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Thursday, April 30, 2020

*रोला छंद-आशा देशमुख*

*रोला छंद-आशा देशमुख*

राखव मया दुलार,होय झन जिनगी खारा।
रटव मंत्र बस एक,निभावव भाई चारा।
पावव जग मा मान, बोल के गुत्तुर बोली।
सुघ्घर नाम कमाव,मया के भरलव झोली।


कोरोना हे नाम,आय हावय बीमारी।
मरय हज़ारो लोग,तबाही हे बड़ भारी।
बइठे जग चुपचाप,जीव ला कहाँ लुकावय।
ये बैरी ले आज,जगत ला कोन बचावय।


आये जब बरसात,बीज ला बोना होथे।
बइठे समे बिताय,कोढ़िया मन फिर रोथे।
समय अबड़ अनमोल,मोल सब येखर करलव।
जिनगी मा दिन रात,अपन सुख बोरी भरलव।

नस नस ख़ुशी समाय, सृजन नइ होवत हावय।
मिले छंद आनन्द ,भुलाये नइ तो जावय।
जिंहा छंद परिवार ,मया के डोरी आँटय।
गुरुकुल के आधार,सबो सुख दुख मिल बाँटय।


आशा देशमुख

Wednesday, April 29, 2020

रोला छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

रोला छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

दारू झन पी यार, फेर पाछू पछताबे।
जिनगी के दिन चार, कहाँ तँय येला पाबे।।
माँसाहार तियाग, तहाँ ले जिनगी बड़ही।
सुख पाबे भरमार, इही हा मंगल करही।।

होत पलायन रोक, जाय झन कोनो बाहिर।
सब ला इहें सरेख, सबोझन हावय माहिर।।
इहें करँय सब काम, भले दू पइसा पावँय।
सुखी रहे परिवार, संग मा पीवँय खावँय।।

चिंता हे बेकार, करव झन फोकट भारी।
सब ला इही सताय, इही जड़ हे बीमारी।।
एला जउन भगाय, उही हा सब ले सुखिया।
कर ले सब ले प्रेम, नहीं ते बनबे दुखिया।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा)
 जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
सचलभास क्र. - ९३००७१६७४०

Tuesday, April 28, 2020

रोला छंद - बोधन राम निषादराज

रोला छंद - बोधन राम निषादराज

(1)बसंत बहार:-
देखौ छाय  बहार, आय  हे  गावत  गाना।
मन होगे खुश आज,देख के परसा पाना।।
फूले परसा  लाल, कोयली  बोलय  बानी।
गुरतुर लागे बोल,करौं का मँय अब रानी।।

(2) पानी:-
पानी पीयव छान,छान लव  बढ़िया दाई।
सुघ्घर घइला धोय,होय झन ओ करलाई।।
इही बात ला सोच,करौ झन नादानी ला।
जिनगी के आधार,देख लौ जिनगानी ला।।

(3) आगी:
आगी ला तँय बार, जोर दे  लकड़ी  छेना।
साग भात अउ दार,चाय ला बढ़िया देना।।
आगी सबो चुरोय,जेन ला  तँय ह  चुरोबे।
चुर पक के तइयार,खाइ के बढ़िया सोबे।।

(4) बेटी:
बेटी  फूल  गुलाब, बाग के  सुघ्घर  लाली।
देखौ खुशियाँ छाय,बनौ जी ओखर माली।।
घर के  वो  सिंगार, ददा के मन मा बसथे।
दाई  देय   दुलार, मया  मा  बेटी  हँसथे।।

(5) लछमी दाई:-
लछमी दाई तोर,पाँव ला परथौ मँय हा।
दे मोला आशीष,तार दे मोला  तँय हा।।
दीन हीन मँय तोर,देखले  बेटा  आवव।
रहिबे कुरिया मोर,आरती तोरे  गावव।।

(6) माटी :-
धरती दाई मोर,जनम ला मँय हा पावँव।
तोला माथ  नवाय, बंदना  रोजे  गावँव।।
अन पानी सिरजाय,चलौ जी महिमा गाबो।
गंगा जमना धार,मया के  फूल  चढ़ाबो।।   

(7) हाट बजार :-
मोर  गाँव  के  हाट, लगे  हे  भारी  रेला।
देखव मनखे आय,भीड़ जस लागै मेला।।
रंग - रंग के साग,आय  हे  भाजी  पाला।
मुर्रा लाडू  सेव, देख ले  गुप-चुप  वाला।।

(8) विरहा:-
करिया बादर आय,मोर मन मा छावत हे।
रही रही के सोर,पिया जी  के  लावत हे।।
नाचय बने  मँजूर,देख  लव ताना  मारय।
सुरता मोला आय,कोन अब जिनगी तारय।।

(9)ए तन माटी
ए तन माटी जान,मोह ला झन कर जादा।
रहिले तँय हा साथ,राख ले जिनगी सादा।।
कोन  जनी ए जीव, उड़ा जाही कब भाई।
करले  बने  उपाय,राम  जी  रही  सहाई।।

(10)सुरता आथे
सुरता आथे तोर,भुलावँव नइ मँय तोला ।
घड़ी घड़ी मन रोय,सोच हा आथे मोला।।
चैन घलो नइ आय,करौ का कान्हा मँयहा।
अब्बड़ धरथौ धीर,तीर आ जल्दी तँयहा।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा, जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)

Monday, April 27, 2020

रोला छंद(धुन)-श्री मति आशा आजाद

रोला छंद(धुन)-श्री मती आशा आजाद

रोला छंद(लय)-श्री मती आशा आजाद
मानिकपुर कोरबा(छग)

Saturday, April 25, 2020

आल्हा छंद-चित्रा श्रीवास

आल्हा छंद-चित्रा श्रीवास

थर थर काँपे बैरी मन हा ,सुनके लक्ष्मी बाई नाम।
नाम अमर होगे हावय जी,रानी करगे अइसन काम ।।

मनु हा बनके झाँसी रानी, अब्बड़ पाइस हावय मान।
लड़िस लड़ाई संतावन मा,दिहिस देश बर हँसके जान ।।

नाना बचपन के ये संगी,  तात्या टोपे चतुर सुजान।।
 आजादी के लड़िस लड़ाई, बाँध पीठ दत्तक संतान।।

बैरी हड़पे चाहय झाँसी, रानी भरिस फेर हुंकार।
रणचंडी कस कूदिस रण मा, दूनो हाथ धरे तलवार।।

बैरी काटत मारत जावय,लागे दुर्गा के अवतार।
बैैरी सेना मा मचगे जी,चारो कोती हाहाकार।

छंदकार-चित्रा श्रीवास
कोरबा छत्तीसगढ़

Friday, April 24, 2020

आल्हा छंद-- सुधा शर्मा

आल्हा छंद-- सुधा शर्मा

राम कहाँ तँय  लुकाय भगवन, होवत हाबे गजब अबेर।
बाठ निहारत आँखी पथरा,माते हावे जग अंधेर।।

धनुष बाण धरके अब आवौ,भक्तन देख करे गोहार।
मँझ लहरा मा डोलत नइया,आके प्रभु जी  हमें उबार।।

राम भरोसा जिनगी हावे,उही लगाही नइया पार।
संकट लउहा गा टर जाही,राम हवे सबके आधार।।

नहीं भीत राखव अंतर मा,भीतर हावे अंतर याम।
भक्ति भाव ले जागे संगी,भज ले सदा राम के नाम।

मीठ मया के  बोली बोलव,होवव झन माया मा चूर।
मया भाव ला  मानय सब झन,सुख देवय मन ला भरपूर।।

काबर कोनो संग अरझथस,जिनगी चारे दिन के ताय।
दपलक झपकत जिनगी बुड़ही,धार नदी के लहुत न आय।

पारा परोस में झन जाहू,कतको मयारू हो मितान।
सावचेत राहव सब संगी,घर मा रहव बचावव प्राण।।

जात धरम के भेद ल छोड़व,मानुष आगू बन इंसान।
इही भेद सब जड़ फसाद के,बाँट डरिन गा निज भगवान।।

नोहर होगे बाहिर जवई,घर खुसरा सबला ग बनाय।
बिन बलाय पहुना घर आथे,जीव ले बिगर नइ तो  जाय।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

सार छंद-चैत महीना(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा

सार छंद-चैत महीना(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा

चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
चैत महीना पावन लागे,गमके घर बन डेरा।।

रंग फगुनवा छिटके हावय,चिपके हे सुख आसा।
दया मया के फुलवा फुलगे,भागे दुःख हतासा।
हूम धूप मा महकत हावै,गलियन बाग बसेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।

नवा बछर अउ नवराती के,बगरे हवै अँजोरी।
चकवा संसो मा पड़ गेहे,खोजै कहाँ चकोरी।
धरा गगन दूनो चमकत हे,कती लगावै फेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।

नवा नवा हरियर लुगरा मा,सजे हवै रुख राई।
गाना गावै जिया लुभाये,सुरुर सुरुर पुरवाई।
साल नीम हा फूल धरे हे,झूलत हे फर केरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।

बर बिहाव के लाड़ू ढूलय,ऊलय धरती दर्रा।
घाम तरेरे चुँहै पसीना,चले बँरोड़ा गर्रा।।
बारी बखरी ला राखत हे,बबा चलावत ढेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Thursday, April 23, 2020

*छंद के छ परिवार डहर ले जन जागरण*

*छंद के छ परिवार डहर ले जन जागरण*


*आल्हा छंद*-आशा देशमुख

ये कोरोना ये कोरोना,काबर तँय दुनिया मा आय।
नाम सुनत हे जेहर तोरे,ओखर पोटा काँपत जाय।

थर थर काँपत हावय जग हा, कइसे सबके प्राण बचाय।
छूत वायरस घूमत हावय,जनता घर मा हवय लुकाय।

ताला लगगिस देश प्रान्त मा, गाँव शहर बइठे चुपचाप।
अतिक मचावत हवच तबाही,जैसे जग ला मिलगे श्राप।

घर मा सब बैठागुँर होगे, काम धाम सब होगय बन्द।
रोजी रोटी मार खात हे,धंधा होगे हावय मंद।

देश प्रशासन जुटे हवय सब,विनती करत हवय सरकार।
विकट आपदा आये हावय,सब झन होगे हे लाचार।

रोग भगाना हे तब सब झन,साथ निभावव रहिके दूर।
कड़ी टूटही तब कोरोना,भागे बर होही मजबूर।

देवदूत कस डॉक्टर मन हें, सेवा करत हवँय दिन रात।
डटे हवँय सब कर्मवीर मन,बिगड़े झन अब तो हालात।

युद्ध महामारी के फइले ,घर मा रहिके जीतव जंग।
देखत हे ये विनाश लीला,यम के दूत हवँय सब दंग।


विकट भयंकर स्थिति आगय ,जनता रहव देश के साथ।
मास्क लगावव रहव सुरक्षित,अउ धोवव जी दिनभर हाथ।


आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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आल्हा छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

(करव हियाव)

दुनिया के मौसम ला देखत, अब प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाव।
हल्का अउ सादा खाना ला, निसदिन भोजन मा अपनाव।।

खानपान के चेत करे बर , जेकर मन मा आही बोध।
रोग रई ला खुद भगाय बर, तब तन हा करही प्रतिरोध।।

धरना परही नेक नियत ला, गलत सोच नाली मा फेंक।
डगमग झन होवय अंतस हर,बाॅंध छोर के पहिली छेंक।।

रगड़ रगड़ के धोवत माॅंजत, रोग रई ला तुरत भगाव।
बासी के सुरता ला छोड़व, गरम गरम ताजा बस खाव।

वन पहाड़ नदिया नरवा ला, मिलजुल करना परही साफ।
वरना पर्यावरण घलव अब, बिल्कुल नइ कर पाही माफ।।

वजन बढ़े झन घर मा बइठे, करना परही सोच विचार।
मोल मेहनत के बड़ होथे,जिनगी मा चल तहूॅं उतार।।

नख मुड़ ले अपने काया के ,सोवत जागत करव हियाव।
खई खजानी बाहिर वाले, कभू भूल के अब झन खाव।।

ताजा कहिके रोज खात हें, फेर साग मा दवा छिताय।
जान बूझ के परबुधिया कस,पइसा देके रोग बिसाय।।

येती ओती देख ताक के ,साफ सफाई ला पहिचान।
जब उज्जर रहि घर दुवार हर ,तब कर पाबो गरब गुमान।।

छंदकार-महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला-राजनांदगांव

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 आल्हा छंद :- कौशल कुमार साहू

कोरोना

चीन देश ले दुनिया भर मा,कोरोना हा कहर मँचाय।
देख दशा राजा चिंता मा,परजा कइसे जान बँचाय।।

जादू -मंतर नोहय टोना, छूत बिमारी येला जान।
सर्दी सँघरा सुख्खा खाँसी, जर बुखार येकर पहचान।।

सरग सिधारे कतकों मनखे,रोकथाम बर करौ उपाय।
सेनिटाइजर मास्क लगावा,डॉक्टर मन हा रोज बताय।।

साफ- सफाई साबुन मलमल, धोवव हाथ ल बारम्बार।
गला मिलौ झन तीन फीट ले,करौ दूर ले जय जोहार।।

पाँव अपन झन बाहिर राखव,घर मा राखव लइका लोग।
दरवाजा मा खिंचलव रेखा, नइ आवय बरपेली रोग।।

तजौ माँस बन शाकाहारी, झड़कव भोजन ताते-तात।
जुरमिल ठानव जमके मारव,ये रकसा ला लाते-लात।।

गोत धरम नइ पूछय ककरो, कोरोना के नइये जात।
संकट भारी मनखे मनखे, सरपट दँउड़य दिन अउ रात।।

अपन जान ला दाँव लगाके,रोगी मन के करे निदान।
बिपत काल मा संग खड़े हे,डॉक्टर सँउहे जस भगवान।।

हिम्मत राखव धीरज राखव, काहत हे सब ला सरकार।
सुरमा बनके जंग जीत लौ,कोरोना के होवय हार।।

अपन देश ला जिन्दा राखव,देश मया के गावव गीत।
अरज करत हे "कौशल" तुँहरे,बनौ बिपत मा सबके मीत।।

छंदकार :- कौशल कुमार साहू
निवास : सुहेला (फरहदा)
जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़

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आल्हा  छंद-अश्वनी

जब जब आवय संकट भारी,झट हो जावन सब तैयार|
जब जब फैले हे महमारी,तब तब होये हे तकरार||

जान बचाये खातिर आवव,जनता कर्फ्यू सफल बनाव|
घर भीतर बन रहव सुरक्षित,सेनेटाइज बने कराव|

करे लाकडाउन हे शासन ,जन जन के ये बने बचाव|
अपन देश के खातिर सहिलव,कुछ दिन बर  जी नीत निभाव|

 लगें हवँय तत्पर सेवा बर,फर्ज निभा देवन उत्साह||
झन जावन हम घर ले बाहिर,कोरोना बर सही सलाह||

डाक्टर-पुलिस सफाई अमला,अउ मुखिया के राखव मान|
विपदा आघू कवच बने हे,इमन देश के आवँय शान|

बंद रखें मंदिर गुरुद्वारा,नेक पहल के बड़ सम्मान|
हवय बरोबर हिस्सेदारी,सुखी रहँय मजदूर किसान||

पारा बस्ती राज देश के,जब-जब आवय संकट जान|
सरकारी कारज के पालन,देशहित बर धरव जी ध्यान||

बाढ़य दिन दिन भाईचारा, मनखे ले मनखे के  काम ||
 समता सुमता  सब मा राहय,तभे देश के होही नाम|

अश्वनी कोसरे "रहँगिया"
छंद साधक कक्षा 9

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 रोला छंद - केवरा यदु"मीरा"

मोदी काहय बात,बने मन मा धर लेहू।
घर मा रहि दिन रात, खोर के झन सुध लेहू।।
घेरी बेरी हाथ,तहूँ मन धोवत रहिहू।
पटका मा मुँह बाँध, अपन बूता ला करहू ।।

कहिनी कथा सुनाय,अपन मन ला बहिलावव।
दार भात ला खाव, माँस ला अभी   भुलावव।

थोरिक दिन के बात, अभी घर मा तुम राहव।
जिनगी हे अनमोल,बात ला सबझन मानव।।

कइसन दिन हा आय, मने मा गुनव जानव।
महामारी कस मान, कथे गा सिरतो मानव।।

खाँसी सरद बुखार,जाँच तुरते करवावव।
ताते पानी भात, ध्यान धर के तुम खावव।।

चीनी चिँग ले आय,गजब रोवावत हावय।
डाक्टर  ग भगवान, सबो के जान बचावय ।।

आके देखव राम, मचे हे हाहाकारी।
जोहन तोरे बाट, जगत के पालन हारी।।

धर के तीर कमान,आज आओ रघुराई।
बिपदा के हे भार, लगे अब बड़ दुखदाई।।

छंदकारा - केवरा यदु "मीरा "
राजिम

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 आल्हा- दिलीप कुमार वर्मा

फइलत हावय जे महमारी, तेखर कथा सुनावँव आज।
कतका खतरा बाढ़त हावय, मण्डरावत हे बनके बाज।

जाने कोन जगा ले आये, कुछ दिन मा दुनिया भर छाय।
दहलावत हे रार मचावत, जाने कहाँ तलक ये जाय।

सात समंदर पार पहुँचगे, नइ बाँचत हे कोनो छोर।
कोरोना के महमारी ले, दुनिया भर मा माते सोर।

जिहाँ जिहाँ कोरोना जावय, तिहाँ तिहाँ बनगे समशान।
मरे रोवया नइ बाँचत हे, शहर नगर होगे वीरान।

अजर अमर अविनासी लागय, अमर बेल जस बाढ़त जाय।
छूत बरोबर ये महमारी, साबुत मनखे तक ला खाय।

बात कहत लाचार करत हे, छूते ही तन मा आ जाय।
एक जगा ले दुसर जगा मा, वस्तु तको मा चढ़ के आय।

दिखय नही ये ततका छोटे, पर मनखे ला मात खवाय।
ये तन आवत स्वांसा रुक जय, तड़फ तड़फ मनखे मर जाय।

कतको मनखे खटिया धरलय, कतको मनखे यमपुर जाय।
पर मनखे कहना नइ मानय, अइसन सँवहत रहे झपाय।

साँस लेत मा हो परसानी, सुक्खा खाँसी सर्दी आय।
अउ बुखार मा तन हर तीपय, लच्छन येखर इही बताय।

अइसन हे ता जाँच करावव, डॉक्टर ले तुरते मिल आव।
कहना ला डॉक्टर के मानव, कोरोना ले जान बचाव।

दुनिया भर समझावत हावय, घर ले बाहिर झन गा जाव।
जभे जरूरी तब्भे निकलव, मुँह मा सुग्घर मास्क लगाव।

भीड़ भाड़ ले दुरिहा राहव, रहव एक मीटर जी दूर।
बार बार साबुन ले भाई, धोना हावय हाथ जरूर।

कोरोना तब घर नइ आवय, शासन के कहना ला मान।
अपन सुरक्षा हाथ अपन हे, खतरा ला अब तो पहिचान।

डॉक्टर जान लगाये हावय, खड़े करोना यम के बीच।
नर्स तको मन साथ चलत हे, जिनगी मा अमरित दय छींच।

खड़े सिपाही छाती ताने, कोरोना ला दय ललकार।
तुहरो जान बचाये खातिर, समझावत हे बारम्बार।

भूत लात के बात न माने, देत सिपाही डंडा मार।
बिन बुद्धि के मनखे मन ले, देव तको हर जावय हार।

पर इन ला हे जान बचाना, करना अपन हवय जी काम।
आसा हे कोरोना मरही, तब्भे पाही यहू अराम।

आशा ले आकाश थमे हे, आशा ले बरसा हो जाय।
रख लव आशा मन मा भाई, कोरोना हर बच नइ पाय।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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कुलदीप सिन्हा: कोरोना बर जनजागरण
आल्हा छंद

आवव संगी आज सबो मिल, कोरोना ला देवव मात।
येती ओती चारों कोती, बिगड़े हावय गा हालात।।

घर के भीतर रहिके भइया, करना तुम ला हवे बचाव।
बांध तोबरा मुंह मा सब झन, कोरोना ला दूर भगाव।।

साफ सफाई खुद के राखव, रहि रहि के तुम धोवव हाथ।
छींक संग यदि आथे खांसी, रख रुमाल गा हरदम साथ।।

गरम गरम गा पीयो पानी, खावव खाना ताते तात।
अपनो अपनो बीच घलो गा, करहू अब दुरिहा ले बात।।

हाथ मिलाना बंद करव अब, रहि के दुरिहा करो प्रनाम।
जेन तोबरा बांधे हावव, वोला बदलव गा हर शाम।

