विरह गीत(सार छंद)
तोर रूप दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।
मोर रूप हा चमचम चमकै,तबले तड़पौ अबला।
तोर कला ले मोर कला हा,हावै कतको जादा।
तभो मोर परदेशी बलमा,कहाँ निभाइस वादा।
चकवा रटन लगाये तोरे,मोर पिया दुरिहागे।
करधन ककनी कुंडल कँगना,रद्दा देख खियागे।
मोर रुदन सुन सुर ले भटके,बेंजो पेटी तबला।
तोर रूप दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।
पाख अँजोरी अउ अँधियारी,घटथस बढ़थस तैंहा।
मया जिया मा हावै आगर,करौं बता का मैंहा।
कहाँ हिरक के देखे तभ्भो,मोर सजन अलबेला।
धीर धरे हँव आही कहिके,लाद जिया मा ढेला।
रोवै नैना निसदिन मोरे,भला गिनावौ कब ला?
तोर रूप दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।
पथरा गेहे आँखी मोरे,निंदिया घलो गँवागे।
मोर रात दिन एक बरोबर,रद्दा जोहँव जागे।
तोर संग चमके रे चंदा,कतको अकन चँदैनी।
मोर मया के फुलुवा झरगे,पइधे माहुर मैनी।
जिया भीतरी बारे दियना,रोज मनाथँव रब ला।
तोर रूप दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।
अबक तबक नित आही कहिके,मन ला धीर धरावौ।
आजा राजा आजा राजा,कहिके रटन लगावौ।
पवन पेड़ पानी पंछी सब,रहिरहि के बिजराये।
कइसे करौं बता रे चंदा,पिया लहुट नइ आये।
काड़ी कस काया हा होगे,कपड़ा होगे झबला।
तोर रूप दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।
छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
तोर रूप दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।
मोर रूप हा चमचम चमकै,तबले तड़पौ अबला।
तोर कला ले मोर कला हा,हावै कतको जादा।
तभो मोर परदेशी बलमा,कहाँ निभाइस वादा।
चकवा रटन लगाये तोरे,मोर पिया दुरिहागे।
करधन ककनी कुंडल कँगना,रद्दा देख खियागे।
मोर रुदन सुन सुर ले भटके,बेंजो पेटी तबला।
तोर रूप दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।
पाख अँजोरी अउ अँधियारी,घटथस बढ़थस तैंहा।
मया जिया मा हावै आगर,करौं बता का मैंहा।
कहाँ हिरक के देखे तभ्भो,मोर सजन अलबेला।
धीर धरे हँव आही कहिके,लाद जिया मा ढेला।
रोवै नैना निसदिन मोरे,भला गिनावौ कब ला?
तोर रूप दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।
पथरा गेहे आँखी मोरे,निंदिया घलो गँवागे।
मोर रात दिन एक बरोबर,रद्दा जोहँव जागे।
तोर संग चमके रे चंदा,कतको अकन चँदैनी।
मोर मया के फुलुवा झरगे,पइधे माहुर मैनी।
जिया भीतरी बारे दियना,रोज मनाथँव रब ला।
तोर रूप दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।
अबक तबक नित आही कहिके,मन ला धीर धरावौ।
आजा राजा आजा राजा,कहिके रटन लगावौ।
पवन पेड़ पानी पंछी सब,रहिरहि के बिजराये।
कइसे करौं बता रे चंदा,पिया लहुट नइ आये।
काड़ी कस काया हा होगे,कपड़ा होगे झबला।
तोर रूप दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।
छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
अब्बड़ सुघ्घर गीत सिरजाय हव भाई जितेंन्द्र
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई
बहुत सुग्घर भाव परक रचना लिखेव भैया जी ।
ReplyDeleteअलंकार ले सजे सुग्घर गीत ,बधाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विरह गीत गुरुदेव जी बधाई हो
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर आदरणीय।
ReplyDeleteअनुपम रचना,बधाई
ReplyDeleteअनुपम लाजवाब गीत बर हार्दिक बधाई खैरझिटिया सर
ReplyDeleteवाह भई वाह
ReplyDeleteबधाई गुरुजी
बहुत बढ़िया रचना बहुत बहुत बधाई गुरुजी
ReplyDeleteआपमन ला अनंत बधाई गुरुदेव,अतका सुग्घर गीत सार छंद मि,शब्द संयोजन घलोक अति सुग्घर हे,👌👍💐
ReplyDeleteपढ़ के आनंद आगय गुरु
ReplyDeleteविरह व्यथा ऊपर भावविभोर करइया रचना हे - -
- - - - - - नंगत नंगत बधाई आप ल !
बहुत सुघ्घर विरह गीत. वाह वाह।
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