गोरा से हार।

रहिस जोश तब बिकटे मन मा,बइरी ला देवय ललकार।।


जब तक सूरज चंदा रइही,अम्मर रइही ओकर नाँव।

माथ नवावन उँकर चरन मा,गुण गावन सब सोना गाँव।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर