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Friday, January 31, 2020

सार छन्द- दीपक साहू

सार छन्द- दीपक साहू

फोकट बिरथा बइठे पगला, झन कर चुगली चारी।
करम कमाई करले जग मा, घर आही उजियारी।

बिना मेहनत कइसे चलही, ये जिनगी के गाड़ी।
पेट भरे बर कठवा करले, हाथ गोड़ अउ माड़ी।

ये जग मा कोन्हों नइ देवय, भूख मरत ला खाना।
खुद उपजाना परथे पगला, पेट भरे बर दाना।

किस्मत ला फोकट कोसे मा, घर नइ आवय हीरा।
सरलग करले काम बुता तँय, दुरिहा करले पीरा।

तोर भुजा मा ताकत हे जी, तँय कमईयाँ चोला।
तोर भाग ला तिही बदलबे, जिनगी गढ़ना तोला।।

छ्न्दकार:- दीपक साहू
मोहंदी, मगरलोड

Thursday, January 30, 2020

सार छंद गीत (होली)-द्वारिका प्रसाद लहरे

सार छंद गीत (होली)-द्वारिका प्रसाद लहरे

रंग मया के बरसावव जी,बोलव गुरतुर बोली।
बैर भाव ला सबो भुलाके,बने मनालव होली।।

दया मया हा बने रहय जी,राखव मया चिन्हारी ।
मिलके गावव फाग मया के,रंग भरव पिचकारी।।

रंग सबो बर लाल गुलाबी,धरके घर घर जावव।
बैरी मन बन जावव हितवा,दया मया बगरावव।।

उड़य गुलाली गाँव गली मा,कर लव हँसी ठिठोली.....
बैर भाव ला सबो भुलाके,बने मनालव होली.....ll

धूम मचावव नंगारा के,सबझन नाचव गावव।
मिलके छोटे बड़े सबो जी,फगुवा गीत सुनावव।।

चिक्कन चाँदन झन राहँय जी,रंगव  झारा झारा।
तिलक लगाये सब ला संगी,जावव आरा पारा।।

जुर मिल के सब संगे खेलव,अपन बनावव टोली....
भैर भाव ला सबो भुलाके,बने मनालव होली.....ll

एक बझर मा आय हवय जी,रंग मया के डारव।
आपस मा सब भाई भाई,राग द्वेष ला टारव।।

 दया मया ला बाटे बर जी ,देखव होली आये।
गला मिलव आपस मा संगी,खुशी आज हे छाये।।

दया-मया ला बाँटव संगी,भर भर के गा झोली....
बैर भाव ला सबो भुलाके,बने मनालव होली.....ll

छंदकार-द्वारिका प्रसाद लहरे 
बायपास रोड़ कवर्धा (छत्तीसगढ़)

Wednesday, January 29, 2020

बसंत ऋतु विशेषांक

बसंत ऋतु विशेषांक

(रोला छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

गावय  गीत बसंत,हवा मा नाचे डारा।
फगुवा राग सुनाय,मगन हे पारा पारा।
करे  पपीहा  शोर,कोयली  कुहकी पारे।
रितु बसंत जब आय,मया के दीया बारे।

बखरी  बारी   ओढ़,खड़े  हे  लुगरा  हरियर।
नँदिया नरवा नीर,दिखत हे फरियर फरियर।
बिहना जाड़ जनाय,बियापे  मँझनी बेरा।
अमली बोइर  आम,तीर लइकन के डेरा।

रंग  रंग  के साग,कढ़ाई  मा ममहाये।
दार भात हे तात,बने उपरहा खवाये।
धनिया  मिरी पताल,नून बासी मिल जाये।
खावय अँगरी चाँट,सबे के जिया अघाये।

हाँस हाँस के खेल,लोग लइका मन खेले।
मटर  चिरौंजी  चार,टोर  के मनभर झेले।
आमा  अमली  डार, बाँध  के  झूला  झूलय।
किसम किसम के फूल,बाग बारी मा फूलय।

धनिया चना मसूर,देख के मन भर जावय।
खन खन करे रहेर,हवा सँग नाचय गावय।
हवे  उतेरा  खार, लाखड़ी  सरसो अरसी।
घाम घरी बर देख,बने कुम्हरा घर करसी।

मुसुर मुसुर मुस्काय,लाल परसा हा फुलके।
सेम्हर हाथ हलाय,मगन हो मन भर झुलके।
पीयँर  पीयँर   पात,झरे  पुरवा आये तब।
मगन जिया हो जाय,गीत पंछी गाये तब।

माँघ पंचमी होय,शारदा माँ के पूजा।
कहाँ पार पा पाय,महीना कोई दूजा।
ढोल नँगाड़ा झाँझ,आज ले बाजन लागे।
आगे  मास बसन्त,सबे कोती सुख छागे।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छ्ग)

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कुण्डलियां छंद- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

मउरे आमा डार मा, परसा फूले लाल।
कोयल गावत गीत हे, पूछत सबके हाल।।
पूछत सबके हाल, मया के बाँधय डोरी।
झूमय नाचय मोर, देख मौसम घनघोरी।।
हरियर डारा पान, सबो के दिन हा बहुरे।
राजा हे रितु आम, गाँव अमरइया मउरे।।

मनभावन मन बावरी, ढूँढ़य रे मनमीत।
कोयल कूके डार मा, गावय सुघ्घर गीत।।
गावय सुघ्घर गीत, पंख दुन्नो फइलाये।
झूमय नाचय खार, बसंती घर घर आये।।
जीना अब दुश्वार, आँख ला बरसे सावन।
भाये ना घर द्वार, मोर सजना मन भावन।।

आगे बिरहा के बखत, लगय जुवानी आग।
करम विधाता का गढ़े, चोला लगगे दाग।।
चोला लगगे दाग, मोर धधकत हे छतिया।
तरसे नयना मोर, मया के भेजव पतिया।।
कोयल छेड़य तान, कोयली के मन भागे।
अंतस भरे हिलोर, समय का बिरहा आगे।।

​ईंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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ताटंक छंद गीत-डी पी लहरे


ऋतु बसंत के दिन आये हे।
           ख़ुशी सबो बर लाये हे।
परसा फुलवा लाली लाली,
           अमुवा हा मउराये हे।

आज कोइली कुहकत हावय,
            गा के गुत्तुर गाना जी।
रंग बिरंगी फूल फुले हे,
            उलहा डारा-पाना जी।।

फूल फूल मा जाके अब तो,
          भौंरा हा मँडराये हे..
ऋतु बसंत के दिन आये हे,
          ख़ुशी सबो बर लाये हे..।।1

आनी-बानी साज करे हे,
                ये धरती महतारी हा।
गमकत हावय चारो कोती,
           बगिया अउ फुलवारी हा।।

फागुन महिना आही कहिके,
                    रंग बसंती छाये हे..
ऋतु बसंत के दिन आये हे,
              ख़ुशी सबो बर लाये..ll2

गरमी जाड़ा कुछ नइ लागे,
              मौसम मस्त सुहाना हे।
मया-मयारू मिलना होही,
              उँखरे आज जमाना हे।।

फुरहुर-फुरहुर पुरवाही जी,
                सबके मन ला भाये हे..
ऋतु बसंत के दिन आये हे,
              ख़ुशी सबो बर लाये हे..ll3

गीतकार डी.पी.लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा

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 जल-हरन घनाक्षरी - बोधन राम निषादराज

मन मोर  झुमें  नाचे, पड़की  परेवा बाचे,
लागथे  लगन  अब, शोर   बगराय बर।
परसा के फूल लाली,गोरी होगे मतवाली,
कुहके कोयलिया हा,जिवरा जलाय बर।।
आमा मउँर महके, जिवरा  घलो  बहके,
सरसो  पिँयर  सोहे, मन  ललचाय  बर।
हरियर     रुखराई,    चलतहे     पुरवाई,
आस ला बँधावत हे,मया ला जगाय बर।।

किरीट सवैया - (बसन्त)

आय बसन्त फुले परसा गुँगवावत आगि लगावत हावय।
देख जरै जिवरा बिरही मन मा बहुँते अकुलावत हावय।।
कोकिल राग सुनावत हे महुआ मीठ फूल झरावत हावय।
रंग मया पुरवा बगरे चहुँ ओर इहाँ ममहावत हावय।।

सुखी सवैया - (बसन्त)

ऋतुराज बसन्त लुभावत हे,मन मा खुशियाँ अब छावन लागय।
अमुवा मउरे पिँउरावत हे,कुँहु कोकिल राग सुनावन लागय।।
सरसो अरसी महुआ महके,सब डाहर फूल सुहावन लागय।
मन मोर अगास उड़ै जस बादर गीत मया बरसावन लागय।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला - कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)

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बसंत पंचमी खातिर सरसती चालीसा-कन्हैया साहू

जय जय दाई सरसती, अइसन दे वरदान।
अग्यानी ग्यानी बनय, होवय जग कल्यान।। (दोहा)

