सवैया छन्द - अरुण कुमार निगम
किसान – १ (सुमुखी सवैया)
किसान उगाय तभे मिलथे , अन पेट भरे बर ये जग ला।
अजी सुध-चेत नहीं इनला, धनवान सबो समझें पगला।
अनाज बिसा सहुकार भरे खलिहान , किसान रहे कँगला ।
सहे अनियाय तभो बपुरा , नइ छोड़य ये सत् के सँग ला ।
किसान – २ (मुक्ताहरा सवैया)
किसान कहे लइका मन ला तुम नागरिहा बन अन्न उगाव ।
इहाँ अपने मन बीच बसो झन गाँव तियाग विलायत जाव ।
मसीन बरोबर लोग उहाँ न दया न मया न नता न लगाव।
सबो सुख साधन हे इहिंचे धन - दौलत देख नहीं पगलाव ।
किसान – ३ (वाम सवैया)
किसान उठावय नागर ला अउ जोतय खेत बिना सुसताये ।
कभू बिजरावय घाम कभू अँगरा बरसे तन-खून सुखाये ।
तभो नइ मानय हार सदा करमा धुन गा मन-मा मुसकाये ।
असाढ़ घिरे बदरा करिया बरखा बरसे हर पीर भुलाये।
किसान – ४ (लवंगलता सवैया)
किसान हवे भगवान बरोबर चाँउर दार गहूँ सिरजावय ।
सबो मनखे मन पेट भरें गरुवा बइला मन प्रान बचावय।
चुगे चिड़िया धनहा-दुनका मुसुवा खलिहान म रार मचावय ।
सदा दुख पाय तभो बपुरा सब ला खुस देख सदा हरसावय।
रचना - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग , छत्तीसगढ़
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हरिगीतिका छन्द - जगदीश "हीरा" साहू
*किसान के मन के पीरा*
कर मेहनत दिनरात जे, उपजाय खेती धान के।
सेवा करे परिवार मिल, धरती अपन सब मान के।।
समझे जतन पइसा रखे, हँव बैंक मा वो सोंचथे।
मिलके सबो रखवार मन, गिधवा बने सब नोंचथे।।1।।
धोखाधड़ी कर बैंक ले, पइसा निकाले छल करे।
धिक्कार वो बइमान ला, तन मा अबड़ कीरा परे।।
नेतागिरी करवात हे, झन जाँव कहिके जेल वो।
बइमान मन के राज मा, अड़बड़ करत हे खेल वो।।2।।
देखत हवय भगवान सब, करनी करम के फल दिही।
नइ धन रहे बइमान के, आये हवय जस चल दिही।।
मानुस जनम बदनाम कर, दुख भोग जिनगी बीतही।
हारत हवय सच हा भले, सुन एक दिन वो जीतही।।3।।
रचना - जगदीश "हीरा" साहू
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(किसान दिवस विशेष )
मनहरण घनाक्षरी - चोवा राम "बादल "
"किसान अउ किसानी"
काँटा खूँटी बिन बान, काँद दूबी छोल चान, डिपरा ला खंती खन, खेत सिरजाय जी ।
घुरुवा के खातू पाल, सरे गोबर माटी चाल , राखड़ ल बोरी बोरी, छींच बगराय जी ।
बिजहा जुगाड़ करे, बोरी बोरा नाप धरे, नाँगर सुधार करे , जोखा ल मढ़ाय जी ।
सबो के तैयारी करे , राहेर ओन्हारी धरे ,बरखा असाड़ के ला , किसान बलाय जी । 1 ।
रिमझिम पानी गिरे, कभू तेज कभू धीरे, गरजत बादर हा, भारी डरुवाय जी ।
चमक चमक चम ,बिजुरी के झमाझम , सुपाधार पानी गिरे , डोली भर जाय जी ।
नाँखा मूँही फोर फार, नरवा म बरो धार , बिजहा छिंचाय तेला , सरे ल बँचाय जी ।
दूबारा तिबारा छींचे , कोपर म घलो इँचे , देखत किसान श्रम , श्रम सरमाय जी ।2 ।
देखत बियासी आगे ,बाढ़े धान खुशी लागे , चभरंग चभरंग , नाँगर चलाय जी ।
लेंझा चाले धान खोंचे, बदौरी ल दाब दाब ,साँवा बन नींदे चूहा ,कनिहा नँवाय जी ।
यूरिया पोटाश डार , करगा ला नींच नींच , कीरा फाँफा मारे बर , दवई छिंचाय जी ।
