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Saturday, November 30, 2019

शोभामोहन श्रीवास्तव - सार छंद

शोभामोहन श्रीवास्तव - सार छंद

1/
फेर जनम  बर फूल चढ़ाहूँ  ,फेर  माँगहूँ तोला।।
धन्य  लगत  हे  धराधाम मा , ए  माटी  के   चोला ।।
2/
उड़न गोठ का   करँव  भरोसा , पीयँव  तोरे मानी ।
गमकत  आस  भरोसा  जागत  , बनगे हस  जिनगानी   ।।
3/
दमकय माथा, चमकय बिंदिया , मगन रहय मन भारी ।
कारी मोती फूल सोनहा ,  अछत सुहाग चिन्हारी ।।
 4/
टिकली   चूरी  लाल    महाउर   , जिनिस  भले  मनिहारी   ।।
इही सवाँगा सजवन पहिरे  ,   भाग जगय   बड़ भारी।।
5/
आँसू   छलके  पाँव  पखारन  , आखर
 गिल्ला  होगे ।
संग साथ  मा  लागत  अइसन, सब  सुख  मिलगे भोगे ।।
6/
तोर  डेरउठी  चौंखट चूमे   , कोनो   सुख  नइ  चूके ।
जिनगी  आज   जिये  कस  लागत  , तोर  चरन ला  छूके ।।
7/
सार बात ला अंतस रखके,  थोरिक बात बताथँव ।
जब ले अंतस  लगन लगे  हे  , सरग असन सुख पाथँव ।।
8/
सोन  सवाँगा  तन  के करथे, मन ला मया सजाये।
तेकर सेती तोर गुन जस ल , साँस-साँस हर गाये ।। 

शोभामोहन श्रीवास्तव
अमलेश्वर रायपुर छ.ग.

Friday, November 29, 2019

सार छंद -- महेन्द्र देवांगन माटी

सार छंद  -- महेन्द्र देवांगन माटी

मेला ( सार छंद)

भीड़ लगे हे अब्बड़ भारी , सबझन जावत मेला ।
धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।।
कोनो करथे हरहर गंगे , कोनों डुबकी मारे ।
दर्शन करथे मंदिर जाके , पुरखा अपने तारे ।।
फूल चढ़ाये कोनों संगी , कोनों नरियर भेला ।
धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।।

किसम किसम के खेल खिलौना , मेला मा सब आये ।
खई खजाना ले दे बाबू , लइका मन चिल्लाये ।।
दाई लेवय गरम जलेबी , बाबू लेवय केला ।
धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।।

जगा जगा हे खेल तमाशा  , भीड़ लगे हे भारी ।
कोनों फेंकत पइसा कौड़ी , कोनों देवय गारी ।।
जिनगी के मेला मा संगी , बहुते हवय झमेला ।
धक्का मुक्की होवत हावय , होवत रेलम पेला ।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353

Thursday, November 28, 2019

राजभाषा  दिवस विशेषांक-छंद बद्ध रचना


कुकुभ छंद -- विरेन्द्र कुमार साहू

छत्तीसगढ़ी दाई - भाखा , मोर मूड़ के पागा हे।
मँय बेटा अँव दाई - सेवा , सिरतों मोरे लागा हे।।

मँदरस कस मीठा पानी , दया मया के बोली हे।
सुंदर कोदू मस्तुरिया के ,कविता गीत ठिठोली हे।।

हे खुमान संगीत सहीं अउ , गम्मत नाचा मँदराजी।
छत्तीसगढ़ी दाई समझँय ,अउ हिन्दी ला उन आजी।।

खूबचंद के सपना मा जे , अउ धोंती मा गांधी के।
गोठ उही छत्तीसगढ़ी हे , दू करोड़ आबादी के।।

मोरे शान मोर भाखा मा , अउ मान मोर भाखा मा।
छत्तीसगढ़िया बन पाये हौं , छत्तीसगढ़ी लाखा मा।।

काम-काज के बनही भाखा , जब छत्तीसगढ़ी मोरे।
सपना राम-राज के गांधी , तब पूरा होही तोरे।।

पावय छत्तीसगढ़ चिन्हारी ,सपना हावय जी भारी।
बन जावय भाखा सरकारी , छत्तीसगढ़ी महतारी।।

छंदकार : विरेन्द्र कुमार साहू ,
ग्राम -.बोड़राबाँधा (राजिम),
जिला - गरियाबंद (छ.ग.) 9993690899

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  कुकुभ छंद -आशा देशमुख

नवा सँवागा मा निखरत हे,छतीसगढ़ी महतारी ।
रूप देख के तोरे दाई,मँय जावँव ओ बलिहारी ।1

एक हाथ मा ज्ञान धरे हे,एक हाथ मा बाली हे।
धान कटोरा भरे लबालब,सबो डहर खुशहाली हे।2

कलम सियाही धरके दाई,तहुँ हर वेद रचाए ओ।
आखर आखर मंत्र बनत हे,सबके मन ला भाए ओ।3

तँय हिंदी के राज दुलौरिन ,राज तिलक होवत हावै।
बड़े बड़े ज्ञानी पंडित मन,महिमा तोर लिखत हावैं। 4

अमरित तोरे जिभिया भीतर,कंठ कोयली के बानी।
मस्तुरिया के गीत गोठ मा ,तोरे ओ अमर कहानी।5


कब तक चुप रहिबे वो दाई,मंत्र ज्ञान हे कोरा मा।
जागत हे तोरे बेटा मन,भरही सुख ला बोरा मा।6

मुकुट पहिनबे हीरा के वो,सँथरा मा राजा थारी।
महर महर अँगना ममहाही ,गहदत हे अब फुलवारी।7

आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा
छतीसगढ़

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                    1

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं।
पीके नरी जुड़ालौ सबझन,सबके मिही निसानी औं।

ताल तलैया के लहरा औं,गंगरेल के दहरा औं।
मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी,ठिहा ठौर के पहरा औं।
दया मया सुख शांति खुसी बर,हरियर धरती धानी औं।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-----।

बनके सुवा ददरिया कर्मा,मांदर के सँग मा नाचौं।
नाचा गम्मत पंथी मा बस,द्वेष दरद दुख ला बॉचौं।
बरा सुहाँरी फरा अँगाकर,बिही कलिंदर चानी औं।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-।

ग्रंथ दान लीला ला पढ़लौ,गोठ सियानी गढ़ धरलौ जी।
संत गुनी कवि ज्ञानी मनके,अन्तस् मा बैना भरलौ जी।
मिही अमीर गरीब सबे के,महतारी अभिमानी औं।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं--।

                 2

दोहा गीत -जीतेंद्र कुमार वर्मा "खैरझिटिया"

दया माया के मोटरा,सबके आघू खोल।
हरे मंदरस मीठ जी,छत्तीसगढ़ी बोल।

खुशबू माटी के घुरे, बसे हवे सबरंग।
तनमन येमा रंग ले,रख ले हरदम संग।
बाट तराजू हाथ ले,भाँखा ला झन तोल।
दया मया के मोटेरा, सबके आघू खोल।।

बानी घासीदास के,अबड़ हवै जी पोठ ।
रचे इही मा कवि दलित,अपन सियानी गोठ।
नाचा करमा अउ सुवा,देय मया अनमोल।
दया मया के मोटेरा सबके आगे खोल।।

