- चौपाई छंद - बोधन राम निषाद राज
जय हो भोला मरघट वासी। शिव शम्भू तँय हस अविनासी।।
भूत नाथ कैलाश बिराजे। मृग छाला मा चोला साजे।।
नन्दी बइला तोर सवारी। भुतहा मन के तँय सँगवारी।।
पारबती के प्रान पियारे। धरमी छोड़ अधरमी मारे।।
जय हो बाबा औघड़दानी। जटा बिराजे गंगा रानी।।
राख भभूती तन मा धारे। गर मा बिखहर सांप पधारे।।
पापी भस्मासुर ला मारे। अपन लोक मा ओला तारे।।
पारबती के लाज बचाए। ऋषि मुनि योगी गुन ला गाए।।
भांग धतूरा मन ला भाये। सिया राम के ध्यान लगाये।।
बइठे परबत मा कैलाशी। अंतर्यामी हे अविनासी।।
महाकाल हे डमरू वाला। जय शिव शंकर भोला भाला।।
मंदिर तोर दुवारी आवौं। मनवांछित फल ला मँय पावौं।।
रचनाकार:- बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम, छत्तीसगढ़
(2) सरसी छन्द - कन्हैया साहू अमित
बेरा हे फागुन चउदस तिथि, सब झन हें सकलाय।
शिव बरात मा जुरमिल जाबो, संगी सबो सधाय।1।
बिकट बरतिया बिदबिद बाजँय, चाल चलय बेढ़ंग।
बिरबिट करिया भुरुवा सादा, कोनो हे छतरंग।2।
कोनो उघरा उखरा उज्जट, उदबिदहा उतलंग।
उहँदा उरभट कुछु नइ घेपँय, उछला उपर उमंग।3।
रोंठ पोठ सनपटवा पातर, कोनो चाकर लाम।
नकटा बुचुवा रटहा पकला, नेंग नेंगहा नाम।4।
खड़भुसरा खसुआहा खरतर, खसर-खसर खजुवाय।
चिटहा चिथरा चिपरा छेछन, चुन्दी हा छरियाय।5।
जबर जोजवा जकला जकहा, जघा-जघा जुरियाय।
जोग जोगनी जोगी जोंही, बने बराती जाय।6।
भुतहा भकला भँगी भँगेड़ी, भक्कम भइ भकवाय।
भसरभोंग भलभलहा भइगे, भदभिदहा भदराय।7।
भकर भोकवा भिरहा भदहा, भूत प्रेत भरमार।
भीम भकुर्रा भैरव भोला, भंडारी भरतार।8।
मौज मगन मनमाने मानय, जौंहर उधम मचाय।
चिथँय कोकमँय हुदरँय हुरमत, तनातनी तनियाय।9।
आसुतोस तैं औघड़दानी, अद्भूत तोर बिहाव।
अजर अमर अविनासी औघड़, अड़हा अमित हियाव।10।
रचनाकार - कन्हैया साहू "अमित"
शिक्षक~भाटापारा {छत्तीसगढ़)
शिक्षक~भाटापारा {छत्तीसगढ़)
(3) कुकुभ छंद - जितेंद्र वर्मा खैर झिटिया
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
दुःख द्वेस जर जलन जराके,सत के बो बीजा बाबा।
मन मा भरे जहर ले जादा,काय भला अउ जहरीला।
येला पीये बर शिव भोला,का कर पाबे तैं लीला।
सात समुंदर घलो म अतका, जहर भरे नइ तो होही।
देख झाँक के गत मनखे के,फफक फफक अन्तस रोही।
बड़े छोट ला घूरत हावय, साली ला जीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
बोली भाँखा करू करू हे,मार काट होगे ठट्ठा।
अहंकार के आघू बइठे,धरम करम सत के भट्ठा।
धन बल मा अटियावत घूमय,पीटे मनमर्जी बाजा।
जीव जिनावर मन ला मारे,बनके मनखे यमराजा।
दीन दुखी मन घाव धरे हे,आके तैं छी जा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
