होली तिहार विशेषांक विविध छंदबद्ध गीत कविता(2023)
कुंडलियाँ छन्द
हरियर पिंवरा बैगनी, अउ नारंगी लाल।
असमानी नीला सहित, उड़थे रंग गुलाल।।
उड़थे रंग गुलाल, प्रेम रँग मा रँग जाथें।
गाथें मिलके फाग, नँगाड़ा ढोल बजाथें।।
भेद भाव ला टार, मया सब बर हो फरियर।
राखन बने सँवार, दाइ के अँचरा हरियर।।
सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
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*होरी आगे - अमृतध्वनि छंद*
फागुन महिना आय हे,होरी डाँड़ गड़ाय।
लइका मन मुसकात हे,सबके मन ला भाय।।
सबके मन ला,भाय सुनौ जी,खुशी मनावय।
लइका नाचय,माँदर बाजय,मन बउरावय।।
रंग कटोरा,धरके दउड़य,अब का कहिना।
देखव संगी,आए हावय,फागुन महिना।।
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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फागुन के होरी/ सार छंद
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फागुन महिना सुग्घर होरी,
रंग गुलाल उड़ाबो।
भेद भाव ला छोड़ सबोझन,
मिलके खुशी मनाबो।।
आय बसन्ती पुरवाई मा,
डारा पाना झूले।
देख-देख मन भौंरा नाचे,
लाली परसा फूले।।
रास रंग मा डूब चलौ जी,
गीत फाग के गाबो।
फागुन महिना सुग्घर होरी...........
धर पिचकारी छरा ररा जी,
इक दूसर ला मारौ।
बैरी दुश्मन अपन बनाके,
रंग मया के डारौ।।
आवौ जम्मों मिल जुर संगी,
ढोल मृदंग बजाबो।
फागुन महिना सुग्घर होरी...........
कउनो लाली, पींयर, हरियर,
रंग गुलाल सनाये।
होरी खेलत दुःख भुलावत,
नर नारी बइहाये।।
नशा भाँग के चढ़गे भैया,
अब कइसे उतराबो।
फागुन महिना सुग्घर होरी............
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रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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🌹रूपमाला-छंद 🌹
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2122-2122-2122-21
रंग मोहन आज मोला, घोर जतका रंग |
डार ले तैं मोर तन मा, भींग जाये अंग |
तोर मन मा प्रेम कतका, देखहूँ दिलदार |
मेंहदी मैं साज बइठे, प्रेमिका हँव यार ||
लाल पिंवरा धर गुलाली, राह देखँव तोर |
आय नइ खुसरे कहाँ तैं, मोर माखन चोर |
बाँचबे नइ आज तैंहा, रंग देहूँ गाल |
कोन बिलमाये बिलइया, सौत बनके काल ||
राँध के राखे हवँव मैं, देख छप्पन भोग |
थोर को लागय नही रे, मोर सेती सोग |
गाँव भर बाजे नँगारा, ढोल चारो ओर |
तोर देखे रे बिना हे, आज सुन्ना खोर ||
पेंड़ ले कूदे किशन जी, हाँथ धर के हार |
मांग मा वो रंग डारे, हार टोटा डार |
रंग रंगे अंग भर मा, तीर मा बइठार |
श्याम होली झन भुलाबे, आज ले दिलदार ||
कमलेश प्रसाद शरमाबाबू
कटंगी-गंडई जिला-केसीजी
9977533375
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: *होली हे होली रे होली*
*सार छन्द सँग होली खेलंव, राग मया के गावंव।*
*मन मितवा के पाती पढ़के, मन ही मन हरसावंव।।*
बजय नगाड़ा बजय नगाड़ा, गली मुहल्ला पारा।
फाग रंग मा रँगे हँवें सब, बैठें हें फगुहारा।।
सात रंग के मोल जोल हें, छटा दिखे सतरंगी।
मया परब मा सबो धनी हें, नइहे कोनो तंगी।।
हँसी खुशी भाईचारा मन, आये झारा झारा।
फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठें हें फगु हारा।।
तन ला भाये लाल गुलाबी, मन ला भाये हरियर।