हे सरसती हरव अँधियारी। हिरदे सँचरय झक उजियारी।।-1

तोर चरण मा जम्मों सुख हे। जिनगी जग मा कटही रुख हे।।-2

हाथ जोड़ के करथँव विनती। होय भक्त मा मोरो गिनती।।-3

जंतर मंतर कुछु नइ जानँव। सबले पहिली तोला मानँव।।-4

मैं मुरहा मन के बड़ भोला। गोहराँव मैं निसदिन तोला।।-5

मोर भुवन मा आबे दाई। बिगड़ी सबो बनाबे माई।।-6

एती वोती मैं भटकँव झन। बुता काम मा मैं अटकँव झन।।-7

मोर करम ला सवाँरबे तैं। अँचरा दे के दुलारबे तैं।।-8

जिनगी के दुख पीरा हर दे। छँइहा सुख के छाहित कर दे।।-9

सोहय सादा हंस सवारी। कमल विराजे वीणाधारी।।-10

मूँड़ मुकुट मणि माला मोती। दगदग दमकय चारो कोती।।-11

सबले बढ़के वेद पुरानिक। सरी कला के तहीं सुजानिक।।-12

ग्यान मान के तैं भंडारी। तहीं जगत मा बड़ उपकारी।।-13

वरन वाक्य अउ बोली भासा। महतारी तैं सबके आसा।।-14

सब्बो सिरजन के तैं जननी। गीत गजल अउ कविता कहिनी।।-15

सुर सरगम के सिरजनहारी। मान-गउन के तैं अवतारी।।-16

सारद तीन लोक विख्याता। विद्या वैभव बल के दाता।।-17

सुर नर मुनि सबो गोहरावैं। संझा बिहना माथ नवावैं।।-18

अंतस ले जे तोला गावँय। मनवांछित फल वोमन पावँय।।-19

तोरे पूजा आगू सब ले। सरी बुता हा बनथे हब ले।।-20

विधि विधान जग के तैं बिधना। बोली भाखा तोरे लिखना।।21

तहीं ग्यान विग्यान विसारद। गावय तोला ग्यानी नारद।।-22

दाई चारो वेद लिखइया। ग्यान कला अउ साज सिखइया।।-23

रचे छंद अउ कहिनी कविता। भाव भरे बोहावत सरिता।-24

नेत नियम ला तहीं बखानी। ग्रंथ शास्त्र हा तोर जुबानी।।-25

मंत्र आरती सीख सिखावन। आखर तोरे हावय पावन।।-26

अप्पड़ होवय अड़बड़ ग्यानी। कोंदा बोलय गुरतुर बानी।।-27

सूरदास हा बजाय बाजा। बनय खोरवा हा नटराजा।।-28

बनथस सबके सबल सहारा। जिनगी जम्मों तोर अधारा।।-29

जीव जगत के तैं महतारी। तोरे अंतस ममता भारी।।-30

भरे सभा मा लाज बचाथस। जग ला अँगरी नाच नचाथस।।-31

तोर नाँव हे जग मा पबरित। बरसाथस तैं किरपा अमरित।।-32

हावँव निमगा निच्चट अँड़हा। परे हवँव मैं कचरा कड़हा।।-33

अखन आसरा खँगे पुरोबे। मनसुभा मइल मोरो धोबे।।-34

झार केंरवस, कर दे उज्जर। बनय 'अमित' सतवंता सुग्घर।।-35

मेट सवारथ झगरा ठेनी। दया मया बोहा तिरबेनी।।-36

राखे रहिबे मोरो सुरता। खँगे-बढ़े के करबे पुरता।।-37

महतारी झन तैं तरसाबे। अंतस खच्चित मोर अमाबे।।-38

जिनगी होगे खींचातानी।। करबे किरपा तहीं भवानी।।-39

पूत 'अमित' के सदा सहाई। कभू भुलाबे झन ओ दाई।।-40

सुमिरन करथँव सारदा, सरलग तोरे नाम।
सोर 'अमित' जग मा उड़य, सिद्ध परय सब काम।।


कन्हैया साहू 'अमित'
शिक्षक-भाटापारा छ.ग.
संपर्क~9200252055

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रूपमाला छंद :- जगदीश "हीरा" साहू

शारदे   माँ   ज्ञान   भरदे,  मन्द   मति   मा   मोर।
कृपा बिन अँधियार जिनगी, आय  करव अँजोर।।
हाथ    ले  झनकार   वीणा,  छेड़    सुग्घर    राग।
बिसर जावय  दुःख सुनके,  सँवर  जावय  भाग।।1।।

कर  सवारी  हंस  आहू,  संग   बाँटत  ज्ञान।
बसे राहय भगति  मन मा, दे  इही वरदान।।
कभू झन भटकय दिखाहू, नेक रसता जोर।
मोर  जिनगी ला  सजाहू,  हे भरोसा  मोर।।2।।

तुँहर  महिमा  वेद  गावय,  संत  करय   बखान।
कंठ कोकिल करव कहिथँव, करँव  मैं गुनगान।।
सात  स्वर  सुर  ताल  देवव, लगे  भीड़  समाज।
हाथ जोड़े खड़े  सब जन,  दया कर दव आज।।3।।

माथ  मा  चंदन  लगावँव,  चरण रज धर शीश।
रूपमाला  छंद   गावँव,  आज   मैं   जगदीश।।
जगत मा संस्कार बगरय, मिलय निरमल ज्ञान।
जगत जननी  सुनव  अरजी, इही दव वरदान।।4।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़
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चौपाई - छंद रामकली कारे

तन मन मोर बसन्ती होवय | सखी मया मा सुध बुध खोवय ||
वन उपवन अति देखत भावय | जब जब ऋतु बसंत के आवय ||

मन्द मन्द महकय पुरवाई | कण कण मा दमकय सुघराई ||
कुहकय रोज कोयली कारी | रंग गंध बगरय जग सारी  ||

जाड़ घाम अउ बादर पानी | लागय नटनी खेल कहानी ||
रूप बदल ले घेरी बेरी | होय रेत के जइसन ढेरी ||

मउॅहा बने मतौना आगे | परसा दहकत आगी लागे ||
घम घम ले अामा बौरावय | पिंयर पिंयर सरसों लहरावय ||

आगे बसंत नाचत गावत | कली कली के हिरदय बाचत ||
ओढ़ चुनरिया अबड़ लजाही | धान पान धरती लहराही ||

तार तार ले बीना बाजय | हंस सवारी बने विराजय ||
ज्ञान दायिनी देवी दाई | लागव  पइयाॅ मनसा माई ||


छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
छत्तीसगढ़
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Tuesday, January 28, 2020

सार छंद -अजय अमृतांसु

सार छंद -अजय अमृतांसु

दू दिन के जिनगानी संगी,येकर कहां ठिकाना
जइसे आये वइसे जाबे ,तब काबर पछताना।

मया मोह मा परके तैंहा,राम नाम छोड़े हस।
दया धरम नइ जाने बइहा,काबर मुँह मोड़े हस।

पाई पाई जोरे काबर, इँहे छोड़ जाना हे।
कतको जोरे मोरे कहिके,हाथ कहाँ आना हे।

बने करम कर ले गा भैया,तब तो सुख तैं पाबे ।
पथरा जइसन जिनगी खिरही,मर के का ले जाबे।

कोन अपन अउ कोन  पराया, सबला एके जानव।
मंदिर मस्जिद अउ गुरुद्वारा,सब ला एके मानव ।

                           अजय अमृतांशु         
                              भाटापारा

Monday, January 27, 2020

सार छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


सार छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

करजा भारी नौ महिना के, कोंख रखे माँ पाले।
छाती ले के दूध पिलाये, छइँहा अँचरा डाले।।

सरग बरोबर गोदी लागे, मीठ सुनाये लोरी।
बोलच मोला हीरा बेटा, राखे आँख निहोरी।।

काँटा खूँटी जाँगर पेरे, मुँह मा डारे चारा।
कोरा माटी ये जिनगी ला, तँही बनाये गारा।।

माँ के महिमा बड़ा निराला, सुन रे मन तँय गा ले।
करजा भारी नौ महिना के, कोंख रखे माँ पाले।।1


तोर बिना ये जिनगी सुन्ना, सुन्ना हे जग सारा।
ममता के तँय दिया बरोबर, करथस जग उजियारा।।

बुरा भला के राह बताये, ज्ञान दिये संस्कारी।
नाम कमाबे जग मा कहिके, भाव दिये ब्यवहारी।।

देथे आशीष सुखी जीवन के, सोये भाग जगा ले।
करजा भारी नौ महिना के, कोंख रखे माँ पाले।।2

सबो रूप मा खुद ला साजे, सास बहू माँ नारी।
पाप बढ़े जब जब दुनियाँ मा, काल रूप अवतारी।।

पाठ पढ़ाये मानवता के, सीख दिये परिवारी।
मोर जनम ये परही थोरे, कई जनम बलिहारी।।

माँ हे पावन गंगा नदिया, डुबकी मार नहा ले।
करजा भारी नौ महिना के, कोंख रखे माँ पाले।।3

जनम जनम ला बेटा बनके, करजा दूध चुकाहूँ।
माया मोह जगत मिल जाही, माता कहाँ ल पाहूँ।।

सरवन जइसे बेटा बनके, सेवा जतन ल करहूँ।
साथ बुढ़ापा थेगा बनके, राह सरग बर धरहूँ।।

चरण कमल माँ तीरथ चारो, घट मा अपन बसा ले।
करजा भारी नौ महिना के, कोंख रखे माँ पाले।।4

छंदकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध" (बिलासपुर)

Sunday, January 26, 2020

देशभक्ति आधारित छंद बद्ध कविता-छंद के छ परिवार



देशभक्ति आधारित छंद बद्ध कविता-छंद के छ परिवार

शक्ति छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।
करौं बंदना नित करौं आरती।
बसे मोर मन मा सदा भारती।

पसर मा धरे फूल अउ हार ला।
दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।
बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।
सबे खूँट बगरे अँजोरी रहे।
बसे बस मया हा जिया भीतरी।
रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।

इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।
तभो हे घरो घर बिना बेंस के--।
पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।

चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।
सजाके बनावौं ग रानी सहीं।
किसानी करौं अउ सियानी करौं।
अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।
वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।
करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।

फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।
वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।
पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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बलिदानी (सार छंद)

कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।
देश धरम बर मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।
महतारी के आन बान बर,कौने झेले गोली।
कोन लगाये माथ मातु के,बंदन चंदन रोली।
छाती कोन ठठाके गरजे,काँपे देख फसादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।
हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।
मुड़ी हिलामय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।
हवा बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।
देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।
अपने मन सब बैरी होगे,कोन भला छोड़ावै।
हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।
देख हाल बलिदानी मनके,बरसे नैना धारी।
पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।
लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।
डाह द्वेष के आगी भभके,माते मारी मारी।
अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।
बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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रोला छंद - बोधन राम निषादराज
(गणतन्त्र दिवस)

झंडा ऊँचा आज,अगासा फहरत हावै।
आजादी के गोठ,चिरइया आज सुनावै।।
जय जवान जय घोष,लगावौ जम्मो भाई।
सुग्घर  राहय  देश, मोर ये भारत  माई।।

संगी चलव  मनाव,आय  हे सुघ्घर  बेरा।
ए गणतंत्र तिहार,देख  ले  सोन  बसेरा।।
पावन मौका आय,झूम के  नाचौ   गावौ।
भूलौ झन उपकार,आज सब खुशी मनावौ।।

लोकतन्त्र  के  पर्व, मनावौ   भारतवासी।
समझौ रे अधिकार,बनौ झन कखरो हाँसी।।
जात-पात के संग,करौ झन आज लड़ाई।
झन हो लहू लुहान,रहौ सब भाई-भाई।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा, जिला - कबीरधाम
(छत्तीसगढ़)
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कुकुभ छंद गीत - श्रीमती आशा आजाद

भारत के सच्चा सेनानी,अब्बड़ मान बढ़ाथे गा,
रण मा कुर्बानी ले अपने,झण्डा ओ फहराथे गा।

हे शहीद कतका भारत मा,अब्बड़ खून बहाये हे
हिंदुस्तान के सान बान मा,मरके फर्ज निभाये हे
साहस रखके फर्ज निभाइन,दुश्मन मार गिराथे गा,
रण मा कुर्बानी ले अपने,झण्डा ओ फहराथे गा।

घर मा बइठे घरवाली हा,अपने फर्ज निभाये जी,
बच्चा ओखर अबड़ तरसथे,पालय कष्ट उठाये जी,
सुनके होगे ओ वीरगति ल,अपने होश गवाथे गा,
रण मा कुर्बानी ले अपने,झण्डा ओ फहराथे गा।

जंगल झाड़ी घाम जाड़ मा,तन मा अब्बड़ सहिथे गा,
रात रात भर जाग जाग के,रक्षा सबके करथे गा,
कठिन काज के जिम्मा लेवै,तभे सुरक्षा आथे गा।
रण पर कुर्बानी से अपने,झण्डा वो फहराथे गा।

दुश्मन झन घुस जावै कोनो,सीमा मा नजर गड़ाये हे,
भूख प्यास के होश कहाँ तब,जब संकट हा छाये हे,
भारत माता के रक्षा बर,लहूँ सदा दे जाथे गा,
रण मा कुर्बानी ले अपने,झण्डा ओ फहराथे गा।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

