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सरसी छन्द - दिलीप कुमार वर्मा
सरसी छन्द - दिलीप कुमार वर्मा
हरियर हरियर डारा खोचँव,रोग जाय सब दूर।
जंगल ले कांदा लाने हँव,कुछ तो खाव जरूर।
स्वस्थ रहे तन मगन रहे मन,खेलव खुडुवा खेल।
खोखो फुगड़ी नरियर फेंकव,दंगल असन ढकेल।
राँपा रपली नाँगर गैती,सफ्फा करलव आज।
देव बरोबर पूजव येला,इही बनाथे काज।
गरुवा बर लोंदी धर लानव,सब दइहान म आव।
गरुवा ला लोंदी के सँग मा,कांदा कुसा खवाव।
गेंड़ी चढ़के दउड़व संगी,चिखला मा सब जाव।
रचरिच रचरिच बाजय गेंड़ी,जुरमिल रेस लगाव।
आय हरेली के तिहार मा,सबझन खुशी मनाव।
जिनगी हो खुशहाल सबो के,अइसन आशिष पाव।
छन्दकार - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
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जयकारी छंद - दिलीप कुमार वर्मा
आय हरेली के त्यौहार,हरियर दीखय खेती खार।
बइठ सगा झन तँय मन मार,मिहनत नइ होवय बेकार।
नाँगर रपली राँपा लान,जेन भरोसा बोये धान।
धो के फूल चढावव जान,पूजव येला देव समान।
गुरहा चीला बने बनाव,सब अवजार म भोग लगाव।
श्रद्धा के अंतस रख भाव,सबझन सुग्घर आसिस पाव।
गरुवा बर तँय आंटा सान, अउ खम्हार के ले आ पान।
नून डार लोंदी तँय लान,गरुवा खाही अमरित जान।
जंगल के कांदा ले आव,उसन उसन के बने पकाव।
गरुवा सँग तुम खुद भी खाव, दवा हरे ये झन घबराव।
रो रो लइका करय अलाप,ओखर बर तँय गेंड़ी खाप।
रचरिच रचरिच करही जाप,चिखला के नइ पावय ताप।
नोनी बाबू खुडवा खेल,मल्ल युद्ध कस पेलम पेल।
फुगड़ी खोखो बिल्लस ठेल, आही देखे रेलम रेल।
लीम डार देही जी खोंच,काबर करथे तेला सोंच।
कील दुवारी देवय टोंच,सोंच सोंच चुंदी झन नोंच।
छन्दकार - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़
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घनाक्षरी छंद :- जगदीश "हीरा" साहू
(1)
होगे हावय बियासी, धोवव नाँगर जूड़ा,
गइती रापा रपली, कुदरी ला लाव जी।
बिंधना पटासी आरी, बसुला खुरपी छीनी,
हँसिया हथौड़ी हेर, हबले धोवाव जी।।
लाके गा खम्हार पत्ता, सान के पिसान नून,
जाके बरदी मा गाय, बछरू खवाव जी।
घर आके सब मिल, आनी बानी रोटी पीठा,
संग मा बनाके चीला, रोटी ला चढ़ाव जी।।1।।
(2)
खोज-खोज सोझ-सोझ, काट-काट छाँट बाँस,
चीर-चीर बाँध जल्दी, गेंड़ी ला बनाव जी।
छोटे बड़े गेंड़ी साज, घूमौ सबो मिल आज,
चिखला माटी ले सब, गोड़ ला बचाव जी।।
पूजा पाठ कर लव, पहिली तिहार येहा,
मिलके हरेली आज, सुग्घर मनाव जी।
बिसरत हावय अब, हमर तिहार सब,
जुरमिल सबो संसकृति ला बचाव जी।।2।।
(3)
घर-घर लीम डारा, खोंचत हावै बइगा,
ठोंकय लोहार खीला, सब घर जात हे।
मान पावै ख़ुशी-ख़ुशी, गाँव भर झूमे नाचे,
सब मिल गेंड़ी चढ़े, बड़ सुख पात हे।।
आना जाना लगे गली, लइका सियान सब,
रंगे धरती के रंग, बड़ इतरात हे।
घर के दुवारी बैठे, देख-देख जगदीश,
ननपन के अपन, सुरता लमात हे।।3।।
छन्दकार - जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा) छत्तीसगढ़
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कुण्डलियाँ छंद - कन्हैया साहू "अमित"
(1)
परब हरेली आज हे, हावय खुशी अपार।
झोंक बधाई मोर जी, पहिली तीज तिहार।
पहिली तीज तिहार, मगन मन मनभर हरसय।
नाचय मन मंजूर, बिकट जब बादर बरसय।
कहत अमित हे आज, बधाई लव बरपेली।
छत्तीसगढ़ी खास, हमर ये परब हरेली।
(2)
हरियर हरियर बड़ दिखय, हिरदे हा हरसाय।
सुग्घर सावन के समय, सबके सुसी बुताय।
सबके सुसी बुताय, जोस नस-नस मा जागय।
हरियाली ला देख, देंह के आलस भागय।
कहय अमित हा आज, एक ठन फोरव नरियर।
मानय देवी देव, सदा दिन राखय हरियर।
(3)
चीला गुरहा राँध के, सुग्घर चउँक पुराय।
चंदन चोवा हूम जग, गुरतुर भोग लगाय।
गुरतुर भोग लगाय, फूल नरियर रख सादर।
खेती के औजार, माँज धो राखय आगर।
सिंग द्वार लोहार, नेंग मा ठोंकय खीला।
घर-घर बनही आज, खीर चौसेला चीला।
(4)
खापय गेंड़ी ऊँच मा, कोनो घुठुवा तीर।
कोनो पोरिसभर चढ़य, समझय खुद ला बीर।
समझय खुद ला बीर, गली मा दउँड़य खदबिद।
खुड़ुवा खो-खो खेल, आज सब खेलँय गदबिद।
नरियर भेला फेंक, डहर ला कतको नापय।
लइका संग सियान, बाँस के गेंड़ी खापय।
कन्हैया साहू "अमित"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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शोभन छंद - नीलम जायसवाल
(1)
आज हरियाली अमावस, लीम खोंच दुवार।
हम हरेली मानबो जी, हे हमार तिहार।
आज गरुवा मन ल लोंदी, सान-सान खवाय।
देख गेड़ी कतिक ऊँचा, मँय हवँव बनवाय।।
(2)
मचमचावत देख गेड़ी, लोग लइकन जाँय।
अउ कका मन पूजथें जी, आज नाँगर लाय।
भर खुशी मन मा हरेली, के तिहार मनाय।
खेत हरियर खार हरियर, देख जिव ह जुड़ाय।।
(3)
राँध चौसेला बरा ला, बोबरा ममहाय।
लोग लइका आज गेड़ी, चघ अबड़ सुख पाय।
पूज रापा अउ कुदारी, पूज लव दइहान।
हे हरेली आज सुन गा, चल तिहार ल मान।।
छंदकार - नीलम जायसवाल
पता - भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़।
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सरसी छन्द गीत - बोधन राम निषादराज
छत्तीसगढ़ी परब हरेली,पहिली इही तिहार।
आवौ संगी संग मनाबो, लेलव गा जोहार।।
छत्तीसगढ़ी परब हरेली..........
लिपे पुते भिथिया हे सुग्घर,सवनाही पहिचान।
नाँगर बख्खर धोये माँजे,हमरो देख किसान।।
चारों खुँट हरियाली सोहय,धरती के सिंगार।
छत्तीसगढ़ी परब हरेली............
रच-रच-रच-रच गेड़ी बाजय,मन मा खुशी समाय।
गाँव-गली मा रेंगय लइका,चिला-फरा ला खाय।।
अइसन खुशहाली के बेरा,होवत हे गोहार।
छत्तीसगढ़ी परब हरेली............
डंडा अउ पचरंगा खेले,फुगड़ी के हे जोर।
खो-खो, रेस,कबड्डी खेलय,उड़त हवै जी शोर।।
मया प्रेम के बरसे झरना,बरसत हावै धार।
छत्तीसगढ़ी परब हरेली..............
होय बियासी हरियर धनहा,सुग्घर खेती खार।
मोर किसनहा भइया देखव,खुश होवय बनिहार।।
सावन बरसै रिमझिम-रिमझिम,बुँदियाँ परे फुहार।
छत्तीसगढ़ी परब हरेली................
