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Monday, January 22, 2024

भव्य राम मंदिर अउ भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा में





भव्य राम मंदिर अउ भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा में

अशोक कुमार जायसवाल: बरवै छंद*


हमर अंगना आये,प्रभु श्री राम।

मस्त मगन मन गाये,जय जय राम।।


बछर अगोरत आइस,ये दिन आज ।

फेर लहुटही अब तो, राम सुराज ।।


जन जन खुशी मनावव,धिड़का साज।

तिरिया के राहन दे,जम्मो काज ।।


गुणगान करत नाचत,हे हनुमान।

फूल पान बरसावय,सब भगवान।।


जगर मगर सब कोती,लगे उचास ।

राम नाम के महिमा,गुंजे अगास ।।


अशोक कुमार जायसवाल 


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🌹 जयकारी-छंद 🌹


होवत हे मंदिर निरमान। जल्द विराजव जी भगवान।

आवव-आवव मोरे राम। अपन ठउर मा राखव धाम।

जय श्री राम 🙏

आज अवधपुर लगय अपार। लगथे जइसे सरग दुवार।

रघुपति राघव राजा राम।नवा साल मा बनगे धाम।

जय श्री राम 🙏


जघा-जघा गूँजत हे नाम।सकल विश्व के दाता राम।

हमर देश के हे पहिचान। पथरा कठवा में भगवान।।

जय श्री राम 🙏


तोर नाम के हे बड़ शोर। भजथें ठग ठाकुर अउ चोर।।

राम नाम के हे परताप।पथरा तउँरे अपने आप।।

जय श्री राम 🙏


आवत हे शुभ तिथि अउ वार।राम लला सजही दरबार।।

खोर गली घर राखव लीप। सुघ्घर बारव घर-घर दीप।।

जय प्रभु राम 🙏


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू

निवासी -राम के ममियारो 

कटंगी गंडई जिला केसीजी छत्तीसगढ़।

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बादल: सियावर रामचंद्र की जय।

जै जै श्रीराम।

पावन धाम अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि स्थल मा नव निर्मित भव्य,अलौकिक श्रीराम मंदिर में श्रीराम लला के मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा के आप सब ला हार्दिक बधाई।सादर प्रणाम।


 श्रीसीतारामचरित (छत्तीसगढ़ी भाषा मा छंदबद्ध महाकाव्य) ले श्रीराम राज्य अभिषेक(पूजा के फूल9)के कुछ छंद प्रभु के चरनानवृंद मा अर्पित हे--


चौपाई--

भरत संग आगें पुरवासी।खुशी बगरगे हटिच उदासी।।

गुरु वशिष्ठ सँग रिपुसूदन हे। ओकर गदगद बड़ तन मन हे।।


गुरु के चरन गिरिस रघुराई। पाँव धरे हे सीता माई।।

लछिमन हावै माथ नँवाये ।हनुमंता जयकार लगाये।।


कुशल क्षेम पूछिस मुनिराई। दया तुँहर बोलिस सिय माई।।

भेंट पैलगी होवन लागे ।सुख के बदरी तुरते छागे।।


मायापति माया सिरजाके। पल मा लाखों राम बनाके।।

सब पुरवासी सँग वो भेंटे। सबके दुख पीरा ला मेंटे।।


दोहा--

डंडाशरण गिरगे भरत,भइया भइया बोल।

रोवत हे रघुनाथ हा, हिरदे डाँवा डोल।।


उठाना हे भाई भारत, बोलिस श्री रघुनाथ।

हृदय लगा भरके भुजा, सिर मा फेरिस हाथ।। 


हरिगीतिका--


आँसू झरत रोवत भरत हे, संग मा रघुनाथ के।

चउदा बरस छूटे दरस हे, मातु सीता साथ के।

पतवार हे रखवार हे वो, धार अटके नाँव के।

रघुवीर के मतिधीर के जी, धूल हा तो पाँव के।


दोहा--


दँउड़िन व्याकुल मातु मन, बेटा बेटा बोल।

पाँव गिरिस रघुनाथ हा, मन हे डाँवाडोल।।


बिछुड़े पिलवा ले मिले, जइसे रोथे गाय।

तइसे जम्मों मातु के, आँसू हा बोहाय।।


सीता तीनों सास के, चरनन माथ नँवाय। लछिमन सब झन ले मिलिस, हिरदे अपन जुड़ाय।।


गोपी छंद--


देवता फुलवा बरसावैं।

गली मा रेंगत सब आवैं।


चँउक पूरे हें घर द्वारी।

आरती लेवैं नर नारी।


अबड़ बाजत हावय बाजा।

अवध के आगे हे राजा।


 करिन न्योछावर हें भारी।

 मगन हावयँ प्रजा सुखारी।


दोहा--

कनक भवन मा आज तो, पहुँचे हे श्री राम।

हो प्रसन्न लहुटिन प्रजा,अवध लगे सुखधाम ।।


सखा सबो रघुनाथ के, गुरु ला माथ नँवायँ।

आवभगत ला देख के,वोमन खुशी मनायँ।।


गुरु वशिष्ठ बोलिस वचन, सुन हे सचिव सुमंत।

राजतिलक बर राम के,कर सिरजाम तुरंत।।


डेरी कोती राम के, सीता ला बइठार।

आज सिंहासन के सुघर,होवत हे सिंगार।।


ब्रह्मा शिव जी देवगण, सिद्ध सबो मुनिराज।

 चढ़े विमान अगास ले,देखत हावयँ आज।।


वेद मंत्र द्विज हें पढ़त,मंगल शंख बजायँ। पिंवरी चाँउर छींच के,आसिस ला बरसायँ।।


 गुरु वशिष्ठ पहिली तिलक,सारिस रघुवर माथ।

राम सिया ला दे असिस,रखिस मूँड मा हाथ।।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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 कौशल साहू: बरवै छंद (श्री राम )