 परेवना पड़की रटे, बोले बछरू गाय।
 गुरतुर भाँखा हा हमर,सबके मन ला भाय।
जंगल झाड़ी डोंगरी,बर गावय जस डोल।
 दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।

                  3

छंद त्रिभंगी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

सबके मन भाये,गजब सुहाये,हमर गोठ छत्तीसगढ़ी।
झन गा दुरिहावव,सब गुण गावव,करौ पोठ छत्तीसगढ़ी।
भर भरके झोली,बाँटव बोली,सबो तीर छत्तीसगढ़ी।
कमती हे का के,देखव खाके,मीठ खीर छत्तीसगढ़ी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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निज भाषा के मान~आल्हा/वीर छंद

आखर-आखर भाखा बनथे,
भाखा प्रगटे भाव विचार।
महतारी के बोली बोलव,
निज भाखा बिन सब बेकार।~1

सिखव लिखव बोलव निज भाखा,
हावय येमा गुन के खान।
महतारी भाखा ला मानव,
अंतस के बड़ गरब गुमान।~2

फूलँय बाढ़ँय जम्मों भाखा,
काबर करबो हमन विरोध।
हमरो भाखा आगू बढ़ही,
राखन अपने अंतस बोध।~3

जनमें जेखर कोरा मा हम,
वो भुँइयाँ हे सरग समान।
नान्हेंपन ले सुन-सुन लोरी,
वो भाखा हे ब्रम्ह गियान।~4

लोककला अउ संस्कृति सब के ,
निज भाखा ले पाय अधार।
जतका जादा करबो सेवा,
मया बाढ़ही 'अमित' अपार।~5

आवव सिखन लिखन बन तपसी,
साधक बनके छंद विधान।
साहित रचव नियम के संगत,
होही जग मा तब गुनगान।~6

करन साधना आखर के नित,
आखर होथे ब्रह्म समान।
सोच समझ के लिखबो थोरिक,
लिखना रचथे बेद पुरान।~7

राग रंग के काटव जाला,
सत साहित मा लगै धियान।
माता सारद किरपा करहू,
पावँव गुरु ले 'अमित' गियान।~8

जइसे जइसे लिखबो आगू,
आय लेखनी मा अति धार।
अदर कचर सब घुरुवा जाही,
माई कोठी धरलन सार।~9

लगन लगाबो करके महिनत,
सिरजाबो सरलग सब छंद।
गुरु के पाके किरपा मंतर,
लिखय सार साहित मतिमंद।~10

लिखव पढ़व महतारी भाखा,
बाढ़य नित दिन एखर मान।
रचव छंद निज भाखा बोली,
कालजयी कस पावय शान।~11

कन्हैया साहू "अमित"
भाटापारा-छत्तीसगढ़

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छत्तीसगढ़ी भाषा महिमा---लावणी छंद

छत्तीसगढ़ी भाखा पावन, जइसे गंगा के पानी ।
सुने पढ़े बोले मा लगथे, अमरित कस सुग्घर बानी।।

बेद शास्त्र के सबो ज्ञान ला, एमा जी तैं हा गुन ले।
रामायण गीता के महिमा, चेत लगा भाई सुन ले ।।

पूज्य संत घासी के शिक्षा, पंथी मा जे सुन लेही।
सत मारग मा पाँव बढ़ाके,अवगुण जम्मों तज देही ।।

करमा सुवा ददरिया सेवा , देवारी राउत दोहा ।
मंतर मारे कस हो जाथे, जेन सुनय जाथे मोहा ।।

देश विदेश तको मा रहिथें ,एकर अब्बड़ बोलइया।
पूजा करथें लाखो मनखें, कहिके जय भाखा मइया।।

जे भाखा ला राम ह बोलिच, बोलिच कौशिल्या माता ।
बालमीकि मुनि ज्ञानी जइसे, रहिच हवय जेकर ज्ञाता ।।

भक्तिन राजिम ए भाखा मा, त्रेता मा सबरी दाई।
बोल बोल के भोग लगाइन,खाइच जेला रघुराई ।।

संत पवन दीवान तको जब, कथा कहय ए बोली मा ।
गूढ़ मरम कतको समझावय, सुग्घर हँसी ठिठोली मा ।।

 मस्तुरिहा ला कोन भुलाही , अमर गीत के गायक ला ।
तीजन ममता कविता मन ला, वो खुमान जन नायक ला ।।

लाखों साहितकार लेखनी ,ए भाखा मा दउँड़ाथें ।
कलाकार नाचा गम्मत मा, महतारी के जस गाथें ।।

राजकाज अउ पढ़ई लिखई ,छत्तीसगढ़ी मा होवय ।
भाग हमर अब लइका मन के , माथा धरके झन रोवय।।

नेता अफसर हमर राज के, जे दिन एमा बतियाहीं ।
वो दिन सिरतोन म वोमन तो, हितवा मितवा बन पाहीं ।।

छंदकार --चोवा राम 'बादल '
            हथबन्द ,छत्तीसगढ़
     9926195747

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लावणी छंद - बोधन राम निषादराज

ए माटी मा हीरा - मोती,
                     ए  माटी  हा  चन्दन हे।
छत्तीसगढ़ी ये महतारी,
                     एला सौ सौ बन्दन हे।।
ए माटी मा हीरा मोती................


खेलव कूदव एखर गोदी,
                      ए ही माटी के अँगना।
धुर्रा माथा धर लौ भइया,
                    भाई बहिनी के सँगना।।
भरे कटोरा धान इहाँ जी,
                      कोठी डोली  कुंदन हे।
ए माटी मा हीरा मोती................


हमरो गँवई गाँव इहाँ जी,
                     जम्मों  घर देवाला हे।
सेवा करके मेवा पाथे,
                    मनखे भोला भाला हे।।
दाई डोकरी मुहाटी मा,
                    देखय बइठे  दरपन हे।
ए माटी मा हीरा मोती.................


पावन छत्तीसगढ़ी भुइँया,
                   माई  जिहाँ  बिराजे हे।
गाँवे  ठाकुर  देवा  बइठे,
                  शितला माता साजे हे।।
कोठा मा घंटी हा बाजे,
                   बारी  बखरी मधुबन हे।
ए माटी मा हीरा मोती..................

छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

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सार छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

छ्त्तीसगढ़ी गुरतुर बोली,गोरस सही मिठाथे।
दाई कोरा सरग बरोबर,सबके मन ला भाथे।

मान करव सब निज भाखा के,मिटही तब अँधियारी।
छतीसगढ़ी छत्तीसगढ़िया,छ्त्तीसगढ़ चिन्हारी।

सुआ ददरिया करमा पंथी,नाचा हँसी ठिठोली।
दया मया अंतस भर देथे,छ्त्तीसगढ़ी बोली।

इहाँ निचट सिधवा मनखेमन,तभे कहाथे बढ़िया।
भूख रहे खुद बाँटे पर ला,अइसन छत्तीसगढ़िया।

सदा भाव के भूखे रहिथे,सबला अपने मानय।
बइरी हा मितवा बन जाथे,कोर कपट नइ जानय।

अपन राज अउ निज भाखा बर,दुनियाँ ले लड़ जाबो।
आँखी देखाही कोनो ता,मिलके नँगत ठठाबो।

छन्दकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदैनी(कबीरधाम)
छ्त्तीसगढ़