नीला पीला रंग बैगनी, होगे अंतस फरियर।।
सखी सहेली मन हाँसत हें, करके अजब इशारा।
फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठे हें फगुहारा।।
रंग मिटावय जात _पात ला, गला मिलत हे बैरी।
सबके मन आनन्द भरत हे, सुख के माते गैरी।।
मन लइका पिचकारी धरके, छींचत हे फौवारा।
फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठे हें फगुहारा।।
फागुन के कोठी मा संगी, अब्बड़ भरे खजाना।
सोन लदाये गहूँ चना मन, सरसों अरसी दाना।।
ऋतुराजा के घर मा होवत, रोज रोज भंडारा।
फाग रंग मा रँगे हवें सब, बैठे हें फगुहारा।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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: आये हे होली
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(गीत)
झूमत हे खेत-खार,झूमत हे बस्ती।
परसा हा झूमत हे ,छाये हे मस्ती।
आमा मँउराये हे,गद हरियर पाना।
कारी कोयलिया हा,गावत हे गाना।
मैना हा पँड़की ला,मारत हे ताना।
मटमटहा भौंरा के,अबड़े इँतराना।
डूमर गदराये हे,गदराये गस्ती।
झूमत हे खेत-खार,झूमत हे बस्ती।
हवा मतौना हावय,मन ला बउराथे।
बिरहा के आगी ला,रहि-रहि भड़काथे।
मुखड़ा हा गोरी के,नजर झूल जाथे।
जेन गली रइथे वो,चेत घूम आथे।
तउँरे ला धर लेथे,जिनगी के कस्ती।
झूमत हे खेत-खार,झूमत हे बस्ती।
फाग गुड़ी चौंरा मा,आये हे होली।
पिचकारी छूटे हे, भिंज गेहे चोली।
चुलबुलहिन भउजी के,गुत्तुर हे बोली।
नाचत सर्वावत हे,मस्त मगन टोली।
बोथाये गुलाल सब ,एके हे हस्ती।
झूमत हे खेत-खार,झूमत हे बस्ती।
चरदिनिया जिनगी हे, मनखे के जानौ।
बने करम सँग जाही,पक्का ये मानौ।
अंतस मा मानवता,परघाके लानौ।
मातृभूमि के सेवा, करना हे ठानौ।
मया रतन के सौदा, नइये जी सस्ती।
झूमत हे खेत-खार,झूमत हे बस्ती।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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मोद सवैया*
रंग लगा अउ अंग सजा मन मैल हटा जी ले सँगवारी |
पींवर लाल गुलाल धरे जन निच्चट कोनो हावय कारी ||
छोड़ गुमान सबो झन ले रख तीर पटा ले जी तँय तारी |
भेद मिटा हिरदे भर रंग मया रस होली के पिचकारी ||
अशोक कुमार जायसवाल
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महा भुजंग प्रयात सवैया
लगाबो सबो ला चला रंग संगी, मनाबो मया बांट के आज होरी।
मले जा गुलाली करे जा गुलाबी, बुरा देख माने नहीं आज गोरी।
उड़ेलौ बने घोर के रंग गाढ़ा, चिभोरौ बने छूट जाये न कोरी।
गली आज आये ग होरी मनाये, मया फांस बांधे रखौ आज छोरी।
दिलीप कुमार वर्मा
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: सर्वगामी सवैया
होरी मनाए सबो हों इकट्ठा, नगाड़ा धरे फाग गावै बजावै।
झूमे सबो ताल ताली बजा के, भरे जोश मा फाग जम्मो उठावै।
नाचे बुढ़ापा जवानी म जैसे, धरे रंग छोरा ल छोरी लगावै।
राजा रहे या रहे ओ भिखारी,सराबोर हो आज होरी मनावै।
दिलीप कुमार वर्मा
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दोहा छंद---- होली
ढोल नँगाड़ा हे बजत, गावत हावँय फाग ।
रंगे सब्बो रंग मा, छेंड़त सुग्घर राग ।।
माते हें पी के सबो, भाँग नशा मा आज ।
झेरी कस नरियात हें, लागत नइहे लाज ।।
आये हे होली परब, बाँटव मया दुलार ।
खुशी मनावव आज गा, बैर भाव ला टार ।।
भर पिचकारी मा सबो, डारत हावँय रंग ।