कहूं हाट ले सब्जी लाथव, धो धो के करहू उपयोग।
अइसन तुहर करे ले भइया, दुरिहा होही जम्मो रोग।।

हल्का मा झन लेवव कोनो, रोग भयंकर इन ला जान।
दिखय नहीं गा जल्दी लक्षण, भीतर भीतर लेथय प्रान।।

इन ला दूर करे बर अब तो, भिड़े हवय देखव सरकार।
येखर सेती दुनिया भर मा, माते हावय हाहाकार।।

आंख मा आंसू भर के मोदी, सब जनता मन ला समझाय।
भारतवासी मन बर वोहा, जइसे देव दूत बन आय।

अतना मा यदि नइ मानय जे, होही वोखर बंठाधार।
खुद मरही ते मरही संगी, संग पीस जाही संसार।।

"दीप" कहत हे उन ला सुन लो, करव न लक्ष्मण रेखा पार।
रहो मस्त जी घर मा अपने, बांटव सब मिल मया दुलार।।

छंदकार
कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( सलोनी ) धमतरी
छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद - केवरा यदु "मीरा "

जाना ओ कोरोना दाई, पाँव परत हँव जोरवँ हाथ।
चीनी चपटा मन सँग रहिबे,चरणन तोर मढ़ावँव माथ।।

हमतो सिधवा भारत वासी,छली फंद मा नइये नाम।
सांप देवता तो हम कहिके, दुरिहा ले करथँन परनाम।।

काबर आये मोर देश मा,जाना तोर मुँहू अब टार।।
रहिबो हम तो लाक डाउन म,नइ तो मानन हम तो हार।।

घेरी बेरी हाथ ल धोबो,पटका मा मुँह रखबो बाँध ।
दुरिहा ले बतिया लेबो हम,नइ छूवन हम ककरो काँध।।

चारे दिन के बात ग भइया, घर के भीतर रहू लुकाय।
गरमी परही पट ले मरही, काम बुता चालू हो जाय।।

दार भात मा मन ल मढ़ाहू,खाहू झन गा मछरी माँस।
डर के चलहू तब तो बनही,नइ ते बैरी लेथे फाँस।।

साफ सफाई  घर के राखव,धूप गुँगुर के धुँआ जलाव।
पाना लीम धलोक जलाहू,रोग बिमारी नाशक ताय।।

महमारी ह भारी होगे, मचगे हावय हाहाकार ।
डाक्टर ह भगवान बने हे,चौबिस घंटा कर उपचार ।।

मोर देश के वीर सिपाही, गली गली ड्यूटी ल बजाय।
दाई ददा ल छोड़े बइठे, बेटी बेटा सुरता आय।।

चरणन ऊँकर माथ नवावँवँ, सेवा में जो जान गँवाय।
बलिदानी भारत के बेटा,अमर नाम इतिहास  लिखाय।।

कतका मँय तोरे गुण गावँव, दया धरम में तोरे नाम।
पाँव परँव मँय रोजे दिन गा, जनम देवइया ल परनाम।।

केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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वीर छन्द

बात मान ले सच काहत हँव, हवय भलाई एमा तोर।
घर मा रहि के दिन पहवा ले, कोरोना के चक्कर टोर।

होय जरूरी तब बाहिर जा, मुँह मा पटका पंछा बाँध।
अलग रेंग डंका भर दुरिहा, जुरय बाँह ना ककरो खाँध।

सब्जी के तैं ओखी करके, फोकट घुमबे कहूँ बजार।
सप्पड़ परबे गा पोलिस के, खाबे कस के डंडा मार।

एक बात तैं गाँठ बाँध ले, साफ सफाई  रख ला साथ।
रहि रहि मल मल साबुन मा जी, धोवत रहना हाबय हाथ।

घेरी बेरी छूना नइहे, अपन नाक मुँह आँखी कान।
इही बाट ले रोग अमाथे, इहू बात ला दे गा ध्यान ।

जर बुखार धर लय कोनो ला, खाँसय छींकय घेंच पिराय।
सोचे के गा नइहे काँही, दे डाक्टर ला तुरत बताय।

हवय देश हित अउ खुद तोरो, बात सत्य ये हवय 'मितान'।
भारत माँ के करले सेवा, कर ले गा जग के कल्यान।

                                     मनीराम साहू 'मितान'

Tuesday, April 21, 2020

आल्हा छन्द : मथुरा प्रसाद वर्मा।

आल्हा छन्द :   मथुरा प्रसाद वर्मा।

मुसवा

विनती करके गुरू चरण के, हाथ जोर के माथ नवाँव।
सुनलो सन्तो मोर कहानी,पहिली आल्हा आज सुनाँव।।



एक बिचारा मुसवा सिधवा, कारी बिलई ले डर्राय।
जब जब देखे नजर मिलाके, ओखर पोटा जाय सुखाय।।



बड़े बड़े नख दाँत कुदारी, कटकट कटकट करथे हाय।
आ गे हे बड़ भारी विपदा,  कोन मोर अब प्रान बचाय।।



देखे मुसवा भागे पल्ला, कोन गली मा  मँय सपटाँव।
नजर परे झन अब बइरी के,कोन बिला मा जाँव लुकाँव।



आघू आघू  मुसवा भागे ,  बिलई  गदबद रहे कुदाय।
भागत भागत मुसवा सीधा, हड़िया के भीतर गिर जाय।



हड़िया भीतर भरे मन्द हे, मुसुवा उबुक चुबुक हो जाय।
पी के दारू पेट भरत ले,तब मुसवा के मति बौराय।



अटियावत वो बाहिर निकलिस, आँखी बड़े बड़े चमकाय।
बिलई ला ललकारन लागे, गरब म छाती अपन फुलाय।



अबड़ तँगाये मोला बिलई , आज तोर ले नइ डर्राव।
आज मसल के रख देहुँ मँय, चबा चबा के कच्चा खाँव।



बिलई  सोचय ये का होगे, काकर बल मा ये गुर्राय।
एक बार तो वो डर्रागे, पाछु अपन पाँव बढ़ाय।।



बार-बार जब मुसवा चीखे , लाली लाली  आंख दिखाय।
तभे बिलइया हा गुस्सागे, एक झपट्टा मारिस हाय।



तर- तर तर -तर तेज लहू के, पिचकारी कस मारे धार।
प्राण पखेरू उड़गे  तुरते, तब मुसवा हर मानिस हार।



तभे संत मन कहिथे संगी, गरब करे झन पी के मंद।
पी के सबके मति बौराथे, सबके घर घर माथे द्वंद।



घर घर मा हे रहे बिलइया, रहो सपट के चुप्पे चाप।
बने रही तुहरो मरियादा, गरब करव झन अपने आप।



छंदकार - मथुरा प्रसाद वर्मा
ग्राम- कोलिहा, बलौदाबाज़ार

Monday, April 20, 2020

आल्हा छंद :- कौशल कुमार साहू

आल्हा छंद :- कौशल कुमार साहू

कोरोना

चीन देश ले दुनिया भर मा,कोरोना हा कहर मँचाय।
देख दशा राजा चिंता मा,परजा कइसे जान बँचाय।।

जादू -मंतर नोहय टोना, छूत बिमारी येला जान।
सर्दी सँघरा सुख्खा खाँसी, जर बुखार येकर पहचान।।

सरग सिधारे कतकों मनखे,रोकथाम बर करौ उपाय।
सेनिटाइजर मास्क लगावा,डॉक्टर मन हा रोज बताय।।

साफ- सफाई साबुन मलमल, धोवव हाथ ल बारम्बार।
गला मिलौ झन तीन फीट ले,करौ दूर ले जय जोहार।।

पाँव अपन झन बाहिर राखव,घर मा राखव लइका लोग।
दरवाजा मा खिंचलव रेखा, नइ आवय बरपेली रोग।।

तजौ माँस बन शाकाहारी, झड़कव भोजन ताते-तात।
जुरमिल ठानव जमके मारव,ये रकसा ला लाते-लात।।

गोत धरम नइ पूछय ककरो, कोरोना के नइये जात।
संकट भारी मनखे मनखे, सरपट दँउड़य दिन अउ रात।।

अपन जान ला दाँव लगाके,रोगी मन के करे निदान।
बिपत काल मा संग खड़े हे,डॉक्टर सँउहे जस भगवान।।

हिम्मत राखव धीरज राखव, काहत हे सब ला सरकार।
सुरमा बनके जंग जीत लौ,कोरोना के होवय हार।।

अपन देश ला जिन्दा राखव,देश मया के गावव गीत।
अरज करत हे "कौशल" तुँहरे,बनौ बिपत मा सबके मीत।।

छंदकार :- कौशल कुमार साहू
निवास : सुहेला (फरहदा)
जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़

आल्हा छंद :- जगदीश "हीरा" साहू

आल्हा छंद :- जगदीश "हीरा" साहू

रामायण सार

पद वंदन कर वाल्मिकी के, तुलसी चरण नवाके शीश।
कथा सुनावत हँव रघुबर के, मन मा ध्यान लगा जगदीश।।

शिव के कथा सुनावँव पहिली,फिर रावण के अत्याचार।
 धरम करम पाना कस डोलय, हाहाकार मचे संसार।।

राम जनम लेके जब आये, गुरु वशिष्ठ देवय सब ज्ञान।
राम लखन ला माँगे आवय, विश्वामित्र लगाके ध्यान।।

सँग ले जावय राम लखन ला, देख ताड़का बड़ गुस्साय।
मार ताड़का अउर सुबाहू, बन में धरम धजा लहराय।।

तार अहिल्या गौतम नारी, गुरू संग मिथिलापुर आय।
धनुष टोर शिव जी के रामा, माँ सीता सँग ब्याह रचाय।।

कैकेयी के वर ला सुनके, लुटगे अवधपुरी के आस।
वचन निभाये राम संग मा, सिया लखन जावय बनवास।।

बड़भागी केंवट हर भइया, पार उतारय पाँव पखार।
भरत राम के मिलन देख के,पंचवटी मानय उपकार ।।

सूर्पनखा के नाक काट के, खर दूषण ला मार गिराय।
मिरगा बन मारीच पहुँच गे, राम लखन पाछू सँग जाय। ।।

ततके बेरा रावण राजा,भिक्षा मांगे कुटिया आय।
छलिया रावण सीता ला हर, पुष्पक धर लंका ले जाय।।

बन मा भटके राम लखन बड़, तारे शबरी के घर आय।
करय राम सुग्रीव मितानी, खोजे सीता हनुमत जाय।।

सिया खबर लाके वो देवय, सागर बाँधे सब मिल जाय।
करे चढ़ाई लंका ऊपर, मार काट बोलय चिल्लाय ।।