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दोहा -दुर्गा शंकर

छत्तीसगढ़ी गोठ के , हावय जब्बर ठाठ ।
दया मया संस्कार के ,मिलथे सुग्घर पाठ।।

चौपाई
छत्तीसगढ़ी भाखा सुग्घर,छक छक ला हावय जी उज्जर ।
दूसर से कमती झन आँकव ,भीतर जाके गा तुम झाँकव ।।

बोले बर झन लाज मरौ जी ,एखर सुग्घर मान करौ जी ।
महतारी के ये हर बोली ,हावय जेमा हँसी ठिठोली ।।

अलंकार के गुन भरे हे , छंद बंद से भरे परे हे ।
अलकरहा कथनी जी हावय ,मन ला सब्बो के तो भावय ।।

बाँस गीत ,पंथी के गाना , सुवा ददरिया अउ हे बाना ।
कर्मा सोहर अउ सवनाही,नेवरात के गीत गवाही ।।

दया मया के गुरतुर बानी ,लागय दाई देय खजानी ।
गरज बीर नारायण के हे ,लक्ष्मण के संग चलव रे हे ।।

भीतर बाहिर नाम करौ गा ,सरकारी सब काम करौ गा ।
मिले राज भाषा हे दर्जा ,बोलीं सब राजा अउ परजा ।।

अँगरी धरके जेकर बाढ़े ,जेन गोड़ मा हावस ठाढ़े ।
ओला छोड़बे त तँय गिरबे,अलिन गलिन के तँय हर फिरबे।।

दोहा
खुद के भाखा हीन झन ,करले गा तँय गोठ ,
भाव भरे सुग्घर हवय ,सब भाखा ला  पोठ ।।

छंदकार -
दुर्गा शंकर ईजारदार
सारंगढ़ (मौहापाली )
9617457142
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

सार छंद -सुधा शर्मा

अपन राज के भाखा बोली,गुरतुर अब्बड़ हावय।
कोयल  मैना पड़की सुवना,गीत मया के गावय।।

झन बिसराहू संगी कोनो,महतारी के भाषा।
इही हमर संस्कृति चिनहारी, आगू बढ़ही आसा।।

बोलव संगी अपने बोली,मान करव महतारी।
आओ एकर बढ़ोतरी बर,उदिम करन सब भारी।।

हमर गुनिक पुरखा कवि मन,एकर नाव जगाइन।
रचे दान लीला सुन्दर जी ,छत्तीसगढ़ सजाइन।।

कोदूराम दलित जी सुग्घर, गीत छंद मा  गावय।
ऊँकर बेटा अरुण निगम जी,आगू छन्द बढ़ावय।।

मस्तुरिया के गीत ल देखव,जन जन हिरदे गाये।
महतारी भाखा मा रच के, नाव शोर बगराये।।

गीत अमर होगे ओखर जी,सरग निसेनी अमरे।
काहत हावे संग चलव जी ,हिरदे ला सब टमरे।।

किसिम किसिम के करथे सिरजन,राज म सिरजन हारा।
महतारी के गीत गावथें,ए पारा ओ पारा।।

लोक गीत मा सुवा ददरिया,रंग-रंग के बोली।
बूढ़ी  दाई  किस्सा कहिनी,सोहर के रंगोली।।

फरियर-फरियर बगरे हावे,छत्तीसगढ़ी  बोली।
मीठ मया के रस मा बूड़े,जस मिसरी के गोली।।

आखर-आखर  साधो संगी,अबड़ गुणिक महतारी।
हाना किस्सा रकम रकम के,हावय ग गीत गारी।।

भासा दिवस मनावत हावे,जम्मों छत्तीसगढ़िया।
राज काज के बनही जरिया,होही सबले बढ़िया।

इही गोठ ला देखव संगी,जुरमिल आगू लावव।
आखर आखर धरौ मुकुट ला,दाई ला पहिरावव।।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

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दोहा छंद - छत्तीसगढ़ी भाषा

गुरतुर अड़बड़ लागथे , छत्तीसगढ़ी बोल।
हिरदय के पट खोलदे ,भाखा हा अनमोल ।।

रोजी रोटी मान दे ,करै सबौ से मीत ।
सुख अउ दुख मा संग दे , सब मन लेवय जीत ।।

जन जन के मन भाय जी , छत्तीसगढ़ी गीत ।
सुआ ददरिया भरथरी , बने गाॅव मा रीत ।।

महतारी भाखा हमर , पढ़व लिखव जी आज ।
अलंकार रस छंद ले , सुग्घर करबो काज ।।

भाखा हा जोरे हवय , हम सब ला जी संग ।
कहाॅ कहाॅ ले आ इहाॅ , रहिथें सबो मतंग ।।   

गोंदा कस महकत हवय ,घर अॅगना अउ खोर ।
शब्द ज्ञान ले हे भरे ,माई भाखा मोर ।।

जल जंगल के मान कर , तोर मोर पहिचान ।
मस्तुरिया के गीत गा ,अरपा पैरी गान ।।


रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
छत्तीसगढ़

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छप्पय छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे

(1)
छत्तीसगढ़ी बोल,हमर भाखा महतारी।
हमर राज के शान,महत्तम हावय भारी।
का के हावय लाज,बोल अंतस हरसाले।
भाखा हे अनमोल,गीत एखर जी गाले।
कल ले तँय सम्मान गा,भाखा हे पहचान जी।
जन-जन मा ये छाय हे,रख एखर तँय मान जी।।

(2)
छत्तीसगढ़ी गोठ,लगे मँदरस कस धारा।
बोलव भाई रोज,सबो जी झारा-झारा।
दया-मया के डोर,बाँधथे भाखा बोली।
गोठियाव गा रोज,करौ जी हँसी ठिठोली।
छत्तीसगढ़ी बोल के,देवव मया दुलार गा।
बैरी ला मितवा करौ,पाव मया भरमार गा।।

(3)
भाखा गुत्तुर जान,सुहावय सबला भारी।
बोलव सुग्घर गोठ,राख लौ मया चिन्हारी।
बोली भाखा ठेठ,लगे जइसे फुलवारी।
महकत हावय राज,गाँव अउ कोला बारी।
हमरो भाखा जान लौ,सबले हावय पोठ जी।
सब मनखे ला भाय हे,छत्तीसगढ़ी गोठ जी।।

(04)
निस दिन बाढ़य शान,हमर भाषा के भाई।
रोजे पावय मान,इही मा हे सुखदाई।
बन जावय पहिचान,गोठ दुनियाँ मा छावय।
मीठ-मीठ रसधार,हमर भाखा मा हावय।
भाखा हमरो राज के,मँदरस ला छलकाय जी।
बउरव भइया रोज के,तन मन ला हरसाय जी।।

छंदकार
द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा
छत्तीसगढ़

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दोहा छंदकार : पोखन लाल जायसवाल

