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Saturday, November 18, 2023

देवारी तिहार विशेष

 देवारी तिहार विशेष


: ईसर-गौरा बिहाव-- अमृतध्वनि छंद 


राजा ईसर देव ला, सुग्घर करलव साज ।

आये हावय शुभ घड़ी, नाचव गावव आज ।।

नाचव गावव, आज सबो मिल, आरा-पारा ।

हवय नेवता, शुभ बिहाव के, झारा-झारा ।।

गुदुम मोहरी, बाजत हावय, गढ़वा बाजा ।

गौरा रानी,  संग बिहाये,  ईसर राजा ।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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: शंकर छंद---- देवारी परब 


राखव घर ला लीप पोत के, परब हावय खास ।

घर- घर आही लछमी दाई, पुरन होही आस ।।

खोर-गली के करव सफाई, चउँक सुग्घर साज ।

सुख सुम्मत धर संगे आही, बनाही सब काज ।।


बनही घर-घर लड्डू मेवा, खीर अउ पकवान ।

ध्यान लगाके पूजा करिहव, मिलय जी वरदान ।।

धन दौलत ले कोठी भरही,  लगाही भव पार ।

देवारी के परब मनावव,  होय जगमग द्वार ।।


नरियर-फूल चढ़ावव संगी, जोर दूनों हाथ ।

किरपा करही लछमी दाई, नवावव जी माथ ।।

लाही जग मा उजियारी ला, भगाही अंधियार ।

जम्मों जुरमिल खुशी मनावव, आय पावन वार ।।


मुकेश उइके 'मयारू'

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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पावन पर्व देवारी के आप मन ला हार्दिक बधाई


गोवर्धन पूजा 

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वन परवत धरती के रक्षा, गोवर्धन के पूजा आय।

गौ माता के सोर-सरेखा, इही हमर संस्कार कहाय।।

गौ माता के अंग-अंग मा,सबो देव के हावय वास।

अमरित कस गौ गोरस देथे,गोबर खेती बर हे खास।।

जंगल हरियर चारा देथे,परवत भरे रतन के खान।

रुख-राई आक्सीजन देके, हमर बँचाथे सिरतो प्रान।।

द्वापर जुग मा गिरिधारी हा, देइस सब ला निर्मल ज्ञान।

जेन हमर नित पालन करथे, वो भुँइया हे सरग समान।।

मरम धरम के कृष्ण-कन्हैया, ब्रजवासी ला रहिस बताय।

छोंड़ इंद्र के मान-गउन ला, धरनी के पूजा करवाय।।

बिपदा ला मिलजुल के टारौ, कहिस सबो ला वो समझाय।

छाता कस परवत ला टाँगिन, जबर एकता के बल पाय।।

एक बनन अउ नेक बनन हम, भेदभाव ला देवन त्याग।

तभे जागही ये कलजुग मा, भारत माता के तो भाग।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

