मोरो गिधवा गाँव
सुरता आथे मोला अड़बड़, बर पीपर के छाँव।
देख नानपन के वो सुग्घर, मोरो गिधवा गाँव।
बड़े बिहनिया कुकरा बासे, सुनके उठे सियान।
गिद्ध कोकड़ा कउँवा मन के, रहिस बसेरा जान।
बने रहय छानी खपरा के, अलवा-जलवा ठाँव।
देख नानपन के वो सुग्घर, मोरो गिधवा गाँव।
देय महामाई हर सबला, अन धन के भण्डार।
सबला बड़ निक लागे संगी, बाँधा तरिया पार।
मोर जनम भुइँया पावन हे, जेमा माथ नवाँव।
देख नानपन के वो सुग्घर, मोरो गिधवा गाँव।
दाई बहिनी मौसी काकी, सबके मया दुलार।
कका बबा अउ बाबू भैया, हिम्मत देय अपार।
चिखला माटी धुर्रा गोटी, रेंगन उखरा पाँव।
देख नानपन के वो सुग्घर, मोरो गिधवा गाँव।
ठप्पा खोखो फुगड़ी कबड्डी, दउड़न रेलम रेल।
भौरा बाँटी गिल्ली डण्डा, कतको खेलन खेल।
खेल-खेल मा हँसी ठिठोली, भारी मयँ इतराँव।
देख नानपन के ओ सुघ्घर, मोरो गिधवा गाँव।
लमे नार कस नाता गोता, रिस्ता ले पहिचान।
छोटे बड़े सबो ला आदर, अउ मिलथे सम्मान।
जिहाँ रहे सुम्मत समरस्ता, मया दया के भाव।
देख नानपन के ओ सुघ्घर, मोरो गिधवा गाँव।
सबला निक लागे रे संगी, देख अपन घर बार।
साथ रहे जुरमिल के बढ़िया, माने कभू न हार।
कच्चा-पक्का सड़क रहे जी, तिरे-तिरे रुख छाँव
देख नानपन के ओ सुघ्घर, मोरो गिधवा गाँव।
हरियर हरियर भाजी पाला, लावय दाई जोर।
चेंच अमारी पटवा भाजी, चुनचुनिया ला टोर।
साग भात चूल्हा के रांधे, बड़े चाव से खाँव।
देख नानपन के ओ सुघ्घर, मोरो गिधवा गाँव।
धनहा डोली बड़े नानकुन, सब मा धान बोवाय।
रहे किसानी संग मितानी, जेमा चेत लगाय।
खेत खार जा खंती कोड़ॅंव, माटी तहॉं उठाँव।
देख नानपन के ओ सुघ्घर, मोरो गिधवा गाँव।
रहे घरो घर बइला भैंसा, पॅंड़वा पठरू गाय।
होत बिहाने बरदी धरके, राउत जाय चराय।
कोठा मा मैं पा के लछमी, अपन भाग सहराँव।
देख नानपन के ओ सुघ्घर, मोरो गिधवा गाँव।
-हेमलाल साहू
ग्राम-गिधवा, जिला-बेमेतरा
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चौपाई छंद
16-16
गांव
मेला मँड़ई घूमे जाबो।
उखरी लाई मुर्रा पाबो।
देख सलौनी सक्कर पारा।
भजिया बिकथें झारा-झारा।।
आनी-बानी खई खजेना।
बुँदिया लाडू चना फुटेना।
खाजा पपची मिंझरा-मीठा।
आनी बानी रोटी-पीठा।।
झूलय सब रहचूली झूला।
संगवारी संग मनभूला।
मिल-जुर के घूमे बर जाहूँ।
सुख-दुख पीरा बाँटत आहूँ।।
नदियाँ तीर भराथें मेला।
गाँव-गाँव भर रेलम-पेला।
महादेव भोला ल मना ले।
बेलपान अउ फूल चघा ले।।
गांव-गुडी भरथें सदा,मेला जी चहुँ ओर ।
ऊंच-नीच के भेद सब,मिटय लाय अंजोर।।
डॉ मीता अग्रवाल मधुर
छत्तीसगढ़
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मोर सपना के गाँव - सार छंद
मोर गाँव के खपरा छानी, गोठ करँय मनमानी|
अंतस मोर झँवा जाथे गा, आँखी आथे पानी||
बारी बखरी लगय सुहावन, उपजय भाजी पाला |
जतनँयअड़बड़ खेत खार ला, मनखे हिम्मतवाला ||
बाजय बाजा नाचँय पंथी, जावँय सब गुरुद्वारा|
जाके दुरिहा बइठे हें अब, सुन्ना हे सब पारा||
लइका मन सब खेलँय खेला, गिल्ली डंडा भौंरा|
किस्सा कहिनी रोज सुनावँय,बानी साजे चौंरा||
घाट घठौंदा बँटगे हावँय, मनखे होगें ऐरा|
नेक नीति अउ नियाव नइहें, परगें कोंदा भैरा||
सुमता के चौपाल भरावय, दुख ला सब दुरिहावैं|
होवय नवधा बाचँय पोथी,मिलके हूम चढ़ावैं ||
मरे - परे रहिबे घर मा अब,सुध ले बर नइ आवैं|
समता के मीठ धार बोहावय,गंगा जल मिल जावैं||
बोइर रुख के काटे काँटा, रूंध बँधागे छाँटा |
लइका सँग बँटगे हे दाई, ददा परे हे बाँटा ||
गाय चरावँय बँसरी बाजय,चिनहारी जे सुख के|
कहाँ भुलागे संगी साँथी,गोठ हवय बड़ दुख के||
बालापन के जे सँगवारी,भेद धरै ना मन मा|
आना-जाना खाइ खजाना,पोहय सुग्घर तन मा||
शक्कर के बने कारखाना, गाँव तीर मा सँट के |
मीठा मेड़ो ला करुहा के, परथे कीरा फट के ||
अश्वनी कोसरे
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मत्तगयंद सवैया
देखब मा निक लागय गाँव सबो कहिथें पुरखा हितवा हें|
राहब मा जलथें सब गा अपने बइरी अपने मितवा हें|
ताकत हें मन झाँकत हें तन ढाँकत हें कतको सिधवा हें|
चोर घलो दिखथें कपटी मन भीतर ले कतको गिधवा हें||
अश्वनी कोसरे
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: मत्तगयंद सवैया
भोरम देव पहाड़ सटे अउ तीर बहे नरवा कुसवा गा|
गाँव गली जब धार चढ़ै बरसात चुहै खपरा परवा गा|
गाय चरावँय राउत गा सब के घर राहय गौ गरवा गा |
गाँव गली ह सुहावन लागय आज कहाँ गँय ओ नरवा गा||
फादल राम नचावय नाच सजै करमा जस पावँय भागी|
रास रचैं थुन गाड़ बनावँय मोहक राग लखैंअनुरागी|
हे सतनाम जपै मिलके सतमारग संग धरै सततागी|
झाँझ बजै सँग माँदर के पद मंगल गान ल गावँय रागी||
अश्वनी कोसरे
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: दूर्मिल सवैया
रहँगी कहिथें सब गाँव हमार बजार सहीं हटरी भरै|
पहुना कस मान करै सबके सउदागर के गठरी धरैं|
सफरी सरना कर भात मिलै जब लोगन खाय मजा करैं|
ठहरे बर हे बड़का भुइँया तरिया परिया ह मया मरै||
अश्वनी कोसरे
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मदिरा सवैया
गाँव सुहावन रीत ह पावन तीज तिहार मनावत हें|
मानत हें हिय अंतस ले मनखे जस भाग जगावत हें|
मंदिर जायँ सियान सबो गणदेव पुकार मनावत हें|
घंट मृदंग बजावत हें जयकार बुलावत जावत हें||
अश्वनी कोसरे
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चौपाई छंद
" मोर गाॅंव सिऊॅंड़ "
मोर गाॅंव के माटी पावन,
मनखे मन हे बड़ मनभावन।
मया दया मा हावैं अव्वल,
होय न झगरा सिर फूटव्वल।
कृपा मैनका दाई करथे,
सिद्ध बबा हा दुख ला हरथे।
पवन पुत्र ले ताकत मिलथे,
फूल कमल सुमता के खिलथे।
विजयादशमी धूम मनाथें,
जगन्नाथ रथ ला खिंचवाथें।
परंपरा ला ठीक निभाथें,
फाग नगाड़ा खूब बजाथें।
भक्ति भरे गंगा बोहाथें,
रोज प्रभाती कीर्तन गाथें।
संझाती रामायण गाथा,
ठंडा रखथे सबके माथा ।
सुंदर तरिया घनवा प्यारा,
बारी बिरवा पालनहारा।
गंगाजल के पार उतर के,
प्राणी जाथे जगत उबर के।
पढ़े-लिखे के रद्दा चलथें,
खेती बर जान छिड़कथें।
सुमता सेवा के अभिलाषा,
गढ़थें रिश्ता के परिभाषा।
हर पारा मा शिक्षक दिखथें,
विद्यार्थी के किस्मत लिखथें।
ज्ञान दीप ले कर उजियारा,
कहिथें हम ला सिऊॅंड़ प्यारा।
गजराज दास महंत
भिलाई
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सरसी छन्द (गीत)
।।मोर समोदा गाँव।।
महानदी के तीर बसे हे, मोर समोदा गाँव।
इही मोर हे छइयाँ भुइयाँ, माटी माथ नवाँव।।
उगती काॅलेज स्कूल हावै, बुड़ती हे घर बार।
नदी हवै रक्सेल दिशा मा,खेत खार भंडार।
नदिया पुल अउ बांध बने हे,मन्दिर घाट कछार।
लगे नर्सरी हरियर हरियर,सुग्घर चले बयार।
चारो कोती हे हरियाली,बर पीपर के छाँव।
महानदी के तीर बसे हे, मोर समोदा गाँव।।
बिजली पानी सब्बो सुविधा, लोग इहाँ के पाय।
साधन हवै आय के संगी, खेती अउ व्यवसाय।
अगल बगल के सबो गाँव के,इहें केन्द्र व्यापार।
सबो जिनिस मिल जाथे संगी, लगे हाट बुधवार।
जनम धरे हँव ये माटी मा,भाग अपन सहराँव।
महानदी के तीर बसे हे, मोर समोदा गाँव।।
नदी तीर मा महादेव हे, निकले धरती फोड़।
ग्यारह ज्योतिर्लिंग बने हे, सँग मा भुइयाँ कोड़।
आघू हवै महामाई हर,आसन अपन लगाय।