गली खोर मा आज गा, करत हवँय हुड़दंग ।।
धरके हाथ गुलाल ला, बोथव सबके गाल ।
बने मनावव फाग ला, करहू झन जंजाल ।।
रंग मया के घोर लव, खेलव होली संग ।
अपन मयारू मीत ला, बने लगावव रंग ।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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डी पी लहरे: रोला छन्द
जलके होवय राख,सबो के आज बुराई।
तइसे होली यार,चलौ अब हमू जलाई।
दया-मया के राग,बोलबो गुत्तुर बोली।
बैर-भाव ला छोड़,मनाबो अइसे होली।।(१)
गली गली मा फाग,मया के माते भारी।।
बरसे रंग गुलाल,चलै छर छर पिचकारी।।
बजे नँगारा ढोल,छमाछम नाचे गोरी।
हरसे हे मन आज,खुशी धर आये होरी।।(२)
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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"अनन्य": महाभुजंग प्रयात सवैया
चलौ आज होली सखी रे जलाबो ,
चलौ ढोल बाजा सखी रे बजाबो l
सजे फाग टोली चलो रे बनाबो ,
बने फाग गाना सबो ला गवाबो ll
फुले फूल टेसू चलो फूल लाबो ,
चुरो के घड़ा मा पके रंग पाबो l
मया प्रेम बांँटौ गला मा मिलावौ,
सुनो ईरखा भाव बैरी भगाबो ll
दूजराम साहू अनन्य्
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मनहरण घनाक्षरी छंद
शीर्षक
(1) ब्रज म होरी
गोरी गोरी राधा रानी, रंग धरे आनी बानी ,
कन्हैया ला खोजत हे ,गोपी सखी संग हे ।
करिया ला करिया मा , अउ रंग फरिया मा ,
पोते बर करिया ला ,मन मा उमंग हे।
कदम के रुख तरी , खोजे गली खोल धरी ,
कन्हैया तो मिले नहीं ,राधा रानी तंग हे ।
कहत हे हाथ जोड़ ,आजा राधे जिद छोड़ ,
तोर बिना होरी के ये ,जीवन बेरंग हे ।।
(2)होरी के मउसम
परसा हा फूले हावै, आमा हर मौरे हावै ,
गुन गुन भौंरा करे, पीये जैसे भंग हे ।
कोयली हा गात हावै ,जिया हरसात हावै,
सरसों हा फूल के तो , झूमत मतंग हे ।
फागुन के रंग में तो ,सबो झन मात गे हे ,
सबो रंग मिल के तो ,होगे एक रंग हे ।
चार तेन्दू लोरी डारे ,मन ला तो मोही डारे,
मया अउ पिरित मा , भीगे अंग अंग हे ।
(3)अइसन होली खेलव
दया मया के तो डोरी ,बाँध खेलौ सब होरी ,
जात पाँत बैर भाव ,मन से निकालव गा ।
हरा पीला नीला लाल ,पोत डारौ मुँह गाल ,
छोटे बड़े सब संग ,मिल के मनालव गा ।
झन करौ हुड़दंग,छोड़ देवा दारू भंग ,
दूरिहा के काल झन, तीर मा बुलावव गा ।
कहत हँ हाथ जोड़ ,परत हँ पाँव तोर ,
सबो से तो नाता ला जी ,बने निभावव गा ।
दुर्गाशंकर
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कबीर छंद
बृंदाबन के कुंज गलिन में,उड़गे लाल गुलाल।
होली के हुड़दंग मचे हे,नाचत दे दे ताल।
जोगीरा सरारा-
मोर मुकुट माथे पर सोहे,हाथ म धरे गुलाल।
गावे गीत आज फगुवारा,नाचे मिलके ग्वाल।
जेती देखव ओती दिखथे,धरती अंबर लाल।
होली के हुड़दंग मचे हे,नाचे दे दे ताल।
जोगीरा सरारर-
सखियों के सँग आई राधे, रंग भरे धर थाल।
भर पिचकारी कान्हा मारे, गोपिन होगे लाल।
सररररररा बोलन लागे,नाच नाच गोपाल।
होली के हुड़दंग मचे हे,नाचे दे दे ताल।
जोगीरा सरारर--
केवरा यदु"मीरा"राजिम
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ताटंक छन्द गीत
*होली*
मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।
कहाँ होलिका हा जर पाही,ए आँसों के होली मा।।
कतका बछर जलावत होगे,फेर कहाँ ले आथे जी।
