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Sunday, July 27, 2025

हरेली तिहार विशेष छंदबद्ध कविता

 



अजय अमृतांसु: हरेली तिहार


सावन के महिना हवय, आय हरेली आज।

पबरित हमर तिहार ये, बंद हवय सब काज।।

बंद हवय सब काज, बनत हावय चौसेला।

नाँगर बक्खर धोय, चढ़त हे नरियर भेला।

हावँय मगन किसान, खेत लागत मनभावन। 

आय हरेली आज , लगत हे सुग्घर सावन।


अजय अमृतांशु 

साधक,सत्र -3




परब हरेली मानबो, पहिली हमर तिहार। 

गुरहा चीला भोग बर, गरमागरम उतार।।

खोंचे डारा नीम के, बिपत टरे के आस।।

खेती के औजार ला, धो लव पूज पखार।।


गेंड़ी मा चढ़ के चलव, चिखला तरिया धार।

रचमच रचमच बोल हर, उतरे हिरदे पार।।

राँपा गैंती माँज लव, पूजव देके हूम।

देबर सुघर असीस ला, पुरखा आँय हमार।।


नीम डार ला खोंच दव, कुरिया  ठौर दुआर।

गुलगुल भजिया ठेठरी, बूँदी कढ़ी बघार।

धान पान सुघ्घर रहय, सूपा टुकनी टाँग।

जरी खवावव गाय गरु, होवय झन बीमार।।


हरियर हरियर गाँव घर, धान भरे कोठार।

कलुष कपट मन भाव ला, मया दिया मा बार।

हाथ जोर के लव मना, भाई बहिनी आज।

राजी खुशहाली रहँय, एक रहय परिवार।।


डॉ. दीक्षा चौबे



गीतिका छंद- *हरेली*


हे हरेली के परब जी, नीक लागय गाँव हा।

बड़ सुहावय खेत डोली, नीम बरगद छाँव हा।।

गीत सावन गात हे सुन, ताल लय मा झूम के।

हे मगन हलधर सबो अब, ये धरा ला चूम के।।


जात हें गउठान मनखे, थाल साजे हाथ मा।

हें करत पूजा किसानी, मिल जमो झन साथ मा।।

गाय गरुवा ला खवावँय, नून लोंदी पान ला।

माँगथें वरदान सुख के, कर अरज भगवान ला।।


आत हें लोहार भाई, सुख धरे त्योहार मा।

दूर बीमारी ले रहे बर, कील ठोके द्वार मा।।

आत हें राउत घलो हा, रख मया व्यवहार ला।

सुख सुमत बर द्वार खोंचे, नीम पाना डार ला।।


रचरचावत हे गजब जी, आज गेड़ी पाँव मा।

लेत हें लइका मजा बड़, ये परब के नाँव मा।।

ठेठरी खुरमी घरोघर, अउ बनय पकवान जी।

ये परब छत्तीसगढ़ के, आय शोभा शान जी।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 24/07/2025



*हरेली परब (सरसी छंद)*


छत्तीसगढ़ी परब हरेली, 

                       पहिली इही तिहार ।

आवौ जुरमिल संग मनाबो,

                        लेलव जी जोहार ॥


लिपे-पुते भिथिया हे सुग्घर, 

                         सवनाही पहिचान।

नाँगर बख्खर धोये माँजे, 

                      हमरो देख किसान।।

खेत खार हरियाली सोहय, 

                          धरती के सिंगार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली............


रच-रच-रच-रच गेड़ी बाजै,

                       मन मा खुशी समाय।

गाँव-गली मा रेंगय लइका, 

                          पारा मा जुरियाय ॥

अइसन खुशहाली के बेरा, 

                              होवत हे गोहार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली.............


डंडा अउ पचरंगा खेलय, 

                           फुगड़ी के हे जोर।

खो-खो रेस,कबड्‌डी खेलत,

                        उड़त हवै जी सोर।।

मया प्रेम मा जम्मों बूड़े, 

                            बरसत हावै धार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली..............


होय बियासी हरियर धनहा, 

                            सुग्घर खेती खार।

मोर किसनहा भइया देखव,

                         खुश होवै बनिहार।।

सावन महिना रिमझिम रिमझिम,

                            बुँदियाँ परे फुहार।

छत्तीसगढ़ी परब हरेली............


छंद रचना :-

बोधन राम निषादराज "विनायक".



: हरेली - कुण्डलिया 


हरियर लुगरा कस लगे, धरती के श्रृंगार।

खुशी छाय चारों मुड़ा, झूमें खेती-खार।

झूमें खेती-खार, छाय घर बन खुशहाली।

परब हरेली आय, सबो कोती हरियाली।

नाँगर बक्खर पूज, चढ़ावय भेला नरियर।

रोग कभू झन आय, रहय सब हरियर-हरियर।।


विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवांँ)



*हरेली तिहार*

        *रोला छंद*


बबा बिसाये बाॅंस, बौसुला बतर बनाये।

गाना गुरतुर गात,गजब गेड़ी सिरजाये।।

पोही दुधिया नार, बाॅंध के तेल लगाये।

गेड़ी रचरच बाज, सुने मा मन सुख पाये।।


सावन के अम्मास,हरेली परब मनायें।

नाॅंगर पूजा होय,मीठ चीला सब खायें।।

देवरास सब जाॅंय, मनायें ठाकुर देवा।

बइगा पूजा पाठ, करे समलाई सेवा।।


लखन लाल लोहार, गाॅंव मा घर घर जाये।

चौखट पीटे कील,धान अउ पइसा पाये।।

खोंच भेलवाॅं डार, घरोघर बइगा होरी।

मिले दान मा धान, सकेले बड़का बोरी।।


लइका गेड़ी साज, खोर निकले इतराये।

गेड़ी के आवाज़, रचारच बने बजाये।।

हरियर चादर ओढ़, सजे हे धरती दाई।

हरियर खेती खार, देख कुलके भौजाई।।


पुरुषोत्तम ठेठवार




हरियर-हरियर धान-पान हे, हरियर हमर हरेली।

सूता रुपिया करधन पहिरे, नाँचय सखी सहेली।।


खो खो फुगड़ी गेंडी बाजे, फेंकय नरियर भेला।

पागा पनही पहिर सियनहा, बइठे देखय मेला।।


लहर-लहर के लहरावत हे, खेत-खार हे धानी।

गात-ददरिया करमा साल्हो, भींजय रिमझिम पानी।।


बइला नाँगर औजार जमे, करथें साफ-सफाई।

पूजा करथें परब हरेली, जुरमिल दाई भाई।।


गाँव-गाँव हे आज हरेली , छाए हे खुशहाली।

गुरहा चीला भोग चढ़ावँय, टिकय सेन्दुर लाली।।


सदा रहय ऐ धरती हरियर, बरसय बढ़िया पानी।

फसल धान भरपूर होय गा, सुन किसान के बानी।।


चौका चंदन पूजन अर्चन, रीत हमर हे बढ़िया।

सदा सहेजन माटी पानी, हमन छत्तीसगढ़िया।।


गाड़ा गाड़ा देय बधाई, मान तिहार हरेली।

बाग बगीचा झुलवा झूलय, भावय ठेलक ठेली।।



रामकली कारे





आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।

सावन मास अमावस भाये, नाचे गाये सुग्घर।। 


पहिली तिहार छत्तीसगढ़ ये, रच रच गेड़ी बाजे।

नदी नाल बन बाग बगीचा, पेड़ पात सब साजे।।

करे सुवागत गाँव गली शुभ, बगर खुशी हर घर घर।

आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।।


खार खेत हर लहलहाय जब, होके बउग बियासी।

नाँगर बइला राँपा गैती, धो किसान मन हाँसी।।

सुख समृद्धि संदेश लाय ये, सबके अँचरा भर भर।

आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।।


नून पिसान ल पान खम्हारी, लोई सान खवाये।

गरुवा गाय कंदइल काँदा, मान सबो बड़ पाये।।

खोच लीम डारा मुहटा मा, रोग दोष लेवय हर।

आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।।


घरघुँदिया खो संग कबड्डी, फाँफाफुगड़ी भटकुल।

खेल छुवउला तिरिपग्गा सब, झूले झुलझुल रेचुल।।

दँउड़ कूद अउ रंग रंग के, खेले फेँके नरियर।

आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।।


घर के देवी देव सुमर शुभ, रोटी राँध बनाये।

कोठा डोली मान पाय बड़, संस्कृति हमर सिखाये।।

रहय राज खुशहाली सब दिन, धरय कभू झन तो जर।

आय हरेली दुल्हिन जस सज, पहिरे लुगरा हरियर।।


मनोज कुमार वर्मा

बरदा लवन बलौदाबाजार



*जग हरेली गीतिका छंद मा कोशिश*


आज हावय जग हरेली,मात गेहे खार गा।

खोंच दशमुर के चले हे,द्वार लिमवा डार गा।।

साज गेड़ी आज लइका,घूम झूमे गाँव मा।

रूख राई झूमरे मन,थोर पीपर छाँव मा।।


दौड़ बइला देख के मन,वाह वाही गात हे।

घेंच घाँटी मेछरावै, जोर के इतरात हे।।

फूगड़ी के खेल खेले,खोर नोनी हाँस के।

जाँच होथे साँच मा अब,हे परीछा साँस के।।


मान बाढ़ै शान बाढ़ै, मोर धरती मात हे।

जोन कोती देख तैंहर,डोंगरी  घन छात हे।

अब लगाले एक ठन गा,रूख दाई नाँव के।

कोन तरसे अब इहाँ, हाथ ममता छाँव के।।



तोषण चुरेन्द्र "दिनकर" 

धनगाँव डौंडी लोहारा


] कौशल साहू: *कुंडलिया छंद*


     *हरेली*


हरियर खेती खार हा, हरियर निमवाँ पान।

सावन अमवस दिन घड़ी, परब हरेली मान।।

परब हरेली मान, कलेवा चीला गढ़ ले।

नाँगर कृषि औजार, पूज के गेंड़ी चढ़ ले।।

बिल्लस खो खो खेल, फेंक बेला भर नरियर। 

जिनगी झन मुरझाँय, रहे मन हरियर हरियर।।

🌿🌿🌿🙏🙏🌿🌿🌿

✍️

कौशल कुमार साहू

फरहदा ( सुहेला )

जिला बलौदाबाजार -भा.पा.



कमलेश प्रसाद शरमाबाबू: कुंडलियाँ

नाँगर


नाँगर जूड़ा संग मा, हँसिया कुदरा धोय।

घर-घर मा जी भोग बर,‌गुरहा चीला पोय।।

गुरहा चीला पोय, हरेली आय अमावस।

सावन पहिली पाख,लगै मनभावन पावस।।

चंदन बंदन भोग, रहै सुख सब के जाँगर।

सुमरँय सबो किसान,नँदाबे तैं झन नाँगर।।


गेंड़ी 

तैंहा गेंड़ी खाप दे,बबा मयारू मोर।

सँगवारी के संग मा, चढ़ के जाहूँ खोर।

चढ़ के जाहूँ खोर, मजा बड़ आही मोला।

रच-रच मच के आज, बबा देखाहूँ तोला।।

करहूँ सेवा तोर, सदा दिन अब तो मैंहा।

सउँक आज तैं मोर, बबा कर पूरा तैंहा।।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

कटंगी-गंडई जिला केसीजी

छत्तीसगढ़



 !!!! तबहो हमर हरेली हे !!!!


हमर खेत चिमनी जामे हे, तबहो हमर हरेली हे।

जघा जघा टावर खामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


आवय बादर हाँसत कुलकत, थमके नाचय गाँव हमर,

ओकर ठौर धुआंँ लामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


बर पीपर के छाँव थिरावन, बइठे चिरगुन गात रहँय,

जेती देखव अब घामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


आत रहय जुड़ जुड़ पुरवइया, सरलग हमर पछीती ले,

अब ओला फुतकी झामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


बाजय गर मा ठिनठिन-ठिनठिन, गउ माता मन चरत रहँय।

उंँकर सहारा अब रामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


मया गंँवागे झिल्ली कचरा, खोजत हवय ‘मितान’ नँगत, 

अब अद्धी पउवा थामे हे, तबहो हमर हरेली हे।


-मनीराम साहू ‘मितान’




: दोहा -"हरेली"

                   *****

नांगर  के  पूजा   करे, चीला   हूम   चढ़ाँय।

सोंहारी अउ गुलगुला, बइठ सबो झन खाँय।।


जम्मों कृषि औजार के, पूजा करे किसान।

खावन सब झन पेट भर, माँगे अस वरदान।।


पूजा  नांगर  के   करे, हरियर   होगे खार।

हमर किसनहा के इही, पहिली आय तिहार।।


खेती के औजार के, अपन जान उपकार।

आदर  अउ  सम्मान  ले, करे उतारा भार।।


बउरे खेती काम मा, जतका चीज किसान।

समझ किसानी मीत अउ, करथे बड़ गुनगान।।


पालन सबके हे करे, उपजा के जी धान।

सबो जीव के आसरा, पूरा करे किसान।।


हरियर चारों खूँट अउ, हरिया जाथे  खार।

तभे  हरेली  के   परब, आथे  पाँव  पसार।।


हरियर  डोली‌  खेत  के, सुघरइ  बाढ़े  घात।

होके मगन किसान के, परब होय सुरुआत।।

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द्रोपती साहू सरसिज 

महासमुंद छत्तीसगढ़


 विष्णुपद छंद -"हरेली"

                    *******

आय हरेली तिहार पहिली, हमरे किसान के।

बइला खाथे नुन गठरी अउ, लोंदी पिसान के।।


हमर छत्तीसगढ़ हरियर हे, अक्खड़  निसान हे।

असल  चिन्हारी  धान  फसल, बोंथे  किसान  हे।।


आरुग भुइयाँ के मुरमी ला, राखें दुवार मा।

औजारन के पूजा करथें, बिहना जुवार मा।।


नाँगर बक्खर कुदरी कोपर, सजथे दुवार मा।

येमन  के   पूजा  हा  होथे, गेंड़ी  तिहार  मा।।


बुता  करे  नांगर  कोपर ले, खेत  खार  मन के।

झरथे बुता किसानी के जब, तब रखे जतन के।।


घर के मनखे मन जुरिया के, माने तिहार ला।

गुरहा  चीला भोग  लगाथें, सबो  औजार ला।।


जतका हवय किसानी साथी, इखर उपकार ला।

भूलय नइ तो करे किसनहा, चुकता उधार ला।।


भारी  आदर  देवत   पूजा, करथे   तिहार  मा।

नाम हरेली हरियर हरियर, रुख खेत खार मा।।

                      *******

द्रोपती साहू "सरसिज"



-- जयकारी छंद


आये हावय हमर तिहार।

खुशी मनालव मिल परिवार।।

घर अँगना मा चउँक पुराय।

गुरहा रोटी बड़ ममहाय।।


धोवँय नाँगर कोपर आज।

बइला मन ला देवँय साज।।

जाँय खवाये बर गउठान।

लोंदी भर-भर नून पिसान।।


बइगा खोंचय लिमवा डार।

दय असीस सब दुख ला टार।।

चीला रोटी सबो बनाँय।

पूजा करके भोग लगाँय।।


नाँगर बइला हवय मितान।

मान गौन सब करै किसान।।

जुड़े किसानी ले गा आस।

सबके मन मा भरै उजास।।


खेलयँ सुग्घर गेंड़ी खेल।

मया पिरित के होवय मेल।।

हरियर-हरियर खेती खार।

सावन महिना आय तिहार।।


खीला ठोंकय तब लोहार।

जावय सबके घर-घर द्वार।।

हाथा देवँय चउँर पिसान।

माथ नवाँ मागँय वरदान।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)




 पुरुषोत्तम ठेठवार: *हरेली*


सावन मास अमावस के दिन, आवै जबर हरेली।

अपन संग मा ये तिहार हर, लावै खेला-खेली।।


लइका मन खोंचँय दुवार मा, लीम-पान के डारा।

खुश हो के मनखे मन झूमँय, गली गाँव चौबारा।।


जहाँ हरेली आइस लइका-मन के वारा-न्यारा।

रच-रच रच-रच गेंड़ी चघ के, किंदरँय आरा-पारा।।


नान-नान लइका मन खेलैं, इत्ता-इत्ता पानी।

घर मा राँध-राँध के खावैं, चिजबस आनी-बानी।।


नोनी मन परछी मा मिलके, खेलँय फुगड़ी सुग्घर।

बइला ला नहवा के चेलिक, कर दँय उज्जर-उज्जर।।


राँपा गैंती बक्खर नाँगर, माँज-माँज के धोवँय।

गुरहा चीला के परसादी, सरधा भाव चघोवँय।।


दूर करै दुख के अँधियारी, सुख अँजोर बगरावै।

हरे हरेली सबके पीरा, दया-मया बरसावै।।


*अरुण कुमार निगम*




*हवय हरेली गढ़ तिहार*


हवय हरेली गढ़ तिहार।

पानी बादर करय मार।

हरियर डारा खेत खार।

नदिया नरवा बहे धार।


सावन महिना झोर-झोर।

करय पवन हे जोर-शोर।

नोनी  के  फूगड़ी  खेल।

बाबू    गेड़ी   रेल   पेल।


नाँगर बइला खेत खार।

आगी   पानी हूम  डार।

खनखन घाँघर साज बाज।

हमर   छत्तीस गढी   राज।


झुलवा  सुन्ना   लीम  डार।

नवकैना गिन  दिखय चार।

बिसरय   संगी  हे  लुकाय।

खोजत खोजत दिन पहाय।


पेड़  लगाले  मिलय छाँव।

हरियर दिखही हमर गाँव।

हारे  झिन  गा  थके पाँव।

सरग  बरोबर सबो  ठाँव।



तोषण चुरेन्द्र "दिनकर" 

धनगाँव डौंडी लोहारा




विष्णुपद छंद -"हरेली"

                    *******

आय हरेली तिहार पहिली, हमरे किसान के।

बइला खाय नून गठरी अउ, लोंदी पिसान के।।


हमर छत्तीसगढ़ हरियर हे, अक्खड़  निसान हे।

असल  चिन्हारी  धान  फसल, बोंथे  किसान  हे।।


आरुग भुइयाँ के मुरमी ला, राखें दुवार मा।

औजारन के पूजा करथें, बिहना जुवार मा।।


नांगर बक्खर कुदरी कोपर, सजथे दुवार मा।

येमन  के   पूजा  हा  होथे, गेंड़ी  तिहार  मा।।


बुता  करे  नांगर  कोपर ले, खेत  खार  मन के।

झरथे बुता किसानी के जब, तब रखे जतन के।।


घर के मनखे मन जुरिया के, माने तिहार ला।

गुरहा  चीला भोग  लगाथें, सबो  औजार ला।।


जतका हवय किसानी साथी, इखर उपकार ला।

भूलय नइ तो करे किसनहा, चुकता उधार ला।।


भारी  आदर  देवत   पूजा, करथे   तिहार  मा।

नाम हरेली हरियर हरियर, रुख खेत खार मा।।

                      *******

द्रोपती साहू "सरसिज"




1: सरसी छन्द 


हरियर हरियर धरती दाई, करे हवै श्रृंगार।

हरियर हरियर दिखत हवै जी, सबके  खेती खार।।

हरियर हरियर जंगल झाड़ी, हरियर दिखे पहार।

हरियर हरियर पात पेड़ के, हरियर होगे डार।।

हरियर फरियर मनखे मन के, लागय मन हा आज।

सबों एक मन आगर अब तो, करही खेती काज।।

धरती ला अउ श्रृगारे बर, चलो लगाबो पेड़।

खाली झन राहय कखरो अब, खेत खार के मेड़।।

हरियर हरियर ये धरती के, उजड़े झन श्रृंगार।

नइ ते छीन जही मनखे बर, जीये जे आधार।।


जगन्नाथ ध्रुव 

घुँचापाली


दोहा छंद- कारगिल युद्ध विजय दिवस विशेष रचना

 दोहा छंद- कारगिल युद्ध 

विजय दिवस विशेष रचना


घुसपैठी मन पाक के, घुस गिन जब कश्मीर।

भारतीय टुकड़ी हमर,  देइन उन ला चीर।।


विजय पाय बर युद्ध मा, दउँड़िन सीना तान।

कतको सैनिक देश बर, खो दिन तुरते प्रान।।


धाँय-धाँय गोली चलिस, आइस मउका फेर।

मार गिराइन खोज के, बइरी मन ला घेर।।


बड़े-बड़े उन तोप ले, करत रहिन जब वार।

तभो कारगिल युद्ध मा, नइ पाइन गा पार।।


बम बारी होवत रहिस, दुश्मन होगिन ढ़ेर।

वीर सिपाही काल बन, गरजँय बब्बर शेर।।


याद करव संगी तुमन,  महायुद्ध के बात।

भागिस पल्ला पाक हा, खाइस जभ्भे मात।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

नारी मनके गहना गुठिया

   नारी मनके गहना गुठिया


हरिगीतिका-छंद 


नारी करै श्रृंगार तब, मोहा जथे भगवान हा।

कामी बने पाछू परै, बोहा जथे इन्सान हा।।

पत्नी बने तो सुख सबो, माया बने तो नाश हे।

सोला करै श्रृंगार तो, राजा प्रजा सब दास हे।।


कुमकुम महुर सिन्दुर लगै, अउ मेंहदी बड़ सोहथे।

चुक आँख मा काजर लगै, बिँदिया फुली मन मोहथे।।

साटी फबै बड़ गोड़ मा, ककनी बनुरिया हाथ मा।

चूरी कलाई मा सजै, अँइठी पटा के साथ मा।।


गजरा लगै जब बाल मा, तब मेनका भी फेल हे।

बिंदी लगै जब माथ मा, रंभा डरै नइ मेल हे।।

टोंटा म रुपिया हार हे, तब उरवशी शरमाय हे।

सब अप्सरा घर मा हवै, श्रृंगार जब पोहाय हे।।


पहुँची बिना सुन्ना भुजा, झुमका बिना जस कान जी।

श्रृंगार बिन नारी नहीं, कोठी बिना जस धान जी।।

नखशिख सजै श्रृंगार सब, कुछ-कुछ तभो रीता हवै।

"बाबू" कहै तैं राम बन, ता तोर घर सीता हवै।।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

 कटंगी-गंडई जिला केसीजी छत्तीसगढ़-

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  कमलेश प्रसाद  शरमाबाबू कुंडलियाँ


नारी श्रृंगार 


नारी के शोभा बढ़ै, करथे जब श्रृंगार।

साटी बिछिया मुंदरी, नथली झुमका ढार।।

नथली झुमका ढार, संग मा अवरी दाना।

ककनी करधन हार, सुहावै टिकली नाना।।

गोंदा दवना खोंच, कान मा पहिरे बारी।

काजर आँजय आँख ,फबै चुक ले सब नारी।।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

कटंगी-गंडई जिला केसीजी

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  पुरुषोत्तम ठेठवार *नारी श्रृंगार*

               *रोला छंद*


फूली सोहय नाक, पाॅंव मा पैरी बाजय।

झूलय बाली कान, कमर करधनिया साजय।।

चूरी भरभर हाथ, लाल हरियर अउ नीला।

रिगबिग टिकली माथ, फबे तन लुगरा पीला।।


गर सोना के हार, रचाये माहुर सुग्घर।

दिखय चेहरा गोल, लगे चंदा अस उज्जर।।

खुले बने कलदार, नैन मा ऑंजे कजरा।

करिया करिया केश, छाय जस करिया बदरा।।


बिछिया ॲंगरी पाॅंव, बढा़थे शोभा भारी।

बाजू बाजूबंद, बाॅंधथे‌ बज्जर नारी।।

नारी के श्रृंगार, देख दरपन सकुचाथे।

नारी गुरतुर गोठ,बोल के प्रीत बढा़थे।।


नारी के श्रृंगार, देख तपसी तप डो़ले।

कपटी मन के भेद, रूप नारी के खोले।।

कर नारी श्रृंगार, अपन माया बगराये।

मनुज दनुज अउ देव, तभे नारी गुन गाये।।


नारी घर के शान, बिना नारी जग सुन्ना।

नारी के सम्मान, करव सुख मिलही दुन्ना।।

नारी के गुन गाॅंय, वेद अउ पबरित गीता।

नारी कमला मात, सती सावित्री सीता।।


        *पुरुषोत्तम ठेठवार*

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  मुकेश  कुंडलिया छंद-- नारी सिंगार   


बाली झुमका कान मा, टिकली माथ लगाय।

नारी के सिंगार हा, सबके मन ला भाय।।

सबके मन ला भाय, सोन के माला मोती।

चुकचुक लागय रूप, जाय जब एती ओती।।

बिछिया साजे पाँव, होंठ मा सुग्घर लाली।

मन ला मोहत जाय, कान के खिनवा बाली।।


फीता गजरा बाल मा, अउ गर सोहय हार।

सुग्घर बेनी गॉंथ के, करे साज सिंगार।।

करे साज सिंगार, पाँव साँटी अउ टोड़ा।

शोभा पाये पोठ, हाथ मा अँइठी जोड़ा ।।

नथनी पहिरे नाक, कभू नइ राहय रीता।

क्रीम पावडर गाल, मूड़ मा गजरा फीता।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

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  अश्वनी कोसरे  नारी श्रृंगार- प्रदीप छंद


परंपरा आदी ले बनगे, सुघर साज *सिंगार* के |

मँगनी जँचकी बिहाव मेला, उत्सव परब तिहार के||


गहना गोंटी साजैं गोरी,  जावँय सब ससुरार मा |

पहिरँय टोड़ा करधन रुपिया, काया के *सिंगार* मा||


कान म खिनवा हाथ म ककनी , साँटी पहिरँय पाँव गा|

छनर छनर झाँझर झनकावत, गोरी घूमँय गाँव गा||


बेनी फूल गँथाए गजरा, महर महर ममहाय गा|

मुटियारिन के होंठ गुलाबी, देख सबो मुसकाँय गा||


गर गरलगी गुथाए हावँय, दुलहिन ढ़ाँके चेहरा| 

खोपा खोंचे हावँय कलगी, झूलत राहय शेहरा||


हँसली दुलरी तिलरी सूता, सूर्रा अउ कलदार गा|

मोहन माला कंठी माला, सोना रानी हार गा||


मुकुट मटुकिया मुड़ मा खापैं, मुँगुवा मोती माँथ मा|

कंगन काँसल ककनी चूरी, मुँदरी अँगरी हाँथ मा||


साजैं चूरी बहुँटा पहुची, हाँथ घड़ी ला बाँह मा|

कटहर लच्छा टोड़ा पैरी, पहिरे रहँय उछाह मा||


कमरबंद कनिहा मा पहिरँय, प्रसव बाद मा पोठ गा|

छै दस लर के चाँदी करधन, कमर पटी हा रोठ गा||


खिनवा तरकी टाप ढार अउ, झुमका बाली कान मा

बरे बिरन माला ला डारँय, अपन पिया के मान मा||


आनी बानी घुँघरू काँटा, चुटकी बिछिया पाँव मा|

राहय घलो गोदना गहना, सुख सुहाग के नाँव मा||


संस्कृति के पोषक हें नारी, चलन हवय जी गाँव मा|

कतको गहना गुरिया पहिरँय, मया पिरित के छाँव मा|


अश्वनी कोसरे 'रहँगिया' कवर्धा कबीरधाम

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  अश्वनी कोसरे  कवित्त छंद- नारी श्रृंगार


ढोलकी हा घेंच सँटे, कोतरी हा पाँव डँटे, 

कान मा लटे हे ढार, झूलनी हे हाँथ मा |


बाजूबंद नागमोरी, कड़ा चैन बाँधे डोरी,

मूड़ी माँग मोती सौहै, मूंगा रहै साथ मा|


नंग भरे सोने आँखि, उड़ै न लगा पाँखी,

अंग ला सजावैं गोरी, टिकली रहै माथ मा|


झबली गँथाए बेनी, गजरा खोंचे साथ मा,

ककनी बनुरिया हे, चूरी पटा हाँथ मा|



टोंड़ा लच्छा पैजन हे, साँटी पैरी पाँव मा

पहिर समहर के, जावैं गोरी गाँव मा|


बाढ़य मया पिरित, राहँय सुख छाँव मा,

हाँथ मा रचे महेंदी, महाउर पाँव मा|


पति हे सुहागन के, हिरदे चित ध्यान मा,

गोदना गोदाये राहैं, पिया जी के मान मा|


अश्वनी कोसरे 'रहँगिया' कवर्धा कबीरधाम

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  डी पी लहरे सरसी-सार छन्द गीत


सोना चाँदी हीरा मोती, नारी के सिंगार।

गर मा सोहे मन ला मोहे, नौ लखिया के हार ।।


माँघ लाल सेंदूर सजाथे, तब फबथे गा नारी।

आनी-बानी गहना-गोंटी, नारी मन के भारी।।

खिनवा झुमका ढरकी लुरकी, झुले कान के ढार।

सोना चाँदी हीरा मोती, नारी के सिंगार।।


फबे नाक मा नथनी फुल्ली, बेनी बर हे गजरा।

होंठ रचावँय लिपस्टिक मा, आँखी बर हे कजरा।

इसनु पावडर लगे गाल मा,रूप दिखे उजियार।

सोना चाँदी हीरा मोती, नारी के सिंगार।।


ऐठी बहुँटा चूरी कंगन, खनखन खनखन खनके।

हर्रइया हा खुले हाथ मा, चमचम मुँदरी चमके।

अंग अंग मा खिले गोदना, जुड़े मया के तार।

सोना चाँदी हीरा मोती, नारी के सिंगार।।


टोंड़ा साँटी  पैजन पैंरी, सजे गोड मा लच्छा।

कटहर चुरवा चुटकी बिछिया, लागे सब ला अच्छा।

सातो लर के कनिहा करधन,हे गहना मा सार।

सोना चाँदी हीरा मोती, नारी के सिंगार।।


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

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  ओम प्रकाश अंकुर नारी के गहनागुठा 


     (  सार छंद )


होथे पहिचान सुहागन के, सिंगार सुघर सोला।

धन धन हावय भाग उँकर हा, स्वामी चाहय वोला।

भरथे सुघ्घर नारी मन हा,अपन मांग मा टीका।

कर लै कतको सिंगार भले, येकर बिन हे फीका।‌।


लुरकी झुमका करनफूल अउ, तरकी लुलुड़ी बारी।

धारन करथे नीक कान मा, बढ़िया दिखथें नारी।।

हावय बाहाँ मा पहुँची अउ, कॅंगन हाथ मा गोरी।

बहुटा ताबीज कड़ा करधन, तिरिया तोर तिजोरी।‌


चमकै बिंदी तोर माथ मा,काजर आँजे आँखी,

दिखथस तॅंय हा बने परी कस,हावय जइसे पाँखी।

तोर हार हा अइसे लगथे,जलत हवय जस जोती।

नथली अब्बड़ चमकत रहिथें, पहिने हस तॅंय मोती।


चन्दा कस मुख हावय सुघ्घर, चमचम चमकै माला।

क्रीम पाउडर गजब लगावय, मन ला मोहैं बाला।।

लाल पान पहिने अँगरी मा,पिपर पान अउ छल्ला।

होवत हावय तोर रूप के,गजब गाँव मा हल्ला।


खुलै पैरपट्टी अउ लच्छा,चुटकी बिछिया पैरी,

घात सुघर तॅंय हस वो गोरी,जलत हवय सब बैरी।

तोर हाथ मा गजब सुहावय,चूरी अँइठी टोंड़ा।

गर मा सूॅता मोतीमाला,खेलत हस तॅंय गोड़ा।।


कनिहाँ के ऊपर मा सोना,सुघ्घर पहिने जाथे।

तन मा येला धारन करथें,सुम्मत बिचार आथे।।

चांदी मन के आभूषण हा,अवगुन दूर भगाथै।

कनिहाँ के नीचे मा पहिने,येहा गजब सुहाथै।।


होथें किस्मत वो नारी के, पति के जेहा    प्यारी।

जिनगी जीथें सुख सुम्मत ले, गोरी हो या कारी।।    

                 

                ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

                    सुरगी, राजनांदगांव

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  पात्रे जी *


आल्हा छंद- *नारी के गहना*


आल्हा छंद लिखे हौं संगी, पढ़ लेहू सब गुनिक सुजान।

नारी के गहना के बरनन, गजानंद जी करय बखान।।


आठो अंग सजावय गहना, सुग्घर मुड़ से लेके पाँव।

आवव तुँहला हवँव बतावत, एक-एक कर सबके नाँव।।


मुड़ मा सिंदूर माँगमोती अउ, टिकली बिंदी माथ सुहाय।

कान म तरकी झुमका झूले, नाक म फुल्ली खिनवा भाय।।


नौलक्खा के हार गला मा, धनमाला सुतिया कलदार।

कटुआ चंपाकली दुलारी, मंगलसूत्र फबे हे यार।।


बाँह नाँगमोरी अउ बहुटा, लपटे पहुची बाजूबंद।

कलिवारी ताबीज घलो हा, गहना आय गला के चंद।।


हाथ कंगना चूड़ी ककनी, बनोरिया हर्रइया भाय।

हाथफूल अउ चेन कड़ा हा, सुग्घर ये हा हाथ सुहाय।।


सात लरी के कमर करधनी, नारी के ये सुख सिंगार।

सोहे गजब कमरपट्टा हा, कमर लपेटा गजबे मार।।


पाँव म पैरी साँटी टोड़ा, बिछिया लच्छा अउ पैजेब।

राजमोल के गहना पहिने, मिट जाथे मन ले सब ऐब।।


छत्तीसगढ़िया नारी मन के, ये सब सुग्घर गहना आय।

लिखके आल्हा छंद म संगी, गजानंद हे आज बताय।। 


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 

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  पात्रे जी *


ताटंक छंद गीत- *नारी के गहना*


गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।

सोना चाँदी हीरा मोती, करे शौक ला पूरा हे।।


कारी कजरा आँखी आँजे, गजरा खोफा मा फूले।

नाक म नथनी फुल्ली खिनवा, कान म झुमका हा झूले।।

लहरावत बेनी हर लागे, छेड़त तान तमूरा हे।

गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।।


हार गला मा नौलक्खा के, गोरी तन ला हे सोहे।

ऊपर ले सिंगार सादगी, पति परमेश्वर ला मोहे।।

मुस्कावत हे मुचमुच सुग्घर, मन के मगन मयूरा हे।

गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।।


पहिरे बाजूबंद बाँह मा, ताबीज नाँगमोरी ला।

बहुटा पहुची कलिवारी हा, फबे गजब के गोरी ला।।

नारी बर गहना के आगे, सुन सब चीज धतूरा हे।

गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।।


लाली पीली चूड़ी खनखन, खनके हाथ कलाई मा।

कंगन ककनी हर्रइया हा, इतराये सुघराई मा।।

कमर करधनी झटका मारे, हिलगे मया कँगूरा हे।

गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।।


पाँव म पैरी छनछन बाजे, पैजब गीत सुनाये हे।

साँटी टोड़ा लच्छा बिछिया, सुन लौ राज बताये हे।।

गजानंद जी हँस ले गा ले, ये जिनगी तो चूरा हे।

गहना-गोटी बिन नारी के, तन सिंगार अधूरा हे।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 

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  सरसी छन्द गीत- आनी-बानी गहना गोठी (२२०७२०२५)


मन ला मोहत हावय संगी, सुग्घर रूप निखार ।

आनी-बानी गहना गोठी, नारी के श्रृंगार ।।


नाक कान मा नथनी बाली, रुनझुन पइरी पाॅंव ।

दुनों हाथ मा चूरी खनकॅंय, झूमॅंय जम्मों गाॅंव ।।


माथा मा टिकली हा सोहय, सोहय गल मा हार ।

आनी-बानी गहना गोठी, नारी के श्रृंगार ।।


खोपा के गजरा बड़ सुग्घर, महर-महर ममहाय ।

अपन डहर नित खींचय संगी, कोनों बच नइ पाय ।।


ये दुनिया के रीत पुरानी, कर लव मया- दुलार ।

आनी-बानी गहना गोठी, नारी के श्रृंगार ।।


करधन कंगन बिछिया मुॅंदरी, लुगरा हरियर लाल ।

पहिरे ओढ़े निकलय गोरी, नागिन जइसे चाल ।।


नखरावाली हें दिलवाली, देखव ये संसार ।

आनी-बानी गहना गोठी, नारी के श्रृंगार ।।


काजर ला ऑंखी मा ऑंजॅंय, मुॅंहरंगी ला होठ ।

टोरा ला मनटोरा पहिरे, लच्छा ऐंठी मोठ ।।


तन के शोभा हा बढ़ जाथे, मिलथे खुशी अपार ।

आनी-बानी गहना गोठी, नारी के श्रृंगार ।।



✍️छन्दकार, गीतकार व लोकगायक🙏

ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '

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  राजेश निषाद छन्न पकैया छंद - नारी सिंगार 


छन्न पकैया छन्न पकैया, सुनलव मोरो कहना।

आनी बानी हावय संगी, नारी मन के गहना।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, आँखी आँजय कजरा।

होंठ रचावय लाली संगी, बेनी गाँथय गजरा।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, अँगरी पहिरय मुँदरी।

खिनवा बाली झुलय कान मा, सुग्घर दिखथें सुँदरी।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, कमर बँधे करधनिया।

टोड़ा चुटकी लच्छा साँटी, बजे पाँव पैजनिया।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, गीत मया के गाथे।

चूड़ी कँगना पहिर हाथ मा, कनिहा ला मटकाथे।।


छन्न पकैया छन्न पकैया, टिकली माथा दमके।

नथली फूली फभे नाक मा, चंदा जइसे चमके।।


राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद रायपुर

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  तुषार वत्स 🥰🌹 *नारी सिंगार*

*लावणी छन्द*

गहना पहिरे सुग्घर दिखथे, होवय कोनो जी नारी।

कान नाक गर हाथ गोड़ मा, लादे रहिथे बड़ भारी।।


टोंड़ा साँटी अइॅंठी बिछिया, बहुॅंटा पहुॅंची अउ करधन।

किसम किसम के गहना भावय, माई लोगिन के तन मन।।


सोना चाॅंदी महॅंगा अड़बड़, लगथे रुपिया सौ कोरी।

तभो पहिर इतरावत रहिथे, गाॅंव शहर के सब गोरी।।


टिकली फुॅंदरी कुमकुम लाली, कमती गहना ले नोहय।

लगा जेन ला नारी मन हा, स्वामी के हिय ला मोहय।।


हमर राज के गहना मन के, कहिहूॅं कतका मॅंय कहिनी।

मान बाढ़थे पहिरे जब भी, दाई दीदी अउ बहिनी।।

*तुषार शर्मा "नादान"*

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*नारी सिंगार*


सरसी छंद 


लाये हँव मैं सबो सवांँगा, करले तैं सिंगार |

पुतरी कस दिखबे तैं सुग्घर, गोरी रूप निखार ||


चंदा अइसन चेहरा चमके, सूरज टिकली माथ |

झमकत बिजली कान पहिर ले,नाक जोगनी साथ ||


तरिया डबरा उज्जर रुपिया , झटकुन नरी सँवार |

रद्दा बाँह बहुँँटिया फबही ,नरवा सूँता हार || 


अशोक कुमार जायसवाल 

भाटा पारा

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  विजेन्द्र दुर्मिल सवैया - नारी के श्रृंगार 


बिछिया मुँदरी अँइठी कँगना,फँभथें गहना महिला मन ला।

गर मा रुपया पुतरी तिलरी,चमकाय बने झुमका तन ला। 

अउ पाँव जड़े पइरी झनके,दमकाय बने घर आँगन ला।

सब अंग खिले गहना गुरिया,महकाय बने मन कानन ला।

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवांँ)

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  गुमान साहू लावणी छन्द

।।गहना आनी बानी।।


रिकिम रिकिम के गहना पहिरै, सुग्घर देखव सब नारी।

हीरा मोती सोना चाँदी, रतन जड़े बड़ सँगवारी।।


किलिप मांगमोती हा सर के, शोभा ला खूब बढ़ावय।

नागिन जस बेनी मा गजरा, खोपा मा कभू लगावय।।


माथा टिकली चमके चम-चम, जइसे जी चाँद सितारा।

लाली सेंदुर सजे मांग मा, आँखी मा काजर धारा।।


ऐंठी ककनी पटा कंगना, चूड़ी बड़ रंग बिरंगी।

खन-खन खनके सबो हाथ मा, अँगुरी मा मुँदरी संगी।।


पइरी लच्छा टोंड़ा सांटी, बजै पाँव मा पैजनिया।

सजै गोड़ के अँगुरी बिछिया, कनिहा पहिरै करधनिया।।


नाक कान मा फूली नथनी, खिंनवा लटकन हा लटके।

बाली झुमका ढार पहिर के, लगथे नारी मन हट के।।


गर मा सूता हार रूपिया, नौलक्खा अउ कलवारी।

बाँह नागमोरी अउ पहुची, पहिरै बहुटा ला नारी।।


सबले बड़ के हावै संगी, लज्जा नारी के गहना।

येकर बिन हे सब्बो फीका, सुन लौ सब दीदी बहना।।


- गुमान प्रसाद साहू 

- समोदा (महानदी) 


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मत्तंगयद सवैया


।।सोलह श्रृंगार।।

कान फभै खिनवा झुमका लटकै बड़ सुग्घर देखव बाली।

माथ लगै टिकली जस चाँद लगावय माँग म सेंदुर लाली।

हार गला हसुली पुतरी रुपिया सुतिया अउ रेशम काली।

हाथ पटा ककनी पहुची अँगुरी मुँदरी पहिरै नग वाली।।


पाँव लगावय लाल महाउर काजर आँख करै कजरारी।

गोड़ म पैजनिया छम बाजय राह चलै पहिरे जब नारी।

नाक फभै नथली चमकै जस चाँद करै रतिहा उजियारी। 

हाथ कड़ा कँगना खनकै बहुटा हर बाँह बँधे बड़ भारी।।


- गुमान प्रसाद साहू 

- समोदा (महानदी)

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दोहा छंद - नारी सिंगार (सुधार)


लक्ष्मी उहाँ बिराजथे, नारी करे सिंगार।

बेटी होय गरीब के, देवय रूप निखार ।।


सजे धजे बिन नइ रहय, हमर तुँहर परिवार।

खर्चा बाढ़य घर लुटे, मुड़ मा चढ़य उधार।।


फूली चाही सोनहा, पहुँची चांदी बाँह।

रुपया माला गर चढ़े, देखव तहाँ उछाह।।


बिछिया दूनो अँगुरिया, साँटी पहिरे पाँव।

छमक छमक बेटी बहू, किंदरय मइके गाँव।।


काजर आँखी आँज के, खिनवा कान झुलाय।

कनिहा करधन बाँध के, दौना ला देखाय।।


मुँदरी चूरी मेंहदी, शोभा हाथ बढ़ाय।

सुग्घर मया पिरीत के, रोज खुशी बरसाय।।


सोला सिंगार हा हमर, संस्कृति के पहिचान।

गोसाइन बेटी बहू , नारी सरुप महान।।


मुँदरी अँगरी पहिर के, बंँधना मा बँधजाय।

सात जनम गठ जोड़ के, जुग जोड़ी कहवाय।।


करधन कनिहा मा कसे, चेत करे परिवार।

जइसे रक्षा बर अड़े, सीमा मा रखवार।



हीरालाल गुरुजी "समय"

छुरा जिला-गरियाबंद

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  नंदकिशोर साव  साव *

सरसी छन्द - नारी श्रृंगार 


रंग रंग के नारी मन के, साज सवाँगा आय।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


पैरी लच्छा चुटकी साँटी, बिछिया सोहय पाँव।

कनिहा मा करधन छै लर के, मोहय सगरो गाँव।।

अँगरी मुँदरी पहुँची ककनी, चूरी कंगन भाय।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


बाहु बहुंटा अँइठी आला, दीदी करे पसंद।

गला ढोलकी सुर्रा सूंता, सुग्घर खुले ननंद।।

पुतरी तिलरी संकरी बिना, सिंगार यहू काय।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


गल मा मंगलसूत्र पहिन के, चले सुहागिन नार।

माथा सोहय लाली सेंदुर, अमर रहे भातार।।

फबय मांगमोती पटिया जी, नथनी फुल्ली माय।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


खिनवा बारी टिकली खूंटी, लुरकी लवंग फूल।

झूलत झुमका कान हवय जी, रहिथे नंगत खूल।।

खोपा गजरा फूल मूड़ मा, सुवा पाँख खोँचाय।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


हरियर लाली लुगरा पोल्खा, सजथे नारी देह।

ममता के वो मूरत लगथे, रखथे सब ले नेह।।

कर सोलह सिंगार निकलथे, घर लक्ष्मी कहलाय ।

गोड़ मूड़ ले पहिरे ओढ़े, तिरिया शोभा पाय।।


नंदकिशोर साव 

राजनांदगाव

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  प्रिया *नंदावत गहना* *सर्वगामी सवैया*


कौड़ी न बिंदी न सिंगी न कंघी सुना माथ राखे कहाँ ये गँवागे।

ना कान बाली नहीं नाक फुल्ली बुलाकी घलो आदमी हा भुलागे।।

सुर्रा पटा ढोलकी नागमोरी सुने नाम कोनो त हाँसी हमागे।

ऐठी कड़ा पाँव पैरी न बाजे जमाना नवा आय जम्मो सिरागे।।


प्रिया देवांगन *प्रियू*

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  Jaleshwar Das Manikpuri  छत्तीसगढ़ी सिंगार रोला 

खिनवा पहिरे कान,नाक मा नथुली साजे।

बहुँटा पहिने बाँह,,पाँव मा पइरी बाजे।।

टिकली साजे माँथ ,माँग म सोनहा मोती।

कनिहा करधन हाफ, पहिर के जावय ओती।।


ढरकव्वा हे कान, नाँगमोरी अउ सुतिया ।

मटकावत हे चाल,फबे हे चांदी रुपिया।।

हरियर पिंवरी लाल, चुरी हर लागे कंँगना।

जाही सज के आज,  धनी के वो हर अंँगना।।

जलेश्वर दास मानिकपुरी ✍️ 

मोतिमपुर बेमेतरा छत्तीसगढ़

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सार छंद - *नारी श्रृंगार* 


सज धज के जब निकले गोरी, अड़बड़ सुंदर लागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत,परी उतर के आगे।


टिकली सोहे सुघर माथ मा, माँग बिंदिया चमके।

पहिरे चुक ले फुली नाक मा,होंठ लाल बड़ दमके।

खोपा पारे बाँधे फुँदरा ,बेनी सुघर गँथागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत,परी उतर के आगे।


बहाँ नागमोरी अउ बहुँटा,कनिहा करधन सोहे।

पैजन साँटी टोंड़ा पैरी,सबके मन ला मोहे।‌

पटा कड़ा हर्रैंयां चूरी,सुघर कलाई लागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत,परी उतर के आगे।


सुर्रा पुतरी सुता सुहागिन,हार गला मा राजे ।

मुँदरी बिछिया मूँगा मोती,पाँचो अँगरी साजे।

लच्छा ककनी बनोरिया ले,तन मनभावन लागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत, परी उतर के आगे।


कान कनौती खिनवा झुमका,लटके सुग्घर बाली।

हांथ मेंहदी रचे पाँव मा ,माहुर लाली लाली।

किसम-किसम के गहना गूँठा,नारी गजब सँवागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत, परी उतर के आगे।


