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Tuesday, March 24, 2020

शंकर छंद - बोधन राम निषादराज

शंकर छंद - बोधन राम निषादराज

 मोर पिरोहिल

(1)
आजा अब तँय झन तरसाना,आज अँगना मोर।
करदेबे  सुन्ना  कुरिया ला,आ के तँय अँजोर।।
बादर बइरी गरजत रहिथे,जीव धड़कत जाय।
रहि रहि मोला सुरता आथे,मोर मन ललचाय।।

(2)
ए  ओ  मैना   सुग्घर  तोरे, रूप  हा  मोहाय।
काम-धाम मा मन नइ लागै,तोर सुरता आय।।
मटकत गली-खोर मा रेंगस,गजब नखरा तोर।
देख-देख के तोला बइरी,जरय जिवरा मोर।।

(3)
रंग-रंग  के खोपा  पारे,   गजरा तँय  लगाय।
ऊँचा हिल के सेंडिल पहिरे,देख  तँय मुस्काय।।
कोयल जइसे गुरतुर बोली,मोर मन ला भाय।
मीठ जलेबी सिट्ठा लागे, खाय ते पतियाय।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज "विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला - कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

Monday, March 23, 2020

शंकर छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

शंकर छंद:- महेंद्र कुमार बघेल
             इहाॅं के माटी

कुकरा बासत चलय बाहरी,गली ॲंगना पार|
सेवा होय गाय गरुआ के,करत गोबर द्वार||
नोई धरके लुहुर लुहुर गा,पहट राउत आय|
गाय बछरु ला बाॅंध छोर के,रोज दुहिके जाय||

नान बुटुक मन गरवा खेदत,जाय गा दइहान|
भॅंवरा बाटी खेलत कूदत,गजब मारैं सान||
अउ असनाॅंद करे बर बिहना,डहर तरिया जाॅंय|
अबड़ मेछरावत लइका मन,डुबक तॅंउर नहाॅंय||

मुही पार कीड़ा काॅंटा के ,रोज राखय ध्यान|
बेरा होवत सबले पहिली,खेत जाय किसान||
हॅंसिया धरे लुवे बर काॅंदी,लाय बोझा बाॅंध|
गिरत पसीना बोल उठे जी,ठोस हावय खाॅंध ||

फाॅंद-फुॅंदा के गाड़ी बइला,जाय भइया खेत|
जोर जुरा के खातू कचरा,करें अड़बड़ चेत||
साथ पॉंव पुट देवय भउजी,करे मिलजुल काम|
जाॅंगर टोर कमावय दिन भर,कहाॅं कभू अराम||

हर तिहार मा काम छोड़ के,गाॅंव भर सकलाॅंय|
सार्वजनिक सब काम काज ला,तुरत सब निपटाॅंय ||
कका बबा के नता निभावत, सरल सुनता भाव|
जात पात के भेद भुलावत ,बैठ एके नाव||

साॅंवर ला हर रोज बनावत, खबर ताजा जान|
मरदनिया के गोठ बात के,अलग हे पहिचान||
पागा बाॅंधे खुमरी ओढ़े ,धुन बॅंसुरी  बजाय|
अउ सकेल बरदी ला राउत,रोज धेनु चराय|

छुट्टी कहाॅं इकर जिनगी मा,सदा महिनत सार|
धरती माटी के सेवा बर,हवॅंय मुड़ मा भार||
बिहने बासी खाय तहाॅं ले, जाय खेती खार|
कते अपन मा बुता करे अउ, कते हर बनिहार||

बिहना चिहुॅंक तान चिरई के, अउर कउॅंवा काॅंव|
बर पीपर आमा अमली के,सुघर शीतल छाॅंव||
पूरब मा जी पाठ दबावय, शीतला के ठाॅंव|
पबरित हवय इहाॅं के माटी, जिहाॅं अइसन गाॅंव||

छंदकार- महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव, जिला- राजनांदगांव

Sunday, March 22, 2020

कोरोना वायरस ले बचाव अउ जन जागरण बर छंद परिवार के गोहार

कोरोना वायरस ले बचाव अउ जन जागरण बर छंद परिवार के गोहार

आल्हा छंद*-आशा देशमुख

ये कोरोना ये कोरोना,काबर तँय दुनिया मा आय।
नाम सुनत हे जेहर तोरे,ओखर पोटा काँपत जाय।

थर थर काँपत हावय जग हा, कइसे सबके प्राण बचाय।
छूत वायरस घूमत हावय,जनता घर मा हवय लुकाय।

ताला लगगिस देश प्रान्त मा, गाँव शहर बइठे चुपचाप।
अतिक मचावत हवच तबाही,जैसे जग ला मिलगे श्राप।

घर मा सब बैठागुँर होगे, काम धाम सब होगय बन्द।
रोजी रोटी मार खात हे,धंधा होगे हावय मंद।

देश प्रशासन जुटे हवय सब,विनती करत हवय सरकार।
विकट आपदा आये हावय,सब झन होगे हे लाचार।

रोग भगाना हे तब सब झन,साथ निभावव रहिके दूर।
कड़ी टूटही तब कोरोना,भागे बर होही मजबूर।

देवदूत कस डॉक्टर मन हें, सेवा करत हवँय दिन रात।
डटे हवँय सब कर्मवीर मन,बिगड़े झन अब तो हालात।

युद्ध महामारी के फइले ,घर मा रहिके जीतव जंग।
देखत हे ये विनाश लीला,यम के दूत हवँय सब दंग।


विकट भयंकर स्थिति आगय ,जनता रहव देश के साथ।
मास्क लगावव रहव सुरक्षित,अउ धोवव जी दिनभर हाथ।


आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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आल्हा छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

(करव हियाव)

दुनिया के मौसम ला देखत, अब प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाव।
हल्का अउ सादा खाना ला, निसदिन भोजन मा अपनाव।।

खानपान के चेत करे बर , जेकर मन मा आही बोध।
रोग रई ला खुद भगाय बर, तब तन हा करही प्रतिरोध।।

धरना परही नेक नियत ला, गलत सोच नाली मा फेंक।
डगमग झन होवय अंतस हर,बाॅंध छोर के पहिली छेंक।।

रगड़ रगड़ के धोवत माॅंजत, रोग रई ला तुरत भगाव।
बासी के सुरता ला छोड़व, गरम गरम ताजा बस खाव।

वन पहाड़ नदिया नरवा ला, मिलजुल करना परही साफ।
वरना पर्यावरण घलव अब, बिल्कुल नइ कर पाही माफ।।

वजन बढ़े झन घर मा बइठे, करना परही सोच विचार।
मोल मेहनत के बड़ होथे,जिनगी मा चल तहूॅं उतार।।

नख मुड़ ले अपने काया के ,सोवत जागत करव हियाव।
खई खजानी बाहिर वाले, कभू भूल के अब झन खाव।।

ताजा कहिके रोज खात हें, फेर साग मा दवा छिताय।
जान बूझ के परबुधिया कस,पइसा देके रोग बिसाय।।

येती ओती देख ताक के ,साफ सफाई ला पहिचान।
जब उज्जर रहि घर दुवार हर ,तब कर पाबो गरब गुमान।।

छंदकार-महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला-राजनांदगांव

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 आल्हा छंद :- कौशल कुमार साहू

कोरोना

चीन देश ले दुनिया भर मा,कोरोना हा कहर मँचाय।
देख दशा राजा चिंता मा,परजा कइसे जान बँचाय।।

जादू -मंतर नोहय टोना, छूत बिमारी येला जान।
सर्दी सँघरा सुख्खा खाँसी, जर बुखार येकर पहचान।।

सरग सिधारे कतकों मनखे,रोकथाम बर करौ उपाय।
सेनिटाइजर मास्क लगावा,डॉक्टर मन हा रोज बताय।।

साफ- सफाई साबुन मलमल, धोवव हाथ ल बारम्बार।
गला मिलौ झन तीन फीट ले,करौ दूर ले जय जोहार।।

पाँव अपन झन बाहिर राखव,घर मा राखव लइका लोग।
दरवाजा मा खिंचलव रेखा, नइ आवय बरपेली रोग।।

तजौ माँस बन शाकाहारी, झड़कव भोजन ताते-तात।
जुरमिल ठानव जमके मारव,ये रकसा ला लाते-लात।।

गोत धरम नइ पूछय ककरो, कोरोना के नइये जात।
संकट भारी मनखे मनखे, सरपट दँउड़य दिन अउ रात।।

अपन जान ला दाँव लगाके,रोगी मन के करे निदान।
बिपत काल मा संग खड़े हे,डॉक्टर सँउहे जस भगवान।।

हिम्मत राखव धीरज राखव, काहत हे सब ला सरकार।
सुरमा बनके जंग जीत लौ,कोरोना के होवय हार।।

अपन देश ला जिन्दा राखव,देश मया के गावव गीत।
अरज करत हे "कौशल" तुँहरे,बनौ बिपत मा सबके मीत।।

छंदकार :- कौशल कुमार साहू
निवास : सुहेला (फरहदा)
जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


याद जमाना जुग जुग रखही, कोरोना के नरसंहार ।
मन्दिर मस्जिद बन्द रहिस हे, बन्द चर्च गरुद्वारा द्वार ।।

वो भगवान कहाँ छुपगे जब, रहिस देश  मा संकट घोर ।
अंधभक्त मन दूर लुकागे, कोरोना जब  मारिस जोर ।।

राहत बर बस हाथ बढ़ाये, देखव परखव तुम विज्ञान ।
इही बात ला मँय तो सोंचव, होथे का सच मा भगवान ।।

नाम बड़े कब जग मा होथे, होथे बड़का सच मा काम ।
करम करे से सउँहत मिलथे, राम रहीम यीशु गुरु धाम ।।

मोर लेखनी के हे कहना, बनव सबो जी करम प्रधान ।
करम करे तब पेट भरे हे, भरय नहीं कोई भगवान ।।

ना तो मँय हा धर्म विरोधी, ना मँय नास्तिक सुन भगवान ।
सच्चाई ला धर मँय जीथँव, मोर इही असली पहिचान ।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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आल्हा  छंद-अश्वनी

