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Tuesday, June 30, 2020

बबा के मेछा (हास्य कुंडलिया)-मनी राम साहू मितान

बबा के मेछा (हास्य कुंडलिया)-मनी राम साहू मितान

(1)
तापत भुर्री जब बबा, चोंगी ला सिपचाय।
गिरजय आगी के लुकी, मेछा हा जर जाय।
मेछा हा जर जाय, तुरत वो रमँज बुझावय।
हड़बिड़ ले जब होय, छोर धोती फँस जावय
भगय फँसे ला हेर, तोलगी छूटय भागत।
कठलयँ नाती झार, सबो झन भुर्री तापत।

(2)
बूढ़ी दाई हा तुरत, मरदनिया बलवाय।
दिखत हवै ये बिन फबक, मेछा ला बनवाय।
मेछा ला बनवाय, धार ना राहय छूरा।
आधा हा बँच जाय, रोख ना पावय पूरा।
बबा लजावय खूब, मात जय जी करलाई।
जम्मो नाती संग, हँसय बड़ बूढ़ी दाई।

(3)
मरदनिया हा छोड़ के, जा छूरा पजवाय।
बाँचे मेछा ला बने, आ के तुरत बनाय।
आ के तुरत बनाय, नाक के कोर कटावय।
दिखय नाक हा लाल, लहू हा बड़ बोहावय।
काहय लइकन संग, हँसत नतनीन अघनिया।
नकटा बबा हमार, काट दे हे मरदनिया

मनीराम साहू 'मितान'

Monday, June 29, 2020

कुण्डलिया* सुरेश पैगवार

*कुण्डलिया* सुरेश पैगवार

                        (1)
रोजी रोटी कोन दय,   बंद परे सब काम।
ऊपर ले सब चीज के,  बाढ़त हावय दाम।।
बाढ़त हावय दाम,   काय खाबो हम भाई।
महँगाई के मार, लगय जिनगी करलाई।।
हँड़िया परे उपास, भूख मा अँइठे पोटी।
सुन ले गा सरकार, कोन दय रोजी रोटी।।

                        (2)
सुक्खा धरती हे परे,     आत कहूँ हे बाढ़।
मोर पछीना चूहथे,       तोला लागे जाड़।।
तोला लागे जाड़,       करम ला देबे दोषी।
लालच मा सब जाय, कहाँ हावस संतोषी।।
पइसा पाये खूब,   तभो ले हावस भुक्खा
काट-काट सब पेड़,करे धरती ला सुक्खा।।
                       (3)

बारी बिरवा सूखगे,        अलकर होगे घाम
बिन पानी सब जीव मन,भटकँय होके बॉम
भटकँय होके बॉम,  मिलय छइहाँ ना पानी
रोवत हवँय किसान,चलय कइसे जिनगानी
होगे सुक्खा बाँध,    जिया कलपय सँगवारी
कइसे करबो आज,    सूखगे बिरवा बारी।।

                   🙏 *सुरेश पैगवार*🙏
                             जाँजगीर

Sunday, June 28, 2020

कुण्डलियाँ :- जगदीश "हीरा" साहू

कुण्डलियाँ :- जगदीश "हीरा" साहू

पूजव मनखे जिंदा

जिन्दा मा पूछय नहीँ, मरे नवावय शीश।
मंदिर मा हो आरती, बाहर हे जगदीश।।
बाहर हे जगदीश, खड़े कोनो नइ जानय।
खोजय सब भगवान, बात काबर नइ मानय।।
मनखे सेवा सार, मान झन हो शर्मिंदा।
जिनगी अपन सँवार, पूजले मनखे जिन्दा।।

घर मा शौचालय बना

घर मा शौचालय बना, बढ़ही घर के मान।
खुश रइही बेटी बहू, जे हे घर के शान।।
जे हे घर के शान,  राख ले खुश तँय ओला।
सँवर जही घर-बार, पड़य ना रोना तोला।।
कहय आज जगदीश, बना ले तँय पल भर मा।
साथ दिही सरकार, बात  रखना तँय घर मा।।

तीजन बाई

तीजन बाई जी हवय, छत्तीसगढ़ के शान।
बगराये सब देश मा, छत्तीसगढ़  के मान।।
छत्तीसगढ़ के मान, बढ़ाये सब जग जाके।
पाये  बड़  सम्मान,  पंडवानी  वो   गाके।।
जानत हे  संसार, करे  सब  अबड़  बड़ाई।
छत्तीसगढ़ के शान, हवय जी तीजनबाई।।

जगदीश "हीरा" साहू (व्याख्याता)
कड़ार (भाटापारा), बलौदाबाजार
छत्तीसगढ़

कुण्डलियाँ छंद-मोहन निषाद

 (कुण्डलियाँ छंद)-मोहन निषाद

खेती के दिन आत हे , हावय मगन किसान ।
पानी  बादर  देख  के ,  बोथे  सुग्घर  धान ।।
बोथे  सुग्घर  धान , बने  जब  पानी  आथे ।
जोहय रद्दा रोज , देख  जब  बादर  छाथे ।।
 लगगे  हे  आषाढ़ ,  कहाँ हे  पानी  येती ।
सुक्खा मा जी कोन , इहाँ करथे गा खेती ।।

होवत हे पानी बिना , देखव ग हलाकान ।
आगे हे बरसात हा , सुग्घर दिन ला जान ।।
सुग्घर दिन ला जान , करे बर जी तँय खेती ।
मउका ला पहिचान , कहत हँव येखर सेती ।।
होथे मगन किसान ,  धान  ला सुग्घर बोवत ।
संसो  पड़गे  आज , सोच ये कइसन होवत ।।

पानी बरसत जी हवय , अब्बड़ संगी आज ।
भारी मगन  किसान हे , नाँगर बइला साज ।।
नाँगर बइला साज ,  खेत  मा  बावत करथे ।
बिजहा ला जी सींच , बने हरिया ला धरथे ।।
इही खेती के काम ,  तरे  जेमा  जिनगानी ।
जग के पालनहार , हँसय जब बरसै पानी ।। 

   रचनाकार -  मोहन कुमार निषाद
                  गाँव - लमती , भाटापारा ,
            जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

Friday, June 26, 2020

कुंडलिया छंद - कन्हैया साहू 'अमित

कुंडलिया छंद - कन्हैया साहू 'अमित'

भाखा हमर-1
महतारी भाखा अपन, होथे ब्रम्ह समान।
छोड़ बिदेशी मोह ला, करलव
निज सम्मान।
करलव निज सम्मान, मया के भरही झोली।
अंतस राखव बोध, अपन के बोलव बोली।
गुनव अमित के गोठ, सबो के पटही तारी।
छोंड़ छाँड़ अब लाज, बोल भाखा महतारी।


भाखा हमर-2
बड़ही बहुते जी बने, छत्तीसगढ़ी राज।
होही भाखा मा हमर, जब्भे जम्मों काज।
जब्भे जम्मों काज, गोठ मा
होहय जब्बर।
रद्दा खुलही नेक, बढ़े के सुग्घर सब बर।
पढ़व लिखव निज भाष, रहव झन, अड़हा अड़ही।
हमर राज हा पोठ, जबर के आगू बड़ही।

भाखा हमर-3
गुरतुर भाखा हे हमर, छत्तीसगढ़ी नाँव।
ममता के अँचरा इहाँ, सात जनम मैं पाँव।
सात जनम मैं पाँव, हमर हावय ये ईच्छा।
पूरन होवय साध, मिलय निज भाखा सिक्छा।।
कहय अमित कविराज, कभू नइ हे ये चुरपुर।
अपने बोली बात, लगय बड़ सब ला गुरतुर।।

छंद साधक-कन्हैया साहू 'अमित'
परशुराम वार्ड, भाटापारा छत्तीसगढ़
गोठबात~9200252055

Thursday, June 25, 2020

कुंडलिया छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

कुंडलिया छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

मजदूर

जीये बर मजदूर हे, तंगहाल मजबूर।
लेवय कोनो सुध नही, सुख सुविधा हे दूर।
सुख सुविधा हे दूर, कोन हे तारनहारी।
टोरय जाँगर रोज, तभो जिनगी अँधियारी।
घर मा दाना एक, नही पानी पीये बर।
 लगे रथे दिनरात, भूख प्यासे जीये बर।

नवा जमाना

नवा जमाना के चलन, दिखय नही संस्कार।
अपने मा सब हे मगन, भूलत हे व्यवहार।
भूलत हे व्यवहार, छोट हे कोन बड़े हे।
अपने ला सच मान, देख सब आज अड़े हे।
देख चुप्प हे सास, बहू के ताना बाना।
बेटा होय सियान, इही का नवा जमाना।

बदरा

बदरा आवत देखके, झूमत हवय जहान।
तइयारी मा हे अपन, जम्मो आज किसान।
जम्मो आज किसान, संग बइला अउ नाँगर।
जिनगी अपन पहाय, रोज के पेरत जाँगर।
हवय भरोसा तोर, कभू झन होबे लबरा।
सुनले हमर गुहार, बरस जा झम झम बदरा।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कवर्धा
(छत्तीसगढ़)

Wednesday, June 24, 2020

कुंडलियाँ छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी

कुंडलियाँ छन्द-राम कुमार चन्द्रवंशी

 "फूल अउ काँटा"
1
काँटा ल कहे फूल हर,सुन निर्मोही बात।
हिरदे मा धर प्रेम तैं,तभे तोर अवकात।
तभे तोर अवकात, हृदय जब नरम बनाबे।
कर घमंड के त्याग, जगत मा आदर पाबे।
राख पिरित के संग,जोड़ ले तैंहर नाता।
गाँठ बाँध के राख, बात ला तैंहर काँटा।।
2
काँटा बोलय फूल ला,अपन गरब तैं छोड़।
देख नरमता तोर नित, देथे लोगन तोड़।
देथे लोगन तोड़,कदर छिन भर हो पाथे।
गरुवा मन दिन-रात,चबाके तोला खाथे।
सदा मोर तैं संग,जोड़ के रखबे नाता।
झूलत रहिबे डार,फूल ला बोलय काँटा।।
               