Saturday, January 25, 2020

मतदाता स्थापना दिवस विशेष

 मतदाता जागरूकता दिवस विशेष

दोहा मुक्तक छंद -श्रीमती आशा आजाद

जागौ मनखे देश के,करौ अपन मतदान,
भारत देश विकास बर,धरौ सबो झन ज्ञान,
सुग्घर जुरमिल सोच के,डालौ अपने वोट,
नेता मिलही नेक जब,तभे बाढ़ही सान।

लोभ मोह ला छोड़के,सत के रद्दा जाव,
जनहित मा नित काज हो,मन ले लोभ भगाव,
सुग्घर नेता ला चुनौ,करदौ देश विकास,
पइसा माँगय बोकरा,उनला आज जगाव।

मतदाता सच्चा रहय,जानय वोट अधार,
नेता चुन के लाव जी,जेन करय उद्दार,
दीन दुखी के काज ला,समझे अपने धर्म,
भूख प्यास जम्मो मिटे,इही वोट के सार।

सत्ता के नित लोभ मा,गलत करे सब काम,
झूठ लबारी गोठ ले,नेता पावै नाम,
चेत धरौ मनखे सबो,मिले हवे अधिकार,
आशा मीता शारदा,अरुण राम अउ श्याम।

छंदकार -श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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अरसात सवैया -श्रीमती आशा आजाद

बोट करौ सब ध्यान धरौ सब कीमत जानव चेत लगाव जी।
राज बने सबले बढ़िया अइसे मतदान सबो कर आव जी।
लोभ कभो झन राखव जी धमकाय कभू झन देख डराव जी।
वोट करौ अधिकार मिले सब डालव ये मँय ध्यान धराव जी।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता -मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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चौपाई छंद-डॉ तुलेश्वरी धुरंधर

अब चुनाव हा आगे संगी।बात चलत हे अड़बड़ जंगी।।
बोलय सबझन अड़बड़ नारा।शोर मचावै पारा पारा।।
रोज चुरत हे  बकरा कुकरा ।।बाँटत  हे सब घर मा लुगरा।
दारू के पेटी लानत हें।लइका बुढ़हा सब जानत हेँ।।
अपन वोट के तुम अधिकारी।एक  वोट चुनई  मा भारी।।
सोंच समझ के चुनहव भैया।नइते होही ताता  थइया।। 

डॉ तुलेश्वरी धुरंधर
ब्लोदाबजार

Friday, January 24, 2020

सार छन्द- गुमान प्रसाद साहू


सार छन्द- गुमान प्रसाद साहू

               ।।1।।मँहगाई।।
दिन-दिन बाढ़त हावय कतका, दुनिया मा मँहगाई।
मनखे मन के हाल बिगड़गे, होवत हे करलाई।।

पेट भरे मजदूर अपन गा, जाँगर टोर कमाथे।
फेर बढ़त मँहगाई सेती, आधा पेट ग खाथे।।

देख हवय बेकारी कतका, ऊपर ले मँहगाई।
भाव जिनिस के आगी लगगे, होवत हे दुखदाई।।

सबो जिनिस हा मँहगा होगे, मँहगा घर के सपना।
मँहगा होगे आज देवता, पूजा करके जपना।।

मँहगा चाँउर दार सबो हा, खीसा होगे ढिल्ला।
मँहगाई मा घर ल चलाना, होगे आटा गिल्ला।।

                 ।।2।।छोड़व भेद।।
सुख दुख के जिनगी मा संगी, रहिथे आना जाना।
दुख मा सुख ला जेन खोज ले, मनखे उही सयाना।

मनखे सब झन एके हावय, भेद कभू झन जानव।
जात पात के खन के डबरा, हिरदे ला झन चानव।

ऊँच नीच हा गुण ले होथे, धन ले जी नइ होवय।
मनखे धनवर होवय कतको, पइसा मा नइ सोवय।

छंदकार:- गुमान प्रसाद साहू ,ग्राम- समोदा (महानदी)
 जिला रायपुर छत्तीसगढ़

Thursday, January 23, 2020

सार छंद--चोवा राम 'बादल'

सार छंद--चोवा राम 'बादल'

हिरदे भीतर परगे हावय,
 देखव संगी छाला।
 हाय गरीबी बैरी होगे, आँखी
 छागे जाला।।

 जाँगर टोर कमाथन कतको,
 मिलय नहीं जी पसिया।
 मार डरत हे मँहगाई हा, घेंच
 दँता के हसिया ।।

नेता मन सब घूम घूम के,
 करते रहिथें वादा।
 झोरत हें उन आनीं बानीं,
 छोंड़ हमर बर खादा ।।

बनत योजना सरकारी हे, रंग
 रंग के भारी।
 धन खुसरत हे बड़का मन
 घर ,सुन्ना  हमर दुआरी ।।

काकर आगू रोवन
 गावन ,दुःख सुनावन काला।
 भैरा हे सरकार निचट
 गा ,बइठे पहिरे माला।।

 शिक्षा के हथियार उबा
 के,हम तो कइसे लड़बो।
 सुन के फीस छाय बेहोशी,
 काला बेंचे भरबो ।।

सेठ सकेले भरे खजाना,
 चपके भर्री धनहा ।
पथरा पटकत हमरे
 छाती,साहत हवन किसनहा।।

 मिलजुल के सब लड़बो
 भाई, तभे पार ला पाबो।
हक ला अपन झटकबो जब जी तब दू कौंरा खाबो।।

छंदकार--चोवा राम 'बादल'
हथबन्द,बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

Wednesday, January 22, 2020

सार छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी

सार छंद- ज्ञानुदास मानिकपुरी


जोर चलय नइ कखरो संगी,अइसन मया निराला।
दाना पानी छीने कखरो,कखरो बने निवाला।

1-खाय पिये के चेत रहय नइ,काम घलो मनढेरा
    छिन छिन सुरता आय मयारू,नइये कोनो बेरा
 कखरो बर हे मीठ मया हा,अउ कखरो बर हाला
जोर चलय नइ-----

2-कोनो ला मिल जथे मया जब,जिनगी लगे सुहावन
   मिलय नहीं जब कभू मया हा,आगी बरसे सावन
कभू फूल हे कभू मया हा,बनगे बरछी भाला
जोर चलय नइ ---

3-तन मा मन मा रोम रोम मा,दउँड़य ये नस नस मा
लगे मया के रोग कहू ते,राहय नइ कुछु बस मा
सुरता रहिथे नाम मयारू,जपे रातदिन माला
जोर चलय नइ---

छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी(कवर्धा)
जिला-कबीरधाम(छ्त्तीसगढ़)

Tuesday, January 21, 2020

सार छंद- दिलीप कुमार वर्मा

सार छंद- दिलीप कुमार वर्मा

नाम रखे ले कुछ नइ होवय, काम करे ले होथे।
भाग भरोसे जे मन राहय, ते मन निशदिन रोथे।

नाम रखाये ज्वाला सिंह अउ, जाड़ देख थर्राये।
ओढ़ रजाई सुते हवय ओ, बाहिर तक नइ आये। 

राम नाम राखे ले भइया, राम कहाँ बन पाथे।
करम करे रावण के जइसे, जेल म रोटी खाथे।

शांति नाम बड़ पावन लागे,लगथे सुख बरसाही।
हाँव हाँव दिनरात करत हे, सुमता कइसे लाही।

रूपवती मा रूप कहाँ हे, बिटबिट लागे कारी।
आँख फार के देखत रहिथे, निशदिन देथे गारी।

भीख मांग के करे गुजारा, नाम अमीर रखाये।
धन दौलत के मालिक बनगे, जे गरीब कहलाये।

विद्या सागर अनपढ़ भइगे, कुछ ओला नइ आवय।
परबुधिया कस काम करत हे, गारी तक ओ खावय।

पहलवान के हालत खस्ता, ऊपर देख चढ़ाई।
मँय नइ जावँव कहिके बइठे, जय हो डोंगर दाई।

वीर सिंह के पोटा काँपय, गोल्लर देख लड़ाई ।
हमरो कोती झन आ जावय, कहिथे भागव भाई। 

बाई मोर सुशीला निच्चट, बनगे हवय कसाई।
सास ससुर ला ताना देवय, मोला मारय भाई।

जब दिलीप हे नाम मोर ता, का राजा बन पाहूँ।
माँजत रहिथौं टठिया बरतन, कइसे नाम कमाहूँ।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

Monday, January 20, 2020

सार छंद - बोधन राम निषादराज

सार छंद - बोधन राम निषादराज

(1) जिनगी के होरी:-

देखव संगी फागुन आए,ढोल नँगारा बाजय।
लइका बुढ़वा दाई माई,घर कुरिया ला साजय।।

जिनगी मा जी काय धरे हे,बैर भाव ला झारव।
बइरी हितवा जम्मो मिलके,रंग मया के डारव।।

लाली हरियर नीला पिउँरा,सुघ्घर रंग समाए।
छींचव संगी जोर लगाके,फागुन देखव आए।।

रंग लगावय आनी-बानी, मउहा  पीके  झूले।
धर पिचकारी मारय फेंकय,कोनों रेंगत भूले।।

फाग होत हे चारो कोती,  नर-नारी  बइहाए।
नाच-नाच के मजा करत हे,सुग्घर होरी भाए।।

ए जिनगी मा काय धरे हे,चलो मनालव खुशियाँ।
ए जिनगी नइ मिलय दुबारा,झन बइठव जी दुखिया।।


(2) रंग मया के लेलव:-

गली गली मा धूम मचे हे,नाचत फगुवा गावय।
होरी खेलय रंग उड़ावय,भंग खुशी मा खावय।।

मातय झूमय गली खोर मा,ढोल नँगाड़ा बाजय।
धर पिचकारी आरा रारा,बइहाँ सुघ्घर साजय।।

भेद-भाव अउ लाज शरम ला,छोड़ भगागे भाई।
नइ हे बेटी बहू चिन्हारी,  नइ हे दाई - माई।।

टूरी टूरा एक दिखत हे, कोनों करिया पिउँरा।
रंग मया मा फाँसय कोनों,कखरो तरसय जिवरा।।

अइसन होरी अउ कब आही,बने इहाँ अब खेलव।
जिँयत मरत के संगी-साथी,रंग मया के लेलव।।


(3) नवा जमाना आवय:-

नवा जमाना देखत  हावय, रसता  आगू  बढ़ गा।
दुनिया के सँग हाथ मिला के, अपन करम ला गढ़ गा।।

झन हो जाहू पाछू संगी,सोचव अपन विकास ल।
दुनिया आसमान मा पहुँचय,झन छोड़व जी आस ल।।

नवा-नवा जी बोर होत हे,खेती सोना  होवय।
वाटर पम्प घलो हे चलथे,बारह महिना बोवय।।

आज सड़क मा चिखला नइहे,चिक्कन चाँदन चमकय।
घर कुरिया अब पक्का होगे,लेंटर वाले दमकय।।

पढ़े लिखे के राज आत हे,जम्मो सुघ्घर पढ़लव।
नोनी बाबू संगे सँग मा,अपनों जिनगी गढ़लव।।

तइहा के जी बात छोड़ दव,अब तो वो नंदावय।
आगू आगू सोंचत राहव,नवा जमाना आवय।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा, जिला - कबीरधाम(छत्तीसगढ़)