जब जब आवय संकट भारी,झट हो जावन सब तैयार|
जब जब फैले हे महमारी,तब तब होये हे तकरार||

जान बचाये खातिर आवव,जनता कर्फ्यू सफल बनाव|
घर भीतर बन रहव सुरक्षित,सेनेटाइज बने कराव|

करे लाकडाउन हे शासन ,जन जन के ये बने बचाव|
अपन देश के खातिर सहिलव,कुछ दिन बर  जी नीत निभाव|

 लगें हवँय तत्पर सेवा बर,फर्ज निभा देवन उत्साह||
झन जावन हम घर ले बाहिर,कोरोना बर सही सलाह||

डाक्टर-पुलिस सफाई अमला,अउ मुखिया के राखव मान|
विपदा आघू कवच बने हे,इमन देश के आवँय शान|

बंद रखें मंदिर गुरुद्वारा,नेक पहल के बड़ सम्मान|
हवय बरोबर हिस्सेदारी,सुखी रहँय मजदूर किसान||

पारा बस्ती राज देश के,जब-जब आवय संकट जान|
सरकारी कारज के पालन,देशहित बर धरव जी ध्यान||

बाढ़य दिन दिन भाईचारा, मनखे ले मनखे के  काम ||
 समता सुमता  सब मा राहय,तभे देश के होही नाम|

अश्वनी कोसरे "रहँगिया"
छंद साधक कक्षा 9

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 रोला छंद - केवरा यदु"मीरा"

मोदी काहय बात,बने मन मा धर लेहू।
घर मा रहि दिन रात, खोर के झन सुध लेहू।।
घेरी बेरी हाथ,तहूँ मन धोवत रहिहू।
पटका मा मुँह बाँध, अपन बूता ला करहू ।।

कहिनी कथा सुनाय,अपन मन ला बहिलावव।
दार भात ला खाव, माँस ला अभी   भुलावव।

थोरिक दिन के बात, अभी घर मा तुम राहव।
जिनगी हे अनमोल,बात ला सबझन मानव।।

कइसन दिन हा आय, मने मा गुनव जानव।
महामारी कस मान, कथे गा सिरतो मानव।।

खाँसी सरद बुखार,जाँच तुरते करवावव।
ताते पानी भात, ध्यान धर के तुम खावव।।

चीनी चिँग ले आय,गजब रोवावत हावय।
डाक्टर  ग भगवान, सबो के जान बचावय ।।

आके देखव राम, मचे हे हाहाकारी।
जोहन तोरे बाट, जगत के पालन हारी।।

धर के तीर कमान,आज आओ रघुराई।
बिपदा के हे भार, लगे अब बड़ दुखदाई।।

छंदकारा - केवरा यदु "मीरा "
राजिम

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 आल्हा- दिलीप कुमार वर्मा

फइलत हावय जे महमारी, तेखर कथा सुनावँव आज।
कतका खतरा बाढ़त हावय, मण्डरावत हे बनके बाज।

जाने कोन जगा ले आये, कुछ दिन मा दुनिया भर छाय।
दहलावत हे रार मचावत, जाने कहाँ तलक ये जाय।

सात समंदर पार पहुँचगे, नइ बाँचत हे कोनो छोर।
कोरोना के महमारी ले, दुनिया भर मा माते सोर।

जिहाँ जिहाँ कोरोना जावय, तिहाँ तिहाँ बनगे समशान।
मरे रोवया नइ बाँचत हे, शहर नगर होगे वीरान।

अजर अमर अविनासी लागय, अमर बेल जस बाढ़त जाय।
छूत बरोबर ये महमारी, साबुत मनखे तक ला खाय।

बात कहत लाचार करत हे, छूते ही तन मा आ जाय।
एक जगा ले दुसर जगा मा, वस्तु तको मा चढ़ के आय।

दिखय नही ये ततका छोटे, पर मनखे ला मात खवाय।
ये तन आवत स्वांसा रुक जय, तड़फ तड़फ मनखे मर जाय।

कतको मनखे खटिया धरलय, कतको मनखे यमपुर जाय।
पर मनखे कहना नइ मानय, अइसन सँवहत रहे झपाय।

साँस लेत मा हो परसानी, सुक्खा खाँसी सर्दी आय।
अउ बुखार मा तन हर तीपय, लच्छन येखर इही बताय।

अइसन हे ता जाँच करावव, डॉक्टर ले तुरते मिल आव।
कहना ला डॉक्टर के मानव, कोरोना ले जान बचाव।

दुनिया भर समझावत हावय, घर ले बाहिर झन गा जाव।
जभे जरूरी तब्भे निकलव, मुँह मा सुग्घर मास्क लगाव।

भीड़ भाड़ ले दुरिहा राहव, रहव एक मीटर जी दूर।
बार बार साबुन ले भाई, धोना हावय हाथ जरूर।

कोरोना तब घर नइ आवय, शासन के कहना ला मान।
अपन सुरक्षा हाथ अपन हे, खतरा ला अब तो पहिचान।

डॉक्टर जान लगाये हावय, खड़े करोना यम के बीच।
नर्स तको मन साथ चलत हे, जिनगी मा अमरित दय छींच।

खड़े सिपाही छाती ताने, कोरोना ला दय ललकार।
तुहरो जान बचाये खातिर, समझावत हे बारम्बार।

भूत लात के बात न माने, देत सिपाही डंडा मार।
बिन बुद्धि के मनखे मन ले, देव तको हर जावय हार।

पर इन ला हे जान बचाना, करना अपन हवय जी काम।
आसा हे कोरोना मरही, तब्भे पाही यहू अराम।

आशा ले आकाश थमे हे, आशा ले बरसा हो जाय।
रख लव आशा मन मा भाई, कोरोना हर बच नइ पाय।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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कुलदीप सिन्हा: कोरोना बर जनजागरण
आल्हा छंद

आवव संगी आज सबो मिल, कोरोना ला देवव मात।
येती ओती चारों कोती, बिगड़े हावय गा हालात।।

घर के भीतर रहिके भइया, करना तुम ला हवे बचाव।
बांध तोबरा मुंह मा सब झन, कोरोना ला दूर भगाव।।

साफ सफाई खुद के राखव, रहि रहि के तुम धोवव हाथ।
छींक संग यदि आथे खांसी, रख रुमाल गा हरदम साथ।।

गरम गरम गा पीयो पानी, खावव खाना ताते तात।
अपनो अपनो बीच घलो गा, करहू अब दुरिहा ले बात।।

हाथ मिलाना बंद करव अब, रहि के दुरिहा करो प्रनाम।
जेन तोबरा बांधे हावव, वोला बदलव गा हर शाम।

कहूं हाट ले सब्जी लाथव, धो धो के करहू उपयोग।
अइसन तुहर करे ले भइया, दुरिहा होही जम्मो रोग।।

हल्का मा झन लेवव कोनो, रोग भयंकर इन ला जान।
दिखय नहीं गा जल्दी लक्षण, भीतर भीतर लेथय प्रान।।

इन ला दूर करे बर अब तो, भिड़े हवय देखव सरकार।
येखर सेती दुनिया भर मा, माते हावय हाहाकार।।

आंख मा आंसू भर के मोदी, सब जनता मन ला समझाय।
भारतवासी मन बर वोहा, जइसे देव दूत बन आय।

अतना मा यदि नइ मानय जे, होही वोखर बंठाधार।
खुद मरही ते मरही संगी, संग पीस जाही संसार।।

"दीप" कहत हे उन ला सुन लो, करव न लक्ष्मण रेखा पार।
रहो मस्त जी घर मा अपने, बांटव सब मिल मया दुलार।।

छंदकार
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
छत्तीसगढ़

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 कुण्डलियाँ छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी
1
कोरोना हर भागही,बात सुनौ धर माथ।
चलव स्वदेशी रीत मा,तजौ मिलाना हाथ।
तजौ मिलाना हाथ,हवै बड़ रोग पदोना।
छोड़व माँसाहार,तभे भठही कोरोना।।
2
साबुन मा सब हाथ मुँह,धोवव बारंबार।
होही पक्का जानलौ,कोरोना के हार।
कोरोना के हार,जीतना जंग हवै अब।
हो जावव तैयार,हाथ धो साबुन मा सब।।
3
चलौ लगा के मास्क सब,होगे बहुत मजाक।
अलकरहा ये रोग हे,हवै जमावत धाक।
हवै जमावत धाक,लेव दम दूर भगाके।
बाँचव सब ल बचाव,सबो मन मास्क लगा के।।

रचनाकार-राम कुमार चन्द्रवंशी
ग्राम+पोष्ट-बेलरगोंदी(छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
छत्तीसगढ़
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 चौपाई-बोधन निषाद

बच के रहना रे संगवारी।
फइले हावय ये बीमारी।।
नाम करोना चीनी हावै।
सर्दी खाँसी संगे आवै।।

अपन सुरक्षा खुद हे करना।
एखर ले काबर हे डरना।
भीड़ भाड़ मा नइ हे जाना।
नाक मुँहूँ मा मास्क लगाना।।

हाथ जोर ले दुरिहा रइहू।
हाय हलो झन तिर मा करहू।।
गाँव कहूँ झन जावव संगी।
कोरोना झन लावव संगी।।

रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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           पोखन लाल जायसवाल

हाँसत खेलत जिनगी मा अब,आगे कोरोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

मना करत हावे सबझन अब,कुकरी नइ खाना हे।
घेरी भेरी घर ले फोकट,बाहिर नइ जाना हे।
थोरिक सुवाद लेहे खातिर,जिनगी नइ खोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

ठउर ठउर मा टँगे हवय सब,रंग रंग के परचा।
एती ओती चारों डाहन,करत हवय सब चरचा।
बाढ़े हावे चिंता सबके,अब अउ का होना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

सोचव समझव मनखे अव सब,नोहव बइला भइसा।
जिनगी नइ तब कोन काम के,जोर जँगारे पइसा।
सोचव झन पइसा कौड़ी जब,जिनगी बर खोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