सुबे शाम सब लोग दरस कर, मन चाहे फल पाय।
सबो जात के लोग इहाँ हे,पाथे अपन नियाँव।
महानदी के तीर बसे हे, मोर समोदा गाँव।।
कार्तिक पुन्नी मेला लगथे, सुग्घर नदी कछार।
सकलाथे जन सबो धरम के, जाथे मन्दिर द्वार।
पुन्नी स्नान करे बर आथें, दूर दूर ले लोग।
देव दरस सब करके पाथें, ये प्रसाद के भोग।
रात निकलथे कार्तिक झाँकी, होथे लोग जमाव।
महानदी के तीर बसे हे, मोर समोदा गाँव।।
- गुमान प्रसाद साहू
- समोदा (महानदी)
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मनहरण घनाक्षरी
।।बदलत गाँव।।
खपरा छानी नँदागे,छत घर हा ढलागे,
गाँव घलो अब संगी, बदलत जात हे।
नल जल घर-घर, नंदावत चूल्हा हर,
साग भात इहों अब, गैस मा बनात हे।
चारो मुड़ा नाली होगे, चिखला गली हा खोगे,
सीसी रोड हर गली, गाँव के ढलात हे।
सौन्दर्यीकरण ताल, स्कूल अउ अस्पताल,
लइका सबो गाँव के, पढ़े अब जात हे।।1
आनी-बानी काम आगे, भूखमरी हा सिरागे,
कमाके जाँगर तोड़,भर पेट खात हे।
होथे काबर बीमारी,पा के कृषि जानकारी,
उन्नत कृषि मा लोग, मुनाफा कमात हे।
धंधा पानी सीख लोग,करे कुटीर उद्योग,
आत्मनिर्भर बनके,रोजगार पात हे।
बिछत कांक्रीट जाल,बदलत लोग चाल,
गाँव मा फैशन देख, शहर हमात हे।।2
- गुमान प्रसाद साहू
- समोदा (महानदी)
- सत्र-6
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: गाँव-सार छंद
गाँव गाँव अब सबो डहर ले, शहर शहर कस दिखथे।
गच्छी वाला घर कुरिया हे, इहां जिनिस सब बिकथे।
आमा अमली छाँव कहा अब, जम्मो पेड़ कटागे।
बनगे पक्का गरीब के घर , हर घर नल हा आगे।
तरिया के नहवाई छुटगे, नोहर होगे मिलना।
घर घर मा शौचालय बनगे, छुटगे सँग मा चलना।
बाँटी भँवरा खेल नंदागे, बिल्लस अउ घरबुँदिया।
सब लइका किरकेट धरे हे, भुला गइन फुरफुँदिया।
बड़े शहर के फैसन अब तो, गाँव गाँव मा आगे।
टीवी सीरीयल संस्कृति मा, बेटी बहू हमागे।
चारी चुकली दिन बीतत हे, सास बहू भौजाई।
राजनीति हा मुड़ मा बइठे, बइरी भाई भाई।
मोबाइल के टावर आगे, कहिन भाग अब जागे।
धर के बइठ गइन हे सबझन, काम बुता बिसरागे।
नत्ता गोत्ता पूछ गाँव मा, मिलना जुलना छूटे।
रात रात भर चैट करत हे, कतको नत्ता टूटे।
दारु घलो अब शहर बरोबर, गाँव गाँव मा बिकथे।
चेलिक बुढ़वा कोन कहे अब, लइका झुमरत दिखथे।
नागर बइला खेत दिखे नइ, टेक्टर करे किसानी।
सबो कमइया ठलहा बइठे, मारत हवय फुटानी।
सुरता आथे गांव खार के, अमरइया के भुँइया।
तीपत गरमी खेलत कूदत, पावन निर्मल छँइया।
ढेला मार गिराके आमा, चोरी लुका चुचरना।
छु छुवाउल खेलत खेलत, तरिया ल पार करना।
धान मिंजाई उलानबाटी, बेलन ऊपर चढ़ना।
गोबर ला बीने बर लड़ना, दउरी पाछू बढ़ना।
हीरालाल साहू "समय"
छुरा जिला-गरियाबंद
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: गाँव - दोहा छंद
काम बुता बर गांव के, लोग शहर मा जाय।
नउकर बनके सेठ के, सेवा खूब बजाय।
बारी बखरी के तुमा, सेमी कुंदरू साग।
जिनिस गाँव के रोज दिन, माढ़े पसरा भाग।
नोनी बाबू गांव के, शहर पढ़े बर जाय।
मिहनत करके ज्ञान पा, जिनगी अपन बनाय।
लबरा सेखी मारके, ज्ञानी जस बनजाय।
स्वीमिंग पूल नहाय के, तउँरे गुरू कहाय।
कारीगर मन गाँव के, रोज शहर मा जाय।
अपन रहे बर झोफड़ी, ऊँखर महल बनाय।
फैसन हा अब शहर के, गोड़ गाँव लमियाय।
देख डोकरी के मुँहू, नवा बहू शरमाय।
हीरालाल साहू"समय"
छुरा, जिला- गरियाबंद
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।। गाँव - उल्लाला छंद।।
गाँव गली अउ खोर मा,लइका मन के शोर जी।
सूरज लाली देख के,सुग्घर लगथे भोर जी।।
बड़का बड़का घर बने, देखव संगी गाँव मा।
होय बइठका आज भी,बर पीपर के छाँव मा।।
गाँव गाँव मा आज तो,लगथे हाट बजार जी।
किसम किसम जीनिस रखे,आथें लोग हजार जी।।
सुरता बचपन के बने,राखव सबो सकेल जी।
संगी साथी संग मा,खेलन कतको खेल जी।।
कागज के डोंगा बना,खेलन पानी धार जी।
ककरो होवय जीत गा,ककरो होवय हार जी।।
राजेश कुमार निषाद ग्राम चपरीद
रायपुर छत्तीसगढ़
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: मनहरण घनाक्षरी - गाॅंव
देख नदियाॅं कछार, हवै शिवनाथ पार, शहर ले दूर बने बसे मोर गाॅंव हे ।
चिरई मन के काॅंव, बने सिमगा हे नाॅंव, दाई ददा के मया बड़ सुघर छाॅंव हे ।।
दुर्गा रूप महमाई, निक लागे कोरा दाई, सरग जइसे मया दुलार के ठाॅंव हे ।
आथे सब नर नारी, तोर ॲंगना दुवारी,सबके मन मा दाई छपे तोर पाॅंव हे।।
संजय देवांगन सिमगा
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: कुण्डलिया छंद गाॅंव
सिमगा हे शिवनाथ के, बसे गोद मा गाॅंव ।
बर पीपर अउ नींम के, सुग्घर लागे छॉंव ।।
सुग्घर लागे छॉंव, सुघर हे गुरतुर बोली।
धनहा डोली खार, देख के मनवा डोली ।।
सिधवा सिधवा लोग, रथे जी सबझन निमगा ।
सब देवी के वास, गॉंव हे सुग्घर सिमगा।।
संजय देवांगन सिमगा
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: लावणी छंद गाॅंव के गोरी
"" गीत ""
सुघर गाॅंव के गोरी लागे, छम छम बाजे पयरी वो।
अंग अंग ले मया झरत हे, मन मा माते गयरी वो ।।
रूप सलोना देख तोर वो, मन भौंरा अकुलावत हे ।
टिकली फुॅ़ंदरी चूरी पहिरे, मन ला अड़बड़ भावत हे ।।
देख सरग ले परी उतरगे , गाॅंव अबड़ ममहावत हे ।
कतको राहीं राह निहारॅंय, कुछू समझ नइ आवत हे ।।
देख देख के ऑंखी फटगे, जरत मरत सब बयरी वो।
अंग अंग ले मया झरत हे, मन मा माते गयरी वो ।।
सावन भादों के बरसा मा, टप- टप चूहय छानी हा ।
मया घलो हर चूहत हाबय, लगे तोर बर बानी हा ।।
सनन सनन बड़ चलत पवन हे, उड़े चुनरिया धानी हा।
चिरई चिरगुन नाच दिखावय, होय मया के चानी हा ।।
मन पेरावत सरसों जइसे, बचे हवय बस खयरी वो।
अंग अंग ले मया झरत हे , मन मा माते गयरी वो।।
सादर समीक्षार्थ सुधार कर
संजय देवांगन सिमगा
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चौपाई (16-16)
सुरगी के सोर
छै आगर छै कोरी तरिया।
खने रात छै मासा करिया।
टप्पा पाट सुरँग हा आये।
गाँव हमर सुरगी कहलाये।
रहँय सुघर जी खनिका उड़ियाँ।
अलगे राहय इँकर दुनियाँ।
आधा कोरी तरिया हावै।
रोज नहाये लोगन जावै।
दर्री-मतवा -बुड़गा-मँधना।
चंडी- डोंगी के का कहना।
तुलसी - हुर्रा-सरगबुदियाँ।
पुरइन-कोठर्री-चुनचुनियाँ।
चारों डहर देवता धामी।
सुरगी हावय अब्बड़ नामी।
दसमत कैना हवय कहानी।
कवि मन बोलय सुघ्घर बानी।
मोर गाँव के महिमा भारी।
पाँव परँव सितला महतारी।
उत्ती कोती हे हनुमाना।
बुड़ती मा शंकर भगवाना।
रक्सहुँ मा हे बूढ़ी दाई।
सुमिरँव मैंहा चंडी माई।
काली माई ठाकुर देवा।
सबझन करथैं बढ़िया सेवा।
करमा माता सुघर बिराजे।
भक्ति भाव के बाजा बाजे।
दुरगा दाई के गुन गावैं।
महिमा मा जसगीत सुनावैं।
मानस के आयोजन होवैं।
ज्ञान भक्ति के बिजहा बोवैं।
घासी बाबा के गुन गाथैं।
सत मारग के गोठ बताथैं।
कलाकार के ये गढ़ हावै।
सुघर गाँव के नाँव बढ़ावै।
सुमता सुघ्घर दीया बारै।
विपदा हा येकर ले हारै।
मटियारा के बड़ जसगाना।
फागू बोलय सुघ्घर हाना।
रामधुनी ला रोहित गावय।
सिक्ख हरभजन ज्ञानी हावय।
संग दिलीप- खुमेश सुहावय।
फक्कड़ रीमन डोहर गावय।
'अंकुर' के हे विनती देवा।
सदा करौं मैं प्रभु के सेवा।
ओमप्रकाश साहू "अंकुर "
सुरगी, राजनांदगांव (छ.ग.)
