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Friday, February 28, 2020

विष्णुपद छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"



विष्णुपद छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

देख ददा दाई ला संगी, काबर रोवत हे।
बेटा चारो धाम घूम के, पइसा खोवत हे।।
पथरा के भगवान देख के, बड़ खुश होवत हे।
दाई ददा ल बड़ दुख देके, पाप ल  बोवत हे।।
बाप खाय बर लावातापा, घर मा होवत हे।
रँग रँग के खाना लइका बर, रोटी पोवत हे।।
अपन पिता माँ ला धमकावै, चिल्ला झन कहिके।
लपर लपर लइका ले बोलय, अलग जघा रहिके।।
जेन बाप रद्दा देखाइस, घर बइठावत हे।
दाई बोले बर सिखलाइस, मौन करावत हे।।
डउकी लइका संँग खुद घूमय, माँ बा ल धाँध के।
आनी बानी खाथे पीथे, मटन ला राँध के।।
"जलक्षत्री" परिवार एक सम, सबझन राहव जी।
सेवा कर लौ मात पिता के, सब सुख पाहव जी।।


छंदकार -अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम -तुलसी (तिल्दा नेवरा)
जिला -रायपुर (छत्तीसगढ़)

Tuesday, February 25, 2020

विष्णुपद छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी

विष्णुपद छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी

                 गुस्सा कभू करव मत

गुस्सा हर बुध खाथे संगी,गुस्सा दिल न धरौ।
बनना हावय अगर चहेता सबला प्रेम करौ।
गुस्सा ले नित बात बिगड़थे,राखव याद सदा।
पछतावव झन गुस्सा करके सीखव नेक अदा।।

खागे दुर्योधन के गुस्सा,कौरव के सेना।
पड़गे संगी गुस्सा मा जी,लेना के देना।
लंका जरगे,रावण मरगे,राज-पाठ खोगे।
गुस्सा जेमन करिन जगत मा,माटी मा सोगे।।

गुस्सा होथय छिन भर के जी करथे अबड़ असर।
कर देथे कतको मनखे के मुश्किल गुजर बसर।
मानौ मय हर समझावत हँव कहना मोर धरौ।
मया पिरित के डोरी बाँधव,गुस्सा त्याग करौ।।

छंदकार-राम कुमार चन्द्रवंशी
ग्राम+पोष्ट-बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ साहित्य महोत्सव एवं राष्ट्रीय पुस्तक मेला रायपुर म छंद परिवार

दिनाँक 22/02/2020 दिन रविवार के बीटीआई मैदान रायपुर म आयोजित छत्तीसगढ़ साहित्य महोत्सव एवं राष्ट्रीय पुस्तक मेला म छंद के छ परिवार के साधक मनके प्रस्तुति-


1,श्री मति आशा देशमुख जी की प्रस्तुति-

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2,श्री मति आशा आजाद जी की प्रस्तुति-


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(3)
वीरेंद्र साहू जी की प्रस्तुति
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(4)
कुलदीप सिन्हा जी की प्रस्तुत्ति-


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(5)
जगदीश साहू हीरा जी की प्रस्तुति-


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(6)
नीलम जायसवाल जी की प्रस्तुति-






Monday, February 24, 2020

विष्णु पद छंद-मीता अग्रवाल







विष्णु पद छंद-मीता अग्रवाल

जाँगर तोड़ कमाथस बाबू,जोडत हस धन ला।
पइसा कौड़ी  काम आय ना, धीर राख मन ला ।।

जग मा खाली हाथ आए, जाय हाथ जुच्छा।
धरे रहीं जर जमीन जाए,बेवहार सुच्छा।।

बने बने कारज कर संगी,उही नाम करथे।
बिन बादर बरसात सुने हस,कभू नही झरथे।।

दया मया तँय बाँटे सुमता, हँसी खुशी बढ़थे।
बाढ़त रहिथे जिनगी भर जी, डहर नवा गढ़थे।।

(2)अषाढ़ के बादर

झिमिर झिमिर बरसे गरजे घिर,छाए हे बदरा।
आए अषाढ़ आँधी उठाय,बने घुप्प कजरा।।

कभू गरजथे कभू बरसथे,टिपिर टिपिर गिरथे।
धरती माता के कोरा ला,हरियर वो करथे।

अलसाए कुम्हलाए जीव ह, धीर सुख के धरे।
हरियर हरियर चारो खूँटा,पेड़ फूले फरे।।

जम्मो खेत किसानी लहके,हँसी खुशी चहके।
धरती माटी हवा परानी,बादर मा बहके।।

तपत धरा के पियास बुझाय,बरसा झर झर के।
चलव किसनहा खेत डहर जी, नाँगर ला धर के।।

छंदकार -डाॅ मीता अग्रवाल  रायपुर छत्तीसगढ़

Sunday, February 23, 2020

विष्णु पद छंद - बोधन राम निषादराज

विष्णु पद छंद - बोधन राम निषादराज
(माटी के चोला)

ये काया  माटी के चोला, धरम करम कर ले।
भव सागर ला पार करे बर,पुण्य धजा धर ले।।1।।

मया मोह ला छोड़ चलौ जी,राम नाम जप लौ।
जिनगी ला पबरित कर लेवव,सत्य आँच तप लौ।।2।।

सुग्घर जिनगी के सपना ला,मन मा आज धरौ।
राम नाम के सुमिरन करके,अपने काज करौ।।3।।

बड़े भाग मानुष तन भइया,सुफल करौ तन ले।
हरि मा ध्यान लगालौ संगी,गाव भजन मन ले।।4।।

हे मूरख इंसान समझ ले,तोर काय जग मा।
जादा झन रे तँय इतराना,काय पाय जग मा।।5।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा
जिला - कबीरधाम(छत्तीसगढ़)

