श्री गुरुवैःनमः
गुरु पूर्णिमा विशेषांक-छंदबध्द रचनाये
(हरिगीतिका छंद)
गुरुवर करँव मँय वंदना,धरके चरन रज माथ मा।
डोंगा करें तँय पार जी,पतवार थाम्हें हाथ मा।।
गुरु मोर दाई अउ ददा,गुरु मोर तारनहार तँय।
दर्शन कराए हरि चरन,कर मोर अब उद्धार तँय।।
छाए रहिस अँधियार हा,दुनिया दिखाए आज तँय।
मन मा अँजोरी ज्ञान के,दीया जलाए आज तँय।।
तँय ज्ञान के बादर सही,बरसा कराये ज्ञान के।
जिनगी बनाये आज तँय,शिक्षा दिए निज मान के।।
करजा उबर मँय नइ सकँव,अतका तुँहर उपकार हे।
गुरु आपके आशीष ले,तो मोर घर अउ द्वार हे।।
बीतय उमर सेवा करत,तुँहरे चरन रज धार के।
मन मा रहै गुरुनाम हा,हरि छंद रस मुख डार के।।
छंदकार:-
बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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सरसी छन्द गीत
गुरू चरण के वंदन कर लव,ए ही तीरथ धाम।
हाथ जोर के कर लव संगी,पूजा आठो याम।।
गुरू ज्ञान हा तारय जग ले, करय सदा कल्यान।
ज्ञान सीख हे पावन गंगा,कर लव जी असनान।।
जपत रहौ जी ध्यान लगाके,सदा गुरू के नाम।
गुरू चरण के वंदन कर लव,ए ही तीरथ धाम।।
अपन पूत के जइसे सब ला,गुरू धरावय ज्ञान।
गुरू शरन मा जे हर जावय,बन जावय गुणवान।
परगट देवा पूजौ संगी,पखरा के का काम।
गुरू चरण के वंदन कर लव,ए ही तीरथ धाम।।
गुरू करावय जानौ भैया,असल-नकल पहिचान।
बाधा-बिपदा छिन मा टारय,मेटय मन अभिमान।।
गुरू कृपा बरसावय निशदिन,टारय दुख के घाम।
गुरू चरण के वंदन कर लव,ए ही तीरथ धाम।।
द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
बायपास रोड कवर्धा छत्तीसगढ़
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दोहा
पहिली गरु दाई ददा, सही गलत समझाय।
अपन मया के छॉंव मा, जिनगी ला सिर जाय।।
दूसर गुरु अॅंधकार ला, मेटय देके ज्ञान।
शिक्षा जोत जलाय के, सदा बढ़ावय मान।।
तीसर गुरुवर मोर जी, अपने गॉंव समाज।
रहिथे हरदम साथ मा, करे समीक्षा काज।।
चौथा गुरु परनाम हे, मन मा जेकर खोट।
करनी मोर सुधारथे, मार मार के चोट।।
सबो चरन के धूल गुरु, धरॅंव सदा मॅंय माथ।
सफल करॅंव गुरु काज ला, रहै मूड़ मा हाथ।।
किरपा कर आशीष ले, जिनगी दवय सुधार।
गुरुवर बंदी काटके, लेवय भव ले तार।।
आशा बोधन गुरु निगम, मथुरा चोवा ज्ञानु।
लहरे दिलिप जितेन्द्र गुरु, बने छंद बर भानु।।
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदा बाजार
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आल्हा
सुरुज जोत मा करँव आरती, सागर चरन पखारँव तोर।
पहिली सुमरँव तोला गुरु जी, अज्ञानी मनखे हँव घोर।।
चरन कमल मा माथ नवावँव, श्रध्दा फूल चघावँव आज।
हाथ जोर विनती हे गुरु जी, बिगड़े मोर सँवारव काज।।
निच्चट अज्ञानी मँय मनखे, तोर शरन मा गुरुवर आँव।
तोर कृपा पाये बर गुरु जी, परत हवँव मँय तोरे पाँव।।
सत के रद्दा आप बताहू, तोर भक्ति करहूँ मँय रोज।
कहूँ भटक जाहूँ ता गुरु जी, आप दिखाहू रद्दा सोज।।
धन धन हे मोर भाग गुरु जी, तोर कृपा के मिलगे छाँव।
अब तो आश इही हे मन के, जीवन भर तोरे गुन गाँव।।
*छंद साधक सत्र - 11*
अनिल सलाम
गाँव- उरैया नयापारा
तहसील- नरहरपुर
जिला- कांकेर
छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छन्द
गुरु हरथे अज्ञान ला, गुरु करथे कल्यान
गुरु के आदर नित करो, गुरु हर आय महान
गुरु हर आय महान, दान विद्या के देथे
माता-पिता समान, शिष्य ला अपना लेथे
मानो गुरु के बात, भलाई गुरु हर करथे
खूब सिखो के ज्ञान, बुराई गुरु हर हरथे।।
- जनकवि कोदूराम "दलित" (सियानी गोठ से)
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आशा देशमुख: गुरु चालीसा
दोहा
करत हवँव गुरु वंदना, चरणन माथ नँवाय ।।
भाव भक्ति मन मा धरे , श्रद्धा फूल चढ़ाय।।
सदा रहय गुरु के कृपा,अतकी विनती मोर।
अंतस रहय अँजोर अउ,भागे अवगुण चोर।।