महतारी भाखा हरे, जिनगी बर बरदान।
पढ़ लिख ले भाखा इही,पाबे सिरतो मान।।१

मान बराबर दे तभे,मिलही तोला मान।
दया मया के मोटरा,भरे हवय ए जान।।२

बने नीक तो लागथे,महतारी के गोठ।
हीन मान सब छोड़ के,करना हावे पोठ।।३

मार कुदारी गोड़ मा,नइ करना हे घाव।
दया मया ला घोर के,रखन अपन बरताव।।४

मानय जे परिवार ला,ते राखय मरजाद।
समझे नइ सँस्कार जे,करथे वो बरबाद।।५

भाखा अपन जनाय जी,दुख पीरा के भाव।
भाखा बोली के अपन,आवव करन हियाव।।६

कहिनी किस्सा अउ लिखन,सुग्घर सुग्घर गीत।
मीठ मीठ सब बोल के,मन ला लेवन जीत।।७

भाखा बोली राज के, होथे मानव शान।
सँस्कृति अउ सँस्कार ला,मिलै नवा पहिचान।।८

आखर-आखर साध के,आवव करन सजोर।
साहित कोठी के भरे,गुँजही एखर शोर।।९

निमगा निमगा छाँट ले,निनधा बने बटोर।
सपना हम जब देखबो,होही तभे अँजोर।।१०

छंदकार:पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह(पलारी)
जिला -बलौदाबाजार भाटापारा (छग)

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दोहा छंद-संतोष कुमार साहू

छत्तीसगढ़ी हा हमर,बोली हरे ग खास।
दूसर बोली से अधिक, एमा हवय मिठास।।

अउ बोली चाँदी असन,तब ये सोन समान।
हम सब के अनमोल ये,सुग्घर हरे जबान।।

छत्तीसगढ़ी गोठ हा,अंतस ला नित भाय।
सही कहत हँव ये हमर,जब्बर आत्मा आय।।

सुनन सुनन भाथे गजब,छत्तीसगढ़ी गोठ।
भरे रथे एमा बने,दया मया बड़ पोठ।।

छंदकार-संतोष कुमार साहू,
ग्राम-रसेला,जिला-गरियाबंद-(छत्तीसगढ़)

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मनहरण घनाक्षरी-श्रीमती आशा आजाद

छत्तीसगढ़ ला जानौ,भाखा मीठ हे मानौ।
गुत्तुर भाखा सबला,अबड़ सुहात जी।
तोर मोर बोली हावै,हँसी ठिठोली हा भावै।
दाई ददा बोलै मा जी,मन मुस्कात हे।
सब जै जोहार बोलैं,मन मधुरस घोलैं,
संस्कार भुइयाँ के जी,मया ला बढ़ात हे।
जुरमिल गोठियावौ,भाखा गीत सब गावौ,
राज के माटी हा जी,भाग चमकात हे।

छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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सरसी छंद-मीता अग्रवाल

छत्तीसगढ़ी गुरतुर भाखा,गंगा  कस हे नीक।
गंगा अस निरमल लहरा जी,हे अंतस नजदीक।

साहित मा मदरस ला घोलय,गीत कहानी छंद ।
सरी जगत ला रस मा बोरय, भाखा के मकरंद ।।

दाई जेखर पूर्वी हिन्दी, बहिनी अवधी संग।
देवनागरी  लिपि ऐखर जी,सब ला करथे दंग।।

अपन दूध के बोली भाखा,दया मया के गाँव ।
माथ नवा थन महतारी बर,अचरा पुरवा छाँव ।।

छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया, मूल मंत्र पहिचान ।
राज काज के लेखा जोखा, भाखा बर सम्मान ।।

दिवस राज भाषा हे घोषित, परब राज बरआज।
भाषा बर संकल्प लव जब्बर ,करबो ऐमा काज।।

छंदकार-  मीता अग्रवाल
रायपुर छत्तीसगढ़

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सवाई छंद - दिलीप कुमार वर्मा

बोली बतरस के बानी मा,छत्तीसगढ़ी के रस घोलव।
जब भी आपस मा बतियावव,छत्तीसगढ़ी मा ही बोलव।

छत्तीसगढ़ के रहवासी सुन,छत्तीसगढ़िया दूसर नोहय।
जे छत्तीसगढ़ी बतियाथे, ते समाज मा सुग्घर सोहय।

पढ़बे लिखबे अउ बतियाबे,मान तभे भाखा हर पावय।
सिर्फ कहे बस ले गा संगी,तोला कोनो नइ सहरावय।

जे छत्तीसगढ़ी बतियाइन,ते मन इहचे नाम कमाइन।
भाखा खातिर उदिम करिन हे,अउ सब ला चल के चलवाइन। 

रच डारिन हे ग्रन्थ बड़े अउ,गीत तको सुग्घर ओ गाइन।
कविता तक भरमार रचे हे,जा के दुनिया ला सुनवाइन।

जनता नेता अउ अधिकारी,नित बोली मा जब ओ लावय।
काम करय सरकार जभे जी,मान तभे भाखा हर पावय।

शब्द हमर भाखा के भाई,देखव संगी झन बिसरावय।
सब के देखा देखी देखव,अँगरेजी हर झन छा जावय।

सरम करव झन बोले खातिर,कहत हवँव तेला सच मानव।
जइसन घर के हे महतारी,तइसन भाखा ला तक जानव।

छत्तीसगढ़िया के चिनहारी, माथा मा कोनो नइ पावय।
छत्तीसगढ़ी जब ओ बोलय, तब जानय अउ सबझन भावय।

छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया, अइसन जी कोनो नइ काहय।
सब ले सिधवा गुरतुर भाखा,जब सब के जी अंतस राहय।

रचना कार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार

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बरवै छंद - राजा भासा

छत्तीसगढ़ी भासा , राजा आय।
गुरतुर अउ मीठा हे, सब ला भाय।।
काबर हवय उपेक्षित, करव विचार।
छत्तीसगढ़िया मनखे, खागे मार।।
अब तो आघू आवव, बढ़व बढ़ाव।
भासा के इज्जत ला, करव बचाव।।
अनुसूची मा लाके, देवव मान।
दूर भगाव समस्या , कारण जान।।
चलव करिन अब मिलके, अइसन काम।
हो जाही दुनिया मा, हमरो नाम।।
पद परतिष्ठा छोड़व, होजव एक।
लालच मा झन रोटी, देवँय सेक।।
साहित के दुनिया मा, का पद -  नाम।
सब ला करना हावय, एक्के काम।।
भासा सेवा करथे, कउने देख।
करव अपन भासा मा , साहित लेख।।
रहव एक होके सब, साहितकार।
बड़ही जी भासा के, मान हमार।।
"जलक्षत्री" हा कइथे, सबले आज।
छत्तीसगढ़िया मन के, आही राज।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा - नेवरा)
जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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सार छंद: महेंद्र कुमार बघेल

*आपस मा सब दया मया के, सुग्घर रस ला घोलव।*
*छत्तीसगढ़ म रहिके संगी, छत्तीसगढ़ी बोलव।।*
का कहिबे ओकर भाखा ला,
अलग धजा जे गाड़े।
पढ़े लिखे हन अब्बड़ कहिके, फकत हमेरी झाड़े।।
इहिंचे जेकर गड़े नेरवा, बनगे कहुॅ अधिकारी।
छत्तीसगढ़ी मा बोले बर, शरम करय बड़ भारी।।
चाल चरित्तर बने जान के, हम सबला अपनाथन।
जेन हमर जी हॅसी उड़ाथे,
पहिली हम समझाथन।।
अटल रहव अपने भाखा मा, अउ जादा झन डोलव।
छत्तीसगढ़ म रहिके संगी, छत्तीसगढ़ी बोलव।।