छन्दकार-राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
छत्तीसगढ़

Tuesday, June 23, 2020

कुण्डलिया छंद -हीरालाल साहू "समय" छुरा

कुण्डलिया छंद -हीरालाल साहू "समय"  छुरा

रसायनिक खाद

रोज घटत हे खेत के ,उपजाऊ पन मान।
रसायनिक ये खाद हा,बैरी एखर जान।।
बैरी एखर जान, खेत मा झिन गा डारव।
भले मिलय कम धान,तभो ले मन ला मारव।
बीमारी घर आय,दुखी दिन रात कटत हे।
मान समय के बात, उपज हा रोज घटत हे।।

जैविक खेती

जैविक खेती नइ करे, काबर बहुत किसान।
उत्पादन हा कम मिले, मिलथे भाव समान।।
मिलथे भाव समान, लगे अउ मिहनत जादा।
करय कुछू सरकार, ऊँच कीमत के वादा।।
उपराहा मिल जाय , दाम मिहनत के सेती।
तभे सबो अपनाय, किसानी जैविक खेती।


पानी बचाव

पानी रोज बचाय के,जिनगी अपन सँवार।
ये अमरित ला पाय बर,होही तीसर वार।।
होही तीसर वार, उही ताकतवर बनही।
पानी के भंडार,राख जे छाती तनही।।
बूंद बूंद ला सँइत, कहे गा बड़का ज्ञानी।
नावा रद्दा खोज ,बाचही कइसे पानी।

सब्सिडी

बिजली घलो बचाय के,थोकिन करव उपाय।
एखर खपत ला कम करो,लागय झिन पछताय।।
लागय झिन पछताय, कोइला कमती हावय।
सँइते उर्जा आज , जौन हा आगू पावय।।
एहा करजा आय,सब्सिडी मिलथे जबतक।
मूड़ उपर चढ़जाय, बचावव बिजली तबतक।

छंदकार :- हीरालाल गुरुजी "समय"
        छुरा,जिला -गरियाबंद

Monday, June 22, 2020

कुण्डलियाँ छंद -दुर्गा शंकर इजारदार

कुण्डलियाँ छंद -दुर्गा शंकर इजारदार

लकड़ी-

लकड़ी हे बड़ काम के ,राखव चेत सकेल ,
जनम मरन के जात ले ,एकरेच हावय खेल ,
एकरेच हावय खेल ,जनम ले लइका सेंकव ,
खेले निकलव खोल,खेल गिल्ली के खेलव ,
नाँगर जोतव खेत ,बाँध के साफा पगड़ी ,
अंत समय मा राख ,करै जी मरघट लकड़ी ।।

चप्पल-

चप्पल ला कम आँक झन , आवय काम हजार ,
चटकत राहय भोंभरा ,पहिर चलव बाजार ,
पहिर चलव बाजार ,गड़े नइ गोड़ म काँटा ,
जब करे छेड़छाड़,गाल मा पड़थे साँटा ,
बड़का होथे घात ,बजे तब खप्पल खप्पल ,
नेता फिरे जुबान ,हार बन जाथे चप्पल।।

बहरी -

बहरी खैत्ता मत समझ ,आवै अब्बड़ काम ,
कूड़ा करकट झाड़ के ,घर करथे जी धाम ,
घर करथे जी धाम ,करे लक्ष्मी हा बासा ,
आवै सब दिन काम ,सबो घर बारह मासा ,
बड़े बिहनिया हाथ ,धरे देहाती शहरी,
किसिम किसिम हे नाम ,फूल खरहर गा बहरी ।।

दुर्गा शंकर इजारदार -सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

Sunday, June 21, 2020

कुण्डलियां छन्द:- गुमान प्रसाद साहू

कुण्डलियां छन्द:- गुमान प्रसाद साहू

।।किसान।।
नाँगर बइला जोड़ के, जावय खेत किसान।
खेत खार ला जोत के, बोंवत हावय धान।।
बोंवत हावय धान, किसानी के दिन आगे,
बरसत पानी देख, सबो के मन हरसागे।
महिनत करय अपार, खपावय दिन भर जाँगर,
जोड़ी बइला फाँद ,खेत मा जोतय नाँगर।।

।।भ्रष्टाचार।।
दिन-दिन बाढ़त जात हे, देखव भ्रष्टाचार।
भ्रष्टाचारी मौज मा, जनता हे लाचार।।
जनता हे लाचार, देश ला कोन बचावय,
हवय जेन रखवार, उही हा लूट करावय।
मनखे बदले भेष, आज देखव जी छिन छिन,
भारी लूट खसोट, देश मा होवय दिन-दिन।।

।।मोह माया छोड़।।
माया मोह गुमान हा, नइ आवय जी काम।
दू आखर के नाम ला, भजले सीता राम।।
भजले सीता राम, तोर जिनगी तर जाही,
हो जाबे भव पार, मुक्ति चोला हा पाही।
जाबे संगी छोड़, हवय माटी ये काया,
नइ आवय कुछु काम, तोर जतने सब माया।।

।।पानी।।
पानी बिन होवत हवय,जीव जन्तु बेहाल।
कोनो खँइता झन करव, राखव सब सम्हाल।।
राखव सब सम्हाल, हवय जिनगी जल जानव।
बूँद बूँद के मोल, सबो येकर पहिचानव।
बिरथा झन बोहाव, करव झन तुम मनमानी।
हावय बड़ अनमोल, जगत मा संगी पानी।।

छन्दकार:- गुमान प्रसाद साहू
ग्राम:- समोदा (महानदी)
जिला:- रायपुर छत्तीसगढ़

हेम के कुंडलिया

हेम के कुंडलिया

आँखी भारत देश ला,   झन तँय  देखा चीन।
जन्म जात के दोगला,   हावस तँय गुण-हीन।
हावस  तँय  गुण-हीन,  परे  चाल म  हे कीड़ा।
हमर  देश  के  शान,   तोर  बर  हावय  पीड़ा।
गिरबे  मुड़  के  भार,   हवय  डेना  ना  पाँखी।
झन तँय उड़ आगास, दिखाके हमला आँखी।1।

करथस छुपके पीठ मा, रतिहा कन तँय वॉर।
हवस हरामी चीन तँय,   जाबे   हरदम   हार।
जाबे हरदम हार,  छोड़ तँय  अपन अनैतिक।
रखथे हिम्मत पोठ,  हमर  भारत  के सैनिक।
सबो देश कन बैर,  चीन  तँय काबर रखथस।
जीत कभू नइ पास,  तभो लड़ई ला करथस।2।

आनी बानी खात हव, जीव मार के रोज।
कुकर बिलाई बेंदरा,  साँप डेरु केे  गोज।
साँप डेरु के गोज, हवव  कतका पापी रे।
होय प्रकृति हा नाश, बनव अब संतापी रे।
छोड़ बैर के भाव,  मया केे गढ़व  कहानी।
जीव मार झन खाव, रोग हो आनी बानी।3।
-हेमलाल साहू
ग्राम गिधवा, पोस्ट नगधा
तहसील नवागढ़, जिला बेमेतरा

Friday, June 19, 2020

कुण्डलिया छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

कुण्डलिया छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

मीडिया-
बने बिकाऊ मीडिया, झूठ लिखे अखबार ।
मूक बधिर जनता बने, अंधभक्त दरबार ।।
अंधभक्त दरबार, जपे बस राम कहानी ।
सत्य बात ला छोड़, झूठ के साथ मितानी ।।
रखथे घटिया सोंच, सिर्फ धन चीज कमाऊ ।
जेब धरे सरकार, मीडिया बने बिकाऊ ।।

नेता-
नेता देखव आज के, झूठा अउ मक्कार ।
वोट बैंक खातिर करे, वादा रोज हजार ।।
वादा रोज हजार, करे ना पर ओ पूरा ।
पाँच साल गे बीत, काम हा रहे अधूरा ।।
नेता बन भगवान, दिये दर्शन जुग त्रेता ।
जनता घलो महान, चुने घनचक्कर नेता ।।

जातिवाद-
दिखथे अब भी देश मा, जातिवाद के रोग ।
मानवता ला तोड़थे, कोंन हवय वो लोग ।।
कोंन हवय वो लोग, जाति खुद समझे बड़का ।
रंग लहू के एक, भेद के हे फिर जड़ का ।।
गजानंद कर जोर, छंद समता बर लिखथे ।
कुंठित सोंच विचार, देश मा अब भी दिखथे ।।


छंदकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छतीसगढ़ )

Thursday, June 18, 2020

कुण्डलिया छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

कुण्डलिया छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"

        १.- झन काँटव गा पेड़

झन काटव जी पेड़ ला, देथे जीवन दान।
आँक्सीजन अउ छाँव ला, देथे हमला जान।।
देथे हमला जान, बना के सुख जिनगानी।
नइ तो परे दुकाल, बने कन गिरथे पानी।।
शीतल मिलथे छाँव, हवा मनमोहक पाथव।
हरियर - हरियर पेड़, कभू कोनो झन काटव।।

         २.- गुरु महिमा

गुरु बिन शंका नइ मिटय, गुरु बिन मिटय न भेद।
ज्ञानदीप ला बार के, अँधियारी ला खेद।।
अँधियारी ला खेद, उजाला जग मा लावव।
करम करव सब नेक, नाम पुन सबो कमावव।।
होही गुरु परताप, जगत मा बाजय डंका।
जपव ओकरे नाव, मिटय नइ गुरु बिन शंका।।

     ३.-राजा भाषा छत्तीसगढ़ी

छत्तीसगढ़ी मा सबो, लिखव पढ़व ना यार।
काबर करथव लाज गा, सब झन हव हुशियार।।
सब झन हव‌‌‌ हुशियार, छोड़ दव दूसर भाषा।
छत्तीसगढ़ी बोल, जगा दव सबके आशा।।
बनव सबो गुणवान, रहव झन अड़हा अड़ही।
राजा भाषा आय, हमर ये छत्तीसगढ़ी।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा-नेवरा)
जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़ )
सचलभास क्रमांक- 9300 716 740

