Followers

Saturday, October 11, 2025

बेजा कब्जा

  चौपाई छ्न्द - बेजा कब्जा 


जगा छेंक दिन हे सरकारी। बना डरिन बड़ महल अटारी।।

गउ माता बर नइ निस्तारी। अपन जमाये बखरी बारी।।


जब जब होय चुनावी गीता। तब तब काँटय इन मन फीता।।

लावय पथरा माटी ईंटा। घोल बनावय मारय छींटा।।


नइ बाँचिन हे भाँठा टिकरा।  तरिया डबरी गड्ढा डिपरा।।

छेंकय धरम करम ला बिसरा। शासन के आँखी भर चिपरा।।


खेल कूद के जगा सिरागे। बेजा कब्जा मा सब खागे।।

मरघट भूत मसान भगागे। मरघट्ठी हा घलो हजागे।।


पंचायत हर होगे लँगड़ा। बेजा कब्जा के हे भँगड़ा।।

छेंकत हावय सत्ताधारी। बेंचय छेंक बने व्यापारी।।


कुछ तो करव मोर गिरधारी। बिकल होत हे गउ महतारी।

छीनत मनखे सथरा थारी। दुख पावत हे गउ मन भारी।।


कहिथें मनखे गउ नइ राखन। घर मा अब गइया नइ बाँधन।।

नइ ये परिया खार चरागन। अपन मूँड़ नइ बोझा लादन।।


    तातु राम धीवर 

भैसबोड़ जिला धमतरी

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: कुंडलिया छंद-- बेजा कब्जा 


बाँचत नइहे देख लौ, खेत-खार दइहान।

बेजा कब्जा डारके, खोजत हें मइदान।।

खोजत हें मइदान, जिहाँ खेले ला जावँय।

गरुवा बइला आज, कहाँ ले चारा पावँय।

धरसा टिकरा पार, सबो ला हावँय खाँचत।

पटपर भाँठा डीह, घलो अब नइहे बाँचत।।



मुकेश उइके "मयारू"

ग्राम- चेपा, पाली, कोरबा(छ.ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: सरसी छन्द गीत


चारो कोती बेजा कब्जा, के हावय भरमार।।

कोंदा जइसे बइठे बइठे, देखय बस सरकार।


छेंकागे हावय सँगवारी, दिखे नहीं मइदान।

देख रपोटे बइठे हावँय, कतको मन दइहान।।

खेल चले बेजा कब्जा के, बाढ़े भ्रष्टाचार।

चारो कोती बेजा कब्जा, के हावय भरमार।।


नइ बाँचे हे नदिया नरवा, उजरे जंगल आज।

बेजा कब्जा धारी मनके, आये हावय राज।।

छेंकागे अब गाँव गली हा, छेंकागे कोठार।

चारो कोती बेजा कब्जा, के हावय भरमार।।


सरकारी परिया भुँइयाँ मा, कब्जा बाढ़े जाय।

मरघट्टी मा बेजा कब्जा, हाय आदमी हाय।।

कोन रोकही बेजा कब्जा, बाढ़े कब्जादार।

चारो कोती बेजा कब्जा, के हावय भरमार।।


डी.पी.लहरे'मौज'