कोनजनी कइसे गा भाई,ए जिंदा हो जाथे जी।।
आज होलिका हा मर जाही,मारव मिलके गोली मा।
मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।।
कइसे रंग गुलाल उड़ाबो,पानी बिन करलाई हे।
कहाँ गली मा फाग मताबो,घर घर आज लड़ाई हे।।
सुमता के सब परब नँदागे,कुमता आगे झोली मा।।
मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।।
पर्यावरण बचाव करे बर,कुछ तो सोचौ भाई हो।
बढ़े प्रदूषण हा झन संगी,करौ सबो अगुवाई हो।।
हँसी-खुशी ले परब मनालौ,मन ला मोहव बोली मा।
मिले नहीं जी लकड़ी छेना,खेत-खार अउ डोली मा।।
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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होरी के ओखी (आल्हा छंद)
होरी के तैं ओखी करके, झन पी बाबू दारू भांग।
मति मर जाथे नशा करे ले, हो जाथे गा ऊटपुटांग।१।
फूहर-पातर आनी-बानी, गारी आही मुँह मा तोर।
हाथ-बाँह धरबे मस्ती मा, करबे हुल्लड़ पारा खोर।२।
फोकट-फोकट करबे झगरा, एला-ओला परबे मार।
मूड़-कान फुट जाही ककरो, गोड़ हाथ टुटही बेकार।३।
थुवा-थुवा मनखे मन करहीं, पुलुस कछेरी होही जान।
इज्जत पइसा दुन्नो जाही, होही तन अलगे नसकान।४।
खाबे डंडा थपरा अलगे, जेल भीतरी होबे बंद।
ओखी करते खोखी होही, भगा जही गा सब आनंद।५।
नशा कहूँ नँगते हो जाही, गिरबे नाली लद्दी-कीच।
कुकर चाँटही तोर मुँहू ला, सूरा कस दिखबे जन बीच।६।
तोर ददा दाई लइका मन, होहीं गा भारी परसान।
गारी देही तोर सुवारी, खिसियाही धर तिरही कान।७।
परे रबे बिहना ले संझा, हो जाही भँइसा मुँधियार।
रोटी-पीठा सब रहि जाही, खँइता होही तोर तिहार।८।
सिरतो भाई मान बरजना, नशा पान हा नोहय शान।
तोरे हित बर काहत हाबय, सबके हितवा मनी 'मितान'।९।
- मनीराम साहू 'मितान'
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: शक्ति छंद
उड़ावत हवे आज जे रंग हे।
सरग देवता देख के दंग हे।
कहां हे पुराना मया फाग हा।
बदलगे हवय आज सब राग हा।
सराबी कबाबी नजर आत हे।
पिये भांग दारू गजब ढात हे।
गिरे राह कोनो त नाली परे।
बचे तेन फोकट म झगड़ा करे।
नदागे पुराना सबो रंग हे।
शहर गांव मा अब मया तंग हे।
जिहां रास गरबा कभू होय हे।
उहां कृष्ण राधा अभी राेय हे।
दिलीप कुमार वर्मा
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: दोहा छंद
बूड़े फगुआ रंग मा,सबो छंद परिवार।
पींयर लाली अउ हरा,परत हवय बौछार।।
बिरवा बर पीपर हरे,छंद के छ हर आज।
गढ़हत हावय रूप ला,बनगे सिर के ताज।।
छँइहा देथे पोठ जी,मिलै ज्ञान भंडार।
सुख दुख के संगी हरे,महिमा हवय अपार।।
राजेन्द्र कुमार निर्मलकर
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(दोहा छंद )
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आनी -बानी रंग के, सबो डहर भरमार l
गाँव -शहर मा छाय हे, होली रंग बहार ll
बैर भाव बिसराय के, होली हरे तिहार l
दया -मया के रंग ला, सबके उप्पर डार ll
पीला -नीला अउ हरा, किसिम -किसिम के रंग l
रंगव होली रंग मा, मनखे -मनखे संग ll
होली के त्यौहार हा,सुग्घर संस्कृति अंग l
दुख -पीरा ला टारके, मन मा भरय उमंग ll
कमलेश कुमार वर्मा
छंद के छ
सत्र -9
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विष्णुपद छन्द
फागुन आगे मस्ती छागे, खुशी मनावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
