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Friday, December 23, 2022

राष्ट्रीय किसान दिवस विशेष

 


राष्ट्रीय किसान दिवस विशेष


सवैया (किसान)

(1)

खूब कमाय किसान सबो पर हासिल तो पीरा बस आथे।

बादर हा बरसै नइ जी बरसै जब वो बिक्टे बरसाथे।

जाय सुखाय बिना जल के सह या बरसा ले वो सर जाथे।

मौसम ठीक रहै त कभू चट कीट पतंगा हा कर जाथे।


(2)

छूटय गा नइ संग कभू करजा रइथे मूड़ी लदकाये।

ले उँन पावयँ तो नइ जी चिरहा पटकू ले काम चलाये।

लाँघन गा रहि जाय घलो उँन भाग म बासी पेज लिखाये।

पालनहार कहाँय भले उँन रोज गरीबी भोग पहाये।


- मनीराम साहू 'मितान'

कचलोन (सिमगा )

जिला बलौदाबाजार भाटापारा 

छत्तीसगढ़ 493101

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सरसी छन्द

छलत रही दुनिया मा कब तक, संगी मोर किसान।

नाम बड़े अउ दर्शन छोटे, भुइँया के भगवान।।


करके लागा बोड़ी बपुरा, करथे खेती काम।

तरस एक दाना बर जाथे, अनदाता बस नाम।।


बीज भात अउ खातू महँगा, धरे मूड़ ला रोय। 

बेमौसम बरसा के सेती, नास फसल मन होय।।


होवय बरसा चाहे गरमी, लागय चाहे जाड़।

रोज कमाना काम इँखर हे, टूटत ले जी हाड़।।


भूखे प्यासे कई दिनन ले, बपुरामन सह जाय।

साथ देय जब ठगिया मौसम, तब दाना कुछ पाय।।


बिचौलियामन नजर गड़ाये, रहिथे रस्ता रोक।

औने पौने भाव म लेके, उनमन बेचय थोक।।


हे किसान मन के सेती जी, फलत फुलत व्यापार।

अँधरा बहरा देख बने हे, तब्भो ले सरकार।।


लदे पाँव सिर ऊपर कर्जा, बनके गड़थे शूल।

अइसन मा का करही बपुरा, जाथे फाँसी झूल।।


सुख सुविधा हा सदा इँखर ले, रहिथे कोसों दूर।

भूख गरीबी लाचारी मा, जीये बर मजबूर।।


करव भरोसा झन कखरो तुम, बनव अपन खुद ढ़ाल।

अपन हाथ मा जगन्नाथ हे, तभे सुधरही हाल।।


ज्ञानु

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*भुइयाँ के भगवान - हरिगीतिका छंद*


भुइयाँ बिराजे देख लौ,करथे किसानी काम ला।

एला कथे भगवान जी,सहिथे अबड़ जे घाम ला।।

बरसा रहै सर्दी रहै,बड़ भोंभरा रख पाँव ला।

बड़ काम करथे रात दिन,नइ खोजथे सुख छाँव ला।।


चिखला मताके खेत मा,अन सोन कस उपजात हे।

बासी पसइया नून ला,धर खार मा वो खात हे।।

ट्रेक्टर तको आगे तभो,बइला कमावै साथ मा।

कतको मशीनी छोड़ के,नाँगर चलावै हाथ मा।।


छत्तीसगढ़ भुइयाँ हमर,सोना कटोरा धान के।

कर लौ इँखर सम्मान ला,भगवान इन ला जान के।।

सब पेट भर खावत हवौ,इँखरे भरोसा प्रान हे।

दुख दर्द ला समझौ सबो,जग मा तभे तो मान हे।।


रचना:-

बोधन राम निषादराज

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किसान दिवस मा मोर रचना


सार छंद


तुँहर पसीना के कीमत ला ,कोनो नइ पहिचानै।

हे किसान हो तुँहर दरद ला ,धरती दाई जानै।


 साँझ बिहनिया एक बरोबर, घाम जाड़ हे संगी।

जग के थारी अन्न भरत हव,  तुँहरे घर मा तंगी।।


सुरुज देव ले पहली निशदिन ,तुँहर करम हा जागे।

हाथ पाँव के सुमत देख के, आलस दुरिहा भागे।।


बादर अउ आँखी के पानी ,जइसे बदे मितानी।

रहय नमक गुड़ एक तराजू, बीच झुलय जिनगानी।।


नांगर बइला रापा गैंती, हावय तुँहर चिन्हारी।

मिहनत हा जब संग रहय तब, हाँसय खेती बारी।।


लोहा के जुग जब ले आये, माटी बनथे सोना।

अब मशीन मन बइठे हावँय, जग के कोना कोना।।


ट्रेक्टर थ्रेसर हार्वेस्टर सब , मिलके करँय किसानी।

उन्नत खेती पोठ बीज मन, सुघ्घर लिखंय कहानी।।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा


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धान लुवाई- सार छंद


पींयर पींयर पैरा डोरी, धरके कोरी कोरी।

भारा बाँधे बर जावत हे, देख किसनहा होरी।।


चले संग मा धरके बासी, धान लुवे बर गोरी।

काटय धान मढ़ावय करपा, सुघ्घर ओरी ओरी।


चरपा चरपा करपा माढ़य, मुसवा करथे चोरी।

चिरई चिरगुन चहकत खाये, पइधे भैंसी खोरी।


भारा बाँधे होरी भैया, पाग मया के घोरी।

लानय भारा ला ब्यारा मा, गाड़ा मा झट जोरी।


बड़े बगुनिया मा बासी हे, चटनी भरे कटोरी।

बासी खाये धान लुवइया, मेड़ म माड़ी मोड़ी।


हाँस हाँस के सिला बिनत हें, लइकन बोरी बोरी।

अमली बोइर हवै मेड़ मा, खावत हें सब टोरी।


बर्रे बन रमकलिया खोजे, खेत मेड़ मा छोरी।

लाख लाखड़ी जामत हावय, घटकत हवै चनोरी।


आशा के दीया बन खरही, बाँटे नवा अँजोरी।

ददा ददरिया मन भर झोरे, दाइ सुनावै लोरी।


महिनत माँगे खेत किसानी, सहज बुता ए थोरी।

लादे पड़थे छाती पथरा, चले न दाँत निपोरी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Sunday, December 18, 2022

संत शिरोमणि परम् पूज्य गुरुघासीदास बाबा जी के 266वीं जयंती के बहुत बहुत बधाई- छंद परिवार डहर ले गुरु घासीदास जी ल भावपुष्प

संत  शिरोमणि परम् पूज्य गुरुघासीदास बाबा जी के 266वीं जयंती के बहुत बहुत बधाई- छंद परिवार डहर ले गुरु घासीदास जी ल भावपुष्प


विष्णु पद

 मनखे अव मनखे बनके सब, भाई हो रहना।

मनखे मनखे एक बरोबर, बाबा के कहना।।


मानवता हे सार जगत मा, सुग्घर ये गहना।

घाम रहय चाहे हो छइँहा, सुख दुख ला सहना।।


छुआछूत पाखंड ढोंग ले, दूर सदा रहना।

डरना नइये झूठ झूठ ला, सच ला सच कहना।।


हमर बनाये जाँति पाँति अउ, रीति नीति जग मा।

एक माँस हाँड़ा तन सबके, एक लहू रग मा।।


दीन गरीब ददा दाई के, सेवा खूब करौ।

अँधियारी बर दीया बनके, भाई रोज जरौ।।


सच बोलव सतनाम जपौ बस, काँटा पग पग मा।

बाबा घासीदास बताइन, सार इही जग मा।।


 ऊँचनीच के भेदभाव ला, छोडव अब करना।

बड़े होय अउ चाहे छोटे, सब ला हे मरना।।


भेद छोड़ मनखे मनखे मा, एक समान सबो।

जाँत-पाँत मा भले अलग हन, हम इंसान सबो।।


लाभ उठाये बर कतको मन, राग अलापत हे।

देख ठगावत मनखे मन ला, जीं हा कलपत हे।।


अपन अपन सब करम धरम मा, खुश सब ला रहना।

आँव बड़े मैं अउ तँय छोटे, नइये कुछ कहना।।


कखरो आस्था अउ पूजा सँग, झन खिलवाड़ करी।

अंधभक्त बन फेर इहाँ झन, तिल के ताड़ करी।।


सत्य अहिंसा के मारग मा, रोज हमन चलबो।

 स्वस्थ समाज बनाये खातिर, काम सदा करबो।।


ज्ञानु

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गुरु घासीदास जयंती पर विशेष

(1)

मनखे मनखे एक, इही हे सुख के मन्तर

जिहाँ नहीं हे भेद, उहीं असली जन-तन्तर

बाबा घासी दास, हमन ला इही बताइन

जग ला दे के ज्ञान, बने रद्दा देखाइन ।।

(2)

जिनगी के दिन चार, नसा पानी ला त्यागौ

दौलत माया जाल, दूर एखर ले भागौ।

जात-पात ला छोड़, सबो ला मनखे जानौ

बोलव जय सतनाम, अपन कीमत पहिचानौ।।

(3)

काम क्रोध मद मोह, बुराई लाथे भाई

मिहनत करके खाव, इही हे असल कमाई

सत्य अहिंसा प्रेम, दया करुणा रख जीयव

गुरु के सुग्घर गोठ, मान अमरित तुम पीयव।।


*अरुण कुमार निगम*

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गीत

तोरे दर्शन बर बाबा तरसत हवय नैना हा,

तरसत हवय नैना बाबा तरसत हवय नैना हा2


तॅ॑य दरश देजा बाबा ,  तॅ॑य दरस देजा बाबा ,

तोरे दर्शन बर तरसत हे नैना हा।,,,,,,


तोरे पंवरी परव बाबा , तोर पंवरी परव बाबा,

तोरे दर्शन बर तरसत हवय नैना,


दिसंबर के महिना बाबा बड़ा निक  लागय हो बड़ा निक लागय,

जोड़ा जैतखाम में बाबा धजा फहरागे हो धजा फहरागे।


 तॅ॑य दरस देजा बाबा, तॅ॑य दरस देजा बाबा,

तोरे दर्शन बर तरसत हवय नैना हा ।,,,,,,


अठारह दिसंबर के बाबा पाला चढ़हाबो हो पाला चढ़हाबो ,

मन के मनऊती बाबा नर नारी पाबो हो नर नारी पाबो।


 तॅ॑य दरस देजा बाबा तय दरस देजा बाबा,

तोरे दर्शन बर तरसत हवय नैना हा।


आजा बाबा आजा बाबा आजा बाबा हो

आजा बाबा आजा बाबा आजा बाबा हो।


 तॅ॑य दरस देजा बाबा  तॅ॑य दरस देजा बाबा,

तोरे दर्शन बर तरसत हवय नैना हा ।।


जितेन्द्र कुमार वर्मा वैद्य

खैरझिटी धमधा

8085993329

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बोधन जी: पंथी गीत


अमरौतीन के भाग्य ला, जगाए बाबा तँय,

मोर घासीदास बाबा।

ददा महँगू के भाग्य ला, जगाए बाबा तँय,

मोर घासीदास बाबा।।


घासीदास बाबा, मोर घासीदास बाबा।

घासीदास बाबा, मोर घासीदास बाबा।।


अमरौतीन के भाग्य ला, जगाए बाबा तँय,

मोर घासीदास बाबा।

ददा महँगू के भाग्य ला, जगाए बाबा तँय,

मोर घासीदास बाबा।।


पद(1)

ए दुनिया मा आए बाबा, सत् ला सिखाए तँय,

सत् ला सिखाए।

भूले भटके मनखे ला, रद्दा तँय दिखाए बाबा,

रद्दा तँय दिखाए।

ए रद्दा तँय दिखाए बाबा............


अमरौतीन के भाग्य ला, जगाए बाबा तँय,

मोर घासीदास बाबा।

ददा महँगू के भाग्य ला, जगाए बाबा तँय,

मोर घासीदास बाबा।।


पद(2)

घनघोर जंगल मा, धुनी ला रमाए बाबा,

धुनी ला रमाए।

सत् उपदेश देके, जग ला जगाए बाबा,

जग ला जगाए।

ए जग ला जगाए बाबा.........


अमरौतीन के भाग्य ला, जगाए बाबा तँय,

मोर घासीदास बाबा।

ददा महँगू के भाग्य ला, जगाए बाबा तँय,

मोर घासीदास बाबा।।


पद(3)

तोर चरनन मा मँय, माथ ला नवावँव बाबा,

माथ ला नवावँव।

जिनगी सुफल बनय, आशीष ला पावँव बाबा,

आशिष ला पावँव।।

ए आशीष ला पावँव...........