गुरु ब्रह्मा अउ विष्णु महेशा। गुरु हे पहिली पूर्ण अशेषा।।
बरन बरन हे गुरु के वंदन।आखर आखर बनथे चंदन।।
गुरु ला जानव सुरुज समाना। गुरु आवय जी ज्ञान खजाना।।
गुरु जइसे नइहे उपकारी।गुरु के महिमा सब ले भारी।।
गुरु सउँहत भगवान कहाये। गुण अवगुण के भेद बताये।।
सात समुंदर बनही स्याही।गुरु गुण बर कमती पड़ जाही।।
गुरु के बल ला ईश्वर जाने। तीन लोक महिमा पहिचाने।।
गुरुवर सुरुज तमस हर लेथे। उजियारा जग मा भर देथे।।
जब जब छायअमावस कारी। गुरु पूनम लावय उजियारी।।
गुरु पूनम के अबड़ बधाई।माथ नँवा लव बहिनी भाई।।
शिष्य विवेकानंद कहाये।परमहंस के मान बढ़ाये।।
द्रोण शिष्य हें पांडव कौरव ।अर्जुन बनगे गुरु के गौरव।।
त्याग तपस्या मिहनत पूजा।गुरु ले बढ़के नइहे दूजा।।
वेद ग्रंथ हे गुरु के बानी।पंडित मुल्ला ग्रंथी ज्ञानी।।
ज्ञान खजाना जेन लुटाए।जतका बाँटय बाढ़त जाए।।
गुरु के वचन परम हितकारी।मिट जाथे मन के बीमारी।।
जेखर बल मा हे इंद्रासन।बलि प्रहलाद करे हें शासन।।
ये जग गुरु बिन ज्ञान न पाये।गुरु गाथा हर युग हे गाये।।
सत्य पुरुष गुरु घासी बाबा। गुरु हे काशी गुरु हे काबा।।
देवै ताल कबीरा साखी।
उड़ जावय मन भ्रम के पाखी।।
गुरु के जेन कृपा ला पाथे। पथरा तक पारस बन जाथे।।
माटी हा बन जावय गगरी। बूँद घलो हा लहुटय सगरी।।
महतारी पहली गुरु होथे । लइका ला संस्कार सिखोथे।।
देवय जे अँचरा के छइयाँ।दूसर हावय धरती मइयाँ।।
जाति धरम से ऊपर हावय।डूबत ला गुरु पार लगावय।।
आदि अनादिक अगम अनन्ता।जाप करयँ ऋषि मुनि अउ संता।।
गुरु के महिमा कतिक बखानौं। ज्योति रूप के काया जानौं।।
बम्हरी तक बन जाथे चंदन। घेरी बेरी पउँरी वंदन।।
हाड़ माँस माटी के लोंदी।बानी पाके बोले कोंदी।।
पथरा के बदले हे सूरत। गढ़थे छिनी हथौड़ी मूरत।।
भुइयाँ पानी पवन अकाशा।कण कण में विज्ञान प्रकाशा।।
समय घलो बड़ देथे शिक्षा।रतन मुकुट तक माँगे भिक्षा।।
अमर हवैं रैदास कबीरा। निर्गुण सगुण बसावय मीरा।।
सातों सुर मन कंठ बिराजे। तानसेन के सुर धुन बाजे।।
कण कण मा गुरु तत्व समाये।सबो जिनिस कुछु बात सिखाये।।
गोठ करत हे सूपा चन्नी।कचरा ला छाने हे छन्नी।।
गुरु के दर हा सच्चा दर हे। मुड़ी कटाये नाम अमर हे।।
एकलव्य के दान अँगूठा। अइसन हे गुरु भक्ति अनूठा।।
श्रद्धा से गुरु पूजा करलव। ज्ञान बुद्धि से झोली भरलव।
जे निश्छल गुरु शरण म जावै।।अष्ट सिद्धि नवनिधि जस पावै।।
गुरु चालीसा जे पढ़े,ओखर जागे भाग।
दुख दारिद अज्ञानता ,ले लेथे बैराग।।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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: कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
चेला के चरचा चले, बढ़े गुरू के शान।
नता गुरू अउ शिष्य के, जग मा हवै महान।
जग मा हवै महान, गुरू के सब जस गावै।
दुःख दरद दुरिहाय, खुशी जीवन मा लावै।
सत के डहर बताय, झड़ाये झोल झमेला।
गुरू हाथ ला थाम, कमावै यस जस चेला।
जीवन मा उल्लास के, रंग गुरू भर जाय।
गुरू भक्ति सबले बड़े, देवन माथ नवाय।
देवन माथ नवाय, गुरू के सुमिरन करके।
अँधियारी दुरिहाय, गुरू दीया कस बरके।
गुणी गुरू के ग्यान, करे निर्मल तन अउ मन।
जौने गुरू बनाय, सुफल हे तेखर जीवन।।
डगमग डगमग पग करे, जिवरा जब घबराय।
रद्दा सबो मुँदाय तब, आशा गुरू जगाय।
आशा गुरू जगाय, उबारे जीवन नैया।
खुशी शांति के ठौर, गुरू के पावन पैया।
डर जर दुख जर जाय, बरे अन्तस मन जगमग।
गुरू कृपा जब होय, पाँव हाले नइ डगमग।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा (छग)
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: चौपई छंद- राजेश कुमार निषाद
गुरु के कहना तैंहर मान, गुरु हा देथे सबला ज्ञान।
हवय दया के सागर जान,जग के हावय वो भगवान।।
अँधरा मन के आँखी आय,भटके ला वो राह बताय।