होली के पावन तिहार हा, मन ला भावत हे ।
लाल गुलाबी हरियर पिॅंवरा, रंग लगावत हे ।।
भर- भरके मारव पिचकारी, घोरव लावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
फाग गीत हा बने सुहावय, तीर बलावय गा ।
हमर गाॅंव के गोरी नारी, बड़ मुस्कावय गा ।।
ढोल नॅंगाड़ा गड़वा बाजा, बने बजावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
छोड़व इरखा द्वेष कपट ला, ये समझावत हे ।
जिनगी ला हॅंस के जीये बर, घलो सिखावत हे ।।
कुमता जाही सुमता आही, राह बनावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
ओम प्रकाश पात्रे "ओम "
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मनहरण घनाक्षरी
डारा पाना डोलत हे,हाॅस हाॅस बोलत हे
चारो कोती खुशी छागे,बसंत बहार मा ।
लाली लाली टेसू फूले , बगीया मा फूल खिले
फूल देख मन भागे,बसंत बहार मा।
कोयली कुहू कुहके,चिरई खूब चहके
फाग गीत मीठ लागे,बसंत बहार मा।
हरियर खेती हवै ,भवरा मगन हवै
आमा डारा मौर आगे,बसंत बहार मा ।
लिलेश्वर देवांगन
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सार छन्द
फागुन बड़ अलबेला भैया, भावय सबके मन ला,
धीरे धीरे घाम जनावै, रतिहा जाड़ा तन ला ।।
पींयर पींयर सरसो फुलगे, परसा झूले लाली,
अमरइयाँ मा आमा मउरे, कुहके कोयल डाली ।।
रंग बसंती चारो कोती, खोर गली हा गमके,
राधा मोहन होली खेलय, पिचका चलथे जम के ।।
राधा जी के चुनरी भीजे, गिरधारी के धोती,
ग्वाल बाल मारे पिचकारी, भागे ग्वालन वोती।।
लइका सियान चोरो बोरो, रँगे रंग मा होरी।
फाग बजे संग नगाड़ा के, नाचय धनिया गोरी ।।
संग ठिठोली ननन्द भौजी, देवर अउ देरानी,
भाई संगी संग भतीजा, बरजोरी अगवानी ।।
नंदकिशोर साव
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: *छप्पय छन्द*
*होलिका/ विश्व महिला दिवस*
जरे होलिका देख,तभो ले जिंदा हावय।
कतिक जलाहू सोच,बिकट शर्मिंदा हावय।
कहे होलिका बात,मोर सब मानौ भाई।
पर्यावरण बचाव,करे बर ठानौ भाई।।
धुवाँ-धुवाँ जिनगी तुहँर,होहू सब परशान रे।
बढ़े प्रदूषण रोक लव,देत होलिका ज्ञान रे।।(१)
रोय होलिका आज,महूँ तो नारी हावँव।
कतिक जलाहू रोज,बहिन महतारी हावँव।
नारी अत्याचार,बता मँय कतका साहँव।
अंतस कलपे आज,बता मँय काला काहँव।।
जलथौं कभू दहेज बर,जलथौं व्यभिचार मा
बेटी बनके आय हँव,काबर? ए संसार मा।।(२)
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़
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: *दोहा*
*फागुन के रंग*
फागुन आवत देख के, उलहोवत सब डार।
परसा सेम्हर फूल ले, खुशी मिलय भरमार।।
अमरइया ले कोयली, कुहु कुहु गीत सुनाय।
तितली भौंरा फूल मा, रस चुहकत मन भाय।।
गजहिन लागै चौंक हा,खोर चलत हे फाग।
बजै नँगारा झाँझ अउ, फगवा गावँय राग।।
धरे कटोरा रंग के, पींयर लाल गुलाल।
पिचकारी मारत हवैं, दैं गुलाल मल गाल।।
कोन्हों पीये मंद हें, कोन्हों खाये भंग।
चाल ढाल मस्ती भरे, सम्हलत नइ हे अंग।।
दिखै चेहरा बेंदरा, पोताये हें रंग।
नाचत गावत फाग सब, माते हे हुड़दंग।।
हमर बुराई हा सबो ,जरै होलिका संग ।
ऊँच नीच के भेद बिन, लगै सबो ला रंग।।
जाति पाँति ला त्याग के, सुघ्घर परब मनाव।
बँधै प्रेम के डोर हा, अइसन रंग लगाव।।
देत बधाई भागवत, बिनती हे कर जोर।
प्रेम रंग बरसै सदा, जिनगी रहै अँजोर।।