तन के रहिते कर ले चिंता,काली बर मरना हे।
सरदी खाँसी के इलाज मा,देरी नइ करना हे।
बाँचे बर मुँह हाथ सबो ला,साबुन ले धोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

भीड़-भाड़ ले रहिके दुरिहा,मिल लौ हाथ जोर के।
जनता करफ्यू मानन सबझन,राखन कड़ी टोर के।
नइच फइलही तब कोरोना,ए बात सिखोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

रखन सावधानी छिन छिन मा,आज इही बिनती हे।
हे बचाव ही इलाज एखर,ए मोरो सुनती हे।
कसम खान सब,कोरोना के,अब नाँव बुड़ोना हे।
हवय बाँचना आज सबो ला,आए कोरोना हे।

पोखन लाल जायसवाल
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 रोला छंद - श्रीमती आशा आजाद

कोरोना हे छाय,देश मा जानौ भाई।
देख वायरस आज,मात गे अब करलाई।।
बिगड़े हे हालात,नास छिन भर मा करथे।
लग जावय ये रोग,कतक मनखे मन मरथे।।

फैलाइस हे रोग,चीन हा देखौ जानौ।
खाइन कच्चा मांस,रोग नावा पहिचानौ।।
फैलत तुरते अंग,हाथ झन जान मिलाहू।
मास्क ल पहिरौ रोज,ज्ञान के बात सिखाहू।।

भीड़ भड़क्का छोड़,हवय अबड़ महामारी।
जन जन बगरे खूब,वायरस के बीमारी।।
मुँह मा रखौ रुमाल,साथ झन किटानु आये।
बाहिर झन जी जाव,छुवत ये रोग लगाये।।

खाँसी संग जुकाम,हवय जी इही निसानी।
गला करे हे जाम,सांस के बड़ परसानी।।
चमगादड़ अउ सांप,खाय हे चीनी मन जी।
जहर बरोबर मान,बिगड़ गे सबके तन जी।।

शहर शहर अउ गाँव,देश के जम्मो कोना।
कलपत अब्बड़ मान,देख बगरे कोरोना।।
धोवौ अपने हाथ,रोज साबुन ले भैया।
धरलौ करलौ चेत,देश के सबो रहैया।।

लहसुन सुघर उपाय,गरम पानी ला पीहू।
हल्दी तुलसी काट,सुघर एखर ले जीहू।।
करदौ पूरा बंद,चीन के खई खजाना।
बिगड़ जथे हालात,परय पाछु पछताना।

रोकथाम के काज,करत हे डाक्टर सुनलौ।
कहिथें जेन उपाय,ध्यान धर ओला गुनलौ।।
सर्दी छींक जुकाम,जाँच खाँसी के करहू।
रखके मनखे चेत,स्वस्थ तन मन ला रखहू।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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'जनता कर्फ्यू-(सरसी-लावणी छंद गीत)-अहिलेश्वर

सुरुज नरायण तहूँ कृपा कर,चरचर ले कर घाम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

लटकन के चटकन बीमारी,एती ओती चटकत हे।
साधारण सर्दी खाँसी हा,कोरोना कस खटकत हे।

चैन टोर के कोरोना के,पाँव करे बर जाम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

काल बरोबर कोरोना हा,दुनिया भर मा छा गे हे।
भारत भुँइया घलो दुखी चिंतित हे अउ घबरागे हे।

शहर गाँव झन फइले पावय,जल्दी लगय लगाम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

घर परिवार सगा सोदर ला,कानोकान जतावत हन।
शासन के निर्देश काय हे,फोन लगा समझावत हन।

सब के सतर्कता ले टल जै,दुख-दायक अंजाम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

अन्य देश प्रान्त ले कोनो,गाँव शहर मा आवत हें।
लोगन भिन्न भिन्न माध्यम ले,सत्य खबर पहुँचावत हें।

चौदह दिन बर क्वारंटाइन,देख-रेख के काम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

भाँप संक्रमण के खतरा ला,भीड़ लगाना वर्जित हे।
घुमे-फिरे बर बाहर जाना,छुना-छुवाना वर्जित हे।

खेवन खेवन हाथ ल धोवन,घर मा करन अराम।
'जनता कर्फ्यू'हे हम घर मा,बइठे हन दिल थाम।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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आल्हा छंद -पुरषोत्तम ठेठवार

आय बने बैरी कोरोना, गजब मचाये हाहाकार ।
बिना मौत के लोग मरत हें, मिले नही कोनो उपचार ।।

आये तै महामारी बनके, दुख पावत हें राजा रंक ।
बिक्खर जहर जोर फैलाये, मारत हवै बिछी कस डंक ।।

तोर उपज हे चीन देश के, दुख पावै सारा संसार ।
शहर नगर अउ गाँव खोर मा, कोरोना के चर्चा सार ।।

सर्दी खाँसी अउ बुखार हे, कोरोना के लक्षण जान ।
बाँचव एखर कोप ले संगी, राखव तन के बने धियान ।।

राखव तन के साफ सफाई, घेरी बेरी धोवव हाथ ।
करो नही जी लापरवाही, नइतो पीटना परही माथ ।।

कखरो हाथ पाँव झन धरिहौ, दुरिहा जोड़व दूनो हाथ ।
भीड़ भाड़ मा झन जाहव जी, एक दू झन के राहव साथ ।।

मास्क लगाके करौ सुरक्षा, अपनावव जी शाकाहार ।
खावव दाल भात रोटी ला, तजदौ संगी मांसाहार ।।

स्वस्थ रही सबके तन मन हा, तभे भागही दूर बिमार ।
कोरोना ले बाँचव संगी, राखव सुग्घर नेक बिचार ।।

ठेठवार के बात मानलौ, कहे सियानी सुग्घर गोठ ।
लड़ो लडाई कोरोना ले, तन मन राखव बज्जर पोठ ।।

छंदकार
पुरूषोत्तम ठेठवार
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

*शंकर छंद*

आये हावय कोरोना हा, लोगन बड़ डराय।
फइलत हवय महामारी कस,कोन कहाँ लुकाय।
संसो मा सरकार घलो हे,देत हें संदेश।
जनता ला मिलके लड़ना हे,भागय सबो क्लेश।

सावचेत हें देश प्रशासन ,कोनो झन डराव।
जागरूकता फ़इलावव सब ,सुरक्षा अपनाव।
साफ सफाई बहुत जरूरी,धोवत रहव हाथ।
मेल जोल से दूर रहव सब, देश हावय साथ।।

रूप धरे ईश्वर हा देखव,डॉक्टर वो कहाय।
कतको मन के प्राण ल देखव,सेवा कर बचाय।
जनता कर्फ्यू लगत हवय जी,लोग मानौ बात।
मर जाये दुष्टिन कोरोना ,मारव अबड़ लात।

आशा देशमुख
एनटीपीसी कोरबा (छत्तीसगढ़)
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चौपाई छंद-जीतेन्द्र निषाद

एक नवा अब आ गे रोग। कोरोना काहत हे लोग।।
फइलत हावय जम्मों देश। होगे सब बर बिक्कट क्लेश।।

खावय चमगादड़ अउ साँप। चीन सकिस नइ एला भाँप।।
कोरोना के फइलय रोग। चीनी करय अबड़ के सोग।।

जब कचलहा रहय गा माँस। अब्बड़ खावय बिक्कट हाँस।।
ले लिस कतको झन के प्रान। तब समझिस गा चीन जपान।।

सर्दी खाँसी संग बुखार। जब छींकाशी आवय यार।।
टिश्यू पेपर करव प्रयोग। नइ फइले दूसर ला रोग।।

जब रोगी होवय गंभीर। साँस लेय बर होय अधीर।।
तड़पय जस बिन पानी मीन। इह आखिर लक्षण गउकीन।।

खेवन-खेवन धोवव हाथ। सेनिटाइजर साबुन साथ।।
रोज्जे मुँह मा मास्क लगाव। कोरोना ला दूर भगाव।।

तीन फीट दुरिहा मा जाव। तभ्भे ककरो सँग बतियाव।।
अइसन संदेशा बगराव। जन-जन के तुम प्रान बचाव।।

जेवन जेवव सादा भात। पीयव पानी तातेतात।।
तन ला रखव सदा सब गर्म। सुग्घर करव सदा हर कर्म।।

कोरोना के लक्षण पाय। डॉक्टर कर जी तुरत दिखाय।।
सबले बढ़िया इही उपाय। कोरोना ला दूर भगाय।।
जीतेन्द्र निषाद
बालोद

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छप्पय छंद - श्रीमती आशा आजाद

कोरोना के रोग,छाय अबड़ महामारी।
बिगड़े हे हालात,वायरस के बीमारी।।
देवय तन ल बिगाड़,बात ला मानौ भैया।
रखहू सबझन ध्यान,देश के सबो रहैया।।
खाँसी छींक जुकाम हो,जाँच करे मा ध्यान दौ।
छुवत बढ़य जी रोग हा,सबला सुग्घर ज्ञान दौ।।

मुँह मा रखौ रुमाल,मास्क ला पहिरौ भाई।
फइल जही नित जान,मातही तब करलाई।।
वायरस के प्रकोप,रात दिन बाढ़ै जानौ।
बाहिर झन जी जाव,गोठ डाक्टर के मानौ।।
हाथ मिलाके सब सुनो,धोवव अपने हाथ जी।
रोज सावधानी रखौ,घूमौ झन नित साथ जी।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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***कोरोना वायरस***
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जग मा आहे नवा विषाणु।समझव येला बम परमाणु।।
हे कोरोना येकर नाँव।डरवा देहे शहर व गाँव।।

जान हजारों लेलिस छीन।निकलिस येहर जब ले चीन।।
सावचेत हो भाई मोर।झन मानव येला कमजोर।।

बाहिर कम निकलव सब लोग।मास्क घलो कर लव उपयोग।।
हैंडवॉश-साबुन रख साथ।घेरीबेरी धोवव हाथ।।

हाथ मिलाना ला अब छोड़।छूवव झन जी ककरो गोड़।।
भीड़-भाड़ ले राहव बाँच।सकलावव मत कोनो पाँच।।

