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Thursday, February 20, 2025

शोभन छंद (सिंहिका छंद) ================

 शोभन छंद (सिंहिका छंद)

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1-

चोर मन धरके खजाना,आज घूँमत खोर।

रेवड़ी फोकट बटे हे, होत सुनलव शोर।

आय हे ऊखर सियानी, बेंच खाइन देश।

देख ले तँय ठग फुसारी,नोचलिन नख केश।।


2-

माफ करजा खुश प्रजा हे, वाह जी सरकार।

थोप गोबर तँय बहन जी, रोकड़ा भरमार।

नौकरी मा का रखे हे, बात सुन वो मोर।

टोपली मा तैंहा सुघर, बीन गोबर जोर।।


कमलेश प्रसाद शर्माबाबू

छत्रपति वीर शिवाजी

 छत्रपति वीर शिवाजी महाराज जयंती के आप मन ला हार्दिक बधाई।


छत्रपति वीर शिवाजी

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पइयाँ लागवँ गणपति गुरु के, हाथ जोड़ के माथ नँवाय।

 बिनती सुन लौ शारद माता, भूले बिसरे देहु बताय।।

जस ला वीर शिवा के गाववँ, महिमा जेकर अगम अपार ।

क्षत्रिय कुल में जनम धरे तैं, कुर्मी जाति कहय संसार।।

 किला बखानवँ शिवनेरी के, जनम लिए  सोला सौ तीस।

नाम शिवाजी राखिस दाई,शिव भोला के पाय असीस।।

माता धरमिन जीजाबाई, पिता शाहजी सूबेदार।

 कोणदेव गुरु के किरपा ले, सीखे तैं भाला तलवार।।

 सिधवा बर तो अब्बड़ सिधवा, बैरी बर तो सँउहे काल।

 परम भक्त माता तुलजा के, जय हो भारत माँ के लाल।। 

धरम करम ले पक्का हिंदू, हिंदू के पाये संस्कार।

 गउ माता के रक्षा खातिर, युद्ध करे तैं कतको बार।।

 बालकपन में करे लड़ाई, बैरी मन ला दे ललकार।।

 कब्जा करे किला मा कतको, लड़े लड़ाई छापामार।।

 बीजापुर के राजा बैरी, नाम कहावै आदिलशाह।

 तोर भुजा ला तउलत मरगे, फेर कभू नइ पाइस थाह।।

 समझौता के आड़ बलाके ,लेये खातिर तोरे जान।

 घात लगाये धरे कटारी, कपटी पापी अफजल खान।।

 दाँव ह ओकर उल्टा परगे,समझ गये तैं तुरते चाल।

 बघनक्खा मा ओला भोंगे,यमराजा कस बनके काल।।

 देखे सेना ला मालव के, जीव मुगलिया के घबराय ।

जइसे बघवा के तो छेंके,ठाढ़े हिरना प्रान गँवाय।।

अइसे फुरती जइसे चीता, भुजा म ताकत भीम समान।

रूप दिखय जस पांडव अर्जुन,धरे हाथ मा तीर कमान।।

औरँगजेब बलाके दिल्ली, पकड़ जेल मा देइस डार।

फल के टुकनी मा छिप निकले, गम नइ पाइन पहरेदार।।

दसों दिशा मा डंका बाजय,धजा मराठा के लहराय।

कतका महिमा तोर बखानवँ,मोरे मति हा पुर नइ पाय।।

 जै जै जै जै वीर शिवाजी, निसदिन तोर करवँ गुणगान।

जै होवय भारत माता के, जेकर बेटा तोर समान।।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

वीर शिवाजी-त्रिभंगी छंद

 वीर शिवाजी-त्रिभंगी छंद


माता बड़ धरमिन,जीजा बाई,पिता शाह जी,नाम हरे।

शिवनेरी मा तँय,जनम धरे अउ,बड़का बड़का,काम करे।

दादा ले सीखे,छद्म लड़ाई,राज पाठ सन,ज्ञान बने।

हितवा बर हितवा,बड़ बलशाली,क्षत्रिय कुल के,शान बने II 


चीता जइसे गा,फुर्ती राहय,भाला बरछी,तेज चलै।

बड़ लड़े लड़ाई,छापा मारी,बइरी देखय,हाथ मलै।

घोड़ा वोकर गा,तेज बरोड़ा,दशो दिशा मा,मात करै।

अउ काट मुगल के,खून बहावय,योद्धा मन ला,घात करै II 


भारत माता के,लाल रिहिन वो,मुरहा मन मा,प्राण फुँके।

बैरी बर करिया,डोमी बनके,जहर उगल के,खूब धुँके।

जय हो जय हो जय,वीर शिवाजी,सुघर उठाये,धरम धजा।

बड़ वीर मराठा,बघवा वोहर,बैरी ला दय,करम सजा II

विजेन्द्र कुमार वर्मा 

नगरगाँव (धरसीवाँ)