जउन शरण मा गुरु के जाय,वोहर कभू न धोखा खाय।।
गुरु सेवा मा लगा धियान, तब तो पाबे चोखा ज्ञान।
गुरु के महिमा भारी जान,देही तोला वो वरदान।।
गुरु के सेवा मा सब जाय, नइ तो छोटे बड़े कहाय।
सबला चोखा रहे बनाय,खोटा सिक्का तक चल जाय।।
मिले सहारा गुरु के तीर,रखले मनवा तैंहर धीर।
बदल जही तोरो तकदीर,हरथे गुरु हा सबके पीर।।
छंदकार:- राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर
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दोहा
गुरुवर चंदा सूर्य हे , गुरु हे पूरण मास ।
सदा रखव ये गुरु चरण, बने रहय मन दास ।।
सबो देय गुरु तोर हे, नहीं मोर कुछ पास ।
गुरु हाथ सिर मोर हो, गुरु चरणन अरदास ।
गुरु किरपा बरसत रहय,पाॅऺंव सदा मन आश ।
सेवक मन हरषत रहय,जीवन भर बर खाश ।।
गुरु चरनन रज जब मिलय,माथ तिलक लॅऺंव हाॅऺंस ।
ज्ञान भरॅऺंव हिरदे तरी,काट कसक के फाॅऺंस ।।
जीवन अॅऺंधियारी डहर,भरथव ज्ञान उजास ।
वंदन हे आठो पहर,तन मन रखॅऺंव उपास ।।
तहीं मोर संसार हो,अंतस भीतर वास ।
तरपॅऺंउरी के जस तरी,रहॅऺंव सदा बन घास
राजकुमार बघेल
छंद साधक सत्र -7
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दोहा
जने हवय दाई ददा, गुरुवर देहे ज्ञान।
नमन करँव कर जोर के, गुरुजन आप महान।।
हर आखर के ज्ञान गुरु, दोहा घलो समास।
अलंकार रस छंद मा, गुरुवर सब मा वास।।
कतका करँव बखान मँय, गुरु महिमन के खान।
हाथ रखय जो शीश मा, बाढ़य अड़बड़ ज्ञान।।
सबले उप्पर मान दय, गुरु ला ए संसार।
जेखर उज्जर ज्ञान ले, मिटय सबो अँधियार।।
गुरुवर सरलग ज्ञान के, बिजहा ला जब बोय।
फरय फुलय चतुरा बनय, अढ़हा ज्ञानी होय।।
नागेश कश्यप.
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रोला छंद- विजेन्द्र वर्मा
गुरु ले बड़ के कोन, होत दुनिया मा संगी।
धर ले सत के राह, इहाँ झन कर अतलंगी।
जगमग करय अँजोर, दीयना बन जल जाथे।
मन मा भरे उजास, राह मा फूल बिछाथे।।
गुरुवर के आशीष, मिलत राहय बड़ मोला।
तर जाही जी मोर, आज माटी के चोला।
सुमिरँव बारंबार, चरण मा माथ नँवाके।
गुरु सेवा मा रोज, लगौं मँय चाह गँवाके।।
माटी अनगढ़ जान, मिले हे गुरु के छाया।
मूरख मति के आज, पोठ बनगे हे काया।
करत हवै उजियार, ज्ञान के बरसा करके।
डगर डगर मा साथ, देत हे झोली भरके।।
ज्ञान जोत के बीज, उगाइस हे अब मन मा।
गढ़िस बने संस्कार, जगा के निसदिन तन मा।
गावत हावँव गान,हवै महिमा बड़ भारी।
मन अँधियारी मेट, मोर बर तारनहारी।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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विधा ....दोहा
बिषय.....गुरु
गुरुवर वंदन मँय करँव,गुरुवर ज्ञानी मान।
माथ नवावव मँय सदा,देथे गुरु सद्ज्ञान।
सदा ज्ञान भंडार हे,दाता उही महान।
विद्या के सागर हवै,मोला हे अभिमान।
सत्य डगर के सीख दय,भाव करै गुरु शुद्ध।
भरे मइल ला हेरथे,बनथे तभे प्रबुद्ध।।
गुरु के महिमा जान लौ,शिक्षा के आधार।
कच्चा माटी ढारके,देथे ओ आकार।
ममहावै चंदन सही,गुरुवर गुणके खान।
मन अँधियारा मेटके,लाथे उही बिहान।।
हाथ जोड़ रहलौ खडे़,धरलौ थोरिक धीर।
मिहनत करके देखलौ,मिलही तब जी खीर।
नरियर कस गुरुवर लगै, बाहर दिखे कठोर।
रुई सही मन हा हवय, लावय गुरु नव भोर।
खोजत- खोजत गुरु मिलय,मानव अड़बड़ भाग।
बिन गुरु जग मा कछु नही, मनखे अब तो जाग।
*श्रीमती धनेश्वरी सोनी गुल*
*बिलासपुर*
*छंद साधिका 11
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जल-हरन घनाक्षरी
गुरु ज्ञानी गुनवान गुरु जगती के प्रान।
सत के डहर चल गुरु ज्ञान भर भर।।
जिनगी सॅवार दय गुरु हा आधार दय।
मिले गा गुरु के कृपा तम लेंय हर हर।।
गुरु ज्ञान के भंडार करैं जग उॅजियार।
मूल मंत्र देय गुरु जिनगी मा धर धर।।
दोष मिटावॅय गुरु ज्योत जलावॅय गुरु।
करौं गुरु बंदना ला सेवा नित कर कर।।
छंद साधक