साफ-सफाई रख घर-द्वार।अपनावव सब शाकाहार।।
जन बर जन होवव हितवार।मन के डर ला झट ले टार।।

शासन के मानव सब बात।राहव सजग अभी दिन-रात।।
जुरमिल जम्मों कर दव वार।तब कोरोना के हे हार।।

रचना--कमलेश वर्मा,भिम्भौरी
बेमेतरा,9009110792
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

जयकरी छन्द- मथुरा प्रसाद वर्मा


सुन लव भाई सुनव मितान। मोर गोठ ला दे के ध्यान।
हे संकट मा सबके जान। आज मोर तँय कहना मान।

वाइरस एक कोरोना नाँव। फैलत हवे  सहर अउ गाँव।
डर के मारे काँपय लोग। बन्द होत हे सब उद्योग।

सोसल मिडिया करे बखान। रोग ह भारी लेवय प्रान।
दुनियाँ भर हावे परशान। खोजे मा नइ पाय निदान।

हमर परोसी चीन ह ताय। जेन जीव ला कच्चा खाय।
सांप बिछी तक चट कर जाय। इही रोग के कारन आय।

सुन के कोरोना के नाम। आज जगत हर काँपय राम।
फैलावत कतको अफवाह। सुन लेवव बांचे के राह।

जर बुखार अउ खासी छींक। मुड़ पीरा नइ होवय ठीक।
साँस लेत मा लागे जोर। निमोनिया कस लक्षण तोर।

फेर डरे के नइ हे बात। डर हर करथे जादा घात।
हिम्मत राखव मन मा जोर । इही ह प्रान बचाही तोर।

कोरोना के का उपचार। मार मचे हे हाहाकार।
दवा नही कोनो हर पाय। सावधानी हर एक उपाय।

भीड़ भाड़ मा तुम मत जाव। घर म रही के समय बिताव।
शाकाहारी खाना खाव। स्वच्छता ला तुम अपनाव ।

नही हवा मा फैलय रोग। वाइरस ल फैलाथे लोग।
हलो हाय के चलन ल छोड़। राम राम कर हाथ ल जोड ।

जाड़ नमी मा  ये हा भोगाय। गर्मी म वाइरस मर जाय।
तेखर ले झन ठंडा खाव। जाड़ा लगे उँहा झन जाव।

जेला सर्दी खासी आय। छिक छिक के जी घबराय।
अपने हर झन करय उपाय। अस्पताल तुरते ले जाय।

बार बार जे हाथ ल धोय। साबुन लगा लगा के कोय।
साफ रहे नइ खतरा होय। इही उपाय ला राख सँजोय।

रचना
मथुरा प्रसाद वर्मा
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आल्हा-बलराम चन्द्राकर
(कोरोना उपर सचेत करत छंद)

कोरोना के कारण जग मा, हवै मातगे हाहाकार ।
चीन देश के बेमारी हा, देखौ आगे हमरो द्वार।।

अजब वाइरस एहर संगी, नइ हे एकर अभी इलाज ।
लापरवाही के कारण ही, बगरत हे दुनिया मा आज।।

रोग संक्रमण के कोरोना, हर लिस आज हजारों प्राण।
त्राहि-त्राहि जग मा होगे हे, बेबस होगे हे इंसान।।

मनखे ले मनखे मा जाथे, रोगी ले जब तन छू जाय।
रहै फासला हवै जरूरी, हे बचाव के एक उपाय।।

लक्षण एकर दिखथे संगी, सर्दी खाँसी तेज बुखार।
सावधान हो जावन हम जी, छींक आय जब बारंबार।।

घर ले बाहिर झन निकलन जी, भीड़भाड़ ले राहन दूर।
करन गोठ हम दुरिहा रहिके, रद्दा बाट न जावन टूर।।

सतर्कता ले टरही संकट, इही एक ठन हे उपचार।
करबो जब एकांतवास हम, तब निरोग रइही परिवार।।

साबुन सेनेटाईजर ले, साफ रखन गा संगी हाथ।
जनता कर्फ्यू सार्थक हे जी, घर के देव नवाँवन माथ।।

हाथ मिलाना गला लगाना, अउ छूना नइ हे जी पैर।
जै जोहार अभी दुरिहा ले, चेत रहे मा सब के खैर।।

लोग विदेशी चाहे देशी, नइ सटना हे बिल्कुल तीर।
अनुशासन अनिवार्य हवै जी, मन मा राखन थोकन धीर।।

राहन दूर बजार हाट ले, सख्ती हे शासन निर्देश।
कहना हे डाक्टर मन के जी, निगरानी सब करन विशेष।।

*मोटर रेल जहाज बइठना*, अउ पंगत के करन तियाग।
सैर-सपाटा करन अभी झन, घर के खावन रोटी-साग।।

टर जाही ये गिरहा संगी, राहन सबझन सजग सचेत।
हे लड़ना जी डरना नइ हे, ए बलराम कहै गा नेत।।

छंदकार :
बलराम चंद्राकर
भिलाई छत्तीसगढ़
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केंवरा यदु मीरा

कोरोना  के डर  सबो, नारी नर ल सताय।
घर में बइठे सोचथे,  दारू कइसे आय।।

झन पी दारू ला अभी,परे रबे चितियाय।
पुलिस हबर तोला जही, डंडा दिही ठठाय।।

बिगर  पिये कइसे कटे,बही मोर दिन रात।
चुप चुप बइठे हँव इहाँ, मुँहू मोर खजुवात।।

बनी भुती अब बंद हे, घर में नइये  साग।
बकबक झन कर  फूट गे, तोर संग   तो भाग।।

मीठ मीठ तँय बोलते, घर में रहिके आज।
बने गुजरतिस दिन हमर, बनतिस बिगड़े काज।।

छंदकारा
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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 वायरस रोकथाम बर -ज्ञानू

नाम चलत हे चारो कोती,कोरोना कोरोना।
आय वायरस येहा संगी,नोहय जादू टोना।

साफ सफाई घर औ बाहिर,राखव कोना कोना।
धोवव हाथ ल बार बार औ,मुहूँ माँस्क बांधोना।

भीड़भाड़ ले बचके दुरिहाँ,घर मा बंद रहोना।
सावचेत बस राहव संगी,नइ चिंता फिकर परोना।

ताजा ताजा खाना पीना,जंक फूड झन खोजोना।
दार भात औ रोटी दाई, बस बना परोसोना।

बाहिर जाये बर रे लइका ,तुहुँ मन नही पदोना।
घर भीतर मा आनी बानी,खेलव खेल खिलोना।

बबा सुनाही कथा कंथली,सुन सुन पोठ हँसोना।
सुन बूढ़ी दाई के हाना,लोट पोट सब होना।

सर्दी खाँसी औ बुखार हे,अस्पताल जाओना।
हवय स्वास्थ्यकर्मी औ डाँक्टर,मुफत दवा पाओना।

हाथ जोड़के नमस्कार कर,अब झन गला मिलोना।
अतके बूता करलव संगी,इही सार समझोना।

छोटे छोटे बात हवय जी,सब झन ध्यान रखोना।
हार भागही ये पापी हा,कोरोना के रोना।

हाथ जोड़के बिनय 'ज्ञानु' के,देवव ध्यान सुनोना।
लापरवाही झन करहू नइ,जिनगी परही धोना।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कवर्धा
जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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नीलम जायसवाल: जयकारी छंद

कोरोना के डर हे छाय। बाहर ले बीमारी आय।
जस-जस मनखे मेल बढ़ाय। तस-तस एहा बगरत जाय।।

कोरोना ले खुद ल बचाव। रोकथाम गा झट अपनाव।
घर ले बाहर झन जी जाव। तात-तात जी खाना खाव।।

घेरी-बेरी धोवव हाथ। साफ-सफाई साथे-साथ।
आपस मा दूरी ल बनाव। मीटर के भीतर झन आव।।

खाँसे-छींंके बर रूमाल। सब ल बचाना हे हर हाल।
बासी-ठंडा झन जी खाव। बिना जरूरत कहीं न जाव।।

कहिंँचो जाना मास्क लगाव। इन्फेक्शन ले खुद ल बचाव।
सरकारी आदेश ल मान। अपन फर्ज गा तँय हा जान।।

समझ-बूझ बन जा हुसियार। लक्षण मा ले तैं उपचार।
झन कर तैंहा मेल-मिलाप। अस्पताल जा चुप्पेचाप।।

चौदह दिन रखहीं एकांत। जर-बुखार हो जाही शांत।
अलग रहे ले बनही बात। कोरोना ला देबो मात।।

कवयित्री - नीलम जायसवाल, भिलाई, छत्तीसगढ़
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कोरोना(चोपाई छंद)-जीतेन्द्र वर्मा

रहिरहि सबला रोना पड़ही।पाछू जब कोरोना पड़ही।
हरे भंयकर ये बीमारी।जइसे दुख के बादल कारी।।

काँपे थरथर सारी दुनिया।हवै कलेचुप बइगा गुनिया।
तांडव करत हवै कोरोना।काम आय नइ जादू टोना।।

नइहे दवई सूजी पानी।अटके अध्धर मा जिनगानी।
आगे हे ये कइसन बेरा।काल लगावत हावै फेरा।।

घर भीतर मनखे धंधागे।कोरोना बैरी कस लागे।
फइले मनखे ले मनखे मा।परलय के ताकत हे येमा।

घर मा रहना हे हुशियारी।घर  बाहर पसरे बीमारी।
आपा झन खोवव गा भैया।धीर लगाके तरही नैया।

आफत आये हावै भारी।आय बिदेशी ये बीमारी।
मिलजुल लड़ना हे एखर ले।कोनो झन निकलौ जी घर ले।

खेवन खेवन हाथ ल धोवव।तन अउ मन ले चंगा होवव।
इती उती के बात ल छोड़व।कोरोना के कनिहा तोड़व।

जर बुखार अउ सर्दी खाँसी।होवत रहिथे बारा माँसी।
एखर लक्षण ला पहिचानव।जानकार के बयना मानव।

