छेना खरही- दोहा चौपाई
पइसा फेकय हाँस के, जाँगर कोन खपाय।
नवा जमाना आय ले, जुन्ना काम नँदाय।।
नवा जमाना कती हबरही। दिखे नही अब छेना खरही।।
छेना बीने के गय अब दिन। रहै सहारा जेहर सब दिन।।
पाठ पठउँहा बारी बखरी। जिहाँ रहै बड़ छेना लकड़ी।।
गरुवा गाय बँधाये घरघर। गोबर निकले कोल्लर भरभर।।
भाई बहिनी बाबू दाई। बिनै सबे गोबर मुस्काई।।
डार पिरौसी थोपैं छेना। तभो काखरो थकयँ न डेना।
काया के कसरत हो जावै। रोग रई कतको दुरिहावै।
करे काम तन मन ले बढ़िया। नाम कमावै छत्तिसगढ़िया।।
चलत रिहिस होही ये कब के। खरही राहय रचरच सबके।।
छेना खा खा भभके चूल्हा। दार भात तब झड़के दूल्हा।।
बर बिहाव का छट्ठी बरही। सबके थेभा राहय खरही।।
चूल्हा छेना बिन नइ सुलगे। शहरी मन हा चुक्ता भुलगे।
आज गैस कूकर हे घर मा। चूल्हा कमती आय नजर मा।।
मनखे होगे सुविधा भोगी। ततके बनगे हावय रोगी।।
भाय दूध छेना आगी के। भोजन भूख भगावै जी के।
खरही खाल्हे डारे डेरा। मुसवा घलो लगाये फेरा।।
घाम घरी बड़ खरही बाढ़े। आय बतर तब रो धो ठाढ़े।।
छेना बिना गोरसी रोये। पेट सेंक तब लइका सोये।।
ईंधन बन छेना जले, कमती पेड़ कटाय।
धुँवा घलो कमती उड़े, जड़ चेतन सुख पाय।
अब के लइका का ये जाने। छेना धर सब आगी लाने।।
धुँवा दिखाये नजर जाय लग। छेना सुपचा देय हूम जग।।
छेना रचके बाट चढ़ावै। छेना मा खपरा पक जावै।।
छेना के सब बारे होरी। माँजे गहना गुठिया गोरी।।
एक आँच मा बनथे खाना। खाय माँग बड़ दादा नाना।
छेना राख भभूती लागे। धुँवा देख के मच्छर भागे।।
राख अबड़ उपजाऊ होवय। पौधा जर मा राख कुढ़ोवय।
बढ़े राख मा सरसर बिरवा। खातू ये बिन मिलवट निरवा।।
छेना राख काम बड़ आये। बर्तन चकचक ले उजराये।।
बइगा छेना राखड़ धरके। मारे मंतर फू फू करके।।
उपयोगी हे राख दाँत बर। उपयोगी हे राख आँत बर।।
घावउ गोंदर खजरी कीड़ा। राख लगाये भागे पीड़ा।।
गोधन रख जे सेवा करथे। तेखर घर नित खरही बढ़थे।।
गुण गोबर के हे आगर जस। गुण कारी छेना हावै तस।।
जनम धरत छेना ला कहिथे। मरत समय तक छेना रहिथे।
मनुष आधुनिक कतको होवय। कभुन कभू छेना बर रोवय।
बिके अमेजन मा छेना हा। देख निकलथे मुख ले हाहा।।
जी सकथे मनखे बिन डेना। फेर जरूरी हावै छेना।।
छेना हे बड़ काम के, गरुवा गाय बिसाव।
थोपव गोबर सान के, खरही ऊँच बनाव।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)