धरम करम हा बाढ़े निसदिन,कम होवै अत्याचारी।
डरे राक्षसी मनखे मनहा,कर तांडव हे त्रिपुरारी।
भगतन मनके भाग बनादे,फेंक असुर मन बर भाला।
दया मया के बरसा करदे,झार भरम भुतवा जाला।
रहि उपास मैं सुमरँव तोला ,सम्मारी तीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
रचनाकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
(4) चौपाई छन्द - द्वारिका प्रसाद लहरे
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
दुःख द्वेस जर जलन जराके,सत के बो बीजा बाबा।
मन मा भरे जहर ले जादा,काय भला अउ जहरीला।
येला पीये बर शिव भोला,का कर पाबे तैं लीला।
सात समुंदर घलो म अतका, जहर भरे नइ तो होही।
देख झाँक के गत मनखे के,फफक फफक अन्तस रोही।
बड़े छोट ला घूरत हावय, साली ला जीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
बोली भाँखा करू करू हे,मार काट होगे ठट्ठा।
अहंकार के आघू बइठे,धरम करम सत के भट्ठा।
धन बल मा अटियावत घूमय,पीटे मनमर्जी बाजा।
जीव जिनावर मन ला मारे,बनके मनखे यमराजा।
दीन दुखी मन घाव धरे हे,आके तैं छी जा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
धरम करम हा बाढ़े निसदिन,कम होवै अत्याचारी।
डरे राक्षसी मनखे मनहा,कर तांडव हे त्रिपुरारी।
भगतन मनके भाग बनादे,फेंक असुर मन बर भाला।
दया मया के बरसा करदे,झार भरम भुतवा जाला।
रहि उपास मैं सुमरँव तोला ,सम्मारी तीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
रचनाकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
(4) चौपाई छन्द - द्वारिका प्रसाद लहरे
शिव शंकर के महिमा भारी। सार जगत के पालनहारी।।
बँधे जटा मा गंगा पानी । भोले बाबा बड़ वरदानी।।
नाँग साँप गर मा लपटाये। भूत नाथ अउ तहीं कहाये।।
पारबती माँ पाँव पखारे। तिरशुल मा पापी संहारे।।
अवघड़ दानी नाँव कहाये। राख चुपर के अंग सजाये।।
नाँचे थाथा थइया भोले। धरती डगमग डगमग डोले।।
नंदी हावय तोर सवारी। आधा नर तैं आधा नारी।।
सब देवन मन गुन ला गावैं। तोर चरन मा फूल चढ़ावैं।।
तोर जटा मा चंदा साजे। डमडम डमडम डमरू बाजे।
भांग धतूरा तोला भाये। सब के हिरदे मा तैं छाये।।
हे शिव शंकर आप ले। माँगत हँव वरदान।
खुशी खुशी संसार के। करदव अब कल्यान।।
रचनाकार - डी.पी.लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़
बँधे जटा मा गंगा पानी । भोले बाबा बड़ वरदानी।।
नाँग साँप गर मा लपटाये। भूत नाथ अउ तहीं कहाये।।
पारबती माँ पाँव पखारे। तिरशुल मा पापी संहारे।।
अवघड़ दानी नाँव कहाये। राख चुपर के अंग सजाये।।
नाँचे थाथा थइया भोले। धरती डगमग डगमग डोले।।
नंदी हावय तोर सवारी। आधा नर तैं आधा नारी।।