भीड़ भाड़ मा जाना छोड़व।बासी खाना खाना छोड़व।
आसपास के करव सफाई।कोरोना बर इही दवाई।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा

Thursday, March 19, 2020

शंकर छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

शंकर छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

कलम चलावव कलम सिपाही, हाल जग के देख।
दशा दिशा अउ राह सुझावय, लिखव अइसन लेख।।

कलम बँधे हे ताकत बहुते, इही कवि तलवार।
समता सुमता ममता स्याही, जुलुम बर अंगार।।

कलम चलाइस सन्त कबीरा, हाल देख समाज।
ढोंग रूढ़िवादी बर बनगिस, कलम वोकर गाज।।

अंधभक्ति बर कलम चलाइस, सन्त गुरु रविदास।
बसे कठौती मा गंगा जी, रहे मन विश्वास।।

शब्द कलम जी गुरु घासी के, कहे मनखे एक।
जाति पाति के बँधना तोड़िस, काम करगिस नेक।।

आजादी बर कलम चलाइस, सुभाष चंद्र बोस।
क्रांति कलम मा देश उमड़गे, भरे मन मा जोश।।

संविधान बर कलम चलाइस, भीम जी साहेब।
सत्य कहत हँव भीम बदौलत, कलम सबके जेब।।

देश राज खुद स्वाभिमान बर, कलम लौ  कवि थाम।
कलम दिलाही नाम जगत मा, कलम गुरु के नाम।।

छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

Wednesday, March 18, 2020

शंकर छंद -चित्रा श्रीवास

शंकर छंद -चित्रा श्रीवास

दुनिया भर मा फइले हावय, रोग कइसे आज।।
कोरोना के डर मा देखव, बंद कतको काज।।
करथे अब्बड़ जनधन के ये, हानि देखव रोज।
कोरोना के टीका के तो ,होय नइहे खोज।।

जागरूकता हवय जरूरी, सनटाइजर साथ।
बार बार झन छूवव आँखी,रहय सप्फा हाथ।।
भोजन लेवव ताजा सादा,जीव हत्या बंद।
भीड़ भाड़ ले बाँचे के जी,करलव अब प्रबंध।।

नदिया नरवा जंगल झाड़ी, प्रकृति के वरदान।
काट रौंद के मनखे देखव,करत हें अपमान।।
कोरोना ले लड़ के आखिर,हमर होही जीत।
छोटे छोटे अपना लेवव  ,सावधानी मीत।।

छंदकार-चित्रा श्रीवास
कोरबा छत्तीसगढ़

Tuesday, March 17, 2020

शंकर छंद-श्रीमती आशा आजाद

शंकर छंद-श्रीमती आशा आजाद

मस्तुरिया जी सान राज के,इही हमर अभिमान,
सुग्घर जन उद्धार करिन जी,हे भुइयाँ के सान।
जन जन ला संदेश दिहिन जी,अमरित कस हे बोल,
ए भुइयाँ के हीरा हावै,बानी सब अनमोल।।

संग चलव रे गीत ल गाके,सुग्घर दिन संदेश।
दीन दुखी के संग चलव रे,कहिन मिटादव क्लेश।
छत्तीसगढ़ म सोना जइसन,नायक के पहिचान।
मस्तुरिया जी अंतस मन ले,नेक रहिन इंसान।।

आशा आस्था उमंग साहस,युवा गीत के बोल।
छत्तीसगढ़ी भाखा सुग्घर,ज्ञान दिहिन अनमोल।
चंदैनी गोंदा मा कह दिन,हवे अधार किसान।
मस्तुरिया जी प्रेम भाव के,रचदिन गीत सुजान।।

रंगमंच के नायक राहिन,कला रहिस भरमार।
ए भुइयाँ मा हीरा जइसन,बेटा के अवतार।
छत्तीसगढ़ी ला पोठ बनाके,बनिन हमर अभिमान।
मस्तुरिया जी लाइन सुमता,लेखन मा नित ज्ञान।।

हमर राज के नेक धरोहर,गला म खूब मिठास।
जन ला नित संदेश दिहिन जी,अंतस भर विश्वास।
छत्तीसगढ़ी लेखन धारा,अमिट राज सम्मान।
मस्तुरिया जी हिरदे बसके,छोड़िन अपने प्रान।।

छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

Sunday, March 15, 2020

बिष्णु पद छंद छंदकारा-सुधा शर्मा

बिष्णु पद छंद

छंदकारा-सुधा शर्मा

1- सुन ले भगवान मोर बिनती,तोर शरण म पड़े।
हाथ जोर के ठाढ़े हाँवव,विपदा विकट खड़े।

2-धरती दाई तीपत कोरा,कुटी कुटी बँटगे।
होवत संगी देखव पीरा,जीव जन्तु घटगे।

3-जंगल झाड़ी सबो उजरगे,नँदिया प्यास मरे।
कइसन बेरा आगे देखव,जिनगी भँवर पड़े।

4-चेतव गा सब मनखे अब तो,उदिम कुछू करहू।
अभी घलव नइ चेतिहव ग तब,जीते जी मरहू।

5-जात पाँत के होवत झगरा,मया पीरा बिसरे।
बात बात म लहू बोहावँय,मनखे कहाँ अमरे।

6- मर मर किसान करे किसानी,
मिहनत मोल कहाँ।
झूलत हावे फाँसी भगवन,मुक्ति पाये जहाँ।

7-नँदिया तरिया सुख्खा होवत,पानी मोल बिके
ढोलक कस बढ़ोतरी बाजे,भीतर पोल दिखे।

8- गौ माता रोवत हावे अब, नैना नीर बहे।
मनखे इहाँ निर्दयी होगे,गौधन रोज कटे।

9-कतका पीरा गोठियांव मँय,बाढ़त पाप हरे।
किरा असन हे जिनगी जीयत,मनखे शाप धरे।

10- नवा नवा ये जुग के संस्कृति, मनखे सब बिगड़े।
लोक मरजाद बूड़त भगवन,कइसे भँवर खड़े।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

Friday, March 13, 2020

शंकर छंद- उमाकान्त टैगोर

शंकर छंद- उमाकान्त टैगोर


जब मुड़घमम्मा परही तोला, याद आही गाँव।
सुरता करके रोबे भारी, लीम चौरा छाँव।।
छोड़ छाड़ के घर अँगना ला, रेंग झन परदेस।
ये भुइँया के कारज माढ़े, तेन ला झन लेस।।

जब ले तँय बाढ़े पोढ़े हस, होय हस हुसियार।
आने कोनो हितवा बनगे, बाप बनगे भार।।
तोला पोसे पाले बर गा, करय अब्बड़ काम।
तर तर तर तर चुहय पसीना,रहय बिक्कट घाम।।

बिन रुखराई के दुनिया मा, कोन पाही छाँव।
कलकुत हो जाही गा भाई, कहाँ मिलही ठाँव।।
गरमी भारी बाढ़त जाही, निकल जाही प्रान।
राखे ला परही जी संगी, चिटिक हमला ध्यान।।

जागव रे जागव रे संगी, भूमि के रखवार।
ये माटी के रक्षा खातिर, बनँव जी हुसियार।।
चिमनी के कुहरा मा देखव, तन     झँंवागे मोर।
धरती दाई हा रो रो के, कहत हे कर जोर ।।

मूड़ी धर के रोवत हावँय, देख इहाँ किसान।
नदिया नरवा सुक्खा परगे, होय कइसे धान।।
काला खाहीं काला बोहीं, परे हवय दुकाल।
एक एक दाना बर तरसँय, तोर धरती लाल।।

पाँव पसारे तँय हर बुद्धू, सुते रह झन आज।
झर झर झर झर गिर गे पानी, देख नांगर साज।।
विनती हमरो सुन के दाता, करे हे उपकार।
अब हरियाही देखत रहिबे, मोर खेती खार।।

मन मारे झन बइठे राहव, करव जी भर काम।
भले पसीना कतको टपकय, करय कतको घाम।।
दुख के सब बिरथा टर जाही, रही सुख घर बार।
मिहनत ले हे माटी भुइँया, हवे ये संसार।।

दान धरम ले बढ़ के नइ हे, कहय संत फकीर।
दुखिया के रक्षा जे करथे, उही सच्चा वीर।।
जात पात ले ऊपर उठ के, रहव सब झन एक।
मानवता ले बढ़ के कोनो, काम नइ हे नेक।।

भूत प्रेत कछु नइ होवय, भरम मन के आय।
अंधभक्ति मा ये जग हे, कोन जी समझाय।।
जादू टोना नइ हे जग मा, लेव थोरिक जान।
ये धरती मा जतका हावय, सबो आय विज्ञान।।

छंदकार- उमाकान्त टैगोर कन्हाईबंद, जांजगीर छत्तीसगढ़

Thursday, March 12, 2020

शंकर छंद - केवरा यदु"मीरा"



शंकर छंद - केवरा यदु"मीरा"

बृन्दाबन मा होरी खेलत, देख नँद के लाल।
भर पिचकारी मारत हावे,करत हे बेहाल।।
बाजा बाजे ढोल नँगारा,नाचत देय ताल।
देखो ब्रज के नर अउ नारी,दिखय लाली गाल।।

आइस हे जब राधा गोरी, छेंक मोहन राह।
डारन लागिस रंग घोरके,धरे राहय बाँह।।
बरजोरी झन कर गिरधारी,मिलय गारी आज।
सबो सखी सुन हाँसन लागे,नइये श्याम लाज।।

रँग हे हरियर पिँवरा लाली, रंग अउ हे श्याम ।
कोन रंग ला डारँव मँय हा, झिन करो बदनाम।।
श्याम रंग हा मोरो मन भाथे,नहीं कोनो भाय।
कतको मोला तँय तड़पाथस, तोर संग  सुहाय।।

छंदकारा - केवरा यदु "मीरा "
राजिम(छत्तीसगढ़)

Wednesday, March 11, 2020

शंकर छंद - श्लेष चन्द्राकर




शंकर छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - मोबाइल टॉवर

मोबाइल के टॉवर सेती, सबो हे हलकान।
येकर विकिरण अलकरहा हे, करत बड़ नुकसान।।
जघा-जघा मा आज इखँर गा, बिछे हावय जाल।
चिरई चुरगुन अउ मनखे के, बनत हे ये काल।।