Saturday, February 22, 2020

आशा देशमुख: विष्णुपद छंद


आशा देशमुख: विष्णुपद छंद


गरब निसेनी अतका ऊपर,चढ़के झन इतरा।
गोड़ फिसलही सीधा गिरबे,अब्बड़ हे खतरा।1

उड़ै अकास मा दिन भर जेहर, पंछी ला पूछव।
कहिथे ऊपर ठौर नही हे, सब नीचे सम्भव।2

ढाई आखर मया बोल हा, दुनिया ला जीतय।
सुख दुख के सब संग धरे तब,जिनगी हा बीतय।3

गुण अवगुण सब तोर हाथ मा, का सोना पीतल।
लिपटे रहिथे साँप तभे ले,चंदन हे शीतल।4

भरे हवय इतिहास इहाँ सब,पढ़ लिखके सीखव।
छोड़ कपट अब दया मया ले,ये जग ला जीतव।5

इरखा कपट पाप हा निशदिन,बाढ़ी कस बाढ़य।
संग जाय बस पुण्य कमाई,जुच्छा धन माढ़य।6


आशा देशमुख
एन टी पी सी कोरबा

Friday, February 21, 2020

महाशिवरात्रि विशेषांक-छंद के छ

महाशिवरात्रि विशेषांक-छंद के छ परिवार की प्रस्तुति

सर्वगामी सवैया - खैरझिटिया
माथा म चंदा जटा जूट गंगा गला मा अरोये हवे साँप माला।
नीला  रचे  कंठ  नैना भये तीन नंदी सवारी धरे हाथ भाला।
काया लगे काल छाया सहीं बाघ छाला सजे रूप लागे निराला।
लोटा म पानी रुतो के रिझाले चढ़ा पान पाती ग जाके सिवाला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा
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घनाक्षरी(भोला बिहाव)-खैरझिटिया

अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,
भूत  प्रेत  साथ  मा  जी ,निकले  बरात  हे।
बइला  सवारी  करे,डमरू  त्रिशूल धरे,
जटा जूट चंदा गंगा,सबला  लुभात हे।
बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,
भभूत  लगाये  हवे , डमरू  बजात  हे।
ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,
भूत  प्रेत  पाछु  खड़े,अबड़ चिल्लात  हे।

भूत प्रेत झूपत हे,कुकूर ह भूँकत हे,
भोला के बराती मा जी,सरी जग साथ हे।
मूड़े मूड़ कतको के,कतको के गोड़े गोड़,
कतको के आँखी जादा,कोनो बिन हाथ हे।
कोनो हा घोंडैया मारे,कोनो उड़े मनमाड़े,
जोगनी परेतिन के ,भोले बाबा नाथ हे।
देव सब सजे भारी,होवै घेरी बेरी चारी,
अस्त्र शस्त्र धर चले,मुकुट जी माथ हे।

काड़ी कस कोनो दिखे,डाँड़ी कस कोनो दिखे,
पेट कखरो हे भारी,एको ना सुहात हे।
कोनो जरे कोनो बरे,हाँसी ठट्ठा खूब करे,
नाचत कूदत सबो,भोले सँग जात हे।
घुघवा हा गावत हे, खुसरा उड़ावत हे,
रक्शा बरत हावय,दिन हे कि रात हे।
हे मरी मसान सब,भोला के मितान सब,
देव मन खड़े देख,अबड़ मुस्कात हे।

गाँव मा गोहार परे,बजनिया सुर धरे,
लइका सियान सबो,देखे बर आय जी।
बिना हाथ वाले बड़,पीटे गा दमऊ धर,
बिना गला वाले देख,गीत ला सुनाय जी।
देवता लुभाये मन,झूमे देख सबो झन,
भूत प्रेत सँग देख,जिया घबराय जी।
आहा का बराती जुरे,देख के जिया हा घुरे,
रानी राजा तीर जाके,देख दुख मनाय जी।

फूल कस नोनी बर,काँटा जोड़ी पोनी बर,
रानी कहे राजा ला जी,तोड़ दौ बिहाव ला।
करेजा के चानी बेटी,मोर देख रानी बेटी,
कइसे जिही जिनगी,धर तन घाव ला।
पारबती आये तीर,माता ल धराये धीर,
सबो जग के स्वामी वो,तज मन भाव ला।
बइला सवारी करे,भोला त्रिपुरारी हरे,
माँगे हौ विधाता ले मैं,पूज इही नाव ला।

बेटी गोठ सुने रानी,मने मन गुने रानी,
तीनो लोक के स्वामी हा,मोर घर आय हे।
भाग सँहिरावै बड़,गुन गान गावै बड़,
हाँस मुस्काय सुघ्घर,बिहाव रचाय हे।
राजा घर माँदीं खाये,बराती सबो अघाये,
अचहर पचहर ,गाँव भर लाय हे।
भाँवर टिकावन मा,बार तिथि पावन मा,
पारबती हा भोला के,मया मा बँधाय हे।

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको, कोरबा
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कुकुभ छंद -खैरझिटिया

सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
दुःख द्वेस जर जलन जराके,सत के बो बीजा बाबा।

मन मा भरे जहर ले जादा,कोन भला अउ जहरीला।
येला पीये बर शिव भोला,का कर  पाबे तैं लीला।
सात समुंदर घलो म अतका, जहर भरे नइ तो होही।
देख झाँक के गत मनखे के,फफक फफक अन्तस रोही।
बड़े  छोट  ला घूरत  हावय, सारी  ला जीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा

धरम करम हा बाढ़े निसदिन,कम होवै अत्याचारी।
डरे  राक्षसी  मनखे  मनहा,कर  तांडव हे त्रिपुरारी।
भगतन मनके भाग बनादे,फेंक असुर मन बर भाला।
दया मया के बरसा करदे,झार भरम भुतवा जाला।
रहि  उपास  मैं  सुमरँव तोला ,सम्मारी  तीजा  बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।

बोली भाँखा करू करू हे,मार काट होगे ठट्ठा।
अहंकार के आघू बइठे,धरम करम सत के भट्ठा।
धन बल मा अटियावत घूमय,पीटे मनमर्जी बाजा।
जीव जिनावर मन ला मारे,बनके मनखे यमराजा।
दीन  दुखी  मन  घाव  धरे  हे,आके  तैं सी जा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा

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सार छंद - खैरझिटिया

डोल  डोल  के   डारा  पाना ,भोला  के  गुण   गाथे।
गरज गरज के बरस बरस के,सावन जब जब आथे।

सोमवार के दिन सावन मा,फूल पान सब खोजे।
मंदिर  मा भगतन  जुरियाथे,संझा  बिहना रोजे।

लाली दसमत स्वेत फूड़हर,केसरिया ता कोनो।
दूबी  चाँउर  छीत छीत के,हाथ ला जोड़े दोनो।

बम बम भोला गाथे भगतन,धरे खाँध मा काँवर।
नाचत  गावत  मंदिर  जाके,घुमथे आँवर भाँवर।

बेल पान अउ चना दार धर,चल शिव मंदिर जाबों।
माथ  नवाबों  फूल  चढ़ाबों ,मन चाही  फल पाबों।

लोटा  लोटा  दूध  चढ़ाबों ,लोटा  लोटा  पानी।
भोले बाबा हा सँवारही,सबझन के जिनगानी।

साँप  गला  मा  नाँचे  भोला, गाँजा   धतुरा  भाये।
भक्तन बनके हवौं शरण मा,कभ्भू दुख झन आये।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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दुर्मिल सवैया :- जगदीश "हीरा" साहू

*शिव महिमा*

खुश हे हिमवान उमा जनमे, सबके घर दीप जलावत हे।
घर मा जब आवय नारद जी, तब हाथ उमा दिखलावत हे।।
बड़ भाग हवै कहिथे गुनके,  कुछ औगुन देख जनावत हे।
मिलही बइहा पति किस्मत मा, सुन हाथ लिखा बतलावत हे।।1।।

करही तप पारवती शिव के, गुण औगुन जेन बनावत हे।
झन दुःख मना मिलही शिव जी, कहि नारद जी समझावत हे।
सबला समझावय नारद हा, महिमा समझै मुसकावत हे।
खुश होवत हे तब पारवती, तप खातिर वो बन जावत हे।।2।।

तुरते शिवधाम सबो मिलके, अरजी तब आय सुनावत हे।
सब देव खड़े विनती करथे, अब ब्याह करौ समझावत हे।।
शिव जी महिमा समझै प्रभु के, सबके दुख आज मिटावत हे।
शिव ब्याह करे बर मान गये, सब झूमय शोर मचावत हे।।3।।

मड़वा गड़गे हरदी चढ़गे, हितवा मितवा सकलावत हे।
बघवा खँड़री पहिरे कनिहा, तन राख भभूत लगावत हे।
बड़ अद्भुत लागय देखब मा, गर साँप ल लान सजावत हे।।
सब हाँसत हे बड़ नाचत हे, सुख बाँटत गीत सुनावत हे।।4।।

अँधरा कनवा लँगड़ा लुलवा, सब संग बरात म जावत हे।
जब देखय सुग्घर भीड़ सबो, शिव जी अबड़े मुसकावत हे।।
जब देखय विष्णु समाज उँहा, तब आ सबला समझावत हे।
तिरियावव संग ल छोड़व जी, शिव छोड़ सबो तिरियावत हे।।5।।

लइका जब देखय जीव बचा, घर भीतर जाय लुकावत हे।
जब देखय रूप खड़े मयना, रनिवास म दुःख मनावत हे।।
तब नारद जी रनिवास म आ, कहिके सबला समझावत हे।
शिव शक्ति उमा अवतार हवे, महिमा सब देव बतावत हे।।6।।

सुनके सबके मन मा उमगे, तब मंगल  गीत सुनावत हे।
सखियाँ मन आज उछाह भरे, मड़वा म उमा मिल लावत हे।।
शिव पारवती जब ब्याह करे, सब देव ख़ुशी बड़ पावत हे।
सकलाय सबो झन मंडप मा, मिल फूल उँहा बरसावत हे।।7।।

जयकार करे सब देव उँहा, तब संग उमा शिव आवत हे।
जब वापिस आय बरात सबो, खुश हो तुरते घर जावत हे।
मन लाय कथा सुनथे शिव के, प्रभु के किरपा बड़ पावत हे।
कर जोर खड़े जगदीश इँहा,  शिव पारवती जस गावत हे।।8।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा), छत्तीसगढ़

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 *सरसी छंद~ शिवजी के बरतिया वर्णन*
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फागुन चउदस शुभ तिथि बेरा, सब झन हें सकलाय।
शिव बरात मा जुरमिल जाबो, संगी सबो सधाय।1।

बिकट बरतिया बिदबिद बाजँय, चाल चलय बेढ़ंग।
बिरबिट करिया भुरुवा सादा, कोनो हे छतरंग।2।

कोनो उघरा उखरा उज्जट, उदबिदहा उतलंग।
उहँदा उरभट कुछु नइ घेपँय, उछला उपर उमंग।3।

रोंठ पोठ सनपटवा पातर, कोनो चाकर लाम।
नकटा बुचुवा रटहा पकला, नेंग नेंगहा नाम।4।

खड़भुसरा खसुआहा खरतर, खसर-खसर खजुवाय।
चिटहा चिथरा चिपरा छेछन, चुन्दी हा छरियाय।5।

जबर जोजवा जकला जकहा, जघा-जघा जुरियाय।
जोग जोगनी जोगी जोंही,  बने बराती जाय।6।

भुतहा भकला भँगी भँगेड़ी, भक्कम भइ भकवाय।
भसरभोंग भलभलहा भइगे, भदभिदहा भदराय।7।

भकर भोकवा भिरहा भदहा, भूत प्रेत भरमार।
भीम भकुर्रा भैरव भोला, भंडारी भरतार।8।

मौज मगन मनमाने मानय, जौंहर उधम मचाय।
चिथँय कोकमँय हुदरँय हुरमत, तनातनी तनियाय।9।

आसुतोस तैं औघड़दानी, अद्भूत तोर बिहाव।
अजर अमर अविनासी औघड़, अड़हा 'अमित' हियाव।10।

*कन्हैया साहू "अमित"*
शिक्षक~भाटापारा छ.ग.
9200252055
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(मनहरण घनाक्षरी)-रामकुमार चन्द्रवंसी
    चलो शिव के दुवारी

