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Saturday, March 23, 2019

छन्द के छ परिवार के होली विशेषांक, भाग - 2













(1) घनाक्षरी छन्द - दिलीप कुमार वर्मा

छमक छमक छम, छम-छम-छम करे,
चटक मटक चल,चुटकी बजात हे।
पटक पटक पग,पायल के धुन बजा,
खनक खनक खन,चुरी खनकात हे।
एक अलबेली छोरी,गाँव के लगे हे गोरी,
रंग सराबोर होरी,रंग में नहात हे।
टूरा सबो पाछू परे, रंग पिचका के धरे,
होरी हे होरी हे होरी,सबो चिल्लात हे।

रचनाकार - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़

(2)  छन्न पकैया छंद - ज्ञानु दास मानिकपुरी

छन्न पकैया छन्न पकैया,रंग मया के घोरव।
राग द्वेष ला बारव संगी,रिस्ता सबले जोड़व।

छन्न पकैया छन्न पकैया,फागुन मस्त महीना।
दया मया मा रहना संगी,सुग्घर जिनगी जीना।

छन्न पकैया छन्न पकैया,धक धक करथे जिँवरा।
चारो मूड़ा रंग उड़त हे,लाली नीला पिँवरा।

छन्न पकैया छन्न पकैया,आमा मउँरे डारा।
फाग चलत हे बस्ती बस्ती,ए पारा ओ पारा।

छन्न पकैया छन्न पकैया,देख ददा शरमावय।
आज बबा औ संगे नाती,नाचत गावत हावय।

छन्न पकैया छन्न पकैया,आज फाग मिल गाबो।
आसो के होली मा संगी,अंतस मा सुख पाबो।

रचनाकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी(कबीरधाम) छत्तीसगढ़

(3) अमृत ध्वनि छन्द- बोधनराम निषादराज

फागुन महिना आय हे,होरी डाँड़ गड़ाय।
लइका मन मुसकात हे,सबके मन ला भाय।।
सबके मन ला,भाय सुनौ जी,खुशी मनावय।
लइका नाचय,माँदर बाजय,मन बउरावय।।
रंग कटोरा,धरके दउडय,अब का कहिना।
देखव  संगी,आए  हावय,फागुन  महिना।।

 (4) अमृतध्वनि छन्द - बोधनराम निषादराज

देखव संगी  धूम  हे, ऋतु  बसंती  छाय।
झूमत हावय फूल हा,फागुन हाँसत आय।।
फागुन हाँसत, आय  हवै गा, गावत  गाना।
रंग उड़ावत, डोलत  हावय, परसा  पाना।।
चारों  कोती, जंगल   झाड़ी,  रंग   बिरंगी।
रंग  माते  हे, मन  झूमे  हे,  देखव   संगी।।

(5)  सार छंद - बोधनराम निषादराज

देखव संगी फागुन आए,ढोल नँगारा बाजय।
लइका बुढ़वा दाई माई,घर कुरिया ला साजय।।

जिनगी मा जी काय धरे हे,बैर भाव ला झारव।
बइरी हितवा जम्मो मिलके,रंग मया के डारव।।

लाली हरियर नीला पिउँरा,सुघ्घर रंग समाए।
छींचव संगी जोर लगाके,फागुन देखव आए।।

रंग लगावय आनी-बानी, मउहा  पीके  झूले।
धर पिचकारी मारय फेंकय,कोनों रेंगत भूले।।

फाग होत हे चारो कोती,  नर-नारी  बइहाए।
नाच-नाच के मजा करत हे,सुग्घर होरी भाए।।

ए जिनगी मा काय धरे हे,चलो मनालव खुशियाँ।
ए जिनगी नइ मिलय दुबारा,झन बइठव जी दुखिया।।


(7) सार छंद - बोधनराम निषादराज

होरी खेलय बरसाना मा,देखव किशन कन्हैया।
नाँगर बोहे मुच-मुच हाँसे,सँग मा हलधर भैया।।

राधा रानी बड़ी  सयानी, भागय  चुनरी छोड़े।
दउड़त जावय किशन मुरारी,मया प्रित ला जोड़े।।

श्याम रंग मा डूबे जम्मो,गोप गुवालिन राधा।
झूमत हावय बृज नर-नारी,कखरो नइ हे बाधा।।

प्रेम मगन मा खेलत हावय,डंडा  नाचत हावय।
भर पिचकारी मारत हावय,सुघ्घर फगुवा गावय।।

खेलय होरी राधा मोहन,देवता मन हरसावय।
धन्य भूमि हे भारत भुइयाँ,जम्मों खुशी मनावय।।


(8) सार छंद - बोधनराम निषादराज

गली गली मा धूम मचे हे,नाचत फगुवा गावय।
होरी खेलय रंग उड़ावय,भंग खुशी मा खावय।।

मातय झूमय गली खोर मा,ढोल नँगाड़ा बाजय।
धर पिचकारी आरा रारा,बइहाँ सुघ्घर साजय।।

भेद-भाव अउ लाज शरम ला,छोड़ भगागे भाई।
बहू बेटी के नइ चिन्हारी,  नइ हे दाई - माई।।

टूरी टूरा एक दिखत हे, कोनों करिया पिउँरा।
रंग मया मा फाँसय कोनों,कखरो तरसय जिवरा।।

अइसन होरी अउ कब आही,बने इहाँ अब खेलव।
जिंयत मरत के संगी-साथी,रंग मया के लेलव।।

(9) छप्पय छन्द - बोधनराम निषादराज

होरी  खेलय  श्याम, धूम  हा  मचगे  भारी।
कुँज गलीन मा आज,मातगे नर अउ नारी।।
राधा बिसरे लाज,मया हे मोहन सँग मा।
मारय छर-छर रंग,परत हे जम्मो अँग मा।।
गली खोर मा  झूम के, लोक लाज ला भूल के।
हाँसय खुल खुल प्रेम में,राधा गोरी झूल
के।।

(10)  छप्पय छन्द - बोधनराम निषादराज

बजय नँगारा देख,सबोझन नाचय गावय।
टिमकी तासक ढोल,रंग मा रंग जमावय।।
होरी खेलन आय, मया मा  खेलय  होरी।
जम्मो रंग गुलाल,गाल मा  मारय  छोरी।।
दया मया अउ प्रेम के,हावय इही तिहार गा।
बइरी हितवा होत हे, खुशियाँ छाय अपार गा।।

(11) कुण्डलिया छन्द - बोधनराम निषादराज

मोहन गावय फाग ला,राधा  रंग  लगाय।
बरसत हावै प्रेम हा,मनखे मन बउराय।।
मनखे मन बउराय,देख लव  माते  होरी।
नाचत हावय गोप,  संग मा राधा  गोरी।।
बरसाना हा देख,सबो के मन ला भावय।
होरी खेलत श्याम,फाग ला सुघ्घर गावय।।

(12) कुण्डलिया छन्द - बोधनराम निषादराज

फागुन आ गे देखतो,परसा फुलगे लाल।
चारो मुड़ा तिहार कस,बदले हावै चाल।।
बदले हावै चाल,समागे  सबके  मन  मा।
सरसो फूल अपार,छातहे अब उपवन मा।।
अइसन बेरा देख,मोर मन ला अब भा गे।
सुग्घर पुरवा आय,देखतो फागुन आ गे।।

 (13) कुण्डलिया छन्द - बोधनराम निषादराज

हाँसत हावै  फूल हा, मोरो  मन   बउराय।
भँवरा गुनगुन गात हे,आगी हिया लगाय।।
आगी जिया लगाय,कोन ला भेजँव पाती।
जोड़ी  हे  परदेश, दुःख मा  जरथे छाती।।
बैरी फागुन आय,करौं का कुछु नइ  भावै।
देख हाल ला मोर,फूल  हा  हाँसत  हावै।।

