जितेंद्र वर्मा खैर झिटिया:दोहा गीत
हमर तिंरगा
लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।
इही हमर बर जान ए,इही हमर ए लाज।
हाँसत हे मुस्कात हे,जंगल झाड़ी देख।
नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।
जब्बर छाती तान के, हवे वीर तैनात।
संसो कहाँ सुबे हवे, नइहे संसो रात।
महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।
लहर------------------------------- आज।
उत्तर दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।
भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।
गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।
उगे सुमत के हे फसल,नइहे बइरी काँद।
का का मैं बतियाँव गा,हवै सोनहा राज।
लहर------------------------------लाज।
तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।
जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।
कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।
रहिथे सब मनखे जुरे, भेदभाव ला लेस।
जनम धरे हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।
लहर-----------------------------लाज।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
*****************************
द्वारिका प्रसाद लहरे : आल्हा छन्द ..
भारत माँ के बेटा..
भारत माँ के बेटा आवँव,वंदत हँव दूनो कर जोर।
ये माटी मा माथ नवावँव,चंदन हे भुइयाँ हा मोर।।1
वीर सिपाही मँय बलिदानी,खड़े हवँव मँय छाती तान।
बइरी मन ला मार भगाहूँ,ले लेहूँ बइरी के जान।।2
भारत माँ के मान बढ़ाहूँ, ये भुइयाँ के मँय रखवार।।
आँखी कोनों देखाही ता,धरे हवँव रे मँय हथियार।।3
बइरी बर लाठी बन जाहूँ,हितवा मन बर बनँव मितान।
दुख पीरा मा संग निभावँव,भारत माँ के गावँव गान।।4
भारत माँ ला सरग बनाहूँ,दया मया के बोहय धार।
भाई चारा सदा रहय जी,सबके करहूँ मँय उपकार।।5
सच्चा बेटा मँय हा बनके,भारत माँ के रखहूँ लाज।
ये माटी मा जनम धरे हँव,सेवा करके करिहँव साज।।6
रचनाकार
डी.पी.लहरे
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कन्हैया साहू "अमित"-कुंडलियाँ छन्द
01~
तिरंगा झंडा
धजा तिरंगा देश के, फहर-फहर फहराय।
तीन रंग के शान ले, बैरी घलो डराय।
बैरी घलो डराय, रहय कतको अभिमानी।
देबो अपन परान, निछावर हमर जवानी।
गुनव अमित के गोठ, कभू झन आय अड़ंगा।
जनगण मन रखवार, अमर हो धजा तिरंगा।
02~भारत भुँइयाँ
भारत भुँइयाँ भारत हा हवय, सिरतों सरग समान।
सुमता के उगथे सुरुज, होथे नवा बिहान।
होथे नवा बिहान, फुलय सब भाखा बोली।
किसिम किसिम के जात, दिखँय जी एक्के टोली।
गुनव अमित के गोठ, कहाँ अइसन जुड़ छँइयाँ।
सबले सुग्घर देश, सरग कस भारत भुँइयाँ।
कन्हैया साहू "अमित"
भाटापारा~छत्तीसगढ़
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मीता अग्रवाल: कुंडलिया छंद
(1)
फहरे झंडा जी हमर ,हवय देश के शान।
जान अपन बाजी लगा,राखव ऐकर आन।।
राखव ऐकर आन,करव झन जी गुटबाजी।
सब बर एक समान,बँटे झन पंडित काजी।।
मनमुटाव ला छोड़, भाव हा ऊपर लहरे।
देश प्रेम के भाव,ऊँच झंडा बन फहरे।।
(2)
फहरे झंडा जी हमर ,हवय देश के शान।
जान अपन बाजी लगा,राखव ऐकर आन।।
राखव ऐकर आन,करव झन जी गुटबाजी।
सब बर एक समान,बँटे झन पंडित काजी।।
मनमुटाव ला छोड़, भाव हा ऊपर लहरे।
देश प्रेम के भाव,ऊँच झंडा बन फहरे।।
मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़
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कुलदीप सिन्हा: ताटंक - छंद
ये गणतंत्र परब ला भइया, जुरमिल सबो मनाबो जी।
ऊँच नीच के भेद भुलाके, सब ला गला लगाबो जी।।
ये तिहार हम सब बर संगी, सुख समृद्धि ला लाथे जी।
आज देश मा चारों कोती, झण्डा सब फहराथे जी।।
शान हरय गा इही तिरंगा, हम सब भारतवासी के।
ये हावे गा अतका पावन, जस जल गंगा कासी के।।
तंत्र हाथ मा हावे जन के, संविधान बतलाथे जी।
वोखर सेती तंत्र इहाँ के, प्रजातंत्र कहलाथे जी।।
हावे महान भारत भुइयाँ, कम कोनो झन आँको जी।
नइ पतियावव अगर कहूँ ते, चारों कोती झाँको जी।।
सबो ग्रन्थ हा गाये हावे, भारत माँ के गाथा ला।
करव तरक्की पढ़ लिख के सब, रोवव झन धर माथा ला।
कुलदीप सिन्हा "दीप"
ग्राम -- कुकरेल
तह . --- नगरी
जिला ---- धमतरी ( छ . ग . )
हमर तिंरगा
लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।
इही हमर बर जान ए,इही हमर ए लाज।
हाँसत हे मुस्कात हे,जंगल झाड़ी देख।
नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।
जब्बर छाती तान के, हवे वीर तैनात।
संसो कहाँ सुबे हवे, नइहे संसो रात।
महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।
लहर------------------------------- आज।
उत्तर दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।
भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।
गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।
उगे सुमत के हे फसल,नइहे बइरी काँद।
का का मैं बतियाँव गा,हवै सोनहा राज।
लहर------------------------------लाज।
तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।
जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।
कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।
रहिथे सब मनखे जुरे, भेदभाव ला लेस।
जनम धरे हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।
लहर-----------------------------लाज।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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द्वारिका प्रसाद लहरे : आल्हा छन्द ..