अमरौतीन के भाग्य ला, जगाए बाबा तँय,

मोर घासीदास बाबा।

ददा महँगू के भाग्य ला, जगाए बाबा तँय,

मोर घासीदास बाबा।।

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 आशा देशमुख: *गुरु घासीदास जयंती के बहुत बहुत बधाई ,शुभकामनाएं*


*सार छंद*


नर तन धरके सत हा खेलय ,अमरौतिन के कोरा।

तोला पाये बर जुग जुग ले, धरती करिस अगोरा।।


तेजवान अउ परम प्रतापी, हे महँगू के लाला।

दीया अइसे बारे जग मा ,हटगे भ्रम के जाला।।


घासीदास कहाये जग मा, सत्य पुरुष अवतारी।

सन्त शिरोमणि गुरुवर तोरे , महिमा हावय भारी।।


सादा जीवन सादा बोली , सादा हावय झंडा।

सत्य ज्ञान के अमरित बानी ,भरथे मन के हंडा।।


मनखे मनखे एक बरोबर ,एक सबो नर नारी।

बाबा के सब ज्ञान सूत्र मन ,मनखे बर हितकारी।।


अब्बड़ फइले रहिस जगत मा ,छुआ छूत बीमारी।

महा वैद्य बनके आये गुरु,   सत्य ध्वजा के धारी।


मानवता के पाठ पढाये, सुमता भाई चारा।

ऊँच नीच के गड्डा पाटे, दुखिया दीन अधारा।।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

18 -12 ,2022

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 आशा देशमुख: *गुरु घासीदास जयंती विशेषांक*


*बरवै छंद*


गुरू महिमा


अमरौतिन के कोरा ,खेले लाल।

महँगू के जिनगी ला ,करे निहाल।1।


सत हा जइसे चोला ,धरके आय।

ये जग मा गुरु घासी ,नाम कहाय।2।


सत्य नाम धारी गुरु ,घासीदास।

आज जनम दिन आये ,हे उल्लास।3।


मनखे मनखे हावय ,एक समान।

ये सन्देश दिए हे, गुरु गुनखान।4।


देव लोक कस पावन ,पुरी गिरौद।

सत्य समाधि लगावय ,धरती गोद।5।


जैतखाम  के महिमा ,काय बताँव।

येला जानव भैया ,सत के ठाँव।6।


निर्मल रखव आचरण ,नम व्यवहार।

जीवन हो सादा अउ ,उच्च विचार।7।


बिन दीया बिन बाती ,जोत जलाय।

गुरु अंतस अँंधियारी ,दूर भगाय।8।


अंतस करथे उज्जर ,गुरु के नाम।

पावन पबरित सुघ्घर ,गुरु के धाम।9।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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कमलेश प्रसाद 20 शरमाबाबू: 🌹बाबा घासीदास🌹

🙏🏻कुँडलियाँ🙏🏻


बाबा घासी दास के, महिमा अपरंपार |

जय बोलव सतनाम के, सुमिरँव बारंबार ||

सुमिरँव बारंबार, सत्य के गाड़े झंडा |

धर्म ध्वजा फहराय, असत ल मारे डंडा ||

बिगड़ी मोर बनाव, फूल हे काबा-काबा |

गुरु के चरण पखार, अमर हे घासी बाबा ||


योगी महँगू दास के, अमरौतिन के लाल |

कठिन तपस्या साधना, सादा चंदन भाल |

सादा चंदन भाल, रहे तैं शाकाहारी |

दे दुनिया संदेश, बगर गे महिमा भारी ||

एक हवय सब जीव, बनव मत लोभी भोगी |

कहिके घासी दास, अमर हे बाबा योगी ||


कमलेश प्रसाद शरमाबाबू कटंगी-गंडई जिला केसीजी

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जय बाबा गुरू घासीदास 

        (सार छंद)

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छत्तीसगढ़ के सुरुज बरोबर, सत अँजोर बगरइया। 

जन जन मा भाईचारा अउ, सुम्मत भाव जगइया। ।

मनखे सबो समान बताके, सत्यनाम गुन गाइन। 

मानवता के सुघ्घर रस्ता, दुनिया ला देखाइन। ।

अइसन संत सुजानी के हर, करम बचन हे पावन। 

बाबा घासीदास गुरु ला, जन जन करथें बंदन। ।

       जय सतनाम!!

दीपक निषाद -बनसाँकरा (सिमगा)

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*बरवै छंद*

    *बाबा गुरू घासीदास*


दाई अमरौतिन के, रहय दुलार।

करय ददा महँगू हा, मया अपार।। 


नाम रखिस दाई हा, घासीदास।

तोर रहिस बोली हा, बने मिठास।। 


पेड़ तरी धौरा के, धुनी रमाय।

आत्म ज्ञान ला पाके, संत कहाय।। 


कहे सबो ला झन कर, मदिरा पान।

सादा जीवन रखथे, सबके मान।। 


सब मनखे ला माने, एक समान।

सत्य नाम ला गाके, बने महान।। 


करँव तोर महिमा के, मँय गुनगान।

अनुज करत हे बाबा, तोर बखान।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

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 दोहा*


मनखे मनखे एक हे, कहगे घासीदास।

सत्यनाम के ज्ञान ले, बगरे हवै उजास।।


गुरु पूजा कर रोज के , मिल जाही भगवान ।

हंसा पार लगाय के , इही उदिम हे जान ।।


मन में रख बिसवाँस अउ , बने करम कर रोज ।

अपने अंतस भीतरी , परमपिता ला खोज ।।


जग माया हे मोहनी , मन ला हे भरमाय ।

सत्यनाम बलवान हे , सबला पार लगाय ।।


जाप करव सतनाम के , हंसा होही पार ।

कहगे घासीदास जी , सत्यनाम हे सार ।।


झूठ कभू झन बोलिहौ , नीयत राखव नेक।

भेदभाव झन राखिहौ , सब मनखे हे एक ।।


मनखे मनखे एक हे , लहू सबो के लाल ।

भेद करे मनखे सदा , बिरथा करे बवाल ।।


तन मन निर्मल राखके , सदा सुमर सतनाम।

दीप जलावव ज्ञान के , पावव सुख के धाम।।


मिठलबरा माया हवै , झन फँसहू जंजाल।

साँच डगर चलिहौ तभे , होय न बाँका बाल ।।


सादा जिनगी जे जिंयै , रखके नेक विचार।

बस अतकी तुम जानलौ , सत्यनाम हे सार।।


                     

                बृजलाल दावना

                     भैंसबोड़

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दोहा छंद- अशोक धीवर "जलक्षत्री"


महँगू के लाला हरे, अमरौतिन के पूत।

घासी नाम धराय हे, सत्यनाम के दूत।।

सतगुरु घासीदास के, हे संदेश महान।

भेदभाव हिंसा मिटे, होही सुखी जहान।।

झूठ लबारी बोल के, जग ला झन दव मात।

निंदा चारी ले बचव, मानौ गुरु के बात।।

कोनो मनखे माँस ला, मार जीव झन खाव।

गाँजा दारू भांग ला, पी के झन इतराव।।

परनारी माता समझ, नेक नजर ले देख।

सबो जीव बर कर दया, सब ला एक सरेख।।

सती प्रथा ला टोर के, विधवा करिन बिहाव।

मूर्ति पूजा बंद कर, पूजिस अंतस भाव।।

जैतखाम पूजा करव, सत् के जोत जलाय।

सादा जीवन जीव बर, रद्दा सुघर बताय।।

सत् के रद्दा जेन भी, चलही मनखे जात।

दुख दारिद मिट जाय जी, सिरतो कइथौं बात।।

जलक्षत्री हा पार ला, बाबा के नइ पाय।

देव समझ के पूज लँय, पाछू झन पछिताय।।



अशोक धीवर "जलक्षत्री"

रामनगर वार्ड क्र.-16 (रावणभाठा)

ग्राम- तुलसी (तिल्दा-नेवरा)

 जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)

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 दोहा छंद* मा


*मनखे हर मखने रहे, छोड़े सबो कलेश।*

*जग ला राह दिखाय बर, घासी के संदेश।।*


1. *सतनाम को मानो*


सुग्घर सबले सार हे, जग मा जी सतनाम।

सत के रद्दा जे चलय, बन जय बिगड़े काम।।


2. *मूर्ति पूजा मत करो*


दाई बाबू देव हे, खोजव झन भगवान।

मन के जाला झार रख, मूरत अंतस मान।।


3.*जाति-पाति के प्रपंच से दूर रहो*


ऊॅंच नीच के भेद ला, मूरख मन छोड़।

प्रभु के हन संतान सब, मीत मया रख जोड़।।


4.*मॉंसाहार मत करो जीव हत्या मत करो*


जेवन जेवव जीव झन, बनके मॉंसाहार।

प्राकृति सम सुग्घर रखे, खुशी रहे संसार।।


5. *पर स्त्री को माता मानो*


सरग बरोबर मातु के, हावै अॅंचरा छॉंव।

नारी के सम्मान ले, उज्जर रहिथे ठॉंव।।


6.*मदिरा सेवन मत करो*


पीयव झन दारू कभू, उजरे घर परिवार।

कुकुर सरी जिनगी रहे, बने सबो बर भार।।


7.*अपरान्ह खेत में मत जाओ*


जोत मझनिया खेत झन, थोड़कनी सुरताव।

बइला सॅंग सॅंग देह ला,  छइॅंहा बइठ जुड़ाव।।


*मानव समाज बर संत शिरोमणि गुरु घासीदास बाबा जी के अमरित बानी के संदेश * चौपाई छंद* मा


1. अमरित बानी

*सत्य ही मानव का आभूषण है*


बाबा घासी के हे कहना, सत्य नाम के पहिरव गहना।

हिरदे मा सतनाम बसालव, जाये के तुम राह बनालव।।


2. अमरित बानी

*मानव मानव एक समान*


मनखे मनखे सम तुम जानौ,भेद भाव झिन मन मा लानौ।।

बॉंटव समता भाई चारा, जात पात ला मेटव सारा।।


3. अमरित बानी

*गुरु बनाये जान के पानी पीये छान के*


अइसन गुरु के लेवल दीक्षा, करनी जेकर देवय शिक्षा।

करे अशिक्षा दुरिहा गुरुवर, मन मा भाव जगावय सुग्घर।।


4. अमरित बानी

*हीन भावना मन से हटाये*


भेद नीच अउ ऊॅंचा छोड़व, धरम करम ले रिस्ता जोड़व।।

सार जगत मा करनी जानौ, हीन मान झिन मन मा लानौ।।


5. अमरित बानी

 *सत्य और ईमान में अटल रहें*


सत्य सार हे जग बलशाली, लाये जिनगी मा खुशहाली।

झूठ लबारी धक्का खाथे, मान कहॉं अउ वोहर पाथे।।


6. अमरित बानी

*जैसा खाये अन्न वैसा बनेगा मन*


मिहनत के रोटी सुख लाथे, रोग दोष ला काट भगाये।

अउ येहर होथे गुणकारी, भर भर खावव रोजे थारी।।


7. अमरित बानी 

*मेहनत ईमान का रोटी सुख का आधार*


मिहनत करके तुम खावव अन, सदा सुखी होही तन अउ मन।

रोग दोष नइ कभू सतावय, गार पसीना जेहर खावय।।


8. अमरित बानी

*क्रोध और बैर को जो त्याग देता है उसका हर कार्य बन जाता है*


छिन छिन मा जे गुस्सा करथे, बैर बढ़ाके भरभर जरथे। 

क्रोध बैर जे मन नइ लावय, काम सुफल वो झट कर जावय।।


9. अमरित बानी

*दान कभी नइ माॅगना चाहिए, और न ही उधार लेना-देना चाहिए*


दान मॉंग जे फोकट खाथे, चोरी बइमानी ल बढ़ाथे।

करजा बोहे जिगनी जीथे, महुरा अपमानी के पीथे।।9।।


10.  अमरित बानी

*दूसरे का धन हमारे लिए कोड़ी के समान है*

 

रोजे जाॅंगर पेर कमावव, पर के धन मत नजर गड़ावव।।

पर के धन ला माटी जानौ, लोभ मोह झिन मन मा सानौ।।


11. अमरित बानी

*मेहमान को साहेब के समान समझो*


गुरतुर बानी पहुॅंना बॉंटव, छोटे बड़का मा मत छॉंटव।

प्रेम करव जइसे के भगवन, रखथे सदा भगत बर नित मन।।


12. अमरित बानी

 *सगा के जबर बैरी सगा होथे*


निज भाई के संग लड़व झन, भाव एकता के राखव मन।

काम इही दुख दुख मा आही, जिनगी ला अउ सरग बनाही।।


13. अमरित बानी

*सबर के फल मीठा होथे*


करनी कर तॅंय धीरज धर रे, आही बेरा लगही फर रे।

जिनगी हर तोरो महहाही, नवा बिहनिया कारज लाही।।


14. अमरित बानी

*मया के बंधना असली ये*


मनखे मनखे सबो बरोबर, जुरमिल राहव हिलमिल सुग्घर।

जिनगी बिरथा मया बिना हे, जइसे तन ला लगे घुना हे।।


15. अमरीत बानी

*दाई-ददा अऊ गुरु ला सनमान देवव*


मान रखव गुरु बाबू दाई, जिनगी गढ़थे ये सुखदाई।

गड़न पॉंव नइ दय कॉंटा, सरग घलो हे तोरे बॉंटा।।


16. अमरित बानी

*दाई ह दाई आय, मुरही गाय के दूध झन निकालहव*


रखे माह नौ पेट सरेखे, तोर खुशी  निज हित नइ देखे।

अमरित बरसे छाती जेकर, आय बुढ़ापा दुख मत झिन भर।।


17. अमरित बानी

*इही जनम ला सुधारना सॉंचा हे*


मनखे जनम सार हे जानौ, भेद पाप पुन मा तुम मानौ।

आय जाय के राह छुड़ाले, सुघर मुक्ति के राह बनाले।।


18.अमरित बानी

*सतनाम घट घट मा समाय हे*


हे सतनाम खड़े घट घट मा, बसे धरा अउ अगास सत मा।

सुन सतनामी महिमा अड़बड़, सदाचार के जिनगी बड़हर।।


19. अमरित बानी

*गियान के पंथ किरपान के धार ए*


बिरथा जिनगी हे बिन शिक्षा, जइसे मॉंग चलत हे भिक्षा।

ज्ञान पंथ निज हक अधिकारी, जस किरपान धार बड़ भारी।।


20.अमरित बानी

*एक धूबा मारे तुहु तोरे बरोबर आय*


 नीच काज हे करनी जेकर, कर अपमान घलो झन ओकर।

पथरा मारे चिखला छटके, दाग बने रहिथे ये चटके।


21. अमरित बानी

*मोला देख, तोला देख, बेर कुबेर देख, जेन हक तेन ला बॉंट बिराज के खा ले।*


होय नहीं सुख यश धन ले मन, बड़हर मन ला तॅंय देख जतन। 

सब हक रहे पेट भर थारी, खाव बॉंट सम तुम सॅंगवारी ।।

खाव नॅंगा हक झन दूसर के, 



 मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

💐💐💐💐9💐💐💐💐💐💐

राजेश निषाद: ।।बाबा घासीदास।। ( चौपई छंद)


सुन ले बाबा घासीदास,दिन हवय गा अड़बड़ खास।

करत हवन गा पूजा तोर,मँहगू के तैं लाला मोर।।


कतका करबो तोर बखान,महिमा हावय भारी जान।

सत के मारग ला तैं जान,अपन बनाये गा पहिचान।।


जात पात के भेद मिटाय, सत के बाबा अलख जगाय।

मनखे मनखे एक बताय,भाई चारा रहे सिखाय।।


नशा पान ला सबझन छोड़,राखव सबले नाता जोड़।

सत के राहव दिया जलाय, अंतस बाबा हवय समाय।।


सब ला बाबा दे हे ज्ञान,अमरित बानी जेकर जान।

सत के मारग जे बतलाय,धरम धजा ला जी फहराय।।


गिरौदपुरी हवय जी धाम,जपलव संगी सब सतनाम।

सुनलव बाबा के संदेश,सबके मिट जाही गा क्लेश।।


रचनाकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर

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मनीराम साहू: घनाक्षरी मनहरन (सत के पुजैया गुरु)


