"अंडा खवइया मन बर".......
इन ला अंडा नँगत सुहावय। उन ला अंडा चिटिक न भावय।।
जिन ला भावय उन मन खावँय। नइ भावय उन मन झन खावँय।।
कोनो हावँय मांसाहारी। कोनो हावँय शाकाहारी।।
खान-पान बर सबो सुछिंदा। करव नहीं आपस मा निंदा।।
जउन आदतन खेलँय गोटी। अंडा ऊपर सेकँय रोटी।।
नवा-नवा उनकर हथकंडा। मुद्दा बनगे बपुरा अंडा।।
डॉक्टर के कहना मानत हें। उन मन सेहत बर खावत हें।।
अंडा के बनथे तरकारी। खाथें कतको झन नर-नारी।।
जइसे चाहव वइसे खा लव।अंडा के भुरजी बनवा लव।।
पानी मा डबका के खावव। जनम दिवस मा केक बनावव।।
आमलेट होथे जस चीला। जेला खावँय माई-पीला।।
अंडा के भजिया बनवाथें। एग-पकौड़ा नाम धराथें।।
मांग बढ़े हे तेकर सेती। अब होथे अंडा के खेती।।
ये कृषि के अंतर्गत आथे। अपन पाँव मा खड़े कराथे।।
रोजगार के ये साधन हे। तन हे गोरा उज्जर मन हे।।
मिनरल अउ प्रोटीन नँगत हे। मल्टी-विटामीन सँउहत हे।।
विटामीन ए पाए जाथे। जे आँखी के जोत बढ़ाथे।।
दुर्लभ विटामीन बी-बारा। तंत्र-प्रणाली के हे चारा।।
ये दिमाग ला तेज बनाथे। कमजोरी ला दूर भगाथे।
विटामीन डी पाए जाथे। हाड़ा ला मजबूत बनाथे।।
अंडा मा हे विटामीन ई। चाम जुवान रखे ये संगी।।
कमती होथे लाल रक्त कण। विटामीन ई दे संरक्षण।।
बंचक मन कर डारिन शोषण। छत्तीसगढ़ मा बढ़िस कुपोषण।।
जब अकाल के पड़थे छइयाँ। जिनगी होथे कल्लर कइयाँ।।
लटपट जिन मन करँय मजूरी। समझव उन मन के मजबूरी।।
खेत-खार ना गइया-भँइसा। बटुवा मा नइ रुपिया पइसा।।
लइका मन के हालत खस्ता। अंडा हे उपाय बड़ सस्ता।।
अंडा हे आहार संतुलित। सेहत बर ये हावय अमरित।।
लइका मन ला काय खवावँय। बपुरा मन दुबरावत जावँय।।
इनकर बर सोचे ला पड़ही। तब छत्तीसगढ़ आघू बढ़ही।।
बड़का मन का-का नइ खावँय। नोनी-बाबू मन लुलवावँय।।
इँकरो मन के होना चाही। बोलव इन ला कोन खवाही।।
दानी मन कुछ आघू आवँय। दूध-दही के धार बहावँय।।
काजू किसमिस पिस्ता लावँय। हवा-हवा मा झन चिल्लावँय।।
कतको झन खावत हें बकरी। बकरा कुकरा कुकरी मछरी।।
खान-पान तो हे वैकल्पिक। अंडा बर बिरथा हे चिकचिक।।
वैज्ञानिक के सोझे फंडा। सेहत बर नित खावव अंडा।।
रुचे तउन ला खाना चाही। तन ला पुष्ट बनाना चाही।।
स्वस्थ पुष्ट लइका मन बढ़हीं। खेलकूद के सुग्घर पढ़हीं।।
ज्ञान निसेनी मा ये चढ़हीं। सुघर नवा छत्तीसगढ़ गढ़हीं।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग छत्तीसगढ़
इन ला अंडा नँगत सुहावय। उन ला अंडा चिटिक न भावय।।
जिन ला भावय उन मन खावँय। नइ भावय उन मन झन खावँय।।
कोनो हावँय मांसाहारी। कोनो हावँय शाकाहारी।।
खान-पान बर सबो सुछिंदा। करव नहीं आपस मा निंदा।।
जउन आदतन खेलँय गोटी। अंडा ऊपर सेकँय रोटी।।