छंदकार - बोधन राम निषादराज
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम (छत्तीसगढ़)
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छन्न पकैया--चोवा राम 'बादल '
छन्न पकैया छन्न पकैया, सावन हे मनभावन ।
भोले बाबा के पूजा सँग ,मनै हरेली पावन।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, गरवा लोंदी खाथे।
अंडी पाना नून बँधाये, राउत बने खवाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया ,नइ तो धरय बिमारी ।
हे दशमूल दवाई बढ़िया ,खावव सब सँगवारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , चाउँर देवय मइया।
सिंग दुवारी लीम डार ला, खोंचय राउत भइया।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , कारीगर हा आथे।
खीला ठोंक बाँध के घर ला, मान गउन ला पाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, घर घर पूजा होथे।
नागर जूड़ा वाहन बक्खर, ला किसान हा धोथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , मनय तिहार हरेली।
भाँठा मा जब खो खो मातय,खेलयँ सबो सहेली।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, खुड़वा हा मन भाथे।
फेंकत नरियर बेला भरके, कोनो दाँव लगाथे।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, बोरा दउँड़ त्रिटंगी।
नौजवान मन डोर इचौला ,खेलयँ जमके संगी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , खेल जमाये पासा।
सकलायें सब गुड़ी सियनहाँ, नइये कहूँ हतासा।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, रच रच बाजै गेंड़ी।
नँगत मचयँ जब लइका मन जी,उठा उठा के ऍड़ी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया , गेंड़ी महिमा भारी।
द्वापर युग मा पांडव मन हा, चढ़े रहिंन सँगवारी।।
छन्न पकैया छन्न पकैया, हे रिवाज जी सुग्घर।
हँसी-खुशी सब मना हरेली, चीला खाबो मनभर।।
छन्दकार - चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
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सार छन्द - उमाकांत टैगोर
आगे आज हरेली आगे, मन सब के हरियागे।
चारो कोती खुशहाली मा, दुख पीरा तरियागे।।
छोड़ समारू छोड़ बुधारू, अब तो छोड़ अँघासी।
हाँसत कुलकुल्ला बइठे रा, होगे हवे बियासी।।
बरा ठेठरी अरसा खुरमी, सब के घर मा बनही।
टमटम ले रामू हर खाही, चैतू भारी तनही।।
झिमिर-झिमिर पानी बरसत हे, दादुर देवय तारी।
देख डोड़िहा सटपिट सैय्या, नाचय कूदय भारी।।
अउ लइका मन गेड़ी खेंलय, रुच रिच रुच रिच बाजय।
बबा बनावय बाँस छोल के, भारी सुग्घर साजय।।
उमाकान्त टैगोर
कन्हाईबन्द,जाँजगीर (छत्तीसगढ़)
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गीतिका छंद - असकरन दास जोगी
(1)
हे हरेली आज संगी,आय हरियर आस हे |
गोठ गूनव पोठ सब्बो,बात मोरो खास हे ||
नाच नाचे लाख सुरता,हमर ननपन हे कहाँ |
फेर लइका आज बनजन,बड़ खुशी आही तहाँ ||
(2)
लान लकड़ी बाँध गेंड़ी,चढ़ मजा करबो गड़ी |
हम लबारी कार कहिबो,बात कहिबो जी खड़ी ||
रेस करलव चेस करलव,कोन कइसे हारही |
देख लेथन कोन भाई,आज बाजी मारही ||
(3)
खूब चिखला खूब पानी,वाह ! गेंड़ी के मजा |
जेन गिरही तेन रोही,फेर मिलही जी सजा ||
तोर रचके तोर पचके,मोर गेंड़ी सार हे |
जीत होगे मोर संगी,पाय सब्बो हार हे ||
छंदकार - असकरन दास जोगी
पता - बिलासपुर,छत्तीसगढ़
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सार छन्द - गुमान प्रसाद साहू
आये हावय परब हरेली, जुरमिल चलव मनाबो।
परब हमर ये पहिली संगी, सुग्घर सब परघाबो।।
सावन मास अमावस्या मा, ये तिहार हा आथे।
गाँव गाँव अउ गली गली मा, हरियाली बगराथे।।
बरदी मा जाके गइया ला, लोंदी सबो खवाबो।
बन कांदा दसमूल गोंदली, के प्रसाद ला खाबो।।
धो धोवाके जिनिस किसानी, सुग्घर सबो सजाथे।।
नरियर चीला फूल चढ़ाके, गुड़ के सँग जेंवाथे।।
नीम डार खोंचे बर राउत, घर घर सबके जाथे।
बइगा घलो अशीस देके, दार चाऊँर पाथे।।
लइका मन हा मचथे गेड़ी, भारी मजा उठाथे।
दीदी बहिनी खो-खो फुगड़ी, खेले भाठा जाथे।।
छन्दकार:- गुमान प्रसाद साहू ग्राम- समोदा (महानदी )
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गीतिका छंद - मीता अग्रवाल
(1)
मान सावन मास मावस,हे हरेली आज जी।
पूज रापा खेत गैती,फावड़ा औजार जी।
आज राधें खीर चीला,खाय सब परसाद जी।
लीम ड़ारा खोंच देथे,डार हरियर आज जी।
(2)
मानथे पहिली तिहारे, झूम नाचे शोर जी।
बाँस फाडें बाँध खपची, बाँध गैडी भोर जी।
गाँव घूमे लोग लइका,मानथे ब्यौहार जी।
रीति माने गाँव भर मा,आय हे त्यौहार जी।
(3)
खेत बाढ़य धान बाढ़य, आस मन मा जागथे।
ओढ़ हरियर ड़ार लुगरा, दे खुशी मा झूमथे।
देख गेड़ी खेल खेलन,कोन कइसे हारही।
देख लेथन कोन संगी, आज बाजी मारही।
छन्दकार - डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती लोहार चौंक रायपुर छत्तीसगढ़
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मत्तगयंद सवैया - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
सावन के महिना बड़ पावन मीठ मया बगरे बरपेली।
हे ऋतु पावस घोर अमावस भोर भये ममहाय चमेली।
बादर ले बरसे जल धार ग देख करे पुरवा अठखेली।
हे खुश मोर मितान किसान मनावत आज तिहार हरेली।
रचनाकर-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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गीतिका छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
सब मनावव जी हरेली, खाप के गेंड़ी बने।
ठेठरी खुरमी सुहारी, खाय पीये सब तने।।
ये हमर पारंपरिक हे, ये हमर बड़ मान ये।
सब मनावव शान से जी, ये हमर पहिचान ये।।
छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा) जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
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अमृत ध्वनि छंद - बलराम चंद्राकर
सावन मा हरियर दिखै, जम्मो खेती खार।
नदिया नरवा बाढ़ मा, कलकल होवय धार।
कलकल होवय , धार तलातल, बाढ़ै पानी।
करै बियासी रोपै थरहा, चलै किसानी ।
सुघर हरेली, के तिहार जब, आवै पावन ।
नीक लगै बड़, सब ला संगी, महिना सावन।।
छन्दकार - बलराम चंद्राकर
भिलाई छत्तीसगढ़
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गीतिका छंद - पोखन लाल जायसवाल:
(1)
पूजथे नाँगर कुदारी,देवता जस जान के।
मान दै सबला बराबर,हाँ मनौती मान के।
कर किसानी संग नाँगर,धोय सब औजार ला।
पूज रापा अउ कुदारी,मानथे उपकार ला।
(2)
गाय गरुवा ला खवाये,लाय लोंदी सान के।
दै दवाई सब कहूँ जी,मात एला जान के।
दूध खावय अउ दही ला,खाय सब मिल बाँट के।
खाय कतको रसमलाई,हाथ अँगठी चाँट के।
(3)
दिन हरेली के घरोघर,लीम डारा खोंचथे।
रोग राई होय झन अउ,दूर राहय सोंचथे।
ठोंक खीला घर मुहाटी, जाय जब लोहार जी।
दाबके पाती खुशी के,जाय मंतर मार जी।
(4)
बाँस के गेंड़ी मिले तब, सब हरेली मानथे।
माँग सुनथे जब बबा हा,बाँस गेंड़ी तानथे।
चढ़ मजा कोनो उड़ावय,खेल कतको खेल के।
पाय कोनो हा गली मा,फेर चिखला पेल के।
(5)
खेल फुगड़ी अउ कबड्डी,खेलथे समभाव ले।
फेंक नरियर जीत खो खो,खेलथे सब चाव ले।
करु कसा मन के भुलावत,सब हरेली मान लौ।
का मजा हे सोंच ले अउ,संग रहिबो ठान लौ।
छंदकार : पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह( पलारी )जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग
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कुण्डलिया छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - हरेली
(1)
अबड़ बधाई देत हवँ, करलौ सब स्वीकार।
हरे हरेली राज के, पहिली हमर तिहार।।
पहिली हमर तिहार, किसनहा सबो मनाथें।
घर-घर मा पकवान, इहाँ बड़ खास बनाथें।।
बैर भाव के आज, चलव गा पाटव खाई।
जुरमिल परब मनाव, सबो ला अबड़ बधाई।।
(2)
आथे सबझिन ला अबड़, परब हरेली रास।
पूजाकर कुलदेव के, इहाँ मनाथें खास।।