सत के पुजैया गुरु, सूते के जगैया गुरु, करे भेद भिथिया के, तहीं हा उजार गा।

मरहा के सँगवारी, मुरहा के हितकारी, समता के दीया बारे, मेंटे अँधियार गा।

मनुषता मान करे, अहिंसा के गान करे, जात-पात कचरा ला, भूर्री देये बार गा।

बोले अमरित बानी, बबा हे अगमजानी, पैलगी डंडा-शरन, तोला बारम्बार गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

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आल्हा छंद - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

हमर राज के  माटी मा जी,बाबा लेइस हे अवतार।
सत के सादा झंडा धरके,रीत नीत ला दिये सुधार।

जात पात अउ छुआ छूत बर, खुदे बनिस बाबा हथियार।
जग के खातिर अपने सुख ला,बाबा घासी दिये बिसार।

रूढ़िवाद ला मेटे खातिर,बबा करिस बढ़ चढ़ के काम।
हमर राज के कण कण मा जी,बसे हवे घासी के नाम।

बानी मा नित मिश्री घोरे,धरम करम के अलख जगाय।
मनखे मनखे एक बता के,सुम्मत के रद्दा देखाय।

संत हंस कस उज्जर चोला,गूढ़ ग्यान के गुरुवर खान।
अँवरा धँवरा पेड़ तरी मा,बाँटे सबला सत के ज्ञान।

जंगल झाड़ी ठिहा ठिकाना,बघवा भलवा घलो मितान।
धरे कमण्डल मा गंगा ला,बाबा लेवय जब कुछु ठान।

झूठ बसे झन मुँह मा कखरो,झन खावव जी मदिरा माँस।
बाबा घासी जग ला बोले,करम करव निक जी नित हाँस।

दुखिया मनके बनव सहारा,मया बढ़ा लौ बध लौ मीत।
मनखे मनखे काबर लड़ना,गावव सब झन मिलके  गीत।

सत के ध्वजा सदा लहरावय,सदा रहे घासी के नाँव।

जेखर बानी अमरित घोरे,ओखर मैं महिमा ला गाँव।


रचनाकार -  श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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Monday, December 12, 2022

अमर शहीद वीर नरायण ल समर्पित कविता

  आल्हा छंद- *अमर शहीद वीर नरायण*


नमन करत हौं वो मइयाँ ला, दिस जनम नरायण वीर।

नमन करत हौं वो भुइयाँ ला, जेकर पावन माटी नीर।।


सन सत्रह सौ पँचानबे अउ, लगन घड़ी पावन शुभ वार।

जन- जन के तकलीफ हरे बर, वीर नरायण लिस अवतार।।


धाम गिरौदपुरी के मेड़ो, गाँव जुड़े हे सोनाखान।

राजा सोनाखनिहा के घर, जनम धरिस ये पूत महान।।


रहिस गोंडवाना पुरख़ा अउ, सारंगढ़ के माल गुजार।

राजगोंड ले बिंझवार बन, वीर नरायण भरे हुँकार।।


स्वतंत्रता पहिली सेनानी, छत्तीसगढ़ के मान बढ़ाय।

गैर फिरंगी से लड़-लड़ जे, जल जंगल अधिकार दिलाय।।


सात हाथ कद काठी ऊँचा, बदन गठीला बड़ मन भाय।

भुजा बँधाये पारस चमके, देखत मा बैरी थर्राय।।


वीर नरायण पराक्रमी अउ, शूरवीर गुरु बालकदास।

सँगवारी सुख दुख के दून्नों, रहय मित्रता खासमखास।।


शोभा बरनन कहत बनय जब, घोड़ा मा होवय असवार।

धर्मी राजा के होवय तब, गली-गली मा जय जयकार।।


दीन-दुखी के सदा हितैषी, मातृभूमि के रहय मितान।

जल जंगल भुइयाँ के रक्षक, समझे जे हा दर्द किसान।।


सन अट्ठारह सौ छप्पन मा, पड़े रहय जब घोर अकाल।

फटे अदरमा वीर नरायण, देख प्रजा दुख मा बेहाल।।


साथ धरे तब किसान मन ला, गये गाँव वो हा कसडोल।

लूटे अन्न जमाखोरी के, वीर नरायण धावा बोल।।


करिस शिकायत जमाखोर मन, अंग्रेजन इलियट दरबार।

पकड़ निकालव वीर नरायण, सजा दिलावव तुम सरकार।।


भनक लगिस जब वीर नरायण, पाछू पड़गे हे सरकार।

कुर्रूपाट डोंगरी मा छुपगे, जिहाँ कटाकट वन भरमार।।


खोजे निकलिस गुरु बालक तब, अपन सखा के प्राण बचाय।

रखिस छुपा भंडारपुरी मा, कुर्रूपाट डोंगरी ले लाय।।


वीर नरायण के बहनोई, बनके भारी तब गद्दार।

खुफिया बन बंधक बनवा दिस, पता बता इलियट सरकार।।


स्तम्भ चौक रायपुर शहर के, फाँसी मा तब दिस लटकाय।

वीर नरायण शहीद होगे, लिखत लिखत आँसू भर आय।।


अट्ठारह सौ सन्तावन के, काल रात्रि बनगे इतिहास।

खो के बेटा वीर नरायण, भारत भुइयाँ हवे उदास।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 10/12/2021

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वीर नारायण

रही रही सुरता आवत हे, गाथा अमर कहानी।

मातृभूमि के खातिर देदिस, हँसत अपन बलिदानी।।


नाम वीर नारायण सिंह हे, झुलगे हाँसत फाँसी।

आथे जब जब सुरता संगी, बस आथे रोवासी।।


वीर साहसी योद्धा अड़बड़, परजा मनके हितवा।

काल बने सँउहत दुश्मन बर, जन जन के वो मितवा।।


इज्जत बेटी बहिनी ऊपर, कोनो आँख गड़ावै।

गली गली मा दउड़ा दउड़ा, ओला मार गिरावै।।


दीन हीन दुखिया गरीब के, सदा रहय सँगवारी।

आजादी ला पाये खातिर, लड़िस लड़ाई भारी।


शत शत नमन वीर योद्धा ला, हम गरीब के पागी।

रहय तोर छाती मा धधकत, दुश्मन मन बर आगी।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी

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वीर नारायण 🙏🏻


चढ़के फाँसी झूलगे, दीस अपन बलिदान |

बेटा सोना खान के, भारत माँ के शान ||

भारत माँ के शान, रहे तैं अघवा बेटा |

थर्रागे अंग्रेज, परे जब तोर सपेटा ||

अद्भुत साहस तोर, देख वो भारी भड़के |

नारायण वो वीर, अमर हे फाँसी चढ़के ||

कमलेश प्रसाद शरमाबाबू

💐💐💐💐💐💐

: *शहीद वीरनारायण  (दोहा छंद)*


छाती जब्बर तोर गा,  धरे हाथ तलवार ।

रामसाय के पूत ला,  शत-शत हे जोहार ।।


देश बचाए बर अपन, छोड़े घर परिवार ।

अंग्रेजी सत्ता पलट, करे अबड़ ललकार ।।


खरतर बेटा देश बर,  देहे तँय हा प्रान ।

अंग्रेजन ले तँय लड़े,  बनगे पूत महान ।।


रन भुइयाँ मा तँय लड़े, बइरी मन ला मार ।

मान  तिरंगा  के  रखे,  बनके गा रखवार ।।


थर-थर काँपै देख के, सिंह सहीं गा चाल ।

सउँहत आगू तँय खड़े, बनके सबके काल ।।


माखन बनिया सेठ घर,  लूटे  चाउँर  दाल ।

बाँटे सबो किसान ला,  टारे घोर अकाल ।।


देशभक्ति मन मा भरे,  देहे गा बलिदान ।

काम वतन के तँय करे, जन्मे सोनाखान ।।


माटी सोनाखान के, बनगे पबरित धाम ।

बीर नरायन तोर गा, जग मा होगे नाम ।।


*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम-चेपा, पाली, जिला-कोरबा(छ.ग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

जगदीश जी: छत्तीसगढ़ के गांधी - पंडित सुन्दरलाल शर्मा


आल्हा छन्द :- 


गुरु गणपति के ध्यान लगाके, मात शारदा चरन मनाँव।

करव कृपा सबझन मिल आके, हाथ जोड़ के परथंव पाँव।।

पावन भुइँया ये भारत के, वीर पुरुष जहँ ठोंके ताल।

पावन छत्तीसगढ़ माटी मा, जन्मे पंडित सुंदरलाल।।

गरियाबंद जिला मा राजिम, तीर बसे हे चमसुर गाँव।

पिता हवय जयलाल तिवारी, माता देवमती हे नाँव।।

पौष कृष्ण अमावस महीना, संवत उन्नीस सौ अड़तीस।

सन अट्ठारह सौ इक्यासी, जनम लिए पाके आशीष।।

पिता बहुत अच्छा  कविवर अउ, दूर-दूर तक जेकर नाम।

वो संगीत के सुघर ज्ञाता, ज्ञानी सज्जन नेकी काम।।


पढ़े मिडिल तक वो चमसुर मा, बालक सुंदर मने लगाय।

आगू के शिक्षा बर ओकर, गुरुजी घर मा आय पढ़ाय।।

अँगरेजी सँग बंगला उड़िया, सिखय मराठी भाषा नीक।

बड़ा सुघर वो चित्र बनावय, मूरति घलो बनावय ठीक।।

कविता अउ नाटक ले ओहा, लोगन मन ला सुघर जगाय।

देश गुलामी दूर करे बर, रण भुइँया मा कूदे आय।।

ब्याह बोधनी संग रचाये, आगू जिनगी संग बिताय।

पुत्र नीलमणि विद्याभूषण, छोटे से परिवार बनाय।

जात पात ला दूर करे बर, आंदोलन वो अबड़ चलाय।

मनखे ला अधिकार दिलाये, छुआछूत ला दूर भगाय।।


छोटेलाल नहर सत्याग्रह, आंदोलन करथे कण्डेल।

साथ दिये ओला पंडित जी, संकट बाधा सब ला झेल।।

गाँधी जी ला छत्तीसगढ़ मा, पंडित सुंदरलाल ह लाय।

माँग होय पूरा तब सबके, सबो किसान बड़ा सुख पाय।।

जनहित खातिर मा पंडित जी, कतको बार जेल भी जाय।

सबझन ला अधिकार दिलाये, सब मनखे ला फेर जगाय।

साहित घलो म नाम हवय बड़, छत्तीसगढ़ के नाम जगाय।

लिखे दानलीला वो सुग्घर, बड़ा नाम जेकर ले पाय।।

दिये उपाधि मान मा ओकर, छत्तीसगढ़ के गाँधी आज।

छत्तीसगढ़ साहित के अगुवा, मन मा करे सबो के राज।।


जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)

ग्राम- कड़ार, पोस्ट.- दतरेंगी, व्हाया- भाटापारा,

जिला - बलौदाबाजार-भाटापारा (छ.ग.)

Mob. 9009128538

💐💐💐💐💐💐💐💐

[श्लेष चन्द्राकर 9: *शहीद वीर नारायण सिंह जी ला शत् शत् नमन!*🙏


*सार छंद आधारित गीत*


अंतस मा जन-जन के बस गिन, बने काम ओ कर के।

अमर वीर नारायण होगिन, ये भुँइया बर मर के।।


देश गुलामी के साँकल मा, रहिस हवय बंधाये।

अँगरेजन मन जनमानस ला, बिक्कट रोज सताये।।

बघवा हा तब सब ला बोलिन, नइ जीयन डर-डर के।

अमर वीर नारायण होगिन...


मनखे मन ला एक करिन हें, टूटे माला जोड़िन।

तुतरु बजाइन आजीदी बर, शुभ के नरियर फोड़िन।।

अँगरेजन ले टक्कर लिन हें, फरसा-भाला धर के।

अमर वीर नारायण होगिन...


महा मनुख के फोटू धर के, गली-गली मा घूमव।

जिहाँ शहादत दिन हें अगवा, वो माटी ला चूमव।।

अँधियारा ले बने लड़िन हें, दियना जइसे बर के।

अमर वीर नारायण होगिन, ये भुँइया बर मर के।।


✍️ श्लेष चन्द्राकर,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

💐💐💐💐💐💐💐

गुरु वंदना (लावणी छंद)

 गुरु वंदना

               (लावणी छंद)


हे गुरुवर जी  हाथ जोर के,

                तुँहरे गुन ला गावँव मँय।

भवसागर के पार करइया,

             चरनन माथ नवावँव मँय।।


अँगरी धरके तहीं सिखाए,

                 आखर चिनहा पाए हँव।

मँय अड़हा अज्ञानी गुरुवर,

              मन मा आस जगाए हँव।।

तुँहर चरन रज चंदन जइसे,

              मूड़ी  माथ  लगावँव मँय।

हे गुरुवर जी हाथ जोर के.............


ज्ञान बिना अँधियारी ये जग,

                भटकत  दुनिया सारी हे।

तहीं हाथ  धर  ज्ञान बताये,

               तन मन मा उजियारी हे।।

ज्ञान भक्ति पबरित महिमा ला,

             जन-जन मा बगरावँव मँय।

हे गुरुवर जी हाथ जोर के............


हरि  दरशन  रद्दा  देखइया,

               जिनगी सुफल बनाए हँव।

विपदा भारी कतको आए,

               मन  मा  धीर बँधाए हँव।।

तुँहरे चरन छोड़ गुरुवर जी,

             कोन डगर अब जावँव मँय।

हे गुरुवर जी हाथ जोर के...............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

शहीद वीर नारायण सिंह जी ला शत् शत् नमन!* 🙏

 *शहीद वीर नारायण सिंह जी ला शत् शत् नमन!* 🙏


*सार छंद आधारित गीत*


अंतस मा जन-जन के बस गिन, बने काम ओ कर के।

अमर वीर नारायण होगिन, ये भुँइया बर मर के।।


देश गुलामी के साँकल मा, रहिस हवय बंधाये।

अँगरेजन मन जनमानस ला, बिक्कट रोज सताये।।

बघवा हा तब सब ला बोलिन, नइ जीयन डर-डर के।

अमर वीर नारायण होगिन...


मनखे मन ला एक करिन हें, टूटे माला जोड़िन।

तुतरु बजाइन आजीदी बर, शुभ के नरियर फोड़िन।।

अँगरेजन ले टक्कर लिन हें, फरसा-भाला धर के।

अमर वीर नारायण होगिन...