कवर्धा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐



ताटंक छंद- बेजा-कब्जा


बेजा-कब्जा सबो जगह मा, दिन-दिन बाढ़त हे भारी।

धरे सुवारथ मनखे अब तो, हृदय चलावत हें आरी।।


बेजा-कब्जा जल जंगल अउ, नरवा नदिया मा होगे।

भाठा भर्री नइ तो बाचिस, परिया धरसा हा खोगे।।

गायब हे सरकारी भुइँया, गायब हे कोला-बारी।

बेजा-कब्जा सबो जगह मा, दिन-दिन बाढ़त हे भारी।।1


बेजा-कब्जा मन्दिर मठ मा, मठाधीश मन हे बाढ़े।

अंधभक्ति के राग अलापत, धर्म पुजारी हें ठाढ़े।।

देव धरम के आड़ लिए इन, लूटत हें आरी-पारी।

बेजा-कब्जा सबो जगह मा, दिन-दिन बाढ़त हे भारी।।2


बेजा-कब्जा संस्कृति मा अब, होगे हे परदेशी के।

छेंक डरिन दइहान संग मा, चारागाह मवेशी के।।

मालिक बन बइठे परदेशी, छीन हमर सथरा थारी।

बेजा-कब्जा सबो जगह मा, दिन-दिन बाढ़त हे भारी।।3


बेजा-कब्जा सत्ता मा हे, करँय वोट के घोटाला।

मचे लड़ाई कुर्सी के हे, सबके मुँह मा हे ताला।।

दीन-दुखी जनता के कब तो, मिटही संगी लाचारी।

बेजा-कब्जा सबो जगह मा, दिन-दिन बाढ़त हे भारी।।4


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 29/09/2025

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*

           *सार छंद* 


बाढ़त हवय दिनों दिन संगी,बेजा कब्जा धारी ।

खोर गली सब होगे सँकरा, नइ बाँचत हे बारी।


दिख जाथे लोगन ला कोनो,जघा थोरको खाली।

घेर डारथें तुरते भैया,नइ जावन दय काली।

कोनो बड़े दुकान बनावै, कोई महल अटारी।

बाढ़त हवय दिनों दिन संगी,बेजा कब्जा धारी।


नइ बाँचत हे नँदिया तरिया,नइतो जंगल झाड़ी।

नइ बाँचत हे सड़क पाइ तक,घेरत हवयँ पहाड़ी।

पता चलय नइ बना डारथें ,पट्टा कब सरकारी।

बाढ़त हवय दिनों दिन संगी, बेजा कब्जा धारी।


जागरूक लोगन जब कोनो,आके रोक लगाथें।

बिन मतलब के देख तहां ले,दुश्मन इन बन जाथें।

मना डारथें कहिके इनला, धरबो आरी पारी।

बाढ़त हवय दिनों दिन संगी, बेजा कब्जा धारी ।


शुरू उतारे छत ओइरछा, तहांँ बनावय सीढ़ी।

सोंचत नइहे कइसे करहीं,हमर अवइया पीढ़ी।

अपन आप देखय नइ कोनो,दूसर ला दय गारी।

बाढ़त हवय दिनों दिन संगी, बेजा कब्जा धारी।


पशु धन बर नइ बँचत चरी हे,दइहानो घेरागे।  

स्वारथ खातिर मनखे मनके, जीव सबो पेरागे।

अभी समझ नइ पावत कोनो,पछताही बड़ भारी। 

बाढ़त हवय दिनों दिन संगी, बेजा कब्जा धारी।

खोर गली सब होगे सँकरा, नइ बाँचत हे बारी।


        अमृत दास साहू 

          राजनांदगांव

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*

[10/4, 9:58 AM] विजेन्द्र: बेजा कब्जा- कुंडलिया छंद 


कइसन होगे गाँव हा, खोर-गली छेकायI

ये बीमारी ला खुदे, मनखे लेके आयI

मनखे लेके आय, लड़ाई झगरा भारीI

कब्जा हे दइहान, होय मुश्किल निस्तारीI

 बेजा कब्ज़ा रोग, काल बनगे हे अइसनI

मरघटिया मइदान, उहू ला छेके कइसन II


विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवां)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*

: कुण्डलिया  ""बेजा कब्जा ""