Wednesday, June 17, 2020

विश्व रक्तदान दिवस पर कुछ कुंडलियाँ-छंद के छ परिवार द्वारा

विश्व रक्तदान दिवस पर कुछ कुंडलियाँ-छंद के छ परिवार द्वारा

कुण्डलिया छंद- राज कुमार बघेल

रक्त दान दिवस

आवव मिलके आज सब, करव रक्त के दान ।
कतको जिनगी बाॅऺंचही, लाही मुख मुस्कान ।।
लाही मुख मुस्कान, दान दव ओरी ओरी ।
होवय खून ह शुद्ध, होय ना तन कमजोरी ।।
देख बचाथे जान, मान ये जग मा पावव ।
पुण्य काम बर मीत, बनव जी मिलके आवव ।।1।।

छोड़व सबो कुरीत ला, कहिथें सबो सुजान ।
तोर देय ये खून मा, बाॅऺंचय मनखे प्रान ।।
बाॅऺंचय मनखे प्रान, रीत ये हमन निभाबो ।
रक्त दान संदेश, चलव जी जग बगराबो ।।
रक्त दान अभियान, समूह म सबला जोड़व ।
हिरदे मा रख चाव, कुरीत ल मन ले छोड़व ।।2।।

होथे जी बड़ फायदा, संगी सुनव मितान ।
जल्दी बनथे खून हा, केन्द्रित होथे ध्यान ।।
केन्द्रित होथे ध्यान, करे कम दिल के खतरा ।
बन सॅऺंउहे भगवान, रखव झन मन ला पथरा ।।
पीढ़ी बर दे सीख, बीज जे जग मा बोथे ।
करव रक्त के दान, करे जे दानी होथे ।।3।।

हावय तिथि ये दान के, सिरतो चौदा जून ।
करले जग हित काज ये,जीव रोय बिन खून ।।
जीव रोय बिन खून, सरग के डहर बनाले ।
देहॅऺंय लोग असीस, जगत मा नाम कमाले ।।
धरती अउ आकास, खुशी के बदरी छावय ।
रहे अमर दिन आज,रक्त दाता दिन हावय ।।4।।

छंदकार- राज कुमार बघेल
            सेन्दरी बिलासपुर (छ.ग.)

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कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

रक्तदान

कतरा कतरा कीमती, हवै खून के यार।
दुख मा हे ऊंखर उपर, कर देवौ उपकार।
कर देवौ उपकार, जीत जिनगी वो जाही।
तुम्हर लहू के बूंद, काम ऊंखर बर आही।
बन जाथे झट खून, देय मा नइहे खतरा।
देथे जीवन दान, खून के कतरा कतरा।

कतको जिनगी खून बिन,तड़प तड़प मर जाय।
कतको के तन के लहू, बिरथा तक बोहाय।
बिरथा तक बोहाय, बने तभ्भो नइ दानी।
कतको जोड़ै हाथ, बचालव कहि जिनगानी।
देख नयन दव मूँद, बनव ना निरदइ अतको।
करव लहू के दान, सँवरही जिनगी कतको ।

सुविधा हे ब्लड बैंक के,कई जघा मा आज।
जेन जरूरत मंद के, रखे समय मा लाज।
रखे समय मा लाज, होय नइ ब्लड के तंगी।
जाके सबे जरूर, उँहा ब्लड देवव संगी।
भरे रही ब्लड बैंक, सहज टर जाही दुविधा।
करव लहू के दान, सबे बर होही सुविधा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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कुण्डलिया छंद--आशा देशमुख*

*कुण्डलिया छंद--आशा देशमुख*

*असाढ़*

1-आगे हवय असाढ़ अब,हाँसत हवँय किसान।
नॉगर बइला ला धरे, अउ टुकनी मा धान।
 अउ टुकनी मा धान,खेत कोती जावत हें।
मन मा खुशी अपार,गीत मन भर गावत हें।
पानी बरसत देख,ताप भुइयाँ के भागे।
खेती मीत असाढ़,झमाझम नाचत आगे।

*आत्महत्या*

2- घेरी बेरी हे उठत ,मन मा एक सवाल।
काबर खुद ला मारके,जावँय यम के गाल।
जावय यम के गाल,करँय बिरथा जिनगानी।
करमहीन डरपोक ,करँय अइसन नादानी।
मानुष तन अनमोल,राख के होगे ढेरी।
नइ सुलझत हे प्रश्न,,उठत हे घेरी बेरी।

*कोरोना*
3--कोरोना ले रात दिन ,लड़त हवय संसार।
बड़का बड़का शेर मन ,बनगे हवँय सियार।
बनगे हवँय सियार,माँद मा खुसरे बइठे।
होगे हें लाचार ,जेन मन अब्बड़  अइठे।
जिनगी बस अनमोल,करे का चाँदी सोना।
सउँहत घूमे काल,आय बनके कोरोना।

आशा देशमुख

Tuesday, June 16, 2020

कुण्डलिया छन्द - अजय अमृतांशु

कुण्डलिया छन्द - अजय अमृतांशु

"माटी"
चोला माटी के बने, झन कर तैं अभिमान।
मोर मोर करथस अबड़, हावय झूठी शान।।
हावय झूठी शान, अभी नइ समझे हावस।
का लेके तैं आय, नहीं कुछु ले के जावस।
पुण्य कमा ले थोर, अभी बरजत हँव तोला।
पानी मा घुर जाय, बने माटी के चोला।

"घाम"
हावय बाहिर घाम हा,कहत हववँ पतियाव।
घर मा बइठे रोज के, खूब कलिंदर खाव।।
खूब कलिंदर खाव, संग मा नींबू पानी।
जलजीरा अउ बेल, बचाही ये जिनगानी।
अतका करव उपाय,रोग लकठा झन आवै ।
घर मा करव अराम, घाम बाहिर मा हावय।

"नशा'
पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़त, नशा पान के रोग।
तम्बाखू सिगरेट के, बढ़त हवय उपभोग।।
बढ़त हवय उपभोग, बुलावा केंसर देथे।
मान अभी भी बात, प्राण ला सिरतो लेथे।
बीड़ी अउ सिगरेट, मौत के बनथे सीढ़ी।
नशापान दे छोड़ , आज के नावा पीढ़ी।।

अजय अमृतांशु
भाटापारा, छत्तीसगढ़

Monday, June 15, 2020

कुंडलियाँ - बोधन राम निषादराज

कुंडलियाँ छंद - बोधन राम निषादराज

(1) बिरहिन -

हाँसत हावै  फूल हा, मोरो  मन   बउराय।
भँवरा गुनगुन गात हे,आगी जिया लगाय।।
आगी जिया लगाय,कोन ला भेजँव पाती।
जोड़ी गय परदेश, दुःख मा  जरथे छाती।।
बैरी फागुन आय,करौं का कुछु नइ  भावै।
देख हाल ला मोर,फूल  हा  हाँसत  हावै।।

(3) छितका कुरिया -

तइहा के जी बात ला,लइका  देख  भुलाय।
नवा जमाना आय हे,छितका कुरिया काय।।
छितका कुरिया काय,कोन हा इहाँ बताही।
पक्का पक्का देख,सबो घर आज बनाही।।
मनखे  चतुरा  होय, गाँव  अउ घर छँइहा के।
कुरिया काय बताँव,बात ला जी तइहा के।।

(3) बइला गाड़ी -

खन खन देखव बाजथे,बइला गाड़ी ताय।
दू ठन बइला फाँदके,गाँव  गौंतरी  जाय।।
गाँव  गौंतरी  जाय, जोर के  माई  पिल्ला।
कतका गीत सुनाय,बइठ के चिल्ला चिल्ला।
लइका बच्चा देख,आत हे रन भन रन भन।
बइला गाड़ी हाँक ,बाजथे देखव खन खन।।

छंदकार- बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)

Sunday, June 14, 2020

कुंडलियां छन्द-द्वारिका प्रसाद लहरे


कुंडलियां छन्द-द्वारिका प्रसाद लहरे

(१) गुरु
पावन गुरु के नाँव हे,जप ले जी सतनाम।
चरण कमल के छाँव मा,पा ले गा सुख धाम।
पा ले गा सुख धाम,जनम ला सुफल बनाले।
होही हंसा पार,सदा गुरु ध्यान लगाले।।
कहै द्वारिका सार,बरसथे सुख के सावन।
सदा नवाले माथ,नाँव हे गुरु के पावन।।

(२) दाई बाबू
दाई बाबू के सबो,कर लव गा सम्मान।
देथें खुशी अपार जी,परगट ये भगवान।
परगट ये भगवान,करौ सब निस दिन सेवा।
इँखरे दे आशीष,समझ लव मिसरी मेवा।
पावव ममता छाँव,अपन जिनगी भर भाई।
करलव पूजा रोज,देवता बाबू दाई।।

(३) खेती खार
पावन खेती खार हा,भारत के पहिचान।
महिनत करथे रात-दिन,अब्बड़ हमर किसान।
अब्बड़ हमर किसान,खेत मा फसल उगाथे।
भरथे सबके पेट,इही भगवान कहाथे।
चना गहूँ अउ धान,लगे अड़बड़ मनभावन।
सुख के देथे छाँव,हमर खेती हे पावन।।

छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे
 व्याख्याता शा.उ.मा.वि.इन्दौरी/
बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़