भारत माँ के बेटा..
भारत माँ के बेटा आवँव,वंदत हँव दूनो कर जोर।
ये माटी मा माथ नवावँव,चंदन हे भुइयाँ हा मोर।।1
वीर सिपाही मँय बलिदानी,खड़े हवँव मँय छाती तान।
बइरी मन ला मार भगाहूँ,ले लेहूँ बइरी के जान।।2
भारत माँ के मान बढ़ाहूँ, ये भुइयाँ के मँय रखवार।।
आँखी कोनों देखाही ता,धरे हवँव रे मँय हथियार।।3
बइरी बर लाठी बन जाहूँ,हितवा मन बर बनँव मितान।
दुख पीरा मा संग निभावँव,भारत माँ के गावँव गान।।4
भारत माँ ला सरग बनाहूँ,दया मया के बोहय धार।
भाई चारा सदा रहय जी,सबके करहूँ मँय उपकार।।5
सच्चा बेटा मँय हा बनके,भारत माँ के रखहूँ लाज।
ये माटी मा जनम धरे हँव,सेवा करके करिहँव साज।।6
रचनाकार
डी.पी.लहरे
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कन्हैया साहू "अमित"-कुंडलियाँ छन्द
01~
तिरंगा झंडा
धजा तिरंगा देश के, फहर-फहर फहराय।
तीन रंग के शान ले, बैरी घलो डराय।
बैरी घलो डराय, रहय कतको अभिमानी।
देबो अपन परान, निछावर हमर जवानी।
गुनव अमित के गोठ, कभू झन आय अड़ंगा।
जनगण मन रखवार, अमर हो धजा तिरंगा।
02~भारत भुँइयाँ
भारत भुँइयाँ भारत हा हवय, सिरतों सरग समान।
सुमता के उगथे सुरुज, होथे नवा बिहान।
होथे नवा बिहान, फुलय सब भाखा बोली।
किसिम किसिम के जात, दिखँय जी एक्के टोली।
गुनव अमित के गोठ, कहाँ अइसन जुड़ छँइयाँ।
सबले सुग्घर देश, सरग कस भारत भुँइयाँ।
कन्हैया साहू "अमित"
भाटापारा~छत्तीसगढ़
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मीता अग्रवाल: कुंडलिया छंद
(1)
फहरे झंडा जी हमर ,हवय देश के शान।
जान अपन बाजी लगा,राखव ऐकर आन।।
राखव ऐकर आन,करव झन जी गुटबाजी।
सब बर एक समान,बँटे झन पंडित काजी।।
मनमुटाव ला छोड़, भाव हा ऊपर लहरे।
देश प्रेम के भाव,ऊँच झंडा बन फहरे।।
(2)
फहरे झंडा जी हमर ,हवय देश के शान।
जान अपन बाजी लगा,राखव ऐकर आन।।
राखव ऐकर आन,करव झन जी गुटबाजी।
सब बर एक समान,बँटे झन पंडित काजी।।
मनमुटाव ला छोड़, भाव हा ऊपर लहरे।
देश प्रेम के भाव,ऊँच झंडा बन फहरे।।
मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़
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कुलदीप सिन्हा: ताटंक - छंद
ये गणतंत्र परब ला भइया, जुरमिल सबो मनाबो जी।
ऊँच नीच के भेद भुलाके, सब ला गला लगाबो जी।।
ये तिहार हम सब बर संगी, सुख समृद्धि ला लाथे जी।
आज देश मा चारों कोती, झण्डा सब फहराथे जी।।
शान हरय गा इही तिरंगा, हम सब भारतवासी के।
ये हावे गा अतका पावन, जस जल गंगा कासी के।।
तंत्र हाथ मा हावे जन के, संविधान बतलाथे जी।
वोखर सेती तंत्र इहाँ के, प्रजातंत्र कहलाथे जी।।
हावे महान भारत भुइयाँ, कम कोनो झन आँको जी।
नइ पतियावव अगर कहूँ ते, चारों कोती झाँको जी।।
सबो ग्रन्थ हा गाये हावे, भारत माँ के गाथा ला।
करव तरक्की पढ़ लिख के सब, रोवव झन धर माथा ला।
कुलदीप सिन्हा "दीप"
ग्राम -- कुकरेल
तह . --- नगरी
जिला ---- धमतरी ( छ . ग . )
01~*फेरा डारँय खोर के, जुरमिल सब्बो मीत।*
*संगी सब सकलाय के, गुरतुर गावँय गीत।*
*गुरतुर गावँय गीत, मया के बोलँय बोली।*
*झोला टुकनी हाँथ, चलय गदबिद सब टोली।*
*कहे अमित कविराज, दान पुन छेरिक छेरा।*
*चिहुर करँय जी पोठ, लगावँय घर-घर फेरा।*
02~*बेरा पुन्नी पूस के, नँदिया मा असनान।*
*मुठा पसर ठोम्हा अपन , करव उचित के दान।*
*करव उचित के दान, मरम ला एखर जानव।*
*मिलथे ये परलोक, बात ला सिरतों मानव।*
*कहय अमित कविराज, गुनव जी छेरिक छेरा।*
*छोड़व गरब गुमान, आज हे पबरित बेरा।*
छन्दकार - कन्हैया साहू "अमित"
भाटापारा~छत्तीसगढ़