मेघनाद के शक्ति बाण ले,लछिमन मुरछित सब घबराय।
जान बचाये खातिर हनुमत,पर्वत ला धर के ले आय ।।

मेघनाद अउ कुम्भकरण के,मरे बाद रावण रण आय।
रावण ला मारय प्रभु रण मा, आय अवधपुर सब हरसाय।।

राज तिलक तब करे गुरूजी, राम राज में सब सुख पाय।
कथा सुनावँव मैं रघुबर के, राम चरण मा माथ नवाय।।

छंदकार :- जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा), छत्तीसगढ़

Saturday, April 18, 2020

आल्हा छंद-कमलेश वर्मा

🇮🇳"सोनाखान के वीर"🇮🇳
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आल्हा छंद-कमलेश कुमार वर्मा

सत्रह सौ पंचनबे सन मा,झूम उठिस बड़ सोनाखान।
रामराय घर जनम धरिन जी,हमर राज के बड़का शान।1।

मातु पिता मन खुशी मनावत,नारायण सिंह धर लिन नाम।
निडर साहसी बचपन ले वो,पूजय देवता बिहना शाम।2।

आघू वो हा जमींदार बन,बिकट करिस जी जनकल्यान।
पूरा कोशिश सदा करय वो,झन राहय कोनो परशान ।3।

जब अकाल अउ सूखा पड़ गिस,सन छप्पन के घटना जान।
तब जनता मा  बँटवा दिस वो,अपन सबो कोठी के धान।4।

तभो बहुत झन भूख-प्यास ले, करत रिहिन हे चीख-पुकार।
 लोगन संगे नारायण तब,गिस व्यापारी माखन- द्वार।5।

फेर सेठ के दिल नइ पिघलिस,नइ दिस वोहर धान उधार।
तब नारायण सिंह हा बोलिस,सबो लूट ले जव भंडार।6।

घटना पाछू माखन पहुँचिस, अंगरेज इलियट के तीर।
मोर लूट लिन कोठी साहब,मनखें अउ नारायण वीर।7।

फेर पकड़ के नारायण ला, अंगरेज मन भेजिन जेल।
तोड़ जेल ला वोहर निकलिस,करके बड़का सुग्घर खेल।8।

वापिस सोनाखान पहुँच के,कर लिस वो सेना तैयार।
अंगरेज मन संग युद्ध मा, सेना भारी करिस प्रहार।9।

चलयँ दनादन बाण धनुष ले, अउ होवय भाला ले वार।
कैप्टन स्मिथ के दल कोती जी, मच जय बिक्कट हाहाकार।10।

फेर अंत मा घमासान के, बंदी बनगे वीर महान।
चलिस मुकदमा झूठ-कपट ले, देशद्रोह ला कारण मान।11।

नारायण ला सजा सुना दिस, फाँसी देके लेबर जान।
रइपुर के जय स्तंभ चौक मा, दे दिस योद्धा हा बलिदान।12।

अपन प्रान ला देके वोहर,रख लिस बड़ माटी के मान।
जुग-जुग बर अम्मर होगे जी, लाँघन-भूखन के भगवान।13।

सन संतावन के ये घटना, छागे पूरा हिन्दुस्तान।
जनता मन हा जागिन भारी, आजादी बर दिन सब ध्यान।14।

नारायण सिंह के भुइँया ला, सरग सँही देवव सम्मान।
बार-बार मैं मूड़ नवावँव,पावन माटी सोनाखान।15।

रचना--
कमलेश कुमार वर्मा
व्याख्याता, भिम्भौरी
बेरला,बेमेतरा
मो.-9009110792

Friday, April 17, 2020

आल्हा छंद - श्लेष चन्द्राकर

आल्हा छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - रानी दुर्गावती

रानी दुर्गावती असन गा, रिहिस देश के बेटी एक।
अपन राज बर जेहा सुग्घर, करिन हवय जी काम अनेक।।

जे कालिंजर के राजा के, एक रिहिन हे गा संतान।
आघू जाके जेन बनिस हे, रानी दुर्गावती महान।।

जनमिस हे जे आठे के दिन, पड़िस हवय तब दुर्गा नाम।
अपन अलग पहिचान बनाइन, सुग्घर-सुग्घर करके काम।।

रिहिस साहसी बचपन ले जी, बोलय ओला गुण के खान।
राज महोबा के बेटी हा, गजब चलावय तीर कमान।।

धरे रहय बंदूक हाथ मा, चितवा के ओ करे शिकार।
अइसे ओ तलवार घुमावय, क्षण मा देतिस बैरी मार।।

बढ़े बाढ़हिस दुर्गा हा तब, ददा करिस हे उँखर विवाह।
राज गोंड़वाना के राजा, जीवन संगी दलपत शाह।।

सरग सिधारिन उनकर पति तब, दुख के टूटिस हवय पहाड़।
हँसी-खुशी सब गायब होगे, जिनगी होगे सुक्खा झाड़।।

राजपाट के रानी दुर्गा, थामिस हावय तहाँ कमान।
घात बढाइस आघू जाके, राज गोंड़वाना के शान।।

अबला नारी जान करिस हे, अउ राजा मन जब परसान।
मजा चखाये बर उँन मन ला, रानी दुर्गा लिस हे ठान।।

अकबर भेजिस आसफ खाँ ला, हड़पे बर रानी के राज।
बैरी ऊपर रणचंडी हा, टूट पड़िस हे बनके गाज।।

पहिली लड़ई मा आसफ के, सेना गिस हे भइया हार।
जघा-जघा अब्बड़ होइस हे, रानी दुर्गा के जयकार।।

घोड़ा मा बइठे रानी हा, भाँजय बड़ सुग्घर तलवार।
बैरी मुगलन मन के भइया, घात करय गा उन संहार।।

एक बार मा मुँड़ दस-दस के, खड़ग चला उन देवय काट।
कायर मुगलन सैनिक मन के, लाश ह पहुँचय मुर्दा घाट।।

धूल चटाइन मुगलन मन ला, उँखर दिखाइस जी औकात।
रानी दुर्गा के सेना ला, मिलिस जीत के तब सौगात।।

हारिस ता आसफ हा चिढ़गे, बदला लेबर आइस फेर।
दुर्गा के कमती सेना ला, ओकर सेना लिस हे घेर।।

पुरुष वेश धरके रानी हा, युद्ध लड़ेबर लिस हे ठान।
हार कभू नइ मानव सोचिस, भले निकल जाए गा प्रान।।

आनबान के खातिर भिड़गे, धरके भाला अउ तलवार।
दुर्गा के सेना मुगलन के, मारिस सैनिक तीन हजार।।

चालबाज मुगलन मन हा जी, अपन दिखादिस हे औकात।
दुगुना तिगुना उनकर सेना, घात मचाइस हे उत्पात।

लुका-लुका के कायर मन हा, रिहिस चलावत भाला तीर।
लड़त-लड़त रानी दुर्गा के, घायल होगे अबड़ शरीर।।

बैरी मनके हाथों मरना, रानी समझिस हे अपमान।
अपन घेंच मा चला कटारी, उन माटी बर दे दिस प्रान।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

Thursday, April 16, 2020

तातंक छंद-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

तातंक छंद-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
स्वर-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
कबीरधाम
छंद-तातंक छन्द गीत

Wednesday, April 15, 2020

आल्हा छंद - राजेश कुमार निषाद

आल्हा छंद - राजेश कुमार निषाद

साफ सफाई सपना होगे, देवव अब तो सबो धियान।
आओ मिलके हाथ बँटाबो,नवा चलाबो गा अभियान।।

घर अँगना के करो सफाई,कोना कोना दिखही साफ।
जतर कतर मत फेंको कचरा,करय नही गा कोनो माफ ।।

जमा करो गा एक जगा सब,डालो कचरा कूड़ेदान।
पचर पचर मत थूको संगी,खाके गुटखा पाउच पान।।

घर घर मा  बनही शौचालय, जाहू झन गा बाहर आज।
बात बताहू सबला संगी,करही बहु बेटी झन लाज।।

आदत बनही सबके संगी, जाही लइका बुढ़ा जवान।
देख सफल हो जाही हमरो,हमन चलाबो जो अभियान।।

मंदिर मसजिद अउ सचिवालय,करो सफाई मिलके रोज।
होय सफाई तन के भितरी, फेंकव मनके कचरा खोज।।

गली गली मा जाके संगी,मिलके करबो सब परचार।
साफ रखव सब गली खोर ला,इही हवय गा जीवन सार।।

छंदकार - राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद 
रायपुर छत्तीसगढ़

Tuesday, April 14, 2020

बाबा भीमराव अंबेडकर जी ल समर्पित छंदबद्ध रचना-छंद के छ परिवार डहर ले

बाबा भीमराव अंबेडकर जी ल समर्पित छंदबद्ध रचना-छंद के छ परिवार डहर ले

 रूप घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                   1
मीत मया ममता के,सत सुख समता के।
दीन हीन रमता के,संविधान हे आधार।।

जिनगी ला गढ़े बर,आघू कोती बढ़े बर।
घूमे फिरे पढ़े बर, देय हवे अधिकार।।

उड़े बर पाँख हरे,अँधरा के आँख हरे।
ओखरोच आस हरे,थक गेहे जौन हार।।

सिढ़ही चढाये ऊँच,दुख डर जाये घुँच।
हाँसे जिया मुचमुच,होय सुख के संचार।।1

                    2
गिरे थके अपटे ला,डर डर सपटे ला।
तोर मोर के बँटे ला,थामे हवै संविधान।।

सुख समता के कोठी,पबरित एहा पोथी।
इती उती चारो कोती,जामे हवै संविधान।।

मुखिया के मुख कस,ममता के सुख कस।
छायादार रुख कस,लामे हवै संविधान।।

खुशनुमा हाल रखे,ऊँच नाम भाल रखे।
सबके खियाल रखे,नामे हवै संविधान।।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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दोहा छंद गीत-डी पी लहरे

भीम राव अम्बेडकर,हमर देश के शान।
संविधान ला ये रचे,जग मा हवय महान।।

इँखर हवय इंदौर मा,महू छावनी गाँव।
भीम राव अम्बेडकर,पावन जेखर नाँव।।
भीमा बाई मातु जी,पिता रहिस सकपाल।
चउदा इही अप्रेल मा,जनम लिये घर लाल।।

जग मा सबले ये बहुत,पढे़ लिखे गुणवान।
भीम राव अम्बेडकर,हमर देश के शान।।(१)