Saturday, June 13, 2020

दोहा के 23 प्रकार :- जगदीश "हीरा" साहू

दोहा के 23 प्रकार :- जगदीश "हीरा" साहू

1.भ्रमर :- 22 गुरू, 4 लघु

बैरी घेरे हे इँहा,  साजे संगी भेस।
दुर्गा काली शीतला, काटौ मोरो क्लेस।

2. सुभ्रमर :- 21 गुरू, 6 लघु

माटी मा उपजे बढ़े, माटी खेले खोर।
माटी के चोला बने, होही माटी तोर।।

3. शरभ :- 20 गुरू, 8 लघु

काकी जावै भात ले, चटनी भाजी दार।
डब्बा मा पानी धरे, जावै बुड़ती खार।।

4. श्येन :- 19 गुरू, 10 लघु

दाई के आराधना, करबो मिलके आज।
काली के कर साधना, पूरा होही काज।।

5. मण्डूक :- 18 गुरू, 12 लघु

दाई के किरपा बिना, जिनगी हे बेकार।
करले सेवा काम तैं, होबे भव ले पार।।

6. मर्कट :-  17 गुरू, 14 लघु

दुःख दरद ला झेल के, देथे मया दुलार।
ओ दाई ला झन भुला, जस गाये संसार।।

7. करभ :-  16 गुरू, 16 लघु

धान बोंय ब्यासी करे, खेत निदे सब साथ।
रखवारी चूके कहूँ, कुछु ना आवय हाथ।।

8. नर :-   15 गुरू, 18 लघु

ये जग मा हे तोर गा, बस एके ठन काम।
करत ददा के बंदगी, जप लेना प्रभु नाम।।

9. हंस :-   14 गुरू, 20 लघु

पेट भरे खेती करे, ददा हमर दिन-रात।
झन तड़पा वो बाप ला, इही धरम के बात।।

10. गयंद :- 13 गुरू, 22 लघु

होत बिहनिया जाग के, बासी खावय रोज।
थकय नहीँ जाँगर कभू, करय काम सब खोज।।

11. पयोधर :- 12 गुरू, 24 लघु

भजन करव भगवान के, छोड़ जगत के काम।
कट जाही जग बंधना, सुमिरव सीताराम।।

12. बल :-  11 गुरू, 26 लघु

खेवनहार उही हवय, श्री सीता पति राम।
झन भटकव दूसर डहर, करही हमरो काम।।

13. पान :-  10 गुरू, 28 लघु

पाये बर मनखे जनम, तरसे देव सुजान।
जिनगी अपन सँवार ले, झनकर गरब गुमान।।

14. त्रिकल :- 9 गुरू, 30 लघु

पूरन होवय काज गा, सुखी रहय परिवार।
घर मा बस सुनता रहय, करत रहन जयकार।।

15. कच्छप :- 8 गुरू, 32 लघु

तुँहर पेट कस बुद्धि अउ, बढ़य कान कस ज्ञान।
विपदा मोरे कम रहय, दव अइसन वरदान।।

16. मच्छ :-  7 गुरू, 34 लघु

अरज हवय गणराज जी, सुनलव बिनती मोर।
झन भटकय अब मन कभू, रहँव शरण मा तोर।।

17.शार्दूल :- 6 गुरू, 36 लघु

गरजत घुमड़त हे अबड़, बरसत हवय अषाढ़।
टप-टप टपकय छानही, छलकय नदियाँ बाढ़।।

18.अहिवर :- 5 गुरू, 38 लघु

कइसन दिन आवत हवय, अनपढ़ बाँटय ज्ञान।
पढ़-लिख नटवर नइ सकय, बिरथा करय गुमान।।

19.व्याल :-   4 गुरू, 40 लघु

खरखर-खरखर रुख उपर, मुसवा हर चढ़ जाय।
कटकट-कटकट दाँत करय, कतर-कतर सब खाय।।

20. विडाल :-  3 गुरू, 42 लघु

पढ़व-लिखव अब मन लगा, बनव अबड़ गुणवान।
करम करव सबझन सुघर, बगरय निरमल ज्ञान।।

21.श्वान :-  2 गुरू, 44 लघु

कटत हवय रुख हर अबड़, कउन ल मँय समझाँव।
गरम-गरम घर-बन लगय, मनभर मिलय न छाँव।।

22.उदर :-   1 गुरू, 46 लघु

शरण म लव वरदान दव, भटकय झन मन अउर।
अजर अमर अब मँय रहँव, मिलय तुँहर प्रभु ठउर।।

23.सर्प :-    48 लघु

महर-महर महकत रहय, सुघर हवन कस पउर।
अब सब घर उजड़त हवय, निरमल लगय न ठउर।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
25.12.19

Wednesday, June 10, 2020

दोहा के 21 प्रकार~कन्हैया साहू 'अमित"

दोहा के 21 प्रकार~कन्हैया साहू 'अमित"
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1. *भ्रमर दोहा* (22 गुरु+4 लघु)
आऔ देखौ गाँव ला, रंगे देशी रंग।
भौंरा बाँटी खेलथें, जम्मों संगी संग।।

2. *सुभ्रामर दोहा* (21 गुरु+6 लघु)
आऔ देखौ गाँव मा, सुग्घर देशी खेल।
खेले कूदे मा घलो, होवै सोझे मेल।।

3. *शरभ दोहा* (20 गुरु + 8 लघु)
गिल्ली डंडा खेल ला, खेलैं पीपर छाँव।
आरी-पारी बद गियाँ, लेथें-देथें दाँव।।

4. *श्येन दोहा* (19 गुरु + 10 लघु)
फोदा फल्ली फिलफिली, रेसटीप पित्तूल।
खेलैं देशी खेल ला, झूलँय झोंपा झूल।।

5. *मंडूक दोहा* (18 गुरु +12 लघु)
खेलौ देशी खेल ला, कोनो रुखुवा छाँव।
भाही तोला बड़ सदा, अपने गँवई गाँव।।

6. *मर्कट दोहा* (17 गुरु +14 लघु)
देख कबड्ड़ी खेल ला, कतका होथे जोश।
माटी ले राहव जुड़े, अतका राखव होश।।

7.  *करभ दोहा* (16 गुरु + 16 लघु)
खो-खो खुडवा खेल मा, आथे बड़ आनंद।
हार जीत मा हे मजा, सबके अपन पसंद।।

8. *नर दोहा* (15 गुरु + 18 लघु)
फुगड़ी बिल्लस खेलथें, नोनीमन हा झार।
करैं खेलवारी अमित, अपने अँगना द्वार।।

9. *हंस दोहा* (14 गुरु + 20 लघु)
लइका डंडा कोलथे, धरके लौड़ी हाथ।
खेलँय जुरमिल जहुँरिया, ले सँघेर सब साथ।।

10. *गयंद दोहा* (13 गुरु +22 लघु)
घोर-घोररानी कहत, गोल-गोल लँय घूम।
हाँसत कुलकत खेलना, अंतस जावय झूम।।

11. *पयोधर दोहा* (12 गुरु+ 24 लघु)
सुघर तिरीपासा लगय, चार सखा सकलाँय।
धर चिचोल बीजा 'अमित', कौड़ीकस ढरकाँय।।

12. *बल दोहा* (11 गुरु +26 लघु)
बीस अमृत आ खेल ले, दउँड़ भाग अउ बैठ।
मनभर मन ले मन मिला, झन तैं मितवा ऐठ।।

13. *वानर दोहा* (10 गुरु + 28 लघु)
छुआ छुऔला अमरना, खेलँय बड़का छोट।
'अमित' ससनभर खेलथें, चिटिक रखँय नइ खोट।।

14. *त्रिकल दोहा* (9 गुरु + 30 लघु)
चुन-चुन गोंटा लानथें, गिन-गिन धरलँय पाँच।
पँचवा कहिथे अउ 'अमित', जानव बतरस साँच।।

15. *कच्छप दोहा* (8 गुरु + 32 लघु)
गली-खोर चँउरा 'अमित', खेलँय नदी पहाड़।
अपन-अपन गरियस गड़ी, मिलजुल करँय जुगाड़।।

16. *मच्छ दोहा* ( 7 गुरु + 34 लघु)
भटकउला बर छाँटलव, गोंटी सुघर  पचीस।
भटक ठिठक खेलव भलुक, चिटक रखव नइ रीस।।

17. *शार्दूल दोहा* (6 गुरु + 36 लघु)
हमर गाँव गँवई गजब, चटकमटक बड़ दूर।
खेलकूद हिरदय बसय, सुख उपजय भरपूर।।

18. *अहिवर दोहा* (5 गुरु + 38 लघु)
खेलउना सरबस हमर, करय पिरित बरसात।
हरसय हिरदय अति 'अमित', गदगद अंतस घात।।

19. *ब्याल दोहा* (4 गुरु + 40 दोहा)
मनभर मनहर बड़ सुघर, हमर गँवइहा खेल।
सुमत सबर दिन, सख सदा, जुरमिल रखय सकेल।।

20. *बिडाल दोहा* (3 गुरु + 42 लघु)
गतर-गढ़न गथफत हमर, झन तँय समझ गँवार।
हवय सरग सम गढ़ हमर, बरसय मया अपार।।

21. *श्यान दोहा* (2 गुरु + 44 लघु)
खरतर खरखर सब 'अमित', खदर बसर रहि ठाँव।
जनम-मरन सुख दुख सहित, करव कदर हर गाँव।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
भाटापारा छत्तीसगढ़ ©®
चलभाष~9200252055

रोला छंद - राजेश कुमार निषाद



रोला छंद - राजेश कुमार निषाद

सेवा करके तोर,हमन मइया जस गाबो।
आके शरण म तोर,सबो झन माथ नवाबो।।
द्वार खड़े हन तोर,हमर तैं लाज बचादे।
अपने लइका जान,भाग ला हमर जगादे।।

काटत हावय पेड़,कहाँ ले छइयाँ पाबो।
बिना पेड़ के आज,हवा बिन सब मर जाबो।।
नइ बच ही जब पेड़,धरा बंजर हो जाही।                            बढ़ जाही बड़ ताप,छाँव बर सब पछताही।।

मोटर गाड़ी लान,घुमत गा  सबझन जाबो।
होवत बेरा साँझ, लहुट के भइया आबो।।
एती ओती देख,हमर मन गदगद होही।
नइ जा पाही जेन,अबड़ गा वोहर रोही।।

छंदकार:- राजेश कुमार निषाद
 ग्राम चपरीद रायपुर छत्तीसगढ़

Tuesday, June 9, 2020

रोला छंद - राजकुमार बघेल



रोला छंद - राजकुमार बघेल

प्लास्टिक

बनगे प्लास्टिक देख, काल ये सब जीवन बर ।
होवत हे उपयोग, फइल गे हवे घरो घर ।।
सड़े गले नइ जान, प्लास्टिक होथे कचरा ।
येकर कर  उपचार, जीव बर होथे खतरा ।।