महा मनुख के फोटू धर के, गली-गली मा घूमव।

जिहाँ शहादत दिन हें अगवा, वो माटी ला चूमव।।

अँधियारा ले बने लड़िन हें, दियना जइसे बर के।

अमर वीर नारायण होगिन, ये भुँइया बर मर के।।


✍️ श्लेष चन्द्राकर,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़ के गांधी - पंडित सुन्दरलाल शर्मा

 छत्तीसगढ़ के गांधी - पंडित सुन्दरलाल शर्मा


आल्हा छन्द :- 


गुरु गणपति के ध्यान लगाके, मात शारदा चरन मनाँव।

करव कृपा सबझन मिल आके, हाथ जोड़ के परथंव पाँव।।

पावन भुइँया ये भारत के, वीर पुरुष जहँ ठोंके ताल।

पावन छत्तीसगढ़ माटी मा, जन्मे पंडित सुंदरलाल।।

गरियाबंद जिला मा राजिम, तीर बसे हे चमसुर गाँव।

पिता हवय जयलाल तिवारी, माता देवमती हे नाँव।।

पौष कृष्ण अमावस महीना, संवत उन्नीस सौ अड़तीस।

सन अट्ठारह सौ इक्यासी, जनम लिए पाके आशीष।।

पिता बहुत अच्छा  कविवर अउ, दूर-दूर तक जेकर नाम।

वो संगीत के सुघर ज्ञाता, ज्ञानी सज्जन नेकी काम।।


पढ़े मिडिल तक वो चमसुर मा, बालक सुंदर मने लगाय।

आगू के शिक्षा बर ओकर, गुरुजी घर मा आय पढ़ाय।।

अँगरेजी सँग बंगला उड़िया, सिखय मराठी भाषा नीक।

बड़ा सुघर वो चित्र बनावय, मूरति घलो बनावय ठीक।।

कविता अउ नाटक ले ओहा, लोगन मन ला सुघर जगाय।

देश गुलामी दूर करे बर, रण भुइँया मा कूदे आय।।

ब्याह बोधनी संग रचाये, आगू जिनगी संग बिताय।

पुत्र नीलमणि विद्याभूषण, छोटे से परिवार बनाय।

जात पात ला दूर करे बर, आंदोलन वो अबड़ चलाय।

मनखे ला अधिकार दिलाये, छुआछूत ला दूर भगाय।।


छोटेलाल नहर सत्याग्रह, आंदोलन करथे कण्डेल।

साथ दिये ओला पंडित जी, संकट बाधा सब ला झेल।।

गाँधी जी ला छत्तीसगढ़ मा, पंडित सुंदरलाल ह लाय।

माँग होय पूरा तब सबके, सबो किसान बड़ा सुख पाय।।

जनहित खातिर मा पंडित जी, कतको बार जेल भी जाय।

सबझन ला अधिकार दिलाये, सब मनखे ला फेर जगाय।

साहित घलो म नाम हवय बड़, छत्तीसगढ़ के नाम जगाय।

लिखे दानलीला वो सुग्घर, बड़ा नाम जेकर ले पाय।।

दिये उपाधि मान मा ओकर, छत्तीसगढ़ के गाँधी आज।

छत्तीसगढ़ साहित के अगुवा, मन मा करे सबो के राज।।


जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)

ग्राम- कड़ार, पोस्ट.- दतरेंगी, व्हाया- भाटापारा,

जिला - बलौदाबाजार-भाटापारा (छ.ग.)

Mob. 9009128538

Tuesday, November 1, 2022

छत्तीसगढ़ राज स्थापना दिवस के अवसर मा छंदबद्ध भाव पुष्प

 

फोटो- धनेश साहू

छत्तीसगढ़ राज स्थापना दिवस के अवसर मा छंदबद्ध भाव पुष्प

*छत्तीसगढ़ महतारी(हरिगीतिका)*


छत्तीसगढ़ देखव हमर,भाखा हवै सुग्घर सखा।

मनखे रथे सिधवा इहाँ,तन मन घलो उज्जर सखा।।

परदेशिया आ के सबो,सुख पाय के रतिया जथे।

अन धन सबो भंडार ला,देखत मुँहूँ पनिया जथे।।


छाए इहाँ बन डोंगरी,हरियर दिखै सब खार जी।

चिखला मतावय खेत मा,बनिहार जोड़ीदार जी।।

सोना बरोबर धान अउ,सोया मटर गेहूँ चना।

सब पोठ कोठी हे भरे,आ देख लौ नइ हे मना।।


बमलेश्वरी    दन्तेश्वरी,   दाई  महामाया  इहाँ।

बइठे भवानी शीतला,शीतल करै काया इहाँ।।

गावय जँवारा जस इहाँ,करमा ददरिया अउ सुआ।

दाई ददा मुस्काय जी,पानी भरै मिल सब कुँआ।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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*होगे नवा बिहान*

(हरिपद/सुमंदर छंद मा गीत)

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छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।

धान कटोरा छलकत हावै, हें खुशहाल किसान।।


अपन हाथ मा बागडोर हे, खुदे गढ़त हन भाग।

लाड़ू सहीं बँधाये हावन, भिंजे सुमत के पाग।

जागे हावै गाँव-गाँव हा,जागे हे गौठान।

छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।


हे विकास के झंडा फहरे,दिल्ली नइये दूर।

अस्पताल अउ सड़क बनत हें,बिजली हे भरपूर।

कमी पाठशाला के नइये, दे बर शिक्षा दान।

छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।


सरी जगत मा उभरत हावैं, हमरो रीति-रिवाज।

लोक कला अउ लोक परब बर,होइस सुग्घर काज।

छत्तीसगढ़िया संस्कृति के, उज्जर हावै शान।

छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।


एक नवम्बर दू हजार सन,हावै तिथि बड़ खास।

श्रीयुत अटल बिहारी जी हा, रचिस नवा इतिहास।

छत्तीसगढ़ ला राज्य बनाके,देइस वो सम्मान।

छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।


कभू बिसारन झन तो संगी, पुरखा मन के त्याग।

धधकत राहै ऊँकर बारे,स्वाभिमान के आग।

देखौ इहाँ कहूँ झन झपटै, शोषण के चेचान।

छत्तीसगढ़ के राज्य बने ले, होगे नवा बिहान।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद ,छत्तीसगढ़

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 *सरसी छंद*

जबले छत्तीसगढ़ बनिस हे, होइस नवा बिहान।

नाम बगरगे जग मा एकर, हवे देश के शान।। 


सुवा ददरिया करमा पंथी, सबो दहर हे शोर।

होगे बाइस बछर बने जी, होवत हवे सँजोर।।

चढ़त निसेनी हे विकास के, होवत अब पहचान।

नाम बगरगे जग मा एकर, हवे देश के शान।। 


छत्तीसगढ़ी जग मा बगरगे, होवत हावय पोठ।

सबो लजावँय गोठियाय बर, सबो करत अब गोठ।।

कलाकार अउ कलमकार मन, आज बढ़ावत मान।

नाम बगरगे जग मा एकर, हवे देश के शान।। 


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला कोरबा*

*छंद सत्र १४*

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छत्तीसगढ़ के महिमा

*चौपाई छंद*


मोर छत्तीसगढ़ महतारी | धान कटोरा तोर चिन्हारी || 

लोहा सोना उगले भुइयाँ | कोरा मा रतन भरे भारी ||


अपन छत्तीसगढ़िया मन के | अटल बिहारी धूरी बनके

||

एक नवा इतिहास रचिन हें | हमर राज्य के नाम रखिन हें ||

दू हजार एक नवंबर मा | मिलिस मान पबरित अवसर मा || 

आज राज्य हा दर्जा पाइस | दुनिया भर मा नाम कमाइस  ||

रिगबिग ये दिखै संगवारी | दीया बारौ अपन दुवारी ||

मोर छत्तीसगढ़ महतारी | धान कटोरा तोर चिन्हारी || 

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तोर कोख मा आनी बानी | राज करैं सब राजा रानी || 

ऋषि मुनि के पोठ जुबानी | धार बहै हे गीत कहानी || 

कौशल्या के राम कहानी | महानदी के अमरित पानी || 

हे जल जंगल अउ रुख राई || तोरे गहना मोरे दाई ||

माटी तोर कोख महतारी | महकय चंदन के फुलवारी || 

मोर छत्तीसगढ़ महतारी | धान कटोरा तोर चिन्हारी || 

,,,,,


सब तेंदू चार खैर कत्था | भरै तोर जंगल मा जत्था ||

बहिथे नदिया झरना कल-कल | तोर मया हे निर्मल छल-छल ||

चिरई चहकय बड़े बिहनिया | आमा फर मा लदै डहनिया ||

पुरवइया मा डोले अचरा | चरण पखारै भाई भचरा ||

तोर नाम होवय बहु भारी | सबके दाई राज दुलारी ||

मोर छत्तीसगढ़ महतारी | धान कटोरा तोर चिन्हारी || 

,,,,,,,,,,


पद्मा साहू "पर्वणी"

खैरागढ़

जिला खैरागढ़ छुईखदान गंडई

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लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)


पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया।

अंतर्मन ला पबरित रख अउ, चाल चलन ला कर बढ़िया।


धरम करम धर जिनगी जीथें, सत के नित थामें झंडा।

खेत खार परिवार पार के, सेवा करथें बन पंडा।

मनुष मनुष ला एक मानथें, बुनें नहीं ताना बाना।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, नोहे ये कोनो हाना।

छत्तीगढ़िया के परिभाषा, दानी जइसे औघड़िया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


माटी ला महतारी कइथें, गारी कइथें चारी ला।

हाड़ टोड़ के सरग बनाथें, घर दुवार बन बारी ला।

देखावा ले दुरिहा रइथें, नइ जोरो धन बन जादा।

सिधवा मनखे बनके सबदिन, जीथें बस जिनगी सादा।

मेल मया मन माटी सँग मा, ले सेल्फी बस झन मड़िया।

पाटी पागा बपारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


कतको दुःख समाये रइथे, लाली लुगा किनारी मा।

महुर मेंहदी टिकली फुँदरी, लाल रचे कट आरी मा।

सुवा ददरिया करमा साल्हो, दवा दुःख पीरा के ए।

महल अटारी सब माटी ए, काया बस हीरा के ए।

सबदिन चमकन दे बस चमचम, जान बूझके झन करिया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


*छत्तीसगढ़िया(414) ल मात्रा भार मिलाय के सेती छत्तिसगढ़िया(44) पढ़े के कृपा करहू*

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*छत्तीसगढ राज्य स्थापना दिवस* के हार्दिक बधाई 💐💐🙏

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सार छंद गीत 

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जिहाँ मया सुमता उछाव के, जोत जँवारा जागय। ।

छत्तीसगढ के पबरित भुइयाँ, सरग बरोबर लागय। ।


उड़य अबीर गुलाल रंग बड़, मीठ मधुर बोली के। 

हर रतिहा जइसे देवारी, हर दिन हा होली के। ।

करँय नाच गम्मत अउ पंथी,गदगद सबके अंतस। 

करमा सुआ ददरिया के सुर, ले निकलै सुमता रस। ।

मिहनत के जस गीत बजे ले, जम्मो आलस भागँय।

छत्तीसगढ------


इहाँ रहइया मनखे मन हा, सिधवा भले कहावँय। 

लेकिन बलअउ बुध मा ककरो,ले कमती नइ हावँय। ।

जुरमिल अपन राज ला सरलग, आघू ले जाए बर। 

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, बनके दिखलाए बर।।

सात बहिनिया मइया मन ले,जम्मो झन बर माँगंय।

छत्तीसगढ-----


दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)

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Monday, October 24, 2022

देवारी तिहार विशेष छंदबद्ध सृजन- छंद के छ परिवार


 रंगोली (द्वारा)- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

देवारी तिहार विशेष छंदबद्ध सृजन- छंद के छ परिवार


 जगमग जगमग

(बाल कविता)

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जगमग जगमग दिया बरत हे,

 देवारी आये हे।

छुरछुरिया अउ चुरचुटिया ला,

बाबू जी लाये हे।


 रंग बिरंगा माचिस काड़ी,

अबड़ मोमबत्ती हे।

हे चटचटा साँप के गोली,

 मजा भरे अत्ती हे।


नान नान सुतरी बम हावय,

रील तमंचा वाला।

हे राकेट उड़इया बादर,

नोक दिखै जस भाला।


हे अनार हा बड़का वाला, 

छोटे बड़े दनाका।

गोल घुमइया चकरी हावय,

जइसे गाड़ी चाका।


आना बंटी आना पिंकी,

मिलजुल खुशी मनाबो।

सावधान हो फोर फटाका,

रोटी-पीठा खाबो।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद (छत्तीसगढ़)

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*बरवै छंद---- धनतेरस*


घर-अँगना ला सुग्घर, देवव साज ।

धनतेरस के पावन, अवसर आज ।।


अँधियारी के तेरस, कातिक मास ।

पूजव प्रभु धन्वंतरि, दिन हे खास ।।


होय शुरू धनतेरस, के शुभ वार ।

करव ध्यान पूजा गा, आय तिहार ।।


धन के बरसा होही, आज अपार ।

भाग जगाही आके,  हमरो द्वार ।।


दीप जलाके जगमग, कर उजियार ।

बाँटव सुख दुख ला अउ, मया दुलार ।।


धन्वंतरि प्रभु करही, रोग निदान ।

औषधि गुन के दाता,  हे भगवान ।।


*मुकेश उइके "मयारू"*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला-कोरबा(छ.ग.)

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बोधन जी: //धन तेरस (सार छंद)//


धन तेरस के बेरा आगे,सुग्घर घर उजराबो।

आयुर्वेद देवता सुमिरन,धनवंतरी मनाबो।।


कातिक महिना पाख अँधेरी,तिथि तेरस के आथे।

माटी के तेरह ठन दीया, नारी सबो जलाथे।।

धूप जला के ध्यान लगाके,बने आरती गाबो।

धन तेरस के बेरा आगे,...................


सागर मंथन मा निकलिस हे,अमरित करसा लेके।

धनवंतरी देव दुनिया ला,बाँटिस औषधि देके।।

रोग दोष सब दूर करे बर,माथा सब टेकाबो।।

धन तेरस के बेरा आगे.......................


धन कुबेर के पूजा करबो,धन बरसा करवाही।

घर गरीब के आरो सुनके,पल्ला दउड़त आही।।

सबके भाग्य पलट जाही जी,आवौ चलौ  मनाबो।

धन तेरस के बेरा आगे,.......................


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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//नरक चौदस// (लावणी छंद)


कातिक मास नरक चौदस के,

                     आथे     छोटे    देवारी।

लीपे पोते घर अँगना सब,

              खुश लइका अउ नर-नारी।।


दीयादान करे बर यम ला,

                     दीया एक जलाथे सब।

पाप करम ले मुक्ति पाय बर,

                  एखर गुन ला गाथे सब।।

पूजा धूप आरती करथे,

                    फूल पान धर के थारी।

कातिक मास नरक चौदस के...........


