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Saturday, December 29, 2018

शोभन (सिंहिका) छंद - शकुन्तला शर्मा

कथा - गीत

सरगुजा - मा हे बिसाहिन, देख हे बिन - हाथ
फेर दायी संग गजहिन, भाग - बाँचय - माथ ।
रोज मजदूरी - बजावय, मोंगरा - सुख - धाम
देख नोनी ला सिखोवय, पन्थ के सत - नाम ।

देवदासा - गुरु - सिखोवय, पन्थ के अन्दाज
रोज - दायी हर पठोवय, सफल होवय काज ।
गोड मा सब काम - करथे, हे बहुत हुसियार
हासथे - गाथे मटकथे, मीठ - सुर - कुसियार ।

सुरुज ऊथे रोज बुडथे, दिन - खियावत रोज
देखते - देखत - गुजरथे, देख ले अब - खोज ।
अब बिसाहिन - नाचथे जब, नाचथे - सन्सार
बिधुन हावय नाच मा सब, छोड़ के घर - बार।

सुन - बजाथे देख माण्दर, नाव हे बन - खार
मन मधुर मुरली - मनोहर, बाजथे - सुकुमार ।
बिकट - पैसा कमावत हे, मोगरा - हर आज
बर बिहा के बात - बोहै, बाज - माण्दर बाज।

मोगरा हर बात कर लिस, माढ गइस - बिहाव
देख मडवा आज गड गिस,सब सुआसिन गाव।
आज खुश हावय बिसाहिन, नाचथे बन - खार
सरगुजा के मन - नहाइन, आज सौ - सौ बार ।

रचनाकार - शकुन्तला शर्मा, भिलाई, छत्तीसगढ़

4 comments:

  1. हृदयस्पर्शी कथा,सुग्घर रचना

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  2. बहुत सुघ्घर रचना दीदी

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  3. सुन्दर रचना दीदी

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  4. अनंत बधाई आदरणीया दीदी जी,सुग्घर सिरजन👌💐

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