दोहावली - शिक्षक दिवस
आज हवय पावन दिवस , गुरु पूजा त्योहार ।
वंदत हँव गुरु के चरण , शीश नवाँ सौ बार ।।
राधा कृष्णन ला नमन, जन्म दिवस हे आज ।
शिक्षक जन जेकर उपर , करथें अबड़े नाज ।।
जेन रहिंन चिंतक बड़े , राजनीति के संत ।
बनिन राष्ट्रपति दूसरा , भारत के श्रीमंत ।।
शिक्षा सँग संस्कार के , जेहा अलख जगाय ।
सुग्घर जी सद ज्ञान दय ,वो हर शिक्षक आय ।।
करिया पट्टी शिष्य के , आखर भरय अँजोर ।
रटवा दै जी पाहड़ा , भाषा भाव चिभोर ।।
ब्रह्मा विष्णु महेश कस ,गुरुजी तभे कहाय ।
मातु पिता कस मानके , सब झन शीश नँवाय।।
छन्दकार - श्री चोवाराम वर्मा
दुर्मिळ सवैया - हे गुरुदेव
घपटे अँधियार हवे मन द्वार बिचार बिमार लचार हवै ।
जग मोंह के जाल बवाल करे बन काल कुचाल सवार हवै ।
मन के सब भोग बने बड़ रोग बढ़ाय कुजोग अपार हवै ।
गुरुदेव उबारव दुःख निवारव आवव मोर पुकार हवै ।1 ।
लकठा म बला निक राह चला सब होय भला बिपदा ल हरो ।
मन ला गुरु मोर जगा झकझोर भगा सब चोर अँजोर भरो ।
हिरदे पथरा परिया कस हे हरिया दव प्रेम के धार बरो ।
अरजी करजोर सुनौ गुरु मोर हवौं कमजोर सजोर करो ।2।
नइ जानँव आखर अर्थ पढ़े अउ भाग गढ़े मति मंद हवै ।
ममता जकड़े अबड़े अँकड़े कस के पकड़े जग फंद हवै ।
अगिनी कस क्रोध जरे मन मा तन मा धन मा छल छंद हवै ।
किरपा करके दव खोल अमोल बिबेक कपाट ह बंद हवै ।3।
छन्दकार - श्री चोवाराम वर्मा
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दोहा छंद -
गुरु को सादर है नमन, जो साक्षात् भगवान
उसके चरणों से बहे, ज्ञान ध्यान वरदान।
छन्दकार - शकुन्तला शर्मा
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गीतिका छंद -
देवता मन ले बड़े हे ,गुरु जगत मा जान ले।
राम कृष्णा मन तको जी ,गुरु शरण मा ज्ञान ले।
रोज कतको बार दीया ,मन तभो अँधियार हे।
भाग्य से मिल जाय गुरु तब ,जान जिनगी सार है।
एक दिन जाना हवे जी ,मोह के संसार से।
मँय उऋण नइ हो सकँव गुरु ,आपके उपकार से।
पुण्य से जिनगी मिले हे ,गुरु मिले सौभाग्य से।
गुरु कृपा ला का बखानौं ,छंद रचना काव्य से।
आभार सवैया - विनत भाव
आभार मानौं गुरु आपके मैं दिये ज्ञान जोती अँधेरा मिटायेव।
संसार के सार निस्सार जम्मो कते फूल काँटा सबो ला बतायेव।
रद्दा ला रोके जमाना तभो ले हवा शीत आँधी म दीया जलायेव।
माथा नवावौं गुरू पाँव मा मैं छुपे जोगनी ला चँदैनी बनायेव।
भुजंग प्रयात छंद -
गुरू मोर रोजे लुटावै खजाना।
सिखाये विधा छंद गाये तराना।
जिहाँ ज्ञान के रोज जोती जले हे।
तिहाँ एकता प्रेम मोती पले हे।
मया हे दया हे कहे एक नारा।
सबो ला गुरू छाँव लागै पियारा।
बड़े हे न छोटे सबो एक जैसे।
मिले मातु गोदी गुरू प्रेम वैसे।