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देवारी

पाँचे दिन के आय तिहार।टुकुर -टुकुर सब करय निहार।। 

साफ-सफाई मा दय ध्यान।आही कइके नवा बिहान।। 


लिपई-पुतई जाला झार। पाटय खचका डिपरा पार।। 

कचरा कोरा कहूँ गँजाय। घुरवा मा फेके बर जाय।। 


सजे रहय जी हाट बजार। लकठावय जब इहाँ तिहार।। 

टुकनी झउँहा सुपा बिसाय। नवा-नवा कपड़ा सिलवाय।। 


गली खोर हर नीक उजास। फसल देखके बाढ़य आस।। 

काँदी कुस्सा करके साफ।बेरा  चाहे होय खिलाफ।। 


लइकन मन हा बड़ इतराय।देख फटाका बर उमियाय।। 

बसे रहय जे दूसर गाँव। आय छोड़ के अपने ठाँव।। 


राउत गहिरा मन सकलाय।बाजा साजे बर गा जाय।। 

केंवट मड़ई घलो बनाय।सुग्घर तोरन ताव सजाय।। 


अरे-ररे रे भाई मोर। राउत गहिरा पारय शोर।। 

अन-धन सन लक्ष्मी के वास। घर बन लागय बने उजास।। 


अइसन हावय हमरो रीत। गूँजय गौरा गौरी गीत।। 

सुमता के गा आय तिहार। मीन मेख सन भगे विकार।। 


पहिली दिन धनतेरस आय। तेरह दियना सबो जलाय।। 

धनवंतरि तब खुश हो जाय। सेहत बर अमरित बरसाय।। 


दूसर दिन चौदस कहलाय। कृपा देव यम के सब पाय।। 

नरक जाय ले उही बचाय। नहा धोय जे पूज मनाय।। 


तीसर दिन लक्ष्मी घर आय। दीप देवारी मया लुटाय।। 

अंधकार ला दूर भगाय। माता लक्ष्मी करय सहाय।। 


अन्न कूट चौथा दिन आय। नवा अन्न के भोग चढ़ाय।। 

कृष्णा के जयकार लगाय।गोवर्धन ला रिहिस उठाय।। 


पंचम भाई दूज कहाय। बहिनी भर -भर मया लुटाय।। 

भाई बर यम ले उपहार।जीयँय सालों साल हजार।। 


बाती दियना तेल मिंझार। तभे भगाथे गा अँधियार।। 

एक अकेल्ला कहाँ उबार। मिलके जलथे तब उजियार।।

विजेंद्र कुमार वर्मा

नगरगाँव (धरसीवाँ)

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1,देवारी तिहार-घनाक्षरी


कातिक हे अँधियारी,आये परब देवारी।

सजे घर खोर बारी,बगरे अँजोर हे।

रिगबिग दीया बरे,अमावस देख डरे।

इरसा दुवेस जरे,कहाँ तोर मोर हे।

अँजोरी के होये जीत,बाढ़े मया मीत प्रीत।

सुनाये देवारी गीत,खुशी सबे छोर हे।।

लड़ी फुलझड़ी उड़े,बरा भजिया हे चुरे।

कोमढ़ा कोचई बुड़े,कड़ही के झोर हे।।


बैंकुंठ निवास होही, पाप जम्मों नास होही।

दीया बार चौदस के, चमकाले भाग ला।

नहा बड़े बिहना ले, यमराजा ला मनाले।

व्रत दान अपनाले, धोले जम्मों दाग ला।

ये दिन हे बड़ न्यारी, कथा कहानी हे भारी।

जीत जिनगी के पारी, जला द्वेष राग ला।

देव धामी ला सुमर, बाढ़ही तोरे उमर।

पा ले जी भजन कर, सुख शांति पाग ला।


आमा पान के तोरन, रंग रंग के जोरन।

रमे हें सबे के मन, देवारी तिहार मा।

लिपाये पोताये हवे, चँउक पुराये हवे।

दाई लक्ष्मी आये हवे, सबके दुवार मा।

अन्न धन देवत हे, दुख हर लेवत हे।

आज जम्मों सेवक हे, बहे भक्ति धार मा।

हाथ मा मिठाई हवे, जुरे भाई भाई हवै।

देवत बधाई हवै,गूँथ मया प्यार मा।


गौरा गौरी जागत हे,दुख पीरा भागत हे।

बड़ निक लागत हे,रिगबिग रात हा।।

थपड़ी बजा के सुवा,नाचत हे भौजी बुआ।

सियान देवव दुवा,निक लागे बात हा।।

दफड़ा दमऊ बजे,चारों खूँट हवे सजे।

धरती सरग लगे,नाँचे पेड़ पात हा।।

घुरे दया मया रंग,सबो तीर हे उमंग।

संगी साथी सबो संग,भाये मुलाकात हा।।


गौरा गौरी सुवा गीत,लेवै जिवरा ल जीत।

बैगा निभावय रीत,जादू मंतर मार के।।

गौरा गौरी कृपा करे,दुख डर पीरा हरे।

सुवा नाचे नोनी मन,मिट्ठू ल बइठार के।।

रात बरे जगमग,परे लछमी के पग।

दुरिहाये ठग जग,देवारी ले हार के।।

देवारी के देख दीया,पबरित होवै जिया।

सोभा बड़ बढ़े हवै,घर अउ दुवार के।


मया भाई बहिनी के, जियत मरत टिके।

भाई दूज पावन हे, राखी के तिहार कस।

उछाह उमंग धर, खुशी के तरंग धर।

आये अँगना मा भाई, बन गंगा धार कस।

इही दिन यमराजा, यमुना के दरवाजा।

पधारे रिहिस हवै, शुभ तिथि बार कस।

भाई बर माँगे सुख, दुख डर दर्द तुक।

बेटी माई मन होथें, लक्ष्मी अवतार कस।


कातिक के अँधियारी, चमकत हवै भारी।

मन मोहे सुघराई, घर गली द्वार के।।

आतुर हे आय बर, कोठी मा समाय बर।

सोनहा सिंगार करे, धान खेत खार के।।

सुखी रहे सबे दिन, मया मिले छिन छिन।

डर जर दुख दर्द, भागे दूर हार के।।

मन मा उजास भरे, सुख सत फुले फरे।

गाड़ा गाड़ा हे बधाई, देवारी तिहार के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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2, कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।

मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।

गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।

करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।

लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।

दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।


भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।

देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।

बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।

आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।

बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।

देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।


लेवव  जय  जोहार  जी,बॉटव  मया   दुलार।

जुरमिल मान तिहार जी,दियना रिगबिग बार।

दियना रिगबिग बार,अमावस हे अँधियारी।

कातिक पबरित मास,आय  हे  जी देवारी।

कर आदर सत्कार,बधाई सबला देवव।

मया  रंग  मा रंग,असीस सबे के लेवव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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3,मत्तग्यंद सवैया- देवारी


चिक्कन चिक्कन खोर दिखे अउ चिक्कन हे बखरी घर बारी।

हाँसत  हे  मुसकावत  हे  सज  आज  मने  मन  गा  नर नारी।

माहर  माहर  हे  ममहावत  आगर  इत्तर  मा  बड़  थारी।

नाचत हे दियना सँग देखव कातिक के रतिहा अँधियारी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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4,बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


सबे खूँट देवारी, के हे जोर।

उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।


छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।

किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।


चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।

गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।


काँटा काँदी कचरा, मानय हार।

मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।


जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।

दया मया मनखे मा, हे भरपूर।


चारो कोती मनखे, दिखे भराय।

मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।


बनठन के सब मनखे, जाय बजार।

खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।


पुतरी दीया बाती, के हे लाट।

तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।


लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।

दीया बाती वाले, देख बलाय।


कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।

नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।


जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।

टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।


हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।

खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।


पहली दिन घर आये, श्री यम देव।

मेटे सब मनखे के, मन के भेव।


दै अशीष यम राजा, मया दुलार।

सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।


तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।

पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।


दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।

सब संकट हा भागे, सुबे नहात।


नहा खोर चौदस के, देवय दान।

नरक मिले झन कहिके, गावय गान।


तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।

धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।


एक मई हो जावय, दिन अउ रात।

अँधियारी ला दीया, हवै भगात।


बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।

चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।


बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।

दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।


फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।

चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।


होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।

गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।


दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।

अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।


पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।

बहिनी मनके बोहै,भाई भार। 


कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।

देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।


देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।

देख देख के नाचे, तनमन मोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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कज्जल छंद- देवारी


मानत हें सब झन तिहार।

होके मनखे मन तियार।

उज्जर उज्जर घर दुवार।

सरग घलो नइ पाय पार।


बोहावै बड़ मया धार।

लामे हावै सुमत नार।

बारी बखरी खेत खार।

नाचे घुरवा कुँवा पार।


चमचम चमके सबे तीर।

बने घरो घर फरा खीर।

देख होय बड़ मन अधीर।

का राजा अउ का फकीर।


झड़के भजिया बरा छान।

का लइका अउ का सियान।

सुनके दोहा सुवा तान।

गोभाये मन मया बान।


फुटे फटाका होय शोर।

गुँजे गाँव घर गली खोर।

चिटको नइहे तोर मोर।

फइले हावै मया डोर।


जुरमिल के दीया जलायँ।

नाच नाच सब झन मनायँ।

सबके मन मा खुशी छायँ।

दया मया के सुर लमायँ।


रिगबिग दीया के अँजोर।

चमकावत हे गली खोर।

परलव पँवरी हाथ जोर।

लक्ष्मी दाई लिही शोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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आप सबो ला देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई



मतदान जागरुकता विशेष

 मतदान जागरुकता विशेष



मीता अग्रवाल: कुण्ड़लिया छंद

मतदाता बड़का हवे, लोकतंत्र के नींव। 

जिम्मेदारी हे बड़े, अंतस जागय जीव। 

अंतस जागय जीव, सबों बर चुनई छुट्टी। 

पावन बड़ त्यौहार,परब के पीवव घुट्टी। 

गुनव मधुर के बात, ददा-दाई अस नाता। 

लोकतंत्र दे मान,वोट दे हर मतदाता।।

रचनाकार-

डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग

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मतदान जागरूकता पर दोहा छंद


सबो काम ला छोड़ के, दे बर जाहू वोट। 

कखरो भपका मा इहाँ, लेहू झन गा नोट।। 


लोभ लुभावन ले बचव, मन मा रख ईमान। 

झूठ लबारी मारथे, तेकर कर पहचान।। 


जनता के सेवक चुनव, जेहर लगे सुजान। 

इही समझ के आज तो, करहू  गा मतदान।। 


एक वोट हे कीमती, होय जीत अउ हार। 

सावचेत हो जाव जी, मिले हवय अधिकार।। 


लोकतंत्र जिंदा रहय, बने भली सरकार। 

मत की कीमत जान लो,करके सोच विचार।। 

विजेंद्र वर्मा

 नगरगाँव (धरसीवाँ)

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मनहरण घनाक्षरी


मतदान अधिकार, हमर हरे गा मान,

आहे चुनाव चलव,मतदान  ड़ार दौ।


नेता बने छाँट लेहू,तभे तुम वोट देहू,

लबरा छटकाहा ला,तीर कोती टार दौ।


नेता जन सेवक हो, गरीब के साथी होय,

संग मिल चलैया हो,उही ला  बिचार दौ।


झन कहूँ भेट लव,साड़ी दारू फेंक दव, 

समझदार जानहू ,तेला पतवार दौ

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दौड़ -दौड़ अभी आही,जीत के मुहूँ लुकाही।

धोखा झन देवे वोहा, बने पहिचान गा।


क्षेत्र के विकास करे,दुख पीरा आके हरे,

 सुने बात सबके ला,देबो मतदान गा।


हमर अधिकार हे,मतदान करे बर,

चलो सब जुर मिल,अघुवा ला जान गा।


सुनता बँधा के चलो,दीदी भैया गा निकलो,

बने कस नेता रहे,चुनना हे ठान गा।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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दुर्मिल सवैया 

112,112,112,112,

          112,112,112,112


घट राम बसे जब गीत लिखौं, 

सब भाव भरे मन मीत लिखौं। 

नव छंद बने जब हास्य लिखौं, 

जस पावन प्रीतम प्रीत लिखौं।। 

पिय आवत ही दुख जावत हे 

हिरदे अँगना जग जीत लिखौं। 

जब अंतस भीतर सून नहीं 

घर द्वार सजे अस रीत लिखौं।। 


सुमित्रा शिशिर

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#मतदान-दिवस


जइसे रोज बिहान जरूरी

निर्मल जल इस्नान जरूरी

जीये बर जलपान जरूरी

वइसे हे मतदान जरूरी 


बोले बिना बयान करे बर

मनमाफिक निर्मान करे बर

लोकतंत्र के मान करे बर

जाना हे मतदान करे बर


खेत गहूँ अउ धान जरूरी

हाट-बजार दुकान जरूरी

जइसे सब संस्थान जरूरी

वइसे हे मतदान जरूरी 


काबर कखरो बात म आबो

मत देये बर खच्चित जाबो

अपन पसन के बटन दबाबो 

मतदाता के फर्ज निभाबो


जइसे अक्षर ज्ञान जरूरी

कपड़ा मान मकान जरूरी 

मनखे मुँह मुस्कान जरूरी 

वइसे हे मतदान जरूरी


-सुखदेव सिंह "अहिलेश्वर"

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*मतदान महादान*


दान करौ शुभ महादान हे, करौ प्रथम मतदान।

लोकतंत्र के बनौ पहरुआ, करौ राष्ट्र उत्थान।।

संविधान हर देहे तुँहला,लाखो के अधिकार।

गढ़ौ भाग ला अपन हाथ मा,चुनव बने सरकार।।

सोन हरौ तुम नोहव कचरा, कीमत खुद के जान।।

दान करौ शुभ महादान हे.....