भागवत प्रसाद चन्द्राकर
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*त्रिभंगी छंद*
*होरी*
हा फागुन आगे ,मन ला भागे , झूमो नाचो ,संग चलो ।
सब मया पिरित के ,रंग सजाके , जिनगी मा जी, खूब फलो ।
सब खेलव होरी, छोरा छोरी ,दया मया के, रंग भरो ।
सब रंग लगाके,ढोल बजाके , भेदभाव ला ,दूर करो ।
लिलेश्वर देवांगन
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सुखदेव: सार छन्द- सुखदेव सिंह"अहिलेश्वर"
रंग-परब
रंग-परब मा रांध कलेवा, खाते अउर खवाते।
दारू गाँजा भांग पिये बिन, स्वाद खुशी के पाते।
संगवारी तँय झोंक बधाई, भर-भर कोरी-कोरी।
जिनगी मा रस घोरय सबके, फागुन पुन्नी होरी।
अइसे तो हर साल फगुनवा, रंग लगा उजराथे।
धन हे मनुख तोर मन अंतस, रहि-रहि के मइलाथे।
भेद करे के भेद कहाँ ले, काखर ले तँय पाये।
दया धरम व्यवहार खँड़ाये, सोच-विचार खंँड़ाये।
कुमता ला कसके फुसनाते, सुमता ला सँहराते।
धरके हाथ नवा पीढ़ी के, समरसता म चलाते।
संगवारी तँय झोंक बधाई, भर-भर कोरी-कोरी।
जिनगी मा रस घोरय सबके, फागुन पुन्नी होरी।
खोर म उरहा-धुरहा बोली, अलकर हँसी-ठिठोली।
पाँव-पाँव मा खुरखुँद भइगे, बिटियन के रंगोली।
रक्तन के आँसू धर रोही, रहि-रहि रँधनी खोली।
अइसन मा कइसे शुभ होही, रंग परब ये होली।
होरी परब हरस के हँसतिस, अइसे परब मनाते।
तोर अवइया नव पीढ़ी ला, कहनी असन बताते।
संगवारी तँय झोंक बधाई, भर-भर कोरी-कोरी।
जिनगी मा रस घोरय सबके, फागुन पुन्नी होरी।
परब-तिहार जान के झटकुन, आये हे ओन्हारी।
हाट-बजार सजा के बइठे, स्वागत मा बैपारी।
मनखे उत्सव-धरमी आवय, जानत हावय बेरा।
खुशियन के बाजार बीच मा, मनखे करत बसेरा।
पाख-पूठ ये परब अमावस, पुन्नी रहिथे आते।
फागुन पुन्नी आज घरो-घर, रंग परब हे माते।
संगवारी तँय झोंक बधाई, भर-भर कोरी-कोरी।
जिनगी मा रस घोरय सबके, फागुन पुन्नी होरी।
रचना - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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: मनहरण घनाक्षरी
चलो ड़ारो प्रेम रंग, भरे मन में उमंग,
खेलो मिल सबो होरी,रंग के तिहार हे।
हरियर नीला पीला, दिखत सबो रंगीला ,
कोनो दिखे करिया हे,रंग के बौछार हे।
राधा कस दिखे गोरी ,गाँव के सबो च छोरी,
छोरा लगे कान्हा कस,गाये फगुवार हे।
गाल में गुलाल लगे,छोरी ऐती ओती भगे,
छेकें संगवारी मन,घोरे रंग ड़ार हे।।
बृंदाबन में
राधा संग खेले कान्हा,ड़ारे रंग ले बहाना।
गोपी सब भारत हे,छेंकत गोपाल हे।
रंग धरे लाली पीला,कोनो हरियर नीला,
एक दूसर उपर, ड़ारत गुलाल हे।
कोनो हाँसे कोनो झांके, मौका खोज रहे ताके,
लीला करे गिरधारी, गजब कमाल हे।
करे बरजोरी कान्हा,कहे राधा ऐती आना,
मौका मिले हवे आज, आथे बाद साल हे।
होली है
चारो कोती लाले लाल,मोहना करे धमाल,
नाचे मिल ग्वाल बाल,गिरिधर संग हे।
धरती अंबर लाल, गाय बछुरा हे लाल,
गोरी मन दिखे लाल,मनवा मतंग हे।
भर भर पिचकारी मारे देखो गिरधारी ,
लाल होगे गली खोर,होरियारा रंग हे।
नाचे सब नरनारी, बजावत सबो तारी,
गाये गीत फगुवारा, बाजत मृदंग हे।।
केवरा यदु"मीरा"राजिम
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गीत(रंग के तिहार मा- सार छंद)
चलव सँगी रँग के तिहार मा, सब दिन बर रँग जाबों।
दया मया सत सुम्मत घोरे, तन मन दुनों रँगाबों।।