छन्दकार - आशा देशमुख
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गुरू(सरसी छंद)
गुरू शरण मा माथ नवाले,गुरू लगाही पार।
भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।
छाँट छाँट के बने चीज ला,अंतस भीतर भेज।
उजियारा करही जिनगी ला,बन सूरज के तेज।
जल जाही जर जहर जिया के,लोभ मोह संताप।
भटक जानवर कस झन बइहा,नता गुरू सँग खाप।
ज्ञान आचमन कर रोजे के,पावन गंगा धार।
भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।
धीर वीर ज्ञानी अउ ध्यानी,सबो गुरू के देन।
मानै बात गुरू के हरदम,पावै यस जश तेन।
गुरू बिना ये जग मा काखर,बगरे हावै नाम।
महिनत करले कतको चाहे,बिना गुरू ना दाम।
ठाहिल हीरा असन गुरू हे,गुरू कमल कचनार।
भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।
गुरू बना जीवन मा बढ़िहा,कर कारज नित हाँस।
गुरू सहारा जब तक रइही,पाँव गड़े ना फाँस।
यस जश बाढ़े जब चेला के,गुरू मान तब पाय।
नेंव तरी के पथरा बनके,गुरू देव दब जाय।
गावै गुण तीनों लोक गुरू के,गुरू करै उपकार।
भव सागर ले सहज तरे बर,बना गुरू पतवार।
छन्दकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
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सरसी छंद - शिक्षक
शिक्षक हे अभिमान देश के ,याद रखव ये बात।
गुरु के तन मन निर्मल होथे,नइहे कोनो जात।।
शिक्षक हे आवाज हृदय के,सृजन भाव आधार।
शिक्षा देके जीवन गढ़थे ,करथे गा उद्धार।।
शिक्षक देखावय नित रद्दा,विद्या के आधार।
देवय शिक्षा देखव हर युग ,करिन सदा उपकार।।
शिक्षा ले शिक्षक बन जाथे,सबके करें विकास।
नेक भाव ले विद्या बाँटय,गुरु ले सबके आस।।
शिक्षक के सम्मान करव जी,करौं साधना रोज।
गुरु के मुख ले सत ही निकलय,राखँय सत के ओज।।
भेद भाव नइ राखँय कोनो,एके हे आगाज।
हर जन के उद्धार करे ये,दय समता आवाज।।
छंदकार - श्रीमति आशा आजाद
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शंकर छंद - गुरु महिमा
(1)
गुरु के महिमा गुरु ही जाने,मोर तारनहार।
चरन परव जी एखर भाई, जीव होही पार।।
ज्ञानवान सागर जइसे हे,आव डुबकी मार।
गंगा जल कस पी लव संगी,आज जिनगी तार।।
(2)
गुरु बिन जिनगी सुन्ना होथे,होय जग अँधियार।
दिया ज्ञान के आज जलाले,तोर मन के द्वार।।
चरन पखारव ए गुरुवर के,देव किरपा जान।
माथ नवावव करलव सेवा,मिल जही भगवान।।
छंदकार - श्री बोधन राम निषाद राज
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दोहा --गुरु महिमा
बिन गुरु भगती नइ मिलै,मिलै नहीं रे ज्ञान।
चलबे गुरु के संग तँय,पाबे तँय भगवान।।
सत् के डोंगा बइठ के,गुरु ला कर परनाम।
गुरु के रद्दा में चलव,मिलही प्रभु के धाम।।
गुरु के भगती पाय के,बन जाबे तँय धीर।