काम बुता ला छोड़ अभी कर,सबले बड़का काम।

भ्रष्टाचार बने हे बैरी,लगही तभे लगाम।।

एक वोट में काय बिगड़ही,सोंच कभू झन यार।

बूंद बूंद में भरे घड़ा हा,बने बूंद हा धार।।

लोकतंत्र के तिहार पावन,छोड़ अपन पहिचान।।

दान करौ शुभ महादान हे.....


जान मछरिया गरी फेंकही,झाँसा मा झन आव।

जेन करै जी भला देश के,ओखर करौ चुनाव।।

डार अपन मत निर्भय होके, लालच बिना दबाव।

अपन वोट के ताकत समझौ,आही तब बदलाव।।

तुँहर समस्या तुँहर तपस्या, होही सबो निदान।।

दान करौ शुभ महादान हे.....


लिहव दान के बदला मा कुछ,हरै जान लव पाप।

कौंड़ी मोल बिकत हव काबर,बन मूरख चुपचाप।।

कुकरा मछरी दारू लुगरा, कै दिन पुरही नोट।

अपन वोट ले चोट करौ चुप, मन मा जेखर खोट।।

भागीदारी अपन निभावव, बनही देश महान।।

दान करौ शुभ महादान हे.......


    🙏🙏🙏🙏

नारायण प्रसाद वर्मा चंदन

ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा(छ.ग.)

       7354958844

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Thursday, November 2, 2023

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस विशेष

छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के हार्दिक बधाई।

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एक नवम्बर हे बड़ पावन, कातिक चलौ नहाबो जी।

राज बनिस छत्तीसगढ़ संगी, आवव खुशी मनाबो जी।।

धान कटोरा छलकत हाबय,छाये हाबय हरियाली।

इंद्रधनुष के रंग सहीं जी, बगरे हाबय खुशहाली।।

महानदी के निरमल पानी,गावत सुवा ददरिया हे।

अरपा पैरी सोंढुर हसदो, देवत टेही बढ़िया हे।।

घन जंगल बस्तर के हरियर,तीरथगढ़ देखौ झरना।

दंतेश्वरी मातु के दरशन, करलव भइया हे तरना।।

हे गिरौद शिवरीनारायण, राजिम सिरपुर खल्लारी।

तुरतुरिया मल्हार इहाँ हें, जिंकर महिमा हे भारी।।

कौशिल्या माता के मइके, भाँचा राम कहाये हे।

बालमिकी जी इहें रहिस जे, रामायण सिरजाये हे।।

तिज तिहार अउ नेंग जोग हा,नइये कहूँ इहाँ जइसे।

आथे परब छेरछेरा तब, धान दान देथँन कइसे।।

बना ठेठरी खुरमी चीला,फागुन खूब मनाथन जी।

फरा बरा संँग गुलगुल भजिया, बाटँ बाँट के खाथन जी।।

गिल्ली डंडा भौंरा बाँटी,रेस टीप जग जाहिर हे।

फुगड़ी पित्तुल खुड़वा खो खो,खेले लइका माहिर हे।।

टोंड़ा ककनी गर के सूँता, खिनवा फुल्ली करधन हे।

छत्तीसगढ़हिन महतारी के, सुंदर तन उज्जर मन हे।।

सुमता के रसता मा चलथें, सबो इहाँ के रहवासी।

सिधवा जाँगर पेर कमइयाँ, खा लेथें चटनी बासी।।

अत्याचारी संग लड़े बर,हाबय लोहा कस छाती।

अउ मितवा बर लिखथे रहिथन, दया मया के नित पाती।।

आवव संगी छत्तीसगढ़ ला, मिलजुल सरग बनाबो जी।

एक नवम्बर हे बड़ पावन,आज तिहार मनाबो जी।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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महतारी छत्तीसगढ़, हमर गरब अभिमान।

छत्तीसगढ़ी गोठ हा, दया मया पहिचान।।

दया मया पहिचान, रखे हें छत्तीसगढ़िया।

धान मुकुट मुड़ तोर, फबत हे सुग्घर बढ़िया।।

खेत खार खलिहान, हवय महकत फुलवारी।

वंदन हे कर जोर, मयारू ओ महतारी।।


सपना पुरखा के सँजो, छत्तीसगढ़ गढ़ राज।

काम मिले हर हाथ ला, आवय नवा सुराज।।

आवय नवा सुराज, मिटे दुख के अँधियारी।

गावँय सुमता गीत, साथ मिल नर अउ नारी।।

भाखा के सम्मान, मान लौ सब झन अपना।

पूरा कर लौ आज, हमर पुरखा के सपना।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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*छत्तीसगढ़ी दाई* (16/13)