किसन कन्हैया के महिमा हे,

                   नरकासुर दानव मारिस।

गोपी मन के लाज बचाइस,

               लीला ला दुनिया जानिस।।

कन्या सोलह हजार इक सौ,

                 मुक्त   कराइस  बनवारी।              

कातिक मास नरक चौदस के,.........


सुग्घर मिल त्यौहार मनाबो,

                  भाईचारा        अपनाबो।

घर-घर दीया बार अँजोरी,

                   गाँव-शहर मा बगराबो।

जगमग-जगमग खोर दुवारी,

                   भागय जम्मों अँधियारी।

कातिक मास नरक चौदस के,...........


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 *सरसी छंद*


*ज्ञान के दीया*


ज्ञान भगति के दीया सुग्घर, अंंतस कर उजियार।

तन मन दोनों जगमग होही, मिटही सब अँधियार।।


बाहिर कतको दीया बरही, मन नइ होय अँजोर।

तन के दीया मन के बाती,भक्ति तेल मा बोर।।


मया मोह के आँधी चलही, दीया नहीं बुताय।

कतको बाधा आही तब ले, येला राम बचाय।।


अंतस होही उजियारी तब, देवारी सिरतोन।

भवसागर ले पार उतरही, बिना ज्ञान के कोन।।


*प्यारेलाल साहू*

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🪔दीवाली के दोहे 🪔🪔🪔

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1-

बड़का हमर तिहार हे, घर अँगना सब लीप |

तेरह तेरस के दिया, चौदस चौदह दीप ||

2-

सुरहुत्ती घर-घर जले, चारो कोती दीप |

गली खोर जगमग दिखे, निकले मोती सीप ||

3-

धनतेरस धन माँग ले, चौदस के तँय रूप |

लक्ष्मी पूजा सार हे, रंक बनावय भूप ||

4-

नवा-नवा कपड़ा मिलय, नवा मिलय उपहार |

माता लक्ष्मी बर तुमन, ले लव सुघ्घर हार ||

5

दया करव माता रमा, पूजा कर स्वीकार |

तोर चरण मा दे जघा, हे माँ भर भण्डार ||

🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔🪔

कमलेश प्रसाद शरमाबाबू

कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी

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] गुमान साहू: दुर्मिल सवैया ।।राम घर आगमन।।


सजगे अँगना घर खोर गली सब मंगल दीप जलावत हे।

बनवास बिता रघुनन्दन राम सिया अउ लक्ष्मण आवत हे।

खुश हे जनता नगरी भर के प्रभु के जयकार लगावत हे।

सब देव घलो मन फूल धरे प्रभु के पथ मा बरसावत हे।।


गुमान प्रसाद साहू 

समोदा (महानदी),आरंग 

जिला-रायपुर ,छत्तीसगढ़

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 रोला-छंद 

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देवारी के दीया 

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

1-

देवारी के जोर, चलत हे चारो कोती |

साफ सफाई खूब, होत हे ऐती वोती ||

पालिस चूना रंग, बिकत हे देखव भारी ||

जुरमिल बने सजाव, अपन घर अँगना बारी |||

2-

रिगबग चारो ओर, बरत हे सुघ्घर दीया |

स्वागत मा घर द्वार, तकत आही राम सिया ||

रावण मारिस राम, अवध मा वापस आये |

नर-नारी सब झूम, खुशी मा दीप जलाये ||

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

कमलेश प्रसाद शरमाबाबू 

कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी 


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: देव "वारी" के दीया ल बार......


अजब लागय  बड़ गज्जब लागय ,

धन तेरस देवारी के पहिली तिहार।

फ़रिहर तन ले होवय  मन हरियर,

धन्वन्तरी पूजन के आय दिन वार।।


धन के होथे तीन गति सब कहिथे,

नी देबे नी भोगबे ते होथे सबो खुवार।

शुभता सत रद्दा घर परिवार बर वार,

जम्मो जगत आय हमर तुंहर परिवार ।।


चीन चिन्हारी मीत मितानी संग सबो हांसथे गाथे मनाथे परब तिहार।

अनचिन्हार देहरी ला घलो देवन संगी 

बस एक ठिन "दीया " के उजियार ।।


अबला मन के मान खातिर कान्हा

करिस  नरकासूर संहार। 

सोलह हजार गोपियन के लहूट गे,

रूप चौदस सोलह सिंगार ।।


ओखर छोड़ सबो येती वोती संगी

हम सब जाथन मन ला हार ।

रक्षा होथे सुरता लमईया के अउ,

 करथे गोवर्धनधारी मनुहार ।।


लक्ष्मी मईया सब  किरपा करही ,

अन धन ले  कोठी कुरिया भरही।

लेय - लेय मा कतेक सुलगही।

देव "वारी " के दीया ला  बार ।।

              रोशन साहू (मोखला)

                7999840942

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//देवारी के दीया//(सार छंद)


जगमग-जगमग दीया सुग्घर,

                       देवारी  जब  आथे।

रात अमावस के अँधियारी,

                      तुरते तुरत भगाथे।।

                      

लक्ष्मी दाई के अगवानी,

                       करथे नर अउ नारी।

नवा-नवा कपड़ा पहिरे सब,

                       धूप  सजाथे   थारी।।

खील बतासा फूल चघा के,

                      सब अशीष ला पाथे।

जगमग-जगमग दीया................


चौदह बरस काट बनवासा,

                    राम अवध जब आइस।

इही खुशी मा भारत वासी,

                    सबो  तिहार  मनाइस।।

परम्परा ला देखत पुरखा,

                     सुग्घर   रीत  निभाथे।

जगमग-जगमग दीया..................


चुक ले अँगना तुलसी चौरा,

                      पास   परोस   दुवारी।

दीया दान घलो करथे सब,

                     पर घर मा सँगवारी।।

सुरहुत्ती ये रात कहाथे,

                      सबके मन ला भाथे।।

जगमग-जगमग दीया.................


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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*देवारी परब* (दोहा छंद)


लीप पोत के घर सजे, सजगे अँगना खोर ।

जुगुर- बुगुर दीया बरै, देखव  ओरी  ओर ।।


आगे  देवारी  परब,  दीया  बारौ  द्वार ।

लछमी पूजा सब करौ, होही नइया पार ।।


नरियर- फूल चढ़ाव जी, माँगव तुम वरदान । 

लछमी किरपा होय ले, पावव सब धन-धान ।।


रीत चलत आवत हवय, पुरखा जुग ले जान ।

घर- घर जा करथें सबो,  सुग्घर दीया दान ।


मया- पिरित बाँटौ सबो,  दुख जाए जी भाग ।

सबो रहे बर सीख लव, तिल मा गुड़ कस पाग ।।


सुग्घर- सुग्घर  ओनहा,  पहिरे  निकलौ आज ।

पबरित मन ला तुम रखौ, सुफल करौ सब काज ।।


घर- घर मा हावय बने,  लड्डू  पेड़ा  खीर ।

लेवव मजा तिहार के,  मन मा रख के धीर ।।


*मुकेश उइके "मयारू*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला-कोरबा(छ.ग.)

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: कुण्डलिया- अजय अमृतांशु 


बारव दीया ज्ञान के, घर-घर ओरी ओर।

पहुँचय अंतिम छोर तक,

शिक्षा के अंजोर।।

शिक्षा के अंजोर, देश तब आगू बढ़ही।

मिलही सुग्घर ज्ञान, नवा रद्दा तब गढ़ही।।

पढ़ लिख हो हुशियार, बिपत खुद के तुम टारव।

आय देवारी आज, ज्ञान के दीया बारव।।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

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: *सरसी छन्द* 


बाई बोलिस येला-ओला, जाके जल्दी लान। 

देवारी त्योहार मानबो, होगे हवय बिहान।। 


देवारी बर जिनिस बिसाये, गेंव हाट-बाजार। 

काला लेवँव काला छोड़ँव, महँगाई के मार।। 


महँगा हे सब्जी-भाजी अउ, हरदी मिरचा तेल। 

महँगाई के आग लगे हे, जिनगानी अब फेल।। 


🙏🙏धन्नूलाल भास्कर 'मुंगेलिहा'🙏🙏

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 सार छंद 

जुआ निषेध


जुआ नशा के मोहफाॕस मा,लगे चुलुक हे भारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


धान अटावत हे कोठी के,निकले बोरा बोरा|

भरे ओनहारी डोली हा,जरगे जइसे होरा||

रोवय लइका चिहुक बिदुक के,जुच्छा हावय थारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


गाॕव गली सब पारा पारा,जगमग दीया बरथे|

सबके घर अउ अॕगना चौरा,मन ला अड़बड़ हरथे||

ददा जुआ मा सब ला हारे,करथे झगरा गारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


नवा ओनहा बछर बीतगे,तन ला हावय ढांपे|

भरे जाड़ मा हाॕड़ा अब तो,अस बाती कस कांपे||

तन मन के सब खुशी हजागे,बाढे़ देख लचारी|

चौसर खेले बइठे पांडव,नइ बाचिस घर नारी||


शिवानी कुर्रे

हरदी विशाल बलौदा जांजगीर चाॕपा छग 🙏🙏

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 *सरसी छन्द - देवारी तिहार*


सबके घर जगमग होवय जी, अउ जिनगी आबाद ।

एसो के देवारी गूँजय, गीत खुशी के नाद ।।


माँ लक्ष्मी के कृपा पाय सब, धन के हो बरसात ।

झन राहय कोन्हों निर्धन बस, भागय करिया रात ।।


छोटे बड़का के भेद मिटय, जागय समता भाव ।

सुख दुख मा सब मीत मितानी, झन तो रहे दुराव ।।


प्रहरी बन सीमा रक्षा में, हे भारत के लाल ।

उनकर घर उजियारा दमके, छुवय कभू मत काल ।।


उन्नति के पथ में रेंगय जी, प्रगतिशील हो देश ।

हर मनखे समृद्ध होय इँहा, छुवय अगास प्रदेश ।।


टुकना भर भर मोर बधाई, झोंकव अबके साल ।

देवारी शुभ मंगलकारी, रहय सबो खुशहाल ।।


नंदकिशोर साव "नीरव"

लखोली, राजनांदगांव

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 आशा देशमुख: गीतिका छंद


देवारी के दीया


आय देवारी सुघर जी, पाँच दिन के ये परब। 

देख जगमग रात अइसन, चन्द्र के टूटे गरब।। 

सुख सहित सद्भाव सुम्मत, परघनी धन   धान के। 

हाथ लक्ष्मी हा धरे  शुभ लाभ सुख सम्मान के।।


 बैठ टुकनी मा सुआ रे, बोल सुख के राग ला। 

सुन बने धरबे सुआ ना, मन मया के पाग ला। 

भाग्य खेती हा लिखत हे, गाँव घर परिवार के। 

आस में कुम्हरा घलो हे, आय दिन उजियार के।।


बाहरी सुपली घलो मन, हाँस् के बूता करे। 

रंग मन करके पुताई, द्वार रंगोली भरे।।

सब डहर फूटे फटाका, हर शहर हर गाँव मा। 

हाट अउ व्यापार दुनिया, हे दिखे धन छाँव मा।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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 मनोज वर्मा: कुण्डलिया छंद


देवारी 


देवत हॅंव शुभकामना, झोकत जी जोहार।

सुख समृद्धि यश शांति नित, रहे सदा निज द्वार।।

रहे सदा निज द्वार, बिराजे रिद्धि सिद्धि हर।

लक्ष्मी करे निवास, सरसती पाय वृद्धि गर।।

संगी बने कुबेर, चले सब दुख ला खेवत।

देवारी शुभ होय, बधाई मॅंय हॅंव देवत।।


जिनगी जगमग होय जस, देवारी त्योहार।

करम दीयना बन बरे, मन के जाला झार।।

मन के जाला झार, बहारे लीपे जस घर।

निरमल रहे चरित्र, सजे जस भिथिया सुग्घर।।

तेल मया के डार, नता बड़ चमके बगबग।

सबके दिन शुभ होय, रहे अउ जिनगी जगमग।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदा बाजार

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: *शंकर छंद*~~~*लछमी पूजा* 


राखव घर ला लीप पोत के, परब हावय खास ।

घर- घर आही लछमी दाई,  पुरन होही आस ।।

खोर गली के करव सफाई, चउँक सुग्घर साज ।

सुख सुम्मत धर संगे आही, बनाही सब काज ।।


बनही घर- घर लड्डू मेवा, खीर अउ पकवान ।

ध्यान लगाके पूजा करिहव, मिलय जी वरदान ।।

धन दौलत ले कोठी भरही,  लगाही भव पार ।

देवारी  के  परब  मनावव,  होय जगमग द्वार ।।


नरियर- फूल चढ़ावव संगी, जोर  दूनों  हाथ ।

किरपा करही लछमी दाई,  नवावव जी माथ ।।

लाही जग मा उजियारी ला, भगाही अँधियार ।

जम्मो जुरमिल खुशी मनावव, आय पावन वार ।।


*मुकेश उइके "मयारू*

ग्राम- चेपा, पाली, जिला- कोरबा(छ.ग.)