बेजा कब्जा आदमी, करॅंय गाॅंव ला छेक ।

गरुवा चारागाह बर, रथें नियत ला टेक।। 

रथें नियत ला टेक,जगह नइ बाचय कोई ।

बड़े मेड़ ला काट, अबड़ करथे जोताई ।।

कहाॅं नियत हे साफ, कहॉं मन में हे जज्बा ।

दिन लागय नइ रात, करत हे बेजा कब्जा।।


संजय देवांगन सिमगा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*

: बेजा कब्जा - कुकुभ छंद 


बेजा कब्जा देख सखा जी, मन मा होथे बड़ पीरा|

तरी - तरी खावत हें धन ला, जइसे खाय घून कीरा||


नँदिया नरवा जलदा पोखर, कब्जा  पइठू तरिया हें|

गौ गोरू मन का ला चरहीं, छेंक डरे सब परिया हें||


चुहकत हे उन गाढ़ लहू ला,  जोंक धरे  कस  धर ले हें|

परचाही हे उँकर ददा के, अपन जुगाड़ा कर ले हें|


संस्कृति शिक्षा भीतर डाँका, कब्जा पोथी पतरा हें|

धनहा डोली घलो नँगा लिन, छिनगे थारी सथरा हें||


लुलवावत हें गली खोर मा, मालिक बइठे दरवाजा|

भटकत हें बन जंगल पाहर, भुइँया के असली राजा||


भरम जाल के बड़का परबत, मुड़ माथा मा माड़े हें|

रखवारी हे छत के भीतर, ठीहा अइसे गाड़े हें||


नशा अबड़ हे धन अफीम के, चोला तो करिया गे हे|

महल अटाला कल खाना मा, मनखे धुत बगिया गे हे||


कब्जा होतिस मानवता बर, झरतिस फूल सरग ले जी|

सबो जीव के लालन पालन, बाँट बरोबर कर ले जी||


अश्वनी कोसरे रहँगिया कवर्धा कबीरधाम  छ. ग.


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*

 कुण्डलिया छन्द     -  बेजा कब्जा 


रोकव अब्बड़ होत हे, बेजा कब्जा आज।

कोनो मनखे ला इहाँ, नइ आवत हे लाज।।

नइ आवत हे लाज, चरागन बन छेकागे।

नइ बाँचिस गौठान, घरे मा गाय धँधागे।।

देखाथे जें शक्ति, इँखर आगू झन ढोकव।

बेजा कब्जा होत, देखके  जुरमिल रोकव।।


जगन्नाथ ध्रुव घुँचापाली

बागबाहरा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 - बेजाकब्जा 

छंद - विष्णुपद 


चूर अबड़ मनखे स्वारथ मा, अतका आज हवै|

अँधरा बनगे परमारथ के, भूले काज हवै||


खोर- गली परिया नइ बाँचत, डीही डोंगर हा|

सुरसा मुँहु कस बित्ता भर के, बढ़ गे दोंदर हा||


मेड़पार रुँधना- बँधना बर, झगरा होवत हे|

भाई- भाई के रस्ता मा, काँटा बोवत हे||


घर के बाहिर गाड़ी सयकिल, रखना मुश्किल हे|

अइसन करके तोला मनखे, का अब हासिल हे||


लइका मनके खेलकूद बर, अब मइदान कहाँ|

देखा आज गाय- गरुवा बर, हे दइहान कहाँ||


खाँच- खाँच के खाँच डरिन हे, नइ बाँचिस धरसा|

डिंग- डिंग ले मेड़पार मा, गिरे मूड़ भरसा||


उजड़े आज परे हे जंगल, अउ बाग बगइचा|

प्रकृति संग खिलवाड़ करव झन, होही सब खइता||


चेत करव अउ जतन करव गा, ये माटी भुइयाँ|

पार तभे होही सँगवारी, जिनगी के नइया||


ज्ञानु

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

: *बेजा कब्जा*

           

            *कुकुभ छंद*


 रहै गाँव मा भाठा भुइँया, बरदी जेमा ठोकावैं।

हरियर-हरियर चारा चर के, गाय भैंस मन मोटावैं।।

रुख राई के डारा पाना, छेरी-पठरू मन खावैं।

संझातीकन बरदी संगे, दौड़त घर कोती आवैं।।


खोर चउँक हा हेलमेल अउ, बड़े -बडे़ परछा चौरा।

नूनपाल खोखो भिर्री अउ, खेलन सब बाँटी भौरा।।

कोनो गली रहै नइ अइसे, जेमा गाड़ी नइ जावै।।

अपने आगू जगा छोड़ के, घर परछी ला बनवावैं।।


 बेजा कब्जा होगे सब्बो, गली खोर सब सकलागे।

हाल बतावँव अब का संगी, भाँठा तक आज नँदागे।।

 घर मा बंधाये गरुवा अउ, छेरी मन नरियावत हें।

चारा बिन सब भूख मरत हें, पशु नइ आज अघावत हें।।


खोर गली के का कहना अब, नइ बुलकै जोड़ा बइला।

बेजा कब्जा के चक्कर मा, होगे जइसे मुँह घइला।

चलना होगे दुभर गली मा, भाँठा जम्मो छेकागे।

काल बाढ़गे मनखे मन के, अउ तंगी भारी छागे।।


भागवत प्रसाद चन्द्राकर

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*

दोहा


बेजा कब्जा हा हरय, कानूनी अपराध।

मिलथे एमा जी सजा, झन करहू तुम साध।।


कोर्ट कचहरी मा अलग, पइसा हो बरबाद।

लालच के गा फेर मा, नइ बाँचै मरजाद।।


बेजा कब्जा जे करय, ते मुजरिम कहिलाय।

थाना संग वकील के, चक्कर उही लगाय।।


आज बाढ़गे अतिक्रमण, सोवत हे सरकार।

नइये डर क़ानून के, करत जुरूम हजार।।


शहर नगर ला का कबे, नइ बाँचत हे गाँव।

कब्जा के मारे इहाँ, नइ राखे बर पाँव।।


सिद्ध होय अपराध हा, हरजाना भरवाय।

नइते जाना जेल जी, नइ अउ कुछू उपाय।।

 