छेना खरही- दोहा चौपाई

 छेना खरही- दोहा चौपाई


        पइसा फेकय हाँस के, जाँगर कोन खपाय।

        नवा जमाना आय ले, जुन्ना काम नँदाय।।


नवा जमाना कती हबरही। दिखे नही अब छेना खरही।।

छेना बीने के गय अब दिन। रहै सहारा जेहर सब दिन।।


पाठ पठउँहा बारी बखरी। जिहाँ रहै बड़ छेना लकड़ी।।

गरुवा गाय बँधाये घरघर। गोबर निकले कोल्लर भरभर।।


भाई बहिनी बाबू दाई। बिनै सबे गोबर मुस्काई।।

डार पिरौसी थोपैं छेना। तभो काखरो थकयँ न डेना।


काया के कसरत हो जावै। रोग रई कतको दुरिहावै।

करे काम तन मन ले बढ़िया। नाम कमावै छत्तिसगढ़िया।।


चलत रिहिस होही ये कब के। खरही राहय रचरच सबके।।

छेना खा खा भभके चूल्हा। दार भात तब झड़के दूल्हा।।


बर बिहाव का छट्ठी बरही। सबके थेभा राहय खरही।।

चूल्हा छेना बिन नइ सुलगे। शहरी मन हा चुक्ता भुलगे।


आज गैस कूकर हे घर मा। चूल्हा कमती आय नजर मा।।

मनखे होगे सुविधा भोगी। ततके बनगे हावय रोगी।।


भाय दूध छेना आगी के। भोजन भूख भगावै जी के।

खरही खाल्हे डारे डेरा। मुसवा घलो लगाये फेरा।।


घाम घरी बड़ खरही बाढ़े। आय बतर तब रो धो ठाढ़े।।

छेना बिना गोरसी रोये। पेट सेंक तब लइका सोये।।

        

         ईंधन बन छेना जले, कमती पेड़ कटाय।

         धुँवा घलो कमती उड़े, जड़ चेतन सुख पाय।


अब के लइका का ये जाने। छेना धर सब आगी लाने।।

धुँवा दिखाये नजर जाय लग। छेना सुपचा देय हूम जग।।


छेना रचके बाट चढ़ावै। छेना मा खपरा पक जावै।।

छेना के सब बारे होरी। माँजे गहना गुठिया गोरी।।


एक आँच मा बनथे खाना। खाय माँग बड़ दादा नाना।

छेना राख भभूती लागे। धुँवा देख के मच्छर भागे।।


राख अबड़ उपजाऊ होवय। पौधा जर मा राख कुढ़ोवय।

बढ़े राख मा सरसर बिरवा। खातू ये बिन मिलवट निरवा।।


छेना राख काम बड़ आये। बर्तन चकचक ले उजराये।।

बइगा छेना राखड़ धरके।  मारे मंतर फू फू करके।।


उपयोगी हे राख दाँत बर। उपयोगी हे राख आँत बर।।

घावउ गोंदर खजरी कीड़ा। राख लगाये भागे पीड़ा।।


गोधन रख जे सेवा करथे। तेखर घर नित खरही बढ़थे।।

गुण गोबर के हे आगर जस। गुण कारी छेना हावै तस।।


जनम धरत छेना ला कहिथे। मरत समय तक छेना रहिथे।

मनुष आधुनिक कतको होवय। कभुन कभू छेना बर रोवय।


बिके अमेजन मा छेना हा। देख निकलथे मुख ले हाहा।।

जी सकथे मनखे बिन डेना। फेर जरूरी हावै छेना।।


          छेना हे बड़ काम के, गरुवा गाय बिसाव।

          थोपव गोबर सान के, खरही ऊँच बनाव।।


 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Sunday, February 9, 2025

रोला छंद- *गणतंत्र दिवस*

 रोला छंद- *गणतंत्र दिवस*

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पर्व हमर गणतंत्र, दिवस हावय जी पावन।

मन मा जगे उमंग, लगे हे खुशी सुहावन।।

संविधान अधिकार, दिये हे हक आजादी।

रखबो येखर मान, रखे सीना फौलादी।।


हमर शान अभिमान, तिरंगा ला फहराबो।

जनगणमन के गीत, चलौ सब मिलके गाबो।।

धरे एकता सूत्र, प्रतिज्ञा हम सब करबो।

भाई-भाई एक, बने आपस मा रहिबो।।


लोग रहँय खुशहाल, सुमत के गूँजय बानी।

जाति धरम ला छोड़, कहावँय हिंदुस्तानी।।

उन्नत देश विकास, सदा हो लोक भलाई।

भूख गरीबी दूर, मिटे जग जन करलाई।।


सैनिक वीर जवान, नमन हे देश सिपाही।

तुँहर दिये बलिदान, युगो युग सुरता आही।।

जोर काँध मा काँध, इमन जी लड़िन लड़ाई।

गजानंद कर जोर, करत हे मान बड़ाई।।


✍🏻इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़) 26/01/2025