छमक छमक छम, छम-छम-छम करे,
चटक मटक चल,चुटकी बजात हे।
पटक पटक पग,पायल के धुन बजा,
खनक खनक खन,चुरी खनकात हे।
एक अलबेली छोरी,गाँव के लगे हे गोरी,
रंग सराबोर होरी,रंग में नहात हे।
टूरा सबो पाछू परे, रंग पिचका के धरे,
होरी हे होरी हे होरी,सबो चिल्लात हे।
रचनाकार - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़
(2) छन्न पकैया छंद - ज्ञानु दास मानिकपुरी
छन्न पकैया छन्न पकैया,रंग मया के घोरव।
राग द्वेष ला बारव संगी,रिस्ता सबले जोड़व।
छन्न पकैया छन्न पकैया,फागुन मस्त महीना।
दया मया मा रहना संगी,सुग्घर जिनगी जीना।
छन्न पकैया छन्न पकैया,धक धक करथे जिँवरा।
चारो मूड़ा रंग उड़त हे,लाली नीला पिँवरा।
छन्न पकैया छन्न पकैया,आमा मउँरे डारा।
फाग चलत हे बस्ती बस्ती,ए पारा ओ पारा।
छन्न पकैया छन्न पकैया,देख ददा शरमावय।
आज बबा औ संगे नाती,नाचत गावत हावय।
छन्न पकैया छन्न पकैया,आज फाग मिल गाबो।
आसो के होली मा संगी,अंतस मा सुख पाबो।
रचनाकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदेनी(कबीरधाम) छत्तीसगढ़
(3) अमृत ध्वनि छन्द- बोधनराम निषादराज
फागुन महिना आय हे,होरी डाँड़ गड़ाय।
लइका मन मुसकात हे,सबके मन ला भाय।।
सबके मन ला,भाय सुनौ जी,खुशी मनावय।
लइका नाचय,माँदर बाजय,मन बउरावय।।
रंग कटोरा,धरके दउडय,अब का कहिना।
देखव संगी,आए हावय,फागुन महिना।।
(4) अमृतध्वनि छन्द - बोधनराम निषादराज
देखव संगी धूम हे, ऋतु बसंती छाय।
झूमत हावय फूल हा,फागुन हाँसत आय।।
फागुन हाँसत, आय हवै गा, गावत गाना।
रंग उड़ावत, डोलत हावय, परसा पाना।।
चारों कोती, जंगल झाड़ी, रंग बिरंगी।
रंग माते हे, मन झूमे हे, देखव संगी।।
(5) सार छंद - बोधनराम निषादराज
देखव संगी फागुन आए,ढोल नँगारा बाजय।
लइका बुढ़वा दाई माई,घर कुरिया ला साजय।।
जिनगी मा जी काय धरे हे,बैर भाव ला झारव।
बइरी हितवा जम्मो मिलके,रंग मया के डारव।।
लाली हरियर नीला पिउँरा,सुघ्घर रंग समाए।
छींचव संगी जोर लगाके,फागुन देखव आए।।
रंग लगावय आनी-बानी, मउहा पीके झूले।
धर पिचकारी मारय फेंकय,कोनों रेंगत भूले।।
फाग होत हे चारो कोती, नर-नारी बइहाए।
नाच-नाच के मजा करत हे,सुग्घर होरी भाए।।
ए जिनगी मा काय धरे हे,चलो मनालव खुशियाँ।
ए जिनगी नइ मिलय दुबारा,झन बइठव जी दुखिया।।
(7) सार छंद - बोधनराम निषादराज
होरी खेलय बरसाना मा,देखव किशन कन्हैया।
नाँगर बोहे मुच-मुच हाँसे,सँग मा हलधर भैया।।
राधा रानी बड़ी सयानी, भागय चुनरी छोड़े।
दउड़त जावय किशन मुरारी,मया प्रित ला जोड़े।।
श्याम रंग मा डूबे जम्मो,गोप गुवालिन राधा।
झूमत हावय बृज नर-नारी,कखरो नइ हे बाधा।।
प्रेम मगन मा खेलत हावय,डंडा नाचत हावय।
भर पिचकारी मारत हावय,सुघ्घर फगुवा गावय।।
खेलय होरी राधा मोहन,देवता मन हरसावय।
धन्य भूमि हे भारत भुइयाँ,जम्मों खुशी मनावय।।
(8) सार छंद - बोधनराम निषादराज
गली गली मा धूम मचे हे,नाचत फगुवा गावय।
होरी खेलय रंग उड़ावय,भंग खुशी मा खावय।।
मातय झूमय गली खोर मा,ढोल नँगाड़ा बाजय।
धर पिचकारी आरा रारा,बइहाँ सुघ्घर साजय।।
भेद-भाव अउ लाज शरम ला,छोड़ भगागे भाई।
बहू बेटी के नइ चिन्हारी, नइ हे दाई - माई।।
टूरी टूरा एक दिखत हे, कोनों करिया पिउँरा।
रंग मया मा फाँसय कोनों,कखरो तरसय जिवरा।।
अइसन होरी अउ कब आही,बने इहाँ अब खेलव।
जिंयत मरत के संगी-साथी,रंग मया के लेलव।।
(9) छप्पय छन्द - बोधनराम निषादराज
होरी खेलय श्याम, धूम हा मचगे भारी।