पिता रहिस एखर बने,सेना सूबेदार।
भेद-भाव मनखे करँय,कहिके जात महार।।
छुवा-छूत के रोग हा,घेर डरिस परिवार।
भीम राव ला तब लगे,ये जग हा अँधियार।।

बनिस मसीहा राज मा,पढ़ के बड़े सुजान।
भीम राव अम्बेडकर, हमर देश के शान।।(२)

बाबा बनिस वकील ता,जरिस मरिस सब खोट।
शुरू वकालत ला करिस,बाम्बे हाई कोट।।
न्याय मिलय सब ला बने,भीम राव के संग।
लड़िस लड़ाई भीम हा,सबके बदलिस रंग।।

मनखे ला मनखे सहीं,भीम दिये पहिचान।
भीम राव अम्बेडकर,हमर देश के शान।।(3)

सब मनखे मन पाय हें,शिक्षा के अधिकार।
भीम राव अम्बेडकर,रहिस बने सरदार।।
ऊँच-नीच के भेद ला,भीम करे हे दूर।
मनखे के अधिकार बर,लड़े हवय भरपूर।।

अइसन वीर सपूत के,कतका करँव बखान।
भीम राव अम्बेडकर,हमर देश के शान।।(4)

छंदकार
डी.पी.लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा

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रुबाई छंद - श्रीमती आशा आजाद

आज जयंती बाबा के जी,जुरमिल सब सुग्घर मानौ,
समता जग मा बगराइन ओ,गुन ला ओखर पहिचानौ।
चलँव मनाबो जन्मदिवस ला,शुभ दिन आये हे देखौ,
डूबिन सबझन भीम रंग मा,अबड़ खुशी के पल जानौ।।

भेदभाव ला सबो मिटाके,संविधान लिख दिन हावै,
सरी जगत मा मान देखलौ,जन-जन हा गुन ला गावै।
छूआछूत ल दूर भगाके,दूर करिन सब अँधियारा।
नित रद्दा ला देखाइन हे,सत मारग ला बतलावै ।।

दीन हीन शोषित मनखे ला,सब अधिकार दिलाये हे,
दलित जाति के हीरा बेटा,शिक्षा अलख जगाये हे।
अब्बड़ ज्ञानी राहिन बाबा,बोलिन पढ़ लिख सब जावौ,
स्वाभिमान के खातिन लड़ना,सब अधिकार लिखाये हे।

बाबा के कुर्बानी अइसे, सुग्घर आज बनाये हे।
शिक्षित होके दय प्रकाश ला,कतका नाम कमाये हे।
बाबा के बानी हे सुग्घर,समता हमला सिखलावै।
प्रेम भाव समरसता बरसे,शिक्षित बनौ सिखाये हे।

जात पात ले ऊपर लाके,नेक करम ला जानौ जी ।
मुक्त कराइन भेदभाव ले,ओखर गुन ला मानौ जी।।
खुदे अकेला कठिन राह मा,रद्दा नवा दिखाये हे।।
महिला ला सम्मान दिलाके,नेक करम पहिचानौ जी।

नारा हे संघर्ष करौ के,बोलिन बड़खा हे शिक्षा,
बौद्ध धरम के सत मारग ले,लिहिन सुघर बाबा दिक्षा,
ए भुइयाँ मा धन्य हे बेटी,ओखर तँय मस्जिद काबा,
संविधान लिख छोड़िन सब बर,करिन हमर बाबा रक्षा।।

विपदा जम्मो पार लगाही,मिटही जम्मो अँधियारा,
शिक्षा के अनमोल रतन ले,कर लौ सब झन उजियारा।
शान बान सब तोरे दम ले,बाबा सब तँय दिलवाये,
झूम उठिन हे जन्मदिवस मा,बाबा सबले हे न्यारा।

रचनाकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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 अमृतध्वनि छंद - श्रीमती आशा आजाद

भीमराव बाबा हवे,भारत के सम्मान।
संविधान के रचइयाँ,हावै देश के सान।।
हावै देश के,सान दलित ला,मान दिलाइन।
जात पात ला,तोड़ सबो ला,उपर उठाइन।।
रहौ संगठित,तोड़ौ जम्मो,अब बिखराव।
पढ़ लिख लौ सब,बानी बोलिन,हे भीमराव।।

शिक्षित होवौ नित बढ़ौ,करौ देश मा नाम।
पिछड़े हावै दलित मन,करौ उँखर बर काम।।
करौ उँखर बर,काम आय सब,लिखना पढ़ना।
बाबा बोलिन,अपन हाथ मा,जिनगी गढ़ना।
समय ल समझौ,ऐला झन जी,कोनो खोवौ।
मान दिलाही,पहिली सबझन,शिक्षित होवौ।।

जात पात ला तोड़ के,गढ़िन जी संविधान।
शिक्षा मा समभाव ले,पाही सबझन ज्ञान।।
पाही सबझन,ज्ञान बराबर,सबला मिलही।
भेदभाव हा,देश राज ले,जम्मो मिटही।।
महापुरुष हे,भीमराव हा,दिहिन सौगात।
कष्ट उठाइन,तब तोड़िन जी,ओ जात पात।।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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 दोहा छंद - बोधन राम निषादराज

जय बोलव जय भीम के,भारत माँ के लाल।
सुग्घर रचे विधान ला, पुरखा  करे कमाल।।

छुआ छूत के भेद ला,तँय हा दिए मिटाय।
जय बाबा अंबेडकर,जग मा नाम कमाय।।

संविधान  के  कल्पना, करे  तहीं  साकार।
ऊँच नीच के भेद अउ,दलित करे उद्धार।।

बाबा  तोरे   ज्ञान मा, कोनों  नहीं  समान।
भटके  भूले  ला तहीं, बना  दिए  इंसान।।

बाबा जय हो भीम के, पइँया लागँव तोर।
सुमता के दीया जला,जग मा करे अँजोर।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा, जिला - कबीरधाम
राज्य _ छत्तीसगढ़
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दोहा छंद-बृजलाल दावना

तिथि चौदस बैसाख के , भीम जनम धर आय ।
भीमा बाई माँ बने ,  बाबू राम कहाय ।।

महाराष्ट्र रत्नागिरी , भीमराव के गाँव।
बेटा तैंह महार हे , दलित धराये नाॅव ।।

मातु पिता के भीम जी ,चउदहवां  संतान ।
उमर रहे जब तीन के , छुटगे पिता  परान।।

बछर लगे जब पांचवां, छोड़ चले तन मात।
माने छूवा छूत सब , कहे नीच के जात।।

दुखत बात इक बेर के , भीम पढे ला जाय।
नीच जात कहि भीम ला, बाहिर मा बइठाय।।

होनहार  लइका  रहे , गजबे  चेत  लगाय।
लिखे पढ़े मा भीम जी,अव्वल नंबर आय।।

देख भीम के ज्ञान ला ,सायाजी महराज।
अनुभव मन के जानगे,गढ़ही नवा समाज।।

किरपा पा महराज के , जाये भीम विदेश।
अव्वल आके भीम हर , दिये नवा संदेश।।

छुवा छूत दानव रहे , जेला भीम भगाय ।
मनखे एक समान के , जोत ल हवे जलाय।।

नीच जाति कहि भीम के,करै सबो हिनमान।
उही भीम के लेख ले , बने हमर संविधान।।

भीम असन कोनो नही, मोला दिखे महान।
हे बाबा अंबेडकर , अमर तोर  हे  नाम ।।

करम भीम के देख के , बोलत हँव बृजलाल।
भारत के कानून के , आय भीम हर ढ़ाल।।

            साधक
    परमानंद बृजलाल दावना
                  भैंसबोड
            6260473556


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जयकारी छंद-नेमेंद्र

चौदस तिथि बैसाखे मास।पूरा होइस माँ के आस।।
दाई भीमा बेटा पाय।ददा राम जी गाना गाय।।

छुवा छूत हे मन के दाग।नीच कूल के जगगे भाग।।
चमके बालक के बड़ माथ।परिवर्तन राखे मन साथ।।

भीम दलित के बेटा आय।निर्धन घर मा जनम ल पाय।।
भूखन लांघन बालक एक।जेकर शिक्षा हावय नेक।।

नीच जाति कह ताना मार।भीम ल लोगन दे दुत्कार।।
शिक्षा दीक्षा बर तरसाय।बाहिर कक्षा के बैठाय।।

भीम पढ़े मा अव्वल आय । गुरू,ग्राम के मान बढ़ाय।।
बिलग भीम के देखत काज । सोंचे सायाजी महराज ।।

अलग सबो ले करही काम।येकर होही जग मा नाम।।
गढ़े भीम के सुग्घर वेश।।भेजे साया भीम विदेश।।

भीम पढ़े मा भारी पोठ।वेद शास्त्र सब बोले ओठ।।
पढ़ लिख के वो बने वकील।छुवा छूट मुड़ मारे कील।।

देश चलाये बर तो एक।नियम बनाये भीम ह नेक।।
सबो जीव हे एक समान।बोले भारत के संविधान।।

सबो देश ले हवे महान।हमर देश के निक पहिचान।।
रामायण गीता कस जान। गढ़े भीम हर जे संविधान।।

छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही-बालोद(छ.ग.)
मोबा-8225912350
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कुंडलियाँ छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

भीम बदौलत-

पड़ही तुँहला जागना, अपन लिये अधिकार ।
नइतो अतका जान लौ, हो जाही अँधियार ।।
हो जाही अँधियार, डगर मा बिछगे काँटा ।
निकलव घर से आज, अपन लेये बर बाँटा ।।
तुँहर पाँव के फूल, शूल बन के जब गड़ही ।
तब करहू का याद, हमू ला जागे पड़ही ।।

वोकर पहिली जाग जौ, सोये हव भरपूर ।
भीम बदौलत नौकरी, पाये हवव हुजूर ।।
पाये हवव हुजूर, तभे खाथव सुख रोटी ।
जानव खुद औकात, फिरे पहिने निंगोटी ।।
नहीं जागहू आज, रही जाहू बन जोकर ।
संविधान अधिकार, करव रक्षा अब वोकर ।।

नारी के सम्मान रख, करिस भीम उद्धार ।
शिक्षा दौलत नौकरी, दे समता अधिकार ।।
दे समता अधिकार, कहाँ समझिस पर तोला ।
तथाकथित भगवान, इँखर रंगे हे चोला ।
रूढ़िवाद के आग, बचाइस भीम हुँकारी ।
संविधान अउ भीम, मान दे अब तो नारी ।।

छंदकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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 आल्हा छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