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: विषय - गाँव
दोहा छंद
अपनापन के खान हे, भरे हवय संस्कार।
सबला संगी गाँव मा, मिलथे मया दुलार।।
मनखे मन हें गाँव के, सिधवा सच्चा जान।
आदत अउ व्यवहार ले, खींचत रहिथें ध्यान।।
गाँव नानकुन देश हे, पारा मन हें राज।
जुरमिल के रहिथें जिहाँ, सुग्घर सबों समाज।।
करथे गँवई गाँव मा, परंपरा ले प्यार।
लोगन मन हा मानथें, असली उहाँ तिहार।।
छोट-बड़े के मानगुन, सबला बने सुहाय।
बोली-भाखा गाँव के, मिसरी असन मिठाय।।
श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद
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: विषय - गाँव
रोला छंद
गाँव-गाँव मा आज, नशा हा होवत हावी।
बनही जिखर शिकार, हमर गा पीढ़ी भावी।।
देवव जम्मों ध्यान, गाँव ला अपन बचावव।
नशापान के खेल, सबो मिल बंद करावव।।
मनखे मन हा आज, शहर कोती हें भागत।
नइ बइठत चौपाल, गाँव हा सुन्ना लागत।।
दुख-सुख के अब गोठ, मिलय नइ कहूँ सुनइया।
अपने मा हें मस्त, कका ताऊ अउ भइया।।
लोगन खेती छोड़, जुआ-चित्ती हें खेलत।
घूमत मुहूँ लुकाय, मार करजा के झेलत।।
गाँव-गाँव के हाल, अइसने अब तो होवत।
जम्मों बड़े सियान, देख के ये सब रोवत।।
श्लेष चन्द्राकर,
महासमुंद
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रोला छंद
आगे हे बरसात, गली मा भरगे पानी।
चिखला गेहे मात,डोकरी गिरगे कानी।।
धीरे-धीरे आज, नँदावै नागर बइला।
नहीं कुआँ के पार, नहीं हे मुँड़ मा घइला।।
खेत खार घर द्वार, सुहावै सुग्घर अँगना।
मदरस कस मनुहार, मया के बाँधे बँधना। ।
अइसन हे चउमास, दिखत हे हरियर-हरियर।
आज बुतागे प्यास, सबो हे फरियर-फरियर। ।
गिरगे मुसला धार, छलक गे डबरा डोली।
खेत चले बनिहार, सुनावै हँसी ठिठोली। ।
सुमित्रा शिशिर
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: दोहा-
मसियाही बादर घलो , देवत हे संदेश।
कभू-कभू आ गाँव मा, सुघर हवय परिवेश। ।
धुर्रा माटी गाँव के , अउ पबरित दइहान।
जिहाँ खेल खेलन कभू, ओकर कर सम्मान। ।
आ लहूट के गाँव मा , येला बने सँवार ।
भसकत भिथिया हे सबो, घुना खात मेंयार। ।
भाँड़ी भटगे देख ले , चोरी होगे काँड़।
पुरखौती के छाँव ला , कब्जा करलिस साँड़। ।
मनके भीतर झाँक ले , सुरता आही गाँव।
पहिली-पहिली प्रेम अउ , मया पिरित के छाँव। ।
मुँड़ मा अचरा ढाँक के , रखय बहुरिया मान।
बड़ा मयारू गाँव के, सुग्घर हे परिधान। ।
सुमित्रा शिशिर
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
: दोहा-
घपटे बादर ले झलक , झिलमिल जुगनू रात।
छम-छम बरसा संग मा , चंदा करथे बात। ।
नटखट बादर खेल के , रिमझिम करे फुहार।
पंछी झाँकय खोंधरा , चुप-चुप नैन निहार। ।
धीरे-धीरे अब निकल , बेरा दे सौगात।
नींद भगा दे तँय हमर, कहिके शुभ परभात। ।
हरियर-हरियर सब डहर , लहरावै चहुँ ओर।
धरती के अचरा कहय , बाँध मया के डोर।।
मन उड़ जाय अगास मा, देख हमर ये गाँव।
गुरतुर बोली मा भरे, निर्मल-निर्मल छाँव। ।
सुमित्रा शिशिर
💐💐💐💐💐💐💐💐
: दोहा-
बड़ पबरित लागय हमर , सरग बरोबर गाँव।
हिरदे ला मिलथे सदा , दया मया के छाँव। ।
हँसी ठिठोली गूँज थे , नीक हवै मनुहार।
सुवा ददरिया गीत मा , जुड़े मया के तार ।।
अँगना तुलसी शोभथे , राँचर लगे कपाट।
मोर मयारू गाँव अब , होगे हवै सपाट। ।
खोर गली महकत हवै , जइसे नँवा बिहान ।
जय जोहारत रेंगथें , मनखे सबो महान। ।
काबर बिसरत हे मया , मन मा करव विचार।
सरग बरोबर गाँव हा , जीवन जनम अधार ।।
सुमित्रा शिशिर
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*सार छंद*- गाँव
हमर गाँव के गाथा सुग्घर,मनखे अड़बड़ दानी।
होइन कतको देशभक्त अउ,बीर अमर बलिदानी।
दया मया अउ धरम करम के,बीज सदा सब बोथें।
हमर इहाँ सुनता मा संगी,कारज जम्मो होथें।
ऊँच नीच अउ जात पात तज, बधथें मीत मितानी।
हमर गाँव के गाथा सुग्घर,मनखे अड़बड़ दानी।
पढ़े लिखे अउ खेल कूद मा,लइकन अव्वल आथें।
देश धरम बर जान निछावर,करके बलि बलि जाथें।
गढ़ँय युवा मन नवा नवा नित,सुग्घर अमर कहानी।
हमर गाँव के गाथा सुग्घर,मनखे अड़बड़ दानी।
हवय इहाँ के मनखे मन हर,ज्ञानी अउ संस्कारी।
मर्यादा मा रहिथें सुग्घर,जम्मो नर अउ नारी।
मधुरस जइसे लगे सुहाती,सबके गुरतुर बानी।
हमर गाँव के गाथा सुग्घर,मनखे अड़बड़ दानी।
मात पिता अउ गाय गरू के,करथें अड़बड़ सेवा।
देव डिही मा इहाँ बिराजे,जम्मो देवी देवा।
नवा नवा तकनीक बिसाके, करथें जबर किसानी।
हमर गाँव के गाथा सुग्घर,मनखे अड़बड़ दानी।
अमृत दास साहू
ग्राम - कलकसा, डोंगरगढ़
जिला - राजनांदगांव (छ.ग.)
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*गाँव के पीपर* लावणी छंद
मोर गाँव के पीपर डारा, सुसक-सुसक के रोवत हे।
कहाँ लुकागें जम्मो मनखे, दुख ओला बड़ होवत हे।।
बड़े बिहनिया लइका बुढ़वा, रोज मुहाटी मा आवैं।
हँसी ठिठोली कर के सुग्घर, सुमता के रद्दा पावैं।।
गिल्ली डंडा भौरा बाँटी, खेलॅंय मिलजुल सँगवारी।
ये डारा ले वो डारा मा, कूदॅंय सब आरी पारी।।
ठोनक-ठोनक पाके फर ला, चिरई मन भूख मिटावै।
हरियर-हरियर पाना देखै, अमर–अमर छेरी खावै।।
लान–लान के पैरा काँड़ी, चिरगुन हर करै बसेरा।
होत बिहनिया उड़े परेवा, रतिहा भर डारय डेरा।।
खड़े-खड़े अब बुढ़वा होगे, लकठा कोनो नइ जाए।
फुरसत नइ हे कोनो ला अब, सब अपने अपन भुलाए।।
जीव जनावर सबो भगागें, सुन्नापन नइ सोहत हे।
कहाँ लुकागें जम्मो मनखे, रद्दा पीपर जोहत हे।।
प्रिया देवांगन *प्रियू* - *सत्र-13*
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ताटंक छंद- *गाँव*
कहाँ गवाँगे गाँव मया के, घुलगे विष पुरवाई रे।
कुहकत नइहे कूक कोयली, सुन्ना हे अमराई रे।।
ढेरा आँटत बबा सुनावय, सुग्घर गीत कहानी ला।
कहय सँजो के राखव बाबू, नाता मीत मितानी ला।।
राहव मिल सब सुमता बाँधे, पाटव कुमता खाई रे।
कहाँ गवाँगे गाँव मया के, घुलगे विष पुरवाई रे।।
गायब हे चौपाल गुड़ी अब, गायब पैठा चौरा हे।
गायब चौकस बिल्ला फुगड़ी, गायब बाटी भौंरा हे।।
गायब बेटी के घरघुँदिया, गायब दूध मलाई रे।
कहाँ गवाँगे गाँव मया के, घुलगे विष पुरवाई रे।।
कुआँ अटागे सुक्खा परगे, तरिया नदिया नाला हा।
बेजा कब्जा परिया होगे, ठलहा बइठे ग्वाला हा।।
लावारिस हे गाय सड़क मा, कोंन सुनय करलाई रे।
कहाँ गवाँगे गाँव मया के, घुलगे विष पुरवाई रे।।
भाई-भाई लड़े परे हें, धरके लिगरी चारी ला।
चक्कर कोट कचहरी काटे, बेचत लोटा थारी ला।।
जुआ नशा हा नाश करे धन, देवव छोड़ बुराई रे।
कहाँ गवाँगे गाँव मया के, घुलगे विष पुरवाई रे।।
संस्कृति संस्कार गवाँगे, बिखहर बोली भाखा हे।
द्वेष धरे मनखे ले मनखे, कपट भराये बाखा हे।।
गजानंद जी खोजत हावय, भाईचारा भाई रे।
कहाँ गवाँगे गाँव मया के, घुलगे विष पुरवाई रे।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 04/07/2025
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दोहा गीत- मोर सेंदरी *गाँव*
नदी टेसुआ तीर मा, मोर सेंदरी गाँव।
बहिथे पुरवाई मया, बर पीपर के छाँव।।
सतनामी पारा सुनव, लगथे खासमखास।
जैतखाम जोड़ा जघा, हावय मोर निवास।।
सतगुरु घासीदास के, पग मा माथ नवाँव।
नदी टेसुआ तीर मा, मोर सेंदरी गाँव।।
थाना परथे पथरिया, पोस्ट जरेली आय।
मुंगेली सुन तो सखा, खाँटी जिला कहाय।।
इही मोर परिचय हरे, गजानंद हे नाँव।
नदी टेसुआ तीर मा, मोर सेंदरी गाँव।।
देहू ध्यान लगाय अब, खोले दूनों कान।
चंदन माटी गाँव के, महिमा करौं बखान।।
छोटे ला आशीष शुभ, परँव बड़े के पाँव।
नदी टेसुआ तीर मा, मोर सेंदरी गाँव।।
उत्ती मा बस स्टेंड हे, बुड़ती नदिया पार।
खेत खार रक्सेल मा, आन गाँव भंडार।।
कोयल गाथे गीत अउ, कउँवा करथे काँव।
नदी टेसुआ तीर मा, मोर सेंदरी गाँव।।
लोधी राउत गोड़ अउ, हवय जाति लोहार।
सतनामी केंवट बसे, बहिथे सुमता धार।।
मन मा नइहे काखरो, द्वेष जलन के घाँव।
नदी टेसुआ तीर मा, मोर सेंदरी गाँव।।
लोग उगाथें धान अउ, राहर चना मसूर।
मूंगफली तिंवरा घलो, होथे जी भरपूर।।
उपजाऊ मिट्टी इहाँ, हावय सुग्घर ठाँव।।
नदी टेसुआ तीर मा, मोर सेंदरी गाँव।।
✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 05/07/2025
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कुंडलिया छन्द- *गाँव*
गावँव महिमा गाँव के, रुमझुम खेती खार।
बर पीपर के पेड़ हे, हावय मया अपार।।
हावय मया अपार, दया के कोठी छलके।
पानी भरे मिठास, कुआँ तरिया नल जल के।।
होय किसानी काम, अन्न खाये बर पावँव।
धरती के भगवान, किसानन के गुन गावँव।।
देखे बर मिलथे इहाँ, पबरित मया पिरीत।
मन ला सबके मोहथे, सुवा ददरिया गीत।।
सुआ ददरिया गीत, पंडवानी अउ पंथी।
पढ़ँय रमायन पाठ, वेद गीता के ग्रन्थी।।
पुरखा हमर सियान, सबो ला रखे सरेखे।
गजानंद सुख छाँव, गाँव मा मिलथे देखे।।
नाँगर बइला के सुघर, हावय इहाँ मिलाप।
लोगन करथे भाव भर, सबो देव के जाप।।
सबो देव के जाप, गाँव के ठाकुर देवा।
पाथें आशीर्वाद, करत निसदिन जी सेवा।।
गजानंद सब लोग, भरोसा रखथें जाँगर।
उपजाये बर अन्न, खेत जाथें धर नाँगर।।
बोली भरे मिठास बड़, जस शक्कर कस पाग।
जनम धरे छत्तीसगढ़, सँहराथें सब भाग।।
सँहराथें सब भाग, कहा जी छत्तिसगढ़िया।
मनभावन परिवेश, इहाँ के मनखे बढ़िया।।
रँगय सबो इक रंग, मना दीवाली होली।
मन ला लेथे मोह, गाँव के गुरतुर बोली।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 06/07/2025
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*सार छंद-बरखा रानी*
मोर अंगना मा नाचत हे, छमछम बरखा रानी।
सूपा धार रिकोवत हावय, बनके बादर दानी।।
मगन मेचका टर्रावत हे, मंत्र पढ़त जस ज्ञानी।
बिरही नयना टपके जइसे, चूहत परवा छानी।।
धरती के कोरा पिकियावत, बीजा आनीबानी।
मोर अंगना मा नाचत हे.......