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[ *सरसी छंंद*

*विषय-देवारी*

               *(१)*

जगमग दीया के देवारी, आथे बने तिहार।

लीप-पोत के फूल सजाथें, घर अँगना अउ द्वार।। 


सबो जलाथें देवारी मा, दीया ओरी-ओर।

गली-खोर दिखथे चकचक ले, चारों मुड़ा अँजोर।। 


लक्ष्मी दाई के पूजा कर, करथें सब गुणगान।

नरियर अउ फल-फूल चढ़ाके, लेथें धन वरदान।।

                    *(२)*


करौ दिखावा झन तुम संगी, देवारी के नाम।

चीज अगरहा अब झन लेवव , जेकर नइ हे काम।। 


मया बाँट के देवारी मा, भेदभाव लौ टार।

बारौ दीया ओखर घर मा, जेन हवय लाचार।। 


झन फोड़व गा तुमन फटाका, पर्यावरण बचाव।

सबो सादगी ले देवारी, मिलके बने मनाव।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

   पाली जिला कोरबा 

      *सत्र १४*

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अश्वनी कोसरे 9: *चौपई छंद* 

 *देवारी परब* 


ईशर गौरा के जय बोल, बाजत हवय नगाड़ा ढोल|

गौरा गौरी के सिर ताज,बर बिहाव के सजही साज||


आज मनाबो परब उजास, घर अँगना सजगे हे खास|

जगमग जगमग जलही दीप, घर दुआर अँगना ला लीप||


गाँव गली मा हवय अँजोर, लइकन देख मचावँय शोर|

फूलझड़ी लटके हे खोर, पटकँय पटकन लइकन फोर ||


माँ लक्ष्मी के हवँय उपास, अन धन वैभव बर उल्लास|

देवारी बर सुमरन देव, मिटय भरम अउ जग के भेव||


सुरहुत्ती के सुग्घर योग, चउँर फरा ले लगही भोग|

चारो पहर अमावस रात, सुआ नाच देहीं सौगात||


सखी सहेली करहीं पोठ, सुख दुख अउ अंतस के गोठ|

थपक थपक के देहीं ताल, झन्नक झाँझर धरे मशाल||


बने बरसही मया असीस, जीयत राहँय लाख बरीष|

राउत नाचँय दोहा पार, मड़ई घुमहीं अँगना द्वार||


अइसन शुभ दिन परब तिहार, जोर धरे हे मया दुलार|

मनखे बर खुशहाली लाय, मन चाहा फल देवन आय||


छंदकार -अश्वनी कोसरे

रहँगी पोंडी कवर्धा कबीरधाम

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1,देवारी तिहार-घनाक्षरी


कातिक हे अँधियारी,आये परब देवारी।

सजे घर खोर बारी,बगरे अँजोर हे।

रिगबिग दीया बरे,अमावस देख डरे।

इरसा दुवेस जरे,कहाँ तोर मोर हे।

अँजोरी के होये जीत,बाढ़े मया मीत प्रीत।

सुनाये देवारी गीत,खुशी सबे छोर हे।।

लड़ी फुलझड़ी उड़े,बरा भजिया हे चुरे।

कोमढ़ा कोचई बुड़े,कड़ही के झोर हे।।


बैंकुंठ निवास होही, पाप जम्मों नास होही।

दीया बार चौदस के, चमकाले भाग ला।

नहा बड़े बिहना ले, यमराजा ला मनाले।

व्रत दान अपनाले, धोले जम्मों दाग ला।

ये दिन हे बड़ न्यारी, कथा कहानी हे भारी।

जीत जिनगी के पारी, जला द्वेष राग ला।

देव धामी ला सुमर, बाढ़ही तोरे उमर।

पा ले जी भजन कर, सुख शांति पाग ला।


आमा पान के तोरन, रंग रंग के जोरन।

रमे हें सबे के मन, देवारी तिहार मा।

लिपाये पोताये हवे, चँउक पुराये हवे।

दाई लक्ष्मी आये हवे, सबके दुवार मा।

अन्न धन देवत हे, दुख हर लेवत हे।

आज जम्मों सेवक हे, बहे भक्ति धार मा।

हाथ मा मिठाई हवे, जुरे भाई भाई हवै।

देवत बधाई हवै,गूँथ मया प्यार मा।


गौरा गौरी जागत हे,दुख पीरा भागत हे।

बड़ निक लागत हे,रिगबिग रात हा।।

थपड़ी बजा के सुवा,नाचत हे भौजी बुआ।

सियान देवव दुवा,निक लागे बात हा।।

दफड़ा दमऊ बजे,चारों खूँट हवे सजे।

धरती सरग लगे,नाँचे पेड़ पात हा।।

घुरे दया मया रंग,सबो तीर हे उमंग।

संगी साथी सबो संग,भाये मुलाकात हा।।


गौरा गौरी सुवा गीत,लेवै जिवरा ल जीत।

बैगा निभावय रीत,जादू मंतर मार के।।

गौरा गौरी कृपा करे,दुख डर पीरा हरे।

सुवा नाचे नोनी मन,मिट्ठू ल बइठार के।।

रात बरे जगमग,परे लछमी के पग।

दुरिहाये ठग जग,देवारी ले हार के।।

देवारी के देख दीया,पबरित होवै जिया।

सोभा बड़ बढ़े हवै,घर अउ दुवार के।


मया भाई बहिनी के, जियत मरत टिके।

भाई दूज पावन हे, राखी के तिहार कस।

उछाह उमंग धर, खुशी के तरंग धर।

आये अँगना मा भाई, बन गंगा धार कस।

इही दिन यमराजा, यमुना के दरवाजा।

पधारे रिहिस हवै, शुभ तिथि बार कस।

भाई बर माँगे सुख, दुख डर दर्द तुक।

बेटी माई मन होथें, लक्ष्मी अवतार कस।


कातिक के अँधियारी, चमकत हवै भारी।

मन मोहे सुघराई, घर गली द्वार के।।

आतुर हे आय बर, कोठी मा समाय बर।

सोनहा सिंगार करे, धान खेत खार के।।

सुखी रहे सबे दिन, मया मिले छिन छिन।

डर जर दुख दर्द, भागे दूर हार के।।

मन मा उजास भरे, सुख सत फुले फरे।

गाड़ा गाड़ा हे बधाई, देवारी तिहार के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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2, कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।

मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।

गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।

करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।

लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।

दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।


भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।

देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।

बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।

आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।

बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।

देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।


लेवव  जय  जोहार  जी,बॉटव  मया   दुलार।

जुरमिल मान तिहार जी,दियना रिगबिग बार।

दियना रिगबिग बार,अमावस हे अँधियारी।

कातिक पबरित मास,आय  हे  जी देवारी।

कर आदर सत्कार,बधाई सबला देवव।

मया  रंग  मा रंग,असीस सबे के लेवव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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3,मत्तग्यंद सवैया- देवारी


चिक्कन चिक्कन खोर दिखे अउ चिक्कन हे बखरी घर बारी।

हाँसत  हे  मुसकावत  हे  सज  आज  मने  मन  गा  नर नारी।

माहर  माहर  हे  ममहावत  आगर  इत्तर  मा  बड़  थारी।

नाचत हे दियना सँग देखव कातिक के रतिहा अँधियारी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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4,बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


सबे खूँट देवारी, के हे जोर।

उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।


छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।

किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।


चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।

गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।


काँटा काँदी कचरा, मानय हार।

मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।


जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।

दया मया मनखे मा, हे भरपूर।


चारो कोती मनखे, दिखे भराय।

मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।


बनठन के सब मनखे, जाय बजार।

खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।


पुतरी दीया बाती, के हे लाट।

तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।


लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।

दीया बाती वाले, देख बलाय।


कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।

नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।


जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।

टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।


हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।

खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।


पहली दिन घर आये, श्री यम देव।

मेटे सब मनखे के, मन के भेव।


दै अशीष यम राजा, मया दुलार।

सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।


तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।

पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।


दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।

सब संकट हा भागे, सुबे नहात।


नहा खोर चौदस के, देवय दान।

नरक मिले झन कहिके, गावय गान।


तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।

धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।


एक मई हो जावय, दिन अउ रात।

अँधियारी ला दीया, हवै भगात।


बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।

चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।


बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।

दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।


फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।

चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।


होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।

गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।


दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।

अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।


पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।

बहिनी मनके बोहै,भाई भार। 


कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।

देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।


देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।

देख देख के नाचे, तनमन मोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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कज्जल छंद- देवारी


मानत हें सब झन तिहार।

होके मनखे मन तियार।

उज्जर उज्जर घर दुवार।

सरग घलो नइ पाय पार।


बोहावै बड़ मया धार।

लामे हावै सुमत नार।

बारी बखरी खेत खार।

नाचे घुरवा कुँवा पार।


चमचम चमके सबे तीर।

बने घरो घर फरा खीर।

देख होय बड़ मन अधीर।

का राजा अउ का फकीर।


झड़के भजिया बरा छान।

का लइका अउ का सियान।

सुनके दोहा सुवा तान।

गोभाये मन मया बान।


फुटे फटाका होय शोर।

गुँजे गाँव घर गली खोर।

चिटको नइहे तोर मोर।

फइले हावै मया डोर।


जुरमिल के दीया जलायँ।

नाच नाच सब झन मनायँ।

सबके मन मा खुशी छायँ।

दया मया के सुर लमायँ।


रिगबिग दीया के अँजोर।

चमकावत हे गली खोर।

परलव पँवरी हाथ जोर।

लक्ष्मी दाई लिही शोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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देवारी मा पानी(तातंक छंद)


रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।

कतको के सपना पउलागे,अइसन आफत आरी मा।


हाट बजार मा पानी फिरगे,दीया बाती बाँचे हे।

छोट बड़े बैपारी सबके,भाग म बादर नाँचे हे।

खुशी झोपड़ी मा नइ हावै,नइहे महल अटारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।


काम करइया मनके जाँगर,बिरथा आँसों होगे हे।

बिना लिपाये घर दुवार के,चमक धमक सब खोगे हे।

फुटे फटाका धमधम कइसे,चिखला पानी धारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा----।


चौंक पुराये का अँगना मा,काय नवा कपड़ा लत्ता।

काय सुवा का गौरा गौरी,तने हवे खुमरी छत्ता।

काय बरे रिगबिग दियना हा,कातिक केअँधियारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


पाके धान के कनिहा टुटगे,कल्हरत हे दुख मा भारी।

खेत खार अउ रद्दा कच्चा,कच्चा हे बखरी बारी।

मुँह किसान के सिलदिस बादर,भात ल देके थारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


आप सबो ला देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई

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//अन्नकूट-गोबर्धन// सार छंद*


अन्नकूट गोबर्धन पूजा,

                 हिन्दू   सबो   मनाथे।

देवारी के दूसर दिन मा,

                 ये तिहार जब आथे।।


घर के आगू गोबर ले के,

                      पुतरा एक बनाथे।

चारों कोती फूल मेमरी,

                    पर्वत घलो सजाथे।।

दूध, दही, गंगाजल, मँदरस,

                     करसा मा भर लाथे।

अन्नकूट-गोबर्धन पूजा...............


कातिक एकम पाख अँजोरी,

                      महिमा गोबर्धन के।

बड़े बिहनिया करथे पूजा,

                     कृष्ण नंदनंदन के।।

परिक्रमा जे सात लगाथे,

                    घर मा धन भर जाथे।

अन्नकूट-गोबर्धन पूजा..............


गरब इंद्र के टोर कृष्ण हा,

                     गोकुल गाँव उबारिन।

शुरू करिन गोबर्धन पूजा,

                    अन्न भोग लगवाइन।।

तइहा के ये परम्परा ला,

                    मिलके आज निभाथे।

अन्नकूट-गोबर्धन पूजा...............


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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*सरसी छन्द* (महँगाई मा देवारी)🪔

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देवारी *सुरसुरी* असन मैं, मन मा धरे विचार। 

जिनिस बिसाये देवारी बर, गेंव हाट- बाजार।। 


उछलय *अनारदाना* जैसन, हाट देख मन मोर। 

हौंस भुलागे कीमत सुनके, लागिस झटका जोर।। 


मोरे मेरा कमती रुपिया, धरे रहिगेंव हाथ । 

भाव जानके *चकरी* जैसन,घुमगय मोरो माथ।। 


घरू जिनिस के का कहिबे जी, कनिहा देइस टोर। 

भाव सुनके कान मा होइस, *एटम बम* के शोर।। 


भारी महँगा सबो जिनिस हा, होगेंव मैं हताश। 

शौक उड़ागे ऊपर कोती, जस *राकेट* अकाश।। 


मोरो झोरा खाली आगय, महँगाई के मार। 

होके मैं *फुस्की फोटक्का*, लहुटेंव अपन द्वार।। 


मातु-पिता अउ गौमाता के, परेंव पाँव पखार। 

खपरा चीला खा मनायेंव, देवारी त्योहार।। 


🙏🙏धन्नूलाल भास्कर 'मुंगेलिहा'🙏🙏

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(कुण्डलिया)


गणराजा के पाँव पर, करबो जै जोहार।

माता लक्ष्मी आय हे, लेबो चरन पखार।

लेबो चरन पखार,सुवा नाचत परघाबो।

राउत दोहा पार,चलौ सब खुशी मनाबो।

देवारी हे पर्व, घिड़कही कसके बाजा।

 देही असिस कुबेर,कृपा करही गणराजा



रिगबिग-रिगबिग प्रेम के, दियना करै अँजोर।

दुख के आँसू झन झरै, ककरो आँखी कोर।

ककरो आँखी कोर, उदासी हा मत छावै।

देश बनै खुशहाल,गरीबी उट्ठ परावै।

कोठी छलकै धान, करै धन सिगबिग-सिगबिग।

मन-डेरौंठी ज्ञान, जोत हा बगरै रिगबिग।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 त्रिभंगी छंद

विषय,,,,देवारी


देवारी आगे, सब ला भागे,कपड़ा पहिने,नवा नवा ।

मां लक्ष्मी जी के,पूजा करके,मंत्र जपे सब,लाख सवा ।।

रंगे रंगोली,हरियर लाली, घर ॲगना मा,रंग भरे ।

वो दीप जलाके,खुशी मनाके,मन के तम ला,दूर करे ।।


आगे देवारी,सुन‌ नर‌ नारी,दया‌ मया‌ के,दीप जला।

हे मन मा काला‌,बना उजाला ,सबके कर जी , रोज भला ।।

जल बाती बनके ,रहिले तनके,नवा नवा सब,भाव जगा।

आहे देवारी ,छोड़ लबारी, पर ऊपर झन, दोष लगा ।।


लिलेश्वर देवांगन

गुधेली बेरला

साधक--१०

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 //ईसरदेव-गौरा// आल्हा छंद गीत

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कातिक महिना धरम-करम के,

                  आवौ थोकन करौ हियाव।

ईसरदेव संग गौरा के,

                 जम्मों सुग्घर गुन ला गाव।।


देवारी के पहिली दिन सब,

                   फूल कुचरके ठउर बनाय।

देवारी के बाद रात भर,

                   माटी के पुतरा सिरजाय।।

बने सनपना साजे ईसर,

                   गौरा - गौरी  दर्शन  पाव।

कातिक महिना धरम-करम के.........


एक मुहल्ला ईसर राजा,

                     दूल्हा के बारात सजाय।

दूसर पारा गौरा रानी,

                    परम्परा के रीत निभाय।।

बाजा-गाजा फुटे पटाखा,

                 मिलके जम्मों खुशी मनाव।

कातिक महिना धरम-करम के.........


दरबर-दरबर चले बराती,

                   गौरा - गौरी  गीत  सुहाय।

हाथ-गोड़ मा साँट पिटावत,

                    टूरा पिल्ला मन हरषाय।।

बड़े बिहनिया होय विसर्जन,

                  नवा बछर बर सोर लमाव।

कातिक महिना धरम-करम के..........