इहाँ मनाथें खास, बाँस के गेंड़ी चढ़के।
खेलकूद मा भाग, सबोझन लेथें बढ़के।।
लोक परब ये आय, गाँव मा बने मनाथे।
बगराथे आनंद, हरेली हा जब आथे।।
(3)
हरियाली के ये परब, देथे गा संदेश।
पर्यावरण सँवार के, बने रखव परिवेश।।
बने रखव परिवेश, बचाके सब रुख-राई।
पानी घला बचाव, इही मा हमर भलाई।।
रखहू बने बिचार, तभे आही खुशहाली।
लेके सबला साथ, मनावव गा हरियाली।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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कुकुभ छंद - विरेन्द्र कुमार साहू
खेत बीरता लहरावत हे , भाग सबो के जागे जी।
कर्रा डारा चलो खोंचबो , परब हरेली आगे जी।१।
गौ माता बर कांदा-कूसा , लाये हाबे बरदीहा।
नून पान अउ लोंदी धरके , चलौ साहड़ा के ठीहा।२।
काम बुता के सब सहयोगी , बसला बिंधना अउ आरी।
टँगिया नाँगर जुड़ा कुदारी , धोवौ सफ्फा सँगवारी।३।
कोठा-डोला ऊबड़ खाबड़ , मुरुम लान के पाटौ जी।
गौधन हा किसान के हितवा , सुख दुख उनसन बाँटौ जी।४।
बाबू के खुशहाली खातिर , गढ़ दौ सुग्घरकन गेंड़ी।
खुशी म भरही बाबू के मन , तोड़ उदासी के बेंड़ी।५।
बंदन चंदन अगर धूप धर , बइठौ जी माईं-पीला।
करौ सबे झन नाँगर पूजा , आज चढ़ा गुरहा चीला।६।
हाँसी-खुशी तिहार मनालौ , किसिम किसिम रोटी राँधौ।
जुरमिल रहिहौ छत्तिसगढ़िया , मया जोर सुनता बाँधौ।७।
छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू , ग्राम - बोड़राबाँधा (राजिम) , जिला - गरियाबंद (छत्तीसगढ़)
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रोला छंद - सुधा शर्मा
देखव संगी आज, मानथे सबो हरेली।
पहली परब तिहार,मिलय सब सखी सहेली।।
लानत हावय बाँस,सबो मिल खापय गेंड़ी।
कुलकत लइका देख,चढ़ें सब टेड़ी बेड़ी।।
राउत घर घर आत,नीम के खोंचय डारा।
लोंदी गाय खवात,हवें सब आरा पारा।।
चीला लेगत खेत,गीत माटी के गावय।
नाँगर बख्खर धोय,पूजत अँगना भावय।।
आगे बछर तिहार,रूप धरती के सुग्घर।
सुखमय अब संसार,दिखत हे हरियर हरियर।।
किसिम किसिम के होत,परब आथे चौमासा।
संस्कृति जलथे जोत,राज के रासा बासा।।
झूला डारे आज, झूल थे सब सँगवारी।
गेंड़ी करके साज,मचत मारे किलकारी।
रेंगत गल्ली खोर,चींहु रे चींहु बजावत।
लइका मगन सियान, हरेली सबो मनावत।।
छंदकारा - सुधा शर्मा,
राजिम, जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
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सार छंद - केंवरा यदु"मीरा"
पहिली इही तिहार हरय गा, जुर मिल सबो मनाबो ।
लोंदी जम्मों गरुवा ला अब,आजे चलौ खवाबो ।।
रापा कुदरी अउ बसुला ला, चलना धोके लाबो ।
देवी मनके सुमिरन करके, नरियर घला चघाबो ।।
दाई चीला राँधै हावै, गुरहा बढ़िया खाबो।
कतका सुग्घर परब हवै गा,मन मा खुशी मनाबो।।
दसमुल काँदा जंगल के गा,आवौ देव चघाबो ।
रोग राइ ले बाँचे बर गा,जम्मों मिल के खाबो।।
चलना गेंड़ी बबा बनादे, वोमा चढ़के जाबो।
रिचरिच रिचरिच बाजत राहय, चढ़ के मजा उड़ाबो।।
आही राखी अब तो भइया, दीदी हाँसत आही।
भाई मनहा कुलकत रहिही, राखी हाथ बँधाही।।
छंदकारा-केंवरा यदु "मीरा "
राजिम, छत्तीसगढ़
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दोहा छंद-संतोष कुमार साहू
सुन लव गा भाई बहन, परब हरेली आज।
छत्तीसगढ़ ह खुश रहे,इही हवय आवाज।।
ये तिहार ला शाँति से,बने मनाबो नेक।
सबसे मिलबो हाँस के,छूटय कहूँ न एक।।
धर के डारा भेलवा,सबो खोंचबो खेत।
सुमरे बर भगवान ला,करबो बढ़िया चेत।।
पान बने खम्हार के, गठियाबो जी नून।
गरुवा सबो खवाय के,बने लगाबो धून।।
जंगल दवई लान के,खवाबोन गरु गाय।
ये दवई ला खाय ले, रोग कभू नइ आय।।
धो के नाँगर अउ जुड़ा, रापा गैँती संग।
पूजा करबो हम सबो, लगही बने उमंग।।
सबो जगा लिप पोत के, चमकाबो घर द्वार।
ये तिहार मे सब जगा, लाबो बने बहार।।
अरसा खुरमी ठेठरी,बनाबोन पकवान।
संग बइठ सुग्घर सबो, रही खाय के ध्यान।।
आनी बानी खेल जी,सबो खेलबो आज।
मन सबके राहय हरा, असल इही हे राज।।
छंदकार-संतोष कुमार साहू
ग्राम-रसेला (छुरा) जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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मनहरण घनाक्षरी- अजय अमृतांशु
हरेली तिहार बड़,निक लागय सबला, मनाये खातिर गाँव,भर सकलाय हे।
पूजा पाठ होवत हे,गाँव के दइहाँन मा,चढ़े बर लइका हा,गेंड़ी ल बनाय हे।
अंडा पान नून लोंदी,रखे हे खवाय बर,बरा के सुगंध हर,बड़ ममहाय हे।
गुरहा चीला के स्वाद,बड़ ललचाय मन,भजिया चौसला बर,जी कुलकुलाय हे।
छंदकार - अजय अमृतांशु
भाटापारा, जि-बलौदाबाजार भाटापारा
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कुकुभ छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी
सावन महिना मनभावन हे,अउ ओमा परब हरेली।
रिमझिम रिमझिम बरसे बदरा,मया बाँटले बरपेली।
हरियर हरियर धरा दिखत हे,नाचत गावत रुखराई।
देख फसल लहरावत सुग्घर,हरसाये धरती दाई।
धरती दाई के अँचरा मा,मया समाये हे भारी।
परब हरेली के शुभअवसर,कुलकत हे सब नर नारी।
लइकामन सब हँसी खुशी हे,गेड़ी के मजा उड़ावै।
एती ओती दँउड़य भागय,नाचय कूदय हरसावै।
बड़े बिहनिया बबा बनावै,सेंक गोरसी मा लोंदी
माँग सकय नइ डर मा नतनी,बनगे हावय चुप कोंदी।
अपन अपन गरुवा बछरू ला,सब लोंदी पान खवाथे।
बने दवाई कांद कूस के,दुरिहाँँ अउ रोग भगाथे।
घूम घूम के राउत भइया,नीम पान खोचत जाथे।
हूम धूप ला देवय बइगा,सब देवी देव मनाथे।
नाँगर जूड़ा रापा गैती,हँसिया टँगिया ला धोथे।
गुड़हा चीला जोड़ा नरियर,धूमधाम पूजा होथे।
खो खो फुगड़ी खेल कबड्डी,खेलत हे सखी सहेली।
मन किसान के गदगद हावय,पबरित हे परब हरेली।
पहिली तिहार आज हरेली,चलो मनाबो सँगवारी।
आनी बानी तीज तिहारी,हमर राज के चिनहारी।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी(कवर्धा) जिला-कबीरधाम(छ्त्तीसगढ़)
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रोला छंद - सुधा शर्मा
देखव संगी आज, मानथे सबो हरेली।
पहली परब तिहार,मिलय सब सखी सहेली।।
लानत हावय बाँस,सबो मिल खापय गेंड़ी।
कुलकत लइका देख,चढ़ें सब टेड़ी बेड़ी।।
राउत घर घर आत,नीम के खोंचय डारा।
लोंदी गाय खवात,हवें सब आरा पारा।।
चीला लेगत खेत,गीत माटी के गावय।
नाँगर बख्खर धोय,पूजत अँगना ह भावय।।
आगे बछर तिहार,रूप धरती के सुग्घर।
सुखमय अब संसार,दिखत हे हरियर हरियर।।
किसिम किसिम के होत,परब आथे चौमासा।
संस्कृति जलथे जोत,राज के रासा बासा।।
झूला डारे आज, झूल थे सब सँगवारी।
गेंड़ी करके साज,मचत मारे किलकारी।
रेंगत गल्ली खोर,चींहु रे चींहु बजावत।
लइका मगन सियान, हरेली सबो मनावत।।
छंदकारा - सुधा शर्मा,
राजिम, जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
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गीतिका छंद - महेंद्र कुमार बघेल
(1)
माह सावन के अमौसी, ये हरेली आय जी।
रात कुन बइगा बरदिहा, बन जरी डबकाय जी।
अउ बिहनिया ले घरोघर,वो दवा बॅटवाय गा।
पान मा लपटाय लोंदी, गाय गुप ले खाय गा।।
(2)
मंत्र गुरुवारी सिखइया,दिन अगोरय आज ला।
रोज रतिहा जाय गुरु घर, छोड़ के सब काज ला।
पंचमी रिसि आत ले जी, पाठ पिड़हा पाॅय सब।
अउ कभू आ जाय अलहन, सीख ला अजमाॅय सब।।
(3)
बांध के जी सब मुॅही ला, सोझियावॅय टार ला।
बड़ खुशी अंंतस बिराजै, देख हरियर खार ला।
अन्न ला उपजाय बर जी,चाहि ठसलग ज्ञान गा।
बिंधना नाॅगर जुड़ा सब, आय कृषि भगवान गा।।
(4)
धो धुवा के रापा कुदारी,सब कृषि औजार ला।
तब मुरुम आसन बनाके, बड़ करे सतकार ला ।
मा बहिन हाथा लगावॅय,एक जग परिवार सब।
मुड़ किसनहा मन नवावव, देय बर आभार सब।।
(5)
नानकुन खीला धरे अउ ,आय जी लोहार हा।
ठेंस के आशीश देवय,खुश रहे घर द्वार हा।
घर मुहाटी मा रउत हा, नीम डारा खोंचथें।
शुध हवा खातिर हमर बर , का गजब के सोचथें।।
(6)
सब हमर पुरखा मनन हा, बीज सुग्घर बोंय हे।
गांव मा चिखला रहय तब, खोज येकर होय हे।