दिवस राजभाषा के उत्सव, व्हाटसेप  मा आथे।
बाबू नेता अधिकारी मन, हम सबला बहलाथे।।
बड़े भाग ले जनम धरिन जे ,धरती के कोरा मा।
हमर अस्मिता भरके राखिन, बाॅध अपन झोरा मा ।।
माटी पानी अन्न इहाॅ के, मान कहाॅ ते राखे।
सेखी मारत मजा उड़ावत,दू टप्पा नइ भाखे।।
हमर संपदा ला जाने बर, ऑख कान मुॅह धो लव।
छत्तीसगढ़ म रहिके संगी, छत्तीसगढ़ी बोलव।।

कोन जनी काबर खावत हे , भीतर भीतर घुन्ना।
बीस बरस के चलत उमर मा, सबो उदिम हा उन्ना।।
एती ओती चारों कोती, अजब  हवय जी पहरा।
छाती मा जी घाव करे के, रहस हवय बड़ गहरा।।
गाॅव गॅवतरी मा जाके जी,हम काला बतलाबो।
हवय पारखी जे भाखा के, ओला का समझाबो।।
शहर नगर रहवासी मन के, शब्द भार ला तोलव।।
छत्तीसगढ़ में रहिके संगी छत्तीसगढ़ी बोलव।।


निजी स्कूल मा रोज सुबे ले ,बोलव झन चमकाथे।
उही हपटथे जब पखरा मा, येद्दाई  चिल्लाथे।।
नाच गान वार्षिक उत्सव मा, सुआ ददरिया चलथे।
आय अतिथि के परघौनी मा, इही दार हा गलथे।।
अपने पुरखा के थाती ला , दुनिया मा बगराबो।
भूले भटके मनखे मन बर ,
रस्ता ला चतराबो ।।
समे रहत सुधरो भइया अउ ,बंद आॅख ला खोलव।
छत्तीसगढ़ म रहिके संगी छत्तीसगढ़ी बोलव।।

छंदकार: महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव,
जिला-राजनांदगांव, छत्तीसगढ़

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 दोहा छंद-हेम

जेकर कोरा मा हवे, सुघ्घर हित अउ मीत।
ओ भुइँया मा नित बहै, बिद्या अउ संगीत।।

चौपैया छन्द
तहि हा महतारी, मोर संगवारी, मुख के भाखा दाई।
करथस परमारथ, छोड़ सुवारथ, छत्तीसगढ़ी माई।।
बिद्या ला बाँटत, जन ल जगावत, भरे ज्ञान के झोली।
तँय सत-साहित के, अउ जन हित के, सुघ्घर भाखा बोली।।

दोहा छंद
महतारी   भाखा  हवच,  छत्तीसगढ़ी   मोर।
राख मान जग मा सदा, गावव महिमा तोर।।

-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

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कुंडलियाँ छंद - श्लेष चन्द्राकर

सुग्घर भाखा ले बढ़िस, हमर राज के शान।
छत्तीसगढ़ी ला सदा, देवव सब सम्मान।।
देवव सब सम्मान, बढ़ावव जुरमिल येला।
येमा अबड़ मिठास, हरे ये गुड़ के भेला।।
हमला इखँर भविष्य, बनाना हे अउ उज्जर।
करव रोज सब गोठ, राज भाखा मा सुग्घर।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
 महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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सरसी छंद-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

छत्तीसगढ़ी मा बोले बर,ये कइसन संकोच?
महतारी भाखा ये भैया,कुछ तो लेवन सोच।

हमीं अपन बोली भाखा के,नइ करबो सम्मान।
दूसर कोन हमर भाखा बर,देही समय धियान।

महतारी भाखा बोले बर,झन कर सोच विचार।
पद के परम्परा कुछ नइहे,सब कुछ हे व्यवहार।

मैं अज्ञानी मोर अकल मा एक बात हे सिद्ध।
पढ़े लिखे ले होवत जाही,साहित हा समृद्ध।

छंद गीत कविता सिरजाबो,कथा कहानी लेख।
महतारी भाखा के जस खुद,दुनिया लीही देख।

छत्तीसगढ़ी भाखा मा हे,अइसन मया मिठास।
सच कहिथौं खींचे चलि आबे,होबे कहूँ अगास।

दरजन दू दरजन भाषा ला,सीख सगा विद्वान।
पर अंतस अँगना मा राहय,निज भाषा बर मान।

सरलग बउरन निज भाखा ला,उहों पहुँचही गोठ।
जिहाँ हमर भाखा बर होही,आरज-कारज पोठ।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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मनहरण धनाक्षरी-छंद

मीठ लागे भाखा बोली
छत्तीसगढ़ी ठिठोली
सबो ला सुहावत हे
तभे मुसकात हे ।।

कहै राम राम  लेलो
मीठ मीठ भाखा बोलो
गुरतुर गोठ लगे
जस दूध भात हे।।

गीत गुरतुर लागे
सुनके गा दुख भागे
बोली छत्तीसगढ़ी ये
बने गोठियात हे ।।

दाई में गा मया भरे
ददा हा दुलार करे
बबा हा बड़ाई कर
रसता देखात हे ।।

नोनी बाबू सबो कहे
आजो गा पतोहू रहे
ड़ोकरी दाई के गोठ
ले मुचमुचात हे ।।

चिला कस लागे बोली
गोठ लागे गा रंगोली
माई पिला बइठ के
सुनता बँधात हे ।।

मीठ हे मिठाई कस
हे रस मलाई कस
मोर हे विनती बस
सबो ला सुहात हे ।।

लागे येहा खीर सही
मीरा गा कबीर सही
अऊ रघुवीर सही
जस जग गात हे।।

केवरा यदु"मीरा"
राजिम (छ.ग.)

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सूर्यकांत गुप्ता
मान  हिंदी   के  हवै  जस  मोर  भाखा  के  घलो।
अमल मा एला तो लाये, बर उदिम अब कर घलो।।१।।

व्याकरण  सँग  पोठ  एकर शब्द के भंडार हो।
पाठशाला मा पढ़ाये बर उदिम अब कर घलो।।२।।

आय   गुरतुर   मोर   बोली   प्रेम  रस मा हे पगे।
लाज  बोले  मा हटाये बर उदिम अब कर घलो।।३।।

गुरु 'अरुण' के पा कृपा हम छंद ला जाने हवन।
दायरा एकर बढ़ाये बर उदिम अब कर घलो।।४।।

'कांत' खाली  गोठ नो  है, आय भाखा  पोठ जी।
पोठ एला अउ  बनाये बर उदिम अब कर घलो।।५।।

गुरुदेव ल सादर प्रणाम करत हमर राज के गुरतुर भाखा
छत्तीसगढ़ी के राजभाखा घोषित होय के 12 साल पूरे के खुशी मनावत आप मन ला राजभाषा दिवस के गाड़ा गाड़ा बधाई...जय जोहार...

सूर्यकान्त गुप्ता, 'कांत'
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.घ.)