लुहुर लुहुर पिटपिटी असढ़िहा, गिंजरत बन दीवानी।
दाढ़ा टांग केकरा नाचय, मारत गजब फुटानी।।
घोंघा मेछा टेंड़े बइठे, मुँही पार मनमानी।
गेंगरुवा हर खसलत रेंगय, लगथे आय सियानी।।
गरजे बादर लागय कोनो, हाँसत हे अभिमानी।
मोर अंगना मा नाचत हे.......
खोर गली मा चिखला माते, माते सबो परानी।
छल छल छलकय डोली धरसा, धरती लगे सुहानी।।
गाय ददरिया बनिहारिन मन, कहिथे बबा कहानी।
चौमासा के रंग देखके, होगे मन हर धानी।।
असो बरसबे जमके बादर, तोरे आस किसानी।
मोर अंगना मा नाचत हे.......
नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*
ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा छग
7354958844
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रोला छन्द गीत - गाॅंव (06/07/2025)
कहाॅं गॅंवागे गाॅंव, कहाॅं हें परवा छानी ।
कहाॅं पेड़ के छाॅंव, कहाॅं हे निरमल पानी ।।
जघा - जघा मा आज, कारखाना हा खुलगे ।
का होही अंजाम, इहाॅं मनखे मन भुलगे ।।
करके लालच लोभ, बिगाड़त हें जिनगानी ।
कहाॅं गॅंवागे गाॅंव, कहाॅं हे परवा छानी ।।
धनहा डोली खार, परें हें देखव परिया ।
उपजावय का अन्न, धुऑं हे करिया - करिया ।।
परदूषण के मार, किसानी मा नुकसानी ।
कहाॅं गवाॅंगे गाॅंव, कहाॅं हे परवा छानी ।।
सुक्खा होगे बाॅंध, सबों नदिया अउ नाला ।
जीव - जंतु बर घात, बतावॅंव मॅंय हा काला ।।
काट - काट के पेड़, करॅंय मनखे नादानी ।
कहाॅं गॅंवागे गाॅंव, कहाॅं हें परवा छानी ।।
नइ हें आदर भाव, चिटिक मनखे के मन मा ।
भारी भरकम दाग, लगाए हें नर तन मा ।।
इरखा द्वेष घमण्ड, करॅंय सब झन मनमानी।
कहाॅं गॅंवागे गाॅंव, कहाॅं हें निरमल पानी ।।
दूध - दही ला बाॅंट, खाॅंय सब नर अउ नारी ।
दार - भात के स्वाद, कहाॅं मिलथे सॅंगवारी ।।
सुकसा भाजी साग, भाग मा आनी बानी ।
कहाॅं गॅंवागे गाॅंव, कहाॅं हें परवा छानी ।।
गाड़ी बइला फाॅंद, हाट जुरमिल के जावॅंय ।
घुॅंघरू बाजय खाॅंध, मजा लइका मन पावॅंय ।।
कहिनी किस्सा रोज, सुनावॅंय दादी नानी ।
कहाॅं गॅंवागे गाॅंव, कहाॅं हें परवा छानी ।।
गिल्ली डण्डा खेल, सुहावय बाॅंटी भॅंवरा ।
घर ॲंगना के बीच, रहय तुलसी के चॅंवरा ।।
कोनों - कोनों गाॅंव, रहय राजा अउ रानी ।
कहाॅं गॅंवागे गाॅंव, कहाॅं हें परवा छानी ।।
✍️छन्दकार, गीतकार 🙏
ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '
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मनहरण घनाक्षरी - गाॅंव (05/07/2025)
अमली आमा हा मिले, तरिया कमल खिले,
मनखे के मीठ बोली, मोह लेथे गाॅंव मा ।
साग - भाजी आनी - बानी, खा लेवव मनमानी,
ताजा - ताजा हवा पानी, मिले हवै ठाॅंव मा ।
हिरदे हिलोर मारे, मया मा चिभोर डारे,
कुहू - कुहू निक लागे, रुखवा के छाॅंव मा ।
धान के सोनहा बाली, सुरुज दिखय लाली,
सुग्घर के फूलवारी, असीस हे पाॅंव मा ।।
✍️छन्दकार 🙏
ओम प्रकाश पात्रे 'ओम '
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: मोर गाँव -तब अउ अब
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चौपाई छंद
रिहिस गाँव जी सुघ्घर-सुघ्घर।राहय बढ़िया उज्जर-उज्जर।
शुद्ध हवा अउ आरुग पानी।सुघ्घर राहय जी जिनगानी।
रोज रात के सुनन कहानी।बबा बतावय आनी-बानी।
पौना अद्धा पढ़न पहाड़ा।इस्कुल जावन ठिठुरत जाड़ा।
बड़े बिहनिया राउत आवय।देखत बछरु बड़ इँतरावय।
चरर-चरर फेर दुहै गइया।ताते दूध पियावय मइया।
दल के दल देखन पनिहारिन।सब के सब राहय चिनहारिन।
अब तो एकल के दिन आगे।अइस बहुरिया झट तिरियागे।
बर पीपर अउ लीम नँदागे।गाँव-गाँव मा शहर समागे।
गली-गली मा बोहत पानी।उजरत हे सब परवा छानी।
स्वाद कहाँ चौसेला चीला।डालत हें खातू जहरीला।
गिल्ली डंडा खेल भुलावत।मोबाइल हा सब ला भावत।
चुरत गैंस मा घर-घर खाना।लकड़ी छेना बनगे हाना।
तकरी मा भाजी बेंचाथे।पाउच मा अब दूध सिधाथे।
दाई-ददा ल समझँय काँटा।बीच गाँव मा होवत बाँटा।
एक इंच बर मातय झगरा।भाई- भाई हे चनबगरा।
ट्रैक्टर नवा जमाना आगे।नाँगर मन देखव तिरियागे।
बेलन दँवरी आज भुलागे।थ्रेसर अउ हरवेस्टर आगे।
हरबोलवा भटरी मन भटगे।नवा- नवा बाबा मन डटगे।
घर के मनखे बाहर हटगे।परदेशी मन आके खटगे।
काला कहिबे 'शर्मा बाबू'।गाँव-गाँव होगे बेकाबू।
चढ़े-बढ़े लइका मन होगे।मोर गाँव गाँवें मा खोगे।
कमलेश प्रसाद शर्माबाबू
साधक सत्र -20
कटंगी-गंडई जिला केसीजी
छत्तीसगढ़
रचना -05-07-2025
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जयकारी छंद-- गाँव
कतका सुग्घर लागे गाँव।
बर पीपर के निर्मल छाँव।।
मिलय जिहाँ ला मया दुलार।
रहँय सबो जुरमिल परिवार।।
गोदी माटी खूब कमाँय।
रोज बिहनिया उठके जाँय।।
बुता करँय जी जाँगर टोर।
दुख बिपदा मा लेवँय शोर।।
हरियर-हरियर खेती खार।
डीह डोंगरी धरसा पार।।
नाँगर बइला संग किसान।
कोदो कुटकी बोवँय धान।।
नदिया तिर मा लगे कछार।
आनी बानी तीज तिहार।।
मइके जब बेटी हा आय।
मान गउन सुग्घर ओ पाय।।
चार-चिरौंजी सरई पान।
बउरें इन ला घर मा लान।।
सुसकी भाजी अउ अमचूर।
साग लगावँय गा भरपूर।।
माँग नून अउ बासी खाँय।
छेना मा आगी सिपचाँय।।
गाँव बतावय गा पहिचान।
बदे सबो झन मीत मितान।।
मुकेश उइके "मयारू"
ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)
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*कुंडलियाँ-मोर मयारू गाँव*
लोग शहर के जानथें, सड़क चौंक ले ठाँव।
इहाँ पता होथे हमर, ददा बबा के नाँव।।
ददा बबा के नाँव, गाँव मा पार परोसी।
उहाँ कोन लगवार, छाय हे माँ अउ मोसी।।
मनखे के का मोल, नइ जनावय दुख पर के।
अपन काम ले काम, सोंचथें लोग शहर के।
नारायण प्रसाद वर्मा *चंदन*
ढ़ाबा-भिंभौरी, बेमेतरा छग
7354958844
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मया के गांव-
खेत के मेड़ मा पेड़ के छाँव मा, बैठ के प्रेम के गीत गावौं कभू।
तैं हृदे मा घरौंदा बनाये रहे, तोर पारा बुले रोज आवौं कभू।
घाट-तालाब मा मैं अगोरा करौं, देख के रूप-आभा नहावौं कभू।
गाँव-चौरा गियाँ आज सुन्ना लगै, बैठ के तोर ले गोठियावौं कभू।।
सवैया :गंगोदक
बलराम चंद्राकर भिलाई
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: गांव के हाल-
गांव के हाल का मैं बतावौं सखा, रोग भारी नशापान के आज हे।
चार पैसा कमाये धरे फेर तो, मंद गांजा पिये मा कहाँ लाज हे।
काम ना काज के जेन खाली घुमें, तौन पंचायती के करे राज हे।
राह नेकी बतैया दिखै ना कहूँ, ए गरीबी इहाँ कोढ़ मा खाज हे।।
सवैया :गंगोदक
बलराम चंद्राकर भिलाई
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: गाँव मा बेंदरा-
मुंडा-मुंडा घर बनत, छानी होत उजार।
बचे खुचे मा बेंदरा, कूदत हावै मार।
कूदत हावै मार, पाय नइ गस्ती पीपर।
जंगल झाड़ तियाग, हमावत अब घर भीतर।
चरपट बखरी होत, करे नकसान भुसुंडा।
खेत-खार-खलिहान, रउँद बइठे घर मुंडा।।
छंद :कुण्डलिया
बलराम चंद्राकर भिलाई
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[ सार छंद
ममागॉंव ए पांड़ादह के, सुरता कहाॅं भुलाहूॅं।
किस्सा धीरे धीरे ओकर, चिटिकुन इहॉं मड़ाहूॅं।।
मोर ममा तो रहय डॉक्टर, सबके रोग भगावय।
संग संग साहित्यकार अउ, रामायणी कहावय।।
भोगे हॅंव सुख महूॅं गॉंव के, खेलत गिल्ली डंडा।
संगे सॅंग जाने हॅंव उॅंहचे, पढ़े लिखे के फण्डा।।
भिनसरहा ले ममा उठावय, पढ़े लिखे बर मोला।
बड़े फजर नदिया मा जाके, भाय नहाना ओला।।
महूॅं संग मा जावॅंव संगी, तॅंउरत खूब नहावॅंव।
तहॉं नहाए धोए आके, प्रभु मा ध्यान लगावॅंव।।
चेत लगा के पढ़ॅंव लिखॅंव जी, रोजे इस्कुल जावॅंव।
हर कक्षा मा पास होंव अउ, अच्छा नंबर पावॅंव।।
ठेठवार यदुवंशी मन के, संख्या राहय भारी।
रहय चलन मा देना उंखर, कोनो ला भी गारी।।
मया पिरित के डोरी तभ्भो, बॅंधे रहय जी पक्का।
दूसर मन देखत रहि जॉंवय, सिरतों हक्का बक्का।।
मेहबूब आमीर खान दू, राहॅंय मुस्लिम भाई।
उंखर भाई चारा के मैं, कतका करॅंव बड़ाई।।
जगन्नाथ के मंदिर दूनों, संझा बिहना जावॅंय।
रोज आरती के बेरा मा, घंटी बने बजावॅंय।।
उॅंहे सिकरनिन के पॅंडवानी, सुने रहॅंव मैं भाई।
नाम कमाइन पदमसिरी पा, जानव तीजन बाई।।
बारी बखरी खेत खार ला, जाने हॅंव जी उॅंहचे।
गॉंव असन समता सुमता तो, नइए भाई कॅंहुचे।।
सूर्यकांत गुप्ता, जुनवानी, भिलाई (छत्तीसगढ़)
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: *मोर गाॅंव*
*रोला छन्द*
_*तुषार शर्मा "नादान"* सत्र 18
हरियर हरियर पेड़, हवा दय लागै ठंडा।
मंदिर तरिया पार, लगे हे भगवा झंडा।।