खोर गली  गूँजत हे , प्रभु के नाम ।

आज अवध मा आये , हे श्री राम ।।


धजा पताका तोरन, सुग्घर साज।

त्रेता जुग कस आगे , राम सुराज ।।


रूप मनोहर आँखी , नहीं पिराय ।

पाँव पखारत सरजू ,नहीं थिराय ।।


घर अँगना हा लागय , रघुवर  धाम।

सुमिरन मा  सब बनथे ,बिगड़े काम ।।


ओरी  ओरी  जगमग , दीया बार ।

देवारी ले बड़का , आज  तिहार ।।


धरम करम मा होवय , सब ला नाज।

तभे खपाही मुड़ मा ,कौशल ताज ।।


रचना:- कौशल कुमार साहू

    दिनांक 22/01/2024


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रघुकुल नंदन हे दुखभंजन , श्रीपतये प्रभु कष्ट हरो,

रघुपति राघव हे मन भावन पाप भरे मन नष्ट करो।1।


खल दल नाशक हे जग पालक आप कृपा इतना कर दो,

अविरल प्रेम सुधा बरसे मन राम रटे रसना वर दो।2।


विचलित ना मन हो तन हो प्रभु ना धन का अभिमान रहे,

हर पल श्री गुणगान करें प्रभु हे हर श्री पद ध्यान रहे ।3।


हम शरणागत, याचक हैं प्रभु जी इतना उपकार करो,

डगमग डोल रही अब नाव तुम्ही भव सागर पार करो।4।


अगम अगोचर व्याप्त चराचर चेतन सत्य सनातन हे,

जय जय हे दशग्रीवशिरोहर हे अवतार सदातन हे ।5।


परम मनोहर हे सुख दायक जीवन का बस सार तुम्हीं,

चरनन पास रखो रघुनंदन जीवन का भरतार तुम्हीं।6।


तुम बिन नाथ अनाथ पड़े हम आकर दास सनाथ करो,

तुम बिन हार सुनिश्चित है प्रभु आकर के जय माथ करो।7।


किस विधि ध्यान करें हम ईश्वर है मति मूढ़ अबोध सुनो,

जप तप ध्यान नहीं वश में मन मोह भरे अनुरोध सुनो।8।


दरसन को मन तो तरसे प्रभु आन बसो मन मंदिर में,

धड़कन नाम रटे रघुनंदन आन बसो तन मंदिर में।9।


निबिड़ निशा पथ कंटक कानन आ करके प्रभु राह धरो,

जय जय हे दशग्रीवशिरोहर आकर के प्रभु बाँह धरो।10।

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दुर्गा शंकर ईजारदार(जायसवाल)

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मूरत राम नाम के--सार छंद


मन मन्दिर मा राम नाम के, मूरत तैं बइठाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


राम नाम के माला जपके, शबरी दाई तरगे।

राम सिया के चरण पखारे, केंवट के दुख झरगे।

बन बजरंगबली कस सेवक, जघा चरण मा पाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।।


राम नाम के जाप करे ले, सुख समृद्धि सत आथे।

लोहा हा सोना हो जाथे, जहर अमृत बन जाथे।

जिहाँ राम हे तिहाँ कभू भी, दुख नइ डेरा डाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


एती ओती चारो कोती, प्रभु श्री राम समाये।

सुर नर मुनि खग गुनी गियानी, जड़ चेतन गुण गाये।

ये मउका नइ मिले दुबारा, जीवन सफल बनाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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तुलसी तोर रमायण- सार छंद


जग बर अमरित पानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


शब्द शब्द मा राम रमे हे, शब्द शब्द मा सीता।

गूढ़ ग्यान गुण गोठ गँजाये, चिटिको नइहे रीता।

सत सुख शांति कहानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सब दिन बरसे कृपा राम के, दरद दुःख डर भागे।

राम नाम के महिमा भारी, भाग भगत के जागे।।

धर्म ध्वजा धन धानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सहज तारथे भवसागर ले, ये डोंगा कलजुग के।

दूर भगाथे अँधियारी ला, सुरुज सहीं नित उगके।

बेघर के छत छानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।


प्रश्न घलो कमती पड़ जाही, उत्तर अतिक भरे हे।

अधम अनाड़ी गुणी गियानी, सबके दुःख हरे हे।

मीठ कलिंदर चानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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हरिगीतिका


तिथि आ गइस शुभ कुर्म द्वादश,पुस अँजोरी पाख के।

सम्वत् फलित बिस सौ असी, मैं याद रइहँव भाख के।

रघुकुल मुकुट दशरथ तनय, आसीन होही धाम मा।

अब भक्ति के शुभ जोत बरही, नित अयोध्या ग्राम मा।


मनमोहनी छबि रम्य अनुपम, देखही संसार हा।

सब नैन के खर प्यास मिटही, छा जही उजियार हा।

सब मनसुभा ला नित पुरोही, दीन के रखवार हा।

दुख झार मुड़ के पाप हरही, विश्व तारन हार हा। 


साखी बनिँन परघा डरिँन, आवव हमू ये बेर ला। 

मन मा बसालिँन राम मूरत, छोड़ जम्मों फेर ला।

नाचिँन सबो गाइँन सबो, बाँटिँन खुशी आनंद ला

हावय हिया उच्छाह बड़, भाखन मनी के छंद ला।

- मनीराम साहू 'मितान'

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