सार छंद*-- *आशा देशमुख*

*सार छंद*--  *आशा देशमुख*

कवि समाज के दरपन होथे,अतका जानँव भइया।
सार साँच मा कलम चलावव,साहित हावय नइया।

स्याही होय भले करिया पर,आखर राखव सादा।
कलम सिपाही लड़त रहव गा, बनँव कभू झन प्यादा।

साहित सागर रतन भरे हे,शब्द शब्द हे मोती।
चुन चुन के सब गूँथव माला ,चमके चारो कोती।

माँ वाणी के वरद हाथ हा ,जब कोनो ला मिलथे।
काली तुलसी जइसे बनके,अमर काव्य ला रचथे।

बड़े भाग मनखे तन मिलथे,दुर्लभ कविता रचना।
कोटि जनम के भाग खुले तब,बइठे वाणी रसना।

 छंदकार -आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

Sunday, January 19, 2020

वसन्ती वर्मा - सार छंद

वसन्ती वर्मा - सार छंद

         *पोता के हाट*
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पोता के गुरुवारी हटरी,मोला बढ़िया लगथे।
आनी बानी भाजी पाला,खई खजेना मिलथे।1।

केंवटीन हा बेचत रइथे,मुर्रा चना ग भजिया।
भाँटा मुरई धर के आथे,बेंचे बर ग कोंचिया।2।

सूपा टुकनी बहरी आये, तुरकिन बेचय चूरी।
पसरा बगरे मनिहारी के,खड़े हवैं सब टूरी।3।

होटल मालखरौदा वाला,आये हे हलवाई।
बेचत हवै जलेबी लड्डू,पेंड़ा रसेमलाई।4।

काँसा पीतल बरतन वाला,बेचय लोटा थारी।
दाई बहिनी मोल करत हें,भीड़ लगे हे भारी।5।

चाट संग मा गुपचुप ठेला,खावँय लइका कसके।
सार छंद मा पढ़य वसन्ती,हाट भरे हे ठसके।6।

      वसन्ती वर्मा
नेहरू नगर,  बिलासपुर

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Friday, January 17, 2020

छन्न पकैया छंद -मोहन

छन्न पकैया छन्न पकैया , कइसन आय जमाना ।
फइले फैशन चारो कोती , कहिबे का का बताना ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , लाज शरम हर मरगे ।
नान नान कपड़ा मा संगी , फूहड़ता हर भरगे ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , फैशन हावय भारी ।
ददा दाई बरजय नही गा , कइसन हे लाचारी ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , कतका बात ल धरबे ।
घर मा लइका छूट पाय ता , बता तही का करबे ।।

छन्न पकैया  छन्न पकैया , कटे - फटे  हे  कपड़ा ।
अंग अंग जी झलकत हावय , देखव माते लफड़ा ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया , कोनो नइ शरमाये ।
नोनी बाबू एक बरोबर , फैशन हवय लगाये ।।

छन्न पकैया   छन्न पकैया ,  घटना  रोजे बाढ़े ।
काला दोष लगाबे संगी , देखय सब झन ठाढ़े ।।

छन्न पकैया  छन्न पकैया , कोन हवय जी दोषी ।
पहिली गुनले बात ला सबो , झन कर ताता रोषी ।।

छन्न पकैया  छन्न पकैया ,  कइसन  ये  पहिनावा ।
छोड़व अइसन फैशन ला जी , बने सादगी लावा ।।

छन्न  पकैया  छन्न  पकैया  ,  हमर ये  जुमेदारी ।।
लइका मनला सुग्घर राखव , जम्मो नर अउ नारी ।।

      रचनाकार - मयारू मोहन कुमार निषाद
                        गाँव - लमती , भाटापारा ,
                    जिला - बलौदाबाजार (छ.ग.)

Thursday, January 16, 2020

छन्न पकैया छंद :-जगदीश साहू"हीरा"


छन्न पकैया छंद :-जगदीश साहू"हीरा"

गोदी

छन्न पकैया छन्न पकैया, खुले गाँव मा गोदी।
जावय चैतू अउ बैशाखू, मंगल संग भिनोदी।।1।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,धरके रापा गैती।
चैत संग मा जावत हावय,  झउँहा बोहे चैती।।2।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, सबके किस्मत जागे।
रोजगार गारंटी आगे, काम सबो झन पागे।3।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, रहिके गाँव कमावय।
नइ लागय परदेश जाय बर, सबके मन ला भावय।।4।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, जुरमिल सबझन आवव।
ये सुग्घर सन्देश सबोझन, जगा-जगा बगरावव।।5।।

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)

Wednesday, January 15, 2020

सार छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 सार छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

अँखमुंदा दौड़त मोटर गाड़ी

हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।
देखावा अउ जल्दी बाजी,फोड़त हावय माड़ी।

जाने जम्मो झन जोखिम हे,तभो करे अनदेखा।
अपने हाथ बिगाड़त फिरथे,अपन भाग के लेखा।
उहू आदमी लउहा लेवय,जे टारे नइ काड़ी-।
हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।

मनखे तनखे मोटर गाड़ी,दिनदिन भारी बाढ़े।
साव चेत हो चलना पड़ही,रथे गाय गरु ठाढ़े।
हाल दिखे बेहाल सड़क के,का जंगल अउ झाड़ी।
हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।

खुदे झपाये अउ दूसर के,हाड़ा गोड़ा टोड़े।
बात बरजना घलो न माने,नशापान नइ छोड़े।
उहू कुदावै मोटर गाड़ी,जउने हवै अनाड़ी--।
हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।

नवा नवा गाड़ी आगे हे,आगे नवा चलैया।
यमराजा लेआघू निकले,देख सड़क हा भैया।
दुर्घटना ला देख जुड़ाथे,हाथ पाँव अउ नाड़ी।
हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Tuesday, January 14, 2020

मकर सक्रांति विशेषांक-छंद के छ परिवार

मकर सक्रांति विशेषांक-छंद के छ परिवार

 आल्हा छन्द - नेमेंद्र

कर्क रेख ले मकर रेख मा ,धीरे जावत हे भगवान।
करो सुवागत आत बसंता, दिखे धरा सुग्घर मुस्कान।।

तीली गुड़ के बाँटे लड्डू,दोना थारी भरके लोग।
घर घर सुख के बरसा बरसे,भागत जावय जम्मो रोग।।

कथा सुनावे दादी नानी,अर्ध रात जावय सकरात।
करे भोर सब लोगन पूजा,सुरुज नरायन देखत आत।।

जम्मो भारतवासी माने, सुरुज चाल बदले सकरात।
वेद ह माने यम के जइसे, पापी उप्पर करथे घात।।

जप तप सुग्घर करथे लोगन,कोनो मांगत हे वरदान।
शनि के साती कांटत भगवन,सत के हमला देवव दान।।

छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही-बालोद
मोबा.-8225912350

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आल्हा छंद -रामकली कारे

गुड़ तिल्ली मा लाड़ू बनथे, सोंध सोंध गा सुघर मिठाय।
मकर राशि मा सुरुज नरायण, उत रायण मा भागत जाय।।

घर घर मा सब पूजा करथें, बड़े बिहनियाॅ कर स्नान।
पानी देके पुण्य कमावै, खाथें खिचड़ी के पकवान।।

झुनगा मुनगा बरी चुरै जी, सेमी साग ल अड़बड़ खाय।
रुपिया पइसा दान करय सब, रंग बिरंग पतंग उड़ाय।।

खेल कबड्ड़ी खो खो खेलय, सब जुड़ जाड़ ह भागत जाय।
बारह महिना बारह राशि ग, सुख शांति संदेशा लाय।।

घाट घाट मा मड़ई मेला, माघ मास मा अबड़ भराय।
गाॅव गाॅव के लोगन आके, दर्शन सबो देव के पाय‌।।

मड़ई मेला गजब निराला, लागय ये तो चारों धाम।
राउत नाचा धजा देवता, होथे गा जुग जुग के नाम।।

माला चूरी टिकली फुॅदरी, छाॅट छाॅट के सबो बिसाय।
खई खजाना खेल तमाशा, जगह जगह मन देखत भाय।।

लोक गीत अउ नाचा गाना, हमर राज के आवय शान।
ग्राम देवता ठाकुर देव म,फूल चढ़ा के करथें मान।।

बस्तरिहाॅ रमरमिहाॅ मेला, पीथमपुर तुर्री के धाम।
माघी पुन्नी गंगा सागर, मेल जोल के होथे काम।।

छंदकार - रामकली कारे
बालको नगर कोरबा
छत्तीसगढ़
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 रोला छंद-सुधा शर्मा

मकर संक्रांति आय,नहाये  नँदिया जाहीं।
अर्ध्य सुरुज ला देत,देव दरसन सब पाहीं।
बने घरो घर आज,तिली मुर्रा  लाड़ू गा।
बाँट बाँट के खाँय, सबो मिल के मयारु  गा।

जावत सुरूज देव, आज गा उत्ती कोती।
भागे अब जुड़ शीत, आय बसंत के होती।
नीक होय दिन रात,चले जब मधु पुरवाही।
संगी चारों खूंट, मदिर बयार छा जाही।

बदलत हावे रंग,रीतु के आना जाना,
जम्मो मौसम संग,परब हे नवा सुहाना।
करथें तिल के दान,कथें पुन
होथे भारी।
रकम रकम के रीत,हवेकोरा महतारी ।

उड़त हावे पतंग,रंग भरथे आकासा।
मनवा भरे उछाह, नवा रवि करे उजासा ।
पोंगल कहूँ मनात,कहूँ बीहू हें नाचय।
किसिम किसिम के देख,हवे संस्कृति हा साजय।

सुग्घर उड़े पतंग, सदा ये ध्यान  लगाना ।
चुरगुन ना फँस जाय, जीव ल ऊँखर बचाना।
शुभ सब करे  तिहार, आँच कोनो झन आये।
सुरूज देवा ताप,नवा सुख समृद्धि लाये।

सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़

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लावणी छंद - बोधन राम निषादराज


पहली परब नवा बच्छर के,
                    सकरायत ह कहावत हे।
छोड़ दक्षिणायन ला वो हा,
                    उतरायन मा आवत हे।।

का ले जाही का दे जाही,
                कखरो समझ न आवय जी।
मानत हावय पुरखा हमरो ,
                 संगम आज नहावय जी।।
सुत उठ दर्शन सुरुज देव ला,
                    लोटा नीर चढ़ावत हे।
छोड़ दक्षिणायन ला वो हा,
                   उतरायन मा आवत हे।

दान पून के मुहरत हावय,
                   शुभ दिन सकरायत होथे।
तीली गुड़ के लड़ुवा बाँटय,
                     नवा पतंग मया बोथे।।
सुग्घर लाली सुरुज देव हा,
                      बिहना ले बगरावत हे।
छोड़ दक्षिणायन ला वो हा,
                       उतरायन मा आवत हे।

लहर लहर लहरावत हावै,
                      चारो खूँट अँजोरत हे।
मकर डहर ले कर्क डहर बर,
                      देखव सुकवा बगरत हे।।
मीठ मीठ लागे जाड़ा हा,
                       मनखे सब मुस्कावत हे।
छोड़ दक्षिणायन ला वो हा,
                       उतरायन मा आवत हे।