नवा-नवा उनकर हथकंडा। मुद्दा बनगे बपुरा अंडा।।
डॉक्टर के कहना मानत हें। उन मन सेहत बर खावत हें।।
अंडा के बनथे तरकारी। खाथें कतको झन नर-नारी।।
जइसे चाहव वइसे खा लव।अंडा के भुरजी बनवा लव।।
पानी मा डबका के खावव। जनम दिवस मा केक बनावव।।
आमलेट होथे जस चीला। जेला खावँय माई-पीला।।
अंडा के भजिया बनवाथें। एग-पकौड़ा नाम धराथें।।
मांग बढ़े हे तेकर सेती। अब होथे अंडा के खेती।।
ये कृषि के अंतर्गत आथे। अपन पाँव मा खड़े कराथे।।
रोजगार के ये साधन हे। तन हे गोरा उज्जर मन हे।।
मिनरल अउ प्रोटीन नँगत हे। मल्टी-विटामीन सँउहत हे।।
विटामीन ए पाए जाथे। जे आँखी के जोत बढ़ाथे।।
दुर्लभ विटामीन बी-बारा। तंत्र-प्रणाली के हे चारा।।
ये दिमाग ला तेज बनाथे। कमजोरी ला दूर भगाथे।
विटामीन डी पाए जाथे। हाड़ा ला मजबूत बनाथे।।
अंडा मा हे विटामीन ई। चाम जुवान रखे ये संगी।।
कमती होथे लाल रक्त कण। विटामीन ई दे संरक्षण।।
बंचक मन कर डारिन शोषण। छत्तीसगढ़ मा बढ़िस कुपोषण।।
जब अकाल के पड़थे छइयाँ। जिनगी होथे कल्लर कइयाँ।।
लटपट जिन मन करँय मजूरी। समझव उन मन के मजबूरी।।
खेत-खार ना गइया-भँइसा। बटुवा मा नइ रुपिया पइसा।।
लइका मन के हालत खस्ता। अंडा हे उपाय बड़ सस्ता।।
अंडा हे आहार संतुलित। सेहत बर ये हावय अमरित।।
लइका मन ला काय खवावँय। बपुरा मन दुबरावत जावँय।।
इनकर बर सोचे ला पड़ही। तब छत्तीसगढ़ आघू बढ़ही।।
बड़का मन का-का नइ खावँय। नोनी-बाबू मन लुलवावँय।।
इँकरो मन के होना चाही। बोलव इन ला कोन खवाही।।
दानी मन कुछ आघू आवँय। दूध-दही के धार बहावँय।।
काजू किसमिस पिस्ता लावँय। हवा-हवा मा झन चिल्लावँय।।
कतको झन खावत हें बकरी। बकरा कुकरा कुकरी मछरी।।
खान-पान तो हे वैकल्पिक। अंडा बर बिरथा हे चिकचिक।।
वैज्ञानिक के सोझे फंडा। सेहत बर नित खावव अंडा।।
रुचे तउन ला खाना चाही। तन ला पुष्ट बनाना चाही।।
स्वस्थ पुष्ट लइका मन बढ़हीं। खेलकूद के सुग्घर पढ़हीं।।
ज्ञान निसेनी मा ये चढ़हीं। सुघर नवा छत्तीसगढ़ गढ़हीं।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग छत्तीसगढ़
शानदार अंडा महिमा बखान,
ReplyDeleteप्रणाम गुरुदेव!!
सेहत बर नित खावव अंडा
ReplyDeleteबहुतेच बढ़िया रचना गुरूदेव
सादर प्रणाम
बहुते सुघ्घर अंडा महिमा है गुरुदेव
ReplyDeleteसादर प्रणाम
बहुत ही शानदार रचना गुरुदेव।सादर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना गुरुदेव।सादर प्रणाम
ReplyDeleteअति सुन्दर गुरुदेव जी।सादर नमन
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना
ReplyDeleteगुरुदेव सादर प्रणाम
शानदार चौपाई गुरुदेव
ReplyDeleteबहुतेच सुघ्घर गुरुदेव
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