रामकली कारे
सत्र - 8
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गुरु वंदना -
(दुर्मिल सवैया)
घपटे अँधियार हवे मन द्वार बिचार बिमार लचार हवै ।
जग मोह के जाल बवाल करे बन काल कुचाल सवार हवै।
मन के सब भोग बने बड़ रोग बढ़ाय कुजोग अपार हवै ।
गुरुदेव उबारव दुःख निवारव आवव मोर पुकार हवै।1
लकठा म बला निक राह चला सब होय भला बिपदा ल हरो।
मन ला गुरु मोर जगा झकझोर भगा सब चोर अँजोर भरो।
हिरदे पथरा परिया कस हे हरिया दव प्रेम के धार बरो।
अरजी कर जोर सुनौ प्रभु मोर हवौं कमजोर सजोर करो।2
नई जानवँ आखर अर्थ पढ़े अउ भाग गढ़े मतिमंद हवै ।
ममता जकड़े नँगते अँकड़े कसके पकड़े जग फंद हवै।
अगनी कस क्रोध जरे मन मा तन मा धन मा छल छंद हवै।
किरपा करके दव खोल अमोल विवेक कपाट ह बंद हवै।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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छंद त्रिभंगी छंद
गुरु के गुन गावँव, माथ नवावँव, जेहर मोला ज्ञान दिए।
मँय हँव अज्ञानी, गुरु हे दानी, शरण म ले के मान दिए।
अवगुन ला हर लिस, किरपा कर दिस, बड़ भागी नइ मोर सहीं।
अब घर मा आ हँव, सुख ला पा हँव, पहिली भटकंँव ढोर सहीं।
नीलम जायसवाल, भिलाई, दुर्ग।
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*सरसी छंद* - अश्वनी कोसरे रहँगिया
*गुरु महिमा*
गुरु पुन्नी के पावन बेला, मन मा करे उजास|
पारस पाथर गुरु के बानी, पूरन होथे आस||
गुरु देखाथे रद्दा सुघ्घर, ज्ञानी गुण के खान|
भवसागर ले पार नकाथे, महिमा हवय महान||
गुरु के साखी कहनी मानी, जिनगी लगही पार|
धरली तन-मन शब्दज्ञान ला, ज्ञान शबद हे सार||
गुरुबिन जगअँधियारे कस हे, देय उज्जर प्रकाश |
गुरु गुन अउ संगत साधे ले, जगथे आस विश्वास||
गुरु के रहै असीस साथ मा, उड़ेै जगत मा सोर|
वंदन गुरु चरनन के करलिन, साँझ दुपहरी भोर||
गुरु पद के महिमा हे भारी, जानय संत समाज|
गुरुकेआखर आखर मानय, ओखर सिर मा ताज||
छंद साधक सत्र -9
अश्वनी कोसरे रहँगिया
कवर्धा कबीरधाम
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शोभमोहन श्रीवास्तव:
गुरुवर कर दौ भव ले पार (सरसी छंद)
जनम जनम के भाँवर देवत,
जीव परे अँधियार।
ज्ञान अधारी अगम दुआरी,
सरका दौ ओलवार।गुरुवर कर दौ भव ले पार
ज्ञान विज्ञान जला के जोती,
कर दौ जीव उद्धार।।
गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णु शंकर,
गुरुवर जीव अधार।।गुरुवर कर दौ भव ले पार
सहसो मुँह बरने नइ जावै,
महिमा अपरम्पार।।
चमड़ा आँखी जगती झाकै,
गुरु झकँवा दौ पार।।गुरुवर कर दौ भव ले पार
जगत पटल के बाहिर घेरा,
दृश्य दिखावनहार।।
तुम माटी के भाग गढ़इया,
गुनधर विग्य कुम्हार।।गुरुवर कर दौ भव ले पार
करके चोट सुधारौ गल्ती,
पाछू फेर पुचकार।
भक्ति मिलै नइ तुँहर बिना गुरु,
मिलय नहीं सुख सार।।गुरुवर कर दौ भव ले पार
पारस पथरा सोन बनाथे,
तुम गुनि करव गँवार।।
तुँहर कहे अब हलहूँ चलहूँ,
जग जंजाल बिसार।।गुरुवर कर दौ भव ले पार
चोला माटी सोन असन हे,
गुरुवर बचन बिचार।।
तुम दुरिहा हौ नाम तुँहर हे,
लकठा अंतस द्वार।।गुरुवर कर दौ भव ले पार
जे गुरुवर के बाचा मानै,
वो लग जावै पार।।
गुरु लंगोटी प्रभुवर छाँटे,
टारे बर भू भार।।गुरुवर कर दौ भव ले पार
जनम जनम के भाँवर देवत,
जीव परे अँधियार।
शोभामोहन सरनागत प्रभु,
डंडाशरन जोहार।।गुरुवर कर दौ भव ले पार,
शोभामोहन श्रीवास्तव
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रोला छ्न्द
गुरू पखारंँव पाँव, धरंँव जल लोटा थारी।
पाना फूल चढ़ाँव, माँग के ज्ञान चिन्हारी।
पाके सुग्घर ज्ञान, गुरू के महिमा गावंँव ।
गुरू ज्ञान अनमोल, गुरू पद माथ नवावंँव।।
सुग्घर माँगव ज्ञान, बनँव मँय ज्ञान भिखारी।
गुरू रूप भगवान, गुरू महिमा बड़ भारी ।
भरय ज्ञान भंडार, हमर खाली झोली मा।
