खैरझिटिया: महिला दिवस विशेष(रोला छंद)
महिला मनके मान,सबो बर बरकत लाही।
बनही बिगड़े काम,सरग धरती मा आही।
दया मया के खान, हरे बेटी महतारी।
घर बन खेती खार,सिधोये सबला नारी।
जनम जनम रथ हाँक,बढ़ाये आघू जग ला।
महिनत कर दिन रात,होय अबला सब सबला।
जग के बोहै भार,अधर हे हँसी ठिठोली।
काटे दुक्ख हजार,मीठ मधुरस कस बोली।
दुख पीरा के नाम,जुड़े हे नारी सँग मा।
गहना गुठिया राज,करे नित आठो अँग मा।
गहना जेखर लाज,हरे कहि जग भरमाये।
वो नारी अब जाग,भेस ला असल बनाये।
सुघराई के देख, लगे परि-भाषा नारी।
मिट जाये सब आस,उहाँ बर आशा नारी।
सींच दूध के धार,बढ़ाये बेटा बेटी।
नारी ममता रूप,मया के उघरा पेटी।
कदम मिलाके आज,चले सब सँग मा नारी।
जल थल का आगास,गढ़े घर महल अटारी।
देखव सब्बे छोर, शोर हे नारी मनके।
देवय सुख के दान,शारदे लक्ष्मी बनके।
बइरी मनके नास,करे दुर्गा काली कस।
घर बन के रखवार,बगइचा के माली कस।
होवय जग मा नाम,सदा हे तोरे मइयाँ।
तैं देवी अवतार,परौं नित मैहर पइयाँ।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
सादर बधाई🙏🙏🙏
[3/8, 11:27 AM] कवि बादल: अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर मा जम्मों बेटी,बहू ,महतारी मन के सादर वंदन हे-- नमन हे।
महतारी
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हिरदे मा महतारी तोर,कतका मया भरे हे ।
ये धरती के सिरजइया हा तोरेच रुप धरे हे।।
लोग लइका के रक्छा खातिर,
रइथच अबड़ उपास ।
काँटा गोड़ गड़ै झन कहिके,
करथच उदीम पचास ।
पति बर बन जथच सावित्री, काल घलो हा डरे हे।
तोर हिरदे मा महतारी तोर, कतका मया भरे हे ।
मुँह के कौंरा बाँट के खाथच,
अँगरी धरे रेंगाथच ।
हिरु बिछु ,आगी पानी अउ,
रोग राई ले बँचाथच ।
तोर अँचरा के घन छँइहा हा,सब दुःख दरद हरे हे ।
हिरदे मा महतारी तोर, कतका मया भरे हे ।।
बेटा दुलरुवा,बेटी दुलौरिन,
निसदिन काहत रहिथस ।
बाढ़ेन लइका अबड़ बिटोएन,
कतको नखरा सहिथस ।
तोर भाखा हा हमर भाखा बन,झरना कस झरे हे ।
हिरदे मा महतारी तोर, कतका मया भरे हे ।।
हे महतारी! दूध के करजा ,
कोन चूका वो पाही ।
सुख-खजाना वोकर भरही,
जे तोर सेवा बजाही ।
"बादल"बइहा अरजत गरजत,डंडाशरन परे हे।
हिरदे मा महतारी तोर , कतका मया भरे हे।।
चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद (छत्तीसगढ़)
[3/8, 2:04 PM] पात्रे जी: कुण्डलिया छंद- *नारी*
नारी मूरत त्याग के, नारी ममता खान।
नारी ले सिरजे जगत, नारी जग बरदान।।
नारी जग बरदान, कहाथे सुख के पेटी।
नारी माता रूप, बहू बहिनी अउ बेटी।।
गजानंद जी कोंन, कथे इन ताड़नहारी।
रचत हवँय इतिहास, आज बन सबला नारी।।
नारी के सिंगार ये, ओखर तन के लाज।
मर्यादा ला राख के, पाथे मान समाज।।
पाथे मान समाज, रहे ले शिक्षित नारी।
करथे घर खुशहाल, निभा के जवाबदारी।।
रखथे सुख सम्भाल, काम कर मंगलहारी।
गजानंद इतिहास, रचे बन सबला नारी।।
चौका चूल्हा तक नहीं, अब नारी के काम।
आसमान मा पग रखत, पावत हावँय नाम।।
पावत हावँय नाम, मान अउ इज्जत भारी।
दो कुल के बन शान, करत हें घर उजियारी।।
गजानंद सुन बात, मिले नारी ला मौका।
गढ़य नवा प्रतिमान, छोड़ अब चूल्हा चौका।।
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 08/03/2025
[3/8, 2:22 PM] पद्मा साहू, खैरागढ़ 14: नारी
चुप -चुप रहिथे जी, सबो दुख सहिथे जी,
येकर ये अर्थ नहीं, नारी कमजोर हे।
दुख मा सबल बनै, ढाल बने खड़े तनै,
स्व के परिभाषा लिखै, नारी साँझ भोर हे।
नारी रचय संसार, इकरे ले परिवार,
अंचरा मा गाँठ बाँधे, सुख के ये कोर हे।
आँखी ले हे आँसू ढहै, छाती ले हे दूध बहै,
ममता के सागर ये, जेकर न छोर हे।।
मान बर लड़ै नारी, शुरू ले जी अभी तक,
सहिके कटार धार, बोली बउछार ला।
तभो ले न मिलै मान, वाजिब मा जी आज ले,
छिनत हें कतकों हा, नारी अधिकार ला।
जागत हें धीरे-धीरे, बढ़ेै आगू मान बर ,
पढ़ लिख नारी अब, समझै संसार ला।
नारी हे ता दुनिया हे, दाई-माई बहिनी हें।
नारी ला सम्मान मिलै, जग के आधार ला।।
डॉ पद्मा साहू पर्वणी खैरागढ़