चल हरेली मानबो जी,आज गेंड़ी खाप के।
काट सइघो बाॅस ला अउ,पउ बरोबर नाप के।।
(7)
ठेठरी खुरमी पचे नइ, वो चुरे हे तेल मा।
तोड़ हे भाॅठा डहर जी, ध्यान देवव खेल मा।
नेक नीयत राख के जी, मान ले त्यौहार ला।
ये धरा हरिहर रखे बर, भूल झन संस्कार ला।।
(8)
देख के पौनी पसारी, निक लगे जोहार हा।
बीसकुटनी मा मिले जी,नून चाॅउर दार हा ।
ये परब छत्तीसगढ़ मा,आय सेवा दान के।
जीव अउ निरजीव मन बर ,मान अउ सम्मान के।।
छन्दकार- महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव,
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
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दोहा छंद- जितेन्द्र निषाद
अब किसान के पीर ला,देखत हावय कौन।
दर्रा हाने खेत ला,देख किसनहा मौन।।
कहाँ बियासी खेत मा,होहे संगी आज।
बिन पानी के हे परे,खेती के सब काज।।
काँटा-खूँटी हा बिकट,परे हवय सब खेत।
बिन पानी के का करे,होगे चेत-बिचेत।।
नाँगर-बइला फाँद के,देखे गगन किसान।
बोले हरदम खेत मा,बरसा कर भगवान।।
परब हरेली आज गा,तभ्भो खुशी मनाय।
जम्मों दुःख भुलाइके,जिनगी अपन पहाय।।
छंदकार - जितेन्द्र कुमार निषाद
ग्राम-सांगली,पो.-पलारी,वि.ख.-गुरुर,जिला-बालोद (छ.ग.) 491222
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उल्लाला छंद - द्वारिका प्रसाद लहरे
आज हरेली आय हे,पावव ख़ुशी अपार ला।
मोर बधाई झोंक लव,बने मनाव तिहार ला।।
आय हरेली गाँव मा,सुमता ला बगराव तुम।
रोटी पीठा राँध के,मिलके जम्मो खाव तुम।।
आके तीज तिहार हा, सबके मन ला भाय हे।
भाई-चारा बाँट के,सुम्मत रद्दा लाय हे।।
डारा पाना लीम के,राउत खोंचत जाय जी।
लइका मन गेंड़ी चढ़ें,सबके मन ला भाय जी।।
खेती के औजार ला,धोये तरिया जात हें।
गुरहा चीला राँध के,नाँगर ला जेंवात हें।
गुरहा चीला खाय के,सबके मन हे आज गा।
कतका हवय सुवाद हा,खावय जानय राज गा।।
बने मनाव तिहार जी,जिनगी के उजियार मा।
भेद भाव ला टार के,पावव सुख संसार मा।।
छंदकार - द्वारिका प्रसाद लहरे
कबीरधाम -छत्तीसगढ़
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सार छंद गीत - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली।
खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली।
रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी,फुगड़ी खो खो माते।
खुडुवा खेले फेंके नरियर,होय मया के बाते।
भिरभिर भिरभिर भागत हावय,बैंहा जोर सहेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली----।
सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे।
नीम डार मुँहटा मा खोंचे,दया मया मिल गारे।
घंटी बाजै शंख सुनावय,कुटिया लगे हवेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली-।
चन्दन बन्दन पान सुपारी,धरके माई पीला।
टँगिया बसुला नाँगर पूजय,भोग लगाके चीला।
हवै थाल मा खीर कलेवा,दूध म भरे कसेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली--
गहूँ पिसान ल सान मिलाये,नून अरंडी पाना।
लोंदी खाये बइला बछरू,राउत पाये दाना।
लाल चिरैंया सेत मोंगरा,महकय फूल चमेली।
हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली-
बेर बियासी के फदके हे,रंग म हवै किसानी।
भोले बाबा आस पुरावय,बरसे बढ़िया पानी।
धान पान सब नाँचे मनभर,पवन करे अटखेली।हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,आये हवै हरेली---।
छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़
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सार छन्द - गुमान प्रसाद साहू
आये हावय परब हरेली, जुरमिल चलव मनाबो।
परब हमर ये पहिली संगी, सुग्घर सब परघाबो।।
सावन मास अमावस्या मा, ये तिहार हा आथे।
गाँव गाँव अउ गली गली मा, हरियाली बगराथे।।
बरदी मा जाके गइया ला, लोंदी सबो खवाबो।
बन कांदा दसमूल गोंदली, के प्रसाद ला खाबो।।
धो धोवाके जिनिस किसानी, सुग्घर सबो सजाथे।।
नरियर चीला फूल चढ़ाके, गुड़ के सँग जेंवाथे।।
नीम डार खोंचे बर राउत, घर घर सबके जाथे।
बइगा घलो अशीस देके, दार चाऊँर पाथे।।
लइका मन हा मचथे गेड़ी, भारी मजा उठाथे।
दीदी बहिनी खो-खो फुगड़ी, खेले भाठा जाथे।।
छन्दकार:- गुमान प्रसाद साहू ग्राम- समोदा (महानदी )
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गीतिका छंद - मीता अग्रवाल
(1)
मान सावन मास मावस,हे हरेली आज जी।
पूज रापा खेत गैती,फावड़ा औजार जी।
आज राधें खीर चीला,खाय सब परसाद जी।
लीम ड़ारा खोंच देथे,डार हरियर आज जी।
(2)
मानथे पहिली तिहारे, झूम नाचे शोर जी।
बाँस फाडें बाँध खपची, बाँध गैडी भोर जी।
गाँव घूमे लोग लइका,मानथे ब्यौहार जी।
रीति माने गाँव भर मा,आय हे त्यौहार जी।
(3)
खेत बाढ़य धान बाढ़य, आस मन मा जागथे।
ओढ़ हरियर ड़ार लुगरा, दे खुशी मा झूमथे।
देख गेड़ी खेल खेलन,कोन कइसे हारही।
देख लेथन कोन संगी, आज बाजी मारही।
छन्दकार - डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती लोहार चौंक रायपुर छत्तीसगढ़
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मत्तगयंद सवैया - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
सावन के महिना बड़ पावन मीठ मया बगरे बरपेली।
हे ऋतु पावस घोर अमावस भोर भये ममहाय चमेली।
बादर ले बरसे जल धार ग देख करे पुरवा अठखेली।
हे खुश मोर मितान किसान मनावत आज तिहार हरेली।
रचनाकर-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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गीतिका छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
सब मनावव जी हरेली, खाप के गेंड़ी बने।
ठेठरी खुरमी सुहारी, खाय पीये सब तने।।
ये हमर पारंपरिक हे, ये हमर बड़ मान ये।
सब मनावव शान से जी, ये हमर पहिचान ये।।
छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा) जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
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अमृत ध्वनि छंद - बलराम चंद्राकर
सावन मा हरियर दिखै, जम्मो खेती खार।
नदिया नरवा बाढ़ मा, कलकल होवय धार।
कलकल होवय , धार तलातल, बाढ़ै पानी।
करै बियासी रोपै थरहा, चलै किसानी ।
सुघर हरेली, के तिहार जब, आवै पावन ।
नीक लगै बड़, सब ला संगी, महिना सावन।।
छन्दकार - बलराम चंद्राकर
भिलाई छत्तीसगढ़
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गीतिका छंद - पोखन लाल जायसवाल:
(1)
पूजथे नाँगर कुदारी,देवता जस जान के।
मान दै सबला बराबर,हाँ मनौती मान के।
कर किसानी संग नाँगर,धोय सब औजार ला।
पूज रापा अउ कुदारी,मानथे उपकार ला।
(2)
गाय गरुवा ला खवाये,लाय लोंदी सान के।
दै दवाई सब कहूँ जी,मात एला जान के।
दूध खावय अउ दही ला,खाय सब मिल बाँट के।
खाय कतको रसमलाई,हाथ अँगठी चाँट के।
(3)
दिन हरेली के घरोघर,लीम डारा खोंचथे।
रोग राई होय झन अउ,दूर राहय सोंचथे।
ठोंक खीला घर मुहाटी, जाय जब लोहार जी।
दाबके पाती खुशी के,जाय मंतर मार जी।
(4)
बाँस के गेंड़ी मिले तब, सब हरेली मानथे।
माँग सुनथे जब बबा हा,बाँस गेंड़ी तानथे।
चढ़ मजा कोनो उड़ावय,खेल कतको खेल के।
पाय कोनो हा गली मा,फेर चिखला पेल के।
(5)
खेल फुगड़ी अउ कबड्डी,खेलथे समभाव ले।
फेंक नरियर जीत खो खो,खेलथे सब चाव ले।
करु कसा मन के भुलावत,सब हरेली मान लौ।
का मजा हे सोंच ले अउ,संग रहिबो ठान लौ।
छंदकार : पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह( पलारी )जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग
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कुण्डलिया छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - हरेली
(1)
अबड़ बधाई देत हवँ, करलौ सब स्वीकार।
हरे हरेली राज के, पहिली हमर तिहार।।
पहिली हमर तिहार, किसनहा सबो मनाथें।
घर-घर मा पकवान, इहाँ बड़ खास बनाथें।।
बैर भाव के आज, चलव गा पाटव खाई।
जुरमिल परब मनाव, सबो ला अबड़ बधाई।।