छंदकार - बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।
दया मया के धागा धरके, सुख शांति के पतंग उड़ाबों।

दान धरम पूजा व्रत करबों, गाबों मिलजुल के गाना।
छोट बड़े के भेद मिटाबों, धरबों इंसानी बाना।
खीर कलेवा खिचड़ी खोवा,तिल गुड़ लाडू खाबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।

सुरुज देव ले तेज नपाबों,मंद पवन कस मुस्काबों।
सरसो अरसी चना गहूँ कस,फर फुलके जिया लुभाबों।
रात रिसाही दिन बढ़ जाही, कथरी कम्म्बल घरियाबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।

मान एक दूसर के करबों,द्वेष दरद दुख ले लड़बों।
आन बान अउ शान बचाके, सबके अँगरी धर बढ़बों।
लोभ मोह के पाके पाना, जुर मिल सब झर्राबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छत्तीसगढ़)
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दोहा/चौपाई छंद - श्लेष चन्द्राकर

दोहा
हरय मकर संक्रांति के, दिन हा अबड़ विशेष।
रात नानकुन दिन बड़े, होत आज ले श्लेष।।

चौपाई
सुरुज देव हा दिशा बदलथे। बड़े बिहिनिया तहां निकलथे।।
धीरे-धीरे जाड़ भगाथे। मनखे मन ला अबड़ सुहाथे।।

सुग्घर दिन के करव सुवागत। परब मनावव परंपरागत।।
तिल गुर के पकवान बनावव। माई पिल्ला जम्मो खावव।।

पुरखा मन के नियम ला मानव। तभे खुशी मिलही गा जानव।।
गंगा जी मा आज नहावव। सुरुज देखके मुड़ी नवावव।।

गाँव-गाँव मा लगथे मेला। सजथे मिठई फर के ठेला।।
बड़ पतंग गा आज उड़ाथें। हँसी-खुशी संक्रांति मनाथें।।

परब दान-पुण के ये जानव। नदी नहा के सुग्घर मानव।।
ओकर जम्मो पाप मिटाथे। जे श्रद्धा ले परब मनाथे।।

दोहा
परब मकर संक्रांति ला, सबो मनाथें आज।
दान-पुण्य असनान के, हावय बने रिवाज।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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दोहा मुक्तक - श्रीमती आशा आजाद

मकर संक्रांति आय हे,जुरमिल जावौ आज,
बड़े बिहनिया स्नान कर,करदौ दान अनाज,
शुभ मंगल के दिन हवे,जम्मो कहय सियान,
अरपन जल ला जे करे,पूरा होथे काज।।

तिलकुट बनथे आज जी,गुण के सब पकवान।
मीठा तिल के लाड़ू जी,अबड़ बने मिष्ठान,
पतंगबाजी सब करे,खुशी मनावत संग,
आज अबड़ जी सान ले,दयँ गुड़ तिल के दान ।।

रहिथे अब्बड़ स्वाद जी,मूँगफली गुड़ के संग,
चारो कोती मखर के,छाये रहिथे रंग,
नवा फसल बर देव ला,सुमिरय बारंबार,
रंग बिरंगा देख लव,उड़थे सुघर पतंग।

नेपाली मनखे कहे,सुरुज मकर के सार,
कहय पंजाब लोहड़ी,माघी हे संस्कार,
तमिलनाडु कहिथे सुघर,पोंगल हावै नाम,
सुग्घर खिचरी राँध के,बाटय प्रेम अपार।।

सुरुज देव किरपा करौ,इही करय गोहार,
सुग्घर घर परिवार मा,सबके हो उद्धार,
सबझन बाँटय आज तो,मीठा गुड़ पकवान,
खुशियाँ सबला बाँट के,दयँ सुग्घर व्यवहार।।

छंद - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़
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मकर सक्रांति(सार छंद)

सूरज जब धनु राशि छोड़ के,मकर राशि मा जाथे।
भारत  भर  के मनखे मन हा,तब  सक्रांति  मनाथे।

दिशा उत्तरायण  सूरज के,ये दिन ले हो जाथे।
कथा कई ठन हे ये दिन के,वेद पुराण सुनाथे।
सुरुज  देवता हा सुत शनि ले,मिले इही दिन जाये।
मकर राशि के स्वामी शनि हा,अब्बड़ खुशी मनाये।
कइथे ये दिन भीष्म पितामह,तन ला अपन तियागे।
इही  बेर  मा  असुरन  मनके, जम्मो  दाँत  खियागे।
जीत देवता मनके होइस,असुरन नाँव बुझागे।
बार बेर सब बढ़िया होगे,दुख के घड़ी भगागे।
सागर मा जा मिले रिहिस हे,ये दिन गंगा मैया।
तार अपन पुरखा भागीरथ,परे रिहिस हे पैया।
गंगा  सागर  मा  तेखर  बर ,मेला  घलो  भराथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।

उत्तर मा उतरायण खिचड़ी,दक्षिण पोंगल माने।
कहे  लोहड़ी   पश्चिम  वाले,पूरब   बीहू   जाने।
बने घरो घर तिल के लाड़ू,खिचड़ी खीर कलेवा।
तिल अउ गुड़ के दान करे ले,पावय सुघ्घर मेवा।
मड़ई  मेला  घलो   भराये, नाचा   गम्मत   होवै।
मन मा जागे मया प्रीत हा,दुरगुन मन के सोवै।
बिहना बिहना नहा खोर के,सुरुज देव ला ध्यावै।
बंदन  चंदन  अर्पण करके,भाग  अपन सँहिरावै।
रंग  रंग  के  धर  पतंग  ला,मन भर सबो उड़ाये।
पूजा पाठ भजन कीर्तन हा,मन ला सबके भाये।
जोरा  करथे  जाड़ जाय के,मंद  पवन  मुस्काथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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*मकर संक्रांति---- दोहा छंद*

डोरी  संग  पतंग  हे,  मिले  मया  के  रंग ।
उड़ाबोन जुरमिल सबो, आही मजा मतंग ।।०१

सँकरायत के दिन बने,  तिल लाड़ू के पाग ।
आज परब हे खास जी,  हमरो जागे भाग ।।०२

घर-घर खुशी मनाव जी, आये पावन वार ।
दुख दारिद ला भूल के, बाँटव मया दुलार ।।०३

पबरित तन मन होय जी, कर लौ पूजा ध्यान ।
हवय महत्तम आज के,  देवव तिल गुड़ दान ।।०४

सँकरायत के हे परब, खिचड़ी मेवा खाव ।
करके गंगा स्नान जी, भाग्य अपन उजराव ।।०५

*मुकेश उइके "मयारू"*
 ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)


मकर सक्रांति लोहड़ी,पोंगल,बीहू के बहुत बहुत बधाई

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया



सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
मकर सँक्रांति
सूरज जब धनु राशि छोड़ के,मकर राशि मा जाथे।
भारत  भर  के मनखे मन हा,तब  सक्रांति  मनाथे।

दिशा उत्तरायण  सूरज के,ये दिन ले हो जाथे।
कथा कई ठन हे ये दिन के,वेद पुराण सुनाथे।
सुरुज  देवता  सुत  शनि  ले,मिले  इही  दिन जाये।
मकर राशि के स्वामी शनि हा,अब्बड़ खुशी मनाये।
कइथे ये दिन भीष्म पितामह,तन ला अपन तियागे।
इही  बेर  मा  असुरन  मनके, जम्मो  दाँत  खियागे।
जीत देवता मनके होइस,असुरन नाँव बुझागे।
बार बेर सब बढ़िया होगे,दुख के घड़ी भगागे।
सागर मा जा मिले रिहिस हे,ये दिन गंगा मैया।
तार अपन पुरखा भागीरथ,परे रिहिस हे पैया।
गंगा  सागर  मा  तेखर  बर ,मेला  घलो  भराथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।

उत्तर मा उतरायण खिचड़ी,दक्षिण पोंगल माने।
कहे  लोहड़ी   पश्चिम  वाले,पूरब   बीहू   जाने।
बने घरो घर तिल के लाड़ू,खिचड़ी खीर कलेवा।
तिल अउ गुड़ के दान करे ले,पावय सुघ्घर मेवा।
मड़ई  मेला  घलो   भराये, नाचा   गम्मत   होवै।
मन मा जागे मया प्रीत हा,दुरगुन मन के सोवै।
बिहना बिहना नहा खोर के,सुरुज देव ला ध्यावै।
बंदन  चंदन  अर्पण करके,भाग  अपन सँहिरावै।
रंग  रंग  के  धर  पतंग  ला,मन भर सबो उड़ाये।
पूजा पाठ भजन कीर्तन हा,मन ला सबके भाये।
जोरा  करथे  जाड़ जाय के,मंद  पवन  मुस्काथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)


Monday, January 13, 2020

छन्न पकैया छंद-आशा आजाद

छंद पकैया छंद-श्रीमती आशा आजाद

छन्न पकैया छन्न पकैया, खेती सुग्घर करलौ।
नव हे वैज्ञानिक तकनीकी,ध्यान सबो झन धरलौ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,सुग्घर ध्यान लगावौ।
नव नव तकनीकी ले सबझन,उन्नत फसल उगावौ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,जैविक खाद ल डालौ।
लाभ कमावौ सबझन बढ़ियाँ,जिनगी सफल बनालौ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,मछली पालन करलौ।
नव तकनीकी ले पालन कर,रोजगार नव धरलौ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,उन्नत बीज ल लावौ।
खेती कर उत्तम बीजा ले,खुशहाली ला पावौ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,ड्रिप विधि ला अपनावौ।
नव साधन ले करौ सिंचाई,उन्नत फसल ल पावौ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,लाभ योजना देही।
खेती हे जिनगी किसान के,ब्याज बैंक हा कम लेही।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,सबले बढ़के खेती।
आशा सुग्घर बात बतावै,निक खेती के सेती।।

छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

Sunday, January 12, 2020

युवा दिवस विशेष- छंदबद्ध कविता(स्वामी विवेकानंद जयंती)

युवा दिवस विशेष

जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया-(कुकुभ छंद)

स्वामी विवेकानंद

स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।
नीति नियम सत कठिन डगर के, स्वामी सच्चा राही हो।

भारतीय दर्शन के दौलत, भारत वासी के हीरा।
ज्ञान धरम सत जोत जलाके, दूर करिस दुख डर पीरा।
पढ़ लौ गढ़ लौ स्वामी जी ला, मन म उमंग हमाही हो।
स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।

संत शिरोमणि सत के साथी, विद्वान गुणी वैरागी।
भाईचारा बाँट बुझाइस, ऊँच नीच छलबल आगी।
अन्तस् मा आनंद जगालौ, दुःख दरद दुरिहाही हो।
स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।

सोन चिरैया के चमकैया, सोये सुख आस जगइया।
भारत के ज्ञानी बेटा के, परे खैरझिटिया पँइया।
गुरतुर बोली ज्ञान ध्यान सत, जीवन सफल बनाही हो।
स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

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स्वामी विवेकानंद - आल्हा छंद//
(राष्ट्रिय युवा दिवस : 12/01/2022)

आध्यात्मिक गुरु भारत भुइयाँ, स्वामी रहिन विवेकानंद।
धर्म ज्ञान बगरावत घूमय, छोड़ चलिन माया के फंद।।