सब देवन मन गुन ला गावैं। तोर चरन मा फूल चढ़ावैं।।
तोर जटा मा चंदा साजे। डमडम डमडम डमरू बाजे।
भांग धतूरा तोला भाये। सब के हिरदे मा तैं छाये।।
हे शिव शंकर आप ले। माँगत हँव वरदान।
खुशी खुशी संसार के। करदव अब कल्यान।।
रचनाकार - डी.पी.लहरे
बायपास रोड़ कवर्धा छत्तीसगढ़
(5) चौपाई छंद -कुलदीप सिन्हा:
जय जय जय शिव शंकर भोला। दर्शन दे दे तेहा मोला।
बेल पान अउ फूल चढ़ाहूँ। रोज तोर गुन ला में गाहूँ।।
दिखथस बिल्कुल भोला भाला। पहिरे रहिथस बघवा छाला।।
गल मुंडन के माला सोहे। माथ म चन्दा मन ला मोहे।।
तोला कहिथे पर्वत वासी। हवस घलो तेहा अविनासी।
भक्तन मन बर जहर पिये हस। कतको ला वरदान दिये हस।।
राम नाम गुन गावत रहिथस। जाड़ शीत सब ला तैं सहिथस।।
जटा जूट मा गंगा साजे। वाम अंग मा मात बिराजे।।
बेल पान अउ फूल चढ़ाहूँ। रोज तोर गुन ला में गाहूँ।।
दिखथस बिल्कुल भोला भाला। पहिरे रहिथस बघवा छाला।।
गल मुंडन के माला सोहे। माथ म चन्दा मन ला मोहे।।
तोला कहिथे पर्वत वासी। हवस घलो तेहा अविनासी।
भक्तन मन बर जहर पिये हस। कतको ला वरदान दिये हस।।
राम नाम गुन गावत रहिथस। जाड़ शीत सब ला तैं सहिथस।।
जटा जूट मा गंगा साजे। वाम अंग मा मात बिराजे।।
रचनाकार - कुलदीप सिन्हा "दीप"
कुकरेल ( धमतरी ) छत्तीसगढ़
(6) सर्वगामी सवैया - ज्ञानु दास मानिकपुरी
देखौ बिराजे हवै माथ मा दूज चंदा जटा धार गंगा समाये।
नंदी सवारी गला साँप सौहे ग मूँदे सदा नैन धूनी रमाये।
भोला बबा नाम औ काम भोला धतूरा दही बेलपत्ती सुहाये।
पूरा मनोकामना ला करे भक्त के छीन मा औ बिपत्ती हटाये।
रचनाकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी
चंदैनी(कबीरधाम-छ्त्तीसगढ़)
(7) चौपाई छंद -पोखन लाल जायसवाल
नीलकंठ जग जानय तोला। जय जय जय शिव शंकर भोला।।
तप करथच परबत मा भारी। नंदी के तैं करे सवारी।।
भूतनाथ सब तोला जानय। अवघड़ दानी सबझन मानय।।
हे त्रिशूल धारी अविनासी। तहीं कहाथच परबत वासी ।।
सागर मंथन के बिख पीये। तोरे बल मा सबझन जीये ।।
तही बने सबके रखवाला। हे शिव शंकर भोला भाला ।।
सिया राम मा ध्यान लगाए। पारबती ला कथा सुनाए ।
परबत मा तैं धुनी रमाये। राम नाम के जस ला गाये ।।
करे किसन के दरशन बाबा। रूप बनाए जोगी बाबा।।
मात जशोदा ले कर बिनती। दिन बीतय सब गिन गिन गिनती ।।
बेल पान अउ फूल चढ़ाके। पूजय सबझन माथ नवाके।।
करथे अरजी विनती तोला। दर्शन दे दे शंकर भोला ।।
रचनाकार - पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह तहसील पलारी
जि बलौदाबाजार भाटापारा, छत्तीसगढ़
तप करथच परबत मा भारी। नंदी के तैं करे सवारी।।
भूतनाथ सब तोला जानय। अवघड़ दानी सबझन मानय।।
हे त्रिशूल धारी अविनासी। तहीं कहाथच परबत वासी ।।