(2)
आथे सबझिन ला अबड़, परब हरेली रास।
पूजाकर कुलदेव के, इहाँ मनाथें खास।।
इहाँ मनाथें खास, बाँस के गेंड़ी चढ़के।
खेलकूद मा भाग, सबोझन लेथें बढ़के।।
लोक परब ये आय, गाँव मा बने मनाथे।
बगराथे आनंद, हरेली हा जब आथे।।
(3)
हरियाली के ये परब, देथे गा संदेश।
पर्यावरण सँवार के, बने रखव परिवेश।।
बने रखव परिवेश, बचाके सब रुख-राई।
पानी घला बचाव, इही मा हमर भलाई।।
रखहू बने बिचार, तभे आही खुशहाली।
लेके सबला साथ, मनावव गा हरियाली।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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कुकुभ छंद - विरेन्द्र कुमार साहू
खेत बीरता लहरावत हे , भाग सबो के जागे जी।
कर्रा डारा चलो खोंचबो , परब हरेली आगे जी।१।
गौ माता बर कांदा-कूसा , लाये हाबे बरदीहा।
नून पान अउ लोंदी धरके , चलौ साहड़ा के ठीहा।२।
काम बुता के सब सहयोगी , बसला बिंधना अउ आरी।
टँगिया नाँगर जुड़ा कुदारी , धोवौ सफ्फा सँगवारी।३।
कोठा-डोला ऊबड़ खाबड़ , मुरुम लान के पाटौ जी।
गौधन हा किसान के हितवा , सुख दुख उनसन बाँटौ जी।४।
बाबू के खुशहाली खातिर , गढ़ दौ सुग्घरकन गेंड़ी।
खुशी म भरही बाबू के मन , तोड़ उदासी के बेंड़ी।५।
बंदन चंदन अगर धूप धर , बइठौ जी माईं-पीला।
करौ सबे झन नाँगर पूजा , आज चढ़ा गुरहा चीला।६।
हाँसी-खुशी तिहार मनालौ , किसिम किसिम रोटी राँधौ।
जुरमिल रहिहौ छत्तिसगढ़िया , मया जोर सुनता बाँधौ।७।
छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू , ग्राम - बोड़राबाँधा (राजिम) , जिला - गरियाबंद (छत्तीसगढ़)
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रोला छंद - सुधा शर्मा
देखव संगी आज, मानथे सबो हरेली।
पहली परब तिहार,मिलय सब सखी सहेली।।
लानत हावय बाँस,सबो मिल खापय गेंड़ी।
कुलकत लइका देख,चढ़ें सब टेड़ी बेड़ी।।
राउत घर घर आत,नीम के खोंचय डारा।
लोंदी गाय खवात,हवें सब आरा पारा।।
चीला लेगत खेत,गीत माटी के गावय।
नाँगर बख्खर धोय,पूजत अँगना भावय।।
आगे बछर तिहार,रूप धरती के सुग्घर।
सुखमय अब संसार,दिखत हे हरियर हरियर।।
किसिम किसिम के होत,परब आथे चौमासा।
संस्कृति जलथे जोत,राज के रासा बासा।।
झूला डारे आज, झूल थे सब सँगवारी।
गेंड़ी करके साज,मचत मारे किलकारी।
रेंगत गल्ली खोर,चींहु रे चींहु बजावत।
लइका मगन सियान, हरेली सबो मनावत।।
छंदकारा - सुधा शर्मा,
राजिम, जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
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सार छंद - केंवरा यदु"मीरा"
पहिली इही तिहार हरय गा, जुर मिल सबो मनाबो ।
लोंदी जम्मों गरुवा ला अब,आजे चलौ खवाबो ।।
रापा कुदरी अउ बसुला ला, चलना धोके लाबो ।
देवी मनके सुमिरन करके, नरियर घला चघाबो ।।
दाई चीला राँधै हावै, गुरहा बढ़िया खाबो।
कतका सुग्घर परब हवै गा,मन मा खुशी मनाबो।।
दसमुल काँदा जंगल के गा,आवौ देव चघाबो ।
रोग राइ ले बाँचे बर गा,जम्मों मिल के खाबो।।
चलना गेंड़ी बबा बनादे, वोमा चढ़के जाबो।
रिचरिच रिचरिच बाजत राहय, चढ़ के मजा उड़ाबो।।
आही राखी अब तो भइया, दीदी हाँसत आही।
भाई मनहा कुलकत रहिही, राखी हाथ बँधाही।।
छंदकारा-केंवरा यदु "मीरा "
राजिम, छत्तीसगढ़
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दोहा छंद-संतोष कुमार साहू
सुन लव गा भाई बहन, परब हरेली आज।
छत्तीसगढ़ ह खुश रहे,इही हवय आवाज।।
ये तिहार ला शाँति से,बने मनाबो नेक।
सबसे मिलबो हाँस के,छूटय कहूँ न एक।।
धर के डारा भेलवा,सबो खोंचबो खेत।
सुमरे बर भगवान ला,करबो बढ़िया चेत।।
पान बने खम्हार के, गठियाबो जी नून।
गरुवा सबो खवाय के,बने लगाबो धून।।
जंगल दवई लान के,खवाबोन गरु गाय।
ये दवई ला खाय ले, रोग कभू नइ आय।।
धो के नाँगर अउ जुड़ा, रापा गैँती संग।
पूजा करबो हम सबो, लगही बने उमंग।।
सबो जगा लिप पोत के, चमकाबो घर द्वार।
ये तिहार मे सब जगा, लाबो बने बहार।।
अरसा खुरमी ठेठरी,बनाबोन पकवान।
संग बइठ सुग्घर सबो, रही खाय के ध्यान।।
आनी बानी खेल जी,सबो खेलबो आज।
मन सबके राहय हरा, असल इही हे राज।।
छंदकार-संतोष कुमार साहू
ग्राम-रसेला (छुरा) जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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मनहरण घनाक्षरी- अजय अमृतांशु
हरेली तिहार बड़,निक लागय सबला, मनाये खातिर गाँव,भर सकलाय हे।
पूजा पाठ होवत हे,गाँव के दइहाँन मा,चढ़े बर लइका हा,गेंड़ी ल बनाय हे।
अंडा पान नून लोंदी,रखे हे खवाय बर,बरा के सुगंध हर,बड़ ममहाय हे।
गुरहा चीला के स्वाद,बड़ ललचाय मन,भजिया चौसला बर,जी कुलकुलाय हे।
छंदकार - अजय अमृतांशु
भाटापारा, जि-बलौदाबाजार भाटापारा
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कुकुभ छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी
सावन महिना मनभावन हे,अउ ओमा परब हरेली।
रिमझिम रिमझिम बरसे बदरा,मया बाँटले बरपेली।
हरियर हरियर धरा दिखत हे,नाचत गावत रुखराई।
देख फसल लहरावत सुग्घर,हरसाये धरती दाई।
धरती दाई के अँचरा मा,मया समाये हे भारी।
परब हरेली के शुभअवसर,कुलकत हे सब नर नारी।
लइकामन सब हँसी खुशी हे,गेड़ी के मजा उड़ावै।
एती ओती दँउड़य भागय,नाचय कूदय हरसावै।
बड़े बिहनिया बबा बनावै,सेंक गोरसी मा लोंदी
माँग सकय नइ डर मा नतनी,बनगे हावय चुप कोंदी।
अपन अपन गरुवा बछरू ला,सब लोंदी पान खवाथे।
बने दवाई कांद कूस के,दुरिहाँँ अउ रोग भगाथे।
घूम घूम के राउत भइया,नीम पान खोचत जाथे।
हूम धूप ला देवय बइगा,सब देवी देव मनाथे।
नाँगर जूड़ा रापा गैती,हँसिया टँगिया ला धोथे।
गुड़हा चीला जोड़ा नरियर,धूमधाम पूजा होथे।
खो खो फुगड़ी खेल कबड्डी,खेलत हे सखी सहेली।
मन किसान के गदगद हावय,पबरित हे परब हरेली।
पहिली तिहार आज हरेली,चलो मनाबो सँगवारी।
आनी बानी तीज तिहारी,हमर राज के चिनहारी।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी(कवर्धा) जिला-कबीरधाम(छ्त्तीसगढ़)
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रोला छंद - सुधा शर्मा
देखव संगी आज, मानथे सबो हरेली।
पहली परब तिहार,मिलय सब सखी सहेली।।
लानत हावय बाँस,सबो मिल खापय गेंड़ी।
कुलकत लइका देख,चढ़ें सब टेड़ी बेड़ी।।
राउत घर घर आत,नीम के खोंचय डारा।
लोंदी गाय खवात,हवें सब आरा पारा।।
चीला लेगत खेत,गीत माटी के गावय।
नाँगर बख्खर धोय,पूजत अँगना ह भावय।।
आगे बछर तिहार,रूप धरती के सुग्घर।
सुखमय अब संसार,दिखत हे हरियर हरियर।।
किसिम किसिम के होत,परब आथे चौमासा।
संस्कृति जलथे जोत,राज के रासा बासा।।
झूला डारे आज, झूल थे सब सँगवारी।
गेंड़ी करके साज,मचत मारे किलकारी।
रेंगत गल्ली खोर,चींहु रे चींहु बजावत।
लइका मगन सियान, हरेली सबो मनावत।।
छंदकारा - सुधा शर्मा,
राजिम, जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
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गीतिका छंद - महेंद्र कुमार बघेल
(1)
माह सावन के अमौसी, ये हरेली आय जी।
रात कुन बइगा बरदिहा, बन जरी डबकाय जी।
अउ बिहनिया ले घरोघर,वो दवा बॅटवाय गा।
पान मा लपटाय लोंदी, गाय गुप ले खाय गा।।
(2)
मंत्र गुरुवारी सिखइया,दिन अगोरय आज ला।
रोज रतिहा जाय गुरु घर, छोड़ के सब काज ला।
पंचमी रिसि आत ले जी, पाठ पिड़हा पाॅय सब।
अउ कभू आ जाय अलहन, सीख ला अजमाॅय सब।।
(3)
बांध के जी सब मुॅही ला, सोझियावॅय टार ला।
बड़ खुशी अंंतस बिराजै, देख हरियर खार ला।
अन्न ला उपजाय बर जी,चाहि ठसलग ज्ञान गा।
बिंधना नाॅगर जुड़ा सब, आय कृषि भगवान गा।।
(4)
धो धुवा के रापा कुदारी,सब कृषि औजार ला।
तब मुरुम आसन बनाके, बड़ करे सतकार ला ।
मा बहिन हाथा लगावॅय,एक जग परिवार सब।
मुड़ किसनहा मन नवावव, देय बर आभार सब।।
(5)
नानकुन खीला धरे अउ ,आय जी लोहार हा।
ठेंस के आशीश देवय,खुश रहे घर द्वार हा।
घर मुहाटी मा रउत हा, नीम डारा खोंचथें।
शुध हवा खातिर हमर बर , का गजब के सोचथें।।
(6)