""""''''''"""""""""""""""""""""""""""""
 छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

छत्तीसगढ़ी भाखा हावय,अब्बड़ मया दुलार।
सरग बरोबर येकर छइँहा,बहे पिरित के धार।।1

गोद लिये हे सब्बो भाखा,दे के ममता छाँव।
छत्तीसगढ़ी महतारी के,परत हवँव मैं पाँव।।2

सुवा ददरिया पंथी करमा, हमर धरोहर शान।
धान कटोरा महतारी के,छत्तीसगढ़ी मान।।3

सत के अलख जगाये घासी,छत्तीसगढ़ी बोल।
मनखे मनखे एक बरोबर,कहिस बात अनमोल।।4

मान बढाइस महतारी के,सन्त पवन दीवान।।
कोदूराम दलित ये भुइँया,देइस छंद बिधान।।5

दरद सुनाइस महतारी के,मस्तुरिहा के गीत।
तन सोलह सिंगार कराइस,तब खुमान संगीत।।6

स्वर कोकिला दीदी कविता,गावय महिमा गान।।
पाँव पखारय अरपा पैरी,माथ मुकुट हे धान।।7

पँडवानी तीजन बाई के,गूँजय देश विदेश।
अउ भरथरी सुरुज बाई के,छोड़य छाप विशेष।।8

चलौ उठाबो पुरखा बाना,कदम बढ़ाके आज।
मान दिलाये छत्तीसगढ़ी,करना हे मिल काज।।9

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)
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Wednesday, November 27, 2019

सार छंद : मथुरा प्रसाद वर्मा




सार छंद : मथुरा प्रसाद वर्मा

राधा बोलिस मोहन काली, होरी खेले आबे ।
रास रचाबे हमर गाँव मा,  रंग गुलाल उड़ाबे।


 रद्दा देखत खड़े रहूं रे, फ़रिया पहिरे सादा ।
आना परही तोला काली, कर ले पक्का वादा।


रसिया रे नइ जानस का, मोर गाँव  बरसाना ।
करिया कारी कालिंदी के, तिरेतिर चले आना।

हे ब्रज राजा मोरमुकुट हा,  तोरे माथा सोहे।
काने के कुंडल हा तोरे, मन ला मोरे मोहे।


फेर  बँसी ला तँय झन लाबे, मोला अबड़  सताथे ।
सुन बसरी के धुन ला कान्हा, सब गोपी मन आथे।


बनमाला ला पहिर महुँ हा, करहुँ तोर अगुवानी।
तोरे सँग मा कइहीं मोला, सबझन राधा रानी ।

 मनमोहन हा बोलिस राधा, जब जब सुरता करबे।
तोर मया मा बँधाए आहूँ, धीरज थोरिक धर ले।

गोरी मोरे रंग रंग के, लाल लाल हो जाबे।
मँय हा तोरे राधा बनहूँ , कृष्णा तहूँ कहाबे।

मथुरा प्रसाद वर्मा
ग्राम कोलिहा, बलौदाबाजार
8889710210

Tuesday, November 26, 2019

संविधान दिवस विशेषांक


सरसी छंद - विरेन्द्र कुमार साहू "राजिम

संविधान

संविधान ले हवय एकता , हवय देश हा एक।
भले हवय भारत भुँइया मा , भाषा भेष अनेक।।

झन होवय जी कभू देश मा ,कखरो सँग अन्धेर।
एक घाट मा पानी पीयय , गौ माता अउ शेर।।

मरखंडा मन लाहो लेतिन , तेखर बर उपचार।
संविधान हे नाव ग्रंथ के, भारत के आधार।।

पेलयही कर कहिथे कोनों , ते होथस जी कोन।
संविधान तब न्याय बताथे , पीतल हे धुन सोन।।

संविधान रखवार देश के ,संविधान हे प्रान।
रुरहा मुरहा के मितान कस , संविधान ला मान।।

छंदकार : विरेन्द्र कुमार साहू , ग्राम -.बोड़राबाँधा (राजिम),जिला - गरियाबंद(छ.ग.)9993690899
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दोहा छन्द - बोधन राम निषादराज
(भीमराव अम्बेडकर)

नेता  बड़े महान  गा, भीमराव जी  नाम।
ऊँच नीच के भेद ला,पाटिस देख तमाम।।

भारत के  कानून ला, हाथ  लिए वो देख।
सुग्घर नियम विधान हे,संविधान के लेख।।

समरसता समभाव हे, भारत  के वो शान।
भीमराव   अम्बेडकर, नेता  बने महान।।

जाति पाँति के भेद अउ,मिटा दिए व्यभिचार।
भाई  चारा  मन बसे, प्रेम   भाव संसार।

जन-जन मा कानून के,करिन हवै परचार।
बाबा साहब भीम के,होवय जय जयकार।।

छंदकार - बोधनराम निषादराज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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दोहा छंद - श्लेष चन्द्राकर

विषय - संविधान दिवस

(1)
करिस बबा अंबेडकर, नीक देश बर काम।
उनकर लेथें सब इहाँ, बड़ इज्जत ले नाम।।
(2)
संविधान निर्माण कर, बनगे बबा महान।
लोकतांत्रिक देश ला, दिहिन नवा पहिचान।।
(3)
संविधान जब ले बनिस, आइस बड़ बदलाव।
हावय सबो समाज मा, अब समता के भाव।।
(4)
संविधान हा दिस हवय, मनखे ला अधिकार।
भीमराव जी के हरे, येहा गा उपहार।।
(5)
दूर होत हे देश मा, ऊँच-नीच के भाव।
आज काकरो साथ मा, होवय नइ अन्याव।।
(6)
अपन धरम सब मानथें, रखथें अपन विचार।
सबला पूजापाठ के, मिले हवय अधिकार।।
(7)
आजादी हर गोठ के, मनखे ला हे आज।
सबो अपन मन के इहाँ, कर सकथें गा काज।।
(8)
देश चलत हे आज गा, संविधान अनुसार।
कभू चुका हम नइ सकन, बाबा के उपकार।।
(9)
रहय देश मा एकता, करव मया व्यवहार।
इही सबो हे जान लौ, संविधान के सार।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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आल्हा छंद -  आशा देशमुख

*संविधान दिवस*

संविधान लिख भीमराव जी, करिन देश बर बड़ उपकार।
रक्षा बर कानून चलत हे,इही देश के हे आधार।1

ऊँच नीच के खाई पाटे, दे हावँय समता अधिकार।
सब झन बर कानून एक हे,राजा हो या सेवादार।2

पारित होइस हवय सभा मा,ये संविधान ह सन उनचास।
दिन छब्बीस नवम्बर के शुभ, हमर देश बर बनगे खास।3

किसम किसम के अनुसूची हे,अबड़ अकन हवय अनुच्छेद।
जाति धरम भाखा कोनो हो,पर मनखे मन मा नइहे भेद।4

ये विधान ला सबझन मानँय,भारत भुइयाँ करय विकास।
सब ला सम अधिकार मिले हे,चारो कोती हवय उजास।5।

संविधान ये बहुत बड़े हे, ,होय विश्व मा अब्बड़ मान।
हमर एकता समता प्रभुता,नित होवत हे जन मन गान ।6

सागर से पर्वत तक जानव,  भुइयाँ से जानव आकाश।
अइसे अइसे नियम बने हे,जइसे सुई ल करे तलाश।।7

भीमराव के परसादे मा, फूले शिक्षा अउ व्यापार।
बनगे हे कानून व्यवस्था,नर नारी बर सम अधिकार।8

जगत ऋणी हे तोरे बाबा, भीमराव जी पूज्य महान।
जब तक ये दुनिया हा रइही,बाबा के होही यशगान।9

छन्दकार - आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा, छत्तीसगढ़
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सार छन्द - उमाकान्त टैगोर

विषय - संविधान दिवस

संविधान के पूजा करबो, गुन ला एकर गाबो ।
एकर रद्दा मा चलबो जी, तब तो सुख ला पाबो ।।