सुनो सब नर-नारी,साजलौ सुग्घर थारी,
जाबो शिव के दुवारी,लगे दरबार हे।
नरियर दीया बाती,धर फूल बेल पाती,
करत हे जगमग,सजे शिव द्वार हे।
दूध धतूरा चढ़ाबो,चलो शिव ल मनाबो,
लगावत शिव जी के भक्त जयकार हे।
हावे अवघड़ दानी,भोलेनाथ वरदानी,
द्वार आये भगत के करत उद्धार हे।।

भोले के दरस पाबो,चलो शिव द्वार जाबो,
जाके माथ ल नवाबो,आगे शिवरात गा।
भक्त मन गावत हे, ढोलक बजावत हे,
निकलत हावे संगी शिव के बरात गा।
भोले हे दयालु बड़,कहलाथे अवघड़,
भगत के झोली म हे खुशी बरसात गा।
शोभा बड़ हे नियारी,लोग सब आरी-पारी,
करके दरस हावे भाग सँहरात गा।।

राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी(छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
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चौपाई छंद - बोधन राम निषादराज

जय  हो  भोला  मरघट   वासी।
शिव शम्भू तँय हस अविनासी।।
भूत    नाथ    कैलाश   बिराजे।
मृग  छाला  मा  चोला   साजे।।

नन्दी    बइला    तोर    सवारी।
भुतहा  मन  के तँय  सँगवारी।।
पारबती     के    प्रान    पियारे।
धरमी   छोड़   अधरमी   मारे।।

जय   हो    बाबा   औघड़दानी।
जटा    बिराजे    गंगा    रानी।।
राख   भभूती   तन  मा   धारे।।
गर मा  बिखहर   सांप  पधारे।।

पापी    भस्मासुर    ला     मारे।
अपन  लोक  मा  ओला   तारे।।
पारबती    के    लाज    बचाए।
ऋषि मुनि  योगी  गुन ला गाए।।

भांग    धतूरा    मन   ला   भाये।
सिया  राम   के  ध्यान   लगाये।।
बइठे     परबत  मा      कैलाशी।
अंतर्यामी        हे     अविनासी।।

महाकाल    हे    डमरू     वाला।
जय  शिव  शंकर  भोला भाला।।
मंदिर     तोर      दुवारी    आवौं।
मनवांछित  फल  ला मँय पावौं।।

छंदकार - बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)
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चौपाई छंद - श्रीमती आशा आजाद

जय हो हे भोला भंडारी।तँय ता सबके पालन हारी।
बाढ़े अत्याचार मिटादे।नारी के तँय मान बचादे।।

सरग लोक मा बइठे भोला।पाप म जलगे नारी चोला।
अंधकार ले नोनी रोवै।मान अपन ओ निसदिन खोवै।।

रिश्ता नाता सबो भुलागे।मानुष तन ये आज रुलागे।
अपन कोख मा राखै नारी।समझय नइ गा अतियाचारी।।

जगा जगा हे छुपे लुटेरा।नारी राखै कहाँ बसेरा।
अवतारी बनके तँय आजा।नारी के अब लाज बचाजा।।

कोन डहर अब मान बचावै।कोन जगा गोहार लगावै।
न्याय कहाँ अब मिलही बोलौ।तीसर आँखी अब ता खोलौ।।

तँय ता चुप्पे देखत ठाढ़े।ये भुइयाँ मा पापी बाढ़े।
कबतक तँय पूजा करवाबे।पापी ला कब मार गिराबे।।

भोले तँय अब डमरु बजादे।आज मान के दीप जलादे।
सुख ले राहय जम्मो नारी।सुख के तही हवस अधिकारी।।

आशा बेटी सुमिरय तोला।कलजुग मा तँय आजा भोला।
प्रेम सम्मान सुमता लादे।ये भुइयाँ मा प्रेम बढ़ादे।।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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दोहा छंद-बृजलाल दावना

भोले शंकर शिव धरे ,तिरछुल डमरू हाथ ।।
गल मा माला साँप के,चंदा चमके माथ।।

बेलपात दूबी दही ,चलो चढा़बो आज।
अवघड़ भोले नाथ हा ,रखही तभ्भे लाज ।।

धोवा चांउर ला सखी ,मनखे जेन चढा़य ।
हो जावै भव पार वो,भोला ले वर पाय।।

महाकाल ये जगत मा ,महादेव कहलाय।।
भजन करव शिव नाम के,भोला पार लगाय ।

राख ल चुपरे अंग मा ,भेष अजीब  बनाय ।
बइहा कस भोला दिखे,जटा जूट छरियाय ।।

नीलकंठ शंकर हरे ,सांप गला लपटाय ।
भूत प्रेत नाचै जिहां, शंकर धुनी रमाय ।।

बृजलाल दावना
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विष्णु पद छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय- महाशिवराती

परब महाशिवराती के दिन, बिगड़े काम बने।
चारो कोती महा परब ये, सुग्घर घात मने।।

भोलेबाबा के महिमा ले, ये संसार चले।
मंत्र महामृत्युंजय जप लव, संकट काल टले।।

महाकाल के भक्ततन मन बर, दिन ये खास हरे।
नाम जपे ले सच्चा मन ले, शिव डर दूर करे।।

बने महाशिवराती के दिन, पुन असनान करो।
बेल पान अउ दूध चढ़ा के, शिव के ध्यान धरो।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
 महासमुन्द (छत्तीसग

Wednesday, February 19, 2020

बिष्णुपद छंद-कुलदीप सिन्हा

बिष्णुपद   छंद-कुलदीप सिन्हा

हवे गरीबी करना दुरिहा, महिनत तैं कर ले।
पाना हावे ज्ञान कहूं ते, पुस्तक ला धर ले।।