सागर मंथन के बिख पीये। तोरे बल मा सबझन जीये ।।
तही बने सबके रखवाला। हे शिव शंकर भोला भाला ।।
सिया राम मा ध्यान लगाए। पारबती ला कथा सुनाए ।
परबत मा तैं धुनी रमाये। राम नाम के जस ला गाये ।।
करे किसन के दरशन बाबा। रूप बनाए जोगी बाबा।।
मात जशोदा ले कर बिनती। दिन बीतय सब गिन गिन गिनती ।।
बेल पान अउ फूल चढ़ाके। पूजय सबझन माथ नवाके।।
करथे अरजी विनती तोला। दर्शन दे दे शंकर भोला ।।
रचनाकार - पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह तहसील पलारी
जि बलौदाबाजार भाटापारा, छत्तीसगढ़
(8) चौपाई छंद -सुखदेव सिंह
शिव शंकर ला भजले प्रानी।शिव शंभू हे औघड़ दानी।।
शिवे दुलारय शिव संघारय। हर हर हा हर संकट टारय।।
जेखर नाँव हवय त्रिपुरारी। जस कीरति महिमा हे भारी।।
जय शिव शंकर बम बम भोले। हर हर महादेव जग बोले।।
बिख ला अपन कण्ठ मा धारे। नीलकण्ठ कहि जगत पुकारे।।
डम डम डम डम डमरू बाजे। बिखहर के गहना तन साजे।।
अंग वस्त्र मिरगा के छाला। साँप बिछी माला अउ बाला।।
भूतनाथ भोला मतवाला। सकल चराचर के रखवाला।।
तन मा अपन राख चुपरे हस। डमरू अउ तिरछूल धरे हस।।
नन्दी बइला तोर सवारी। भूतनाथ भोले भंडारी।।
शिव शंभू कैलाश निवासी। सुने हवन रहिथव तुम कासी।।
हम अन तुँहर चरण के दासी। तुम हमरो हिरदे के वासी।।
महादेव प्रभु मातु सती के। शंकर भोला पारबती के।।
करुण निवेदन सुने रती के। दण्ड सुधारे मदन मती के।।
एक बार के बात हरय जी। पारबती हा अरज करय जी।।
अमर अमर सब कहिथें प्रानी। समझावव प्रभु अमर कहानी।।
एक दिवस शुभ अवसर पा के। बइठिन अमर गुफा मा जा के।।
डमरू अपन बजाइस शंकर। भाग गइस जम्मो जी-जन्तर।।
गूढ़ ज्ञान ला अमर कथा के। गावय कभु बोलय अलखा के।।
शिव मुँह ले सत अविरल वानी। सुनय गुनय गौरी महरानी।।
शिव जी अमर नाम अलखावय। अमर नाम सतनाम बतावय।।
कथें मातु ला निंदिया आगे। घोल्हा अण्डा जीवन पागे।।
भक्तन के कल्याण करे बर। अंतस के दुख ताप हरे बर।।
मनुज मनोरथ के शुभ काजे। बारह ज्योतिर्लिंग बिराजे।।
मँय छत्तीसगढ़ के रहवइया।चटनी बासी पेज खवइया।।
नकमरजी झन हो जै हाँसी। कइसे भोग लगावँव बासी।।
फुड़हर फूल बेल के पाना। लाये हँव कनकी के दाना।।
दूध नही लोटा भर पानी। ग्रहण करव प्रभु औघड़ दानी।
माथ दूज के चंदा सोह। अनुपम रूप हृदय ला मोहय।।
जे प्रभु दर्शन के पथ जोहय,। तेखर हृदय भक्ति रस पोहय।।
रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़
शिवे दुलारय शिव संघारय। हर हर हा हर संकट टारय।।
जेखर नाँव हवय त्रिपुरारी। जस कीरति महिमा हे भारी।।
जय शिव शंकर बम बम भोले। हर हर महादेव जग बोले।।
बिख ला अपन कण्ठ मा धारे। नीलकण्ठ कहि जगत पुकारे।।