कोनो जात धरम के होवय, सब ये एक बरोबर।
ये सुग्घर संदेशा आवय, पहुँचय बात घरोघर।।

बाबू लइका नोनी लइका, कोनो होवय चाहे।
शिक्षा के अधिकार बरोबर, करना चिंता काहे।।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, सब झन एके भाई।
अब तो जल्दी पाटव संगी, जात-पात के खाई।।

छोट बड़े जी सब झन सुनलव, लूट पुदक झन खावा।
संविधान के गुर ला मानँव, किरिया खा ली आवा।।

संविधान ये रामायण अउ, संविधान ये गीता।
संविधान ले दुनिया हावय, एकर बिन जग रीता।।

छंदकार- उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबन्द, जाँजगीर (छत्तीसगढ़)
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दोहा छन्द---सुधा शर्मा

विषय - संविधान दिवस

भीमराव अंबेडकर,भारत के संतान।
नाव अमर कर दिस अपन,सुग्घर बना विधान।।

सुग्घर साजय रीत गा,किसिम किसिम अधिकार।
जनता सुविधा देख के,करिस ग नावाचार।।

अखंडता अउ एकता,भारत के पहचान।
सबो जात बसथे जिहाँ,सबो धरम के मान।।

हमर विधानी ग्रंथ गा,हावे गुण के खान।
राजा हो या रंक जी, सब हें एक  समान।।

मंदिर मस्जिद हा बसे,गिरजा घर गुरुद्वार।
है भारत सबके इहाँ,संविधान के सार।।

देथे नीत अनीत के,फरी फरी संज्ञान।
लागू हावे देश मा,राखव एखर मान।।

भारत के ये शान हे,गुण अलगे पहिचान।
अमर रहे इतिहास मा,जन गण मन के गान।।

छन्दकार - सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
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कुकुभ छंद - द्वारिका प्रसाद लहरे

विषय-संविधान दिवस

समरसता के सरग निसैनी, भीम राव हा लाये जी।
संविधान ला सब मनखे बर, बाबा सुघर बनाये जी।।

सबो अपन हक ला जाने हें, संविधान ला पढ़के गा।
पावन हावय संविधान हा, धरम ग्रंथ ले बढ़के गा।।

हमर एकता भाई चारा, सुमता ला बगराये जी।
समरसता के सरग निसैनी, भीम राव हा लाये जी।।

मानवता ला अमर करे हे, बाबा जुग निरमाता गा।
ऊँच-नीच के खाई पाटे, भारत भाग विधाता गा।

रहिस महानायक भारत के, नवा सुरुज बगराये जी।
समरसता के सरग निसैनी, भीम राव हा लाये जी।।

संविधान हा अमर रहै गा, ये भारत के माटी मा।
जन-जन पढ़लौ संविधान ला, गाँव शहर अउ घाटी मा।।

संविधान के बड़ ताकत हे, बाबा भीम बताये जी।
समरसता के सरग निसैनी, भीम राव हा लाये जी।।

छंदकार - द्वारिका प्रसाद लहरे (व्याख्याता)
शा.उ.मा.वि.इन्दौरी/बायपास रोड़ कवर्धा जिला कबीरधाम छत्तीसगढ़
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दोहा छंद: महेंद्र कुमार बघेल

भीम‌राव आंबेडकर, महापुरुष विद्वान।
समता मूल समाज बर, सिरजन करिस विधान।।

नीति नियम हे ग्रंथ मा, संविधान हे नाम।
एक बरोबर सब धरम,जाति एक पैगाम।।

शोषित वंचित ला सबो, मिलय सकल अधिकार।
छुआछूत के दोष हा, होवय बंटाधार ।।

संविधान बोलय सदा , सुनले सकल सुजान।
अनेकता मा एकता,हमर हवय पहिचान।।

भेदभाव ला छोड़ के, मौलिक हे अधिकार।
नर नारी सब एक हे, इही ग्रंथ के सार।।

बरनन करत लिखाय हे,सोच समझ अउ जाँच।
महाग्रंथ के आन मा, कभू आय झन आँच।।

सत्तर बरस बिताय हन, बदलिस कतिक समाज।
मिलजुल के सबझन गुनव, मौका हावय आज।।

छंदकार: महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव, जिला -  राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
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चौपाई छंद - श्रीमती आशा आजाद

संविधान के दिन हे आये, शुभ दिन ला सब आज मनाये।
बाबा अम्बेडकर ल जानौ, सब ले बड़का ज्ञानी मानौ।।

जात-पात के भेद मिटाके, सब मनखे ला नित अपनाके।
संविधान ले देश चलावौ, समता के अब भाव जगावौ।।

संविधान भारत के जानौ, कर्म ल अपने सुग्घर जानौ।
मत डारे के हक दिलवाए, मनखे-मनखे गुन ला गाये।।

नारी के सम्मान बढ़े जी, संविधान मा जेन गढ़े जी।
ऊँच-नीच ला झन अपनावौ, भाईचारा मन मा लावौ।।

भीमराव जी राहिन हीरा,दीन हीन के समझिन पीरा।
बाबा बौद्ध धरम अपनाके,पीर हरिन माटी मा जाके।।

संविधान ले सुमता आही, जात पात नइ राहै काही।
सुग्घर भारत अपने होही, शिक्षा के सब बीज ल बोही।।

विश्व म सबले बड़के ज्ञानी, अइसन कर दिन आज सयानी।
हिरदे मा सत्कार भरे हे, भारत के उद्धार करे हे।।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर, कोरबा छत्तीसगढ़
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Monday, November 25, 2019

सार छंद-आशा देशमुख



सार छंद-आशा देशमुख

दारू भठ्ठी गाँव गाँव मा, बिगड़त हे सब लइका।
बेंचत हे सब खेत खार ला, नइ बाँचत हे फइका।1।

रोज रोज अपराध बढ़त हे,नइहे काम ठिकाना।
बेंच डरे हे सबो जिनिस ला, नइहे एको दाना।

ये दारू के सेती घर घर,माते हावय झगरा।
कतको सच्चा होय तभो ले,बन जाथे वो लबरा।

नान नान लइका मन तक हा, दारू भठ्ठी जाथें।
खई खजाना लेबो कहिके ,घर ले बॉटल लाथें।

सबो जगह अब दारू चलथे, चाहे होवय छठ्ठी।
बर बिहाव अउ मँगनी झरनी,सब मा जावँय भठ्ठी।

कतको दुर्घटना के कारण ,बनगे हावय दारू।
काल नेवता पावत रहिथे,चेतय नहीँ समारू।

नवा जमाना कहिके लोगन,करँय नशा के सेवन।
सुघ्घर तन मन धन ला राखव, सादा राखव जेंवन।

नशा नाश के कारण बनगे,घर परिवार लुटागे।
दाना दाना बर तरसत हें, सुख अउ मान भगागे।

जे घर मुखिया दारू बेचय, वो घर कोन बचाये।
पैरावट मा आगी धरके,बीड़ी ला सुलगाये।

अपने रद्दा अपन गढ़व गा, कोन इहाँ समझाही।
अपन बुद्धि से काम करव सब,इही काम बस आही।

छंदकार --आशा देशमुख

Sunday, November 24, 2019

सार छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"



