गुरु घासीदास जयंती पर विशेष
(1)
मनखे मनखे एक, इही हे सुख के मन्तर
जिहाँ नहीं हे भेद, उहीं असली जन-तन्तर
बाबा घासी दास, हमन ला इही बताइन
जग ला दे के ज्ञान, बने रद्दा देखाइन ।।
(2)
जिनगी के दिन चार, नसा पानी ला त्यागौ
दौलत माया जाल, दूर एखर ले भागौ।
जात-पात ला छोड़, सबो ला मनखे जानौ
बोलव जय सतनाम, अपन कीमत पहिचानौ।।
(3)
काम क्रोध मद मोह, बुराई लाथे भाई
मिहनत करके खाव, इही हे असल कमाई
सत्य अहिंसा प्रेम, दया करुणा रख जीयव
गुरु के सुग्घर गोठ, मान अमरित तुम पीयव।।
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
दुर्ग, छत्तीसगढ़
(1)
मनखे मनखे एक, इही हे सुख के मन्तर
जिहाँ नहीं हे भेद, उहीं असली जन-तन्तर
बाबा घासी दास, हमन ला इही बताइन
जग ला दे के ज्ञान, बने रद्दा देखाइन ।।
(2)
जिनगी के दिन चार, नसा पानी ला त्यागौ
दौलत माया जाल, दूर एखर ले भागौ।
जात-पात ला छोड़, सबो ला मनखे जानौ
बोलव जय सतनाम, अपन कीमत पहिचानौ।।
(3)
काम क्रोध मद मोह, बुराई लाथे भाई
मिहनत करके खाव, इही हे असल कमाई
सत्य अहिंसा प्रेम, दया करुणा रख जीयव
गुरु के सुग्घर गोठ, मान अमरित तुम पीयव।।
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
दुर्ग, छत्तीसगढ़