गुरू खिलाथे फूल, उसर जीवन डोली मा।।
बनके गुरू कुम्हार, शिष्य के जीवन गढ़थे।
देके सब संस्कार, गुरू दीया कस बरथे।
जीवन नैया पार, गुरू हा सदा लगाथे।
मान बढ़ाथे शिष्य, गुरू के यश फैलाथे।
छंद साधिका सत्र 14
पद्मा साहू *पर्वणी*
खैरागढ़ जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़
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दोहा
प्रथम गुरू माता बने,रोज सिखाथे बोल।
अँगुरी धर रसता गढ़े, देथे आँखी खोल।।
ब्रम्हा बिष्णु महेश जस,होथे गुरुवर रूप।
करुणासागर है गुरू,करथे कृपा अनूप।।
प्रेम भरे बाणी मिले,जुड़थे मन के तार।
गुरू चरण में मान लौ,बसथे ये संसार ।।
गुरुवर मुड़ मा हाथ धर, काटे सबो कलेश।
मातु पिता गुरुवर लगै,देथे शुभ संदेश।।
रसता अटपट आज हे,बिछे हवय जी शूल।
गुरु के अँगरी थाम ले,शूल बन जही फूल।।
अनपढ़ अड़हा हम हरन,गुरू ज्ञान के खान।
चरण गुरू के थाम ले,मिलही जम्मो ज्ञान।।
मानो गुरुवर ले बड़े, हितू नहीं जग कोय।
ईश रूप गुरु मानलौ,दुखः मिटे सुख होय ।।
गुरुवर से जुड़ के रही,ज्ञान ध्यान ला पाय।
रसता भटकत देख के, गुरुवर राह बताय।।
छंदकार
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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सार छंद-श्री सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
'आखर दीप जलइया'
बचपन के नान्हे ॲंगरी मा,सिल्हट कलम धरइया।
हे गुरुवर शत बार नमन हे,आखर दीप जलइया।
गुरु किरपा मानव धरती मा,खोजिस आगी पानी।
गुरु मारग गोविन्द घलो ला,पा लिस मनखे प्रानी।
ज्ञान बतइया अलख जगइया,हे रवि कबिरा घासी।
गुरु सुजान जन बन छोरत हव,भव बंधन चौरासी।
तुँहर लखाये ज्ञान जगत मा,बनगे हे जस नइया।
हे गुरुवर शत बार नमन हे,आखर दीप जलइया।
तुँहर ज्ञान मंदिर मा गुरुवर,नित धर आवँव बस्ता।
तुँहर सिखाये ज्ञान दिखाइस,जिनगानी ला रस्ता।
का सच हे का झूठ जगत मा?समझत हँव जानत हँव।
काय ढोंग पाखण्ड काय हे?गुरु अब पहिचानत हँव।
गुरु किरपा ले भाँप जथौं अब,ठग-जग भूल भुलइया।
हे गुरुवर शत बार नमन हे,आखर दीप जलइया।
चाँटी जब चढ़थे पाखा मा,बार बार गिर जाथे।
हार कभू नइ मानय मन मा,आखिर मा चढ़ जाथे।
कइठन प्रेरक उदाहरण ले,मन मा साहस भरथव।
निज क्षमता के ज्ञान कराथव,गुरु दुविधा भ्रम हरथव।
तुहीं थके हारे जिनगी ला,चल उठ दँउड़ कहइया।
हे गुरुवर शत बार नमन हे,आखर दीप जलइया।
गुरु के ज्ञान असीस कृपा ला,जे बचपन पा जाथे।
सफल व्यक्ति बनथे जिनगी मा,जग मा जस बगराथे।
गुरु के बारे ज्ञान दीप हर,उजियारा फइलाथे।
तब जुग जिनगी लक्ष्य साध के,सत रद्दा मा जाथे।
गुरु हे दाई ददा शिष्य बर,सखा बहिन अउ भइया।
हे गुरुवर शत बार नमन हे,आखर दीप जलइया।
रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़
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दोहे
गुरु के किरपा होय ले, सबके मिलय असीस।
गुरु चरणन मा सिर नवय, ऊँच रहय तब सीस। ।
गुरु चरणन के पैलगी, जम्मो सुख के खान।
गुरु के महिमा हे जबर , दूर करय अज्ञान। ।
हितवा ए संसार मा, गुरु ले बढ़के कोन ।
माटी जइसे जीव ला, जेन बनावय सोन। ।
---दीपक निषाद- बनसाँकरा( सिमगा)
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दोहा छंद- विजेन्द्र वर्मा
गुरु
गुरु वाणी अमरित हवै, मिलथे सुग्घर ज्ञान।
भक्ति भाव मन मा जगे, जिनगी हो आसान।।
गुरु ले चारों वेद हे, गीता ग्रन्थ पुराण।
सच्चा मन ले हम करिन, निशदिन गुरु के ध्यान।।
गुरु देथे आशीष तब, बनथे बिगड़े काम।
दरस चरण मा हो जथे, चारों तीरथ धाम।।
गुरु के महिमा हे अगम, तरथे जम्मो शिष्य।
दूर कमी करथे हमर, गढ़थे सुघर भविष्य।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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दोहा छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
