अमृत ध्वनि छन्द-लिलेश्वर देवांगन
योग
ताजा ताजा ले हवा, सुबे सुबे कर योग |
लकठा नइ अावय कभू,जिनगी भर गा रोग ||
जिनगी भर गा,रोग बदन ला,छू नइ पाही |
बचही खर्चा, रोज दवा के, सुख तब आही |
रहिबे चंगा ,तभे कहाबे,तन के राजा |
जल्दी उठ के,सुबे हवा ले,ताजा ताजा |
प्रदुषन
गाड़ी मोटर के धुँआ, करथे जी नुकसान |
होथे रोगी श्वास के,लेथे सबके जान ||
लेथे सबके,जान सुनव जी,सब नर नारी |
जगह जगह मा,फइले हाबय ,प्रदुषन भारी ||
रोज रोज के,काटत हाबय,जंगल झाड़ी |
गली सड़क मा,धुँआ उड़ाथे,मोटर गाड़ी ||
फौजी
भारत माँ के गोद मा ,जनमे वीर महान |
फौजी बनके देश बर ,अपन गँवा दिस जान ||
अपन गँवा दिस,जान सुनव जी,अमर कहानी |
वीर देख के, बैरी होगे, पानी पानी ||
सीमा ले जी , दुश्मन भागे , रोवत हारत |
जोर लगाके,बोलत हाबय,जय जय भारत ||
लिलेश्वर देवांगन
बहुत सुन्दर सर जी
ReplyDeleteगजब सुघर सर
ReplyDeleteबड़ सुघ्घर
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई लिलेश्वर देवांगन जी
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