सब हमर पुरखा मनन हा, बीज सुग्घर बोंय हे।
गांव मा चिखला रहय तब, खोज येकर होय हे।
चल हरेली मानबो जी,आज गेंड़ी खाप के।
काट सइघो बाॅस ला अउ,पउ बरोबर नाप के।।
(7)
ठेठरी खुरमी पचे नइ, वो चुरे हे तेल मा।
तोड़ हे भाॅठा डहर जी, ध्यान देवव खेल मा।
नेक नीयत राख के जी, मान ले त्यौहार ला।
ये धरा हरिहर रखे बर, भूल झन संस्कार ला।।
(8)
देख के पौनी पसारी, निक लगे जोहार हा।
बीसकुटनी मा मिले जी,नून चाॅउर दार हा ।
ये परब छत्तीसगढ़ मा,आय सेवा दान के।
जीव अउ निरजीव मन बर ,मान अउ सम्मान के।।
छन्दकार- महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव,
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
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दोहा छंद- जितेन्द्र निषाद
अब किसान के पीर ला,देखत हावय कौन।
दर्रा हाने खेत ला,देख किसनहा मौन।।
कहाँ बियासी खेत मा,होहे संगी आज।
बिन पानी के हे परे,खेती के सब काज।।
काँटा-खूँटी हा बिकट,परे हवय सब खेत।
बिन पानी के का करे,होगे चेत-बिचेत।।
नाँगर-बइला फाँद के,देखे गगन किसान।
बोले हरदम खेत मा,बरसा कर भगवान।।
परब हरेली आज गा,तभ्भो खुशी मनाय।
जम्मों दुःख भुलाइके,जिनगी अपन पहाय।।
छंदकार - जितेन्द्र कुमार निषाद
ग्राम-सांगली,पो.-पलारी,वि.ख.-गुरुर,जिला-बालोद (छ.ग.) 491222
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बरवै छंद - श्रीमती आशा आजाद
आज हरेली हावय,देख तिहार।
घर ला लीपय चमके,सबो दुवार।।
गैंती राँपा नाँगर,सब चमकाय।
पूजा करथें सबझन,ध्यान लगाय।।
मीठा गुड़ अउ चीला,के पकवान।
पूजा कुलदेवता के,करे सियान।।
फेंकय नरियर हावय,सुग्घर खेल।
मया बाँट आपस मा,रखथें मेल।।
तुलसी के चौंरा हा,देख लिपाय।
नदियाँ के बँजरी ला,हे बिछाय।।
गेड़ी चढ़के लेवय,बड़ आनंद।
आज किसानी ला सब,रखथे बंद।।
पूजा डोली के जी,करे किसान।
सुग्घर उपजय सुमिरय,सबके धान।।
जगा जगा हरियाली,मन ला भाय।
नेक परब ला मिल जुल,आज मनाय।।
नाचै गावै मनखे,धूम मचाय।
लइका गेड़ी चढ़के,बड़ हरसाय।।
खोंचय लिम के डारा,घर घर जान।
दूर बिमारी करथे,कहय सियान।।
हमर छत्तीसगढ़ के,ये आधार।
खुशी मनावय सुग्घर,दय व्यवहार।।
प्रेम बरसते कतका,मीठा भाव।
हमर छत्तीसगढ़ ला,माथ नवाव।।
छंदकार-श्रीमती आशा आजाद
पता-मानिकपुर,कोरबा,छत्तीसगढ़
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कुण्डलिया छंद- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
(1)
मन हरियर अउ गाँव हे,हरियर खेती खार।
धरती दाई हा करे,हरा रूप सिंगार।।
हरा रूप सिंगार,हरेली मा मन भावन।
छतीसगढ़ तिहार,मनावव सब मिल पावन।
संस्कृति ले पहिचान,चलव करबो आज जतन।
गढ़बो नवा सुराज,मिलाके सब जी तन मन।।
(2)
नाँगर बइला जान हे,खेत खार हा धाम।
जाँगर ला पहिचान दय,ये किसान के नाम।।
ये किसान के नाम,मान बर वादा ले ली।
पावन बेला भाय,मनाबो आज हरेली।।
सावन करे पुकार,बहे पानी के रइला।
दे किसान आराम,संग मा नाँगर बइला।।
(3)
धर के लोंदी जात हे,सब किसान दइहान।
चाउँर मिरची दार हे,राउत बर सम्मान।।
राउत बर सम्मान,धरे नरियर ला थारी।
करथे बारो मास,हमर गरुवा रखवारी।।
गरुवा लोंदी खाय,मया मालिक बर भर के।
मया पिरित ला लाय,हरेली गठरी धर के।।
(4)
पूजा करय किसान हा,जम्मो खेत समान।।
सच मा येकर बर हवय,सउँहत ये भगवान।
सउँहत ये भगवान,करय जे खेत किसानी।
नाँगर रापा संग,कुदारी हे बरदानी।।
संग रहय घर खेत,और ना कोई दूजा।
आये प्रकृति दुवार,करव जी बढ़िया पूजा।।
(5)
रच रच रच गेड़ी बजे,गाँव गली अउ खोर।
खो खो फुगड़ी संग मा,ताल कबड्डी जोर।
ताल कबड्डी जोर,खेल ले फेंकव नरियर।
द्वेष भाव ला छोड़,रखव जी मन ला फ़रियर।।
रंग हरेली डूब,मना लौ सब जी सच सच।
पावन बेला आज,बजन दे गेड़ी रच रच।।
छन्दकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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मत्तगयंद सवैया - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
सावन के महिना बड़ पावन मीठ मया बगरे बरपेली।
हे ऋतु पावस घोर अमावस भोर भये ममहाय चमेली।
बादर ले बरसे बसुधा जल देख करे पुरवा अठखेली।
हे खुश मोर मितान किसान मनावत आज तिहार हरेली।
छन्दकार - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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अमृतध्वनि छंद - रामकली कारे
परब हरेली गाँव मा ,गली खोर जुरियाय ।
लइका लोग सियान ला ,अड़बड़ आज सुहाय ।।
अड़बड़ आज सुहाय गजब के ,हे मन भावन ।
परब हरेली ,आय बरसगे ,रिमझिम सावन ।।
नाचय कूदय ,गेड़ी चढ़के ,ठेलक ठेली ।
बरा ठेठरी ,ले महकय घर ,परब हरेली ।।
छन्दकार - रामकली कारे बालको नगर
कोरबा (छत्तीसगढ़ )
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सार छन्द - गुमान प्रसाद साहू
आये हावय परब हरेली, जुरमिल चलव मनाबो।
परब हमर ये पहिली संगी, सुग्घर सब परघाबो।।
सावन मास अमावस्या मा, ये तिहार हा आथे।
गाँव गाँव अउ गली गली मा, हरियाली बगराथे।।
बरदी मा जाके गइया ला, लोंदी सबो खवाबो।
बन कांदा दसमूल गोंदली, के प्रसाद ला खाबो।।
धो धोवाके जिनिस किसानी, सुग्घर सबो सजाथे।।
नरियर चीला फूल चढ़ाके, गुड़ के सँग जेंवाथे।।
नीम डार खोंचे बर राउत, घर घर सबके जाथे।
बइगा घलो अशीस देके, दार चाऊँर पाथे।।
लइका मन हा मचथे गेड़ी, भारी मजा उठाथे।
दीदी बहिनी खो-खो फुगड़ी, खेले भाठा जाथे।।
छन्दकार:- गुमान प्रसाद साहू ग्राम- समोदा (महानदी )
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गीतिका छंद - मीता अग्रवाल
(1)
मान सावन मास मावस,हे हरेली आज जी।
पूज रापा खेत गैती,फावड़ा औजार जी।
आज राधें खीर चीला,खाय सब परसाद जी।
लीम ड़ारा खोंच देथे,डार हरियर आज जी।
(2)
मानथे पहिली तिहारे, झूम नाचे शोर जी।
बाँस फाडें बाँध खपची, बाँध गैडी भोर जी।
गाँव घूमे लोग लइका,मानथे ब्यौहार जी।
रीति माने गाँव भर मा,आय हे त्यौहार जी।
(3)
खेत बाढ़य धान बाढ़य, आस मन मा जागथे।
ओढ़ हरियर ड़ार लुगरा, दे खुशी मा झूमथे।
देख गेड़ी खेल खेलन,कोन कइसे हारही।
देख लेथन कोन संगी, आज बाजी मारही।
छन्दकार - डाॅ मीता अग्रवाल
पुरानी बस्ती लोहार चौंक रायपुर छत्तीसगढ़
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मत्तगयंद सवैया - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
सावन के महिना बड़ पावन मीठ मया बगरे बरपेली।
हे ऋतु पावस घोर अमावस भोर भये ममहाय चमेली।
बादर ले बरसे जल धार ग देख करे पुरवा अठखेली।
हे खुश मोर मितान किसान मनावत आज तिहार हरेली।
रचनाकर-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़
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गीतिका छंद - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
सब मनावव जी हरेली, खाप के गेंड़ी बने।
ठेठरी खुरमी सुहारी, खाय पीये सब तने।।
ये हमर पारंपरिक हे, ये हमर बड़ मान ये।
सब मनावव शान से जी, ये हमर पहिचान ये।।
छंदकार - अशोक धीवर "जलक्षत्री"
ग्राम - तुलसी (तिल्दा नेवरा) जिला - रायपुर (छत्तीसगढ़)
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अमृत ध्वनि छंद - बलराम चंद्राकर
सावन मा हरियर दिखै, जम्मो खेती खार।
नदिया नरवा बाढ़ मा, कलकल होवय धार।
कलकल होवय , धार तलातल, बाढ़ै पानी।
करै बियासी रोपै थरहा, चलै किसानी ।
सुघर हरेली, के तिहार जब, आवै पावन ।
नीक लगै बड़, सब ला संगी, महिना सावन।।
छन्दकार - बलराम चंद्राकर
भिलाई छत्तीसगढ़
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गीतिका छंद - पोखन लाल जायसवाल:
(1)
पूजथे नाँगर कुदारी,देवता जस जान के।
मान दै सबला बराबर,हाँ मनौती मान के।
कर किसानी संग नाँगर,धोय सब औजार ला।
पूज रापा अउ कुदारी,मानथे उपकार ला।
(2)
गाय गरुवा ला खवाये,लाय लोंदी सान के।
दै दवाई सब कहूँ जी,मात एला जान के।
दूध खावय अउ दही ला,खाय सब मिल बाँट के।