गुरू ज्ञान दाता हरे, सब ला राह दिखाय।
जिनगी मा ओकर बिना, कोनो पार न पाय।।
गुरू ज्ञान देवत हवय, हाथ जोड़ के सीख।
कर ले खाली बुद्धि ला, दीन हीन जस दीख।।
गुरू चरण वंदन करव, मन मा करके ध्यान।
ओकर किरपा ले महूँ, पाथँव बड़ सम्मान।।
बिना गुरू के कोन हा, पाय ज्ञान अउ सीख।
जेन गुरू ला त्यागथे, ओहा मँगथे भीख।।
गुरू बड़े संसार मा, पाछू हे भगवान।
कइसे हे भगवान हा, गुरू बताथे ज्ञान।।
कुंडलिया छंद -
गुरु बिन शंका नइ मिटय, गुरु बिन मिटे न भेद।
ज्ञानदीप ला बार के, अँधियारी ला खेद।।
अँधियारी ला खेद, उजाला जग मा लावव।
करम करव सब नेक, नाम पुण सबो कमावव।।
होही गुरु परताप, जगत मा बाजय डंका।।
मन ले ओला मान, मिटय नइ गुरु बिन शंका।।
त्रिभंगी छंद -
सतगुरु ला भजलव, चरणारज लव, माथा अपने, पाक करौ।
नइ ओखर किरपा, होवय बिरथा, अंतर्मन मा, ध्यान धरौ।।
सतमारग चलहू, तब हे ढलहू, गुरू वचन के, मान रखौ।
भवसागर तरहू, जब भी मरहू, जिनगी भर सब, मजा चखौ।।
जल हरण घनाक्षरी -
दूनों हाथ जोड़े हावौं, चरणों में पड़े हावौं, विनती करत हावौं, बिगड़ी बनाई दव।
तहीं ब्रह्मा तहीं विष्णु, तहीं सखा बंधु तहीं, तहीं माता पिता तहीं, मोला तो उबार लव।
दुनिया हा संग छोड़े, झूठ मूठ नता जोड़े, एके आस हावै तोरे, बिना तोर सुन्ना भव।
गुरू ददा मोरे रब, तहीं हर नता सब, मोरो घर आबे कब, आहूँ कही दे ना हव।।
महा भुजंगप्रयात सवैया-
पढ़े ला चलौ जी धरे पेन कापी बने ज्ञान पाहू तभे मान पाहू।
गुरू के बताए सबो बात मानौ उही ज्ञान संसार मा बाँट आहू।।
मिटाहू अँधेरा गुरू ज्ञान पाके तभे गाँव होही सुखी खीर खाहू।
लगावौ गला आदमी एक हावै सबो के मया प्रेम धागा बँधाहू।।
लवंग लता सवैया -
गुरू चरणामृत रोज पियौ तब पार उही करही भवसागर।
सबो दुनिया भर के रखवार हरे भगवान सही गुन आगर।।
पिता अउ मातु उही कहलाय उही ह हरे किशना नटनागर ।
लगावय माथ म धूल ल ओकर लोग करे निज भाव उजागर।।
रचनाकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा-नेवरा) जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
सचलभास क्र. - 9300716740
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विधा-दोहा
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मँय खुद मा कुछ हँव नहीं, कच्चा माटी आँव।
गुरु ज्ञान मिल जाय ले, गुण ला सुघ्घर पाँव।।
गुरु ले जग उजियार हे, देथे सब ला ज्ञान।
इखर बचन ला मान लव, हो जाही कल्यान।।
गुरु मुख गंगा ज्ञान के, मनखे जउन नहाय।
मोह मया ले छूट के, भव सागर तर जाय।।
सही गलत के भेद ला, गुरू ज्ञान ले पाय।
गुरू कृपा मिल जाय ले,जनम सफल होजाय।।
द्रोपती साहू "सरसिज"महासमुन्द, छत्तीसगढ़
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मों.+वाट्सएप नं.9179134271
पिन-493445
Email: dropdisahu75@gmail.com
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ज्ञानू : विष्णुप्रद छंद
बड़े राम अउ कृष्ण खुदा ले, जग मा गुरुवर हे।
मोर इही साक्षात इहाँ हे, गुरु हा ईश्वर हे।।
बिन गुरु किरपा भवसागर ले, कोन इहाँ तरथे।
जे नइ जानय गुरु के महिमा, घूँट घूँट मरथे।।
रूठ कहूँ गे गुरु हा जग मा, नइये जान ठिहाँ।
रूठे ईश्वर ता करथे गुरु, नइया पार इहाँ।।
शीतल छइहाँ सब ला देथे, जइसे तरुवर हा।
सबो शिष्य ला एक बरोबर, समझय गुरुवर हा।।
सदा बनाये मोर उपर गुरु, अपन कृपा रखहू।
मँय मूरख सेवा नइ जानँव, क्षमा सदा करहू।।
बरनन कोन करै गुरु महिमा, अगम अनंत हवै।
बेद पुरान सदा गावत अउ, ऋषि-मुनि संत हवै।।
ज्ञानुदास मानिकपुरी
सत्र-3
चंदेनी- कवर्धा
जिला- कबीरधाम ( छत्तीसगढ़)
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चौपाई छंद- गुरु
जिनगी के मटका गढ़े, गुरु बन चाक कुम्हार।
ज्ञान जोत ला बार के, करथे मन उजियार।।
गुरु के महिमा निस दिन गावँव। चरण कमल मा माथ नवावँव।।