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 *गोवर्धन पूजा*

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(वीर छंद)

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वन परवत धरती के रक्षा, गोवर्धन के पूजा आय।

गौ माता के सोर-सरेखा, इही हमर संस्कार कहाय।।

गौ माता के अंग-अंग मा,सबो देव के हावय वास।

अमरित कस गौ गोरस देथे,गोबर खेती बर हे खास।।

जंगल हरियर चारा देथे,परवत भरे रतन के खान।

रुख-राई आक्सीजन देके, हमर बँचाथे सिरतो प्रान।।

द्वापर जुग मा गिरिधारी हा, देइस सब ला निर्मल ज्ञान।

जेन हमर नित पालन करथे, वो भुँइया हे सरग समान।।

मरम धरम के कृष्ण-कन्हैया, ब्रजवासी ला रहिस बताय।

छोंड़ इंद्र के मान-गउन ला, धरनी के पूजा करवाय।।

बिपदा ला मिलजुल के टारौ, कहिस सबो ला वो समझाय।

छाता कस परवत ला टाँगिन, जबर एकता के बल पाय।।

एक बनन अउ नेक बनन हम, भेदभाव ला देवन त्याग।

तभे जागही ये कलजुग मा, भारत माता के तो भाग।।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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: *आल्हा छंद* अश्वनी कोसरे

गोवर्धन परब


लोक परब गोवर्धन पूजा, घर घर गौ के होवय मान|

हमर राज के खेती बारी, इँकर श्रम बिन बिरथा जान||


आज किसानन के हे पारी, गौ जेवन बर जुगत अपार|

परसादी ले सजगे थारी, भरे कलस जल ले औंछार||


हूम धूप दे गोरू गइया, पइँया लागँय बारम्बार|

माँ धरनी जस पर उपकारी, बाहन बल धन हे आधार||


नइया लगही पार सबो के, उपजाये हें फसल किसान|

सोन रंग धर दमक उठे हे, बँधिया डोली अउ खलिहान||


कोठी किरगा झलकन लागिन, खेत खार मा बलही पौर|

बियारा मा ढाँके खरही, कोठा मा गोधन के ठौर|


मालिक के घर अन धन आए, सोहर जस दाई के जान|

घँघड़ा पहिरे नाचत राउत,दहकत दफड़ा गुदुम निशान |


गाँव गली मा मंगल बेला, सजगे हे मड़ई बर खाम|

झूमँत हावँय नाचत मनखे, लागत हे वृंदावन धाम||


छंदकार -अश्वनी कोसरे

रहँगी पोंड़ी कवर्धाकबीरधाम

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/भइया दूज// लावणी छंद

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कातिक महिना पाख अँजोरी,

                     दूज परब दिन आथे जी।

रक्षा बंधन के जइसे ही,

                       हिन्दू सबो मनाथे जी।।


एक कथा पौराणिक हावै,

                       सूरज  के पत्नी  छाया।

दूझन लइका यम अउ यमुना,

                     अब्बड़ हे इँखरो माया।।

पबरित परब मया बहिनी के,

                      भइया दूज कहाथे जी।

कातिक महिना पाख अँजोरी.........


सेवा अउ सत्कार धरम ला,

                       भाई के जे मन करथे।

ओखर तो डर भाव सबो ला,

                   यम भइया जी हा हरथे।।

परम्परा पुरखा सिरजाये,

                   मन मा खुशी समाथे जी।

कातिक महिना पाख अँजोरी...........


भाई अउ बहिनी के सुग्घर,

                     दया मया के बँधना जी।

एखर कारन भइया आथे,

                   बहिनी के घर-अँगना जी।।

जतका बनथे नेंग जोग ला,

                     बहिनी हाथ धराथे जी।।

कातिक महिना पाख अँजोरी..........

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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Friday, October 21, 2022

कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी

 कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी


देवारी के हे परब, तभो धरे हें हाथ।

बड़का धोखा होय हे, दर्जी मन के साथ।

दर्जी मन के साथ, छोड़ देहे बेरा हा।

हे गुलजार बजार, हवै सुन्ना डेरा हा।

पहली राहय भीड़, दुवारी अँगना भारी।

वो दर्जी के ठौर, आज खोजै देवारी।1


कपड़ा ला सिलवा सबें, पहिरे पहली हाँस।

उठवा के ये दौर मा, होगे सत्यानॉस।

होगे सत्यानॉस, काम खोजत हें दर्जी।

नइ ते पहली लोग, करैं सीले के अर्जी।

टाप जींस टी शर्ट, मार दे हावै थपड़ा।

शहर लगे ना गाँव, छाय हे उठवा कपड़ा।


दर्जी के घर मा रहै, कपड़ा के भरमार।

खुले स्कूल कालेज या, कोनो होय तिहार।

कोनो होय तिहार, गँजा जावै बड़ कपड़ा।

लउहावै सब रोज, बजावैं घर आ दफड़ा।

कपड़ा सँग दे नाप, सिलावैं सब मनमर्जी।

उठवा आगे आज, मरत हें लाँघन दर्जी।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

पर्यावरण के दोहा ~

 ~ पर्यावरण के दोहा ~ 


बने रही पर्यावरण, बने रही तब लोग।

लापरवाही ले सुनव, धरहीं कतको रोग।। 


रक्षा बर ओजोन के, सदा रहव तइयार।

चंगा जिनगी के हमर, इही हरय आधार।। 


भुँइया हा हरियर रहय, अइसे कदम उगाव।

किरिया खाके आप मन, हर दिन पेड़ लगाव।। 


झिल्ली मन घातक हरय, करथें बड़ नुकसान।

असमय ये लेवत हवँय, गरुवा मन के प्रान।। 


भुँइया बर झिल्ली हरय, करिया दाग समान।

कमती येला बउर के, मनखे बनव सुजान।। 


खातू मन रासायनिक, खेत करत बर्बाद।

सुग्घर खेती के तभे, हिलत हवय बुनियाद।। 


पर्यावरण बचाय बर, देवव सब सहयोग।

भुँइया ला सुग्घर रखव, बनके जियव निरोग।। 


दोहाकार - श्लेष चन्द्राकर,

महासमुंद (छत्तीसगढ़)

Friday, October 14, 2022

विधान-सरसी छंद

 

विधान-सरसी छंद

*सरसी छन्द (१६-११)* 

डाँड़ (पद) - २, ,चरन - ४

तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ के आखिर मा 


माने सम-सम चरन मा,

हर डाँड़ मा कुल मात्रा – २७ 

विषम चरन मा मात्रा  – १६,

सम चरण मा मात्रा - ११

यति / बाधा – १६, ११ मात्रा म

खास- सम चरण  के आखिर मा गुरु, लघु (२,१)

उदाहरण - *भोले भगवान  (सरसी छन्द)* 

जब सागर-मंथन मा निकरिस, अपन करिस बिखपान।

बिपदा ले  दुनिया - ल बचाइस , जै  भोले भगवान ।।

बिख  के आगी तपिस  गरा - मा, जइसे के बैसाख ।

मरघट-मा जा के सिव-भोला , बदन चुपर लिस राख ।। 


गंगा जी  ला जटा  उतारिस , अँधमधाय  के  नाथ  । 

मन नइ माढ़िस तब चन्दा ला , अपन बसाइस माथ ।।

तभो  चैन  नइ  पाइस  भोला , धधके गर के आग। 

अपन नरी - मा हार बना के , पहिरिस बिखहर नाग ।। 

सीतलता खोजत - खोजत मा , जब पहुँचिस कैलास 

पारबती के  संग  उहाँ  सिव , अपन बनालिस वास।।

 *अरुण कुमार निगम*

विधान--*रूपमाला छन्द (मदन छन्द)* १४-१०

विधान--*रूपमाला छन्द  (मदन छन्द)* १४-१०


डाँड़ (पद) - ४,

चरन - ८ 


*तुकांत के नियम -*

 दू-दू डाँड़ के आखिर मा माने सम-सम चरन मा, बड़कू,नान्हें (२,१)


*मात्रा-*

हर डाँड़ मा कुल मातरा – २४ , बिसम चरन मा मातरा – १४, सम चरन मा मातरा- १० 


*यति / बाधा –*

१४, १० मातरा मा 


*खास-*

 एला मदन छन्द घलो कहिथें    


*उदाहरण*


*नाम  रहि जाही  (रूपमाला छन्द)* 



देह   जाही   रूप  जाही ,  छोड़  जाही  चाम 

जोर ले कतको इहाँ धन, कुछु न आही काम 

धरम करले करम करले , तँय कमा ले साख 

नाम  रहि  जाही  जगत-मा , देह  होही राख  | 



साँस के  झन कर भरोसा , छोड़ जाही साथ 

तोर  जिनगी काठ-पुतरी , डोरि ओखर हाथ

करम डोंगा ला सजा के , उतर जा भव-पार 

मन रमाले हरि-भजन-मा , बस इही हे सार |


*गुरुदेव अरुण कुमार निगम*


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*आज एक नवा छन्द*


*रूपमाला छन्द*  (मदन छन्द) 14-10


डाँड़ (पद) - 4, ,चरण - 8


तुकांत के नियम - दू-दू डाँड़ के आखिर मा माने सम-सम चरण मा, गुरु-लघु (2,1)


हर डाँड़ मा कुल मात्रा – २४ , बिसम चरण मा मात्रा – १४, सम चरण मा मात्रा- १० 


यति / बाधा – १४, १० मात्रा मा 


खास- एला मदन छन्द घला कहिथ


*मात्राबाँट*


2122 2122, 2122 21


लय बर अइसे गाके अभ्यास करव -


रूपमाला, रूपमाला, रूपमाला, रूप


या 


लाललाला, लाललाला, लाललाला, लाल


*ध्यान रहे - तीसरा, दसवाँ, सत्रहवाँ अउ चौबीसवाँ मात्रा अनिवार्य रूप ले लघु होना चाही।बाकी जघा एक गुरु के बदला दू लघु घलो हो सकथे*


*उदाहरण*


देह जाही रूप जाही , छोड़ जाही  चाम ।

जोर ले कतको इहाँ धन, कुछु न आही काम ।

कर धरम तँय कर करम तँय, अउ कमा ले साख ।

नाम  रहि  जाही  जगत-मा , देह  होही राख ।।


* कुमार निगम जी *

Monday, October 10, 2022

शरद पुन्नी विशेष छंदबद्ध कविता



शरद पुन्नी विशेष छंदबद्ध कविता

सूरज कस उजियार कर, हवस कहूँ यदि एक।
चंदा बन चमकत रहा, तारा बीच अनेक।।।।।।

पुन्नी के चंदा(सार चंदा)

सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।
अँधियारी रतिहा ला छपछप,काँचत हावै चंदा।

बरै चँदैनी सँग में रिगबिग, सबके मन ला भाये।
घटे बढ़े नित पाख पाख मा,एक्कम दूज कहाये।
कभू चौथ के कभू ईद के, बनके जिया लुभाये।
शरद पाख सज सोला कला म,अमृत बूंद बरसाये।
सबके मन में दया मया ला,बाँचत हावै चंदा--।
सज धज के पुन्नी रतिहा मा,नाँचत हावै चंदा।

बिन चंदा के हवै अधूरा,लइका मन के लोरी।
चकवा रटन लगावत हावै,चंदा जान चकोरी।
कोनो मया म करे ठिठोली,चाँद म महल बनाहूँ।
कहे पिया ला कतको झन मन,चाँद तोड़ के लाहूँ।
बिरह म रोवत बिरही ला अउ,टाँचत हावै  चंदा--।
सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।

सबे तीर उजियारा हावै,नइहे दुःख उदासी।
चिक्कन चिक्कन घर दुवार हे,शुभ हे सबके रासी।
गीता रामायण गूँजत हे, कविता गीत सुनाये।
खीर चुरत हे चौक चौक मा,मिलजुल भोग लगाये।
धरम करम ला मनखे मनके,जाँचत हावै चंदा----।
सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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        शरत-पूर्णीमा 

        

1-

शरद पूर्णिमा रात में, अमरित के हे आस |

किरपा होही श्याम के, मोला हे विसवास ||

2-

खीर बना तैं राख ले , छत मे जाके आज |

अमरित के बरसा करो,राखव स्वामी लाज ||

3-

गाड़ा-गाड़ा हे विनय, टुकना भर जोहार |

विनती मोरे आज के, करिहव प्रभु स्वीकार ||

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

कमलेश प्रसाद शरमाबाबू 🙏🏻

कटंगी-गंडई 

जिला-केसीजी

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*शरद पुन्नी (कुण्डलिया )*


सुग्घर पुन्नी रात हे , शरद सुहावन आज ।

जन्मदिवस शुभकामना , बालमीकि महराज।।

बालमीकि महराज , रमायण तैं लिख डारे ।

राम नाम के बोल , जगत ला पार उतारे ।।

तोर लिखे ये ग्रंथ , करे तन मन ला उज्जर।

झिलमिल दिखे अगास ,शरद पुन्नी के सुग्घर।।


चंदा चमके रात मा , सबो चँदैनी संग।

जगर बगर चारो डहर , दिखे दूधिया रंग।।

दिखे दूधिया रंग , मोहिथे सबके मन ला ।

मिलथे खुशी अपार ,जीव मनखे सब झन ला।।

बरसे अमरित बूंद , काटथे दुख के फंदा।

लइका रोत भुलाय , देखके मामा चंदा ।।


आगे पुन्नी रात जी , सजगे मंदिर द्वार।

करे भगत जस गान तब , झूमे जी संसार।।

झूमे जी संसार , खीर पकवान बनाए ।

छानी ऊपर टाँग , रात भर रहे मडा़ए ।।

अमरित के परसाद , दावना मन भर पा गे।

होगे सुघर बिहान , खुशी के पुन्नी आगे।।


          परमानंद बृजलाल दावना

                      भैंसबोड़

                 6260473556

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सुसकत हे जिनगानी*

 *सुसकत हे जिनगानी*

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*उरक-पुरक के बरसत हावय, रोज-रोज ये पानी।*