डम डम डम डम डमरू बाजे। बिखहर के गहना तन साजे।।
अंग वस्त्र मिरगा के छाला। साँप बिछी माला अउ बाला।।
भूतनाथ भोला मतवाला। सकल चराचर के रखवाला।।
तन मा अपन राख चुपरे हस। डमरू अउ तिरछूल धरे हस।।
नन्दी बइला तोर सवारी। भूतनाथ भोले भंडारी।।
शिव शंभू कैलाश निवासी। सुने हवन रहिथव तुम कासी।।
हम अन तुँहर चरण के दासी। तुम हमरो हिरदे के वासी।।
महादेव प्रभु मातु सती के। शंकर भोला पारबती के।।
करुण निवेदन सुने रती के। दण्ड सुधारे मदन मती के।।
एक बार के बात हरय जी। पारबती हा अरज करय जी।।
अमर अमर सब कहिथें प्रानी। समझावव प्रभु अमर कहानी।।
एक दिवस शुभ अवसर पा के। बइठिन अमर गुफा मा जा के।।
डमरू अपन बजाइस शंकर। भाग गइस जम्मो जी-जन्तर।।
गूढ़ ज्ञान ला अमर कथा के। गावय कभु बोलय अलखा के।।
शिव मुँह ले सत अविरल वानी। सुनय गुनय गौरी महरानी।।
शिव जी अमर नाम अलखावय। अमर नाम सतनाम बतावय।।
कथें मातु ला निंदिया आगे। घोल्हा अण्डा जीवन पागे।।
भक्तन के कल्याण करे बर। अंतस के दुख ताप हरे बर।।
मनुज मनोरथ के शुभ काजे। बारह ज्योतिर्लिंग बिराजे।।
मँय छत्तीसगढ़ के रहवइया।चटनी बासी पेज खवइया।।
नकमरजी झन हो जै हाँसी। कइसे भोग लगावँव बासी।।
फुड़हर फूल बेल के पाना। लाये हँव कनकी के दाना।।
दूध नही लोटा भर पानी। ग्रहण करव प्रभु औघड़ दानी।
माथ दूज के चंदा सोह। अनुपम रूप हृदय ला मोहय।।
जे प्रभु दर्शन के पथ जोहय,। तेखर हृदय भक्ति रस पोहय।।
रचनाकार-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर,कबीरधाम छत्तीसगढ़
(9) रूपमाला छंद -आशा देशमुख
हे सदाशिव तँय बतादे ,छंद के आवाज।
तोर डमरू हा निकाले ,गीत के सुर साज।
आज मनखे मन भ्रमित हे ,तोड़ के सब रीत।
कोन रद्दा अब बतावय ,गांव का मँय गीत।
(10) त्रिभंगी छंद -आशा देशमुख
तोर डमरू हा निकाले ,गीत के सुर साज।
आज मनखे मन भ्रमित हे ,तोड़ के सब रीत।
कोन रद्दा अब बतावय ,गांव का मँय गीत।
(10) त्रिभंगी छंद -आशा देशमुख
भोले त्रिपुरारी ,मंगलकारी दुख कलेश ला दूर करौ।
देवव सुख दाता ,भाग्य विधाता ,ज्ञान दया से पूर करौ।
अब्बड़ दुख जग में ,छल रग रग में,मनखे मन मा पाप भरे।
गंगा बोहादे ,अगिन बुझादे ,रोग मोह के ताप भरे।।
गौरी के जोही ,हे निरमोही भूत प्रेत के संग धरे।
हे औघड़दानी ,नइहे छानी, तंत्र मंत्र के जाप करे।
अब्बड़ हे सिधवा ,जग के हितवा ,सुनथे सबके दुःख व्यथा।
लोटा भर पानी ,सबले दानी ,भाथे वोला राम कथा।।
रचनाकार - आशा देशमुख
देवव सुख दाता ,भाग्य विधाता ,ज्ञान दया से पूर करौ।
अब्बड़ दुख जग में ,छल रग रग में,मनखे मन मा पाप भरे।
गंगा बोहादे ,अगिन बुझादे ,रोग मोह के ताप भरे।।
गौरी के जोही ,हे निरमोही भूत प्रेत के संग धरे।