सबो देव ले देव बड़े गुरु। बने ज्ञान वरदान खड़े गुरु।।
गुरु-गुरु मा भी भेद हवे जी। गुरु गीता अउ वेद हवे जी।
द्वेष कपट मन गुरु नइ राखे। जग समाज हित भाखा भाखे।।
सदा भला के राह दिखावय। अंतस के गुरु खोट निकालय।।
जिनगी के गुण सार बतावय। भव सागर ले पार लगावय।।
गुरु घासी रैदास कबीरा। खींचिन ढ़ोंग विरुद्ध लकीरा।।
जन समाज हित लिन अवतारी। करिंन ज्ञान दे जग उजियारी।।
जग जाहिर हे गुरु के महिमा। गुरु ला हे चेला के गरिमा।।
गुरु ज्ञान बिना हंसा भटके। बीच भँवर मा नइया अटके।।
गजानंद गुरु के करय, बारंबार प्रणाम।
तोर नाम से मोर गुरु, जग मा होवय नाम।।
छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे 'सत्यबोध'
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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: दोहा छंद- संगीता वर्मा
गुरु
गुरुवर के आशीष बिन, मिलय नहीं जी ज्ञान।
अनगढ़ ला गढ़थे सदा, देथे शिक्षा दान।।
खुलै नहीं गुरुवर बिना, ज्ञान चक्षु के द्वार।
गुरुवर के आशीष ले, मिलथे ज्ञान अपार।।
भेद-भाव जानै नहीं, मानय एक समान।
अंतस ले आभार हे, करँव सदा गुणगान।।
गुरुवर के छाया मिलिस, होगे जिनगी धन्य।
पूरा होवत आस हा, चाही नइ अब अन्य।।
गुरु के महिमा जान ले , करथे बड़ उपकार।
भाग इहाँ गढ़थे सदा, नित्य करँव सत्कार।।
संगीता वर्मा
अवधपुरी भिलाई
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रोला छंद-संगीता वर्मा
जेकर सिर मा आज, हाथ गुरु के जी हावय।
यश जश बाढ़त जाय, परम सुख ला वो पावय।
होथे बेड़ापार, सुघर जिनगी कट जाथे।
हिरदे मा तो रोज, गंग के धार बहाथे।।
मिले ज्ञान भंडार, देय जब गुरुवर शिक्षा।
राह दिखावय नेक, ज्ञान के देवय भिक्षा।
पढ़ा-लिखा के रोज, बतावय आगू बढ़ना।
देवय सुग्घर सीख, सदा ऊँचाई चढ़ना।।
संगीता वर्मा
अवधपुरी भिलाई
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*रोला छंद*:-
(1)
जे देथे जी ज्ञान, जगत मा गुरू कहाथे ।
हरथे मन अज्ञान, मान ला सबके पाथे ।
करथे गा उजियार, बरय जस दियना बाती ।
मेटय सब अँधियार, भरम के जे दिन- राती ।।
(2)
सदा नवावँव माथ, चरण मा तोरे गुरुवर ।
धरती के सम्मान, झुकय जस फर के तरुवर ।
अंतस ले कर जोर, तोर मँय महिमा गावँव ।
"मोहन " तन मा साँस, रहत ले नइ बिसरावँव ।।
*सरसी छंद*:-
माथ नवावँव गुरु चरनन मा, महिमा करँव बखान ।
जेकर किरपा ले पाये हँव, ये जिनगी के ज्ञान ।।1।
जब-तक सूरज-चंदा रइही, अउ ये धरा-अगास ।
अंतस मा गुरु मोर समाके, पूरा करही आस ।।2।।
करँव वंदना मँय कर जोरे, पावँव आशिर्वाद ।
छाहित रहिके देवव गुरुवर, अपने ज्ञान- प्रसाद ।।3।।
छंदकार- मोहन लाल वर्मा
पता :- ग्राम- अल्दा,वि.खं.तिल्दा,
जिला- रायपुर (छत्तीसगढ़)🙏🏻
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*गुरु मोर भगवान (दोहा छंद)*
गुरू चरन वंदन करौ , अपन नवा के माथ ।
गुरु देव भगवान के , रहय मुड़ी मा हाथ ।।
गुरु हरे अग्यान ला , अन्तस् दियना बार ।
मन मंदिर उज्वल करे , भवले बेड़ा पार ।।
गुरु चरन मा हे मिले , मोला शीतल छाँव ।
गुरु देव भगवान के , महिमा ला मँय गाँव ।।
गुरु देव जी ला हवय , नमन मोर सौ बार ।
देइन मोला जउन हे , ज्ञान भरे उपहार ।।
गुरु देव भगवान के , महिमा हवय अपार ।
गुरु चरन ला जान ले , हावय जगमा सार ।।
मयारू मोहन कुमार निषाद
छंद साधक सत्र कक्षा - 4
गाँव - लमती , भाटापारा
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कुण्डलिया छंद - गुरु - विरेन्द्र कुमार साहू
डोंगा गुरु के हाथ हे, नहकाही भव पार।
संसो तब का बात के, गुरु जब खेवनहार।
गुरु जब खेवनहार, सोच झन आने-ताने।
गुरु के कर विश्वास, खुशी मिलही मनमाने।
कहिथे बात प्रवीर, हाँक दे धरके पोंगा।
गुरु कस अउ हे कोन, जउन नहकाही डोंगा।।