टॉवर के सेती होवत हे, ब्रेन ट्यूमर रोग।
घातक केंसर के पीरा ला, सहत हावय लोग।।
होत दिमागी बीमारी गा, खीक हे ये मान।
इखँर फायदा कमती हावय, अबड़ हे नुकसान।।

विषय - नरई

खेतखार के नरई मन मा, लगावव झन आग।
हाथ-गोड मा लग जाथे गा, केंरवस के दाग।।
हवा प्रदूषित होथे जानव, हरे राखड़ खीक।
नांगर चलवा नरई मन ला, पाट देना ठीक।।

आग लगाथव जब नरई ला, बिगड़थे गा खेत।
काम अकल के कर लव संगी, बखत रहिते चेत।।
कभू प्रदूषण झन बगरय जी, करव अइसे काम।
झन खराब गा होवन देहू, किसनहा के नाम।।

विषय- जंगली जानवर के संरक्षण

हुर्रा भलुवा चितवा बघवा, सिरावत हे आज।
गाँव-गाँव के जंगल मन मा, करत मनखे राज।।
जीव-जंतु ला पकड़े बर गा, बिछावत हे जाल।
मार-मार के खावत हावय, उखँर बेचत खाल।।

सबो जानवर जंगल मन के, घटत हावय रोज।
मिलय नहीं गा अब देखे बर, करव कतको खोज।।
लालच मा आके मनखे हा, गिरत हावय घात।
कल सवाल लइका मन करही, बताही का बात।।

वन्य जीव ला झन मारव जी, हरय वन के शान।
जुलुम उखँर ऊपर करहू ता, रिसाही भगवान।।
हरय प्रकृति के येमन सब जी, अंग जानव खास।
इखँर निशानी बचे रहे गा, करव सबो प्रयास।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं. 27, महासमुन्द (छत्तीसगढ़) पिन-493445

शंकर छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

शंकर छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

तीन लोक के स्वामी भोला, तिरलोकी कहाय।
सगरो दुनिया खोज डरिन हे, तोर पार न पाय।।
धरती अगास अउ पताल ला, तहीं  हा सिरजाय।
तीन लोक अउ चउदा भुवन ला, तिरछूल म बसाय।।1।।
गांजा भांग धतूरा तीनों, तोला बड़ सुहाय।
सागर मंथन के सब बिख ला, पी के तँय पचाय।।
एकर सिवाय धन दौलत अउ, काँहीं हा न भाय।
कपड़ा कस बघवा खंड़री ला, तन मा ओरमाय।।2।।
भूत  प्रेत बैताल घलो ला, साथी तँय बनाय।
चंदन भभूत त्रिपुंड तीनों, तोर शोह बढ़ाय।।
तोर समाधि भंग करिस ता, रति पति ला जलाय।
तीसर नयन उघारे तँय हा, भू म प्रलय मचाय।।3।।
बेद शास्तर अउ पुरान हा, तोर गुण ला गाँय।
शेष वासुकी नांगदेव ला, तन मा ओरमाँय।‌।
पारवती अउ सति माता के, तप के सत बढ़ाय।
करिन तपस्या तोर वरण बर, तहीं हा अपनाय।।4।।
चांद दूज के अपन जटा मा, मुकुट असन लगाय।
गंगा तोर जटा ले निकले, बहत हिंद म आय।।
डमरू डम डम बजे हाथ मा, तांडव कर दिखाय।
नंदी बइला तोर सवारी, बड़ वो मेछराय।।5।।
दान सोन के लंका करके, करय मरघट वास।
मुर्दाराख चुपर के तन मा, खुद ल समझे खास।।
अंतर्यामी तँय अविनाशी, महाकाल कहाय।
"जलक्षत्री" करजोर पूजत हे, रोज ध्यान लगाय।।6।।


छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा)
जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)

Tuesday, March 10, 2020

होली विशेषांक छंदबद्ध रचना-छंद के छ परिवार





होली विशेषांक छंदबद्ध रचना-छंद के छ परिवार

सार छंद - श्रीमती आशा आजाद

आगे हाँसत धरके ऐदे,रंग भरे जी होली।
रंग भरे पिचकारी लेलौ,आवव रे हमजोली।।

छेड़ौ सबझन साज नगाड़ा,गावौ मिल जुल गाना।
बिछे रहय रंगोली जइसन,मउसम लगय सुहाना।
गुत्तुर-गुत्तुर भाखा राखौ,बोलौ सुग्घर बोली।
रंग भरे पिचकारी लेलौ,आवव रे हमजोली।।

हरिहर हरिहर रंग रहय जी,नीला पीला डालौ।
ढोल नगाड़ा बाजा बाजै,गीत मया के गालौ।
तान लगाके सब झन बोलौ,होली हे जी होली।।
रंग भरे पिचकारी लेलौ,आवव रे हमजोली।।

होली हे भाई होली हे,तान लगाके घूमौ।
रंग बिरंगी ए भुइयाँ ला,माथ नवा के चूमौ।।
संगी साथी साथ रहय जी,होवै हँसी ठिठोली।
रंग भरे पिचकारी लेलव,आवौ रे हमजोली।।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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 छप्पय छंद श्रीमती आशा आजाद

होली आगे देख,सबो संगी जुरियावौ।
छेड़ नगाड़ा साज,थिरक के गाना गावौ।।
अपने धुन के साज,तान ला छेड़ँव संगी।
भुइयाँ दिखही आज,बने जी रंग बिरंगी।।
बने मजा के खेल लौ,ठेनी झगड़ा छोड़ दौ।
मया पिरित के रंग ले,जम्मो नाता जोड़ दौ।।

सुमता के हो रंग,रंग अइसन बगरावौ।
मया पिरित के बोल,गीत ला जुरमिल गावौ।।
बैरी संगी होय,नेक व्यवहार ल रखहूँ।
नसा नास हे जान,मात के झन जी रहहूँ।।
जात पात ला भूलके,भाईचारा लाव जी।
संग मया ला बाट के,हिरदे ले मुस्काव जी।।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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सुखदेव: रिस्की हे रंगीन-मिजाजी- सरसी छंद

होली हे होली हे काहत,कर देही कंगाल।
रिस्की हे रंगीन-मिजाजी,दुरिहा जा तत्काल।

आड़ लगावत होली के बोली ये ऊटपटांग।
रंग-रसा के मतलब नइहे,दारू गाँजा भांग।

पहिदे पाबे नशानगर मा,फँस जाबे हर हाल।
रिस्की हे रंगीन-मिजाजी,दुरिहा जा तत्काल।

आँखी ला मूँदे मुस्का झन,समय बदलगे जाग।
समरसता के राग रंग मा,मिल के गा ले फाग।

सादा रहिले सादा चहिले,तैं आसो के साल।
रिस्की हे रंगीन-मिजाजी,दुरिहा जा तत्काल।

छोड़ हुँकारू भरना नोहय होली हर हुड़दंग।
दया मया धर आथे फागुन लाथे खुशी उमंग।

भभकउनी मा ये बिगड़उला,आदत ला झन पाल।
रिस्की हे रंगीन मिजाजी,दुरिहा जा तत्काल।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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दोहा - राज कुमार बघेल

काम धाम ला छोड़के,छोड़ शरम अउ  लाज ।
बूड़ जा पिरित रंग मा,हितवा बइरी आज ।।1।।

फागुन होली  संग मा,बइरी  बने मितान ।
हरियर पीयॅऺंर रंग मा,सुग्घर फभत जहान ।।2।।

फागुन महिना आय हे, होली कहॅऺंय तिहार ।
जुर मिल सबो मनाव जी,राखव नेक विचार ।।3।।

मनखे मनखे होत हे,झन थोरिक दुरिहाव ।
भेदभाव ला भूलके हिरदे संग लगाव ।।4।।

पीयॅऺंर लाली रंग मा,अइसन रंग जमाय ।
नोनी बाबू संग मा,कोनो नइ चिन्हाय ।।5।।

होरी खेलत बिरज मा, भाई करिया ताय ।
भर पिचकारी मारथें,संगी सब जुरियाय ।।6।।

राधा के मन आध हे,मन मा किसन बसाय ।
खेलॅऺंव होली साध हे,कोन जघा तिरियाय ।।7।।

ढोल नगाड़ा हे बजत,सबके अंतस भाय ।
राधा किसना हे फभत,आॅऺंखी बड़ सुख पाय ।।8।।

परसा लाली फूल मा, कान्हा ला परघाय ।
डारा डारा झूल गा, गीत बसंती गाय ।।9।।

लाली लुगरा हे फभत,राधा तन मा तोर ।
देख सुहावन हे लगत,मोहे मन चितचोर ।।10।।

 छंदकार -राज कुमार बघेल
             सेन्दरी, बिलासपुर

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रोला छंद- राज कुमार बघेल

मन मा भरे उछाह,चले सब चिल्ला चिल्ला ।
रॅऺंगत हवॅऺंय परिवार,संग मा माई पिल्ला ।।
ताकत हावॅऺंय आज,पाॅऺंय जब कोई  मउका ।
डारे मा का लाज,रंग दे तॅऺंय हा ठउका ।।1।।

घड़कत हावय ढोल,भाय जब बजे नगाड़ा ।
गुरतुर लागत बोल,भाग गय अब तो जाड़ा ।।
जिनगी हे दिन चार, रंग ले तॅऺंय हा तन ला ।
इरखा देव बिसार,बना ले  फरियर मन ला ।।2।।

 छंदकार-राज कुमार बघेल
             सेन्दरी , बिलासपुर

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 कुण्डलिया छंद- राज कुमार बघेल

होली महिना लाय हे,आनी बानी रंग ।
जग मा मस्ती छाय ये,मन मा भरे उमंग ।।
मन मा भरे उमंग,रार झन तॅऺंय हा करबे ।
रहिबे जुर मिल संग,मीत बन दुख ला हरबे ।।
देख किसन के संग,करॅऺंय जी हॅऺंसी ठिठोली ।
बिन कान्हा के होय, नहीं जी फागुन होली ।।