हे औघड़दानी ,नइहे छानी, तंत्र मंत्र के जाप करे।
अब्बड़ हे सिधवा ,जग के हितवा ,सुनथे सबके दुःख व्यथा।
लोटा भर पानी ,सबले दानी ,भाथे वोला राम कथा।।
रचनाकार - आशा देशमुख
एन टी पी सी कोरबा, छत्तीसगढ़
(11) दुर्मिल सवैया :- जगदीश "हीरा" साहू
*शिव महिमा*
खुश हे हिमवान उमा जनमे, सबके घर दीप जलावत हे।
घर मा जब आवय नारद जी, तब हाथ उमा दिखलावत हे।।
बड़ भाग हवै कहिथे गुनके, कुछ औगुन देख जनावत हे।
मिलही बइहा पति किस्मत मा, सुन हाथ लिखा बतलावत हे।।1।।
करही तप पारवती शिव के, गुण औगुन जेन बनावत हे।
झन दुःख मना मिलही शिव जी, कहि नारद जी समझावत हे।
सबला समझावय नारद हा, महिमा समझै मुसकावत हे।
खुश होवत हे तब पारवती, तप खातिर वो बन जावत हे।।2।।
तुरते शिवधाम सबो मिलके, अरजी तब आय सुनावत हे।
सब देव खड़े विनती करथे, अब ब्याह करौ समझावत हे।।
शिव जी महिमा समझै प्रभु के, सबके दुख आज मिटावत हे।
शिव ब्याह करे बर मान गये, सब झूमय शोर मचावत हे।।3।।
मड़वा गड़गे हरदी चढ़गे, हितवा मितवा सकलावत हे।
बघवा खँड़री पहिरे कनिहा, तन राख भभूत लगावत हे।
बड़ अद्भुत लागय देखब मा, गर साँप ल लान सजावत हे।।
सब हाँसत हे बड़ नाचत हे, सुख बाँटत गीत सुनावत हे।।4।।
अँधरा कनवा लँगड़ा लुलवा, सब संग बरात म जावत हे।
जब देखय सुग्घर भीड़ सबो, शिव जी अबड़े मुसकावत हे।।
जब देखय विष्णु समाज उँहा, तब आ सबला समझावत हे।
तिरियावव संग ल छोड़व जी, शिव छोड़ सबो तिरियावत हे।।5।।
लइका जब देखय जीव बचा, घर भीतर जाय लुकावत हे।
जब देखय रूप खड़े मयना, रनिवास म दुःख मनावत हे।।
तब नारद जी रनिवास म आ, कहिके सबला समझावत हे।
शिव शक्ति उमा अवतार हवे, महिमा सब देव बतावत हे।।6।।
सुनके सबके मन मा उमगे, तब मंगल गीत सुनावत हे।
सखियाँ मन आज उछाह भरे, मड़वा म उमा मिल लावत हे।।
शिव पारवती जब ब्याह करे, सब देव ख़ुशी बड़ पावत हे।
सकलाय सबो झन मंडप मा, मिल फूल उँहा बरसावत हे।।7।।
जयकार करे सब देव उँहा, तब संग उमा शिव आवत हे।
जब वापिस आय बरात सबो, खुश हो तुरते घर जावत हे।
मन लाय कथा सुनथे शिव के, प्रभु के किरपा बड़ पावत हे।
कर जोर खड़े जगदीश इँहा, शिव पारवती जस गावत हे।।8।।
रचनाकार - जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा) छत्तीसगढ़
*शिव महिमा*
खुश हे हिमवान उमा जनमे, सबके घर दीप जलावत हे।
घर मा जब आवय नारद जी, तब हाथ उमा दिखलावत हे।।
बड़ भाग हवै कहिथे गुनके, कुछ औगुन देख जनावत हे।
मिलही बइहा पति किस्मत मा, सुन हाथ लिखा बतलावत हे।।1।।
करही तप पारवती शिव के, गुण औगुन जेन बनावत हे।
झन दुःख मना मिलही शिव जी, कहि नारद जी समझावत हे।
सबला समझावय नारद हा, महिमा समझै मुसकावत हे।