नीर नदी नरवा तरिया के, रहै सबे दिन सादा।
झन मइलाय अँटाये कभ्भू, सबें करिन मिल वादा।।
रचे रहै धरती हरियर मा, बन अउ बाग बचाबों।।
चलव सँगी रँग के तिहार मा, सब दिन बर रँग जाबों।
बने रहे सूरज के लाली, नीला नभ मन भाये।
चंदन लागे पिंवरा धुर्रा, महर महर ममहाये।।
प्लासामा सेम्हर कस फुलके, सबके जिया लुभाबों।
चलव सँगी रँग के तिहार मा, सब दिन बर रँग जाबों।
जे रँग जे हे अधिकारी, वो रँग वोला देबों।
भेद करन नइ जड़ चेतन मा, सबके सुध मिल लेबों।।
दुःख द्वेष डर लत लालच ला, होरी बार जलाबों।
चलव सँगी रँग के तिहार मा, सब दिन बर रँग जाबों।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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दोहा छंद - होली
लाल गुलाबी रंग हे,उड़े बिरज के घाम ।
मया रंग मा बूड़ गे,राधा अउ घनश्याम ।।
गाँव गली मादर बजे,गावत फागुन गीत।
श्याम बजाये बाँसुरी,भीजे मन के भीत।।
धरे मया के रंग ला,किंजरत हावे श्याम।
मइलाहा मन देख के,लहुटय अपनो धाम।।
मँदहा मउहाँ मात गे,परसा हाँसे डार।
मउर बाँध आमा खडे़,भौंरा मन्त्रोचार।।
बंदन बूंके कस दिखे,जंगल खेती खार।
गीत कोइली गात हे,ठाड़े फागुन द्वार ।।
हवा बसंती झूम के,चढे़ पेड़ अउ डार।
कभू गहूँ के खेत मा,कूदे भाड़ी पार।।
मौसम सतरंगी लगे,गर बाँधे रूमाल।
बइहाये फागुन खडे़,चुपरे रंग गुलाल।।
शशि साहू
बाल्को नगर कोरबा ।
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हरिगीतिका छंद-परसा
*परसा कहै अब मोर कर भौरा झुले तितली झुले।*
*तड़पे हवौं मैं साल भर तब लाल फुलवा हे फुले।*
*जब माँघ फागुन आय तब सबके अधर छाये रथौं।*
*बाकी समय बन बाग मा चुपचाप मिटकाये रथौं।*
*सजबे सँवरबे जब इहाँ तब लोग मन बढ़िया कथे।*
*मनखे कहँव या जीव कोनो सब मगन खुद मा रथे।*
*कवि के कलम मा छाय रहिथौं एक बेरा साल मा।*
*देथौं झरा सब फूल ला नाचत नँगाड़ा ताल मा।*
खैरझिटिया
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होली के संदेश
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(आधार छंद--रोला)
इरखा-कचरा बार,मना लन सुग्घर होली।
रंग-मया के घोर,भिंजो के हिरदे-चोली।
माया लगे बजार,हवै दुनिया हा मेला।
तोर-मोर के रोग,घेंच मा लटके ठेला।
जाथे खुदे भुँजाय,गरब जे जादा करथे,
लगे न कौड़ी दाम,बोलबो गुत्तुर बोली।
रंग मया के घोर,भिंजो के हिरदे-चोली।
नइ ककरो बर भेद,करै सूरज वरदानी।
देथे गा भगवान,बरोबर हावा पानी।
मूरख मनवा चेत,जतन अब कुछ तो करले,
हरहा-गरब गुमान,धाँध अँधियारी खोली।
रंग मया के घोर,भिंजो के हिरदे-चोली।
कतको बड़े कुबेर, चले गिस हाथ हलाके।
बड़े-बड़े बलवान,झरिन जस बोइर पाके।
बड़ अँइठाहा डोर, टूटथे खाके झटका,
गाल फुलाना छोंड़, सीख लन हँसी-ठिठोली।
रंग मया के घोर,भिंजो दे हिरदे-चोली।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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होली के संदेश
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(आधार छंद--रोला)
इरखा-कचरा बार,मना लन सुग्घर होली।
रंग मया के घोर,भिंजो के हिरदे-चोली।
माया लगे बजार,हवै दुनिया हा मेला।
तोर-मोर के रोग,घेंच मा लटके ठेला।
जाथे खुदे भुँजाय,गरब जे जादा करथे,
लगे न कौड़ी दाम,बोलबो गुत्तुर बोली।
रंग मया के घोर,भिंजो के हिरदे-चोली।