कुँज गलीन मा आज,मातगे नर अउ नारी।।
राधा बिसरे लाज,मया हे मोहन सँग मा।
मारय छर-छर रंग,परत हे जम्मो अँग मा।।
गली खोर मा झूम के, लोक लाज ला भूल के।
हाँसय खुल खुल प्रेम में,राधा गोरी झूल
के।।
(10) छप्पय छन्द - बोधनराम निषादराज
बजय नँगारा देख,सबोझन नाचय गावय।
टिमकी तासक ढोल,रंग मा रंग जमावय।।
होरी खेलन आय, मया मा खेलय होरी।
जम्मो रंग गुलाल,गाल मा मारय छोरी।।
दया मया अउ प्रेम के,हावय इही तिहार गा।
बइरी हितवा होत हे, खुशियाँ छाय अपार गा।।
(11) कुण्डलिया छन्द - बोधनराम निषादराज
मोहन गावय फाग ला,राधा रंग लगाय।
बरसत हावै प्रेम हा,मनखे मन बउराय।।
मनखे मन बउराय,देख लव माते होरी।
नाचत हावय गोप, संग मा राधा गोरी।।
बरसाना हा देख,सबो के मन ला भावय।
होरी खेलत श्याम,फाग ला सुघ्घर गावय।।
(12) कुण्डलिया छन्द - बोधनराम निषादराज
फागुन आ गे देखतो,परसा फुलगे लाल।
चारो मुड़ा तिहार कस,बदले हावै चाल।।
बदले हावै चाल,समागे सबके मन मा।
सरसो फूल अपार,छातहे अब उपवन मा।।
अइसन बेरा देख,मोर मन ला अब भा गे।
सुग्घर पुरवा आय,देखतो फागुन आ गे।।
(13) कुण्डलिया छन्द - बोधनराम निषादराज
हाँसत हावै फूल हा, मोरो मन बउराय।
भँवरा गुनगुन गात हे,आगी हिया लगाय।।
आगी जिया लगाय,कोन ला भेजँव पाती।
जोड़ी हे परदेश, दुःख मा जरथे छाती।।
बैरी फागुन आय,करौं का कुछु नइ भावै।
देख हाल ला मोर,फूल हा हाँसत हावै।।
(14) किरीट सवैया - बोधनराम निषादराज
ढोल बजे बृज मा रधिया सँग मोहन रास रचावत हावय।
फागुन रंग उड़े फगुवा सब फाग सुनावत गावत हावय।।
माँदर बाजत देख गुवालन हाँसत भागत आवत हावय।
मातु जसोमति नंद बबा यह देखत फाग मनावत हावय।।
(15 महाभुजंग प्रयात सवैया - बोधनराम निषादराज
बजै ढोल बाजा नँगारा सुहावै,दिखै आज लाली गुलाली कन्हैया।
धरे रंग हाथे लगावै मुहूँ मा,इहाँ राधिका हा लुकावै ग भैया।।
भरे हे मया राग कान्हा बलावै,लजावै ग गोपी कहै हाय दैया।
मया मा फँसा रंग डारै मया के,नचावै सँगे मा मया के रचैया।।
(16) महाभुजंग प्रयात सवैया - बोधनराम निषादराज
झरै पान डारा उड़ावै हवा मा,नवा पान सोहै बसन्ती सुहावै।
दिखै फूल लाली ग टेसू खड़े हे,बरै देख आगी हिया ला जलावै।।
बढ़ावै मया ला चलै कामदेवा,धरे काम के बान मारै सतावै।
उड़ै रंग होली बसन्ती हवा मा,सबो आज लाली गुलाली लगावै।।
रचनाकार (क्रमांक 3 से क्रमांक 16) -
बोधन राम निषाद राज "विनायक"
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
होली हे हे हे हे ।
ReplyDeleteसबो छंद साधक मन ला बधाई।
वाह वाह,गजब
ReplyDeleteफोटू के संगे संग गजब सुग्घर सुग्घर रचना पढ़े बर मिलिस गुरुदेव सादर प्रणाम ।।
ReplyDeleteवाहःज्ज अद्धभुत संकलन हे गुरुदेव
ReplyDeleteये भी ऐतिहासिक होगे
बहुत सुग्घर संकलन।जम्मो झन ला बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर छंद ,सबो झन ल बधाई
ReplyDeleteवाह ।बहुत ही शानदार संयोजन, गुरुदेव ।सादर नमन सहित छंद के छ परिवार ला सबो यशस्वी छंद साधक मन ला हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे ।
ReplyDeleteएक ले बढके एक छंद रचना आप सबो ल बहुतेच बधाई
ReplyDeleteआप जम्मो छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई💐
ReplyDeleteअलग अलग छंद में होली के रंग भरे सुग्घर भाव मन ल सराबोर कर दिस । जम्मो रचकार ल अंतस ले बधाई हे ।
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