पर्यावरण संरक्षण

पर्यावरण बचाव, होय झन महुरा पानी ।
सुधरय खेती खार, सबो के हमर किसानी ।।
आक्सीजन हे मीत,  संग हे हमर मितानी ।
संरक्षण कर आज, सुघर होवय जिनगानी ।।

रुख राई झन काट, मान जी मोरो कहना ।
सेवव जी दिन रात,हवे धरती के गहना ।।
रोकत बाढ़त ताप,बचावय  जीवन धन ला ।
मानौ अब तो बात,कहत हॅऺंव मॅऺंय जन जन ला ।।

हरियर धरती होय, गीत गावॅऺंय सब डारा ।
बिघवा चितवा रोज, सबो जी पावॅऺंय चारा ।।
भेंड़ कुकुर अउ साॅऺंप, संग मा हाथी भालू ।
मंद मंद मुस्काय, कोलिहा जी बड़ चालू ।।

जरी बुटी सब पाव, देत फोकट मा सबला ।
काट अपन झन पाॅऺंव, बनव झन कोनो पगला ।।
सोंचव मन मा आज, काय पीढ़ी ला देबो ।
दामन अपने आप, सबो पीरा भर लेबो ।।

नदिया नरवा आय, सबो के हे सॅऺंगवारी ।
पर्वत घाटी भाय, मनोहर जग बर भारी ।।
कण कण हें जुरियाय, मारथें बड़ किलकारी ।
हिरदे अपन लगाव,जगत बर हे हितकारी ।।

महके फूल गुलाब, संग ये सादा लाली ।
चम्पा गोंदा साथ, मोंगरा मारॅऺंय ताली ।।
कहर महर ममहाय, सोनहा पीयॅऺंर बाली ।
देख लगे कठुवाय,रात जे हावय काली ।।

जीवन सब ला देय, तोर ले कुछ नइ लेवय ।
महतारी बन देख, सबो ये जग ला सेवय ।।
मानौ सब उपकार, सीख देवत गुरु ज्ञानी ।
जीवन बर हे सार, गुरु के अमरित बानी ।।

बोंवव झन दिन रात, जान के पर बर काॅऺंटा ।
जुर मिल के कर काज, बाॅऺंट लव सुख दुख बाॅऺंटा ।।
होही नवा बिहान, हवे तन मन मा आसा ।
भारत बने महान,गढ़व जीवन परिभाषा ।।

छंदकार- राज कुमार बघेल
          सेन्दरी बिलासपुर (छ. ग.)

Monday, June 8, 2020

रोला छंद - श्लेष चन्द्राकर

रोला छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - हार

अपन हार स्वीकार, रखे रह कोशिश जारी।
होही तोरो जीत, एक दिन आही पारी।।
हार-जीत हा मीत, खेल मा होवत रहिथे।
अंतस ले स्वीकार, इही ला समता कहिथे।।

अपन हार ले सीख, तभे गा आघू बढ़बे।
तभे जीत के मीत, निसैनी मा तँय चढ़बे।।
जे हे कमी सुधार, बनाले खुद ला काबिल।
तोरो होही नाँव, विजेता मन मा शामिल।।

विषय - साफ-सफाई/स्वच्छता

घर-बाहिर अपनाव, सबो झन साफ-सफाई।
रही रोग मन दूर, इही मा हमर भलाई।।
बने रथे परिवेश, तभे पहुना मन आथें।
साफ-सफाई देख, प्रशंसा करके जाथें।।

पड़ जाहू बीमार, गंदगी झन फैलावव।
काया रही निरोग, स्वच्छता ला अपनावव।।
अपन शहर अउ गाँव, बनावव सब मिल सुग्घर।
सड़क गली अउ खोर, दिखे चंदा कस उज्जर।।

विषय - मलेरिया

मलेरिया हा मीत, असर जब अपन दिखाथे।
जर मा काँपय देह, पछीना अब्बड़ आथे।।
अस्पताल मा जाव, दिखे जब अइसे लक्षण।
जिनगी हे अनमोल, करव येकर संरक्षण।।

मलेरिया तो आय, जानलेवा बीमारी।
लगथे जेला रोग, हानि पहुँचाथे भारी।।
खतरा झन लव मोल, तीर बइगा के जाके।
जिनगी अपन बचाव, दवाई येकर खाके।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

Friday, June 5, 2020

छंद के छ की प्रस्तुति-संत कबीरदास जयंती विशेष,छंदबध्द कवितायें

छंद के छ की प्रस्तुति-संत कबीरदास जयंती विशेष,छंदबध्द कवितायें

महान संत,समाज सुधारक कवि संत कबीर साहेब जी ल छंद परिवार अंतस ले सादर नमन करत हे

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

धरहा करके लेखनी, कहिस बात ला सार।
सत के जोती बार के, दुरिहाइस अँधियार।
दुरिहाइस अँधियार, सुरुज कस संत कबीरा।
हरिस आन के पीर, झेल के खुद दुख पीरा।
एक तुला सब तोल, बताइस बढ़िया सरहा।
करिस ढोंग मा वार, बात कहिके बड़ धरहा।

बानी संत कबीर के, दुवा दवा अउ बान।
साधु सुने सत बात ला, लोभी तोपे कान।
लोभी तोपे कान, कहे जब गोठ कबीरा।
लोहा होवय सोन, चमक खो देवय हीरा।
तन मन निर्मल होय, झरे जब अमरित पानी।
तोड़य गरब गुमान, कबीरा के सत बानी।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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दोहा छंद- इंजी. गजानंद पात्रे  "सत्यबोध"

भक्तिकाल के रहिस कवि, सन्त कबीरा दास ।
करिस कुठाराघात जे, ढोंग अंधविश्वास ।।

कर्म लोक कल्यान के, विश्व प्रेम मन भाव ।
अग्रदूत युग जागरण, भारत भूमि लगाव ।।

जन्म लहरतारा भये, कमल मनोहर ताल ।
धन्य भाग काशी शहर, जनमे अइसे लाल ।।

कोई कहे कबीर जी, बालक रहिस अनाथ ।
पालन नीमा माँ करिस, पिता नीरु के साथ ।।

जात जुलाहा मा भये, पालन बाल कबीर ।
मुसलमान कोई कहे, जात न संत फकीर ।।

पुत्र ब्राम्हणी के कहे, पर ना करे कबूल ।
किस्मत संत कबीर के, कर दिस बड़का भूल ।।

स्वामी रामानंद के, पड़िस कबीर प्रभाव ।
तब ले हिन्दू धर्म बर, बढ़िस कबीर लगाव ।।

घाट पंचगंगा मिले, स्वामी रामानंद ।
राम नाम सुमिरन करे, तब बालक मति मंद ।

देख ढोंग पाखंड ला, धरे ध्यान सतनाम ।
फेर भेद नइ तो करिस, गुरु रहीम इशु राम ।।

गये मदरसा ना कभू, तभो धरे गुरु ज्ञान ।
मसि कागद थामे नहीं, अइसे संत महान ।।

शादी लोई संग मा, करे कबीरा फेर ।
भरे गरीबी राह मा, जिनगी मा अंधेर ।।

वंश कमाली एक झन, संत कबीरा लाल ।
सत्य सुमरनी छोड़ के, घर ले आइस माल ।।

काशी मगहर पास मा, देइस तन ला त्याग ।
हिन्दू मुस्लिम साथ मिल, दिहिन चिता ला आग ।।

जन्म जगह अउ जात के, झेलत दंश कबीर ।
स्वर्ग लोक मा चल दिये, बनके संत फकीर ।।


छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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कुण्डलिया छंद--आशा देशमुख

भजन कबीरा के सुनव ,सार सार हे गोठ।
अन्तस् के पट खोल दे,वाणी हावय पोठ।
वाणी हावय पोठ,हृदय के भीतर जाये।
अँधियारा मिट जाय, ज्ञान के जोत जलाये।
काटय सबो कुरीति,हरय मन के सब पीरा।
खोले आँखी कान,करे हे गोठ कबीरा।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)

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सोभन छंद - श्लेष चन्द्राकर

गोठ सत बोलय सदा गा, संत दास कबीर।
एक उनकर बर रिहिस हे, सब गरीब-अमीर।।
काखरो जब पीर देखय, बड़ दुखी उन होय।
देख जग पाखंड ला बड़, उखँर कवि मन रोय।।

शिष्य रामानंद जी के, रिहिस दास कबीर।
ज्ञान के बड़ गोठ सीखिन, ओ बइठ गुरु तीर।।
नेक नीमा नीरु पुत हा, बनिस संत महान।
अउ बनाइन ये जगत मा, उन अलग पहिचान।।

बड़ दिखावा अउ अधम के, करिन संत विरोध।
सब मनुख मन ला कराइन, सत्य के उन बोध।।
लिखिस हे साखी रमैनी, सबद बीजक ग्रंथ।
आज मनखे मन चलत हे, उन बताये पंथ।।

छंद लिख संदेश दिस हे, संत हा बड़ नीक।
सब मनुख मन ला कहिन हे, काम छोड़व खीक।।
सब दिखावव गा मनुजता, नेक कर लव काम।
जे तुहँर अंतस बसे हे, दिख जही प्रभु राम।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैराबाड़ा, गुड़रुपारा, वार्ड नं. 27,
महासमुंद (छत्तीसगढ़)

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 शोभन छंद-विरेन्द्र कुमार साहू

तोड़ कतनो मिथक जग ला, सत्य भेद बताय।
रहय ज्ञानी महान तभो, कभू नहीं जताय।
बदल गे कतनो कुचाली, पाप के सरदार।
तोर कविता के भरोसा, हो गए भव पार।1।

बाट देखाये जगत ला, मेट के अँधियार।
नीति शिक्षा सँग बताये, ज्ञान गोठ अपार।
तैं हरस साहित्य के रवि, कवि सुजानिक मीर।
तोर मँय सुरता करत हौं, संत दास कबीर।2।

छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका), जिला - गरियाबंद(छ.ग.)
9993690899

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रोला छंद-आशा आजाद

हे कबीर कविराज,जगत के ओ उजियारा।
नेक दिहिन संदेश,मिटाइन मन अँधियारा।
कासी रहिस निवास,बोल नित सत ग़ुड़ भाखा।
बोलय संत कबीर,करम बस हिरदे राखा।।