शरण गुरू के हावे जाना, भाव भक्ति भर के।
उही दिखाही बाट सरग के, दुख पीरा हर के।।

नरवा  गरुवा घुरवा बारी, राखव सब मिलके।
फूल लगाओ गमला मा जे, बने रहे खिल के।।

दूध दही हे पीना तुमला, पालो गा गरुवा।
हवे सुरक्षित रखना उनला, छा छानी परवा।।

सुंदर सुंदर फूल लगाओ, बारी मा घर के।
उनकर मन के आप करव गा, सेवा जी भर के।।

नरवा के पानी ला संगी, बांध हवे रखना।
करो सिंचाई बारी मा जी, बोवव गा मखना।।

नशा पान झन करहू भइया, हरै बहुत खतरा।
मानो जी कहना ला सबके, करो नहीं नखरा।।

जिनगी मा सुख पाना हे ते, रद्दा सत धरले।
खुद के दुख  तेहा अब तो, खुद ही गा हरले।।

राम नाम के जप तैं माला, हावय यदि तरना।
कर नइ पाबे अतना ला तैं, का जीना मरना।।

स्वच्छ रखव जी घर कुरिया ला, बात तनिक सुनले।
जीना हावय तुमला जिनगी, मन ही मन गुन ले।।

कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( धमतरी )

Tuesday, February 18, 2020

विष्णुपद छंद - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

विष्णुपद छंद - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

देश धरम अब कहाँ दिखत हे, मोला दौ बतला।
बइठ सुवारथ के कुर्सी मा, नेता गँय पगला।।

रिश्वतखोरी लूट डकैती, जग ला रोग धरे।
कोई तरसे कौंर निवाला, कोई भूख मरे।।

रोजगार के बात कहाँ हे, शिक्षा गर्त पड़े।
युग निर्माता भावी पीढ़ी, धरमन द्वार खड़े।।

वोट बैंक अब जनता बनगे, समझव खेल इहाँ।
राजनीति के मतलब बदले, सेवा भाव कहाँ।।

न्याय कहाँ हे सच के रद्दा, झूठा राज करे।
ढोंगी तपसी पाखंडी मन, सत्ता आज भरे।।

अपन वोट के कीमत जानौ, सुन पहिचान करौ।
गजानन्द हे ध्यान धरावत, अब तो ध्यान धरौ।।

छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

विष्णुपद छंद- महेंद्र कुमार बघेल

विष्णुपद छंद- महेंद्र कुमार बघेल
     (सच होही सपना)
एक आदमी आय रहय जी, सपना मा रतिहा।
गोठ बात ठसलगहा ओकर, चले तेज मति हा।।
सबले पहली वोहा बोलिस, महिनत ला सुमरो।
जग ला हरियर ठाॅंव करे के, जुम्मे हे तुमरो।।
धरा धाम के बढ़त ताप हा, आय तुॅंहर करनी।
सरी जगत मा जीव जंतु के, होवत हे मरनी ।।
हरियर हरियर जंगल पर्वत, नदिया नाश करे।
सॅंउहत काल बुलाके तॅंय हा, कोठी अपन भरे ।।
साफ सफाई के ओखी मा, मारत हस नखरा।
अगल बगल फेंकत कचरा ला, होगे बुध पखरा।।
चोबिस घंटा आॅंखी खोले, देखत हो मॅंय हा।
मोर कोन हा का बिगाड़ही, कहत रथस तॅंय हा।।
पेड़ लगावत रोज छपत हे, फोटू पेपर मा।
फेर साल भर लात तान के, सुते रथव घर मा।।
करिया चिटहा गुॅंगवा उगलत, चिमनी इहाॅं उहाॅं।
साफ साॅंस बिन तन हा हफरय, हे उद्योग जिहाॅं।।
सबो कारखाना छोड़त हे, गंदा जल महुरा ।
पानी मा बिख घोरइया ला, थोरिक झन सहुरा।।
फूल पान राखड़ धोवन ले, तरिया हा खिरथे।
गाॅंव शहर के गंदा पानी, नदिया मा गिरथे।।
कतिक कहॅंव मॅंय तोर चरित ला, अब नइहे कहना।
मोर निवेदन अतका हे बस, मनखे कस रहना।।
सबके मंगल होवय अइसन, रद्दा नेक चुनौ।
आखिर का कीहिस सपना मा, ओला आव सुनौ।।
उत्सव पर्यावरण मनावत, कसम खाव अतना।
साफ मिलय जल हवा मृदा बस, जरवत हे जतना।।
धरा हवा जल माटी ला जब, मान लुहू अपना।
भरे खेत खलिहान रही सब, सच होही सपना।।

छंदकार- महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव ,
जिला राजनांदगांव

Sunday, February 16, 2020

बिष्णुपद छंद:- गुमान प्रसाद साहू


बिष्णुपद छंद:- गुमान प्रसाद साहू
।मेट अपन मन के अँधियारी।।
दीन दुखी के मन से सेवा, मनखे तैं करले।
प्रेम भाव ले नाम कमाके, झोली तैं भरले।।
बैर कपट झन कर कोनो बर, इरखा मा परके।
मेट अपन मन के अँधियारी, उज्जर मन करके।।1

जात पात अउ ऊँच नीच के, मन ले भेद भगा।
करले सबले आज मितानी, हिरदे अपन लगा।।
तभे नाम हा अमर जगत मा, रहिथे जी मरके।
मेट अपन मन के अँधियारी, उज्जर मन करके।।2

अपन रूप अउ धन बल मा जे, मान करत फिरथे।
जादा ऊपर उड़ै नहीं वो, मुँड़भरसा गिरथे।।
निरमल काया अपन बनाले, सेवा तैं करके।
मेट अपन मन के अंधियारी, उज्जर मन करके।।3

छंदकार:- गुमान प्रसाद साहू
ग्राम :-समोदा (महानदी )
जिला:- रायपुर, छत्तीसगढ़

Saturday, February 15, 2020

विष्णुप्रद छंद (आधारित गीत )-ज्ञानुदास मानिकपुरी

विष्णुप्रद छंद (आधारित गीत )-ज्ञानुदास मानिकपुरी

तोर मया हा बनके दउँडय,खून मोर रग मा।
चाही तोर भरोसा हा बस,मोला पग पग मा।

1-दुश्मन बने जमाना रानी,आँखी देख गड़े।
    अब तो मुश्किल हावय बचना,रद्दा रोक खड़े।
कोन अपन सब हवय पराया, ये बइरी जग मा
चाही-----