खाय कतको रसमलाई,हाथ अँगठी चाँट के।
(3)
दिन हरेली के घरोघर,लीम डारा खोंचथे।
रोग राई होय झन अउ,दूर राहय सोंचथे।
ठोंक खीला घर मुहाटी, जाय जब लोहार जी।
दाबके पाती खुशी के,जाय मंतर मार जी।
(4)
बाँस के गेंड़ी मिले तब, सब हरेली मानथे।
माँग सुनथे जब बबा हा,बाँस गेंड़ी तानथे।
चढ़ मजा कोनो उड़ावय,खेल कतको खेल के।
पाय कोनो हा गली मा,फेर चिखला पेल के।
(5)
खेल फुगड़ी अउ कबड्डी,खेलथे समभाव ले।
फेंक नरियर जीत खो खो,खेलथे सब चाव ले।
करु कसा मन के भुलावत,सब हरेली मान लौ।
का मजा हे सोंच ले अउ,संग रहिबो ठान लौ।
छंदकार : पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह( पलारी )जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग
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कुण्डलिया छंद - श्लेष चन्द्राकर
विषय - हरेली
(1)
अबड़ बधाई देत हवँ, करलौ सब स्वीकार।
हरे हरेली राज के, पहिली हमर तिहार।।
पहिली हमर तिहार, किसनहा सबो मनाथें।
घर-घर मा पकवान, इहाँ बड़ खास बनाथें।।
बैर भाव के आज, चलव गा पाटव खाई।
जुरमिल परब मनाव, सबो ला अबड़ बधाई।।
(2)
आथे सबझिन ला अबड़, परब हरेली रास।
पूजाकर कुलदेव के, इहाँ मनाथें खास।।
इहाँ मनाथें खास, बाँस के गेंड़ी चढ़के।
खेलकूद मा भाग, सबोझन लेथें बढ़के।।
लोक परब ये आय, गाँव मा बने मनाथे।
बगराथे आनंद, हरेली हा जब आथे।।
(3)
हरियाली के ये परब, देथे गा संदेश।
पर्यावरण सँवार के, बने रखव परिवेश।।
बने रखव परिवेश, बचाके सब रुख-राई।
पानी घला बचाव, इही मा हमर भलाई।।
रखहू बने बिचार, तभे आही खुशहाली।
लेके सबला साथ, मनावव गा हरियाली।।
छंदकार - श्लेष चन्द्राकर
पता - खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
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कुकुभ छंद - विरेन्द्र कुमार साहू
खेत बीरता लहरावत हे , भाग सबो के जागे जी।
कर्रा डारा चलो खोंचबो , परब हरेली आगे जी।१।
गौ माता बर कांदा-कूसा , लाये हाबे बरदीहा।
नून पान अउ लोंदी धरके , चलौ साहड़ा के ठीहा।२।
काम बुता के सब सहयोगी , बसला बिंधना अउ आरी।
टँगिया नाँगर जुड़ा कुदारी , धोवौ सफ्फा सँगवारी।३।
कोठा-डोला ऊबड़ खाबड़ , मुरुम लान के पाटौ जी।
गौधन हा किसान के हितवा , सुख दुख उनसन बाँटौ जी।४।
बाबू के खुशहाली खातिर , गढ़ दौ सुग्घरकन गेंड़ी।
खुशी म भरही बाबू के मन , तोड़ उदासी के बेंड़ी।५।
बंदन चंदन अगर धूप धर , बइठौ जी माईं-पीला।
करौ सबे झन नाँगर पूजा , आज चढ़ा गुरहा चीला।६।
हाँसी-खुशी तिहार मनालौ , किसिम किसिम रोटी राँधौ।
जुरमिल रहिहौ छत्तिसगढ़िया , मया जोर सुनता बाँधौ।७।
छंदकार - विरेन्द्र कुमार साहू , ग्राम - बोड़राबाँधा (राजिम) , जिला - गरियाबंद (छत्तीसगढ़)
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रोला छंद - सुधा शर्मा
देखव संगी आज, मानथे सबो हरेली।
पहली परब तिहार,मिलय सब सखी सहेली।।
लानत हावय बाँस,सबो मिल खापय गेंड़ी।
कुलकत लइका देख,चढ़ें सब टेड़ी बेड़ी।।
राउत घर घर आत,नीम के खोंचय डारा।
लोंदी गाय खवात,हवें सब आरा पारा।।
चीला लेगत खेत,गीत माटी के गावय।
नाँगर बख्खर धोय,पूजत अँगना भावय।।
आगे बछर तिहार,रूप धरती के सुग्घर।
सुखमय अब संसार,दिखत हे हरियर हरियर।।
किसिम किसिम के होत,परब आथे चौमासा।
संस्कृति जलथे जोत,राज के रासा बासा।।
झूला डारे आज, झूल थे सब सँगवारी।
गेंड़ी करके साज,मचत मारे किलकारी।
रेंगत गल्ली खोर,चींहु रे चींहु बजावत।
लइका मगन सियान, हरेली सबो मनावत।।
छंदकारा - सुधा शर्मा,
राजिम, जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
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सार छंद - केंवरा यदु"मीरा"
पहिली इही तिहार हरय गा, जुर मिल सबो मनाबो ।
लोंदी जम्मों गरुवा ला अब,आजे चलौ खवाबो ।।
रापा कुदरी अउ बसुला ला, चलना धोके लाबो ।
देवी मनके सुमिरन करके, नरियर घला चघाबो ।।
दाई चीला राँधै हावै, गुरहा बढ़िया खाबो।
कतका सुग्घर परब हवै गा,मन मा खुशी मनाबो।।
दसमुल काँदा जंगल के गा,आवौ देव चघाबो ।
रोग राइ ले बाँचे बर गा,जम्मों मिल के खाबो।।
चलना गेंड़ी बबा बनादे, वोमा चढ़के जाबो।
रिचरिच रिचरिच बाजत राहय, चढ़ के मजा उड़ाबो।।
आही राखी अब तो भइया, दीदी हाँसत आही।
भाई मनहा कुलकत रहिही, राखी हाथ बँधाही।।
छंदकारा-केंवरा यदु "मीरा "
राजिम, छत्तीसगढ़
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दोहा छंद-संतोष कुमार साहू
सुन लव गा भाई बहन, परब हरेली आज।
छत्तीसगढ़ ह खुश रहे,इही हवय आवाज।।
ये तिहार ला शाँति से,बने मनाबो नेक।
सबसे मिलबो हाँस के,छूटय कहूँ न एक।।
धर के डारा भेलवा,सबो खोंचबो खेत।
सुमरे बर भगवान ला,करबो बढ़िया चेत।।
पान बने खम्हार के, गठियाबो जी नून।
गरुवा सबो खवाय के,बने लगाबो धून।।
जंगल दवई लान के,खवाबोन गरु गाय।
ये दवई ला खाय ले, रोग कभू नइ आय।।
धो के नाँगर अउ जुड़ा, रापा गैँती संग।
पूजा करबो हम सबो, लगही बने उमंग।।
सबो जगा लिप पोत के, चमकाबो घर द्वार।
ये तिहार मे सब जगा, लाबो बने बहार।।
अरसा खुरमी ठेठरी,बनाबोन पकवान।
संग बइठ सुग्घर सबो, रही खाय के ध्यान।।
आनी बानी खेल जी,सबो खेलबो आज।
मन सबके राहय हरा, असल इही हे राज।।
छंदकार-संतोष कुमार साहू
ग्राम-रसेला (छुरा) जिला-गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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मनहरण घनाक्षरी- अजय अमृतांशु
हरेली तिहार बड़,निक लागय सबला, मनाये खातिर गाँव,भर सकलाय हे।
पूजा पाठ होवत हे,गाँव के दइहाँन मा,चढ़े बर लइका हा,गेंड़ी ल बनाय हे।
अंडा पान नून लोंदी,रखे हे खवाय बर,बरा के सुगंध हर,बड़ ममहाय हे।
गुरहा चीला के स्वाद,बड़ ललचाय मन,भजिया चौसला बर,जी कुलकुलाय हे।
छंदकार - अजय अमृतांशु
भाटापारा, जि-बलौदाबाजार भाटापारा
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कुकुभ छंद-ज्ञानुदास मानिकपुरी
सावन महिना मनभावन हे,अउ ओमा परब हरेली।
रिमझिम रिमझिम बरसे बदरा,मया बाँटले बरपेली।
हरियर हरियर धरा दिखत हे,नाचत गावत रुखराई।
देख फसल लहरावत सुग्घर,हरसाये धरती दाई।
धरती दाई के अँचरा मा,मया समाये हे भारी।
परब हरेली के शुभअवसर,कुलकत हे सब नर नारी।
लइकामन सब हँसी खुशी हे,गेड़ी के मजा उड़ावै।
एती ओती दँउड़य भागय,नाचय कूदय हरसावै।
बड़े बिहनिया बबा बनावै,सेंक गोरसी मा लोंदी
माँग सकय नइ डर मा नतनी,बनगे हावय चुप कोंदी।
अपन अपन गरुवा बछरू ला,सब लोंदी पान खवाथे।
बने दवाई कांद कूस के,दुरिहाँँ अउ रोग भगाथे।
घूम घूम के राउत भइया,नीम पान खोचत जाथे।
हूम धूप ला देवय बइगा,सब देवी देव मनाथे।
नाँगर जूड़ा रापा गैती,हँसिया टँगिया ला धोथे।
गुड़हा चीला जोड़ा नरियर,धूमधाम पूजा होथे।
खो खो फुगड़ी खेल कबड्डी,खेलत हे सखी सहेली।
मन किसान के गदगद हावय,पबरित हे परब हरेली।
पहिली तिहार आज हरेली,चलो मनाबो सँगवारी।
आनी बानी तीज तिहारी,हमर राज के चिनहारी।
छंदकार-ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम-चंदेनी(कवर्धा) जिला-कबीरधाम(छ्त्तीसगढ़)
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रोला छंद - सुधा शर्मा
देखव संगी आज, मानथे सबो हरेली।
पहली परब तिहार,मिलय सब सखी सहेली।।
लानत हावय बाँस,सबो मिल खापय गेंड़ी।
कुलकत लइका देख,चढ़ें सब टेड़ी बेड़ी।।
राउत घर घर आत,नीम के खोंचय डारा।
लोंदी गाय खवात,हवें सब आरा पारा।।
चीला लेगत खेत,गीत माटी के गावय।
नाँगर बख्खर धोय,पूजत अँगना ह भावय।।
आगे बछर तिहार,रूप धरती के सुग्घर।
सुखमय अब संसार,दिखत हे हरियर हरियर।।
किसिम किसिम के होत,परब आथे चौमासा।
संस्कृति जलथे जोत,राज के रासा बासा।।
झूला डारे आज, झूल थे सब सँगवारी।
गेंड़ी करके साज,मचत मारे किलकारी।
रेंगत गल्ली खोर,चींहु रे चींहु बजावत।
लइका मगन सियान, हरेली सबो मनावत।।
छंदकारा - सुधा शर्मा,
राजिम, जिला-गरियाबंद (छ.ग.)