पाके धान लुए लाने ,मिंज कूट कोठी भरे, भुईयाँ के भगवान , किसान कहाय जी। 3 ।
रचना - चोवा राम "बादल "
हथबंद (छग)
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किसान दिवस विशेष
गीतिका छंद मा एक गीत - आशा देशमुख
हाँथ जोड़व मुड़ नवावँव ,भूमि के भगवान हो।
गुन तुँहर कतका गिनावँव ,कर्म पूत किसान हो।
हाँथ मा माटी सनाये ,माथ ले मोती झरे।
सब किसनहा सुन तुँहर ले ,अन्न के कोठी भरे।
धूप जाड़ा शीत तुँहरे ,मीत संगी जान हो।
गुन तुँहर कतका गिनावँव ,भूमि पूत किसान हो।1।
हे जगत के अन्नदाता ,मेटथौ तुम भूख ला।
मेहनत कर रात दिन फेंकव अलाली ऊब ला।
नीर आँखी मा लबालब ,सादगी पहिचान हो।
गुन तुँहर कतका गिनावँव ,कर्म पूत किसान हो।2।
आज तुँहरे दुख सुनैया ,नइ मिलय संसार मा।
सब अपन मा ही लगे हे ,एक होय हज़ार मा।
ये जगत के आसरा हव ,दीन जीव मितान हो।
गुन तुँहर कतका गिनावँव,भूमि पूत किसान हो।3।
रचना - आशा देशमुख
कोरबा छतीसगढ़
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रोला छंद - दिलीप कुमार वर्मा
"किसान"
1
कहाँ किसानी खेल,परे जाँगर ला पेरे।
कतको हपट कमाय,तभो दुख भारी घेरे।
दिन-दिन हो बदहाल,सोर कोनो नइ लेवय।
कइसे करय किसान,करज काला ओ देवय।1।
2
खरचा रुपिया होय,मिलत हे बारा आना।
घर कइसे चल पाय,रहे बस आना जाना।
भुइया के भगवान,अन्न के दाता कहिथे।
कोनो जान न पाय, किसनहा का-का सहिथे।2।
3
कभू बाढ़ आ जाय,फसल जम्मो बह जाथे।
सूखा परथे मार,खेत परिया रह जाथे।
दूनो ले बँच जाय,त कीरा अबड़ सताथे।
खड़े फसल बरबाद,रहे कीरा सब खाथे।3।
4
जतका पावय धान,लान कोठी भर देथे।
सुरही कहाँ बँचाय,मजा मुसुवा तक लेथे।
कइसे गढ़ दे भाग,विधाता तही बतादे।
बनही कोन किसान,आज मोला समझादे।4।
5
दुख मा रहे किसान, तभो ले हाँसत रहिथे।
भुइया के भगवान, तभे सब ओला कहिथे।
जग के पालन हार,अन्न ला सदा उगाथे।
भरके सब के पेट,बड़ा सुख ओ हर पावय।5।
रचना - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़
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घनाक्षरी - ज्ञानुदास मानिकपुरी
(किसान दिवस विशेष)
नाँगर बइला साथ,चूहय पसीना माथ
सुआ ददरिया गात,उठत बिहान हे।
खाके चटनी बासी ला,मिटाके औ थकासी ला
भजके अविनासी ला,बुता मा परान हे।
गरमी या होवय जाड़ा,तीपे तन चाहे हाड़ा
मूड़ मा बोह के भारा,चलत किसान हे।
करजा लदे हे भारी,जिनगी मा अँधियारी
भूल के दुनियादारी,होठ मुसकान हे।
रचना - ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम - चंदैनी, कबीरधाम, छत्तीसगढ़
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घनाक्षरी छन्द - दुर्गाशंकर इजारदार:
*किसान दिवस विशेष*
घाम जाड़ बरसात, सबो दिन मुसकात,
करम करत हावै, देख ले किसान जी,
करम ल भगवान, करम धरम मान,
पसीना ला अपन तो, माने हे मितान जी,
सहि के जी भूख प्यास, रहिथे जी उपवास,
अन्न उपजाय बर , देथे वो धियान जी,
सनिच्चर इतवार, नइ चिन्हे दिनवार,
भुइंया के सेवा बर, उठथे बिहान जी !