(14) किरीट सवैया - बोधनराम निषादराज

ढोल बजे बृज मा रधिया सँग मोहन रास रचावत हावय।
फागुन रंग उड़े फगुवा सब फाग सुनावत गावत हावय।।
माँदर बाजत देख गुवालन हाँसत भागत आवत हावय।
मातु जसोमति नंद बबा यह देखत फाग मनावत हावय।।

(15 महाभुजंग प्रयात सवैया - बोधनराम निषादराज

बजै ढोल बाजा नँगारा सुहावै,दिखै आज लाली गुलाली कन्हैया।
धरे रंग हाथे लगावै मुहूँ मा,इहाँ राधिका हा लुकावै ग भैया।।
भरे हे मया राग कान्हा बलावै,लजावै ग  गोपी कहै हाय दैया।
मया मा फँसा रंग डारै मया के,नचावै सँगे मा मया के रचैया।।

(16) महाभुजंग प्रयात सवैया - बोधनराम निषादराज

झरै पान डारा उड़ावै हवा मा,नवा पान सोहै बसन्ती सुहावै।
दिखै फूल लाली ग टेसू खड़े हे,बरै देख आगी हिया ला जलावै।।
बढ़ावै मया ला चलै कामदेवा,धरे काम के बान मारै सतावै।
उड़ै रंग होली बसन्ती हवा मा,सबो आज  लाली गुलाली लगावै।।

रचनाकार (क्रमांक 3 से क्रमांक 16) -
बोधन राम निषाद राज "विनायक"
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)

Thursday, March 21, 2019

छन्द के छ परिवार के होली विशेषांक





(1) कुकुभ छन्द - द्वारिका प्रसाद लहरे

आय हवय जी फागुन महिना,खुशी मनालव होली मा।
रंग मया के सबला डारव,मधुरस घोरव बोली मा।।1

मीत बनालव सबला भइया,जीयव जिनगी ला सादा।
उधम मचावव झन कोनों जी,राखव सबके मरजादा।।2

नशा भाँग के चस्का छोड़व,होली पावन बेला मा।
दया मया ला बाँटे सीखव,ये दुनिया के मेला मा।।3

चिखला माटी के झन खेलव,कभू तुमन ये होली जी।
भाई चारा बाढ़त राहय,अइसन बोलव बोली जी।।4

बचत करव पानी के भइया, लकड़ी ला झन बारौ जी।
सुमता ले सब परब मनावव, कुमता के मुँह टारौ जी।।5

पाँव परव गा सबो बड़े के,टीका माथ लगावौ जी।
गाँव गली मा बजे नँगारा,मिलके धूम मचावौ जी।।6

भेद भाव ला सबो भुलाके,सब ला गले लगावौ जी।
फाग मया के मिलके गावव,होली बने मनावौ जी।।7

झन छेदव अंतस ला कखरो,महुरा जइसन बोली मा।
बन जव भइया सब झन हितवा, ये आँसो के होली मा।।8

छन्दकार -
द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा
जिला कबीरधाम छत्तीसगढ़


(2)  सरसी छंद - मीता अग्रवाल

लाली लाली परसा फूले,सजगे दुलहिन  नार।
आमा मौरा पेड़ लदागे,आय फागुन तिहार।।

झूमव नाचव एक संग सब,जुर मिल गावव फाग।
कूक कोयली के मनभाथे,मया पिरित के  राग।।

लाल गुलाबी रंग लगा ले,ये फागुन  ब्यौहार।
बैर द्वेष ला घलो मिटाथे,होरी प्रीत तिहार।।

मया पिरित के तिहार होली,बोलव गुत्तुर बोल।
अरसा खाजा अउ देरौरी, देख जथे मन डोल।।

अब के फागुन रूप निराला,जोही मोरे साथ।
रंग भंग अउ संगी साथी, हवय हाथ मा हाथ।।

नसा करव झन खेलव होरी,होय रंग  मा भंग ।
मार काटअउ मति नास हो,अइसन का हुड़दंग।।

अब के होली मा सब बारव, पाकिस्तानी जाल।
देश धरम बर पिरित निभाओ,अइसन मोरे ख़्याल ।।

दुश्मन ला हे मार भगाना,हरदम राखव याद।
घुसपैठी ला मार भगाहूँ,करना हे बरबाद ।।

छन्दकार - मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़

(3) कुकुभ छंद -  मीता अग्रवाल

तिहार के खुशी

गाँव  गाँव मा भरथे मेला,सजे  हाट मँड़ई जाबो।
किसम किसम के मीठा लेबो,रखिया पेठा ला खाबो।।1

खेत ख़ार मा धान उले हे,तिवरा राहर भी झूमे।
सोन असन जी चमकय बाली, सब किसान धरती चूमें।।2

रंग रंग के साज सजे हे,गली खोर अउ चौबारा ।
फागुन के मसती मा डूबे, खुशी हवे झारा झारा।।3

आमा डारा महके फूले,कोयलिया कूक सुनाए।
भरे बिहनिया सुरुज देवता,जम्मों प्राणी ला भाए।।4

जंगल मा आगी कस फूले,लाली परसा हा छाए।
अमलतास  गुलमोहर टेसू, फगुवा सुवास बगराए।।5

चूँ -चूँ चरचर बइला गाड़ी, हाँकत जावय बनवारी।
अण्डी लुगरा पहिरे बहिनी,धान लुऐ सब नरनारी।।6

बजे नगाड़ा ढ़ोल ढ़माका ,रीति नीति के धागा मा।
चैत मास मा चैती गाले,तुर्रा बांधे साफा मा।।7

रूप नवा धर दाईभुइयाँ,  बाढ़े दिन रतिहा छोटे । 
होरी के माँदर धुन सुन के,  गावत फाग खुशी लौटे।।8

मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़

(4) छन्नपकैया छंद-असकरन दास जोगी

छन्नपकैया छन्नपकैया,आगे फागुन होली |
रचहीं रूख काट के संगी,रोज होलिका टोली |1|

छन्नपकैया छन्नपकैया,दहन रात मा करथें |
खूब डारथें लकड़ी छेना,बमल होलिका बरथे |2|

छन्नपकैया छन्नपकैया,रंग घोर ला लाली |
भैया भौजी फाग खेलहीं,गजब ठोंकबो ताली |3|

छन्नपकैया छन्नपकैया,आज हवै जी होली |
पाख अँजोरी चौदस फागुन,जेकर मंगल बोली |4|

छन्नपकैया छन्नपकैया,फूल पेंड़ मा नाचे |
भौंरा होगे लट्टू बपुरा,तन कइसे अब बाँचे |5|

छन्नपकैया छन्नपकैया,ठोंकत हे नंगारा |
रंगे रंग सबो हें माते,घूमत आरा-पारा |6|

छन्नपकैया छन्नपकैया,कतको देत बधाई |
घर-घर बनगे रोटी-पीठा,बाँटत खूब मिठाई |7|

छंदकार -
असकरनन दास जोगी
ग्राम-डोंड़की पोस्ट+तह-बिल्हा
जिला-बिलासपुर, छत्तीसगढ़

(5) चौपाई छंद- शुचि 'भवि'

लाल गुलाबी हरियर पीला,भाथे मोला रंग सजीला।
गोपी मन देखव गरियाथे, कान्हा कइसन रंग लगाथे।।

मारे रँग के हे पिचकारी,राधा लुकत छिपत बेचारी।
मोहन सँग खेलिस हे होली, भीगय देखव अँगिया चोली।।

बरसाना ब्रज वृंदावन मा, भारत के हर इक आँगन मा।
होली मनथे प्रीत बँधाये, सब सुग्घर त्यौहार मनाये।।

शुचि 'भवि'
603,रॉयलग्रीन
जुनवानी
दुर्ग
छत्तीसगढ़

(6) छंद--चोवा राम "बादल"

          होली हे

होली हे होली हे होली, बोलव जी मीठा बोली।
फाग गुड़ी मा माते हावय, नाचौ जम्मों हमजोली।
झाँझ मँजीरा हावय बाजत,घिड़़कत हे आज नँगारा।
रंग गुलाल उड़ावत हें लइका, घूमत हें आरा पारा ।1