 *अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।।*


ढनगत हावय खड़े फसल हा, बादर रइथे ढाँके।

कनकट्टा मन कुढ़होवत हें, बाली मन ला फाँके।

 दुब्बर बर दू ठन असाड़ कस, होगे असो कहानी।

 अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।


 बढ़े प्रकोप तना छेदक के, चुहकत हावय माहो।

 पाना-पाना मुरझावत हे, झुलसा के हे लाहो।

 खैरा रोग धरे हे कसके, जी होगे हलकानी।

 अइसन मा चौपट हो जाही,सिरजे हमर किसानी।


 महमाया हे माथ नवाये, छटकन लागे सरना ।

कइसे अब हरहुना लुवाही, निच्चट होगे मरना।

 इंद्रदेव हा काबर करथे,मँसमोटी- मनमानी।

 अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।


 नींद कहाँ परथे संसो मा, कइसे फसल बँचाबो।

 मँहगी खाद दवा के करजा, काला बेंच पटाबो।

अंतस खबसे दुख के खीला, सुसकत हे जिनगानी।

अइसन मा चौपट हो जाही, सिरजे हमर किसानी।


चोवा राम ' बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

कुंडलिया छंद

 कुंडलिया छंद 


करहू कोनो झन कभू, रखहू संगी याद।

धन दौलत पद के नशा, करथे घर बरबाद।

करथे घर बरबाद, कभू झन आदी होहू।

नशा नास के मूल, नहीं जिनगी भर रोहू।

लगे कहू ये रोग, तड़फ के समझौ मरहू।

कहे ज्ञानु कविराय, नशा झन कोनो करहू।


ज्ञानु

दोहा गीत सुनव रावण के गोठ ला।

 दोहा गीत

सुनव  रावण के गोठ ला। 


ये कलयुग ला देखके, मैं झुक गे हंव राम। 


नव दिन के नवरात मा, लोगन नाचें गाँय। 

येती ओती घूमके, अब्बड़ खुशी मनाँय। 

हारत हें सब पाप ले, विजया दशमी नाम।। 

ये कलयुग ला देखके, मै झुक गे हँव राम।। 


दारू हा पानी बने, अउ कुकरा हा साग। 

कुकुर सही सूंघत चले, गदहा जैसे राग। 

 जिभिया मा अंगूर रस, देखावत हें आम। 

ये कलयुग ला देखके, मै झुक गे हँव राम। 


डिस्को डीजे देखके, रोवत हे संगीत। 

दया धरम कोंदा बने, फूहड़ता के जीत।। 

करणी ला करिया करें, धरके उज्जर चाम। 

ये कलयुग ला देखके, मैं झुक गे हँव राम।।


सिसकत हें मैंना सुआ, नोचत हावय चील। 

तन कपड़ा के मान ला, फैशन डारिस लील। 

लाज शरम के कद घटे, चिरहा के हे दाम। 

ये कलयुग ला देखके, मै झुक गे हँव राम।।


रुख राई मा छाय हे, अमर बेल के नार। 

पथरा मा लदकाय हें, गाँव गली अउ खार। 

चतुरा के घर द्वार मा, सिधवा बने गुलाम। 

ये कलयुग ला देखके, मैं झुक गे हँव राम।।


रत्ती पत्ती बोलथे, चुप हें चाँदी सोन। 

 झूठ कछेरी मा पले, सच ला लाही कोन। 

हीरा मोती बैठगे, मिले काँच ला काम। 

ये कलयुग ला देखके, मैं झुक गे हँव राम। 


आशा देशमुख

कज्जल छंद - जीवन दरपन*

 *कज्जल छंद - जीवन दरपन*


जिनगी दुख के खान आय,

सुख तो दिन के चार पाय।

दुनिया मा तँय का कमाय,

मोर-मोर कह तँय भुलाय।।


जप  ले  मानुष  राम नाम,

बन जाही सब  तोर काम।

राम चरन सुख दुःख धाम,

चेत  लगावव  सिया राम।।


जय रघुनन्दन जय तुम्हार,

किरपा   करके  दौ  दुलार।

संझा  बिहना  रोज  हार,

तोला  चढ़ावँव सरकार।।


पापी  मनुवा   कर   उपाय,

माटी  चोला  ह तर   जाय।

नइ तो  जिनगी  फेर  आय,

का तँय  खोए  काय पाय।।


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

बोरे बासी, खेंड़हा* (कुण्डलिया छंद)

 *बोरे बासी, खेंड़हा*

(कुण्डलिया छंद)


खालौ अम्मट मा जरी, संग चना के साग।

बोरे बासी गोंदली, मिले हवै बड़ भाग।

मिले हवै बड़ भाग, पेट ला ठंडा करही।

खीरा फाँकी चाब, मूँड़ के ताव उतरही।

हमर इही जुड़वास, झाँझ बर दवा बनालौ।

बड़े बिहनिया रोज, नहाँ धोके सब खालौ।1


चिक्कट चिक्कट खेंड़हा, चुहक मही के झोर।

बासी ला भरपेट खा,जीव जुड़ाथे मोर।

जीव जुड़ाथे मोर, जरी सस्ता मिल जाथे।

मनपसंद हे स्वाद, गुदा हा अबड़ मिठाथे।

सेहत बर वरदान, विटामिन मिलथे बिक्कट।

बखरी के उपजाय, खेंड़हा चिक्कट चिक्कट।


चोवा राम 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

Wednesday, October 5, 2022

दशहरा परब विशेष छंदबद्ध रचना संग्रह

 





दशहरा परब विशेष छंदबद्ध रचना संग्रह

धर धनुस

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धर धनुस तैं राम बन जा।

 मुरली वाले श्याम बन जा।


 जाड़ कस अन्याय बर जी 

कुनकुनावत घाम बन जा।


 खास के दुनिया अलग हे

 आदमी तैं आम बन जा।


 थोरको तो मिलही राहत

 हम लगाबो बाम बन जा।


 खोंधरा मा आही पंछी 

हर थकाशी शाम बन जा


 आरती अरदास पूजा

 सत सुमरनी नाम बन जा।


 दु:ख कोनो ला मिलै झन

सुख के सउँहे धाम बन जा।


पोंछ आँसू दीन जन के

पुण्य अइसन काम बन जा।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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दोहा

 अपन करेजा झाँकि हव , भीतर मन के मैल l

कतका रावन घट बसे, बइठे हवय अड़ैल ll

कागज लकड़ी बाँस के,  पुतला बना जलाय l

घट भीतर रावन भरे ,  राम कहाँ ले आय ll

जलन बुराई  ईरखा , मोह लोभ अउ काम l

दिन-दिन बाढ़त जात हे, कइसे मिलिही राम ll



आप सबो बुधियार मन ला  विजय दशमी के गाड़ा-गाड़ा बधाई 

दूजराम साहू  *अनन्य*

निवास -भरदाकला (खैरागढ़)

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*मन के रावण मार दे (उल्लाला छंद)*


पुतला ला तै झन जला , मन के रावन मारदे ।

काम क्रोध मन मा बसे , सब ला बंबर बारदे।।

दानव घुमे हजार झन ,बहुरुपिया के भेष मा ।

बल ओखर निसदिन बढ़े ,राम कृष्ण के देश मा।।

धरले बाना हाथ मा , पापी मन ल संहार दे ।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।


बेटी मन के लाज ला , लूटय दानव रोज के।

खनके गड्ढा पाट दे ,बइरी मन ला खोज के ।।

ओखर मुड़ ला काट दे , जे मनखे रुप दाग हे ।

मनखे बन मनखे डसे , ओ जहरीला नाग हे ।।

बइरी मन के वंश ला, खउलत तेल म डारदे।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।


स्वारथ बर चोरी करै, उदिम करेओ लाख जी।

सोना के लंका घलो , जरके होगे राख जी।।

सत् के रद्दा छोड़के , जे अवघट मा जाय जी।

जघा जघा कांटा गडे़ , जिनगी नरक बनाय जी।।

कांटा बने समाज के , ओला जग ले टारदे ।

पुतला ला तै झन जला मन के रावण मारदे।।

            

       बृजलाल दावना

         6260473556

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चौपाई छंद - राम आगमन


आज अवध के आही राजा।गात बधाई मंगल बाजा।।

लीप पोत घर अँगना द्वारी।बांँध पताका आमा डारी।।


जीव जुडा़वत हे महतारी।चउदह बरस टरे दिन कारी।।

राम लखन सीता सुकुमारी।जय जय कार करे नर नारी।।


राज सिंघासन सोहय पनही।राम अवध के राजा बनही।। 

राज तिलक के होय तियारी।आज भाग जागे महतारी।। 


राम लखन सीता मन भावँय। तीन लोक के राजा आवँय।। 

सरस्वती हर धरे सितारा।सातो सुर के बरसे धारा।। 


आय बहू बेटा बनवासी।दाई के दुख बनगे दासी।। 

सोन थार आरती उतारय। खेवन खेवन राम पुकारय।।

शशि साहू

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कुंडलियाँ छंद- रावन(जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया")


रावन रावन हे तिंहा, राम कहाँ ले आय।

रावन ला रावन हने, रावन खुशी मनाय।

रावन खुशी मनाय, भुलागे अपने गत ला।

अंहकार के दास, बने हे तज तप सत ला।

धनबल गुण ना ज्ञान, तभो लागे देखावन।

नइहे कहुँती राम, दिखे बस रावन रावन।।


रावन के पुतला कहे, काम रतन नइ आय।

अहंकार ला छोड़ दव, झन लेवव कुछु हाय।

झन लेवव कुछु हाय, बाय हो जाही जिनगी।

छुटही जोरे चीज, धार बोहाही जिनगी।

मद माया लत लोभ, खोज लग जाव जलावन।

नइ ते जलहू रोज, मोर कस बनके रावन।


रावन हा कइसे जले, सावन कस हे क्वांर।

रझरझ रझरझ पानी गिरे, होवय हाँहाकार।

होवय हाँहाकार, देख के पानी बादर।

दिखे ताल कस खेत, धान हा रोवय डर डर।

जगराता जस नाच, कहाँ होइस मनभावन।

का दशहरा मनान, जलावन कइसे रावन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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दोहा


थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।

आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।


घनाक्षरी


आशा विश्वास धर,सियान के पाँव पर,

दया मया डोरी बर,रेंग सुबे शाम के।

घर बन एक मान,जीव सब एक जान,

जिया कखरो न चान,छाँव बन घाम के।

मीत ग मितानी बना,गुरतुर बानी बना,

खुद ल ग दानी बना,धर्म ध्वजा थाम के।

रद्दा ग देखावत हे,जग ला बतावत हे,

अलख जगावत हे,चरित्र ह राम के।


मन म बुराई लेके,आलस के आघू टेके,

तप जप सत फेके,कैसे जाबे पार गा।

झन कर भेदभाव,दुख पीरा न दे घाव,

बढ़ाले अपन नाँव,जोड़ मया तार गा।

बोली के तैं मान रख,बँचाके सम्मान रख,

उघारे ग कान रख,नइ होवै हार गा।

पीर बन राम सहीं,धीर बन राम सहीं,

वीर बन राम सहीं,रावण ल मार गा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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[10/5, 3:22 PM] आशा देशमुख: रावण के गोठ,

राम के हुँकारू।



रावण बोले राम ला, सुन प्रभु मोरे बात। 

मोला मारे बर इहाँ, काखर हे औकात।। 


मोर नाभि के भीतरी, हावय अमरित कुंड। 

बस पुतला ला लेसथे, ये मनखे के झुंड।। 


मोर हवय दस दस मुड़ी, कोन जानथे मर्म। 

सब कुछ जाने राम तंय, का हे धर्म अधर्म।। 


जगह जगह रावण जले, बने हवंय सब राम। 

साधु जैसे वेष हे, अउ आँखी मा काम।। 


गोटी फेंके धर्म के, बैठे भूत भविष्य। 

मछरी फाँसे रात भर, बगुला मन के शिष्य।। 


अजर अमर रावण हवय, हर युग अउ हर काल। 

बस मारे के चोचला, हे आडंबर ढाल।। 


 काखर मा बड़ शक्ति हे, हाँसत हे लंकेश। 

अब भी रावण राज मा, जीयत  हावय देश।। 



आशा देशमुख

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: कुण्डलिया छंद -( मोला उही जलाय )


लोभ क्रोध मद मोह ला, जे अंतस नइ भाय ।

जेन भगत हे राम के, मोला उही जलाय ।।

मोला उही जलाय, जेन हे सत अनुरागी ।

मन ले सच्चा होय, होय झन तन ले दागी ।।

सदा रखय सत चाह, सुघर हो चिनहा पद के ।

बाॅऺंटे जन मा प्यार, लोभ नइ कोनों मद के ।।


सीना चीर दिखाय जे, हो जइसे हनुमान ।

अंतस सीता राम रख, सदा करॅऺंय गुणगान ।।

सदा करॅऺंय गुणगान, होय झन वो व्यभिचारी ।

नव दिन बर नइ काज, मान रख सदा ग नारी ।।

बन जा हरि के मीत, सिखावव जन जन जीना ।

गा मानवता गीत, दिखादव चाकर सीना ।।


कोन दशानन होत हे,जानौ सब इतिहास ।

कोन भला अउ हे बुरा, हिरदे हो आभास ।।

हिरदे हो आभास, चिन्हारी कर लव सुग्घर ।

राम नाम सिंगार, बना लव काया उज्जर ।।

हिरदे  होवत साफ, जोर हरि आघू आनन ।

जान सबो इतिहास, कोन हे जगत दशानन ।।


देख उही हे राम जग, जे सत के अवतार ।

कबिरा देख बताय हे, इक वो तारनहार ।।

इक वो तारनहार, पूजथें मनखे जेला ।

हंसा सुमिरत जेन, पार हो जमों झमेला ।।

सबके पालनहार, नाम रट काम भगत हे ।

झन होवव मझधार, देख ले राम जगत  हे ।।


छंदकार - राजकुमार बघेल

          सेंदरी, बिलासपुर छ.ग.

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: दशहरा पर्व (रावण कौन)

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पाप बुराई जेखर मन मा,

                         रावण उही कहाथे।

झूठ लबारी अउ असत्य के,

                        गुन जे अब्बड़ गाथे।।     


रावण तो ज्ञानी ध्यानी जी,

                          कोन पार ला पाइस।

एक पाप के कारण जग मा,

                          धारे-धार बहाइस।।

सबो जलादौ मिलके भुर्री,

                      अइसन करम निभाथे।

पाप बुराई जेखर मन मा,................


मन के मइल मिटावौ जम्मों,

                      राम असन बन जावौ।

दाई-दीदी-बहिनी मन के,

                     मिलके लाज बचावौ।।

कतको अत्याचारी बन के,

                       घूमत आँख दिखाथे।

पाप बुराई जेखर मन मा,................


लूट मार छिन-छिन मा करथे,

                    रावण जइसन मिलथे।

सड़क बाँध पुल जंगल जम्मों,

                     राक्षस बनके लिलथे।।

कलयुग के रावण ये मनखे,

                         लहू घलो पी जाथे।

पाप बुराई जेखर मन मा,..............

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रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)