सन् अठरा सौ तिरसठ बच्छर, कलकत्ता के पबरित स्थान।
तिथि बारह जनवरी माह मा, जनम धरिन अइसन इंसान।।

इँखर ददा श्री विश्वनाथ जी, रहिन दत्त कुल के परिवार।
भुवनेश्वरी रहिन माता जी, देइन बेटा ला संस्कार।।

हाईकोर्ट कोलकाता मा, रहिन हवै जी ददा वकील।
करै फैसला नीति नियम मा, बइरी हिरदय जावै हील।।

नाँव नरेंद्रनाथ बचपन के, होनहार लइका गुणवान।
बड़ नटखट राहय बड़ सिधवा, करै शरारत बन अनजान।।

रोज बिहनिया नहाखोर के, करै बने वो पूजा पाठ।
धर्म परायण दाई जी हा, बने बनाइन इँखरे ठाठ।।

सुनै महाभारत रामायण, किसम - किसम के कथा पुरान।
संग अपन दाई नरेंद्र हा, पाइन हावय सुग्घर ज्ञान।।

आय कथावाचक मन घर मा, बहै भजन कीर्तन के धार।
तभे नरेंद्रनाथ के ऊपर, पड़िन बने सुग्घर संस्कार।।

लइकापन ले बड़ उत्साही, पूछे बर इच्छा बढ़ जाय।
ईश्वर कोन कहाँ रहिथे वो, बुद्धि ददा के बड़ चकराय।।

रामकृष्ण श्री परमहंस ला, गुरुवर मानिन बनिन सुजान।
भारतीय उपमहाद्वीप मा, बगराइन आध्यात्मिक ज्ञान।।

देश विदेश गइन स्वामी जी, जगह - जगह देइन व्याख्यान।
भारत भुइयाँ कीर्ति पताका, लहराइन पाइन सम्मान।।

भारत भुइयाँ के सन्यासी, स्वामी बनिन विवेकानंद।
इँखर जनम दिन "युवा दिवस" कह, सबो मनाथे बड़ आनंद।।

गइन शिकागो धर्म सभा मा, धर्म ध्वजा स्वामी लहराय।
मान बढ़ाई खूब मिलिस अउ, अमेरिका वासी गुन गाय।।

मोरे अमेरिकी बहिनों अउ, मोर भाइयों कहिन सुजान।
अइसन सम्बोधन ला सुनके, बड़ खुश होइन हे इंसान।।

उन्नईस सौ दू बच्छर मा, चार जुलाई तिथि जब आय।
सरग विवेकानंद चलिन हे, ये दुनिया ला दिए भुलाय।।

छंदकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)
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घनाक्षरी

सन्यासी विवेकानंद,सुनै जे पावै आनंद,
शिकांगो के भाषण मा,गदर मचाय हे।
मनखे ला जगाइस,भक्ति योग सिखाइस,
धर्म धजा संस्कृति के,रक्षक कहाय हे।।
रग-रग स्वाभिमान,देश बर जी सम्मान,
पीड़ा कतका सहिके,शान ला बढ़ाय हे।
युवा मन मा घुसिस, मंत्र जोश के फूँकिस,
राष्ट्रभक्ति के सुग्घर,चरखा चलाय हे।।
विजेन्द्र वर्मा
नगरगाँव(धरसीवाँ)
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*दोहा छन्द-बनो विवेकानंद*

मानुष तन बर काल हे,गाँजा बीड़ी मंद।
नशा जाल ला तोड़ के,बनो विवेकानंद।।

गाँव शहर मा फैलगे,कलजुग के ये जाल।
नशा बिकट विकराल अउ,हवे रंग हर लाल।।
लकवा टी बी माथ मा,करथे बड़का घात।
लहू चुहक तन चीर थे,कैंसर विष के जात।।
छोड़व ये विष ला तभे,होही मन आनंद।
नशा जाल ला तोड़ के,बनो विवेकानंद।।

सुलगत माटी आज तो,धुँआ धुँआ कस होत।
बइठे दाई देहरी,सिसक सिसक के रोत।।
नशा करे जे लोग मन,पानी पसिया बेंच।
नशा हाल मा काँट थे,अपने मन के घेंच।।
धरम करम सत काम मा,दिखथे अब तो चंद।
नशा जाल ला तोड़ के,बनो विवेकानंद।।

नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
छन्द साधक,सत्र-09
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स्वामी विवेकानन्द के जयंती मा
मोर भाव पुष्प🙏🙏

दोहा -चौपाई  छंद

मिहनत उद्यम हे बड़े ,कहय विवेकानन्द।
मन के ऊर्जा जानलव , खुद काटव भव फन्द।।

लाये क्रांति युवा सन्यासी। गौरव करथें भारत वासी।
परमहंस के मान बढ़ाये। शिष्य विवेकानन्द कहाये।।

ओज भरे जब भाषण बोले। जन जन के अंतस ला खोले।
आत्म चेतना ऐसे जागे। दीन दुखी के डर सब भागे।।

आध्यात्म रखय तन मन ला पावन। सोच विचार लगय मनभावन।।
शिक्षा सयंम धैर्य जरूरी। आलसपन से राखव दूरी।।


युवा उठो समझो अउ जागो। मिहनत से कोनो झन भागो।
लक्ष्य बाण अर्जुन कस राखव। सत्य धरम मा जइसे राघव।

करय विश्व भारत के पूजा। अइसन देश मिले नइ दूजा।
सन्त नरेंद्र भारत के बेटा। बाँधे मुड़ केसरिया फेंटा।।

उमर भले कमती रहिस, अमर विवेकानन्द।
स्वामी जी के भाव सब , भरथे जोश बुलन्द।।


आशा देशमुख
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कुण्डलियां छंद 

स्वामी विवेकानंद 

भारत के गौरव बढ़े,अइसन करदिस काज।
विश्व धर्म बानी ध्वजा,फहिरे बन के साज।
फहिरे बनके साज प्रभावी हे सम्बोधन।
शब्द बनिस पहिचान, बहिन भाई बड़ पावन। 
लिखय मधुर इतिहास,सब शिकागो मा धारत।
होनहार बिरवान,संत स्वामी ले  भारत ।।

(2)

नारी शिक्षा मा बढय,तभे तरक्की जान।
स्वाभिमान हे देश के,संत युवा के मान।
संत युवा के मान,गढ़व विकास के गाथा।
सबके हित ला सोच,नवाही सब झिन माथा।
कल कर खाना खोल,संदेश टार अशिक्षा।
ज्ञान मधुर भंडार,पथ बने नारी शिक्षा।।

 *डाॅ मीता अग्रवाल मधुर
 रायपुर छत्तीसगढ़*
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स्वामी विवेकानंद- विजेन्द्र वर्मा

(दोहा छंद)


स्वामी जी के गुण धरे,जिनगी बड़ सुख पाय।

ज्ञान जोत हा जब जले,दुख हा भागे जाय।।


भाईचारा बाँट लव,भेद करव ना कोय।

मनखे मनखे एक हो,इही बीज सब बोय।।


हठधर्मी अब मत करव,आज मान लव बात।

खून खराबा ले सदा,मनखे खाथे मात।।


कटुता का अब नाश हो,गढ़े नवा सब राह।

एक लक्ष्य सब के रहय,रखौ यहीं सब चाह।।


मानवता जग मा रहय,मिले नेक ये सीख।

खुशी रहै मनखे सबो,माँगे ना जी भीख।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

जिला-रायपुर

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हरिगीतिका छंद


स्वामी विवेकानन्द


स्वामी विवेकानन्द जी, अइसन महामानव हरे। 

भारत समाये देह मा, मन ओज रग रग मा भरे। 

गरजे दहाड़े शेर कस, जब एक सन्यासी युवा। 

हिलगे शिकागो के सभा, झारा बने जइसे डुवा।1



जीयव सदा सम्मान से, कमजोर बनके झन रहव। 

विश्वास खुद मा ही रखव, सत ला बिना डर के कहव।। 

आध्यात्म के रद्दा चलव, अंतस तरी बड शक्ति हे। 

मन मा जगावव चेतना, जानव इही मा भक्ति हे।।2



विस्तार देवव बुद्धि ला, झन तो सकेलव सोच ला। 

स्वारथ घृणा अपमान के, दुरिहा करव सब मोच ला। 

मनखे बनव मनखे रहव, ईश्वर सबो बर एक हे। 

 सहयोग परहित लक्ष्य के,हर काम पबरित नेक हे।।3



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा


छन्न पकैया छन्द - जाड़ा (नेमेन्द्र)

छन्न पकैया छन्द - जाड़ा (नेमेन्द्र)

छन्न पकैया छन्न पकैया,जाड़ा भारी जाड़ा।
आसो आवत देखत सर्दी,कांपत सबके हाड़ा।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,तात तात सब खावो।
खाके ठंडा भोजन भइया, बाद म झन पछतावो।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,अड़बड़ जाड़ा लागे।
भुर्री बने जलावव भइया, जाड़ा झप ले भागे।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,हाथ गोड़ बड़ चटकत।
महू चूहके खेती जइसे,सबके सूरत झटकट।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,बबा घला इतरावै।
हमर जमाना राहय जाड़ा, कहिके वो बतलावै।।

छन्दकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही-बालोद
मोबा-8225912350

Friday, January 10, 2020

छेरछेरा तिहार विशेषांक(छंदबध्द कविता)-छंद के छ परिवार

छेरछेरा तिहार विशेषांक-छंदबध्द कविता(छंद के छ परिवार)

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कूद  कूद के कुहकी पारे,नाचे   झूमे  गाये।
चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।

पाख अँजोरी पूस महीना,होय छेर छेरा हा।
दान पुन्न के खातिर पबरित,होथे ये बेरा हा।

कइसे  चालू  होइस तेखर,किस्सा   एक  सुनावौं।
हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।

युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर  के  द्वारे।
राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।

हैहय    वंशी    शूर  वीर   के ,रद्दा    जोहे   नैना।
आठ साल बिन राजा के जी,राज करे फुलकैना।

सबो  चीज  मा हो पारंगत,लहुटे  जब  राजा हा।
कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।

परजा सँग रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।
राज  रतनपुर  हा मनखे मा,मेला असन भराये।

सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।
बेरा  रहे  पूस  पुन्नी के,खुले  रहे दरवाजा।

कोनो  पाये रुपिया पइसा,कोनो  सोना  चाँदी।
राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।

राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।
पूस  महीना  के  ये  बेरा, सबके  झोली भरबों।

राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो दान हा होवय।
कोसलपुर  के  माटी  मा  जी,अबड़ धान हा होवय।

मिँजई कुटई होय धान के,कोठी तब भर जाये।
अन्न  देव के घर आये ले, सबके  मन  हरसाये।

अन्न दान बड़ होवन लागे, आवय जब ये बेरा।
गूँजे अब्बड़ गली गली मा,सुघ्घर छेरिक छेरा।

टुकनी  बोहे  नोनी  घूमय,बाबू  मन  धर झोला।
देय लेय मा ये दिन के बड़,पबरित होवय चोला।

करे  सुवा  अउ  डंडा  नाचा, घेरा  गोल   बनाये।
माँदर खँजड़ी ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।

दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।
हरे  बछर  भरके  तिहार  ये,छेरिक  छेरा  गा  लौ।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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शंकर छंद - श्लेष चन्द्राकर

पूस महीना के पुन्नी हा, हरय गा दिन खास।
परब छेरछेरा के रहिथे, राज मा उल्लास।।
मींज-कूट जब लेथें जम्मो, किसनहा मन धान।
ये दिन करथें ओमन हा जी, चिटिक अन के दान।।

गुदुम मोहरी दफड़ा के धुन, हृदय लेथे जीत।
लोग छेरछेरा माँगत जब, संग गाथें गीत।।
बिना दान अन के झोंके उँन, नहीं छोड़य द्वार।
चिटको देरी होथे तब गा, लगाथें गोहार।।

परब दान के करथें रिश्ता, सबो झन के पोठ।
बैर भाव के ये दिन मनखे, जथे भूला गोठ।।
जम्मो छोटे बड़े किसनहा, एक होथें आज।
हमर राज के बने प्रथा के, रखे बर गा लाज।।

परब छेरछेरा मा बहिथे, मया के बड़ धार।
ये तिहार ला सबो मनाथें, किसनहा बनिहार।।
ऊंच नीच अउ जात धरम जी, बैर जावव भूल।
जुरमिल रहना सिखव सबो गा, हरय येकर मूल।।

हरियर धरती माँ ला राखव, रहू सब खुशहाल।
इंदर हा किरपा बरसाही, पड़य नइ अंकाल।।
छोटे बड़हर सुनव किसनहा, रखव झन जी क्लेश।
भुँइया ले सब जुड़ के राहव, परब के संदेश।।

छंदकार - श्लेष चन्द्राकर,
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा,
महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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रूप घनाक्षरी-उमाकांत टैगोर

सकला गे धान पान, सूखे-सुख हे हे किसान,
मने मन कहत हे, नाचबो जी जोरदार।

छेरछेरा मांगे जाबो, भर भर झोला लाबो,
झुमरत झुमरत, आगे अब तो तिहार।

घर घर रोटी बरा, बनही जी दूध फरा,
चुफुल-चुफुल खाही, बबा नाती झार-झार।

डंडा नाचे गली-गली, आव सबो संग चली,
खुशी के तो मन मा जी, छाये हावय बौछार।

उमाकान्त टैगोर

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रूप घनाक्षरी-सुधा शर्मा

जग जग ले अँजोर, गाँव गाँव गली खोर,
चमकत ओरी ओर,संगी पुन्नी हर आय।
भर भर कोठी धान,हाँसत हवे किसान,
सुख के होय बिहान,छेरछेरा ला मनाय।
दाई दीदी खुश हावें,छेरछेरा माँगे जावें,
मनवा उछाह भरे,सूपा सूपा धान पाय।
बछर भर तिहार, दाई कोरा संसकार,
बाँटत सुख हजार,जिनगी हर पहाय।


कहत हे छेरछेरा,देवत गली के फेरा,
पुन्नी हर डारे डेरा, नीक ओली  बगराय।
टुकनी मा भरे धान,करत हें  सबो मान,
देवत हवे गा दान, पुन ला सब कमाय।
हेरो माई कोठी धान,कहत हे सुर तान,
लोक गीत बोली बान, हवे सुग्घर सुनाय।
टूरी टूरा जोरी जोरा, हवे सब ओरी ओरा,
मया संग गठजोरा,सबो घर घर जाय।

नान्हे नान्हे  बाबू मन,धरे बाजा सबो झन,
टुकनी टूकना संग,सबो मिल हवे  जात ।
डमडिम डमडिम ,बजात हें छिन छिन,
घर घर गिन गिन,आरो हावे गा लमात।
रंग रंग गीत गाये,सुन सुन मन भाये,
छेरछेरा कहिकहि,सबो मिल हाँसे आत।
घरो घर धान देत,कोनो घर  पइसा जी,
कुलकत सबो झन,दुवारी दूसर जात।

संगम नहात हवें,तिहार मनात हवें,
पूस पुन्नी आय हवे,मंदिर दरस जाँय।
देवता के पाँव परे, अँचरा असीस धरे,
मिल जुर हरे भरे,सबो के मन हर्षांय।
छत्तीसगढ़ के माटी, सुग्घर हे परिपाटी,
रकम रकम संगी,तिहार मनाय।
धान के कटोरा भरे, दया मया कोरा धरे,
मीत प्रीत डोरा धरे,सबो रीत मा  बँधाय ।

सुधा शर्मा
राजिम

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 कुण्डिलयाँ-कन्हैया साहू अमित

फेरा डारँय खोर के, जुरमिल सब्बो मीत।
संगी सब सकलाय के, गुरतुर गावँय गीत।
गुरतुर गावँय गीत, मया के बोलँय बोली।
झोला टुकनी हाँथ, चलँय गदबिद बन टोली।
कहय अमित कविराज, दान पुन छेरिक छेरा।
चिहुर करँय जी पोठ, लगावँय घर-घर फेरा।


बेरा पुन्नी पूस के, नँदिया मा असनान।
मुठा पसर ठोम्हा अपन , करव उचित के दान।
करव उचित के दान, मरम ला एखर जानव।
मिलथे ये परलोक, बात ला सिरतों मानव।
कहय अमित कविराज, बोल जी छेरिक छेरा।
छोड़व गरब गुमान, आज हे पबरित बेरा।


रैन बसेरा ये जगत, तिड़ी-बिड़ी दिनमान।
चार पहर सुग्घर बिता, बना अपन पहिचान।।
बना अपन पहिचान, दान पुन समरथ करले।
जावय नइ कुछु संग, ध्यान अतके बस धरले।।
धरम-करम कर आज, पूस पुन्नी के बेरा।
झन अगोर भिनसार, जगत हे रैन बसेरा।।

कन्हैया साहू 'अमित'
भाटापारा छत्तीसगढ़
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गीतिका छंद - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

छेरछेरा के बधाई, आप सब ला मोर।
गाँव पारा अउ गली मा, सुख उगे मन भोर।।
हे दुवारी मा सुनावत, बालपन के बोल।
छेरछेरा छेरछेरा, मीठ मधुरस घोल।।

झूमरत हे मन खुशी मा, चढ़ निसैनी मीत।
धन्य धन आशीष छलके, अउ मया बड़ प्रीत।।
मोर ये छत्तीसगढ़ के, हे अलग पहिचान।
रख धरोहर ला सँजोये, देत सब ला मान।।

छंदकार - इंजी. गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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दोहा - बोधन राम निषादराज

दान करव जी धान के,पूस पूर्णिमा आय।
हमर राज के संस्कृति,सबो तिहार मनाय।।

चरिहा टुकना बोह के,घर घर माँगय दान।
लइका सब चिचयात हे,दव कोठी के धान।।

छेरिक   छेरा   छेर   के, पारत   हे  गोहार।
दरबर दरबर रेंग के,झाँकत हे घर द्वार।।

दफड़ा   बाजे  घाँघरा, चारो  मुड़ा  सुनाय।
नाचत लइका खुश दिखय,छेरिक छेरा आय।।

छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला - कबीरधाम(छत्तीसगढ़)


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छन्न पकैया छंद- केवरा यदु "मीरा "

छन्न पकैया छन्न पकैया, आगे पुन्नी मेला ।
लइका मन हा निकलत हावे, धरके चुँगड़ी छोला ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, जाथे सबो दुवारी ।
कोनो देथे ठोमा पैली, कोनो भरके थारी ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, साल भरमे ग आथे ।
लइका सियान झोला धरके, घर घर माँगे जाथे ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, कोनो बजाय बाजा ।
कोनो गाना गावत हावे, चलना संगी आजा ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, भरके झोला आथे ।
लइका मन हा देखव ताहन, खई खजानी खाथे ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, अब्बड़ सुरता आथे ।
लइका पन में जावत राहन,मनला गुदगूदाथे ।।

छंदकारा
केवरा यदु "मीरा "
राजिम
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 आल्हा छन्द  (नेमेन्द्र)

शंकर भोला अपन बहिन ले,हवे अन्न के मांगे दान।
नरम भाव रख झुकना सीखो,दान मांग के देहे ज्ञान।।

फसल धान के मिंज कूट के,घर ले आये जभे किसान।
तभे छेरछेरा माने के,बने हवे निक हमर विधान।।

छोड़ गरीबी चोला सब जन,मन के भाव ल रखो अमीर।
मांग अन्न के दान लोग मन,एक दिवस तो बनो फकीर।।

दिवस पूर्णिमा पूस माह के,दान करे के आय तिहार।
नाम छेरछेरा बड़ सुग्घर,पारत लइका सब गोहार।।

दफली दमऊ धरे मोहरी,दल बल लइका टोली आय।।
अरन बरन सब गीत सुना के,घर घर जा अन दान ल पाय।।

गाँव गली हर गदबद लागे,खेलत डंडा नाच सियान।
गाना गाके रंग रंग के,धान चउर के मांगय दान।।

छंदकार-नेमेन्द्र कुमार गजेन्द्र
हल्दी-गुंडरदेही-बालोद
मोबा-8225912350

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 शंकर छंद - संतोष कुमार साहू

गजब छेरछेरा तिहार ये,करत हे सब दान।
कोनो पइसा दान करत हे,कोनो चँउर धान।।
छोटे बड़े सबो नाचत हे,एक दूसर द्वार।
लेना देना खुशी मनाना,इही एखर सार।।

कोनो सँघरा या एकेला,माँगत हवय पोठ।
काहत हवय छेरछेरा सब,जब्बर इही गोठ।।
कोनो नाचे कोनो गाये,खूब देखन भाय।
कोनो मुठा पसर मे दे के,बिकट खुशी मनाय।।

छंदकार - संतोष कुमार साहू
ग्राम - रसेला, जिला-गरियाबंद ,
छत्तीसगढ़

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रुप  घनाक्षरी छंद -मीता अग्रवाल

छेरछेरा पुन्नी मान,पूस मा कर ले दान।
ढोल मंजीरा बजात, सबो झिन सकलाय।
घरों घर हांका पार,देय लेय के तिहार।
टोकनी मा धान पाय,डंडा नाच ला देखाय।
नन्हे नान्हे नोनी बाबु,झोला धर आगु आगु।
छेरिक छेरा कहत,उछाह ल बगराय ।
ऊँच नीच भेद मिटे,दया मया हा बँटय।
गौटिया गरीब एके, संग तिहार मनाय।

मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छत्तीसगढ़
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दोहा छंद - अशोक  धीवर "जलक्षत्री"