भौंरा गुनगुन गावत हावय,मारतहे कोयल कुहकी ।
माते हावय परसा आमा, माते हे मउँहा गउकी।
पुरवइया बड़ मँमहावत हे,रुखवा पीपर हरियागे।
मोंह डरे हे फागुन राजा, बाग बगइचा मोंहागे।2

कुरता पटकू ला भींजन दव, भींजन दव लुगरा चोली ।
मेंछा टेंवय बबा सियनहा, भौजी हा करय ठिठोली ।
का राखे हे ए जिनगी मा ,झूमौ थोकुन मस्ती मा ।
हँसी खुशी के बादर छावय, हमरो पावन बस्ती मा ।3

श्वांसा पंछी उड़ जाही तब, लहुट दुबारा नइ आही।
माटी के काया माटी मा, माटी होके मिल जाही ।
तउँर तउँर के चलौ नँहाबो, दया मया के तरिया मा ।
बैर भाव के कूड़ा कचरा, जोर बार दव परिया मा ।4

छन्दकार - चोवा राम "बादल "
             हथबंद (छग)


(7) दोहा छंद- कन्हैया साहू अमित

परसा सरसो सेमरा, होरी के लगवार।
फागुन बड़ मसमोटिया, मटमटहा मतवार।-1

आके फागुन हा कहय, होरी मया तिहार।
बैरभाव ला छोंड़ के, बैरी घलो सँघार।-2

रंगव सब ला एक मा, का के अपन बिरान।
सतरंगी सुमता अमित, होरी के पहिचान।-3

जोंही जाँवर जहुँरिया, जुरमिल जबरन छेंक।
धरव चिभोरव ड्राम मा, नइ ते फुग्गा फेंक।-4

लइका छउआ सियनहा, होरी खेलव पोठ।
सावचेत खच्चित रहव, इही सार हे गोठ।-5

हाँसी ठट्ठा ठीक हे, राख फेर मरजाद।
चिटिक मजा के फेर मा, होवय झन बरबाद।-6

मउका मनमरजी मया, पीये खाय मतंग।
नइ सहाय जी काखरो, जादा के उतलंग।-7

संगी तैं दुरिहा बसे, फेर पूछ ले हाल।
आथे सुरता तोर तब, होय गुलाबी गाल।-8

छन्दकार - कन्हैया साहू "अमित"
 भाटापारा~छत्तीसगढ़

(8) मत्तगयंद सवैया - ज्योति गभेल

फागुन आवत माँदर बाजय सुघ्घर फाग ल गावत होरी।
रंग गुलाल अबीर उड़े अउ केसरिया मन भावत होरी।।
बाजत हे सुरिली बँसुरी अउ तान घलो रस लावत होरी।
आय हवे मधुमास ग रंग लगावत मीत मिलावत होरी।।

छन्दकार - ज्योति गभेल, कोरबा

(9) सरसी छन्द - वसंती वर्मा
           
लाली लाली परसा फूले,आगे फागुन मास।
धर पिचकारी होरी खेलें,देख बहुरिया सास।1।

मया पिरीत ला बाँटे होरी,मन मइलाये धोय।
जुन्ना झगरा अइसन टोरे,झगरा फेर न होय।2।

बाजे माँदर ढोल नंगाड़ा,गाँव म चौकी आँट।
गुजिहा भजिया बरा बनाबो,खाबो मिल सब बाँट।3।

रंग धरे हँव लाली पिंवरा,होरी- आज तिहार।
हाँसव खेलँव होरी मैं जी,जोही- संग हमार।4।

अमरइया के छाँव -

रंग धरे आइस वासन्ती,मउरे आमा फूल।
बइठे हावय कोयल कारी,गावय झुलना झूल।1।

आमा डारा मउरे घम- घम,हरियर- हरियर पान।
लागय लुगरा पिंवरा पहिरे,दुलहिन जइसन जान।2।

महर- महर महकय अमरइया,सुनें चिरइयाँ चाँव।
गीत सुनें कोयल कारी के,बइठे आमा छाँव।3।

आमा के डारा मा बइठे,देख सुवा इतराय।
हमर दुनों के जोड़ी संगी,सब्बो झन सहराँय।4।

देखें झट ले संझा होगे,संझा ले अब रात।
मन मा आशा धर के राखौं,भूलौं दुख के बात।5।

           
(10) छन्न पकैया छंद - राजेश कुमार निषाद

छन्न पकैया छन्न पकैया, सबला रंग लगाबो।
आगे हावय होली संगी,मिलके खुशी मनाबो।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,गली गली मा सजही।
मिले भांग के गोला संगी,ढोल नगाड़ा बजही।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, रंगों के हे होली।
रंग गुलाल धरके निकले,लइका मनके टोली।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,एक जगह सब आथे।
बैर भुलाके रंग लगाके,सबला गले मिलाथे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,जादा झन इतराहू।
चुरही घर घर रोटी संगी,देख ताक के खाहू।।


छंदकार - राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग , जिला रायपुर ( छ. ग.)

(11) दोहा छन्द - श्लेष चंद्रकार

(1)
होली सत के जीत के, पावन हरय तिहार।
करथे अंतस मा हमर, सुख के ये संचार।।
(2)
होली के सब रंग हा, सुख के हरय प्रतीक।
जुरमिल सबके साथ मा, परब मनाना ठीक।।
(3)
नंगाड़ा धुन मा बिधुन, गाथन फागुन गीत।
सबला रंग लगाय के, होली मा हे रीत।।
(4)
ऊँच-नीच अउ धर्म के, भेद करव झन आज।
होली परब मनाव गा, जुरमिल सबो समाज।।
(5)
होली मा सुरता करव, लइकापन के बात।
रंग निकालन फूल के, पानी करके तात।।
(6)
बचपन के होली परब, मन मा भरय उमंग।
एक जुअर के होत ले, खेलन अब्बड रंग।।
(7)
मया-प्रीत से गाँव मा, खेलन रंग गुलाल।
बचपन के होली हमर, संगी रहिस कमाल।।
(8)
रंग केमिकल के बने, लाथे खजरी रोग।
करहू हर्बल रंग के, होली मा उपयोग।।
(9)
पानी अड़बड़ लागथे, रंग धोय बर मीत।
तिलक लगा के खेलहू, होली परब पुनीत।।
(10)
अलकरहा होली परब, आज मनाथें लोग।
चिखला वार्निश पेंट के, करत हवय उपयोग।।
(11)
देखव मनखे ला अपन, बेच डरे हे लाज।
होली कहिके चीरथे, कपड़ा लत्ता आज।।
(12)
आनी-बानी कर नशा, करथें जे अतलंग।
होली मया तिहार ला, करथें वो बदरंग।।

छन्दकार -
श्लेष चन्द्राकर,
खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़) पिन - 493445,


(12) महाभुजंग प्रयात सवैया - आशा देशमुख

मया रंग पक्का लगाले मयारू अभी आय हावै धरे रंग होली।
रहे मान रिश्ता नता लागमानी सबो संग बोलो मया गोठ बोली।
न देखे कभू रंग छोटे बड़े ला सबो ला दुलारे घलो प्रीत भोली।
सहेली सखी संग नाचे नचाये करे हे मया देख हाँसी ठिठोली।।

छन्दकार -
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

(13)  आभार सवैया - आशा देशमुख

होली घलो आ गए तीर संगी बजावौ नगाड़ा रचौ गीत गा फाग।
गावौ सुनावौ मया मीठ बोली सनाये रहे चाशनी छंद के पाग।
मेटौ मिटावौ सबो बैर के भाव हाँसी ख़ुशी प्रीत के हो बने राग।
खेलौ सबो संग रंगे गुलाले मया मान राखौ ग रिश्ता नता लाग।