खुश होवत हे तब पारवती, तप खातिर वो बन जावत हे।।2।।
तुरते शिवधाम सबो मिलके, अरजी तब आय सुनावत हे।
सब देव खड़े विनती करथे, अब ब्याह करौ समझावत हे।।
शिव जी महिमा समझै प्रभु के, सबके दुख आज मिटावत हे।
शिव ब्याह करे बर मान गये, सब झूमय शोर मचावत हे।।3।।
मड़वा गड़गे हरदी चढ़गे, हितवा मितवा सकलावत हे।
बघवा खँड़री पहिरे कनिहा, तन राख भभूत लगावत हे।
बड़ अद्भुत लागय देखब मा, गर साँप ल लान सजावत हे।।
सब हाँसत हे बड़ नाचत हे, सुख बाँटत गीत सुनावत हे।।4।।
अँधरा कनवा लँगड़ा लुलवा, सब संग बरात म जावत हे।
जब देखय सुग्घर भीड़ सबो, शिव जी अबड़े मुसकावत हे।।
जब देखय विष्णु समाज उँहा, तब आ सबला समझावत हे।
तिरियावव संग ल छोड़व जी, शिव छोड़ सबो तिरियावत हे।।5।।
लइका जब देखय जीव बचा, घर भीतर जाय लुकावत हे।
जब देखय रूप खड़े मयना, रनिवास म दुःख मनावत हे।।
तब नारद जी रनिवास म आ, कहिके सबला समझावत हे।
शिव शक्ति उमा अवतार हवे, महिमा सब देव बतावत हे।।6।।
सुनके सबके मन मा उमगे, तब मंगल गीत सुनावत हे।
सखियाँ मन आज उछाह भरे, मड़वा म उमा मिल लावत हे।।
शिव पारवती जब ब्याह करे, सब देव ख़ुशी बड़ पावत हे।
सकलाय सबो झन मंडप मा, मिल फूल उँहा बरसावत हे।।7।।
जयकार करे सब देव उँहा, तब संग उमा शिव आवत हे।
जब वापिस आय बरात सबो, खुश हो तुरते घर जावत हे।
मन लाय कथा सुनथे शिव के, प्रभु के किरपा बड़ पावत हे।
कर जोर खड़े जगदीश इँहा, शिव पारवती जस गावत हे।।8।।
रचनाकार - जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा) छत्तीसगढ़
(12) चौपाई छंद - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
हे शंभू शिव शंकर भोला।आज पुकारत हँव मैं तोला।।
रूप भयानक धरके आ जा।क्रोध अहं के बाजत बाजा।।
पाप मिटा जा जग से अब तो।तोर आसरा देखय सब तो।।
आंख तीसरा खोल दिखावव।पापी मन ला ठाड़ जलावव।।
चन्द्र घटा ले धार बहा दे।गंगा माँ ला भार सहा दे।।
तर जावै सब नर अउ नारी।जीव जंतु जल थल नभचारी।।
अत्याचारी नइ तो रूकत हे।कुकुर सही निस दिन भूकत हे।।
कोन मिटावय जग के दुख ला।तहीं दिखा दे मन के सुख ला।।
बम गोला नइ काम करत हे।अग्नि मिसाइल धर्म डरत हे।।
भेज त्रिशूल करव संहारी। नाग शेष शिव जी गर धारी।।
जहर घुरत हे अब तो सागर।कर विषपान कंठ शिव सादर।।
कलजुग मा परमान दिखा जा। सच हे का भगवान दिखा जा।।
हे शंभू शिव शंकर भोला।आज पुकारत हँव मैं तोला।।
रूप भयानक धरके आ जा।क्रोध अहं के बाजत बाजा।।
पाप मिटा जा जग से अब तो।तोर आसरा देखय सब तो।।
आंख तीसरा खोल दिखावव।पापी मन ला ठाड़ जलावव।।
चन्द्र घटा ले धार बहा दे।गंगा माँ ला भार सहा दे।।
तर जावै सब नर अउ नारी।जीव जंतु जल थल नभचारी।।