पानी भरके गंज, कुऑं ले लाथे बहिनी।
मोर गाॅंव के आज, सबो झन सुन लौ कहिनी।।
घर-घर हावय धेनु, सुहावत कोठा-ब्यारा।
बॅंधे गेरवा घेंच, कोटना भर हे चारा।।
बारी-बखरी भाय, सजै सुग्घर फुलवारी।
हटरी लगथे रोज, बिसाथन फल तरकारी।।
हवै खइरखा-डाॅंड़, साॅंहड़ा देव जिहाॅं हे।
खेत-खार मा धान, मया के छाॅंव इहाॅं हे।।
जनम मिलै हर बार, गाॅंव के पावॅंव माटी।
मानवता के भाव, जिहाॅं के हे परिपाटी।
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गाँव (गीतिका छंद)*
याद आवय फेर पीपर, लीम बर के छाँव जी।
गाय गरवा अउ पखेरू , डीह डोंगर ठाँव जी।।
गाँव के सुध नइ भुलावय,जाय जेती पाँव जी।
मँय गँवइहा मोर अंतस, मा समाए गाँव जी।।
पर जघा बस के दुआरी, मा लिखे हँव नाँव जी।
मँय तरसथँव मोर चिनहा, बर इहाँ हर घाँव जी।।
गाँव के सुमता मया ला, मँय कहाँ बिसराँव जी।
मँय गँवइहा मोर अंतस ,मा समाए गाँव जी।।
दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)
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घनाक्षरी
गाँव हर रोवत हे, जागत न सोवत हे,
नाम निसान नइहें, नीम आमा छाँव के।।
खेत खार कब्जागे, टावर मीनार छागे,
गाय गरु गरू होगे, मारे खाँव खाँव के।।
पानी खोजे जहर मा, कुआँ खोद डहर मा,
आँख देखावत हवे, पनही हा पाँव के।।
देखावा मा चूर हवे, न तो ताल सुर हवे,
दुश्मन बनगे हे, विकास हा गाँव के।।
जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया
बाल्को कोरबा(छग)
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दोहा छंद
(मोर गाँव के गोठ)
मोर गाँव सुग्घर हवय,जामगांव हे नाम।
जादा मनखे हा इहाँ,करे किसानी काम।।
सबले जादा धान ला,बोथे सबो किसान।
कहूँ कहूँ हा साग मे,तको लगाथे ध्यान।।
मिल जुल के रहिथे सबो,नइ होवय तकरार।
कोनो थाना कचहरी,जाय न एको बार।।
सबो तीज त्योहार मे,गला मिलइ हे सार।
चारी चुगली छोड़ के,प्रेम हवय ब्यवहार।।
धरती मे ये स्वर्ग कस,मोर गाँव हे खास।
इही किसम के गाँव सब,होय इही हे आस।।
संतोष कुमार साहू
जामगांव(फिंगेश्वर)
सत्र 09
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मानक छन्द गीत
शीषर्क-हमर गाँव
हमर गाँव मा आबे जी,दूध मलाई खाबे जी।
अब्बड़ होही पहुनाई,जिनगी लगही सुखदाई।।
स्वागत हे अभिनंदन हे,मेहमान के वंदन हे।
ले माथा मा चंदन हे,भाग हमर तो धन-धन हे।।
जेखर घर तँय जाबे जी,मीठा भाखा पाबे जी।
हमर गाँव मा आबे जी,दूध मलाई खाबे जी।।
घर-घर सुमता समता हे,महतारी के ममता हे।
दया-मया के बोली मा,भरबे सुख तँय झोली मा।
मया बिकट के पाबे जी,तन मन ला हर्साबे जी।
हमर गाँव मा आबे जी,दूध मलाई खाबे जी।।
दू ठन बाँधा तरिया हे,बंजर कतको परिया हे।
जुड़हा पावन-पुरवाई,मन ला मोहे अमराई।
गीत मया के गाबे जी,दया मया बरसाबे जी।
हमर गाँव मा आबे जी,दूध मलाई खाबे जी।।
डी.पी.लहरे'मौज'
कवर्धा छत्तीसगढ़
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सरसी छन्द गीत
गाँव●●
सरग बरोबर लागे संगी, मुड़ियापारा गाँव।
बीच चँउक मा जैत खाम हे,बरगद के हे छाँव।
रोज आरती संझा बिहना, गूँजय जय सतनाम।
सतनामी बस्ती ए लागय, जइसे सत के धाम।।
अब्बड़ सुमता समता माढ़े,एही सुख के ठाँव।
सरग बरोबर लागे संगी, मुड़ियापारा गाँव।।
माता देवाला उत्ती मा,हम सब के आधार।
ठाकुर देव बिराजे बुढ़ती,बस्ती के रखवार।।
एक देवता इसकुल आगू,साँड-साँडहिन नाँव।।
सरग बरोबर लागे संगी, मुड़ियापारा गाँव।
घर-घर सबो किसानी करथे, उपजाथें जी धान।
कोठी-ढ़ोली भरे लबालब, सुख के इहाँ खदान।
बड़े बिहनिया छानी आके,कउवाँ करथे काँव।
सरग बरोबर लागे संगी, मुड़ियापारा गाँव।।
डी.पी.लहरे'मौज'
कवर्धा छत्तीसगढ़
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[7/9, 8:51 PM] ज्ञानू : छंद - विष्णुप्रद
खोजत हावँव मया- पिरित के, हावय ठाँव कहाँ |
मिलजुल राहय सुग्घर सब झन, अइसन गाँव कहाँ ||
अब तो भाई हा भाई बर, गड्ढा कोड़त हे |
दाई - ददा, बहू -बेटा बर, गरु अब होवत हे ||
बोलत नइये संग परोसी, होगे दुश्मन हे |
खोजे भाई राम मिलय नइ, घर - घर रावन हे ||
नान्हें - नान्हें, बात- बात मा, झगड़ा मातत हे |
दउँड़े - दउँड़े पुलिस- कचहरी, मनखे भागत हे ||
माँस, मंद, मउँहा के होगे, आज तिहार हवै |
मनखे के हिरदै ले गायब, मया दुलार हवै ||
अपन - अपन मा भूलें मनखे, डूबें स्वारथ मा |
परे देख रोवासी आथे, काँटा पथ -पथ मा ||
आज बड़े छोटे के सिरतों, चिनहारी नइये |
हँसी - ठिठोली बूढ़ी दाई, के गारी नइये ||
एक सुमत मा रहय सियानी, वो संस्कार कहाँ |
घर के मुखिया रहय ददा हा, वो परिवार कहाँ ||
नाँव मात्र के आज गाँव मन, सरग समान हवै |
सुख - दुख ले दूसर के मनखे, अब अंजान हवै ||
ज्ञानु
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[7/9, 8:51 PM] भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार 15:
*जुन्ना गाँव नँदागे*
*छन्न पकैया छंद*
छन्न पकैया छन्न पकैया, जुन्ना गाँव नँदागे।
चमक-दमक के आज जमाना, अलकरहा दिन आगे।।
निर्मल पानी तरिया नदिया, तब सबझन नित पीयन।
पीपर बर फर चोकर रोटी, खा -खा के सब जीयन।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, भौतिकता अब छागे।
बोतल पाउच मा हे पानी, तरिया कुआँ पटागे।।
ढेकी टुकना दुहना सूपा, रहै मैरसा घर में।
संझाती कन भरैं गोरसी,रखैं डेहरी भर में।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, अबड़ मजा तब पावन।
बैला गाड़ी मा चढ़ के जी, जब बरात सब जावन।।
मिरचा के बुकनी मन भावय, दार सूकसा भाजी।
अउ काहीं नइ खोजँन कोनों, खावँन हो मन राजी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,नेंग जोग बड़ होवय।
बरतीया मन खुल-खुल हाँसँय, सिग जोरन जब टोरँय।।
बर बिहाव छट्ठी बरही अउ, मड़ई मेला सम्मत।
आगू बइठन मजा उड़ावन होवय नाचा गम्मत।।
छन्न पकैया छन्न पकैया,मजा कहाँ अब पाथें।
आय बफर सिस्टम बिहाव मा, खड़े-खड़े सब खाथें।।
मान बड़ाई के चक्कर मा, बरबादी सब करथें।
देखा सीखी शहर बरोबर, भौतिकता बर मरथें।।
छंन्न पकैया छन्न पकैया, चैतू अउ मनटोरा।
परब हरेली गेड़ी चढ़ँथें, बहिनी पटकँय पोरा।।
रहै मया भारी पहिली जी, जइसे चटनी बासी।
अब सलाह सुनता हा नइहे, लगथे गाँव उजासी।।
*भागवत प्रसाद चन्द्राकर*
डमरू बलौदाबाजार (छ.ग.)
8/7/2025
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[7/9, 8:52 PM]: हमर गँवई गाँव (कुकुभ छंद)
सुग्घर दया-मया के अँगना,
सरग बरोबर लागे जी ।
हमर गाँव-गँवई मा संगी,
सुख के सपना जागे जी ॥
हॅंसी ठिठोली सँगी जहुँरिया,
सुग्घर झूमय अमराई ।
आमा अमली के छइँहा मा,
खेलय सब बहिनी भाई ।।
पुतरी-पुतरा बर-बिहाव के,
देखव लगन धरागे जी ।
सुग्घर दया-मया के अँगना...........
दरबर- दरबर बरदी रेंगय,
गर मा घुँघरू हा बाजे।
लक्ष्मी दाई के कोठा हा,
मंदिर कस सुग्घर साजे।।
गोबर छूही के लिपना हा,
चुकचुक ले तो भा गे जी।
सुग्घर दया-मया के अँगना .............
चौरा मा बइठे दाई के,
बोली बने सुहाथे जी।
नान्हें-नान्हें लइका छौना,
मोला गजबे भाथे जी।।
नदिया नरवा पबरित गंगा,
तीरथ सबो समागे जी।
सुग्घर दया-मया के अँगना..............
छंद रचना :-
बोधन राम निषाद "विनायक"
सहसपुर लोहारा, जिला - कबीरधाम
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[7/9, 8:56 PM] भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार 15: *गाँव*
*कुकुभ छंद*
*16,14*
कहाँ गाँव मा पहिली जइसन, मजा घलो अब आथे जी।
गाँव छोड़ के गँवईहा मन, शहर डहर अब जाथें जी।।
खोर - गली बड़ सुघ्घर लागय,छरा रोज देवावै जी।
अँकरी राहेर उरिद कुल्थी,दार गजब ममहावै जी।।
दूध दही अउ मही घरो घर, गंगा जस बोहावै जी।
पैसा - कौड़ी बिन मिल जावै, दूध-भात सब खावैं जी।।
कतको सुख - दुख आवय घर मा, सबझन मिल निपटावैं जी।
लकड़ी- छेना हरदी -मिरचा,नून- तेल अमरावैं जी।।
दूसर के दुख अपने समझैं, सुनते दौड़त आवैं जी।
पता चलै नइ घर वाला ला, सब मिल भार उठावैं जी।।
गाँव लगै तब सरग बरोबर, काम करे ले नइ भागैं।
हाँसत - गावत दिन गुजरै अउ, सबो भला- चंगा लागैं।।
आज गाँव हा अइसन होगे, जुआ मंद के हे डेरा।
लूट-पाट अउ चारी -चुगरी, बइमानी के हे फेरा।।
जेन करे अन्याय उही हा, सच आँखी देखाथे जी।
जेन कमाथे जाँगर टोरत,उही भूख मर जाथे जी।।
सोंच - सोंच के मँय मर जाथँव, दिन कइसन अब आगे जी।
तइहा के सत बइहा लेगे, जा के कहाँ लुकागे जी।।
*भागवत प्रसाद चन्द्राकर*
डमरू बलौदाबाजार (छ.ग.)