छन्दकार -
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

(14) कुण्डलिया छंद - आशा देशमुख

होली के हुड़दंग मा ,झन भूलव संस्कार।
डारव सुघ्घर रंग ला, राखव मया दुलार।
राखव मया दुलार ,इही बस रहिथे पक्का।
देखव आँखी कान ,होय झन हक्का बक्का।
आये रंग तिहार, मया के बोलव बोली।
भाईचारा संग, बने सब खेलव होली।

छन्दकार -
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

(15) कुण्डलिया छंद - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

होरी  आये  संग  मा,धरके  रंग गुलाल।
गीत फगुनवा  हे बजत,नंगारा के ताल।
नंगारा  के  ताल,सबो  नाचत  हे  भारी।
भौजी धरे गुलाल,धरे भइया पिचकारी।
रसिया  रंग  लगाय,नैन  फेरत  हे गोरी।
सरा  ररा  के बोल,खूब  गूँजत  हे  होरी |1|

होरी  के  हुड़दंग  ला,देख  रहँव मैं  दंग।
छोड़ प्रेम के राह ला,मते सबो जग जंग।
मते सबो जग जंग,भंग की गटकै गोली।
भूले  रीत  रिवाज ,बोलथे कड़ुवा बोली।
पी के  दारू  मंद,करत  हे  सीना  जोरी।
रखौ मया ला बाँध,सबो मिल खेलव होरी |2|

सबके मन ला जीत लौ,दहन करौ मन द्वेष।
भेदभाव ला  छोड़ के,सुघर  रखव परिवेश।
सुघर   रखव  परिवेश, देत   संदेशा   होरी।
लगा मया  के  रंग,पिरित  के  बाँधव डोरी।
रोवय  नयना  मोर ,देख  होरी  ला  अबके।
झन करहू  हुड़दंग,करौं  बिनती  ला सबके |3|

छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बिलासपुर

(16) घनाक्षरी छंद :- जगदीश "हीरा" साहू

हाथ मा गुलाल धरे, कोनो पिचकारी भरे, कोनो हा लुका के खड़े, आगू पाछू जात हे।
लईका सियान संग, बुढ़वा जवान घलो, रंगगे होली मा गली गली इतरात हे।।
गली मा नगाड़ा बाजे, मूड़ पर टोपी साजे, बड़े बड़े मेंछा मुँह ऊपर नचात हे।
गावत हावय फ़ाग, लमावत हावै राग, सबो संगवारी मिल, मजा बड़ पात हे।।

बाहिर के छोड़ हाल, भीतर बड़ा बेहाल, भौजी धर के गुलाल काकी ला लगात हे।
हरियर लाली नीला, बैगनी नारंगी पीला, आनी बानी रंग डारे, सब रंग जात हे।।
माते हावै हुड़दंग, भीगे सब अंग अंग, अँगना परछी सबो रंग मा नहात हे।
बइठे बाबू के दाई, सब के होली मनाई, अपन समय के आज सुर ला लमात हे।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़

(17) मनहरण घनाक्षरी छंद - दुर्गाशंकर इजारदार

ब्रज में होरी -

गोरी गोरी राधा रानी, रंग धरे आनी बानी ,
कन्हैया ला खोजत हे ,गोपी सखी संग हे ।
करिया ला करिया मा , अउ रंग फरिया मा ,
पोते बर करिया ला ,मन मा उमंग हे।
कदम के रुख तरी , खोजे गली खोल धरी ,
कन्हैया तो मिले नहीं ,राधा रानी तंग हे ।
कहत हे हाथ जोड़ ,आजा राधे जिद छोड़ ,
तोर बिना होरी के ये ,जीवन बेरंग हे ।।

होरी के मउसम -

परसा हा फूले हावै, आमा हर मौरे हावै ,
गुन गुन भौंरा करे, पीये जैसे भंग हे ।
कोयली हा गात हावै ,जिया हरसात हावै,
सरसों हा फूल के तो , झूमत मतंग हे ।
फागुन के रंग में तो ,सबो झन मात गे हे ,
सबो रंग मिल के तो ,होगे एक रंग हे ।
चार तेन्दू लोरी डारे ,मन ला तो मोही डारे,
मया अउ पिरित मा , भीगे अंग अंग हे ।

अइसन होली खेलव -

दया मया के तो डोरी ,बाँध खेलौ सब होरी ,
जात पाँत बैर भाव ,मन से निकालव गा ।
हरा पीला नीला लाल ,पोत डारौ मुँह गाल ,
छोटे बड़े सब संग ,मिल के मनालव गा ।
झन करौ हुड़दंग,छोड़ देवा दारू भंग ,
दूरिहा के काल झन, तीर मा बुलावव गा ।
कहत हँ हाथ जोड़ ,परत हँ पाँव तोर ,
सबो से तो नाता ला जी ,बने निभावव गा ।

दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ(मौहापाली)

(18) सार छन्द  - राजेश कुमार निषाद: छंद

महिना फागुन गजब सुहाथे, आथे जब गा होली।
मया पिरित ला बाँधे रखथे, गुरतुर हमरो बोली।।

हाँसत गावत रंग लगाहू, करहू नही झमेला।
बैर भुलाके आहू संगी,पारा हमर घुमेला।।

नीला पीला लाल गुलाबी,धरे रंग ला आहू।
बैर भाव ला छोड़े संगी,सबला गले लगाहू।।

ढोल नगाड़ा बजही अबड़े,गीत फाग के गाबो।
रंग भरे पिचकारी मारौ, मिलके मजा उड़ाबो।।

गली गली मा मिलके घुमबो,बढ़िया अलख जगाबो।
भाई चारा के संदेशा,देवत सबझन जाबो।।

छंदकार -  राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद पोस्ट समोदा तहसील आरंग जिला रायपुर ( छ. ग.)

(18) त्रिभंगी छंद - श्रीमती आशा आजाद

होली सुग्घर मानव

होली सब मानव,मिल जुल गालव,समता के सब,ध्यान करौ।
सुग्घर हो बोली,हँसी ठिठोली,प्रेम भाव के,रंग धरौ।
भाखा सब सुनलौ,मीठ ला गुनलौ,समता के सब ,रंग चुनौ। ।
मानुष बन सुग्घर,सुन अपने बर,नशा करे हे,नाश सुनौ।।

जन-जन हा माने,सुग्घर जाने,पिचकारी हा,खूब चले।
झगड़ा झन करिहौ,प्रेम ल धरिहौ,पीला नीला,रंग डले।
नाचौ अउ गालौ,घूम मचालौ,ढोल नगाड़ा,खूब बजे।
सुग्घर सब लागय,भुइँया भावय,रंगोली कस,जान सजे।।

माते झन राहव,सुग्घर ठानव,नशा सदा ले,नाश करे।
होली सब मानौ,सुग्घर जानौ,मीठ मया के,भाव धरे।
रोटी ल बनावौ,मिलजुल खावौ,अरसा खुरमी,मीठ लगे।
रंग ल लगावव,खुशी मनावव,मन पीड़ा हा,आज भगे।।

रचनाकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

(19) कुण्डलिया छन्द - विरेन्द्र कुमार साहू

होली  रंग  तिहार  मा , रंग  प्रेम  के घोल।
पिंवरा लाल गुलाल ले , प्रेम रंग  अनमोल।
प्रेम रंग अनमोल , बुड़े  ते हा  पाये   फल।
रँगे प्रेम के  रंग , होय मन निर्मल उज्ज्वल।
कह प्रवीर कविराय , लगा लव टीका रोली।
परब मना सानंद , मया  मा  झुमके   होली॥

कवि : विरेन्द्र कुमार साहू
  ग्राम : बोड़राबाँधा (पाण्डुका)
जिला : गरियाबंद  (छत्तीसगढ़)