गुरुवर रामानंद,कबीर सत पथ मा चलके।
करदिन जनकल्यान,काव्यधारा मा बह के।
शब्द शब्द ला तोल,छंद दिन आनी बानी।
जानौ संत कबीर,रहिन जी अब्बड़ ज्ञानी।।

कासी ठउर कहाय,ज्ञान ला जग हा गावै ।
भक्तिकाल कविराज,कबीरा सबला भावै।।
सरल सहज हे बोल,छंद के अमरित धारा।
गुनलौ ये संदेश,करम बस आप सहारा।।

रखौ काज मा ध्यान,रूप ह काम नइ आवै।
ध्यान धरौ ए बात,नावं हा बढ़खा हावै।
पोथी पढ़लौ आज,मिलै कुछु नइ जी काही ।
ढाई आखर प्रेम,जगत मा मान बढ़ाही।।

अहंकार के भाव,त्याग के जीना होही।
लोभ कपट के भाव,द्वेष मा सबकुछ खोही।
छल कपट अउ द्वेष,त्याग दव कहे कबीरा।√
पाछु बड़ पछतावय,रहत हे जेन अधीरा।।

छंदकार - आशा आजाद

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बलराम जी: छप्पय छंद
(कबीर)

दीनहीन सकलाय, आसरा पा के निरमल।
अंतस अबड़ अघाय, बात ला सुन के निश्छल।
जातपाँत पाखंड, रिहिस हे जब मनमाना।
तब कबीर के गोठ, बनिस जन जन के बाना।
बानी संत कबीर के, भेदभाव ले दूर गा ।
तन मन ला शीतल करै, पावय बल मजबूर गा।।

बलराम चंद्राकर

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 दोहा छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

सत्यनाम संदेश ला, दुनियाँ मा बगराय।
मेटय जन के पीर ला, बन्दीछोर कहाय।।

पढ़े लिखे नइ वो रिहिस, भरे ज्ञान अनमोल।
छिन मा देवय अउ इहाँ, आँखी सबके खोल।।

झूठ कपट जानय नही, कभू मोह अउ लोभ।
जिनगी भर दुरिहा रहय, इँखर ह्रदय ले खोभ।।

मानवता के सीख दय, समझै लोगन बात।
ढोंग गलत पाखंड बर, लगे रहय दिनरात।।

गीता ग्रन्थ कुरान मा, उही खुदा अउ पीर।
कृष्ण उही ईश्वर उही, अल्ला राम कबीर।।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी-कबीरधाम
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विश्व पर्यावरण दिवस विशेषांक विविध छंदबद्ध रचनायें-

विश्व पर्यावरण दिवस विशेषांक विविध छंदबद्ध रचनायें-




कुंडलियाँ छंद-गजानन्द पात्रे

आशा हे पर्यावरण, सांस तंत्र आधार ।
बिना रूख राई लगे, बिरथा ये संसार ।।
बिरथा ये संसार, रूख दे सुख पुरवाई ।
मन महके घर द्वार, सुंगधित हो अमराई ।।
फल औषधि दे फूल, बने चिड़िया घर वासा ।
चलौ बचाबो पेड़, रखे हरियाली आशा ।।


बाढ़त युग विज्ञान के, पेड़ कटावत रोज ।
रहे सलामत ये प्रकृति, कुछ उपाय तो खोज ।।
कुछ उपाय तो खोज, चलावव झन जी आरी ।
खूब लगावव पेड़, चलौ मिल सब सँगवारी ।।
बनके ठाढ़े सांप, कारखाना फ़न काढ़त ।।
तभे प्रदूषण आज, हवा मा बहुते बाढ़त ।।


छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )


मनहरण घनाक्षरी छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

पर्यावरण- 
हरा भरा रूख राई, निक लागे पुरवाई
फल फूल जड़ी बूटी, कुटिया छवाय जी
शुद्ध सांस हवा देथे , दूर प्रदूषन होथे
झूमर झूमर ये हा, पानी बरसाय जी
पलंग दिवान बने, महल अटारी तने
हमरो किसान भाई , नाँगर बनाय जी
पटिया धारन खड़े , कारखाना बड़े बड़े
बचपन रचुलिया , इही हा झुलाय जी 

अबादी बढ़त हवै, रुखवा कटत हवै
एक दिन पड़ जाही, छाँव लुलवाय जी
तोर मोर झन करौ, येकर जतन करौ
संगी साथी सुख दुख, मितवा कहाय जी 
जनम मरन रहे, संगवारी बन रहे
चिता बन अंत घड़ी, तन ला जलाय जी।
जिनगी सुफल करौ, रसदा सरग धरौ
बिरवा धरम सदा , जग हरियाय जी 


छंदकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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छप्पय छंद-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"

चलव लगाबो पेड़,सबो झन करबो सेवा।
देथे सबला छाँव,फूल फर पाबो मेवा।
फुरहुर हवा बहाय,तेन मा सांसा चलथे।
पानी घलो गिराय,तभे जी खेती पलथे।
लकड़ी बूटी छाल हा,आथे अब्बड़ काम जी।
जंगल झाड़ी रूख मन,हावय सुख के धाम जी।।

छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़

[05/06, 1:57 PM] आशा देशमुख: पर्यावरण दिवस पर

कुण्डलिया छंद--आशा देशमुख

झन काटव गा पेड़ ला, जंगल हे वरदान।
रुखवा से पानी हवा, हवा सबो के प्रान।
हवा सबो के प्रान,सुनव गा पेड़ लगावव।
खुश रहय संसार,जीव बर छाँव बचावव।
रहय दया के भाव,मया जग में सब बाँटव।
पर्यावरण बचाव,पेड़ झन कोनो काटव।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
(छत्तीसगढ़)

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 सार छंद(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                  "धरती दाई "

चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।
बंजर होगे खेत खार सब,काय फसल उपजावौं।

सड़क सुते हे लात तान के,महल अटारी ठाढ़े।
मोर नैन  मा निंदिया नइहे,संसो दिनदिन बाढ़े।
नाँव  बुझागे  रुख राई के,धरा  बरत हे बम्बर।
मन भीतर मा मातम छागे,काय करौं आडम्बर।
सिसक सकत नइ हावौं दुख मा,कइसे राग लमावौं।
चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।

मोटर  गाड़ी  कार  बनत हे,उपजै सोना चाँदी।
नवा जमाना जल थल जीतै,पतरी परगे माँदी।
तरिया  परिया  हरिया  हरगे,बरगे मया ठिठोली।
हाँव हाँव अउ खाँव खाँव मा,झरगे गुरतुर बोली।
नव जुग हे अँधियार कुँवा कस,भेड़ी असन झपावौं।
चंदन  माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।

घुरय हवा पानी मा महुरा ,चूरय  धरती दाई।
सुरसा मुँह कस स्वारथ बाढ़य,टूटय भाई भाई।
हाय विधाता भूख मार दे,तन ला कर दे कठवा।
नवा समै ला माथ नवाहूँ,जिनगी भर बन बठवा।
ठिहा ठौर के कहाँ ठिकाना,दरदर भटका खावौं।
चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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आभार सवैया- बोधन राम निषादराज


 पर्यावरण

राखौ सफाई गली खोर पारा चलौ साथ मा जी सँगे मा करौ काज।। 
रापा कुदारी धरौ खाँध झौंहा बहारौ बटोरौ करौ जी नहीं लाज।।
आवौ लगावौ सबो पेड़ भाई तभे तो हवा शुद्ध पाहू बने आज।। 
होहू निरोगी बने छाँव मा जी चिरैया बसेरा बनावै करौ साज।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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 बागीस्वरी सवैया- मोहन लाल वर्मा 

कहूँ पेड़ ला काटबे जी तहूँ हा, हवा फेर ताजा ग पाबे कहाँ ।
चलाबे खुदे पाँव मा तोर आरा, सहीं गा कहौं तै लुकाबे कहाँ ।
नँगाबे तहीं तोर हाँसी-खुशी ला, धरे हाथ पैसा बिसाबे कहाँ ।
जनाही कहूँ बाट मा घाम भारी, बता जीव ला तै जुड़ाबे कहाँ ।।

छंदकार- मोहन लाल वर्मा 
ग्राम- अल्दा, तिल्दा, रायपुर  
(छत्तीसगढ़ )
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कुंडलियाँ- दिलीप कुमार वर्मा 

बबा जमाना मा रहे, जंगल चारो ओर। 
ददा जमाना आत ले, रुखुवा बचे न कोर। 
रुखुवा बचे न कोर, सोर अब कोन करय जी। 
होगे जंगल साफ, बेंच के सबो धरय जी। 
करना हावय चेत, उमर जब लम्बा पाना। 
जंगल वापिस लाव, रहे जे बबा जमाना।1। 

बीते बात बिसार दे, अब आगू के सोंच। 
खाली हाबय मेंड़ हा, अब तो रुखुवा खोंच। 
अब तो रुखुवा खोंच, लगा ले तँय अमरइया। 
पाबे शीतल छाँव, पेंड़ के नीचे भइया। 
बिगड़े नइ हे बात, करे मिहनत ते जीते। 
आज लगा तँय पेंड़, समे हर नइ हे बीते।2। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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लावणी छंद - मँय धरती हुँतकारत हौं - विरेन्द्र कुमार साहू

दवा रसायन डार-डार के, करव नहीं कोरा बंजर।
मँय तुँहरे महतारी आवँव, मारव झन मोला खंजर।

गोबर कचरा के खातू मा, कोरा जब्बर हरियाथे।
घात बीरता आनी-बानी, चारो कोती लहराथे।

घात अन्न उपजा के देहौं, सिरतो किरिया पारत हौं।
सुन लौ मोर जुबानी बेटा, मँय धरती हुँतकारत हौं।

मोर मेर के हीरा मोती, चाँदी सोना सब तुँहरे।
रकम-रकम के खनिज भरे हे, दोना दोना सब तुँहरे।