गुरु के छाया में रबे, झन होबे गंभीर।।
सुघ्घर पाबे ग्यान ला,मिटही सब अग्यान।
किरपा गुरु के होय ले,बढ़ जाही जी मान।।
हाथ जोर बिनती करँव,चरन परँव मँय तोर।
हे गुरुवर तँय ग्यान दे,जिनगी बनही मोर।।
गुरु के बानी सार हे,गुरु के ग्यान अपार।
जे मनखे ला गुरु मिलय,ओखर हे उद्धार।।
भक्ति शक्ति दूनों मिलय,मिलय ग्यान भंडार।
गुरु पद में तँय ध्यान धर,गुरु हे तारनहार।।
गुरु चरनन मा ध्यान हो,करौ सदा परनाम।
सत् के रसता मा चलव,बनथे बिगड़े काम।।
गुरु बिन जग अँधियार हे,ज्ञान कहाँ ले आय।
हरि दरशन हा नइ मिलय,मुक्ति कहाँ ले पाय।।
छंदकार - श्री बोधन राम निषाद राज
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दोहा छन्द - गुरु
गुरू बिना मिलथे कहाँ, कोनों ला जी ज्ञान ।
कर ले कतको जाप तैं , चाहे देदव जान ।।1।।
नाम गुरू के जाप कर , तैंहा बारम्बार ।
मिलही रस्ता ज्ञान के , होही बेड़ापार ।।2।।
झोड़व झन अब हाथ ला , रस्ता गुरु देखाय ।
दूर करय अँधियार ला , अंतस दिया जलाय ।।3।।
सेवा करले प्रेम से , एहर जस के काम ।
गुरु देही आशीष तब , होही जग मा नाम ।।4।।
पारस जइसे होत हे , सदगुरु के सब ज्ञान ।
लोहा सोना बन जथे , देथे जेहा ध्यान ।।5।।
देथे शिक्षा एक सँग, गुरुजी बाँटय ज्ञान ।
कोनों कंचन होत हे , कोनों काँच समान ।।6।।
सत मारग मा रेंग के , बाँटव सब ला ज्ञान ।
गुरू कृपा ले हो जथे , मूरख भी विद्वान ।।7।।
शिक्षक के आदर करव , पूजव सबो समाज ।
राह बताथे ज्ञान के , तब होथे सब काज ।।8।।
शिक्षा जेहा देत हे , वोहर गुरू समान ।
माथ नवावँव पाँव मा , असली गुरु तैं जान ।।9।।
आखर आखर जोड़ के , बाँटय सब ला ज्ञान ।
मूरख बनय सुजान जी , अइसन गुरू महान ।।10।।
छन्दकार - श्री महेन्द्र देवांगन माटी
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कविता -
हाँ मै शिक्षक आँव
ज्ञान के अलख जगईया।
कर्म धर्म के पाठ पढ़्ईया।
अज्ञानता के अन्धकार ला
ये जग ले दूर मिटईया।
हाँ मै शिक्षक आँव
एक छोटकन बीज ला
बड़े जान पेड़ बनईया।
रीति नीति सत प्रेम के
खाद पानी डार सिरजईया।
हाँ मै शिक्षक आँव
अपन दुख पीरा भुलाके
परके दुख मा साथ निभईया।
गिरे परे रस्ता मा कोनो मिले
धरके हाथ उठईया।
हाँ मै शिक्षक आँव
जग मा उजियार करे बर
दीया बनके जलईया।
भूख पियास दुख दर्द सहिके
अपन कर्तव्य निभईया।
हाँ मै शिक्षक आँव।
रचनाकार - श्री ज्ञानुदास मानिकपुरी
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दोहा छंद -
बंदन गुरु के मैं करँव,दुनो हाथ ला जोर।
मोर हृदय अँधियार ला,दूर करव बन भोर।1।
माटी तन कच्चा घड़ा,गुरुवर रूप कुम्हार।
ज्ञान रूप के चाक मा,जिनगी गढ़त हमार।2।
जननी जग माता पिता,गुरु सउँहत भगवान।
