(1)
कचरा इहाँ कचरा उहाँ, कचरा ह कचरा फेंकथे ।
कचरा हटा घर के अपन, बाहिर गली मा लेगथे।।
घुरुवा सहीं दिखथे शहर, कुढ़वाय कचरा चौंक मा ।
घिन घिन अबड़ जी लागथे, माँछी परे जस छौंक मा ।।
(2)
समझाय समझय कोन हा,उपदेस सब झन झाड़थें।
डब्बा अगोरत रहि जथे, कचरा कहाँ जी डारथें ।
जस हे शहर के हाल हा,तस गाँव के गा हाल हे।
करके शहर के सब नकल, बिगड़े हवय अब चाल हे।।
(3)
मुँह जोहथें सरकार के, फोकट म सब कुछ मिल जवय।
बइठे रहँय चुपचाप खुद,परबत ह ओती हिल जवय।
अँधियार ला जोहार के,चाहँय अँजोरी आ मिलय।
घुघुवा ह कहिथे रात मा,फुलुवा कमल के जी खिलय ।।
(4)
टीना बदल के देख तो, मनखे ल सोना चाहिये ।
माथा म हे कचरा भरे ,वो दूर होना चाहिये ।
पालय नहीं जी गाय ला, रबड़ी मलाई चाहिये ।
शुरुवात अपने से करँय, सब ला सफाई चाहिये ।
रचनाकार - श्री चोवाराम "बादल"
ग्राम - हथबन्द (भाटापारा) छत्तीसगढ़
कचरा इहाँ कचरा उहाँ, कचरा ह कचरा फेंकथे ।
कचरा हटा घर के अपन, बाहिर गली मा लेगथे।।
घुरुवा सहीं दिखथे शहर, कुढ़वाय कचरा चौंक मा ।
घिन घिन अबड़ जी लागथे, माँछी परे जस छौंक मा ।।
(2)
समझाय समझय कोन हा,उपदेस सब झन झाड़थें।
डब्बा अगोरत रहि जथे, कचरा कहाँ जी डारथें ।
जस हे शहर के हाल हा,तस गाँव के गा हाल हे।
करके शहर के सब नकल, बिगड़े हवय अब चाल हे।।
(3)
मुँह जोहथें सरकार के, फोकट म सब कुछ मिल जवय।
बइठे रहँय चुपचाप खुद,परबत ह ओती हिल जवय।
अँधियार ला जोहार के,चाहँय अँजोरी आ मिलय।
घुघुवा ह कहिथे रात मा,फुलुवा कमल के जी खिलय ।।
(4)
टीना बदल के देख तो, मनखे ल सोना चाहिये ।
माथा म हे कचरा भरे ,वो दूर होना चाहिये ।
पालय नहीं जी गाय ला, रबड़ी मलाई चाहिये ।
शुरुवात अपने से करँय, सब ला सफाई चाहिये ।
रचनाकार - श्री चोवाराम "बादल"
ग्राम - हथबन्द (भाटापारा) छत्तीसगढ़