(20) दोहा छंद - सुरेश पैगवार

जघा जघा मा देखलव, खेलत हावँय रंग।
माते होरी आज हे,   सब हें टोली  संग।।

काका काकी हें भिड़े, होवत हावय जंग।
बड़का बाबू देख के,   होवत हावय तंग।।

भउजी छानत आज हे, तरह तरह पकवान।
भइया बइठे खात हे,    बबा कहै दे लान।।

नवा बहुरिया झेंपथे, खेले बर जी फाग।
ननद बइठथे तीर मा, तभ्भे बनथे राग ।।

लइकन पिचकारी धरे, दउड़ें चारो ओर।
कोनो बँच पायें नहीं, घर हो चाहे खोर।।

गुड़ी गुड़ी मा लोग जी, गावत हावँय फाग।
सुग्घर सुर मा गीत हे,  सुग्घर सुर मा राग।।

बूढ़ी दाई सोच मा, पड़गे हावय आज।
फौजी बेटा देश के, राखत होही लाज ।।

छन्दकार - सुरेश पैगवार
               जाँजगीर, छत्तीसगढ़


(21) कुण्डलिया छंद - मोहन लाल वर्मा

      शीर्षक -  मया ला बाँटव

बाँटव मया दुलार ला,गावव  फागुन गीत।
होली रंग तिहार के,आगे हे मन मीत।।
आगे हे मन मीत ,सुमत के बाँधव  डोरी।
देवव सब ला फेर,बधाई  कोरी कोरी ।।
लेसव इरखा द्वेष,सबो के मन मा झाँकव।
झूमव नाचव पोठ,मया ला जग मा बाँटव।।

रचनाकार- मोहन लाल वर्मा
पता-ग्राम अल्दा, पो.आ.-तुलसी (मानपुर)
व्हाया-हिरमी, वि.खं.-तिल्दा, जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़)पिन-493195


(22) छप्पय छंद- श्रीमती नीलम जायसवाल

-फागुन-

फागुन महिना आय,बजत हे ढोल नगाड़ा।
सबला देवँव आज, बधाई गाड़ा-गाड़ा।।
मैत्री के संदेश, देत हे देखव होली।
बैर-कपट ला बार,होलिका मा हमजोली।।
अउ मस्तक टीका ला लगा,गला लगा के मान दे।
कर अब ले पक्का दोस्ती,जुन्ना गोठ ल जान दे।।

-होरी-

होरी के त्योहार, नगाड़ा ढम-ढम बाजे।
अलकरहा सन भेस, सबे लइका मन साजे।।
कोनो पहिरय टोप,मुखौटा कोनो लावै।
कोनो नकली केश,लगा साधू बन जावै।।
घोरे हे रँग लाल ला,सब रँग धरे गुलाल जी।
सब ला रँग ले दे भिँजो,मच गे हवय बवाल जी।।

रचनाकार-
श्रीमती नीलम जायसवाल
भिलाई, खुर्सीपार
जि.-दुर्ग (छ.ग.)

(23) अमृत ध्वनि छंद - श्रीमती नीलम जायसवाल

-होली-

होली के दिन आय हे, रंग म डारव रंग।
मार-पीट ला झन करौ,पड़य कहूँ ना भंग।।
पड़य कहूँ ना,भंग हो संगी,धीरज धरिहौ।
गला लगा के,बइरी तक ला,मितवा करिहौ।।
खावव गुझिया, संगी मन सँग,करव ठिठोली।
साल म एक्के,घाँव त संगी,आवय होली।।

रचनाकार-
श्रीमती नीलम जायसवाल
भिलाई, खुर्सीपार
जि.-दुर्ग(छ.ग.)

(24) कुकुभ मुक्तक - सूर्यकान्त गुप्ता

कइसे बदलँव अपन आप ला, खोजत हँव दिन जुन्ना जी।
आये हे होली तिहार पर, लगत हवय घर सुन्ना जी।।
काकर सँग बोलँव बतियावँव भाव प्रेम के बिन उमड़े
गँउटनीन तिर होवत रहिथे दिनभर तुन्नक तुन्ना जी।।

छन्दकार - सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग (छ.ग.)

(25) सरसी छन्द गीत - जितेंद्र वर्मा खैर झिटिया

रंग परब

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय   बुराई  नास।
सत के जोती जग मा बगरे,मन भाये मधुमास।

चढ़े दूसर दिन रंग मया के,होवय सुघ्घर फाग।
होरी   होरी  चारो   कोती, गूँजय  एक्के  राग।
ढोल नँगाड़ा बजे ढमाढम,बजे  मँजीरा  झाँझ।
रंग गुलाल उड़ावय भारी,का बिहना का साँझ।
करिया पिवँरा लाली हरियर,चढ़े रंग बड़ खास।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास....।

डूमर  गूलय  परसा फूलय, सेम्हर होगे लाल।
सरसो चना गहूँ बड़ नाचय,नाचे मउहा डाल।
गरती  तेंदू  चार  चिरौंजी,गावय  पीपर  पात।
बइठे आमा डार कोयली ,सुघ्घर गीत सुनात।
घाम हवे ना जाड़ हवे जी,हवे मया के वास।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास--

होली  मा  हुड़दंग  मचावय,पीयय  गाँजा  भांग।
इती उती चिल्लावत घूमय,तिरिया असने स्वांग।
तास जुआ अउ  दारू पानी,झगरा झंझट ताय।
अइसन मनखे गारी खावय,कोनो हा नइ भाय।
रंग मया के अंग लगाके,जगा जिया मा आस।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास..।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

(26) कुकुभ छंद - पोखन लाल जायसवाल

लाली लाली परसा धरके ,फागुन पहुना आए हे ।
पिंवरा पिंवरा मउरे आमा , राजा बनके छाए हे ।।

बैर भाव ला दूर भगा के , मया भरे बोलव बोली ।
होली हे होली हे होली , नाचव गावव हमजोली ।।

आज बाजही खूब नँगाड़ा ,फाग बिधुन होके गाही ।
धरे खड़े हे पिचकारी सब , कोन रंग ले बँच पाही ।।

मीत मितानी मानन बढ़िया , घोर मया के बोली ला ।
रहन नता के मरजादा मा , खेलन अइसन होली ला ।।

माटी के तन माटी होही , मिल जुर के खेलन होली ।
ऊँच नीच के खाई पाटत , भर लन पिरीत के झोली ।।

पारा पारा मा खेलत हे , होली मारत पिचकारी ।
रंग देत हे बरपेली तब , मया भरे खावय गारी।।

छंदकार :
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह , पोस्ट कुसमी ,तहसील पलारी जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग

