कवित्त - तुलसी के मया मोह राई-छाई उड़गे….
कोदूराम "दलित"
(1)
हुलसी के टूरा ला परे पाइस खार बीच
नरहरिदास जोगी हर नानपन ले।
राखिस अपन करा तुलसी धरिस नाव
ज्ञानी ध्यानी जासती बनाइस अपन ले।
करिस बिहाव रतना सँग जउन हर
गजबेच सुन्दर रहिस सबो झन ले।
लाइस गवन सबो बात ला भुलागे फेर
रतना च रतना रटे लगिस मन ले।
(2)
एक दिन आगे तुलसी के सग सारा टूरा
ठेठरी अउ खुरमी ला गठरी मा धर के।
पहुँचिस बपुरा ह हँफरत-हँफरत
मँझनी-मँझनिया रेंगत थक मर के।
खाइस पीइस लाल गोंदली के संग भाजी
फेर ओह कहिस गजब पाँव पर के।
रतनू दीदी ला पठो देते मोर संग भाँटो
थोरिक हे काम ये दे तीजा-पोरा भर के।
(3)
पठोए के नाव ला सुनिस तुलसी बाम्हन
लकर धकर घर भीतरी खुसरगे।
सुक्खा च सुना दिहस-'नी भेजौं मैं रतना ला'
खूब खिसिया के घर बाहिर निकरगे।
सुन्ना दाँव पा के टरकिन दुन्नों भाई दीदी
खारेखार अपन दाई ददा के घर गें।
बियारी के बेरा घर आके तुलसी देखिस
रतना के जाना ओला बहुत अखरगे।
(4)
लेड़गा बरोबर चिटिक रो-रुवा लिहिस
फेर रातेरात ससुरार कोती बढ़गे।
नदिया के पूरा नाहके खातिर लौहा लौहा
मनखे के मुरदा ला डोंगा जान चढ़गे।
भादों महीना के झड़ी-झाँखर मा हपटत
गिरत वो सराबोर भींज के अकड़गे।
भिम्म अँधियारी मा पहुँच गे ससुर घर
भीतरी निंगे खातिर दुविधा मा पड़गे।
(5)
फेर बारी कोती जा के झाँकिस-झुँकाइस तो
खिरखी ले डोरी ओरमत दिख परगे
बड़ बिखहर साँप ला वो डोरी समझिस
ओला धर-धरके दुमँजिला मा चढ़गे।
चोरहा बरोबर गइस चुप्पेचाप रतना के
ओतके च बेर निंदरा उखरगे।
रतना कहिस छी: छी: अइसन तोर बुध
कोदों देखे अतेक असन लिख पढ़गे।
(6)
चिटको सरम नइ लागे बेसरम तोला
पाछू-पाछू दउँड़त आये बिना काम के।
गोरी नारी मोटियारी देखके लोभाबे झन
अरे ये तो बने हवै हाड़ा-गोड़ा चाम के।
जतकेच मया मोला करथस मोर जोड़ा
ओतकेच मया कहूँ करते ना राम के।
तरि जाते अपन, अपन संग दूसरो
घलो ला तारि देते, नाम लेके सुखधाम के ।
(7)
तिरिया के गोठ के परिस अड़बड़ चोट
तुलसी के मया मोह राई-छाई उड़गे।
घोलँड-घोलँड के परिस पाँव रतना के
तुलसी के मति दूसरे च कोती मुड़गे।
रतना तैं मोर गुरु-आज ले मैं तोर चेला
अब मोर नत्ता भगवान संग जुड़गे।
ज्ञान के अँजोर ला देखाये मोला अइसन
कहत-कहत ज्ञान-सागर मा बुड़गे।
(8)
तुलसी बनिस उही दिन ले गोसाई झट
चुपरिस गोबर के राख ला बदन मा।
पहिरिस तुलसी के माला अउ मिरिग छाला
रामेराम भजत गइस घोर बन मा।
करिस दरस भगवान के निचट देखे
रात दिन ध्यान सीता राम मा लखन मा।
अइसन रचिस रमायन कि जेकर पढ़े ले
जर जाथे सबो पाप एक छन मा।
जनकवि - कोदूराम "दलित"
बहुते सुघ्घर अनुकरणीय कवित्त
ReplyDeleteहे गुरुदेव
तुलसी के मयाराई राई-छाई उड़गे,कवित्त बहुत ही सुग्घर ,शब्द मन के चयन अतिसुग्घर हावय गुरुदेव👍👌💐
ReplyDeleteबहुत ही सुग्घर वाह्ह्ह वाह्ह्ह गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत ही सुग्घर वाह्ह्ह वाह्ह्ह गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत सुग्घर रचना गुरु देव ।
ReplyDeleteबहुतेच सुग्घर रचना गुरुदेव
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कवित्त रचना गुरुदेव जी। सादर नमन।
ReplyDeleteपुरखा कवि के अनमोल रचना।
ReplyDeleteसादर प्रणाम हे।
परम आदरणीय दलित जी के अनमोल रचना।बहुत सुघ्घर गुरुदेव। सादर नमन।
ReplyDeleteहमर बर अनमोल धरोहर हे,गुरुदेव ।सादर नमन ।
ReplyDeleteपुरखा मन के अनमोल हवय ये कवित अउ कृतिमन धरोहर आय |सादर नमन गुरुदेव
ReplyDeleteतुलसी के मया राई छाई उड़गे(कवित्त)बहुत-बहुत ही सुघ्घर रचना अइसन रचनाकार परम् आदरणीय कोदूराम दलित जी सादर नमन्
ReplyDeleteअद्भुत,सम्पूर्ण गाथा,नमन
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर रचना हे गुरुदेव
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