06/07/2025
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भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार 15: *बचपन के वो गाँव*
*सरसी छंद*(गीत विधा)
*खोजत हावँव कहाँ गँवागे, बचपन के वो गाँव।*
*बइठे मा भारी निक लागय, अमरइया के छाँव।।*
बरसा के दिन चिखला मातय, रेंगत बिछलन पोठ।
संग जहुँरिया खेलन - कूदन, सुरता आथे गोठ।
नूनपाल खोखो भिर्री अउ, सगली भतली खेल।
बाँटी भौरा गिल्ली डंडा, पीठ खँधैया रेल।।
रेसटीप दौड़ कबड्डी के, काला बात बताँव।
खोजत हावँव तन धर के मैं, बचपन के वो गाँव।।
आज गली जम्मो सकलागे, स्वार्थी होगें लोग।
लालच भरगे मन भीतर अउ, अमरीसी के रोग।।
अमिर बने बर देखव कइसे, माते हावय होड़।
अपन बढ़े बर खींचत हावँय, अब दूसर के गोड़।।
मुँह ले गुरतुर गोठ हजागे, करथें सब्बों हाँव।
खोजत हावँव तन धरके मैं, बचपन के वो गाँव।।
*भागवत प्रसाद चन्द्राकर*
डमरू बलौदाबाजार(छ.ग.)
05/07/2025
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[7/9, 8:57 PM] अनिल सलाम, कांकेर: लावणी छंद (हमर गाँव)
काय बतावँव हमर गाँव के, किस्सा हे करलाई जी।
बैरी नेता वोट पाय के, दगा करे दुखदाई जी।
हमर गाँव के नाँव उरैया, उत्तर बस्तर मा रहिथन।
गाँव हवय आँखरी छोर मा, सायद तेखर दुख सहिथन।
आथे जब बरसात इहाँ के, गली खोर चिखला भारी।
आने जाने वाला मन हा, देवत जाथें बड़ गारी।।
कतको अरजी कर डारे हन, जा के दफतर सरकारी।
फेर कहूँ नइ होवत हावय, हमर मांग के निस्तारी।।
छोटे ले बड़का मंत्री कर, दुखड़ा अपन सुनाए हन।
एक बार तो गली सड़क मा, थरहा घला लगाए हन।।
स्कूल घलो हा गीरत हावे, छत मा पपड़ी होगे हे।
पंचायत मा अरजी होगे, तभो बुता हा सो गे हे।।
छोट गाँव मा करलाई के, किस्सा कतिक सुनावँव जी।
तेखर सेती मैं सलाम हा, छंद लावणी गावँव जी।।
हवय गाँव हा हमरो चंदा, चिखला दाग लगाथे जी।
हरियाली के गोद बसे हे, हमर गाँव मन भाथे जी।।
अनिल सलाम
उरैया नरहरपुर कांकेर छत्तीसगढ़
सत्र- 11
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[7/9, 9:00 PM] *रोला छंद*
*गाँव*
सरईपाली गाँव, तीर हावय पाली के।
चौरा ठाकुर देव, हवय मंदिर काली के।।
हमर गाँव के तीर, घना हे जंगल झाड़ी।
हिरण सुअर अउ साँप, कोटरी आथे बाड़ी।।
*अनुज छत्तीसगढ़िया*
*पाली जिला-कोरबा*
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[7/9, 9:01 PM] भागवत प्रसाद, डमरू बलौदा बाजार 15: *गाँव*
*सरसी छंद*
खोजत हावँव तन धरके मैं, कहाँ गँवागे गाँव।
देश राज कोनो नइ बाँचिस, कती डहर अब जाँव।।
मोर गाँव के सुरता आथे, चात्तर चौरा खोर।
बर पीपर के ठंडा छँइहा, चिरई चिरगुन शोर।।
परछा चौंरा मा सब खेलन, मंझनिया अउ सांझ।
पेटी तबला माँदर बाजय, शंख मंजिरा झांझ।।
मंझनिया के बोरे पसिया,लइका के चीं चाँव।
खोजत हावँव तन धर के मैं,कहाँ गँवागे गाँव।।
बीच गुँड़ी मा बइठक बैइठँय, छोटे बड़े किसान।
गोठ ध्यान ले सुनँय सबोझन, काहँय जेन सियान।।
ऊँच नीच अउ जात-पात के, छोड़ भेद अउ भाव।
सदा दूध पानी जस निर्मल, सबबर करँय नियाव।।
संझाती बरदी के भावय, घंटी घूमर ठाँव।
खोजत हावँव तन धरके मैं, कहाँ गँवागे गाँव।।
पारा भर के बाबू पीला, एक जगा सकलाँय।
अपन-अपन सब सुख दुख ला जी, पूछँय संग बताँय।।
रोज पड़ोसी लेवँय देवँय, खाये बेरा साग।
सुख दुख मा सहयोग करैंअउ, सँहरावँय निज भाग।।
दूसर के दुख अपने समझँय, नइ खोजँय जी दाँव।
खोजत हावँव तन धरके मैं, कहाँ गँवागे गाँव।।
भागवत प्रसाद चन्द्राकर
डमरू बलौदाबाजार(छ. ग.)
05/07/2025
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[7/9, 9:04 PM] तातुराम धीवर 21: ।। आल्हा छ्न्द ।।
भैंसबोड़ के पावन माटी, बंदव तोला बारम्बार ।
जननी जनम धरा अस तैं हा, दिये नगत के मया दुलार।।
खेलवँ कूदवँ तुँहरे कोरा, हवय तोर भारी उपकार ।
तही मोर वो खेती बारी , ये जिनगी के अस आधार ।।
बर तरिया बड़का हे दाई, बर पीपर के शीतल छाँव ।
नान्हे डबरी खन्ती बाँधा , तरिया हावय बस्ती ठाँव।।
मातु शीतला कोरा बइठे, बजरंगी हावय रखवार ।
हाथ धरे हे गदा पताका , सबके विपदा देवय टार।।
अखरा,ठाकुर देव सहाड़ा, सत् बहिनी के शक्ति अपार ।
महादेव चहुँओर बिराजे, तरिया डबरी के हे पार।।
हिरदे ठउर कृष्ण अउ राधा, अमर प्रेम के बँशी बजाय।
भक्तिन दाई कर्मा माता , जगन्नाथ ल खिचड़ी खवाय।।
गजब मया हे मोर गाँव मा ,गजब मयारू हावय नाम ।
होत बिहनिया लोगन टहले ,करथें योगा प्राणायाम ।।
मोर गाँव के माटी चन्दन, निस दिन माथा तिलक लगाँव।
जब जब जग मा जनम धरवँ वो ,दाई सेवा तोर बजाँव ।।
तातु राम धीवर
भैंसबोड़ जिला धमतरी
मो. 6267792997
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[7/9, 9:05 PM] लीलेश्वर देवांगन,बेमेतरा: गाँव
त्रिभंगी छंद
भरमार भरे हे,लगे परे हे,हमर गाँव के,पेड़ इहाँ।
जंगल कस लागे,रुखवा जागे,खेत खेत के ,मेड़ इहाँ।।
अब शहरे जइसन,नइहे प्रदुषण शुद्घ इहाँ जी,हवा हवै
अउ नर नारी बर,सबो घरो घर,घर के देसी ,दवा हवै।।
हे चिरई के डेरा,करे सबेरा, सबे जीव के, ध्यान रखै।
वो गौ माता के, पूजन करके,अपन गाँव के ,मान रखै।।
सुन हमर गाँव मा,लीम छाँव मा,देवी माँ के ,हे डेरा।
सब सुमर सुमर के ,नरियर धर के,जावय पूजा,के बेरा।।
लिलेश्वर देवांगन
छंद साधक 10
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[7/9, 9:06 PM] Dropdi साहू 15 Sahu: शक्ति छंद -"गँवावत नँदावत गाँव"
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छबाए लिपाए सजाए रहै।
कहूँ कोत जाए लजाए कहै।।
कहानी जुबानी इही गाँव हा।
लुकागे हजागे कहाँ नाँव हा।।
दिखै ना नजारा पुराना इहाँ।
गड़े नेरवा मोर हावै जिहाँ।।
दया के खजाना मया हा भरे।
उही गाँव खाली जनाए परे।।
बबा डोकरा के न गारी परै।
न तो डोकरी टिंहकारी भरै।।
बलाई चलाई भुलाए गड़ी।
गँवागे नता के पुछारी घड़ी।।
भरे हाथ आसीस अनमोल हे।
अबोला असन गाँव के बोल हे।।
गँवावत नँदावत भलाई घला।
दिखै नइ मयारुक बोली गला।।
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द्रोपती साहू "सरसिज"
साधक सत्र-15
महासमुंद छत्तीसगढ़
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[7
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गाँव*
विधा- सरसी छंद
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रद्दा-डोली मा अब नइ हे, बर-पीपर के छाँव।
खोजत-खोजत हार गयें मैं, कहाँ गवाँ गे गाँव।।
एक गाँव के रहवइया सब, लगँय एक परिवार।
मया-पिरित के बँधना बाँधे, मानँय तीज तिहार।।
अब सब करथें बात-बात मा, एक दुसर बर खाँव।
खोजत-खोजत हार गयें मैं, कहाँ गवाँ गे गाँव।।
लगत रिहिस चौपाल गाँव मा, करत सियानी गोठ।
सही गलत के होवय निरनय, सुनता राहय पोठ।
जाने कहाँ बिसर गे अब वो, न्याय करइया ठाँव।
खोजत-खोजत हार गयें मैं, कहाँ गवाँ गे गाँव।।
सिधवा बेटा रहँय जिहाँ सब, गावँय सुख के गीत।
आज नशा के चक्कर मा फँस, करथें रोज अनीत।
नशा मिलावत हे माटी मा, ददा-बबा के नाँव।
खोजत-खोजत हार गयें मैं, कहाँ गवाँ गे गाँव।।
*डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
💐💐💐💐💐💐💐
बरवै छंद ;- गाँव
सरग बरोबर सुग्घर , लागय गाँव ।
बर पीपर निमवा के , जुड़ -जुड़ छाँव ।।
नान नान कुरिया मा , चारों धाम ।
खोर्रा खटिया देवँय , सुख आराम ।।
घर घर तुलसा चौंरा , सालिक राम ।
रोज झँकावय दीया , नोनी शाम ।।
देव मनाथें लोगन , नरियर फोड़ ।
प्यास बुझाथे जुरमिल , झिरिया कोड़ ।।
सुख दुख बाँटय मुखिया , मीठ जुबान ।
कुकरा बासत होवय , रोज बिहान।।
झूठ नहीं काहत हँव , सँच सिरतोन ।
धनहा डोली उगलै , चाँदी सोन ।।
फरहदा मोर हाबय , निर्मल गाँव ।
गड़े नेरवा भुइँया , माथ नवाँव ।।
कौशल कुमार साहू
फरहदा (सुहेला )
जिला -बलौदाबाजार-भा.पा.