सज धज के जब निकले गोरी, अड़बड़ सुंदर लागे।

मानो स्वर्ग लोक ले सँउहत, परी उतर के आगे।


अमृत दास साहू 

राजनांदगांव

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  अनिल सलाम, कांकेर नारी सिंगार

आल्हा छंद


चूरी कँगना माथा बिंदी, मुड़ मा गजरा गर मा हार।

नथनी फुल्ली काजर बाली, हावय सब नारी सिंगार।।

 

अँइठी पहुँची माला मुँदरी, लाली लुगरा मन ला भाय।

पँयरी साँटी बिछिया करधन, पहिरे नारी बड़ मुस्काय।।


सोना चाँदी मुंगा मोती, असली नकली सब मिल जाय।

असली बहुते महँगा मिलथे, नकली हा सस्ता मा आय।


कतको सुग्घर सज धज ले तैं, तभो कमी हा नइ तो जाय।

मीठा बोली हँसी ठिठोली, सबके जी मन ला हरसाय।


सुमता ममता लोक लाज अउ, दाई बाबू के संस्कार

दया मया सद बेवहार हा, सबले बड़का हे सिंगार।



अनिल सलाम

उरैया नरहरपुर कांकेर छत्तीसगढ़

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  jeetendra verma खैरझिटिया

 रंग रंग के गहना गुठिया-लावणी छंद


रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।

खुले रूप सजधज बड़ भारी, सँहिरायें मनखें सबझन।।


सूँता सुर्रा सुँतिया सँकरी, साँटी सिंगी अउ हँसली।

चैन चुड़ी सोना चांदी के, आये असली अउ नकली।।

कड़ा कोतरी करण फूल फर, ककनी कटहर अउ करधन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


बिधू बुलाक बनुरिया बहुटा, बिछिया बाली अउ बारी।

बेनिफूल बघनक्खा बिछुवा, माला मुँदरी मलदारी।।

चुटकी चुरवा औरीदाना, पटा पाँख पटिया पैजन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


तोड़ा तरकी टिकली फुँदरी, रुपिया लगथे बड़ अच्छा।

पटा लवंग फूल नथ लुरकी, झुमका ऐंठी अउ लच्छा।।

ढार नांगमोरी नकबेसर, पैरी बाजे छन छन छन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


कटवा कौड़ी फुल्ली पँहुची, खूँटी खिनवा गहुँदाना।

हार हमेल किलिप हर्रइयाँ, माथामोती पिन नाना।।

सोना चाँदी मूंगा मोती, गहना गुठिया आये धन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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  जगन्नाथ सिंह ध्रुव  कुण्डलिया छन्द  - नारी के श्रृंगार 


गहना गुठिया रूप के, नइ  होवय आधार।

बेवहार सबले बड़े, नारी के श्रृंगार।।

नारी के श्रृंगार, असल मा नइ हे सोना।

कुंदन जइसे साफ, रहय मन के सब कोना।।

नेक रहय संस्कार, समय के हावय कहना।

नारी मन के आय, दया हा सुग्घर गहना।।


    जगन्नाथ ध्रुव 

चण्डी मंदिर घुँचापाली 

     बागबाहरा

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  तातुराम धीवर  नारी के श्रृंगार 

विधा - बरवै छन्द , 


पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।

 होरी देवारी अउ, परब तिहार।।


बाँह फभे नइ बँहुची, गर बिन हार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


कड़ा बनुरिया टोंड़ा, पीपर पान।

बाला खिनवा के बिन, सुन्ना कान।।


करनफूल अउ खूँटी, लटकन ढार।

पति बिन बिरथा हावय,सब श्रृंगार।।


बिँदिया सिन्दूर नही, टिकली माथ।

मूँड़ माँगमोती मन, के छुटे साथ।।


चूरी कँगना सुँतिया, भय बेकार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


गजरा फूँदरा सजे, बेनी फूल।

फूली नथली झुमका, झूले झूल।।


गोड़ बजे नइ पैरी, के झंकार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


कनिहा पहिरे करधन,सुग्घर मोठ।

गहना गुरिया के हे, भारी गोठ।।


लच्छा साँटी पहुँची, लच्छेदार।

पति बिन बिरथा हावय,सब श्रृंगार।।


नइये पाँव महाउर, पँवरी लाल।

आँखी काजर बइरी, लागे काल।।


पुन्नी रात अमावस, जस अँधियार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


हावय सुग्घर नख बर, पालिस नेल।

किरिम पाउडर स्नो अउ, सेसा तेल।।


सादा लुगरा बनथे, तन आधार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


माला बैजंती अउ, हे जंजीर।

मंगलसूत्र घलो हा, देवय पीर।।


रोवावय पर बन के, घर परिवार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


सोलह श्रृंगार करें, चमके रूप।

पति बिन छायाँ लागय, भारी धूप।।


विधवा जिनगी लगथे, बहिनी भार।

पति बिन बिरथा हावय, सब श्रृंगार।।


     तातु राम धीवर 

भैंसबोड़ जिला धमतरी

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  +   नारी श्रृंगार*

*विधा- सरसी छंद*

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लाली टिकली लगे माथ मा, गर नवलखिया हार।

माँग भरे सिंदूर लाल हे, नारी के सिंगार।।


बाली तितरी हवय सोनहा, फुली नाक मा भाय।

लगा ओंठ मा लाली सुग्घर, अहिवाती इतराय।

पहुँची बहुँटा अउ हररैया, ऐंठी ककनी ढार। 

माँग भरे सिंदूर लाल हे, नारी के सिंगार।।


रुपिया सुर्रा सुता पहिर के, दमकय नारी रूप।

मुसकाई हा लगथे पबरित, भिनसरहा के धूप।

खन-खन खनकय जब चूरी हा, देवय खुशी अपार।

माँग भरे सिंदूर लाल हे, नारी के सिंगार।।


कनिहा मा करधन के शोभा, झमझम लुगरा लाल।

रुनझुन-रुनझुन पैरी बोलय, नागिन जइसे चाल।

देखत नारी के सुघराई, रीझे ये संसार।

माँग भरे सिंदूर लाल हे, नारी के सिंगार।।


अहिवाती के असली गहना, ओकर अमर सुहाग।

जीयत भर पति संग रहय ओ, सँहरावय निज भाग।

मया-पिरित के गहना पहिरे, नारी सुख आधार।

माँग भरे सिंदूर लाल हे, नारी के सिंगार।।


     *डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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  +   नारी श्रृंगार*

*विधा- रोला छंद*

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लाली लुगरा देह, माथ मा बिन्दी लाली।

लाली चूरी हाथ, कान मा पहिरे बाली।।

लाली हे सिंदूर, माँग के शोभा भारी।

कर सोला सिंगार, पिया मन भाये नारी।।


असल रूप सिंगार, सोन-चाँदी हा नोहय।

त्याग समर्पन भाव, धरे नारी हा सोहय।।

बाँधे सुमता डोर, शांति सुख घर मा लावय।

सुग्घर घर-परिवार, सुमत ले उही बनावय।।


नारी ममता रूप, त्याग के पबरित मूरत।

देवी जइसे दिव्य, दिखय अहिवाती सूरत।।

ओकर अछरा छाँव, हवय दुख दूर करइया।

संस्कारी संतान, बनावय नारी भइया।।


मन के पबरित भाव, नता ला पोठ बनावय।

मइके अउ ससुरार, दुनो के मान बढ़ावय।।

शोभा पाय समाज, सुशीला नारी पाके।

नारी हे सिंगार, रखय घर सरग बनाके।।


       *डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*

        भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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  अश्वनी कोसरे  गीतिका छंद -नारी श्रॄंगार



हे फभे नारी ल टिकुली, नीक लागै माथ मा|

बड़ सुहावन घेंच लागय, हार राहय साथ मा||

हे जड़े हीरा बने मोती सही चवकोर हे|

तैं पहिनले हार रानी, सब सुमंगल तोर हे||


नाक मा फूली फभै अउ कान मा तो झूल ओ|

बाल मा गजरा गँथाए, मूड़ बेनी फूल ओ||

ढार खिनवा कान सोहय, घेंच सोहय हार ओ|

रूप तुहँरे घात मोहय, साज ले श्रृंगार ओ||


मैं दिवाना रूप के हौं, तै बने देबे मया|

रूप चंदा तोर फभथे, दास तुहँरे कर दया||

मोहनी हे रूप तोरे, पाँव मा पैरी बजै|

ढोलकी मन ला हरे हे, कान मा बाली सजै||


अश्वनी कोसरे 'रहँगिया' कवर्धा कबीरधाम


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  ज्ञानू कवि विषय - नारी श्रृंगार 


छंद - विष्णुप्रद 


आनी- बानी नारी मन के, तो श्रृंगार हवै |

सबले ऊपर काखर कइसन, का व्यवहार हवै||


इतरावत, लहरावत बेनी, चले लगा गजरा|

बादर करियागे जस लागय, आँखी के कजरा||


माँग फभे लाली सिंदुर मा, दम- दम ले दमकै|

लगे माथ मा रँग- रँग टिकली, बिजुरी कस चमकै||


देख नाक के नथली, फुल्ली, अड़बड़ खूलत हे|

झुमका, बाली लगे कान के, जस फर झूलत हे||


रुपिया, सुतिया, माला सँग मा, मंगलसूत्र गला| 

सोना- चाँदी नइते रेशम, पहिरे आज घला||


बाजूबंद, नागमोरी अउ, चूरी कंगन हे| 

घड़ी एक चूरा दूसर मा, कइसन फैशन हे||


हाथ रचाये अउ मेहंदी, नखपालिश अँगरी|

कोनो एक, तीन कोनो हा, पहिरे अउ मुँदरी||


पटा, बनुरिया , ऐंठी, ककनी, कनिहा, करधनिया|

लच्छा, साँटी, टोड़ा, पैंजन, सुघर फबे बिछिया||


बेनीफूल, माँगमोती अउ बहुटा, सूर्रा, ढार घलो|

करनफूल, पहुँची, नवलक्खा, रानीहार घलो||


तइँहा के दाई- माई मन, मूड़ी ढाँक चलै|

नजर मिलावय नइ कखरो ले, झुक- झुक आँख चलै||


सादा खावय, सादा पहिरय, उच्च विचार रहै|

टिकली, चूरी अउ माहुर मा, सब श्रृंगार रहै||


कतको अपन मान मर्यादा, छोड़े आज हवै|

फैशन के चक्कर मा भूले, लोक लिहाज हवै ||


ज्ञानु

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  नीलम जायसवाल *छन्न पकैया छन्द*


*नारी श्रृंगार सामग्री*


छन्न पकैया-छन्न पकैया, नारी मन हा साजय।

हाथ म चूरी कमर करधनी, गोड़ म पैरी बाजय।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, माँग म सेंदुर सोहे।

गोड़ महावर हिना हाथ के, खुशबू मन ला मोहे।।



छन्न पकैया-छन्न पकैया, अँगठी सोहे मुंदरी।

हाँथ म बहुँटा गोड़ म सांँटी, गला म सुर्रा पुतरी।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, नाक म फुल्ली चमके।

कान म खिनवा झूमत हावै, टिकली माथ म दमके।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया,आँख म काजर आँजे।

बेनी मा गजरा ला गाँथे, होठ म लाली साजे।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, सजे बहुरिया भावै।

साज सिंँगार ह बने लागथे, हमर रीति ये हावै।।


नीलम जायसवाल, भिलाई, छत्तीसगढ़

  

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 *सार छंद --बिछिया (नारी श्रृंगार)** 


बिछिया हरयँ निशानी सुघ्घर, सबो सुहागिन मन के।

सजा पाँव ला गजब बढ़ावयँ,शोभा नख-शिख तन के।।

महुर पाँव मा नख नकपालिस,बिछिया पहिरे अँगरी।

धीर लगा के रेंगय गोई,लहरावय मन सगरी।।

सोना-चाँदी अउ नग वाले, बिछिया सब ला भावयँ।

इँकरे नवा रूप चुटकी मा, कतकों काम चलावयँ।।

बर-बिहाव मा बिछिया दे के, सगा निभावयँ नाता।

कँगला घलो बिसा लय एला,चाहे खाली खाता।।

हार नौलखा या बिछिया कस, महँगा- सस्ता गहना।

नारी बर सबके महत्व हे, इही नीति के कहना।।


दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)

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  कौशल साहू कुंडलिया छंद 


नारी श्रृंगार


चुन चुन के हीरा सँही, सरी सवाँगा साज।

मइके ससुरे रह जिहाँ, सबला होवँय नाज।। 

सबला होवँय नाज, भले दुख पीरा सहना।

आदत गुन संस्कार, लाज नारी के गहना।।

राखव मीठ जुबाँन, बहुरियाँ बेटी सुन सुन।

ना चाँदी ना सोन, सवाँगा कर लौ चुन चुन।।


कौशल कुमार साहू

जिला -बलौदाबाजार (छ.ग.)

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  नारायण वर्मा बेमेतरा *मत्तगयंद सवैया*


नारी श्रृंगार


माथ लगे टिकली बिजली मुख चाँद सही चमकावत हाबै।

घात फभे कजरा गजरा झुमका नथनी मन भावत हाबै।।

हाथ सजे अइँठी कँगना मुँदरी मुचले मुसकावत हाबै।

बाजत हे पइरी रुनझुन धन भाग अपन सहँरावत हाबै।।


🙏🙏🙏🙏

नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*

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  Dropdi साहू  Sahu ‌ सरसी-सार छंद गीत-"गहना गुरिया"

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बढ़थे  सुघराई  नारी  के, जब  वो करे सिंगार।

लगथे  जइसे   गढ़े  विधाता, देहे  परी  उतार।।


अँगुरी खातिर चुटकी बिछिया, घुठुवा पैजन साँटी।

कनिहा के करधन लड़ी कड़ी, कसथे खीली घाँटी।।

पहुँची बँहुँटा बइहाँ सोभे, कान करनफुल ढार,

लगथे  जइसे  गढ़े   विधाता, देहे  परी  उतार।।


चूरी पहिरे हाथ काँच के, बीच पटा चिकनाही।

नोख बनुरिया ककनी अँइठी, चैनफाँस अँइठाही।।

किसम किसम के गहना गुरिया, सरी अंग झकदार।

लगथे  जइसे  गढ़े  विधाता, देहे  परी  उतार।


सजे हाथ के अँगुरी मा हे, छप्पा छपे छपाही।

नागमुरी मुँदरी हे सुग्घर, भौंरा कस भौंराही।।

चुकचुक ले फभे हवय गहना, रूप दिखे ओग्गार,

लगथे  जइसे  गढ़े  विधाता, देहे  परी  उतार।।


नाक सोभथे नथली फुल्ली, चिकनी चिटिक रवाही।

नग हा चमकत जाथे लुकलुक, जगमग आवाजाही।

खोंचनियाँ किलीप खोंचाए, चिपकी जालीदार, 

लगथे  जइसे  गढ़े  विधाता, देहे  परी   उतार ।।


एँड़ी रचे आलता माहुर, नख मा नाखून पालिस।

रचे होंठ मुँहरंगी हावय, सेंदुर माँग लगालिस।। 

टिकली बिन्दी कुमकुम बंदन, चंदा मुख पंछार,

लगथे  जइसे  गढ़े  विधाता, देहे   परी  उतार।।  

                         *******

द्रोपती साहू "सरसिज"

महासमुंद छत्तीसगढ़

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  भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार  *गहना साजे अंग*

*कुण्डलिया छंद*


पायल पैरी गोड़ के, शोभा खूब बढ़ाय।

चूड़ी खनकय हाथ के, जइसे गीत सुनाय।

जइसे गीत सुनाय, कमर करधनिया सोहे।

बहुँटा पहिरे बाँह, नागमोरी मन मोहे।।

टिकली चमकय माथ, देख मन होथे घायल। 

टोड़ा साँटी गोड़, छना-छन बाजे पायल।।


नथली फुल्ली नाक मा, नकबेसर हे संग।

माँघामोती माँग अउ, गहना साजे अंग।।

गहना साजे अंग, आँख में कजरा  कारी।

बेनी गजरा फूल , कान हे झुमका बारी।।

फैशन के है दौर, सुंदरी दिखथे जकली।

खूब बढ़ाथे रूप, मुंदरी चुटकी नथली।।


करधन ककनी हे फबे, नवलख्खा गल हार।

आज नँदावत देख लव, बारी खिनवा ढार।।

बारी खिनवा ढार, घेच ले रुपिया सुर्रा।

अवरी दाना आज, नँदाके होगे फुर्रा।

फैशन के हे दौर,  पहिरथें नकली जबरन।

पहरइया हे कोन, बता अब बहुँटा करधन।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू बलौदाबाजार