अत्याचारी नइ तो रूकत हे।कुकुर सही निस दिन भूकत हे।।
कोन मिटावय जग के दुख ला।तहीं दिखा दे मन के सुख ला।।
बम गोला नइ काम करत हे।अग्नि मिसाइल धर्म डरत हे।।
भेज त्रिशूल करव संहारी। नाग शेष शिव जी गर धारी।।
जहर घुरत हे अब तो सागर।कर विषपान कंठ शिव सादर।।
कलजुग मा परमान दिखा जा। सच हे का भगवान दिखा जा।।
रचनाकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर, छत्तीसगढ़
बहुत बहुत आभार गुरुदेव
ReplyDeleteरचना मन ला छंद खजाना मा जगह दे हवव।
सबो भाई बहिनी मन ला महाशिवरात्री के बहुत बहुत बधाई शुभकामना
प्रणाम गुरु देव बहुत सुग्घर संकलन गुरु देव, 'छंद के छ' परिवार के जस सरी दुनिया मा बगरय ।इही कामना के संग महा शिवरात्रि के झारा झारा बधई ।
ReplyDeleteसबी झन के रचना बहुत बढ़िया हे । बहुत बहुत बधाई अउ शुभकामना
ReplyDeleteहर हर महादेव
गुरुदेव सादर चरणवंदन। आप सबो झन ला सादर पायलगी अउ महाशिवरात्रि के बधाई।
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि ऊपर बहुत बढ़िया छंद रचना ,आप सबो ल बधाई ,
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि ऊपर बहुत बढ़िया छंद रचना ,आप सबो ल बधाई ,
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteगुरुदेव प्रणाम ! आज शिवरात्रि के पावन बेला मा एक ले बढ़ के एक छंद रचना । आप सहित सबो साधक मन ला बधाई ।
ReplyDeleteजम्मो साधक गुरुदेव अउ दीदी मन ला महाशिवरात्रि के गाड़ा गाड़ा बधाई ।
ReplyDeleteजम्मो साधक गुरुदेव अउ दीदी मन ला महाशिवरात्रि के गाड़ा गाड़ा बधाई ।
ReplyDeleteजय बाबा आशुतोष बर्फानी
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर रचना सबो के
महाशिवरात्रि विशेषांक अनुपम संकलन।जम्मो छंदकार मन ला हार्दिक बधाई
ReplyDeleteछंद खजाना मा मोरो रचना ला प्रकाशित करे बर परम पूज्य गुरुदेव के सादर चरण वंदन।।
ReplyDeleteमोला अब्बड़ खुशी होवत हे।।
जम्मो आदरणीय गुरुदेव मन महाशिवरात्रि के बादर अकन बधाई
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि के सुग्घर विशेषांक गुरुदेव
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि के सुग्घर विशेषांक गुरुदेव
ReplyDeleteहर हर महादेव
ReplyDeleteअनुपम रचना के संकलन वाह्ह्ह वाह्ह्ह
ReplyDeleteअनुपम रचना के संकलन वाह्ह्ह वाह्ह्ह
ReplyDeleteशानदार संकलन, गुरुदेव ।सादर प्रणाम
ReplyDeleteशानदार संकलन, गुरुदेव ।सादर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर संकलन गुरुजी, जम्मो साधक मन ल बहुत अकन बधाई। मँय बाहर रहेँव ते पाय के अपन रचना नइ भेज पायँव।
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