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
: कुंडलिया छंद
मोर गाँव गँवागे
चपकावत चौंरा गली, साँकुर होगे खोर।
दिखय नहीं तरिया कुँआ, गाँव गँवागे मोर।।
गाँव गँवागे मोर , उजरगे बिही बगीचा।
जात धरम मा आज, होत हे खींचिक खीचा ।
दया मया ले दूर, आदमी हे भरमावत ।
नशा पान मा चूर, मरत हे सब चपकावत।।
कौशल कुमार साहू -4
फरहदा (सुहेला )
जिला-बलौदाबाजार
💐💐💐💐💐💐💐💐
[: चौपाई
मोर गाँव
मोर गांव फरहदा हवय जी ।
जिहाँ सुमत मा सबो रहय जी ।।
नान नान अँगना घर कुरिया ।
बिल्लस खेलैं सँगी जँहुरिया ।।
गाँव बसे जमुनइया तीरे ।
धार बहय पखरा ला चीरे ।।
सावन मा उफनावँय अड़बड़।
खेत खार हो जावय गड़बड़ ।।
गांव गुड़ी मा नाँचा पेखन।
रात रात भर जागँन देंखन ।।
कठल कठल के हाँसन खुलखुल ।
चुप नइ राहन तुलमुल तुलमुल ।।
ठाँव ठाँव मा देव बिराजै ।
महमाया मा माँदर बाजै ।।
पाँच भगत मिल गावै सेवा ।
भोग लगै खुरहोरी मेवा ।।
घर घर सबके बारी बखरी ।
तुमा फरे जी चकरी चकरी ।।
धनिया मिरचा अउ चिरपोटी।
पीस खाय चटनी सँग रोटी ।।
परिया भाँठा हाबय धनहा ।
रमे रथे मिहनत मा मन हा।।
लोहा बनगे सबके तन हा।
थकँय कभू ना पूत किसनहा।।
रचना रच रच कौशल गाइन ।
टेक राम हा मंच सजाइन ।।
जस करनी तस सब फल पाइन।
ठाकुर मन हा माल उड़ाइन ।।
कौशल कुमार साहू
फरहदा (सुहेला )
जिला -बलौदाबाजार-भाटापारा
💐💐💐💐💐💐💐
: कुंडलिया छंद
गांव
दुरमत माते गाँव मा , जब ले होय चुनाव।
दल दल मा मनखे जिहाँ, बदलै अपन सुभाव।
बदलै अपन सुभाव, मरे अउ मारे खातिर ।
खोजत हे सब दाँव, आदमी बनके शातिर ।।
कुकुर सही गुर्राय , मिलैं ना हाँसत कुलकत।
भाई बने बिरान, घरोघर माते दुरमत।।
कौशल कुमार साहू
फरहदा ( सुहेला )
जिला-बलौदाबाजार-भा.पा.
💐💐💐💐💐💐💐
: गाँव*
*विधा :- मनहरण घनाक्षरी*
चारो कोती खेत-खार, डोली धरसा कछार,
चिन्हारी तो आय संगी, ये गँवई गाँव के।
बन झाड़ी रुखराई, महकत अमराई,
मिलथे जी सुख इहें, बर लीम छाँव के।
विराजे हे महामाई, आसीस देवैया दाई,
चिनहा हावय इहाँ, सुमता के पाँव के।
इही मोर पहिचान, "साँची" मोर भगवान,
पइयाँ लागँव मैं हा, ये मयारू ठाँव के।।
*डॉ. इन्द्राणी साहू "साँची"*
भाटापारा (छत्तीसगढ़)
💐💐💐💐💐💐💐💐
बरवै छंद ;- गाँव
सरग बरोबर सुग्घर , लागय गाँव ।
बर पीपर निमवा के , जुड़ -जुड़ छाँव ।।
नान नान कुरिया मा , चारों धाम ।
खोर्रा खटिया देवँय , सुख आराम ।।
घर घर तुलसा चौंरा , सालिक राम ।
रोज झँकावय दीया , नोनी शाम ।।
देव मनाथें लोगन , नरियर फोड़ ।
प्यास बुझाथे जुरमिल , झिरिया कोड़ ।।
सुख दुख बाँटय मुखिया , मीठ जुबान ।
कुकरा बासत होवय , रोज बिहान।।
झूठ नहीं काहत हँव , सँच सिरतोन ।
धनहा डोली उगलै , चाँदी सोन ।।
फरहदा मोर हाबय , निर्मल गाँव ।
गड़े नेरवा भुइँया , माथ नवाँव ।।
कौशल कुमार साहू
फरहदा (सुहेला )
जिला -बलौदाबाजार-भा.पा.
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कौशल साहू: चौपाई
मोर गाँव
मोर गांव फरहदा हवय जी ।
जिहाँ सुमत मा सबो रहय जी ।।
नान नान अँगना घर कुरिया ।
बिल्लस खेलैं सँगी जँहुरिया ।।
गाँव बसे जमुनइया तीरे ।
धार बहय पखरा ला चीरे ।।
सावन मा उफनावँय अड़बड़।
खेत खार हो जावय गड़बड़ ।।
गांव गुड़ी मा नाँचा पेखन।
रात रात भर जागँन देंखन ।।
कठल कठल के हाँसन खुलखुल ।
चुप नइ राहन तुलमुल तुलमुल ।।
ठाँव ठाँव मा देव बिराजै ।
महमाया मा माँदर बाजै ।।
पाँच भगत मिल गावै सेवा ।
भोग लगै खुरहोरी मेवा ।।
घर घर सबके बारी बखरी ।
तुमा फरे जी चकरी चकरी ।।
धनिया मिरचा अउ चिरपोटी।
पीस खाय चटनी सँग रोटी ।।
परिया भाँठा हाबय धनहा ।
रमे रथे मिहनत मा मन हा।।
लोहा बनगे सबके तन हा।
थकँय कभू ना पूत किसनहा।।
रचना रच रच कौशल गाइन ।
टेक राम हा मंच सजाइन ।।
जस करनी तस सब फल पाइन।
ठाकुर मन हा माल उड़ाइन ।।
कौशल कुमार साहू
फरहदा (सुहेला )
जिला -बलौदाबाजार-भाटापारा
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मनहरण घनाक्षरी छंद "बरसात"
********
आए हवै बरसात, गिरे पानी दिन रात,
किचिर काचर माते, चिखला हा गाँव मा।
चिरई हा खोजे चारा, झाँके हे बइठे डारा,
गूँजे पारा गाँव गली, कउवाँ के काँव मा।
बिला ले झाँके मुसुवा, मेंछा हे कर्रा कुसुवा,
बइठे बिलई ताके, ओइरछा के छाँव मा।
टररावत मेचका, कूदे टेड़गा पेचका,
पनही चिखला लोटे, चोरोबोरो पाँव मा।।
चले हे किसानी काम, फुरसत ना आराम,
बाढ़े बुता सब के हे, लगे रोजगार मा।
कहूँ बेरा उवे घाम, गाँव दिखे झिमझाम,
खलखल हाँसी बोली, चले हावै खार मा।
बइला के अरा तता, बियासी के चले पता,
कहूँ कोड़े थरहा ला, जुरी राखे पार मा।
हरियर हरियर, दिखे खेत खार हर,
भुइयाँ के भाग जागे, बरखा बहार मा।।
लगथे भले चिखला, भुला जाथन दुख ला,
भाथे सुग्घर मौसम, सबो दिन साल के।
सबो के महत्ता हावै, सबो दिन मान पावै,
बरसात बरसथे, बरसा सुकाल के।
परघउनी करबो, उच्छाह मन भरबो,
महीना चौमासा बने, दुश्मन दुकाल के।
रझरझ बूँद झरे, भुइयाँ के तरी भरे,
जम्मों जीव धीर धरे, गुजरे बेहाल के।।
******
द्रोपती साहू "सरसिज"
साधक सत्र-15
महासमुंद छत्तीसगढ़
💐💐💐💐💐💐💐💐
: *रोला छंद - गाँव*
सुग्घर हावय गाँव, मया के हे फुलवारी।
पीपर के हे छाँव, दिखय जी हरियर बारी।।
हरियर खेती-खार, अबड़ हे धनहा डोली।
जुरमिल रहिथन संग, मीठ हे भाखा बोली।।
तरिया-नदिया खार, पार छलकत हे पानी।
अंतस गदगद होय, देख सुग्घर जिनगानी।
जम्मो तीज-तिहार, इहाँ मिल सबो मनावैं।
करमा पंथी फाग, गीत जुरमिल के गावैं।।
बइठे लिमुवा छाँव, शीतला रानी दाई।
रहिथे निसदिन संग, तीर मा हे महमाई।।
सउँहे ठाकुर देव, गाँव के बीच बिराजे।
महावीर हनुमान, बनावै सबके काजे।।
*राजकुमार निषाद'राज'*
*बिरोदा धमधा जिला-दुर्ग*
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मोर मया के गाँव ( आल्हा छंद)
बड़े बिहँनिया कुकरा बासे, मनखे मन ला उही उठाय।
घर कुरिया के बुता काम मा , महतारी मोरो लग जाय ।।
सुत उठ के सबले पहिली मैं , परथँव ददा दाइ के पाँव ।
जिंखर ममता के छइँहा मा , जिनगी सुग्घर अपन बिताँव ।।
दाइ शीतला महमाई हे , संग बिराजे हे जी गाँव ।
देवत हे आशीष सबो दिन , हावय उंकर शीतल छाँव ।।
नदिया तरिया खेत खार ले , भरे अन्न धन के भंडार ।
गाँव हमर जी धर्म धाम हे , पाये हावन हम उपहार ।।
हमन गाँव मा जुरमिल रहिथँन , हमर मेहनत हे पहिचान ।
पुरखा मन के दिए निशानी, धर के चलथन सीना तान ।।
मयारू मोहन कुमार निषाद
गाँव - लमती भाटापारा
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- रोला छंद
सुरता आथे गाँव, हमर जुन्ना परिपाटी।
बर पीपर के छाँव, उहाँ के पावन माटी।
खो-खो बिल्लस खेल,कभू देखन नइ बेरा।
छुपम छुपाई रेस,घरों घर डालन डेरा।।
मँदरस जइसे मीठ, हवै लोगन के बोली।
बाँटय मया दुलार, इहाँ सब भरके झोली।
मोर गाँव के नाँव, शान से सब झन लेथें।
पहुना मन ला मान, गाँव भरके मन देथें।।
बोहरही के तीर,गाँव हा हमरो हावै।
नगरगाँव हे नाँव, गाँव बड़ बहुते भावै।
बड़का बड़का देख, बने हे महल अटारी।
दया मया के छाँव, हवँय जम्मों नर नारी।।
संगीता वर्मा
भिलाई
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गाँव-- रूप घनाक्षरी
हमर सुग्घर गाँव, रुखराई के हे छाँव,
आरा पारा गली -गली,नता गोता हे हजार।
दया मया रख भाव, मनखे करथे काज,
तेखर सेती कहिथे,करम हवै अधार।
बारी बखरी मा नार, सुमत हे सुखसार,
मीठ बोली भाखा सन,मया धार हे अपार।
त्याग के जी बैर भाव,अंतस ले घोर मया,
घर गली खोर इँहा,लगे निक तो बहार।।
संगीता वर्मा
अवधपुरी भिलाई
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लावणी छन्द(16/14)
गाँव
शहर बनत हे गाँव -गाँव हा, उजरत हे खपरा छानी।
सच होवत हे कहे रहिस जें, हमरो दादी अउ नानी।।
माटी ले दुरिया होवत हे, माटी के माटी काया।
माटी मा मिल जाही संगी, भरम भूत के सब माया।।
सबो नोकरी चाहत हावय, कोन करे घर के खेती।
खेत खार के काम इहाँ जी, होथे जब अपने सेती।।
महल अटारी के बनई मा, कम होवत हे रुखराई।
अइसे मा कइसे बनही अब, गाँव सुघर अउ सुखदाई।।
छन्द साधक सत्र -21
जगन्नाथ ध्रुव
चण्डी मंदिर घुँचापाली,
बागबाहरा
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: दोहा छन्द - गाँव
बागबाहरा तीर मा , हमर बसे हे गाँव।
चण्डी दाई के जिहांँ , सुग्घर अँचरा छावँ।.