एक मसीहा भीम राव जी-

एक मसीहा भीम राव जी, जेकर ऊपर हमला नाज ।
बहुजन पिछड़े समाज तबके, सबके बनिस मुखर आवाज ।।

बालकाल से झेलिस जे हा, छुआछूत के भारी दंश ।
सौदागर बन छुपे रहिंन हें, जब समाज मा रावण कंस ।।

शूल बिछे जब पग पग मा अउ, जातपात के बड़ अंगार ।
झुलसत राहय तन मन सारा, फेर कभू नइ मानिस हार ।।

छाती ठोक कहिस भीमा हा, सबके हावय एक समाज ।
एक मसीहा भीम राव जी, जेकर ऊपर हमला नाज ।।1

माथ पछीना टप टप टपकय, मुस्कावय पर दुख ला देख ।
ज्ञान कर्म खुद कड़ी लगन से, बुरा समय के बदलिस लेख ।।

करिस भीम हा हासिल डिग्री, खो के खुद सुख घर परिवार ।
भला चुका कइसे पाबो हम, बाबा तोरे ये उपकार ।।

कर्मवीर बड़ धीर साहसी, तर्कशील योद्धा जाबांज ।
एक मसीहा भीम राव जी, जेकर ऊपर हमला नाज ।।2

देखिस पीरा जन जन के जब, भूख गरीबी अत्याचार ।
थाम कलम तब भीम राव जी, कदम बढ़ाइस कर ललकार ।।

दूर हटा नारी उत्पीड़न, करिस भीम जी   बड़ उद्धार ।
शिक्षा दौलत रोजगार मा, देइस समता के अधिकार ।।

पीछे मुड़ना नहीं कभू हे, दीस सफलता के ये राज ।
एक मसीहा भीम राव जी, जेकर ऊपर हमला नाज ।।3

रहव एकजुट शिक्षित बनके, संघर्ष करो नारा थाम ।
नेतृत्व ज्ञान के दीप जला के, करना हे अब मिलके काम ।।

जे मुकाम मा आज खड़े हौ, भीम राव के हे वरदान ।
गजानंद जी सत्य कहत हे, इही मसीहा अउ भगवान ।।

समता हक अधिकार लिये बर, करना हे हम ला आगाज ।
एक मसीहा भीम राव जी, जेकर ऊपर हमला नाज ।।4

घर से अब मैदान निकल जौ, करत हवय जी भीम पुकार ।
बदलत हावय संविधान ला, राजनीति मा कुछ गद्दार ।।

हौ सपूत गर भीम राव के, भर लौ रग रग जोश जुनून ।
संविधान के रक्षा खातिर, अर्पित कतरा कतरा खून ।।

रग रग मा हम भीम बसा लिंन, हर दिल मा हो जिंदा आज ।
एक मसीहा भीम राव जी, जेकर ऊपर हमला नाज ।।5


छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
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दोहा-चौपाई, शोभामोहन श्रीवास्तव


भीमराव अम्बेडकर, लिखे हिन्द संविधान ।
शिल्पकार भारत सुदिन, कानूनी विद्वान ।।


तोर बताये बाट भुलागे ।अब तो निच्चट
कलउ उखरागे ।।
सबके मन मा भेद भरे हे । अंते-तंते मंत्र धरे हे ।।

बिगन बूझे जाने चिचियाथे । आने ताने गाना गाथे ।।
फँसत हवै बैरी के फाँसा । समझ न पावत ओकर झाँसा ।।

मनखे गढ़के नावा नारा । भुला गये हे तोर तियारा ।।
भेद भाव के खोदत खाई। सपना करके राई-छाई।।

तोर नाम ला करके आगे । कोनो स्वारथ साधन लागे ।।
एक बेर अउ बाबा आजा । संविधान के बाट बता जा ।।

शोभामोहन श्रीवास्तव
अमलेश्वर रायपुर छ.ग.
मों.9171096309
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*चौपई  छंद (जयकारी छंद)* आशा देशमुख


भीमराव रचदिन संविधान,दुनिया मा पाये सम्मान।
नाम सुरुज कस हे उजियार,जग बर करिन हवय उपकार।

जिनगी में बड़ दुख हे पाय,पग पग मा काँटा छेदाय।
छुआ छूत के रोग मिटाय, मानवता के पाठ पढ़ाय।

ऊँच नीच में बँधे समाज,वोमा कपटी मन के राज।
करे रहिन जीना दुश्वार ,पापी मन के पशु व्यवहार।

कठिन डहर में रेंगे पाँव, कोनो कर तो मिलही छाँव।
भीमराव जइसे हे कोन,आगी मा जस चमके सोन।

जे मन रहिन दुखी लाचार, उँखऱ करिन भीमा उद्धार।
जाति पाति के खाई पाट, ऊँच नीच के बेड़ी काट।

चमकत हावय देश समाज,भीमराव के सुघ्घर काज।
हे भारत के पूत महान,दुनिया करत हवय सम्मान।

भीमराव जग बर वरदान,मनखे रूप धरे भगवान।
पाये सब शिक्षा भरपूर,हो साहब या हो मजदूर।

भीमराव जी पाठ पढ़ाय,होय न अब कोई अन्याय।
सब मनखे हे एक समान,दुनिया के करदिन उत्थान।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
छत्तीसगढ़
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दोहा-सुकमोती चौहान

भीमा बाई कोख मा,जनम धरिन श्रीमान ।
पिता राम जी के इहाँ,होइस जी संतान।।

भीमराव अंबेडकर,जनमे जाति महार।
बचपन ले ऐमन सहिन,छुआछूत के मार।।

जात पात के भेद ला,मिटा करिन उपकार।
महिमा करे बखान गा ,आज सरी संसार।।

भीमराव अम्बेडकर,रहिन अबड़ विद्वान।
संविधान  निर्माण कर,सबला करिन समान।


भारत ला उपहार दिन,संविधान के रूप।
होनहार अंबेडकर,पाइन ठौर अनूप।।

सुकमोती चौहान रुचि
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

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राधिका छंद~ छंद खजाना खातिर।

भीमराव अंबेडकर, नेक मति भारी।
जय बाबा साहेब जी, आप अवतारी।।
सोच समझ मा आपले, एक नइ सानी।
सिरतों भारत रत्न जी, कीर्ति बड़ ग्यानी।।-1

छूआछूत के रोग ला, फोकटे मानै।
सुमता के छँइहाँ सुघर, देश भर तानै।
भेदभाव के घाव हा, समाजिक पीरा।
बरोबरी के बात कर, बनै बलबीरा।।-2

मनखे जम्मों एक हें, सार सब बाँटै।
जात वर्ण जंजाल हे, जात झन छाँटै।।
मानवता के दूत बन, करैं जनसेवा।
धरम करम बढ़के इही, इही प्रभुदेवा।।-3

सोज-सोज इन बात कर, बनै बरदानी।
पढ़े-लिखे बहुते बबा, नहीं अभिमानी।।
विधि विधान के ग्यान बड़, न्याँव के ग्याता।
संविधान मुखिया तहीं, न्याँव निर्माता।-4

नाँव अमर जय भीम के, काज कल्याणी।
गूँजय तन-मन मा तुहँर, बुद्ध के वाणी।।
भारत माता के पूत हौ, साज सत बाना।
अराजकता देश मा, जन्म धर आना।।-5

कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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उल्लाला छंद-दीपक निषाद

बिधि बिधान गहना असन,भारत माँ के भेष बर।
संविधान रचना करे, समतामूलक  देश बर।।

बाबा के पावन करम, मानवता बर नेक हे।
अवसर काम नियाव बर,सबो नागरिक  एक हे।।

मनखे सबो समान ए, ऊँच नीच अउ जात का।
पाँच तत्व के ठाठ सब,भेदभाव के बात का।।

मनखे देश समाज बर, ओकर बड़ उपकार हे।
बाबा  साहब के  चरन, बंदन  बारंबार  हे ।।

दीपक निषाद
बनसांकरा
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- सार छंद - विरेन्द्र कुमार साहू

संविधान ला लिखके बाबा, बढ़िया नियम बनाये।
करे हवस बेवस्था अइसे, न्याय सबो झन पाये।1।

रोग छुआछुत ला समाज ले, दुरिहा भीम भगाये।
मानवता ला सबले बड़का, जग के धरम बताये।2।

ऊँच नीच नइ हावय कोनों, रंग लहू के एके।
बगराये सद्ग्यान अँजोरी, सुग्घर शिक्षा देके।3।

बनगे निर्धन बर धन-झाँपी, बसुंधरा बर छानी।
गोड़ हाथ लुलवा बर बाबा, अउ कोन्दा बर बानी।4।

बने निराशा मा तँय आशा, परे डरे के हितवा।
देश धरम के बैरी मन ला, हबके बनके चितवा।5।

सुमत बाँध के हमन देश मा, तोर बाट मा चलबो।
खाय हवन करजा बाबा जी, सुरता करके छुटबो।6।

छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू , बोड़राबाँधा(राजिम), जिला - गरियाबंद, छत्तीसगढ़, मो.- 7000950840

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 कुण्डलिया छंद - श्लेष चन्द्राकर

(१)
भारत माता के रिहिस, भीमराव कस लाल।
संविधान लिख के करिन, जन-जन ला खुशहाल।।
जन-जन ला खुशहाल, रखे बर काम करइया।
तोला नमन हजार, सत्य के राह चलइया।।
तोर नाँव ले देश, लिखिस हे नवा इबारत।
सुरता करके आज, गरब करथे बड़ भारत।।
(२)
पढ़के अइस बिदेस ले, बाँटिस सबला ज्ञान।
भीमराव अंबेडकर, मनखे बनिस महान।।
मनखे बनिस महान, काम जनता बर करके।
लानिस हे बदलाव, भाव समता के भरके।।
आंदोलन मा भाग, लीस हावय बढ़-चढ़ के।
संविधान निर्माण, करिस हे अब्बड़ पढ़के।।
(३)
समता लाये बर लड़िस, भीमराव हा जंग।
भेदभाव ला छोड़के, कहिस रहे बर संग।।
कहिस रहे बर संग, देश के मनखे मन ला।
मिलय बने सनमान, दलित अउ सब निर्धन ला।।
जुरमिल रहय समाज, दिखय झन कहूँ विषमता।
बोलय बाबा भीम, देश मा राहय समता।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)
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अश्वनी कोसरे- आल्हा छंद

सामाजिक भेदभाव विरुद्ध,  बने चलाये  तँय अभियान|
भारत माँ के असली बेटा,नमन करव अमिट संविधान||