(27) दोहा;- अजय अमृतांशु

ब्रज मा होरी हे चलत, गावत हे सब फाग।
कान्हा गावय झूम के,किसम-किसम के राग।। 1।।

राधा डारय रंग ला, सखी सहेली संग।
कान्हा बाँचे नइ बचय,भींजत हे सब अंग।।2।।

ढोल नगाड़ा हे बजत, पिचकारी मा रंग।
राधा होरी मा मगन, सखी सहेली संग।।3।।

गोकुल मा अब हे दिखत,चारो कोती लाल।
बरसत हावय रंग हा,भींजत हे सब ग्वाल।।4।।

लाल लाल परसा दिखय,आमा मउँरे डार।
पींयर सरसों हे खिले,सुग्घर खेती खार।।5।।

तन ला रंगे तैं हवस,मन ला नइ रंगाय।
पक्का लगही रंग हा,जभे रंग मन जाय।। 6।।

छोड़व झगरा ला तुमन,गावव मिलके फाग।
आपस में जुरमिल रहव,खूब लगावव राग।।7।।

आँसों होरी मा सबो,धरव शांति के भेष।
मेल जोल जब बाढही,मिट जाही सब द्वेष।।8।।

कबरा कबरा मुँह दिखय,किसम किसम के गोठ।
मगन हावय सब भाँग मा,दूबर पातर रोठ।।9।।

मिर्ची भजिया देख के,जी अड़बड़ ललचाय।
छान छान के तेल मा, नवा बहुरिया लाय।।10।।

भँगहा भकवा गे हवय ,मंद मंद मुस्काय।
सूझत नइ हे का करय,कोन डहर वो जाय।।11।।

खसुवा के मरना हवय,खसर खसर खजुवाय।
होली के हुड़दंग मा,  मजा कहाँ ले पाय।।12।।

दरुहा मन ढरकत हवय , पीके सब चितयाय।
बस्सावत हे जोर के, देख कुकुर सुँघियाय ।।13।।


(28)  दोहा छंद - संतोष कुमार साहू

चिंता ला सब छोड़ के,होली खेलव आज।
दुख भगाय के ये हरे,सुख के सुग्घर राज।।

रंग लगा तँय हाँस के,रोना धोना छोड़।
मौका ला ये झन गँवा,सबसे नत्ता जोड़।।

कुछ दिन के जिनगी हरे,बैर भाव ला मार।
उज्जर दिल करके बने,रंग खुशी के डार।।

मनखे मनखे मेल के,ये तिहार ला जान।
सब तिहार से हे मजा,अपन बिरान समान।।

एक साल मे एक दिन,लावय खुशी हजार।
बड़ चड़ के मानो सबो,लगय चाँद कस चार।।

संतोष कुमार साहू
ग्राम-रसेला
जिला-गरियाबंद

(29 मत्तगयंद सवैया - कौशल कुमार साहू

फागुन रंग धरे

लाल हरा करिया पिंवरा सतरंग सने सँघरा सँगवारी ।
मोहन सोहन कोन हरे ककरो मुँह के नइये चिनहारी।
गाँव गली सब गोप गुवालिन नाचत हे रधिया बनवारी ।
फागुन रंग गुलाल धरे इतरावत मारत हे पिचकारी ।

महा भुजंग प्रयात सवैया

मया के रंग

मया रंग लाली गुलाबी हरा जी लगावै मया मा दुबारा तिबारा।
लजावै नहीं पोठ हाँसी ठिठोली मतंगी मया मा कुँवारी कुँवारा ।
मया मा सनाये सबो संगवारी चिन्हावै नहीं कोन भाँटो जँवारा ।
बने फाग गावै बबा गोंटिया हा गुड़ी चौंक पारा म बाजै नँगारा ।

सुखी सवैया (रितुराज )

अरसी धनिया सरसों फुलवा सबके मन ला अरझावत हाबय ।
अमवा मँउरे चुहकी चहके कुहु कोकिल गुत्तुर गावत हाबय ।
मँउहा टपके बिरही तरसे कपसा हर दाँत दिखावत हाबय ।
रितुराज बसंत सजे सँवरे कवि कौशल हा परघावत हाबय ।

छन्दकार - कौशल कुमार साहू
गांव :- फरहदा (सुहेला )
जिला - बलौदाबाजार - भाटापारा

(30) सार छंद - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

शीर्षक- होरी परब

सार छंद मा गाहूँ भइया,सार छंद मा गाहूँ।
कइसे होथे हमर गाँव मा,होरी परब बताहूँ।

फागुन बसंत पँचमी के दिन,कुछ लइका जुरियाथें।
बाँस डाँड़ मा बाँध बाहरी,होले कहि गड़ियाथें।

नवा नवा लइका मन समझिन,धरती माँ के दुख ला।
चलव बढ़ाबो होले कहिके,अब नइ काटँय रुख ला।

कुछ लइका खर्रत बहरत हें,खोर गली के कचरा।
कुछ लइका उज्जर हन कहिके,मारत रहिथें ढचरा।

महिना भर मा जम्मो कचरा,होले तिर सकलागे।
अब केवल कचरा भर जलथे,कथा शेष बिसरागे।

पढ़े लिखे के बाद देख ले,परंपरा सुघरागे।
होले तिर मा गाली बकना,ताश जुआ नंदागे।

होले जरगे रात गुजरगे,आज हवय शुभ होली।
शुभकामना पठोवत हावय,नोनी के रंगोली।

खोर गली मा दरबिर दरबिर,लइका मन के टोली।
कोनो चुप कोनो चिल्लावय,होली हे भइ होली।

कोनो धरे गुलाल मुठा मा,कखरो कर पिचकारी।
रंग भरे फुग्गा धर कोनो,जोहत हे सँगवारी।

खोर गली मा अब नइ देखन,झुमरत बफलत दरुहा।
गुरतुर हो गय बोली भाखा,बिसरे बोली करुहा।

मनखे मनखे एक दुसर ला,आदर तिलक लगावैं।
देश राज अउ घर समाज बर,सुग्घर रीत निभावैं।

दुरिहाये परिवार नता हा,एक जघा जुरियाये।
मधुर मया रोटी-पीठा सँग,सथरा मा परसाये।

रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
मु.गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़


(31) दोहा छंद - कमलेश  वर्मा

1.आनी बानी रंग के,सबो डहर भरमार।
गाँव गली मा छाय हे, होली रंग बहार।।

2.बैर भाव बिसराय के, होली हरे तिहार।
दया मया के रंग ला, सबके उप्पर डार।।

कमलेश वर्मा
भिम्भौरी,बेरला

(32) सार छन्द - ईश्वर लाल आरुग

होली गीत -

कोन अपन हे कोन पराया, काखर का चिन्हारी ।
मया के रंग डारे बर रे, नइ लागय पिचकारी ।
१.
ऊँच नीच अउ भेद भाव ला, होले जइसे बारव ।
इरखा के गरदा ला थोरिक अंतस ले तुम झारव ।
झूमर के नाचन दे हिरदे ला मारन दे किलकारी ।
२.
मदरस ले गुरतुर होथे रे तोर मुँहू के बोली ।
सुख देथे रिश्ता नाता ला, बो दे हँसी ठिठोली ।
रिश्ता भीतर लेन देन बर, झन बन तँय बयपारी ।
३.
जिनगी के रंग चितर काबर, सुख दुख आनी जानी ।
फेर करम करके मनखे हा, लिखथे अपन कहानी ।
मनखे पन के भाव जगावव, समझव दुनियादारी ।

छन्दकार - ईश्वर लाल साहू 'आरुग'
ठेलका, साजा-थानखमरिया, छत्तीसगढ़

(33) आल्हा छन्द गीत - अरुण कुमार निगम

परसा जइसे दहकत हावय हिरदे कइसे गावय फाग।
घुनही होगे हवय बँसुरिया,कइसे सुर मा निकलय राग।।

आमा मउरे कोयल कुहुकय, झूमय गस्ती तेन्दू चार।
सेमर नाचय महुआ हाँसय, सबो मनावत हवँय तिहार।।
धनी बिना जग सुन्ना होगे, कोन देखही मन के दाग।
घुनही होगे हवय बँसुरिया,कइसे सुर मा निकलय राग।।

बइरी बनगे उँकर नौकरी, मन ला कइसे भावय रंग।
पारसिवाना पहरी सजना, जोहँय कब हो जाही जंग।।
सैनिक के घरवाला मन के, सुरता करथे कोन तियाग।
घुनही होगे हवय बँसुरिया,कइसे सुर मा निकलय राग।।

छन्दकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर दुर्ग, छत्तीसगढ़

Monday, March 4, 2019

महा शिवरात्रि विशेषांक


  1. चौपाई छंद - बोधन राम निषाद राज

जय  हो भोला  मरघट वासी। शिव शम्भू तँय हस अविनासी।।
भूत नाथ कैलाश   बिराजे। मृग  छाला मा  चोला साजे।।

नन्दी    बइला तोर    सवारी। भुतहा  मन के तँय  सँगवारी।।
पारबती     के प्रान    पियारे। धरमी   छोड़ अधरमी   मारे।।

जय   हो बाबा   औघड़दानी। जटा    बिराजे   गंगा रानी।।
राख   भभूती  तन मा धारे। गर मा  बिखहर सांप  पधारे।।