छेरिक छेरा बोल के, घर घर माँगे दान।
भीख मँगइया झन समझ, मुट्ठी भर दे धान।।१।।

जइसन देबे आज तँय, वइसन पाबे काल।
पावन पुन्नी पूस के, दान करव हर साल।।२।।

मींज कूट के धान ला, माई कोठी डार।
हँसी खुशी देथे सबो, ये हे दान तिहार।।३।।

छत्तीसगढ़ी शान अउ, परंपरा ये आय।
छेरिक छेरा बोल हा, सब किसान ला भाय।।४।।

लइका मन ला दान के, सँग मा दव आशीस।
दया मया बरसा करव, रहे ना मन मा टीस।।५।।

पुन्नी के मेला घलो, लगथे कतको आज।
नदी नहा के पुन कमा, कर दुनिया मा राज।।६।।

परंपरा चलते रहय, दान धरम के काज।
माईकोठी धान के, उचित दान दव आज।।७।।

जेहा करही दान ला, वो हा सरग ल पाय।
दुख दारिद मिट जाय जी, जिनगी सुखी बिताय।।८।।

लइका मन सब हो मगन, दिन भर खुशी मनाय।
निश्छल करही दान जे, वो सरग ला पाय।।९।।

कतको शिक्षित हो जहू, येला झन बिसराव।
"जलक्षत्री" के हे अरज,  मेला सबो मनाव।।१०।।

छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा)
 जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
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आल्हा छंद- दिलीप कुमार वर्मा

पुन्नी के दिन पूस महीना, लइका मन सब गावत जाय।
छेरिक छेरा छेर मरकनिन, कहिके घर घर मा चिल्लाय।

कोनो धरके जावय झोला, कोनो टुकना ला धर जाय।
कतको झन चुमड़ी धर जावय, खोंची खोंची सबझन पाय।

दान करइया बइठे रहिथे, टुकना मा ओ भरके धान।
जे आवय तेला ओ देवय, सिरा जवय ता फिर दय लान।

का लइका का बुढ़वा कहिबे, जम्मो झनमन पावय दान।
छत्तीसगढ़ बर जानव भइया, अन्न दान हे परब महान।

ढोल मजीरा तासा बाजय, भजन मंडली टोली जाय।
राम धुनी मा नाचय गावय, तहाँ दान बिकटे ओ पाय।

चहल पहल सब गली गाँव मन, आवत जावत रेलम रेल।
सबके मन उल्लास भरे हे, खुसी खुसी घूमय जस खेल।

पाय धान ला बेंच भाँज के, पुन्नी मेला देखे जाय।
रंग रंग के खई खजाना, पइसा मा सब ले के खाय।

ऊपर वाला ले बिनती हे, सब घर होवय अबड़े धान।
परब छेर छेरा मा भइया,  हँसी खुसी सब देवय दान।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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 कुकुभ छंद गीत - श्रीमती आशा आजाद

छत्तीसगढ़ म धान भरे हे,माटी अब्बड़ ममहावै।
दया मया के ये तिहार ए,जुरमिल सब खुशी मनावै।।

सबो किसनहा अंतस मन ले,आज सुनौ झूमत हावै,
धान पान भंडार भरे हे,मनखे अब्बड़ मुसकावै,
पूजत हे अन्न धान ला सबझन,गुत्तुर भाखा मन भावै,
छत्तीसगढ़ म धान भरे हे,माटी अब्बड़ ममहावै।

अबड़ बने पकवान सुनौ जी,बरा बोबरा अउ चीला,
खुशी मनावत नाचत हावै,हँसी ठिठोली के लीला,
अन्न दान ला शुभ मानै जी,अन्न दान हा मन भावै,
छत्तीसगढ़ म धान भरे हे,माटी अब्बड़ ममहावै।

पौष माह के करय अगोरा,फोरय मुर्रा अउ लाई,
नवा फसल के करे कटाई,करय मिसाई सब भाई,
फरा बनावय चाउँर के जी,अबड़ मजा ले सब खावै,
छत्तीसगढ़ म धान भरे हे,माटी अब्बड़ ममहावै।

गाँव गली मा अबड़ सान ले,लइका मन भागत जाये,
छेरछेरा मा धान सबो ला,हेरहेरा ये चिल्लाये,
हमर राज मा पावन मानै,नेक परब समता लावै,
छत्तीसगढ़ म धान भरे हे,माटी हा बड़ ममहावै।

छंदकार - श्रीमती आशा आजाद
पता - मानिकपुर कोरबा छत्तीसगढ़

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: सार छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी

पूस महीना चौदस तिथि के,पुन्नी परब मनाथे।
करम धरम अउ सार दान हे,सबके मन हरषाथे।

नाचत गावत लइकामन मिल,बोलय छेरिकछेरा।
माई कोठी के धान ल अब, दाई जल्दी हेरा।

आनी बानी धरे रूप हे,बानर हाथी भालू।
बाँधे घँघरा कनिहा मा हे,चैतु बरातू कालू।

गाँव गली घर घर अउ पारा,बनके टोली जावय।
रुपिया पइसा खई खजानी, धान मुठा भर पावय।

सुआ ददरिया करमा नाचय,बहिनी बेटी माई।
हँसी खुसी सुग्घर  मिलजुलके,देवय आज बधाई।

दाई शाकम्भरी जयंती,आजे घलो मनाथे।
नर नारी मन सब मिलके पूजय,मनवांछित फल पाथे।

हमर राज के संस्कृति सुग्घर,कतका गुन ला गावौ।
सुख समृद्धि हो चारोमूड़ा,सबके आसिस पावौ।

मनुज जनम ला पाके करले,पुन्य दान अउ सेवा।
सफल तभे होही जिनगी हा,पाबे सुग्घर मेवा।

छंदकार- ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी
जिला-कबीरधाम(छ्त्तीसगढ़)

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: आल्हा छंद-आशा देशमुख


आये हवय छेरछेरा जी,लागय अब्बड़ नीक तिहार।
सब झन मिलके ख़ुशी मनावँय ,लोक परब के ये व्यवहार।

टोली टोली मा घूमत हे,आवंय लइका लोग सियान।
बड़ पबरित मानंय सब येला,देवत हवँय अन्न के दान।

गली गली मा शोर उड़त हे,घर घर मया अबड़ ममहाय।
रोटी पीठा रांधत हावय, मिलके कुटुंब कबीला खाय।

झोला टुकनी धरके किंजरय, लइका मन पारत हे हूत।
झूम झूम का नाचंय गावँय ,जैसे धरे ख़ुशी के भूत।

आवय सब झन ख़ुशी मनाबो,लोक रीति के करबो मान।
घर घर में धन कोठी छलकय, चलव हमू मन करबो दान।


आशा देशमुख
कोरबा

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: दोहा छंद - रामकली कारे

मुट्ठा भर भर धान के, हाॅसत देवव दान।
टुकना टुकनी मा भरे, छत्तीसगढ़ी मान।।

छेरिक छेरा बोल के, लइकन माॅगे धान।
माई कोठी धान दे, जल्दी हेरव लान।।

पावन पुन्नी दिन हवै, दान करौ जी  आज।
संस्कृति हे गा हमर, अन्न दान शुभ काज।।

बोरा बोरा धान पा, कुुइ कुइ नाचत जाय।
गा गा सबौ किसान हा, डंडा म गोठियाय।।

अन्न दान ला पा सबो,संगी खुश हो जाय।
छेरिक छेरा बोल के,घर घर मा चिल्लाय।।

सुपा कलारी रास के, लक्ष्मी पूजा होय।
खूब बढ़ोना धान हो, नइतो कभू खगोय।।

छंदकार - श्रीमती रामकली कारे
बालको नगर कोरबा छत्तीसगढ़

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Thursday, January 9, 2020

छन्न पकैया छंद-सूर्यकांत गुप्ता'कांत'

छन्न पकैया छंद-सूर्यकांत गुप्ता'कांत'
छन्न   पकैया   छन्न  पकैया,  जुन्ना  साल  भगा गै।
ऊँच नीच के डबरा डिलवा का बिलकुल समटागै।।१।।


छन्न   पकैया   छन्न   पकैया  रोजगार  बिन  घूमँय।
एक   निर्जला   दू  फरहारी,  कइसे  नाचँय  झूमँय।।२।।


छन्न  पकैया  छन्न पकैया  दल दल  सब जुरियागै।
लकठियात  सच्चाई  देखत,  जी  उंखर  बगियागै।।३।।


छन्न   पकैया  छन्न  पकैया,  खुरसी  के  अनुरागी।
उकसावत  हें  भड़कावत  हें,  लगवावत हें आगी।।४।।


छन्न  पकैया  छन्न  पकैया  खुले आम सब बिकथे।
धन के लालच म ईमान हा, घलो कहाँ अब टिकथे।।५।।


छन्न  पकैया  छन्न  पकैया,  माचिस  धूम धड़ाका।
खाइन पीइन मातिन नाचिन फोरिन खूब फटाका।।६।।


छन्न   पकइया   छन्न   पकइया,   टूरी   टूरा   संगे।
मेछरात   मेटँय   मरजादा,   भइगे   हर   हर  गंगे।।७।।


छन्न  पकैया  छन्न पकैया,  संस्कृति  के  बरबादी।
पच्छिम के  रंगत मा रँग के,  होगैं   एकर   आदी।।८।।


छन्न पकैया छन्न पकैया,  पँरुआ  चैत  अँजोरी।
नवा साल शुरुआत कराथे,   दुर्गा   मैया   मोरी।।९।।


छन्न  पकैया  छन्न  पकैया,  सुरता एकर राखन।
संवत्सर के नवा साल हम, महिना चैत मनाथन।।१०।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, अमन  चैन जग छावै।
'कांत' नवा  ए साल  सबो के पीरा हर ले जावै।।११।।


सूर्यकान्त गुप्ता, 'कांत'
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
7974466865

Wednesday, January 8, 2020

छन्न पकैया छंद :- गुमान प्रसाद साहू

छन्न पकैया छन्द- गुमान प्रसाद साहू

।।जुरमिल पेड़ लगावौ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, जुरमिल पेड़ लगावौ।
धरती दाई के कोरा ला, हरियर सबो बनावौ।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, पेड़ गिराथे पानी।
रखौ जतन के जंगल झाड़ी, हरय इही जिनगानी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, करव नहीं मनमानी।
पानी बड़ अनमोल हवै जी, रखौ बचा के पानी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, कचरा झन फैलावौ।
गाँव गली सब साफ रखौ अउ, साफ देश ल बनावौ।।

                  ।।बरसा पानी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बरसत हावय पानी।
नदिया नरवा भरे लबालब, चूहन लागे छानी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मौसम लगे सुहानी।
खेत खार हा होगे हरियर, धरती होगे धानी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,पानी बरसे भारी।

खेत खार सब जोतन लागे, बोवन लागे बारी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, नदियाँ म पुरा आही।
तब पानी बिकराल रूप मा, भारी करै तबाही।।

छंदकार- गुमान प्रसाद साहू ग्राम समोदा(महानदी)

जिला-रायपुर छत्तीसगढ़

Tuesday, January 7, 2020

छन्न पकैया छंद-संतोष कुमार साहू



 छन्न पकैया छंद-संतोष कुमार साहू

छन्न पकैया छन्न पकैया, झन हो निंदा चारी।
गारी अउ झगरा के कारण,इही हरे गा भारी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, चारी मरना कटना।
आ बइला तँय मोला जबरन,मार कहे कस घटना।।

छन्न पकैया छन्न पकैया, चारी हे नुकसानी।
झगरा हो के थाना जाना,धन दौलत के हानी।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,चारी करथे गड़बड।
खाली मनखे सबले जादा,अइसन करथे अड़बड़।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,चारी दुश्मन होथे।
मनखे उल्टा पुल्टा करके,दुख चिंता मा रोथे।।

छंदकार-संतोष कुमार साहू
ग्राम-रसेला(छुरा)जि-गरियाबंद