उत्ती मंदिर शीतला, जगमग दया अँजोर।
बुड़ती चण्डी मातु हे, बइठे भुइयाँ फोर।।
चण्डी के दरबार मा, भलवा आथे रोज।
खाथे मीठ प्रसाद ला, मंदिर मंदिर खोज।।
चण्डी डोंगर बाँध के, बोहावत जल धार।
खेत किसानी के इही, बने हवै आधार।।
सुरता करके मोर जी , आहू एको घाँव।
बन जंगल सँग देखहू, सुग्घर सुग्घर ठाँव।।
सत्र- 21
जगन्नाथ ध्रुव
चण्डी मंदिर घुँचापाली
बागबाहरा
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: लावणी छन्द
गाँव
मोर गाँव के डीही डोंगर, निशदिन तोरे गुण गाथँव।
आवत जावत घेरी बेरी, तोला मँय माथ नवाथँव।।
काम बुता ले रोज साँझ के, तोर दुवरिया जब आथँव।
महतारी के कोरा जइसे , अँचरा छइहाँ सुख पाथँव।।
सत्र -21
जगन्नाथ ध्रुव
चण्डी मंदिर घुँचापाली
बागबाहरा
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घनाक्षरी -8, 8, 8, 7
गाँव
खेत के मेड़ पार मा, नदिया के कछार मा,
चारो कोती देख लव, कहाँ पेड़ छाँव हे।
सब मेहमान बर, अउ पहिचान बर,
मन घर कुरिया मा, कहाँ अब ठाँव हे।।
सब घर दुवारी मा, महल औ अटारी मा,
दाई ददा के सुग्घर, कहाँ इहाँ पाँव हे।
घर-घर संस्कार मा, तीजा पोरा तिहार मा,
ननपन के जइसे, कहाँ अब गाँव हे।।
सत्र -21
जगन्नाथ ध्रुव
चण्डी मंदिर घुँचापाली
बागबाहरा
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: मनहरण घनाक्षरी
खेती डोली पानी भरे,नहर उच्छाल करे,
गाँव भर पानी-पानी, होगे ठाँव-ठाँव रे।
अदरा के बरसा मा,गाड़ी फँसे धरसा मा।
मच गेहे हाहाकार, छाँटा मोर गाँव रे।
नाली नहीं कोनों कोती, पानी फेंके बबा पोती,
नान-नान गली खोर, कोन ला बताँव रे।।
देख सरपंच तहूँ, घटे अनहोनी कहूँ,
गरुवा बछरुवा के, टूट जही पाँव रे। ।
सुमित्रा शिशिर
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*सरसी छंद:- मोर मया के गाँव*
आजा तोला आज घुमादँव, मोर मया के गाँव।
दुख दुख जिहाँ बँटे मिल रोजे, गुड़ी चौक के ठाँव।।
होवत बिहना कुकरा बासे, गाँव सबो उठ जाय।
गली खोर घर अँगना गोबर, लीप सुग्घर ममहाय।।
गीत कुँआ के घंटी गाये, छू के दाई पाँव।
आजा तोला आज घुमादँव, मोर मया के गाँव।।
खेती डोली बारी बखरी, करके भेंट किसान।
धरती दाई माथ नवा नित, अपन बढा़ये मान।।
माटी ले मिल माटी बनथे, नइ जानय फिर दाँव।
आजा तोला आज घुमादँव, मोर मया के गाँव।।
सबले बड़का पूँजी जीँकर, संस्कृति अउ संस्कार।
बरे एक आगी ले चुल्हा, गाँव जबर परिवार।।
खाय साग दे ले हिलमिल के, सुनता माथ नवाँव।
आजा तोला आज घुमादँव, मोर मया के गाँव।।
रिसता मान इहाँ बड़ पाथे, सबझन संग बधाय।
होय परोसी कहूँ नही सुन, नता सबो तब ताय।।
भेद कुकुर अउ मनखे मा बड़, चिन्हे लेके नाँव।
आजा तोला आज घुमादँव, मोर मया के गाँव।।
चिटिक मोल धन पाय नही सुन, मन के आदर होय।
देख सुखी सब सुख होथे बड़, दुख मा पा के रोय।।
मया सुमत धर रोज साँझ के, बइठे पीपर छाँव।
सुग्घर सच मा हे मनोज बड़, तोर मया के गाँव।।
दुख दुख जिहाँ बँटे मिल रोजे, गुड़ी चौक के ठाँव.....
मनोज कुमार वर्मा
बरदा लवन बलौदाबाजार
साधक सत्र 11
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*सरसी छन्द - गाँव*
जंगल कटगे पेड़ सिराग़े, नइ पीपर के छाँव ।
शहर नगर के चकाचौंध में, कहाँ नँदागे गाँव ।।
होगे कांक्रीट गली नुक्कड़, फ़ुतकी कहाँ उड़ाय ।
चिखला माटी पटपर भाँठा, अउ गोठान खवाय ।।
गाय गरू छेल्ला अब भागे, थीर न कोठा पाँव ।
शहर नगर के चकाचौंध में, कहाँ नँदागे गाँव ।।
बइठे नी दिखय सुने न मिलय, सियान मन के गोठ ।
चौराहा चौपाल सिरागे, नीति न्याय नइ पोठ ।।
चिट्ठी पत्री जम्मो भठगे, अब मोबाइल काँव ।
शहर नगर के चकाचौंध में, कहाँ नँदागे गाँव ।।
गिल्ली डंडा फुगड़ी बिल्लस, फोदा बाँटी खेल ।
खीला गड़ऊनी टायर खेला, रेस डीप नइ मेल ।।
सबों खेल मोबाइल खागे, काखर करबो नाँव ।
शहर नगर के चकाचौंध में, कहाँ नँदागे गाँव ।।
नाँगर बइला नइ जोतइया, दौँरी खेदे कोन ।
ट्रैक्टर में सब कारज होवय, मिलथे सस्ता लोन ।
हार्वेस्टर लुवई मींजाई, लेआ एके घाँव ।।
शहर नगर के चकाचौंध में, कहाँ नँदागे गाँव ।।
गाँव छोड़ सब शहर डहर जी, भागय खोजे काम ।
अपन गुड़ी छोड़ कहाँ जाबे, ईहें मिलही दाम ।।
माटी के अब मान रखव गा, भेद करव झन पाव ।
जनम भूमि के मोल समझबो , तभे बाँचही गाँव ।।
नंदकिशोर साव
राजनांदगांव
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नीलम जायसवाल: *छन्न पकैया छन्द*
*- गाँव -*
छन्न पकैया-छन्न पकैया, गांँव महूँ हा जाहूँ।
पेड़ के पाके आमा खाहूँ,बोइर अमली पाहूँ।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, गांव के सुरता आथे।
चारो कोती हरियर-हरियर, सबके मन ला भाथे।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया,बड़भागी जे हावै।
वोखर गाँव म रोजी-रोटी, शुद्ध हवा वो पावै।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, गांँव के तुलसी चौरा।
बारी-बखरी नरवा-तरिया, मड़ई गौरी गौरा।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया, गरुवा-भूसा-चारा।
शहर में तोला नहीं मिलै जी, गांँव के टोला पारा।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया,बर पीपर के छँइया।
कका बबा हे-नता सगा हे, दाई हावय भुँइया।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया,घास फूस के छानी।
कतको किस्सा कतको कहिनी,गोठ ह आनी बानी।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया,देख ग चारो कोती।
लुगरा पोलखा, सांँटी करधन, कुर्ता पागा धोती।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया,करय लीम के दतुवन।
बैलागाड़ी के रेंगे मां,बन जाथे जी रावन।।
छन्न पकैया-छन्न पकैया,गाँव ह बढ़िया लागे।
गाँव ह गाँव नहीं रहिगे अब,वहू ह बढ़गे आगे।।
- नीलम जायसवाल, भिलाई -
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: गाँव
बड़ मया पिरित के,धार रेंगथे,मोरे गँवई, गाँव हरे।
हरियर- हरियर हे,चारों कोती,बर पीपर के, छाँव हरे।
नदिया नरवा हा,कुलकत बहथे,पुरवाही हर,प्रान हरे।
अउ सुआ ददरिया,मेला मड़ई,मीत मितानी,शान हरे।।
हे गजब मयारुक,मोर गाँव के,माटी सुख के,खान हरे।
जंगल झाड़ी अउ,खेती बारी,पुरखा मनके,आन हरे।
मंदिर देवालय,नीक लगे गा,जइसे चारों ,धाम हरे।
सुत उठ के रोजे,मनखे बोलय,जय-जय सीता,राम हरे।।
धुर्रा माटी मा,पले बढ़े हन,बात इही हर,सार हरे।
अँचरा पीपर के,छइहाँ जइसे,भेदभाव हा,टार जरे।
जब्बर कमिया के,मान गौण बर,मनखे पाछू,कहाँ हटे।
हे सरग बरोबर,मोर गाँव हे,कोनों नइये,इहाँ बटे।।
विजेन्द्र कुमार वर्मा
नगरगाँव (धरसीवांँ)
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गाँव
मोर गाँव के तीर मा,महानदी के धार।
हावय बुड़ती ड़हर मा,हमरो खेती खार।।
गाँव हवय गा पोखरा,राजिम ले कुछ दूर।
हावय खेती खार गा,नइ कोनो मजबूर।।
तरिया तिर मंदिर बने,होथे पूजा रोज।
रामायण सावन चले,फूल चढ़ावें खोज।।
भोले जी बइठे हवे,गौरी माँ के साथ।
फूल पान नरियर चढ़ा,महूँ झुकाववँ माथ।।
जगन्नाथ बलराम हे,बहिन सुभद्रा संग।
रथ निकले रथदूज मा,मेला भरथे रंग।।
दुर्गा माँ बइठे हवय,करके शेर सवार।
देवत हे आशीष ला,करथे भव ले पार।।
खिचड़ी कान्हा खात हे, कर्मा माता भोग।
रक्षक हावे किसन हा,नहीं सतावे रोग।।
पढ़े लिखे बेटी बहू,निकले धरके हाथ।
बोली गुरतुर बोल के,हँसी ठिठोली साथ।।
मंदिर हे बजरंग के,हनुमत पारा नाँव।
बोली भाखा मीठ हे,नइये कीलिर काँव।।
मंदिर हे माँ शीतला,शीतला तरिया नाँव।
बर पीपर अउ लीम के,सुग्घर हाबे छाँव।।
चालिस हबे दुकान हा,लगथे इहाँ बजार।
सेमी गोभी मिल जथे,पारत रथें गुहार।।
गुलगुल भजिया मुँग बड़ा,मिले समोसा खूब।
आलू गुन्डा खा बने,रसगुल्ला में डूब।।
होली दीवाली मने,धरे मया के रंग।
नाचे गावेँ गा बजा,ढ़ोलक अउ मिरदंग।।
गजबे सुग्घर लागथे,कतका करँव बखान।
लइका मन बर हे मया,बड़का बर सम्मान।।
केवरा यदु"मीरा"राजिम
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