पापी    भस्मासुर    ला मारे। अपन  लोक मा  ओला तारे।।
पारबती    के लाज   बचाए। ऋषि मुनि  योगी गुन ला गाए।।

भांग    धतूरा मन   ला भाये। सिया  राम के  ध्यान लगाये।।
बइठे     परबत मा     कैलाशी। अंतर्यामी        हे अविनासी।।

महाकाल    हे डमरू     वाला। जय  शिव शंकर  भोला भाला।।
मंदिर     तोर दुवारी    आवौं। मनवांछित  फल ला मँय पावौं।।

रचनाकार:- बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम, छत्तीसगढ़


(2) सरसी छन्द - कन्हैया साहू अमित

बेरा हे फागुन चउदस तिथि, सब झन हें सकलाय।
शिव बरात मा जुरमिल जाबो, संगी सबो सधाय।1।

बिकट बरतिया बिदबिद बाजँय, चाल चलय बेढ़ंग।
बिरबिट करिया भुरुवा सादा, कोनो हे छतरंग।2।

कोनो उघरा उखरा उज्जट, उदबिदहा उतलंग।
उहँदा उरभट कुछु नइ घेपँय, उछला उपर उमंग।3।

रोंठ पोठ सनपटवा पातर, कोनो चाकर लाम।
नकटा बुचुवा रटहा पकला, नेंग नेंगहा नाम।4।

खड़भुसरा खसुआहा खरतर, खसर-खसर खजुवाय।
चिटहा चिथरा चिपरा छेछन, चुन्दी हा छरियाय।5।

जबर जोजवा जकला जकहा, जघा-जघा जुरियाय।
जोग जोगनी जोगी जोंही,  बने बराती जाय।6।

भुतहा भकला भँगी भँगेड़ी, भक्कम भइ भकवाय।
भसरभोंग भलभलहा भइगे, भदभिदहा भदराय।7।

भकर भोकवा भिरहा भदहा, भूत प्रेत भरमार।
भीम भकुर्रा भैरव भोला, भंडारी भरतार।8।

मौज मगन मनमाने मानय, जौंहर उधम मचाय।
चिथँय कोकमँय हुदरँय हुरमत, तनातनी तनियाय।9।

आसुतोस तैं औघड़दानी, अद्भूत तोर बिहाव।
अजर अमर अविनासी औघड़, अड़हा अमित हियाव।10।
रचनाकार - कन्हैया साहू "अमित"
शिक्षक~भाटापारा {छत्तीसगढ़)


(3) कुकुभ छंद - जितेंद्र वर्मा खैर झिटिया

सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
दुःख द्वेस जर जलन जराके,सत के बो बीजा बाबा।

मन मा भरे जहर ले जादा,काय भला अउ जहरीला।
येला पीये बर शिव भोला,का कर  पाबे तैं लीला।
सात समुंदर घलो म अतका, जहर भरे नइ तो होही।
देख झाँक के गत मनखे के,फफक फफक अन्तस रोही।
बड़े  छोट ला घूरत  हावय, साली ला जीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।

बोली भाँखा करू करू हे,मार काट होगे ठट्ठा।
अहंकार के आघू बइठे,धरम करम सत के भट्ठा।
धन बल मा अटियावत घूमय,पीटे मनमर्जी बाजा।
जीव जिनावर मन ला मारे,बनके मनखे यमराजा।
दीन  दुखी मन  घाव धरे हे,आके  तैं छी जा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।

धरम करम हा बाढ़े निसदिन,कम होवै अत्याचारी।
डरे  राक्षसी  मनखे मनहा,कर  तांडव हे त्रिपुरारी।
भगतन मनके भाग बनादे,फेंक असुर मन बर भाला।
दया मया के बरसा करदे,झार भरम भुतवा जाला।
रहि  उपास मैं  सुमरँव तोला ,सम्मारी  तीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।

रचनाकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़

(4) चौपाई छन्द - द्वारिका प्रसाद लहरे

शिव शंकर के महिमा भारी। सार जगत के पालनहारी।।
बँधे जटा मा गंगा पानी । भोले बाबा बड़ वरदानी।।

नाँग साँप गर मा लपटाये। भूत नाथ अउ तहीं कहाये।।
पारबती माँ पाँव पखारे। तिरशुल मा पापी संहारे।।

अवघड़ दानी नाँव कहाये। राख चुपर के अंग सजाये।।
नाँचे थाथा थइया भोले। धरती डगमग डगमग डोले।।

नंदी हावय तोर सवारी। आधा नर तैं आधा नारी।।
सब देवन मन गुन ला गावैं। तोर चरन मा फूल चढ़ावैं।।

तोर जटा मा चंदा साजे। डमडम डमडम डमरू बाजे।
भांग धतूरा तोला भाये। सब के हिरदे मा तैं छाये।।

हे शिव शंकर आप ले। माँगत हँव वरदान।
खुशी खुशी संसार के। करदव अब कल्यान।।

रचनाकार - डी.पी.लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़

(5) चौपाई छंद -कुलदीप सिन्हा:

जय जय जय शिव शंकर भोला। दर्शन दे दे तेहा मोला।
बेल पान अउ फूल चढ़ाहूँ। रोज तोर गुन ला में गाहूँ।।

दिखथस बिल्कुल भोला भाला। पहिरे रहिथस बघवा छाला।।
गल मुंडन के माला सोहे। माथ म चन्दा मन ला मोहे।।

तोला कहिथे पर्वत वासी। हवस घलो तेहा अविनासी।
भक्तन मन बर जहर पिये हस। कतको ला वरदान  दिये हस।।

राम नाम गुन गावत रहिथस। जाड़ शीत सब ला तैं सहिथस।।
जटा जूट मा गंगा साजे। वाम अंग मा मात बिराजे।।

रचनाकार - कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल  ( धमतरी ) छत्तीसगढ़

(6) सर्वगामी सवैया - ज्ञानु दास मानिकपुरी

देखौ बिराजे हवै माथ मा दूज चंदा जटा धार गंगा समाये।
नंदी सवारी गला साँप सौहे ग मूँदे सदा नैन धूनी रमाये।
भोला बबा नाम औ काम भोला धतूरा दही बेलपत्ती सुहाये।
पूरा मनोकामना ला करे भक्त के छीन मा औ बिपत्ती हटाये।

रचनाकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदैनी(कबीरधाम-छ्त्तीसगढ़)

(7) चौपाई छंद -पोखन लाल जायसवाल

नीलकंठ जग जानय तोला। जय जय जय शिव शंकर भोला।।
तप करथच परबत मा भारी। नंदी के तैं करे सवारी।।

भूतनाथ सब तोला जानय। अवघड़ दानी सबझन मानय।।
हे त्रिशूल धारी अविनासी। तहीं कहाथच परबत वासी ।।

सागर मंथन के बिख पीये। तोरे बल मा सबझन जीये ।।
तही बने सबके रखवाला। हे शिव शंकर भोला भाला ।।

सिया राम मा ध्यान लगाए। पारबती ला कथा सुनाए ।
परबत मा तैं धुनी रमाये। राम नाम के जस ला गाये ।।

करे किसन के दरशन बाबा। रूप बनाए जोगी बाबा।।
मात जशोदा ले कर बिनती। दिन बीतय सब गिन गिन  गिनती ।।

बेल पान अउ फूल चढ़ाके। पूजय सबझन माथ नवाके।।
करथे अरजी विनती तोला। दर्शन दे दे शंकर भोला ।।

रचनाकार - पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह तहसील पलारी
जि बलौदाबाजार भाटापारा, छत्तीसगढ़


(8) चौपाई छंद -सुखदेव सिंह

शिव शंकर ला भजले प्रानी।शिव शंभू हे औघड़ दानी।।
शिवे दुलारय शिव संघारय। हर हर हा हर संकट टारय।।

जेखर नाँव हवय त्रिपुरारी। जस कीरति महिमा हे भारी।।
जय शिव शंकर बम बम भोले। हर हर महादेव जग बोले।।