रचना - दुर्गाशंकर इजारदार
सारंगढ़, छत्तीसगढ़
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सरसी छन्द - मीता अग्रवाल
माटी के कोरा मा उपजे ,किसम किसम के धान।
अन्न-धन्न भंडार भरय जी,मिहनत करय किसान।।
सुरुज देव ला हाथ जोड़ के,विनती करय दुवार ।
करम प्रधान बनावव मोला, नीक लगय संसार ।।
उठ भिनसरहा फाँदत जावय,बइला गाड़ी खेत।
तत तत तत तत बइला हाँकय ,धरे हाथ मा बेंत ।।
काम बुता कर बासी खावय,तनिक अकन सुसताय।
खेत ख़ार ला बने जतन के,संझा बेरा आय।।
आघू ले जतनात हवय अब ,खेत ख़ार के काम।
निंदई गुड़ई करय कटाई , मशीन दे आराम।।
अंतस चिंता बड़ बाढत हे,नवा तरक्की द्वार ।
होवत हे कमती पशुधन अब , चलत विकास बयार।।
रचना - मीता अग्रवाल
रायपुर, छत्तीसगढ़
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कज्जल छंद-श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
किसान
भुँइया के बेटा किसान।
खेती मा देथस धियान।
उपजाथस सोनहा धान।
कारज हे सबले महान।
धन धन जगपालक किसान।
अंतस मा नइहे गुमान।
तोर दया जिनगी परान।
तहीं असल देश के मान।
जब ले तैं उपजाय अन्न।
नइहे जी कोनो विपन्न।
करे कड़ाही छनन छन्न।
खाके जन मन हे प्रसन्न।
रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कवर्धा छत्तीसगढ़
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सरसी छंद - राम कुमार साहू
करजा बोड़ी मूँड़ लदाये,रोवय देख किसान।
चिंता मन मा एके रहिथे,कइसे होही धान।।
खातू कचरा महँगा होगे,मिलय नही बनिहार।
टोरत जाँगर खूब कमाये,बिन पानी बेकार।।
ठोम्हा पैली बिरता होगे,पहुँचय सेठ दुकान।
तब ले करजा कम नइ होवय,सन्सो करय किसान।।
बेंचय खेती धनहा भर्री, करजा नइ बड़हाय।
पतरी पतरी सबो सिरागे,मति ओखर छरियाय।।
सिधवा मनखे सुन नइ पावय,ताना पीरा ताय।
कोनों फाँसी डोरी झूलय,मँहुरा जहर ल खाय।।
रचना - राम कुमार साहू
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दोहा छन्द - पोखन लाल जायसवाल
किसान
लाँघन कोनो मत रहय , चिंता करय किसान ।
लहू पछीना छीत के , उपजावय सब धान ।।
भरथे सबके पेट ला , करथे लाँघन काम ।
चिंता रहिथे खेत के , करय नहीं आराम ।।
जाड़ सीत अउ घाम मा , जाँगर टोर कमाय ।
बरसा बादर मा घला , तन मन अपन लगाय ।।
करजा बोड़ी बाढ़गे ,बाढ़े बेटी हाय ।
कतका होही धान हा , चिंता हवय समाय ।।
गहना ला गहना धरे , ताकत साहूकार ।
करजा देख खवाय का ,भूखन हे परिवार।।
करय भरोसा धान के , मिलही बढ़िया दाम ।
धनहा डोली बाँचही , सुख पाहूँ सुखराम ।।
रचना - पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह पलारी, छत्तीसगढ़