नंदकिशोर साव "नीरव"

राजनांदगाँव (छ. ग.)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*

[10/4, 11:32 AM] पद्मा साहू, खैरागढ़ 14: बेजा कब्जा 

              (सार छंद /ललित पद छंद 16/12)


खेल चलय बेजा कब्जा के, गाँव शहर मा भारी।

छेंकागे  भाठा  भर्री अउ, गली-खोर  फुलवारी।।


नइ बाँचत हे मंदिर-मस्जिद, घर भवन धर्मशाला।

नइ बाँचत  मरघट्टी  भुइयाँ, डबरी  नाहर  नाला।।

जेकर  लउठी   ओकर  भैंसा,  होवत  ठेकादारी।

खेल चलय बेजा कब्जा के, गाँव शहर मा भारी।।


अपन सुवारथ बर मनखे हा, पाट डरिन तरिया ला।

छेंक  डरिन कोठार बियारा, जीव  चरी परिया ला।।

तरसत  हावयँ  पशु  चारा  बर, बढ़गे  कब्जाधारी।

खेल चलय बेजा कब्जा के, गाँव  शहर मा  भारी।।

    

सकरा होगे गली गाँव के, छेंक डरिन  सब  रद्दा। 

बइला-गाड़ी  टेक्टर अटके, बनगे  नाली  भद्दा।।

परछी ऊपर परछी  बनगे, सबके  सड़क  दुवारी।

खेल चलय बेजा कब्जा के, गाँव शहर मा भारी।।


अपन-अपन ले चतुरा मनखे, मालिक बनके बइठे।

राज करै सब धौंस जमा के, धन गरीब  के अइठे।।

चोर-चोर  मउसेरा    भाई,   सेवक    भ्रष्टाचारी।

खेल चलय बेजा कब्जा के, गाँव शहर मा भारी।।


                  रचनाकार

  डॉ पद्‌मा साहू *पर्वणी* खैरागढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*


लावणी छन्द गीत - रोकव जुरमिल बेजा-कब्जा (२७/०९/२०२७)


का होगे हें मनखें मन ला, नइ जागत नइ सोवत हें ।

रोकव जुरमिल बेजा-कब्जा, नुकसानी बड़ होवत हें ।।


नइ बाॅंचत हें परिया-झरिया, खेले के मइदान इहाॅं ।

तरिया नदिया नरवा झोरी, मरघटिया समसान इहाॅं ।।


नइ बाॅंचत दइहान चरागन, गरुवा मन हा रोवत हें ।

रोकव जुरमिल बेजा-कब्जा, नुकसानी बड़ होवत हें ।।


बात सुनय नइ ककरो कोनों, मालिक सबके सब बनथें ।

समझाये मा नइ तो समझॅंय, गड्ढा खुद बर खुद खनथें ।।


झगड़ा झंझट खून खराबा, ये जिनगी मा बोंवत हें ।

रोकव जुरमिल बेजा-कब्जा, नुकसानी बड़ होवत हें ।।


ये बेजा-कब्जा के कारन, कतको जंगल हा कटगे ।

नइ बाॅंचिन घर कुरिया डेरा, जीव-जंतु कतको घटगे ।।


मन मा लालच लोभ समाये, सुख छइहाॅं ला खोवत हें ।

रोकव जुरमिल बेजा-कब्जा, नुकसानी बड़ होवत हें ।।


ओम प्रकाश पात्रे 'ओम ' 