बिख ला अपन कण्ठ मा धारे। नीलकण्ठ कहि जगत पुकारे।।
डम डम डम डम डमरू बाजे। बिखहर के गहना तन साजे।।

अंग वस्त्र मिरगा के छाला। साँप बिछी माला अउ बाला।।
भूतनाथ भोला मतवाला। सकल चराचर के रखवाला।।

तन मा अपन राख चुपरे हस। डमरू अउ तिरछूल धरे हस।।
नन्दी बइला तोर सवारी। भूतनाथ भोले भंडारी।।

शिव शंभू कैलाश निवासी। सुने हवन रहिथव तुम कासी।।
हम अन तुँहर चरण के दासी। तुम हमरो हिरदे के वासी।।

महादेव प्रभु मातु सती के। शंकर भोला पारबती के।।
करुण निवेदन सुने रती के। दण्ड सुधारे मदन मती के।।

एक बार के बात हरय जी। पारबती हा अरज करय जी।।
अमर अमर सब कहिथें प्रानी। समझावव प्रभु अमर कहानी।।

एक दिवस शुभ अवसर पा के। बइठिन अमर गुफा मा जा के।।
डमरू अपन बजाइस शंकर। भाग गइस जम्मो जी-जन्तर।।

गूढ़ ज्ञान ला अमर कथा के। गावय कभु बोलय अलखा के।।
शिव मुँह ले सत अविरल वानी। सुनय गुनय गौरी महरानी।।

शिव जी अमर नाम अलखावय। अमर नाम सतनाम बतावय।।
कथें मातु ला निंदिया आगे। घोल्हा अण्डा जीवन पागे।।

भक्तन के कल्याण करे बर। अंतस के दुख ताप हरे बर।।
मनुज मनोरथ के शुभ काजे। बारह ज्योतिर्लिंग बिराजे।।

मँय छत्तीसगढ़ के रहवइया।चटनी बासी पेज खवइया।।
नकमरजी झन हो जै हाँसी। कइसे भोग लगावँव बासी।।

फुड़हर फूल बेल के पाना। लाये हँव कनकी के दाना।।
दूध नही लोटा भर पानी। ग्रहण करव प्रभु औघड़ दानी।

माथ दूज के चंदा सोह। अनुपम रूप हृदय ला मोहय।।
जे प्रभु दर्शन के पथ जोहय,। तेखर हृदय भक्ति रस पोहय।।

रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़


(9) रूपमाला छंद -आशा देशमुख

हे सदाशिव तँय बतादे ,छंद के आवाज।
तोर डमरू हा निकाले ,गीत के सुर साज।
आज मनखे मन भ्रमित हे ,तोड़ के सब रीत।
कोन रद्दा अब बतावय ,गांव का मँय गीत।


(10) त्रिभंगी छंद -आशा देशमुख

भोले त्रिपुरारी ,मंगलकारी दुख कलेश ला दूर करौ।
देवव सुख दाता ,भाग्य विधाता ,ज्ञान दया से पूर करौ।
अब्बड़ दुख जग में ,छल रग रग में,मनखे मन मा पाप भरे।
गंगा बोहादे ,अगिन बुझादे ,रोग मोह के ताप भरे।।

गौरी के जोही ,हे निरमोही भूत प्रेत के संग धरे।
हे औघड़दानी ,नइहे छानी, तंत्र मंत्र के जाप करे।
अब्बड़ हे सिधवा ,जग के हितवा ,सुनथे सबके दुःख व्यथा।
लोटा भर पानी ,सबले दानी ,भाथे वोला राम कथा।।

रचनाकार - आशा देशमुख
एन टी पी सी कोरबा, छत्तीसगढ़


(11) दुर्मिल सवैया :- जगदीश "हीरा" साहू

*शिव महिमा*

खुश हे हिमवान उमा जनमे, सबके घर दीप जलावत हे।
घर मा जब आवय नारद जी, तब हाथ उमा दिखलावत हे।।
बड़ भाग हवै कहिथे गुनके,  कुछ औगुन देख जनावत हे।
मिलही बइहा पति किस्मत मा, सुन हाथ लिखा बतलावत हे।।1।।

करही तप पारवती शिव के, गुण औगुन जेन बनावत हे।
झन दुःख मना मिलही शिव जी, कहि नारद जी समझावत हे।
सबला समझावय नारद हा, महिमा समझै मुसकावत हे।
खुश होवत हे तब पारवती, तप खातिर वो बन जावत हे।।2।।

तुरते शिवधाम सबो मिलके, अरजी तब आय सुनावत हे।
सब देव खड़े विनती करथे, अब ब्याह करौ समझावत हे।।
शिव जी महिमा समझै प्रभु के, सबके दुख आज मिटावत हे।
शिव ब्याह करे बर मान गये, सब झूमय शोर मचावत हे।।3।।

मड़वा गड़गे हरदी चढ़गे, हितवा मितवा सकलावत हे।
बघवा खँड़री पहिरे कनिहा, तन राख भभूत लगावत हे।
बड़ अद्भुत लागय देखब मा, गर साँप ल लान सजावत हे।।
सब हाँसत हे बड़ नाचत हे, सुख बाँटत गीत सुनावत हे।।4।।

अँधरा कनवा लँगड़ा लुलवा, सब संग बरात म जावत हे।
जब देखय सुग्घर भीड़ सबो, शिव जी अबड़े मुसकावत हे।।
जब देखय विष्णु समाज उँहा, तब आ सबला समझावत हे।
तिरियावव संग ल छोड़व जी, शिव छोड़ सबो तिरियावत हे।।5।।

लइका जब देखय जीव बचा, घर भीतर जाय लुकावत हे।
जब देखय रूप खड़े मयना, रनिवास म दुःख मनावत हे।।
तब नारद जी रनिवास म आ, कहिके सबला समझावत हे।
शिव शक्ति उमा अवतार हवे, महिमा सब देव बतावत हे।।6।।

सुनके सबके मन मा उमगे, तब मंगल  गीत सुनावत हे।
सखियाँ मन आज उछाह भरे, मड़वा म उमा मिल लावत हे।।
शिव पारवती जब ब्याह करे, सब देव ख़ुशी बड़ पावत हे।
सकलाय सबो झन मंडप मा, मिल फूल उँहा बरसावत हे।।7।।

जयकार करे सब देव उँहा, तब संग उमा शिव आवत हे।
जब वापिस आय बरात सबो, खुश हो तुरते घर जावत हे।
मन लाय कथा सुनथे शिव के, प्रभु के किरपा बड़ पावत हे।
कर जोर खड़े जगदीश इँहा,  शिव पारवती जस गावत हे।।8।।

रचनाकार - जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा) छत्तीसगढ़


(12) चौपाई छंद - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

हे शंभू  शिव शंकर भोला।आज  पुकारत हँव मैं तोला।।
रूप भयानक धरके आ जा।क्रोध अहं के बाजत बाजा।।

पाप मिटा  जा जग से अब तो।तोर आसरा  देखय सब तो।।
आंख तीसरा खोल दिखावव।पापी मन ला ठाड़ जलावव।।

चन्द्र  घटा ले धार  बहा दे।गंगा माँ  ला भार सहा दे।।
तर जावै सब नर अउ नारी।जीव जंतु जल थल नभचारी।।

अत्याचारी  नइ तो रूकत हे।कुकुर  सही निस दिन भूकत हे।।
कोन मिटावय जग के दुख ला।तहीं दिखा दे मन के सुख ला।।

बम गोला नइ काम करत हे।अग्नि मिसाइल धर्म डरत हे।।
भेज  त्रिशूल  करव संहारी। नाग शेष  शिव जी गर धारी।।

जहर  घुरत हे  अब तो सागर।कर  विषपान कंठ शिव सादर।।
कलजुग मा परमान दिखा जा। सच हे का भगवान दिखा जा।।

रचनाकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर, छत्तीसगढ़