जात पात के भरम मिटाये,नइ माने जीवन भर हार|
नियम  लिखे  पुख्ता संविधान,दीन हीन के हक अधिकार||

चुन चुन के अधिनियम बनाये,शोषित मनखे बर अधिकार|
समता सुमता सब बर लाये,युगपुरुष तोर जय जोहार||

शिक्षा दीप जलाये सब बर,नौकरी बर खोले द्वार|
पढ़े लिखे के अवसर बनगे, महिला ला मिलिस रोजगार|

  मनखे बर एक मताधिकार,राजा  ले मजदूर किसान|
 महिला के सम भागीदारी,कर दिखलायेव एक समान||

अनुच्छेद तीन सौ चालीस ,पिछड़े भाई मनके शान|
आयोग बना शोषित मन बर ,दिलाये सबो समाज लामान||

बिजली बैंक सिंचाई जइसन,कलखाना के बनगे स्थान |
लोक निर्माण जस विभाग ले ,भारत भुइयाँ बनिस महान||

छंदकार
अश्वनी कोसरे "रहँगिया"
पता -कवर्धा जिला कबीरधाम
मो.8827795103
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दिलीप वर्मा सर: दिलीप कुमार वर्मा- भुजंग प्रयात छंद

करे भीम उद्धार कानून लाके।
रहे जेन पाछू उहू ला उठाके।
सँवारे सबो के बने जिन्दगानी।
छुवाछूत मा तोर हावै कहानी।

पढ़े जेन शाला अकेला बिठावै।
बड़ा दूर राखे ग पानी पिलावै।
सहे जिंदगी मा तहूँ दुःख भारी।
रखे फेर तै हा पढ़ाई ल जारी।

छुवाछूत ला दूर टारे ग ठाने।
पढ़े तैं ह कानून अच्छा ग जाने।
बड़े हो पढ़ाई करे दूर जाके।
उही काम लाये ग तै देश आके।

छुवाछूत के ये ब्यवस्था ल टारे।
लगे कंट भारी तभो तै न हारे।
बड़े हौसला ले सबो ला बचाये।
छुवाछूत ला दूर तैं हा भगाये।

करे तैं ब्यवस्था सबो जात के जी। 
रखे ऊंच नीचे तको बात के जी।
उही तोर कानून के हे दुहाई।
सबो आदमी के ग होगे भलाई।

छंदकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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दोहा-धनेश्वरी साहू

संविधान गढ़के कहे,बनगे सब कानून।
मिलिस रत्न भारत करा ,मचगे ओखर धून।।

बाबा साहब मानथे, करथे सब सम्मान।
हरथे सबके दुःख ला,रहिस नहीं अनजान।।

दाई भीमा बाइ  जी,ददा राम हे नाम।।
जन्मे जात महार करा, करे अबड़ तय काम।।

ऊँच नीच मानय नहीं सबला एकय जान।।
होशियार अब्बड़ रहिन ,पायिस अइसन मान।।

धनेश्वरी साहू

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चोवा राम 'बादल'--कुकुभ छंद

महू गाँव के पावन भुइँया, जनम धरे तैंहर आये।
पिता रामजी माता भीमा, के गोदी मा दुलराये।।

जा विदेश मा करे पढ़ाई, भारत के मान बढ़ाये ।
करे नौकरी देश म आके, धोखा बस धोखा खाये।।

राजनीति मा उतरे तैंहा, हिम्मत करके खम ठोंके।
समता सैनिक आगू बढ़गें,उन रुकिच न ककरो रोंके।।

सत्य अहिंसा के अनुयायी, गाँधी जी के सँगवारी।
अपन काम मा मस्त रहे तैं, सहे विरोध तको भारी।।

भारत के संविधान बनाये, नमन हवय अबड़े तोला ।
दीन दलित के रक्षा खातिर ,तोर हृदय बम के गोला।।

प्रस्तावना लिखे तैं विधि के, भारत के भाग्य विधाता।
समता लाये खातिर तैंहा, आरक्षण के हच दाता।।

न्याय बंधुता समानता के, घर घर मा अलख जगाये।
देश धर्म निरपेक्ष बनाके,दूर दृष्टि तैं देखाये।।

भेदभाव अउ छुआछूत ले, कसके तैं लड़े लड़ाई ।
बाबा कहिके पूज्य भाव ले, करथे जग तोर बड़ाई।।

हे महमानव ज्ञान पिटारा, बोधि तत्व के बड़ ज्ञाता।
ब्राह्मणवाद कभू नइ भाये, बौद्ध धर्म जोड़े नाता।।

भारत रत्न वीर सेनानी, पिछड़े के बने मसीहा।
तोर कृपा ले बाँचे हाबय,  हमरो तो थोकुन ठीहा।।

आये हे वो जाबे करथे, निर्वाण तहूँ हा पाये।
श्रद्धा सुमन ल अर्पित करके, 'बादल' हा मूँड़ नँवाये।।

छंदकार--चोवा राम 'बादल'
             हथबन्द, बलौदाबाजार (छग)

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 मनहरण घनाक्षरी- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

भीम संविधान-

न गीता न बाइबिल, न ही ग्रन्थ कुरान से ।
देश मोर चलथे जी, भीम संविधान से ।
अनेकता में एकता, दिखय भाव समता ।
देश आगू बढ़थे जी, सहीं दिशा ज्ञान से ।
पढ़ लिख आगू बढ़ौ, नवा इतिहास गढ़ौ ।
संविधान सब पढ़ौ, जी लौ फिर शान से ।
हाथ मा कलम हवै, सुख के आलम हवै।
सच कहौं मिले हवै, भीम बलिदान से ।।

चलै बने लोकतंत्र, दिये भीम महामंत्र ।
रख मान प्रजातंत्र, लिखे संविधान ला ।
हर हाथ काम पाये, सुख रोटी सबो खाये ।
झन कोई लुलवाये, कपड़ा मकान ला ।
दुख खुद ही सहिके, चुपचाप जी रहिके ।
सबो मोर ये कहिके, सहे अपमान ला ।
सत मैं बचन धरौं, नमन नमन करौं ।
चरन बंदन करौं, विभूति महान ला ।।


छंदकार - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
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कुण्डलियाँ छंद

         (1)

हीरा बेटा राम के,भारत माँ के लाल।
कपटी मन के राज मा,दलित सबो बेहाल।।
दलित सबो बेहाल,अराजक छाये अड़बड़।
भेदभाव अपमान, देश मा शासन गड़बड़।।
लड़े लड़ाई पोठ,हरे जन जन के पीरा।
सच्चा बीर सपूत, भीम भारत के हीरा।।

       (2)

बिख पीये अपमान के,कभू नहीं घबराय।
पढ़ लिख के आघू बढ़े,करजा दूध चुकाय।।
करजा दूध चुकाय,बने तैं बेटा काबिल।
देश गुलामी देख,जंग मा होवे शामिल।।
नित परमारथ काज,नेक तै जीवन जीये।
सदा देश कल्याण, सोंच के खुद बिख  पीये।।

       (3)

समता लाये देश मा,भीमा के संतान।
राजकाज बर तैं लिखे, भारत के सँविधान।।
भारत के सँविधान,बनाये सब के हक बर।
मानव एक समान, जलाये जोत घरोघर।।
छाये गजब उजास,मगन हे जम्मो जनता।
भारत रत्न महान,देश मा लाये समता।।

छंदकार:-कौशल कुमार साहू
  सुहेला (फरहदा)
जिला -बलौदाबाजार-भाटापारा
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सरसी छंद - रामकली कारे


घर घर चलव जलाबो दीया, करबो सब उजियार।
भारत मा बेटा जनमे हे, हाबय आज तिहार।।

भारत रत्न उपाधि ल पाये, भीमा के सन्तान।
पिता राम जी सूबेदार पा, मुॅह माॅगे वरदान।।

भारत के संविधान लिख ये, शिल्पकार विद्वान।
ज्ञान सुरुज बन चमके बाबा, दुनिया भर के शान।।

नारी ला सम्मान दिलाइस, कानून ल जी लान।
कलम किताब धरा के सबला, दे गे शिक्षा ज्ञान ।।

बार करम के दीया सुग्घर, देहे तयॅ अधिकार।
अक्षर अक्षर बाॅटे शिक्षा, खोले सबौ द्वार।।

आज देश के रूप बदल गे, देहे जोड़ विज्ञान।
बिखरे सबौ समाज ल जोरे, लाये मुख मुस्कान।।

बुद्ध धम्म के दिक्षा लेहे, छोड़ देय गा प्रान।
पाॅव परत हव बाबा साहब, तयॅ हमरे अभिमान।।

छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
छत्तीसगढ़
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सार छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

दूर देश मा शोध करे तब, डाॅक्टर बनके आये।
शोषित पीड़ित वंचित मन ला,  रद्दा नवा बताये ।

सुमत एकता सोच रखइया, संविधान निर्माता।
दीन हीन के आप मसीहा, नीति नियम के ज्ञाता।

छुवाछूत के भेद मिटाके, स्वाभिमान ला बाॅंटे।
जमींदार के जोर जुलुम ला,
जड़ उसाल के काॅंटे।

शोषण ताड़न के विरोध मा, भीमराव के कहना।
दीन हीन अब जागव जल्दी ,अति ला नइहे सहना।

सब मानव हे एक बरोबर, दलित दमित अउ नारी ।
इही तुॅंहर बुध सेती भारत ,सदा रही आभारी।

जनता ला अधिकार बताके,छल प्रपंच ला तोड़े।
आडंबर के भरे घड़ा ला, न्याय नीति ले फोड़े।

न्याय सुरक्षा व्यूह चक्र ला ,हम सब अपनावत हन।
मिले हवय अधिकार तभे तो,खुलके मुस्कावत हन।

येकर सेती आप हमर ये, भारत के नायक हव।
सबो नागरिक बर प्रेरक अउ, सहराये लायक हव।

छंदकार-महेंद्र कुमार बघेल
डोंगरगांव जिला राजनांदगांव
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: हेम -कज्जल छंद

जय हो अम्बेडकर तोर।
गावँव महिमा हाथ जोर।
लाये बिद्या के अँजोर।
बाँटे तँय हर गली खोर।1।

सत्य अहिंसा रहय शान।
गाँधी जी के तँय मितान।
सुघ्घर बोली मीठ जुबान।
जन मन बसगे तोर प्रान।2।

पढ़के आये तँय बिदेश।
कभू रखे ना कपट वेश।
हरे देश के सबो क्लेश।
राखे बाबा जन उद्देश।3।