 छंदकार-राज कुमार बघेल
              सेन्दरी, बिलासपुर

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 छप्पय छंद- राज कुमार बघेल

होली के दिन आज,चलव गा सब जुरियावव ।
सुमता मा बड़ राज, सबो ला गले लगा लव ।।
हावय मउका घात, निभाई भाई चारा ।
मानवता के बात,मीत जस हे जग सारा ।।
खुशी मनाबो आज जी, करबो जुर मिल काम जी ।
कहे सियानी मान जी, होवय जग मा नाम जी ।।

छंदकार-राज कुमार बघेल
             सेन्दरी, बिलासपुर
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ताटंक छंद-

फागुन महिना सबले बढ़िया,कहिथें जी दुनिया वाले ।
अपन पिरित के रंग बुड़ोथे,गोरिया हो  चाहे काले ।।
नीला पीला लाली पीयॅऺंर,सबके मन ला ये भाथे ।
हिरदे भीतर घोर मया ला, भाई चारा सिरजाथे ।।1।।

धरे हवॅऺंय पिचकारी जम्मों,चाल हवय ये मतवाली ।
हवय नहाये गली खोर हा,जइसे हे कोयल काली ।।
भौजी भइया खेलॅऺंय होली,खेलॅऺंय साला अउ साली ।
फाग गीत के सुग्घर बोली, बन के गावत हमजोली ।।2।।

परसा फूले लाली लाली, गीत बसंती ये गाथे ।
रस्ता देखत तोर अगोरा,पाना मूड़ी डोलाथे ।।
देख हवा पी मउहा झोरे,हावय अब्बड़ बौराये ।
अमुवा रानी चढ़े जवानी,राहय सिरतो मौराये ।।

 राज कुमार बघेल
 सेन्दरी, बिलासपुर
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मनहरण घनाक्षरी छंद- राज कुमार बघेल

संगी साथी साथ मा जी, पिचकारी हाथ मा जी,
होली के ये बात मा जी, उधम मचात हें ।
मन मा उछाह भरे, रंग ये गुलाल धरे,
बात नइ माने कोनो, अंग मा लगात हें ।
कोनो दिखे गोरी नारी ,कोनो दिखे कारी कारी,
रंग मा बुड़ोय बर, सब ला बलात हें ।
संगी  ये जहुरिया जी ,संग मा बहुरिया जी
खेले बर होली तभो, मन मा लजात  हें ।

 राज कुमार बघेल
 सेन्दरी, बिलासपुर

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 घनाक्षरी छंद :- जगदीश "हीरा" साहू

होली हे....

हाथ मा गुलाल धरे, कोनो पिचकारी भरे, कोनो हा लुका के खड़े, आगू पाछू जात हे।
लईका सियान संग, बुढ़वा जवान घलो, रंगगे होली मा गली गली इतरात हे।।
गली मा नगाड़ा बाजे, मूड़ पर टोपी साजे, बड़े बड़े मेंछा मुँह ऊपर नचात हे।
गावत हावय फ़ाग, लमावत हावै राग, सबो संगवारी मिल, मजा बड़ पात हे।।

बाहिर के छोड़ हाल, भीतर बड़ा बेहाल, भौजी धर के गुलाल काकी ला लगात हे।
हरियर लाली नीला, बैगनी नारंगी पीला, आनी बानी रंग डारे, सब रंग जात हे।।
माते हावै हुड़दंग, भीगे सब अंग अंग, अँगना परछी सबो रंग मा नहात हे।
बइठे बाबू के दाई, सब के होली मनाई, अपन समय के आज सुर ला लमात हे।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़

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चौपाई छंद - (फागुन)


फागुन आगे रॅग बरसत हे। नर नारी जम्मो हरषत हे।।
लाली पिवरी हरियर भावय। होरी होरी कहि कहि गावय।।

महर महर अमरैया महकय। दह दह परसा फूले दहकय।।
नशा भाॅग मा गदगद हे मन। इन्द्रधनुष अस दिखथें जन-जन।।

गाॅव गली मा बजै नगारा। ठुमुक ठुमुक नाचॅय सब पारा।।
तरी उपर मा रॅग बोथागे। सबौ बेंदरा भलुवा लागे।।

रंग रॅगीला मौसम होगे। कौन कहाॅ हे गा सब खोगे।।
पुन्नी के चन्दा जस गोरी। सखियन सॅग करथे बरजोरी।।

छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा

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 अजय अमृतांसु: होली के दोहा।   ////

तन ला रंगे तैं हवस,मन ला नइ रंगाय।
पक्का लगही रंग हा,जभे रंग मन जाय।। 1।।

छोड़व झगरा ला तुमन,गावव मिलके फाग।
आपस में जुरमिल रहव,खूब लगावव राग।।2।।

आँसों होरी मा सबो,धरव शांति के भेष।
मेल जोल जब बाढही,मिट जाही सब द्वेष।।3।।

कबरा कबरा मुँह दिखय,किसम किसम के गोठ।
मगन हावय सब भाँग मा,दूबर पातर रोठ।।4।।

मिर्ची भजिया देख के,जी अड़बड़ ललचाय।
छान छान के तेल मा, नवा बहुरिया लाय।।5।।

भँगहा भकवा गे हवय ,मंद मंद मुस्काय।
सूझत नइ हे का करय,कोन डहर वो जाय।।6

खसुवा के मरना हवय,खसर खसर खजुवाय।
होली के हुड़दंग मा,  मजा कहाँ ले पाय।।7

दरुहा मन ढरकत हवय , पीके सब चितयाय।
बस्सावत हे जोर के, देख कुकुर सुँघियाय ।।8

लबरा मन के हे चलत,चोट्टा मन के राज।
नँगरा खावत खीर हे,सिधवा तरसत आज।।9

 अजय अमृतांशु,
भाटापारा, 9926160451

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रंग तिहार(सरसी छंद)-जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय   बुराई  नास।
सत के जोती जग मा बगरे,मन भाये मधुमास।

चढ़े मया के रँग दूसर दिन,होवय सुघ्घर फाग।
होरी   होरी  चारो   कोती, गूँजय  एक्के  राग।
ढोल नँगाड़ा बजे ढमाढम,बजे  मँजीरा  झाँझ।
रंग गुलाल उड़ावय भारी,का बिहना का साँझ।
करिया पिवँरा लाली हरियर,चढ़े रंग बड़ खास।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास....।

डूमर  गूलय  परसा फूलय, सेम्हर होगे लाल।
सरसो चना गहूँ बड़ नाचय,नाचे मउहा डाल।
गरती  तेंदू  चार  चिरौंजी,गावय  पीपर  पात।
अमली झूलय आमा मउरे,गीत कोयली गात।
घाम हवे ना जाड़ हवे जी,हवे मया के वास।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास।

होली  मा  हुड़दंग  मचावय,पीयय  गाँजा  भांग।
इती उती चिल्लावत घूमय,तिरिया असन सवांग।
तास जुआ अउ  दारू पानी,झगरा झंझट ताय।
अइसन मनखे गारी खावय,कोनो हा नइ भाय।
रंग मया के अंग लगाके,जगा जिया मा आस।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास..।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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घनाक्षरी-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

नइ घेपे कोनो ला वो,रँगे गाल दोनो ला वो।
भिरभिर भिरभिर,भागे गली खोर मा।
भूत कस दिखत हे,गला फाड़ चीखत हे।
नाक कान गली खोर,भरगेहे शोर मा।
रहिरहि नाचत हे, हिहिहिहि हाँसत हे।
मगन फिरत हवै,बंधे मया डोर मा।
नँगाड़ा मँजीरा धरे,पिचका मा रँग भरे।
होरी होरी रटत हे,फगुवा हे जोर मा।

दोहा-जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

जिनगी मा उल्लास के,बरसे सातो रंग।
फागुन रंग फुहार में,भीगें आठो अंग।1

वो जिनगी बेरंग हे,जेमा नइहे आस।
दया मया ममता बिना,मनखे जिंदा लास।2

आये रंग तिहार हे, जुरमिल गावव फाग।
रँग दव गाल कपार ला,दया मया रँग पाग।3

परसा सेम्हर फूल हा, अँगरा कस हे लाल।
आमा बाँधे मौर ला,माते मउहा डाल।।4

नीला पीला लाल हा, दू दिन के बस ताय।
मया रंग चोक्खा चढ़े,धोये नइ धोवाय।।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा
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छंदकार - बोधन राम निषादराज

(1)किरीट सवैया

 (फाग मनावत)

ढोल बजे बृज मा रधिया सँग मोहन रास रचावत हावय।
फागुन रंग उड़े फगुवा सब फाग सुनावत गावत हावय।।
माँदर बाजत देख गुवालन हाँसत भागत आवत हावय।
मातु जसोमति नंद बबा यह देखत फाग मनावत हावय।।

(2) महाभुजंग प्रयात सवैया
 (होली)

बजै ढोल बाजा नँगारा सुहावै,दिखै आज लाली गुलाली कन्हैया।
धरे रंग हाथे लगावै मुहूँ मा,इहाँ राधिका हा लुकावै ग भैया।।
भरे हे मया राग कान्हा बलावै,लजावै ग  गोपी कहै हाय दैया।
मया मा फँसा रंग डारै मया के,नचावै सँगे मा मया के रचैया।।

(3) महाभुजंग प्रयात सवैया
 (बसन्त)

झरै पान डारा उड़ावै हवा मा,नवा पान सोहै बसन्ती सुहावै।
दिखै फूल लाली ग टेसू खड़े हे,बरै देख आगी हिया ला जलावै।।
बढ़ावै मया ला चलै कामदेवा,धरे काम के बान मारै सतावै।
उड़ै रंग होली बसन्ती हवा मा,सबो आज  लाली गुलाली लगावै।।

छंदकार - बोधन राम निषाद राज "विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला - कबीरधाम(छत्तीसगढ़)

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चित्रा श्रीवास: कुंडलिया छंद - (होली)