लोभ करव झन तुम ज्यादा के, खानव बस अपने पुरता।
सिरा जही भंडार एक दिन, करलव पुरखा के सुरता।

ध्यान रखव गा मोरो तबियत, पीरा मा किलकारत हौं।
सुन लौ मोर जुबानी बेटा, मँय धरती हुँतकारत हौं।

हवा दवा जंगल ले मोरे, जंगल मोरे सुघराई। 
सबे जीव परिवार मोर हे, नर सबके बड़का भाई।

देत पँदोली करव तरक्की, बैर भाव झन पालव गा।
साथ साथ सब रहव सुमत ले, पर्यावरण बचालव गा।

आज तुँहर सुख सुविधा खातिर, अपन मती मँय मारत हौं।
सुन लौ मोर जुबानी बेटा, मँय धरती हुँतकारत हौं।

छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू, ग्राम - बोड़राबाँधा (पाण्डुका), जिला - गरियाबंद(छ.ग.)
9993690899
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आशा आजाद: वाम सवैया - आशा आजाद

कटावत जंगल आज सुनौ सब जीव बड़ा करलावत हावै।
सुखावत हे नदियाँ नरवा बरसा बिन जी अकुलावत जावै।
उजारत जंगल लोभ बड़ा अब पेड़ कहूँ नइ देख लगावै।
बचादव पेड़ लगादव आज प्रदूषण ले सब मुक्ति ल पावै।

छंदकार - आशा आजाद
कोरबा छत्तीसगढ़

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: शक्ति छंद :- लगावव पेंड़

बदलगे हवय ये, सबो गाँव हा,
उराठिल लगत हे, अबड़ छाँव हा।
कटागे लगे पेड़, सब खार के,
बँटागे हवय छाँट, निरवार के।।

बनाये अपन घर, नदी पाट के,
छवाये बने पेंड़,  ला काट के।
सुधारे जगत बर, अपन रुप नहीं,
उजाड़े अपन हित म, जंगल तहीं।।

जतन के रखव आज, भुइँया बने,
लगावव सबो पेड़, ला बिन गने।
अपन जान के देख, दुख ला हरव,
तभे जागही भाग, सेवा करव।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
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रामकुमार चन्द्रवंसी: ( पादाकुलक छन्द)

"आगे परियावरण दिवस"

आगे परियावरण दिवस हर।
संदेसा बगराबो घर-घर।
रुख-राई के लाभ बताबो।
जुरमिल पौधा चलव लगाबो।।

बढ़ही पौधा मिलही छइहाँ।
लगही सरग बरोबर भुइयाँ।
परदूषण हम दूर भगाबो।
हरदम शुद्ध हवा हम पाबो।।

रुख ले लकड़ी लासा पाबो।
पक्का पक्का फर हम खाबो।
रुख कस जग मा नइहे दानी।
लाथे रुख हर बादर-पानी।।

काटे हावन पेड़ धड़ाधड़।
बाढ़त हावय गर्मी अड़बड़।
समझत हावन करके गड़बड़।
रुख के बिक्कट लम्बा हे जड़।।

आवव हम सब किरिया खाबो।
मनखे पुट बिरवा ल लगाबो।
जुरमिल भुइयाँ ला हरियाबो।
भुइयाँ सरग बरोबर पाबो।।

         राम कुमार चन्द्रवंशी
         बेलरगोंदी (छुरिया)
          जिला-राजनांदगाँव
          9179798316
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 बलराम जी: मनहरण घनाक्षरी
(सारांश-पर्यावरण)

संसो होगे रोजी रोटी, बेघर हे कोटि-कोटि,
बंद होगे कामकाज, रोग बिकराल हे ।
का गरीब का अमीर, अनपढ़ पढ़े लिखे,
सबोबर बनगे ये, कोरोना हा काल हे ।
हे मंदिर मसजिद, बंद चर्च गुरुद्वारा,
उपर वाले के घलो, कृपा के दुकाल हे ।
जीव जन्तु पेड़ पौधा, माटी के विनाश करे,
तभे तोर रे मनखे, आज बारा हाल हे ।

बलराम चंद्राकर
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: हरिगीतिका छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

"पर्यावरण"

करबो जतन मिलके सबो, नइ काटबो हम पेड़ ला।
सुग्घर लगे हर खेत के, हरिहर बनाबो मेड़ ला।
मिलथे जिहाँ छइहाँ बने, फल फूल बड़ रसदार जी।
बड़ भाग ला सहरात हन, हे पेड़ के भरमार जी।

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी

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छंद चकोर सवैया
-पोखन लाल जायसवाल

रोज कटे अब जंगल के रुख हावय कोन इहाँ रखवार।
आवत-जावत खोजत हे छइहाँ सब पेड़ बचे नइ खार।
जीव जनावर भागय जान बचावत जंगल के मुख टार।
देखत जंगल जीव गली अब मानुख देवत हे फट मार।।

बोवत हावय कोन इहाँ रुख काटत भोंगत हे सब फेर।
पेड़ सिरावत देख दिनोंदिन छावत हे मन मा अब ढेर।
जीव जनावर संकट मा अउ संकट मा सब बब्बर शेर।
सोचव थोकिन पेड़ लगावन होवय काबर जी अउ देर।

छंदकारःपोखन लाल जायसवाल
पलारी छग.

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: कुण्डलिया-श्री सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

आज मनावत हे मनुज, पर्यावरण तिहार।
घर बइठे देखत हवय, हरियर खेती-खार।
हरियर खेती-खार, निहारय जंगल झाड़ी।
रोपय कइठन पेंड़, झाड़ बिन मोरे माड़ी।
मोबाइल मा शुद्ध, हवा जल भूम बनावत।
पर्यावरण तिहार, मनुज हे आज मनावत।

रचना-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

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 रूपमाला छंद - रामकली कारे

पेड़ ले पर्यावरण हे, का शहर का गाॅव।
काटहू झन पेड़ पौधा, खेलहू झन दाॅव।।
ताल तरिया ले जगत मा, जीव के हे आस।
लीम पीपर के हवा हा, देय सुग्घर साॅस।।

देख हरियर मन लुभाये, आय पंछी तीर।
कोयली हा गीत गाथे, नइ धरे वो धीर।।
होय झन बंजर इहाॅ के, आज माटी मोर।
खाव किरिया ध्यान धरलव, झन करौ गा शोर।।

पेड़ एके तॅय लगाले, काम होही सार।
छेड़ झन पर्यावरण ला, होय गा उपकार।।
कर उदिम पानी बचा ले, होय बड़ अनमोल।
देख मानव आज सुग्घर, बोल बानी तोल।।

छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा छत्तीसगढ़

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आल्हा छंद -अश्वनी कोसरे**

"पर्यावरण संरक्षण"

जंगल झाड़ी झन काटव जी, पेड़ लगालव ओरी ओर|
धरती मा छाही हरियाली, बरसाहीं  बादर घनघोर||


सुख के दिन हर बहुरत आही, मेंढ़ पार रोपन कर जोर|
पारी पारी पौधा लगही, पानी पुरवइ मारे टोर|

बनराई के सिरजन लेजी, सवँर जही घानी के कोर|
महर-महर ममहाही कोना, सोना भुइँया के हर छोर||


जीव जंतु के  हरलव पीरा, झन तँय छइँहा माड़ा  टोर|
दाना पानी सबला देके, जीव जगत बर मया बटोर||

छंदकार -अश्वनी कोसरे
रहँगी पोंड़ी कवर्धा कबीरधाम

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कुंडलिया छंद - सरस्वती चौहान

सुनलव दीदी मोर ओ, हरियर होही गाँव।
फूल संग मा फल घलो, मिलही सुग्घर छाँव।।
मिलही सुग्घर छाँव, जगा लव पीपर अउ बर।
पर्यावरण बचाव, कटे झन रुखवा घर घर।।
करलव प्रण ये आज, थोरकुन सबझन गुनलव।
झन वन होय विनाश, मोर ओ दीदी सुनलव।।

छंदकार - सरस्वती चौहान
जशपुर नगर छत्तीसगढ़
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अमित: कुंडलिया छंद

रुखराई सिरतों सुघर, सरबस देथे छाँव।
चिटिक बइठ लेथन जुड़ा, रेंगत थकथे पाँव।।
रेंगत थकथे पाँव, चटाचट जरथे भुँइयाँ।
आगी बरसत घाम, बटोही पाथे छँइयाँ।।
कहय 'अमित' करजोड़, सदा रुखुवा सुखदाई।
परन उठावव आज, बचाबो हम रुखराई।।


सुघराई बड़ बाढ़थे, चलव लगाबो पेड़।
भाँठा परिया डीह अउ, अपन खेत के मेड़।।
अपन खेत के मेड़, छुटय झन कोनो रस्ता।
कहाँ कठिन ये काज, पुण्य के मारग सस्ता।।
कहय 'अमित' करजोड़, लगाथन चल रुखराई।।
धरती के सिंगार, बाढ़ही बड़ सुघराई।।


पुरवाई फुरहुर बहय, गजब होय जुड़वास।
फुलुवा फर थाँगा जरी, हमरे हितवा खास।
हमरे हितवा खास, पेड़ के महिमा जानव।
जिनगीभर दिनरात, संग मा सिरतों मानव।।
आथे बहुते काम, सहीं मा ये रुखराई।
ले बर साँसा शुद्ध, पेड़ के चाही पुरवाई।।


करलाई हा बाढ़ही, झन तैं रुखुवा काट।
पेड़ लगा ले तैं गियाँ, खेत खार अउ बाट।
खेत खार अउ बाट, सुघर भुँइयाँ हरियाही।
हरियर-हरियर देख, हमर जिनगी मुसकाही।।
कहय 'अमित' करजोड़, बनय झन जग दुखदाई।
जतन करव जी पेड़, मेटदव सब करलाई।।

कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़

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: दोहा छंद-चित्रा श्रीवास

तपसी जइसे पेड़ हा,देख खड़े गंभीर ।
मनखे वोला काट के ,देथे कतका पीर ।।

छाया पानी हा मिले ,शुद्ध हवा के संग।
वोखर किरपा भूल गे,मनखे मन के तंग।

जंगल झाड़ी काट के,बस्ती नवा बसाय ।
पड़गे जग हा छोट जी ,मनखे नही समाय।।

झूम झूम के पेड़ हा,करथे इही पुकार।
मोला मनखे तँय बचा,देहँव तोला तार।

पेड़ बचा के राख ले,जिनगी के आधार।
डोर साँस के हे बँधे, येखर से संसार।।


छंद कार- चित्रा श्रीवास
कोरबा छत्तीसगढ़
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 कुंडलिया छंद 

काँटव झन गा पेड़ ला,धरती करे पुकार ।
पानी मिलही गा नहीं,  मचही हाहाकार ।।
मचही हाहाकार, कहाँ छइँहा तँय पाबे ।
जरे भोभरा पाँव, सोच के तब पछताबे ।।
पंछी तड़पे हाय, मया ला तुम  झन बाँटव।
मीरा कह कर जोड़, पेड़ ला तुम झन काँटव ।।

धरती कहे पुकार के,सुन लव मोरो बात ।
रुख राई ला काट के,झन करहू सब घात।
झन करहू सब घात,तभे हरियाली पाहू।
बइठे शीतल छाँव, राम के तुम गुण गाहू।।
महतारी हा रोय,करो झन बेटा गलती।
देथँव अन वरदान,कहे रो रो के धरती।।

बेटा मोर किसान तँय,मँय महतारी तोर।
हरियाली लुगरा हरे, लहरे पवन झकोर।।
लहरे पवन झकोर, तुमन ला मैं ओढाथँव।
शीतल छइँहा देय,महूँ हा बड़ सुख पाथँव ।।
पानी हो कमजोर,नास ला धरथे लेटा।
छाती फाटे मोर ,हाय  मोरे तँय बेटा।।

केवरा यदु "मीरा "छंदकार 
राजिम

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 राजकुमार बघेल: रूपमाला छंद

पेड़ पौधा आ लगाले, देख संगी ठाॅऺंव ।
जीव आहॅऺंय घाम घाले, रोज पाहय छाॅऺंव ।।
देत हावय दाम बिन ये, प्रान दायी वात ।
पाय हावन आज जिनगी, मान लेना बात ।।

हे सरी सुख के अधारा, जान ले संसार ।
बोह के राखे मुड़ी मा, देख जग के भार ।।
पेड़ हे तव कल इहाॅऺं हे, आग पानी आज ।
हे बचाना जान सबके, जाग मनुवा जाग ।।

अमृतध्वनि छंद-

जाबे का तॅऺंय छोड़ के,पेड़ लगाले आज ।
पीढ़ी लेही नाम ये, करव नेक ये काज ।।
करव नेक ये, काज बनाले, नाम कमाले ।
रीत चलाले, मीत बनाले, खुशी मनाले ।।
पेड़ लगाबे, तन छइहाबे, पुन ला पाबे ।
कभू भुलाबे, गारी खाबे, जब तॅऺंय जाबे ।।

कुण्डलिया छंद-

आवव दिवस मनाव ये, पर्यावरण तिहार ।
बगरे जन संदेश ये, जिनगी बर जे सार ।।
जिनगी बर जे सार,मिले हे सुग्घर मौका ।
पेड़ लगावव आज, सीख पीढ़ी बर ठौका ।।
सार्थक होवय काज,चाह हिरदे मा राखव ।
रीत चलय संसार, मीत बन जुर मिल आवव ।।

छंदकार- राज कुमार बघेल
           ग्राम सेन्दरी, जिला      
बिलासपुर (छ.ग.)
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Thursday, June 4, 2020

रोला छंद- श्रीमती शशि साहू

रोला छंद- श्रीमती शशि साहू

लहसे आमा डार,फरे लटलट ले हावय।
गरती रसा भराय,खात मन कहाँ अघावय।।
कोनो चुहकत खाय,पउल के गोही चाटँय।
अपनो सइघो खाय,आन ला नान्हें बाटँय।।

सबो खाय सहुँराय,मीठ हे लगड़ा चौसा।
जाबे कभू बजार,बिसा के लाबे मौसा।।
बैगन पल्ली रोठ,गुदा हर गजब मिठाथे।
कलमी जाथे पाक,फोकला घलो सुहाथे।।

फर के राजा आम,फरे हे घन अमरइया।
लहसे झोत्था डार,टोर के खाबो भइया।।
सुघ्घर लगय अथान,पीस के चटनी खाबो।।
कभू बिसा के खान,अथान घर मा बनाबो।।

शशि साहू
बाल्कोनगर
जिला - कोरबा
छतीसगढ़

Wednesday, June 3, 2020

रोलाछंद-शोभामोहन श्रीवास्तव

रोलाछंद-शोभामोहन श्रीवास्तव

नवधा भक्ति   
1/ 
प्रभु नौ बरन बताय, भगत बर रेंगे धरसा।
ओमा जा रे जीव, अभरही किरपा बरसा।।
होही ईश दयाल, मया के दिहे चिन्हारी।
नवधा भक्ति जगान, बने अब तज चरियारी ।।
   2/                                                                             नर तन बर नौ बाट, बताये  तेमा जाबो।
दसवाँ कहूँ धँवाय, कभू हम नइ पतियाबो।।
पहिली भक्ति सुजान, संत के सुनबो बानी।
दूसर भक्ति मया, कीरतन भजन कहानी।।                                     3/
तीसर गुरु के गोड़, चाकरी सेवा धरबो ।
चौथा प्रभु गुनगान, कपट तज के अब करबो।।
पंचम मंतर जाप, मया हरि जब्बर जोरे ।
मन में हो बिस्वास, जेन ला बेद अँजोरे ।।
4/
छटवाँ तज सब काम, धाम के बिरथा बोझा।
काया कसन लगाम, परै झन लालच झोझा।।
सरलग संत सुजान, संगती धरमी चाला।
भक्ति सात के भार, बनन सम आँखी वाला।।
5/
सबमें देखन एक, जगत पति चारो कोती।
सबो जीव के माँझ, बरत हे ओकर जोती।।
कहे हवय भगवान, संत ला बड़का सबले।
सब बर वो सब बेर, सुलभ हो जाथे रबले।।
6/
भक्ति आठ के ज्ञान, जेन हे तेमा राजी।
मन राखन संतोष, रहै मन नहीं नराजी।।
सपना मा परदोष, दिखै झन आँही-बाँही।
अपन बाट हम जान, करै कोनो हर काँहीं।।
7/
नवम भक्ति अनुसार, सहज हो पानी जइसे।
तजन कपट छल चाल, रहन प्रभु चाहै तइसे।।
रहि भरोस भगवान, एक अउ दूसर नाही।
मन मा रखन न दु:ख, रीस सुख लालच काँही।।

शोभामोहन श्रीवास्तव
रायपुर छ.ग.

Tuesday, June 2, 2020

रोला छंद -केवरा यदु मीरा

रोला छंद -केवरा यदु मीरा

कोरोना कब जाय, रोज मँय बिनती करथँव ।
संझा बिहना रोज, पाँव म़य ओकर परथँव।।
मोर देश  ला छोड़, हाय तँय अनते जाना।
मच गे हाहाकार, अरे तँय झन रोवाना।।

पानी

पानी  ये संसार, बचाबो संगी पानी।
मचही हाहाकार, तरसही सब जिनगानी ।।
करहू झन बरबाद, बात ला मोरो मानव।
देहू बने धियान, मिले तब पानी जानव।।

बनिहार

बोझा लादे मूड़, देख बनिहारिन आवय।
तड़पत भूख पियास,गला हर घात सुखावय।।
लइका लादे खाँध,भोंभरा चट चट जरगे।
उगले सूरज आग, पाँव मा फोरा  परगे।।

छोड़े हावँव गाँव, आज मँय आवत हावँव।
नइ जावँव अब छोड़, गजब के मँय पछतावँव।।
मात पिता के पाँव, रोज अब माथ नवाहूँ ।
खावँव किरिया आज, खेत मा धान उगाहूँ।।

मात पिता भगवान, चरण मा माथ नवाबो।
घर मा चारो धाम, कहाँ हम खोजे जाबो।
झन करहू अपमान,  कभू झन आँसू देहू।
देके मीठ जुबान,  मात के आशिष लेहू।।

गर्मी

गरमी लेत परान ,घरे मा खुसरे रहिहू।
मारत झाँझ झपाट, पीर ला झन तुम सहिहू।।
निकलव जब हे काम,मूड़ मा बाँधो पटका।
धर लो जेब पियाज, लगे झन लू के झटका।।

छंदकार
केवरा यदु "मीरा "
राजिम

Monday, June 1, 2020

रोला छंद- सुकमोती चौहान

रोला छंद- सुकमोती चौहान

विषय- विज्ञान

ऊपर उड़य जिहाज,उड़य जइसन चिरई हर।
तउरत एक जिहाज,नाप देवय झट सागर।।
मिहनत करय कठोर,रोज ये वैज्ञानिक मन।
भारी करिन विकास,बदल दिन हें जन जीवन।।


नवा नवा कर खोज,सत्य करथे प्रस्तुत जी।
दरपन कस विज्ञान,दिखाथे सच अद्भुत जी।।
साधन सुख के खोज,सरल करथे जिनगानी।
नवा नवा हथियार,खोजथे इन मनमानी।।

दउड़त मोटर कार,धुँआ उगले जी भारी।
कटगे जंगल झाड़,रोय धरती महतारी।।
भूल करय विज्ञान,आय तब विपदा भारी।
गैस केमिकल संग,फैलथे जी बीमारी।।

उन्नति हे इक ओर,त दूसर ओर उदासी।
जीवन बने असान,बनावव नहीं बिलासी।।
दू पटिया के बीच,खड़े हावन सब कोनों।
उगल सकन ना लील,पक्ष अपनाबो दोनों।।

रस बस गिस विज्ञान,हमर जिनगी मा अइसन।
घूरे शक्कर नून,देख पानी मा जइसन।।
जी बो एकर संग,अलग होके मर जाबो।
कर के निक उपयोग,नवा सूरुज हम लाबो।।

सुकमोती चौहान "रुचि"
बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.