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  भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार  *सोलह सिंगार*

*कुण्डलिया छंद*


नारी मन तन साजथें, कर सोलह सिंगार।

गहना गुरिया ले सबो, भरथें तन भण्डार।

भरथें तन भण्डार, नाक बर फुल्ली नथनी।

पैरी साँटी गोड़, हाथ बर ऐंठी ककनी।

खिनवा बाला ढार, कान मा सोहे बारी।

बहुँटा पहिरैं बाँह, माँग भरथें सब नारी।।


टोड़ा लच्छा बनुरिया, करधन झुमका हार।

सुर्रा रुपिया मुंदरी, चुटकी पुतरी सार।।

चुटकी पुतरी सार, पटा ऐंठी शुभ चूरी।

पहिर बढ़ाथें रूप, सबो का कारी -भूरी।।

बिछिया जालीदार, नागमोरी हे जोड़ा।

नकबेसर हे नाक, गोड़ मा पायल टोड़ा।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू बलौदाबाजार

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  श्लेष चन्द्राकर  दोहा छंद  - नारी के श्रृंगार 


नारी के असली हरय, सोज्झेपन श्रृंगार।

जेमा बने हमाय हें, आदत अउ व्यवहार।।


नारी के श्रृंगार के, जिनिस हवँय कतकोन।

पूरा कर-कर थक जहू, लेबर पड़ही लोन।।


बखत साथ बदलत हवय, नारी के श्रृंगार।

जे येला अपनात हे, आज उही हुशियार।।


नवा डिजाइन के मिलत, कतको गहना आज।

जुन्ना जिनिस नँदात हे, जावत कती समाज।।


पहिरे सब इतरात हें, गहना डुप्लीकेट।

असली महँगा हे अबड़, झन पूछव गा रेट।।


श्लेष चन्द्राकर,

महासमुंद

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  नारायण वर्मा बेमेतरा नारी अउ श्रृंगार 


दोहा-छंद


मालिक कंचन देह के,पहिरे कंचन हार।

फेर लाज सबले बड़े, नारी के सिंगार।।


सोन बरन काया बने, चंदा जइसन रूप।

लगथे बदरा मा खिले, इंद्रधनुष के धूप।।


चूड़ी पहिरे बाँह भर, अइँठी ककनी ढार।

पइरी बाजे पाँव के, मीठ लगे झंकार।।


सोना चांदी ला कभू, जेवर भर झन जान।

कई किसम के रोग के, करथे इही निदान।।


स्वस्थ रहे तन मन सदा, राखँय उच्च विचार।

सुन्दर लागे सादगी, बने रहे व्यवहार।।


बहुत कीमती आजकल, बढ़े बिकटहा दाम।

तोला मासा सोन के, सुनके तीपय चाम।।


सोन असन हे देह हा, पिंयर रूप अउ रंग।

जेवर हा सहरात हे, पा गोरी के संग।।


होथे भारी भोरहा, असली नकली कोन।

माल बजरहा छाय हे, पीतल लागय सोन।।


नारी लुगरा मा लगे, देवी कस अवतार।

रिंगी-चिंगी पहिनथे, लगथे तन मा भार।।



🙏🙏🙏🙏

नारायण प्रसाद वर्मा

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  संगीता वर्मा, भिलाई नारी के श्रृंगार- कुंडलिया 

नारी के गहना हरे, गजरा फूलन हारI 

महके घर बन अंगना, रहय मधुर व्यवहारI 

रहय मधुर व्यवहार, लाज हे सुग्घर गहनाI 

मया दया के खान, होय फिर का हे कहनाI 

नारी के श्रृंगार, रहय जब वो संस्कारीI 

जग मा पूजे जाय, तभे भारत के नारीII

 

संगीता वर्मा भिलाई

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Thursday, July 24, 2025

बरसा घरी तरिया-लावणी छंद

 बरसा घरी तरिया-लावणी छंद


पानी गरमी घरी रिहिस कम, अब टिपटिप ले होगे हे।

लात तान के जीव ताल के, पानी भीतर सोगे हे।।


छिनछिन बाढ़य घाट घठौदा, डूबत हावय पचरी जी।

झिमिर झिमिर जल धार झरत हे, नाचै मेढ़क मछरी जी।

गावत छोटे बड़े मेचका, कूदा मारे पानी मा।

हाथ गोड़ लहरावै कछुवा, बरखा के अगवानी मा।

सबे जीव खुश नाचय गावय, डर दुख संसो खोगे हे।

पानी गरमी घरी रिहिस कम, अब टिपटिप ले होगे हे।


ढेर मरत नइ हवै ढोंड़िहा, सरपट सरपट भागत हे।

लद्दी भीतर बाम्बी मोंगर, सूतत नइहे जागत हे।

बिहना ले मुँधियारी होगे, भइसा भैइसी बूड़े हे।

लइका कस चढ़ चढ़ कूदे बर, मेढ़क मछरी जूड़े हे।

डड़ई डुडुवा रोहू कतला, गरमी भर दुख भोगे हे।

पानी गरमी घरी रिहिस कम, अब टिपटिप ले होगे हे।


पाँखी माँगत हावै पखना, सरलग पानी देख बढ़त।

घूरौं झन कहि डर के मारे, हावय मंतर पार पढ़त।

बने हवै बर पाना डोंगा, सब ला पास बुलावत हे।

मनमाड़े खुश होके लहरा, संझा बिहना गावत हे।

लहू चढ़ाये बर लागत हे, धरे जोंक ला रोगे हे।

पानी गरमी घरी रिहिस कम, अब टिपटिप ले होगे हे।


हरियर हरियर पार दिखत हे, भरे लबालब तरिया हे।

ताल कभू नइ पूछे पाछे, कोन गोरिया करिया हे।

तिरिथ बरोबर तरिया लागे, तँउरे तर जावै चोला।

मुचुर मुचुर मुस्कावत हावै, नन्दी सँग शंकर भोला।

जीव जरी का कमल कोकमा, सबे मया मा मो गे हे।

पानी गरमी घरी रिहिस कम, अब टिपटिप ले होगे हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday, July 19, 2025

हमर राज के दर्शनीय स्थान

 



*हमर राज के दर्शनीय स्थान- मनहरण घनाक्षरी छंद मा*


देखे के लाइक हवै, जघा कतको जी इहॉं,

जाय बर उॅंहा कोनो, झन सकुचाव जी।

कोनो ए धरम धाम, झरना गुफा हे बड़े,

ध्यान प्रभु मा लगाव, मन बहलाव जी।।

भरे हे खजाना इहॉं, खूबसूरती के बने,

देख देख घेरी बेरी, उही मा मोहाव जी।

धान के कटोरा वाले, राज ए छत्तीसगढ़,

महिमा एकर चारों, मुड़ा बगराव जी।।


डोंगरी म हवै माता, बमलाई कथें जेला,

टेशन डोंगरगढ़, उतर के जाव जी।

बगुलामुखी कहाथे, देवी बमलाई घलो,

दरसन  पा के मूड़, अपन नवाव जी।।

श्रद्धा बिसवास धरे, दूनों हाथ जोड़ खड़े,

दुख फरिया के बने, माई ला बताव जी।

दम धरौ कुछ दिन,करहीं जी माता कृपा ,

छुटकारा दुख ले तो, पक्का तुम पाव जी।।


झरना ए चित्रकोट, संग मा तीरथगढ़,

इहॉं के नियाग्रा कथें, देखौ बरसात मा।

जघा जगदलपुर, रोड हे सनान तभो,

लग जथे सात घंटा, दुरुग ले आत मा।।

जतमई घटारानी, झरना ए भले छोटे,

सावन मा आथे जिहॉं, मजा तो नहात मा।

देखे के लाइक जघा, अऊ हे बहुत भाई,

अतके लिखाइस हे, अभी आधा रात मा।।


सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी, भिलाई (छत्तीसगढ़)


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मनभावन कोरबा-रूपमाला छंद


कोइला हा कोरबा के आय करिया सोन।

नीर हा हसदेव के जिनगी हरे सिरतोन।।

हे कटाकट बन बगीचा जानवर अउ जीव।

अर्थबेवस्था हमर छत्तीसगढ़ के नीव।।


माँ भवानी सर्वमँगला के हरे वरदान।

कोसगाई मातु मड़वा देय धन अउ धान।।

टारथे चैतुरगढ़िन दुख आपदा डर रोग।

एल्युमिनियम संग बिजली के बड़े उद्योग।।


बाँध बांगो हा बँधाये हे गजब के ऊँच।

बेंदरा भलवा कहे पथ छोड़ दुरिहा घूँच।।

साँप हाथी संग मा औषधि हवे भरमार।

मन लुभाये ऊँच झरना अउ नदी के धार।।


वास वनवासी करें संस्कृति अपन पोटार।

हाथ मा धरके धनुष खोजे बहेड़ा चार।।

मीठ बोली कोरवा गूँजय गली बन खोर।

आय बेपारी घलो सुन कोरबा के शोर।।


आय मनखे कोरबा मा सुन  इहाँ के नाम।

देख के बन बाग झरना पाय सुख आराम।।

कारखाना झाड़ झरना कोइला के खान।

देश दुनिया मा चले बड़ कोरबा के नाम।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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ज्ञानू 

छंद - विष्णुप्रद 


छत्तीसगढ़ के पावन माटी, अबड़ महान हवै |

जिहाँ देवधामी के सँग मा, संत सुजान हवै ||


सिंहवासिनी देवी मंदिर, अउ पहाड़ गढ़िया |

हे अउ मलाजकुण्डम झरना, काकेंर म बढ़िया ||


क्षेत्र अबूझमाड़  हे सुन के, मन धुकुर- पुकुर जी |

नोगो- बागा जलप्रपात हे, नारायणपुर जी ||


नड्डापल्ली गुफा हवै अउ, सतधारा झरना |

बीजापुर के लंकापल्ली, देख लगे  डर ना ||


जलप्रपात शबरी नदिया मा, हे रानीदरहा |

निकले हे चिटमिहिन दाइ ले, सुकमा के जर हा ||


चित्रकूट जलप्रपात तीरथगढ़, कतका सुग्घर हे |

गुफा कुटुमसर, कांगेर नदी, जम्मों बस्तर हे ||


केशकाल घाटी बड़ सुग्घर, मंदिर ठाँव हवै |

शिल्पग्राम ले अउ प्रसिद्ध हे, कोंडागांव हवै ||


बारसूर मा मामा- भाँचा, के तो मंदिर हे |

दंतेश्वरी शंखनी डंकनी, बसे नदी तिर हे ||


भोरमदेव सरोदा दादर, मोती महल किला |

रानीदहरा अउ पचराही, कबीरधाम जिला ||


हे प्रसिद्ध संगीत कला बर, खैरागढ़ नगरी |

धाम चोड़रा, कुंड नर्मदा, भँवरदाह भँवरी ||


नाँदगाँव पातालभैरवी, बड़ परताप कथे |

जावव डोंगरगढ़ बमलाई, मिट संताप जथे ||


बाँध मोंगरा, करिया डोंगर, जलप्रपात अइठे |

अम्बागढ़, अम्बादेवी के, कोरा मा बइठे ||


ज्ञानु


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 विजेन्द्र चौपई छंद- छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल 


हमर राज के हे  पहचानI भिलई के लोहा ला जानII 

हावय सुग्घर मैत्री बागI सबो धरम के देव प्रयागII    


हरियर धनहा डोली खारI  जगा-जगा हे नहर अपारII 

गंगरेल के बाँध बँधायI गाँव शहर के प्यास बुझायII 


कालाहांडी ऊँच पठारI गिरथे गा अमरित के धारII 

चित्रकोट के हवय प्रपातI कतका जग मा हे  विख्यातII 


हवय रामगढ़ ऊँच पहाड़I करथे बांगों बाँध दहाड़II 

पानी ले बिजली बन जाय I अँधियारी ला  दूर भगायII


तीन नदी के संगम जान I  तीरथ काशी काबा मानII 

राजिम मा हावय राजीवI  मोक्ष पाय के बनगे नींवII  


हे झलमला इहाँ के आनI गंगा मइया के बड़ शानII 

हवय तांदुला के गा बाँधI हे ताकतवर एकर खाँधII


मैंनपाट के ऊँच पठारI इहाँ प्रकृति देहे उपहार II 

उल्टा पानी धार बहायI धार देख जिज्ञासा आयII 


चिल्फी घाटी भोरमदेवI रानीदहरा आय जनेवII 

मड़वा महल छेरकी जावI दर्शनीय हे घुमके आवII  


इहाँ देखनी तालागाँवI हावय मनियारी के पाँवII 

रूद्र मूर्ति मा मन मोहायI राम जानकी मंदिर भायII 


शिवरीनारायण के धामI जिहाँ महाप्रभु के हे नामII 

देख लखेश्वर के परतापI जलथे लख्खर करथे जापII 

 

बस्तर मा हे  जंगल झारI  नदिया नरवा निर्मल धारII 

लोहा पथरा के भंडारI कुदरत बाँटें मया अपारII 

  

डोंगरगढ़ के ऊँच पहाड़I माँ के बघवा करे दहाड़II

बमलेश्वरी इहाँ के शानI भक्तन मन करथें गुणगानII 


हवय महामाया के पाँवI येकर दर्शन सुख के छाँवII

देख रतनपुर मा हे ठाँवI शक्ति पीठ मा हावय नाँवII 


मानवता के दिस पैगामI  बाबा गुरु घासी के कामII 

हवय गिरौदपुरी मा धामI जैतखाम के जग मा नामII 


लक्ष्मण मंदिर सिरपुर जाव। महानदी मा गोता खाव।।

मंदिर वास्तुकला ला देख। गढ़ले भइया अपने लेख।।


देवी दुर्गा के अवतार। चंद्रहासिनी दय दुख टार।।

दर्शन कर जे मनखे आय।मनोकामना मोती  पाय।।


बागबाहरा के बड़ नाम। चंडी माता के हे धाम।।

भैरव बाबा अउ हनुमान। मंदिर के हावय गा शान।।


संगम खारुन अउ शिवनाथI जिहाँ स्वयंभू गौरी साथ II 

सोमनाथ के महिमा जानI दर्शन कर पावव वरदानII 


विजेंद्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव धरसीवां


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 ओम प्रकाश अंकुर छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल 


      सार छंद (-)


परबत ऊपर डोंगरगढ़ मा, बइठे हे बमलाई।

दरसन करथें लाखों भक्तन, कत्तिक करॅंव बड़ाई।।


चैत कुॅवांर भरावय मेला, हवय गाॅव सिंघोला।

पचरा गावय सेउॅक मन हा, तरथें सबके चोला।‌।


दाई दंतेश्वरी बिराजे, महिमा अब्बड़ भारी।

घूमयॅं दंतेवाड़ा बस्तर, खुश होवय नर नारी।।


सोर उड़यॅं माता रानी के, हवय गाॅव खल्लारी।

श्रद्धा ले सब माथ नवावॅंय, नीक सजावॅंय थारी।।


खॅंभा गड़े हे कबीर पॅंथ के, जावय दामाखेड़ा।

अमरित कस हे गुरु के वाणी, पार लगावॅंय बेड़ा।।


मुक्ति सबो ला मिलही इॅहचे, हावय कांशी काबा।

पावन धाम गिरौदपुरी हे, तारैं घासी बाबा।‌‌।


महानदी के तीर बिराजे, दाई अँगारमोती

महिमा हावय पावन सुघ्घर , जलत हवय जग जोती।‌।


हावय मंदिर श्रीहरि जी अउ, भक्तिन राजिम दाई।

दरसन कर लव महादेव के, होथैं अबड़ भलाई।।


हावय अबड़ रतनपुर नामी, बिराजे महामाया।

जस गा लव माता रानी के,दू दिन के हे काया।।


बहत तीर हे मैनपाट मा, सुघ्घर उलटा पानी।

ताता पानी जइसे येकर, अचरज हवय कहानी।।


मैत्री गार्डन घूम भिलाई,फेर रायपुर बारी।

हावय पुरखौती मुक्तांगन, सुघर जंगल सफारी।।

                   

     ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

      सुरगी, राजनांदगांव

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 संगीता वर्मा, भिलाई सोमनाथ -कुण्डलिया 

पावन संगम दू नदी, खारुन अउ शिवनाथ।

सोमनाथ भगवान हे, माता गौरी साथ।

माता गौरी साथ, द्वार मा नंदी हावय।

भक्तन कंठ लगाय, रोज महिमा ला गावय।

मंदिर तीरे तीर, पेड़ पउँधा मनभावन।

सोमनाथ के धाम, दरस कर महिमा पावन।।


संगीता वर्मा 

भिलाई


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 विजेन्द्र मैंनपाट - कुण्डलिया


पानी उल्टा धार हे, मैंनपाट विख्यात।

जोगीमारा के गुफा, के कहना का बात। 

के कहना का बात,चित्र जुन्ना बड़ मिलथे।

झरना देव प्रवाह, देख के मन हा खिलथे।

तिब्बत के समुदाय, बतावँय एक कहानी।

रोग दूर हो जाय, नहा ले  तातापानी।।

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव धरसीवांँ

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    दर्शनीय स्थल   ""भोरमदेव""  आल्हा छंद 


जिला कवर्धा पबरित भुइयाॅं, देखव जग मा अड़बड़ नाम।

जिहाॅं बिराजें भोला शंकर, भोरमदेव हवॅंय इक धाम।। 


रुख राई के बीच बसे हे, बड़ सुग्घर हे चौरा गाॅंव।

 मैकल पर्वत श्रेणी कहिथे, शिव शंकर के सुग्घर ठाॅंव।।

 छत्तीसगढ़ म हे खजुराहो, कामुक मुर्ति राज हे आज। 

देख देख के मन मोहाथे, आथे सब ला अड़बड़ लाज।। 

कतका सुग्घर रूप दिखत हे, सुरता आवय सब ला काम। 

जिहाॅं बिराजें भोला शंकर, देखव जग मा अड़बड़ नाम ।।


वास्तु कला हे नाॅंगर शैली , बलुआ पथरा दियो लगाय। 

सोलह खंभा तने खड़े हे, देख देख मनवा ललचाय।।

 जंगल बीच बने हे तरिया, सरग सही जिॅंवरा ला भाय। 

उत्तर दक्षिण पूर्व दिशा ले, भक्तन मन सब दरसन पाय।।

देश देश ले आथे मनखे, बहुत इहाॅं मिलथे आराम।

जिहॉं बिराजें भोला शंकर, देखव जग मा अड़बड़ नाम ।। 


शिव शंकर के परम उपासक, फणी नाग वंशी गोपाल। 

बड़ सुग्घर मंदिर बनवाये, उन्नत चमकय ओकर भाल।।

शिल्प कला के खूब नजारा, बड़ सुग्घर हे तुहरें सोच।

चिरई चिरगुन महिमा गावय, खोल खोल के अड़बड़ चोंच।‌। 

सुख सुहावन बढ़िया मौसम, सुग्घर निक निक लागॅंय घाम।

जिहॉं बिराजें भोला शंकर, देखव जग मा अड़बड़ नाम ।। 


गोंड जात के हरे देवता, नाम धरें हे भोरमदेव।

सिर में गंगा हाथ कमण्डल, नाग साॅंप हा बनें जनेंव।।

आदि देव हे अवघट दानी, कृपा सिंधु के देव गणेश।

हे सुख सागर हे त्रिपुरारी, जय हो जय हो तोर महेश।। 

सबके दुख ला पीयत बइठे, सुघर बना के बढ़िया जाम।

जिहॉं बिराजें भोला शंकर, देखव जग मा अड़बड़ नाम।।


     

  संजय देवांगन सिमगा

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 पात्रे जी *छंद खजाना बर*


ताटंक छंद- *पावन धाम गिरौदपुरी हे*


पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।

लिखके ताटंक छंद गावँव, महिमा सत अविनाशी के।।


घोर घना कटकट जंगल मा, औंरा धौंरा झाड़ी हे।

धुनी रमाये सतगुरु घासी, बइठे छात पहाड़ी हे।।

जोग नदी हा चरन पखारय, सत्यपुरुष सन्यासी के।।

पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।


चरण कुंड अउ अमृत कुंड के, निरमल पावन पानी हे।

पाँच धार मा पँचकुंडी के, सुग्घर अमर कहानी हे।।

संत समाज समागम मेला, रहिथे बारहमासी के।

पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।


हाथी लहुटे हे पथरा हा, जोग नदी के धारा मा।

मुक्ति दिये भटकत हंसा ला, गुरु सतनाम सहारा मा।।

कट जाथे गुरु नाम लिये ले, फाँसा जुग चौरासी के।

पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।


सेत सिंहासन गुरु के साजे, गुरु गद्दी गुरुद्वारा मा।

गूँजत रहिथे मन मंदिर हा, गुरु के जय जयकारा मा।।

चिनहा ऊँचा जैतखाम हा, गुरु दर्शन अभिलाषी के।

पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।


रहिस दिखाये गुरु महिमा जी, बंजर बहरा डोली मा।

रेंगाये गरियार बैल ला, सतगुरु सत के बोली मा।।

हवय गवाह गिरौदपुरी अउ, लोग उहाँ रहवासी के।।

पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।


जीवन दान बुधारू पाये, तारे सफुरा माता ला।

संत शिरोमणि सतगुरु मानौं, अइसन जीवन दाता ला।।

श्रद्धा सुमन चढ़ावँव पग मा, अरजी सुन लौ दासी के।।

पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासी के।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 

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 तुषार वत्स 🥰🌹 *चंपारण धाम*

*रोला छंद*

चंपारण हे धाम, बिराजे शंकर भोला।

मिलथे शांति अपार, दरस पा तरथे चोला।।

अद्भुत हे शिवलिंग, जगत मा नइहे दूजा।

महादेव गणराज, उमा के होथे पूजा।।


संत वल्लभाचार्य, जनम के गाथा हावै।

पुष्टिमार्ग मा लीन, भजन कान्हा के गावै।।

दू भाखा के मेल, इहाॅं हावै बड़ बढ़िया।

गुजराती के संग, भक्त हें छत्तिसगढ़िया।।

*तुषार शर्मा "नादान"* 

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 Anuj छत्तीसगढिया *पर्यटन स्थल चैतुरगढ़ सार छंद*


महिषासुर मर्दिनी विराजे, चैतुरगढ़ मा दाई।

चारों मुड़ा पहाड़ घिरे हे, अउ हरियर रुख-राई।।


तीस किलोमीटर पाली ले, चैतुरगढ़ हर हावय।

गाँव जेमरा-बगदरा धरी, माता के घर हावय।।


इहाँ तीन ठन बड़का तरिया, सुग्घर रहिथे पानी।। 

एमा हे जल-जीव बेंगवा, मछरी आनी-बानी।।


एला तो कश्मीर कथें सब, मौसम रथे सुहाना।

सब झन बढ़िया सड़क मार्ग ले, करथें आना-जाना।।


मंदिर ला निर्माण करें हे, वंश कलचुरी शासक।

राजा पृथ्वीदेव प्रथम हा, माँ के रहिन उपासक।।


"लाफागढ़ के किला" घलो सब, चैतुरगढ़ ला कहिथें।

इहाँ शेर भलुवा बघवा अउ, वन्य-जीव मन रहिथें।।


हवे किला के तीन द्वार जी, आरो लेवत हावय।

सिंह द्वार हूँकरा मेनका, शोभा देवत हावय।।


पाँच किलोमीटर आघू मा, हावय शंकर खोला।

अबड़ घाट अउ सीढ़ी ठाड़ हे, थरथर काँपे चोला।।


*अनुज छत्तीसगढ़िया*

*पाली जिला-कोरबा*

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 नारायण वर्मा बेमेतरा *सार छंद-दर्शन बमलाई के*


चइत क्वाँर दू पइत भराथे, डोंगरगढ़ मा मेला।

करे मनोरथ पूरण दाई, जइसन चाही जेला।।

ऊँच पहाड़ म करे बसेरा, महिमा एकर भारी।

आय भगत मन दरश करे बर,दुरिहा ले नर नारी।।

श्रद्धा भाव नवा माथा ला, बस का चाही एला।

चइत क्वाँर दू पइत भराथे, डोंगरगढ़ मा मेला।।


बगुलामुखी कहे देवी ला, कामाख्या बमलाई।

जोत जलाके मन्नत माँगे, चढ़ा चना अउ लाई।।

पान फूल सिंगार चढ़ाथे, धर नरियर के भेला।

चइत क्वाँर दू पइत भराथे, डोंगरगढ़ मा मेला।।


कार रेल बस सेवा साधन, हाबय ओरी पारी।

भीड़ गजब होथे भंडारा, खीर पुड़ी सोहारी।

खई खजानी मनिहारी के, लगथे अड़बड़ ठेला।



नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*

ढाबा-भिंभौरी, बेमेतरा छग

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 प्रिया *बेलाही घाट* *रोला छंद*


राजिम पावन धाम, इहाँ चंदन कस माटी।

नदी नहाथें लोग, हवय सुग्घर परिपाटी।।

ऋषि लोमश के वास, घाट बेलाही हावै।

त्रेतायुग के गोठ, आज भी मन ला भावै।।


काक भुसुंडी पाय, ज्ञान ला ऋषि लोमश ले।

होवै बंधन मुक्त, जगत के माया वश ले।।

अमर हवय ये संत, लोग सब परछो पाथें।

जम्मो ग्रंथ पुराण, कथा आश्रम के गाथें।।


सिया राम के संग, अनुज लक्ष्मण जी आइस।

काटिस हे वनवास, घाट के मान बढ़ाइस।।

बड़े–बड़े मुनि साधु, कुटी मा धुनी रमाथें।

करथें जप-तप योग, शंभु के मंदिर जाथें ।।


महानदी के पार, जिला धमतरी कहाथे।

लक्ष्मण झूला भव्य, देख के मन हरसाथे।।

कतका करॅंव बखान, धाम के महिमा भारी।

तर जाथें सब जीव, इहाॅं आ के सँगवारी।।


प्रिया देवांगन *प्रियू*

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 Om Prakash Patre ताटंक छन्द गीत- पावन धाम गिरौदपुरी मा 


मानवता के पाठ पढ़इया, बाबा घट-घट वासी जी ।

पावन धाम गिरौदपुरी मा, जन्म धरे गुरु घासी जी ।।


बोहावत हे कल-कल कल-कल, जोंक नदी मा पानी हा ।

जीव-जन्तु अउ मनखे मन के, चलत हवय जिनगानी हा ।।

 

लगे हवय सब मनखे मन के, मेला बारहमासी जी ।

पावन धाम गिरौदपुरी मा, जन्म धरे गुरु घासी जी ।।


छाता जइसे जिहाॅं पहाड़ी, कट-कट जंगल झाड़ी हे ।

बघवा भलुवा मनके माड़ा, जघा-जघा मा खाड़ी हे ।।


घोर तपस्या करके बाबा, होय हवय अविनाशी जी ।

पावन धाम गिरौदपुरी मा, जन्म धरे गुरु घासी जी ।। 


सब ले ऊॅंचा जैतखाम हा, जग ला राह दिखाये हे ।

मनखे-मनखे एक बरोबर, बाबा बात बताये हे ।।


जग मा परचम लहरावत हे, जइसे काबा काशी जी ।

पावन धाम गिरौदपुरी मा, जन्म धरे गुरु घासी जी ।।


✍️छन्दकार, गीतकार

ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '


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 नंदकिशोर साव  साव सार छन्द - छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल


चैत क्वाँर में मनखे मन के, लगथे जम के रेला।

माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।


मनभावन भोरमदेव हवै, जस खजुराहो छोटे।

बारनवापारा अभ्यारण, वनचर खेले लोटे।।

वन्य सफारी नंदनवन अउ, माँ बंजारी माढ़े।

नगर रायपुर मा पुरखौती, मुक्तांगन हे ठाढ़े।।

हमर राज के रजधानी में , मानुस रेलम पेला।

माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।।


राजिम नगरी होथे संगम , तीन नदी के पानी । 

मैनपाट के उल्टा पानी, मोहय सब सैलानी।।

हिल स्टेशन जंगल अउ झरना, रम्य जघा हे आला।

सिरपुर हे प्राचीन धरोहर, स्मारक अचरित वाला।।

गंगरेल सागर कस दहरा, गोवा मानय जेला।

माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।।


जशपुर खुरियारानी मोहे, छाहित हे जतमाई।

भक्तन मन के आना जाना, देथे मन के दाई।।

हावय सिमगा तीर बसे जी, दामाखेड़ा जाथें।

आस्था धर के कबीरपंथी, गुरू ज्ञान ला पाथें।

धाम गिरौदपुरी बाबा के, अड़बड़ हावय चेला।

माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।। 


स्वाभाविक सुंदर बस्तर हे, परबत जंगल घाटी।

चारो डाहर हरियाली हे, चंदन हावय माटी।।

चित्रकोट झर झरना मानो, कहय नियाग्रा धारा।

तीरथगढ़ मनमोहक लागे, निर्झर बहथे न्यारा।।

बड़ अँधियार गुफा कोटमसर, नइ जा सकन अकेला।

माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।।


घाटी कांगेर विश्व थाथी,  हरय नेशनल बागा ।

दिखय पहाड़ी मैना सुग्घर, गावय गुरतुर रागा ।।

खोह उँहा पंद्रह ठन कुल हे, नवा आदमी खोथे।

बैलाडीला कच्चा लोहा, उच्च किसम के होथे।।

दंतेवाड़ा दंतेसीरी, फूल चढ़े अउ केला।।

माँ बमलाई डोंगरगढ़ मा, भरथे नौ दिन मेला।।


नंदकिशोर साव 

राजनांदगाव

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 नीलम जायसवाल छंद खजाना बर 

*छन्न पकैया छंद*


*छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल*


छन्न पकैया-छन्न पकैया, कबीर धाम म जावौ।

छत्तीसगढ़ के खजुराहो ला, भोरमदेव म पावौ।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, लिंग रूप शिव हावै।

प्राचीन कल्चुरी कलाकृती, नक्काशी मन भावै।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, मैनपाट मन भाथे।

जिला सरगुजा मा ये हावय, शिमला मिनी कहाथे।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, सिरपुर मिले खुदाई।

महासमुंद जिला मा हावय, दर्शनीय हे भाई।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, इतिहासिक पौराणिक।

लक्ष्मण मंदिर बौद्ध विहार, देखत मा लागे निक।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, बस्तर घूमै जाहू।

घित्रकोट तीरथगढ़ मड़वा, जलप्रपात ला पाहू।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, गुफा हवय मनमानी।

देवगिरी कांगेर अरण्यक,शीत कुटुमसर रानी।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, बीजापुर अउ सुकमा।

जलप्रपात हा देखत बनथे, मल्गिर इंदुल दुरमा।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया, लिस्ट हवय जी लम्बी।