ग्राम - बोरिया बेमेतरा छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*

आल्हा छंद*

------------------------------------- 


सइता नइ ए अब मनखें के,काला खावयँ काय बचायँ।

नइ बाँचत चौंरा-चौराहा,गली-सड़क ला छेंकत जायँ।।

इरखा-पारी के सेती सब,जघा-जघा मा धाक जमायँ।

लोगन के अब इही सोच हे,फोकट पायँ मरत ले खायँ।।


नइ देखयँ काली का होही,इही जघा बर लड़हीं लोग।

बेजा कब्जा जबर समस्या,बन गे हे संक्रामक रोग।।

एक करय जब बेजा कब्जा,परेशान बहुते झन होयँ।

कहाँ देखथे कभू हँसइया,दूसर काबर रोना रोयँ।।


जघा सिरावत हे तब कइसे,होही सार्वजनिक निर्माण।

खेलकूद शिक्षा- दीक्षा कस,सिध परही कइसे अभियान।।

चिन्ता हावय सिरिफ आज के,नइ संसो का होही काल।

जब रेंगे बर दिक्कत आही,तब तो होही खचित बवाल।।


होके सख्त प्रशासन- शासन,कड़ा कदम पुरजोर उठायँ।

गाँव होय या शहर कहूँ भी,बेजा कब्जा तुरत हटायँ।।

जनता घलो गुनयँ भविष्य बर, करयँ काम झन भेड़धँसान।

हर पीढ़ी ला मिलय बरोबर,रोटी कपड़ा संग मकान।।


दीपक निषाद--लाटा (बेमेतरा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*


सार छन्द

।। बेजा कब्जा के मारे।।


बेजा कब्जा होवत हावय, खोर गली अउ पारा।

भर्री भाठा हर छेकागे, कहाँ चरै पशु चारा ।।


बेजा कब्जा खातिर मनखे, बड़ उपाय अपनाथें।

फोकट के पाये बर कतको, झगड़ा तक हो जाथें।।


मनखे मारे बाँचत नइहे, कोनो डबरा नाली।

सगरो अब दइहान सिरागे, नइहे भुइयाँ खाली।।


मेड़ पार अउ धरसा छेकें, जंगल लोग हमागें।

परगे स्वारथ मा मनखे हर, परमारथ भूलागें।।


खेल कूद मैदान हजागे, परिया हर छेकागे।

खोर गली हर होगे शंक्सी, चौंरा सीढ़ी खागे।।


चेत करव सब कुछ तो भइया, जीव जंतु के बारे।

अपन आप मा रहव मगन झन, हो जाही अँधियारे।।


- गुमान प्रसाद साहू 

- समोदा (महानदी)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 

           *सार छंद* 


बाढ़त हवय दिनों दिन संगी,बेजा कब्जा धारी ।

खोर गली सब होगे सँकरा, नइ बाँचत हे बारी।


दिख जाथे लोगन ला कोनो,जघा थोरको खाली।

घेर डारथें तुरते भैया,नइ जावन दय काली।

कोनो बड़े दुकान बनावै, कोई महल अटारी।

बाढ़त हवय दिनों दिन संगी,बेजा कब्जा धारी।


नइ बाँचत हे नँदिया तरिया,नइतो जंगल झाड़ी।

नइ बाँचत हे सड़क पाइ तक,घेरत हवयँ पहाड़ी।

पता चलय नइ बना डारथें ,पट्टा कब सरकारी।

बाढ़त हवय दिनों दिन संगी, बेजा कब्जा धारी।


जागरूक लोगन जब कोनो,आके रोक लगाथें।

बिन मतलब के देख तहां ले,दुश्मन इन बन जाथें।

मना डारथें कहिके इनला, धरबो आरी पारी।

बाढ़त हवय दिनों दिन संगी, बेजा कब्जा धारी ।


शुरू उतारे छत ओइरछा, तहांँ बनावय सीढ़ी।

सोंचत नइहे कइसे करहीं,हमर अवइया पीढ़ी।

अपन आप देखय नइ कोनो,दूसर ला दय गारी।

बाढ़त हवय दिनों दिन संगी, बेजा कब्जा धारी।


पशु धन बर नइ बँचत चरी हे,दइहानो घेरागे।  

स्वारथ खातिर मनखे मनके, जीव सबो पेरागे।

अभी समझ नइ पावत कोनो,पछताही बड़ भारी। 

बाढ़त हवय दिनों दिन संगी, बेजा कब्जा धारी।

खोर गली सब होगे सँकरा, नइ बाँचत हे बारी।


        अमृत दास साहू 

          राजनांदगांव

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 *विषय - बेजा कब्जा*