छत्तीसगढ़ी भाषा सुग्घर, 

                        दाई तोर दुलार हे । 

गुरतुर बोली मँदरस जइसन, 

                   बरसत मया फुहार हे।


आवव संगी भाई जुरमिल, 

                        गुन माटी के गाव जी। 

बनके सबो किसान नँगरिहा,

                    अन्न सोन उपजाव जी।।

करमा-सुआ-ददरिया सुग्घर,

                          गली-गली गोहार हे।

गुरतुर बोली मँदरस................


बगरत हावै चारों कोती,

                           दाई के ईमान हा । 

एखर सेती बाढ़त हावै,

                    दुनिया मा पहिचान हा।।

महतारी भाखा मा सुन लौ,

                          जम्मों ला जोहार हे।

गुरतुर बोली मँदरस...............


गंगा कस पबरित भाखा हे, 

                         एखर गुन गायेंव मँय।

ननपन ले सुन-सुन के भइया, 

                     ज्ञान ज्योति पायेंव मँय।।

मान मिलत सम्मान मिलत हे,

                     जग मा कृपा तुम्हार हे।

गुरतुर बोली मँदरस................


रचनाकार:-

बोधन राम निषादराज"विनायक"

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सरसी छंद गीत---- छत्तीसगढ़ महतारी


देखव छत्तीसगढ़ बने ले, मिलिस नवा पहिचान ।

महतारी के मान बढ़े हे,  सुनले मोर मितान ।।


किसम-किसम के लोक गीत हे, रोज मया बगराय ।

करमा-पंथी सुवा-ददरिया, सबके मन ला भाय ।।

एकर महिमा हावय भारी, कइसे करँव बखान ।

महतारी के मान बढ़े हे,  सुनले मोर मितान ।।


धनहा-डोली टिकरा टाँगर, धान पान लहराय ।

होत बिहिनिया चिरई-चिरगुन, गीत मया के गाय ।।

बोली भाखा मीठ इहाँ के, मीत मयारू जान ।

महतारी के मान बढ़े हे,  सुनले मोर मितान ।।


आनी-बानी जुरमिल जम्मों, मानँय तीज तिहार ।

होली-अक्ती परब हरेली,  हावय तीजा सार ।

लोहा-टीना चूना-पखरा, एकर भरे खदान 

महतारी के मान बढ़े हे,  सुनले मोर मितान ।।


अंगाकर अउ गुरहा बजिया, सुनके टपकय लार ।

बोहावत हे महानदी अउ, अरपा पैरी धार ।

चंदन कस माटी हे एकर, पाये जी बरदान ।

महतारी के मान बढ़े है,  सुनले मोर मितान ।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा( छ.ग.)

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सार छंद 



महिमा तोरे महिमा गावँव, छत्तीसगढ़ महतारी।

मँय आरती उतारौं दाई, धरे सोनहा थारी।


मया पिरीत मा सबले आगू,तोरे बेटी बेटा।

दुश्मन बर आगी बन जाथें,परही कनो सपेटा।

जुरमिल सबो तिहार मनाथन,होरी अउ देवारी।

मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।


सुवा ददरिया पंथी नाचा,सबके मन ला मोहे।

राउत नाचा साजू पहिरे,पंख मयूरा सोहे।

छत्तीसगढ़ी बोली भाखा,लागे जस महतारी।

मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।


हरियर लुगरा पहिरे दाई, कनिहा करधन सोहे।

माथे मुकुट धान के बाली,मन किसान के मोहे।

पाँव आलता बिछिया चुटकी,रुनझुन बाजे पैरी।

मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।


महानदी अउ सोंढू पैरी, तोरे चरण पखारे।

छत्तीसगढ़ी बेटा तोरे, पैंया लाग गुहारे।

दया मया बरसावत रहिबे,माता पालन हारी।

मँय आरती उतारँव दाई, धरे सोनहा थारी।।


कतका तोरे महिमा गावँव, छत्तीसगढ़ महतारी।

मँय आरती उतारँव दाई धरे सोनहा थारी।


केवरा यदु"मीरा"राजिम

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