बैलाडीला मामा भांचा, नीलम सरई नम्बी।।


छन्न पकैया-छन्न पकैया,पोसंगपल्ली दोबे।

इंचम पल्ली,लंका पल्ली, गुफा देख खुश होबे।।


  - नीलम जायसवाल, भिलाई छत्तीसगढ़ -

 गुमान साहू *छन्द खजाना* बर

ताटंक छंद ।। छत्तीसगढ़  दर्शनीय स्थल।।


हमरो छत्तीसगढ़ बसे जी, दर्शनीय स्थल खाटी हे।

पर्वत अउ मन्दिर देवाला, झरना जंगल घाटी हे।।

हावै गरियाबंद जिला मा, माँ जतमई घटारानी।

पाँव पखारत झर-झर बहिथे, सुग्घर झरना ले पानी।।

दंतेवाड़ा चन्द्रहासिनी,डोंगरगढ़ घूँचापाली।

अलग अलग धर नाम बिराजे, जग जननी शेरावाली।।

चित्रकूट अउ तीरथगढ़ के, अद्भुत लगे नजारा हे।

झरना बन पर्वत ले गिरथे, जिहाँ नदी जल धारा हे।।

मैनपाट चिरमिरी घूम ले, मिले मजा ये माटी मा।

वन्य जीव अउ गुफा हवै जी, कांगेर नाम घाटी मा ।।

हवै त्रिवेणी संगम राजिम,बसे कुलेश्वर भोला हे।

बने विष्णु जी राजिव लोचन,भरे भगत के झोला हे।।

चन्दखुरी ननिहाल राम के, घट कौशिल्या के हावै।

हवै बीच तरिया मा मन्दिर ,शोभा बरनी ना जावै।।


- गुमान प्रसाद साहू

- समोदा (महानदी)


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रूप घनाक्षरी

।।चित्रकूट जलप्रपात।।

बस्तर जिला मा हावै, चित्रकूट जे कहावै, विंध्य परवत अउ, हावै पेड़ ले घेराय।

झरना के रूप धर, इन्द्रावती नदी हर, नब्बे फीट ऊपर ले, झर-झर हे बोहाय।

चौड़ा सबले फैलाव, जादा सबले बहाव, एक कोश ले आवाज, देवत रथे सुनाय।

बहथे ये पूरा साल, मुख हावै घोड़ा नाल, इही सेती भारत के, नियाग्रा ये कहलाय।।


बरसा मा रक्त लाल, दिखथे पानी के हाल, गरमी समय पानी, सफेद नजर आय।

महादेव के मन्दिर, बने हे तेकर तीर, शिवलिंग किनारा मा, हावय विशालकाय।

झरना तीरथगढ़, हे गुफा कुटुमसर, तीर मा कांगेर घाटी, शोभा येकर बढाय।

सावन कार्तिक बीच, समे घूमे बर ठीक, आके दूर दूर ले जी, मजा लोग खूब पाय।।


- गुमान प्रसाद 

- समोदा (महानदी)

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 तातुराम धीवर  छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल 

।। आल्हा छ्न्द ।।

पावन छत्तीसगढ़ धरा के, दुनिया मा अलगे पहिचान।

जंगल झाड़ी ऊँच पहाड़ी, नदिया बाँध इहाँ के शान।।


मातु बिराजे ऊँच पहाड़ी, नदिया तीर शंभु भगवान।

छत्तीसगढ़ ह धान कटोरा, हीरा लोहा सोना खान।।


दंतेवाड़ा दंतेवरहिन, बस्तर के हे बढ़ाय मान।

बैलाडीला ऊँच पहाड़ी, लोहा के हे मुख्य खदान।।


केसकाल के बारह भाँवर, गीदम घाटी जंगल राज।

होनहेड हे झरना सुग्घर, सुघराई के पहिरे ताज।।


छत्तीसगढ़ म सबले बड़का, हावय ये गंगरेल बाँध।

इहाँ बिराजे अँगार मोती, हनुमत खड़े गदा रख खाँध।।


दरश करें सब मनखे जाथें, पाथें मन मा शान्ति अपार।

झर झर झर झर बहे नीर हे, मातु घटारानी दरबार।



महादेव भूतेश्वर बाबा, देव भकुर्रा नाथ कहाय।

सबले बड़का देव इही हर, गरियाबंद स्वयंभू आय।।


महानदी के उद्गम हावय, श्रृंगी ऋषि के पावन धाम।

जिला धमतरी मा ये हावय, गाँव सिहावा सुग्घर नाम।।


छत्तीसगढ़ प्रयाग कहाथे, चर्चा हावय कोसों दूर।

तीन नदी के मेल इहाँ हे, महानदी पैरी सोंढूर।।


राजिम मा हे बिष्णु बिराजे, नाथ कुलेश्वर संगम धार ।

भगतन मन के आय जाय बर, लक्ष्मण झूला हे तइयार।।


पबरित पावन राजिम नगरी, पुन्नी मेला जोर भराय।

दूर दूर ले दर्शन खातिर, साधु-संत बन देवन आय।।


    तातु राम धीवर 

भैंसबोड़ जिला धमतरी

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 कौशल साहू *छंद खजाना* बर छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल


कुंडलिया छंद 


तुरतुरिया


तुर तुर तुर तुर जल झरय, तुरतुरिया हे नाम।

लव कुश के जँनमन जिहाँ, मातागढ़ हे धाम।।

मातागढ़ हे धाम, दरश बर ऊँच पहाड़ी।

बघवा माड़ा खोह, हबय बड़ जंगल झाड़ी।

रकम रकम के कंद, स्वाद मा अड़बड़ गुरतुर।

बालम देही संग, बहत हे धारा तुर तुर ।।


 छोटे खल्लारी


बासिन झीपन बीच मा, बंजारी के नीर।

दाई सँउहे उदगरे, गाँव सुहेला तीर।।

गाँव सुहेला तीर, हबय छोटे खल्लारी।

आथैं बारों मास, दरश बर सब नर नारी।।

राम जानकी धाम, खड़े काली कंकालिन।

नइये जादा दूर, सुहेला झीपन बासिन।।



कौशल कुमार साहू

फरहदा ( सुहेला )

जिला - बलौदाबाजार

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 Jugesh *छत्तीसगढ के दर्शनीय स्थल* चेटुवा धाम आल्हा छंद


पावन हे शिवनाथ नदी तट,बसे चेटुवा तीरथ धाम ।

गुरु घासी के बड़का बेटा, अमर दास  जी जेकर नाम॥


गाँव चेटुवा के बस्ती मा,गुरु बाबा के रहिस निवास । 

गुरु घासी के सत शिक्षा ला,सिरजाइन रख के विश्वास॥


सत के गुरुजी अलख जगाइस,समता के देइस संदेस।

त्याग भरे खुद जीवन जी के,राखिन खुद के सादा भेस।।


पीड़ित जन के आस रहिन हे,मानवता ला मानिन सार ।' 

जन जन के मन मा रच  बसगे,गुरु के पावन सदव्यहार॥


अमर लोक जब अमर दास जी,चलदिन जग ला पाछू छोड़।

गुरु जी के सब जन हित शिक्षा,हिरदे राखे हे सब जोड़॥


नदी किनारे गुरु बाबा ला माटी देइन सब परिवार।

पाछू  मंदिर बनवाइन हे,बड़े गौटिया जी आधार॥


पूस माह मा लगथे मेला , अमली के हे सुग्घर छाँव।

मन भावन लगथे ये जगहा,लोगन के रुक जाथे पाँव॥


कल कल कर शिवनाथ बोहथे,लोग नहाथें उठ भिनसार।

चढ़ा नारियल मना मनौती,टेकैं माथा झारा झार।।


कतको जाथें बैलागाड़ी, कतको जाथें मोटर कार ।

 गुरु गद्दी दर्शन कर आथें,जुरमिल के पूरा परिवार।।

जुगेश कुमार बंजारे

नवागाँवकला छिरहा बेमेतरा छग 


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 देवकरण धुरी कबीरधाम  *डोंगरिया महादेव*


सरसरी छंद


धन्य धन्य ये पबरित भुँइया, धन्य कवर्धा राज।

डोंगरिया शिव कथा कहत हँव, सुन मोर कवि समाज।

जूरे नवागाँव डोंगरिया, अउ खरहट्टा खार।

तीनों मेड़ों बीच नँदी मा, उबके शंभु हमार।।


नँदिया चालीस फीट गहिरा, माड़ी भर हे नीर।

एक तीर मा शंभु बिराजे, हाथी दूसर तीर।


नाम परे जालेश्वर शिव के, महिमा अपरंपार।

पाँव पखारत फोंक नँदी के, बोहावत हे धार।।


अद्भुत रूप धरे शिव देवय, मनचाहे  बरदान।

ज्योतिर्लिंग कहाय  तेरवां, अही असल पहचान।।


होय माघ मा पुन्नी मेला, डोंगरिया के नाँव।

भक्ति जगावय जीव जुड़ावय, हे अमरइया छाँव।।


देवचरण 'धुरी'

कबीरधाम

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 अश्वनी कोसरे  वीर छंद  -छत्तीसगढ़ के  दर्शनीय स्थल


हाथी चढ़के राजा निकलय, जन नायक वो सुनय पुकार||

राजा के सब महंत आवँय, अनुयायी राहँय भरमार||


दशो दिशा फइले जश कीर्ती, परमधाम हे गुरु के द्वार|

नाम हवय भंडारपुरी जी, गुरुबाबा हें पालनहार||


गुरु दरशन बर भरथे मेला, एकादशी मास हे क्वांर|

राजा बालक दास बबा के, सँउहत लगय जिहाँ दरबार||


राज - राज ले आथें चेला, सादा पगड़ी बाँधे झार||

जैत खाम मा चढ़थे पालो, श्वेत धजा लहराथे द्वार|


गुरु ले शिक्षा - दीक्षा पाथें, सत्तनाम के करथें जाप|

पंथी साहित संगत होथे, माँदर झाँझ मँजीरा थाप||


भ्रमण करे बर नगर निकलथें, होथे गुरु के जय जयकार|

करतब संग अखाड़ा होथे, शौर्य चक्र लाठी भरमार||


सार संदेशा गुरु सुनाथे, जिनगी ला करथे उजियार|

पाके पबरित गुरु के वाणी, जाथे हंसा सत दरबार||


अश्वनी कोसरे


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 अश्वनी कोसरे  छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल

 वीर छंद


सत्य धरम के सुग्घर नगरी, हावय कबीरधाम हमार|

चरण चिन्ह हे गुरु देवन के, सदगुरु जीके भाव विचार||


संगत मा गुरु धनी धर्म के, जुरे रहँय  हिरदे ले तार|

ज्ञानी ध्यानी अनुयायी मन, सिरजाए हें गुरुदरबार||


तीन- तीन गुरु लगे समाधी, माँ साहब मन हे रखवार|

राज -राज ले आवँय संतन, काया ला कर लैं उजियार||


उही नगर मा बनगे हावय, ज्ञान डहर अउ पंथ अनेक|

साहब नाम गृंधमुनि जी के, जाँय दुवारी माथा टेंक||


नाम भोजली तरिया हावय, राजा पुरखा मन के मान|

रानी माता करैं विसर्जन, दीन- हीन सब बदैं मितान||


देवी माता हवँय बिराजे, दर्शन बर धरि आहव आस|

क्वांर चैत मा सजथें मंदिर, अठवाही के खप्पर खास||


कृष्ण सरोवर तट मंदिर हे, राधा किसना करैं विहार|

भादो के आठे मा होथे, रास सहीं सोलस सिंगार||


उदगर के मैकलघाटी ले, सँकरी नँदिया बोहय धार|

मोती महल बने हे तट मा, सजथे जी शाही दरबार||


परब मनाथें छत्तीसगढ़ के, मुखिया बनैं राज -परिवार|

नगर भ्रमण मा राजा जाथें, परजा लेवँय भेंट जोहार||


गौतम बुद्ध विहार बने हे, मंदिर महावीर भगवान|

राम लला के पावन घर हे, राजै खेड़ापति हनुमान||


सब गुरुवंशी सतवंशी हें, गुरुनानक घासी रविदास|

गुरुद्वारा मा गुरुवाणी के, होथे सुग्घर के अरदास||



अश्वनी कोसरे


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 Dropdi साहू  Sahu सरसी छंद -"मैनपाट"

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सुग्घर हे हमर छत्तीसगढ़, सुग्घर हे पहिचान। 

शिमला ऊटी पंचमढ़ी कस, मैनपाट ला जान।।


मैनपाट  मा  हे  सुघराई, दरसन  तीरथ धाम।

येकर ले बाढ़े दुनिया मा, हमर राज्य के नाम।।


झरना गावय गीत मनोहर, दे के सुग्घर तान।

रुख राई हे हरियर हरियर, लागय सरग समान।।


नदिया बहे महादेवमुड़ा, कतको इहाँ प्रपात।

भुइयाँ के अइसन कोरा हा, नोहर लागे घात।।


मछली मेहता पाइंट अउ, किसम किसम हे नाँव।

हवय  दरोगा  दरहा  खड़बड़, जावत डोले पाँव।।


भारत तिब्बत दू संस्कृति के,  हावय इहिँचे मेल।

सुघराई   देखे   बर   दुनिया, आथे     रेलमपेल।।


मैनपाट में रम जाथे मन, देखँव‌ मन भर मोर।

सबो जगह निक नोहर लागे, सुग्घर चारो छोर।।


मोर मनाली दार्जिलिंग ये, मथुरा काशी घाट।

ये  दुलरवा  छत्तीसगढ़ के, हमर बर  मैनपाट।।

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द्रोपती साहू "सरसिज"

महासमुंद छत्तीसगढ़

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 अमृतदास साहू  सार छंद *दर्शनीय स्थल*


चलो सबो झन जुरमिल संगी,तिरथ बरत कर आबो।

सबे धाम के दर्शन पाकें, पावन पुण्य कमाबो।


सुघर बिराजे रतनपुर मा,सिद्ध पीठ महमाई।

डोंगरगढ़ पहरी मा बइठे, जग जननी बमलाई ।

चैत क्वांर जस सेवा गाके,जगमग जोत जलाबो। 

सबे धाम के दर्शन पाकें,पावन पुण्य कमाबो।


राजिम नगरी मा बइठे हे, कुलेश्वर महादेवा।

दूर-दूर ले आथें लोगन,गजब बजाथें सेवा।

पैरी सोंढुर महानदी मा,पबरित कुंभ नहाबो।

सबे धाम के दर्शन पाकें, पावन पुण्य कमाबो।


सुघर गिरौदपुरी जाके सब,मन मांगे वर पाथें।

गुरु घासी के दर्शन पाकें,भाग अपन सहँराथें।

पावन पबरित धाम सुघर अब, चलो हमू मन जाबो ।

सबे धाम के दर्शन पाकें,पावन पुण्य कमाबो।


कबीरहा मन सत्य नाम लें, श्रद्धा भाव जगाथें।

दामाखेड़ा जाके पावन,सत्य धजा लहराथें।

साधु संत के चलो सबो झन, पबरित दर्शन पाबो।

सबे धाम के दर्शन पाकें, पावन पुण्य कमाबो।


अमृत दास साहू 

ग्राम-कलकसा, डोंगरगढ़ 

जिला-राजनांदगांव (छ.ग.)