साधक - विरेन्द्र कुमार साहू सत्र - 9
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दोहा: गुरु महिमा
गुरुजी हे सबले बड़े, देवइया सब ज्ञान।
ओखर किरपा ले सबो, हो जाथें विद्वान।।
लालच मंता भीतरी, निकलय मुँह के द्वार।
हिरदे मा कचरा भरे, गुरुवर देथे झार।।
जिनगी भर परहित करौ, गुरुजी देइस ज्ञान।।
सच्चाई ला छोड़ मत, छोड़व गरभ गुमान।।
पीठ धरे अज्ञान के, मैं हँव निपट गँवार।
फिकर नहीं गुरु संग हे, अब होही उद्धार।।
धन्नू लाल भास्कर 'मुंगेलिहा'
लोरमी- मुंगेली,
जिला-मुंगेली (छत्तीसगढ़)
छंद साधक सत्र 15
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दोहा छंद
गुरु गहिरा सागर सही, ज्ञान रतन के खान।
देवय मथ-मथ शिष्य ला, रकम-रकम के ज्ञान।।
ज्ञान कोन हा पाय हे, बिन गुरु के आधार।
करथे जब गुरुवर कृपा, तभे होय भव पार।।
राजा मंत्री या प्रजा, हो फकीर धनवान।
भला आज तक कोन हे, बिन गुरु पाये ज्ञान।।
राम कृष्ण बलराम हा, गुरु ले पाइन ज्ञान।
गुरु के देहे ज्ञान ले, बनगिन हें भगवान।।
भागवत प्रसाद चन्द्राकर
सत्र - 15
डमरू, बलौदाबाजार भाटापारा छग.
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दोहे
गुरुवर के वंदन करव, हे गुरु गुन के खान।
अग्यानी ला ज्ञान दे, गुरुवर हवे महान।।
मिलथे गुरुवर भाग ले, खोजत फिरथे लोग।
सँउहत मिलगे गुरु दरस, बने रहिस सँजोग।।
भीतर मधुरस मीठ हे, ऊपर हवय कठोर।
कोवँर मन भीतर रखय, अउ देवय बड़ जोर।।
देवय दीक्षा ज्ञान के, गरब गुमान ल छोड़।
रद्दा सहीं दिखाय के, टूटे मन दे जोड़।।
ज्ञान उजाला बाँट के, हृदय रखय पट खोल।
भीतर उपजे आस ला, लेवत रहय टटोल।।
कण-कण गुरु के बास हे, गुरुवर हे भगवान।
पीरा हर हीरा करय, गुरुवर हे धनवान।।
मात पिता हे गुरु हमर, येला नवाँव शीश।
इँकर चरण मा हे सदा, अबड़ अकन आशीष।।
सुमित्रा कामड़िया शिशिर "
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*गुरु ज्ञान*
*लावणी छंद*
मन सीखे के इच्छा रख के, छंद महालय मा आथन।
ज्ञान गुरू के बरसत रहिथे, पा के गदगद हो जाथन।।
कक्षा मा दुन्नो गुरुवर हा,जाँच छंद के नित करथे।
नियम हजारों बार बता के, जोश हमर मन मा भरथे।।
करथन गलती बार बार हम, तभो मया ऊंँखर पाथन।
ज्ञान गुरू के बरसत रहिथे, पा के गदगद हो जाथन।।
भेद भाव नइ करय गुरू मन, साधक ला अपने मानय।
गुरू शिष्य के नता निभावत, एक बरोबर सब जानय।।
गुरु दीदी शोभामोहन अउ, गुरु पइयाँ माथ नवाथन।
ज्ञान गुरू के बरसत रहिथे, पा के गदगद हो जाथन।।
अरुण निगम गुरुदेव हमर बर, सुग्घर ये नियम बनाइस।
छंद शास्त्र के सब विधान ला, जन जन मा हे पहुँचाइस।।
निसदिन हम बलराम गुरू ले, छंद ज्ञान सुग्घर पाथन।
ज्ञान गुरू के बरसत रहिथे, पा के गदगद हो जाथन।।
प्रिया देवांगन *प्रियू*
सत्र - 13
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: *रोला छंद*
*विषय- गुरु*
गुरुजी देके ज्ञान, बनाथें सब ला ज्ञानी।
दया मया के पाठ, बताथें गोठ सियानी।।
रखथें अब्बड़ ध्यान, बाप कस जिनगी गढ़थें।
धरके चेला बात, दिनों दिन आघू बढ़थें।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
पाली जिला कोरबा
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(दोहा)
कइसे करँव बखान गुरु,भारी महिमा तोर।
जिनगी सजोर कर डरे, तोरे गावँव शोर।।
गुरु के संगत मा रहे, होथे जग ले पार।
जिनगी मारग मिल जथे, शिक्षा मिलथे सार।।
मात पिता अउ गुरु करा,शीश नवा के रोज।
कारज हम करबोन जब, जिनगी चलही सोज।।
भटके जिनगी ला इही,रस्ता बने दिखाय।
जिनगी नइया नइ रुके, गुरुजी सब ल सिखाय।।
बिना गुरू के नइ मिले, सही राह अउ ज्ञान।
जिनगी सजोर कर जथे,बढ़थे हमरो मान।।
राजेन्द्र कुमार निर्मलकर
साधक-15
सरकीपार वि.खं-पलारी
जिला -बलौदाबाजार भाटापारा
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