नइ ककरो बर भेद,करै सूरज वरदानी।
देथे गा भगवान,बरोबर हावा पानी।
मूरख मनवा चेत,जतन अब कुछ तो करले,
हरहा-गरब गुमान,धाँध अँधियारी खोली।
रंग मया के घोर,भिंजो के हिरदे-चोली।
कतको बड़े कुबेर, चले गिस हाथ हलाके।
बड़े-बड़े बलवान,झरिन जस बोइर पाके।
बड़ अँइठाहा डोर, टूटथे खाके झटका,
गाल फुलाना छोंड़, सीख लन हँसी-ठिठोली।
रंग मया के घोर,भिंजो दे हिरदे-चोली।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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: रंग -बहार
(दोहा छंद )
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आनी -बानी रंग के, सबो डहर भरमार l
गाँव -शहर मा छाय हे, होली रंग बहार ll
बैर भाव बिसराय के, होली हरे तिहार l
दया -मया के रंग ला, सबके उप्पर डार ll
पीला -नीला अउ हरा, किसिम -किसिम के रंग l
रंगव होली रंग मा, मनखे -मनखे संग ll
होली के त्यौहार हा,सुग्घर संस्कृति अंग l
दुख -पीरा ला टारके, मन मा भरय उमंग ll
कमलेश कुमार वर्मा
छंद के छ
सत्र -9
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विष्णु पद छन्द गीत- फागुन आगे (२४/०२/२०२३)
फागुन आगे मस्ती छागे, खुशी मनावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
होली के पावन तिहार हा, मन ला भावत हे ।
लाल गुलाबी हरियर पिॅंवरा, रंग लगावत हे ।।
भर- भरके मारव पिचकारी, घोरव लावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
फाग गीत हा बने सुहावय, तीर बलावय गा ।
हमर गाॅंव के गोरी नारी, बड़ मुस्कावय गा ।।
ढोल नॅंगाड़ा गड़वा बाजा, बने बजावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
छोड़व इरखा द्वेष कपट ला, ये समझावत हे ।
जिनगी ला हॅंस के जीये बर, घलो सिखावत हे ।।
कुमता जाही सुमता आही, राह बनावव जी ।
आवव जुरमिल के सॅंगवारी, नाचव गावव जी ।।
ओम प्रकाश पात्रे "ओम "
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मनहरण घनाक्षरी
डारा पाना डोलत हे,हाॅस हाॅस बोलत हे
चारो कोती खुशी छागे,बसंत बहार मा ।
लाली लाली टेसू फूले , बगीया मा फूल खिले
फूल देख मन भागे,बसंत बहार मा।
कोयली कुहू कुहके,चिरई खूब चहके
फाग गीत मीठ लागे,बसंत बहार मा।
हरियर खेती हवै ,भवरा मगन हवै
आमा डारा मौर आगे,बसंत बहार मा ।
लिलेश्वर देवांगन
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झन बिगाड़ होली मा बोली- गीत(चौपाई छंद)
चिल्लाथस बड़ होली होली, लोक लाज के फाटक खोली।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
मया पिरित के ये तिहार मा, द्वेष रहे झन तीर तार मा।
बार बुराई होली रचके, चल गिनहा रद्दा ले बचके।।
उठे कभू झन सत के डोली, पथ चतवार असत ला छोली।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
बजा नँगाड़ा झाँझ मँजीरा, नाच नाच दुरिहा दुख पीरा।
समा जिया मा सब मनखे के, दया मया नित ले अउ दे के।
छीच मया के रँग ला घोली, बना बने मनखे के टोली।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
एखर ओखर खाथस गारी, अबड़ मताथस मारा मारी।
भाय नही कोनो हर तोला, लानत हे अइसन रे चोला।।
दारू पानी गाँजा गोली, गटक कभू झन मिल हमजोली।।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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