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गीतिका छंद - महेंद्र कुमार बघेल
(1)
माह सावन के अमौसी, ये हरेली आय जी।
रात कुन बइगा बरदिहा, बन जरी डबकाय जी।
अउ बिहनिया ले घरोघर,वो दवा बॅटवाय गा।
पान मा लपटाय लोंदी, गाय गुप ले खाय गा।।
(2)
मंत्र गुरुवारी सिखइया,दिन अगोरय आज ला।
रोज रतिहा जाय गुरु घर, छोड़ के सब काज ला।
पंचमी रिसि आत ले जी, पाठ पिड़हा पाॅय सब।
अउ कभू आ जाय अलहन, सीख ला अजमाॅय सब।।
(3)
बांध के जी सब मुॅही ला, सोझियावॅय टार ला।
बड़ खुशी अंंतस बिराजै, देख हरियर खार ला।
अन्न ला उपजाय बर जी,चाहि ठसलग ज्ञान गा।
बिंधना नाॅगर जुड़ा सब, आय कृषि भगवान गा।।
(4)
धो धुवा के रापा कुदारी,सब कृषि औजार ला।
तब मुरुम आसन बनाके, बड़ करे सतकार ला ।
मा बहिन हाथा लगावॅय,एक जग परिवार सब।
मुड़ किसनहा मन नवावव, देय बर आभार सब।।
(5)
नानकुन खीला धरे अउ ,आय जी लोहार हा।
ठेंस के आशीश देवय,खुश रहे घर द्वार हा।
घर मुहाटी मा रउत हा, नीम डारा खोंचथें।
शुध हवा खातिर हमर बर , का गजब के सोचथें।।
(6)
सब हमर पुरखा मनन हा, बीज सुग्घर बोंय हे।
गांव मा चिखला रहय तब, खोज येकर होय हे।
चल हरेली मानबो जी,आज गेंड़ी खाप के।
काट सइघो बाॅस ला अउ,पउ बरोबर नाप के।।
(7)
ठेठरी खुरमी पचे नइ, वो चुरे हे तेल मा।
तोड़ हे भाॅठा डहर जी, ध्यान देवव खेल मा।
नेक नीयत राख के जी, मान ले त्यौहार ला।
ये धरा हरिहर रखे बर, भूल झन संस्कार ला।।
(8)
देख के पौनी पसारी, निक लगे जोहार हा।
बीसकुटनी मा मिले जी,नून चाॅउर दार हा ।
ये परब छत्तीसगढ़ मा,आय सेवा दान के।
जीव अउ निरजीव मन बर ,मान अउ सम्मान के।।
छन्दकार- महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव,
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
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दोहा छंद- जितेन्द्र निषाद
अब किसान के पीर ला,देखत हावय कौन।
दर्रा हाने खेत ला,देख किसनहा मौन।।
कहाँ बियासी खेत मा,होहे संगी आज।
बिन पानी के हे परे,खेती के सब काज।।
काँटा-खूँटी हा बिकट,परे हवय सब खेत।
बिन पानी के का करे,होगे चेत-बिचेत।।
नाँगर-बइला फाँद के,देखे गगन किसान।
बोले हरदम खेत मा,बरसा कर भगवान।।
परब हरेली आज गा,तभ्भो खुशी मनाय।
जम्मों दुःख भुलाइके,जिनगी अपन पहाय।।
छंदकार - जितेन्द्र कुमार निषाद
ग्राम-सांगली,पो.-पलारी,वि.ख.-गुरुर,जिला-बालोद (छ.ग.) 491222
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सादर पायलगी गुरुदेव। बड़ सुग्घर उदिम। छंद के छ परिवार ला हरेली के नँगत बधाई।
ReplyDeleteसबले असली हरेली तो हमर छंद खजाना हर मनाइस हे।
ReplyDeleteसचमुच खजाना भरत हे अउ दिनों दिन हरियावत हे।
हरेली के एक ले बढ़के एक,गीत।।गुरुदेव ल सादर नमन।अउ जम्मो छंदकार मन ल सादर बधाई
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई हे जम्मो साधक मनला।
ReplyDeleteजय जोहार ।
गुरुदेव ल प्रणाम
जम्मो साधक मनला बहुतेच अकन बधाई
ReplyDeleteश्रद्धेय गुरुदेव संग आप सबो साधक मन ला छत्तीसगढ़ राज के पहिली तिहार हरेली के गाड़ा गाड़ा बधाई।।
ReplyDeleteअति सुन्दर संकलन गुरुदेव। ये संकलन युग-युग तक अमर रही । सादर नमन गुरुदेव ।
ReplyDeleteसुग्घर गुरुदेव
ReplyDeleteसुग्घर गुरुदेव
ReplyDeleteआप सबो ल बहुतेच बधाई अउ गुरूदेव जी ल सादर प्रणाम
ReplyDeleteहरेली तिहार उपर बहुत सुघ्घर संकलन गुरुदेव नमन। जम्मौ साधक संगवारी मन ल बधाई।
ReplyDeleteआप जम्मो साधक मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई💐💐👍
ReplyDeleteहमर गुरुदेव के आशिर्वाद ले ये सुग्घर संकलन हो पाय हे उँखर अनमोल समय हमर बर वरदान हे💐
अनमोल खजाना
ReplyDeleteबहुत सुघ्घर
ReplyDeleteगुरुदेव आपके मिहनत अउ कोशिश ले छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ संस्कृति के धरोहर निशदिन बाढ़त जात हवय।प्रणाम
ReplyDeleteगुरुदेव आपके मिहनत अउ कोशिश ले छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ संस्कृति के धरोहर निशदिन बाढ़त जात हवय।प्रणाम
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ReplyDeleteएहसान की क़ीमत चाहते हैं,
ReplyDeleteदेते हैं लोग तो मुफ़्त सलाह ! - 1
ज़ुल्फ़ को अपने रुख़ से हटा लीजिये !
तमन्नाई के दिल की दुआ लीजिये, - 2
मुक़ाबला जब ज़िन्दगी से करना हो,
तो अपने इरादों को फ़ौलाद रखिये ! - 3
उतरे हैं बारी-बारी हर चेहरे से मुखौटे,
बुरे वक़्त में हटाती है नक़ाब ज़िन्दगी ! - 4
गुड्डे-गुड़ियों के जैसा नहीं खेल ये,
निभा पाएँ अगर तो निकाह कीजिये ! - 5
अच्छी तरह पहचानता हूँ तेरे मुखौटे,
सीरत तेरी बुरी है तो सूरत का क्या करूँ ! - 6
ज़िन्दा रहूँगा मैं सदा अशआ'र में अपने,
हो जाऊँ मैं दफ़्न चाहे मैं धुआँ हो जाऊँ ! - 7
किसी और का गिला तू कभी मुझसे करे,
तेरा नुक़सान हो तो मेरा नफ़ा हो जाए ! - 8
वो हँस दिए तो घुल गई फ़ज़ा में मौसिक़ी,
ऐसी छनक पायल की भी झंकार में नहीं ! - 9
वो हैं नहीं जाहिल कि जो मकतब नहीं गए,
पढ़-लिख के बेशऊर हैं, वो लोग हैं जाहिल ! - 10
©® फिरोज़ खान अल्फ़ाज़
नागपुर, प्रोपर औरंगाबाद,बिहार
स0स0-9231/2017