2-फिकर कुछू के नइये मोला,धार तरी सर हे।
   चाहे कोनो कुछू कहय वो,नही कुछू डर हे।
तोर मया बस चाही रानी,चिल्हर या नग मा।
चाही-----

ज्ञानुदास  मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी
जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)

Thursday, February 13, 2020

विष्णुपद छंद - विरेन्द्र कुमार साहू,




विष्णुपद छंद - विरेन्द्र कुमार साहू,

आनी बानी रोग धरत हे, नर ला ढोर सहीं।
हरय माँस खवई के फल ये, खावव माँस नहीं।१।

अब पशु मन के बीमारी हा, नर मा आवत हे।
खुद के बुनें जाल मा मनखे, खुदे झपावत हे।२।

स्वाइन फ्लू अउ रोग बर्ड फ्लू, नंगत घातक हे।
कोरोना कस बीमारी हा, जग के नाशक हे।३।

कोन जनी अउ का हो जाही, सुधरव रे मनखे।
नहिते जीना पड़ही तुम ला, दिन-दिन गन गनके।४।

तन हा रइही टन्नक भारी, नइ खाबे झटका।
हवय विटामिन अउर कैल्शियम, सब्जी मा अतका।५।

कुकरी मछरी खाके संगी, अब झन पाप धरौ।
कंद मूल मन अमृत सहीं हें, शाकाहार करौ।६।

छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू ,
बोड़राबाँधा(पाण्डुका),
राजिम छत्तीसगढ़, मो. -9993690899

Wednesday, February 12, 2020

विष्णु पद छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे

विष्णु पद छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे

सुमता के रद्दा मा रेंगव,दया मया धरके।
मया बाँट लौ सब मनखे ले,झोली भर भरके।।

बनव सहारा दुखिया मन के,दुख पीरा हरलौ।
येही जग मा सार हवय जी,नेक करम करलौ।।

बैर-भाव ला छोड़ौ जम्मो,मनखे एक सबो।
भाई-भाई हावन सब गा,जुरमिल संग रबो।।

जात-पात हा हमर बनाये,ए ला कोन धरे।
छोड़व मन के इरखा संगी,मन संताप हरे।।

भाई-चारा बाढ़त जावै,अइसन काम करौ।
करै द्वारिका सार गोठ जी,मन मा ध्यान धरौ।।

छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा/

Tuesday, February 11, 2020

सार छंद - श्रीमती आशा आजाद

सार छंद - श्रीमती आशा आजाद

समता जग मा बगरावौ जी,भाईचारा लावौ।
समरसता के भाव रहै जी,उजियारा बगरावौ।

मनखे मनखे एक रहव जी,बोलिन सुग्घर बानी।
गुरुघासीदास ह मानौ जी,अब्बड़ राहिन ज्ञानी।

बाबा अम्बेडकर ह बोलिन,जात पात ला भूलौ।
समता के रद्दा म रेगौं,हिरदे मन ला छूलौ।

गाँधी जी के नेक वचन ला,सबझन सुग्घर मानौ।
झूठ लबारी गोठ त्याग के,सबला अपने जानौ।।

इँदिरा गाँधी सुग्घर बोलिस,नारी साहस धरलौ।
अनाचार ले जुरमिल लड़हूँ,तन लोहा कस रखलौ।।

झाँसी के रानी के हिम्मत,सबला ये सिखलाथे।
मुसकिल होवै कतको भारी,दुनियाँ ले लड़ जाथे।

छूआछूत ला दूर भगाके,सबझन मन दमकावौ।
मनुज रक्त हा एक हवे जी,मानवता अपनावौ।।

भेदभाव ला तोड़ौं जम्मो,इरखा द्वेष मिटावौ।
नारी के सम्मान करौ जी,देश ल सुघर बनावौ।।

शिक्षा के अनमोल रतन ला,जन जन मा फैलावौ।
अंतस हिरदे जोश जगाके,कमजोरी ल भगावौ।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर, कोरबा छत्तीसगढ़

Monday, February 10, 2020

विष्णु पद छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

विष्णु पद छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बात बात मा जे मनखे मन,जादा क्रोध करे।
तेखर तन मन आग बरोबर,बम्बर रोज बरे।।

मिले नही कुछु क्रोध करे ले,होय बिगाड़ भले।
क्रोध करइया के जिनगी के,सुख के सुरुज ढले।

रखे क्रोध ला जे काबू मा,तेखर होय भला।
क्रोध करइया मन हर जीथे,सुख अउ शांति गला।

कंस क्रोध मा होगिस अँधरा,पालिस बैर बला।
रावण घलो क्रोध मा मरगिस,लंका अपन जला।।

मनुष होय सुर दनुज जानवर,सबला क्रोध लिले।
जेन राख पावै जी काबू,तेखर भाग खिले।।

मनुष हरस तैं बुद्धि वाले,अपन दिमाक लगा।
क्रोध लोभ अउ मोह होय नइ,कखरो कभू सगा।

क्रोध राख के काम करे जे,तेखर आय रई।
देव दनुज अभिमानी ज्ञानी,आइस इँहा कई।

क्रोध काल ए क्रोध जाल ए, क्रोध ह हरे दगा।
क्रोध छोड़ के दया मया ला,अन्तस् अपन लगा।

क्रोध छोड़ जे दया मया ला,पाले अपन जिया।
तेखर जिनगी मा सुख छाये,पाये राम सिया।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Sunday, February 9, 2020