संविधान हाँ बनिस वेद।
रहे कोउनो ला न खेद।
मन होइस सबके सफेद।
जात पात के मिटे भेद।4।

जन ला देवाय अधिकार।
ऊँच नीच के करे उपचार।
मन विद्या के ज्योति बार।
जन ला बनाय होशियार।5।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

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 राजकुमार बघेल: आल्हा छंद-

पावन भुइयाॅऺं ये भारत मा,जनम लिये तॅऺंय वीर सपूत ।
भिवा राम जी नाम धराये,मानवता के तॅऺंय हा दूत ।।1।।

चउदा तारिक सुभ बेला मा, लिए भीम जी तॅऺंय अवतार ।
शोषित पीड़ित जनता खातिर,छूटे बर भुइयाॅऺं के भार ।।2।।

मध्य प्रांत के महू ठउर मा,पावन बाबा जी के पाॅऺंव ।
पिता राम जी भीमा मइया, पाये अॅऺंचरा के तॅऺंय छाॅऺंव ।।3।।

महाराष्ट्र मा राहय सिरतो,आंबडवे पुरखा के गाॅऺंव ।
तेखर सेती परगे संगी,आंबडवेकर ऊॅऺंखर नाॅऺंव ।।4।।

पढ़े लिखे बर बाम्बे आइन,ले  शिक्षा जीवन आधार ।
छोट उमर ले नामी हावय,कक्षा मा जी बड़ हुसियार ।।5।।

पढ़ना लिखना जेन समय मा,होवत रहिसे टेढ़ी खीर ।
मनुवादी ये बरण वाद मा,नइ जानिन जी ओखर पीर ।।6।।

होनहार गा राम पूत ओ,पढ़ लिख डारिस बाधा टार ।
स्नातक पढ़ अउ करे शोध जी,राहय डिग्री के भरमार ।।7।।

करे पढ़ाई बैरिस्टर के,जग मा बहुते नाम कमाय ।
चरचा होवय सबो डहर मा,मिहनत के जी हे फल पाय ।।8।।

रहय किशोरा बाल उमर जी, बाबा जी के रचे बिहाव ।
जीवन के हमराह रमा जी,तभो पढ़े जी बढ़िहा चाव ।।9।।

भेदभाव के रहय विरोधी,झेलत जिनगी अपन पहाय ।
लड़े लड़ाई समता खातिर,काम हितैषी जगत सुहाय ।।10।।

छुआ छूत मनखे बर बद्तर,टोर गुलामी के जंजीर ।
सहना नइ हे अब शोषण ला,तभे कहाबे तॅऺंय हा बीर ।।11।।

शिक्षा के वो दीप जलाये,ठउर ठउर मा वो बगराय ।
विश्व विधाता ज्ञान प्रदाता,जनता हित बर बाली आय ।।12।।

नारी शिक्षा बर अगुवाई,छेड़े कतको जन अभियान ।
पर्दा प्रथा मा रोक लगाइस,नारी के करके सम्मान ।।13।।

शिक्षा के सब पद के सोभा,गुरु जी कुलपति घलो कहाय ।
शोषित पीड़ित लोग जगाके,पूरा जिनगी अपन पहाय ।।14।।

पत्रकार संपादक बनके,साहित ला जन बर बगराय ।
लिखे बहिष्कृत भारत समता,पिछड़े मन के दिन बहुराय ।।15।।

लड़े लड़ाई आजादी बर,लेके अपने संत समाज ।
टोर गुलामी अंग्रेजों के,लाये बर गा देश सुराज ।।16।।

शिक्षा के बड़ प्रेमी बाबा,राजगृह मा घर बनवाय ।
रखे हजारों पुस्तक जेमा,ज्ञान अलख ला जग बगराय ।।17।।

प्रतिनिधित्व के बात उठाते,राजनीति मा बारम्बार ।
रहे विचारक गांधी विपरित,दिन दुखी बर बड़ उपकार ।।18।।

पूना पेक्ट समझौता करके,आरक्षण की रख दी बात ।
सामाजिक उद्धार करे बर,बाबा मिहनत कर दिन रात ।।19।।

देश देश जब खोजत रहिगें,पंडित कतको संत सुजान ।
कोन रचय गा रचना जग बर,बाबा जस ना जग विद्वान ।।20।।

गढ़ संविधान के ताना बाना,राष्ट्र पिता भारत कहलाय ।
ज्ञान गुनी हे बाबा आगर,विधि ज्ञानी के जनक कहाय ।।21।।

स्वतंत्र भारत के सासन मा,विधि मंत्री ये बाबा भाय ।
समता मूलक देश गढ़े बर,जन जन बर अधिकार बनाय ।।22।।

बौध धरम के दीक्षा लेके,जाति प्रथा के करे बिनास ।
मानव के बस एक धरम ही,मानवता हो दिल में आस ।।23।।

भारत रत्न कहाये बाबा,बंदय तोला दुनिया आज ।
भारतवासी के हिरदे मा,करते रहिबे तॅऺंय हा राज ।।24।।

गाथा तोरे लिखे जाय ना,सार बात ला लिखथे राज ।
तोर चरन मा माथ नवावन,तोर उपर मा जग ला नाज ।।25।।

छंदकार- राज कुमार बघेल
            सेन्दरी, बिलासपुर (छ.ग.)
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Sunday, April 12, 2020

आल्हा छंद - श्रीमती आशा आजाद

आल्हा छंद - श्रीमती आशा आजाद

कोरोना हे बड़े बीमारी,कहिथे सब कोविड उन्नीस।
बगरावत हे वायरस ल जी,अबड़ महामारी ला दीस।।

चीन देश के ये बीमारी,देश-देश मा बगरिस आज।
लाकडाउन ह होगे हावै,बंद पड़े हे सबके काज।।

नान-नान लइका मन जानै,कोरोना हावै अभिसाप।
घर के भीतर बइठे हावै,सब छोड़िन जी मेल मिलाप।।

भारत के मनखे मन ज्ञानी,जुरमिल मनखे देवै साथ।
ईश्वर ला नित घर मा पूजै,जम्मो टेकत हावै माथ।।

दूर भगे जी ये बीमारी,अनुसासन के रखलौ ध्यान।
पुलिस प्रसासन करे सुरक्षा,हिरदे ले उनला सम्मान।।

डाक्टर के सेवा ला मानौ,देत हवे सब जीवन दान।
मानवता के भाव धरे हे,नर्स सबो मन हवे महान।।

मास्क लगाना जिम्मेदारी,समझौ मनखे नेक सुजान।
एक हाथ के दूरी राखौ,बचही तब मनखे के प्रान।।

अनुसासन के पालन करलौ,धरलौ थोरक मन मा धीर।
लाकडाउन ले मिट जाही जी,बीमारी हावै गंभीर।।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

Saturday, April 11, 2020

आल्हा छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

आल्हा छंद:- महेंद्र कुमार बघेल

(करव हियाव)

दुनिया के मौसम ला देखत, अब प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाव।
हल्का अउ सादा खाना ला, निसदिन भोजन मा अपनाव।।

खानपान के चेत करे बर , जेकर मन मा आही बोध।
रोग रई ला खुद भगाय बर, तब तन हा करही प्रतिरोध।।

धरना परही नेक नियत ला, गलत सोच नाली मा फेंक।
डगमग झन होवय अंतस हर,बाॅंध छोर के पहिली छेंक।।

रगड़ रगड़ के धोवत माॅंजत, रोग रई ला तुरत भगाव।
बासी के सुरता ला छोड़व, गरम गरम ताजा बस खाव।

वन पहाड़ नदिया नरवा ला, मिलजुल करना परही साफ।
वरना पर्यावरण घलव अब, बिल्कुल नइ कर पाही माफ।।

वजन बढ़े झन घर मा बइठे, करना परही सोच विचार।
मोल मेहनत के बड़ होथे,जिनगी मा चल तहूॅं उतार।।

नख मुड़ ले अपने काया के ,सोवत जागत करव हियाव।
खई खजानी बाहिर वाले, कभू भूल के अब झन खाव।।

ताजा कहिके रोज खात हें, फेर साग मा दवा छिताय।
जान बूझ के परबुधिया कस,पइसा देके रोग बिसाय।।

येती ओती देख ताक के ,साफ सफाई ला पहिचान।
जब उज्जर रहि घर दुवार हर ,तब कर पाबो गरब गुमान।।

छंदकार-महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला-राजनांदगांव

Friday, April 10, 2020

आल्हा छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

आल्हा छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

कोरोना-
याद जमाना जुग जुग रखही, कोरोना के नरसंहार ।
मन्दिर मस्जिद बन्द रहिस हे, बन्द चर्च गरुद्वारा द्वार ।।

वो भगवान कहाँ छुपगे जब, रहिस देश  मा संकट घोर ।
अंधभक्त मन दूर लुकागे, कोरोना जब  मारिस जोर ।।

राहत बर बस हाथ बढ़ाये, देखव परखव तुम विज्ञान ।
इही बात ला मँय तो सोंचव, होथे का सच मा भगवान ।।

नाम बड़े कब जग मा होथे, होथे बड़का सच मा काम ।
करम करे से सउँहत मिलथे, राम रहीम यीशु गुरु धाम ।।

मोर लेखनी के हे कहना, बनव सबो जी करम प्रधान ।
करम करे तब पेट भरे हे, भरय नहीं कोई भगवान ।।

ना तो मँय हा धर्म विरोधी, ना मँय नास्तिक सुन भगवान ।
सच्चाई ला धर मँय जीथँव, मोर इही असली पहिचान ।।

छंदकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

Thursday, April 9, 2020

आल्हा छन्द(बीर हनुमान)-गुमान साहू

आल्हा छन्द(बीर हनुमान)-गुमान साहू

रामदूत सुन हे बजरंगी, पवन तनय तै हर हनुमान।
नइहे कोनो ये दुनिया मा, तोर असन देवा बलवान।।1

देह वज्र के जइसन तोरे, गति हा हावय पवन समान।
महावीर विक्रम बजरंगी, हावस तै अब्बड़ गुणवान।।2

राम काज ला तहीं बनाये, लिये हवस देवा अवतार।
पता लगाये मातु सिया के, सौ जोजन जा सागर पार।।3

लंका जा के लंक जराये, टोरे रावण के अभिमान।
थर थर काँपै तोर नाम ले, बड़े बड़े सब मरी मशान।।4

राम नाम के हरदम मन मा, करथस देवा तैं गुणगान।
रामभक्त जग नाम पुकारे, मिले हवै तोला वरदान।।5