सार छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

जाति धरम मा बटगे मनखे, भेद लहू मा होगे।
मंदिर मस्जिद के फेरा मा,सोन चिरिइयाँ खोगे।।

सुमता के हे पेड़ सुखावत,कोंन रितोवय पानी।
इरखा चारी मा बीतत हे, मनखे के जिनगानी।।

अंधभक्ति के रोग बढ़े हे,आँख बँधाये पट्टी।
नीति धरम के बात इहाँ तो,लगथे सब ला खट्टी।।

कोंन दिशा मा जावत हावय,हमर देश के पीढ़ी।
रोजगार शिक्षा ला छोड़े,चढ़त धरम के सीढ़ी।।

धरम बड़े ना कभू करम ले,देव बड़े ना धामी।
बार बार मैं बोलत हावँव,बनव करम अनुगामी।।

संविधान ला पढ़ लिख समझौ,तब तो आगे बढ़हू।
बनके अफसर बाबू भाई,भाग देश के गढ़हू।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)

Friday, November 22, 2019

सार छन्द-सूर्यकांत गुप्ता


*मरिया हरिया अउ बर बिहाव*

सार छन्द-सूर्यकांत गुप्ता

मरिया हरिया बर बिहाव मा,कइसन खरचा होथे।
बोझा  जेकर  ऊपर  लदथे, मूड़ पकड़  के रोथे।।१।।
दाइज   दानव  दँवथे   जँउहर, होथे  अत्याचारी।
नारिच  हर  नारी  के  दुश्मन,बन के बारय नारी।।२।।
जहाँ अमीरी डारिस डेरा, मनखे मति फिर जाथे।
सत्  के  रद्दा ला दुरिहावत, अतलँग खूब मचाथे।।३।।
सान  बघारत  करथे   शादी,लइकन के वो अइसे।
लोक्खन के वो धनी जगत के,एक्के झन हे जइसे।।४।।
किसम किसम के जिनिस जहाँ वो, खाये के बनवाथे।
आधा   ले   जादा   बच  जाथे, ओला  वो  फिंकवाथे।।५।।
खुशी  मनाये  बर  नइये  जी,  काँही  हमला  हरजा।
हे अमीर  बर  बात  सहज गा, पर गरीब बर करजा।।६।।
मरिया  घलो इहाँ गरीब के,  दुख  ला  दुगना करथे।
किरिया  करम  करे  के बोझा,ढोवत दुखिया मरथे।।७।।
नइये   काबर   बंद  तेरही,   मृत्यु  भोज  करवाना।
सँगे  संग  मा  दान  पुन्न के,  चक्कर मा फँसवाना।।८।।
काबर  चद्दर  ले  बाहिर जी, गोड़े  अपन  लमाथौ।
करौ  ओतके खरचा भाई,  जतका तुमन कमाथौ।।९।।
करन चोचला बंद समाजिक, मिलके किरिया खाई।
कांत मरँय झन एक्को प्रानी, ध्यान रखन हम भाई।।१०।।

सूर्यकान्त गुप्ता, 'कान्त'
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

Thursday, November 21, 2019

सार छंद मनीराम साहू मितान

सार छंद मनीराम साहू मितान

सुनव सुनव जी सबो किसनहा, बइठव झन बन भैरा।
धनहा डोली खेतखार मा, बारव झन जी पैरा।

धुँगिया होथे फरी हवा मा, परदूषन हा बढ़थे।
एकर सेती भुँई ताव के, पारा हा बड़ चढ़थे।

संग साँस के तन मा जाथे, घात नँगत के करथे।
एती बर सब जीव जन्तु मन, फोकट फोकट मरथे।

जब सकेल के एला भइया, रखहू लेग बियारा।
भँइसा बइला गरू गाय के, बनही सुग्घर  चारा।

किंजरत रइथें एमन भइया, एती ओती देखव।
मर जाथें जी बिन चारा के, इन ला चिटिक सरेखव।

बाँधव घर मा सब झन पोंसव, चारा देव बरोबर।
सब ला मिलही दूध दही घी, खातू बर जी गोबर।

काम धरम के हावय एहा, करतब हे सब झन के।
सफल बनालव जिनगी ला जी, साँस मिले हे गन के।
                   
                      मनीराम साहू 'मितान'
                      कचलोन (सिमगा)
                      जिला- बलौदाबाजार
                      भाटापारा
                      छत्तीसगढ़

Wednesday, November 20, 2019

सार छंद -दिलीप वर्मा


सार छंद

मनखे के स्वारथ छोड़े ले,धरा सरग बन जाही।
जइसन सुख वो सोंचे नइ हे, तइसन तक सब पाही।

धरती पहिली सरग रहिस हे,रहिस देव के डेरा।
सरग परी मन घूमे आवय,जावय करके फेरा।

निरमल पावन जलधारा हर,कलकल गीत सुनावय।
चिरई चिरगुन पेड़ जनावर,सबके मन ला भावय।

नदिया के ये पानी जम्मो,आज प्रदूषित होगे।
मनखे के करनी ला देखव,सबो जीव हर भोगे।

स्वच्छ हवा तनमन ला मोहय,जीव जगत हरसावय।
जंगल झाड़ी बाग बगीचा,झूम झूम लहरावय।

आज पेड़ हर सबो कटागे, धुँआ गगन भर छागे।
मनखे के स्वारथ के सेती, अइसन दिन हर आगे।

माटी ले सोना उपजावन,आज रेत कस होगे।
बिना जहर अब कुछ नइ होवय,करनी मनखे भोगे।

पहिली जइसे दिन लायेबर, पेंड़ लगावव भाई।
जिनगी खातिर स्वारथ छोड़व,पाटव जिनगी खाई।

रचना-दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार

Tuesday, November 19, 2019

सार छंद-बोधनराम निषाद




सार छंद - बोधन राम निषादराज

(1) नवा जमाना आवय:-

नवा जमाना देखत  हावय, रसता  आगू  बढ़ गा।
दुनिया के सँग हाथ मिला लव, अपन करम ला गढ़ गा।।

नवा-नवा जी बोर होत हे,खेती सोना  होवय।
वाटर पम्प घलो हे चलथे,बारह महिना बोवय।।

आज सड़क मा चिखला नइहे,चिक्कन चाँदन चमकय।
घर कुरिया अब पक्का होगे,लेंटर वाले दमकय।।

पढ़े लिखे के राज आत हे,जम्मो सुघ्घर पढ़लव।
नोनी बाबू संगे सँग मा,अपनों जिनगी गढ़लव।।

तइहा के जी बात छोड़ दव,अब तो उहू नँदावय।
आगू आगू सोंचत राहव,नवा जमाना आवय।।

(2) माटी के हे काया :-

काया माया के बंधन मा,कब ले फँस के रहिबे।
तोर मोर के ए चक्कर मा,दुःख पिरा ला सहिबे।।

चार दिना के ए जिनगानी,हरि नाम तँय ले ले।
अब तो रख बिस्वास इहाँ जी,जिनगी भर तँय खेले।

कुछ तो करले भाव भजन ला,मानुष जोनी पाए।
बिरथा झन बोहा काया ला,बहुँते तँय इतराए।।

का लेके तँय आए जग में,अउ का लेके जाबे।
दया धरम सत् संगत करले,पाछू झन पछताबे।।

ए दुनिया मा काय धरे हे, एहा तो  बस  माया।
भजले राम नाम तँय संगी, माटी के हे काया।।

छंदकार-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)