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 अश्वनी कोसरे  छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल

वीर छंद


हाप नदी के तट मा हावय, पचराही हे जेखर नाम|

कंकालिन टीला सब कहिथें, आदि देव शिव के हे धाम||


श्री गनेश सँग शंभु भवानी,  पुर मा करथे जी उन वास|

फणी नाग वंशी राजा हें, हैहय वंशी के विश्वास||


नगर महल मन  बेवस्थित हें, पक्की ईंटा के घर झार|

नहर निकासी जल भराव बर, बने हवय दू स्नानागार||


उन्नत हे उद्योग संरचना, मनका चूड़ी लोहा खान|

हँसिया गुजरी सँकरी कर्छुल, सिक्का सोना अउ सामान||


गिनले तँय तरिया इक्कीसे, निकले हे पूरा अवशेष|

हर गाला मा हवँय बिराजे, शंभु भवानी पूत गनेश||


चार करोड़ बछर के घोंघा, जर खोदन ले हावँय पाय|

सुघ्घर सघन बीच बन मा हे, पाँच ओर ले रसदा जाय||


तट पश्चिम पचराही माढ़े, उत्तर जैन बकेला धाम|

बीच बहत हे हाप नदी हा, सुरमय झरना झरनी नाम||


सिक्का मन इतिहास बताथें, समरिध हे पचराही राज|

सैनिक मन के बड़का बंकर, रखे रहै सब घोड़ा साज||


बड़े बने ढाबा अनाज बर, मैदानी मा खेती होत|

हवय भवानी के पुर मंदिर, क्वाँर चैत मा जलथे जोत|


आदीवासी बहुल क्षेत्र हे, बैगा मनके हावय वास|

ब्लाक बोड़ला के उत्तर हे, पचराही मा धन के रास||


पंडरिया ले घलो पास हे, जाबे डोंगर खारे खार|

घात सघन बन पाबे अँवरा, साजा तेंदू चार रवार||


अश्वनी कोसरे


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 कमलेश प्रसाद  शरमाबाबू छत्तीसगढ़ के धार्मिक पर्यटन स्थल 

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रचना -कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 


हरिगीतिका - छंद (-)

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तर्ज- श्रीराम चंद्र कृपालु, भज मन हरण भव भय दारुणं।


-       चँदखुरी

पावन हवय ये राज हा, श्री राम के जनमन इहाँ।

लेवत सुबेरे नाम ला, मनखे सबो तरथन इहाँ।।

वोखर ममा के गाँव ये, अउ चँदखुरी जी नाम हे।

भाँचा हवै हमरो नता, छत्तीसगढ़ हा धाम हे।।


-      राजिम

राजिम जिहाँ के धाम हे, बसथे उहाँ भगवान हा।

दरशन हवय वो रूप के, तरथे दुखी धनवान हा।।

खिचरी लगे हे भोग मा, करमा खवाये हाथ मा।

पावन त्रिवेणी हे घलो, देखव कुलेश्वर साथ मा।।


-   डोंगरगढ़ बमलाई

ऊँचा पहाड़ी मा बसे, देखव ग बमलाई सती।

डोंगर हवै चारों मुड़ा, मैदान हे खाल्हे कती।।

मनखे इहाँ सब दूर ले, आवत रिथें सब वार मा।

ज्योती जला वर माँगथें, उन चैत मास कुवाँर मा।


-      सिरपुर 

सिरपुर चलौ देखव उहाँ, तीरथ बरोबर लागथे।

लछमन लला मंदिर हवै,  देखत सबो दुख भागथे।।।

आवत रिथें भिक्षुक इहाँ, धरमी सबोझन बौध के।

चारों मुड़ा बिखरे हवै, अवशेष जुन्ना शोध के।।


-      चम्पारण 

वल्लभ इहाँ के हे गुरू, अउ नाम चम्पारण हवै।

बड़ दिब्य आलौकिक भरे, ब्रजधाम कस येहा भवै।।

गोठान हे गोलोक कस, गिरिराज के ये धाम हे।

शिवलिंग बिराजे हे घलो, कतकोन शिव के नाम हे।।


-    खल्लारी 

हें सीढ़ियाँ सुघ्घर चलौ, सौ आठ आगर साठ हे।

साक्षात खल्लारी हवै, दुरलभ मनोहर पाठ हे।

बइठे रिथें दू शेर हा, देखव उहाँ बनवाय हें।

हे कामना कतको धरें, लोगन उहाँ सब आय हें।।


-     घटारानी 

देखौ घटारानी सुघर, जल के बने परपात हे।

चारों मुड़ा फइले बिकट, जंगल घलो मन भात हे।

रद्दा हवै ऊपर घलो, नीचे बने हे पास मा।

जनता नँगत आवत रिथें, दरशन करे के आस मा।।


-     भोरमदेव 

भोरम हवै बड़ देवता, फइले सघन वन घाँस हे।

लोगन धरे काँवर इहाँ,  सावन उहाँ बर खास हे।।

मंदिर जघा तरिया बने, बोटिंँग करै सब लोग जी।

भोला दरस बर झूम के, आवत रिथें सब रोज जी।।


-    शिवरीनरायण 

शिवरी नरायण धाम हे, शबरी खवाइस बेर ला।

आवत हवै देखत रिहिस, वो नइ डराइस शेर ला।

पा गे नरायण के दरस, वो तप जघा अब धाम हे।

पावन हवै तीरथ बरथ, शिवरी नरायण नाम हे।।


-   झलमला 

बालोद मा चल देख ले, मंदिर हवै बड़ भब्य जी।

गंगा झलमला हा फबै, सोहत हवै बड़ दिब्य जी।।

कैलाश कस भीतर गुफा, मैया रहै जस लोक मा।

लहरात हे कतको जगह, तैं देख झंडा फोक मा।।


-  चंडी माता 

चंडी बिराजे हे चलौ, ऊँचा पहाड़ी पाट मा।

आवत रिथें दरशक उहाँ, घूँमत रिथें सब घाट मा।।

वो बागबाहारा हवै, जंगल जिहाँ सब आत हें।

देखव घुँचापाली चलौ, भलुवा प्रसादी खात हें।।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

कटंगी-गंडई जिला केसीजी 


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 भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार  *मनहरण घनाक्षरी*

*तुरतुरिया*


 ध्यान मैं लगात हँव, महिमा बतात हँव, सुनव सुनात हँव, लइका सियान जी।

नाम हे तुरतुरिया, जादा नइ हे धुरिया, कसडोल के तिर हे, रखे रहौ ध्यान जी।।

जंगल के बीच हवै, रद्दा ऊँच -नीच हवै, बालम नदी खँड़ म,  भारी होथे मान जी।

पूजा करथे पूजारी, भीड़ लगथे जी भारी, सकलाथें नर-नारी, होथे गुनगान जी।।


वर्णन हे पौराणिक, संग म ऐतिहासिक, महता हवै धार्मिक, सुघ्घर ये धाम के।

बिराजे हे मातागढ़, सिढ़िया-सिढ़िया चढ़, जाथें पग-पग बढ़, भक्ति करे राम के।।

 सीता माता तप करे,लव कुश जन्म धरे, नंदी मुँह पानी झरे, रात- दिन- साम के।

कखरो हे गोद सुन्ना, बेटी-बेटा देथे दुन्ना, नइ रहै काहीं उन्ना, 

संसो नइ दाम के।।


संत सबो जुरियाथें, बइठे धुनी रमाथें, राम के भजन गाथें, बाजा- गाजा साज के।

चइत- कुँवार आथे, जग -जँवारा बोंवाथे, अखण्ड जोत जलाथें,  आके राज-राज के।।

रहिथे साफ-सफाई, महौल हे सुखदाई, होथे मन से भलाई,  मानव समाज के।

तिर -तिखार गाँव हे, सुख -शान्ति के ठाँव हे, शीतल घनछाँव हे, तिर्थ शुभ आज के।।


पुस पुन्नी होथे मेला, भीड.-भाड़ रेलं -पेला, नइ होवय झमेला, माता दरबार मा।

रुख-राइ भरमार, बघवा माड़ा हे सार, बाल्मिकी के ज्ञान धार, जानिहौ विचार मा।।

रोवत जउन आथें, माता के आशीष पाथें, हाँसत वापस जाथें,गाँव घर द्वार मा।

 माता दरश पावव, बिगड़ी ल बनावव, नेवता हावै आवव, चढ़ बस कार मा।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

डमरू बलौदाबाजार

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 श्लेष चन्द्राकर  कुकुभ छंद 

विषय - खल्लारी 


खल्लारी घूमे बर लोगन, दुरिया-दुरिया ले आथें।

माँ खल्लारी के दर्शन कर, अपन भाग ला सहराथें।।


महासमुंद जिला के पावन, तीरथ होथे खल्लारी।

बागबाहरा के रद्दा मा, पड़थे जगा मनोहारी।।


हें पहाड़ मा माता बइठें, जे जग के पालनहारी।

सबो मनौती पूरा करथें, ममतामय हें महतारी।।


भक्तन मन हा सीढ़ी चढ़के, माता के मंदिर जाथें।

भुला जथें जम्मों पीरा ला, जब माँ के दर्शन पाथें।।


उड़न खटोला के सुविधा ले, खुश रहिथें सब सैलानी।

मंदिर के आधा दुरिया मा, पहुँचे बर हे आसानी।।


भीम पाँव अउ चूल्हा हावँय, बगरे हें जिखँर कहानी।

अद्भुत डोंगा पथरा उप्पर, अचरज करथें विज्ञानी।।


भक्तन मन के नवरात्री मा, भीड़ रथे अब्बड़ भारी।

श्रद्धा ले माथा टेके बर, आथें माता के द्वारी।।


चैत महीना मा जब लगथे, खल्लारी वाला मेला।

किसम-किसम के जिनिस सजाये, दिखथें तब कतको ठेला।।


खल्लारी के सुंदरता ला, देखे बर जे मन आथें।

जेन भुलाये कभू सकय नइ, अइसे सुरता ले जाथें।।


श्लेष चन्द्राकर,

महासमुंद



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छत्तीसगढ़ के दर्शनीय स्थल
मैकल पर्वत रेंज- वीर छंद 


मैकल पर्वत घाटी सुग्घर, मुंडा दादर पीड़ा घाट|
भुइँया पठार सरलग खाई, एक डहर हे अवसर पाट||

दादर थल मा विश्व केंद्र हे, बैगा नामक हवय रिसाट|
सन राइज सन सेटिंग पॉइँट, चिल्पी मा मनमोहक हाट||

रबड़ी खीर मलाई मिलथे, पौष्टिक मिलेट हे भरमार|
कोदो कुटकी कुलथी रागी, काँदा जड़ी बुटी हें सार

किसिम किसिम के औषध टोरा, बनकठिया हें बीजादार|   टाँगर भुइँया सरसो बोथें, उपजे मक्का गहदे ज्वार||

साल सरइ साजा सीसम, हल्दू तेंदू बन मा झार||
महुआ सेमल आमा अमली, अँवरा धँवरा कर्रा चार|

शिल्पी मन पथरा तरास के, साजै मंदिर महल अटार|
राजा बेंदा शिल्प ग्राम हे, पूरा तात्विक हे आधार|

एक ले बढ़के एक घाटी, चाहा बगान राजा ढार|
घूमे हावँय घूमर मोरी, बहनाखोदर बोक्कर खार||

गढ़ बदर लीलवानी चोंटी, बैल नाग मोरी हे नाव|
पटपर दिवान चढ़थे उल्टा, आकर्षक चुम्बकी सुभाव||


आगर हाप फोंक अउ सँकरी, मचकुँदना के उदगम ढाल
मैकल के चोटी ले झरथें, दुरदुरि रानी दहरा फाल |

देख मनोरम छटा निराली, भोरम देव सफारी आन|
रंग बिरंगी तितली चिड़िया, बनभइसा हिरना हें शान||

अश्वनी कोसरे 'रहँगिया' कबीरधाम

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आल्हा छंद-- माँ वनदेवी चेपारानी  


चेपा के चेपारानी ला, हाथ जोर के करँव प्रणाम। 

बीच डोंगरी बसे हवस तैं, जिहाँ तोर हे सुग्घर धाम।।


हरियाली बन रुख राई ला, देख सबो के मन हा भाय।

महिमा तोरे अब्बड़ हावय, बिगड़े सबके काम बनाय।।


तीन कोस पाली ले दुरिहा, पबरित हावय चेपा गाँव।

मेन रोड तिर हवै पहाड़ी, दाई वनदेवी के ठाँव।।


एक बार के बात बतावँव, हैजा बीमारी जब आय।

चेपारानी दाई आके, सउँहे सबके जान बचाय।।


छाहित जान सबो नर नारी, दाई ला उन करैं प्रणाम। 

बने सहारा लोगन मन के, होय लगिस दाई के नाम।।


बइगा हीरा सिंह मरावी, प्रण लेके जब किरिया खाय।

फौलादी चट्टान टोर के, बीच पहाड़ी कुँआ बनाय।।


हवय चार सौ फीट पहाड़ी, सीढ़ी चढ़के ऊपर जाँय।

बघवा चितवा हाथी भलुवा, दाई के अँगना मा आँय।।


जलै रात दिन जोत जँवारा, आये जभ्भे चइत कुँवार।

दर्शन करके भक्तन मन हा, करैं सबो झन जय जयकार।।


साजा सरई अँवरा धौंरा, मउहा तेंदू पेड़ रवार।

दाई के कोरा मा उपजे, औषधि गुण के भण्डार।।


तोर दुवारी भक्तन आवँय, मन मा थोरिक आस लगाँय।

फूल पान अउ नरियर धरके, मनचाहा उन फल ला पाँय।।


मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)


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दोहा छंद 


भालूकोना गाॅंव मा,हवै चितावर धाम।

पानी पझरे कुंड मा,परे चितावर नाम।।


मात बिराजे हे उहाॅं, धरके अद्भुत रूप।

आथे दरसन ला करे, बिखरे छटा अनूप।।


मन भाथे नव रात हा,भारी भरकम भीड़ ‌।

सबो मनौती माॅंगथे,हरथे अंतस पीड़।।


बारो महिना भीड़ के,नइ छूटे जी छोर।

माॅं महिमा के गूॅंज हा,बगरे चारो ओर।।


राजेन्द्र कुमार निर्मलकर सरकीपार

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 आल्हा छंद- *गुरु दर्शनीय धाम*


आल्हा छंद गजानंद लिखय, गुरु वंदन कर बारम्बार।

सतनामी सत धाम धरा के, करत हवय बरनन विस्तार।।


पावन धाम गिरौदपुरी हे, जनम भूमि गुरु घासीदास।

अमरौतिन दाई के ललना, महँगू दास बबा के आस।।

सत्यनाम के अलख जगाइस, मानवता के देइस पाठ।

मनखे-मनखे एक बताइस, ऊँच-नीच के तोड़िस गाँठ।।

छात पहाड़ी जोग नदी अउ, पावन बहरा खेत सुहाय।

औंरा-धौंरा पेड़ तरी गुरु, नाम-पान ला सत के पाय।।

धुनी रमाइस ज्ञान लखाइस, ढोंग रूढ़ि पर करिस प्रहार।

आल्हा छंद गजानंद लिखय, गुरु वंदन कर बारम्बार।।1


धाम हवय भंडारपुरी गुरु, मोती महल गजब मन भाय।

बालकदास समाधि जिहाँ हे, गुरु मेला दशहरा भराय।।

राज्याभिषेक गुरु के होइस, पाइस राजा के तो मान।

हाथी घोड़ा मा चढ़ निकले, राजा गुरु सीना ला तान।।

मोतीमहल शिखर मा बइठे, देत तीन बंदर संदेश।

सत्य आचरण ले ही बदले, मानव मन जग के परिवेश।।

सतगुरु बालकदास इँहे ले, करिस पंथ सतनाम प्रचार।

आल्हा छंद गजानंद लिखय, गुरु वंदन कर बारम्बार।।2


अब तेलासीपुरी धाम के, सुन लौ संतो तुम इतिहास।

तपोभूमि गुरु अमरदास के, कर्मभूमि गुरु घासीदास।।

गुरु महिमा ले होय प्रभावित, राजा भूमि करिस जी दान।

जेमा बाड़ा ला बनवाइस, सतगुरु बालकदास महान।।

फेर बाद मा कुछ शातिर मन, चालाकी कर लिन हथियाय।

जेकर बर तब लड़िस लड़ाई, गुरु आसकरण दास कहाय।।

जेल गइस पर हार न मानिस, झुकगे आखिर मा सरकार।

आल्हा छन्द गजानंद लिखय, गुरु वंदन कर बारम्बार।।3


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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 अशोक कुमार जायसवाल: *बरवै छंद*


डोंगरगढ़ चल जाबो, जोडी़दार |

साध लगे देखे के,मोला यार ||


ऊँच पहाड़ बिराजे, दाई मोर | 

बिमले मइँया की जय,होवत शोर ||


छोट बड़े सब आथे ,माँ दरबार |

नेता अभिनेता अउ, का सरकार ||


भक्त मनौती पूरा, करथे मान |

भगवान घलो गाथे, माँ गुणगान ||


अशोक कुमार जायसवाल 

भाटापारा

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