जनम सुफल सबके करै,अउ जग के कल्यान।3।
जिनगी के गुरु पाहड़ा,गुणा भाग अउ जोड़।
पाठ सिखावय ज्ञान भर,भेदभाव ला छोड़।4।
देव रूप मा गुरु मिलय,जस माही पतवार।
अंधकार मन दूर करय,ज्ञान जोत ला बार।5।
छन्दकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
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मनहरण घनाक्षरी छंद -
जीवन अंजोर करे,जीवन संजोर करे ,
गुरु बिना रहिथे जीवन अंधियार गा ।
ज्ञान के दिया ला बार, करथे गा उजियार ,
भरे नदिया मा गुरु ,बने पतवार गा ।
कच्चा माटी थाप थाप,देवय मूरत छाप,
सुग्घर स्वरूप देथे, बनय कुम्हार गा।
चरण शरण ले के ,ज्ञान के भंडार देथे ,
गुरु ला तो देव रूप, मानय संसार गा ।
दोहा -
अक्षर अक्षर जोड़ के ,गुरु देवय गा ज्ञान ।
यति गति लय अउ छंद के , करवावय जी भान।(1)
गुरु बिन ज्ञान कहाँ मिलय,मिलय कहाँ सम्मान ।
गुरु आषीश ल पाय बर,तरसय खुद भगवान ।(2)
छन्दकार - श्री दुर्गाशंकर इजारदार
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हरिगीतिका छन्द - गुरु बड़े भगवान ले
भगवान ले बड़का गुरु,कहिथे सबोझन मान ले।
काबर कहे अइसन सखा,बतलात हँव मँय जान ले।
भगवान हा सब जीव ला,भेजे हवय बस जान जी।
आ के सबो कीरा बरोबर,रहत राहय मान जी।1।
जब ज्ञान पाइस हे मनुज तब,रूप अइसन पाय हे।
सब ला बताइन हे सखा,तब तो मनुज कहलाय हे।
जिन ज्ञान बाँटत हे जगत ला,ओ गुरु कहलाय जी।
भटके मनुज तक संग आवय, राह सुग्घर पाय जी।2।
भगवान के संसार मा, रहना कहाँ आसान हे।
बपुरा रहे तिन मार खावय,सब डहर सइतान हे।
जिन संग गुरु के पाय हावय, बाँचथे हैवान ले।
बड़का तभे गुरु हा कहाये, जान लव भगवान ले।3।
जिन सीख के सब ला बतावय, ओ गुरू कहलाय जी।
जिन मानथे सच बात ला,उन राह सुग्घर पाय जी।
सुख दुख सबो हिस्सा रहे,सब जीव बर संसार मा।
गुरु ज्ञान के पाये सखा,दुख आय ना परिवार मा।4।
भगवान ला हम जान पाइन,ओ गुरू के ज्ञान ले।
नइ ते कहाँ हम जान पाबो,बात सिरतो मान ले।
गुरु के चरण माथा नवावत,भाग ला सहरात हँव।
भगवान के आशीष तक ला,गुरु चरण मा पात हँव।5।
छन्दकार - श्री दिलीप कुमार वर्मा
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छंंद दोहा -
गुरु भगाय अँधियार ला , अउ देवय बड़ ज्ञान ।
ठोंक पीट आशीष दय , आव करन सम्मान ।।
छंद ज्ञान दे गुरु *अरुण*, करिन बहुत उपकार ।
पावन पबरित गुरु चरण , बंदँव बारम्बार ।।
गुरु वाणी अनमोल हे , हर आखर मा सीख ।
गुरु गियान तो नइ मिलय, माँगे कोनो भीख ।।
सदा राखहू ध्यान ए , गुरु के झन हो अपमान ।
छोड़ अपन अभिमान ला , राखव गुरु के शान ।।
छंदकार - श्री पोखन लाल जायसवाल
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