होली फागुन लाय हे,खेलव संगी संग।
चारो कोती छाय हे,देखव आज उमंग।।
देखव आज उमंग, रंग हे पींयर नीला।
लाल हरा के संग, खेल लव माई पीला।।
भेदभाव ला छोड़, मया के बोलव बोली ।
रहे सदा सद्भभाव,,देश मा खेलव होली।।


2. होली हावय आज जी,खेलव मिलजुल संग।
बैर भाव ला भूल के,डार मया के रंग।।
डार मया के रंग, भरे पिचकारी लानव।
बने रहय सद्भाव, देश मा हरदम जानव।।
करव कभू ना क्लेश, बोल लव मीठी बोली
चढ़े प्रेम के रंग, साल मा आथे होली।।

छंदकार - चित्रा श्रीवास
बिलासपुर
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दोहा- मिलन मिलरिहा
गली गली रंगीन हे, होली मानत आज।
दिल्ली मा तो ख़ून के, रंग करत हे साज।।

दरुहा बर होली हवय, सिधवा पोठ डराय।
कोरोना हर दूर हे, गाँजा जेन चढ़ाय।।

दारु जेन हा पी डरे, कोरोना तिरयाय।
पेपर मिडिया हा घलो, राह नसा देखाय।।


नेता होली मा रमे, जनता पथरा खाय।
धधकत हे दिल्ली हमर, आगी कोन धराय।।

धो गुलाल के रंग ला, मुँह ले जल्दी तोर।
कोरोना हर चीन ले, आये जग मा सोर।।

मिलन मलरिहा
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 छंदकार-पोखन लाल जायसवाल

( १ ) दोहा-
रंग रंग के रंग हे,देवय  पानी रंग।
प्रेम रंग अइसन रँगव,मन हा जावय रंग।।

धर के रंग गुलाल ला,फगुआ बहुत उड़ाय।
नशा भाँग के जब चढ़य,फगुआ बने सुनाय।।

लाली लाली सेमरा,फूले परसा लाल।
किसिम किसिम के रंग ले,रँग दे चिक्कन गाल।।

प्रेम बिना संसार ए,लागय जी बदरंग।
होली मा नफरत जरय,रचय प्रेम के रंग।।

( २ ) मतगयंद

बाल सखा सब संग धरे अउ,हाँसत कूदत आवय टोली।
खोर गली घर ले निकले सब,घूमत घामत हे हमजोली।
मारय रंग भरे पिचका अउ,गाल मलै सब खेलय होली।
श्याम सखा सब आवत जानत,गोप गुवालन भागय खोली।

बाल सखा मन मोहन के सब,खेलय हाथ धरे पिचकारी।
गाल मलै अउ भाल मलै सब देखव,लेवत कोन उधारी।
गोप गुवालिन कूदत फाँदत भागत,देवत हे अउ गारी।
रास रचा सब नाच नचावत,देखन भावय कृष्ण मुरारी।

छंदकार- पोखन लाल जायसवाल पलारी; 
जिला- बलौदाबाजार भाटापारा छग

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 चौपई छंद (जयकारी छंद) - श्लेष चन्द्राकर

फागुन के बड़ नीक तिहार। होली देथे खुशी अपार।।
ये दिन खेलव रंग गुलाल। जुरिया के सब करव धमाल।।

गावव सुग्घर फागुन गीत। बाँटव सब मा मया पिरीत।।
ढोल नँगाड़ा बने बजाव। होली मा हुड़दंग मचाव।।

सबके मन मा भरव उमंग। पिचका भर-भर छींचव रंग।।
बैरी मन ला गला लगाव। भाईचारा आज दिखाव।।

सुग्घर होली परब रिवाज। जेकर ऊपर हम ला नाज।।
भारत के ये खास तिहार। आज मनावत हे संसार।।

पावन होली परब मनाव। छोटन ऊपर मया लुटाव।
बड़खा मन के लव आशीस। बैर भुलावव छोड़व रीस।।

होली मा ये रखहू याद। पानी झन होवय बर्बाद।।
तिलक लगाके परब मनाव। तन ले झटकुन रंग छुड़ाव।।

मर्यादा के रखहू ध्यान। ककरो झन करहू अपमान।।
झगरा के झन नौबत आय। ये सब कोनो ला नइ भाय।।

रंग खुशी के हरय प्रतीक। येकर टीका लगथे नीक।।
होली खेलव सबके संग। चुपरव सुग्घर हर्बल रंग।।

गोठ बताथे परब पुनीत। सत के होथे खच्चित जीत।।
जीतिस ये दिन हे प्रहलाद। हार होलिका गिस हे याद।।

जुरमिल खेलव रंग गुलाल। सबला राखव गा खुशहाल।।
कोनो ला झन देवव क्लेश । मानवता के दव संदेश।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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 छंद -मीता अग्रवाल 


होरी के तिहारे गोरी,हमरो  जब्बर टोली,
तंहूँ आजा मोर संग, नदियाँ के पार मा।
नैना तोरे हे कटारी ,संग तोरे संगवारी, 
संग संग  चले आबे, नीम तीर तार  मा।
फाग गाबो संग संग, उमड़े घन उमंग, 
पिरित के रंग चघे,तोरे फूले गार मा। 
रतिहा बारबो होरी,बजाबो नगाड़ा गोरी, 
रंग लाबे मया के वो, गली खोर खार मा।

जलहरण घनाक्षरी

पाहती मा जाड़ लागे, पुरवाई बहे लागे।
जुड़ जुड़ ताप सम,धरती झूमें मगन।
दिन बड़े रात छोटे ,मंझनिया ताप बढ़े,
बिकट मौसम मार,सुसतिहा होगें तन।
हुलसे नगारा सुन,फाग गाव झूम झूम,
नीक लागे पुरवाई, झूमत सनन सन।
बीत ये बरिस जाही, फागुन के अगड़ाई,
होरी संग बिदा होही,भरही उमंग मन।


छंदकार-डाॅ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़

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जलहरण घनाक्षरी- महेंद्र कुमार बघेल
            (होली)
ठेठरी बरा चुरे हे,गजब मया घूरे हे।
बड़ नीक लगे हावै, तहूॅं खा ले नानकुन।
बने पाग धराय हे, ये अरसा रॅंधाय हे।
मुॅंहुॅं में जी पानी आगे,परस ले झटकुन।
सोहारी ल बेलत हे, तेल मा ढपेलत हे।
ये नवा खाई गहूं के, कान टेड़ तहूॅं सुन।
चिरहा सबो पड़े हे, फागुन बर अड़े हे।
खोज आज कुरता के, टोंड़का ला तुन तुन।

आनी बानी रूप साजे, तज के शरम लाजे।
टोली मन निकले हे ,नॅंगारा बजाय बर।
रंग मा बोथाॅंय हावे, सब भकवाॅंय हावे।
ओरी पारी जोहत हे,फाग गीत गाय बर।
बाजा बाजे ढम ढम, नाचें कूदें  छम छम ।
खोजत हे देवर ल,भौजी होलियाय बर।
ये भेद भाव भूल के,मितानी ल कबूल के।
गांव सकलाय हावे, तिहार मनाय बर।।

खेले बर होली संगी, तुकत हें हुड़दंगी।
अबीर गुलाल धर ,जावत हें घर घर।
परसा के फूल टोर, पानी मा उबाल घोर।
डारत हावय सब,पिचका मा भर भर।
किन किन जाड़ लागे,एती ओती घलो भागे।
पाछू पाछू कलेचुप, छिंचत सरर सर।
लइका ह जाने नहीं,बरज ल माने नहीं।
मजा लेत रंग डारे, फिलोत छरर छर।


छंदकार-महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव,
जिला-राजनांदगांव

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छंद के छ के होली-दोहा गीत

"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग।
साधक सब जुरियाय हे,देवत हावै राग।

आज छंद परिवार मा,माते हवै धमाल।
सुधा सुनीता केंवरा,छीचत हवै गुलाल।
सुचि सुखमोती ज्योति शशि,चित्रा ला भुलवार।
आशा मीता मन लुका,करय रंग बौछार।
रामकली धानेश्वरी,भागे सबला फेक।
नीलम वासंती तिरत,लाने उनला छेक।
शोभा  संग तुलेश्वरी,गाये सुर ला पाग।
"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग----

बादल बरसत हे अबड़,धरे गीत अउ छंद।
ढोल बजाय दिलीप हा, मुस्की ढारे मंद।।
मोहन मनी मिनेश मिल,माटी मिलन महेंद्र।
गावत हे गाना गजब,मथुरा अनिल गजेंद्र।।
ईश्वर अजय अशोक सँग,हे ज्ञानू राजेश।
घोरे हावय रंग ला,भागय हेम सुरेश।।
मुचमुचाय जीतेन्द्र हा,भिनसरहा ले जाग।
"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग--------

दुर्गा दीपक दावना,सँग गजराज जुगेश।
श्लेष ललित सुखदेव ला,ताकय छुप कमलेश।
लीलेश्वर जगदीश सँग,बइहाये बलराम।
लहरे अउ कुलदीप के,करे चीट कस चाम।
पोखन तोरन मातगे,माते हे वीरेंद्र।
उमाकांत अउ अश्वनी,सँग माते वीजेंद्र।
सरा ररा सूर्या कहे,भिरभिर भिरभिर भाग।
"छंद के छ"के मंच मा,माते हावै फाग-----

पुरषोत्तम धनराज ला,खीचत हे संदीप।
कौशल रामकुमार मन,फुग्गा फेके छीप।
बोधन अउ चौहान के,रँगदिस गाल गुमान।
सत्यबोध राधे अतनु,भगवत हे परसान।।
राजकुमार मनोज हा,धिरही ला दौड़ाय।
अरुण निगम गुरुदेव हा,देखदेख मुस्काय।
सब साधक मा हे भरे,मया दया गुण त्याग।
"छंद के छ"के मंच मा,माते हावै फाग-----

#आगर कोरी पाँच हे,हमर छंद परिवार।
छूटे जिंखर नाम हे, उन सबला जोहार।#


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा
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