बिष्णुपद छंद-संतोष कुमार साहू

बिष्णुपद छंद-संतोष कुमार साहू

भाई भाई के रिश्ता हा,सदा रहे अइसे ।
राम लखन अउ भरत शत्रुघन,भाई हे जइसे।।

धन दौलत बर भाई भाई,होवय झन झगड़ा।
तभे एकता हरदम राहय,भाई मा तगड़ा।।

प्रेम भाव ला भाई भाई,सदा रखे धर के।
तभ्भे ऊँखर उन्नति होवय,नित सुग्घर घर के।।

एक दूसरा के गलती ला,सीखे नित सहना।
भूल चूक ला क्षमा करे सब,उचित इही कहना।।

गोठ बात हा सब आपस मा,अगर हवय कड़वा।
भाई सुमता हा एखर से,बड़ होवय बड़वा।।

भाई भाई सब सुग्घर ही,सदा रहे हँस के।
मन मुटाव से कभू रहे झन,आपस मा फँस के।।

दुख संकट हा आय कभू तब,दूर करे मिल के।
भाई भाई सम्बंध हरे गा,पक्का ये दिल के।।

छंदकार-संतोष कुमार साहू
रसेला,जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़

Saturday, February 8, 2020

विष्णु पद छंद - श्लेष चन्द्राकर

विष्णु पद छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - बसंत ऋतु

ऋतु बसंत ला जग वाला मन, ऋतु राजा कहिथें।
भुला जथें जाड़ा के दुख ला, खुश येमा रहिथें।।

पाना झरथे रुखराई के, आथे पात नवा।
सुरुज किरण हा अबड़ सुहाथे, बहथे वात नवा।।

बने फूल परसा के खिलथे, लगथे सुग्घर गा।
फसल जवां सरसों के करथे, भुँइया उज्जर गा।।

घात फूल मन मा मंँड़राथे, तितली अउ भँवरा।
हरा-भरा घर-घर मा दिखथे, तुलसी के चँवरा।।

कूक कोयली के सुनथन सब, बखरी जंगल मा।
ऋतु बसंत मा हमर गुजरथे, जिनगी मंगल मा।।

ऋतु बसंत मा बने नजारा, देखे बर मिलथे।
फूल नीक बड़ रंग-बिरंगा, ये घानी खिलथे।।

पेड़ मउरथे आमा के जी, ममहाथे भुँइया।
बड़ हावा पबरित बोहाथे, जे भाथे गुँइया।।

पिंवरा चुनरी ओढ़े भुँइया, सुग्घर घात लगे।
देख नजारा अच्छा दिन के, सब मा आस जगे।।

नवा नवरिया पंच तत्व हा, मन मा जोश भरे।
सुख मनखे ला बड़ देवइया, ऋतु मधुमास हरे।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
 महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

मैं छत्तीसगढ़ के माटी अँव - जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया


जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी के कालजयी रचना "माटी" के संगीतमय प्रस्तुति, छत्तीसगढ़िया मन बर इहाँ प्रस्तुत करे जाs थे। ये रचना ला ओमन अपन बीस बछर के उमर मा लिखे रहिन। एला सुनके स्वाभिमान जागथे। अपन अधिकार बर जागरूकता आथे। छत्तीसगढ़ के संपन्नता अउ वैभव के दर्शन होथे। ये रचना मा छत्तीसगढ़ के माटी के मानवीकरण होइस हे। माटी अपन संतान के पीरा ला कइसे महसूस करत होही। अपन संतान से का अपेक्षा रखत होही, छत्तीसगढ़ी गीत के माध्यम ले जाने बर मिलही।

"लय", गीत के आत्मा होथे। जब आत्मा ले गीत निकलथे तब लयबद्ध होके निकलथे। आत्मा ले निकले गीत, बिना छन्द के बंधन मा बँधे, छन्द के काफी नजदीक होथे। ये गीत वाचिक परम्परा मा 16 - 16 मात्रा के "मत्त-सवैया" आय। मात्रा गणना मा भले एक दू मात्रा के अंतर दिखही फेर उच्चारण अनुसार 16-16 मात्राभार के पालन करत हे।

सम्पूर्ण "माटी" लगभग एक घंटा के हे। डाटा के सीमा ला ध्यान मा रखके एकर छै भाग बनाए गेहे। ये रचना ला ध्यान से सुने मा नवा कवि मन ला लिखे बर एक नवा दिशा मिलही, नवा सोच पैदा होही संगेसंग छत्तीसगढ़ी भाषा के चमत्कार,संपन्नता अउ सामर्थ्य के पता चलही। ये गीत ला अपन ददा-दाई, भाई-बहिनी अउ बेटा-बेटी के साथ बइठ के सुन सकथव। ये कालजयी कृति ला हर छ्न्द साधक ला सुनना अउ गुनना चाही।

अरुण कुमार निगम

Wednesday, February 5, 2020

सार - छंद (आजादी )रामकली कारे

सार - छंद (आजादी )रामकली कारे

जुग - जुग भारत भुइयाँ के जी, बने रहय आजादी।
धरव तिरंगा झण्डा ला सब, पहिरव कपड़ा खादी।।

आजादी के डार बीज हा, बेटा रतन गवाँगे।
भारत भुइयाँ के माटी ले, आजादी ला माँगे।।

भारत माता के सेवा बर, अड़बड़ लड़िन लड़ाई।
भगत सिंह आजाद राज गुरु, बोस करिन अघुवाई।।

हाँसत हाँसत फाँसी चढ़गिन, आजादी बलिदानी।
अपन देश के माटी खातिर, देइन अपन जवानी।।

आजादी के आज परब हे, जुरमिल सबो मनाबो।
तीन रंग के ध्वजा तिरंगा, लहर लहर लहराबो।।

भारत माँ के मान बढ़ाबो, देश हमर महतारी।
धाम धरा के रक्षा करबो, अब चलव संगवारी।।

जन गण मन के भारत माता, जय जय तोरे गावँव।
बलिदानी सब वीरन मन के, चरनन माथ नवावँव।।


छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
छत्तीसगढ़

Tuesday, February 4, 2020

सार छंद--सुधा शर्मा

सार छंद--सुधा शर्मा

1-
जघा जघा मा मिलथे संगी,
देखव अब तो दारू।
भठ्ठी खुलगे पीयत बइहा,
माते नशा म कारू।
2-
गारी देवत फोर फोर के,
लाज शरम ला छोड़े।
मारा पीटी संग सुवारी,
मूड़ी कान ल फोड़े।
3-
लइका इस्कुल जावत हावें
लादे पीठ म बोझा।
कोंवर लइका उमर बँधाये,
किसिम किसिम के जोझा।
4-
मूड़ी बड़का पागा होगे
बेरा कइसन आगे।
धरे नवा रद्दा ला देखव,
सपना पीछू भागे।
5-
धरती मात गुहार लगावै,
बाढ़त हावे पीरा।
मनखे करनी बिगरत हावे,
गुण मा परगे कीरा।
6-
धुंआ अगास पीयत आकुल
बिगड़े धरती काया।
देखत मनखे अपन सुवारथ,
काटे रुखवा छाया।
7-
जंगल झाड़ी उजरत हावें,
नँदिया तरिया रोवत।
पथरा परगे बुद्धि म सबके,
अपने सुख ला खोवत।
8-
रंग रंग के होत बिमारी,
होय जहर कस पानी।
भरत अन्न पानी मा दवई,
बिपदा मा जिनगानी।
9-
झिल्ली गा झन बउरव कोनो,
गइया मन सब खाथें।
मूक होय गउ माता संगी,
अपने मौत बलाथें।
10-
धरती दाई के कोरा मा,
झिल्ली गल नइ पावय।
करे अन्न धन के नुकसानी,
परिया खेत बनावय।

छंद कारा--
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

Monday, February 3, 2020

सार छंद - शशि साहू(राखी)

सार छंद - शशि साहू(राखी)

झन बिसराबे भैया मोला, भेजत हावव राखी।
कच्चा डोरी मा अरझे हे,हमर मया के साखी।

तोर सोर हर जग मा होवय,बाढ़े मान बढ़ाई।
पाँव गड़े झन काँटा खूँटी,मोर दुलरवा भाई।।

मिलय मान लोटा भर पानी, मुँह भर गुरतुर बोली।
अउ स्वार्थ मा झन बटाँय गा, मन के कोठी डोली।।

बाँटत रहिबो सुख दुख मन के, जइसे बाँटन खाई।
अरझे तागा ला जिनगी के,सुलझा लेबो भाई।।

सार छंद - शशि साहू
बाल्को नगर - कोरबा

Sunday, February 2, 2020

सार छंद - चित्रा श्रीवास

सार छंद - चित्रा श्रीवास

सुरता अब तुम करलव संगी, पावन दिन हा आगे।
मिले रहिस आजादी हमला, हमर भाग हा जागे।।

हाँसत हाँसत  फाँसी चढ़गे, खुदीराम बलिदानी।
तिलक भगत अउ लक्ष्मीबाई, देइन हे कुर्बानी।।

बेटा भारत माता के सब,हावन भाई भाई।
मिलजुल रहिबो जम्मो मनखे, होवन नहीं लड़ाई।।

छंदकार -चित्रा श्रीवास
सीपत बिलासपुर
छत्तीसगढ़

Saturday, February 1, 2020

सार छंद-संतोष कुमार साहू



सार छंद-संतोष कुमार साहू

अगर रखे संतोष हृदय मा,शाँति पाय वो भारी।
ये उपाय हे सुख के भइया,समझय नर अउ नारी।।

जतके इच्छा पाले मन मा,बढ़े ओतके जादा।
एक चाह हा पूरा होवय ,दूसर होय इरादा।।

सबो रोग के एक दवा ये,सुन लव बहिनी भइया।
जेन तीर संतोष हवय तब,ओकर सुखी रवइया।।

घर घर मा सब रहे एकता,हरदम करे तरक्की।
अपना ले संतोष सबो झन,बात हवय ये पक्की।।

जेकर कर संतोष बसे हे,रथे सदा वो तगड़ा।
छोटे छोटे बात बात मा,होय नही वो झगड़ा।।

दूर करे संतोष सबो के,लोभ मोह मानव के।
कभू बनन नइ दे आदत ला,जे आदत दानव के।।

अगर सदा संतोष हवय तब,लूट खसोट ह भागे।
कखरो भी दिल ला दुखाय के,इच्छा हा नइ जागे।।

दिल मा नित संतोष रथे तब,दया धरम हा आथे।
अहंकार अउ कपट भाव ला,हरदम दूर भगाथे।।

सुग्घर हे संतोषी गुण हा,खाय बाँट के खाना।
सबके हित बर सदा सोचना,आदत नेक बनाना।।

छंदकार-संतोष कुमार साहू
रसेला, जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़

सार छंद - श्लेष चन्द्राकर


सार छंद - श्लेष चन्द्राकर

विषय - रोजगार

रोजगार मिलना मुसकुल हे, नव पीढ़ी ला भइया।
इहाँ ठेलहा घूमत रहिथें, कतको पढ़े लिखइया।।

डिगरी धर के बइठे रहिथें, कहाँ नौकरी पाथें।
टूट जथे जब उनकर सपना, काम ठियाँ मा जाथें।।

उनकर सुनवाई होथे गा, जेमन पइसा ढिलथें।
इहाँ सिफारिश वाला मन ला, आज नौकरी मिलथें।।

रोजगार गा मिले सबो ला, ये उदीम कब होथे।
खुद सन ये अन्याव देख के, नव पीढ़ी हा रोथे।।

सबो हाथ ला काम मिले अब, अइसे होना चाही।
बइठे हन उम्मीद लगा के, नवा बिहिनिया आही।।

विषय - जनसंख्या

जनसंख्या बड़ बाढ़त हावय, कमती हे संसाधन।
अलकरहा उपयोग करत हे, बिन सोचे मनखेमन।।

बेटा के चाहत मा मनखे, जब परिवार बढ़ाथे।
बाढ़ जथे जब घर के खर्चा, तब अब्बड़ पछताथे।।

बेटी ला बेटा कस मानयँ, झन परिवार बढ़ावयँ।
पढ़ा लिखा के सुग्घर उनकर, जिनगी घला बनावयँ।।

कहाँ मिलत हे रोजगार गा, जनसंख्या के सेती।
बेचावत घर-द्वार सबो के, कम होगे हे खेती।।

काबू मा रइही जनसंख्या, जाग जही तब सबझन।
अउ अपनाही मनखे मन हा, जब परिवार नियोजन।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)